Nevil singh
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taal se taal toh bahut gajab ki bajate ho bhaiupdate 41
बस आधे रास्ते पहुँची थी, रात के 8 बजे थे तो मैं ऋतू को अपने साथ ले कर नीचे उतरा और उसे खाने को कुछ कहा| उसके लिए मैंने परांठे मंगाए और मैंने बस एक चिप्स का पैकेट लिया| खाना खा कर हम वापस अपनी सीट पर बैठ गए, ऋतू ने अपना सर मेरे सेने पर रख दिया था और अपनी बाहें मेरी कमर के इर्द-गिर्द कस ली थीं|
मैं: जान! क्यों परेशान हो आप? मैं आपके पास हूँ ना?
ऋतू: आपको खो देने से डर लगता है|
मैं: ऐसा कभी नहीं होगा|
अब मुझे कैसे भी कर के ऋतू की बेचैनी मिटानी थी;
मैं: अच्छा एक बात तो बताओ आप ये रिंग हमेशा पहने रहते हो?
ऋतू: सिर्फ हॉस्टल के अंदर नहीं पहनती वरना आंटी जी पूछती|
ऋतू ने बड़े बेमन से जवाब दिया|
मैं: Hey! .... जान! अच्छा एक बात बताओ?
ऋतू: हम्म
मैं: शादी कब करनी है?
ये सुनते ही ऋतू की आँखें चमक उठीं और वो मेरी तरफ आस भरी नजरों से देखने लगी|
ऋतू: आप .... सच?
मैं: मैंने आपको प्रोपोज़ कर दिया और तो और हम दोनों ...you know ... बहुत क्लोज आ चुके हैं तो अब बस शादी करना ही रह गया है|
ऋतू: (खुश होते हुए) मेरे फर्स्ट ईयर के पेपर हो जाएँ फिर|
मैंने ऋतू के माथे को चूम लिया और अब ऋतू की खुशियाँ लौट आईं थी| मैंने ऋतू से उसका दिल खुश करने को कह तो दिया था पर ये डगर बहुत कठिन थी| मेरे दिमाग बस यही सोच रहा था की कहीं से मुझे कोई ट्रांसफर का ऑप्शन मिल जाए ताकि मैं ऋतू का कॉलेज कॉरेस्पोंडेंस/ ओपन में ट्रांसफर कर दूँ जिससे उसकी पढ़ाई बर्बाद ना हो| आखरी ऑप्शन ये था की मैं उसकी पढ़ाई छुड़ा दूँ और जब हम दोनों शादी कर के सेटल हो जाएँ तब वो फिर से अपनी पढ़ाई शुरू करे, पर उसमें दिक्कत ये थी की उसे फर्स्ट ईयर से शुरू करना पड़ता| यही सब सोचते हुए मैं जगा रहा और रात के सन्नाटे में गाड़ियों को दौड़ते हुए देखता रहा| रात 2 बजे बस ने हमें लखनऊ उतारा, मैंने कैब बुक की और हम घर आ गए| मैंने सामान रखा और ऋतू बाथरूम में घुस गई| इधर मुझे भूख लग रही थी तो मैंने मैगी बनाई और तभी ऋतू बाहर आ गई| "मैं भी खाऊँगी!" कहते हुए ऋतू ने मुझे पीछे से कस कर जकड़ लिया| उसने अभी मेरी एक टी-शर्ट पहनी थी और नीचे एक पैंटी थी बस! मैंने अभी कपडे नहीं उतारे थे, ऋतू ने पीछे से खड़े-खड़े ही मेरी कमीज के बटन खोलने शुरू कर दिए| फिर वो अपना हाथ नीचे ले गई और मेरी पैंट की बेल्ट खोलने लगी| धीरे-धीरे उसे भी खोल दिया, अब उसने ज़िप खोली और फिर बटन खोला| पैंट सरक कर नीचे जा गिरी, मैं ऋतू का ये उतावलापन देख रहा था और मुस्कुरा रहा था| आखरी में उसने मेरी कमीज भी निकाल दी और अब बस एक बनियान और कच्छा ही बचा था| उसका ये उतावलापन मेरे अंदर भी आग लगा चूका था, मैंने गैस बंद की और ऋतू को गोद में उठा कर उसे बिस्तर पर लिटाया| अपनी बनियान निकाल फेंकी और ऋतू के ऊपर छा गया| ऋतू ने अपने दोनों हाथों से मेरे चेहरे को पकड़ा और मेरे होठों को अपने होठों से मिला दिया| मैंने अपनी जीभ उसके में में प्रवेश कराई थी की उसने मुझे धक्का दिया और खुद मेरे पेट पर बैठ गई| अपने निचले होंठ और जीभ के साथ उसने मेरे ऊपर वाले होंठ को अपने मुँह भर लिया| इधर मैंने उसकी टी-शर्ट के अंदर हाथ दाल दिया और उसके स्तनों को धीरे-धीरे मींजने लगा| वो मुलायम एहसास आज मुझे पहली बार इतना सुखदाई लग रहा था, मन कर रहा था की कस कर उन्हें दबोच लूँ और उमेठ लूँ पर आज मैं अपने प्यार को दर्द नहीं प्यार देना चाहता था| दो मिनट में ही ऋतू की बुर गीली हो गई और मुझे उसका गीलापन अपने पेट पर उसकी पैंटी से महसूस होने लगा| वो अब भी बिना रुके मेरे होठों का रस पान करने में व्यस्त थी, उसके हाथों का दबाव मेरे चेहरे पर बढ़ने लगा था| मैंने ऋतू को धीरे-धीरे अपने मुँह से दूर करना चाहा पर वो तो जैसे मेरे होठों को छोड़ना ही नहीं चाहती थी| बड़ी मुश्किल से मैंने उससे अपने होंठ छुड़ाए और उसकी आँखों में देखा तो मुझे एक ललक नजर आई| उस ललक को देख मेरा मन बेकाबू होने लगा और इधर ऋतू के जिस्म में तो सेक्स की आग दहक चुकी थी| उसने खड़े हो कर अपनी पैंटी निकाल फेंकी और धीरे-धीरे मेरे लंड पर बैठने लगी| पहले के मुकाबले आज लंड धीरे-धीरे अंदर फिसलता जा रहा था, ऋतू जरा भी नहीं झिझकी और धीरे-धीरे और पूरा का पूरा लंड उसने अपनी बुर में उतार लिया| शायद कल की जबरदस्त चुदाई के बाद उसकी बुर मेरे लंड की आदि हो चुकी थी! पूरा लंड जड़ तक समां चूका था और ऋतू बस गर्दन पीछे किये चुप-चाप बैठी थी| दस सेकंड बाद उसने अपनी कमर को क्लॉकवाइज़ घूमना शुरू कर दिया| अब ये मेरे लिए पहली बार था, अंदर से ऐसा लग रहा था जैसे मेरा लंड ऋतू की बुर की दीवारों से हर जगह से टकरा रहा है| फिर पांच सेकंड बाद ऋतू ने अपनी कमर को एंटी-क्लॉकवाइज़ घुमाना शुरू कर दिया| मुझे अब इसमें भी मजा आने लगा था| फिर ऋतू रुकी और मेरा दोनों हाथ पकड़ के सहारा लिया और उकडून हो कर बैठ गई और मेरे लंड पर उठक-बैठक शुरू कर दी| लंड पूरा बाहर आता, बस टिप ही अंदर रहती और फिर ऋतू झटके से नीचे बैठती जिससे पूरा का पूरा लंड एक बार में सट से अंदर घुसता| पर बेचारी दो मिनट भी उठक-बैठक नहीं कर पाई और मेरी छाती पर सर रख कर लेट गई| मैंने अपने दोनों हाथो को उसकी कमर पर कसा और अपने कूल्हे हवा में उठाये और जोर-जोर से धक्के नीचे से लगाने शुरू कर दिए| "ससस..आह...हहह.ह.ह.ह.हह.ह.मम..म..उन्हक!" ऋतू की आवाजें कमरे में गूंजने लगी| जब ऋतू मेरे लंड पर उठक-बैठक कर रही थी तब उसके मुँह से कोई आवाज नहीं निकल रही थी क्योंकि वो बहुत धीरे-धीरे कर रही थी पर अभी जब मैंने तेजी से उसकी बुर चुदाई की तो वो सिस्याने लगी थी| पांच मिनट तक पिस्टन की तरह मेरा लंड ऋतू की बुर में अंदर-बाहर होने लगा था| ऋतू ने अपने दाँतों को मेरी कालर बोन में धंसा दिया था| मैंने आसन बदला और ऋतू के नीचे ले आया और खुद पलंग से नीचे उतर कर खड़ा हो गया| मैंने ऋतू को खींचा उसकी दोनों टांगों के बीच खड़ा हुआ और ऋतू की कमर बिलकुल बसिटर के किनारे तक ले आया| फिर धीरे से अपना लंड उसकी बुर से भिड़ा दिया और धीरे-धीरे अंदर दबाने लगा| लंड पूरा का पूरा अंदर चला गया और मैं ऋतू के ऊपर झुक गया| उसके होठों को चूमा और उसकी आँखों में देखने लगा पर पता नहीं कैसे ऋतू समझ गई की मैं क्या चाहता हूँ| "जानू! फुल स्पीड!" इतना कह कर वो मुस्कुरा दी और उसकी ये बात मेरे लिए उस हरी झंडी की तरह थी जो किसी रेस कार को दिखाई जाती है| उसके बाद तो मैंने जो ताक़त लगा कर ऋतू की बुर में लंड अंदर-बाहर पेला की उसका पूरा जिस्म हिल गया था| ऋतू के हाथ बिस्तर को पकड़ना चाहते थे की कहीं वो गिर ना जाये पर मेरी रफ़्तार इतनी तेज थी की वो कुछ पकड़ ही नहीं पाई और अगले दस मिनट बाद पहले वो झड़ी और फिर मैं| झड़ते ही मैं ऋतू पर जा गिरा और उसने अपनी टांगों को मेरी कमर पर कस लिया, साथ ही अपने हाथों से मेरी गर्दन को लॉक कर दिया| कल रात के बाद ये दूसरा मौका था जब ऋतू ने मेरा साथ इतनी देर तक दिया था| करीब पाँच मिनट बाद जब दोनों की साँसे दुरुस्त हुईं तो हम अलग हुए और अलग होते ही लंड ऋतू की बुर से फिसल आया| लंड के साथ ही ऋतू के बुर में जमी मलाई भी नीचे टपकने लगी| मैं भी ऋतू की बगल में उसी की तरह टांगें लटकाये हुए लेट गया| पहले ऋतू उठी और जा कर बाथरूम में मुँह-हाथ धो कर आई और फिर मैं उठा| हमने किचन काउंटर पर खड़े-खड़े ही सूख कर अकड़ चुकी मैगी खाई| ऋतू ने बर्तन धोने चाहे तो मैंने उसे मना कर दिया, उसने फर्श पर से हमारी मलाई साफ़ की और हम दोनों बिस्तर पर लेट गए| सुबह के 4 बजे थे और अब नींद बहुत जोर से आ रही थी| मैं और ऋतू एक दूसरे से चिपक कर सो गए|
सुबह के 6 बजे ऋतू बाथरूम जाने को उठी और मेरी भी नींद तभी खुली पर मन नहीं किया की उठूँ| इसलिए मैं सीधा हो कर लेट गया, जब ऋतू बाथरूम से निकली तो उसकी नजर मेरे मुरझाये हुए लंड पर पड़ी| वो बिस्तर पर चढ़ी और मेरी टांगों के पास बैठ गई| मेरी आँख लग गई थी पर जैसे ही ऋतू ने मेरे लंड को अपने मुँह में लिया मैं चौंक कर उठा और ऋतू को देखा तो वो आज बड़ी शिद्दत से मेरे लंड को चूस रही थी| मेरे सुपाडे को वो ऐसे चूस रही थी जैसे की वो कोई टॉफी हो| अपनी जीभ से वो मेरे पूरे सुपाडे को चाट रही थी और उसके ऐसा करने से मेरे जिस्म के सारे रोएं खड़े हो चुके थे| मैंने अपने हाथों को ऋतू के सर पर रख दिया और उसे नीचे दबाने लगा| ऋतू समझ गई और उसने मेरे लंड को धीरे-धीरे अपने मुँह में उतारना शुरू कर दिया| 5 सेकंड में ही मेरा पूरा लंड उसके मुँह में उतर गया और ऋतू ऐसे ही रुकी रही| मेरी तो हालत खराब हो गई, उसकी गर्म सांसें और मुँह की गर्माहट मेरे लंड को आराम दे रही थी| अब ऋतू घुटनों के बल बैठी और अपने मुँह को मेरे लंड के ऊपर अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया| वो जब मुँहनीचे लाती तो लंड जड़ तक उसके गले में उतर जाता और फिर जब वो अपने मुँह को ऊपर उठाती तो बिलकुल सुपाडे के अंत तक अपने होठों को ले जाती| उसकी इस चुसाई के आगे मैं बस पॉँच मिनट ही टिक पाया और अपना गाढ़ा-गाढ़ा वीर्य उसके मुँह में उगल दिया| मुझे हैरानी तो तब हुई जब वो मेरा सारा का सारा वीर्य पी गई और मैं आँखें फाड़े उसे देख रहा था| वो मुझे देख कर मुस्कुराई और फिर बाथरूम चली गई, मैं उठ कर बैठ गया और दिवार से टेक लगा कर बैठ गया, सुबह से ऋतू के इस बर्ताव से मेरे जिस्म में खलबली मच चुकी थी| ऋतू ठीक वैसे ही सेक्स में मेरा साथ दे रही थी जैसा मैं चाहता था| जब ऋतू मुँह धो कर आई तो मेरी जाँघ पर सर रख कर लेट गई;
मैं: जान! एक बात तो बताओ? ये सब कहाँ से सीखा आपने?
ऋतू: (जान बुझ कर अनजान बनते हुए|) क्या?
मैं: (उसकी शरारत समझते हुए|) ये जो आपने गुड मॉर्निंग कराई अभी मेरी वो? और जो आप इतनी देर तक मेरे साथ टिके रहे वो? आपका सेक्स में खुल कर पार्टिसिपेट करना वो सब?
ऋतू: लास्ट टाइम आपने मुझे डाँटा था ना, तो मुझे एहसास हुआ की अगर मैं आपको खुश न रख सकूँ तो लानत है मेरे खुद को आपकी पत्नी कहने पर| इसलिए उस कुटिया से मैंने बात की और उसे कहा की मैं अपने बॉयफ्रेंड को sexually खुश नहीं कर पाती| तो उसने मुझे बहुत साड़ी पोर्न वीडियो दिखाई, इतनी तो शायद आपने नहीं देखि होगी! पर आलतू-फ़ालतू वीडियो नहीं ...कुछ वीडियो X - Art की थी, कुछ Fellatio वाली...कुछ कामसूत्र वाली और एक तो वो थी जिसमें एक टीचर कुछ कपल्स को एक साथ बिठा कर सिखाती है की अपने पार्टनर को खुश कैसे करते हैं|
ये सब बताते हुए ऋतू बहुत उत्साहित थी और मैं उसके इस भोलेपन को देख मुस्कुरा रहा था|
ऋतू: बाकी रहा मेरा वो सेल्फ कण्ट्रोल....तो उसके लिए मैंने बहुत एफर्ट किये! मस्टरबैशन बंद किया... थोड़ा योग भी किया...
ये कहते हुए वो हँसने लगी और मेरी भी हँसी निकल गई| सच्ची ऋतू बहुत ही भोलेपन से बात करती थी...
ऋतू: मैंने न....वो.... Kinky वाली वीडियो भी देखि.... बहुत मजा आया.... पर वो सब शादी के बाद!
इतने कह कर वो शर्मा गई और मेरी नाभि से अपना चेहरा छुपा लिया और कस के लिप्त गई| मैं उसके सर पर हाथ फेरने लगा और हम दोनों ऐसे ही सो गए| हम 11 बजे उठे और अब बड़ी जोर से भूख लगी थी| मैंने ऋतू से पूछा की क्या वो भुर्जी खायेगी तो उसने हाँ कहा और नहाने चली गई| अब चूँकि उसने कभी अंडा पकाया नहीं था इसलिए मैंने ही भुर्जी बनाई| जब ऋतू नहा कर आई तो पूरे कमरे में भुर्जी की खुशबु भर गई थी, ऋतू ने अभ भी मेरी एक टी-शर्ट पहनी हुई थी और नीचे अपनी पैंटी| वो चल कर मेरे पास आई और मैंने उसे ब्रेड से एक कौर खिलाया| पहला कौर खाते ही उसकी आँखें चौड़ी हो गईं और वो बोली; "Wow!!!" उसकी ख़ुशी छुपाये नहीं छुप रही थी| "मैंने उस दिन कहा था ना की मेरे हाथ की भुर्जी खाओगी तो याद करोगी!" मैंने ऋतू को वो दिन याद दिलाया| "आज से आप जो कहोगे वो हर बात मानूँगी|" ऋतू ने कान पकड़ते हुए कहा| फिर हमने डट के भुर्जी खाई और लैपटॉप में मूवी देखने लगे| शाम हुई तो ऋतू ने चाय बनाई और मैं उसे ले कर छत पर आ गया| छत पर टंकियों के पीछे थोड़ी जगह थी जहाँ मैं हमेशा बैठा करता था| वहाँ से सारा शहर दिखता था और रात होने के बाद तो घरों की छोटी-छोटी टिमटिमाती रौशनी देख के मैं वहीँ चुप-चाप बैठ जाय करता था| अंधेरा होना शुरू हुआ था और हम दोनों वहाँ बैठे थे, ऋतू का सर मेरे कंधे पर था और वो भी चुप-चाप थी| "हम बैंगलोर में भी ऐसा ही घर लेंगे जहाँ से सारा शहर दिखता हो| एक बालकनी जिसमें छोटे-छोटे फूल होंगे, रोज वहीँ बैठ कर हम चाय पीयेंगे| जब कभी लाइट नहीं होगी तो हम वहीँ सो जाएंगे, एक छोटा सा डाइनिंग टेबल जहाँ रोज सुबह मैं आपको नाश्ता ख़िलाऊँगी, हमारा बैडरूम जिसमें एक रोशनदान हो और सुबह की पहली किरण आती हो| हमारे प्यार की निशानी के लिए एक पालना... " ऋतू बैठे-बैठे हमारे आने वाले जीवन के बारे में सब सोच चुकी थी और सब कुछ प्लान कर चुकी थी|
"वैसे तुम्हे लड़का चाहिए या लड़की?" मैंने पूछा|
"लड़का... और आपको?" ऋतू ने मुझसे पुछा|
"लड़की.. जिसका नाम होगा 'नेहा'|" मैंने गर्व से कहा|
"और लड़के का नाम?"
"आयुष"
"आपने तो सब पहले से ही सोच रखा है?" ऋतू ने खुश होते हुए कहा|
हम दोनों वहीँ बैठे रहे और जब रात के नौ बजे तब नीचे आये| ऋतू ने रात का खाना बनाया और ठीक ग्यारह बजे हम खाना खाने बैठ गए| ऋतू मुझे अपने हाथ से खिला रही थी, पर जब मैंने उसे खिलाना चाहा तो उसने 1-2 कौर ही खाये| खाने के बाद उसने बर्तन धोये और हम लैपटॉप पर मूवी देखने लगे| मूवी में एक हॉट सीन आया और उसे देख कर ऋतू गर्म होने लगी| उसका हाथ अपने आप ही मेरे लंड पर आ गया और वो मेरे बरमूडा के ऊपर से ही उसे मसलने लगी| ऋतू के छूने से ही मेरे जिस्म में जैसे हलचल शुरू हो चुकी थी| पहले तो मैं खुद को अच्छे से कण्ट्रोल कर लिया करता था पर पिछले दो दिनों से मेरा खुद पर काबू छूटने लगा था| मैंने लैपटॉप पर मूवी बंद कर दी और गाना चला दिया; "दिल ये बेचैन वे!" ऋतू मुस्कुरा दी और मुझे नीचे धकेल कर मेरे ऊपर चढ़ गई और मेरे होठों को अपने मुँह में ले कर चूसने लगी| आज वो बहुत धीरे-धीरे मेरे होठों को चूस रही थी और इधर मेरी धड़कनें बेकाबू होने लगी थीं| मुझसे ऋतू का ये स्लो ट्रीटमेंट बरदाश्त नहीं हो रहा था, इसलिए मैंने उसे पलट कर अपने नीचे किया| फिर नीचे को बढ़ने लगा पर ऋतू ने मुझे नीचे नहीं जाने दिया, उसने ना में गर्दन हिलाई और मुझे उसकी बुर को चूसने नहीं दिया| मेरा बरमूडा उसने नीचे किया पर पूरा निकाला नहीं, लंड हाथ में पकड़ उसने अपनी पैंटी सामने से थोड़ा सरकाई और मेरे लंड पकड़ कर उसने अपनी बुर से स्पर्श करा दिया| मैंने अपनी कमर पीछे को की और धीरे से एक झटका मारा और मेरा सुपाड़ा ऋतू की बुर में दाखिल हो गया| ऋतू ने अपने दोनों हाथों से मेरे कन्धों को पकड़ लिया, मैंने फिर से कमर पीछे की और अपना लंड जितना अंदर डाला था वो बाहर निकाल कर फिर से अंदर पेल दिया| इस बार लंड आधा अंदर चला गया, ऋतू के मुँह से सिसकारी निकली; "सससससस स.स..आअह!!!" मैंने एक आखरी झटका मारा और पूरा लंड अंदर चला गया ठीक उसी समय गाने की लाइन आई;
सावन ने आज तो, मुझको भिगो दिया...
हाय मेरी लाज ने, मुझको डुबो दिया...
सावन ने आज तो, मुझको भिगो दिया...
हाय मेरी लाज ने, मुझको डुबो दिया...
ऐसी लगी झड़ी, सोचूँ मैं ये खड़ी...
कुछ मैंने खो दिया, क्या मैंने खो दिया...
चुप क्यूँ है बोल तू...
संग मेरे डोल तू...
मेरी चाल से चाल मिला...
ताल से ताल मिला...
ताल से ताल मिला...
इस दौरान में बस ऋतू को टकटकी बांधे देखता रहा और ऐसा महसूस करने लगा जैसे वो अपने दिल की बात कह रही हो| ऋतू ने जब नीचे से अपनी कमर हिलाई तब जा कर मैंने अपने धक्कों की रफ़्तार पकड़ी| कुछ ही देर में मेरे हिस्से की लाइन आ गई;
माना अनजान है, तू मेरे वास्ते...
माना अनजान हूँ, मैं तेरे वास्ते...
मैं तुझको जान लूं, तू मुझको जान ले....
आ दिल के पास आ, इस दिल के रास्ते...
जो तेरा हाल है...
वो मेरा हाल है...
इस हाल से हाल मिला...
ताल से ताल मिला हो, हो, हो...
इन लाइन्स को सुन ऋतू बस मुस्कुरा दी और मैंने इस बार बहुत तेज गति से उसकी बुर में लंड पेलना शुरू कर दिया| अगले दस मिनट तक एक जोरदार तूफ़ान उठा जिसने हम दोनों के जिस्मों को निचोड़ना शुरू कर दिया और जब वो तूफ़ान थमा तो हम दोनों एक साथ झड़ गए| ऋतू की बुर एक बार फिर मेरे वीर्य से भर गई और मैं उस पर से हैट कर दूसरी तरफ लेट गया| ऋतू ने मेरी तरफ करवट की और अपना दायाँ हाथ मेरे सीने पर रख कर सो गई| नींद तो मुझे भी आने लगी थी और फिर एक खुमारी सी छाई जिससे मैं भी चैन से सो गया|
jakhash update hai bhai