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Romance काला इश्क़! (Completed)

Nevil singh

Well-Known Member
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मुहूरत निकला तो सब को फिर से मुँह मीठा करने का मौका मिल गया| ताऊ जी ने रसोइये को गर्म-गर्म जलेबियाँ लाने को कहा| फटाफट गर्म-गर्म जलेबियाँ आईं और ठंडी की शाम में, अलाव के सामने बैठ के सब ने जलेबियाँ खाईं! 7 बजते-बजते ठण्ड प्रचंड हो गई इसलिए सब नीचे आ गए और नीचे बरामदे में बैठ गए| रसोइयों ने खाना बनाना शुरू कर दिया था जिसके खुशबु सब को मंत्र-मुग्ध किये हुए थी| मैं यहाँ सब मर्दों के साथ बैठा था और अनु वहाँ सब औरतों के साथ| नेहा मेरी गोद में थी और अपनी पयाली-प्याली आँखों से मुझे देख रही थी| अब अनु जब से आई थी तब से उसने नेहा को गोद में नहीं लिया था और उसकी ममता अब रह-रह कर टीस मारने लगी थी| आखिर वो भाभी को ले कर कमरे से बाहर निकली और उस कमरे की तरफ देखने लगी जहाँ मैं सब के साथ बैठा था| भाभी चुटकी लेने से बाज़ नहीं आईं और बोलीं; "बेकरारी का आलम तो देखो?" ये सुन कर दोनों खी-खी करके हँसने लगी| इधर कल सुबह जाने की बात हो रही थी तो मैंने कहा की मैं सब को घर छोड़ दूँगा पर डैडी जी बोले; "बेटा तुम्हें तकलीफ करने की कोई जर्रूरत नहीं है!" पर चन्दर भैया जानते थे की मेरा असली मकसद क्या है और वो बोल पड़े; "चाचा जी! मानु इसलिए जाना चाहता है ताकि अनुराधा के साथ रह सके!" चन्दर भैया ने बात कुछ इस ढंग से कही की सब समझ गए और हँस पड़े| "अब तो तुमने बिलकुल नहीं जाना! अब तुम दोनों शादी के बाद ही मिलोगे!" डैडी जी बोले| "सही कहा समधी जी आप ने! भाई थोड़ा रस्मों-रिवाजों की भी कदर करो!" ताऊ जी बोले| इधर अनु और भाभी ने साड़ी बात सुन ली थी और ये ना मिलने वाली बात सुन अनु का दिल बैठा जा रहा था| उसने बड़ी आस लिए हुए भाभी की तरफ देखा और भाभी सब समझ गईं| "मानु...जरा इधर आना!" भाभी ने मुझे आवाज दी और मैं नेहा को ले कर बाहर आया| मेरी शक्ल पर बारह बजे देख वो समझ गईं की आग दोनों तरफ लगी है| भाभी कुछ कहती उसके पहले ही मेरी नजर ऊपर गई और देखा तो रितिका नीचे झाँक रही है| "भाभी कुछ करो ना? देखो कल मुझे 'इन्हें' छोड़ने भी नहीं जाने दे रहे!" मैंने मुँह बनाते हुए कहा| भाभी एक मिनट कुछ सोचने लगी और फिर ऊँची आवाज में बोलीं; "अरे मानु तुमने अनुराधा को अपना कमरा तो दिखाया ही नहीं?" उनकी बात सुन कर हम दोनों समझ गए और दोनों सीढ़ियों की तरफ जाने लगे| "अरे नेहा को तो देते जाओ, इसका वहाँ क्या काम?" भाभी ने फिर से दोनों की चुटकी लेते हुए कहा| मैंने एक बार देख लिया की कोई देख तो नहीं रहा और ये भी की रितिका देख ले, फिर मैंने झट से अनु का हाथ पकड़ा और हम दोनों ऊपर आ गए| रितिका जल्दी से अपने कमरे में छिप गई और दरवाजा बंद कर लिया| हम दोनों मेरे कमरे में घुसे, अनु आगे थी और मैं पीछे| मैंने दरवाजा हल्का से चिपका दिया और जैसे ही पलटा अनु ने मुझे कस कर गले लगा लिया| "I love you baby!" मैंने कहा और कुछ इतनी आवाज से कहा की रितिका सुन ले| अनु एक दम से मेरा मकसद समझ गई और बोली; "सससस... अब तो इंतजार नहीं होता!" ये सुन कर मेरी हँसी छूट गई पर मैंने कोई आवाज नहीं निकाली और अपने मुँह पर हाथ रख कर हँसने लगा| तभी अनु को एक शरारत सूझी और वो बोली; "कितने दिन हुए मुझे आपको वो गुड मॉर्निंग वाली kissi दिए हुए!" अनु ने मेरी कमीज के ऊपर के दो बटन खोले, मेरी गर्दन को बाईं तरफ झुकाया और अपने होंठ मेरी गर्दन पर रख दिए| मेरे हाथ उसकी कमर पर सख्त हो गए और मैंने उसे कस कर अपने से चिपका लिया| इधर अनु ने अपनी जीभ से मेरी गर्दन की muscle पर चुभलाना शुरू कर दिया| फिर अनु ने जितना हिस्सा उसके मुँह से घिरा हुआ था उसे अपने मुँह में suck कर लिया और दांतों से धीरे से काटा| मेरा लंड एक दम से फूल कर कुप्पा हो गया, अनु को उसके उभार से अच्छे से एहसास भी हुआ और डर के मारे उसने वो kissi तोड़ दी! उसकी आँखें झुक गईं और अनु मुझसे दूर चली गई| मैं समझ गया की उसे अपने इस डर के कारन शर्म आ रही है| मैं धीरे से उसके पास बढ़ा और उसे अपनी तरफ घुमाया, उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों में थामा और उसकी आँखों में देखते हुए धीमे से बोला ताकि रितिका न सुन ले; "Baby ....its okay! Don't blame yourself!" ये सुन कर अनु को तसल्ली हुई वरना वो रो पड़ती| मैंने उसके माथे को चूमा और अनु ने मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया और फिर से अपने होंठ मेरी गर्दन पर रख दिए|


इधर भाभी एकदम से धड़धड़ाती हुई अंदर आईं और हम दोनों को ऐसे गले लगे देख फिर से चुटकी लेने लगीं; "मुझे तो लगा यहाँ मुझे कुछ अलग देखने को मिलेगा पर तुम दोनों तो गले लगने से आगे ही नहीं बढे? तुम्हें और कितना टाइम चाहिए होता है?"

"क्या भाभी? अभी तो इंजन गर्म हुआ था और आपने उस पर ठंडा पानी डाल दिया!" मैंने चिढ़ने का नाटक करते हुए कहा|

"हाय! माफ़ कर दो देवर जी पर नीचे आपके ससुर जी बुला रहे हैं!" भाभी की बात सुन कर मैंने अपनी कमीज के सारे बटन बंद किये और ये देख कर भाभी की हँसी छूट गई; "तुम दोनों जिस धीमी रफ़्तार से काम कर रहे हो उससे तो तुम्हें एक रात भी कम पड़ेगी!" भाभी ने फिर से दोनों का मज़ाक उड़ाया| मैंने जा कर भाभी को गले लगाया और उन्हें थैंक यू कहा तो भाभी ने मेरी टाँग खींचते हुए कहा; "देख रही है? जब से मेरी शादी हुई है आज पहलीबार है की मानु ने मुझे ऐसे गले लगाया है! क्यों नई बहु को जला रहे हो?" ये सुन कर अनु ने भी पीछे से आ कर भाभी को गले लगा लिया| अब हम दोनों ही भाभी के गले लगे हुए थे की तभी ताई जी हमें ढूढ़ती हुई आ गईं; "अरे वाह! देवर-देवरानी और भाभी तीनों एक साथ गले लगे हुए हो?" हम दोनों ताई जी को देख कर अलग हुए और भाभी ने अपनी बात फिर से दोहराई तो ताई जी ने उनके सर पर प्यार से एक चपत लगाई और बोलीं; "जब उस दिन घर आया था तब गले नहीं लगाया था?" तब भाभी को याद आया की जब मैं पहलीबार घर आया था तब मैंने सब को गले लगाया था|

खेर रात के खाने का समय हुआ और सब ने एक साथ टेबल-कुर्सी पर बैठ कर खाना खाया, फिर जैसे ही गाजर का हलवा आया तो सारे खुश हो गए| डैडी जी ने ताऊ जी के इंतजाम की बड़ी तारीफ की, फिर खान-पान के बाद सब सोने चल दिए| ताऊ जी वाले कमरे में डैडी जी, पिताजी और ताऊ जी लेटे, चन्दर भैया वाले कमरे में भाभी और अनु सोने वाले थे और मेरे कमरे में मैं और चन्दर भैया सोने वाले थे| बाकी बची माँ, मम्मी जी और ताई जी तो वो माँ वाले कमरे में लेट गए| रसोइये जा चुके थे और बरामदे में बस मैं, चन्दर भैया, अनु और भाभी आग के अलाव के पास बैठे थे| नेहा मेरी गोद में थी और मेरी ऊँगली पकड़ कर खेल रही थी| "आपको क्या जर्रूरत थी मानु के छोड़ने जाने पर कुछ कहने की?" भाभी ने चन्दर भैया की क्लास लेते हुए कहा| "अरे मैं तो...." भैया कुछ कह पाते इससे पहले मैं बोल पड़ा; "सही में भैया एक दिन हमें साथ मिल जाता!"

"हाँ भैया ....अब देखो ना 10 दिन तक...." जोश-जोश में अनु ज्यादा बोल गई और फिर एकदम से चुप हो गई| ये देख कर हम तीनों ठहाका मार के हँसने लगे! "चिंता मत कर बहु! मैंने बात बिगाड़ी है तो मैं ही सुधारूँगा भी! दो एक दिन रुक जा फिर हम तीनों (यानी मैं, भैया और भाभी) शहर आएंगे| हम दोनों काम में लग जाएंगे और तुम दोनों अपना घूम लेना!" भैया की बात सुन मैंने उन्हें झप्पी दे दी! कुछ देर हँस-खेल कर हम सब अपने-अपने कमरों में सोने चल दिए| अगली सुबह हुई और सब नहा-धो कर तैयार हुए और नाश्ता-पानी हुआ| फिर आया विदा लेने का समय तो ताऊ जी और पिताजी सबसे पहले अपने होने वाले समधी जी से गले मिले और ठीक ऐसा ही माँ और ताई जी ने अपनी होने वाली समधन जी के साथ किया| ताऊ जी ने चन्दर भैया को कुछ इशारा किया और वो अपने कमरे से मिठाइयाँ और कपडे का एक गिफ्ट पैक ले कर निकले; "समधी जी ये हमारी तरफ से प्यारभरी भेंट! अब हम अपनी समझ से जो खरीद पाए वो हमने आप सब के लिए बड़े प्यार से लिया|" ताऊ जी बोले और उधर डैडी जी बोले; "अरे समधी जी इसकी तकलीफ क्यों की आपने? हम तो यहाँ रिश्ता पक्का करने आये तो और आपने तो...." डैडी जी का मतलब था की वो तो जल्दी-जल्दी में खाली हाथ आ गए थे और ऐसे में उन्हें शर्म आ रही थी| पर डैडी जी की बात पूरी होने से पहले ही ताऊ जी ने उन्हें एक बार और गले लगा लिया और बोले; "समधी जी कोई बात नहीं!" ताऊ जी ने डैडी जी को इतने कस कर गले लगाया की वो कुछ आगे नहीं कह पाए और मैंने खुद ये समान गाडी में रखवाया| मैंने मम्मी-डैडी जी के पाँव छुए और उधर अनु सब से मिलने और पाँव छूने लगी| "अगली बार तुझे मैं बहु कह कर गले लगाऊँगी!" माँ बोली और फिर सब ने ख़ुशी-ख़ुशी अनु और मम्मी डैडी को विदा किया| उनके जाने के बाद सब घर में आये और ताऊ जी ने चन्दर भैया से मंगनी की रस्म की साड़ी तैयारियाँ शुरू करने को कहा| जिन लोगों ने कल मम्मी-डैडी को आते हुए देखा था वो अब सब आ कर पूछ रहे थे और ताऊ जी और पिताजी बड़े गर्व से मेरी शादी की बात बता रहे थे| दोपहर के खाने के बाद मैंने बात छेड़ते हुए कहा;

मैं: मैं सोच रहा था की शादी में और मँगनी के लिए सारे आदमी सूट पहने!

माँ: और हम लोग?

मैं: आप सब साड़ियाँ.... पर साड़ियाँ मेरी पसंद की होंगी!

ताई जी: ठीक है बेटा जैसा तू ठीक समझे|

ताऊ जी: पर बेटा हम ने कभी सूट नहीं पहना? सारी उम्र हमने धोती और कुर्ते में काटी है तो अब कहाँ हमें पतलून पहना रहा है?

मैं: ताऊ जी थोड़ा तो मॉडर्न बन ही सकते हैं? आप तीनों सूट में बहुत अच्छे लगोगे! फिर ये भी तो सोचिये की हमारे गाँव में आप अकेले होंगे जिसने सूट पहना है!

मेरी बात सुन कर ताऊ जी मान गए, और अगले दिन सुबह-सुबह जाने का प्लान सेट हो गया| कुछ देर बाद अनु का फ़ोन आया की वो घर पहुँच गए हैं और मम्मी-डैडी मेरे घर वालों से बहुत खुश हैं| मैं उस वक़्त नेहा को गोद में ले कर बैठा था और उसकी किलकारी सुन अनु का मन उससे बात करने को हुआ पर वो नन्ही सी बच्ची क्या बोलती? मैंने वीडियो कॉल ऑन की और अनु ने नेहा को अपनी ऊँगली चूसते हुए देखा और वो एकदम से पिघल गई| फिर मैंने अनु को बताया की पिताजी कजी, ताऊ जी और चन्दर भय सूट पहनने के लिए मान गए हैं तो उसने कहा की मैं उसे कलर बता दूँ ताकि वो उस हिसाब से अपने डैडी का सूट सेलेक्ट करे| इसी तरह बात करते हुए और नेहा की किलकारियां देखते हुए हमारी बात होती रही| अगले दिन सुबह हम सब दर्जी के निकल लिए और मैंने वहाँ जा कर हम चारों क सूट का कपडा और डिज़ाइन सेलेक्ट करवाया, दर्जी ने साथ ही साथ सबका मांप भी लिया| शादी के लिए कपडे सेलेक्ट करना फिलहाल के लिए टाल दिया गया था| फिर हम सारे मर्द एक साडी की दूकान में घुसे और वहाँ मैंने एक-एक कर साड़ियों का ढेर लगा दिया| घंटा भर लगा कर मैंने माँ, भाभी और ताई जी के लिए साड़ियाँ ली" उसके बाद ताऊ जी हम सब को सुनार की दूकान में ले गए और वहाँ मुझसे ही अनु के लिए अंगूठी पसंद करने को कहा गया, दुकानदार को हैरानी तो तब हुई जब मैंने उसे अनु की ऊँगली का एक्सएक्ट साइज बताया! खेर खरीदारी कर के हम घर लौट रहे थे और ताऊ जी ने मुझे कोई पैसा खर्च करने नहीं दिया था|


बजार में मोटरसाइकिल का एक नया शोरूम खुला था और मैं बातों-बातों में चन्दर भय से जान चूका था की उन्हें बाइक चलानी आती है| वो तो उनके नशे के चलते ताऊ जी बाइक लेने नहीं देते थे| मैंने सोचा की घर में एक बाइक तो होनी ही चाहिए, इसलिए मैंने चन्दर भैया का हाथ पकड़ा और एक बाइक के शोरूम में घुस गया| "बताओ भैया कौनसी पसद आई आपको?" मैंने खुश होते हुए पुछा|

"बेटा इसकी क्या जर्रूरत है?" ताऊ जी बोले|

"ताऊ जी आज तक मैं सब के लिए कुछ न कुछ लाया हूँ, भैया के लिए बस शर्ट-पैंट ही ला पाया, आज तो एक तौहफा देने दो! मैंने कहा तो ताऊ जी मुस्कुरा दिए और मेरे पिताजी की पीठ पर हाथ रखते हुए उन्हें अपने गर्व का एहसास दिलाया| इधर चन्दर भैया भी भावुक हो गए और मेरे गले लग गए| फिर मैं उनका हाथ पकड़ कर अंदर ले आया और उनसे पुछा तो उन्होंने HF Deluxe सेलेक्ट की पर मेरा मन Hero Passion Pro पर था, माने उन्हें जब उसकी तरफ इशारा किया तो वो एकदम से खुश हो गए और लाल रंग में वही सेलेक्ट की गई| जब मैं पैसे देने लगा तो ताऊ जी ने बड़ी कोशिश की पर मैं जिद्द पर अड़ गया और मैंने उन्हें पैसे नहीं देने दिए| किस्मत से डिलीवरी भी उसी वक़्त मिल गई, मैं और चन्दर भैया फरफराते हुए पहले निकले| ताऊ जी और पिताजी बाद में आये, जैसे ही बाइक घर के बाहर रुकी भैया ने पी-पी हॉर्न की रेल लगा दी| सबसे पहले भाभी निकली और बाइक देख कर एकदम से अंदर भागीं और आरती की थाली ले आईं, ताई जी और माँ भी आ कर बाहर खड़े हो गए और भैया ने बड़े गर्व से कहा की ये मैंने उन्हें तौह्फे में दी है| रितिका ऊपर छत से नीचे झांकते हुए देख रही थी पर उसे ये देख कर जरा भी ख़ुशी नहीं हुई थी| पूजा हुई और मैंने भाभी और भैया को जबरदस्ती ड्राइव पर भेज दिया और मैं, माँ ताई जी सब अंदर आ गए| ताई जी ने हलवा बनाना शुरू किया और मैंने नेहा को गोद में ले कर खेलना शुरू किया| कुछ देर बाद ताऊ जी और पिताजी लौट आये और उनके आने के एक घंटे बाद भैया और भाभी भी लौट आये|


शाम को मैं और अनु वीडियो कॉल पर बात कर रहे थे की तभी भाभी आ गईं और उन्होंने भी अनु से बात करना शुरू कर दिया और आज के तौह्फे के बारे में बताया| तभी भाभी ने इशारे से भैया को ऊपर बुला लिया और उनसे बोली; "देखो मैं कुछ नहीं जानती कल के कल ही दोनों को मिलवाओ!" अनु उस वक़्त वीडियो कॉल पर ही थी और शर्मा रही थी की तभी भैया मुझसे बोले; "तू कपडे पहन मैं अभी ले चलता हूँ तुझे!" ये सुन मैं तो एकदम से खड़ा हुआ पर भाभी बोली; "अभी टाइम ही कहाँ बचा है? कल सुबह चलते हैं, मैं भी इसी बहाने लखनऊ घूम लूँगी|" तो बात तय हुई की कल का दिन हम चारों लखनऊ घूमेंगे, रही ताऊ जी से बात करनी तो वो भी भैया ने खुद कर ली| अगले दिन हम लखनऊ के लिए निकले और पूरे रास्ते भाभी मेरी टाँग खींचती रहीं, "आज तो अपनी होने वाली दुल्हनिया से मिलने जा रहे हो!" अनु हमें लेने बस स्टैंड पहुँच गई थी और वहाँ से हम अलग हो गए| भैया-भाभी घूमने चले गए और मैं और अनु कहीं और निकल लिए| घुमते-घुमते बात चली लोगों को invite करने की तो मैं और अनु नाम गिनने लगे की किस किस को बुलाना है|

मैं: यार मेरे कॉलेज से तो कोई नहीं आ सकता, reason obvious है सब रितिका को जानते हैं!

अनु: मेरा तो कॉलेज ही कॉरेस्पोंडेंस था! कुछ स्कूल के दोस्त हैं पर उनसे मेरी कोई ख़ास-बात चीत नहीं है| एक दोस्त है शालू जिस के घर मैं रुकी थी वो मेरी बहुत अच्छी दोस्त है तो वो जर्रूर आएगी|

मैं: अरुण-सिद्धार्थ ...... उन्हें .....

मैं आगे कुछ नहीं बोल पाया|

अनु: उन्हें बुला तो लें पर वो भी रितिका के बारे में जानते हैं|

मैं: उन्हें सच बता दूँ?

अनु: आप को विश्वास है उन पर?

मैं: बहुत विश्वास है! आपके आने से पहले वही थे जो मुझे थोड़ा-बहुत संभाल पा रहे थे| ज्यादा से ज्यादा क्या होगा की वो loud react करेंगे और दोस्ती टूट जायेगी!

अनु: जितना मैं उन्हें जानती हूँ वो शायद ऐसा कुछ न कहें!

मैंने फ़ोन निकाला और अरुण-सिद्धार्थ को कॉन्फ्रेंस कॉल पर लिया; "यार कुछ बहुत जर्रूरी बात करनी है, अभी मिलना है! प्लीज!!!" आगे मुझे कुछ बोलना नहीं पड़ा और उन्होंने फ़ौरन जगह और टाइम फिक्स किया|

मैं: मेरी कॉलेज की एकलौती दोस्त है जिसे मैं बुलाना चाहता हूँ|

अनु: मोहिनी? पर उसे भी तो पता है?

मैं: वो अकेली ऐसी दोस्त है जो सब जानते हुए भी मेरे खिलाफ नहीं थी|

मैंने मोहिनी को कॉल मिलाया और उसे सब बताया, रितिका के बारे में सुन कर उसे बहुत गुस्सा आया और वो उसे गाली देने लगी; "हरामजादी कुतिया! इसकी वजह से .....हम दोनों........" वो आगे कुछ नहीं कह पाई| पर मैं उसका मतलब समझ गया था, अगर ऋतू नहीं होती तो आज मैं और मोहिनी साथ होते! "सॉरी....तो कब आना है मुझे?" मोहिनी बोली| "आप मेरी तरफ से आजाओ! मेरे नाते-रिश्तेदार कम हैं!" अनु बोली और उसकी बात सुन मोहिनी को एहसास हुआ की कॉल स्पीकर पर था और अनु ने उसकी सारी बात सुन ली थी इसलिए वो एकदम से खामोश हो गई!

"हेल्लो? मोहिनी?" अनु बोली और तब जा कर मोहिनी ने हेल्लो कहा| "यार its okay .... I know everything ...." ये सुन कर भी मोहिनी कुछ नहीं बोली तो मजबूरन मुझे ही बोलना पड़ा; "अच्छा बाबा आप 20 फरवरी को मेरे घर पहुँच जाना और अपना एड्रेस text कर दो मैं कार्ड भेज देता हूँ!" तब जा कर उसके मुँह से 'सॉरी' निकला और मैंने बाय बोल कर कॉल काट दिया|

मुझे भी थोड़ा awkward फील हुआ पर अनु एकदम नार्मल थी| कुछ देर बाद अरुण और सिद्धार्थ भी मिलने आ गए और मैं उन्हें एकदम से सारी बात नहीं बता सकता था इसलिए मैंने बात घुमाते हुए कहा;

मैं: यार अगर तुम लोगों को मेरे बारे में कोई ऐसी बात पता चले जिससे मेरा करैक्टर खराब हो तो क्या तुम मुझसे दोस्ती रखोगे? या फिर तुम्हारी नजरों में दोस्ती की अहमियत कम हो जाएगी? और फिर तुम सब की तरह मुझे judge करोगे?

अरुण: तू पागल हो गया है क्या?

सिद्धार्थ: हम दोनों हमेशा तेरे साथ हैं, तुझे इतने सालों से जानते हैं तू कभी कोई गलत काम कर ही नहीं सकता!

अरुण: अगर किया भी तो उससे हमारी दोस्ती में फर्क नहीं आएगा? तूने जब ये दारु पीना शुरू किया था तब हम तेरे साथ ही थे ना? तुझे समझाते थे, रोकते थे पर तूने बात नहीं मानी!

सिद्धार्थ: अच्छा अब बता भी क्या बात है?

उनकी बात सुन कर ये साफ़ हो गया था की वो मेरा साथ नहीं छोड़ेंगे| मैंने उन्हें सारी बात बता दी, मुझे पता था की वो मुझे कुछ ज्ञान की बात कहेंगे!

अरुण: यार अब तो तू अनु से प्यार करता है ना?

मैं: हाँ

सिद्धार्थ: तो प्रॉब्लम क्या है? तुम दोनों की शादी कब है?

मैं: 23 फरवरी

अरुण: ठीक है ...तो अब ये सड़ी हुई सी शक्ल क्यों बना रखी है तूने?

सिद्धार्थ: अबे साले! जो हुआ वो तेरा पास्ट था, तेरा इस्तेमाल किया उसने| अब वो सब भूल कर नई जिंदगी शुरू कर!

मैं: पर यार तुम लोगों को .....

अरुण: (मेरी बात काटते हुए) सुन मेरी बात! अगर ये सारा रायता उस लड़की ने ना फैलाया होता और तू तब हमें ये सारी बात बताता तब भी हम तेरा साथ देते, तुझे ताना नहीं मारते! तूने प्यार किया उससे... वो भी सच्चा वाला!

अब ये बात सुन कर सब साफ़ हो चूका था की मेरे दोस्त मेरे साथ हैं और उन्हें जरा भी मतलब नहीं की मेरा और रितिका का रिश्ता क्या था! मेरे दिल पर से आज बहुत बड़ा पत्थर उतर गया था! उनसे ख़ुशी-ख़ुशी विदा ले कर हम दोनों वापस बस स्टैंड आये, जहाँ भैया-भाभी पहले से खड़े थे! भाभी ने हम दोनों के मजे लिए और फिर हम सब अपने-अपने घर लौट आये|


अगले दिन की बात है, दूध पीने के बाद नेहा सो रही थी और मुझे ऑफिस का एक जर्रूरी काम करना था| तो मैं अपना लैपटॉप ले कर छत पर आ गया था और वहाँ बैठा अपना काम कर रहा था की वहाँ पीछे से रितिका आ गई| मेरा ध्यान स्क्रीन पर था और वो मेरे पीछे खड़ी थी, वो पीछे से ही बोली; "ये सब जान बूझ कर रहे हो ना?"
wonderful update hai bhai
 
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Nevil singh

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अब तक आपने पढ़ा:

अगले दिन की बात है, दूध पीने के बाद नेहा सो रही थी और मुझे ऑफिस का एक जर्रूरी काम करना था| तो मैं अपना लैपटॉप ले कर छत पर आ गया था और वहाँ बैठा अपना काम कर रहा था की वहाँ पीछे से रितिका आ गई| मेरा ध्यान स्क्रीन पर था और वो मेरे पीछे खड़ी थी, वो पीछे से ही बोली; "ये सब जान बूझ कर रहे हो ना?"

‘अनु से जब प्यार हुआ तब तो मुझे तेरे साथ हुए हादसे के बारे में पता तक नहीं था, ये तो मेरी किस्मत थी जो मुझे वापस इस घर तक खींच लाई! तो ये जानबूझ कर कैसे हुआ?' मन ये सफाई देना चाहता था पर फिर एहसास हुआ की ना तो रितिका मेरी ये सफाई सुनने के लायक है और ना ही मेरे कुछ कहने से वो बात समझेगी इसलिए मैंने उसे वही जवाब दिया जो वो सुन्ना चाहती थी; "अभी तो शुरुआत है!" इतना कह मैं अपना लैपटॉप ले कर नीचे आने लगा तो वो पीछे से बोली; "मैं तुम्हारी अनु से कितना नफरत करती हूँ ...... ये जानते हुए .....तुमने ये चाल चली?" ये कहते हुए वो पीछे खड़ी ताली मारती रही और मैं चुप-चाप नीचे आ गया| नीचे आ कर मैंने खुद को नेहा के साथ व्यस्त कर लिया| उसी शाम को रितिका ने अपनी चाल चली, रात को सब खाना खा रहे थे की वो ताऊ जी के सामने कान पकड़ कर खड़ी हो गई; "दादाजी.... मैं माफ़ी के लायक तो नहीं पर क्या आप सब मुझे एक आखरी बार माफ़ कर देंगे? मैं ईर्ष्या में जलकर जो कुछ भी किया मैं उसके लिए बहुत शर्मिंदा हूँ और वादा करती हूँ की आज के बाद ऐसा कुछ भी नहीं करूँगी! इस परिवार की इज्जत मेरी इज्जत होगी और मैं इस पर कोई आँच नहीं आने दूँगी!" इतना कहते हुए रितिका ने घड़ियाली आँसू बहाने शुरू कर दिए| ख़ुशी का मौका था और डैडी-मम्मी जी भी कई बार रितिका के बारे में पूछ चुके थे, हरबार झूठ बोलना ताऊ जी को भी अच्छा नहीं लग रहा था| इसलिए उन्होंने रितिका को माफ़ कर दिया और उनके साथ-साथ घर के हर एक सदस्य ने उसे माफ़ कर दिया| पर रितिका न मेरे पास माफ़ी मांगने आई और ना ही मैं उसे माफ़ करने के मूड में था| खेर रंग-रोगन का काम शुरू हो चका था और इस बार रंग मेरे पसंद का करवाया गया था, मेरे कमरे में तो कुछ ख़ास ही म्हणत करवाई जा रही थी और उसका रंग ताऊ जी ने ख़ास कर अनु से पूछ कर करवाया था| घर भर तैयारियों में लगा था पर मुझे कोई काम नहीं दिया गया था, कारन ये की पिछले कई दिनों से मैं ऑफिस नहीं जा पा रहा था और काम बहुत ज्यादा पेंडिंग था तो मेरा सारा समय Con-Call पर जाता| अब तो नेहा भी मुझसे नराज रहने लगी थी क्योंकि मैं ज्यादातर लैपटॉप पर बैठा रहता था| वो ज्यादा कर के माँ के पास रहती और जब मैं उसे लेने जाता तो मेरे पास आने से मना कर देती; "Sorry मेरा बच्चा!" में कान पकड़ कर उससे माफ़ी मांगता तो वो मुस्कुराते हुए माँ की गोद से मेरे पास आ जाती|


सगाई से दो दिन पहले की बात है, मैं छत पर बैठा काम कर रहा था और नेहा नीचे सो रही थी की रितिका कपडे बाल्टी में भर कर आ गई| "एक बात पूछूँ? तुमने ऐसा क्या देख लिया उसमें जो तुम्हें उससे प्यार हो गया? कहाँ वो 33 की और कहाँ मैं 23 की! उसकी जवानी तो ढल रही है और मेरी तो अभी शुरू हुई है! याद है न वो दिन जो हमने एक दूसरे के पहलु में गुजारे थे? तुम तो मुझे छोड़ते ही नहीं थे! हमेशा मेरे जिस्म से खेलते रहते थे! वो पूरी-पूरी रात जागना और पलंगतोड़ सेक्स करना! सससस.... कितनी बार किया तुमने उसके साथ सेक्स? उतना तो नहीं किया होगा जितना मेरे साथ किया था? अरे वो देती ही नहीं होगी! राखी कहती थी की mam को सेक्स वाली बातें करना पसंद नहीं! जिसे बातें ही पसंद ना हो वो सेक्स कहाँ करने देगी? अभी भी मौका है.... मैं अब भी तैयार हूँ!!!!" रितिका ने ये बातें कुछ इस तरह से कहीं के मेरे बदन में आग लग गई| मैं एक दम से उठ खड़ा हुआ और बोला; "तेरी सुई घूम-फिर कर सेक्स पर ही अटकती है ना? नहीं किया मैंने उसके साथ सेक्स और अगर सारी उम्र ना करने पड़े तो भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा! पता है क्यों? क्योंकि वो मुझसे प्यार करती है और मैं भी उससे प्यार करता हूँ! तेरे लिए प्यार की परिभाषा होती होगी सेक्स हमारे लिए नहीं! हमारे लिए बस साथ रहना ही प्यार है!" इतना कह कर मैं पाँव पटककर वहाँ से चला गया| उस दिन रात को जब अनु का फ़ोन आया तो मैंने उससे ये बात छुपाई! आमतौर पर मैं अनु से कोई बात नहीं छुपाता था पर मैंने ये बात उसे नहीं बताई!

उस दिन के बाद से रितिका मुझसे कोई बात नहीं करती, हाँ उसकी घरवालों के साथ अच्छी बनने लगी थी| घर के सभी कामों में वो हिस्सा ले रही थी और उसने सब को ये विश्वास दिला दिया था की वो वाक़ई में बहुत खुश है| एक बदलाव जो मैं अब उसमें देख पा रहा था वो ये था की रितिका ने अब मुझे प्यासी नजरों से देखना शुरू कर दिया था| वो भले ही मुझसे दूर रहती पर किसी न किसी तरीके से मुझे अपने जिस्म की नुमाइश करा देती, कभी जानबूझ कर मेरे पास अपना क्लीवेज दिखाते हुए झाड़ू लगाती तो कभी साडी को अपनी कमर पर ऐसे बांधती जिससे मुझे उसका नैवेल साफ़ दिख जाता| उसकी इन हरकतों का मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था पर बड़ा अजीब सा लग रहा था, ऐसा लगता मानो मुझे उससे घिन्ना आने लगी थी|


आखिर मेरी सगाई का दिन आ ही गया और मम्मी-डैडी और अनु सब गाडी से आ गए| मैं उस वक़्त तैयार हो रहा था इसलिए मैं नीचे नहीं आ पाया, घर के सभी लोगों ने उन्हें रिसीव किया और उन्हें अंदर लाये| इधर अनु की नजरें पूरे घर में घूम रही थीं की मैं दिख जाऊँ, पर भाभी ने उनकी नजरें पकड़ ली थीं और वो उसके कान में खुसफुसाते हुए बोलीं; "आपके मंगेतर अभी तैयार हो रहे हैं!"ये सुन कर अनु शर्मा गई, तभी उसकी नजर रितिका पर पड़ी जो चेहरे पर नकली मुस्कान चिपकाए सब को देख रही थी| डैडी जी ने भी जब उसे देखा तो अपने पास बिठाया और उन्हें उस पर बड़ा तरस आया| "बेटी पिछली बार तुमसे ज्यादा बात नहीं हो पाई, तुम्हारी तबियत ठीक नहीं थी! अब कैसी है तुम्हारी तबियत?" डैडी जी ने पुछा और रितिका ने नकली हँसी हँसते हुए कहा; "जी अंकल अब ठीक है!" अभी आगे वो कुछ बोलते की मैं सूट पहने हुए नीचे उतरा| अनु ने मुझे पहले देखा और उसकी आँखें चौड़ी हो गईं! उसकी ठंडी आह भाभी ने सुन ली और वो बोलीं; "माँ आप कहो तो मानु को काला टीका लगा दूँ!" भाभी की आवाज सुन कर सब मेरी तरफ देखने लगे|

इधर मेरी नजर अनु पर पड़ी और मैं आखरी सीढ़ी पर रुक गया और आँखें फाड़े उसे देखने लगा| घर में सब का ध्यान अब हम दोनों पर ही था और सब चुप हो गए थे| आज अनु को साडी में देखा मेरा मन बावरा हो गया था| आखिर भाभी चल के मेरे पास आईं और मेरा हाथ पकड़ कर मेरी तन्द्रा भंग की! मैं बैठक में आ कर ताऊ जी और पिताजी के बीच बैठ गया| "क्या हुआ था बेटा?" डैडी जी ने पुछा और मेरे मुँह से अचानक निकल गया; "वो बहुत दिनों बाद देखा ना....." ये बोलने के बाद मुझे एहसास हुआ और मैंने शर्म से मुस्कुराते हुए सर झुका लिया| यही हाल अनु का भी था और उसके भी मेरी तरह शर्म से हजाल लाल थे और ये सब देख कर रितिका की आँखें गुस्से से लाल थी|


खेर मँगनी की रस्म शुरू हुई और पहले अनु ने मुझे अंगूठी पहनाई जो थोड़ी loose थी और फिर जब मैंने उसे अंगूठी पहनाई तो वो उसे एकदम फिट आई| सबका मुँह मीठा हुआ और खाना-पीना शुरू हुआ, मैंने भाभी को इशारा किया और वो समझ गईं| भाभी ने अनु को कहा की वो उनके साथ चल कर कमरा देख ले जिसमें पेंट हुआ है| उनके जाते ही दो मिनट बाद मैंने फ़ोन निकाला और ऐसे जताया की मैं फ़ोन पर बात कर रहा हूँ और फिर आंगन में आ गया और धीरे-धीरे सीढ़ी चढ़ कर ऊपर पहुँच गया| भाभी और अनु मेरे कमरे में खड़े मेरा ही इंतजार कर रहे थे| मुझे देखते ही अनु बोली; 'तो आपने भाभी को सब पहले से ही समझा दिया था की उन्हें क्या बहाना कर के मुझे वहाँ से निकालना है?" अनु बोली|

"और क्या?" मैंने कहा और भाभी ये देख कर हँस पड़ी| "यार आपका (भाभी का) काम हो गया, आप जाओ!" मैंने कहा|

"अच्छा जी? ठीक है चल अनुराधा!" भाभी ने एकदम से उसका हाथ पकड़ लिया और नीचे जाने को निकलीं| "Sorry...Sorry...Sorry.... माफ़ कर दो... !!!" मैंने अपने कान पकड़ते हुए कहा| ये देख कर भाभी और अनु दोनों हँस पड़े| "वैसे भाभी आपको नहीं लगता की अनु आज बहुत ज्यादा सुन्दर लग रही है?" मैंने पुछा| मैं तो बस भाभी के जरिये अनु को ये बताना चाहता था की आज वो बहुत सूंदर लग रही है| भाभी के सामने हम दोनों थोड़ा शर्म किया करते थे!

"वो तो तुम्हारा बिना पलके झपकाए देखने से ही पता चल गया था!" भाभी ने मेरी टाँग खींचते हुए कहा|

"वैसे भाभी क़यामत तो आज आपके देवर जी ढा रहे हैं!" अनु ने मेरी तारीफ करते हुए कहा|

"मेरे देवर जी? मैं चली नीचे, वर्ण तुम दोनों मेरी शर्म कर के बार-बार मेरा ही नाम ले-ले कर बातें करोगे|" भाभी बोलीं और हँसते हुए नीचे चली गईं| उनके जाते ही मैंने अनु का हाथ पकड़ लिया; "यार सच्ची आज आप इतने सेक्सी लेग रहे हो की मन करता है आज ही शादी कर लूँ!" मैंने कहा और अनु शर्माते हुए मेरे सीने से आ लगी और बोली; "हैंडसम तो आज आप लग रहे हो!" हम दोनों ऐसे ही गले लग कर खड़े थे की तभी वहाँ हमें बुलाने के लिए रितिका आ गई| हमें इस तरह गले लगे देख उसके जिस्म में बुरी तरह आग लग गई, उसने बड़े जोर से मेरे कमरे के दरवाजे पर हाथ मारा और चिल्लाई; "अभी शादी नहीं हुई है तुम दोनों की!" उसे देखते ही हम दोनों हड़बड़ा गए और अलग हुए पर उसके इस कदर चिल्लाने से मुझे गुस्सा आ गया; "तेरी....... !!!" मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही अनु ने मेरा हाथ पकड़ कर रोक लिया| "बोलने दो बेचारी को! तकलीफ हुई है!!!" अनु ने मुस्कुराते हुए कहा| अनु ने आज उसी अंदाज में कहा जिस अंदाज में उस दिन रितिका ने मेरा मजाक उड़ाया था जब मैं उससे नेहा को माँग रहा था| अनु की बात सुन कर रितिका जलती हुई नीचे चली गई, "मत लगा करो इसके मुँह! ये जानबूझ कर आपको उकसाने आती है!" अनु बोली, मैंने सर हिला कर उसकी बात मान ली और फिर उसे दुबारा अपने पास खींच लिया; "आपको Kiss करने की गुस्ताखी करने का मन कर रहा है!" मैने अनु की आँखों में देखते हुए कहा तो जवाब में अनु ने अपनी आँखें बंद कर लीं| मैंने अभी अनु के होठों पर अपने होंठ रखे ही थे की भाभी आ गई और अपनी कमर पर हाथ रखते हुए बोलीं; "शर्म करो!" उनकी आवाज सुनते ही हम दोनों अलग हो गए| "भाभी हमेशा गलत टाइम पर आते हो!" मैंने शिकायत करते हुए कहा, इधर अनु के गाल शर्म से सुर्ख लाल हो चुके थे! भाभी ने मेरे कान पकड़ लिए; "बेटा ज्यादा ना उड़ो मत! शादी हो जाने दो उसके बाद मैं आस-पास भी नहीं भटकूँगी!" अनु भाभी के पीछे छुप गई और बोली; "तो मुझे बचाएगा कौन?" ये सुन कर तो हम तीनों हँस पड़े और भाभी ने हम दोनों को अपने गले लगा लिया| तभी पीछे से मम्मी जी आ गईं मेरा कमरा देखने और हमें ऐसे गले लगे देख मुस्कुराते हुए बोलीं; "लो भाई! यहाँ तो देवर-देवरानी और भाभी का प्रेम मिलाप चल रहा है!" ये सुन कर हम अलग हुए; "बेटा (भाभी) इसका ख्याल रखना, कभी-कभी ये मनमानी करती है!" मम्मी जी बोलीं| "आप चिंता ना करो मैं अनुराधा का ध्यान अपनी दोस्त जैसा ख्याल रखूँगी|" भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा| आखिर हम नीचे आ गए, फिर खाना-पीना हुआ और इस दौरान रितिका कहीं भी नजर नहीं आई! समय से मम्मी-डैडी और अनु चले गए, पर जाते-जाते अनु ने नेहा को अपनी गोद में लिया और उसके कान में फुसफुसाते हुए कहा; "अब जब आपसे मिलूँगी तो आपको अपने साथ ही रखूँगी!" ये सुन कर नेहा मुस्कुराने लगी और अनु ने उसके माथे को चूमा और मुझे दे दिया|


दिन गुजरने लगे और शादी में अभी एक महीना रह गया था, शादी के कार्ड छप कर आये| मेरे दोस्तों को कार्ड मैंने भेज दिए और ऑफिस स्टाफ को भी कार्ड भेज दिए| रंजीथा को कार्ड अनु ने भेजा और साथ ही उसे टिकट भी भेज दी| इधर घरवालों ने जब नाते-रिश्तेदारों को कार्ड भेजा तो सभी ने पूछना शुरू कर दिया| ताऊ जी ने सब से यही कहा की लड़की सब की पसंद की है और उन्हें बाकी डिटेल नहीं दी, मैं तो वैसे भी इन सब बातों से अनविज्ञ था! शादी से ठीक 15 दिन पहले तक मेरा घर रिश्तेदारों से खचाखच भर चूका था| मैं उन दिनों काम के चलते बहुत ज्यादा बिजी था तो घर में जो कोई भी बात होती वो मेरे सामने नहीं होती थी| दिन में मैं छत पर अपना लैपटॉप ले कर बैठा होता था, रात में मुझे देर तक जागने की मनाही थी| मेरे कुछ cousins कभी-कबार आ कर मेरे पास बैठ जाते और उनके साथ हँसी-मजाक होता| इतने लोग तो रितिका की शादी में भी नहीं आये थे!

एक दिन की बात है की घर में घमासान खड़ा हो गया, बात शुरू की मौसा जी ने! "भाईसाहब! आपकी अक्ल पर पत्थर पड़ गए हैं जो एक तलाकशुदा लड़की की शादी, उम्र में मानु से 5 साल बड़ी की शादी अपने लड़के से करवा रहे हो?" उनकी बात सुनते ही पिताजी और ताऊ जी भड़क उठे, पिताजी के कुछ कहने से पहले ही ताऊ जी बोल उठे; "यहाँ तुम से कुछ पुछा गया? शादी में बुलाया है, चुप-चाप आशीर्वाद दो और निकल जाओ!" मौसा जी ताऊ जी से उम्र में छोटे थे और उनका बड़ा मान करते थे, वैसे तो सभी मान करते थे या ये कहूँ की डरते थे! इसलिए जब ताऊ जी चिल्लाये तो मौसा भीगी बिल्ली बन कर चुप हो गए| बड़ी हिम्मत कर के छोटी मौसी बोलीं; "भाईसाहब लड़की तो हमारी ज़ात की भी नहीं!" उनकी बात का जवाब ताई जी ने दिया; "काहे की ज़ात? जब हम मुसीबत में थे तो कौन से ज़ात वाले सामने आये थे? सब के सब पुलिस के डर के मारे अपने घर में छुपे हुए थे!" ताई जी की बात सुन कर सब के सब चुप-चाप खड़े हो गए| "मेरी बात गौर से सुन लो सारे! तुम में से अगर किसी ने भी इस शादी में विघ्न डाला या कोई ऐसी हरकत की जिससे हमारी मट्टी-पलीत हुई तो उसे गोली से उड़ा दूँगा! तुम में से किसी ने अगर समधी-समधन को या बहु को कुछ भी ताना मारा या कहा ना तो अंजाम तुम्हें मैं बता चूका हूँ! एक आरसे बाद इस घर में खुशियाँ आ रही हैं!" ताऊ जी की दहाड़ सुन सब के सब चुप हो गए| अब मुझे कहने की तो कोई जर्रूरत नहीं की ये लगाई-बुझाई रितिका की थी, एक वही तो थी जो सब कुछ जानती थी! इसलिए मैं इंतजार करने लगा की मुझे कब मौका मिले जब वो अकेली हो| रात को जब मैं नेहा को उससे लेने के बहाने उसके कमरे में पहुँचा तो मुझे वो अकेली अपना बिस्तर ठीक करते हुए दिखी; "मिल गई तेरे कलेजे को ठंडक? लगा ली ना आग?" ये सुनते ही रितिका बोली; "मैंने क्या किया?" उसने अनजान बनने का नाटक किया पर मेरे सामने उसका ये रंग नहीं चल सकता था| "ज्यादा अनजान बनने की कोशिश मत कर! तेरे आलावा यहाँ और कोई है जिसे मेरी खुशियां देख कर आग लग रही हो! दुबारा तूने ऐसा कुछ किया ना तो दुर्गत कर दूँगा तेरी!" मैंने रितिका को हड़काया और नेहा को ले कर अपने कमरे में आ गया| अगले दिन सुबह-सुबह एक बड़ा सा ट्रक घर के आगे खड़ा हो गया, ताऊ जी ने सारे मर्दों को आवाज दी| सभी हैरान थे सिवाए उनके और पिताजी के, जब ट्रक पर से तिरपाल हटा तो उसमें पड़ा सामान देख सब समझ गए| उसमें सारा फर्नीचर था जो ताऊ जी ने स्पेशल आर्डर दे कर बनवाया था| जब सामान उतारने के लिए मैंने हाथ लगाना चाहा तो ताऊ जी ने मना कर दिया| मैं ख़ुशी-ख़ुशी ऊपर आया की एक और टेम्पो की आवाज सुनाई दी, मैंने छत से नीचे झाँका तो पता चला की डैडी जी ने भी कुछ सामान भेजा था| घर में जितने भी रिश्तेदार आये थे सब के सब सामान उतारने में लग गए और पिताजी और ताऊ जी ये ध्यान रख रहे थे की कहीं कुछ टूट ना जाये| मेरा कमरा इतना बड़ा था पर उसमें सामान के नाम पर मेरा सिंगल बेड और एक टेबल था बाकी उसमें ट्रंक रखे हुए थे जिनमें गर्म कपडे होते थे| आज जा कर मेरे कमरे को एक डबल बेड, ड्रेसिंग टेबल, छोटा सोफा, अलमारी और स्टडी टेबल का सुख मिल रहा था| मैं ने अनु को वीडियो कॉल कर के सामान ऊपर चढ़ते हुए दिखाया और वो बहुत खुश हुई|
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शादी में एक हफ्ता रह गया था और पिताजी ने मंदिर में पूजा रखवाई थी| सारा परिवार वहीँ जमा था, में भी वहीँ था और काम में मदद कर रहा था| ताऊ जी ने मुझे कुछ सामान लाने के लिए घर भेजा| जब मैं घर पहुँचा तो वहाँ पर सिर्फ रितिका थी, उसके अल्वा वहाँ कोई नहीं था| मैं सामान लेने अपने कमरे में पहुँचा तो रितिका चुपके से मेरे कमरे के बाहर खड़ी हो गई| जैसे ही मैं सामान ले कर पलटा की रितिका ने अचानक से मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझे खींच कर सीधा छत पर ले आई| मैं उसके साथ नहीं जाना चाहता था पर आज उसकी पकड़ बहुत मजबूत थी और उसमें बहुत ज्यादा ताक़त आ गई थी| छत पर आ कर उसने मेरा हाथ छोड़ दिया और वो घुटनों के बल खड़ी हो गई और अपने दोनों हाथ जोड़ लिए; "प्लीज ....प्लीज मुझे माफ़ कर दो!" रितिका की आँखें छल-छला गईं थी, पर मेरा मन तो जैसे पत्थर का हो चूका था, जिस पर उसके रोने का कोई असर नहीं हो रहा था उल्टा गुस्सा आ रहा था; "किस लिए माफ़ कर दूँ? मेरा दिल तोडा उसके लिए? या फिर मुझे मेरे ही बेटी से दूर किया उसके लिए?" मैंने गुस्से से कहा|

"सबके लिए....मैंने बहुत पाप किये हैं! तुम्हारे दिल के साथ खेल खेला.... जानते-बूझते तुम्हें बहुत दुःख दिया........" इतना कहते हुए रितिका ने मेरे पैर पकड़ लिए और बिलख-बिलख कर रोने लगी| मैंने उसके हाथों की पकड़ खोलनी चाही पर उसने मेरा दाहिना पैर अपनी छाती से जकड़ रखा था| "मैं तुम से बहुत प्यार करती हूँ और तुम्हारे बिना नहीं रह सकती!.....मैं तुम्हें अपनी आँखों के सामने किसी और का होता हुआ नहीं देख सकती! प्लीज....एक मौका दो मुझे" रितिका ने बिलखते हुए कहा| उसकी बात सुन कर एक पल को मेरा दिल पसीज गया, इसलिए मैंने उसे समझाते हुए कहा; "देख हमारे बीच जो कुछ भी था वो सब उसी दिन खत्म हो गया था जब तूने राहुल से शादी की थी| अब मैं अनु से प्यार करता हूँ और वो भी मुझसे बहुत प्यार करती है, हमारी शादी होने वाली है| अब ये पागलपन छोड़ दे और अपने मन से ये बात निकाल दे की मैं अब दुबारा तुझसे प्यार कर सकता हूँ|" मैंने फिर से अपने पाँव को छुड़ाने की कोशिश की|

"नहीं...पहले भी तुम ने मना किया था की तुम मुझसे प्यार नहीं करते पर मेरे प्यार ने तुम्हारे मन में मेरे प्यार की लौ जला दी थी! इस बार भी मैं ऐसा कर सकती हूँ...बस एक मौका दे दो! एक आखरी मौका.....अबकी बार मैंने कुछ भी गलत किया तो मेरी जान ले लेना...मैं उफ़ तक ना करुँगी!...... हम दोनों और नेहा कहीं दूर एक सुकून भरी जिंदगी जियेंगे! मेरा नहीं तो कम से कम नेहा का सोचो? यहाँ से दूर आप उसे कितना प्यार दे सकोगे? .... उसे भी तो अपने पापा का प्यार चाहिए! कल को वो बोलने लगेगी तो आपको क्या कहेगी?" रितिका की नेहा वाली बात सुन कर मैं चुप हो गया था| पर मैं अनु के साथ ये धोका नहीं कर सकता था, इसलिए मैंने ना में सर हिलाया और रितिका की पकड़ से अपना पाँव छुड़ा लिया| मैं नीचे आने को दो ही कदम चला हूँगा की रितिका जमीन से उठ खड़ी हुई और बोली; "अपनी हालत याद है न उस दिन क्या हुई थी? क्या कहा था तुमने उस दिन मुझसे?...... 'तो बोल तुझे क्या चाहिए? जो चाहिए वो सब दूँगा तुझे बस मुझे नेहा से अलग मत कर!'... यही कहा था ना उस दिन ..... ठीक है... आज माँगती हूँ..... इस शादी का ख्याल अपने मन से निकाल दो, मिटा दो अनु की सारी यादें और मैं तुम्हें नेहा दे दूँगी! ये सिर्फ मुँह से नहीं कह रही, बल्कि कानूनी रूप से तुम्हें नेहा की कस्टडी दे दूँगी! फिर बुलवा लेना उसके मुँह से पापा, मैं कुछ नहीं कहूँगी!" रितिका ने फिर से वही जहरीली हँसी हँसते हुए कहा और मुस्कुराते हुए मेरे सामने से गुजरी| मैंने उसका हाथ बड़ी जोर से पकड़ा और उसे झटके से रोका और पीछे की तरफ खींचा, मेरी आँखें आँसुओं से लाल हो गई थी; "दिखा दी ना तूने अपनी ज़ात! नेहा के नाम पर अनु की जिंदगी का सौदा करना चाहती है? तू चाहती है मैं भी उसके साथ वही करूँ जो तूने मेरे साथ किया था? पर मैं तेरी तरह मौका परस्त नहीं हूँ, मैं नेहा से बहुत प्यार करता हूँ पर उसके लिए मैं अनु को नहीं छोड़ सकता! वो मेरे बिना मर जायेगी.....तुझसे कई गुना ज्यादा उससे प्यार करता हूँ!" मैंने रोते हुए कहा, अगले ही पल मेरे आँसू सूख गए और एक बाप का प्यार बाहर आया| मैंने रितिका गाला पकड़ लिया और उसकी आँखों में देखते हुए बोला; "तू अपनी गांड का जोर लगा दे, देखता हूँ कैसे तू नेहा को मुझसे अलग रख पाती है!" मेरे आँखों में गुस्सा देख रितिका आगे कुछ नहीं बोल पाई क्योंकि वो भी जानती थी की वो चाहे कुछ भी कर ले वो ताऊ जी के रहते नेहा को मुझसे दूर नहीं कर सकती थी| "तेरे पास कोई रास्ता नहीं है! तुझे इसी घर में रहना होगा.... तेरी शादी तो उस हत्यकांड के बाद होने से रही! यहाँ रहते हुए तू नेहा को मुझसे कभी अलग नहीं कर पाएगी!" मैंने रितिका की सारी हिम्मत तोड़ दी थी, उसने जो घरवालों का प्यार जीतने के लिए जो कुछ दिन पहले ड्रामा किया था उसके चलते अब वो बुरी नहीं बन सकती थी वरना ताऊ जी समेत सारे घर वाले उसकी जान ले लेते! इतना कहते हुए मैं मंदिर लौट आया और पूजा में शामिल हो गया| पर मैं ये नहीं जानता था की वो कमिनी औरत किसी भी हद्द तक गिर सकती है!

इधर मैं पूजा में बैठा था और उधर उसने अनु को फ़ोन कर दिया| अनु का नंबर वो पहले ही भाभी के फ़ोन से निकाल चुकी थी और आज उसने अपनी गन्दी चाल चली| "हेल्लो! अनु? मैं रितिका बोल रही हूँ!" अनु रितिका की आवाज सुन कर एकदम से चौंक गई और इसके पहले वो कुछ कहती रितिका बोल पड़ी; "कैसी औरत हो तुम? तुम्हारी वजह से मानु अपनी बेटी को छोड़ कर तुमसे शादी कर रहा है! मैंने उससे आज पुछा की क्या वो नेहा के साथ रहना चाहता है या तुम्हारे साथ शादी करना चाहता है तो उसने तुम्हें चुना! शर्म आनी चाहिए तुम्हें, तुम एक बाप को उसी की बेटी से छीन रही हो! वो तुमसे को प्यार नहीं करता बल्कि वो तुम्हारी जानबचाने के लिए तुमसे शादी कर रहा है!" इतना बोल कर रितिका ने कॉल काटा और अनु को एक व्हाट्सअप्प भेजा जिसमें उसने कुछ देर पहले मेरी कही बात का ऑडियो भेजा| उसने बड़ी ही चालाकी से मेरी "तुझसे कई गुना ज्यादा उससे प्यार करता हूँ!" वाली बात को काट दिया और बाकी की बात ऐसे के ऐसे ही उसे भेज दी थी| ये ऑडियो सुन कर अनु एक दम से सन्न रह गई और उसे लगा की मैं उससे कम प्यार करता हूँ और नेहा से ज्यादा प्यार करता हूँ| मेरे इस त्याग के बारे में सोच कर अनु टूट गई, वो कतई नहीं चाहती थी की मैं नेहा को छोड़ूँ बल्कि वो अपने प्यार की कुर्बानी देने को तैयार हो गई थी! अनु ने फ़ौरन एक मैसेज टाइप किया; "I'm calling this wedding off!" और मुझे भेज दिया| मैं उस वक़्त पूजा में था तो उसका मैसेज नहीं देख पाया, पूजा रात नौ बजे तक चली और पूजा के बाद जब मैंने अनु का मैसेज पढ़ा तो मेरे होश उड़ गए, मैंने उसे कॉल करना शुरू किया पर वो फ़ोन नहीं उठा रही थी| मैंने डैडी-मम्मी को कॉल किया तो पता चला की वो बाहर किसी रिश्तेदार के आये हैं! अब मेरी हालत ख़राब हो गई क्योंकि वहाँ अनु अकेली थी और वो कुछ गलत ना कर ले इसलिए मैंने चन्दर भय से बाइक की चाभी माँगी| मेरी शक्ल देखते ही वो समझ गए की कुछ तो बात है, "भैया दोस्त का accident हो गया इसलिए मैं लखनऊ जा रहा हूँ|" इतना कह कर मैं बाइक पर बैठा और अनु के घर की तरफ निकल पड़ा| 4 घंटे का रास्ता मैंने 3 घंटों में पूरा किया, बाइक हवा से बातें कर रही थी और चूँकि मैंने कपडे कम पहने थे सो ठंड से मेरा हाल बुरा था| ये तो मेरे जिस्म में अनु को खो देने का डर था जो मुझे संभाले हुए था वरना इतनी ठंड में बाइक फुल स्पीड से चलाना?!


रात सवा बारह बजे मैं अनु के घर पहुँचा और ताबड़तोड़ घंटियां बजाईं, अनु ने मुझे magic eye से देख लिया था और वो दरवाजे से अपनी पीठ टिकाये रो रही थी पर दरवाजा नहीं खोल रहे थी| इधर मैंने दरवाजा पीटना शुरू कर दिया था, मुझे अभी तक नहीं पता था की अनु दरवाजे से पीठ लगा कर बैठी रो रही है| "अनु....प्लीज दरवाजा खोलो....I know .... तुम घर पर हो....प्लीज....." आखिर अनु बोली; "नहीं...मुझे कोई बात नहीं करनी! Its over!" अनु ने बड़ी मुश्किल से ये कहा था और उसकी आवाज में दर्द महसूस कर मैं टूटने लगा था| "प्लीज....तुम्हें मेरे प्यार का वास्ता! बस एक बार दरवाजा खोल दो! प्लीज...." मैंने काँपते हुए कहा क्योंकि ठंड अब जिस्म पर हावी हो चुकी थी| अनु उठ कर खड़ी हुई, अपने आँसूँ पोछे और दरवाजा खोला और इससे पहले वो कुछ कहती मैं ही उस पर बरस पड़ा: "तुम्हें लगता है की तुम इतनी आसानी से कहोगी की this wedding is off और सब कुछ खत्म हो जाएगा? आखिर मैंने किया क्या है जिसकी सजा मुझे दे रही हो? तुम रितिका की तरह निकलोगी की ये मैं कतई नहीं मान सकता|" मैंने जब ये कहा तो अनु ने अपना फ़ोन निकाला और मुझे वो trimmed रिकॉर्डिंग सूना दी! वो सुनने के बाद मैं समझ गया की ये किसकी कारस्तान है पर अभ के लिए मुझे अनु को संभालना था, उसे सच से रूबरू कराना था| "ये पूरी बात नहीं है!" इतना कह कर मैंने अनु को सब सच बता दिया और अनु आँखें फाड़े सब सुनती रही; "आपने सोच भी कैसे लिया की मैं ऐसा कर सकता हूँ? ये सब उस हरामजादी का किया धरा है और आज मैं उसे जिन्दा नहीं छोड़ूँगा|" इतना कह कर मैं वापस निकलने को पलटा तो अनु ने मेरा हाथ पकड़ लिया और तब उस एहसास हुआ की मेरा पूरा जिस्म बर्फ सा ठंडा हो चूका है| "आप ऐसा कुछ नहीं करोगे! वो यही तो चाहती है.....गलती मेरी है, मुझे आपसे पहले पूछ लेना चाहिए था! पर मैं नहीं चाहती थी की आप नेहा के प्यार से वंचित रहो!" अनु रोते हुए बोली और मुझे अपने गले लगा लिया| उसके गर्म जिस्म का एहसास मुझे मेरे ठन्डे जिस्म पर होने लगा था| "Listen to me! नेहा मेरी बेटी है और इस बात को कोई झुटला नहीं सकता| मैं उससे प्यार करता रहूँगा फिर चाहे हम यहाँ रहे या बैंगलोर में! पहले तो मैं सोच रहा था की मैं नेहा को गोद ले लूँ पर घरवाले इसके लिए कभी नहीं मानेंगे! फिर आज नहीं तो कल हमारा अपना बच्चा भी तो होगा ना?! ऐसे बहुत से सवाल हैं जिनका जवाब अभी ढूंढा नहीं जा सकता, फिलहाल मेरे लिए ये शादी जर्रूरी है, उसके बाद मैं नेहा के बारे में सोचूँगा!" मैंने कहा और अनु मेरी बात समझ गई, साथ ही उसके मन में रितिका को सबक सिखाने की आग भी जल उठी!


हम दोनों ऐसे ही गले लगे हुए खड़े रहे और फिर थोड़ी देर बाद घर से फ़ोन आ गया; "हाँ जी....सब ठीक है जी...कोई घबराने की बात नहीं! जी... मैं सुबह तक निकलता हूँ!" मैंने कहा और ये सुन अनु भी हैरान हो गई| "घर की पूजा खत्म हुई तब मैंने आपका मैसेज देखा और जिस हालत में था उसी हालत में भाग आया| चन्दर भय से ये कहा की दोस्त का एक्सीडेंट हो गया है! उसी के लिए डाँट पड़ रही थी की बता कर नहीं जा सकता था!” मैंने अनु को सच बताया तो उसने कान पकड़ कर मुझे Sorry कहा! फिर उसने कॉफ़ी बनाई जिसे पीने के बाद मेरे जिस्म में गर्मी आई| सुबह 6 बजे तक मैं वहीँ रहा और फिर बाइक से निकला, जाते-जाते- अनु ने मुझे अपनी शाल दी ताकि मैं ठंड से खुद को बचा पाऊँ| अब उसके कपडे तो मुझे आते नहीं और डैडी जी वाले कपडे भी नहीं आते इसलिए! मैं घर पहुँचा और कहानी बना कर सुना दी पर भाभी ने जब शॉल देखि तो वो सब समझ गई की बात कुछ और है| कुछ देर बाद उन्होंने मुझसे शाल के बारे में पुछा तो मैंने उन्हें ये कहा की हॉस्पिटल के बाद मैं अनु से मिलने गया था और उसी ने ये शॉल दी है| भाभी बस मुस्कुरा दी और चली गईं, अब रितिका मुझसे छुपती फिर रही थी| मेरी भी मजबूरी थी की घर में सब मौजूद थे और उनके सामने मेरा उसे कुछ कहना लाखों सवाल खड़े कर देता| हम दोनों चूँकि कई दिनों से बात नहीं कर रहे थे और जब से मैं घर पहुँचा था तब से तो रितिका डरी-डरी सी रहती थी| अब इस पर सवाल उठना तो तय था.....
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अब तक आपने पढ़ा....

हम दोनों चूँकि कई दिनों से बात नहीं कर रहे थे और जब से मैं घर पहुँचा था तब से तो रितिका डरी-डरी सी रहती थी| अब इस पर सवाल उठना तो तय था.....


अब आगे....

"क्यों भाई मानु क्या बात है? जब से हम लोग आये हैं देख रहे हैं की रितिका और तुम बात भी नहीं करते? कहाँ तो पहले तुम उसका इतना ख्याल रखते थे, घर-परिवार की मर्जी के खिलाफ जा कर उसे पढ़ा रहे थे! और तो और उसकी शादी में भी तुम विदेश चले गए? क्या नाराजगी है, हमें भी बताओ?" मौसा जी बोले|

"मौसा जी जिस उल्लू को पढ़ाने के लिए इतने पापड़ बोले वो कमबख्त पढ़ाई-लिखाई छोड़ कर इश्क़-मोहब्बत करती फ़िरे, ऐसे एहसान फरामोश इंसान से क्या बात करना? यहाँ तक की मैं तो शहर में रहता था, मुझे तक इस बात की खबर नहीं की ये इश्क़ लड़ा रही हैं! जिस इंसान को मैं हमेशा डाँट से बचाता था वही इंसान जब मुझे सबसे डाँट पड़ रही थी खामोश था, यही नहीं इसने मुझे शादी के लिए रुकने तक को नहीं बोला तो मैं क्यों रुकता? मुझे इतना अच्छा मौका मिला अमेरिका जाने का, काम सीखने का, एक बिज़नेस से जुड़ने का अपना हमसफ़र चुनने का तो ऐसा मौका मैं कैसे छोड़ देता!" मेरा जवाब सुन कर मौसा जी बस मुस्कुरा दिए और बोले; "ठीक है बेटा पर अब तो सब सही हो गया ना? अब तो माफ़ कर दे इसे?!"

"नहीं मौसा जी! इतने कम पाप नहीं किये इसने की इसे माफ़ी दे दी जाए! फिर मेरे अकेले के ना बात करने से इसे क्या फर्क पड़ेगा? आप सब तो हो ना इससे बात करने को?!"

"चलो भाई, जैसी तुम्हारी मर्जी! पर ये बताओ सारा समय ये कम्प्यूटर ले कर बैठे रहते हो, शादी तुम्हारी है थोड़ा काम-वाम देखा करो!" मौसा जी शिकायत करते हुए बोले पर इसका जवाब ताऊ जी ने ही दे दिया;

"तुम्हें पता भी है ये क्या काम करता है? अमेरिका की कंपनी का काम है ये! वहाँ हमारे देश की तरह लोग छुट्टियाँ नहीं मारते, कमाई डॉलरों में होती है! $1 मतलब 70 -75 रुपये! इस काम के इसे 1 लाख डॉलर मिल रहे हैं!!!!" ताऊ जी के मुँह से इतनी बड़ी रकम सुन कर सब के कान खड़े हो गए थे और पूरे घर में मेरी तारीफें शुरू हो गई थीं! इधर मुझे रितिका की क्लास लेनी थी पर वो किसी न किसी सदस्य के साथ चिपकी हुई थी, पर आखिर वो कब तक मुझसे भागती! रात को मैं सोने जल्दी चला गया, नेहा मेरे साथ ही चिपकी सो रही थी| मेरा कमरा सब समान से भरा था और वहाँ जाने की किसी को भी इज़ाजत नहीं दी गई थी| ताऊ जी का कहना था की जब तक नई बहु नहीं आ जाती तब तक उस सामान को कोई नहीं छुएगा! रात को ग्यारह बजे नेहा ने सुसु किया और उसके डायपर के साथ उसके कपडे भी खराब हो गए| मेरी बेटी ने मुझे उसकी माँ की क्लास लेने का मौका दे दिया था| मैंने पहले तो नेहा का माथा चूमा और किलकारियां मारते हुए अपने हाथ पाँव चलाने लगी| मानो उसे भी मजा आ रहा हो की आज उसकी माँ की क्लास लगने वाली है! फिर मैंने उसके सारे कपडे निकाले और उसे कंबल ओढ़ा दिया, कमरे में हीटर चालु किया ताकि कमरा गर्म बना रहे| मैं अपने कमरे से बाहर निकला और जा कर रितिका के कमरे का दरवाजा खटखटाया| वो घोड़े बेच कर सोइ थी, इसलिए दस मिनट तक खटखटाने के बाद उसने दरवाजा खोला| जैसे ही उसने मुझे देखा उसकी फ़ट गई और आँखें अपने आप झुक गईं| एक तो बाहर ठंड में 10 मिनट से खड़ा होना पड़ा और ऊपर से अनु की हालत देख कर जो गुस्सा आया था उससे मेरा जिस्म जलने लगा| मैंने रितिका का गला पकड़ लिया और उसे ढकेलते हुए अंदर आया और उसे उसी के बिस्तर पर गिरा दिया| रितिका छटपटा रही थी ताकि मैं उसका गाला छोड़ दूँ; "कल अगर अनु को कुछ हो जाता ना तो आज मैं तुझे जिन्दा जला देता! आज आखरी बार तुझे बताने आया हूँ, अगर तूने कोई भी लगाईं-बुझाई की ना तो अपनी खेर मना लियो फिर! मुझे मिनट नहीं लगेगा तेरी जान लेने में!" मेरी पकड़ रितिका के गले पर तेज थी और अगर दो मिनट और उसका गला नहीं छोड़ता तो वो पक्का मर जाती| मैंने जैसे ही उसका गाला छोड़ा वो साँस लेने की कोशिश करते हुए छटपटाने लगी! मैंने नेहा के कपडे लिए और वापस अपने कमरे में आ गया| नेहा अब भी जाग रही थी और कंबल के अंदर अपने हाथ-पैर मार रही थी| कुछ देर पहले जो मुझे गुस्सा आ रहा था वो रितिका को देख कर गायब हो गया था| नेहा को अच्छे से कपडे पहना कर मैं उसे अपनी छाती से चिपका कर सो गया|


अगली सुबह मोहिनी आ गई और चूँकि सब उसे सब जानते थे तो सब ने उसका बड़ा अच्छा स्वागत किया और बाकी रिश्तेदारों से मिलवाया| रितिका तो जैसे उसे देख कर वहीँ जम गई, उसकी साँस ही अटक गई! वो जानबूझ कर आगे नहीं आई और काम करने की आड़ में छिपी रही| आखिर मोहिनी को ही उसका नाम ले कर उसे बाहर बुलाना पड़ा, रितिका उसके सामने सर झुकाये खड़ी हो गई| मोहिनी ने आगे बढ़ कर उसे गले लगाया ताकि किसी को कुछ शक ना हो और उसके कान में खुसफुसाई; "तेरी जैसी गिरी हुई लड़की मैंने आज तक नहीं देखि! अगर तुझे यही खेल खेलना था तो बता देती, कम से कम मैं शादी तो ना करती और आज मैं और मानु जी एक होते! सच में तुझे मेरी भी हाय लगेगी!" इतना कहते हुए, अपने चेहरे पर जूठी मुस्कान लिए मोहिनी ऋतू से अलग हुई| "तो ताऊ जी, दूल्हे मियाँ कहाँ है?" मोहिनी ने चहकते हुए पुछा| मैं उस वक़्त छत पर नेहा को गोद में लिए कॉल पर बात कर रहा था| ताऊ जी ने जब उसे छत पर मेरे होने का इशारा किया तो मोहिनी कूदती हुई ऊपर आ गई| दरअसल मोहिनी घर के चप्पे-चप्पे से वाक़िफ़ थी क्योंकि वो मेरी गैरहाजरी में रितिका की शादी में आई थी| मैंने कॉल disconnect किया और जैसे ही पलटा की मोहिनी मुस्कुराती हुई मुझे दिखी| फिर उसकी नजर नेहा पर गई और वो सोचने लगी शायद किसी रिश्तेदार की बेटी है इसलिए वो सीधा मेरे पास आई; "दूल्हे मियाँ! कितना काम करोगे?" मोहिनी ने हँसते हुए पुछा|

"यार वो थोड़ा काम ज्यादा है, अनु भी बहुत बिजी है!" मैंने कहा|

"चलो मैं आ गई हूँ तो मैं यहाँ काम संभाल लूँगी!" मोहिनी मुस्कुराते हुए बोले|

"मेरी बेटी से तो मिलो?" मैंने मोहिनी का परिचय नेहा से कराते हुए कहा पर ये सुन कर वो सन्न रह गई और आँखें फाड़े मुझे देखने लगी!

"ये.....तुम्हारी बेटी......सच में?" मोहिनी हैरानी से बोल भी नहीं पा रही थी|

"हाँ जी!.... मेरी बेटी!" मैंने आत्मविश्वास से कहा| मेरा आत्मविश्वास देख उसकी हैरानी गायब हुई और मैंने उसे सब सच बता दिया| मोहिनी ने नेहा को मेरे हाथ से लेना चाहा पर नेहा ने मेरी कमीज पकड़ रखी थी| "बेटा ये मोहिनी आंटी हैं, पापा की बेस्ट फ्रेंड!" मैंने तुतलाते हुए नेहा से कहा तो वो मुस्कुराने लगी और मोहिनी की गोद में चली गई| "पापा की सारी बातें मानती है? Good girl!! वैसे इसकी नाक बिलकुल तुम्हारी जैसी है!" मोहिनी ने नेहा की नाक पकड़ते हुए कहा| मोहिनी के मन के विचार मैं पड़ग पा रहा था, उसके दिल में अब मेरे लिए प्यार था| वो बस इस प्यार को दबाये हुए थी और किसी के भी सामने उसे नहीं आने देती थी| पर आज नेहा को गोद में लेने के बाद उसके मन में एक टीस उठी! टीस मुझे ना पाने की, टीस मेरे साथ एक छोटा संसार न बसा पाने की और टीस एक बच्चे के ना होने की! मोहिनी की आँखें छलछला गईं और वो नेहा को पाने गले से चिपकाते हुए रो पड़ी| मैंने मोहिनी को गले लगा लिया और उसे के सर पर हाथ फेरते हुए उसे चुप कराया| मैं समझ सकता था की उसे रितिका की करनी का कितना दुख है और अभी तो वो उसके काण्ड से अपरिचित थी वर्ण वो उसकी खाट खड़ी कर देती! "Hey...Hey....Hey calm down! शायद हमारा मिलना नहीं लिखा था!" मैंने कहा और मोहिनी के आँसूँ पोछे| "लिखा तो था पर ..... रितिका नाम के ग्रहण ने मिलने नहीं दिया!" मोहिनी ने खुद को गाली देने से रोकते हुए कहा| अब मैंने बात बदलने के लिए उससे उसके और उसके पति के बारे में पुछा और ये भी की वो कब खुशखबरी दे रही है| उसने बताया की उसके पति को गल्फ में जॉब मिल गई इसलिए वो शादी के बाद वहाँ चला गया| महीने-दो महीने में उसका भी पासपोर्ट आ जायेगा और फिर वो भी चली जायेगी! मुझे ये जानकार बहुत ख़ुशी हुई और हम छत पर खड़े बातें कर रहे थे की तभी वहाँ भाभी आ गई; "लगता है अनु को बोलना पड़ेगा की उसका दूल्हा यहाँ कुछ ज्यादा ही 'फ्री' हो गया है!" भाभी ने मजाक करते हुए कहा| "भाभी मैं अपनी होने वाली बीवी से कुछ नहीं छुपाता| वो तो मोहिनी से मिली भी है|" फिर मैंने भाभी को उस दिन का सारा किस्सा सुना दिया| "देखा भाभी मुझे तो शुरू से ही शक था!" मोहिनी मुस्कुराते हुए बोली| "तो मुझे क्यों नहीं बताया?" भाभी ने कहा और फिर हम सारे हँसने लगे|

अब चूँकि मोहिनी आ गई थी तो घर में मुझे एक दोस्त मिल गया था| जब कभी मैं काम में बिजी होता तो नेहा उसी के पास होती| मोहिनी अपनी बातों से सभी का मन लगाए हुए थी और बाकी दिन कैसे निकले पता ही नहीं चला| जो भी रस्में शादी वाले दिन से पहले निभाई जानी थीं वो सभी प्रेमपूर्वक निभाईं गईं और मोहिनी ने बहुत सारी फोटो क्लिक करीं| हमारे गाँव में शादी के एक दिन पहले पूजा होती है और उसमें दूल्हे को हल्दी लगाई जाती है| जब ये समरोह शुरू हुआ तो मुझे एक सफ़ेद पजामा-कुरता पहना कर पहले पूजा में बिठाया गया और उसके बाद हल्दी लगना शुरू हुई| मैंने कुरता उतार दिया और आलथी-पालथी मार कर आंगन में बैठ गया| सबसे पहले माँ, ताई जी और भाभी ने मुझे हल्दी लगाई| भाभी को तो मेरी मस्ती लेने का मौका मिल गया और उन्होंने मेरा गाला और छाती हल्दी से लबेड दिया! उसके बाद सभी औरतों ने मेरे हल्दी लगाईं| इस समारोह की एक-एक फोटो और वीडियो मोहिनी ने ही शूट की! फोटोग्राफर वाला भाई भी कहने लगा दीदी मुझसे अच्छी फोटो तो आप खींच रही हो और उसकी इस बात पर सब ने मोहिनी की बड़ी तारीफ की|

शादी वाले दिन सुबह-सुबह ताऊ जी किसी को फ़ोन पर बहुत डाँट रहे थे, जब मैंने पुछा तो उन्होंने बात टाल दी| कुछ ही घंटों बाद घर के आगे एक चम-चमकती हुई रॉयल ब्लू फोर्ड इकोस्पोर्ट खड़ी हो गई| (दरअसल वो डिलीवरी लेट होने के लिए मैनेजर को डाँट रहे थे!)

ताऊ जी ने मुझे आवाज मार के नीचे बुलाया और गाडी देख मेरी आँखें चौंधियाँ गई! "ताऊ जी????..... ये आपने???? ....... पर क्यों???" मैंने पुछा|

"तो हमारी बहु क्या फटफटी के पीछे बैठ कर आती?" ताऊ जी ने सीना ठोक कर कहा और चाभी मुझे दी; "ये ले बेटा! तेरा शादी का तौहफा .... बड़ी मुश्किल हुई इसे ढूंढने में! बजार में इतनी गाड़ियाँ हैं की समझ ही नहीं आया की कौन सी खरीदूँ? फिर हमने मोहिनी बिटिया से पुछा तो उसने बताया की ये वाली मानु को पसंद है!" मैंने पलट के मोहिनी की तरफ देखा तो वो नेहा को गोद में लिए बहुत हँस रही थी! मैंने ताऊ जी और पिताजी के पाँव छुए और उन्होंने मुझे गले लगा लिया| घर में आया हर एक इंसान खुश था सिवाय एक के!

खेर शाम चार बजे तक सब तैयार हो गए थे और घर के बाहर एक के पीछे एक 3 बसें भी खड़ी थीं ताकि बाराती venue तक पहुँच सकें| मेरे दोस्त यानी अरुण-सिद्धार्थ डायरेक्ट हमें वहीँ मिलने वाले थे| ताऊ जी ने सब को जल्दी बैठने को कहा, अभी मैं पूरा तैयार नहीं हुआ था इसलिए जैसे ही मैंने ताऊ जी की आवाज सुनी तो मैं बनियान पहने ही नीचे आया| "ताऊ जी आप सब को भेज दीजिये बस, आप, मैं, पिताजी, माँ और ताई जी गाडी से जायेंगे| आज पहली ride मैं आप सब के साथ चाहता हूँ!" ताऊ जी को मेरी बात जच गई इसलिए उन्होंने सब को भेज दिया बस हम लोग ही रह गए| जब मैं तैयार हो कर नीचे आया तो जो लोग बच गए थे वो सब मुझे देखने लगे और उनकी आँखें नम हो गईं|

माँ ने फ़ौरन मुझे काजल का टीका लगाया| फिर एक-एक कर सब ने मुझे गले लगाया और आखिकार हम निकले! बसें पहले पहुँचीं और फिर हुई हमारी Grand Entry! गाडी ठीक Wedding Hall के सामने रुकी और हमें गाडी से उतरता देख मम्मी-डैडी समेत उनके सारे रिश्तेदार हैरान हो गए| सब की नजर बस मेरे ऊपर ही टिकी थी क्योंकि मैं शेरवानी में लग ही इतना हैंडसम रहा था की क्या कहें! मेरे दोनों दोस्त अरुण-सिद्धार्थ मेरे साथ खड़े हो गए थे और उन्हीं के साथ मोहिनी भी अपनी लेहंगा चोली में बड़े रुबाब के साथ खड़ी हो गई| "हमारा दूल्हा आ गया अपनी दुल्हन को लेने!" सिद्धार्थ जोर से बोला और सभी ने शोर मचाना शुरू कर दिया| पीछे-पीछे बैंड-बाजा शुरू हो चूका था, इधर मम्मी-डैडी जी हाथ में आरती की थाली लिए खड़े हुए थे| मेरी आरती उतारी गई और फिर सबकी मिलनी हुई| यहाँ मैं बेसब्र हो रहा था क्योंकि मुझे अनु को देखना था पर सारे मिलनी में ही लगे हुए थे| बड़ी देर बाद एंट्री हुई! (वैसे बस 15 मिनट ही लगे थे पर मुझे तो ये समय घंटों का लग रहा था!)

मुझे तो podium पर बिठा दिया गया और एक-एक कर अनु के सभी रिश्तेदारों से मिलवाया गया पर मेरी नजर तो अनु को ढूँढ रही थी| वैसे ज्यादा लोगों की gathering नहीं हुई थी करीब 100 एक आदमी आये होंगे, जिसमें ज्यादातर मेरे परिवार से ही थे! गाना बज रहा था: 'तेरे इश्क़ में जोगी होना!' और इधर मैं जोगी बने-बने ऊब गया था! कुछ देर बाद आखिर मुझे विवाह वेदी पर बैठने को कहा गया जहाँ पंडित जी मंत्र जाप कर रहे थे! मैं बार-बार गर्दन इधर-उधर घुमा कर अनु के आने का रास्ता देख रहा था| अब दोस्तों को मजे लेने थे सो वो आ गए और मेरे पीछे बैठ गए; "भाई थोड़ा सब्र रख, भाभी बस आने वाली है!" अरुण बोला| "यार ये औरतों का तैयार होना कसम से बहुत बड़ा ड्रामा है! यहाँ इंतजार कर-कर के हालत बुइ है और इन्हें कोई होश ही नहीं!" मैंने कहा| सही मायने में उस दिन मुझे एहसास हो रहा था की औरतें कितना टाइम लगाती हैं तैयार होने में! पर जब अनु की एंट्री हुई तो मैं पलकें झपकना भूल गया, मेरा मुँह खुला का खुला रह गया, आँखें जितनी फ़ट कर बाहर आ सकती थी उतनी फ़ट चुकी थीं!

मैं उठ कर खड़ा हुआ और इधर अनु शर्माते हुए नजरें झुकाये आई और उसके साथ उसकी वो बेस्ट फ्रेंड भी आई| पर मेरी नजरें तो अनु पर गड़ी थीं, उसकी नजरें झुकी हुई थीं| उसने अभी तक मुझे नहीं देखा था| "क्यों भाई अब तो चैन मिल गया तुझे?" सिद्धार्थ बोला| "यार जितना भी टाइम लिया पर जो खूबसूरती दिख रही है उसके आगे ये इंतजार भी सोखा लग रहा है!" मैंने कहा जिसे सुन कर अरुण-सिद्धार्थ दोनों हँसने लगे| "जानेमन! जरा नजर उठा कर हमें भी देख लो, हम भी आपकी नजरों से घायल होना चाहते हैं|" मैंने अनु से खुसफुसाते हुए कहा| तब जा कर अनु ने अपनी नजरें उठाई और मुझे देखा, ये सब इतने स्लो मोशन में हुआ की लगा मानो ये पल यहीं रुक गया हो| "हाय! कहीं मेरी ही नजर आपको ना लग जाए!" अनु ने खुसफुसाते हुए जवाब दिया|

मैंने सिद्धार्थ से माइक माँगा और उसने मुझे माइक ला कर दिया;

"क्या पूछते हो शोख निगाहों का माजरा,
दो तीर थे जो मेरे जिगर में उतर गये|"

मैंने अनु की इबादत में जब ये शेर पढ़ा तो ये सुन सारे लोग तालियाँ बजाने लगे| ये शोर सुन अनु को बहुत गर्व हुआ और उसने मुझसे माइक माँगा और जवाब में एक शेर पढ़ा;

"जर्रूरत नहीं है मुझे घर में आइनों की अब,
उनकी निगाहों में हम अपना अक्स देख लेते हैं...."

अनु का शेर सुन तो पूरे हॉल में शोर गूँज गया| हमारे माता-पिता हम पर बहुत गर्व कर रहे थे| तभी मोहिनी मेरे पीछे खड़े होते हुए बोली; "एक शायर को उसकी कविता मिल गई!" ये सुन कर अनु की नजर मोहिनी पर पड़ी और उसके चेहरे की ख़ुशी बता रही थी की वो हम दोनों के लिए कितनी खुश है|


खेर विधि-विधान से शादी की सारी रस्में हुईं और इस पूरे दौरान हम दोनों बहुत खुश दिख रहे थे| उसके बाद खाना-पीना हुआ, फोटो खिचवाने का काम हुआ और ये सब निपटाते-निपटाते रात के 3 बज गए| घर आते-आते सुबह हो गई थी, बड़े रस्मों-रिवाज के साथ अनु का गृह प्रवेश हुआ| भाभी ने मेरा कमरा सजा दिया था और अनु को अंदर बिठा दिया गया था| मुझे अब भी नीचे रोक कर रखा हुआ था, कुछ देर बाद जब भाभी नीचे आईं तो मेरा हाथ पकड़ कर मुझे मेरे कमरे तक ले गईं और बाहर चौखट पर खड़े हो कर बोलीं; "मेरी देवरानी का ख्याल रखना!" भाभी ने बड़े naughty अंदाज में ये कहा| पहले कुछ सेकंड तो मैं इसे समझने की कोशिश करने लगा और जब समझ आया तब तक भाभी का खिल-खिलाकर हँसना शुरू हो चूका था| "मेरे बुद्धू देवर! जाओ जल्दी अंदर तुम्हारी पत्नी इंतजार कर रही है!" इतना कहते हुए उन्होंने मुझे अंदर धकेला और दरवाजा बाहर से बंद कर दिया| इधर मैंने भी सेफ्टी के लिए अंदर से कुण्डी लगा दी की कहीं वो दुबारा अंदर ना आ जाएँ! हा...हा...हा...हा!!!
dhanshu update hai bhai
 
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Nevil singh

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कमरे में भाभी ने मद्धम सी रौशनी कर रखी थी, जो माहौल को रोमांटिक बना रही थी| बेड के बगल में एक गिलास रखा था जिसमें दूध था! ये बड़ा ही ख़ास दूध होता है, मेरे दोस्त संकेत ने मुझे बताया था की ये दूध बहुत जबरदस्त होता है! जब मेरी नजर अनु पर पड़ी तो वो गठरी बनी पलंग पर सर झुका कर बैठी थी, लाल जोड़े में आज वो क़यामत लग रही थी! आज हमें रोकने वाला कोई नहीं था, जो बंदिश मैंने खुद पर रखी थी आज वो टूटने वाली थी! मैंने धीरे-धीरे अनु के पास पहुँचा और पलंग पर बैठ गया| अनु के पाँव जो मुझे दिख रहे थे, उसने वो अपने घूँघट के अंदर छिपा लिए| मैंने हाथ बढ़ा कर अनु का घूँघट उठाया तो देखा अनु सर झुकाये नीचे देख रही है| उसके होठों की लाली देख मेरा दिल मचलने लगा था! फिर मुझे दूध के बारे में याद आया तो मैंने वो गिलास उठाया और आधा पिया, उसका स्वाद बहुत गजब का था या फिर ये अनु के हुस्न का जादू था जिसके कारन में कुछ ज्यादा imagine करने लगा था| मैंने वो आधा दूध का गिलास अनु को दिया, अब वो बेचारी शर्म से लाल अपनी नजरें उठा कर मुझे देखना ही नहीं चाह रही थी| किसी तरह उसने वो गिलास पकड़ा और आँख बंद कर के दूध पिया| दूध पी कर खाली गिलास रखने लगी तो मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और खुद गिलास टेबल पर रखा| उसके बाद मैं वापस सीधा बैठ गया और अनु को देखने लगा| कुछ भी करने की जैसे हिम्मत ही नहीं हो रही थी! मैं सोचने लगा शायद अनु कुछ पहल करे तो मुझे आगे बढ़ने में आसानी हो और उधर अनु का दिल धाड़-धाड़ कर के बजने लगा था| अनु का ये पहला मौका था और वो बेचारी शायद उम्मीद कर रही थी की मैं कुछ करूँगा! करीब 20 मिनट तक हम दोनों ही चुप बैठे थे, अनु की नजरें नीचे थीं और मेरी आँखें बस अनु पर टिकी थीं| मैंने नोटिस किया की अनु के होंठ थरथरा रहे हैं, मैंने इसे ही एक आमंत्रण समझा और मैं अनु के करीब खिसक कर बैठ गया| पर अनु ने कोई रिएक्शन नहीं दिया, इधर मुझे झिझक होने लगी! 5 मिनट तक मैं मन ही मन इस झिझक से लड़ने लगा और फिर यही सोचा की जो भी होगा देख लेंगे! मैने अपने दोनों हाथों से अनु के दोनों कंधे पकडे और उसे धीरे से पीछे धकेल कर लिटा दिया| अनु एक दम से सीधा लेट गई और मैं उसके ऊपर झुक गया, जाने मुझे ऐसा लगा की शायद अनु ये सब नहीं करना चाहती और मुझे उसका ये विचार ठीक लगा क्योंकि अब मुझ में आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं हो रही थी! बड़ी हिम्मत जूता कर मैंने उससे पुछा; "You don’t want to do it?” पर ये सुन कर अनु ने अपनी झुकी हुई नजर ऊपर उठा ली और मेरी आँखों में देखने लगी| अनु की आँखों में मुझे अपने लिए प्यार नजर आया पर सेक्स के लिए झिझक भी नजर आई| अब मुझ में थोड़ी हिम्मत आ गई, मैंने अपने दाएँ हाथ से अनु के बाएँ गाल को सहलाया और अपना सवाल फिर से दुहराया; "बेबी! अगर आपका मन नहीं है तो its okay! कोई problem नहीं!" ये सुन कर तो जैसे अनु को विश्वास ही नहीं हुआ की भला कोई आदमी सुहाग की सेज पर अपनी पत्नी से सेक्स करने के लिए उसकी मर्जी पूछ रहा हो! वो खामोश नहीं रहना चाहती थी पर लफ़्ज उसके गले में घुट कर रह गए| अनु ने अपनी दोनों बाहें मेरी गर्दन पर लॉक कीं और मुझे अपने ऊपर और झुका लिया| अब मुझे विश्वास हो गया की अनु ने मुझे सहमति दे दी है|

मैंने धीरे से अनु के लबों को अपने लबों में कैद कर लिया, फिर धीरे-धीरे मैंने उसके लबों को चूसना शुरू किया| मैं अनु के होठों को धीरे-धीरे, एक-एक कर चूस रहा था, उनका स्वाद बिलकुल गुलाब की पंखुड़ियों सा था| इधर मेरे Kiss के कारन अनु ने रियेक्ट करना शुरू कर दिया था, उसके हाथ मेरी गर्दन से रेंगते हुए मेरी पीठ पर पहुँच गए थे| मैंने एक पल के लिए अनु के होठों को अपने होठों की गिरफ्त से आजाद किया और मैं दुबारा से उन्हें अपने मुँह में भरता, उससे पहले ही अनु ने मेरे निचले होंठ को अपने मुँह में भर कर धीमे-धीमे चूसने लगी! ये अनु के लिए नया एहसास था इसलिए घबराहट उसके इस अंदाज में साफ़ दिख रही थी| दो मिनट बाद अब समय था अगले कदम का, मैंने धीरे से अपनी जीभ आगे सरकाई और अनु ने अपना मुँह खोल कर उसका स्वागत किया| अनु की जीभ इतनी खुश हुई की वो भी मेरी जीभ से मिलने आगे आई और दोनों का मिलन हुआ| इस Kiss के कारन अनु अब काफी खुल गई थी और हम दोनों अब शिद्दत से एक दूसरे को Kiss करने लगे थे| कभी अनु अपनी जीभ आगे करती और मैं उसे चुस्त तो कभी मैं अपनी जीभ अनु के मुँह में दाखिल कर देता! करीब 10 मिनट के इस रस पान के बाद अब हम दोनों के जिस्म ही गर्म हो चुके थे और ये कपडे अब रास्ते की बाधा थे| मैंने अनु के चंगुल से अपनी जीभ निकाली और उसका हाथ पकड़ के उसे बिठाया| मैंने अपने कपडे उतारने शुरू किये और अनु ने अपने जेवर उतारने चाहे, "इन्हें मत उतारो!" मैंने कहा| कुछ सेकण्ड्स के लिए अनु सोच में पड़ गई की मैं क्या कह रहा हूँ; "ये आप पर बहुत अच्छे लगते हैं!" मैंने कहा और तब जा कर अनु को समझ आया| मैं तो अपनी शेरवानी उतार चूका था पर अनु अभी अपने हाथ पीछे मोड़ कर अपनी चोली की डोरी खोलने जा रही थी| मैंने फ़ौरन आगे बढ़ कर उसकी चोली की डोरी धीरे से खोली| मुझे ऐसा करता देख अनु शर्म से लाल हो गई और उसने अपनी चोली आगे से अपने दोनों हाथों को अपने स्तन पर रख कर पकड़ ली| मैं आके अनु के सामने बैठ गया, उसकी नजरें झुक गईं थीं| मैंने अनु की ठुड्डी पलकड़ कर ऊँची की तो पाया उसने आँखें मूँद रखी हैं| मैंने दोनों हाथों से अनु के दोनों हाथ उसके स्तन के ऊपर से हटाए और उसके जिस्म से चोली निकाल कर नीचे गिरा दी| अनु के पूरे जिस्म में डर की कंपकंपी छूट गई! अनु अब मेरे सामने लाल रंग की ब्रा पहने बैठी थी और उसकी आँखें कस कर बंद थी| उसके हाथ बिस्तर पर थे और काँप रहे थे| मैंने अनु का बायाँ हाथ उठाया और उसे चूमा ताकि अनु थोड़ा नार्मल हो जाये और हुआ भी कुछ वैसा ही| मेरा उसके हाथ चूमते ही वो शांत हो गई, फिर मैं अनु के और नजदीक आया और उसके बाएं गाल को चूमा| अनु ने एक सिसकी ली; "ससस!!!" फिर मैंने अपने दोनों हाथ पीछे ले जा कर अनु की ब्रा के हुक खोल दिए पर ब्रा को उसके जिस्म से अलग नहीं किया| मैंने अनु को धीरे से वापस लिटा दिया और मैं उसकी बगल में लेट गया| मैंने अपने बाएँ हाथ को उसके बाएँ गाल पर फेरा, अनु समझ नहीं पाई की हो क्या रहा है| वो तो उम्मीद कर रही थी की मैं उस पर चढ़ जाऊँगा और यहाँ मैं धीरे-धीरे उसके जिस्म को बस छू भर रहा था| दो मिनट बाद मैं उठा और अपनी दोनों टांगें अनु के इर्द-गिर्द मोड़ी और उसके लहंगे को खोलने लगा| जैसे ही लहंगा खुला अनु ने अपने दोनों हाथों से पलंग पर बिछी चादर पकड़ ली| अब भी उसकी आँखें बंद थी और डर के मारे उसके दिल की धड़कनें बहुत तेज थीं| मैंने धीरे-धीरे लहंगा निकाल दिया और नीचे गिरा दिया| अब अनु मेरे सामने एक लाल ब्रा पहने जो की उसकी छाती सिर्फ ढके हुए थी और एक लाल रंग की पैंटी पहने पड़ी थी| जैसे ही मैंने अपनी उँगलियाँ पैंटी की इलास्टिक में फँसाई अनु काँप गई| मैनेजैसे ही पैंटी नीचे धीरे-धीरे सरकानी शुरू की उसने तुरंत अपने हाथों से चादर छोड़ी और अपनी पैंटी के ऊपर रख उसे ढक दिया| मैं उसी वक़्त रुक गया और अनु के मुँह की तरफ देखने लगा| करीब मिनट बाद अनु को लगा की कहीं मैं नाराज तो नहीं होगया इसलिए उसने अपनी आँख धीरे से खोली और मुझे अपनी तरफ प्यार से देखते हुए पाया| ये देखते ही वो फिर शर्मा गई, मैंने मुस्कुराते हुए फिर से उसकी पैंटी नीचे सरकानी शुरू की पर उसे केवल उसकी ऐड़ी तक ही नीचे ला पाया क्योंकि अनु ने अपनी टांगें कस कर भींच ली थीं| उसके दोनों हाथ उसकी बुर के ऊपर थे और मैं अभी तक अनु के पूरे जिस्म का दीदार नहीं कर पाया था|


मैं अनु के ऊपर आ गया, उसे लगा की मैं उसकी ब्रा हटाऊँगा और अब वो मुझे रोक भी नहीं सकती थी क्योंकि तब उसे अपना एक हाथ अपनी बुर के ऊपर से हटाना पड़ता! पर मैंने अनु के निचले होंठ को चूसना शुरू किया और अपनी जीभ उसके मुँह में घुसेड़ दी| मेरा पूरा वजन अनु पर था इसलिए उसने अपने दोनों हाथ अपनी बुर के ऊपर से हटा दिए और मेरी पीठ पर रख कर मुझे खुद से चिपका लिया ताकि मेरे जिस्म से उसका जिस्म ढक जाए! अगले दस मिनट तक हम एक दूसरे को धीरे-धीरे Kiss करते रहे और अब अनु की शर्म कुछ कम हुई थी जिसके फल स्वरुप उसने खुद अपनी पैंटी निकाल दी थी और अपनी दोनों टांगें मेरी कमर पर लॉक कर ली थी| दस मिनट बाद जब मैंने अनु के ऊपर से उठना चाहा तो उसने अपनी पकड़ और कस ली क्योंकि वो नहीं चाहती थी की मैं उसे बिना कपडे के देखूँ! "बेबी! मुझसे कैसी शर्म?" मैंने धीरे से अनु के कान में खुसफुसाते हुए कहा| पर ये अनु की शर्म कम और सेक्स के प्रति उसका डर था! अनु ने मेरी बात मानी और अपने हाथ और पैर ढीले छोड़ दिए पर उसने अपनी आँखें कस कर बंद कर रखी थीं| मैं वापस नीचे खिसक आया और अनु के दोनों घुटने पकड़ कर उन्हें खोलने लगा| अनु ने फिर से चादर अपने दोनों हाथों से कस कर पकड़ ली| मैंने धीरे-धीरे अनु की टांगें खोली और उसकी चिकनी और साफ़ सुथरी बुर देखि! दूध सी गोरी उसकी बुर और वो पतले-पतले गुलाबी रंग के होंठ देख मैं दंग रह गया| मैं अपने आप ही उस पर झुक गया और पहले उन गुलाबी होठों को चूमा| मेरे चूमते ही अनु की जोरदार सिसकारी निकली; "स्स्सस्स्स्साआह!" अनु ने अपनी टांगें बंद करनी चाही पर तब तक मैंने अपने दोनों हाथ उसकी जाँघों पर रख दिए थे और अनु अब अपनी टांगें फिर से बंद नहीं कर सकती थी| मैंने अपनी जीभ निकाली और अनु के भगनासे को छेड़ा, अनु के जिस्म में हरकत हुई और उसका पेट कांपने लगा| "सससस....आह!" अनु ने एक और सिसकारी ली| मैं जितनी अपनी जीभ बाहर निकाल सकता था उतनी निकाली और नीचे से अनु के भगनासे तक एक बार चाटा| अनु मस्ती से भर उठी और अपना सर इधर-उधर पटकने लगी! मैंने अपना मुँह खोला और उसके बुर के होठों को अपने मुँह में भर लिया और उन्हें चूसने लगा, इससे तो अनु की हालत खराब हो गई| उसने अपने दोनों हाथों से पकड़ रखी चादर छोड़ी और मेरे सर पर हाथ रख कर उसे अपनी बुर पर दबाने लगी| पूरा कमरा उसकी सिसकारियों से गूँज उठा था| "स्स्सस्स्स्स...आह...सससस......ममम.....ससस.....आह....हहह...ममम....आ साससससस...." इधर मुझे अनु के बुर के होठों से एक मीठे-मीठे इत्र की महक आ रहे थी और मैं पूरी शिद्दत से उन्हें चूसने लगा| 5 मिनट नहीं हुए और अनु भरभरा कर झड़ गई और उसका नमकीन पानी मेरे मुँह में षड की तरह भरने लगा| मैं भी किसी भालू की तरह उस रस की एक-एक बूँद को चाट कर पी गया| इस बाढ़ के कारन अनु की सांसें बहुत तेज हो गईं थीं, जब मैं अनु की टांगों के बीच से निकल कर सीधा हुआ तो मैंने अनु को देखा| वो आँख मूंदें हुए अपने स्खलन को एन्जॉय कर रही थी! दो मिनट बाढ़ उसने आँखें खोली और मेरी तरफ देखने लगी और फिर बुरी तरह शर्मा गई और अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा छुपा लिया| मैं भी उसकी इस हरकत को देख मुस्कुराने लगा पर अभी तक हम दोनों में से किसी ने भी मेरे फूल कर कुप्पा हुए लंड को नहीं देखा था! मैं अनु की बगल में लेट गया और अनु ने मेरी तरफ करवट ले ली पर उसने अभी तक अपने हाथ नहीं हटाए थे|

मैंने भी उस पर कोई जोर जबरदस्ती नहीं की क्योंकि मैं चाहता था की उसकी ये शर्म धीरे-धीरे खत्म हो| पांच मिनट बाढ़ अनु ने अपने दोनों हाथ अपने चेहरे से हटाए और मेरे चेहरे की तरफ देखने लगी, पर मैं तो कब से उसे ही देख रहा था| अनु ने दाएँ हाथ को मेरी छाती पर रख दिया और खामोशी से मुझे देखती रही| मैंने अपने दाएँ हाथ से उसके सर पर हाथ फेरा और अनु मुस्कुराने लगी| उसके मोती से सफ़ेद दाँत आज बहुत सुन्दर लग रहे थे| अनु का दाहिना हाथ मेरी छाती पर घूमने लगा और गलती से सरकते हुए मेरे लंड पर पहुँच गया| लंड का उभार महसूस होते ही अनु ने एक दम से हाथ हटा लिया और फ़ौरन अपनी आँखें उस उभार की तरफ की| उस उभार को देख कर ही उसकी हवा खराब हो गई| उसे एहसास हुआ की अभी असली काम तो बाकी है, अनु की हिम्मत नहीं हुई की वो नजर उठा कर मेरी तरफ देख सके इसलिए उसने तुरंत अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढक लिया और वापस सीधे लेट गई| उसके इस बर्ताव से मुझे एहसास हुआ की अनु बहुत डरी हुई है और नहीं चाहती की मैं आगे बढ़ूँ! मैंने फ़ौरन अनु की तरफ करवट ली और खुसफुसाते हुए बोला; "Baby don’t be afraid! If you don’t want, I won’t proceed any further!” कुछ देर उसी तरह रहने के बाद अनु ने अपने दोनों हाथ अपने चेहरे के ऊपर से हटाए और मेरी तरफ देखते हुए बोली; "Its not what I want? Its what ‘WE’ want!” मैं अनु की इस बात का मतलब समझ गया और अनु भी ये बोलने के बाद मुस्कुराई| “I’ll be gentle….can’t hurt my wife!” मैंने धीरे से कहा और मैं अनु के ऊपर आ गया| डर तो अब भी था अनु के दिल में पर वो किसी तरह से उसे दबाने में लगी हुई थी| मैंने अपना पजामा निकाल दिया और उसे निकालते ही अनु को मेरा फूला हुआ कच्छा दिखाई दिया जिसमें से लंड अपना प्रगाढ़ रूप लिए साफ़ दिखाई दे रहा था| जैसे ही मैंने अपना कच्छा निकाला अनु के सामने वो खंजर आ गया जो कुछ ही देर में खून खराबा करने वाला था| कुछ क्षण तक तो अनु उसे देखती रही और इधर अपनी ख़ुशी जाहिर करने के लिए मेरे लंड ने pre-cum की एक अमूल्य बूँद भी बहा दी| पर अनु की बुर का डर आखिर उस पर हावी हो गया! ये दानव अंदर कैसे जाएगा ये सोच कर ही अनु ने पुनः अपनी आखें कस कर मीच लीं! इधर मैंने धीरे-धीरे अनु की टांगें पुनः खोलीं ताकि मैं अपना स्थान ग्रहण कर सकूँ| जैसे ही मैं अनु की टांगों को छुआ उसकी टांगें काँप गई, अनु का पूरा शरीर डर के मारे कांपने लगा था| मन ही मन अनु सोच रही थी की वो दर्द से बुरी तरह बिलबिला जायेगी जब ये खूँटा अंदर घुसेगा!!

मैं अनु पर झुका और मेरा लंड आ कर उसकी बुर से बीएस छुआ और अनु के पूरे जिस्म में करंट दौड़ गया! उसने घबरा कर चादर अपने दोनों हाथों से पकड़ ली और अपने आप को आगे होने वाले हमले के लिए खुद को तैयार कर लिया| मैं अनु के ऊपर छ गया और धीरे-धीरे अपना सारा वजन उस पर डाल दिया| अपनी कमर को मैंने अनु की बुर पर दबाना शुरू किया, लंड धीरे-धीरे अपना रास्ता बनाता हुआ अनु की बुर की झिल्ली से टकरा कर रुक गया| इधर अनु को जो हल्का दर्द हुआ उससे अनु ने अपनी गर्दन ऊपर की तरफ तान ली| मैं कुछ सेकंड के लिए रुक गया ताकि अनु को थोड़ा आराम हो जाए, हालाँकि उसे अभी बीएस दर्द का एक हल्का सा आभास ही हुआ था! मैंने अपनी कमर से हल्का सा झटका मारा और लंड के सुपाडे ने वो झिल्ली तोड़ दी और अभी आधा ही सुपाड़ा नादर गया था की अनु के मुंह से चीख निकली; "आअह्हह्ह्ह्ह ममममअअअअअअअअअ...!!!!" और अनु ने अपनी गर्दन दाएँ-बाएँ पटकनी शुरू कर दी| खून की एक धार बहती हुई बिस्तर को लाल कर गई थी! मैं उसी हालत में रुक गया और मैंने अनु के स्तन के ऊपर से ब्रा हटा दी| सामने जो दृश्य था उसकी कल्पना भी मैंने नहीं की थी| अनु के स्तन बिलकुल तोतापरी आम जैसे थे, उनकी शेप देखते ही मेरा दिल बेकाबू हो गया| मैं अपना मुंह जितना खोल सकता था उतना खोल कर अनु के दाएँ स्तन को मुँह में भर कर चूसने लगा| इस दोहरे हमले से अनु की बुर का दर्द कुछ कम हुआ और अनु ने अपना हाथ मेरे सर पर रख दिया, अनु ने मेरे सर को अपने स्तन पर दबाना शुरू कर दिया| मैंने अपने दाँत अनु के दाएँ स्तन पर गड़ा दिए और धीरे से अनु के चुचुक पर काट लिया| "स्स्सह्ह्ह्ह" अनु कराही जो मेरे लिए इशारा था की उसकी बुर का दर्द कम हो चूका है| मैंने अपनी कमर से एक और हल्का सा झटका मारा और अब मेरा पूरा सुपाड़ा अंदर जा चूका था| "आअह्म्मामा" अनु धीरे से चीखी! मुझे अनु की भट्टी सी गर्म बुर का एहसास अपने सुपाडे पर होने लगा| अनु की बुर लगातर रस छोड़ रही थी ताकि लंड का प्रवेश आसान हो जाए| इधर ऊपर अनु की गर्दन फिर से दाएँ-बाएँ होनी शुरू हो चुकी थी| अनु का दर्द कम करने के लिए मैंने उसके बाएँ स्तन को अपने मुँह में भर लिया और चूसना शुरू कर दिया| अनु के हाथों की उँगलियाँ मेरे बालों में रास्ता बनाने लगी और अनु का दर्द कुछ देर में खत्म हो गया| मेरे उसके स्तनपान करने से उसके मुँह से अब सिसकारियां निकलनी शुरू हो गईं थी| अब मौका था एक आखरी हमले का और वो मैं बिना बताये नहीं करना चाहता था वर्ण अनु का दर्द से बुरा हाल हो जाता! "बेबी...एक लास्ट टाइम और....आपको दर्द होगा!" मैंने अनु से कहा और ये सुन कर अनु ने चादर को पाने दोनों हाथों से कस कर पकड़ लिया और अपनी आँखें कस कर मीच लीं| उसके चेहरे पर मुझे अभी से दर्द की लकीरें नजर आ रही थीं, दिल तो कह रहा था की मत कर पर अभी नहीं तो फिर शायद कभी नहीं! यही सोच कर मैंने एक आखरी झटका मारा जो बहुत बड़ा था| मेरा पूरा लंड अनु की बुर में प्रवेश हो चूका था और अनु की एक जोरदार चीख निकली जो कमरे में गूँज गई| "आआह्ह्ह्हह्हहहहहहहहहहहहहहहहह....हम्म्म....मममम.....ममम....ननन....!!!" मैं इस झटके के फ़ौरन बाद रुक गया और अनु के होंठों को अपने मुँह में कैद कर लिया| लगातार दस मीनू तक मैं उसके होठों को चुस्त रहा और अपने दाएँ हाथ से अनु के स्तनों को बारी-बारी से धीरे-धीरे दबाता रहा ताकि उसका दर्द कम हो सके|

पूरे दस मिनट बाद अनु का दर्द खत्म हुआ और उसने अपने हाथों की गिरफ्त से चादर को छोड़ा और मेरी पीठ तथा मेरे बाल सहलाने लगी| मैंने अनु के होठों को आजाद किया और उसके चेहरे को देखा तो पाया की आँसू की एक धार बह कर उसके कान तक पहुँच चुकी थी| अनु की सांसें काबू हो गईं थीं और उसके जिस्म में अब आनंद का संचार हो चूका था| "सॉरी बेबी!' मैंने थोड़ा मायूस होते हुए कहा| अनु के चेहरे पर मुस्कान आ गई और उसने अपनी बाहें मेरी गर्दन के पीछे लॉक कर दी और बोली; "I love you!" ये I love you इस बात को दर्शाता था की आज हम दोनों ने जिस्मानी रूप से एक दूसरे को समर्पित कर दिया है| जाने क्यों पर मेरी नजरें एक आखरी बार अनु की रजामंदी चाहती थीं ताकि ये यौन सुख चरम पर पहुँच सके| अनु ने मुझे वो रजामंदी अपनी गर्दन धीरे से हाँ में हिला कर दी| मैंने अपनी कमर को धीरे-धीरे आगे पीछे करना शुरू किया जिससे मेरा लंड अनु की बुर में धीरे-धीरे अंदर बाहर होने लगा| मेरे धक्कों की रफ़्तार अभी धीरे थी ताकि अनु को धीरे-धीरे इसकी आदत पड़ जाए| पर इतने से ही अनु की सिसकारियाँ निकलने लगी थीं; "सससस..ससस...ममममननन...ससससस...!!!" पाँच मिनट बाद मैंने अपनी रफ़्तार धीरे-धीरे बढ़ानी शुरू की और इधर अनु अपने दूसरे चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई और अपनी दोनों टांगें मेरी कमर पर लॉक कर मुझे रुकने का इशारा किया| अनु के दोनों पाँव की ऐड़ियाँ मेरे कूल्हों पर दबाव बना कर उन्हें हिलने से रोक रहीं थी| आखिर मैंने भी थोड़ा आराम करने की सोची और अंदर को जड़ तक अंदर पेल कर मैं अनु के ऊपर ही लेट गया| अनु की सांसें उसके चरमोत्कर्ष के कारन तेज थीं और मैं अपने होंठ अनु की गर्दन पर रख कर लेट गया| अनु का स्खलन इसबार पहले से बहुत-बहुत लम्बा था जो मैं अपने सुपाडे पर महसूस कर रहा था| जब अनु का स्खलन खत्म हुआ तो उसने मेरी गर्दन पर अपनी फेवरेट जगह पर दाँत से काट लिया| ये उसका इशारा था की मैं फिर से 'काम' शुरू कर सकता हूँ! मैं उठा और इस बार पहले से बड़े और तगड़े धक्के लगाने लगा| मेरे हर धक्के से अनु के तोतापरी आम ऊपर नीचे हिलने लगे थे, इधर अनु पर एक अजब ही खुमारी चढ़ने लगी थी| अनु ने अपने दोनों हाथ अपने बालों में फिराने शुरू कर दिए, उसके अध् खुले लब हिलने लगे थे| मेरा मन तो कर रहा था उन लाल-लाल होठों को एक बार और चूस लूँ पर उसके लिए मुझे नीचे झुकना पड़ता और फिर मेरे लंड को मिल रहा मजा कम हो जाता| अगले आधे घंटे तक मैं उसी रफ़्तार से लंड अंदर-बाहर करता रहा और अनु अपनी खुमारी में अपने हाथों को अपने जिस्म पर फेरने लगी| इधर मुझे हैरानी हो रही थी की मुझ में इतनी ताक़त कहाँ से आई जो मैं बिना रुके इतनी देर से लगा हुआ हूँ! फिर ध्यान गया उस गिलास पर और मैं समझ गया की ये सब दूध का ही कमाल है जिसने मुझे और अनु को अभी तक इतनी देर तक जोश से बाँधा हुआ है|

अनु थोड़ा उठी और मुझे अपने ऊपर खींच लिया, इधर मैं नीचे से मेहनत करने में लगा था और उधर अनु के होठों ने मेरे होठों को चूसना शुरू कर दिया था| बीच-बीच में अनु ने अपने दाँतों का प्रयोग भी करना शुरू कर दिया था! मेरे होठों को दाँतों से चुभलाने में अनु को कुछ ज्यादा ही मजा आ रहा था| अब तो मेरे दोनों हाथों को भी कुछ चाहिए था| मैंने अनु के दोनों स्तनों को अपनी हथेलियों से दबाना शुरू कर दिया था और उँगलियों से मैं उनका मर्दन करने लगा था| नीचे बाकायदा मेरी कमर अपने काम में लगी थी और लंड बड़े आराम से अंदर-बाहर हो रहा था| दोनों ही अब अपनी-अपनी चरम सीमा पर पहुँचने वाले थे, अनु ने अपने दोनों हाथों की उँगलियाँ एक बार फिर मेरे बालों में चलानी शुरू कर दी थीं| उसकी बुर ने प्रेम का गाढ़ा-गाढ़ा रस बनाना शुरू कर दिया था और अगले किसी भी पल वो उस रस को छलकाने वाली थी|

दूसरी तरफ मेरी रफ़्तार अब full speed पर थी, मेरे स्खलित होने से पहले अनु ने अपना रस बहा दिया और मुझे कस कर अपने से चिपका लिया| उसके दोनों पेअर मेरी कमर पर लॉक हो गए और जिस्म धनुष की तरह अकड़ गया| उसके इस चिपकने के कारन मैं रुक गया और अपनी सांसें इक्कट्ठा करने लगा ताकि आखरी कमला कर सकूँ! जैसे ही अनु निढाल हो कर बिस्तर पर लेटी मैंने ताबड़तोड़ धक्के मारे और मिनट भर में ही मेरे अंदर सालों से जो वीर्य भरा हुआ था वो फव्वारे की तरह छूटा और अनु की बुर में भरने लगा! मैं अब भी धीरे-धीरे धक्के लगा रहा था ताकि जिस्म में जितना भी वीर्य है आज उसे अनु की बुर में भर दूँ और हुआ भी वैसा ही| मेरे वीर्य की एक-एक बूँद पहले तो अनु के बुर में भर गई और जो अंदर ना रह सकीय वो फिर रिसती हुई बाहर बहने लगीं| अब मुझ में बिलकुल ताक़त नहीं थी सो मैं अनु के ऊपर ही लुढ़क गया और अपनी साँसों को काबू करने लगा| इधर अनु ने अपने दोनों हाथ मेरी पथ पर चलाना शुरू कर दिया जैसे मुझे शाबाशी दे रही हो| मेरे चेहरे पर थकावट झलक रही थी तो वहीँ अनु के चेहरे से ख़ुशी झलक रही थी|


कुछ देर बाद जब मैं सामान्य हुआ, मेरा लंड अब भी सिकुड़ा हुआ उसकी बुर में था और इसलिए मैंने अनु को ऊपर से हटना चाहा पर अनु ने अपने हाथों की पकड़ कस ली ताकि मैं उसके ऊपर से हिल ही ना पाऊँ| "कहाँ जा रहे हो आप?" अनु ने पुछा|

"कहीं नहीं बस साइड में लेट रहा था|" मैंने कहा|

"नहीं....ऐसे ही रहो....वरना मुझे सर्दी लग जायेगी!" अनु ने भोलेपन से कहा| उसकी बात सुन मैं मुस्कुरा दिया और ऐसे ही लेटा रहा| घडी में सुबह के 2 बजने को आये थे और हम दोनों की आँखें ही बंद थीं| हम दोनों आज अपना सब कुछ एक दूसरे को दे चुके थे और सुकून से सो रहे थे! सुबह पाँच बजे अनु की आँख खुल गई और उसने मेरी गर्दन पर अपनी गुड मॉर्निंग वाली बाईट दी! उसके ऐसा करने से मैं जाग गया; "ममम...क्या हुआ?" मैंने कुनमुनाते हुए कहा|

"आप हटो मुझे नीचे जाना है!" अनु ने कहा| पर मैंने अनु को और कस कर अपने से चिपका लिया और कुनमुनाते हुए ना कहा| "डार्लिंग! आज मेरी पहली रसोई है, प्लीज जाने दो!" अनु ने विनती करते हुए कहा|

"अभी सुबह के पाँच बजे हैं, इतनी सुबह क्या रसोई बनाओगे?" मैंने बिना आँख खोले कहा|

"भाभी ने कहा था की पाँच बजे वो आएँगी...देखो वो आने वाली होंगी!" अनु ने फिर से विनती की, पर मैं कुछ कहता उससे पहले ही दरवाजे पर दस्तक हो गई| मैं फ़ौरन उठ बैठा और अनु को कंबल दिया ताकि वो खुद को ढक ले और मैंने फ़ौरन पजामा पहना और दरवाजा खोला| ऊपर मैंने कुछ नहीं पहना था और जैसे ही ठंडी हवा का झोंका मेरी छाती पर पड़ा मैं काँप गया और अपने दोनों हाथों से खुद को ढकने की कोशिश करने लगा| इधर भाभी मुझे ऐसे कांपते हुए देख हँस पड़ी और कमरे में दाखिल हो गईं और मैंने फ़ौरन एक शॉल लपेट ली| "तुम दोनों का हो गया की अभी बाकी है?" भाभी हम दोनों को छेड़ते हुए बोलीं| अनु तो शर्म के मारे कंबल में घुस गई और मैं शर्म से लाल होगया पर फिर भी भाभी की मस्ती का जवाब देते हुए बोला; "कहाँ हो गया? अभी तो शुरू हुआ था....हमेशा गलत टाइम पर आते हो!" भाभी ने एकदम से मेरा कान पकड़ लिया; "अच्छा? मैं गलत टाइम पर आती हूँ? पूरी रात दोनों क्या साँप-सीढ़ी खेल रहे थे?" भाभी हँसते हुए बोली| इतने में अनु कंबल के अंदर से बोली; "भाभी आप चलो मैं बस अभी आई!"

"ये कौन बोला?" भाभी ने अनु की तरफ देखते हुए जानबूझ कर बोला| अनु चूँकि कंबल के अंदर मुँह घुसाए हुए थी इसलिए वो भाभी को नहीं देख सकती थी|

भाभी हँसती हुईं नीचे चली गईं, मैंने दरवाजा फिर से बंद किया और अनु के साथ कंबल में घुस गया| इधर अनु उठने को हुई तो मैंने उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया| "कहाँ जा रहे हो? मुझे ठण्ड लग रही है!" मैंने बात बनाते हुए कहा|

"तो ये कंबल ओढो, मैं नीचे जा रही हूँ!" अनु ने फिर उठना चाहा|

"यार ये सही है? रात को जब आपको ठंड लग रही थी तब तो मैं आपके साथ लेटा हुआ था और अभी जो मुझे ठंड लग रही है तो आप उठ के जा रहे हो!" मैंने अनु से प्यार भरी शिकायत की जिसे सुन कर अनु को मुझ पर प्यार आने लगा| वो फिर से मेरे पास लेट गई और मुझे कास कर अपने सीने से लगा लियाऔर बोली; "आपको पता है, मैंने कभी सपने में भी ऐसी कल्पना नहीं की थी की मुझे आप मिलोगे और इतना प्यार करोगे! अब मुझे बस जिंदगी से आखरी चीज़ चाहिए!" ये कहते हुए अनु खामोश हो गई| उस चीज़ की कल्पना मात्र से ही अनु का दिल जोरों से धड़कने लगा था और मैं उसकी धड़कन साफ़ सुन पा रहा था| पता नहीं क्यों पर अनु की ये धड़कन मुझे अच्छी लग रही थी,अनु ने धीरे से खुद को मेरी पकड़ से छुड़ाया पर इस हलचल से मैं उठ कर बैठ गया| अनु ने कंबल हटाया और रात से ले कर अभी तक पहली बार अपनी नीचे की हालत देखि और हैरान रह गई| चादर पर एक लाल रंग का घेरा बन चूका था और उसके ऊपर हम दोनों के 'काम' रस का घोल पड़ा था जो गद्दा सोंख चूका था! अनु ये देख कर शर्मा गई और अपने दोनों हाथों से अपने चेहरे को ढक लिया| मैंने अनु को एक हैंड टॉवल उठा कर दिया ताकि वो अपनी नीचे की हालत कुछ साफ़ कर ले और मैं दूसरी तरफ मुँह कर के बैठ गया ताकि उसे शर्म ना आये| "आप को उधर मुँह कर के बैठने की कोई जर्रूरत नहीं है!" अनु मुस्कुराते हुए बोली और खुद को साफ़ करने लगी| मैं भी मुस्कुराने लगा पर अनु की तरफ देखा नहीं, मैं उठ कर खड़ा हुआ और अलमारी से अपने लिए कपडे निकालने लगा| इधर अनु ने भी अपने कपडे निकाले और ऊपर एक निघ्त्य डाल कर नीचे नहाने चली गई| घर में आज सिर्फ औरतें ही मौजूद थीं, बाकी सारे मर्द आज बाहर पड़ोसियों के यहाँ सोये थे, रितिका वाले कमरे में भी कोई नहीं सोया था| नीचे सब का नहाना-धोना चल रहा था और मैं नीचे नहीं जा सकता था| कुछ देर बाद भाभी नेहा को ले कर ऊपर आ गईं| मैंने भाभी को सख्त हिदायत दी थी की वो नेहा को अपने साथ रखें क्योंकि मुझे रितिका पर जरा भी भरोसा नहीं था| अपनी खुंदक निकालने के लिए वो नेहा को कुछ भी कर सकती थी| भाभी जब नेहा को ऊपर ले कर आईं तो वो रो रही थी; "संभाल अपनी गुड़िया को सुबह से केँ-केँ लगा रखी है इसने!" भाभी नेहा को मेरी गोद में देते हुए बोली| मैंने नेहा को गोद में लिया और उसे अपने सीने से लगाया| नेहा ने ने एकदम से रोना बंद कर दिया, ये देख कर भाभी हैरान हो गईं और मुस्कुराते हुए चली गईं| इधर मैं नेहा को गोद में लिए कमरे में घूमने लगा, फिर मेरा मन किया की मैं नेहा के साथ खेलती०खेलते अनु को छेड़ूँ| अब नीचे तो जा नहीं सकता था इसलिए मैंने एक आईडिया निकाला| मैंने नेहा को ऐसे पकड़ा की उसका मुँह मेरी तरफ था और गाना गाने लगा;

साथ छोड़ूँगा ना तेरे पीछे आऊँगा

छीन लूँगा या खुदा से माँग लाउँगा

तेरे नाल तक़दीरां लिखवाउंगा

मैं तेरा बन जाऊँगा

मैं तेरा बन जाऊँगा


सोंह तेरी मैं क़सम यही खाऊँगा

कित्ते वादेया नू मैं निभाऊँगा

तुझे हर वारी अपना बनाऊँगा

मैं तेरा बन जाऊँगा

मैं तेरा बन जाऊँगा"

मेरी आवाज इतनी ऊँची थी की नीचे सब औरतें ये गाना सुन पा रही थीं और भाभी ने अनु को मेरे बदले छेड़ना शुरू कर दिया| अनु का शर्म से बुरा हाल था, उसके गाल सुर्ख लाल हो चुके थे, वो उठी और जा कर माँ के पास बैठ गई और उनके कंधे में अपना मुँह रख कर छुपा लिया| माँ भी हँसने लगी और वहाँ जो भी कोई था वो मेरा पागलपन सुन हँसने लगा|

"तेरे लिए मैं जहाँ से टकराऊँगा

सब कुछ खोके तुझको ही पाउँगा

दिल बन के दिल धडकाऊँगा"

मैं ऊपर गाना जाता जा रहा था और नेहा की नाक से अपनी नाक रगड़ रहा था| नेहा भी बहुत खुश थी और हँस रही थी, अपने नन्हे-नन्हे हाथों से मेरी बड़ी नाक पकड़ने की कोशिश कर रही थी| जैसे ही मैंने गाना बंद किया माँ नीचे बोलीं; "ओ दिल वाले....नीचे आ तेरा दिल मैं धड़काऊँ!" माँ की आवाज सुन मैं फ़ौरन नीचे आया, माँ के पैर छुए और उन्होंने मेरे कान पकड़ लिए| "बहु को छेड़ता है? रुक तुझे में सीधा करती हूँ!" ये कहते हुए माँ ने मेरे गाल पर एक प्यार भरी चुटकी खींची और मैं हँसने लगा!

"देखत हो कितना बेसरम है ई लड़कवा! तोहार बहु तो सब के पैर छू कर आशीर्वाद ले लिहिस है और ये अभी तक केहू का नमस्ते तक ना किहिस है!" मौसी बोली| मैंने फिर एक-एक कर सबके पैर छुए और वापस ऊपर आ कर नेहा के साथ खेलने लगा| जब सब का नहाना हो गया तब मैं नहाने घुसा| गाना गुनगुनाते हुए मैं नहाया और कुरता-पजामा पहन कर तैयार हुआ| नेहा को भी मैंने ही नहलाया पर ये सब किसी को पसंद नहीं आया और उन्होंने मुझे टोका; "ओ मानु तू काहे इस सब कर रहा है?" मौसी बोलीं और उन्होंने रितिका को डाँट लगाते हुए कहा; "तू का हुआन खड़ी-खड़ी देखत है, ई काम खुद ना कर सकत है?"

"क्यों मौसी मैं क्यों नहीं कर सकता? आदमी हूँ इसलिए?" मैंने उनकी तरफ घूमते हुए कहा|

"इस घर में सबसे ज्यादा मानु प्यार करता है नेहा से! उसके इलावा वो किसी से नहीं सम्भलती!" ताई जी बोलीं|

"दीदी ईका (मेरा) बच्ची से इतनी माया बढ़ाना ठीक नाहीं!" मौसी बोलीं|

"क्यों? एक बिन बाप की बच्ची को अगर बाप का प्यार मानु से मिलता है तो क्या बुरा है?" ताई जी बोलीं और उन्होंने आगे मौसी को कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया| पर ताई जी के ये बात मेरे दिल को लग गई! नेहा मेरी बेटी थी और सब इस सच से अनविज्ञ थे और यही सोचते थे की मेरा उससे मोह एक तरह की दया है! मैं नेहा को ले कर चुपचाप ऊपर आ गया और उसे कपडे पहनाने लगा| जहाँ कुछ देर पहले मेरे दिल में इतनी खुशियाँ थी वहीँ मौसी की बात सुन कर मेरे दिल में दर्द पैदा हो चूका था| नेहा को कपडे पहना कर मैं उसे अपनी छाती से लगा कर कमरे की खिड़की के सामने बैठ गया और नेहा की पीठ सहलाने लगा| कुछ देर में नेहा सो गई और मैं सोच में डूब गया| मुझे कुछ न कुछ कर के नेहा को अपनाना था, उसे अपना नाम देना था!



अनु समझ गई थी की मुझे कितना बुरा लगा है और कुछ देर बाद वो ऊपर आ गई और मुझे गुम-शूम खिड़की की तरफ मुँह कर के बैठा देख उसे भी बुरा लगा| वो मेरे पीछे खड़ी हो गई और मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए बोली; "We’ll figure out a way!” मैंने बस हाँ में सर हिलाया पर दिमाग मेरा अब भी रास्ता ढूँढने में लगा था| पर अनु मुझे हँसाना-बुलाना जानती थी; "Now cheer up! मुझे नीचे रसोई के लिए बुलाया है और मुझे बहुत डर लग रहा है!" ये एक दम से उठ खड़ा हुआ और बोला; "चलो आज हम दोनों खाना बनाते हैं!" ये बात भाभी ने बाहर से सुन ली और बोलीं; "खाना तो बहुरानी ही बनाएगी, तुम जा कर मर्दों में बैठो!" भाभी की बात सुन हम दोनों मुस्कुरा दिए| अनु इधर खाना बनाने में लगी और मैं बाहर निकल के पिताजी के पास बैठ गया| कुछ देर बाद सबको खाना खाने के लिए बुलाया गया, खाने में अनु ने लौकी के कोफ्ते और गोभी के सब्जी बनाई थी, साथ में रायता और गरमा-गर्म रोटियॉँ| घर के सारे लोग एक साथ बैठ गए सिर्फ भाभी, अनु और रितिका रह गए थे| अनु ने आज एक गहरे नीले रंग की साडी पहनी थी और सर पर थोड़ा घूंघट कर रखा था| ताऊ जी ने जैसे ही पहला कौर खाया उन्होंने फ़ौरन अपनी जेब में हाथ डाला और फ़ौरन कुछ पैसे निकाले| अनु को अपने पास बुलाया और उसे 5001/- देते हुए बोले; "बहु ये ले, आज तेरे हाथ की पहली रसोई थी और माँ अन्नपूर्णा का हाथ है तुझ पर, मैंने इतना स्वाद खाना कभी नहीं खाया!" उनके बाद पिताजी ने भी अनु को 5001/- दिए और बहुत आशीर्वाद भी दिया| मौसा जी ने भी अनु को 1001/- दिए, अब बारी आई ताई जी की, उन्होंने अनु को सोने के कंगन दिए और आशीर्वाद दिया| माँ का नंबर आया तो उन्होंने अनु को एक बाजूबंद दिया जो उन्हें उनकी माँ यानी मेरी नानी ने दिया था| अनु की आँखें इतना प्यार पा कर नम हो गईं थी| तब माँ ने उसके सर पर हाथ फेरा और उसके मस्तक को चूमते हुए बोली; "बेटी बस...रोना नहीं!" भाभी ने माहौल को हल्का करने के लिए बात शुरू की; "पिताजी आपको पता है मानु भैया कह रहे थे की वो भी रसोई में मदद करेंगे!" ये सुन कर सारे हँस पड़े और अनु भी मुस्कुरा दी|

"कल तू सब के लिए खाना बनायेगा!" ताऊ जी ने मुझसे कहा पर तभी भाभी बोलीं; "पर कल तू बहु चली जाएगी?!" ये सुनते ही मैं खाते हुए रुक गया और हैरानी से भाभी को देखने लगा| मेरी ये हरकत सबने देखि और भाभी को मेरी टांग खींचने का फिर मौका मिल गया| " क्या? शादी के अगले दिन बहु अपने घर जाती है!" भाभी ने मुझे रस्म याद दिलाई| पर बेटे के दिल का दर्द सिर्फ माँ ही समझती है; "बेटा बहु कुछ दिन बाद वापस आ जाएगी|" माँ की बात सुन कर मुझे तसल्ली नहीं हुई क्योंकि उन्होंने ये नहीं बताया था की ये कुछ दिन कितने होते हैं? खाना खाने के बाद सबसे बातें होने लगीं इसलिए हम दोनों को अकेले में बात करने का समय नहीं मिला| शाम को भी लोगों का आना-जाना लगा रहा और इसी बीच संकेत भी मिलने आया| वो मेरी शादी में नहीं आ पाया था क्योंकि कुछ emergency कारणों से उसे बाहर जाना पड़ा था और उसकी गैरहाजरी में उसका परिवार जर्रूर आया था| मैंने उसका इंट्रो अनु से करवाया तो उसने हाथ जोड़ कर अनु से नमस्ते कहा और फिर अपने ना आ पाने की माफ़ी भी माँगी| रात को खाना अनु ने ही बनाया और खाने के बाद भाभी ने उसे जानबूझ कर उसे अपने साथ बिठा लिया| इधर चन्दर भैया मुझे अपने साथ खींच कर छत पर ले आये जहाँ मेरे बाकी कजिन बैठे थे और वहाँ बातें शुरू हो गईं| भाभी वाले कमरे में मेरे मौसा जी के दो लड़कों की पत्नियाँ बैठी थीं और उन्हीं के साथ रितिका भी बैठी थी| भाभी जबरदस्ती अनु को पकड़ कर वहीँ ले आई| अब रितिका उठ कर भी नहीं जा सकती इसलिए नजरे झुका कर बैठी रही| "तो अनुराधा जी! बताइये पहली रात कैसी गुजरी? कहीं देवर जी ने आपको तंग तो नहीं किया?" भाभी ने कहा और सारे हँसने लगे| पहले तो अनु ने सोचा की बात हँस कर ताल दे फिर उसे रितिका की शक्ल दिखी और उसने सोचा की क्यों न हिसाब बराबर किया जाए| अनु ने अपना हाथ भाभी के कंधे पर रखा और अपना सर उसी हाथ पर रखते हुए बोली; "हाय भाभी! आपके देवर जी ने तो मेरी जान ही निकाल दी थी! निचोड़ कर रख दिया था मुझे!" अनु की बात सुन सारे शर्मा गए और भाभी अनु को प्यार से डांटते हुए बोली; "चुप बेशर्म!" उनका इशारा रितिका की तरफ था की उसके सामने अनु ये क्या कह रही है| "अरे तो इसमें क्या शर्म की बात? इसने भी तो कभी न कभी किया होगा!" अनु ने बात घुमा के कही पर वो सीधा रितिका को जा कर लगी| अनु का तातपर्य था की उसने भी तो मेरे (मानु के) साथ सेक्स किया है| रितिका को अचानक ही वो रंगीन दिन याद आ गए और उसके दिल के साथ-साथ नीचे वाले छेद में भी हलचल मच गई| "पर भाभी एक बात तो है, 'वो' आपकी हर बात मानते हैं!" अनु बोली|

"क्या मतलब?" भाभी बोली|

"कल रात आप ने कहा था ना की मेरी देवरानी का ख्याल रखना, तो उन्होंने रात भर बड़ा ख्याल रखा मेरा!" अनु बोली और फिर शर्मा गई| ये सुन कर रितिका अंदर ही अंदर जल-भून कर राख हो गई और सर झुकाये बैठी रही|

"हाँ-हाँ वो सब मैंने आज तुम-दोनों का बिस्तर देख कर समझ गई थी! वैसे सच-सच बता तूने कल रात से पहले कभी......?" भाभी ने बात अधूरी छोड़ दी पर अनु उनकी बात का मतलब समझ गई|

"नहीं भाभी....कल रात पहली बार था.....इसीलिए तो इतनी घबराई हुई थी| पर सच्ची 'उन्होंने' मेरा बड़ा ख्याल रखा और बड़े प्यार से....." अनु ने भी शर्माते हुए कहा और बात अधूरी छोड़ दी|

"पर इस मुई ने सबको बता दिया!" भाभी ने मौसा जी की सबसे छोटी बहु की तरफ इशारा करते हुए कहा| अब ये सुन कर तो अनु के कान लाल हो गए; "सबको?" अनु ने पुछा|

"अरे बुद्धू सबको मतलब माँ, चाची जी और मौसी जी को| हम तीनों ने तो साक्षात् रंगोली देखि थी!" भाभी ने अनु को चिढ़ाते हुए कहा| मतलब की घर की सब औरतों को चल गया था की अनु कुँवारी थी पर ताई जी और माँ के डर के मारे मौसी जी ने उससे कुछ नहीं पुछा था| वरना शादी होने के बाद भी अनु का कुंवारा होना मौसी जी के लिए अजीब बात थी! ये बात जिस शक़्स को बहुत जोर से लगी थी वो थी रितिका! कहाँ तो वो सोच रही थी की वो मानु को ताना देगी की उसे अनु के रूप में एक used माल मिला और कहाँ अनु एकदम कोरी निकली|



आखिर सब की बातें खत्म हुई और अनु ऊपर आई और मैं भी अभी कमरे के बाहर पहुँचा था की भाभी मुझे वहीँ मिल गई| "हो गई आपकी बातें? साड़ी बातें आप ही कर लो! मेरे लिए कुछ मत छोड़ना!" मैंने भाभी से शिकायत करते हुए कहा| ये सुन कर मेरी बाकी दो भाभियाँ भी हँसने लगीं अब तो अनु भी आ कर मेरे पीछे खड़ी हो गई थी; "वैसे भाभी वो कल रात वाले दूध में क्या डाला था?" मैंने कहा और सारे हँसने लगे|

"उसका असर तो अनुराधा ने बता दिया हमें और वो तुम्हारी रंगोली भी देखि थी हमने!" मेरी छोटी भाभी बोली और ये सुन कर अनु मेरे पीछे अपना सर छुपा कर मुस्कुराने लगी|

"भाभी वो दूध आज भी मिलेगा!" मैंने कहा और साड़ी औरतों ने मुझे प्यार भरे मुक्के मारने चालु कर दिए|

"दीदी सच्ची बेशर्म हो गया है ये तो!" बड़ी वाली भाभी बोलीं| भाभी दोनों को ले कर नीचे आ गईं, इधर मैं और अनु अंदर आ गए| "तो पहले ये बताओ की कब वापस आओगे?" मैंने सीधा ही सवाल दागा|

"शायद एक हफ्ता!" अनु ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया|

"एक हफ्ता क्या करोगे वहाँ?" मैंने बेसब्री से पुछा|

"नाते-रिश्तेदारों से मिलना होता है और...." अनु अभी कुछ बोलती उससे पहले ही मैंने उसकी कमर में हाथ डाल आकर उसे अपने पास खींच लिया और उसके होठों को चूम कर कहा; "दो दिन....बस इससे ज्यादा wait नहीं करूँगा!"

"क्या करोगे अगर मैं दो दिन बाद नहीं आई तो?" अनु अपनी ऊँगली को मेरे होठों पर रखते हुए बोली|

"फिर मैं आऊँगा अपनी दुल्हनिया को लेने!" मैंने कहा और अनु को गोद में उठा लिया और उसे बिस्तर पर लिटा दिया| मैं जानता था वो आज बहुत थकी हुई होगी इसलिए आज मैं बस उसे अपने से चिपका कर सोना चाहता था| मैं भी अनु की बगल में लेट गया, अनु ने मेरे बाएँ हाथ को अपना तकिया बनाया और मुझसे चिपक कर लेट गई| मैं अनु के सर को चूमता हुआ उसके बालों में उँगलियाँ फेरता रहा और कुछ देर बाद दोनों सो गए|
shaandaar update hai bhai
 
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Nevil singh

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सुबह की शुरुआत बड़ी मीठी हुई, पहले तो अनु ने मेरी गर्दन को प्यार से काटा और उसके कुछ देर बाद नेहा ने मेरे गाल पर Kissi की! मैं कुनमुनाता हुआ उठा और नेहा को अपने सामने देख कर बैठ गया| अनु ने नेहा को मेरी गोद में दिया और खुद नीचे चली गई| मैं नेहा को गोद में ले कर खेल रहा था की नीचे हल्ला मच गया| मैं फ़ौरन नीचे आया तो देखा सारे ख़ुशी से एक दूसरे को बधाइयाँ दे रहे हैं| "बेटा तो चाचा बनने वाला है!" ये सुनते ही मैं चौंक गया और फिर भाभी की तरफ देखा जो शरमाई हुई ताई जी के पीछे छुपी हुई थीं| इस उम्र में भाभी का conceive करना एक चमत्कार था, मेरा मन ये सोच कर खुश हुआ की चलो भाभी अभी तक जिन खुशियों से महरूम थीं वो उन्हें मिल ही गईं| मैंने भाभी को दिल से मुबारकबाद दी और फिर चन्दर भैया को भी गले लग कर मुबारकबाद दी| आज पूरा घर खुशियों से झूम रहा था और कहीं इसकी नजर किसी को न लग जाए इसलिए ताऊ जी ने जोश-जोश में पूजा का आयोजन रख दिया| अनु ने फ़ौरन हलवा बनाना शुरू कर दिया और भाभी भी उसी के साथ खड़ी हो गईं| रसोई में चूँकि बस वो दोनों ही थे तो मुझे भाभी से बात करने का मौका मिल गया| जैसे ही मैं रसोई पहुँचा भाभी ने मुझे गले लगा लिया और रुंधे गले से बोलीं; "मानु ये सब तुम्हारी वजह से हुआ, वरना मैं तो गलत रास्ते पर भटक जाती! तुम अगर मुझे इन्हें (चन्दर भैया को) पहले नशा मुक्ति केंद्र ले जाने को कहा और वहीँ मैंने डॉक्टर से इनका बाकी चेक-अप भी करवाया| अगर उस दिन तुम मुझे हिम्मत ना देते और गलत रास्ते पर नहीं जाने देते तो आज ये सब नहीं होता!"

"भाभी इस ख़ुशी के मौके पर रोते नहीं हैं! पहले चलो डॉक्टर के ताकि आपका चेकअप हो जाए!| मैंने कहा| "भाभी ये तो गलत बात है! मुझे तो गले लग कर इतना प्यार नहीं करती जितना इन्हें करती हो!" अनु ने प्यार भरे लहजे में शिकायत की|

"बदमाश! सबसे पहले तू ही गले लगी थी मेरे!" ये कहते हुए भाभी ने उसे गले लगा लिया| सबने हलवा खाया और मैंने डॉक्टर के जाने की बात राखी तो ताऊ जी ने कहा की मैं, अनु, चन्दर भैया और भाभी को अपने साथ बजार ले जाऊँ| पर तभी अनु के मौसा जी आ गए, मैंने उनके पाँव छुए और समझ गया की वो अनु को लेने आये हैं| अनु ऊपर चली गई और उसके पीछे-पीछे मैं भी चला गया| इधर नीचे सब ने उन्हें खुशखबरी दी और मुँह मीठा करवाया, उधर ऊपर आते ही मैंने दरवाजा बंद कर दिया और अनु को पीछे से जकड़ लिया| मेरे हाथ अनु की कमर पर सामने की तरफ लॉक हो चुके थे; "दो दिन से ज्यादा नहीं वेट करूँगा!" मैंने कहा|

"I'll try!!!" अनु शर्माते हुए बोली| इतने में भाभी ने नीचे से मुझे आवाज दी| मैं थोड़ा गुस्से में नीचे उतरा और भाभी मेरे चेहरे पर गुस्सा देख हँस पड़ी| 5 मिनट बाद अनु भी नीचे आई, उसका एक छोटा सा बैग मैं पहले ही नीचे ले कर आ गया था| सारा परिवार अनु को छोड़ने बाहर आया, अनु ने भी सब के पाँव छुए और फिर गाडी में बैठ गई| मैंने तुरंत उसे मैसेज कर के एक बार फिर याद दिलाया; "बस दो दिन!" और इसके जवाब में अनु ने मुझे एक Kiss वाली emoji भेजी! अनु के जाने के कुछ देर बाद मैं तैयार हुआ और फिर भाभी, मैं और चन्दर भैया गाडी से निकले| ये आज दोनों की पहली राइड थी, हम हँसते-खेलते हुए बजार पहुंचे और डॉक्टर ने भाभी का चेकअप किया और कुछ टेस्ट वगैरह भी किये| भाभी की प्रेगनेंसी की बात कन्फर्म हुई और डॉक्टर ने कुछ मल्टीविटामिन्स लिख दिए, मैंने घर के लिए मिठाई खरीदी और हम तीनों घर लौटे| ताऊ जी ने छाती ठोक कर पूरे गाँव में मिठाई बाटी| इधर अनु के जाने से मैं अकेला हो गया था तो मैंने अपना मन नेहा के साथ लगा लिया| मैं उसे गोद में ले कर अपने लैपटॉप पर काम कर रहा था| कुछ देर बाद मैंने अनु को skype पर कॉल किया और मेरी गोद में नेहा को बैठे देख वो खुश हो गई| मैंने फिर से अपनी बात दोहराई और उसे दो दिन याद दिलाये और वो हँसने लगी| "बाबा अभी तो आई हूँ..... और आप अभी से बेकरार हो रहे हो?!" आगे कुछ बात हो पाती उससे पहले ही मम्मी जी आ गईं और फिर उनसे बात शुरू हो गई| खेर कॉल के बाद मैं काम करने लगा, दिन तो जैसे-तैसे बीत गया पर रात लम्बी थी! पर मेरी बेटी का प्यार था जो मैं आराम से सो गया| बड़ी मुश्किल से मैंने दो दिन बिताये और फिर आया तीसरा दिन| मैंने सुबह ही अनु को फ़ोन कर के पुछा तो वो बोली की वो आज नहीं आ रही, क्योंकि कल ही पूजा खत्म हुई है और कम से कम आज उसे घर रहना है| दरअसल डैडी जी ने एक मन्नत मांगी थी की अनु की शादी अच्छे से निपट जाए तो वो मंदिर दर्शन के लिए जायेंगे| पर यहाँ मैं बेसब्र हो गया था; "मैंने कहा था ना की मैं तीसरे दिन आजाऊँगा! सामान पैक करो, मैं, माँ, ताई जी और भाभी आ रहे हैं!" इतना कह कर मैंने फ़ोन काटा और मैं नीचे आ गया| जब मैंने माँ से आज जाने की बात कही तो सबसे मुझे डाँट सुनने को मिली! एक बस भाभी थी जो मेरे दिल की हालत समझती थी पर घरवालों के आगे वो कुछ बोल नहीं पाती थी| हालाँकि घर वालों की डाँट जायज थी पर मेरा अनु के लिए बेसब्र होना भी मुझे जायज लग रहा था|


पर नेहा से अपने पापा की उदासी नहीं देखि गई, उसने अपने हाथ-पैर चलाने शुरू किये जैसे मुझे अपने पास बुला रही हो, मैंने नेहा को गोद में उठाया और छत पर आ गया| "मेरा छोटा बच्चा! एक आप हो जो पापा की उदासी समझते हो!" मैंने तुतलाते हुए नेहा से कहा तो वो मुस्कुराने लगी| कुछ देर बाद भाभी आ गईं वो जानती थी की मैं उदास हूँ तो मेरा दिल बहलाने के लिए वो बात करने लगीं; "मानु देखो कुछ दिन रुक जाओ, उसे भी तो अपने माँ-पिताजी से मिलने दो!"

"मैं जानता हूँ की आप आप सही कह रहे हो भाभी, पर कम से कम आप तो मेरी बेसब्री समझो! साल भर से उसके साथ रहने की आदत हो गई है| उस पर पिछले 3 महीने भी मैं उससे अलग रहा, अब शादी हुई तो भी उसे घर जाना पड़ा! अब कैसे ..... नई-नई शादी हुई....दूल्हे का थोड़ा तो ध्यान रखना चाहिए ना? फिर एक बड़ी जोरदार खुशखबरी भी उसे देनी है!!" ये कहते हुए मैंने भाभी को वो खुशखबरी सुनाई और वो फ़ौरन नीचे आईं और सब को वो बात बताई| भाभी ने बड़े तरीके से मेरी खुशखबरी को मेरी बेसब्री के ऊपर रख ऐसे जताया जैसे ये खबर सुनाने को मैं मरा जा रहा हूँ| आखिर नीचे से बुलावा आया और पिताजी बोले; "देख मैं या भाईसाहब तो जाने वाले नहीं, क्योंकि हमें अच्छा नहीं लगता की हम इतनी जल्दी बहु को लेने जाएँ!" अभी पिताजी की बात पूरी भी नहीं हुई की मैं बीच में ही बोल पड़ा; "पिताजी मैं माँ, भाभी और ताई जी को ले जाता हूँ! इसी बहाने वो सब भी घूम आएंगे!"

"कुछ ज्यादा ही समझदार हो गया तू? पर जाते हुए मिठाई ले जाइओ और अपनी भाभी की खुशखबरी भी दे दिओ!" पिताजी बोले और जाने की इजाजत दी| अब मुझे माँ और ताई जी को मनाना था जो इतना मुश्किल नहीं था! आखिर हम सारे निकले, भाभी आगे बैठीं और उनकी गोद में नेहा बैठी थी| आज पहलीबार मेरी बेटी गाडी में बैठी थी और इसकी ख़ुशी अनु से मिलने की ख़ुशी के साथ जुड़ गई!

मैंने गाडी एक दूकान पर मिठाई लेने के लिए रोकी और उसी बीच अनु को फ़ोन किया; "अपनी दुल्हनिया को लेने उसके दूल्हे राजा आ रहे हैं और साथ ही आपकी चहेती (नेहा) को भी ला रहे हैं!" ये सुन कर अनु हँस पड़ी और उसने ये बात फ़ौरन मम्मी जी को बता दी| मिठाई की दूकान के बाद गाडी सीधा अनु के दरवाजे पर रुकी, जहाँ अनु पहले से ही खड़ी थी| उसे देखते ही भाभी बोलीं; "आग दोनों तरफ लगी है!" पहले भाभी गाडी से उतरीं और उनके गोद में नेहा को देख अनु फ़ौरन उनके पास पहुँची| पहले उनसे गले मिली और फिर नेहा को गोद में उठा लिया| फिर निकली माँ और ताई जी और उन्हें देख वो एकदम हैरान हो गई और दौड़ कर उनके पाँव छुए पर मुझे एक Hi तक नहीं बोला बल्कि नेहा और सब को ले कर अंदर चली गई| मैं बेचारा लास्ट में अंदर आया, सब के सब बैठक में बैठ गए और तब मैंने मम्मी-डैडी जी का मुँह मीठा करवाया| डैडी जी को (अनु के) मौसा जी ने पहले ही सब बता दिया था, मम्मी-डैडी ने भाभी को आशीर्वाद दिया और उन्होंने मंदिर में भाभी के लिए अर्चना कराई थी उसका प्रसाद भी दिया|

"समधी जी माफ़ करना हमने इस तरह बिना बताये आने की गलती की पर ये जो है ना हमारा लड़का वो थोड़ा सा पागल है!" माँ ने जैसे-तैसे बात शुरू करते हुए कहा|

"अरे समधन जी ये आप क्या कह रहीं हैं?! आप सब का हमेशा स्वागत है! वैसे हम अच्छे से जानते हैं हमारे जमाई को, पागल नहीं अनु से बहुत प्यार करता है!" डैडी जी बोले पर मुझे थोड़ा बहाना तो करना था;

"वो डैडी जी....काम....काम बहुत पेंडिंग है!" मैंने बहाना मारा|

"हाँ बीटा जी! हम जानते हैं कितना काम पेंडिंग है?" मम्मी जी हँसते हुए बोलीं| अब मेरी पोल-पट्टी तो खुल ही चुकी थी तो मैंने सोचा की चलो सब के साथ ख़ुशी साजा कर लूँ|

"दरअसल डैडी जी मैं और अनु जिस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे उसी के जरिये मैंने New York में बात की थी और हमें एक और कंपनी में मिलने के लिए बुलाया गया है| पर उसके पहले हमें अपनी कुछ Highlights Pitch करनी हैं! अगर हमारा प्रपोजल उन्हें पसंद आ गया तो हमें जल्दी ही New York जाना होगा|" मैंने कहा और ये खबर सुन कर मम्मी-डैडी बहुत खुश हुए पर ठीक उसी समय पर भाभी ने अपना काम किया;

"इसी बहाने इन दोनों का वो....वो क्या होता? शादी के बाद मियाँ-बीवी कहाँ जाते हैं?" भाभी बोलीं और मैं अपने उत्साह में बोल गया;

"Honeymoon!!!" ये सुन कर सारे हँसने लगे, इधर मैं और अनु शर्म से लाल हो गए! फिर भाभी ने वहाँ सब के सामने मेरी और अनु की बड़ी खिचाई की, आखिर खाना-पीना कर के हम सब निकले| आगे की तरफ अनु बैठी और उसकी गोद में नेहा थी और पीछे माँ, ताई जी और भाभी बैठे थे| कुछ दूर आने पर मैंने अनु से शिकायत करते हुए अंग्रेजी में कहा; "You greeted everyone but didn’t even said ‘Hi’ to me, this ain’t fair!”

“Sorry!” अनु ने शर्माते हुए कहा|

"ये क्या दोनों अंग्रेजी में गिट-पिट कर रहे हो?" भाभी बोलीं तो मैंने अनु की शिकायत सबसे कर दी!

"मैं कह रहा था की जब हम आये तो इन्होने सब का प्यार से स्वागत किया और मुझे एक छोटा सा Hi तक नहीं कहा!" ये सुनते ही ताई जी अनु की हिमायत करते हुए बोलीं;

"तेरे लिए बेचारी दरवाजे पर खाड़ी इंतजार कर रही थी ना?" और बाकी की रही-सही कसर माँ ने निकाल दी; "हमारी बहु शर्मीली है, तेरी तरह बेशर्म नहीं! दो दिन भी उसके बिना नहीं रह पाया!" मैं अपना इतना सा मुँह ले कर चुप हो गया और उधर भाभी और अनु का हँस-हँस कर बुरा हाल हो गया|


खेर हम घर पहुँचे और अनु को देख कर सब खुश हुए लेकिन मुझे एक बार फिर सब की डाँट खानी पड़ी! पर कम से कम अनु घर वापस आ गई थी और मैं इसी से खुश था| रात को खाने के बाद अनु का प्यार मुझ पर बरसने लगा, पर तभी नीचे से नेहा के रोने की आवाज आई| मैं फ़ौरन नीचे पहुँचा; "तेरे बिना ये सोने वाली नहीं, इसे सुला कर मेरे पास वापस दे दे!" भाभी बोलीं| मैं उनका मतलब समझ गया था, वो चाहती थीं की अनु और मुझे अकेला टाइम मिले पर वो क्या जाने की हम दोनों नेहा से कितना प्यार करते हैं| मैंने बस ना में सर हिलाया, और नेहा को पुचकारते हुए ऊपर ले आया| नेहा को रोता देख अनु ने उसे गोद में लेने को हाथ खोले पर नेहा उसकी गोद में नहीं गई| "अच्छा बेटा! मेरे पास नहीं आओगे, ठीक है मैं आपसे बात नहीं करुँगी!" ये कहते हुए अनु रूठ गई| "Hawwwww!!! देखो मम्मा गुच्छा हो गए!" मैंने तुतलाते हुए नेहा से कहा और वो एकदम से चुप हो गई| फिर मैं उसे अनु के पास ले गया और नेहा ने अपने हाथ एकदम से खोल दिए| अनु एकदम से पिघल गई और उसने नेहा को गोद में ले लिया और उसे प्यार करने लगी| अनु ने नेहा को बीच में लिटाया और हम दोनों उसके दोनों तरफ लेट गए| अनु ने अपना दायाँ हाथ मेरी कमर पर रखा और मैं अपने बाएँ हाथ से अनु के गाल को सहलाने लगा| "आपको पता है मैंने आपको कितना miss किया!" मैंने कहा|

"Miss तो मैंने किया आपको! आपके पास तो कम से कम नेहा थी मेरा तो वहाँ हाल ही बुरा था!" अनु बोली| फिर वो एक दम से उठी और मेरे होठों पर Kiss दे कर लेट गई| नेहा अब भी जाग रही थी तो उसे सुलाने को मैंने एक कहानी सुनाई| कहानी सुनते-सुनते माँ-बेटी सो गए और कुछ देर बाद मैं भी सो गया| अगले 3 दिन हम दोनों ने ऑफिस का काम किया, बेचारी अनु को घर का काम भी देखना पड़ता और मेरे साथ बैठ कर काम भी करना पड़ता| मैं अपनी तरफ से कोशिश कर रहा था की मैं अनु को ज्यादा तंग ना करूँ पर बिना उसके इनपुट के काम होना मुश्किल था| माँ ने भी कई बार अनु को कहा की वो काम करे और घर का काम भाभी कर लेंगी पर अनु नहीं मानी| खेर Pitch रेडी हुई और मैंने वो भेज दी और अब हम दोनों बेसब्री से जवाब आने का इंतजार करने लगे|
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Nevil singh

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दो दिन बीते, मैं अब भी पुराने वाले प्रोजेक्ट में लगा था| आकाश और पंडित जी को मैंने पुराने काम दे रखे थे जैसे की GST Return भरना, बिल,वाउचर चढ़ाना, ITR फाइल करना| जब बॉस सर पर ना हो तो employee ढीले हो ही जाते हैं! अनु को तो वो अब जैसे कुछ समझते ही नहीं थे, वो तो मैं उनकी लगाम किसी तरह खींच कर रखता था| डेली उनको फ़ोन कर के जान खाता था की कितनी प्रोग्रेस हुई है तब जा कर वो सीरियसली काम कर रहे थे| पिताजी और ताऊ जी जब मुझे फ़ोन पर उन पर हुक्म चलाते हुए देखते या मुझे उनकी क्लास लेते हुए देखते तो उन्हें बड़ा फ़क्र होता! खेर दूसरे दिन की बात है, सुबह मैं अपने काम में लगा था| पिताजी और चन्दर भैया कुछ काम से शहर गए थे और ताऊ जी को एक काम था पर वो कहने में झिझक रहे थे| मैं उठ कर उनके पास बैठ गया और उनसे पूछने लगा तो उन्होंने झिझकते हुए कहा; "बेटा वो.... मिश्र से पैसे लाने थे.....तो ...." बस ताऊ जी इतना ही बोल पाए की मैं एकदम से उठ खड़ा हुआ; "तो चलिए चलते हैं!"

"पर बेटा....तेरा काम...." ताऊ जी बोले|

"ताऊ जी वो मैं वापस आ कर कर लूँगा!" मैंने कहा तो ताऊ जी मुस्कुराते हुए खड़े हुए और मुझे आशीर्वाद दिया| फिर हम दोनों गाडी से निकल पड़े, मैंने गाडी बड़े ध्यान से चलाई और रास्ते में ताऊ जी ने मुझे हमारे खेती-बाड़ी के काम के बारे में काफी कुछ बताया| पर उन्हें जान कर हैरानी हुई जब मैंने उन्हें कुछ ऐसी दुकानों के बारे में बताया जहाँ बीज सबसे बढ़िया क्वालिटी के मिलते थे, और तो और कुछ ऐसे व्यपारियों के बारे में भी बताया जहाँ उन्हें रेट सबसे अच्छा मिलता है| ये सब मैंने कुछ साल पहले जब मैं संकेत के साथ भाई-दूज वाले दिन निकला था तब देखा और सीखा था| इधर मैं और ताऊ जी बातें करते हुए जा रहे थे और उधर घर पर काण्ड हो गया|


अनु उस वक़्त रसोई में नाहा-धो कर खाना बनाने में लगी थी, ताई जी और मान पड़ोस में किसी के यहाँ गईं थी और भाभी नहा रही थी| नेहा को नहलाने का समय हो गया था तो अनु ने पानी गर्म कर दिया था| भाभी ने नहाने जाते हुए रितिका को आवाज मार के कह दिया था की रसोई से गर्म पानी ले कर नेहा को नहला दे| अब अगर मैं घर पर होता तो मैं ही नेहा को नहला देता पर मेरी गैरहाजरी का फायदा उठा कर रितिका ने नेहा को ठंडे पानी से नहला दिया| मेरे घर लौटने तक नेहा की तबियत खराब हो चुकी थी, जैसे ही मैं घर में घुसा मुझे नेहा के रोने की आवाज आई और मैं भागता हुआ अंदर आया तो देखा अनु नेहा को गोद में ले कर चुप कराने की कोशिश कर रही है| मुझे देखते ही अनु ने फ़ौरन नेहा को मेरी गोद में दे दिया, अभी वो कुछ बोल पाती उससे पहले ही मुझे नेहा के बुखार का एहसास हो गया| "नेहा को तो बुखार है?" मैंने गुस्से में कहा और ठीक उसी वक़्त रितिका ऊपर से अंगड़ाई लेते हुए नीचे उतरी| "यहाँ रितिका को बुखार चढ़ हुआ है और तू ऊपर सो रही है?" मैंने रितिका पर चीखते हुए कहा| पर वो जहरीली नागिन पलट कर बोली; "मुझ पर क्यों चीख रहे हो? अपनी बीवी से कहो या अपनी भाभी से कहो!" इतना कह कर वो पलट कर ऊपर चली गई| मुझे उस पर बहुत गुस्सा आया पर अभी मेरे लिए नेहा की तबियत ज्यादा जर्रूरी थी| ताऊ जी भी गुस्से से तमतमा गए थे और बर्न वाले थे; "ताऊ जी अभी आप इसे कुछ मत कहना, पहले मुझे वापस आने दो!" इतना कह कर मैं और अनु दोनों डॉक्टर के निकल गए| मैंने चाभी अनु को दी और उसे ड्राइव करने को कहा| मैं नेहा को अपनी छाती से चिपकाए रखा और उसे अपने जिस्म की गर्मी देता रहा| नेहा की सांसें तेज चलने लगी थीं और मेरी जान निकलने लगी थी| "मेरा बच्चा! बस ...बस पापा है ना यहाँ! मेरा brave बच्चा.... बस थोड़ी देर में हम डॉक्टर के पहुँच जाएँगे फिर आप ठीक हो जाओगे! ओके?" मैं नेहा को हिम्मत बंधा रहा था| नेहा के नन्हे से हाथ ने मेरी ऊँगली कस कर पकड़ ली थी और मेरे मन में बैठा डर बाहर आ गया था, आँसुओं की धारा बहते हुए मेरे हाथ पर गिरी जिसे देख अनु भी घबरा गई| उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा और मुझे हिम्मत बढ़ाने लगी, मैंने भी गाडी में बैठे-बैठे भगवान को याद करना शुरू कर दिया| आखिर हम डॉक्टर के पहुँचे और मैं दौड़ता हुआ अंदर पहुँचा और डॉक्टर को नेहा को चेक करने को कहा| डॉक्टर ने नेहा का अच्छे से चेक-अप किया और मुझसे कहा; "अच्छा हुआ की आप इसे ठीक समय पर ले आये, देर करते तो ह्य्पोथेरमिआ का खरा बन जाता| वैसे हुआ क्या था?" अब मुझे तो कुछ पता नहीं था तो अनु बोली; "वो किसी ने नेहा को ठन्डे पानी से नहला दिया था!" अनु का ये बोलना था की मेरा खून खोल गया, क्योंकि मैं जानता था की ये काम किस का है| डॉक्टर ने हम दोनों को ही झाड़ा की इतनी छोटी बच्ची को ठंडे पानी से कौन नहलाता है और हम दोनों कितने गैर-जिम्मेदार माँ-बाप हैं! हम दोनों चुप-चाप सब सुनते रहे, बस मेरे मन को ये तसल्ली थी की मेरी बेटी को कुछ नहीं होगा| दवाई ले कर हम घर वापस आ गए और पूरे रास्ते ना तो में कुछ बोलै और न ही अनु कुछ बोली| नेहा मेरी गोद में ही सो चुकी थी, जैसे मैं घर में दाखिल हुआ मुझे माँ दिखीं और उन्होंने नेहा का हाल-चाल पुछा| मैंने नेहा को उनकी गोद में दिया और उन्हें कमरे में जाने को कहा| माँ के अंदर जाने तक मैं चुप रहा और तब तक घर के सारे लोग इकठ्ठा हो चुके थे, सिवाए रितिका के! मैंने दहाड़ते हुए उसे आवाज दी; "रितिका!!!!!!" मेरी दहाड़ सुनते ही वो नीचे आ गई, उसे देखते ही मैं तमतमाता हुआ उसके पास तेजी से चल कर पहुँचा और उसके गाल पर एक जोरदार तमाचा मारा| रितिका जा कर सीढ़ी पर गिरी, घर का कोई भी सदस्य कुछ नहीं बोला और न ही कोई अपनी जगह से हिला! "अगर आज मेरी बच्ची को कुछ हो जाता ना, तो तुझे आज भगवान भी नहीं बचा सकता था! तेरी जान ले लेता मैं!!!!" मैंने चीखते हुए कहा| "अनु...why the fuck you didn't call me earlier! Were you waiting for the situation to go worse? You heard what the doctor said? If we were a lil more late her situation could have gone worse!” मैंने अनु को डाँट लगाई|


"तू (रितिका) अभी तक इस घर में है तो सिर्फ इसलिए की मेरी बच्ची को माँ के दूध की जर्रूरत है वरना तुझे धक्के मार के निकाल देता!.... और आप सब भी सुन लीजिये आज से कोई भी नेहा को इसके साथ अकेला नहीं छोड़ेगा! मुझे इस नागिन पर जरा भी भरोसा नहीं, अपनी सनक के चलते ये नेहा को नुक्सान पहुँचा सकती है!.... और अगर नेहा को कुछ हुआ तो पहले इसकी जान लूँगा उसके बाद अपनी जान!" इतना कहते हुए मैं माँ के कमरे में घुसा और नेहा को गोद में ले कर ऊपर अपने कमरे में आ गया| आज फिर एक बार एक बाप का प्यार सामने आया था और घर वाले चुप-चाप सर झुकाये खड़े थे| कुछ देर बाद अनु कमरे में आई, नेहा बिस्तर पर लेटी थी और मैंने उस पर एक कंबल दाल रखा था| मैं टकटकी बंधे नेहा को देख रहा था, उसका पेट तेजी से सांस लेते हुए ऊपर-नीचे हो रहा था और मैं डिहर प्रार्थना कर रहा था की मेरी बेटी चहकती हुई उठे ताकि मैं उसे प्यार कर सकूँ| अनु दरवाजे पर कान पकड़ कर खड़ी हो गई और वहीँ से दबी हुई सी आवाज में बोली; "सॉरी!" उसकी आवाज सुन मैं ने उसकी तरफ देखा| उसके चेहरे से उसका दर्द झलक रहा था, मैं उठा और उसे अपने गले से लगा लिया| "I’m really sorry!” अनु रो पड़ी क्योंकि वो भी नेहा से बहुत प्यार करती थी| "Its okay! I'm sorry!!! मुझे आपको वहाँ सब के सामने नहीं डाँटना चाहिए था!" मैंने कहा|

"आपको सॉरी बोलने की कोई जर्रूरत नहीं है, आपने कुछ नहीं किया! मेरी जगह आपने ये गलती की होती तो मैं भी आपको ऐसे ही डाँटती!" अनु बोली|

इतने में भाभी खाना ले कर आ गईं और वो भी थोड़ी घबराई सी थीं| पर अनु को गले लगाने के बाद मेरा गुस्सा शांत हो चूका था; "माफ़ करना भाभी!" मैंने कहा, अनु ने एकदम से भाभी के हाथ से खाने की थाली ले ली और मुझे उन्हें भी गले लगाने को कहा| मैंने भाभी को गले लगाया और तभी भाभी बोली; "साऱी (सॉरी) मानु भैया! (भाभी ने अंग्रेजी बोलने की कोशिश की!) वादा करती हूँ की आज के बाद मैं नेहा का ख्याल रखूँगी!" मेरे लिए इतना ही बहुत था फिर उन्होंने मुझे खाने को कहा तो मैंने मना कर दिया; "भाभी एक बार नेहा को उठ जाने दो, फिर मैं खा लूँगा!" भाभी ने थोड़ी जोर-जबरदस्ती की पर मैं अड़ा रहा| आखिर भाभी नीचे चली गईं और उनके पीछे मैंने अनु को भी भेज दिया ताकि वो सबको खिला दे| अनु ने सब को समझबूझा कर खाना खिला दिया और सबको यक़ीन दिला दिया की मेरा गुस्सा शांत हो चूका है| शाम को चार बजे नेहा उठी और उसने उठते ही मुझे देखा| मुझे देख कर उसकी किलकारियाँ कमरे में गूंजने लगी, बुखार अब कम हो चूका था और अब उसके खाने का समय था| मैं नेहा को ले कर नीचे आया तो देखा सब के सब चुप-चाप आंगन में बैठे हैं| मैंने भाभी को इशारे से अपने पास बुलाया और उन्हें नेहा को दते हुए कह दिया की वो नेहा को दूध पिला दें| रितिका मेरी झाड़ सुनने के बाद भाभी के कमरे में ही दुबकी बैठी थी और जब भाभी नेहा को ले कर आईं तो वो समझ गई की नेहा का दूध पीने का समय हो गया है| भाभी उसी के सर पर बैठी रहीं जबतक उसने नेहा को दूध नहीं पिला दिया|


इधर मैं आंगन में बैठ गया और अनु खाना परोसने लगी| "बेटा इतना गुस्सा मत किया कर! तेरा गुस्सा देख कर तो आज मैं भी डर गया था!" ताऊ जी बोले|

"देख तेरे चक्कर में बहु ने भी खाना नहीं खाया!" माँ बोली| मैंने सब के पाँव छू कर उनसे अपने बुरे बर्ताव की माफ़ी माँगी और उन्हें समझा दिया की मैं नेहा को ले कर बहुत possessive हूँ! मेरी मानसिक स्थिति को समझते हुए उस समय किसी ने मुझे कुछ नहीं कहा| पर ये बात अनु को भली-भाँती समझाई जा चुकी थी की मेरा नेहा से इस कदर मोह बढ़ाना सही नहीं है! अनु भी मजबूर थी और किसी से कुछ नहीं कह सकती थी वरना वो सबको सच बता देती| मैंने और अनु ने खाना खाया और कुछ देर बाद भाभी नेहा को ले कर वापस मेरे पास आ गईं, नेहा मेरी गोद में आकर मेरे सीने से चिपक गई| रात को खाना खाने तक मैं सब के साथ नीचे बैठा रहा पर नेहा को एक पल के लिए भी खुद से दूर नहीं किया| खाना खाने के बाद मैं, नेहा और अनु ऊपर आ गए| मैं कपडे बदल रहा था और नेहा बिस्तर पर चुप-चाप लेटी थी; "बेटा! I'm sorry!!! मैंने आपकी तकलीफ नहीं समझी! आप रो रहे थे और मैं ......कुछ नहीं कर पाई! I'm a bad mother!!!" अनु ने खुद को कोसते हुए कहा|

“No you’re not a bad mother! That idiot’s a bad mother! अब खुद को blame करना बंद करो और नेहा को प्यारी सी Kissi दो!" मैंने कहा तो अनु ने नेहा के गाल को चूमा| नेहा को Kissi मिली तो वो एकदम से मुस्कुरा दी और अपने नन्हे हाथों से अनु की लट को पकड़ लिया| अनु अपनी नाक को नेहा की नाक से रगड़ने लगी| मेरी बेटी फिर से हंसने लगी और उसकी किलकारियाँ कमरे में गूंजने लगी| मैं और अनु नेहा के दोनों तरफ लेट गए और उसे सुलाने के लिए मैंने कहानी सुनाना शुरू किया| कुछ ही देर में अनु सो गई पर नेहा जाग रही थी, मैंने नेहा को गोद में लिया और बेडपोस्ट का सहारा ले कर बैठ गया| आखिर कुछ देर बाद नेहा को नींद आ गई पर मैं जागता रहा और उसके प्यारे मुखड़े को देखता रहा| रात तीन बजे नेहा ने रोना शुरू किया, उसका बुखार लौट आया था| मैंने फ़ौरन नेहा का बुखार देखा तो वो थोड़ा ज्यादा था, इधर अनु ने फटाफट डॉक्टर को फ़ोन मिलाया और उसे नेहा का टेम्परेचर बताया| डॉक्टर ने बताया की हमें क्या उपचार करना है, करीब घंटे भर बाद नेहा शांत हुई और मेरी ऊँगली पकड़ कर सो गई| कुछ देर बाद थकावट के कारन अनु की भी आँख लग गई पर मैं सुबह तक जागता रहा| सुबह जब नौ उठी तो मुझे जागते हुए पाया; "आप साऱी रात सोये नहीं! थोड़ा रेस्ट आकर लो वरना बीमार पड़ जाओगे और फिर नेहा का ख्याल कैसे रखोगे|" अनु बोली तो मैं उसकी बात मान कर नेहा से लिपट कर कुछ देर के लिए सो गया| घंटेभर बाद ही नेहा उठ गई और अपने छोटे-छोटे हाथों से मेरी दाढ़ी पकड़ने लगी| उसके छोटे-छोटे हाथों का एहसास पाते ही मैं उठ गया और उसे इस तरह हँसते हुए देख जान में जान आई| मैंने नेहा का बुखार देखा तो वो अब नहीं था, मैंने चैन की साँस ली| इतने में अनु आ गई और मेरी गर्दन पर Kiss करते हुए बोली; "आपकी लाड़ली का बुखार अब उतर चूका है! अब उठो और अपनी ये दाढ़ी साफ़ करो! मुझे मेला शोना clean shaven चाहिए!" ये पहलीबार था की अनु ने मुझे 'शोना' कहा हो| "पहले तो मैं आपको दाढ़ी में अच्छा लगता था, अब अचानक से clean shaven क्यों?" मैंने उठ कर बैठते हुए पुछा|

"पहले इसलिए कहती थी ताकि आपको Kiss न कर पाऊँ! पर अब तो जैसे आपको Kissi करने के लिए जगह का अकाल पड़ने लगा है|" अनु ने हँसते हुए कहा| मैं फटाफट तैयार हुआ और मुझे clean shaven देख अनु बहुत खुश हुई! "क्या बात है? हम कहते तक गए की दाढ़ी ना रख पर मानु भैया ने एक ना सुनी और बहु ने एक बार क्या कहा सारा जंगल छोल (साफ़) दिया|" चन्दर भैया बोले| ये सुन कर भाभी ने अनु को प्यार से कंधा मारा और दोनों खी-खी कर हँसने लगे| नाश्ता कर के हम दोनों डॉक्टर के आ गए और उसने चेक कर के बता दिया की अब घबराने की कोई बात नहीं है| कुछ हिदायतें हमें दी गईं जिसे अच्छे से समझ कर हम घर लौट आये| दोपहर को खाने के बाद नेहा मेरी गोद में सो गई और मैं मेल चेक करने लगा| तभी मैंने देखा की कंपनी का जवाब आया था और उन्होंने हमें अगले महीने New York बुलाया है| अनु ने वो मेल मुझसे पहले देख लिया था पर मुझसे उसने कुछ कहा नहीं था| कुछ देर बाद जब अनु ऊपर आई तो मैंने उससे बात की; "बेबी! एक बात बताना, वो ...कोई रिवर्ट आया?" ये सुन कर अनु कुछ सोच में पड़ गई और वो कुछ जवाब देती उससे पहले ही मैं बोल पड़ा; "मेरा बेबी मुझसे बात छिपा रहा है?" मैंने तुतलाते हुए कहा तो अनु मेरी तरफ देखने लगी; "वो....आप नेहा को ले कर इतना परेशान थे....तो मैंने ....इसलिए...." अनु ने घबराते हुए कहा| मैंने हाथ खोल कर अनु को गले लगने बुलाया और उसके कान में खुसफुसाते हुए बोला; "आपको पता है ना हमने कितनी मेहनत की है? मैं नेहा से प्यार करता हूँ पर उतना ही प्यार मैं अपने काम से भी करता हूँ| इसलिए नेक्स्ट टाइम मुझसे कोई बात मत छुपाना| हमारे पास बस एक महीना है और अभी काफी काम पेंडिंग है!" मैंने कह तो दिया पर मैं जानता था की मैं नेहा को छोड़ कर नहीं जा पाउँगा| अगर मैं चला भी जाता तो वापस गाँव नहीं लौट सकता था क्योंकि 6 महीने होने वाले थे हम दोनों को ऑफिस अटेंड किये और वहाँ काम संभालने वाला कोई नहीं था! मैं बस इसी चिंता में खोया था की अनु मेरी तकलीफ समझते हुए बोली; "I promise की हम अकेले नहीं जाएँगे! नेहा हमारे साथ जाएगी!" अनु की ये बात सुन मेरा दिल उम्मीद से भर उठा, मैं इतना खुश था की मैंने अनु से ये तक नहीं पुछा की वो ये सब कैसे करने वाली है?


अगले दिन की बात है, मैं ताऊ जी, पिताजी और चन्दर भैया एक साथ निकले| दरअसल मैं उन्हें वो सब जगह दिखाना चाहता था जहाँ से समान सस्ता मिलता है और उन व्यापारियों से भी मिलना चाहता था जिनके साथ हम काम कर रहे थे| इधर घर पर माँ, भाभी और ताई जी एक कीर्तन में चले गए| भाभी नेहा को अपने साथ ले गईं, उन्होंने अनु को भी कहा पर उसने ऑफिस के काम का बाहना बना दिया| दरअसल अनु को रितिका से बात करने का मौका चाहिए था! सब के जाने के बाद अनु ऊपर छत पर आई, रितिका वहाँ अकेली बैठी कुछ सिलाई कर रही थी| शादी के बाद से अभी तक दोनों ने एक दूसरे से कोई बात नहीं की थी| काम को लेकर अगर कोई बात हुई हो तो हुई हो वरना और कोई बात नहीं हुई थी| अनु उसके सामने बैठ गई और बात शुरू करते हुए बोली; "देख....तेरे चाचा (अर्थात मैंने) ने मुझे सब कुछ बता दिया है!" इतना सुनते ही रितिका अनु पर बरस पड़ी; "क्या चाचा? मैं प्यार करती थी उससे और वो भी मुझसे प्यार करता था! शायद अब भी करता हो!" रितिका ने जलन की एक चिंगारी जलाते हुए कहा| अनु को गुस्सा तो बहुत आया पर अभी उसे जो बात करनी थी उसके लिए उसे ये कड़वा घूँट पीना पड़ा! "सॉरी! देख....मैं जानती हूँ तू बंध के रहने वालों में से नहीं है! तुझे उड़ना अच्छा लगता है, अपनी मनमानी करना अच्छा लगता है, ऐशों-आराम अच्छा लगता है और घूमना फिरना भी! यहाँ रहते हुए तो तेरे ये शौक पूरे नहीं हो सकते! मैं तुझे एक बहुत अच्छा मौका देती हूँ.... मैं तुझे इस घर से निकालूँगी...जहाँ तू चाहेगी वहाँ तू रहना, जो चाहे वो करना.....तुझे जो भी चाहिए होगा वो तुझे दूँगी...सारे ऐशों-आराम तेरे होंगे! जितने पैसे चाहिए सब दूँगी.....पर तुझे नेहा की कस्टडी 'इन्हें' देनी होगी!" अनु की बात सुन कर रितिका जोर से हँसने लगी| "देख मैं तेरे आगे हाथ जोड़ती हूँ....प्लीज मेरी बात मान जा!" अनु ने मिन्नत करते हुए कहा पर रितिका की हँसी और तेज होती गई| अनु को गुस्सा तो बहुत आया, मन किया की उसे छत से नीचे फेंक दे पर उससे वो मरती नहीं! इधर जब रितिका का पेट हँस-हँस कर दुःख गया तब वो अपनी हँसी रोकते हुए बोली; "ये जो नेहा को खो देना का डर तेरे पति के मन में है ना इससे कई गुना ज्यादा डर मैंने झेला है!" रितिका ने गंभीर होते हुए कहा| "पता है कैसा लगता है जब कोई तुम्हारी जान लेने घर में घुस आता है? मुझे पता है.... सब कुछ था मेरे पास...पैसा, घर, नौकर-चाकर, गाडी, इतना बड़ा घर, रुतबा.... इस घर का हर एक शक़्स गर्व महसूस कर रहा था, सिर्फ और सिर्फ मेरी वजह से! मेरी वजह से उन्हें इतने बड़े घर से नाता जोड़ने का मौका मिला था! क्या गलती थी मेरी? क्या एक लड़की को चैन की जिंदगी जीने का हक़ नहीं होता? मानु मुझे ये सब कभी नहीं दे सकता था, इसलिए मैंने उसे छोड़ दिया! Big Deal?! पर उसने मुझे बद्दुआ दी....ऐसी बद्दुआ जिसने मेरे हँसते-खेलते जीवन में आग लगा दी थी! मैं प्रेग्नेंट थी....तुम्हार पति के 'बीज' से! हाँ मैंने ये सच कभी राहुल को नहीं बताया ...खुदगर्जी की...तो क्या? पर फिर वो काली रात आई मेरे जिंदगी में, वो चार लोग घर में घुस आये और गोलियाँ चलाने लगे| मैं कितना डर गई थी, पर राहुल ने मुझे संभाला और मुझे ऊपर के स्टोर रूम में छुपने को कहा| मैं ऊपर पहुँची और स्टोर रूम के दरवाजे के पीछे छुप गई, मैंने अपने पूरे परिवार की चीखें सुनी! सोच सकती हो वो डर क्या होता है? वो लोग मुझे ढूंढते हुए ऊपर आ गए और स्टोर रूम के बाहर खड़े हो गए| मैंने साँस लेना रोक लिया था क्योंकि अगर उन्हें मेरी साँस लेने की आवाज सुनाई दे जाती तो वो मुझे भी मार देते! वो तो मेरी क़िस्मत थी की मैं बच गई और सुबह होने तक वहीँ छुपी रही| सुबह जब वहाँ से निकली तो सबसे पहले अपनी पति की लाश देखि और उसे खून में लथ-पथ देख मैंने अपने होश खो दिए!


जब होश आया तो मैं हॉस्पिटल के बेड पर थी और मेरे आस-पास सब थे! होश आने के बाद मैंने दो दिन तक किसी से बात नहीं की, क्योंकि मेरे मन में जो आग लगी थी वो थी तुम्हारे पति से बदला लेने की! फिर नेहा पैदा हुई और जानती हो मैंने उसका नाम 'नेहा' क्यों रखा? क्योंकि मैं अपने दुश्मन का नाम भूलना नहीं चाहती थी, आखिर ये नाम उसी ने मुझे बताया था! एक-एक दिन मैंने जलते हुए काटा फिर छोटी दादी (मेरी माँ) का ड्रामा शुरू हो गया और घर में तुम्हारे पति की वापसी की बातें चलने लगी| यही वो समय था जब मैंने उससे बदला लेने का प्लान बनाना शुरू कर दिया| पर मेरे पास कोई जरिया नहीं था, उसकी कोई कमजोरी नहीं थी| इसलिए मैंने कमजोरी पैदा करने की सोची और नेहा को जानबूझ कर उसकी गोद में डाल दिया| कुछ ही दिन में उसे नेहा से प्यार हो गया, मुझे लगा शायद उसका मन मेरे लिए पिघल जायेगा और मैं एक बार फिर उसे अपने प्यार के चक्कर में फाँस कर उसका इस्तेमाल करूँ यहाँ से निकलने के लिए पर वो साला मेरे झांसे में ही नहीं आया| तो मैंने अपनी आखरी चाल चली और नेहा को उससे दूर कर दिया! वो दो दिन वो जिस तरह तड़प-तड़प कर रोया उसे देख कर मेरे दिल को सुकून मिला! पर मेरी किस्मत ने मुझे एक बार फिर धोका दे दिया.....तुझे यहाँ भेज कर! बस तबसे मेरे सारे डाव उलटे पड़ने लगे! तुम दोनों को इस तरह रोमांस करते देख मेरा खून जलता है, कोई ऐसा दिन नहीं जाता जब मैं तुम दोनों को बद्दुआ ना दूँ!" रितिका ने अपने दिल की साऱी बढास निकाल दी थी और अनु को ये सब सुन कर बहुत बड़ा झटका लगा| उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की रितिका अपने अंदर इतना जहर पाले है! पर अब अनु के सब्र की इंतेहा हो चुकी थी, रितिका का एक और कड़वा शब्द और वो अपना आपा खो देती!

"वैसे इतना नशा करने के बाद तो जान रही नहीं होगी उसमें जो तुझे माँ बना सके? तभी तो उसने तुझे यहाँ भी दिया मेरे पास, भीख मांगने! नामर्द कहीं का!" रितिका घमंड में बोली पर अनु ने उसे एक जोरदार जवाब देते हुए एक झन्नाटेदार तमाचा मारा| "उन्होंने मुझे यहाँ नहीं भेजा, मेरी मति मारी गई थी जो मैं यहाँ तुझे समझाने आई! तेरे साथ जो हुआ उसके लिए मुझे जरा भी अफ़सोस नहीं, तू इसी के लायक थी! बुरा कगता है तो सिर्फ उस लड़के के लिए जो तुझ जैसी मतलबी लड़की से प्यार कर बैठा! तेरी ही काली किस्मत खा गई उसे! भगवान् ने तुझे इतना प्यार करने वाला दिया जिसने तेरे पैदा होने से ले कर बड़े होने तक प्यार किया और तूने उसी के जज्बातों से खेला! तुझे समझाया था न 'इन्होने' की तेरे इस 'so called प्यार' में कितना खतरा है? बताया था न तुझे तेरी माँ की करनी पर तब तो तू 'इनसे' सच्चा प्यार करती थी! तब तो तू आग का दरिया पार करने को तैयार थी, जरा सी struggle क्या करनी पड़ी तेरी हालत खराब हो गई! हो भी क्यों न, हराम का जो खाती आई है आजतक? मर यहाँ और सड़ती रह! "प्यार क्या होता है ये तुझे कुछ दिनों में पता चल जायेगा जब मैं इनके बच्चे की माँ बनूँगी! नेहा के प्यार की कमी को तो मैं पूरा नहीं कर सकती पर जब इनकी गोद में हमारा बच्चा होगा तब ये खुद को संभाल ले लेंगे!" इतना कहते हुए अनु जाने को पलटी, रितिका अपने गाल पर हाथ रखे खड़ी रही और रोती हुई बोली; "इस थप्पड़ का बदला तू याद रखेगी!" अनु ने उसकी इस धमकी का कोई जवाब नहीं दिया और नीचे आ गई| कुछ देर बाद भाभी, माँ और ताई जी कीर्तन से लौट आये| शाम तक मैं भी सबके साथ लौट आया और अनु में अलग सा बदलाव पाया| और दिन वो सिर्फ तभी घूंघट करती थी जब ताऊजी, पिताजी या चन्दर भय सामने होते वरना वो सर पर पल्ला रखे काम करती पर आज मैं जब से आया था वो घूंघट काढ़े घूम रही थी और मुझसे नजरें चुरा रही थी| मैंने बहाने से उसे ऊपर आने को कहा तो उसने घूंघट किये हुए ही सर ना में हिला दिया| मैं समझ गया की कुछ तो बात है, मैं अपने कमरे में आया और वहाँ से आवाज लगा कर अनु को ऊपर बुलाया| आखिर अनु को ऊपर आना पड़ा और उसने अभी भी घूंघट कर रखा था| मैंने फ़ौरन उसे अंदर खींचा और दरवाजा बंद कर दिया, हाथ पकड़ कर अनु को पलंग पर बिठाया और उसके सामने घुटनों पर बैठ गया| जैसे ही मैंने अनु का घूंघट उठाया तो उसकी आँखों को आसुओं से भरा हुआ पाया, मैं कुछ कहता उससे पहले ही वो बिफर पड़ी; "I’m sorry…. मैं अपना वादा पूरा नहीं कर सकी!” और फिर अनु ने रोते हुए साऱी बात बताई, मैंने अनु की बात बड़े इत्मीनान से सुनी और जब उसकी बात खत्म हुई तब पहले उसके आँसू पोछे; "मेले बेबी ने मेले लिए इतना कुछ किया? पर ये बताओ आपको उसके मुँह लगने की क्या जर्रूरत थी? और जो आप उसे ऐशों-आराम देने की बात कर रहे थे उसके लिए हम पैसे कहाँ से लाते? बेबी मैं नेहा से बहुत प्यार करता हूँ पर हालात ऐसे हैं की मैं उसे छह कर भी नहीं अपना सकता! कई बार जब कोई रास्ता नहीं रह जाता तो खुद को हालातों के सहारे छोड़ देना चाहिए! समय हमेशा एक सा नहीं रहता! कहने को तो जब उसने मेरा दिल तोडा तो मैं बहुत कुछ कर सकता था और उसकी शादी कभी होने नहीं देता पर मैंने ऐसा नहीं किया| मैंने खुद को हालात के सहारे छोड़ दिया और देखो मुझे आप मिल गए! आपने आज जो किया वो मेरे लिए बहुत है, रही बात नेहा की तो.......देखते हैं क्या होता है!" मैंने अनु के सर को चूमा और उसे गले लगा लिया| इतने दिनों में मुझ में इतनी तो समझ आ गई थी की मैं नेहा को अपना नाम नहीं दे सकता और रहा उसका मोह, तो वो भी मैं चाह कर भी नहीं छोड़ सकता| जानता था की जुदाई के समय बहुत दर्द होगा....पर सह लेंगे थोड़ा!


मैंने और अनु ने सब को हमारे New York जाने की बात बता दी थी और ये भी की वहाँ से लौट कर हमें बैंगलोर ही रहना है| मेरा बैंगलोर रहने का फैसला घर में सब के लिए कष्टदाई था तो अनु बोली; "माँ आप चिंता ना एक्रो, हम धीरे-धीरे अपना काम समेटना शुरू करते हैं और फिर लखनऊ में अपना ऑफिस शिफ्ट कर लेंगे! या फिर अपना मैं ऑफिस यहाँ खोल लेंगे!" अनु की बात सुन माँ को संतुष्टि हुई की उन बेटा उनके पास जल्द ही लौट आएगा| इसी के साथ अनु ने सब को बैंगलोर आने का भी निमंत्रण दे दिया और सब ख़ुशी-ख़ुशी मान गए|
excelent update bhai
 
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Nevil singh

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दिन बीतते गए और इन बीते दिनों में मैंने नेहा को खूब प्यार दिया| इतना प्यार जो शायद आने वाले सालों तक उसके ऊपर आशीर्वाद बनकर रहता| मैंने और अनु ने मिलकर घरवालों के साथ बहुत अच्छी और प्यारी-प्यारी यादें बनाई! जहाँ माँ और ताई जी ने अनु को अपनी बेटी की तरह प्यार दिया वहीँ मैं जो की घर का सबसे छोटा बेटा था उसे उसकी जिम्मेदारी का एहसास होने पर ताऊ जी और पिताजी ने खूब आशीर्वाद दिया| चन्दर भैया और भाभी के संग मेरा और अनु का दोस्तों जैसा रिश्ता बन गया था| भाभी मेरा और अनु का खूब ख्याल रखती और कहती रहती की जल्दी से जल्दी खुशखबरी सुनाओ! अब चूँकि घर पर हम दोनों को ज्यादा प्राइवेट समय नहीं मिल पाता था तो दोनों अपने-अपने काम में लगे रहते| हमारा रोमांस केवल Kiss तक ही सिमट कर रह गया था| प्यासे दोनों ही थे पर अपने प्यास को काबू रखने जानते थे| ऐसे कई पल आया जब रितिका ने हम दोनों को रोमांस करते देखा और जलती हुई चली गई पर हमें उससे कोई फर्क नहीं पड़ा| अनु ने नेहा को अपनी बेटी जितना प्यार दिया और अगर मेरे बाद किसी इंसान से नेहा को प्यार मिला तो वो अनु ही थी| जब कभी मैं घर पर नहीं होता तो अनु उसके साथ खेलती, नहलाती, कपडे बदलती और उस गुड़िया को अपने से चिपकाए रहती| जब मैं घर पर होता तो अनु हमारी इतनी फोटो खींचती की क्या कहूँ! हम दोनों ही जानते थे की नेहा धीरे-धीरे बड़ी होगी और उसे ये प्यार याद नहीं रहेगा, उसके लिए हम उसके दादा-दादी होंगे ना की माँ-बाप! ये एक ऐसा दर्द था जो हम अभी से महसूस कर रहे थे पर हालात के आगे मजबूर थे! हम दोनों का प्यार ही था जो हमें सहारा दे रहा था! नेहा के साथ बितायी ये यादें ही हमारे लिए सब कुछ था! उधर भाभी की डिलीवरी की डेट नवम्बर के आखरी हफ्ते की थी और भाभी ने दोनों को सख्त हिदायत दी थी की हम अगर तब यहाँ नहीं आये तो वो हमसे कभी बात नहीं करेंगी! इन खुशियों में दिन कैसे बीते पता ही नहीं चला|

हमारे जाने से एक दिन पहले की बात है, सुबह से ही मैं बहुत बुझा-बुझा था! नेहा के सुबह उठते ही मैं उसे अपनी छाती से चिपकाए कमरे में बैठा था| आज मेरी गुड़िया भी बहुत खामोश थी, और दिन तो उसकी किलकारियाँ गूंजती रहती थीं पर आज वो बहुत शांत थी| ऐसा लगा मानो उसे पता ही की कल उसके पापा चले जाएंगे! फिर एक ख्याल आया की एक बार भगवान् से मदद मांग कर देखूँ, क्या पता वो मेरी सुन लें! मैं नहा-धो कर तैयार हुआ और नेहा को भी नहला कर रेडी किया| नेहा को गोद में लिए मैं नंगे पाँव मंदिर चल दिया| जाने क्यों पर आज लग रहा था की मेरी इस तपस्या का फल मुझे अवश्य मिलेगा| मैं आजतक कभी इतना नंगे पाँव नहीं चला था, यहाँ तो मंदिर भी खेतों के बीच था सो वहाँ तक पहुँचने में जाने कितनी ही बार पाँव में कंकड़ लगे, पर भगवान पर आस्था और नेहा के प्यार ने मुझे सहारा दिया| आखिर मंदिर पहुँच कर मैंने भगवान से प्रर्थना की; "आप से आज तक मैंने आप से जो माँगा अपने मुझे वो दिया है, आज बस एक आखरी बार आपसे कुछ माँगना चाहता हूँ! मुझे मेरी बेटी दे दो! मैं नेहा को अपने साथ रखना चाहता हूँ, उसकी परवरिश करना चाहता हूँ, उसे उसके पापा का प्यार देना चाहता हूँ! वादा करता हूँ फिर आप से कुछ नहीं माँगूँगा! प्लीज भगवान जी... कोई तो रास्ता सुझा दो मुझे या फिर इसकी माँ को ही अक्ल दे दो ताकि वो नेहा को मुझे सौंप दे!" मैं घुटनों पर खड़ा भगवान से मिन्नतें करता रहा, आसुओं की धारा नेहा पर गिरी जो चुप-चाप मेरी ही तरफ देख रही थी| नेहा ने कैसे कुछ बोलने के लिए मुँह खोला और फिर चुप हो गई, मानो कह रही हो की पापा आप मत रोइये! मैंने उसे एक बार चूमा और फिर भगवान पर सब छोड़ कर मैं घर लौट आया इस बात से अनजान की अनु पहले ही यहाँ आ कर यही दुआ माँग कर गई है| जब मैं घर पहुँचा तो माँ ने पुछा की मैं कहाँ गया था? पर माथे पर टीका देख वो समझ गईं, "मेले बच्चे को मंदील ले कल गया था!" मैंने तुतलाते हुए बोला तो नेहा की किलकारियाँ शुरू हो गईं| घर में सब जानते थे की मैं नेहा से कितना प्यार करता हूँ और उससे बिछड़ना मेरे लिए आसान नहीं होगा| पर इससे पहले मुझे ये बात कोई समझाता मैंने अपने चेहरे पर ख़ुशी का मुखौटा ओढ़ लिया| मैंने किसी को भी शक नहीं होने दिया की मैं कल नेहा से दूर जाने को ले कर दुखी हूँ| दोपहर को खाने के बाद मैं नेहा को गोद में ले कर अपने कमरे में बैठा था; "बेटा.... मुझे ना... आपको कुछ बताना है! कल है न...मैं...............जा रहा हूँ!" मैंने बड़े भारी मन से नेहा से ये बात कही, नेहा अपनी भोली सी आँखों से मेरी आँखों में देखने लगी जैसे पूछ रही हो की मैं वापस कब आऊँगा? "नेक्स्ट हम ....आपके बर्थडे पर मिलेंगे! तब मैं आपके लिए ढेर सारे गिफ्ट्स ले कर आऊँगा|" पर मेरा इतना कहते ही नेहा ने रोना शुरू कर दिया, जैसे उसे मेरी सब बात समझ आ गई हो| "awww मेरा बच्चा! बस रोना नहीं...I promise मैं आपके बर्थडे पर आऊँगा!" पर नेहा पर इस बात का कोई असर नहीं हुआ, जैसे उसे सिर्फ अपने पापा ही चाहिए और कुछ नहीं चाहिए! "I'm sorry बेटा! But हमारे हालात ऐसे हैं की मैं आपके साथ चाह कर भी नहीं रह सकता! मेरा सारा काम-धंधा बैंगलोर में सेट है....I'm helpless!" मैंने रोते हुए कहा और नेहा को अपने सीने से लगा लिया| करीब आधे घंटे हम दोनों ऐसे ही बैठे रहे और अब नेहा का रोना बंद हो गया था| "I hope नेक्स्ट टाइम जब आप मुझे देखो तो मुझे भूलोगे नहीं!" मैंने अपने आँसू पोछते हुए कहा| "ऐसे कैसे भूल जायेगी?" अनु पीछे से बोली और चल कर मेरे पास आई| "7 महीने की बच्ची की इतनी अच्छी यादाश्त नहीं होती की वो हर किसी को याद रख सके! उस दिन देखा था जब मैंने shave की थी तो ये मुझे पहचान ही नहीं रही थी!" मैंने कहा|

"वो इसलिए क्योंकि उसे आपको दाढ़ी में देखने की आदत हो गई थी! Unfortunately उसकी माँ (अनु) को आप Clean shaven अच्छे लगते हो! पर आप कांटे हो नेहा ने आपको कैसे पहचाना? आपका स्पर्श पाते ही वो समझ गई की ये उसके पापा हैं!" अनु ने मुस्कुराते हुए कहा| अनु का तर्क emotional था scientific नहीं! पर मैंने आगे बात को नहीं खींचा और मुस्कुराते हुए अनु को अभी अपने गले लगा लिया| हम तीनों ऐसे ही गले लगे हुए खड़े थे की अनु ने हमारी सेल्फी ले ली! वो पूरा दिन मैं नेहा के साथ बातें करता रहा और उसका मन मैंने दुबारा अपने जाने पर नहीं भटकने दिया| मेरा ये बचपना देख चन्दर भय बोले; "भैया इतनी छोटी है की उसे आपकी बात क्या समझ आती होगी?" पर ताऊ जी ने उनकी बात का जवाब देते हुए कहा; "बच्चे ऐसे ही बोलना सीखते हैं!" उनकी बात लॉजिकल थी! मैं नेहा को गोद में ले कर खड़ा हुआ और उसे ऐसे पकड़ा जैसे दो लोग डांस करते हैं और गाना गन गुनाते हुए आंगन में नाचने लगा;

"दिन भर करे बातें हम
फिर भी लगे बातें अधूरी आज कल
मन की दहलीजों पे कोई आए ना
बस तुम ज़रूरी आज कल
I love you..." पूरा घर मेरा बचपना देख खुश हो गया और नेहा भी मुस्कुराने लगी| फिर मैंने नेहा की ठुड्डी पकड़ी और उसकी आँखों में देखते हुए कहा;

"थोड़ा थोड़ा तुझसे सीखा
प्यार करने का तरीका
दिल के खुदा की मुझपे इनायत है तू
आइ लव यू
आइ लव यू"

वो नेहा ही थीं जिसने मुझे एक बाप बनने का मौका दिया और मेरे अंदर एक बाप का प्यार जगाया था! इधर अनु ने चुप-चाप मेरे डांस की वीडियो बना ली थी|


रात तक मेरा यूँ नेहा को गोद में ले कर खेलना और उससे बातें करना जारी था! खाना खाने के बाद भी मैं और नेहा साथ सोये, बेचारी अनु को नेहा को मुझसे चुराने का भी मौका नहीं मिला| पर रात को हम दोनों जागते रहे और बारी-बारी नेहा को चूमते रहे, दोनों में जैसे होड़ लगी थी की नेहा के उठने तक उसे सबसे ज्यादा कौन चूमेगा| उस खेल में पता ही नहीं चला की कब सुबह हो गई| अनु नेहा को आखरी Kiss दे कर उठी और नीचे चली गई और इधर मैं नेहा को पाने सीने से लगा कर लेट गया| मेरा दिल जोर से धड़कने लगा था| यही धड़कन सुन नेहा उठ गई, मैंने जैसे ही उसे देखा तो खुद को रोने से नहीं रोक पाया| नेहा अब भी जैसे समझने की कोशिश कर रही हो की मैं क्यों रो रहा हूँ! उसकी नन्ही सी हथेली मेरी ऊँगली के स्पर्श का इंतजार कर रही थी| मैंने उसे जैसे ही अपनी ऊँगली पकड़ाई उसने कस कर अपनी मुठ्ठी बंद कर ली ताकि कहीं मैं उसे छोड़ कर चला न जाऊँ| जैसे-तैसे मैंने खुद को काबू किया और नेहा को ले कर नीचे आ गया| मेरी शक्ल देख कर कोई भी णता सकता था की मैं रात भर नहीं सोया था और अभी आये आसुओं से मेरी आँखें नम हो चली थीं| मेरी ये हालत देखते ही माँ अनु से बोली; "बहु तुझे कहा था न की मानु से बात कर, उसे समझा की वो नेहा से इतना मोह ना बढाए? देख क्या हालत हो गई है इसकी?!" माँ ने अनु से कहा तो वो सर झुका कर खड़ी हो गई, मेरे तो जैसे मुँह में जुबान ही नहीं थी मैं बस नेहा को देखे जा रहा था और अपना रोना रोक रहा था!


माँ की देखा-देखि ताई जी भी मुझे समझाना शुरू हो गईं, मैंने बड़ी हिम्मत बटोरी और बोला; "ठीक है ताई जी....!" इतना कह कर मैंने बेमन से नेहा को अनु को दिया| मेरा ऐसा करने से सब शांत हो गए ये सोच कर की मैंने उनकी बात मान ली है और इधर अनु को भी नेहा के साथ आखरी कुछ पल मिल गए प्यार करने को| मैं ने पहले अपने सारे कपडे पैक किये और फिर नहाने घुस गया| बाथरूम में मैंने जी भर कर अपने आँसू बहाये, क्योंकि यहाँ मुझे रोकने वाला कोई नहीं था| नहा-धो कर मैं बाहर आया तो अनु ने नेहा को मेरी गोद में दे दिया, फिर सबके साथ बैठ कर हमने नाष्ता किया| "तो बेटा तुम दोनों पहले बैंगलोर जाओगे?" ताऊ जी ने पुछा|

"जी मैंने टैक्सी बुक की थी, जो अभी आती होगी| पहले हम बीएस स्टैंड जायेंगे और वहाँ से दिल्ली की Volvo लेंगे, फिर दिल्ली से डायरेक्ट फ्लाइट New York तक!..... और चन्दर भैया, मेरे आने तक गाडी चलना सीख लेना!" मैंने कहा|

"मुझे लगा तुमलोग पहले बैंगलोर जाओगे?" पिताजी बोले|

"जी पर फिर वहाँ से वापस मुंबई आना पड़ता, इससे अच्छा है की डायरेक्ट ही चले जाते हैं| मैंने कहा और इतने में हमें बाहर से टैक्सी का हॉर्न सुनाई दिया| चन्दर भय सारा समान टैक्सी में रखने लगे और इधर हमदोनों सब के पाँव छू कर आशीर्वाद लेने लगे| माँ बहुत ज्यादा भावुक हो गईं थीं; "माँ...बस कुछ महीनों की बात है, हम नेहा के जन्मदिन पर आ जायेंगे!" मैंने कहा तो माँ खुश हो गईं| सबसे मिलने के बाद अनु ने नेहा को आखरी दफा गोद में लिया और उसे अपने सीने से लगा कर रो पड़ी| भाभी ने अनु को संभाला और उसे चुप कराया| इधर मैं हाथ बांधे नेहा को गले लगाने का इंतजार कर रहा था, बुझे मन से अनु ने नेहा को मुझे दिया| नेहा को गोद में लेते ही मुझे वो रात याद आई जब मैंने उसे पहलीबार गोद में लिया था| मेरे आँसू बह निकले और मैंने नेहा को कस कर अपने सीने से लगा लिया, मेरी तेज धड़कनें सुन नेहा रो पड़ी शायद उसे भी एहसास हो गया था की मैं जा रहा हूँ! मैंने नेहा को गोद में ले कर घूमना शुरू कर दिया और घुमते-घुमते मैं 50 कदम दूर आ गया| मैंने टैक्सी वाले को उसका मीटर चालु करने को कह दिया था ताकि उसका नुक्सान ना हो! इधर मैंने नेहा से बात करना शुरू कर दिया ताकि वो चुप हो जाए और हुआ भी यही, नेहा चुप हो गई और मेरी छाती से लग कर सो गई| आधे घंटे तक मैं उसे लेकर ऐसे घूमता रहा और उधर सबने मुझे संभालने की जिम्मेदारी अनु को दे दी; "बहु...देख मानु बहुत भावुक है! नेहा से उसका मोह कहीं उसे….तू तो जानती ही है... वो जब उदास होता है तो खाना-पीना छोड़ देता है!" माँ अपनी चिंता जताते हुए बोलीं|

"आप चिंता न करो माँ, मैं 'इनका' बहुत अच्छे से ख्याल रखूँगी!" अनु बोली और तब तक मैं भी नेहा को गोद में लिए वापस आ गया| भाभी ने नेहा को गोद में लेना चाहा पर नही ने अपने एक हाथ से मेरी शर्ट और दूसरे से मेरी ऊँगली पकड़ रखी थी| मेरा मन नहीं हुआ उसके हाथ से खुद को छुड़ाने का, इसलिए भाभी ने ही उसके हाथ से मेरी शर्ट और ऊँगली छुड़ाई| नेहा जागने के लिए थोड़ा कुनमुनाई, तो मैंने उसके माथे को एक बार चूमा और नेहा के मुँह पर प्यारी सी मुस्कान आ गई| इसी मुस्कान को आँखों में बसाये मैं जाना चाहता था| अनु और मैं सब को नमस्ते की और गाडी में बैठ गए| कुछ दूर गए होंगे की दोनों की आँखें फिर से बहने लगीं| मैं अपना रोना तो बर्दास्त कर सकता था पर अपनी पत्नी का रोना नहीं| मैंने अनु के आँसूँ पोछे और इधर-उधर की बातें शुरू कर दीं ताकि उसका मन हल्का हो जाए| अनु समझ गई और मेरी बातों को आगे बढ़ाती रही| हम बस स्तब्ध पहुँचे और वहाँ से हमें दिल्ली के लिए Volvo मिली! Volvo में बैठते ही अनु बोली; "आपके साथ ट्रैन की यत्र कर ली, प्लेन की यात्रा कर ली, बाइक यात्रा और कार यात्रा भी कर ली एक बस यात्रा बची थी वो भी आज पूरी हो गई!"

"बेबी बस एक cruise ship की यात्रा रह गई!" मैंने मुस्कुराते हुए कहा| बस चली और कुछ देर बाद नेहा को याद कर मेरी आँखें फिर से नम हो गईं, अनु ने अपना फ़ोन निकाला और भाभी को वीडियो कॉल की| भाभी ने नेहा को गोद में बिठा कर कैमरा उसकी तरफ कर दिया और इधर अनु ने मेरा ध्यान अपने फ़ोन की तरफ खींचा| नेहा को देखते ही दिल खुश हो गया, मैंने हाथ हिला कर नेहा को बुलाया, मुझे फ़ोन पर देखते ही वो खुश हो गई और अपने छोटे-छोटे हाथों को मेरी तरफ बढ़ा दिया जैसे कह रही हो की पापा मुझे गोदी ले लो! ये देखते ही दिल रोने लगा क्योंकि आज मैं छह कर भी उसे गोद में नहीं ले सकता था| अनु ने मेरा बयां हाथ कस कर दबा दिया और मुझे रोने से बचा लिया| कुछ देर ऐसे ही नेहा से बात की और मन कुछ हल्का हो गया| कॉल के बाद मैंने अनु को थैंक यू कहा तो अनु मुस्कुराने लगी|


हम अगले दिन सुबह 6 बजे दिल्ली पहुँचे और वहाँ से टैक्सी कर एयरपोर्ट पहुँचे| वहीँ पर हम दोनों बारी-बारी से फ्रेश हुए और फिर फ्लाइट ले कर नई यॉर्क पहुँचे| चूँकि हमें कनेक्टिंग फ्लाइट मिली थी तो इतनी travelling से बैंड बजना तो तय था| पूरे रास्ते मैंने खुद को अच्छे से संभाला हुआ था, क्योंकि मुझे रोता हुआ देख अनु को भी वैसे ही दुःख होता जैसा उसे रोता हुआ देख मुझे होता था| मैंने खुद को बिजी रखने के लिए काम में लगा दिया और अपनी बेटी की जुदाई के दर्द को दबाना शुरू कर दिया| होटल पहुँच कर अनु सो गई पर मैं Presentation चेक करने में बिजी हो गया| मीटिंग कल सुबह थी और मैं कुछ भी खराब नहीं करना चाहता था| सुबह जब अनु उठी तो मुझे ऐसे काम करते हुए देख वो नाराज हो गई; "आप सोये नहीं? मुझे तो लेटते ही नींद आ गई और सीधा अभी उठी! बीमार होगये तो?" अनु ने चिंता जताते हुए कहा|

"यार अपने हनीमून पर कोई बीमार होता है?" मैंने मुस्कुरा कर कहा| "Actually कुछ चीजें edit करनी थीं और मैं एक बार साड़ी प्रेजेंटेशन को go though करना चाहता था, you know to be on a safe side!" मैंने कहा और तैयार होने चला गया| अनु ने आज साडी पहनी थी और मैंने बिज़नेस सूट! साडी में अनु कमाल की लग रही थी; "Are you sure हम प्रेजेंटेशन देने जा रहे हैं?" मैंने अनु की तारीफ करते हुए कहा जिसे सुन उसके गाल लाल हो गए|


मैं उम्मीद कर रहा था की हमारी मुलाक़ात मर्दों से होगी पर यहाँ तो साड़ी ladies बैठी थीं| अनु को साडी में देख उनमें से एक ने पूछ लिया; "Ms. Anu we were expecting you to be wearing a business suit, not a typical Indian dress!” पहली औरत ने कटाक्ष करते हुए कहा|

“Oh… its not just a dress! It represents our culture, if wearing business suit is your culture then in our country a woman after marriage wears these…and by the way its called a Saree!” अनु ने दो तुक जवाब दिया जिसे सुन मुझे लगा की गया ये कॉन्ट्रैक्ट हाथ से| पर तभी दूसरी औरत पूछने लगी; "How long have you been married?” इससे पहले अनु कुछ और बोल कर बात बिगड़ती मैंने जवाब दिया; "1 month”.

“You should be on your honeymoon, what are you doing here?” पहली वाली औरत ने हम दोनों को छेड़ते हुए कहा|

“Well my husband’s a very hardworking guy, he worked his butt off to arrange this meeting and I’m not letting him down by nagging about a honeymoon. We’ve our whole life for honeymoon?!” अनु ने फ़टाक से जवाब दिया जिसे सुन वो औरत चुप हो गई| साफ़ जाहिर था की हमें यहाँ प्रेजेंटेशन देनी ही नहीं है, क्योंकि अनु जी की बात सुन कर यहाँ से खाली हाथ ही निकलना पड़ेगा| मैंने अपना लैपटॉप बंद कर दिया और दरवाजे की तरफ देखने लगा| मैंने सोचा की इससे पहले ये सिक्योरिटी को बुलाएं और हमें धक्के मार कर निकालें बेहतर है की खुद ही निकलते हैं| पर वहाँ काफी देर से चुप बैठीं तीसरी मैडम बोलीं; "Where do you think you’re going mister? We’re waiting for your presentation!” उनका नाम जेनी था और उनकी बात सुन कर मुझे उम्मीद की किरण दिखाई दी और मैंने आगे बढ़ते हुए प्रेजेंटेशन शुरू की, Facts अनु ने संभाले तो Figures मैं संभाल रहा था| वो तीनों हम दोनों की coordination देख कर काफी प्रभावित हुए; "Look Mr. Manu you guys lack in one field, and that’s experience! One year is not sufficient to work with us!” जेनी बोलीं| "Its better than having no experience! We just want a chance, if you like our work then give us the contract if not we won’t complain!” मैंने पूरे आत्मविश्वास से कहा जो जेनी को भा गया, उसने बिना किसी के पूछे ही हमें 1 क्वार्टर का काम ऑफर कर दिया! ये सुन कर मैं और अनु दोनों मुस्कुरा दिए और बाकी के दो मैनेजर चुप बैठे रहे| जेनी उठ के मेरे पास आईं और हमने हैंडशेक किया अब उन दोनों को भी उठ के आना पड़ा और एक फॉर्मल हैंडशेक हुआ| हम दोनों ही मुस्कुराते हुए बाहर आये और कॉन्ट्रैक्ट पाने की ख़ुशी हमारे चेहरे से साफ़ झलक रही थी| हालाँकि अनु उम्मीद कर रही थी की मैं उसे उसके attitude के लिए कुछ कहूँगा पर मैंने उसे एक शब्द भी नहीं कहा| "बेबी आपने जो कहा वो बिलकुल सही था, हमें कहीं भी dress code mention नहीं किया गया था| अब उन दोनों को आपका साडी पहनना अच्छा नहीं लगा तो वो दोनों जाएँ चूल्हे में!" मैंने कहा तो अनु हँस पड़ी! अगले 4-5 दिन हमें वहीँ रुकना था ताकि हम कुछ डाटा कलेक्ट कर सकें, काम खत्म होने के बाद अनु को लगा हम वापस जायेंगे पर जब मैंने अनु को बाकी का प्लान बताया तो वो ख़ुशी से चीख पड़ी| "हम हनीमून के लिए Vegas जा रहे हैं!" ये वो प्लान था जो मैंने अनु से छुपाया था| Vegas का नाम सुनते ही अनु झूम उठी और उसने फ़ौरन ऑफिस फ़ोन कर के अक्कू को हड़का दिया; "बेटा हमारे आने तक तुम लोगों ने अगर काम शुरू नहीं किया ना तो तुम सब की बत्ती लगा दूँगी!" अनु की बात सुन सब की एक साथ फ़ट गई और सारे अपने-अपने काम में लग गए| इधर अनु की बात सुन कर मैं खूब हँसा जो अक्कू ने भी सुनी!


कुछ देर बाद आकाश ने मुझे मैसेज कर के पुछा की Mam क्यों गुस्सा हैं तो मैंने उसे ये ही कहा की वो गुस्से में नहीं बल्कि excited हैं, क्योंकि हमें एक क्वार्टर के लिए प्रोजेक्ट मिल गया है! खेर मैं और अनु Vegas के लिए निकले और पूरे रास्ते अनु बहुत जोश में थी और बहुत खुश भी! वहाँ मैंने पहले से ही रिजर्वेशन कर दी थी जो अनु के लिए दूसरा सरप्राइज था! पहली रात थी और अनु खूब जोश में थी, एक सरप्राइज उसने भी खरीद लिया था| मैं लैपटॉप पर कुछ काम कर रहा था की अनु लॉन्जरी पहन कर इठला कर मेरे पास आई, मैंने फ़ौरन लैपटॉप बंद कर दियाऔर बिना पलकें झपकाए उसे देखने लगा|



लाल रंग की इस लॉन्जरी में अनु के जिस्म का एक-एक हिस्सा कातिलाना लग रहा था| जाली से कपडे में से मुझे अनु का दूधिया जिस्म साफ़ दिख रहा था| मैं उठ कर खड़ा हुआ और अनु को गोद में उठा लिया और उसे बिस्तर के बीचों-बीच लिटा दिया| अनु ने अपनी बाहों का हार मेरे गले में डाल दिया और मुझे अपने ऊपर खींचने लगी| मैंने भी झुक कर अनु के होठों को अपने होठों में कैद कर लिया और उनका रस निचोड़ने लगा| इधर अनु की कूदती हुई जीभ मेरे मुँह में प्रवेश कर गई जिसे मेरे दाँतों ने दबोच लिया| हम दोनों अभी Kiss में ही डूबे थे की भाभी का video call आ गया| इस विघ्न से पहले तो दोनों को बहुत चिढ हुई पर फिर इस आस से की कहीं नेहा को हमसे कोई बात करनी हो अनु ने कॉल उठा लिया| अनु ने मुझे उसके ऊपर से हटने को कहा पर मैं कहाँ मानने वाला था| अनु ने फ़ोन कुछ इस तरह से पकड़ा की सिर्फ वही दिखे, पर ये कॉल भाभी ने ऐसे ही किया था, जैसे ही उन्होंने पुछा की मानु कहाँ है मैं एक दम से सामने आ गया जिससे भाभी को ये पता चल गया की हम दोनों 'प्यार' कर रहे थे| "भाभी हमेशा गलत टाइम पर कॉल करते हो!" मैंने मजाक करते हुए कहा तो भाभी शर्मा गईं और अनु का भी यही हाल था| उनके कॉल के बाद अनु बोली; "सच्ची आप न ....बड़े वो हो!" मैंने उसे सताने की सोची और एकदम से उठ गया मानो जैसे मैंने उसकी बात का बुरा माना हो| मैं उठ कर काउच पर बैठ गया, अनु डरी सहमी सी आई और बोली; "सॉरी!" उसके डरने से मुझे बहुत हँसी आ रही थी, मैं उठ कर खड़ा हुआ और बाहर जाने लगा तो अनु ने मेरा हाथ पकड़ लिया; "सॉरी!" मैं एक दम से पलटा और उसे गोद में उठा लिया| तब जाकर उसे ये एहसास हुआ की मैं बस उससे मजाक कर रहा था| हम दोनों फिर से बिस्तर पर लेटे एक दूसरे के होठों से खेल रहे थे| अनु और मैं दोनों एकदम से गर्म हो गए थे, एक-एक कर हमने कपड़े उतार फेंके और अनु ने मुझे खुद से चिपका लिया, उसकी दोनों टांगें मेरी कमर पर लोच हो गईं थीं| मेरा खड़ा लंड अनु की पनियाई बुर पर दस्तक दे रहा था| अनु ने अपना हाथ नीचे ले जा कर आज पहली बार मेरा लंड छुआ और उसे अपनी बुर के द्वार पर रखा| अनु के मुलायम हाथों के एहसास ने ही मेरे लंड से pre-cum की बूँद टपका दी थी! मैंने धीरे से लंड को अंदर दबाया और आज भी मुझे उतनी ही ताक़त लगानी पड़ी जितनी सुहागरात में लगानी पड़ी थी| "ससससस....आह्ह!!!" अनु ने सिसकारी ली और लंड फिसलता हुआ पूरा अंदर समा गया| अनु की बुर भट्टी की तरह गर्म थी और मेरे लंड के लिए ये गर्मी झेलना मुश्किल था| इसलिए मैंने अपने लंड को तेजी से अंदर-बाहर करना शुरू किया, अनु को 5 मिनट नहीं लगे और उसने ढेर सारा पानी बाहा दिया जिससे उसकी बुर की गर्मी कुछ कम हुई| घर्षण कम होने की वजह से मुझे आधा घंटा ही मिला खुद को रोके रखने का और फिर मैं और अनु दोनों एक साथ स्खलित हुए! मैं लुढ़क कर अनु की बगल में लेट गया, अनु कुछ देर सीढ़ी लेटी रही और फिर करवट ले कर मुझसे चिपक कर सो गई|


हम वेगास में 7 दिन रुके और हर रात हमने जी भर के सेक्स किया, जिसके परिणाम स्वरुप अनु अब सेक्स में खुल गई थी| जिस दिन हमें वापस इंडिया आना था उस दिन हम एयरपोर्ट जल्दी पहुँच गए, अनु ने हमेशा की तरह आज भी साडी पहनी हुई थी| वो कॉफ़ी लेने काउंटर पर गई और मैं लैपटॉप पर काम करने लगा की एक आदमी जो बात करने के अंदाज से मुझे ऑस्ट्रेलियाई लगा वो अनु से बात करने लगा| जब 5 मिनट तक नौ नहीं आई तो मैंने उसे बैठे-बैठे ढूँढना शुरू किया तो पाया वो उस आदमी से बात कर रही है| अनु लग ही इतनी सुंदर रही थी की वो आदमी उससे बात करने लगा| इधर ये देख कर मेरी जलने लगी और जब अनु ने मेरी तरफ देखा तो मुझे और जलाने के लिए उसने उससे और बातें शुरू कर दीं| अब मुझे भी अनु को दिखाना था की मैं भी कुछ कम नहीं तो मैंने अपना ब्लेजर पहना, बालों को हाथों से सही किया और सनग्लास पहन कर बैठ गया| कुछ दूर एक सुंदर लड़की बैठी थी जो कॉफ़ी पीते हुए सब को देख रही थी| उसके हाथ में फ़ोन था और वो चार्जर कनेक्ट करने का पॉइंट देख रही थी| मैंने हाथ के इशारे से उसे बताया की चार्जिंग पॉइंट मेरे नजदीक है तो वो मुस्कुरा कर मेरे पास आई| फिर उसने मुझे थैंक्स बोलै और मैंने उससे बातें करना शुरू कर दिया| उस लड़की ने शॉर्ट्स पहनी थीं और उसकी लम्बी मखमली गोरी टांगें बहुत सेक्सी लग रही थीं| वो मेरी ही बगल में बैठ कर बातें करने लगी, उसे देखते ही अनु जल भून कर राख हो गई और उस आदमी को बोली; "My husband's waiting for me!" इतना बोल कर वो तेजी से मेरे पास आई और हाथ अपनी कमर पर रख कर गुस्से से मुझे देखने लगी| "Oh....meet my beautiful wife Anu!” मैंने हँसते हुए कहा तो वो लड़की अनु को देखती ही रह गई! जब उसने अनु से बात शुरू की तो पता चला की वो Lesbian है और उसे अनु बहुत पसंद आई! ये सुन कर अनु की हँसी रोके नहीं रुक रही थी! वो दहाड़े मार के हँसने लगी और मैं शर्म से लाल हो गया| इस तरह हँसते हुए हम दिल्ली पहुँचे और वहाँ से बैंगलोर!


बैंगलोर पहुँचते ही मैं सीधा ऑफिस आया, अनु को घर पर कुछ काम था इसलिए वो वहीं रुक गई| ऑफिस आ कर देखा तो वहाँ का हाल एकदम बिगड़ा हुआ था! साफ़-सफाई तो छोडो तीनों ने कोई काम-धाम ही नहीं किया था! जब मैंने काम की अपडेट माँगी तो तीनों ने आधा-अधूरा काम दिखा दिया| “What the hell’s going on here? I trusted you guys here and you’ve been wasting your time! Call your home/hostels and tell them you’re not going back until you wrap all this!” मैंने तीनों को अपना फरमान सुना दिया| इधर अनु का फ़ोन आया तो मैंने उसे सब बताया और वो बहुत नाराज हुई| शाम को वो सब का खाना ले कर आई और तब तक ना मैंने कुछ खाया था ना उन तीनों ने! "दरअसल ये गलती मेरी है! मैंने इन लोगों को सर पर चढ़ा रखा है!" अनु गुस्से में बोली| तीनों जानते थे की हम दोनों जितना एम्प्लाइज का ध्यान रखते थे उतना कोई नहीं रखता था और हमें दोनों को गुस्सा दिला कर तीनों ने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारी थी| तीनों ने हमें आ कर सॉरी बोला और प्रॉमिस किया की आगे से वो ऐसी लापरवाही नहीं करेंगे| आखिर अनु ने सब को खाना परोसा और खाना खा कर हम पाँचों काम में लग गए| रात 11 बजे तक बैठ कर सारा काम निपटा, अगले दिन की छुट्टी अनु ने दे दी! "कल रात सात बजे तुम तीनों रेडी रहना!" अनु बोली तो तीनों को लगा की कल रात को भी काम करना होगा| "बेवकूफों! शादी में तो आया नहीं गया तुमसे अब रिसेप्शन की पार्टी चाहिए या नहीं?" अनु ने हँसते हुए कहा तो तीनों की जान में जान आई| तीनों को हमने XL वाली कैब से ड्राप किया और फिर 1 बजे घर पहुँचे| घर पर मेरे लिए एक सरप्राइज वेट कर रहा था, जैसे ही मैं कमरे में घुसा तो वहाँ का नजारा देख मैं दंग रह गया! सारे कमरे में अनु ने नेहा और हमारी फोटो चिपका दी थी! ऐसा लगता था मानो पूरे कमरे में नेहा ही छाई हो! आज इतने दिनों बाद मुझे नेहा का एहसास हुआ तो मेरी आँखें नम हो गईं| "Hey... ये माने आपको रुलाने के लिए नहीं किया! ये इसलिए किया ताकि जो दर्द आप अपने अंदर छुपाये रहते हो उसे खत्म कर सकूँ!" अनु बोली| मैंने अनु को कस कर गले लगा लिया और उसे थैंक यू कहा!
awesome update bhai
 
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Nevil singh

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अब तक आपने पढ़ा:

घर पर मेरे लिए एक सरप्राइज वेट कर रहा था, जैसे ही मैं कमरे में घुसा तो वहाँ का नजारा देख मैं दंग रह गया! सारे कमरे में अनु ने नेहा और हमारी फोटो चिपका दी थी! ऐसा लगता था मानो पूरे कमरे में नेहा ही छाई हो! आज इतने दिनों बाद मुझे नेहा का एहसास हुआ तो मेरी आँखें नम हो गईं| "Hey... ये माने आपको रुलाने के लिए नहीं किया! ये इसलिए किया ताकि जो दर्द आप अपने अंदर छुपाये रहते हो उसे खत्म कर सकूँ!" अनु बोली| मैंने अनु को कस कर गले लगा लिया और उसे थैंक यू कहा!

अब आगे....

अनु चेंज करने गई और इधर मैं पूरे कमरे में घूमने लगा और हर एक फोटो को छू कर देखने लगा| मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं सच में नेहा को छू रहा हूँ, वो हर एक पल मुझे याद आने लगा जो मैंने नेहा के साथ बिताया था| इस बार मैं रोया नहीं बल्कि दिल अंदर से खुश हो गया, ये मेरे साथ पहली बार हो रहा था! कुछ देर बाद अनु चेंज कर के आई और मुझे तस्वीरों को छूता देख वो भावुक हो गई और पीछे से आ कर मुझे अपनी बाँहों में जकड़ लिया| "बेबी! आपको पता है आज मुझे कैसा फील हो रहा है? मुझे रोना नहीं बल्कि इन तस्वीरों में नेहा को देख कर ख़ुशी हो रही है! ऐसा लगता है जैसे वो मेरे सामने ही है!" फिर मैं अनु की तरफ पलटा और उसे अपने गले लगा लिया; "आपको जितना भी थैंक यू कहूँ उतना कम है!" मैंने कहा तो अनु ने मुझे और कस कर जकड़ लिया|

कुछ देर हम ऐसे ही खड़े रहे, फिर मैंने चेंज किया और एक बार फिर हम दोनों एक दूसरे की बाहों में सो गए! सुबह मैं जल्दी उठा, अनु अब भी सो रही थी इसलिए मन नहीं किया उसे जगाने का| मैं बाहर आया और अपने लिए चाय बनाई और काम में लग गया| अनु ग्यारह बजे उठी और मुझे काम करते देख वो अपनी कमर पर हाथ रख कर कड़ी हो गई और प्यार भरे गुस्से मुझे देखते हुए बोली; "सो मत जाना आप! सारा टाइम काम..काम..काम...! इधर मैं उस टाइम कॉल पर था तो मैंने बस कान पकड़ कर उसे मूक भाषा में सॉरी कहा| अनु ने दोनों के लिए चाय बनाई और कप मुझे देते हुए नाश्ते के लिए पुछा, मैं तब भी कॉल पर था सो मैं ने फिर से अनु से दो मिनट रुकने को कहा| इधर अनु गुस्से में उठी और किचन में जा कर उसने बर्तन सिंक में पटकने शुरू कर दिए| मैंने जल्दी से कॉल निपटाई और किचन में आ गया और अनु को पीछे से अपनी बाहों में जकड़ लिया| "सॉरी बेबी! वो कल रात को सारा काम फाइनल हुआ तो पार्टी को इनवॉइस भेज रहा था!" मैंने अनु के बालों को सूंघते हुए कहा पर अनु कुछ नहीं बोली; "अच्छा बाबा ....अब से इतना काम नहीं करूँगा!" मैंने अनु को मस्का लगाने को कहा और वो थोड़ा पिघल भी गई की तभी मेरा फ़ोन बज उठा जिसे सुन अनु का पारा फिर से चढ़ गया| "Don’t you dare pick up that call?” अनु ने मुझे चेतावनी देते हुए कहा| पर कॉल पार्टी का था और मैंने स्क्रीन पर पार्टी का नाम अनु को दिखाया तो वो नाराज हो कर कमरे में चली गई| मुझे मजबूरन कॉल उठा कर बात करनी पड़ी, बात कर के मैं वापस कमरे में आया तो अनु मुँह फुलाये हुए दूसरी तरफ मुँह कर के लेटी हुई थी| "बेबी सॉरी! वो एक पार्टी ने कुछ डाटा भेजा है बस उसी के लिए कॉल किया था!" मैंने कान पकड़ते हुए कहा| पर अनु गुस्से में कुछ नहीं बोली उल्टा चादर उठा कर अपने ऊपर डाल ली| मैं समझ गया की आज तो मेरी शामत है, इसलिए मैं किचन में नाश्ता बनाने लगा| नाश्ता ले कर मैं कमरे में आया और अनु के सामने खड़ा हो गया, पर वो तब भी कुछ नहीं बोली| मैंने नाश्ता एक साइड में रखा और अनु के पास बैठ गया; "बाबा...try and understand.... हम इतने दिन बाहर बिता कर आये हैं और हमारी गैरहाजरी में तुमने देखा ना किसी ने कुछ काम नहीं किया| अब थोड़ा टाइम लगेगा ताकि सारी चीजें in-order आ जायें, बिज़नेस भी जर्रूरी है ना? वरना हम खाएंगे क्या?" मैंने अनु से प्यार से कहा तो उसने पलट कर मुझसे सवाल पूछ लिया; "क्या बिज़नेस मुझसे भी जर्रूरी है?"

"नहीं बेबी... but please समझो! सुबह इनवॉइस भेजना जर्रूरी था! Okay I promise मैं प्यार ज्यादा और काम कम करूँगा!" पर मेरी किसी भी बात का अनु पर कोई असर नहीं पड़ा, उसने दूसरी तरफ मुँह कर लिया और लेटी रही| मैं उठा और बालकनी में आ कर बैठ गया, सर पीछे टिका कर मैं सोचने लगा की अनु को कैसे मनाऊँ! कुछ देर बाद अनु खुद ही उठ कर आई, नाश्ता टेबल पर रखा और मेरी गोद में बैठ गई| अनु ने सबसे पहले मेरी गर्दन पर Good Morning वाली kissi दी और फिर मुस्कुराते हुए मुझे देखने लगी| "आपको लगता है की सिर्फ आप ही अच्छा ड्रामा कर सकते हो?" अनु ने मुझे मेरा Vegas में किया ड्रामा याद दिलाया, जिसे याद कर मैं हँस पड़ा| हमने वैसे ही बैठे-बैठे नाश्ता किया, इधर मेरा लंड खड़ा हो गया और अनु को गढ़ने लगा| अनु ने मेरी तरफ देखा और मुस्कुराई पर आगे कुछ होता उसके पहले ही दरवाजे की बेल्ल बज गई| अनु ने उठ कर दरवाजा खोला, एक आदमी आया था और फिर मुझे अगली आवाज ड्रिल की आई जिसे सुन मैं फ़ौरन हॉल में आया तो देखा की वो आदमी हम दोनों के नाम की Name plate लगा रहा है| “Mr. and Mrs. Maurya” एक शानदार font से लिखा हुआ था, जिसका आर्डर अनु ने कल दे दिया था| अपना और अनु का नाम देख मैं मुस्कुरा दिया और यही ख़ुशी मुझे अनु के चेहरे पर दिखी| शाम होने तक आस-पडोसी आ कर हमें मुबारकबाद देते रहे और मैं और अनु सबकी खातिर-दारी करते रहे| शाम होते ही हम दोनों तैयार हुए और मैंने तीनों को बारी-बारी से कॉल किया| हमने कैब से तीनों को पिक किया और एक अच्छे रेस्टुरेंट में घुसे| अनु ने सब का खाना आर्डर किया और साथ ही ड्रिंक्स भी! अनु ने अपने लिए वाइन ली और बाकियों ने बियर| बातों का सिलसिला चालु हुआ, यहाँ से ले कर गाँव तक और न्यूयोर्क तक की साड़ी बातें अनु ने शुरू कर दीं| इधर मौके का फायदा उठा कर मैंने अपने लिए 30ml chivas आर्डर कर दी, अनु अपनी बातों में लगी रही और देखते ही देखते मैंने 5 पेग टिका लिए! इधर मैंने भी इतना ध्यान नहीं दिया की अनु ने वाइन की पूरी बोतल खत्म कर दी! रेस्टुरेंट में गाना चल रहा था और लोगों का जमावड़ा लगा हुआ था| अब मुझे तो सुररूर चढ़ने लगा था और अनु तो फुल झूम रही थी| तभी गाना लगा; 'सखियाँ ने मैनु म्हणे मार दियाँ....' ये सुनते ही अनु ने छोटे बच्चे जैसी सूरत बनाई, ठीक उसी वक़्त गाने की लाइन आई;

'Jadon kalli behni aa
Khayal ae sataunde ne
Baahar jaake sunda ae
Phone kihde aunde ne' अनु ने गाने की लाइन मुझसे शिकायत करते हुए दोहराईं| पिछले कुछ दिन से मैं काम इतना व्यस्त था की कॉल आते ही बाहर आ जाय करता था, बाहर आने का कारन सिर्फ signal reception था और कुछ नहीं|

'Kari na please aisi gall kisey naal
Aaj kise naal ne jo kal kise naal
Tere naal hona ae guzaara jatti da
Mera nahio hor koyi hal kise naal
Tere yaar bathere ne
Mera tu hi ae bas yaara
Tere yaar bathere ne
Mera tu hi ae bas yaara' अनु ने ये लाइन ये जताते हुए कही की मेरे अलवा उसका और कोई नहीं है!

'Eh na sochi tainu mutiyara ton ni rokdi
Theek ae na bas tere yaara ton ni rokdi
Kade mainu film’aan dikha deya kar
Kade kade mainu vi ghuma leya kar
Saare saal vichon je main russan ek vaar
Enna’k taa ban’da manaa leya kae
Ikk passe tu Babbu
Ikk passe ae jag saara' अनु ने हाथ जोड़ते हुए कहा तो मुझे उस पर बहुत प्यार आ गया| मैंने अपने दोनों हाथ खोल दिए और वो आ कर मेरे गले लग गई| "अभी-अभी हम घूम कर आये हैं, अब आपको फिल्म देखना पसंद नहीं तो मैं क्या करूँ? और रूठते तो आप इतना हो के की क्या बताऊँ!" मैंने अनु को गले लगाए हुए उससे कहा तो सारे हँस पड़े| मैं और अनु अब काफी चिपक कर बैठे थे और बाकी तीनों अलग-अलग बैठे थे| अनु के इस उमड़ रहे प्यार के कारन तीनों थोड़ा uncomfortable हो रहे थे| घडी में 12 बजे थे तो मैंने बिल मंगवाया और वो बहुत अच्छा खासा आया! आकाश ने XL कैब बुक की और हमने पहले दोनों लड़के को छोड़ा, अनु की दोस्त अब हॉस्टल नहीं जा सकती थी तो अनु ने उसे हमारे घर रुकने को कहा| हम तीनों घर पहुँचे तो कैब से उतरते ही अनु ने ड्रामा शुरू कर दिया| मैंने घर की चाभी अनु की दोस्त को दी और उसे फ्लैट नंबर 39 खोलने को कहा और मैं अनु को गोद में उठा लिया| नशा अनु पर चढ़ चूका था और अब उसे चलने में दिक्कत हो रही थी, या फिर ये उसका ड्रामा था! मैं और अनु अंदर आये, मैंने उस लड़की को गेस्ट रूम में सोने को कहा| मैं अनु को ले कर अंदर आया और उसे बिस्तर पर लिटा कर उठने लगा तो उसने हमेशा की तरह अपने बाहों का हार मेरे गले में डाल कर मुझे रोक लिया| "बेबी दरवाजा तो बंद कर ने दो!" मैंने कहा और दरवाजा बंद कर के, जूते उतार के फेंक कर अनु की बगल में लेट गया| मेरा सर भी घूमने लगा था और होश अब कम होने लगा था| इधर अनु पर खुमारी छाने लगी थी, उसने मेरी तरफ करवट ली और मेरे होठों से अपने होंठ मिला दिए| अनु के मुँह से मुझे रेड वाइन की सुगंध आ रही थी, अनु ने मेरे होठों को बारी-बारी से चूसना शुरू कर दिया| उसके हाथ अपने आप फिसलते हुए मेरी छाती से होते हुए मेरे लंड पर पहुँच गए और पैंट के ऊपर से ही अनु ने उसे दबाना शुरू कर दिया| मैं समझ गया की अनु क्या चाहती है पर मेरा लंड सो रहा था और वो सिर्फ अनु के छूने भर से खड़ा नहीं हो रहा था| अनु उठी और मेरी टांगों के बीच बैठ गई, उसे काफी मेहनत करनी पड़ी मेरी पैंट की बेल्ट खोलने में| मेरा होश अब कम होने लगा था, मैं जानता था की अनु क्या करने वाली थी पर मुझे विश्वास नहीं हो रहा था की वो ये करेगी| अनु ने मेरी पैंट खोल दी और उसे नीचे खींचने लगी, पर बिना मेरे कमर उठाये वो ये नहीं कर पाती| मैंने अपनी कमर उठाई तो अनु ने पहले पैंट निकाली और फिर कच्छा| मेरा सोया हुआ लंड अनु के सामने था, अनु ने डरते हुए उसे छुआ और लंड की चमड़ी पीछे खिसकाई जिससे मेरा सुपाड़ा उसके सामने आया| अनु एकदम से नीचे झुकी और उसे मुँह में भर लिया पर इसके आगे क्या करना है उसे नहीं पता था| आखिर मैंने आँखें बंद किये हुए अनु को गाइड करना शुरू किया; "Suck it like a candy!" ये सुन अनु ने मेरे लंड को टॉफ़ी की तरह चूसना शुरू किया| लंड को जब अनु का प्यार आज पहली बार मिला तो वो ख़ुशी से फूल गया और अनु के मुँह में ही अपना अकार लेना चाहा पर अनु उसे पूरा मुँह में नहीं ले पाती इसलिए अनु ने तुरंत उसे अपने मुँह से निकाल दिया| अब अनु के सामने उसके मुँह के रस से नहाया हुआ एक विशालकाय लंड था जिसे देख अनु को उस पर प्यार आ रहा था| पर अब एक दिक्कत थी, वो थी वो तेज महक जो अनु को लंड से आ रही थी| ये महक उसे मेरे लंड को दुबारा मुँह में लेने नहीं दे रही थी, इधर मैं बेकरार हो रहा था की अनु कब मेरा लंड फिर से मुँह में ले ले! "Baby....use your saliva....! Pour it on the tip, that should ease the…..” मैंने बात पूरी नहीं की पर अनु समझ गई| उसने मेरे लंड के सुपाडे पर अपने थूक की एक धार गिराई जो धीरे-धीरे बहती हुई नीचे जाने लगी| अनु ने धीरे से लंड को फिर से अपने मुँह की गर्माहट दे दी और इस बार उसे लंड से वाइन की महक आई| अनु ने लंड मुँह में भर कर उसे चूसना शुरू किया, उसका मुँह स्थिर था और फिर मैंने उसे अगला आदेश दिया; "Baby....थोड़ा bite करो!" ये सुनते ही अनु को क्या सूझी की उसने लंड को अपने मुँह के दाहिनी तरफ सरकाया और अपने दाँतों से दबाया| अनु की दाहिनी तरफ के सारे दाँतों का दबाव मुझे मेरे लंड के एक हिस्से पर होने लगा, फिर अनु ने अपने मुँह के बाईं तरफ से भी ऐसा ही दबाव डाला, इस एहसास ने मेरे रोंगटे खड़े कर दिए| कुछ मिनट अनु ऐसे ही मेरे लंड को कभी दाँत से दबाती तो कभी उसे टॉफ़ी की तरह चूसती| मेरा लंड अब पूरी तरह सख्त हो गया था और अब मौका था अगले पड़ाव का! "Baby while sucking move your mouth in forward and backward direction!" अनु ने अच्छे विद्यार्थी की तरह ठीक वैसा ही किया और अब मेरा मजा दुगना होने लगा था| 5 मिनट की चुसाई में ही अनु ने मुझे चरम पर पहुँचा दिया, "suck me like your sipping a cold drink from a straw!" मेरा ये कहना था और अनु ने अपने मुँह के अंदर बड़ा suction बनाया और लंड चूसने लगी| कमरे में अब 'चप-चप' की आवाज गूंजने लगी, अनु बड़ी शिद्दत से चूस रही थी और हर पल मेरा हाल ऐसा था जैसे की कोई मेरे प्राण-पखेरून खींचता जा रहा हो! अनु की इस चुसाई के आगे मैं टिक ना सका और मुझे उसे अपने स्खलित होने की चेतावनी देने का समय भी नहीं मिला| अनु के मुँह में ही मेरा फव्वारा छूटा जिसे अनु सारा का सारा गटक गई! उसने एक बूँद भी बर्बाद नहीं होने दी थी, इधर अपने इस तीव्र स्खलन के बाद मुझ में जैसे जान ही नहीं बची थी| शराब की खुमारी नींद में बदल गई और मैं उसी हालत में सो गया| अनु कुछ देर बाद उठी और मुस्कुराते हुए मुझे देखने लगी| फिर जा कर बाथरूम में चेंज कर के आई और मेरे होठों को मुँह में ले कर चूसने लगी| पर मैं गहरी नींद सो चूका था सो उसकी Kiss का जवाब नहीं दे सका| अनु ने कुछ नहीं कहा और मुस्कुराती हुई मेरे सीने पर सर रख सो गई| सुबह सबसे पहले मैं ही उठा और अपनी ये हालत देख मुझे एहसास हुआ की मैं कल अनु को प्यासा ही छोड़ दिया था| मुझे पता था की सुबह उठते ही अनु नराज होगी पर ऐसा नहीं हुआ| मैं जब कॉफ़ी ले कर आया तो अनु अंगड़ाई लेते हुए उठी और मेरी गर्दन पर Kissi की और मुस्कुराते हुए कॉफ़ी पीने लगी| "सॉरी यार ...वो कल रात... I passed out!" मैंने कहा तो अनु हँसने लगी; "तो क्या हुआ?" मैं अनु का मतलब समझ गया, तभी अनु की दोस्त उठ कर आ गई और मैंने उसे भी कॉफ़ी दी| नाश्ता कर के हमने उसे हॉस्टल छोड़ा और हम दोनों ऑफिस आ गए|


अब मस्ती-मजाक बहुत हो चूका था, काम का लोड बहुत बढ़ चूका था और फिर हमें अगस्त में गाँव भी जाना था| अगला एक महीना मैंने रात-रात जाग कर काम किया जिससे अनु को बहुत कोफ़्त होती थी, वो मेरे इस जूनून से चिढ़ने लगी थी! अब हमारे पास बस तीन महीने बचे थे और अब हम सोच में पड़ गए थे की Expand करें या न करें? Expansion के लिए हमें नया स्टाफ hire करना था और रेंट भी बढ़ने वाला था| अगर हम expansion करते हैं तो हम ये सारा काम लखनऊ शिफ्ट नहीं कर पाएंगे! अनु ने तो मना कर दिया, क्योंकि वो जानती थी की यहाँ से लखनऊ शिफ्ट करना ज्यादा जर्रूरी है आखिर उसने माँ से वादा जो किया था| "बेबी... मैं जानता हूँ की आपको लखनऊ शिफ्ट होना है पर जो काम अभी हाथ में है उसे हम ऐसे छोड़ नहीं सकते! Please bear with me! अभी के लिए एक professional hire कर लेते हैं| अगस्त में हम जब गाँव जायेंगे तो मैं अरुण और सिद्धर्थ से बात करता हूँ|" पर अनु जिद्द पर अड़ गई थी, उसे माँ से किया वादा पूरा करना था और साथ ही नेहा को अपने गले से भी लगाना था| उसका ये प्यार बिज़नेस के आगे आ गया था जो मुझे कतई गवारा नहीं था| अनु ने गुस्से से मुझ पर चिल्लाते हुए कहा; "आप शायद भूल गए हो की आप एक बाप भी हो? क्या आपका मन नहीं करता नेहा को मिलने का? या काम के आगे उसे भी भूल गए हो!" अनु की बात मेरे दिल में शूल की तरह गढ़ गई, गुस्सा तो बहुत आया पर मैंने खुद को रोक लिया और अपने गुस्से को पी गया और उठ कर घर के बाहर चला गया|

कुछ देर बाद जब अनु को उसके कहे शब्दों का एहसास हुआ तो उसने ताबड़तोड़ मुझे कॉल करना शुरू कर दिया| मैं जानबूझ कर उसके काल नहीं उठा रहा था और सर झुकाये लालबाग़ लेक के किनारे बैठा रहा| ऐसा नहीं था मैं नेहा से प्यार नहीं करता था पर मैं खुद को संभाल रहा था ताकि नेहा को याद कर के उदास न रहूँ| मैं ये मान चूका था की शायद मेरी किस्मत में नेहा का प्यार नहीं है, इस बार जब उससे मिलूँगा तो वो मुझे पहचनानेगी भी नहीं! बस इसी एक डर से दूर भाग रहा था और अनु को लग रहा था की मेरा नेहा के लिए मेरा प्यार खत्म हो चूका है! मैं जानता था की वो गलत है पर दिल नहीं कह रहा था की उसे ये कहूँ! अँधेरा होने तक मैं वहीँ बैठा रहा, जब गार्ड आया तो मैं घर लौट आया| दरवाज़ा खोला तो सामने अनु जमीन पर अपने दोनों घुटनों में सर छुपाये हुए रो रही थी| दरवाजे की आहात सुनते ही उसने मुझे देखा और एकदम से कड़ी होकर मेरे पास दौड़ती हुई आई और मेरे गले लग गई| मैंने उसके सर पर हाथ फेरा और उसे चुप कराया| "I’m sorry!!!” अनु ने सुबकते हुए कहा| "Its okay!” मैंने कहा और फिर अनु से कुछ खाने को मँगाने को कहा|

हम दोनों टेबल पर खाना खाने बैठ गए पर अनु गुम-शूम थी और कुछ बोल नहीं रही थी, ना ही वो खाने को हाथ लगा रही थी| मैंने खुद उसे अपने से खाना खिलाना शुरू किया तब जा कर उसने खाना शुरू किया| दोनों ने चुप-चाप खाना खाया और सोने चले गए| मैं पीठ के बल सीधा लेटा था की तभी अनु ने करवट ली और अपना सर मेरे सीने पर रख दिया, कुछ देर हिम्मत बटोरने के बाद बोली; "I… think…. I can’t… conceive!” ये सुनते ही मैं चौंक कर बैठ गया और अनु को भी बिठा दिया| “What do you mean you can’t conceive? किसने बोला? कौन से डॉक्टर को दिखाया?" मैंने सवालों की बौछार कर दी! "इतने महीने हो गए....और मैं अभी तक conceive नहीं कर पाई हूँ! हर हफ्ते मैं टेस्ट (प्रेगनेंसी टेस्ट) करती हूँ...पर....! शायद मेरी उम्र की वजह से....?!" अनु ने हताश होते हुए कहा| अब मुझे सब समझ आगया की आज अनु क्यों मुझ पर बरस पड़ी थी! "Hey.... आप पागल हो क्या? हमें बस 3 महीने हुए हैं और इन तीन महीनों में हमने कितनी बार सेक्स किया? It takes time.... थोड़ा सब्र करो! (कुछ सोचते हुए) Actually इसका दोषी मैं हूँ...मैं आपको ज्यादा समय नहीं दे पाता और आप इसे अपनी उम्र से जोड़ रहे हो? पागल... बुद्धू ....डफर.... आपकी संतुष्टि के लिए कल डॉक्टर के चलते हैं okay? And I'm sure कुछ नहीं निकलेगा!" मैंने कहा और अनु को अपने गले लगा लिया| माँ न बन पाने के डर के कारन अनु हार मानने लगी थी और उसकी ममता नेहा को चाहती थी| वो मन ही मन नेहा को अपना आखरी विकल्प मान चुकी थी और उसे खोने से डरती थी| पूरी रात मैंने अनु को अपने सीने से चिपकाए रखा और उस के सर पर हाथ फेरता रहा ताकि वो चैन से सो जाए| सुबह उठते ही मैं फटाफट तैयार हुआ और कॉफ़ी ले कर अनु को उठाया| मुझे तैयार देख अनु को होश आया की हमें डॉक्टर के जाना है| वो फटाफट तैयार हुई और हम डॉक्टर के आये, कुछ टेस्ट्स वगैरह हुए और रिपोर्ट हमें कल रिपोर्ट के साथ बुलाया| वो पूरा दिन अनु डरी-डरी रही और मैं उसके साथ बैठा रहा, ऑफिस की छुट्टी की और फ़ोन भी बंद कर दिया| अगले दिन जब हम दोनों रिपोर्ट ले कर डॉक्टर के पास पहुंचे तो उसने कहा की घबराने वाली कोई बात ही नहीं है| दोनों के लिए कुछ दवाइयाँ लिखी और हमें एक साथ ज्यादा से ज्यादा समय व्यतीत करने को कहा| अनु अच्छे से जान गई थी की काम को ले कर मैं कितना passionate हूँ इसलिए हमने कुछ नियम-कानून बनाये| मैं किसी भी हाल में शाम 6 बजे के बाद कोई भी बिज़नेस से जुड़ा हुआ काम नहीं करूँगा| 6 बजे के बाद मेरा पूरा समय सिर्फ और सिर्फ अनु का होगा और मैंने भी एक शर्त रखी की सुबह हम दोनों जल्दी उठेंगे और योग और exercise करेंगे, बाहर से खाना-पीना बंद और एक healthy lifestyle जियेंगे| ऑफिस में एक की जगह हमें दो लोग hire करने पड़े, नए लोगों को मैंने अपने साथ U.S. वाले प्रोजेक्ट पर लगा लिया| अनु को मैंने बाकी के काम दे दिए जो उसके लिए manage करना आसान था| बिज़नेस अब धीरे-धीरे grow कर रहा था और हम दोनों इसी से खुश थे|


इधर रितिका अंदर ही अंदर हमारे घर की बुनियाद में सेंध लगा चुकी थी| सारे घर के लोगों के दिलों में रितिका ने अपनी जगह फिर से बना ली थी, सब की बातें वो सर झुका कर मानने लगी थी और नेहा तो पहले से ही सब का प्यार पा रही थी| रितिका के मन में मेरे लिए जो गुस्सा था वो अब धधक कर आग का रूप ले चूका था| उसका बदला, उसकी नफरत अब सारी हदें पार कर चूके थे! बाहर-बाहर से तो वो ऐसे दिखाती थी की वो बहुत खुश है पर अंदर ही अंदर कुढ़ती जा रही थी| मुझसे बदला लेने के लिए उसे सब से पहले अनु को ठिकाने लगाना था, ताकि मैं उसे खोने के बाद टूट जाऊँ और तिल- तिल कर तड़पूँ और फिर वो अपने हाथों से मेरा खून करे! पर कुछ भी करने के लिए उसे चाहिए था पैसा जो उसके पास था नहीं, पर मंत्री की जायदाद तो उसकी थी! रितिका ने चोरी छुपे उस इंस्पेक्टर को कॉल किया और उससे उसने वकील का नंबर लिया| "वकील साहब मैं रितिका बोल रही हूँ!" रितिका का नाम सुनते ही वकील को याद आ गया| "वकील साहब उस दिन आप घर आये थे ना? और आपने कहा था की मंत्री यानी मेरे ससुर जी की जायदाद की एकलौती वारिस मैं हूँ?! तो आप मुझे बता सकते हैं की मैं उसे कैसे claim करूँ?" ये सुनते ही वकील खुश हो गया और उसने रितिका को कानूनी दांव-पेंच समझाना शुरू कर दिया जो उसके पल्ले नहीं पड़ा| "देखिये वकील साहब, मुझे अपनी बेटी के भविष्य की चिंता है| आपके ये दांव-पेच मेरी समझ के परे हैं, मुझे आप बस इतना बताइये की क्या आप मुझे उस जायदाद का वारिस बना सकते हैं?" रितिका ने नेहा के नाम से झूठ बोला, उसे नेहा के भविष्य की रत्ती भर चिंता नहीं थी उसे तो केवल मुझसे बदला लेना था! "आप उस जायदाद की जायज वारिस हैं और मैं आपको आपका हक़ दिलवा सकता हूँ!" वकील बोला| इससे पहले वो अपनी फीस की बात करता रितिका ने उसे पहले ही बता दिया; "देखिये वकील साहब, मेरे पास आपको देने के लिए पैसे नहीं हैं! मेरे घरवाले इस केस को ले कर मुझे रोक रहे हैं पर मैं चाहती हूँ की आप मेरी तरफ से केस फाइल कर दीजिये| जैसे ही मुझे जायदाद मिलेगी मैं उसका 10% आपको फीस के रूप में दे दूँगी| आप को यदि मुझ पर भरोसा ना हो तो आप कागज बना कर ले आइये मैं साइन कर देती हूँ!" रितिका ने अपनी चाल चली, वैसे तो वकील बिना फीस के कोई काम नहीं करता पर रितिका के 10% के लालच में पड़ कर वो मान गया| ये सारा काम चोरी-छुपे होना था इसलिए रितिका ये सोच कर बहुत खुश थी की क्या होगा जब वो केस जीत जाएगी! सारा का सारा परिवार उसके कदमों में गिर पड़ेगा यही सोच कर रितिका के मन का कमीनापन बाहर आ गया|

कुछ दिन बाद वकील अनु से मिलने आया और कागज-पत्तर ले कर आया जो उसे साइन करने थे| रितिका छुपते-छुपाते हुए उससे मिलने कुछ दूरी पर गाँव के स्कूल पहुँची, आज चूँकि छुट्टी थी और पूरा स्कूल खाली था तो वो आराम से सारे कागज पढ़ सकती थी| उसे ये जान कर हैरानी हुई की मंत्री की जायदाद पूरे 50 करोड़ की थी और वकील को ये जान कर ख़ुशी हुई की उसे इस केस के 50 लाख मिलने वाले हैं| "देखिये रितिका जी, केस तो मैं कल फाइल कर दूँगा और आपको चिंता करने की भी जर्रूरत नहीं क्योंकि मेरी बहुत अच्छी जान पहचान है जिससे आपको ज्यादा तारीखें नहीं मिलेंगी, बस उसका खर्चा थोड़ा-बहुत होगा! मंत्री साहब की पार्टी ने claim किया था जायदाद पर मैंने फिलहाल उस पर स्टे ले रखा है| आपको एक दिन कोर्ट में पेश होना होगा, पर आपको कुछ कहना नहीं है|" वकील की बात सुन कर रितिका आश्वस्त हो गई और ख़ुशी-ख़ुशी घर लौट आई| रात को सोते समय नेहा ने सोचना शुरू किया, उस ने हर एक बात, हर एक शब्द सोच लिया था जो उसे कहना है| अब बात आई टाइमिंग की, तो वो भी उस ने सोच लिया की कौनसा समय सबसे बेस्ट होगा जिससे पूरे परिवार को एक साथ धक्का लगे! जून का महीना आते ही रितिका की जलन उस पर हावी होना शुरू हो चुकी थी, उसे जल्द से जल्द अपना बदला चाहिए था| उसने छुप के वकील को फ़ोन किया; "वकील साहब और कितना टाइम लगेगा?" रितिका ने पुछा|

"रितिका जी, अभी तो बस दो ही महीने हुए हैं!" वकील मुस्कुराता हुआ बोला|

"वो सब मुझे नहीं पता, मुझे ये प्रॉपर्टी किसी भी हालत में 10 अगस्त से पहले अपने नाम पर चाहिए!" रितिका ने अपना फरमान सुनाते हुए कहा|

"इतनी जल्दी? देखिये कोर्ट-कचेहरी में थोड़ा टाइम तो लगता है!" वकील हैरान होते हुए बोला|

"आप कह रहे थे न की कुछ खर्चा होगा? कितना लगेगा?" रितिका ने अपनी बेसब्री दिखाते हुए कहा|

"जी...वो...यही कुछ 5 लाख!" वकील हकलाते हुए बोला|

"मैं 10 लाख दूँगी! पर काम मेरे मुताबिक करवाओ!" रितिका की बात सुन वकील हैरान हो गया और उसने अपने जुगाड़ लगाने शुरू कर दिए| विपक्ष के वकील को उसने लाख रुपये पकड़ाए और 5 लाख में उसने जज को सेट किया जिसने विपक्ष का क्लेम ख़ारिज कर दिया| जुलाई के महीने में ही कोर्ट ने फैसला रितिका के पक्ष में दे दिया वो भी बिना रितिका के कोर्ट जाए| जैसे ही ये खबर वकील ने रितिका को दी वो फूली न समाई! प्रॉपर्टी ट्रांसफर के कुछ कागजों पर साइन करने के लिए वकील ने रितिका को स्कूल बुलाया| उन कागजों में वकील ने मंत्री की जमीन का एक टुकड़ा जिसकी कीमत करीब 20 लाख थी वो रितिका से अपनी फीस के रूप में माँगी| रितिका ने मिनट नहीं लगाया उसकी बात मानने में और सारे पेपर पढ़ कर आईं कर दिए| "29 जुलाई तक सारी प्रॉपर्टी आपके नाम हो जाएगी|" वकील ने पेन का ढक्कन बंद करते हुए मुस्कुरा कर कहा|

"थैंक यू वकील साहब! आप वो हवेली खुलवा दीजिये और उसकी साफ़-सफाई करवा दीजिये! वहां एक काँटा नाम की औरत काम करती थी उसे मेरा नाम बोल दीजियेगा वो सब काम संभाल लेगी और उसके पति को कहियेगा की 19 अगस्त को मुझे लेने यहाँ आये वो भी Mercedes ले कर!" रितिका ने कमीनी हँसी हँसते हुए कहा| वकील समझ गया की रितिका 19 को ही घर लौटेगी इसलिए उसने रितिका के कहे अनुसार साफ़-सफाई करवा दी और काँटा और उसके पति को नौकरी पर रख लिया| इधर घर लौटते ही रितिका की ख़ुशी छुपाये नहीं छुप रही थी, पर उसकी ख़ुशी को ग्रहण लगने वाला था| रात को ताऊ जी ने बताया की रितिका की दूसरी शादी के लिए एक रिश्ता आया है| ये सुनते ही रितिका को बहुत गुस्सा आया, उसका मन तो किया की वो अभी ताऊ जी का खून कर दे पर उसने खुद को काबू किया और रोनी सी सूरत बना कर बोली; "दादाजी....प्लीज...ऐसा मत कीजिये!.... मैं इस परिवार को छोड़ कर नहीं जाऊँगी! मुझे इस घर से अलग मत कीजिये! आप सब ही मेरे लिए सब कुछ हो!" रितिका रोते हुए बोली, ताई जी ने माँ बन कर उसे सम्भाला और उसे पुचकारने लगीं ताकि वो चुप हो जाए| "बेटी तेरी उम्र अभी बहुत कम है! इतनी बड़ी उम्र तो कैसे काटेगी?" ताऊ जी ने प्यार से रितिका को समझाना चाहा पर वो नहीं मानी और अपना तुरुख का इक्का फेंक दिया; "आप मेरी चिंता मत कीजिये, नेहा जो है मेरे पास? मैं उसी के सहारे जिंदगी काट लूँगी, फिर आप सब भी तो हैं!" ताऊ जी शांत हो गए और रितिका की बात फिलहाल के लिए मान गए| इधर रितिका की खुशियों पर लगा ग्रहण छट गया और उसकी वही कमीनी हँसी लौट आई| "बहुत जल्दी तेरी गर्दन मेरे हाथ में होगी!" रितिका रात को सोते समय बुदबुदाई! उसका मतलब मेरी गर्दन से था! बदले का प्लान सेट था और अब बस उसे मेरे आने का इंतजार था| वो जानती थी की मैं नेहा के जन्मदिन पर जर्रूर आऊँगा और ठीक इसी समय वो अपना वार मुझ पर करेगी|


इधर इन सब बातों से बेखबर मैं और अनु अपनी नई जिंदगी अच्छे से जी रहे थे| दिन, हफ्ते, महीने गुजरे और अगस्त आ गया, अनु ने अपनी टीम यानी अक्कू, पंडित जी और अपनी दोस्त के कान खींचने शुरू कर दिए| "अगर इस बार तुम में से किसी ने भी हमारे जाने के बाद मज़े किये और काम नहीं किया तो तुम सब की खैर नहीं! मुझे डेली अपडेट चाहिए की तुम लोगों ने कितना काम किया है? कोई भी काम अगर पेंडिंग हुआ तो तुम सबकी प्रमोशन खतरे में पद जायेगी!" अनु ने सब को चेतावनी देते हुए कहा| प्रमोशन के लालच में तीनों काम करने के लिए तैयार हो गए| इधर मेरी टीम में ज्वाइन हुए दोनों मेरी उम्र के थे और मुझे उन्हें ज्यादा कुछ नहीं कहना पड़ा क्योंकि वो काम की seriousness समझते थे| हमारा प्रोजेक्ट step by step था इसलिए मेरा उनके काम पर नजर रखना बहुत आसान था| स्टाफ को अच्छे से काम समझा कर हम अगले दिन फ्लाइट से लखनऊ पहुँचे, एक दिन मम्मी-डैडी के पास रुके और फिर गाँव पहुँचे| हमने अपने आने की तारीख किसी को नहीं बताई थी, इसलिए ये सरप्राइज पा कर सब खुश हो ने वाले थे| घर आते ही सबसे पहले मैं अपनी माँ से मिला और फिर अपनी लाड़ली को ढूंढते हुए रितिका के कमरे में जा पहुँचा जहाँ भाभी और रितिका नेहा को तैयार कर रहे थे| मुझे वहां देखते ही भाभी खुश हो गईं, नेहा ने मुझे देख अपने हाथ-पाँव मारने शुरू कर दिए| मैंने उसे फ़ौरन उठा का र अपने सीने से लगा लिया और आँखें बंद किये उस पल को जीने लगा| इतने महीनों से जल रही एक बाप के सीने की आग आज शांत हुई! “I missed you so much my lil angel!!!!” मैंने नेहा को अपने सेने से लगाए हुए कहा, आँसू की कुछ बूँदें छलक कर नेहा के कपड़ों पर गिरीं तो भाभी ने मेरे कंधे पर हाथ रख मुझे नहीं रोने को कहा| उधर रितिका के चेहरे पर आज अलग ही मुस्कान थी, ऐसा लगा मानो उसे इस बाप-बेटी के मिलन से बहुत ख़ुशी हुई हो! पर मैं नहीं जानता था की ये वो मुस्कान थी जो किसी शिकारी के चेहरे पर तब आती है जब वो अपने शिकार को जाल में फँसते हुए देखता है| इधर पीछे से अनु भी भागती हुई ऊपर आ गई| पहले उसने भाभी को गले लगाया और फिर आस भरी नजरों से मुझे देखने लगी ताकि मैं उसे नेहा को दे दूँ| मैंने नेहा को उसे दिया तो उसने फ़ौरन उसे अपने सीने से लगा लिया और उसके माथे पर पप्पियों की झड़ी लगा दी| रितिका को ये दृश्य जरा भी नहीं भाया और वो नीचे चली गई|

ताऊ जी, पिता जी, चन्दर भैया और ताई जी बाहर गए थे इसलिए उनके आने तक हम सब नीचे ही बैठे रहे| माँ ने मुझे अपने पास बिठा लिया और मुझसे बहुत से सवाल पूछती रहीं, इधर अनु नेहा को अपनी छाती से लगाए हुए उसे दुलार करने लगी| उसने नेहा से बातें करना शुरू कर दिया था और उसकी ख़ुशी से निकली आवाजों का अपने मन-मुताबिक अर्थ निकालना शुरू कर दिया था| मैं ये देख कर बहुत खुश था और उन बातों में शामिल होना चाहता था पर मेरी माँ को भी उनके बेटे का प्यार चाहिए था| इसलिए मैं माँ की गोद में सर रख कर लेट गया और माँ ने मेरे बालों को सहलाते हुए बातें शुरू कर दी| "बहु (भाभी) आज मानु की पसंद का खाना बनाना|" माँ ने कहा तो भाभी रसोई जाने को उठीं, अनु ने एक दम से उनका हाथ पकड़ कर उन्हें रोक लिया| "आप बैठो यहाँ, आज से खाना मैं बनाऊँगी!" ये कहते हुए अनु उठी| "अरे तू अभी आई है, थोड़ा आराम कर ले कल से तू रसोई संभाल लिओ!" भाभी बोलीं पर मैं उठ कर बैठा और अपनी पत्नी की तरफदारी करते हुए बोला; "आज खाना मैं और अनु बनाएंगे और माँ आप चलो मैं आपको चॉपर दिखाता हूँ!" ये कहते हुए हम सारे रसोई में पहुँच गए| मैंने भाभी और माँ को चॉपर दिखाया और वो कैसे काम करता है ये बताया तो वो ये देख कर बहुत खुश हुए| मैं और अनु हाथ-मुँह धोकर खाना बनाने घुस गए| नेहा के लिए मैं एक baby carry bag लाया था जिसे मैंने पहन लिया और नेहा को उसमें आराम से बिठा दिया| अब मैं एक कंगारू जैसा लग रहा था जिसके baby pouch में बच्चा बैठा हो! मैं और अनु खाना बना रहे थे और नेहा के साथ खेल भी रहे थे| गैस के आगे खड़े होने का काम अनु करती, और चोप्पिंग का काम मैं करता| सब्जियों को देख नेहा उन्हें पकड़ने की कोशिश करती और मैं जानबूझ कर दूर हो जाता ताकि वो उन्हें पकड़ न पाए| हमें इस तरह से खाना बनाते हुए देख माँ और भाभी हँस रही थीं| खाना बनने के 15 मिनट बाद ही सब आ गए और हम दोनों को देख कर बहुत खुश हुए| "बेटा तूने बताया क्यों नहीं की तुम दोनों आ रहे हो? हम लेने आ आ जाते!" ताऊ जी बोले तो अनु मेरी तरफ देखने लगी; "ताऊ जी आप सब को सरप्राइज देना चाहते थे!" मैंने कहा और फिर हमने सबके पाँव छुए और आशीर्वाद लिया| मेरी गोद में नेहा को देखते ही पिताजी बोले; "आते ही अपनी लाड़ली के साथ खलने लग गया?!"

"पिताजी मिली प्याली-प्याली बेटी को मैंने बहुत याद किया!" मैंने तुतलाते हुए नेहा की तरफ देखते हुए बोला, नेहा ये सुनते ही हँसने लगी| बीते कुछ महीनों में सबसे ज्यादा वीडियो कॉल अनु ने नेहा को देखने के लिए की थी, मैं चूँकि बिजी होता था तो 15 दिन में कहीं मुझे मौका मिल पाता था वीडियो कॉल में नेहा को देखने का| "सच्ची पिताजी हम दोनों ने नेहा को बहुत याद किया, मैं तो फिर भी काम में लगा रहता था पर अनु तो हर दूसरे-तीसरे दिन भाभी को वीडियो कॉल किया करती थी|" मैंने कहा तो माँ बोली; "अब बहु भी खुशखबरी सुना दे तो उसका भी अकेलापन दूर हो जाए!" माँ की बात सुन हम दोनों शर्म से लाल हो गए थे| भाभी ने जैसे तैसे बात संभाली और बोलीं; "पिताजी खाना तैयार है!" सब खाने के लिए बैठ गए और जब मैंने और अनु ने सब को खाना परोसा तो सब हैरान हो गए| "पिताजी खाना आज दोनों मियाँ-बीवी ने मिल कर बनाया है!" भाभी हँसते हुए बोली| ये सुनकर सब खुश हुए और सब ने बड़े चाव से खाना खाया| खाने के बाद हमारे लाये हुए तौह्फे हमने सब को दिए| सब के लिए कुछ न कुछ था, यहाँ तक की हम दोनों रितिका के लिए भी एक साडी लाये थे जिसे उसने सब के सामने नकली हँसी हँसते हुए ले लिया| पर सबसे ज्यादा तौह्फे नेहा के लिए थे, 10 ड्रेसेस के सेट जिसमें से एक ख़ास कर उसके जन्मदिन के लिए था| उसके खलेने के लिए खिलोने, फीडिंग बोतल, छोटी-छोटी bangles और भी बहुत सी चीजें| मैं नेहा को गोद में ले कर उसे उसके गिफ्ट्स दिखा रहा था और नेहा बस हँसती जा रही थी!

रात को सोने के समय मैं नेहा को अपने साथ ऊपर कमरे में ले आया| रसोई के सारे काम निपटा कर अनु भी ऊपर आ गई| मैं नेहा को गोद में ले कर उससे बात करने में लगा हुआ था, अनु कुछ देर चौखट पर खड़ी बाप-बेटी का प्यार देखती रही और फिर बोली; "I'm really sorry! मैंने आपको बहुत गलत समझा! मुझे लगा था की ऑफिस के काम में आप नेहा को भूल गए!" अनु ने सर झुकाये हुए कहा| "बेबी (अनु) भूल नहीं गया था...बस अपने प्यार को दबा कर रख रहा था| घरवायलों से तुमने वादा किया था न की तुम मेरा ख्याल रखोगी? फिर तुम्हें गलत कैसे साबित होने देता?!" मैंने अनु को उस दिन की बात याद दिलाई जब उसने अमेरिका जाते समय माँ से वादा किया था| "आपको अपनी feelings इस तरह दबानी नहीं चाहिए! It could hurt you mentally!" अनु चिंता जताते हुए बोली|

"बेबी आप जो थे मेरे पास मेरा ख्याल रखने के लिए!" मैंने मुस्कुराते हुए कहा, बात को खत्म करने के लिए अनु को अपने पास बुलाया| अनु दरवाजा बंद कर के आई और हम तीनों आज महीनों बाद एक साथ गले लगे| फिर अनु ने नेहा को मेरी गोद से ले लिया और उसे चूमते हुए लेट गई| वो पूरी रात हमने जागते हुए नेहा को प्यार करके गुजारी, इतने महीनों का सारा प्यार नेहा पर उड़ेल दिया गया| नेहा को सोता हुआ देख कर हम दोनों ठंडी आहें भर रहे थे!


इस तरह से दिन कब निकले और नेहा का जन्मदिन कब आया पता ही नहीं चला| 18 अगस्त की सुबह को सब तय हुआ की कल हम केक काटेंगे और नेहा का जन्मदिन धूम-धाम से मनाएंगे| ताऊ जी ने चन्दर भैया और मेरी ड्यूटी लगाई की हम दोनों सारे इंतजाम करें और इधर उन्होंने सारे गाँव में दावत का ऐलान कर दिया| मुझे और चन्दर भैया को कुछ करना ही नहीं पड़ा क्योंकि संकेत को एक कॉल किया और उसने सारा इंतजाम करवा दिया| टेंट वाला आया और पंडाल बाँधने लगा, हलवाई बर्तन वगेरा सब घर छोड़ गए और कल शाम को आने की बात कह गए| संकेत ने बड़े-बड़े स्पीकर लगवा दिए और गानों की playlist मेरे पास थी! केक का आर्डर देने मैं, संकेत और चन्दर भैया निकले और शाम तक सब तैयारियाँ हो गईं थी| रात को खाने के बाद मैं, अनु और नेहा अपने कमरे थे और बेसब्री से 12 बजने का इंतजार कर रहे थे| हम दोनों ही नेहा को जगाये हुए थे और उसके साथ खेल रहे थे, कभी दोनों उससे बात करने लगते तो कभी उसे गुद-गुदी करते| टिक...टिक...टिक.. कर घडी ने आखिर 12 बजा ही दिए| 12 बजते ही अनु ने नेहा को गोद में ले लिया और बोली; मेरी राजकुमारी!! आपको जन्मदिन बहुत-बहुत मुबारक हो! आप को मेरी भी उम्र लगे, जल्दी-जल्दी बड़े हो जाओ और बोलना शुरू करो! मुझे आपके मुँह से पहले पापा सुनना है और फिर मेरे लिए मम्मी!" अनु ने नेहा के दोनों गाल चूमे और फिर उसे मेरी गोद में दिया; "मेला बेटा बड़ा हो गया!....बड़ा हो गया!.....awww ले...ले... 1 साल का होगया मेरा बच्चा! हैप्पी बर्थडे मेले बच्चे...आपको दुनियाभर की खुशियाँ मिले....और आप जल्दी-जल्दी बड़े हो जाओ! I love you my lil angel! God Bless You!!!" मैंने नेहा को चूमते हुए कहा और वो भी मेरे इस तरह तुतला कर बोलने से हँस पड़ी| उस रात को नेहा के सोने तक अनु और मैं उसके साथ खेलते रहे और अनगिनत photo खींचते रहे, कभी उसे चूमते हुए तो कभी उसके सामने मुँह बनाते हुए!


फिर हुई सुबह एक ऐसी सुबह जो सब के लिए एक अलग रूप ले कर आई थी| जहाँ एक तरफ मैं और अनु खुश थे क्योंकि आज हमारी बेटी नेहा का जन्मदिन था, ताऊ जी-ताई जी खुश थे की उनके घर में आई खुशियाँ आज दो गुनी होने जा रही है, माँ-पिताजी खुश थे की उनका बहु-बेटा उनके पास हैं और बहुत खुश हैं, चन्दर भैया- भाभी खुश थे की उनकी जिंदगी में एक नया मेहमान आने वाला है और आज उनकी पोती का जन्मदिन है तो दूसरी तरफ जलन, बदले और सब को दुःख पहुँचाने वाली रितिका इसलिए खुश थी की आज वो इस घर रुपी घोंसले के चीथड़े-चीथड़े करने वाली है! वो घरोंदा जो उसे आज तक सर छुपाने की जगह दिए हुआ था आज उसी घरोंदे को वो अपने बदले की आग से जलाने वाली थी|


मैं और अनु नेहा को साथ लिए हुए नीचे आये और सब का आशीर्वाद लिया और नेहा को भी सबका आशीर्वाद दिलवाया| नहा-धो कर हम तीनों पहले मंदिर गए और वहाँ नेहा के लिए प्रार्थना की| हमने भगवान से अपने लिए कुछ नहीं माँगा, ना ही ये माँगा की वो नेहा को हमारी गोद में डाल दे क्योंकि हम दोनों ही इस बात से सम्झौता कर चुके थे की ये कभी नहीं होगा, आज तो हमने उसके लिए खुशियाँ माँगी...ढेर सारी खुशियाँ ...हमारे हिस्से की भी खुशियाँ नेहा को देने को कहा| प्रार्थना कर हम तीनों ख़ुशी-ख़ुशी घर लौटे और रास्ते में नेहा के लिए रखी पार्टी की बात कर रहे थे| सारे लोह आंगन में बैठे थे की रितिका ऊपर से उत्तरी और उसके हाथों में कपड़ों से भरा एक बैग था| उसे देख सब के सब खामोश हो गए, "ये बैग?" ताई जी ने पुछा|

"मैं अपने ससुर जी की जायदाद का केस जीत गई हूँ!" रितिका ने मुस्कुराते हुए कहा और उसकी ये मुस्कराहट देख मेरा दिल धक्क़ सा रह गया और मैं समझ गया की आगे क्या होने वाला है| "आप सब की चोरी मैंने केस फाइल किया था और कुछ दिन पहले ही सारी जमीन-जायदाद मेरे नाम हो गई!" रितिका ने पीछे मुड़ने का इशारा किया तो हम सब ने पीछे पलट कर देखा, वहाँ वही वकील जो उस दिन आया था हाथ में एक फाइल ले कर खड़ा था| "वकील साहब जरा सब को कागज तो दिखाइए!" रितिका ने वकील को फाइल की तरफ इशारा करते हुए कहा और वो भी किसी कठपुतली की तरह नाचते हुए फाइल ताऊ जी की तरफ बढ़ा दी और वपस हाथ बाँधे खड़ा हो गया| ताऊ जी ने वो फाइल मेरी तरफ बढ़ा दी, चूँकि मेरी गोद में नेहा थी तो मैंने अनु से वो फाइल देखने को कहा| सबसे ऊपर उसमें कोर्ट का आर्डर था जिसमें लिखा था की रितिका मंत्री जी की बहु उनकी सारी जायदाद की कानूनी मालिक है| अनु ने ये पढ़ते ही ताऊ जी की तरफ देखते हुए हाँ में गर्दन हिला दी| "हरामजादी! तूने....तेरी हिम्मत कैसे हुई?" ताऊ जी का गुस्सा आसमान पर चढ़ गया था और वो लघभग रितिका को मारने को आगे बढे की पिताजी ने उन्हें रोक लिया| "तुझे पता है न उस दौलत की वजह से ही मंत्री का खून हुआ? और तू उसी के लालच में पड़ गई?" पिताजी ने कहा|

"आप सब को तो मेरी चिंता है नहीं, तो मैंने अगर अपने बारे में सोचा तो क्या गुनाह किया? मेरी भी बेटी है, कल को उसकी पढ़ाई का खर्चा होगा, शादी-बियाह का खर्चा होगा वो कौन करेगा? अब आपके पास उतनी जमीन-जायदाद तो रही नहीं जितनी हुआ करती थी, सब तो आपने इस....मनु की शादी में लगा दी!" रितिका बोली और उसकी बात सुन सब का पारा चढ़ गया|

"चुप कर जा कुतिया!" भाभी बोलीं|

"किस हक़ से मुझे चुप होने को कह रही हो? मैं तुम्हारी बेटी थोड़े ही हूँ? तुमने तो मुझे नौकरानी की तरह पाल-पोस कर बड़ा किया अब मेरी बेटी को भी नौकरानी बनाना चाहती हो?" रितिका भाभी पर चिल्लाते हुए बोली ये सुनते ही चन्दर भैया ने रितिका की सुताई करने को लट्ठ उठाया; "मुझे छूने की कोशिश भी मत करना, तुम्हें सिर्फ नाम से पापा कहती हूँ! बेटी का प्यार तो तुमने मुझे कभी दिया ही नहीं! मुझे अगर छुआ भी ना तो पुलिस केस कर दूँगी!" रितिका ने उन्हें चेतावनी देते हुए कहा पर भैया का गुस्सा उसकी धमकी सुन और बढ़ गया| मैंने और भाभी ने उन्हें शांत करने के लिए उन्हें रोक लिया| भाभी उनके सामने खड़ी हो गईं और मैंने पीछे से अपने एक हाथ को उनकी छाती से थाम लिया|

"तो इतने दिन तू बस ड्राम कर रही थी!" ताई जी बोलीं|

"हाँ!!! आज नेहा का जन्मदिन है और सब के सब यहाँ हैं जिन्होंने कभी न कभी मेरा दिल दुखाया है और तुम सब लोगों से बदला लेने का यही सही समय था| जब से बड़ी हुई हमेशा मैंने सब के ताने सुने, कोई पढ़ने नहीं देता था सब मुझसे ही काम करवाते थे! थोड़ी बड़ी हुई तो मुझे लगा ये (मेरी तरफ ऊँगली करते हुए) शायद मुझे समझेगा पर इसके अपने नियम-कानून थे! Not to mention you’re the one who cursed me! I haven’t forgotten that… हमेशा इस घर के नियम-कानून से बाँधे रखा...पर अब नहीं! अब मेरे पास पैसा है और मैं अपनी जिंदगी वैसे ही जीऊँगी जैसे मैं चाहती हूँ!” रितिका ने अपने इरादे सब के सामने जाहिर किये पर ये तो बस एक झलक भर थी|

"तुझे क्या लगता है की अपने बचपन का रोना रो कर तू सब को चुप करा सकती है? भले ही किसी ने तुझे बचपन से प्यार नहीं दिया पर जिसने किया उसे तूने क्या दिया याद है ना? तुझे सिर्फ मुझसे नफरत है तो बाकियों पर ये अत्याचार क्यों कर रही है? इतनी मुश्किल से इस घर में खुशियाँ आई हैं और तू उनमें आग लगाने पर तुली है!" मैंने गुस्से में कहा| "तेरी माँ के मरने के बाद मैंने ही तुझे संभाला था, तुझे तो याद भी नहीं होगा! बेटी तुझे किस बात की कमी है इस घर में?" माँ ने कहा|

"याद है....आपके सुपुत्र ने ही बताया था और इसीलिए आपसे मुझे उतनी शिकायत नहीं जितनी इन सब से है! मेरा दम घुटता है यहाँ!" रितिका अकड़ कर बोली|

"तो निकल जा यहाँ से! और आज के बाद दुबारा कभी अपनी शक्ल मत दिखाइओ!" चन्दर भैया ने लट्ठ जमीन पर फेंकते हुए कहा| "मेरे ही खून में कमी थी....या फिर ये तेरी असली माँ का गंदा खून है जो अपना रंग दिखा रहा है!" भैया ने कहा और रितिका से मुँह मोड लिया! रितिका चल कर मेरे पास आई जबरदस्ती नेहा को खींचने लगी| नेहा ने मेरी कमीज अपने दोनों हाथों से पकड़ राखी थी, रितिका ने अपने हाथों से उसकी पकड़ छुड़ाई| इधर नेहा को खुद से दूर जाते हुए देख मेरी आँखों से आँसू बहने लगे, अनु का भी यही हाल था और वो लगभग रितिका से मूक जुबान में मिन्नत करने लगी| पर रितिका पर इसका रत्तीभर फर्क नहीं पड़ा, नेहा ने रोना शुरू कर दिया था और रितिका उसी को डाँटते हुए घर से निकल गई| बाहर उसकी शानदार काले रंग की Mercedes खड़ी थी जिसमें बैठ वो अपने हवेली चली गई और इधर सारा घर भिखर गया|


पिताजी और ताऊ जी आंगन में पड़ी चारपाई पर सर झुका कर बैठ गए, माँ और ताई जी रसोई की दहलीज पर बैठ गए, भाभी और चन्दर बरामदे में पड़ी चारपाई पर बैठ गए और मैं और अनु स्तब्ध खड़े रहे! जो कुछ अभी हुआ उससे हम दोनों के सारे सपने चूर-चूर हो गए थे| माँ ने हम दोनों को 2-3 आवाजें मारी पर हमारे कानों में जैसे वो आवाज ही नहीं गई| आखिर भाभी ने उठ कर हमारे कन्धों पर हाथ रखा तब जा कर हमें होश आया| अनु ने मेरी तरफ देखा तो मेरी आँखें आंसुओं की धारा बहा रही थी| वो कस कर मुझसे लिपट गई और जोर-जोर से रोने लगी! भाभी ने उसके कंधे पर हाथ रख कर उसे शांत करवाना चाहा पर वो चुप नहीं हुई| वो रो रही थी पर मैं तो रो भी नहीं पा रहा था, दिल में आग जो लगी हुई थी! आज तीसरी बार मैंने नेहा को खोया था और ये दर्द दिल में आग बन कर सुलग उठा था| मैंने अनु को खुद से अलग किया और तेजी से दरवाजे की तरफ बढ़ा तो अनु ने एकदम से मेरा हाथ पकड़ कर मुझे रोक लिया| वो जानती थी की मैं रितिका की जान ले कर रहूँगा; "प्लीज....अभी आपकी जर्रूरत… यहाँ इस घर को है!" अनु ने रोते हुए कहा और कस कर मेरा हाथ थामे रही| उसकी बात सही थी, पहले मुझे अपने परिवार को संभालना था उसके बाद मैं रितिका की हेकड़ी ठिकाने लगाने वाला था| मैंने हाँ में सर हिला कर उसकी बात मान ली और वापस आंगन में आ गया|

मैं ताऊ जी के सामनेघुटने मोड़ कर बैठ गया और उनसे पूछने लगा; "ताऊ जी...आप ने मेरी शादी में कितने पैसे खर्चा किये?....बोलिये?"

"मैंने जो भी किया वो सब से पूछ कर अपनी ख़ुशी से किया! ये हमारे घर की आखरी शादी थी....अगली शादी देख सकूँ इतनी मेरी उम्र नहीं! और तू भी उसकी बातों पर ध्यान मत दे!" ताऊ जी बोले| फिर उन्होंने चन्दर भय से कहा की वो सब को मना कर दें आज की पार्टी के लिए! इतना कह कर ताऊ जी उठ कर जाने लगे तो मैं उनके गले लग गया| "बेटा......!!!" वो बस इतना कह पाए और फिर अपनी आँखों में आँसू लिए अपने कमरे में चले गए| पिताजी ने मुझे अपने पास बैठने को कहा, उधर अनु और भाभी माँ-ताई जी के पास बैठ गईं| "बेटा.....हम सब ने ये सोचा भी नहीं था.... इस परिवार को फिर से बिखरने मत दिओ!" पिताजी रोते हुए बोले| मैंने उनके आँसू पोछे और उनसे घर के असली हालात जाने| रितिका की शादी में मेरी शादी से भी दुगना खर्च हुआ था और इसके चलते घर के हालात डगमगा गए थे| ताऊ जी और पिताजी ने जैसे-तैसे हालात संभाले ही थे की रितिका के साथ वो काण्ड हुआ, फिर चन्दर भैया का नशा मुक्ति केंद्र जाना और पोलिस की पहरेदारी, इस सब के चलते हालात खराब होने लगे| ले दे कर अब हमारे पास जमीन के दो बड़े टुकड़े बचे थे जिनसे आराम से गुजर-बसर हो रही है| ऐसा नहीं था की हालात बहुत पतले थे पर अब हालत वो नहीं थे जो 2 साल पहले हुआ करते थे| मुझे ये सब जानकार बहुत धक्का लगा था पर मैं इसे जताना नहीं चाहता था| कुछ देर बाद जब चन्दर भैया वापस आये तो मैं उन्हें ले कर ताऊजी के कमरे में गया| ताऊ जी दिवार से सर लगाए जमीन पर बैठे थे, मैं और चन्दर भैया उनके सामने बैठ गए; "ताऊ जी आप चिंता क्यों करते हैं? आपके दोनों बेटे आपके सामने बैठे हैं, हम दोनों मिल कर घर संभाल सकते हैं और देखना इस बार फिर से खुशियाँ वापस आएँगी!" मैंने ताऊ जी को उम्मीद बंधाते हुए कहा, उन्होंने मुझे और चन्दर भैया को अपने गले लगने को बुलाया| हमें अपने सीने से लगाए वो बोले; "बच्चों अब तुम दोनों का ही सहारा है! संभाल लो इस घर की कश्ती को!" ताऊ जी से मिल कर मैं और भैया वापस आये तो मैंने उन्हें भाभी का ख़ास ख्याल रखने को कहा क्योंकि वो 6 महीना प्रेग्नेंट थीं| मैं माँ और ताई जी के पास आया और उनके बीच में बैठ गया, दोनों ने अपना सर मेरे दोनों कन्धों पर रख दिया| "माँ, ताई जी आपका बेटा है ना यहाँ तो फि आपको कोई चिंता करने की कोई जर्रूरत नहीं|" मैंने कहा तो दोनों रो पड़ीं, तभी अनु आ गई और उसने माँ को संभाला और मैंने ताई जी को| कुछ देर बाद अनु को मैं वहीँ छोड़ कर भाभी के पास आया| चन्दर भैया भाभी के पास सर झुका कर बैठे थे; "क्या भैया मैंने आपको यहाँ भाभी का ख्याल रखने को भेजा और आप हो की सर झुका कर बैठे हो?! अच्छा भाभी ये बताओ, आप चाय पीओगे?" मैंने कमरे में कैद शान्ति को भंग करते हुए कहा, भाभी ने मुझे इशारे से अपने पास बुलाया और अपने पास बिठाया| "तूने दुःख छुपाना कहाँ से सीखा?" भाभी ने भीगी आँखों से पुछा| "जब लगने लगा की मेरे रोने से मेरे परिवार को कितना दुःख होता है तो ये आँसूँ अपने आप सूख गए!" मैंने कहा और सब के लिए चाय बनाने लगा| चाय बना कर मैने सब को दी, दोपहर में किसी ने कुछ नहीं खाया और मैं बस एक कमरे से दूसरे कमरे में आता-जाता रहा ताकि थोड़ी चहल-पहला रहे और घर वाले ज्यादा दुखी न हों| संकेत ने भी जब फ़ोन किया तो मैंने उसे सब बता दिया|

रात हुई और अनु ने सब के लिए खाना बनाया पर किसी का मन नहीं था, मैंने एक-एक कर सबको उनके कमरों से बाहर निकाला और एक साथ बिठा कर सब को खाना खिलाया| जैसे-तैसे सब ने चुप-चाप खाना खाया, और सब सोने चले गए| मैं और अनु साथ ही ऊपर आये और उस सूने कमरे को देख दोनों भावुक हो गए, अनु मेरे कंधे पर सर रख कर रोने लगी| पर मेरी आँखों में अब आँसू नहीं बचे थे, मुझे इस वक़्त मजबूत बनना होगा यही सोच कर मैंने अपने होंठ सी लिए| अनु को बड़ी मुश्किल से चुप करा कर लिटाया और मैं भी उसकी तरफ करवट ले कर लेट गया| अनु मेरे नजदीक आई और अपना सर मेरे सीने में छुपा कर सोने की कोशिश करने लगी| आज उसे भी वही दर्द हो रहा था जो मुझे 'मुन्ना' के चले जाने के बाद हुआ था| कुछ देर बाद अनु सो गई, पर मैं सोचता रहा....


अगले दो दिन इसी तरह गमगीन निकले, इधर मैं अरुण और सिद्धार्थ से मिला और उनसे बिज़नेस यहाँ शिफ्ट करने की बात की| जब मैंने उन्हें detail में सब बताया तो वो दोनों मान गए, पर partnership के लिए नहीं| उनका family background इतना strong नहीं था और उन्हें एक constant और stable income चाहिए थी जो उन्हें सैलरी से मिलती| वो मेरे साथ सैलरी पर काम करने को मान गए, उनके साथ मिल कर मैंने ऑफिस के लिए जगह देखनी शुरू की| मैंने बैंगलोर फ़ोन कर के पांचों को हालात बता दिए और ये भी की मैं ऑफिस लखनऊ शिफ्ट कर रहा हूँ| उनके पास बतेहरा टाइम था नै जॉब ढूँढने के लिए| मैंने ये बात घर में भी बता दी तो सब को इत्मीनान हुआ की जल्द ही मैं उनके नजदीक रहूँगा| अनु ने घर के साथ-साथ ऑफिस का काम भी संभाला| खेती का काम मैंने समझना शुरू कर दिया, ताऊ जी, पिता जी और चन्दर भैया मुझे साड़ी चीजें समझा रहे थे और खुश भी थे की मैं इतनी दिलचस्पी ले रहा हूँ| एक दिन वो मुझे व्यापारियों से मिलने ले गए तो मैंने उनके साथ रेट को ले कर भाव-ताव करना शुरू कर दिया| मैंने थोड़ी जांच-पड़ताल के बाद खेतों का soil test भी करवा दिया और उससे जो बातें सामने आईं उसे जान कर पिताजी और ताऊ जी काफी हैरान हुए| दिन बीतते गए और घर के हालत अब सुधरने लगे, पैसों के तौर पर नहीं बल्कि घर की सुख और शान्ति के तौर पर|


2 सितंबर आया और सुबह मैं सब के लिए चाय बना रहा था की अनु को उल्टियाँ शुरू हो गईं| मैं चाय छोड़ कर उसके पास जाने को हुआ तो माँ हँसती हुईं मेरे पास आईं और बोलीं; "तू बाप बनने वाला है!" ये सुन कर मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा, मैं दौड़ता हुआ ऊपर आया और अनु ने मुझे एकदम से गले लगा लिया, उसकी ख़ुशी आज सैकड़ों गुना ज्यादा थी| “Thank you baby!!!!” मैंने अनु को कस कर बाहों में जकड़ा और उसे कमर से उठा कर छत पर गोल घूमने लगा| अब तक माँ ने सब को ये खबर दे दी थी, ताऊ जी ने मुझे नीचे से आवाज मारी और हम दोनों नीचे आये| अनु ने हमेशा की तरह घूंघट किया हुआ था, ताऊजी उसके पास आये और जेब से 2000 का नोट निकाला और अनु के सर से वार कर ताई जी को देते हुए कहा की वो ये मंदिर में दान कर दें| ताऊ जी ने मुझे अनु को डॉक्टर के ले जाने को कहा ताकि अनु का एक बार चेक-अप हो जाए, मैंने चन्दर भैया से कहा की वो भाभी को भी ले लें एक साथ दोनों का चेक-अप हो जायेगा| भैया को उस समय कहीं जाना था सो मैं दोनों को ले कर डॉक्टर के पास आ गया| डॉक्टर ने पहले अनु का चेक-अप किया और उसके प्रेग्नेंट होने की बात कन्फर्म की| ये सुनते ही हम तीनों के चेहरे खिल उठे, फिर डॉक्टर ने भाभी का भी चेक-अप किया और उन्हें भी सब कुछ नार्मल ही लगा| मैंने अनु के घर फ़ोन लगाया और अनु ने मेरे घर फ़ोन लगा दिया| डैडी जी को जब ये बात पता चली तो वो बहुत खुश हुए और कल आने की बात कही" इधर अनु ने माँ से बात कर के बताया की सभी लोग मंदिर में हैं| हम तीनों मिठाई ले कर सीधा मंदिर गए जहाँ पुजारी जी ने अनु और मुझे ख़ास भगवान् का आशीर्वाद दिया| फिर हम सब घर लौट आये, हमारा घर खुशियों से भर गया था और चूँकि कल मेरा जन्मदिन था तो पूरा परिवार डबल ख़ुशी मना रहा था| ताऊ जी ने ये डबल खुशखबरी मनाने के लिए तुरंत अपने समधी जी (अनु के डैडी) को कॉल किया और कल की दावत के बारे में बता दिया| पूरे गाँव भर में ढिंढोरा पीटा जा चूका था, ये खबर उड़ती-उड़ती रितिका तक भी जा पहुँची थी| उसे अनु की प्रेगनेंसी के बारे में जान कर बहुत कोफ़्त हुई क्योंकि अब उसका तुरुख का पत्ता पिट चूका था| उसने अपनी अगली चाल की प्लानिंग शुरू कर दी थी! रितिका ने अपने पाँव राजनीति की तरफ बढ़ा दिए थे और उसने अब वहाँ कनेक्शन बनाने शुरू कर दिए थे......


रात को खाने के बाद मैं लैपटॉप पर काम कर रहा था की अनु बिस्तर से उठ कर मेरे पास आई| उसने पीछे से अपनी बाहों को मेरी गर्दन पर सामने की तरफ लॉक किया और मेरे कान में फुसफुसाई; "Happy Birthday my शोना!" मैं उठा और अनु को गोद में उठा लिया और उसे बिस्तर पर लिटा दिया, झुक कर उसके होठों को मुँह में भर चूसने लगा| अनु कसमसा रही थी, मैं रुका और उसकी आँखों में देखते हुए मुस्कुराया और बोला; "ऐसे सूखे-सूखे कौन बर्थडे wish करता है!" मैंने कहा तो अनु मुस्कुराई और बोली; "तो मेरे शोना, बोलो क्या चाहिए आपको?"

"आपने मुझे दुनिया का सबसे बेस्ट गिफ्ट दिया है!" मैंने कहा और अनु की बगल में लेट गया| अनु कसमसाती हुई मेरे से चिपक गई और सोने लगी| मैं उसके बालों में हाथ फेरता रहा और नेहा को याद करता रहा| महीना होने वाला था मुझे नेहा से दूर, आज बाप बनने की इस ख़ुशी ने मुझे जिंझोड़ कर रख दिया था| नेहा के लिए प्यार आज फिर उमड़ आया था और आँखों से एक क़तरा निकल कर तकिये पर जा गिरा| अगली सुबह मैं जल्दी उठा और सब ने बारी-बारी मुझे जन्मदिन की बधाइयाँ दी और मैंने सब का आशीर्वाद लिया| इतने में मम्मी-डैडी जी भी आ गये और मेरे हाथ में चाय की ट्रे देख हैरान हुए, दोनों ने मुझे खूब प्यार दिया और आशीर्वाद दिया! इतने में अनु ऊपर से उत्तरी और अपने मम्मी-डैडी को देख कर उसने उनका आशीर्वाद लिया| फिर उन्होंने सवाल अनु से सवाल पुछा; "तू पहले ये बता की मानु चाय की ट्रे ले कर क्यों खड़ा है?" अनु कुछ बोल पाती उससे पहले मैं ही उसके बचाव में कूद पड़ा; "डैडी जी ये तो रोज का है, मैं जल्दी उठ जाता हूँ तो सब के लिए चाय बना लेता हूँ|" मेरा जवाब सुन ताऊ जी बोले; "समधी जी, ये छोटे-मोटे काम करने के लिए हमने इसे (यानी मुझे) रखा हुआ है|" ताऊ जी की बात सुन सारे हँस पड़े! मम्मी-डैडी जी को दरअसल शाम को वापस जान था इसलिए वो जल्दी आये थे, पर ताऊ जी कहाँ मानने वाले थे उन्होंने जबरदस्ती उन्हें भी शाम के जश्न में शरीक होने के लिए रोक लिया| शाम को बड़ी जोरदार पार्टी हुई और पूरा गाँव पार्टी में हिस्सा लेने आया| रात के 8 बजे थे और अँधेरा हो गया था, सारे आदमी लोग ऊपर छत पर थे और सभी औरतें नीचे आंगन में, खाना-पीना जारी था की तभी घर के सामने रितिका की काली Mercedes आ कर रुकी| उसकी गाडी देखते ही मैं तमतमाता हुआ नीचे आया, वो गाडी से अकेली उतरी काली रंग की शिफॉन की साडी, लो कट ब्लाउज जो देख कर ही लगा रहा था की बहुत टाइट है, स्लीवलेस और वही कमीनी हँसी! अब सारे घर वाले नीचे मेरे साथ खड़े हो गए थे| वो कुछ बोलती उसके पहले ही मैं चिल्लाते हुए बोला; "Get the fuck out of here!" मेरे गुस्से से आज भी उसे डर लगता था इसलिए वो एक पल को सहम गई, फिर हिम्मत बटोरते हुए बोली; "मैं तो तुम्हें wish करने आई थी!"

"Fuck you and fuck your wishes! Now get lost or I'll call the cops!" मैंने फिर से गरजते हुए कहा| वो अकड़ कर गाडी में बैठ गई और चली गई, सब का मूड खराब ना हो इसलिए मैंने संकेत को इशारा कर के म्यूजिक चालू करने को कहा और फिर सब को ले कर अंदर आ गया| "सब चलिए ऊपर...अभी तो पार्टी शुरू हुई है!" मैंने बात पलटते हुए कहा और सब ऊपर आ गए पर सब का मूड ऑफ था!
ये मायूसी देख मेरे मुँह से ये शब्द निकले;

"ना जाने वक्त खफा है या खुदा नाराज है हमसे,
दम तोड़ देती है हर खुशी मेरे घर तक आते-आते।"


ये सुनते ही ताऊ जी उठे और संकेत से बोले; "अरे बेटा जरा मेरा वाला गाना तो लगा..." मैं हैरानी से ताऊ जी को देखने लगा और तभी गाना बजा; "दर्द-ऐ-दिल ....दर्द-ऐ-जिगर दिल में जगाया आपने|" ताऊ जी ने ताई जी की तरफ इशारा करते हुए गाना शुरू किया| उनका गाना सुन पार्टी में जान आ गई और सब खुश हो गए| इधर ताई जी शर्म के मारे लाल हो गईं अब तो पिताजी भी जोश में आ गए और उन्होंने गाने का अगला आन्तरा संभाला;

"कब कहाँ सब खो गयी
जितनी भी थी परछाईयाँ
उठ गयी यारों की महफ़िल
हो गयी तन्हाईयाँ"

अब शर्म से लाल होने की बारी माँ की थी, माँ तो ताई जी के पीछे छुप गईं| इधर डैडी जी ने संकेत से गाना बदलवाया जिसे सुन सारे जोश में आ गए, आदमियों की एक टीम बन गई और औरतों की एक टीम|

'ऐ मेरी जोहराजबीं' ओये होये होये !!! क्या महफ़िल जमी छत पर की अंताक्षरी शुरू हो गई| मर्द गा रहे थे और औरतें शर्मा रहीं थी, सब को उनकी जवानी के दिन याद आ गए| इस सब का थोड़ा बहुत श्रेय शराब को भी जाता है जिस ने समां बाँधा था और सब मर्द थोड़ा झूम उठे थे| तभी अनु उठ के जाने लगी तो मैंने गाना शुरू किया; "आज जाने की जिद्द न करो!" मेरा गाना सुन वो वहीं ठहर गई, घूंघट के नीचे उसके गाल लाल हो गए थे और भाभी उसका हाथ पकड़ उसे अपने पास बिठा लिया| रात दस बजे तक महफ़िल चली और फिर सब धीरे-धीरे जाने लगे| आखिर बस परिवार के लोग रह गए, ताऊ जी ने मुझे अपने पास बुलाया और बोले; "बेटा दुबारा उदास मत होना!" मैंने सर हाँ में हिला कर उनकी बात मानी| आज एक बार रितिका को हार मिली थी....वो आई तो थी यहाँ मेरा बर्थडे और अनु के माँ बनने की ख़ुशी को नजर लगाने पर आज उसे एक बार मुँह की खानी पड़ी थी| उसकी लाख कोशिशों के बाद भी मेरा परिवार नहीं टूटा बल्कि ताऊ जी की वजह से वो एक साथ खड़ा रहा| रात को सारे मर्द छत पर सोये थे और तब ताऊ जी ने डैडी जी से साड़ी बात कही जिसे सुन वो बहुत हैरान हुए और मुझे डाँटा भी की मैंने उन्हें क्यों कुछ नहीं बताया, पर काम के चलते मुझे होश ही नहीं रहा था| अगली सुबह को मम्मी-डैडी अयोध्या चले गए, उन्हें वहाँ मंदिर में माथा टेकना था|

डैडी जी के जाने के बाद अनु मेरे पास आई और मुझसे बोली; "आपको लगता है की वो वाक़ई में wish करने आई थी?"

"वो यहाँ सिर्फ हमारी खुशियों को नजर लगाने आई थी! अपना रुपया-पैसा और ऐशों-आराम की झलक दिखाने आई थी! इतनी मुश्किल से ये परिवार सम्भल रहा था और वो ...." मेरे मुँह से गाली निकलने वाली थी सो मैंने खुद को रोक लिया और आगे बात पूरी नहीं की| खेर दिन बीतने लगे और हमदोनों बैंगलोर वापस नहीं गए| जाते भी कैसे? यहाँ कोई नहीं था जो घर संभाल सके और भाभी का ख्याल रख सके| "बेटा काम भी जर्रूरी होता है, तुम दोनों जाओ और काम सम्भालो हम सब हैं यहाँ!" ताऊ जी बोले पर अनु ने साफ़ मना कर दिया; "ताऊ जी, भाभी की देखभाल जर्रूरी है और मेरे न होने से यहाँ घर का काम कौन देखेगा? आखिर माँ, ताई जी और भाभी को ही काम करना पड़ेगा और ये मुझे कतई गवारा नहीं|" अनु बोली|

"ताऊ जी, अनु ठीक कह रही है| मैं वैसे भी लखनऊ में घर और ऑफिस की जगह देख रहा हूँ तो हम दोनों का ही यहाँ रहना जर्रूरी है|" मैंने कहा, ताऊ जी ने मेरी पीठ थपथपाई और बोले; "मुझे मेरे बच्चों पर नाज है!"

चूँकि अनु भी प्रेग्नेंट थी और उसे ही ज्यादा काम करना पड़ता था इसलिए मैंने घर के लिए एक वाशिंग मशीन ले ली, जिससे अनु का काम काफी कम हो गया|

दिन बीतने लगे और भाभी का नौवाँ महीना शुरू हो गया और अनु ने भाभी का बहुत ख्याल रखना शुरू कर दिया| भाभी का लगाव भी अनु से बहुत ज्यादा बढ़ गया था, दोनों साथ खाते और रात में अनु भाभी के पास ही सोती| ऑफिस का सारा काम मेरे ऊपर था और मैं रात-रात भर जाग कर सारा काम करने लगा था| खेती-किसानी का काम चन्दर भय ने संभाल लिया था और अब पैसे के तौर पर हालात सुधरने लगे थे| इधर दिवाली आ गई और घर की साफ़-सफाई मैंने और चन्दर भैया ने संभाली| दिवाली से 2 दिन पहले पिताजी ने घर में हवन करवाया ताकि घर में सुख-शान्ति बनी रहे| धन तेरस पर मैं माँ और ताई जी को बजार ले कर गया और उन्होंने शॉपिंग की| दिवाली के एक दिन पहले मम्मी-डैडी जी आये और वो भी बहुत तौह्फे लाये, ख़ास कर भाभी के लिए| आखिर दिवाली वाले दिन अच्छे से पूजा हुई, चूँकि शादी के बाद अनु की ये पहली दिवाली थी तो पूजा में हमें सबसे आगे बिठाया गया| पूजा के बाद सब ने अनु को उपहार में बहुत से जेवर दिए और उसे बहुत सारा आशीर्वाद मिला| अनु की आँखें उस पल नम हो गईं थीं, माँ ने उसे अपने पास बिठा कर खूब दुलार किया| दिवाली के 5 दिन बाद सुबह भाभी को लेबर पैन शुरू हो गया, मैं और अनु उन्हें ले कर तुरंत हॉस्पिटल भागे| हम समय से पहुँच गए थे और डॉक्टर ने प्राथमिक जाँच शुरू कर दी थी| इधर सभी घरवाले पहुँच गए थे, कुछ देर बाद नर्स ने हमें खुशखबरी दी; "मुबारक हो लड़का हुआ है!" ये खुशखबरी सुनते ही सब ख़ुशी से झूम उठे| ताऊ जी ने नर्स को 2,001/- दिए और सब भाभी से मिलने आये| मैं और अनु भाभी के पास खड़े थे और उनका हाल-चाल पूछ रहे थे| भाभी का दमकता हुआ चेहरा देख सब को ख़ुशी हो रही थी| सब ने बारी-बारी बच्चे को चूमा और आशीर्वाद दिया, बस हम दोनों ही बचे थे| पहले मैंने अनु को मौका दिया तो अनु ने जैसे ही बच्चे को गोद में उठाया वो रोने लगा| ये देख वो घबरा गई और तुरंत बच्चे को मेरी गोद में दे दिया| मैंने जैसे ही उसके मस्तक को चूमा वो चुप हो गया और उसके चेहरे पर मुस्कराहट की एक किरण झलकने लगी| "लो भाई, अब जब कभी मुन्ना रोयेगा तो उसे मानु को दे देना| उसकी गोद में जाते ही बच्चे चुप जाते हैं!" भाभी बोलीं| पता नहीं क्यों पर उस बच्चे को देख मुझे नेहा की याद आ गई और मेरी आंखें छल-छला गईं| जिस प्यार को मैं अंदर दबाये हुआ था वो बाहर आ ही गया, अनु ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुझे रोने से रोकना चाहा पर अब ये आँसूँ नहीं रुकने वाले थे| मैंने बच्चे को अनु को सौंपा और सबकी नजर बचा कर बाहर आ गया, बाहर एक बेंच थी जहाँ मैं सर झुका कर बैठ गया और रोने लगा| कुछ देर बाद अनु भी सब से नजर बचा कर आई और मुझे बाहर ढूँढने लगी| मैं उसे सर झुका कर रोता हुआ दिखा तो वो मेरी बगल में बैठ गई, मेरे कंधे पर हाथ रख कर बोली; "प्लीज मत रोइये....मैं जानती हूँ आपकी जान नेहा में बस्ती है...पर हालत ऐसे हैं की....." अनु आगे बोलते-बोलते रुक गई|

"हालातों से तो मैं लड़ सकता हूँ पर उसकी नामुराद माँ का क्या करूँ? कमबख्त ....क्या बिगाड़ा था मैंने उसका? सब कुछ उसी ने किया ना? मैंने तो नहीं कहा था की मुझे प्यार कर! खुद मेरी जिंदगी में आई और सारी दुनिया उजाड़ दी! नहीं भूल सकता मैं नेहा को...she is my first born! कभी-कभी तो इतना दिल जलता है की मन करता है की उसे (रितिका को) बद्दुआ दे दूँ! पर फिर इस डर से रुक जाता हूँ की एक बार उसे बद्दुआ दी थी तो उसका पूरा घर उजड़ गया था, इस बार अगर उसे कुछ हो गया तो नेहा का क्या होगा?!" मैंने रोते हुए कहा| "जानती हूँ मैं कभी नेहा की कमी पूरी नहीं कर सकती पर शायद आपको अपनी औलाद दे कर उस दर्द को कुछ कम कर पाऊँ!" अनु मेरी आँखों में देखते हुए बोली और मेरे आँसूँ पोछे| "थैंक यू!" मैंने कहा और मुँह धो कर मैं अनु को अपने साथ अंदर ले आया| जब सब ने पुछा तो मैंने कह दिया की एक कॉल करना था| शाम तक भाभी को डिस्चार्ज मिल गया, बाकी घर वाले पहले ही घर आ चुके थे| मैं, चन्दर भैया, भाभी और अनु गाडी से घर पहुँचे, जहाँ पहले से ही पूजा की तैयारी हो चुकी थी| पूरे विधि-विधान से भाभी और मुन्ना ने घर में प्रवेश किया| शुरू के पंद्रह दिनों में जो रस्में निभाईं जाती हैं वो सब निभाईं गई| नामकरण हुआ तो मुन्ना का नाम किशोर रखा गया| जब वो रोता तो पूरे घर में उसे चुप कराने वाला कोई नहीं था| तब भाभी मुझे आवाज दे कर बुलाती और कहती; "लो सम्भालो अपने भतीजे को, जान खा जाता है मेरी| आखिर ऐसी कौन सा जादू है की तुम्हारी गोद में जाते ही चुप हो जाता है?" भाभी ने पुछा तो अनु पीछे से बोली; "भाभी जादू नहीं...ये तो प्यार है इनका!" ये सुनते ही भाभी ने अनु को छेड़ते हुए बोला; "कितना प्यार है वो तो दिख ही रहा है?!" अनु शर्म से लाल हो गई|
parbhavshaali update hai bhai
 
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Nevil singh

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दिन बड़े प्यार से गुजरे, लखनऊ में मुझे ऑफिस के लिए जगह मिल गई, घर भी ढूँढ लिया था अब बस शिफ्टिंग का काम रह गया था| इसलिए अब हमें बैंगलोर वापस आना था ताकि शिफ्टिंग शुरू की जा सके| सारा स्टाफ जॉब छोड़ चूका था और ऑफिस अब खाली था| सबसे विदा ले कर हम निकलने लगे तो भाभी ने अनु को अपने गले लगाया और कहा; "जल्दी आना...और अपना ध्यान रखना" और फिर मेरे कान पकड़ते हुए बोलीं; "पिछली बार इसे तेरी जिम्मेदारी दी थी और इस बार तुझे दे रही हूँ! अगर इसका ख्याल नहीं रखा तो तेरी पिटाई पक्की है!" ये सुन कर सब हँस पड़े| माँ और ताई जी ने भी भाभी को खुली छूट दे दी की वो चाहे तो मार-मार के मेरा भूत बना दें और इसका सारा मजा अनु ने लिया| रास्ते भर वो मुझे डराती रही की मैं अभी भाभी को फ़ोन कर देती हूँ!

खेर हम बैंगलोर पहुँचे और मैंने ऑफिस का सारा सामान पैक करवा कर फिलहाल के लिए घर शिफ्ट करवाया और ऑफिस खाली कर दिया जिससे एक महीना का रेंट बच गया| मैंने Packers and movers से बात करनी शुरू की और इधर अनु ने लिस्ट बनानी शुरू कर दी की कौन-कौन सा सामान उसे लखनऊ भेजना है और कौन सा यहीं बेच देना है| ऑफिस का काम सर पर पड़ा था जिसे मैंने अरुण-सिद्धार्थ को दे दिया पर US वाला प्रोजेक्ट मेरे सर पर तलवार की तरह लटक रहा था, अनु चाह कर भी मेरी उसमें मदद नहीं कर पा रही थी| हफ्ता बीता होगा की अनु का जन्मदिन आ गया, पूरा घर सामान से भरा पड़ा था और ऐसे में हम कोई पार्टी नहीं कर सकते थे, ऊपर से बैंगलोर आने के बाद मैंने अनु को जरा सा भी टाइम नहीं दिया था जिसकी उसने कोई शिकायत नहीं की थी| अब चूँकि उसका बर्थडे था तो मुझे आज का दिन उसके लिए स्पेशल बनाना था| रात को 12 बजे मैंने अनु को उठा कर बर्थडे wish किया और फिर हमने केक काटा| अब हम सेक्स तो कर नहीं सकते थे क्योंकि अनु का अब चौथा महीना चल रहा था, इसलिए वो रात हम बस एक दूसरे की बाहों में सिमटे हुए काटी| अगली सुबह अनु को मैंने कॉफ़ी दी और उसे बिस्तर से उठने से मना कर दिया, वो पूरा दिन मैंने घर का सारा काम किया| सुबह से ही उसे सब के फ़ोन आने लगे और सब ने उसे बहुत आशीर्वाद और प्यार दिया| दोपहर का खाना भी मैंने बनाया जो की अनु को बहुत पसंद था| "माँ के बाद अगर मुझे किसी के हाथ का खाना पसंद है तो वो है आपके हाथ का खाना|" अनु बोली| रात को मैंने अनु की स्पेशल दाल मखनी बनाई और उसके साथ गर्म-गर्म फुल्के बनाये| अनु का मन किया और उसने कबर्ड से वाइन निकाल ली, वो उसे गिलास में डाल ही रही थी की मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और प्यार से कहा; "बेबी...no drinking during pregnancy!" ये सुनते ही अनु को याद आया और उसने एकदम से अपने कान पकडे; "सॉरी! शोना!!! मैं भूल गई थी!" अनु बोली और एकदम से भावुक हो गई| मैंने उसे अपने गले लगाया और उसके सर को चूमते हुए बोला; "बेबी its okay!" ये सुनते ही वो एकदम से चुप हो गई और कुछ देर बाद मुस्कुराने लगी| उस दिन से अनु के mood swings बहुत ज्यादा common हो गए| कभी-कभी वो इतने जोश में होती की पैकिंग करने लगती और फिर थोड़ी देर बाद भावुक हो कर मुँह फुला कर बैठ जाती| जैसे ही उसका मुँह बनता वो मेरे पास आती, लैपटॉप उठा कर दूर रखती और मेरी गोद में बैठ जाती| "मेला बेबी sad है!" मैं अनु को थोड़ा प्यार से pamper करता और कुछ ही देर में वो नार्मल हो जाती और मेरी गर्दन पर Kiss करने लगती| कभी तो कभी बच्चों की तरह अपने baby bump पर हाथ रख कर देखती और आईने के सामने जा कर कहती; "मैं मोटी हो गई हूँ ना?" मैं उसकी इस बात पर इतना हँसता की मेरे पेट में दर्द होने लगता| कभी वो कहती; "प्रेगनेंसी 9 महीने की क्यों होती है?" तो कभी-कभी वो तकिये को गोद में ले कर बेबी को पकड़ने की practice करने लगती| उसका ये भोलापन देख कर मैं उसे हमेशा अपनी बाहों में भर लेता| ऐसे करते-करते जनवरी आ गया, US का एक प्रोजेक्ट पूरा हो गया था और उसकी पेमेंट आने वाली थी|


इधर रितिका ने अपने सारे मोहरे बिछा दिए थे, प्लान सेट था अब बस देरी थी तो मानु के उसमें फँसने की| राजनीति में उसके पाँव पसारने से अच्छे-बुरे लोगों से उसका वास्ता पड़ने लगा था| पार्टी ने सोचा था की वो रितिका को मंत्री की बहु के रूप में project करेगी, ऐसी बहु जिसने सब कुछ खो दिया हो और इसी को वो इस्तेमाल करना चाहते थे| लोगों की सहानुभूति जीतना रितिका ने शुरू कर दिया था, छोटी-छोटी रैलियों में रितिका जाती और अपना दुखी चेहरा दिखा कर लोगों का दिल जीत लेती| ऐसा नहीं था की उसके बदले की आग शांत हो चुकी थी, बल्कि वो तो सही मौके का इंतजार कर रही थी| गाँव में वो कुछ भी नहीं कर सकती थी क्योंकि उससे ना केवल उसे जेल जाने का खतरा था बल्कि उसकी पार्टी को भी अपने नाम पर कीचड़ उछलने का खतरा पैदा हो जाता| पर बैंगलोर में वो मानु और अनु पर हमला करवा सकती थी, उसने दो गुंडों को बैंगलोर में मुझ पर नजर रखने को भेजा| मेरा एड्रेस तो वो आहूत पहले ही अनु के जरिये सुन चुकी थी| कुछ ही दिनों में रितिका को पता चल गया की मैं कब घर आता हूँ और कब बाहर जाता हूँ|

मैंने पैकर्स एंड मूवर्स से बात पक्की कर ली थी और एक दिन पहले ही उन्होंने सारा समान लोड कर लिया था| आज मुझे उन्हें पेमेंट करने जाना था साथ अनु ने कार्टन और पैक किये थे जो मुझे ड्राइवर को सौंपने थे| मालिक ने मुझे सुबह जल्दी बुलाया ताकि ड्राइवर समय से समान ले कर निकल सके| सुबह 7 बजे मैं तैयार हो कर निकलने लगा तो अनु जिद्द करने लगी की उसे कुछ फ्रूट्स लेने हैं तो वो भी मेरे साथ नीचे चलेगी| इसलिए मैं उसे ले कर नीचे आया और कार्टन कैब में डालकर पहले उसे फ्रूट्स खरीदवाए और फिर उसे वापस बिल्डिंग के parking lot तक छोड़ मैं कैब में बैठ कर निकला" 100 मीटर जाते ही मुझे याद आया की मैं पैसों का पैकेट लेना भूल गया तो मैंने कैब वापस घर की तरफ मुड़वाई| कैब अभी गेट पर ही पहुँची ही थी की आगे का नजारा देख मेरी हालत खराब हो गई| पार्किंग लोट में दो आदमी थे, एक ने वॉचमन को चाक़ू की नोक पर डरा कर चुप करा रखा था और दूसरे ने अनु की गर्दन पर चाक़ू लगा रखा था| अनु एक पिलर के सहारे खड़ी थी और उस आदमी से मिन्नत कर रही थी की वो उसे छोड़ दे! चूँकि आज संडे का दिन था और ज्यादा तर लोग अभी बाहर नहीं आये थे इसलिए नीचे कोई नहीं था| मैंने टैक्सी वाले को कहा की वो जल्दी से पुलिस को फ़ोन लगाए और बुलाये| मैं धीरे से उतरा और दबे पाँव आगे बढ़ा, मेरा कुछ भी आवाज करना अनु के लिए खतरनाक साबित होता| दोनों आदमियों की पीठ जिस तरफ थी मैं घूम कर उसी तरफ से पहुँचा, रास्ते में मैंने एक बड़ा पत्थर का टुकड़ा उठा लिया| वॉचमन ने मुझे देख लिया और उसने एक आदमी का ध्यान अपने रोने-धोने से भटकाया, मैं एक दम से उस आदमी के पीछे खड़ा हो गया जिसने अनु की गर्दन पर चाक़ू लगा रखा था| वो अनु को गन्दी-गन्दी गालियाँ दे रहा था और किसी 'मेमसाहब' का नाम बड़बड़ा रहा था| मैंने उसके दाहिने कंधे पर अपने बाएं हाथ से थपथपाया तो वो एकदम से पलटा, मैंने अपने दाहिने हाथ में पकड़ा पट्ठा से उसके सर पर एक जोरदार हमला किया और वो चिल्लाते हुए नीचे जा गिरा| उसकी चिल्लाने की आवाज सुन दूसरा आदमी मेरी तरफ तेजी से दौड़ा, मैंने वो पत्थर खींच कर उसके मुँह पर मारा| वो पत्थर जा कर उसकी नाके बीचों-बीच लगा और वो भी चिलाते हुए नीचे गिरा| "अनु ऊपर जाओ और दरवाजा लॉक करो!" मैंने अनु से कहा पर वो घबराई हुई बस वहीँ जम कर खड़ी हो गई, मैं उसकी तरफ बढ़ा और उसे झिंझोड़ कर उसे होश में लाया और उसे घर जाने को कहा| अनु ऊपर गई और मैं नीचे पड़े आदमी की छाती पर बैठ गए और मुँह पर मुक्के मार कर उससे पूछने लगा; "बोल बहनचोद किस ने भेजा था तुझे? बोल वर्ण आज तेरी जान ले लूँगा!" मैंने उसके मुँह पर जगहसे मारने चालु कर दिए इतने में वो टैक्सी ड्राइवर भाग कर वॉचमन के पास आ गया जो अपने डंडे से दूसरे आदमी को (जिसे मैंने पत्थर फेंक कर मारा था|) पीट रहा था| शोर मच गया था और लोग इकठ्ठा होने लगे थे, इधर मेरी पिटाई और पत्थर से लगी चोट के कारन पहला आदमी बोल उठा; "री...रितिका मेमसाब!" मेरा इतना सुनना था की मेरा गुस्सा फुट पड़ा, मैंने उसे और पीटना शरू कर दिया, उसकी गर्दन अपने दोनों हाथ से पकड़ ली और दबाने लगा| कुछ पड़ोसियों ने मुझे पकड़ कर पीछे खींचा जिससे वो मरने से बच गया| इतने में पुलिस अपना साइरेन बजाती हुई आ गई और फटाफट दोनों आदमियों को हिरासत में लिया| "तुम्हें तो चोट लगी है!!" पुलिस इंस्पेक्टर बोला तब जा कर मेरा ध्यान अपनी शर्ट पर गया जहाँ चाक़ू से घाव हो गया था| जब मैंने पहले आदमी के कंधे पर थपथपाया था तो वो थोड़ा हड़बड़ा दिया था और मेरी तरफ घुमते हुए उसने मेरे सीने को अपने चाक़ू से जख्मी कर दिया था| जख्म ज्यादा खतरनाक नहीं था, बस उससे मेरी कमीज फ़ट गई थी और कुछ खून की बूँदें मेरी शर्ट पर दिख रही थी| हमारी बिल्डिंग में ही एक डॉक्टर शाब थे जिन्होंने मेरा First aid कर दिया| "तुम्हें पता है ये कौन लोग हैं?" इंस्पेक्टर ने मुझसे पुछा तो मैंने बस ना में गर्दन हिला दी और मैं वहां से निकल कर फ़ौरन अनु के पास ऊपर आ गया| "अनु दरवाजा खोलो...मैं हूँ!" मेरी आवाज सुनते ही उसने दरवाजा खोला और रोती हुई मुझसे लिपट गई| पीछे से इंस्पेक्टर भी आ गया, मैंने अनु को आराम से बिठाया और उसे पानी पीला कर शांत करवाया| उसने जैसे ही मेरी शर्ट पर खून देखा तो वो और भी डर गई, मैंने उसे विश्वास दिलाया की मुझे कुछ नहीं हुआ| उसके बाद इंस्पेक्टर ने हम से सारा वाक़्या पुछा| अनु इतनी घबराई हुई थी की उससे कुछ बोला ही नहीं जा रहा था और वो बस मेरे कंधे पर सर रख कर रोये जा रही थी| मैंने इंस्पेक्टर को अपनी साइड की सारी कहानी बता दी| पर उसे अनु की साइड की भी कहानी सुननी थी पर अनु अभी ब्यान देने की हालत में नहीं थी| इतने में वही डॉक्टर मियां-बीवी आ गए और इंस्पेक्टर को समझाते हुए बोले; "इंस्पेक्टर आप देख सकते हो she's in shock! Give her some time!" चूँकि अनु प्रेग्नेंट थी इसलिए वो उससे ज्यादा पूछताछ नहीं कर सकता था| "अनु...देखो मैं हूँ यहाँ आपके पास! You're safe now! Relax ... okay!!!!" बड़ी मुश्किल से मैंने अनु को शांत किया और उसके सर पर हाथ फेरता रहा ताकि वो दुबारा से शॉक में न चली जाए| पड़ोसियों का ताँता लग चूका था और सभी हैरान थे की भला हम दोनों ने किसी का क्या बिगाड़ा हो सकता है| कोई कहता की ये professional rivalry है तो कोई कहता की चोर चोरी करने आये थे! मैं जानबूझ कर चुप था क्योंकि मेरे मन में अब बदले का ज्वालामुखी फुट चूका था! अब इस लावा से मैं रितिका को खुद जला कर राख करने वाला था| पर मैं जोश में होश खोने वालों में से नहीं था, मुझे मेरा बदला पूरी प्लानिंग से लेना था| अभी मुझे पहले अपनी बीवी को संभालना था, करीब घंटे बाद अनु स्टेबल हुई और मैंने इंस्पेक्टर को उसका ब्यान लेने को बुलाया; "मैं फ्रूट्स ले कर ऊपर आ रही थी की दो लोगों ने मेरा रास्ता रोक लिया, और दोनों मुझ पर चिल्लाते हुए बोले की वो मेरा खून करने आये हैं! ये शोर सुन वॉचमन भैया आ गए तो उनमें से एक ने चाक़ू निकाला और वॉचमन भैया को उससे डरा कर दूर ले गया| बस एक आदमी था जो मुझे गालियाँ दे रहा था और कह रहा था की 'मेमसाहब ने कहा है की पहले तेरा बलात्कार करें और फिर तुझे तड़पा-तड़पा कर मरेंगे!'" ये बोलते-बोलते अनु फिर से रो पड़ी, मैंने उसे संभाला और उसने आगे की बात रोते हुए कही; "वो बड़े गंदे-गंदे शब्द बोल रहा था और मुझे छूने की कोशिश कर रहा था, मैं हरबार उसका हाथ झटक देती और उसे खुद को छूने नहीं देती| गुस्से में आ कर उसने चाक़ू निकाला और मेरी गर्दन पर लगा दिया और फिर से गालियाँ देने लगा| तभी मेरे पति आ गए और उन्होंने उसपर हमला कर दिया|" अनु की बात सुन कर मेरा खून खौल रहा था और आँखें गुस्से से लाल हो गईं थी| अनु ने जब मेरी आँखें देखि तो वो डर गई और फिर से रोने लगी| मैंने उसे अपने सीने से लगा लिया और उसके सर को सहलाने लगा| मैं चाहता तो इंस्पेक्टर को बता सकता था की ये सब किस की करनी है पर जो इंसान अनु और मुझ पर इस कदर हमला करवा सकता है उसे कानून को चकमा देना कितना आसान हो गए ये मैं जानता था| इंस्पेक्टर ने मेरी बहादुरी की तारीफ की और साथ ही उसने उस ड्राइवर और वॉचमन की हिम्मत को सराहया| मेरे पास पैकर्स एंड मोवेर्स वाले का फ़ोन आया तो मैंने उसे घर बुला लिया और उसे कहा की घर पर कुछ प्रॉब्लम आ गई है तो वो किसी को भेज दे और मैं उसी को पैसे दे दूँगा| मेरी गंभीर आवाज सुन वो समझ गया की कुछ हुआ है और खुद ही आ गया| मैंने उसे पैसे और वो दोनों cartons दे दिए|

इधर धीरे-धीरे कर सब चले गए और अब घर में सिर्फ मैं और अनु ही रह गए थे| मैंने अनु को सहारा दे कर उठाया और अपने कमरे में लाया, अभी तक मैंने इस घटना की खबर किसी को नहीं दी थी| अनु को बिस्तर पर बिठाया और मैं उसी के साथ बैठ गया, "बेबी भूख लगी है? कुछ बनाऊँ?" अनु ने ना में गर्दन हिलाई और अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया| "बेबी अपने लिए नहीं तो हमारे बच्चे के लिए खा लो!" मैंने अनु को हमारे होने वाले बच्चे का वास्ता दिया तो वो मान गई| मैं उसे कमरे में छोड़ जाने लगा तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया; "बाहर से मंगा लो!" मैंने खाना बाहर से मंगाया और मैं खुद अनु के साथ बैठ गया| अनु मेरे कंधे पर सर रख बैठी रही और उसकी आँख लग गई, कुछ देर बाद जब बेल्ल बजी तो वो एकदम से डर गई; "बेबी खाना आ गया!" मैंने अनु को विश्वास दिलाया की उसे डरने की कोई जर्रूरत नहीं| खाना परोस कर मैं अनु के पास आया और उसे खुद अपने हाथ से खिलाया, अनु ने भी मुझे अपने हाथ से खिलाया| खाना खा कर मैंने अनु को लिटा दिया और मैं भी उसकी बगल में ले गया| अनु ने मेरा बायाँ हाथ उठा कर अपनी छाती पर रख लिया क्योंकि उसका डर अब भी खत्म नहीं हुआ था और मेरा हाथ उसकी छाती पर होने से उसे सुरक्षित महसूस हो रहा था| कुछ देर बाद अनु सो गई और सीधा शाम को उठी, मैं अब भी उसकी बगल में लेटा था और अपने बदले की प्लानिंग कर रहा था|


मैंने रात को अरुण को फ़ोन किया और उसे बताया की परसों सारा समान पहुंचेगा तो वो सब समान शिफ्ट करवा दे| मेरी गंभीर आवाज सुन वो भी सन्न था पर मैंने उसे कुछ नहीं बताया, बस ये कहा की अनु की तबियत ठीक नहीं है इसलिए थोड़ा परेशान हूँ! रात को जब मैं खाना बनाने लगा तो अनु मेरे सामने बैठ गई और मुझे गौर से देखने लगी, मैंने माहौल को हल्का करने के लिए उससे थोड़ा मज़ाक किया; "बेबी...ऐसे क्या देख रहे हो? मुझे शर्म आ रही है!" ये कहते हुए मैं ऐसे शरमाया जैसे मुझे सच में शर्म आ रही हो| अनु एकदम से हँस दी पर अगले ही पल उसे वो डरावना मंजर याद आया और उसकी आँखें फिर नम हो गईं| मैं रोती बनानाना छोड़ कर उसके पास आया और उसे अपने सीने से लगा लिया| "बस...बस! मेला बहादुर बेबी है ना?" मैं तुतलाते हुए कहा तो अनु ने अपने आँसूँ पोछे और फिर से मुझे गौर से देखने लगी| "Baby… I know its not easy for you to forget what happened today but please for the sake of our child try to forfet this horrific incident. Your seriousness, your fear is harmful for our kid!” मैंने अनु को एक बार फिर अपने होने वाले बच्चे का वास्ता दिया| अनु ने अपनी हिम्मत बटोरी और पूरी ताक़त लगा कर मुस्कुराई और बोली; "मुझे हलवा खाना है!" मैंने उसके मस्तक को चूमा और उसके लिए बढ़िया वाला हलवा बनाया| रात में हम दोनों ने एक दूसरे को खाना खिलाया और फिर दोनों लेट गए| अनु ने रात को मेरा हाथ फिर से अपनी छाती पर रख लिया, कुछ देर बाद उसने बायीं करवट ली जो मेरी तरफ थी और मेरा हाथ फिर से अपनी कमर पर रख लिया| मैंने अनु के मस्तक को चूमा तो वो धीरे से मुस्कुराई, उसकी मुस्कराहट देख मेरे दिल को सुकून मिला| सुबह जागते हुए ही निकली, मैंने अनु के लिए कॉफ़ी बनाई और उसे प्यार से उठाया| अनु ने आँखें तो खौल लीं पर वो फिर से कुछ सोचने लगी| मुझे उसे सोचने से रोकना था इसलिए मैंने झुक कर उसके गाल को चूम लिया, मेरे होठों के एहसास से अनु मुस्कुराई और फिर उठ कर बैठ गई| नाश्ता करने के बाद मैं अनु के पास ही बैठा था और उसका ध्यान अपनी इधर-उधर की बातों में लगा दिया| पर उसका दिमाग अब भी उन्हीं बातों को याद कर रहा था, कुछ सोचने के बाद वो बोली; "मेमसाब ...रितिका ही है ना?" अनु की बात सुन कर मैं एकदम से चुप हो गया| अनु ने फिर से अपनी बात दोहराई; "है ना?" मैंने ना में सर हिलाया तो उसने दूसरा सवाल पुछा; "तो फिर कौन है?"

"मुझे नहीं पता? शायद जैस्मिन (कुमार की गर्लफ्रेंड) हो?" मैंने बात बनाते हुए कहा|

"उसे हमारे घर का एड्रेस कैसे पता?" अनु ने तीसरा सवाल पुछा| "हमारे घर अक एड्रेस मैंने सिर्फ भाभी को बताया था और हो न हो रितिका ने सुन लिया होगा!" अनु बोली| ये सुनने के बाद मेरा गुस्सा बाहर आ ही गया;

"हाँ वो ज़लील औरत रितिका ही है और मैं उसे नहीं छोड़ूँगा!" मैंने गुस्से से कहा और अनु को सारा सच बता दिया जो मैंने उस आदमी से उगलवाया था|

"नहीं...आप ऐसा कुछ नहीं करोगे?" अनु ने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा|

"तो हाथ पर हाथ रखा बैठा रहूँ? या फिर इंतजार करूँ की कब वो अगलीबार हमें नुक्सान पहुँचाने में कामयाब हो? ना तो मैं इस डर के साये में जी सकता हूँ ना ही अपने बच्चे को इस डर के साये में जीने दूँगा!" मैंने खड़े होते हुए कहा|

"आप ने ऐसा कुछ भी किया तो आप जानते हो उसका क्या नतीज़ा होगा? आपको जेल हो जाएगी, फिर मेरा क्या होगा और हमारे बच्चे का क्या होगा? आप पुलिस में कंप्लेंट कर दो वो अपने आप देख लेगी!" अनु बोली|

"आपको लगता है की पुलिस कंप्लेंट करने से सब सुलझ जायेगा? जो अपने गुंडे यहाँ भेज सकती है क्या वो खुद को बचाने के लिए पुलिस और कानून का इस्तेमाल नहीं कर सकती? इस समस्या का बस एक ही अंत है और वो है उसकी मौत!" मैंने कहा|

"फिर नेहा का क्या होगा? कम से कम उसका तो सोचो?" अनु बोली|

"उसे कुछ नहीं होगा, उल्टा रितिका के मरने के बाद हम उसे आसानी से गोद ले सकते हैं| हमें हमारी बेटी वापस मिल जाएगी!" मैंने कहा|

"और जब उसे पता लगेगा की उसकी माँ का खून आपने किया है तब?" अनु के ये आखरी सवाल ऐसा था जो मुझे बहुत चुभा था|

"जब वो सही और गलत समझने लायक बड़ी हो जाएगी तो मैं खुद उसे ये सब बता दूँगा और वो जो भी फैसला करेगी मैं वो सर झुका कर मान लूँगा|" मैंने बड़े इत्मीनान से जवाब दिया|

"ये पाप है...आप क्यों अपने हाथ उसके गंदे खून से रंगना चाहते हो! प्लीज मत करो ऐसा कुछ!....सब कुछ खत्म हो जायेगा!" अनु गिड़गिड़ाते हुए बोली| मैंने अनु को संभाला और उसकी आँखों में देखते हुए कहा;

"जब किसी इंसान के घर में कोई जंगली जानवर घुस जाता है तो वो ये नहीं देखता की वो जीव हत्या कर रहा है, उसका फ़र्ज़ सिर्फ अपने परिवार की रक्षा करना होता है| रितिका वो जानवर है और अगर मैंने उसे नहीं रोका तो कल को इससे भी बड़ा कदम उठाएगी और शायद वो अपने गंदे इरादों में कामयाब भी हो जाए| मैं तुम्हें नहीं खो सकता वरना मेरे पास जीने को रहेगा ही क्या? प्लीज मुझे मत रोको....मैं कुछ भी जोश में नहीं कर रहा ....सब कुछ planned है!" मैंने कहा और फिर अनु को सारा प्लान सुना दिया| Plan foolproof था, पर अनु का दिल अब भी इसकी गवाही नहीं दे रहा था| "अच्छा ठीक है...मैं अभी कुछ नहीं कर रहा... okay?" मैंने फिलहाल के लिए हार मानी पर अनु को संतुष्टि नहीं मिली थी; "Promise me, बिना मेरे पूछे आप कुछ नहीं करोगे?" अब मेरे पास सिवाय उसकी बात मानने के और कोई रास्ता नहीं था| इसलिए मैंने अनु से वादा कर दिया की बिना उसकी इज्जाजत के मैं कुछ नहीं करूँगा| मेरे लिए अभी अनु की ख़ुशी ज्यादा जर्रूरी थी, मेरी बात सुन अनु को अब पूर्ण विश्वास हो गया की मैं कुछ नहीं करूँगा| 20 जनवरी को हम ने बैंगलोर का घर खाली कर दिया और हम लखनऊ के लिए निकल गए| पहले अनु ने नया घर देखा और फिर नया ऑफिस, अनु बहुत खुश हुई, फिर हम गाँव लौट आये| यहाँ सब की मौजूदगी में अनु ज्यादा खुश रहने लगी| अनु ने मुझे साफ़ मना कर दिया की मैं उस घटना के बारे में किसी से कोई जिक्र न करूँ, इसलिए मैं चुप रहा|


इधर फरवरी का महीना शुरू हुआ और मैंने ऑफिस शुरू कर दिया, पूरा घर उस दिन पूजा में सम्मिलित हुआ| पूजा के बाद सब हमारे फ्लैट पर आये और वहाँ भी ग्रह-पूजन उसी दिन हुआ| सब को घर बहुत पसंद आया और हमें आशीर्वाद दे कर सभी लौट गए| बिज़नेस बड़े जोर-शोर से शुरू हुआ, अनु ने अभी ऑफिस ज्वाइन नहीं किया था क्योंकि मैं उसे स्ट्रेस नहीं देना चाहता था| सारे पुराने क्लाइंट्स अरुण-सिद्धार्थ हैंडल कर रहे थे और US का वो एक क्वार्टर का काम मैं अकेला देख रहा था| मैं अब अनु को ज्यादा से ज्यादा समय देता था, सुबह-शाम उसके साथ सोसाइटी के गार्डन में घूमता, हर इतवार उसे मंदिर ले जाता जहाँ पाठ हो रहा होता था ताकि होने वाले बच्चे में अच्छे गुण आयें| कुछ बदलाव जो मैं अनु में देख रहा था वो ये की उसका baby bump कुछ ज्यादा बड़ा था, उसका वजन कुछ ज्यादा बढ़ गया था| पर अनु कहती थी की मैं उसका इतना ख्याल रखता हूँ उसे इतना प्यार करता हूँ की उसका वजन बढ़ गया है| मैंने हँसते हुए उसकी बात मान ली, दिन बड़े प्यार भरे गुजरने लगे थे और बिज़नेस में अरुण और नए कोंट्राक्टे ले आया था| संडे को कभी कभार अरुण-सिद्धार्थ की बीवियाँ घर आतीं और जल्द ही तीनों की अच्छी दोस्ती हो गई| बैंगलोर वाले हादसे के बाद मैं अनु को कहीं भी अकेला नहीं जाने देता था, जब भी हम कभी बाहर निकलते तो साथ निकलते और दिन में निकलते| जितनी भी जर्रूरी precautions लेनी चाहिए वो सब मैं ले रहा था और मैंने इसकी जरा सी भी भनक अनु को नहीं लगने दी थी वरना वो भी डरी-डरी रहती| कुछ दिन बाद मुझे किसी काम से बरेली जाना पड़ा और वापस आते-आते रात हो गई| दस बज गए थे और इधर अनु बार-बार मुझे फ़ोन कर के मेरी लोकेशन पूछ रही थी| "बेबी...बस लखनऊ enter हुआ हूँ maximum पोना घंटा लगेगा|” पर अनु उधर बेचैन हो रही थी, मैं ड्राइव कर रहा था और फ़ोन लाउड स्पीकर पर था| मेरी गाडी एक चौराहे पर पहुँची जहाँ दो जीपें रास्ता रोके खड़ी थीं| मैंने गाडी रोक दी और अनु को होल्ड करने को कहा, दोनों जीपों के सामने 3 लोग खड़े थे| मैं गाडी से उतरा और उनसे बोला; "रास्ता क्यों रोक रखा है?" अभी इतना ही बोला था की किसी ने मेरे सर पर पीछे से जोरदार हमला किया| मैं चिल्लाता हुआ सर पकड़ कर गिर गया, "मेमसाब से पन्गा लेगा तू?" एक आदमी जोर से चिल्लाया और हॉकी मेरी पीठ पर मारी| उसके सारे साथियों ने हॉकी, बैट, डंडे निकाल लिए और मुझे उनसे पीटना शुरू कर दिया| मैं दर्द में पड़ा करहाता रहा और वो मुझे मारते रहे, तभी वहाँ से पुलिस की एक जीप पेट्रोलिंग के लिए निकली जिसे देख सारे भाग खड़े हुए, पर जाते-जाते भी उन्होंने गाडी की wind shield तोड़ दी थी! पुलिस वालों ने मुझे खून से लथपथ हालत में हॉस्पिटल पहुँचाया, गाडी से उन्हें जो फ़ोन मिला था उसे उन्होंने देखा तो अनु फ़ोन पर रोती हुई चीख रही थी; "प्लीज...छोड़ दो मेरे पति को!" शायद उसने मेरी दर्द भरी चीख सुन ली थी| पुलिस ने उसे भी अस्पताल बुला लिया, अनु ने फ़ौरन सब को खबर कर दी थी और देखते ही देखते हॉस्पिटल में मेरे दोस्त और मम्मी-डैडी आ गए| गाँव से चन्दर भैया, ताऊ जी, पिताजी और संकेत बाइक पर निकल चुके थे जो रात के 20 बजे हॉस्पिटल पहुँचे| डॉक्टर ने प्राथमिक उपचार शुरू किया, भगवान् का शुक्र था की पुलिस की पैट्रॉल जीप को देख कर सारे भाग खड़े हुए और उन्हें मुझे जान से मारने का मौका नहीं मिला| अनु मुझसे मिलने को आतुर थी पर मैं उस वक़्त होश में नहीं था| मुझे सुबह के 10 बजे होश आया, बड़ी मुश्किल से मैंने अपनी आँख खोली और सामने अनु को देखा जिसकी रो-रो कर हालत खराब हो गई थी| अनु एक दम से मेरे गले लग गई और फफक कर रो पड़ी| मेरे सर पर पट्टी थी, बायाँ हाथ पर hair line फ्रैक्चर और पीठ पर जो हमला हुआ था उससे मेरी रिड की हड्डी बस टूटने से बच गई थी| मैं और अनु दोनों ये जानते थे की ये किसकी करनी है पर दोंनो ही खामोश थे| तभी इंस्पेक्टर आया और बोला की वो लोग चोरी करने के इरादे से आये थे और हमला किया था| उनकी तलाश जारी है, ये सुनते ही अनु उस पर चीख पड़ी; "चोरी करने के लिए कौन जीप से आता है? देखा था न आप लोगों ने उन्हें जीप से भागते हुए? जानना चाहते हो न कौन हैं वो लोग तो नंबर लिखो और अगर है हिम्मत तो उन्हें पकड़ कर जेल में डालो!" माँ ने अनु को शांत करवाया पर अनु ने बैंगलोर में जो हुआ वो सब बता दिया और रितिका का नाम भी बता दिया| ये सब जानकार सब को बहुत धक्का लगा, पिताजी ने मेरे पर चिल्लाना शुरू कर दिया की मैंने उनसे इतनी बड़ी बात छुपाई| अनु बेचारी कुछ बोलने को हुई तो मैंने इसे आँखों से इशारा कर के चुप रहने को कहा| सब मुझे डांटते रहे और मैं सर झुकाये सब सुनता रहा| पर जो गुस्से का ज्वालामुखी मेरे अंदर उसदिन फूटा था वो अब अनु के अंदर सुलग उठा था| इधर लखनऊ पुलिस बैंगलोर पुलिस के साथ coordinate करने लगी पर मैं जानता था की इसका कोई नतीजा नहीं निकलेगा और हुआ भी वही| अगले दिन ही हमें बताया गया की उन दोनों को तो लखनऊ जेल भेजा गया पर वो यहाँ तो आये ही नहीं?! मतलब रितिका ने पैसे खिला कर मामला सुलटा दिया था| लखनऊ पुलिस ने जब कल के वाक़्या के बारे में उससे पुछा तो उसने पार्टी मीटिंग में होने की बात कह कर अपना पला साफ़ झाड़ लिया| पुलिस ने केस बंद कर दिया, घर वाले बड़े मायूस हुए और इन्साफ न मिल पाने से सभी के मन में एक खीज जर्रूर थी| दो दिन बाद मुझे डिस्चार्ज मिला और मैं गाँव आ गया, अब मेरी हालत में थोड़ा बहुत सुधार था| उसी रात को अनु मेरी पीठ में दवाई लगा रही थी, की मेरी पीठ की हालत देख वो रो पड़ी| "Hey .... इधर आओ!" मैंने अनु को अपने सामने बुलाया और उसकी ठुड्डी ऊपर करते हुए बोला; "ये जख्म ठीक हो जायेंगे!" अनु ने गुस्से में आ कर अपने आँसूँ पोछे और मेरी टी-शर्ट के कालर पकड़ कर मेरी आँखों में देखते हुए बोली; "You've my permission! Kill that bitch!" अनु की आँखों में अंगारे दहक रहे थे और उसने फैसला कर लिया था की अब वो उस कुतिया को अपने घरोंदे को तबाह करने नहीं देगी| “उसने मुझ पर हमला किया, वो तो मैं सह गई पर उसने आपकी ये हालत की और ये मैं कतई बर्दाश्त नहीं करुँगी! उस हरामजादी की हिम्मत कैसे हुई मेरे पति को नुक्सान पहुँचाने की?” अनु गुस्से में गरजी, उसकी सांसें तेज हो चली थीं और उसकी पकड़ मेरी टी-शर्ट पर और कठोर होती जा रही थी| अनु की 'अनुमति' के बाद बाद मेरे चेहरे पर शैतानी मुस्कान आ गई, मैंने आगे बढ़ कर अनु के मस्तक को चूमा और हाँ में गर्दन हिला कर उसकी बात का समर्थन किया| अनु को उसके गुस्से का एहसास हुआ और ये भी एहसास हुआ की उसने तेश में आ कर मेरी टी-शर्ट के कालर पकड़ लिए थे| उसने कालर छोड़ दिया और एकदम से मेरे गले लग गई, पर उसकी आँखों से एक बूँद आँसूँ नहीं गिरा| मैं अनु के बालों में हाथ फिर रहा था और उसे शांत कर रहा था की तभी अनु का फ़ोन बज उठा| ये कॉल किसी अनजान नंबर से आया था इसलिए अनु ने कॉल उठा लिया, ये कॉल किसी और का नहीं बल्कि रितिका का ही था| "तुम दोनों ने क्या किस्मत लिखवाई है यार? साला दोनों बार बच गए, चलो कोई नहीं आखरी हमला बड़ा जबरदस्त होगा और अचूक होगा!" रितिका अपनी अकड़ दिखाते हुए बोली|

"कुतिया!!!!" अनु बहुत जोर से चीखी| "अब तक मैंने अपने पति को रोक रखा था, पर अब मैं ने उन्हें खुली छूट दे दी है...." अभी अनु की बात पूरी भी नहीं हुई थी की नेहा बरस पड़ी; "ओ हेल्लो! तूने मुझे समझ क्या रखा है? मैं अब वो डरी-सहमी सी रितिका नहीं हूँ! मैंने अब शिकार करना सीख लिया है, तुझे पता भी है मेरी पहुँच कहाँ तक है? नहीं पता तो जा के उस इंस्पेक्टर से पूछ जिसे तूने मेरे पीछे लगाया था! सीधा कमिश्नर ने उसे डंडा किया है और उसने केस बंद कर दिया| होली के बाद गाँव में मुखिया के चुनाव हो रहे हैं और उस में मेरी पार्टी का भी उमीदवार खड़ा है, ये चुनाव तो मैं चुटकी बजा कर जीत जाऊँगी और फिर तू और तेरे पति को मैं कहीं का नहीं छोडूंगी! बड़ा नेहा के लिए प्यार है ना उसके मन में, अब देख तू उसे ही कैसे केस में फँसाती हूँ| मैं पंचायत में चीख-चीख कर कहूँगी की बचपन से ही वो मेरा रेप करता आया है और नेहा उसी का खून है! फिर देखती हूँ वो लोग कैसे उसे छोड़ते हैं?! ना मैंने उसे उसी खेत में जिन्दा जलवाया जहाँ मेरी माँ को जलाया था तो मेरा नाम रितिका नहीं!" इतना कह कर उसने फ़ोन काट दिया| रितिका की बात में दम था, उसके झूठे आरोप के सामने हमारी एक नहीं चलती| हमारे पास कोई सबूत नहीं था जिससे ये साबित हो सके की रितिका झूठ बोल रही है| अनु पर रितिका की बातों का बहुत गहरा असर हुआ था और वो एक दम से खामोश हो गई थी| मैंने कई बार उसे झिंझोड़ा तो वो फिर से रो पड़ी और रोते-रोते उसने सारी बात बताई| अब तो मेरे लिए रितिका की जान लेना और भी ज्यादा जर्रूरी हो गया था, क्योंकि अगर मैं पीछे हटता तो उसका इन्तेक़ाम पूरा हो जाता और मेरा पूरा परिवार तहस-नहस हो जाता! "आपको घबराने की कोई जर्रूरत नहीं है! मैं अपने उसी प्लान पर काम करता हूँ और अब तो मेरे पास परफेक्ट cover है अपने प्लान को अंजाम देने का!" मैंने अनु के आँसू पूछते हुए कहा| “Trust me!!!” मैंने अनु की आँखों में देखते हुए उसे विश्वास दिला दिया|

सुबह हुई और मैं उठ कर नीचे आया, मेरा जिस्म अभी भी रिकवर होना शुरू ही हुआ था, पर बदले की आग ने उस दर्द को दबाना शरू कर दिया था| "रात को तुम-दोनों झगड़ रहे थे?" माँ ने पुछा तो अनु का सर झुक गया, शुक्र था की किसी ने पूरी बात नहीं सुनी थी| "वो...माँ....वो...." मुझे कोई बहाना सूझ नहीं रहा था, इधर ताऊ जी ने मुझे अच्छे झाड़ दिया; "तुझे शर्म आनी चाहिए! बहु माँ बनने वाली है और तू है की उससे लड़ता फिर रहा है? सारा वक़्त तेरी तीमारदारी करती रहती है और तू है की???"

"ताऊ जी मैं तो बस इतना कह रहा था की वो चैन से सो जाए पर वो मान ही नहीं रही थी!" मैंने झूठ बोला|

"कैसे सो जाए वो?" ताई जी बोलीं तो मैंने माफ़ी माँग कर बात वहीं खत्म कर दी| नाश्ते के बाद मुझे घर से निकलना था सो मैंने डॉक्टर के जाने का बहाना किया; "पिताजी मैं एक बार physiotherapy करवाना चाहता हूँ, उससे शायद जल्दी आराम मिले!" ये सुन कर अनु चौंक गई पर खामोश रही, पिताजी ने चन्दर भैया से कहा की वो मुझे डॉक्टर के ले जाएँ| मैं और भैया बाइक से निकले और मैं उनसे रास्ते भर बातें करता रहा और बातों-बातों में मैंने रितिका के घर का पता उनसे निकलवा लिया| कुछ देर बाद हम ट्रीटमेंट के बाद वापस आ गए, अगले दिन मुझे पता था की चन्दर भैया को आज व्यापारियों से मिलने जाना है तो मैं उनके जाने का इंतजार करने लगा| पिताजी और ताऊ जी तो पहले ही कुछ काम से जा चुके थे, जैसे ही भैया निकले मैं उनके पीछे-पीछे ही फिर से physiotherapy करवाने के बहाने से निकला| इस बार मैं सीधा रितिका के घर के पास वाले पनवाड़ी के पास रुका और उससे एक सिगरेट ली| वहीं खड़े-खड़े मैं आराम से पीता रहा और रितिका के घर पर नजर रखता रहा| अगले कुछ दिन तक ऐसे ही चला और वहाँ खड़े-खड़े सबकी बातें सुनते-सुनते मुझे रितिका के घर आने-जाने वालों और उसके नौकरों के नाम भी पता चल गए| अब वक़्त था उस घर में घुसने का ताकि मैं ये अंदाजा लगा पाऊँ की घर में रितिका का कमरा कौन सा है? पर उसके लिए मुझे एक लिबाज की जर्रूरत थी, मेक-अप की जर्रूरत थी| हमारे गाँव में एक नट था, जो हरसाल ड्रामे में हिस्सा लेता था| संकेत की उससे अच्छी दोस्ती थी क्योंकि वो उसे मस्त वाला माल दिलवाया करता था| 1-2 बार संकेत ने मुझे उससे मिलवाया भी था एक वही था जो मुझे मेक-अप का समान दे सकता था, पर उससे माँगना मतलब मुसीबत मोल लेना था| इसलिए मेरे पास सिवाए चोरी के कोई रास्ता नहीं रह गया था| मैं उससे मिलने निकला और कुछ देर उसी के पास बैठा तो बातों-बातों में पता चला की उसे पैसों की सख्त जर्रूरत है| मेरे पास उस वक़्त 4,000/- थे जो मैंने उसे दे दिए, इस मदद से वो बहुत खुश हुआ| फिर मैंने उससे चाय माँगी तो वो चाय बनाने लग गया| वो चूँकि अभी तक कुंवारा था सो उसके घर में बस एक बूढी माँ थी जो बिस्तर से उठ नहीं पाती थी| इधर वो चाय बनाने में व्यस्त हुआ और इधर मैंने बातों-बातों में ही उसके पास से एक दाढ़ी और मूछ चुरा ली! चाय पी कर मैं घर लौट आया और अगले दिन की तैयारी करने लगा| मेरी एक पुरानी टी-शर्ट जो घर में गंदे कपडे की तरह इस्तेमाल होती थी मैंने वो उठा ली, एक पुरानी पैंट जो की भाभी धोने वाली थी वो भी मैंने उठा ली| अगले दिन मैंने नीचे वो फटी हुई पुरानी टी-शर्ट पहनी और उसके ऊपर अपनी एक कमीज पहन ली, नीचे वही गन्दी पैंट पहन ली, कंधे पर मैंने अंगोछा रखा और घर से निकलने लगा| "मानु ये कौन सी पैंट पहन रखी है?" भाभी ने पुछा तो मैंने बोल दिया की भाभी आप इसे धोना भूल गए और इस कमीज के साथ यही मैच होती है| इतना बोल मैं घर से निकल गया, रितिका के घर से कुछ दूर पहुँच कर मैंने अपनी कमीज निकाल दी, अपने साथ लाये लिफाफे से मैंने वो नकली दाढ़ी-मूछ भी लगा ली| अब किसी के लिए भी मुझे पेहचान पाना नामुमकिन था| मेरी calculations और information के हिसाब से आज रितिका अपने घर पर मौजूद नहीं थी और हुआ भी यही| मैं जब उसके घर पहुँचा तो बाहर उसकी काली Mercedes नहीं थी, इसका मतलब घर पर सिर्फ कान्ता (उसनी नौकरानी) ही होगी| मैंने दरवाजा खटखटाया तो काँटा ने दरवाजा खोला और मेरी गरीब हालत देख कर चिढ़ते हुए बोली; "क्या है?" मैंने अपनी आवाज बदली और कहा; "जी...वो मेमसाब ने बुलाया था....कुछ मदद देने के लिए!" वो मेरे हाथ का प्लास्टर देख समझ गई की मैं पैसे माँगने आया हूँ| "घर पर कोई नहीं है, बाद में आना!" वो मुँह सिकोड़ कर बोली| "रहम करो हम पे! बहुत दूर से आये हैं और बड़ी आस ले कर आये हैं| ऊ दिन मेमसाब कही रही की आज वो घर पर होंगी!" मैंने अपना ड्रामा जारी रखा पर काँटा टस से मस नहीं हुई, इसलिए मुझे अपनी दूसरी चाल चलनी पड़ी; "देवी जी तनिक पानी मिलेगा पीने को?" मेरे मुँह से देवी जी सुन कर वो खुश हो गई और अभी लाइ बोलकर अंदर गई जिसका फायदा उठा कर मैं अंदर घुस गया और अंदर का मोआईना बड़ी बारीकी से किया| कान्ता को रसोई से पानी लाने में करीब दो मिनट लगे, जो मेरे लिए काफी थे घर का नक्शा दिमाग में बिठाने को|


शादी के बाद रितिका का कमरा उसके सास-ससुर के कमरे के सामने पहली मंजिल पर था पर उस हत्याकांड में उसके पति की मौत उसी कमरे के बाहर हुई थी| शायद उसी डर से रितिका अब पहली मंजिल पर भटकती नहीं थी और उसने नीचे वाला कमरा जो की राहुल का स्टडी रूम था उसे ही अपना कमरा बना लिया था|

इधर कान्ता मुस्कुराती हुई गिलास में पानी ले आई, मैंने लगे हाथों उसकी तारीफों के पुल बाँध दिए जिससे मुझे उससे और बात करने का मौका मिल जाए| वो मुझसे मेरे बारे में पूछने लगी तो मैंने उसे झूठ-मूठ की कहानी सुना दी| बातों ही बातों में उसने मुझे काफी जानकारी दे दी, अब अगर मैं वहाँ और देर रुकता तो वो अपना घागरा उठा के दिखा देती! उससे शाम को आने का वादा कर मैन वहाँ से निकल आया और कुछ दूर आ कर अपने कपडे ठीक करके घर लौट आया|

मेरी रेकी का काम पूरा नहीं हुआ था, अब भी एक बहुत जर्रूरी मोहरा हाथ लगना रह गया था| पर किस्मत ने मुझे उससे भी मिलवा दिया, हमेशा की तरह मैं उस पनवाड़ी से सिगरेट ले कर पी रहा था और अखबार पढ़ रहा था की एक आदमी पनवाड़ी के पास आया और उससे बात करने लगा; "अरे राम खिलावन भैया, कइसन बा!" वो आदमी बोला|

"अरे हम ठीक हैं, तुम कहो सरजू भैया कितना दिन भय आजकल हिआँ दिखातो नहीं?" पनवाड़ी बोला|

"अरे ऊ हमार साहब, सेक्रेटरीवा ...ससर हम का काम से दिल्ली भेज दिया रहा! कल ही आये हैं और आज रितिका मेमसाब के फाइल पहुँचाय खतिर भेज दीस!" सरजू बोला|

"अरे बताओ तोहार छमिया कान्ता कैसी है?" पनवाड़ी बोला|

"अरे ऊ ससुरी हमार 'लिए' खातिर पियासी है! होली का अइबे तब ऊ का दबा कर पेलब!" इतना कह कर सरजू चला गया| यानी कान्ता और सरजू का चक्कर चल रहा है!

खेर मुझे मेरा स्वर्णिम मौका मिल गया था, अब बस मुझे होली के दिन का इंतजार था| वहाँ से मैं सीधा अपने घर के लिए पैदल निकला और एक आखरी बार अपने सारे पत्ते जाँचने लगा|

घर का layout - चेक
घर के नौकर के नाम - चेक
घर घुसने का कारन- चेक
हथियार - X

नहीं हथियार का इंतजाम अभी नहीं हुआ था| मैंने वापस अपने चेहरे पर दादी-मूछ लगाई और बजार की तरफ घूम गया, वहाँ काफी घूमने के बाद मैंने एक रामपुरी चाक़ू खरीदा| इतनी आसानी से उसे मारना नहीं चाहता था, मरने के टाइम उस्की आँखों में वही दर्द देखना चाहता था जो मेरी पत्नी की आँखों में थी जब उसने मुझे हॉस्पिटल में पड़ा हुआ देखा था| मैंने बजार से कुछ साड़ियाँ भी खरीदीं जिन्हें मैंने गिफ्ट wrap करवा लिया| चूँकि हमारा गाँव इतना आधुनिक नहीं था तो वहाँ अभी भी CCTV नहीं लगा था जो मेरे लिए बहुत कामगर साबित होना था| अब बस होली का इंतजार था जो 2 दिन बाद थी| पर कल होलिका दहन था और गाँव के चौपाल पर इसकी सारी तैयारी की जा चुकी थी| सभी बरी परिक्रम कर रहे थे और अग्नि को नमस्कार कर रहे थे| मुझे और अनु को भी साथ परिक्रमा करनी थी, जिसके बाद अनु ने मुझसे कहा; "कहते हैं होलिका दहन बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है!"

"हाँ" मैंने बस इतना ही कहा क्योंकि मैं अनु की बात का मतलब समझ गया था| उसी रात को मम्मी-डैडी जी भी आ गए हमारे साथ होली मनाने| पिछले 20 दिनों में अनु ने मुझसे मेरी प्लानिंग के बारे में कुछ नहीं पुछा था, हम बात भी कम करते थे| घर वालों के सामने हम खुश रहने का नाटक करते रहते पर अकेले में हम दोनों जानते थे की मैं कौन सा बड़ा कदम उठाने जा रहा हूँ| उस रात मैंने अनु से बात शुरू की; "कल आपको मेरे लिए cover करना होगा, याद रहे किसी को भी भनक नहीं होनी चाहिए की मैं घर पर मौजूद नहीं हूँ| घर पर बहुत सारे लोग होंगे तो किसी को जल्दी पता नहीं चलेगा!" मैंने अनु से इतना कहा और फिर मैं जल्दी सो गया| लेट तो मैं गया पर नींद बिलकुल नहीं आई, कारन दो, पहला ये की कल मेरी जिंदगी का बहुत बड़ा दिन था| मैं कुछ ऐसा करने जा रहा था जिसके बारे में मैंने कभी सोचा भी नहीं था, एक सीधा-साधा सा इंसान किसी का कत्ल करने जा रहा था! दूसरा कारन था मेरा बायाँ हाथ, अपने प्लान के तहत मैंने बहाना कर के आज अपना प्लास्टर कटवा दिया था| इस बहाने के लिए मुझे किशोर का सहारा लेना पड़ा था, मैंने जानबूझ कर उसका सुसु अपने बाएं हाथ पर करवाया ताकि मुझे प्लास्टर कटवाने का अच्छा बहाना मिल जाये| हालाँकि इस हरकत पर सब ने खूब जोर से ठहाका लगाया था की भतीजे ने आखिर अपने चाचा के ऊपर सुसु कर ही दिया| प्लास्टर कटने के बाद मेरे हाथ में दर्द होने लगा था|


खैर सुबह हुई और मैं जल्दी से उठा और सबका आशीर्वाद लिया, अपने बाएँ हाथ पर मैंने दो गर्म पट्टियां लपेटीं ताकि दर्द कम हो| जोरदार म्यूजिक बज रहा था और घर के सारे लोग चौपाल पर आ गए थे| घर पर सिर्फ औरतें रह गईं थीं, सब ने होली खेलना शुरू कर दिया था| शुरू-शुरू में ताऊ जी ने इस आयोजन के लिए मना कर दिया था कारन था मुझ पर हुआ हमला| पर मुझे कैसे भी कर के ये आयोजन खूब धूम-धाम से करना था ताकि मुझे घर से निकलने का मौका मिल जाये इसीलिए मैंने ये आयोजन सुबह जल्दी रखवाया था, मुझे बस इसके लिए ताऊ जी के सामने अनु की पहली होली का बहाना रखना पड़ा था| सारे लोग खूब मजे से होली खेल रहे थे और मैं इसी का फायदा उठा के वहाँ से सरक गया| चेहरे और कपड़ों पर खूब सारा रंग पोत रखा था जिससे मुझे कोई पहचान ना पाए| मैं संकेत की बाइक ढूंढते हुए पहुँचा, सुबह मैं उसी की बाइक पर यहाँ आया था और उसे ईस कदर बातों में उलझाया की वो अपनी बाइक लॉक करना ही भूल गया| मैंने धीरे से बाइक को धक्का दे कर कुछ दूर तक ले गया और फिर स्टार्ट कर के सीधा संकेत के खेतों की तरफ चल दिया| उसके खेतों में जो कमरा था, जिस में मैंने वो साड़ियाँ गिफ्ट wrap कर के छुपाई थीं| उन्हें ले कर मैं सीधा रितिका के घर पहुँच गया| अभी सुबह के 7 बजे थे, मैंने संकेत की बाइक दूर एक झाडी में छुपा दी और वो गिफ्ट्स ले कर सीधा रितिका के घर पर दस्तक की| मेरी इनफार्मेशन के हिसाब से वो घर पर ही थी और सिवाए कान्ता के वहाँ और कोई नहीं था| दरवाजा कान्ता ने ही खोला और मेरे मुँह पर पुते हुए रंग को देख वो समझ नहीं पाई की कौन है| "आरी छम्मक छल्लो ई टुकुर-टुकुर का देखत है?" मैंने आवाज बदलने की कोशिश की पर ठीक से बदल नहीं पाया था पर उसे फिर भी शक नहीं हुआ क्योंकि मेरे मुँह में पान था! "सरजू तू?!" कान्ता ने चौंकते हुए कहा| मेरी और सरजू की कद-काठी कुछ-कुछ मिलती थी इसलिए उसे ज्यादा शक नहीं हुआ| "काहे? कोई और आने वाला है का?" मैंने कहा तो वो शर्मा गई और पूछने लगी की मैं इतनी जल्दी क्यों आ गया; "अरे ऊ सेक्रेटरीवा कहिस की जा कर एही लागे ई गिफट रितिका मेमसाब को दे कर आ तो हम इहाँ परकट होइ गए! फिर तोहरे से आजका वादा भी तो किये रहे!" मैंने कहा तो वो हँस दी और वो gift ले लिए और उसे सामने के टेबल पर रख दिए| "अरे मरी ई तो बता की मेमसाब घर पर हैं या नहीं?" मैंने पुछा तो उसने बताया की रितिका नहा रही है| अब मुझे उसे वहाँ से भेजना था सो मैंने कहा; "कछु पकोड़े-वकोडे हैं का?" तो वो बोली की मैं उसके क्वार्टर में जाऊँ और उसका इंतजार करूँ, वो गरमा-गर्म बना कर लाएगी| उसके जाते ही मैंने surgical gloves पहने और मैन गेट लॉक अंदर से लॉक कर दिया और क्वार्टर की तरफ खुलने वाला दरवाज खोल दिया ताकि उसे लगे की मैं बाहर हूँ| मैंने जेब से चाक़ू निकाला और उसे खोल कर बाएँ हाथ में पकड़ लिया| इसका कारन ये था की पुलिस को लगे की खुनी लेफ्टी है, चूँकि मेरे बाएँ हाथ में फ्रैक्चर है तो मुझ पर शक जाने का सवाल ही नहीं होता| सुबह की टाइट बाँधी हुई पट्टियां काम कर गईं, मैंने गिफ्ट्स पर से भी अपनी उँगलियों के निशान मिटा दिए| मेरा दिल अब बहुत जोरों से धड़क रहा था, सांसें भारी हो चली थीं और मन पूरी कोशिश कर रहा था की मैं ये हत्या न करूँ पर मेरा दिमाग गुस्से से पागल हो गया था| इधर बाहर ढोल-बगाडे और लाउड म्यूजिक बजना शुरू हो चूका था| 'रंग बरसे' वाला गाना खूब जोर से बज रहा था| मैंने रितिका के कमरे का दरवाजा जोर से खटखटाया, तो वो गुस्से में बड़बड़ाती हुई बाथरूम से निकली और एकदम से दरवाजा खोला|

अपने सामने एक गुलाल से रंगे आदमी को देख वो चौंक गई और इससे पहले वो कुछ बोल पाती या चिल्लाती मैंने अपने दाएँ हाथ से उसका मुँह बंद कर दिया और बाएँ हाथ में जो चाक़ू था उससे जोर दार हमला उसके पेट पर किया| चाक़ू एक ही बार में उसकी पेट की मांस-पेशियाँ चीरता हुआ अंदर चला गया| रितिका की चीख तो तब भी निकली पर बाहर से आ रहे शोर में दब गई, मैंने चाक़ू को उसके पेट में डाले हुए एक बार जोर से बायीँ तरफ घुमा दिया जिससे वो और बिलबिला उठी और अपने खून भरे हाथों से मेरा कालर पकड़ लिया| उसकी आँखें फटने की कगार तक खुली थीं पर अभी उसे ये बताना जर्रूरी था की उसका कातिल आखिर है कौन; "I loved you once! But you had to fuck all this up! You made me do this!" मेरी आवाज सुनते ही वो समझ गई की उसका कातिल कोई और नहीं बल्कि मानु ही है| वो कुछ बोलना चाहती थी पर उसे उसका मौका नहीं मिला और वो पीछे की ओर झुक गई| उसका सारा वजन मेरे बाएँ हाथ पर आ गया जिसका दर्द से बुरा हाल हो गया था| मैंने उसे छोड़ दिया और एक नजर कमरे में दौड़ाई तो पाया की मेरी नन्ही सी पारी नेहा चैन की नींद सो रही थी| उसे सोते हुए देख मेरा मन उसे छूने को किया पर दिमाग ने मुझे बुरी तरह लताड़ा की मैं भला अपने खून से रंगे हाथों से उसे कैसे छू सकता हूँ?! इसलिए मैं वहाँ से भाग आया और वो गिफ्ट्स ले कर घर से भाग आया, फ़ौरन बाइक स्टार्ट की ओर घर की तरफ बढ़ा दी| बहुत दूर आ कर मैंने वो साड़ियाँ और ग्लव्स जला दिए, उस रामपुरी चाक़ू को मैंने एक जगह गाड़ दिया जिससे कोई सबूत न बचे और चुपचाप होली के समारोह में शामिल हो गया और अपने ऊपर और रंग डाल लिया| किसी को भनक तक नहीं लगी थी की मैं गया था, पर मेरा मन अब अंदर ही अंदर टूटने लगा था| मैंने अपने परिवार को बचा लिया था पर अपने द्वारा किये गुनाह से बहुत दुखी था| मुझे अपने आप से घिन्न आने लगी थी, मुझे अपने सर से ये पाप का बोझ उतारना था| पर ये पाप पानी से धुलने वाला नहीं था इसे धोने के लिए मुझे किसी पवित्र नदी में नहाना था| हमारे गाँव के पास बस एक ही नदी थी वो थी सरयू जी! मैंने संकेत से कहा की चल कर सरयू जी नहा कर आते हैं, वो ये सुन कर हैरान हुआ पर जब मैंने जबरदस्ती की तो वो मान गया| हम सब को बता कर सरयू जी निकले, हमारे साथ ही कुछ और लोग जुड़ गए जिन्हें मेरी बात सही लगी थी| पहले हमने घर से अपने कपडे लेने थे पर मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी की मैं अंदर घुसून इसलिए मैंने भाभी को आवाज दे कर उनसे मेरे कपडे लाने को कहा| भाभी ने एक अंगोछा और कपडे ले कर बाहर आईं, फिर वहाँ से हम संकेत के घर गए ताकि वो भी अपने कपडे ले ले| आखिर हम सरयू जी पहुँचे, मैंने उन्हें प्रणाम किया और मन ही मन अपने किये पाप के लिए उनसे माफ़ी माँगी| जाने क्यों पर मेरा दिल कहने लगा था की जिस प्रकार भगवान राम चन्दर जी ने रावण का वद्ध किया था और फिर ब्रह्महत्या के पाप से निवारण हेतु उन्होंने स्नान और पूजा-पाठ इत्यादि किया था उसी तरह आज मैं भी रितिका की हत्या करने के बाद इस पवित्र जल से अपने पाप धोने आया हूँ| मैं खुद की तुलना भगवान राम चंद्र जी से नहीं कर रहा था बस हालत को समान मान रहा था!

सरयू जी में प्रवेश करते हुए मुझे वो सारे पल याद आ रहे थे जो मैंने ऋतू के साथ बिताये थे! वो उसका मेरे सीने से लग कर खुद को पूर्ण समझना, उसकी छोटी-छोटी नादानियाँ, मेरा उसे पीछे से अपने हाथों से जकड़ लेना, उसका ख्याल रखना वो सब याद कर के मैं रो पड़ा| बहुत प्यार करता था मैं उससे, पर अगर उसके सर पर बदला लेने का भूत ना चढ़ा होता तो आज मुझे ये नहीं करना पड़ता| ये सब सोचते हुए मैं अच्छे से रगड़-रगड़ कर नहाया, मानो जैसे उसका खून मेरे जिस्म से पेंट की भाँती चिपक गया हो! नहाने के बाद मैं बाहर निकला और किनारे पर सर झुका कर बैठ गया| सूरज की किरणे जिस्म पर पड़ रही थीं और ऐसा लगा मानो जैसे मेरी मरी हुई आत्मा फिर से जीवित हो रही हो! कुछ देर बाद हम घर के लिए निकल पड़े और जैसे ही संकेत ने मुझे घर छोड़ा तो ताऊ जी और पिताजी बाहर मेरी ही राह देख रहे थे| मैं बाइक से उतरा तो ताऊ जी ने रितिका का खून होने की खबर दी, मैं कुछ react ही नहीं कर पाया और मेरे मुँह से बस नेहा के लिए चिंता बाहर आई; "नेहा कहाँ है?" इतने में डैडी जी गाडी की चाभी ले कर आये और हम उनकी गाडी से रितिका के घर पहुँचे| पुलिस की जबरदस्त घेराबंदी थी पर चूँकि वो दरोगा ताऊ जी को जानता था सो उसने हमें आगे आने दिया और सरे हालत के बारे में बताया| दरवाजे के पास एक महिला पुलिस कर्मी कान्ता का ब्यान लिख रही थी और एक दूसरी पुलिस कर्मी रोती हुई नेहा को गोद में लिए हुए ताऊ जी के पास आई और उन्हें नेहा को गोद में देने लगी पर ताऊ जी चूँकि दरोगा से बात कर रहे थे सो मैंने फ़ौरन नेहा को गोद में ले लिया और उसे अपनी छाती से लगा लिया| नेहा को जैसे ही उसके पापा के जिस्म का एहसास हुआ वो एकदम से चुप हो गई और आँखें बड़ी करके मुझे देखने लगी| मैंने उसके माथे को चूमा और उसे फिरसे अपने गले लगा लिया| मेरा दिल जो उसके कान के पास था वो अपनी बेटी से उसके बाप द्वारा किये हुए पाप की माफ़ी माँगने लगा था| मेरी आँखें एक बार फिर भीग गईं, पीछे खड़े डैडी जी ने मेरी पीठ सहलाई और मुझे हौंसला रखने को कहा| थोड़ी बहुत पूछ-ताछ के बाद हम घर लौट आये, जैसे ही मैं नेहा को गोद में लिए हुए आंगन में आया की अनु दौड़ती हुई मेरे पास आई| मेरी आँखों में देखते हुए उसने नेहा को गोद में ले लिया, मैंने उससे नजरें फेर लीं क्योंकि मुझ में अब हिम्मत नहीं हो रही थी की मैं उसका सामना कर सकूँ| रितिका की मौत का किसी को उतना अफ़सोस नहीं हुआ जितना होना चाहिए, कारन आफ था की जो उसने मेरे और परिवार के साथ किया| अगले दिन मम्मी-डैडी जाने वाले थे की पुलिस आ धमकी और सबसे सवाल-जवाब करने लगी| चूँकि हमने रितिका पर आरोप लगाया था की उसने मुझ पर हमला करवाया था इसलिए ये कार्यवाही लाजमी थी| मुझे इसका पहले से ही अंदेशा था इसलिए मैंने इसकी तैयारी पहले ही कर रखी थी| जब दरोगा ने मुझसे पुछा की मैं कत्ल के समय कहाँ था तो मैंने उसे अपनी कहानी सुना दी; "जी मैं अपने परिवार के साथ होली खेल रहा था, उसके बाद हम दोस्त लोग नहाने के लिए गए थे| जब वापस आये तो मुझे ये सब पता चला|"

"तुम्हारे ऊपर जब हमला हुआ तो तुम्हें रितिका पर गुस्सा नहीं आया?" दरोगा ने पुछा|

"आया था पर मैं अपाहिज कर भी क्या सकता था?!" मैंने अपनी टूटी-फूटी हालत दिखाते हुए कहा| पर उसे मुझ पर शक था सो उसने मेरी बातों को चेक करना शुरू कर दिया| अपना शक मिटाते-मिटाते वो उस physiotherapy क्लिनिक जा पहुँचा जहाँ मैं जाय करता था| उन लोगों ने भी मेरी बात को सही ठहराया, चूँकि वो क्लिनिक रितिका के घर से अपोजिट पड़ता था इसलिए अब उसे मेरी बात पर इत्मीनान हो गया था और उसने मुझे अपने शक के दायरे से बाहर कर दिया था| सारी बात आखिर कार घूम कर 'राघव' पर आ कर अटक गई, उसी को main accused बना कर केस बंद कर दिया गया| इधर अनु मेरे बर्ताव से परेशान थी, मैं उसके पास हो कर भी नहीं था| होली के तीसरे दिन घर के सारे बड़े मंदिर गए थे, अनु जानबूझ कर घर रुकी हुई थी| मैं जैसे ही निकलने को हुआ की अनु ने मेरा दायाँ हाथ कस कर पकड़ लिया और मुझे खींच कर ऊपर ले आई और दरवाजा बंद कर दिया| "क्या हो गया है आपको? किस बात की सजा दे रहे हो खुद को? ना ठीक से खाते हो ना ठीक से सोते हो?! रातबेरात उठ जाते हो और सिसकते रहते हो?! मुझसे नजरें चुराए घुमते हो, मेरे पास बैठना तो छोडो मुझे छूते तक नहीं! और मुझे तो छोड़ो आप नेहा को भी प्यार से गले नहीं लगाते, वो सारा-सारा दिन रोती रहती है अपने पापा के प्यार के लिए!" अनु रोते हुए बोली| मैं सर झुकाये उसके सारे आरोप सुनता रहा, वो चल कर मेरे पास आई और मेरी ठुड्डी पकड़ कर ऊपर की; "जानते हो न की अगर आप ये कदम नहीं उठाते तो क्या होता? आप नहीं होते, मैं नहीं होती, हमारा बच्चा नहीं होता, माँ-पिताजी....सब कुछ खत्म हो जाता! मैं समझ सकती हूँ की आपको कैसा लग रहा है?! पर आपने जो किया वो गलत नहीं था, पाप नहीं था! आप ही ने कहा था ना की जब घर में कोई जंगली-जानवर घुसा आता है तो आदमी पहले अपने परिवार को बचाता है, फिर क्यों आप खुद को कसूरवार ठहराए बैठे हो?!" अनु मेरी आँखों में देखते हुए बोली| उसकी बात सुन कर मुझे एहसास हुआ की वो सच ही कह रही है और मेरा यूँ सबसे दूर रहना और खुद को दोषी मानना गलत है! मैंने आज तीन दिन बाद अनु को कस कर अपने सेने से लगा लिया, अंदर जो भी बुरे विचार थे वो अनु के प्यार से धुल गए| मैंने उसके माथे को चूमा और मुझे इस काली कोठरी से आजाद कराने के लिए शुक्रिया कहा| "हर बार जब मैं खुद को अंतहीन अँधेरे में घिरा पाता हूँ तो तुम अपने प्यार की रौशनी से मुझे उजाले में ले आती हो!" मैंने कहा और अनु के माथे को एक बार फिर चूम लिया|


चूँकि रितिका का हमारे अलावा कोई परिवार नहीं था तो चौथे दिन हमें रितिका की body सौंपी जानी थी| परिवार में किसी को भी इससे कतई फर्क नहीं पड़ रहा था| आखरी बार जब मैंने ऋतू का चेहरा देखा तो मुझसे खुद को संभाला नहीं गया और मैं घुटनों पर गिर कर रोने लगा| अनु जो मेरे पीछे थी उसने मुझे संभाला और बड़ी मुश्किल से संभाला| एक ऐसी लड़की जिसे मैं इतना प्यार करता था उसने मुझे उसी का खून करने पर मजबूर कर दिया था! ये दर्द मेरे लिए सहना बहुत मुश्किल था| "तेरे साथ जो उसने किया, उसके बाद भी तू उसके लिए आँसू बहा रहा है?" ताऊ जी बोले|

"मैंने कभी उससे कोई दुश्मनी नहीं की, वो बस पैसों की चका-चौंध से अंधी हो गई थी पर अब तो रही नहीं तो कैसी दुश्मनी!" मैंने जवाब दिया और खुद को किसी तरह संभाला| बड़े बेमन से ताऊ जी ने सारी क्रियाएँ करनी शुरू कीं, पर ऋतू को आज मुखाग्नि दी जानी थी| अनु मुझे एक तरफ ले गई और बोली; "मुखाग्नि आप दोगे ना?" मैंने हाँ में सर हिलाया|

भले ही मेरी और ऋतू की शादी नहीं हुई पर उसे मंगलसूत्र सबसे पहले मैंने बाँधा था, उन कुछ महीनों में हमने एक पति-पत्नी की तरह जीवन व्यतीत किया था और अनु ये सब जानती थी इसलिए उसने ये बात कही थी| जब मुखाग्नि का समय आया तो मैं आगे आया; "ताऊ जी सबसे ज्यादा ऋतू को प्यार मैंने ही किया था, इसलिए कृपया मुझे ही मुखाग्नि देने दीजिये!" मैंने कहा और ताऊ जी को लगा की मैं चाचा-भतीजी वाले प्यार की बात कर रहा हूँ इसलिए उन्होंने इसका कोई विरोध नहीं किया| रितिका को मुखाग्नि देते समय मैं मन ही मन बोला; "आज हमारे सारे रिश्ते खत्म होते हैं! मैं भगवान से दुआ करूँगा की वो तेरी आत्मा को शान्ति दें!" आग की लपटों ने ऋतू की जिस्म को अपनी आगोश में ले लिया और उसे इस दुनिया से आज मुक्ति मिल गई! अगले कुछ दिनों में जो भी जर्रूरी पूजा और दान होते हैं वो सब किये गए और मैं उनमें आगे रहा|


आखिर अब हमारा परिवार एक जुट हो कर खड़ा था और फलने-फूलने लगा था| खुशियाँ अब permanently हमारे घर आ आकर अपना घर बसाने लगीं थी| नेहा को उसके बाप और माँ दोनों का लाड-प्यार मिलने लगा था| अनु उसे हमेशा अपने से चिपकाए रखती और कभी-कभी तो मेरे और अनु के बीच मीठी-मीठी नोक-झोक हो जाती की नेहा को प्यार करने का मौका बराबर मिलना चाहिए! मई का महीना लगा और अनु का नौवां महीना शुरू हो गया, अनु ने मुझसे कहा की मैं घर में नेहा को कानूनी रूप से गोद लेने की बात करूँ| दोपहर को जब सब का खाना हो गया तो मैंने बात शुरू की; "पिताजी....मैं और अनु नेहा को कानूनी रूप से गोद लेना चाहते हैं!" ये सुन कर पिताजी और ताऊजी समेत सारे लोग मुझे देखने लगे| "पर बेटा इसकी क्या जर्रूरत है तुझे? घर तो एक ही है!" पिताजी बोले|

"जर्रूरत है पिताजी... नेहा के साथ भी कुछ वैसे ही हो रहा है जो उसकी माँ ऋतू के साथ हुआ| अनु की डिलीवरी के बाद मुझे और अनु को शहर वापस जाना होगा और फिर यहाँ नेहा अकेली हो जाएगी| अगर मैं उसे साथ ले भी जाऊँ तो वहाँ लोग पूछेंगे की हमारा रिश्ता क्या है? कानूनी तौर पर गोद ले कर मैं उसे अपना नाम दे पाउँगा और वो मुझे और अनु को अपने माँ-बाप कह सकेगी| समय के साथ ये बात दब जाएगी की वो अनु की बेटी नहीं है!" मैंने बात घुमा-फिर कर कही| थोड़ी बहुत न-नुकूर होने के बाद आखिर ताऊ जी और पिताजी मान गए| मैंने अगले ही दिन ये कानूनी प्रक्रिया शुरू कर दी और चूँकि अनु की कुछ जान-पहचान थी सो ये काम जल्दी से हो भी गया| मंत्री की जायदाद का सारा क्लेम मैंने कानूनी रूप से ठुकरा दिया और साडी जायदाद बूढ़े माँ-बाप की देख रेख करने वाले ट्रस्ट को दे दी गई|

अनु की डिलीवरी से ठीक एक दिन पहले हमें नेहा के एडॉप्शन पेपर्स मिल गए और अब नेहा कानूनी तौर पर मेरी बेटी बन गई थी| मैं ये खुशखबरी ले कर घर आया, अनु को पेपर्स दिए और उसे जोर-जोर से पढ़ के सुनाने को कहा| इधर मैंने नेहा को अपनी गोद में उठा लिया और उसे चूमने लगा| अनु जैसे-जैसे पेपर्स के शब्द पढ़ती जा रही थी वैसे-वैसे उसकी ख़ुशी बढ़ती जा रही थी| जब उसका पढ़ना पूरा हो गया तब मैंने नेहा से सबके सामने कहा; "आज से मेरी बच्ची मुझे सब के सामने पाप कहेगी!" ये सुन कर नेहा मुस्कुराने लगी और उसके मुँह से आवाज आने लगी; 'डा...ड....' इन्हें सुन कर मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा और मैंने नेहा को कस कर अपने गले लगा लिया| "मुझे भी मेरी बेटी के मुँह से मम्मी सुनना है!" अनु बोली और मैंने नेहा को उसकी गोद में दे दिया, अनु ने नेहा को गले लगाया और फिर उसके माथे को चूमते हुए बोली; "बेटा एक बार मम्मी बोलो!" पर नेहा के मुँह से डा..ड...ही निकल रहा था जिसे सुन सब हँसने लगे| वो रात बड़ी खुशियों भरी निकली और इस ख़ुशी को देख ताऊ जी बैठे प्रार्थना करने लगे की अब कभी भी किसी की गन्दी नजर इस परिवार को ना लगे|

अगले दिन सब कुछ हँसी-ख़ुशी चल रहा था की दोपहर को खाने के बाद अनु ने मुझे अपने पास बुलाया और uncomfortable होने की शिकायत की| मैं उसे और भाभी को ले कर तुरंत हॉस्पिटल पहुँचा, डॉक्टर ने बताया की घबराने की कोई बात नहीं है, अनु जल्द ही लेबर में जाने वाली है| ठीक शाम को 4 बजे डॉक्टर ने उसे लेबर रूम में शिफ्ट किया, मैं थोड़ा घबराया हुआ था की जाने क्या होगा और उधर भाभी मेरा होंसला बढ़ाने लगी थी की सब ठीक ही होगा| पर मैं घबराया हुआ था तो भाभी ने घर फ़ोन कर के सब को बुला लिया| कुछ ही देर में पूरा घर हॉस्पिटल आ गया, भाभी ने माँ से कहा की वो नेहा को मुझे सौंप दें| नेहा जैसे ही मेरी गोद में आई मेरे दिल को कुछ चैन आया और ठीक उसी वक़्त नर्स बाहर आई और बोली; "मानु जी! मुबारक हो आपको जुड़वाँ बच्चे हुए हैं!" ये सुनते ही मैं ख़ुशी से उछल पड़ा और फ़ौरन अनु को मिलने कमरे में घुसा| अनु उस वक़्त बेहोश थी, मैंने डॉक्टर से पुछा तो उन्होंने बताया की अनु आराम कर रही है और घबराने की कोई बात नहीं है| ये सुन आकर मेरी जान में जान आई! कुछ मिनट बाद नर्स दोनों बच्चों को ले कर आई, एक लड़का और एक लड़की! दोनों को देख कर मेरी आंखें छलछला गईं| मैंने पहले नेहा को माँ की गोद में दिया और बड़ी एहतियात से दोनों बच्चों को गोद में उठाया| ये बड़ा ही अनोखा पल था जिसने मेरे अंदर बड़ा अजीब सा बदलाव किया था| दोनों बच्चे शांत थे और सो रहे थे, उनकी सांसें तेज चल रही थीं| मैंने एक-एक कर दोनों के माथे को चूमा, अगले ही पल मेरे चेहरे पर संतोष भरी मुस्कराहट आ गई| मेरी छोटी सी दुनिया आज पूरी हो गई थी! बारी-बारी से सब ने बच्चों को गोद में उठाया और उन्हें प्यार दिया| तब तक अनु भी जाग गई थी, मैं उसके पास पहुँचा और उसका दाहिना हाथ पकड़ कर उसके माथे को चूमा| "Baby .... twins!!!!" मैंने मुस्कुराते हुए कहा| अनु के चेहरे पर भी मुस्कराहट आ गई, इतने में भाभी मसखरी करते हुए बोलीं; "हाय राम! तुम दोनों सच्ची बेशर्म हो! हम सब के सामने ही ....!" भाभी बोलीं तो ताई जी ने उनके कान पकड़ लिए और बोलीं; "तो तू आँख बंद कर लेती!" ये सुन कर सारे हँस पड़े| "अच्छा बेटा कोई नाम सोचा है तुम दोनों ने?" ताऊ जी ने पुछा तो अनु मेरी तरफ देखने लगी; "आयुष" मैंने कहा और मेरे पीछे-पीछे अनु बोली; "स्तुति"! दोनों नाम सुन घरवाले खुश हो गए और ताऊ जी ने यही नाम रखने को कहा| कुछ देर बाद डॉक्टर साहिबा आईं और हमें मुबारकबाद दी| साथ ही उन्होंने मेरी तारीफ भी की कि मैंने अनु का इतना अच्छा ख्याल रखा की twins होने के बाद भी डिलीवरी में कोई complications नहीं हुई| शाम को मैं अनु और बच्चों को लेकर घर आया, तो सारे विधि-विधान से हम घर के भीतर आये| रात को सोने के समय मैंने अनु से बात की; "थैंक यू! मेरी ये छोटी सी दुनिया पूरी करने के लिए!" उस समय पलंग पर तीनों बच्चे एक साथ सो रहे थे और ये ही मेरी दुनिया थी! मेरे लिए तीनों बच्चों को संभालना एक चैलेंज था, जब एक रोता तो उसकी देखा देखि बाकी दो भी रोने लगते और तीनों को चुप कराते-कराते मेरा बैंड बज जाता| जब तीनों घुटनों पर चलने लायक हुए तब तो और गजब हुआ! तीनों घर भर में रेंगते हुए घूमते रहते! जब उन्हें तैयार करना होता तब तो और भी मजा आता क्योंकि एक को तैयार करने लगो बाकी दोनों भाग जाते| अनु मेरी मदद करती तब भी एक तो भाग ही जाता और जब तक उसे तैयार करते बाकी दोनों अपने कपडे गंदे कर लेते| मैं और अनु हँस-हँस के पागल हो जाते| मेरे दोस्त अरुण ने तो मुझे एक स्पेशल triplets carry bag ला कर दिया जिससे मैं तीनों को एक साथ गोद में उठा सकता था| दिन प्यार-मोहब्बत भरे बीतने लगे और बच्चे धीरे-धीरे बड़े होने लगे, मैं और अनु दोनों ही के बाल अब सफ़ेद हो गए थे पर हमारा प्यार अब भी वैसा का वैसा था| बच्चे बड़े ही फ़रमाबरदार निकले, कोई गलत काम या कोई बुरी आदत नहीं थी उनमें, ये अनु और मेरी परवरिश का ही नतीजा था| साल बीते और फिर जब नेहा शादी के लायक हुई तो मैंने उसे अपने पास बिठा कर सारा सच ब्यान कर दिया| वो चुप-चाप सुनती रही और उसकी आँखें भर आईं| वो उठी और मेरे गले लग कर रो पड़ी; "पापा... I still love you! आपने जो किया वो हालात के आगे मजबूर हो कर किया, अगर आपने वो नहीं किया होता तो शायद ाजे ये सब नहीं होता| आप कभी भी इसके लिए खुद को दोषी मत मानना, मुझे गर्व है की मैं आपकी बेटी हूँ! और माँ... आपने जितना प्यार मुझे दिया शायद उतना मेरी सगी माँ भी नहीं देती| मेरे लिए आप ही मेरे माता-पिता हो, वो (ऋतू) जैसी भी थी मेरा past थी... उनकी गलती ये थी की उन्होंने कभी पापा के प्यार को नहीं समझा अगर समझती तो इतनी बड़ी गलती कभी नहीं करती!" इतना कह कर नेहा ने हम दोनों को एक साथ अपने गले लगा लिया| नेहा के मुँह से इतनी बड़ी बात सुन कर हम दोनों ही खुद पर गर्व महसूस कर रहे थे| आज मुझे मेरे द्वारे किये गए पाप से मुक्ति मिल गई थी!


नेहा की शादी बड़े धूम-धाम से हुई और विदाई के समय वो हमारे गले लग कर बहुत रोई भी| कुछ समय बाद उसने अपने माँ बनने की खुश खबरी दी....

उसके माँ बनने के साल भर बाद आयुष की शादी हुई, उसे USA में एक अच्छी जॉब मिल गई और वो हमें अपने साथ ले जाना चाहता था पर अनु ने मना कर दिया और हमने हँसी-ख़ुशी उसे वहाँ सेटल कर दिया| कुछ महीने बाद स्तुति के लिए बड़ा अच्छा रिश्ता आया और सुकि शादी भी बड़े धूम-धाम से हुई| हमारे तीनों बच्चे सेटल हो गए थे और हम दोनों से खुशनसीब इंसान सहायद ही और कोई होता| एक दिन शाम को मैं और अनु चाय पी रहे थे की अनु बोली; "थैंक यू आपको की आपने इस प्यारी दुनिया को इतने प्यार से सींचा!" ये थैंक यू उस थैंक यू का जवाब था जो मैंने अनु को आयुष और स्तुति के पैदा होने के बाद दिया था| हम दोनों गाँव लौट आये और अपने जीवन के अंतिम दिन हाथों में हाथ लिए गुजारे| फिर एक सुबह हम दोनों के जीवन की शाम साबित हुई, रात को जो हाथ में हाथ ले कर सोये की फिर सुबह आँख ही नहीं खुली और दोनों ख़ुशी-ख़ुशी एक साथ इस दुनिया से विदा हुए!


Happy Ending !!!!
bahad khubsurat update ke sath bade bhai ne ek beshkimti kathanak ka samapan bahut hi bhavye dhang se kiya hai jo apne aap me hi swayam ek anmol ahshash kara gaya.
 
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