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Romance काला इश्क़! (Completed)

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अगली सुबह हुई तो हम अब भी उसी तरह लेटे हुए थे| ऋतू की आँख खुली और उसने मेरी गर्दन को चूमा तब मेरी आँख खुली| मैंने ऋतू के सर को चूमा और तब ऋतू उठ के बाथरूम में घुस गई| मैं भी अंगड़ाई लेता हुआ उठा और अपना फ़ोन देखा तो उसमें एक मेल आई थी| मुझे एक इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था, मेरे पास बस दो घंटों का समय था इसलिए जैसे ही ऋतू बाथरूम से निकली मैं तुरंत बाथरूम में घुस गया| 10 मिनट में नहा कर बाहर आया, ऋतू मेरी टी-शर्ट पहने हुए चाय बना रही थी| "जान! प्लीज जल्दी से कपडे पहनो, I've an interview to catch!" ये सुनते ही ऋतू ने फटाफट चाय बनाई और मेरे लिए टोस्ट भी बना दिए| मैंने कपडे पहने और खड़े-खड़े ही नाश्ता किया और दोनों साथ निकले, ऋतू को मैंने हॉस्टल छोड़ा; "Best of luck!!!" ऋतू ने कहा और मैंने मुस्कुरा कर थैंक यू कहा| फिर मैं इंटरव्यू के लिए पहुँच गया, वहाँ गिनती के लोग थे और जब मेरा नंबर आया तो उन्होंने मेरा रिज्यूमे देखा और फाइनली मैं सेलेक्ट हो गया! आज जितनी ख़ुशी मुझे पहले कभी नहीं हुई थी! मैंने तुरंत ऋतू को कॉल किया और उसे कॉलेज के बाहर बुलाया, वो भी मेरी आवाज से मेरी ख़ुशी समझ चुकी थी| मैं ख़ुशी से इतना बावरा हो गया था की मुझे कोई होश नहीं था| जैसे ही ऋतू कॉलेज के गेट से बाहर आई मैंने उसे गोद में उठा लिया और गोल-गोल घूमने लगा| "I'm so happy!" कहते हुए मैंने ऋतू को नीचे उतारा, कॉलेज का गार्ड मुझे ऐसा करते हुए देख रहा था| जब मेरा ध्यान उस पर गया तो मैंने ऋतू का हाथ पकड़ा और उसे खींच कर पार्क की तरफ भागा| ऋतू भी मेरे साथ ऐसे भाग रही थी जैसे मैं उसे literally घर से भगा कर ले जा रहा हूँ| आस-पास जो भी कोई था वो हम दोनों को इस तरह भागते हुए देख रहा था| आखिर हम पार्क पहुँचे और वहाँ बेंच पर बैठ कर अपनी साँसों को काबू करने लगे|


"I ..... got the job!" मैंने उखड़ी-उखड़ी साँसों को काबू में करते हुए कहा| इतना सुनना था की ऋतू मेरी तरफ मुड़ी और कस कर मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया| "40K per month, Saturday is half day!"

"Thank God!" ऋतू ने भगवान् को शुक्रिया करते हुए कहा|

"हाँ बस एक दिक्कत है, हेड ऑफिस उन्नाओ में है| तो हफ्ते में एक दिन up-down करना पड़ेगा|" मैंने कहा|

"कोई बात नहीं!" एक-आध दिन सब्र कर लेंगे!" ऋतू ने मुस्कुराते हुए कहा|

"जान! सब कुछ सेट हो गया है अब! 40K ... उफ्फ्फ!! मुझे तो यक़ीन नहीं हो रहा!”
"तो चलो एक बार हिसाब कर लेते हैं की आपके क्या-क्या expenses हैं?" ऋतू ने बैग से कॉपी पेन निकालते हुए कहा| ये हरकत बचकानी थी पर मैं तो पहले से ही सब हिसाब किये बैठा था| मैंने अपना फ़ोन निकला और ऋतू को एक मैसेज भेजा जिसमें सारा हिसाब पहले से ही लिखा था| जब ऋतू ने वो पढ़ा तो वो हैरानी से मुझे देखने लगी:

1. घर का किराया: 8,500/- (इस महीने से बढ़ रहा है|)

2. राशन (मैक्सिमम): 3,000/-

3. बाइक की मेंटेनेंस: 3,000/- जिसमें 1,000/- reimburse होगा|

4. अतिरीक्त खर्चा: 4,000/- (provision for any unexpected expense)

हर महीने बचत: (कम से कम) 22,500/- इस हिसाब से 31 महीने (ऋतू के थर्ड ईयर के पेपर देने तक) के हुए 6,97,500/-


ऋतू ने जब 6 लाख की फिगर देखि तो उसकी आँखें छलक आईं; "जान ये फिगर और भी बढ़ेगी क्योंकि ये जो मैंने अतिरिक्त खर्चा रखा है ये भी कभी न कभी बचेगा! तो कम से कम ये मान कर चलो की हमारे पास 7 लाख होंगे! इतने पैसों से हम नई जिंदगी आराम से शुरू कर सकते हैं| अगर मैंने इन पैसों की FD करा दी तो ब्याज और भी मिलेगा!” उस समय मेरे दिमाग में जो अकाउंटेंट वाला दिमाग था वो बोलने लगा था और साड़ी प्लानिंग कर के बैठा था| ऋतू रोती हुई मुझसे लिपट गई; "जानू! मुझसे in 31 महीनों का सब्र नहीं होता!"

"जान! मैं हूँ ना तेरे साथ, ये 31 महीने मैं अपने प्यार से भर दूँगा!" मैंने ऋतू के सर को चूमते हुए कहा|

"जोइनिंग कब से है?" ऋतू ने पुछा|

"नेक्स्ट मंथ से! शुरू में तुम्हें थोड़ी दिक्कत होगी, क्योंकि काम समझने में थोड़ा टाइम लगेगा|"

"कोई बात नहीं! कम से कम आधा सैटरडे और पूरा संडे तो होगा हमारे पास!" ऋतू ने मुस्कुराते हुए कहा|

अब ये ख़ुशी सेलिब्रेट करनी तो बनती थी, इसलिए हम दोनों पिक्चर देखने गए और पिक्चर के बाद मैंने खुद हॉस्टल आंटी जी को फ़ोन कर दिया ये बोल कर की ऋतू मेरे साथ है और मैं उसे डिनर के बाद छोड़ दूँगा| हमने अच्छे से डिनर किया और फिर मैंने एक मिठाई का डिब्बा लिया और ऋतू को हॉस्टल छोड़ने चल दिया| वहाँ पहुँच के आंटी जी के पाँव छुए और उनका मुँह मीठा कराया की मेरी जॉब लग गई है| तभी मोहिनी भी आ गई और वो भी खुश हुई की मेरी नौकरी लग गई है और पूरा का पूरा मिठाई का डिब्बा ले कर खाने लगी| खेर इसी तरह दिन गुजरने लगे और दिवाली का दिन भी जल्द ही आ गया| मैं ऋतू को हॉस्टल से लेकर सीधा अंशुल की दूकान पर पहुँचा और माँ, ताई जी और भाभी के लिए साड़ियां खरीदी| एक साडी मैंने ऋतू के लिए भी खरीदी पर किसी तरह नजर बचा कर ताकि वो देख न ले, ताऊ जी, पिताजी और चन्दर के लिए सूट का कपडा लिया| वैसे तो मैं चन्दर और भाभी केलिए कुछ लेना नहीं चाहता था पर मजबूरी थी वरना सब कहते की इनके लिए क्यों कुछ नहीं लाया| ख़ुशी-ख़ुशी हम दोनों घर पहुँचे तो देखा घर का रंग-रोगन कराया जा चूका था| ऋतू तो सीधा घर घुस गई और मेंबीके कड़ी कर पिताजी से मिला और उनके पाँव हाथ लगाए| फिर उन्हें और ताऊ जी को ले कर मैं आँगन में आ गया और चारपाई पर बिठा दिया| "ऋतू, दरवाजा बंद कर दे!" मैंने ऋतू से कहा और फिर सभी को आवाज दे कर मैंने आंगन में बिठा दिया, एक-एक कर सब को उनके तौह्फे दिए तो सभी खुश हुए, सबसे ज्यादा अगर कोई खुश हुआ तो वो थी ऋतू जब मैंने उसे सबके सामने साडी दी| घर में उसने आज तक कभी साडी नहीं पहनी थी पर ये बात हमेशा की तरह भाभी को खटकी; "इसे साडी पहनना भी आता है?" उन्होंने कहा तो मुझे बड़ी मिर्ची लगी और मैंने उन्हें सुनाते हुए कहा; "आप कौन सा माँ के पेट से सीख कर आये थे? इसी दुनिया में सीखा ना? आप चिंता ना करो ऋतू आपको तंग नहीं करेगी की उसे साडी पहना दो, ताई जी हैं और माँ हैं वो सीखा देंगी|" अब ये बात भाभी को चुभी पर ताई जी ने बीच में पद कर बात आगे बढ़ने नहीं दी वरना ताऊजी से डाँट पड़ती! "ये बता की तुम दोनों ने कुछ खाया भी था?" ताई जी पुछा| मैंने बीएस ना में गर्दन हिलाई तो ताई जी ने खुद देसी घी के परांठे बनाये और मैंने डट के खाये!


चूँकि आज धनतेरस थी तो शाम को खरीदारी करने जाना था, हर साल पिताजी और ताऊ जी जाय करते थे पर इस बार मैं बोला; "ताऊ जी सारे चलें?" अब ये सुन कर वो हैरानी से मेरी तरफ देखने लगे| अब बाजार घर के इतने नजदीक तो नहीं था की सारे एक साथ पैदल चले जाएँ| बाइक से ही मुझे आधा घंटा लगता था, जब कोई कुछ नहीं बोला तो मुझे ही रास्ता सुझाना था| "चन्दर भैया आपका वो दोस्त है ना ...क्या नाम है...अशोक! उसे बुला लो ना?" ये सुनते ही वो मुस्कुरा दिए और फ़ोन निकाल कर उसे आने को कहा| अशोक का भाई मेरा दोस्त था और शादी-ब्याह में वो अपने ट्रेक्टर-ट्राली बारातियों के लाने-लेजाने के लिए किराये पर देते थे| "तू ज्यादा होशियार नहीं हो गया?" पिताजी ने प्यार से मेरे कान पकड़ते हुए कहा| ताऊ जी हँस दिए और उन्होंने सब को तैयार होने का आदेश दे दिया| सब तैयार हुए पर अब भी एक दिक्कत थी, वो ये की ट्रेक्टर चलाएगा कौन? चन्दर को तो आता नहीं था, इसलिए मैंने ही पहल की| जब स्कूल में पढता था तब कभी-कभी मस्ती किया करता था और हम दो-चार दोस्त मिल कर अशोक भैया का ट्रेक्टर खेतों में घुमाया करते थे| "तुझे ट्रेक्टर चलाना आता है?" ताऊ जी ने पुछा| मैंने हाँ में गर्दन हिलाई; "अरे तो पहले क्यों नहीं बताया? हम बेकार में ही दूसरों को इसके पैसे देते थे, इतने में तो नया ट्रेक्टर आ जाता|" ताऊ जी बोले| "पर मानु भैया घर पर होंगे तब तो?" पीछे से भाभी की आवाज आई अब मन तो किया की उन्हें कुछ सुना दूँ पर चुप रहा ये सोच कर की आज त्यौहार का दिन है क्यों खामखा सब का मूड ख़राब करूँ|


मैं ड्राइविंग सीट पर बैठा था और मेरे दाहिने हाथ पर ताऊ जी बैठ थे, बाईं तरफ पिताजी बैठ थे और बाकी सब एक-एक कर पीछे ट्राली में बैठ गए| इतने दिनों बाद ट्रेक्टर चला रहा था तो शुरू में बहुत धीरे-धीरे चलाया, फिर जैसे ही मैं रोड पकड़ा तो जो भगाया की एक बार को तो ताऊ जी बोल ही पड़े; "बेटा! धीरे!" तब जाके मैंने स्पीड कम की और हम सही सलामत बाजार पहुँच गए! बाजार में पिताजी के जान पहचान की एक दूकान थी और मैंने वहीँ ट्रेक्टर रोका और एक-एक कर सब उतरने लगे| सबसे आखरी में ऋतू रह गई थी और मुझे आज कुछ ज्यादा ही रोमांस चढ़ रहा था| जब वो उतरने लगी तो मैंने जानबूझ कर उसे कमर से पकड़ लिया और नीचे उतारा| हालाँकि इसकी कोई जर्रूरत नहीं थी पर आशिक़ी आज कुछ ज्यादा ही सवार थी, भाभी ने मुझे ऐसे करते हुए देखा तो बोली; "हाय! कभी मुझे भी उतार दो ऐसे!" ये सुनते ही ऋतू को मुँह फीका पड़ गया| "आप बहुत मोटे हो!!! आपको उठाने जाऊँगा तो मेरी कमर अकड़ जाएगी!" ये सुन कर माँ और ताई जी हँसने लगे और बेचारी भाभी शर्म से नीचे देखने लगी| पिताजी, चन्दर और ताऊ जी तो आगे चल दिए और इधर माँ, ताई जी, भाभी और ऋतू को साड़ियों का माप देना था, तो उनके साथ रहने की जिम्मेदारी मुझे दे दी गई| पिताजी एंड पार्टी तो अपने जान पहचान वाले दूकान दारों से मिलने लगे तो मैंने सोचा की हम सारे कुछ खा-पी लेते हैं| पर पहले माप देना था, सब एक-एक कर अपना माप लिखवा रहे थे और मैं बाहर खड़ा था और अरुण-सिद्धार्थ के मैसेज पढ़ रहा था|

माप दे कर सबसे पहले ताई जी आईं और उन्होंने पुछा की ताऊ जी कहाँ हैं तो मैंने कह दिया वो तो आगे चले गए सब से मिलने| "तो बेटा उन्हें फ़ोन कर|" ताई जी ने कहा| "छोडो ना ताई जी, चलो चल के कुछ खाते हैं|" तै जी मुस्कुरा दी और मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोलीं; "बाकियों को आने दे, फिर चलते हैं|" इतने में माँ आ गई और ताई जी ने हँसते उन्हें कहा; "तेरा लड़का समझदार होगया है| इसके लिए समझदार बहु लानी होगी|" मैं ये सुन कर हँस पड़ा, क्योंकि मैं जानता था की मेरी पसंद थोड़ी नसमझ है! पीछे से भाभी और ऋतू भी आ गए| फिर हम एक जगह बैठ के चाट खाने लगे, तभी चन्दर भैया हमें ढूँढ़ते हुए आ गए और हमें मज़े से चाट खाते हुए देख बोले; "वहाँ पिताजी आप सब को ढूँढ रहे हैं और आप सारे यहाँ बैठे चाट खा रहे हो?"

"अरे भूख लगी है तो कुछ खाये नहीं?!" ताई जी चन्दर को डाँटते हुए कहा| इतने में हम सबका खाना हो गया और हम सारे के सारे उठ के चल दिए, ताऊ जी ने जब पुछा तो ताई जी ने कह दिया की भूख लगी थी तो कुछ खा रहे थे| ताऊ जी ने फिर कुछ नहीं कहा और हमने खरीदारी की| पर इस बार ताई जी बहुत ज्यादा ही खुश थीं इसलिए वो माँ, भाभी और ऋतू को ले कर एक सुनार की दूकान में घुस गईं| ये हमारी खानदानी जान पहचान की दूकान थी तो सारा परिवार अंदर जा कर बैठ गया| हम सब की बड़ी आव-भगत हुई और मालिक ने खुद सब औरतों को जेवर दिखाए| ऋतू बेचारी चुप-चाप पीछे बैठी थी, इस डर से की कहीं कोई उसे डाँट ना दे| पर डाँट तो उसे फिर भी पड़ी, प्यार भरी डाँट! "रितिका! तू वहाँ पीछे क्या कर रही है? यहाँ तेरे लिए ही आये हैं और तू है की पीछे बैठी है? चल जल्दी आ और बता कौनसी अच्छी है तेरे लिए?" ये सुन कर ऋतू का सीना गर्व से चौड़ा हो गया| वो उठ के आगे आई और बोली; "दादी ... आप ही बताइये...मुझे तो कुछ पता नहीं!" ताई जी ने उसे माँ और अपने बीच बिठाया और उसे समझाते हुए बालियाँ पहनने को कहा| उसने एक-एक कर सब पहनी पर वो अब भी confuse थी तो मुझे उसकी मदद करनी थी... पर कैसे? मैं इधर-उधर देखने लगा फिर सामने नजर शीशे पर पड़ी| ऋतू की नजर अब भी सामने आईने पर नहीं थी बल्कि वो ताई जी और माँ की बात सुनने में व्यस्त थी, मैं बीएस इंतजार करने लगा की ऋतू उस आईने में देखे ताकि मैं उसे बता सकूँ की कौन सी बाली बढिये है| आखिर में उसने देख ही लिया, उसके दोनों हाथों में एक-एक डिज़ाइन था| मैंने उसे आँख के इशारे से बाएँ वाले को try करने को कहा, पर वो मुझे इतना नहीं जचा तो मैंने गर्दन के इशारे से दूसरे try करने को कहा| ये वाला मुझे बहुत पसंद आया तो मैंने हाँ में गर्दन हिला कर अपनी स्वीकृति दी! माँ ने मुझे ऋतू की मदद करते हुए देख लिया और बोल पड़ीं; "क्या बात है? तेरी पसंद बड़ी अच्छी है इन चीजों में?" माँ ने मजाक करते हुए कहा पर पता नहीं कैसे मेरे मुँह से निकला; "माँ कल को शादी होगी तो बीवी को इन सब चीजों में मदद करनी पड़ेगी ना? इसलिए अभी से प्रैक्टिस कर रहा हूँ!" ये सुनते ही सारे लोग जो भी वहाँ थे सब हँस पड़े| ऋतू के गाल भी शर्म से लाल हो गए थे क्योंकि वो समझ गई थी की ये बात मैंने उसी के लिए कही है| हँसते-खेलते हम घर लौटे और रात को खाने के बाद ताऊ जी, चन्दर और पिताजी सोने चले गए| मैं अब भी आंगन में बैठा था, ताई जी और सभी औरतें खाना खा रहीं थीं| थकावट हो रही थी सो मैं अपने कमरे में आ कर सो गया, रात को ऋतू ने मेरा दरवाजा खटखटाया पर मैं बहुत गहरी नींद में था इसलिए मुझे पता नहीं चला| अगली सुबह जब मैंने ऋतू से Good morning कहा तो वो मुँह फूला कर रसोई में चली गई| मैं सोचता रह गया की अब मैंने क्या कर दिया? जब वो चाय देने आई तो बोली; "मुझे कल रात को आपसे कितनी बातें करनी थी, पर आपको तो सोना है!" ये सुन कर मेरे मुँह से 'oops' निकला! पर आगे कुछ कहने से पहले ही वो चली गई, इधर पिताजी आये और मुझे अपने साथ चलने को कहा| मैंने अपनी बुलेट उठाई और पिताजी के साथ निकल पड़ा, दिन भर पिताजी ने जाने किस-किस को मिठाई देनी थी? कितनों के यहाँ बैठ के चाय पि शाम को घर आते-आते पेट में गैस भर गई! घर आते ही मैं पिताजी से बोला: "कान पकड़ता हूँ पिताजी! आज के बाद मैं आपके साथ दिवाली पर किसी के घर नहीं जाऊँगा!" ये सुन कर सारे हँस पड़े| "क्यों?" पिताजी ने अनजान बनते हुए पुछा; "इतनी चाय...इतनी चाय! मैंने ऑफिस में कभी इतनी चाय नहीं पि जितनी आपके जानने वालों ने पिला दी! मुझे तो चाय से नफरत हो गई|" तभी ऋतू जान बूझ कर एक कप में पानी ले कर आई और मुझे ऐसा लगा जैसे उसमें चाय हो, मैंने हाथ जोड़ते हुए कहा; "ले जा इस कप को मेरे सामने से नहीं तो आज बहुत मारूँगा तुझे!" ये सुन कर ऋतू और सभी लोग खिल-खिला कर हँस पड़े! रात को खाना खाने की बिलकुल इच्छा नहीं थी, इसलिए मैं ऊपर छत पर चूरन खा रहा था|

सब के खाना खाने तक मुझे नींद आ गई और मैं छत पर ही पैरापेट वॉल से टेक लगा कर सो गया| ऋतू ने आ कर मुझे जगाया तब मेरी नींद खुली, मैंने अंगड़ाई लेते हुए उसे देखा; "आप यहाँ क्यों सो रहे हो?" उसने पुछा|

"कल बिना बात किये सो गया था ना, इसलिए मैं यहाँ तेरा इंतजार कर रहा था| पता नहीं कब नींद आ गई! अब बता क्या बात करनी थी?"

"कल बात करेंगे, अभी आप सो जाओ|" ऋतू ने कहा तो मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे अपने सामने आलथी-पालथी मार के बैठने को कहा|

"कल दिवाली है और कल टाइम नहीं मिलेगा, बोल अब!" मैंने कहा|

"कल.... मेरे पास शब्द नहीं....दादी ने मेरे लिए पहली बार बालियाँ खरीदी ....सब आपकी वजह से!!!" ऋतू का गला भर आया था इसलिए उसने बस टूटे-फूटे शब्द कहे|

"अरे पागल! मैंने कुछ नहीं किया! देर से ही सही ये खुशियाँ तुझे मिलनी थी और तुझे तो खुश होना चाहिए ना की रोना चाहिए!" मैंने उठ के ऋतू के आँसू पोछे|

"नहीं.... इस घर में एक बस आप हो जो मुझे इतना प्यार करते हो, हर बात पर मेरा बचाव करते हो| आपके इसी बर्ताव के कारन दादी का और बाकी सब का दिल मेरे लिए पसीजा है| आप अगर नहीं होते तो कोई मेरे बारे में कभी नहीं सोचता, पहले सब यही चाहते थे की मेरी शादी हो जाए और मैं इस घर से निकल जाऊँ पर आपके प्यार के कारन अब सब मुझे इस घर का हिस्सा समझने लगे हैं|" ऋतू ने अब रोना शुरू कर दिया था|

"अच्छा मेरी माँ! अब बस चुप हो जा!" मैंने ऋतू को अपने सीने से चिपका लिया तब जा कर उसका रोना बंद हुआ|

"तू ना...जितना हँसती नहीं उससे ज्यादा तो रोती है| Global water crisis solve करना है क्या तूने?" मैंने मजाक में कहा तो ऋतू की हँसी निकल गई| इस तरह हँसते हुए मैंने उसे उसके कमरे के बाहर छोड़ा और मैं अपने कमरे में घुस गया| सुबह हुई और मैं जल्दी उठ गया, एक तो भूख लगी थी और दूसरा आज सुबह काम थोड़े ज्यादा बचे थे| सारा काम निपटा के आते-आते दोपहर हो गई और फिर सब ने एक साथ खाना खाया और रात की पूजा के लिए तैयारियाँ शुरू हो गई| वही लालची पंडित आया और हम सब पूजा के लिए बैठ गए| सबसे आगे माँ-पिताजी और ताई जी-ताऊ जी थे, उनके पीछे चन्दर भैया-भाभी और उनकी बगल में मैं और ऋतू बैठे थे| पूजा सम्पन्न हुई और पंडित अपनी दक्षिणा ले कर चला गया, इधर मैंने और ऋतू ने पूरी छत मोमबत्तियों से सजा दी और सारा घर जगमग होगया| नीचे आ कर सब ने खाना खाया और फिर सब छत पर आ गए और आतिशबाजी देखने लगे| मैं नीचे से सब के लिए फूलझड़ी और अनार ले आया, फूलझड़ियां मैंने ऋतू, माँ, ताई जी और भाभी को जला कर दी तथा अनार जलाने का काम चन्दर और मैं कर रहे थे| "मानु भैया अगर बम ले आते तो और मजा आता|" चन्दर ने कहा तो ताऊ जी ने मना कर दिया; "बिलकुल नहीं! वो बहुत आवाज करते हैं, यही काफी है!" चन्दर भैया अपना मुँह झुका कर अनार जलाने लगे| रात के नौ बजे थे और सब थके हुए थे इसलिए जल्दी ही सो गए| रात ब्रह बजे मैं उठा क्योंकि मुझे िठाइ खानी थी, तो मैं दबे पाँव नीचे आया और मिठाई का डिब्बा खोल कर मिठाई खाने ही जा रहा था की ऋतू आ गई| दोनों हाथ कमर पर रखे वो प्यार भरे गुस्से से मुझे देखती रही| मुझे उसे ऐसा देख कर कॉलेज की टीचर की याद आ गई और हँस पड़ा| "टीचर जी! सॉरी!" मैंने कान पकड़ते हुए कहा तो ऋतू मुस्कुराती हुई मेरे पास आई और मिठाई के डिब्बे से मिठाई निकाल कर खाने लगी| अब तो हम दोनों मुस्कुरा रहे थे और मिठाई खा रहे थे, दोनों ने मिल कर आधा डिब्बा साफ़ कर दिया और फिर पानी पी कर दोनों ऊपर आ गए| मैंने झट से ऋतू का हाथ पकड़ा और उसे अपने कमरे में खींच लिया| दरवाजे के साथ वाली दिवार से उसे सटा कर खड़ा किया और उसके गुलाबी होठों को मुँह में भर कर चूसने लगा| ऋतू ने तुरंत अपने हाथ मेरी पीठ पर फिराने शुरू कर दिए| मेरा मन तो उसके निचले होंठ को पीने पर टिका था इधर ऋतू का जिस्म जलने लगा था, उसका हाथ अब मेरे लंड पर आ गया और वो उसे दबाने लगी| अब उस समय सेक्स करना बहुत बड़ा रिस्क था इसलिए मैं रुक गया; "जान! ये नहीं प्लीज! शहर जा कर!" ऋतू का दिल टूट गया और उसने अपना हाथ मेरे लैंड के ऊपर से हटा लिया| मैं मजबूर था इसलिए मैंने उसे बस "प्लीज!!!" कहा तो शायद वो समझ गई और धीमे से मुस्कुराई! अब आगे अगर मैं उसे kiss करता तो फिर वही आग सुलग जाती इसलिए मैं रूक गया और उसे good night कहा| मैं समझ गया था की ऋतू को बुरा लगा है पर उसने अगले ही पल पलट कर पंजों पर खड़े होते हुए मेरे होठों को चूम लिया और खिल-खिलाती हुई अपने कमरे में भाग गई, मैं भी खड़ा-खड़ा कुछ पल मुस्कुराता रहा और फिर सो गया|
Ye Ishq dhere dhire parvan chadh raha he :music:
Superb update :good:
 

Rockstar_Rocky

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शुक्रिया जी!!!

मेरी कहानी भी आपकी कहानी की तरह इनसेस्ट ही है लेकिन मुझे भी रोमांस ही बेहतर लगा.... क्योंकि कहानी की मूल भावना प्यार है...न की हवस
इनसेस्ट टैग करते ही हवस के भूखे भेड़िये घेर लेते हैं और कमेंट कर कर के कहानी लिखना मुश्किल कर देते हैं कि "इनसेस्ट है तो अब तक सेक्स क्यों नहीं हुआ... परिवार कि सब औरतों...लड़कियों को चोदा क्यों नहीं हीरो ने.......... उसकी बहन, माँ, चाची, बुआ, भतीजी, बेटी बाहर क्यों चुदवा रही हैं..........कहानी जाए तेल लेने... बस चुदाई करवाते रहो...घर में"
लेखक को कहानी नहीं लिखने देते..... अपनी कहानी लिखवाने लगते हैं.... जैसे लेखक ने इनकी नौकरी कर ली हो...

रीडर्स को कई बार लेखक के जज़्बात समझ नहीं आते, समझ आती है तो बस हवस! दुखद बात है परन्तु सच है!

I am very happy to read today's update as Manu gets the job again. Diwali came very quickly. Ritu and Manu are back in the village. Today, for the first time, the family has treated Ritu well. Everything went well so far. Now let's see what happens next in the story, Till then waiting for the next part of the story. Thank You...:heart::heart::heart:
:thankyou: dear

Ye Ishq dhere dhire parvan chadh raha he :music:
Superb update :good:
:thankyou: जी!!!
 

Assassin

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शुक्रिया जी!!!



रीडर्स को कई बार लेखक के जज़्बात समझ नहीं आते, समझ आती है तो बस हवस! दुखद बात है परन्तु सच है!


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:thankyou: जी!!!
Waiting for next update ji
 

Rockstar_Rocky

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कल बहुत काम था जी...... इसलिए लिखने का कुछ समय नहीं मिला.... आज लिखूंगा और अपडेट भी दूँगा!
 

firefox420

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nice update Rocky bhai... diwali aur dussehra dono hi acche guzre Maanu aur Ritika ke apne pariwaar ke saath.... aur waise bhi... :sex:... he he

aakir Maanu ki mehnat rang layi.. aur uski job bhi acchi lag-gayi...

ek bakchodi samjh mein nahi aayi.... Maanu ke ghar mein 3 - 3 log kheti sambhal rahe hai... aur inhe tractor chalana nahi aata... maan liye ke saara kaam batayi par ya kiraye par tractor se jutai kara lete honge...

to kya itne bade kisan bante fir rahe hai... jarurat ke liye in logo ne car bhi nahi khareedi...

aur to bakchod Maanu bhi pura hai .. waise to daaru par itna karcha kar dega .. par apne ghar walo ko bazar le jaane ke liye gaanv mein kisi se tractor - trolly maang kar laya .. kya saala ye ek innova - taxi nahi mangwa sakta tha .. ab kaha gayi iski chivalry .. bas sala ye bhi ladkiyo ke saamne hi apni fukra panti jhaadta rehta hai .. baaki to ye bhi aive hi hai..

to saare din ye log karte kya hai... jab kheti koi aur sambhal raha hai... baardana inke paas hai nahi.... netagiri ye nahi karte... to kya saare din baith kar XF par story padhte hai...

aur ye jhaatu chandar ... ise koi kaam aata bhi hai.. na is-se kheti hoti... pehli biwi kisi aur ke saath bhaag gayi thi.... aur dusri biwi ke to lakshan hi nahi hai inke ghar mein rehne ke, wo to bas uski taal nahi baith rahi, nahi to wo to sab ke ghode par chadne ko taiyaar hai .. aur yaha iss chodu chandar se bacche bhi paida nahi hote... ek beti paida kari .. uske bhi peeche pade rehte hai ..

ghar mein koi aur aage ka waris hai nahi... sirf Maanu ke bharose baithe hai .. ki wo shaadi karke inko pote - potiya de dega .. to inke ghar ka bhavishya sudhar jaayega ..

par Maanu ne to ulta apne ghar walo ke pichwade mein hi bhambu dene ka program banaya hua hai .. wo bhi ghar ki ladki ke saath .. jo uski bhatiji hai ..

jis din ye sab ghatit hoga .. us din inke pariwaar ki izzat ki to dhajjiya udd jayengi .. aur wo sala netaji aur ulta inke pariwaar ke piche pad jayega .. jab Maanu aur Ritika nahi milenge .. Chandar ki puri family ki KLPD charo taraf se hone wali hai .. agle 2 saalo mein .. agar sab kuch planning ke hisab se chalta raha to ..
 
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Rahul

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wonderfull update bhaiya ji
 
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Rockstar_Rocky

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अगली सुबह मैं उठा और जैसे ही नीचे आया की ऋतू ने मुझे चिढ़ाना शुरू कर दिया| "दादी जी...आपको पता है, रात को एक चोर आया था और देखो आधी मिठाई साफ़ कर दी!" ये सुन कर सारे लोग हँसने लगे और मैं भी मुस्कुराता हुआ चारपाई पर बैठ गया| "ताई जी, चोर अकेला नहीं था! एक चोरनी भी थी उसके साथ!" ये सुन के तो सब ने ठहाका मार के हँसना शुरू कर दिया| "तुम दोनों की बचपन की आदत गई नहीं?" माँ ने मेरे कान पकड़ते हुए कहा| "ये दोनों जब छोटे थे तब ऐसे ही रात को रसोई में घुस जाते थे और मिठाई चुरा कर खाते थे!" माँ ने कहा| तभी भाभी बोली; "अरे! तो घर में चोरी कौन करता है? मांग कर खा लेते?" ये बात सब को बुरी लगी क्योंकि वहां तो बीएस मजाक चल रहा था, ताई जी को गुस्सा आया और वो भाभी को झिड़कते हुए बोलीं; "भक! ज्यादा बकवास की ना तो मारब एक कंटाप!"

"चुप कर जा हरामजादी!" चन्दर भैया ने भी उन्हें झिड़क दिया और भाभी मुँह फूला कर चली गईं! पता नहीं क्यों पर भाभी से इस परिवार की ख़ुशी देखि नहीं जाती थी और मुझसे तो उनका 36 का आंकड़ा था! पर फिर वो क्यों मुझे अपने जिस्म की नुमाइश किया करती थीं? ये ऐसा सवाल था जिसका जवाब जानने में मुझे कटाई रूचि नहीं थी, इसलिए मैं बस इस सवाल से बचता रहता था|

शाम को मंदिर में पूजा थी सो सब वहाँ चले गए, मुझे तो रास्ते में संकेत मिल गया तो मैं उससे बात करने में लग गया| उससे मिल कर मैं मंदिर पहुँचा पर वहाँ तो बहुत भीड़ थी, इसलिए मैं बाहर ही खड़ा रहा| रात को खाने के बाद मैं छत पर थल रहा था की ऋतू मिठाई का डिब्बा ले कर आ गई और मुझे डिब्बा खोल कर देते हुए गंभीर हो गई| "क्या हुआ?" मैंने पुछा तो वो सर झुकाये हुए बोली; "कल भाई-दूज है, घर में सब कह रहे थे की चूँकि मेरा कोई भाई नहीं इसलिए कल आपको तिलक...." इतना कहते हुए वो रुक गई! अब ये सुन कर तो मैं सन्न रह गया! मैं अपना सर पकड़ के खड़ा ऋतू को देखता रहा की शायद वो आगे कुछ और बोले पर वो सर झुकाये खामोश खड़ी रही| मैं नीचे जा कर भी कुछ नहीं कह सकता था वरना सब उसका 'सही' मतलब निकालते! 'सही' मेरे अनुसार होता, उनके अनुसार तो ये 'गलत' ही होता! मैं बिना ऋतू को कुछ कहे नीचे आ गया और फिर घर से बाहर निकल गया| कुछ देर बाद मैं घर आया तो माँ ने पुछा की कहाँ गया था, तो मैंने झूठ बोल दिया की ऐसे ही टहलने गया था| कुछ देर बाद मुझे संकेत का फ़ोन आया और मैं उससे जूठ-मूठ की बात करने लगा| मैंने घर में सब को ऐसे दिखाया जैसे की मेरा ऑफिस से कॉल आया हो और मैं झूठ-मूठ की बात करते हुए कल सुबह ही निकलने का प्लान बनाने लगा| बात खत्म हुई तो मुझे कैसे भी ये बात घर में सब को बतानी थी पर ये भी ध्यान रखना था की कहीं भाई-दूज के चक्कर में फँस जाऊँ| "पिताजी कल कुछ ऑफिस के काम से मुझे बरेली निकलना होगा|" मैं झूठ बोला|

"कुछ दिन के लिए आता है और उसमें भी ये तेरे ऑफिस वाले तेरा पीछा नहीं छोड़ते!" पिताजी ने थोड़ा डाँटते हुए कहा|

"दरअसल पिताजी प्रमोशन का सवाल है, इसलिए जा रहा हूँ| कल सुबह जल्दी निकल जाऊँगा और रात तक लौट आऊँगा|" इतना कह कर मैं अपने कमरे में भाग लिया ताकि कहीं वो ये ना कह दें की सुबह तिलक लगवा के निकलिओ! कमरे में आते ही मैंने दरवाजा बंद किया और औंधे मुँह बिस्तर पर लेट गया| मुझे कैसे भी कर के खुद को इस भाई-दूज के दिन से बचाना था| सुबह मैं 3 बजे उठ गया, अभी तक ऋतू नहीं उठी थी| मैं फटाफट नहाया और तैयार हो कर नीचे आ गया| सुबह के चार बजे थे और अभी सिर्फ ताई जी जगी थीं, मुझे तैयार देख कर वो समझ गईं और चाय बनाने जाने लगी तो मैंने उन्हें मना कर दिया, इस डर से की कहीं ऋतू जाग गई तो फिर फँस जाऊँगा| घर से तो निकल लिया पर अब समय भी तो काटना था, इसलिए में सीधा मंदिर चला गया और वहाँ जा कर बैठ गया| 5 घंटे बाद मुझे संकेत का फ़ोन आया और उसने मुझे बजार से पिक करने बुलाया, मैं बुलेट रानी के संग बाजार पहुँचा और संकेत को पिक किया| सकते को दरसल कुछ काम से लखनऊ जाना था तो मैंने उसे ये झूठ बोल दिया की पिताजी कुछ काम से मुझे रिश्तेदारों के भेज रहे हैं, अब मैं वहाँ गया तो फिर वही शादी का रोना होगा| ये था तो बकवास बहाना पर संकेत को जरा भी शक नहीं हुआ| पूरा दिन उसके साथ ऐसे ही घुमते-फिरते बीता बीएस फायदा ये हुआ की मुझे खेती-बाड़ी के काम के बारे में कुछ सीखने को मिल गया की बीज कहाँ से लेते हैं, यूरिया कौन सा अच्छा होता है और मंडी कहाँ है, आदि| शाम हुई तो संकेत ने कहा की चल दारु पीते हैं, पर मैं तो वचन बद्ध था! तो मैंने उसे ये बोल कर टाल दिया की मैं त्योहारों में दारु नहीं पीता! पर उसे तो पीनी थी, वो भंड हो के पीने लगा और रात 11 बजे तक पीता रहा| पीने के बाद उसे याद आई उसके जुगाड़ की! तो उसने मुझे उसकी गर्लफ्रेंड के घर ले चलने को कहा| ये कोई लड़की नहीं बल्कि एक विधवा भाभी थी जो उसी के रिश्ते में थी| नैन-नक्श से तो बड़ी कातिल थी और उसकी जवानी उबाले मार रही थी| जब बाइक उसके घर रुकी तो वो बाहर आई और हम दोनों को देख कर जैसे खुश हो गई| उसे लगा की आज तो उसे दो-दो लंड मिलने वाले हैं, पर भैया हम तो पहले से ही ऋतू के हो चुके थे! मैंने जैसे-तैसे संकेत को उतारा और अंदर ले गया, बिस्तर पर छोड़ कर मैं पलट के बाहर आने लगा तो भाभी बोली; "आपका नाम मानु है ना? संकेत ने आपके बारे में बहुत बताया है|" अब मैं उनसे बात करने के मूड में कतई नहीं था इसलिए मैं बिना कुछ कहे साइड से निकलने लगा; "रुक जाओ ना आज रात!" भाभी ने बड़ी अदा से कहा पर मैंने अपना भोला सा चेहरा बनाया और कहा: "भाभी घर जाना है, सब राह देख रहे होंगे|"

"अरे तो कौन सा तुम्हारी लुगाई है जिसके पास जाने को उतावले हो रहे हो? तनिक रूक जाओ आज रात, कुछ बात करेंगे!" भाभी इठलाते हुए बोलीं|

"अरे दो प्रेमियों के बीच मेरा क्या काम? खामखा कबाब में 'हड्डा' लगूँगा|"

"अरे काहे के प्रेमी! ई सार बस साडी उठात है और चढ़ी जात है!" भाभी ने संकेत पर गुस्सा निकालते हुए कहा|

"अब जउन बोओ है, सो काटो! इतना कह कर मैंने बाइक स्टार्ट की और घर के लिए निकल पड़ा| मेरे घर पहुँचते-पहुँचते 1 बज गया था, सब सो चुके थे एक बस मेरी प्यारी जान थी जो जाग रही थी| रात के सन्नाटे में बुलेट की आवाज सुन उसने दरवाजा खोला| मैं अंदर आया तो उसने उदास मुखड़े से पुछा: "आपने खाना खाया?" तो मैंने हाँ कहा, फिर इस डर से की कहीं कोई जाग ना जाये मैं चुपचाप ऊपर आ गया और अपने कपडे उतारने लगा| तभी ऋतू ऊपर आ गई और मेरे लिए दूध ले आई, ये दूध वो मेरी परीक्षा लेने के लिए लाइ थी! दरअसल मेरे कपड़ों से दारु की महक आ रही थी और ऋतू को मुझसे ये सीधा पूछने में डर लग रहा था| मैं समझ गया की क्या माजरा है इसलिए मैंने दूध का गिलास उठाया और ऋतू को दिखते हुए गटागट पी गया| ऋतू को तसल्ली हो गई की मैंने शराब नहीं पि है| "जानू!.... एक बात कहूँ? आप नाराज तो नहीं होंगे?" ऋतू ने सर झुकाये हुए कहा| माने बस हाँ में सर हिलाया और ऋतू को अपनी अनुमति दी| "मैं कल ....आपसे मजाक किया था .....की भाई-दूज के लिए ....." ऋतू इतना बोल कर चुप हो गई| ये सुन कर मुझे बहुत हँसी आई! पर अब मेरी बारी थी ऋतू से मजाक करने की| मैंने गुस्से से ऋतू को देखा, पर उसकी गर्दन झुकी हुई थी तो वो मेरा गुस्से से तमतमाता हुआ चेहरा देख नहीं पाई| मैंने उसकी ठुड्डी पकड़ कर ऊपर की और तब उसकी नजर मेरी गुस्से से लाल आँखों पर पड़ी; "तू पागल है क्या? तेरी वजह से में दिनभर मारा-मारा फिरता रहा! तुझे मजाक करने के लिए यही टॉपिक मिला था?" मैंने गुस्से से दबी हुई आवाज में दाँत पीसते हुए कहा| ऋतू बेचारी शं गई और लघभग रोने ही वाली थी की मैंने हँसते हुए अपनी छाती से चिका लिया और उसके सर को सहलाते हुए कहा; "जान! मैं मजाक कर रहा था! आप मुझसे मज़ाक कर सकते हो तो मैं नहीं कर सकता?" ये सुन कर ऋतू को इत्मीनान हुआ की अभी मैं सिर्फ मज़ाक कर रहा था| "जानू! आप न बड़े खराब हो! मेरी तो जान ही निकाल दी थी आपने? दो मिनट आप और ये ड्रामा करते ना तो सच्ची में मैं रोने लगती!" ऋतू ने थोड़ा सिसकते हुए कहा| मैंने ऋतू के सर को चूमा और उसे जा कर सोने को कहा|

अगली सुबह हमें शहर वापस जाना था तो दोनों समय से उठ गए और नाहा-धो के नाश्ता कर के निकल लिए| कुछ दूर जाते ही ऋतू ने अपना बैठने का पोज़ बदल लिया और मुझसे कस कर चिपक गई| दोनों ही के मन में तरंगें उठ रहीं थी, क्योंकि शहर पहुँचते ही दोनों एक दूसरे में खो जाना चाहते थे| मैंने बाइक ढाबे के पास स्लो की तो ऋतू बोली; "प्लीज मत रुको! सीधा घर चलते हैं!" उसकी बात सुन के उसकी बेसब्री साफ़ जाहिर हो रही थी| मन तो मेरा भी उसे पाने को व्याकुल था, इसलिए मैंने बाइक फिर से हाईवे पर दौड़ा दी! घर पहुँच कर मैं बाइक कड़ी कर रहा था और ऋतू फटाफट ऊपर भागी, दरअसल उसे बाथरूम जाना था! मैं ऊपर पहुँचा तो ऋतू बाथरूम से निकल रही थी, मैंने दरवाजा बंद किया और हाथ धो ने के लिए बाथरूम जाने लगा| "कहाँ जा रहे हो?" ऋतू ने पुछा और मेरा हाथ पकड़ के मुझे बिस्तर पर खींच लिया| "जान! हाथ-मुँह तो धो लूँ?" मैंने कहा पर ऋतू के बदन की आग भड़कने लगी थी| "क्या करना है हाथ-मुँह धो के? बाद में अच्छे से नहा लेना, अभी तो आप मेरे पास रहो! बहुत तड़पाया है आपने!"

मैं ने ऋतू को पलट कर अपने नीचे किया और उसके ऊपर आ कर उसके थर-थर्राते होटों को देखा| मैंने नीचे झुक कर उन्हें चूमना शुरू किया और ऋतू ने मेरा पूरा सहयोग दिया|

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हम दोनों अभी होठों से एक दूसरे के दिल की आग को भड़का रहे थे की ऋतू का फ़ोन बड़ी जोर से बज उठा| ऋतू को तो जैसे उस फ़ोन की कोई परवाह ही नहीं थी पर मेरे लिए उस फ़ोन की रिंगटोन बड़ी कष्टदाई थी! मैं ऋतू के ऊपर से उठ गया और ऋतू का फ़ोन उठा के उसे दिया| "क्या जानू? बजने देना था न?" ऋतू ने नाराज होते हुए कहा| "यार मुझसे ये शोर बर्दाश्त नहीं होता! इसे जल्दी से निपटा तब तक मैं हाथ-मुँह धो लेता हूँ|" मैं इतना कह कर बाथरूम में घुस गया और इधर गुस्से में कॉल करने वाली पर बिगड़ गई! "तुझे ये नंबर दिया किसने? उस कुटिया की तो.....!!! हाँ ...ठीक है....बोला ना आ रही हूँ! तू फ़ोन रख!" मैं बाहर आया तो देखा ऋतू गुस्से में तमतमा रही है| "क्या हुआ?" मैंने पुछा तो ऋतू गुस्से में बोली; "उस हरामज़ादी ने मेरा नंबर सब लड़कियों को बाँट दिया! ऊपर से प्रोफेसर ने आज असाइनमेंट्स सबमिट करने की लास्ट डेट कर दी है! नहीं जमा करने पर पेनल्टी लगा रहे है!"

"पर तेरे तो सारे असाइनमेंट्स पूरे हैं? फिर क्यों गुस्सा हो रही है?"

"पर मुझे आज का दिन आपके साथ बिताना करना था! कल से आपका ऑफिस है, फिर हम कब मिलेंगे?" मैंने अपनी बाहें खोलीं और ऋतू एक दम से मेरे गले लग गई, मैंने उसके सर को चूमते हुए कहा; "जान! मैं चाँद पर नहीं जा रहा की तुम से मिलने आ न सकूँ?! शुरू-शुरू थोड़ी दिक्कत होगी, पर तुम जानती हो ना मैंने तुम्हें कभी नाराज नहीं करता? फिर क्यों चिंता करती हो?"


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हम दोनों ऐसे ही एक दूसरे से लिपटे कुछ देर खड़े रहे और फिर मैंने ऋतू को उसके हॉस्टल ड्राप किया| "आप प्लीज कहीं जाना मत, मैं अपने असाइनमेंट्स ले कर आती हूँ|" ये कह कर ऋतू हॉस्टल में भगति हुई घुसी और फिर अपना बैग ले कर आ गई| फिर मैंने उसे उसके कॉलेज छोड़ा और मैं अपने घर वापस आ गया| चूँकि अगले दिन ऑफिस था तो मैंने अपने कपडे वगैरह सब प्रेस कर के तैयार किये, बैग धो कर रेडी किया, थोड़ी बहुत घर की साफ़-सफाई की और दोपहर और रात का खाना बना लिया| शाम 4 बजे मैं ऋतू से मिलने निकल पड़ा, ठीक 5 बजे मैं उसके कॉलेज के गेट के सामने खड़ा था| तभी वहाँ रोहित आ गया और आ कर मेरे पास खड़ा हो गया| उसे देखते ही मुझे याद आ गया की साले ने जो काम्या से चुगली की थी!

मैं: तूने काम्या से क्या कहा था मेरे बारे में?

रोहित: क...क्या बोल रहे हो आप?

मैं: क्या बोल रहा था तू की मेरा किसी मैडम के साथ अफेयर चल रहा है और मेरे कारन उनका डाइवोर्स हो गया?

रोहित: न....नहीं तो!

मैं: अगर बोला है तो कबूल करने का गूदा भी रख! (मैंने आवाज ऊँची करते हुए कहा|)

रोहित: ब्रो...वो मैंने तो बस...

मैं: अबे तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरे बारे में ऐसी बात करने की? तूने मुझसे पुछा भी था की ये बात सच है या नहीं? लौंडा है तो जनानियों जैसी हरकत न कर! कहने को मैं भी कह सकता हूँ जो तेरी गर्लफ्रेंड ने जयपुर में रायता फैलाया था! (मैंने गुस्से से ऋतू के एक दम नजदीक जाते हुए कहा|)

रोहित: तेरा बहुत ज्यादा हो रहा है अब?

रोहित ने अपनी अकड़ दिखाते हुए कहा और ये सुन कर मेरा पारा और भी चढ़ गया| मैंने उसका कालर पकड़ लिया|

मैं: अपनी ये गर्मी मुझे मत दिखा, जा कर अपनी गर्लफ्रेंड को दिखा जिसकी आग तू बूझा नहीं पाता और वो इधर-उधर मुँह मारना चाहती है| उस दिन जयपुर में उसने ऋतू से कहा था की वो एक रात मेरे साथ गुजारना चाहती है, तभी तो ऋतू गुस्से में निकल पड़ी थी|

रोहित: य...ये झूठ है!

तभी पीछे से ऋतू आ गई;

ऋतू: ये सच है! तेरे साथ तो वो बस पैसों के लिए घूमती है| पैसों के बिना तो वो तेरे जैसों को घास ना डाले!

ऋतू ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और मैंने थोड़ा धक्का देते हुए उसका कालर छोड़ा|

मैं: आज के बाद दुबारा हम दोनों के बारे में कुछ बकवास की ना तो तेरे लिए अच्छा नहीं होगा!

इतना कह कर मैंने बुलेट को जोर से किक मारी और उसे बिना बोले ही चेतावनी दी! फिर हम दोनों अपनी पसंदीदा जगह पर आ गए और चाय पीने लगे| पता नहीं क्यों पर ऋतू को खुद पर गर्व महसूस हो रहा था और वो मंद-मंद मुस्कुरा रही थी| जब मैंने कारन पुछा तो वो बोली; "आज जब मैंने आपके कंधे पर हाथ रखा तो आपने उसे छोड़ दिया| आज मुझे पहली बार लगा जैसे मैं आपको कण्ट्रोल कर सकती हूँ!" ये सुन कर मैं मुस्कुरा दिया, क्योंकि मैंने रोहित को इसलिए छोड़ा था क्योंकि मैं वहाँ कोई तमाशा खड़ा नहीं करना चाहता था| पर मैं चुप रहा ये सोच के की ऋतू को इस खुशफैमी में रहने दिया जाए! अगले दिन मैं समय से उठा और तैयार हो कर दस मिनट पहले ही ऑफिस पहुँच गया| सबसे मेरा इंट्रो हुआ और यहाँ का स्टाफ मेरी उम्र वाला था, कोई भी शादीशुदा आदमी या लड़की मुझे यहाँ नहीं दिखाई दी| एकाउंट्स में मेरे साथ एक लड़का और था, पहले दिन तो काम समझते-समझते निकल गया| लंच टाइम में ऋतू का फ़ोन आया और मैं उससे बात करते हुए बाहर आ गया| शाम को मिलना मुश्किल था पर मैंने उसे कहा की मैं हॉस्टल आऊँगा उसे पढ़ाने के बहाने, तो ऋतू खुश हो गई| शाम को साढ़े पाँच मैं निकला और ऋतू के हॉस्टल पहुँचा| आंटी जी के पाँव हाथ लगाए और फिर ऋतू अपनी किताब ले कर आ गई और मैं उसे पढ़ाने लगा, वो पढ़ाना कम और अपनी आँखें ठंडी करना ज्यादा था| फिर मैं घर लौटा और खाना खा कर सो गया|
 

Rockstar_Rocky

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wonderfull update bhaiya ji
आप तो लेट हो गये भैया जी! बिजी हो गए थे लगता है!
 

Rockstar_Rocky

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ek bakchodi samjh mein nahi aayi....

Maanu ke ghar mein 3 - 3 log kheti sambhal rahe hai... aur inhe tractor chalana nahi aata... maan liye ke saara kaam batayi par ya kiraye par tractor se jutai kara lete honge...


अपने सवाल का खुद ही जवाब दे दिए भाई! क्या बात है!!!! :lol1:

to kya itne bade kisan bante fir rahe hai... jarurat ke liye in logo ne car bhi nahi khareedi...

ये बॉलीवुड फिल्म का गाँव नहीं है जहाँ जमींदार के पास एक बड़ा बंगला होता है और 10-15 गाडी बाहर खड़ी होती हैं| ये एक आम परिवार है जिनकी जर्रूरतें कम हैं और वैसे भी जिस परिवार के साथ इतना बड़ा काण्ड हुआ हो वो लोगों के सामने दिखावा करने से कतराता है|

aur to bakchod Maanu bhi pura hai .. waise to daaru par itna karcha kar dega .. par apne ghar walo ko bazar le jaane ke liye gaanv mein kisi se tractor - trolly maang kar laya .. kya saala ye ek innova - taxi nahi mangwa sakta tha .. ab kaha gayi iski chivalry .. bas sala ye bhi ladkiyo ke saamne hi apni fukra panti jhaadta rehta hai .. baaki to ye bhi aive hi hai..

क्या बकचोदी कर दी मानु ने? घर वालों के लिए तौह्फे लाया ना? एक तो बेचारा पहले से ही job less है ऊपर से फिर भी अपने परिवार के लिए इतनी खरीदारी कर के लाय| फिर ये खरीदारी करने जाने का उसने प्लान नहीं किया था! जिस गाँव की यहाँ बात हो रही है वहाँ Ola या Uber नहीं चलती की मानु फ़ोन निकाल कर कैब बुक कर लेता| मानु के घर से शहर आने के लिए सिर्फ एक बस ही है और कोई साधन नहीं है और तो और बस स्टैंड तक भी पैदल जाना पड़ता है, कोई ई-रिक्शा नहीं है वहाँ| दरअसल आपने असली गाँव-खेड़ा देखा ही नहीं है! मैं उस गाँव से आता हूँ जहाँ आज भी लोग सोचालय के लिए बाहर जाते हैं, बिजली के मीटर तो लग गए पर बिजली अब तक नहीं आई| सड़कों के नाम पर बस खड़ंजा बिछा है और ये कहानी ऐसे ही गाँव की है| अगर सब सुविधा वहाँ मुहैया होती तो बात ही क्या थी!

to saare din ye log karte kya hai... jab kheti koi aur sambhal raha hai... baardana inke paas hai nahi.... netagiri ye nahi karte... to kya saare din baith kar XF par story padhte hai...

कहानी की पहली लाइन आपने ढंग से नहीं पढ़ी! कृपया उसे दुबारा पढ़ें:
"कहानी शुरू होती है एक छोटे से गाँव में जहाँ एक खेती बाड़ी करने वाला जमींदार परिवार रहता है| बड़े भाई सुमेश जमीन की खरीद फरोख करते हैं और उनके छोटे भाई राजेश इन जमीनों पर खेती बाड़ी का काम देखते हैं|"
आशा करता हूँ आप समझ गए होंगे की वो सब करते क्या हैं|



aur ye jhaatu chandar ... ise koi kaam aata bhi hai.. na is-se kheti hoti... pehli biwi kisi aur ke saath bhaag gayi thi.... aur dusri biwi ke to lakshan hi nahi hai inke ghar mein rehne ke, wo to bas uski taal nahi baith rahi, nahi to wo to sab ke ghode par chadne ko taiyaar hai .. aur yaha iss chodu chandar se bacche bhi paida nahi hote... ek beti paida kari .. uske bhi peeche pade rehte hai ..

कहानी में कहीं भी किसी को नहीं बताया की वो करता क्या है? कारन आपको आगे पता चल जायेगा| उसका अपनी बीवी से कैसा रिश्ता है वो सब आगे कहानी में पता लग जायेगा| अगर सब अभी बता दूँगा तो कहानी के main characters से सब का ध्यान भंग हो जाएगा| अभी तो हम आधे रस्ते भी नहीं पहुँचे, इसलिए थोड़ा सब्र रखिये|

ghar mein koi aur aage ka waris hai nahi... sirf Maanu ke bharose baithe hai .. ki wo shaadi karke inko pote - potiya de dega .. to inke ghar ka bhavishya sudhar jaayega ..

शायद यही कारन है की घर के बड़ों का मानु के प्रति अब रवैया नरम सा होने लगा है| कहानी के मध्य पहुँच कर आपको सब पता चल जायेगा|

par Maanu ne to ulta apne ghar walo ke pichwade mein hi bhambu dene ka program banaya hua hai .. wo bhi ghar ki ladki ke saath .. jo uski bhatiji hai ..

jis din ye sab ghatit hoga .. us din inke pariwaar ki izzat ki to dhajjiya udd jayengi .. aur wo sala netaji aur ulta inke pariwaar ke piche pad jayega .. jab Maanu aur Ritika nahi milenge .. Chandar ki puri family ki KLPD charo taraf se hone wali hai .. agle 2 saalo mein .. agar sab kuch planning ke hisab se chalta raha to ..

मानु और ऋतू के इस नाजायज रिश्ते पर कमेंट करने पर आप बहुत लेट हो गए! अब तो दोनों बहुत नजदीक आ गए हैं तो अब ये सवाल किस लिए? रही मानु की उसके 'घरवालों के बम्बू' करने की तो आप शायद भूल रहे हैं की उसके मन में ऋतू के लिए कोई प्यार नहीं था| बल्कि ऋतू ने ही उसके मन में प्यार जगाया था| तो परिवार दोनों को accept करेगा या फिर परिवार की इज्जत की धज्जियाँ उड़ेंगी ये सब भविष्य के गर्भ में है| थोड़ा धर्य और सब्र करें!


ये मात्र एक कहानी है ...काल्पनिक है! ये कोई DC Universe की मूवी नहीं जिसमें आपको plot holes मिलें| जो कुछ भी आपको अभी इसमें कमी मिल रही है उसका कुछ न कुछ कारन अवश्य है और वो अंत तक अवश्य ही स्पष्ट हो जाएगा| ये मेरी दूसरी कहानी है और मैं इसे पूरे विस्तार से लिख रहा हूँ... पर मुझे ये भी देखना है की मैं किसी एक करैक्टर (जैसे की चन्दर और भाभी) के पीछे पड़ जाऊँ की main characters बिचारे अकेले पड़ जाएँ|

आशा करता हूँ मेरा explanation आपको समझ आया होगा|
 
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