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Romance काला इश्क़! (Completed)

Rahul

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wonderfull update bhaiya ji
 

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Bro aj update nhi doge kya?. .. .

अपडेट का काम जारी है! थोड़ी तबियत नसाज़ है इस कारन ज्यादा लिख नहीं पाया इसलिए अपडेट कल आएगा| देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ! :sorry:

wonderfull update bhaiya ji

शुक्रिया जी!!! :thank_you:
 

Assassin

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अपडेट का काम जारी है! थोड़ी तबियत नसाज़ है इस कारन ज्यादा लिख नहीं पाया इसलिए अपडेट कल आएगा| देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ! :sorry:



शुक्रिया जी!!! :thank_you:
Take care sarkar
 

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अपडेट का काम जारी है! थोड़ी तबियत नसाज़ है इस कारन ज्यादा लिख नहीं पाया इसलिए अपडेट कल आएगा| देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ! :sorry:



शुक्रिया जी!!! :thank_you:
Take care sarkar
 

Rockstar_Rocky

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update 58

शादी अच्छे से निपट गई और घर वाले अगले दिन वापस गाँव चले गए| फिर वही त्योहारों की झड़ी और इस बार घर वालों ने जबरदस्ती हमें घर पर बुला लिया तो सारे त्यौहार उन्हीं के साथ हँसी-ख़ुशी मनाये गए| अब घर पर थे तो अकेले में बैठने का समय नहीं मिलता था, इसलिए मैं कई बार देर रात को ऋतू के पास जा कर बैठ जाता और वो कुछ देर हम एक साथ बैठ कर बिताते| घर से बजार जाने के समय मैं कोई बहाना बना देता और ऋतू को साथ ले जाता| दिवाली की रात हम सारे एक साथ बैठे थे तो ताऊ जी ने मुझे अपने पास बैठने को बुलाया;

ताऊ जी: वैसे मुझे तेरी तारीफ तेरे सामने नहीं करनी चाहिए पर मुझे तुझ पर बहुत गर्व है| इस पूरे परिवार में एक तू है जो अपनी सारी जिम्मेदारियाँ उठाता है| मुझे तुझ में मेरा अक्स दिखता है....!

ये कहते हुए ताऊ जी की आँखें नम हो गईं|

पिताजी: भाई साहब सही कहा आपने| पिताजी के गुजरने के बाद सब कुछ आप ने ही तो संभाला था|

ताऊ जी: मानु बेटा, जब तूने घर लेने की बात कही तो मैं बता नहीं सकता की मुझे कितना गर्व हुआ तुझ पर| तू अपनी मेहनत के पैसों से अपना घर लेना चाहता है, सच हमारे पूरे खानदान में कभी किसी ने ऐसा नहीं सोचा|

मेरी तारीफ ना तो चन्दर भैया के गले उतर रही थी और ना ही भाभी के और वो जैसे-तैसे नकली मुस्कराहट लिए बैठे थे| पर मेरे माता-पिता, ताई जी और ख़ास कर ऋतू का सीना गर्व से चौड़ा हो गया था|

पिताजी: बेटा थोड़ा समय निकाल कर खेती-किसानी भी सीख ले ताकि बाद में तुम और चन्दर ये सब अच्छे से संभाल सकें| तेरी और रितिका की शादी हो जाए तो हम सब तुझे और चन्दर को सब दे कर यात्रा पर चले जायेंगे|

ताई जी: बेटा मान भी जा हमारी बात और कर ले शादी!

मैं: माफ़ करना ताई जी मैं कोई जिद्द नहीं कर रहा बस घर खरीदने तक का समय माँग रहा हूँ|

ताऊ जी: ठीक है बेटा!

तो इस तरह मुझे पता चला की आखिर घर वाले क्यों मुझे अचानक इतनी छूट देने लगे थे| अगले दिन मैं और ऋतू वापस चेहर लौट आये और फिर दिन बीतने लगे| क्रिसमस पर हम दोनों सुबह चर्च गए और वो पूरा दिन हम ने घूमते हुए निकाला| पर अगले दिन घर से खबर आई की ताऊ जी की तबियत ख़राब है, ये सुन कर ऋतू ने कहा की उसे घर जाना है| उसकी अटेंडेंस का कोई चक्कर नहीं था तो मैं उसे घर छोड़ आया| उसके यहाँ ना होने के कारन मैंने 31st दिसंबर नहीं मनाया और घर पर ही रहा| जब मैं उसे लेने घर पहुँचा तो ऋतू बोली; "जानू! जब से मैं पैदा हुई हूँ तब से हमने कभी होली नहीं मनाई|"

"जान! दरअसल वो .... 'काण्ड' होली से कुछ दिन पहले ही हुआ था| इसलिए आज तक इस घर में कभी होली नहीं मनाई गई| पर कोई बात नहीं मैं बात करता हूँ की अगर ताऊ जी मान जाएँ|"

"ठीक है! पर अभी नहीं, अभी उनकी तबियत थोड़ी सी ठीक हुई है और वैसे भी अभी तो दो महीने पड़े हैं|" ऋतू ने कहा| ताऊ जी की तबियत ठीक होने लगी थी इस लिए उन्होंने खुद ऋतू को वापस जाने को कहा था|


जनवरी खत्म हुआ और फिर कॉलेज का एनुअल डे आ गया| पर मुझे दो दिन के लिए बरेली जाना था, जब मैंने ये बात ऋतू को बताई तो वो रूठ गई और कहने लगी की वो भी नहीं जायेगी| मैंने बड़ी मुश्किल से उसे जाने को राजी किया ये कह कर की; "ये कॉलेज के दिन फिर दुबारा नहीं आएंगे|" ऋतू मान गई और मैंने ही उसके लिए एक शानदार ड्रेस सेलेक्ट की| ऋतू ये नहीं जानती थी की मेरा प्लान क्या है! अरुण चूँकि पहले से ही बरेली में था तो मैंने उससे मदद मांगी की वो काम संभाल ले और मैं एक ही दिन में अपना बचा हुआ काम उसे सौंप कर वापस आ गया| एनुअल डे वाले दिन ऋतू कॉलेज पहुँच गई थी, मैंने गेट पर से उसे फ़ोन किया और पुछा की वो गई या नहीं? ऋतू ने बताया की वो पहुँच गई है| ये सुनने के बाद ही मैं कॉलेज में एंटर हुआ और ऋतू को ढूंढता हुआ उसके पीछे खड़ा हो गया| मैंने उसकी आँखिन मूँद लीं और वो एक दम से हड़बड़ा गई और कहने लगी; "प्लीज... कौन है?... प्लीज…छोड़ो मुझे!" मैंने उसकी आँखों पर से अपने हाथ उठाये और वो मुझे देख कर हैरान हो गई|


हैरान तो मैं भी हुआ क्योंकि ऋतू आज लग ही इतनी खूबसूरत रही थी



और मैं उम्मीद करने लगा की वो आ कर मेरे गले लग जाएगी पर ऐसा नहीं हुआ| मुझे लगा शायद ऋतू शर्मा रही है पर तभी राहुल अपने दोनों हाथों में कोल्ड-ड्रिंक लिए वहाँ आ गया| उसने एक कोल्ड ड्रिंक ऋतू की तरफ बढ़ाई और ऋतू ने संकुचाते हुए वो कोल्ड-ड्रिंक ले ली| मुझे देख कर राहुल बोला; "Hi!" पर मैंने उसकी बात को अनसुना कर दिया|

तभी ऋतू ने मेरा हाथ पकड़ा और राहुल को 'excuse us' बोल कर मुझे एक तरफ ले आई|

"आज तो बड़े dashing लग रहे हो आप?" ऋतू बोली|

"थैंक यू ... but .... I thought you didn’t like him!” मैंने कहा क्योंकि फर्स्ट ईयर के एनुअल डे पर ऋतू ने यही कहा था|

“I…realized that we should’nt blame children because of their parents. It wasn’t his fault?” ऋतू ने सोचते हुए कहा|

“Fair enough…. Anyway you’re looking faboulous today!” मैंने ऋतू को कॉम्पलिमेंट देते हुए कहा|

“Thank you! वैसे आपने तो कहा था की आपको बहुत काम है और आप नहीं आने वाले?" ऋतू ने मुझसे शिकायत करते हुए कहा|

"भाई अपनी जानेमन को मैं भला कैसे उदास करता?" मैंने ऋतू का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा|

"मैंने सोच लिया था की मैं आप से बात नहीं करुँगी!" ऋतू ने कहा|

"इसीलिए तो भाग आया!" मैंने हँसते हुए कहा और ऋतू भी ये सुन कर मुस्कुरा दी| इस बार कुछ डांस पर्फॉर्मन्सेस थीं तो मैं और ऋतू खड़े वो देखने लगे और लाउड म्यूजिक के शोर में एन्जॉय करने लगे| ऋतू की कुछ सहेलियाँ आई और वो भी हमारे साथ खड़ी हो कर देखने लगीं| ये देख कर मैंने सोचा की चलो ऋतू ने नए दोस्त बना लिए हैं. काम्य के जाने के बाद ऋतू की जिंदगी में दोस्त ही नहीं थे!


खेर दिन बीते और होली आ गई....

हर साल की तरह इस साल भी हम दोनों होली से एक दिन पहले ही घर आ गए| शाम को होलिका दहन था, जिसके बाद सब घर लौट आये| रात का खाना बन रहा था और आंगन में मैं, चन्दर भय, पिताजी और ताऊ जी बैठे थे|

मैं: ताऊ जी...आप बुरा ना मानें तो आपसे कुछ माँगूँ? (मैंने डरते हुए कहा|)

ताऊ जी: हाँ-हाँ बोल!

मैं: ताऊ जी ... इस बार होली घर पर मनाएँ?

मेरे ये बोलते ही घर भर में सन्नाटा पसर गया, कोई कुछ नहीं बोल रहा था और मैं मन ही मन सोचने लगा की मैंने कुछ ज्यादा ही माँग लिया क्या? ताऊ जी उठे और छत पर चले गए और पिताजी मुझे घूर कर देखने लगे और फिर वो भी ताऊ जी के पीछे छत पर चले गए| कुछ देर बाद मुझे ताऊ जी ने ऊपर से आवाज दी, मैं सोचने लगा की कुछ ज्यादा ही फायदा उठा लिया मैंने घर वालों की छूट का| छार पर पहुँच कर मैं पीछे हाथ बांधे खड़ा हो गया|

ताऊ जी: तुझे पता है की हम क्यों होली नहीं मनाते?

मैंने सर झुकाये हुए ना में गर्दन हिलाई, कारन ये की अगर मैं ये कहता की मुझे पता है तो वो मुझसे पूछते की किस ने बताया और फिर संकेत और उसके परिवार के साथ हमारे रिश्ते बिगड़ जाते|

ताऊ जी: तुझे नहीं पता, चन्दर की पहली बीवी रितिका जिससे हुई वो किसी दूसरे लड़के के साथ घर से भाग गई थी| उस टाइम बहुत बवाल हुआ था, गाँव में हमारी बहुत थू-थू हुई| उस समय गाँव के मुखिया जो आजकल हमारे मंत्री साहब है उन्होंने ......फरमान सुनाया की दोनों को मार दिया जाए| इसलिए हम ....होली नहीं मनाते| (ताऊ जी ने मुझे censored बात बताई|

मैं: तो ताऊ जी हम बाकी त्यौहार क्यों मनाते हैं?

पिताजी: ये घटना होली के आस-पास हुई थी इसलिए हम होली नहीं मनाते| (पिताजी ने ताऊ जी की बात ही दोहराई और 'होली नहीं मनाते' पर बहुत जोर दिया|)

मैं: जो हुआ वो बहुत साल पहले हुआ ना? अब तो सब उसे भूल भी गए हैं! गाँव में ऐसा कौन है जो हमारी इज्जत नहीं करता? हम कब तक इस तरह दब कर रहेंगे? ज़माना बदल रहा है और कल को मेरी शादी होगी तो क्या तब भी हम होली नहीं मनाएँगे?

शायद मेरी बात ताऊ जी को सही लगी इसलिए उन्होंने खुद ही कहा;

ताऊ जी: ठीक है...लड़का ठीक कह रहा है| कब तक हम उन पुरानी बातों की सजा बच्चों को देंगे| तू कल जा कर बजार से रंग ले आ|

मैं उस समय इतने उत्साह में था की बोल पड़ा; "जी कलर तो मैं शहर से लाया था|" ये सुन कर ताऊ जी हंस दिए और मुझे पिताजी से डाँट नहीं पड़ी|

मुझे उस रात एक बात क्लियर हो गई की मुझ पर और ऋतू पर जो बचपन से बंदिशें लगाईं गईं थीं वो भाभी (ऋतू की असली माँ) की वजह से थी| ऋतू को तो उसकी माँ के कर्मों की सजा दी गई थी| उसकी माँ के कारन ही ऋतू को बचपन में कोई प्यार नहीं मिला| घर वालों को डर था की कहीं हम दोनों ने भी कुछ ऐसा काण्ड कर दिया तो? पर काण्ड तो होना तय था, क्योंकि ताऊ जी के सख्त नियम कानूनों के कारन ही मैं और ऋतू इतना नजदीक आये थे|


खेर जब ताऊ जी का फरमान घर में सुनाया गया तो सबसे ज्यादा ऋतू ही खुश थी| इधर भाभी को मुझसे मजे लेने थे; "मेरी शादी के बाद इस बार मेरी पहली होली है, तो मानु भैया मुझे लगाने को कौन से रंग लाये हो?"

"काला" मैंने कहा और जोर से हँसने लगा| ऋतू भी अपना मुँह छुपा कर हँसने लगी, ताई जी की भी हंसी निकल गई और माँ ने हँसते हुए मुझे मारने के लिए हाथ उठाया पर मारा नहीं|

"तो मानु भैया, पहले से प्लानिंग कर के आये थे लगता है?" चन्दर ने खीजते हुए कहा|

"मैंने कोई प्लानिंग नहीं बल्कि रिक्वेस्ट की है ताऊ जी से, जो उन्होंने मानी भी है| कलर्स तो मैं इसलिए लाया था की अगर ताऊ जी मान गए तो होली खेलेंगे वरना इन से हम दिवाली पर रंगोली बनाते|" ये सुन कर वो चुप हो गए| अब मुझे कोई और बात छेड़नी थी ताकि माहौल में कोई तनाव न बने| "ताई जी ये कलर्स प्रकर्तिक हैं, इनमें जरा सा भी केमिकल इस्तेमाल नहीं हुआ है| हमारे त्वचा के लिए ये बहुत अच्छे हैं|" मैंने कलर्स की बढ़ाई करते हुए कहा|

"हे राम! इसमें भी मिलावट होने लगी?" ताई जी ने हैरान होते हुए कहा|

"दादी जी आजकल सब चीजों में मिलावट होती है, खाने की हो या पहनने की|" ऋतू ने अपना 'एक्सपर्ट ओपिनियन' देते हुए कहा|

"सच्ची ज़माना बड़ा बदल गया, लालच में इंसान अँधा होने लगा है|" माँ ने कहा| घर की औरतों को बात करने को एक टॉपिक मिल गया था इसलिए मैं चुप-चाप वहाँ से खिसक लिया| मैं छत पर बैठ कर सब को होली के मैसेज फॉरवर्ड कर रहा था की चन्दर ऊपर आ गया और मुझसे बोला; "अरे रंग तो ले आये! भांग का क्या?"

"ताऊ जी को पता चल गया ना तो कुटाई होगी दोनों की!" मैंने कहा|

"अरे कुछ नहीं होगा? सब को पिला देते हैं थोड़ी-थोड़ी!" चन्दर ने खीसें निपोरते हुए कहा|

"दिमाग खराब है?" मैंने थोड़ा गुस्सा करते हुए कहा|

"अच्छा अगर पिताजी ने हाँ कर दी फिर तो पीयेगा ना?" चन्दर ने कुछ सोचते हुए कहा|

मैंने मना कर दिया क्योंकि एक तो मैं ऋतू को वादा कर चूका था और दूसरा कॉलेज में एक बार पी थी और हम चार लौंडों ने जो काण्ड किया था की क्या बताऊँ| पर चन्दर के गंदे दिमाग में एक गंदा विचार जन्म ले चूका था|


अगले दिन सब जल्दी उठे और जैसे मैं नीचे आया तो सब से पहले ताऊ जी ने मेरे माथे पर तिलक लगाया और मैंने उनके पाँव छुए| फिर पिताजी, उसके बाद ताई जी और फिर माँ ने भी मुझे तिलक लगाया और मैंने उनके पाँव छुए| चन्दर भैया घर से गायब थे तो भाभी ही मुट्ठी में गुलाल लिए मेरे सामने खड़ी हो गई, पर इससे पहले वो मुझे रंग लगाती ऋतू एक दम से बीच में आ गई और फ़टाफ़ट मेरे दोनों गाल उसने गुलाल से चुपड़ दिए| वो तो शुक्र है की मैंने आँख बंद कर ली थी वरना आँखों में भी गुलाल चला जाता| मुझे गुलाल लगा कर वो छत पर भाग गई, मैंने थाली से गुलाल उठाया और छत की तरफ भागा| ऋतू के पास भागने की जगह नहीं बची थी तो वो छत के एक किनारे खड़ी हुई बीएस 'सॉरी..सॉरी...सॉरी' की रट लगाए हुए थी| मैं बहुत धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ा और दोनों हाथों को उसके नरम-नरम गालों पर रगड़ कर गुलाल लगाने लगा| मेरे छू भर लेने से ऋतू कसमसाने लगी थी और उसकी नजरें नीचे झुकी हुई थीं| छत पर कोई नहीं था तो मेरे पास अच्छा मौका था ऋतू को अपनी बाहों में कस लेने का| मैंने मौके का पूरा फायदा उठाया और ऋतू को अपनी बाहों में भर लिया| ऋतू की सांसें भारी होने लगी थी और वो मेरी बाहों से आजाद होने को मचलने लगी| तेजी से सांस लेते हुए ऋतू मुझसे अलग हुई, मानो जैसे की उसके अंदर कोई आग भड़क उठी हो जिससे उसे जलने का खतरा हो| मैं ऋतू की तेज सांसें देख रहा था की तभी भाभी ऊपर आ गईं; "अरे मानु भैया! हम से भी गुलाल लगवा लो!" पर मेरा मुँह तो ऋतू ने पहले ही रंग दिया था तो भाभी के लगाने के लिए कोई जगह ही नहीं बची थी| "तुम्हारे ऊपर तो रितिका का रंग चढ़ा हुआ है, अब भला मैं कहाँ रंग लगाऊँ?" भाभी ने मेरी टाँग खींचते हुए कहा|

"माँ ...गर्दन पर लगा दो?" ऋतू हंसती हुई बोली और ये सुन कर भाभी को मौका मिल गया मुझे छूने का| उन्होंने मेरी टी-शर्ट के गर्दन में एकदम से हाथ डाला और उसे मेरे छाती के निप्पलों की तरफ ले जाने लगी| मुझे ये बहुत अटपटा लगा और मैंने उनका हाथ निकाल दिया| भाभी समझ गई की मुझे बुरा लगा है और ऋतू भी ये सब साफ़-साफ़ देख पा रही थी| मैं उस वक़्त कहने वाला हुआ था की ये क्या बेहूदगी है पर ऋतू सामने खड़ी थी इसलिए कुछ नहीं बोला| मैं वापस नीचे जाने लगा तो भाभी पीछे से बोली; "अरे कहाँ जा रहे हो? मुझे तो रंग लगा दो? आज का दिन तो भाभी देवर से सबसे ज्यादा मस्ती करती है और तुम हो की भागे जा रहे हो?" मैंने उनकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और संकेत से मिलने निकल पड़ा| उसके खेत में जमावड़ा लगा हुआ था और वहां सब ठंडाई पी रहे थे और पकोड़े खा रहे थे| मुझे देखते ही वो लड़खड़ाता हुआ आया और गले लगा फिर तिलक लगा कर मुझे जबरदस्ती ठंडाई पीने को कहा| अब उसमें मिली थी भाँग और मैं ठहरा वचन बद्ध! इसलिए फिर से घरवालों के डर का बहाना मार दिया| कुछ देर बाद ताऊ जी और पिताजी भी आ गए और वो ये देख कर खुश हुए की मैंने भाँग नहीं पि! पर ताऊ जी और पिताजी ने एक-एक गिलास ठंडाई पि और फिर हम तीनों घर आ गए| चन्दर का अब भी कुछ नहीं पता था| घर पहुँच कर सबसे पहले भाभी मुझे देखते हुए बोली; "सारे गाँव से होली खेल लिए पर अपनी इकलौती भाभी से तो खेले ही नहीं?"

"छत पर ऋतू के सामने मेरी पूरी गर्दन रंग दी आपने और कितनी होली खेलनी है आपको?" मैंने जवाब दिया| फिर मैंने अचानक से झुक कर उनके पाँव छूए और भाभी बुदबुदाते हुए बोली; "पाँव की जगह कुछ और छूते तो मुझे और अच्छा लगता!" मैं उनका मतलब समझ गया पर पिताजी के सामने कहूँ कैसे? इसलिए मैं नहाने के लिए जाने को आंगन की तरफ मुड़ा तो भाभी ने लोटे में घोल रखा रंग पीछे से मेरे सर पर फेंका| ठंडा-ठंडा पानी जैसे शरीर को लगा तो मेरी झुरझुरी छूट गई| "अब तो गए आप?" कहते हुए मैंने ताव में उनके पीछे भागा, भाभी खुद को बचाने को इधर-उधर भागना चाहती थी पर मैंने उनका रास्ता रोका हुआ था| इतने में उन्होंने ऋतू का हाथ पकड़ा और उसे मेरी तरफ धकेला, मैंने ऋतू के कंधे पर हाथ रख कर उसे साइड किया और भाभी का दाहिना हाथ पकड़ लिया और उन्हें झटके से खींचा| भाभी को गिरने को हुईं तो मैंने उन्हें गिरने नहीं दिया और गोद में उठा लिया| उनका वजन सच्ची बहुत जयदा था ऊपर से वो मुझसे छूटने के लिए अपने पाँव चला रही थीं तो मेरे लिए उन्हें उठाना और मुश्किल हो गया था| आंगन में एक टब में कुछ कपडे भीग रहे थे मैंने उन्हें ले जा कर उसी टब में छोड़ दिया| जैसे ही भाभी को ठन्डे पानी का एहसास अपनी गांड और कमर पर हुआ वो चीख पड़ी; "हाय दैय्या! मानु तुम सच्ची बड़े खराब हो! मर गई रे!" उन्हें ऐसे तड़पता देख मैं और ऋतू जोर-जोर से हँसने लगे और भाभी की चीख सुन माँ और ताई जी भी उन्हें टब में ऐसे छटपटाते हुए देख हँसने लगे| इससे पहले की माँ कुछ कहती मैंने खुद ही उन्हें साड़ी बात बता दी; "शुरू इन्होने किया था मेरे ऊपर रंग डाल कर, मैंने तो बस इनके खेल अंजाम दिया है|" इधर भाभी उठने के लिए कोशिश कर रहीं थीं पर उनकी बड़ी गांड जैसे टब में फँस गई थी| आखिर मैंने और ऋतू ने मिल कर उन्हें खड़ा किया और भाभी की चेहरे पर मुस्कराहट आ गई क्योंकि आज जिंदगी में पहली बार मैंने उन्हें इस कदर छुआ था|

मैंने उनकी इस मुस्कराहट को नजरअंदाज किया और अपने कपडे ले कर नहाने घुस गया| करीब पाँच मिनट हुए होंगे की चन्दर घर आया और उसके हाथ में मिठाई का डिब्बा था| उसने सब को डिब्बे से लड्डू निकाल कर दिए और मुझे भी आवाज दी की मैं भी खा लूँ पर मैं तो बाथरूम में था तो माने कह दिया की आप रख दो मैं नहा कर खा लूँगा| मेरे नहा के आने तक सबने लड्डू खा लिए थे और पूरा डिब्बा साफ़ था| जैसे ही मैं नहा के बाहर आया तो पूरे घर में सन्नाटा पसरा हुआ था.... आंगन में चारपाई पर ताई जी और माँ लेटे हुए थे, भाभी शायद अपने कमरे में थीं और ऋतू रसोई के जमीन पर बैठी थी और दिवार से सर लगा कर बैठी थी| ताऊ जी और पिताजी अपने-अपने कमरे में थे और चन्दर आंगन में जमीन पर पड़ा था| सब की आँखें खुलीं हुईं थीं पर कोई कुछ बोल नहीं रहा था| ये देखते ही मेरी हालत खराब हो गई, मुझे लगा कहीं सब को कुछ हो तो नहीं गया? मैंने एक-एक कर सब को हिलाया तो सब मुझे बड़ी हैरानी से देखने लगे| अब मुझे शक हुआ की जर्रूर सब ने भाँग खाई है और खिलाई भी उस कुत्ते चन्दर ने है!!! मैं पिताजी के कमरे में गया तो उन्हें भी बैठे हुए पाया और उन्हें जब मैंने हिलाया तो वो शब्दों को बहुत खींच-खींच कर बोले; "इसमें.....भांग.....थी.....!!!" अब मैं समझ गया की चन्दर बहन के लोडे ने भाँग के लड्डू सब को खिला दिए हैं! मैंने पिताजी को सहारा दे कर लिटाया और वो कुछ बुदबुदाने लगे थे| मैं ताऊ जी के कमरे में आया तो वो पता नहीं क्यों रो रहे थे, मैं जानता था की इस हालत में मैं उन्हें कुछ कह भी दूँ टब भी उनका रोना बंद नहीं होगा| मैंने उन्हें भी पुचकारते हुए लिटा दिया| इधर जब मैं वापस आंगन में आया तो माँ और ताई जी की आँख लग गई थी और चन्दर भी आँख मूंदें जमीन पर पड़ा था| मैंने भाभी के कमरे में झाँका तो वहां तो अजब काण्ड चल रहा था, वो अपनी बुर को पेटीकोट के ऊपर से खुजा रही थीं और मुँह से पता नहीं क्या बड़बड़ा रही थीं| मैंने फटाफट उनके कमरे का दरवाजा बंद किया और कुण्डी लगा कर मैं ऋतू के पास आया, तो पता नहीं वो उँगलियों पर क्या गईं रही थी? मैंने उसे हिलाया तो उसने मेरी तरफ देखा और फिर पागलों की तरह अपनी उँगलियाँ गिनने लगी| "जानू! I Love ......"इतना बोलते हुए वो रुक गई| अब मेरी फटी की अगर किसी ने सुन लिया तो आज ही हम दोनों को जला कर यहीं आंगन में दफन कर देंगे| मैंने उसे गोद में उठाया और ऊपर उसके कमरे में ला कर लिटाया| मैं उसे लिटा के जाने लगा तो उसने मेरा हाथ कस कर पकड़ लिया और Pout की आकृति बना कर मुझे Kiss करना चाहा| मैं उसके हाथ से अपना हाथ छुड़ा रहा था क्योंकि मैं जानता था की अगर कोई ऊपर आ गया तो हम दोनों को देख कर सब का नशा एक झटके में टूट जायेगा! पर ऋतू पर तो प्यार का भूत सवार हो गया था| पता नहीं उसे आज मेरे अंदर किसकी शक्ल दिख रही थी की वो मुझे बस अपने ऊपर खींच रही थी| "ऋतू मान जा...हम घर पर हैं! कोई आ जाएगा!" मैंने कहा पर उसने मेरी एक न सुनी और अपने दोनों हाथों के नाखून मेरे हाथों में गाड़ते हुए कस कर पकड़ लिए| ऋतू के गुलाबी होंठ मुझे अपनी तरफ खींच रहे थे और अब मेरा सब्र भी जवाब देने लगा था| मैंने हार मानते हुए उसके होठों को अपने होठं से छुआ पर इससे पहले की मैं अपनी गर्दन ऊपर कर उठता ऋतू ने झट से अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के पीछे लॉक कर दिया और अपने होठों से मेरे होंठ ढक दिए| ऋतू पर नशा पूरे शबाब था और वो बुरी तरह से मेरे होंठ चूसने लगी| मेरे हाथ उसके जिस्म की बजाये बिस्तर पर ठीके थे और मैं अब भी उसकी गिरफ्त से छूटने को अपना जिस्म पीछे खींच रहा था|

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मुझे डर लग रहा था की अगर कोई ऊपर आ गया तो, इसलिए मैंने जोर लगाया और ऋतू के होठों की गिरफ्त से अलग हुआ| पर ये क्या ऋतू ने "I Love You" रटना शुरू कर दिया| वो तो अपनी आँख भी नहीं झपक रही थी बस लेटे हुए मुझे देख रही थी और I Love You की माला रट रही थी| मैंने उस के कमरे को बाहर से कुण्डी लगाईं और रसोई में गया और वहाँ से कटोरी में आम का अचार निकाल लाया| ऋतू के कमरे की कुण्डी खोली तो छत पर देखते हुए अब भी I Love You बड़बड़ा रही थी| मैंने कटोरी से एक आम के अचार का पीस उठाया और ऋतू के सिरहाने बैठ गया| मुझे अपने पास देखते ही उसने मुझे अपनी बाहों में कस लिया| मैंने आम का पीस उसकी तरफ बढ़ाया तो अपने होंठ एक दम से बंद कर लिए| पर मैंने भी थोड़ा उस्तादी दिखाते हुए पीस वापस कटोरी में रखा और अपनी ऊँगली ऋतू को चटा दी| ऊँगली में थोड़ा अचार का मसाला लगा था, ऋतू ने खटास के कारन अपना मुँह खोला और मैंने फटाफट अचार का टुकड़ा उसके मुँह में डाल दिया| ऋतू एक दम से मुँह बनाते हुए उठ बैठी और उसने वो अचार का पीस उगल दिया| मुझे उसका ऐसा मुँह बनाते हुए देख बहुत हँसी आई पर वो मेरी तरफ सड़ा हुआ मुँह बना कर देखने लगी| "सो जा अब!" मैंने ऋतू को कहा और उठ कर नीचे आ गया| बारी-बारी कर के सब को अचार चटाया और सब के सब ऋतू की ही तरह मुँह बना रहे थे और मुझे बहुत हँसी आ रही थी| सबसे आखिर में मैंने चन्दर को अचार चटाया तो उस पर जैसे फर्क ही नहीं पड़ा, वो तो अब भी बेसुध से पड़ा था| अब मैं इससे ज्यादा कुछ कर नहीं सकता था तो उसे ऐसे ही छोड़ दिया| बाकी सब के सब नशा होने के कारन सो रहे थे, इधर मुझे भूख लग गई थी| वो तो शुक्र है की घर पर पकोड़े बने थे जिन्हें खा कर मैं अपने कमरे में आ कर सो गया|


शाम को चार बजे उठा तो पाया की घर वाले अब भी सो रहे हैं| मैंने अपने लिए चाय बनाई और फिर रात के लिए खाना बनाने लगा| मैं यही सोच रहा था की बहनचोद चन्दर ने ऐसी कौन सी भाँग खिला दी की सब के सब सो रहे हैं? पर फिर जब मुझे अपने कॉलेज वाला किस्सा याद आया तो मुझे याद आया की जब पहली बार मैंने भाँग खाई थी तो मैंने सुबह तक क्या काण्ड किया था! खेर खाना बन गया था और मेरे उठाने के बाद भी कोई नहीं उठा था| सब के सब कुनमुना रहे थे बस| एक बात तो तय थी की कल चन्दर की सुताई होना तय है!

मैंने अपना खाना खाया और ऊपर आ गया, रात के 1 बजे होंगे की मुझ नीचे से आवाज आई; "मानु!" मैं फटाफट नीचे आया तो देखा ताई जी और माँ चारपाई पर सर झुकाये बैठे हैं| मैंने उन्हें पानी दिया और फुसफुसाते हुए पुछा; "ताई जी भूख लगी है?" उन्होंने हाँ में सर हिलाया तो मैं माँ और उनके लिए खाना परोस लाया| फिर मैंने पिताजी और ताऊ जी को उठाया और उन्हें भी खाना परोस कर दिया| इधर ऋतू भी नीचे आ गई और उसे देखते ही मैं मुस्कुराया और उसे माँ के पास बैठने को कहा| उसका खाना ले कर उसे दिया और मैं सीढ़ियों पर बैठ गया| तभी भाभी ने दरवाजा खटखटाया, क्योंकि उनके कमरे का दरवाजा मैंने बंद कर दिया था इस डर से की कहीं ताऊ जी और पिताजी उठ गए और उन्हें ऐसी आपत्तिजनक हालत में देख लिया तो! भाभी बाहर आईं और सीधा बाथरूम में घुस गईं| वो वपस आईं तो उन्हें भी मैंने ही खाना परोस के दिया| सब ने फटाफट खाना खाया और कोई एक शब्द भी नहीं बोला| खाना खाने के बाद ताऊ जी अपने कमरे से बाहर आये और उन्होंने चन्दर को जमीन पर पड़े हुए देखा तो उनका खून खौल गया| उन्होंने ठन्डे पानी की एक बाल्टी उठाई और पूरा का पूरा पानी उस पर उड़ेल दिया| इतना पानी अपने ऊपर पड़ते ही चन्दर बुदबुदाता हुआ उठा और ताऊ जी ने उसे एक खींच कर थप्पड़ मारा| चन्दर जमीन पर फिर से जा गिरा; "हरामजादे! तेरी हिम्मत कैसे हुई सब को भाँग के लड्डू खिलाने की? वो तो मानु यहाँ था तो उसने सब को संभाल लिया वरना यहाँ कोई घुस कर क्या-क्या कर के चला जाता किसी को पता ही नहीं चलता| तुझे जरा भी अक्ल नहीं है की घर में औरतें हैं, तेरी बीवी है, बच्ची है?” पर चन्दर को तो जैसे फर्क ही नहीं पड़ रहा था| मैंने भाभी को कहा की इन्हें अंदर ले कर जाओ, तो भाभी ने उन्हें सहारा दे कर उठाया और कमरे में ले गईं| इधर पिताजी ताऊ जी की गर्जन सुन कर बाहर आये और मुझे इशारे से अपने पास बुलाया| मैं उनके पास गया और पिताजी का शायद सर घूम रहा था इसलिए मैंने उन्हें सहारा दे कर बैठक में बिठा दिया| सब के सब बैठक में आ कर बैठ गए और मुझसे पूछने लगे की आखिर हुआ क्या था? मैंने उन्हें सारी बात विस्तार से बता दी और अचार वाली बात पर सारे हँसने लगे| पर तभी पिताजी ने पुछा; "तुझे कैसे पता की अचार चटाना है?" अब ये सुन कर मैं फँस गया था| पहले तो सोचा की झूठ बोल दूँ, फिर मैंने सोचा की मेरा किस्सा सुन कर सब हंस पड़ेंगे और घर का माहौल हल्का हो जायेगा इसलिए मैंने अपना किस्सा सुनाना शुरू किया|


"कॉलेज फर्स्ट ईयर था और होली पर घर नहीं आ पाया था क्योंकि असाइनमेंट्स पूरे नहीं हुए थे| होली के दिन सुबह दोस्त लोग आ गए और मुझे अपने साथ कॉलेज ले आये जहाँ हमने खूब होली खेली! फिर दोपहर को हम वापस हॉस्टल पहुँचे और नाहा धो कर खाना खाने आ गए| आज हॉस्टल में पकोड़े बने थे जो सब ने पेट भर कर खाये| जब वापस कमरे में आये तो मेरा एक दोस्त कहीं से भाँग की गोलियाँ ले आया था| उसने सब को जबरदस्ती खाने को दी ये कह कर की ये भगवान का प्रसाद है| अब प्रसाद को ना कैसे कहते, जब सब ने एक-एक गोली खा ली तो वो सच बोला की ये भाँग की गोली है| हम टोटल 4 दोस्त थे, अमन, मनीष और कुणाल| कुणाल को छोड़ कर बाकी तीनों डर गए थे की अब तो हम गए, पता नहीं ये भाँग का नशा क्या करवाएगा| हम ने सुना था की भाँग का नशा बहुत गन्दा होता है और आज जब पहलीबार खाई तो डर हावी हो गया| पर 15 मिनट तक जब किसी ने कोई उत-पटांग हरकत नहीं की तो हम तीनों ने चैन की साँस ली! हमें लगा की किसी ने बेवकूफ बना कर कुणाल को मीठी गोलियाँ भाँग की गोलियाँ बोल कर पकड़ा दीं| ये कहते हुए अमन ने हँसना शुरू किया और उसकी देखा-देखि मैं और मनीष भी हँसने लगा| कुणाल को ताव आया की हम तीनों उसे बेवकूफ कह रहे हैं तो उसने हमें चुनौती दी; 'हिम्मत है तो एक-एक और खा के दिखाओ|' हम तीनों ने भी जोश-जोश में एक-एक गोली और खा ली| और फिर से उस पर हँसने लगे| हम तीनों ये नहीं जानते थे की भाँग का असर हम पर शुरू हो चूका था, तभी तो हम हँसे जा रहे थे| उधर कुणाल बिचारा छोटे बच्चे की तरह रोने लगा था और उसे देख कर हम तीनों पेट पकड़ कर हँस रहे थे| 15 मिनट तक हँसते-हँसते पेट दर्द होने लगा था और बड़ी मुश्किल से हँसी रोकी और तब मनीष ने सब को डरा दिया ये कह कर की हमें भाँग चढ़ गई है| अब ये सुन कर हम चारों एक दूसरे की शक्ल देख रहे थे की अब हम क्या करेंगे? अमन तो इतना डर गया था की कहने लगा मुझे हॉस्पिटल ले चलो, मैं मरने वाला हूँ| तो कुणाल बोला की कुछ नहीं होगा थोड़ी देर सो ले ठीक हो जायेगा, पर मनीष को बेचैनी सोने नहीं दे रही थी| इधर मनीष को गर्मी लगने लगी और वो सारे कपडे उतार कर नंगा हो गया और उसने पंखा चला दिया| मुझे भी डर लगने लगा की कहीं मैं मर गया तो? इसलिए मैंने सोचा की ये हॉस्पिटल जाएँ चाहे नहीं मैं तो जा रहा हूँ| अभी मैं दरवाजे के पास पहुँचा ही था की कुणाल ने हँसते हुए रोक लिया और बोला; 'कहाँ जा रहा है? बड़ी हँसी आ रही थी ना तुझे? और खायेगा?' मैं उस हाथ जोड़ कर मिन्नत करने लगा की भाई माफ़ कर दे, आज के बाद कभी नहीं खाऊँगा ये भाँग का गोला! मैं जैसे-तैसे बाहर आया और घडी देखि ये सोच कर की कहीं हॉस्पिटल बंद तो नहीं हो गया? उस वक़्त बजे थे रात के 2, यानी हम चारों शाम के 4 बजे से रात के दो बजे तक ये ड्रामा कर रहे थे| अब हमारा कमरा था चौथी मंजिल पर, इसलिए मैं हमारे कमरे के दरवाजे के सामने लिफ्ट और सीढ़ियों के बीच खड़ा हो कर सोचने लगा की नीचे जाऊँ तो जाऊँ कैसे? अगर लिफ्ट से गया और दरवाजा नहीं खुला तो मैं तो अंदर मर जाऊँगा? और सीढ़ियों से गया तो पता नहीं कितने दिन लगे नीचे उतरने में? मैं खड़ा-खड़ा यही सोच रहा था की हमारे हॉस्टल के वार्डन का लड़का आ गया और मुझे ऐसे सोचते हुए देख कर मुझे झिंझोड़ते हुए पुछा की मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ? मैंने उसे बताया की मैं हिसाब लगा रहा हूँ की सिढीयोंसे जाना सही है या लिफ्ट से? ये सुन कर वो बुरी तरह हँसने लगा| क्योंकि वहाँ लिफ्ट थी ही नहीं और जिसे मैं लिफ्ट समझ रहा था वो एक पुरानी शाफ़्ट थी जिसमें बाथरूम की पाइपें लगी थी| पर मैं अब भी नहीं समझ पाया था की हुआ क्या है और ये क्यों हँस रहा है? वो मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुझे कमरे में ले आया और अंदर का सीन देख कर हैरान हो गया| मनीष पूरा नंगा था और उसने अपने गले में तौलिया बाँध रखा था जैसे की वो सुपरमैन हो और एक पलंग से दूसरे पर कूद रहा था| अमन बिचारा एक कोने में बैठा अपना सर दिवार में मार रहा था और बुदबुदाए जा रहा था; 'अब नहीं खाऊँगा....अब नहीं खाऊँगा....अब नहीं खाऊँगा...' कुणाल फर्श पर उल्टा पड़ा था और चूँकि उसे मछलियां बहुत पसंद थी तो वो खुद को मछली समझ कर फड़फड़ा रहा था और मैं रात के 2 बजे से सुबह के 6 बजे तक बाहर खड़ा हो कर हिसाब लगा रहा था की सीढ़यों से जाऊँ या फिर लिफ्ट से!

उसी लड़के ने एक-एक कर हमें आम चटाया और हमारा नशा उतारा| इसलिए उस दिन से कान पकडे की कभी भाँग नहीं खाऊँगा|"


मेरी पूरी राम-कहानी सुन कर सारे घर वाले खूब हँसे और शुक्र है की किसी ने मुझे भाँग खाने के लिए डाँटा नहीं! बात करते-करते सुबह के चार बज गए थे इसलिए ताऊ जी ने कहा की सब कुछ देर आराम कर लें पर मुझे तो सुबह ही निकलना था| पर ताऊ जी ने कहा की आराम कर लो और 7 बजे उठ जाना, इसलिए सारे लोग सो गए और सुबह सात बजे जब मैं उठा तो ताई जी, भाभी और माँ रसोई में नाश्ता बना रहे थे| फ्रेश हो कर नाश्ता किया और ताई जी ने रास्ते के लिए भी बाँध दिया की भूख लगे तो खा लेना| शहर हम 11 बजे पहुँचे और पहले ऋतू को कॉलेज छोड़ मैं ऑफिस पहुँचा| सर ने थोड़ा डाँटा पर मैंने जाने दिया क्योंकि आधा दिन लेट था मैं! दिन गुजरते गए और ऋतू के Exams आ गए और उसने फिर से क्लास में टॉप किया! ये ख़ुशी सेलिब्रेट करना तो बनता था, तो संडे को मैं उसे लंच पर ले जाना चाहता था पर उसके कॉलेज के दोस्त भी साथ हो लिए और सब ने कॉन्ट्री कर के लंच किया|


कुछ महीने और बीते और ऋतू का जन्मदिन आया, मैंने उसे पहले ही बता दिया था की एक दिन पहले ही मैं उसे लेने आऊंगा पर ऋतू कहने लगी की उसके असाइनमेंट्स पेंडिंग हैं और अपने दोस्तों के साथ उसने कुछ क्लास बंक की थीं तो वो भी कवर करना है उसे! तो मेरा प्लान फुस्स हो गया! पर वो बोली की शाम को उसके सारे दोस्त उसके पीछे पड़े हैं की उन्हें ट्रीट चाहिए तो हम शाम को मिलते हैं| अब कहाँ तो मैं सोच रहा था की उसका बर्थडे हम अकेले सेलिब्रेट कर्नेगे और कहाँ उसके दोस्त बीच में आ गए| पर मैं ये सोच कर चुप रहा की कॉलेज के दोस्त कभी-कभी करीब होते हैं और मुझे ऋतू को थोड़ी आजादी देनी चाहिए वरना उसे लगेगा की मैं Possessive हो रहा हूँ! अब मैं भी इस दौर से गुजरा था इसलिए दिमाग का इस्तेमाल किया और ऋतू के बर्थडे को खराब नहीं किया, बल्कि उसी जोश और उमंग से मनाया जैसे मनाना चाहिए| ऋतू के चेहरे की ख़ुशी सब कुछ बयान कर रही थी और मेरे लिए वही काफी था| दिन बीतने लगे और ऋतू के कॉलेज के दोस्तों ने कोई ट्रिप प्लान कर लिया, मुझे लगा की शायद मुझे भी जाना है पर मुझे तो इन्विते ही नहीं किया गया क्योंकि वैसे भी मैं कॉलेज वाला नहीं था| ऋतू ने मुझसे मिन्नत करते हुए जाने की इज्जाजत मांगी तो मैंने उसे मना नहीं किया| इस ट्रिप पर बनने वाली यादें उसे उम्र भर याद रहेंगी| जितने दिन वो नहीं थी उतने दिन मैं रोज उसे सुबह-शाम फ़ोन करता और उसका हाल-चाल लेता रहता| जब वो वापस आई तो बहुत खुश थी और मुझे उसने ट्रिप की सारी pictures दिखाईं और वो संडे मेरा बस ऋतू की ट्रिप की बातें सुनते हुए निकला| दिन बीत रहे थे और काम की वजह से कई बार मुझे सैटरडे को बरेली जाना पड़ता और इसलिए हम सैटरडे को मिल नहीं पाते पर संडे मेरा सिर्फ और सिर्फ ऋतू के लिए था| उस दिन वो आती तो मेरे लिए खाना बनाती और कॉलेज की सारी बातें बताती और कई बार तो हम संडे को पढ़ाई भी करते!

 

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शादी अच्छे से निपट गई और घर वाले अगले दिन वापस गाँव चले गए| फिर वही त्योहारों की झड़ी और इस बार घर वालों ने जबरदस्ती हमें घर पर बुला लिया तो सारे त्यौहार उन्हीं के साथ हँसी-ख़ुशी मनाये गए| अब घर पर थे तो अकेले में बैठने का समय नहीं मिलता था, इसलिए मैं कई बार देर रात को ऋतू के पास जा कर बैठ जाता और वो कुछ देर हम एक साथ बैठ कर बिताते| घर से बजार जाने के समय मैं कोई बहाना बना देता और ऋतू को साथ ले जाता| दिवाली की रात हम सारे एक साथ बैठे थे तो ताऊ जी ने मुझे अपने पास बैठने को बुलाया;

ताऊ जी: वैसे मुझे तेरी तारीफ तेरे सामने नहीं करनी चाहिए पर मुझे तुझ पर बहुत गर्व है| इस पूरे परिवार में एक तू है जो अपनी सारी जिम्मेदारियाँ उठाता है| मुझे तुझ में मेरा अक्स दिखता है....!

ये कहते हुए ताऊ जी की आँखें नम हो गईं|

पिताजी: भाई साहब सही कहा आपने| पिताजी के गुजरने के बाद सब कुछ आप ने ही तो संभाला था|

ताऊ जी: मानु बेटा, जब तूने घर लेने की बात कही तो मैं बता नहीं सकता की मुझे कितना गर्व हुआ तुझ पर| तू अपनी मेहनत के पैसों से अपना घर लेना चाहता है, सच हमारे पूरे खानदान में कभी किसी ने ऐसा नहीं सोचा|

मेरी तारीफ ना तो चन्दर भैया के गले उतर रही थी और ना ही भाभी के और वो जैसे-तैसे नकली मुस्कराहट लिए बैठे थे| पर मेरे माता-पिता, ताई जी और ख़ास कर ऋतू का सीना गर्व से चौड़ा हो गया था|

पिताजी: बेटा थोड़ा समय निकाल कर खेती-किसानी भी सीख ले ताकि बाद में तुम और चन्दर ये सब अच्छे से संभाल सकें| तेरी और रितिका की शादी हो जाए तो हम सब तुझे और चन्दर को सब दे कर यात्रा पर चले जायेंगे|

ताई जी: बेटा मान भी जा हमारी बात और कर ले शादी!

मैं: माफ़ करना ताई जी मैं कोई जिद्द नहीं कर रहा बस घर खरीदने तक का समय माँग रहा हूँ|

ताऊ जी: ठीक है बेटा!

तो इस तरह मुझे पता चला की आखिर घर वाले क्यों मुझे अचानक इतनी छूट देने लगे थे| अगले दिन मैं और ऋतू वापस चेहर लौट आये और फिर दिन बीतने लगे| क्रिसमस पर हम दोनों सुबह चर्च गए और वो पूरा दिन हम ने घूमते हुए निकाला| पर अगले दिन घर से खबर आई की ताऊ जी की तबियत ख़राब है, ये सुन कर ऋतू ने कहा की उसे घर जाना है| उसकी अटेंडेंस का कोई चक्कर नहीं था तो मैं उसे घर छोड़ आया| उसके यहाँ ना होने के कारन मैंने 31st दिसंबर नहीं मनाया और घर पर ही रहा| जब मैं उसे लेने घर पहुँचा तो ऋतू बोली; "जानू! जब से मैं पैदा हुई हूँ तब से हमने कभी होली नहीं मनाई|"

"जान! दरअसल वो .... 'काण्ड' होली से कुछ दिन पहले ही हुआ था| इसलिए आज तक इस घर में कभी होली नहीं मनाई गई| पर कोई बात नहीं मैं बात करता हूँ की अगर ताऊ जी मान जाएँ|"

"ठीक है! पर अभी नहीं, अभी उनकी तबियत थोड़ी सी ठीक हुई है और वैसे भी अभी तो दो महीने पड़े हैं|" ऋतू ने कहा| ताऊ जी की तबियत ठीक होने लगी थी इस लिए उन्होंने खुद ऋतू को वापस जाने को कहा था|


जनवरी खत्म हुआ और फिर कॉलेज का एनुअल डे आ गया| पर मुझे दो दिन के लिए बरेली जाना था, जब मैंने ये बात ऋतू को बताई तो वो रूठ गई और कहने लगी की वो भी नहीं जायेगी| मैंने बड़ी मुश्किल से उसे जाने को राजी किया ये कह कर की; "ये कॉलेज के दिन फिर दुबारा नहीं आएंगे|" ऋतू मान गई और मैंने ही उसके लिए एक शानदार ड्रेस सेलेक्ट की| ऋतू ये नहीं जानती थी की मेरा प्लान क्या है! अरुण चूँकि पहले से ही बरेली में था तो मैंने उससे मदद मांगी की वो काम संभाल ले और मैं एक ही दिन में अपना बचा हुआ काम उसे सौंप कर वापस आ गया| एनुअल डे वाले दिन ऋतू कॉलेज पहुँच गई थी, मैंने गेट पर से उसे फ़ोन किया और पुछा की वो गई या नहीं? ऋतू ने बताया की वो पहुँच गई है| ये सुनने के बाद ही मैं कॉलेज में एंटर हुआ और ऋतू को ढूंढता हुआ उसके पीछे खड़ा हो गया| मैंने उसकी आँखिन मूँद लीं और वो एक दम से हड़बड़ा गई और कहने लगी; "प्लीज... कौन है?... प्लीज…छोड़ो मुझे!" मैंने उसकी आँखों पर से अपने हाथ उठाये और वो मुझे देख कर हैरान हो गई|


हैरान तो मैं भी हुआ क्योंकि ऋतू आज लग ही इतनी खूबसूरत रही थी



और मैं उम्मीद करने लगा की वो आ कर मेरे गले लग जाएगी पर ऐसा नहीं हुआ| मुझे लगा शायद ऋतू शर्मा रही है पर तभी राहुल अपने दोनों हाथों में कोल्ड-ड्रिंक लिए वहाँ आ गया| उसने एक कोल्ड ड्रिंक ऋतू की तरफ बढ़ाई और ऋतू ने संकुचाते हुए वो कोल्ड-ड्रिंक ले ली| मुझे देख कर राहुल बोला; "Hi!" पर मैंने उसकी बात को अनसुना कर दिया|

तभी ऋतू ने मेरा हाथ पकड़ा और राहुल को 'excuse us' बोल कर मुझे एक तरफ ले आई|

"आज तो बड़े dashing लग रहे हो आप?" ऋतू बोली|

"थैंक यू ... but .... I thought you didn’t like him!” मैंने कहा क्योंकि फर्स्ट ईयर के एनुअल डे पर ऋतू ने यही कहा था|

“I…realized that we should’nt blame children because of their parents. It wasn’t his fault?” ऋतू ने सोचते हुए कहा|

“Fair enough…. Anyway you’re looking faboulous today!” मैंने ऋतू को कॉम्पलिमेंट देते हुए कहा|

“Thank you! वैसे आपने तो कहा था की आपको बहुत काम है और आप नहीं आने वाले?" ऋतू ने मुझसे शिकायत करते हुए कहा|

"भाई अपनी जानेमन को मैं भला कैसे उदास करता?" मैंने ऋतू का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा|

"मैंने सोच लिया था की मैं आप से बात नहीं करुँगी!" ऋतू ने कहा|

"इसीलिए तो भाग आया!" मैंने हँसते हुए कहा और ऋतू भी ये सुन कर मुस्कुरा दी| इस बार कुछ डांस पर्फॉर्मन्सेस थीं तो मैं और ऋतू खड़े वो देखने लगे और लाउड म्यूजिक के शोर में एन्जॉय करने लगे| ऋतू की कुछ सहेलियाँ आई और वो भी हमारे साथ खड़ी हो कर देखने लगीं| ये देख कर मैंने सोचा की चलो ऋतू ने नए दोस्त बना लिए हैं. काम्य के जाने के बाद ऋतू की जिंदगी में दोस्त ही नहीं थे!


खेर दिन बीते और होली आ गई....

हर साल की तरह इस साल भी हम दोनों होली से एक दिन पहले ही घर आ गए| शाम को होलिका दहन था, जिसके बाद सब घर लौट आये| रात का खाना बन रहा था और आंगन में मैं, चन्दर भय, पिताजी और ताऊ जी बैठे थे|

मैं: ताऊ जी...आप बुरा ना मानें तो आपसे कुछ माँगूँ? (मैंने डरते हुए कहा|)

ताऊ जी: हाँ-हाँ बोल!

मैं: ताऊ जी ... इस बार होली घर पर मनाएँ?

मेरे ये बोलते ही घर भर में सन्नाटा पसर गया, कोई कुछ नहीं बोल रहा था और मैं मन ही मन सोचने लगा की मैंने कुछ ज्यादा ही माँग लिया क्या? ताऊ जी उठे और छत पर चले गए और पिताजी मुझे घूर कर देखने लगे और फिर वो भी ताऊ जी के पीछे छत पर चले गए| कुछ देर बाद मुझे ताऊ जी ने ऊपर से आवाज दी, मैं सोचने लगा की कुछ ज्यादा ही फायदा उठा लिया मैंने घर वालों की छूट का| छार पर पहुँच कर मैं पीछे हाथ बांधे खड़ा हो गया|

ताऊ जी: तुझे पता है की हम क्यों होली नहीं मनाते?

मैंने सर झुकाये हुए ना में गर्दन हिलाई, कारन ये की अगर मैं ये कहता की मुझे पता है तो वो मुझसे पूछते की किस ने बताया और फिर संकेत और उसके परिवार के साथ हमारे रिश्ते बिगड़ जाते|

ताऊ जी: तुझे नहीं पता, चन्दर की पहली बीवी रितिका जिससे हुई वो किसी दूसरे लड़के के साथ घर से भाग गई थी| उस टाइम बहुत बवाल हुआ था, गाँव में हमारी बहुत थू-थू हुई| उस समय गाँव के मुखिया जो आजकल हमारे मंत्री साहब है उन्होंने ......फरमान सुनाया की दोनों को मार दिया जाए| इसलिए हम ....होली नहीं मनाते| (ताऊ जी ने मुझे censored बात बताई|

मैं: तो ताऊ जी हम बाकी त्यौहार क्यों मनाते हैं?

पिताजी: ये घटना होली के आस-पास हुई थी इसलिए हम होली नहीं मनाते| (पिताजी ने ताऊ जी की बात ही दोहराई और 'होली नहीं मनाते' पर बहुत जोर दिया|)

मैं: जो हुआ वो बहुत साल पहले हुआ ना? अब तो सब उसे भूल भी गए हैं! गाँव में ऐसा कौन है जो हमारी इज्जत नहीं करता? हम कब तक इस तरह दब कर रहेंगे? ज़माना बदल रहा है और कल को मेरी शादी होगी तो क्या तब भी हम होली नहीं मनाएँगे?

शायद मेरी बात ताऊ जी को सही लगी इसलिए उन्होंने खुद ही कहा;

ताऊ जी: ठीक है...लड़का ठीक कह रहा है| कब तक हम उन पुरानी बातों की सजा बच्चों को देंगे| तू कल जा कर बजार से रंग ले आ|

मैं उस समय इतने उत्साह में था की बोल पड़ा; "जी कलर तो मैं शहर से लाया था|" ये सुन कर ताऊ जी हंस दिए और मुझे पिताजी से डाँट नहीं पड़ी|

मुझे उस रात एक बात क्लियर हो गई की मुझ पर और ऋतू पर जो बचपन से बंदिशें लगाईं गईं थीं वो भाभी (ऋतू की असली माँ) की वजह से थी| ऋतू को तो उसकी माँ के कर्मों की सजा दी गई थी| उसकी माँ के कारन ही ऋतू को बचपन में कोई प्यार नहीं मिला| घर वालों को डर था की कहीं हम दोनों ने भी कुछ ऐसा काण्ड कर दिया तो? पर काण्ड तो होना तय था, क्योंकि ताऊ जी के सख्त नियम कानूनों के कारन ही मैं और ऋतू इतना नजदीक आये थे|


खेर जब ताऊ जी का फरमान घर में सुनाया गया तो सबसे ज्यादा ऋतू ही खुश थी| इधर भाभी को मुझसे मजे लेने थे; "मेरी शादी के बाद इस बार मेरी पहली होली है, तो मानु भैया मुझे लगाने को कौन से रंग लाये हो?"

"काला" मैंने कहा और जोर से हँसने लगा| ऋतू भी अपना मुँह छुपा कर हँसने लगी, ताई जी की भी हंसी निकल गई और माँ ने हँसते हुए मुझे मारने के लिए हाथ उठाया पर मारा नहीं|

"तो मानु भैया, पहले से प्लानिंग कर के आये थे लगता है?" चन्दर ने खीजते हुए कहा|

"मैंने कोई प्लानिंग नहीं बल्कि रिक्वेस्ट की है ताऊ जी से, जो उन्होंने मानी भी है| कलर्स तो मैं इसलिए लाया था की अगर ताऊ जी मान गए तो होली खेलेंगे वरना इन से हम दिवाली पर रंगोली बनाते|" ये सुन कर वो चुप हो गए| अब मुझे कोई और बात छेड़नी थी ताकि माहौल में कोई तनाव न बने| "ताई जी ये कलर्स प्रकर्तिक हैं, इनमें जरा सा भी केमिकल इस्तेमाल नहीं हुआ है| हमारे त्वचा के लिए ये बहुत अच्छे हैं|" मैंने कलर्स की बढ़ाई करते हुए कहा|

"हे राम! इसमें भी मिलावट होने लगी?" ताई जी ने हैरान होते हुए कहा|

"दादी जी आजकल सब चीजों में मिलावट होती है, खाने की हो या पहनने की|" ऋतू ने अपना 'एक्सपर्ट ओपिनियन' देते हुए कहा|

"सच्ची ज़माना बड़ा बदल गया, लालच में इंसान अँधा होने लगा है|" माँ ने कहा| घर की औरतों को बात करने को एक टॉपिक मिल गया था इसलिए मैं चुप-चाप वहाँ से खिसक लिया| मैं छत पर बैठ कर सब को होली के मैसेज फॉरवर्ड कर रहा था की चन्दर ऊपर आ गया और मुझसे बोला; "अरे रंग तो ले आये! भांग का क्या?"

"ताऊ जी को पता चल गया ना तो कुटाई होगी दोनों की!" मैंने कहा|

"अरे कुछ नहीं होगा? सब को पिला देते हैं थोड़ी-थोड़ी!" चन्दर ने खीसें निपोरते हुए कहा|

"दिमाग खराब है?" मैंने थोड़ा गुस्सा करते हुए कहा|

"अच्छा अगर पिताजी ने हाँ कर दी फिर तो पीयेगा ना?" चन्दर ने कुछ सोचते हुए कहा|

मैंने मना कर दिया क्योंकि एक तो मैं ऋतू को वादा कर चूका था और दूसरा कॉलेज में एक बार पी थी और हम चार लौंडों ने जो काण्ड किया था की क्या बताऊँ| पर चन्दर के गंदे दिमाग में एक गंदा विचार जन्म ले चूका था|


अगले दिन सब जल्दी उठे और जैसे मैं नीचे आया तो सब से पहले ताऊ जी ने मेरे माथे पर तिलक लगाया और मैंने उनके पाँव छुए| फिर पिताजी, उसके बाद ताई जी और फिर माँ ने भी मुझे तिलक लगाया और मैंने उनके पाँव छुए| चन्दर भैया घर से गायब थे तो भाभी ही मुट्ठी में गुलाल लिए मेरे सामने खड़ी हो गई, पर इससे पहले वो मुझे रंग लगाती ऋतू एक दम से बीच में आ गई और फ़टाफ़ट मेरे दोनों गाल उसने गुलाल से चुपड़ दिए| वो तो शुक्र है की मैंने आँख बंद कर ली थी वरना आँखों में भी गुलाल चला जाता| मुझे गुलाल लगा कर वो छत पर भाग गई, मैंने थाली से गुलाल उठाया और छत की तरफ भागा| ऋतू के पास भागने की जगह नहीं बची थी तो वो छत के एक किनारे खड़ी हुई बीएस 'सॉरी..सॉरी...सॉरी' की रट लगाए हुए थी| मैं बहुत धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ा और दोनों हाथों को उसके नरम-नरम गालों पर रगड़ कर गुलाल लगाने लगा| मेरे छू भर लेने से ऋतू कसमसाने लगी थी और उसकी नजरें नीचे झुकी हुई थीं| छत पर कोई नहीं था तो मेरे पास अच्छा मौका था ऋतू को अपनी बाहों में कस लेने का| मैंने मौके का पूरा फायदा उठाया और ऋतू को अपनी बाहों में भर लिया| ऋतू की सांसें भारी होने लगी थी और वो मेरी बाहों से आजाद होने को मचलने लगी| तेजी से सांस लेते हुए ऋतू मुझसे अलग हुई, मानो जैसे की उसके अंदर कोई आग भड़क उठी हो जिससे उसे जलने का खतरा हो| मैं ऋतू की तेज सांसें देख रहा था की तभी भाभी ऊपर आ गईं; "अरे मानु भैया! हम से भी गुलाल लगवा लो!" पर मेरा मुँह तो ऋतू ने पहले ही रंग दिया था तो भाभी के लगाने के लिए कोई जगह ही नहीं बची थी| "तुम्हारे ऊपर तो रितिका का रंग चढ़ा हुआ है, अब भला मैं कहाँ रंग लगाऊँ?" भाभी ने मेरी टाँग खींचते हुए कहा|

"माँ ...गर्दन पर लगा दो?" ऋतू हंसती हुई बोली और ये सुन कर भाभी को मौका मिल गया मुझे छूने का| उन्होंने मेरी टी-शर्ट के गर्दन में एकदम से हाथ डाला और उसे मेरे छाती के निप्पलों की तरफ ले जाने लगी| मुझे ये बहुत अटपटा लगा और मैंने उनका हाथ निकाल दिया| भाभी समझ गई की मुझे बुरा लगा है और ऋतू भी ये सब साफ़-साफ़ देख पा रही थी| मैं उस वक़्त कहने वाला हुआ था की ये क्या बेहूदगी है पर ऋतू सामने खड़ी थी इसलिए कुछ नहीं बोला| मैं वापस नीचे जाने लगा तो भाभी पीछे से बोली; "अरे कहाँ जा रहे हो? मुझे तो रंग लगा दो? आज का दिन तो भाभी देवर से सबसे ज्यादा मस्ती करती है और तुम हो की भागे जा रहे हो?" मैंने उनकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और संकेत से मिलने निकल पड़ा| उसके खेत में जमावड़ा लगा हुआ था और वहां सब ठंडाई पी रहे थे और पकोड़े खा रहे थे| मुझे देखते ही वो लड़खड़ाता हुआ आया और गले लगा फिर तिलक लगा कर मुझे जबरदस्ती ठंडाई पीने को कहा| अब उसमें मिली थी भाँग और मैं ठहरा वचन बद्ध! इसलिए फिर से घरवालों के डर का बहाना मार दिया| कुछ देर बाद ताऊ जी और पिताजी भी आ गए और वो ये देख कर खुश हुए की मैंने भाँग नहीं पि! पर ताऊ जी और पिताजी ने एक-एक गिलास ठंडाई पि और फिर हम तीनों घर आ गए| चन्दर का अब भी कुछ नहीं पता था| घर पहुँच कर सबसे पहले भाभी मुझे देखते हुए बोली; "सारे गाँव से होली खेल लिए पर अपनी इकलौती भाभी से तो खेले ही नहीं?"

"छत पर ऋतू के सामने मेरी पूरी गर्दन रंग दी आपने और कितनी होली खेलनी है आपको?" मैंने जवाब दिया| फिर मैंने अचानक से झुक कर उनके पाँव छूए और भाभी बुदबुदाते हुए बोली; "पाँव की जगह कुछ और छूते तो मुझे और अच्छा लगता!" मैं उनका मतलब समझ गया पर पिताजी के सामने कहूँ कैसे? इसलिए मैं नहाने के लिए जाने को आंगन की तरफ मुड़ा तो भाभी ने लोटे में घोल रखा रंग पीछे से मेरे सर पर फेंका| ठंडा-ठंडा पानी जैसे शरीर को लगा तो मेरी झुरझुरी छूट गई| "अब तो गए आप?" कहते हुए मैंने ताव में उनके पीछे भागा, भाभी खुद को बचाने को इधर-उधर भागना चाहती थी पर मैंने उनका रास्ता रोका हुआ था| इतने में उन्होंने ऋतू का हाथ पकड़ा और उसे मेरी तरफ धकेला, मैंने ऋतू के कंधे पर हाथ रख कर उसे साइड किया और भाभी का दाहिना हाथ पकड़ लिया और उन्हें झटके से खींचा| भाभी को गिरने को हुईं तो मैंने उन्हें गिरने नहीं दिया और गोद में उठा लिया| उनका वजन सच्ची बहुत जयदा था ऊपर से वो मुझसे छूटने के लिए अपने पाँव चला रही थीं तो मेरे लिए उन्हें उठाना और मुश्किल हो गया था| आंगन में एक टब में कुछ कपडे भीग रहे थे मैंने उन्हें ले जा कर उसी टब में छोड़ दिया| जैसे ही भाभी को ठन्डे पानी का एहसास अपनी गांड और कमर पर हुआ वो चीख पड़ी; "हाय दैय्या! मानु तुम सच्ची बड़े खराब हो! मर गई रे!" उन्हें ऐसे तड़पता देख मैं और ऋतू जोर-जोर से हँसने लगे और भाभी की चीख सुन माँ और ताई जी भी उन्हें टब में ऐसे छटपटाते हुए देख हँसने लगे| इससे पहले की माँ कुछ कहती मैंने खुद ही उन्हें साड़ी बात बता दी; "शुरू इन्होने किया था मेरे ऊपर रंग डाल कर, मैंने तो बस इनके खेल अंजाम दिया है|" इधर भाभी उठने के लिए कोशिश कर रहीं थीं पर उनकी बड़ी गांड जैसे टब में फँस गई थी| आखिर मैंने और ऋतू ने मिल कर उन्हें खड़ा किया और भाभी की चेहरे पर मुस्कराहट आ गई क्योंकि आज जिंदगी में पहली बार मैंने उन्हें इस कदर छुआ था|

मैंने उनकी इस मुस्कराहट को नजरअंदाज किया और अपने कपडे ले कर नहाने घुस गया| करीब पाँच मिनट हुए होंगे की चन्दर घर आया और उसके हाथ में मिठाई का डिब्बा था| उसने सब को डिब्बे से लड्डू निकाल कर दिए और मुझे भी आवाज दी की मैं भी खा लूँ पर मैं तो बाथरूम में था तो माने कह दिया की आप रख दो मैं नहा कर खा लूँगा| मेरे नहा के आने तक सबने लड्डू खा लिए थे और पूरा डिब्बा साफ़ था| जैसे ही मैं नहा के बाहर आया तो पूरे घर में सन्नाटा पसरा हुआ था.... आंगन में चारपाई पर ताई जी और माँ लेटे हुए थे, भाभी शायद अपने कमरे में थीं और ऋतू रसोई के जमीन पर बैठी थी और दिवार से सर लगा कर बैठी थी| ताऊ जी और पिताजी अपने-अपने कमरे में थे और चन्दर आंगन में जमीन पर पड़ा था| सब की आँखें खुलीं हुईं थीं पर कोई कुछ बोल नहीं रहा था| ये देखते ही मेरी हालत खराब हो गई, मुझे लगा कहीं सब को कुछ हो तो नहीं गया? मैंने एक-एक कर सब को हिलाया तो सब मुझे बड़ी हैरानी से देखने लगे| अब मुझे शक हुआ की जर्रूर सब ने भाँग खाई है और खिलाई भी उस कुत्ते चन्दर ने है!!! मैं पिताजी के कमरे में गया तो उन्हें भी बैठे हुए पाया और उन्हें जब मैंने हिलाया तो वो शब्दों को बहुत खींच-खींच कर बोले; "इसमें.....भांग.....थी.....!!!" अब मैं समझ गया की चन्दर बहन के लोडे ने भाँग के लड्डू सब को खिला दिए हैं! मैंने पिताजी को सहारा दे कर लिटाया और वो कुछ बुदबुदाने लगे थे| मैं ताऊ जी के कमरे में आया तो वो पता नहीं क्यों रो रहे थे, मैं जानता था की इस हालत में मैं उन्हें कुछ कह भी दूँ टब भी उनका रोना बंद नहीं होगा| मैंने उन्हें भी पुचकारते हुए लिटा दिया| इधर जब मैं वापस आंगन में आया तो माँ और ताई जी की आँख लग गई थी और चन्दर भी आँख मूंदें जमीन पर पड़ा था| मैंने भाभी के कमरे में झाँका तो वहां तो अजब काण्ड चल रहा था, वो अपनी बुर को पेटीकोट के ऊपर से खुजा रही थीं और मुँह से पता नहीं क्या बड़बड़ा रही थीं| मैंने फटाफट उनके कमरे का दरवाजा बंद किया और कुण्डी लगा कर मैं ऋतू के पास आया, तो पता नहीं वो उँगलियों पर क्या गईं रही थी? मैंने उसे हिलाया तो उसने मेरी तरफ देखा और फिर पागलों की तरह अपनी उँगलियाँ गिनने लगी| "जानू! I Love ......"इतना बोलते हुए वो रुक गई| अब मेरी फटी की अगर किसी ने सुन लिया तो आज ही हम दोनों को जला कर यहीं आंगन में दफन कर देंगे| मैंने उसे गोद में उठाया और ऊपर उसके कमरे में ला कर लिटाया| मैं उसे लिटा के जाने लगा तो उसने मेरा हाथ कस कर पकड़ लिया और Pout की आकृति बना कर मुझे Kiss करना चाहा| मैं उसके हाथ से अपना हाथ छुड़ा रहा था क्योंकि मैं जानता था की अगर कोई ऊपर आ गया तो हम दोनों को देख कर सब का नशा एक झटके में टूट जायेगा! पर ऋतू पर तो प्यार का भूत सवार हो गया था| पता नहीं उसे आज मेरे अंदर किसकी शक्ल दिख रही थी की वो मुझे बस अपने ऊपर खींच रही थी| "ऋतू मान जा...हम घर पर हैं! कोई आ जाएगा!" मैंने कहा पर उसने मेरी एक न सुनी और अपने दोनों हाथों के नाखून मेरे हाथों में गाड़ते हुए कस कर पकड़ लिए| ऋतू के गुलाबी होंठ मुझे अपनी तरफ खींच रहे थे और अब मेरा सब्र भी जवाब देने लगा था| मैंने हार मानते हुए उसके होठों को अपने होठं से छुआ पर इससे पहले की मैं अपनी गर्दन ऊपर कर उठता ऋतू ने झट से अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के पीछे लॉक कर दिया और अपने होठों से मेरे होंठ ढक दिए| ऋतू पर नशा पूरे शबाब था और वो बुरी तरह से मेरे होंठ चूसने लगी| मेरे हाथ उसके जिस्म की बजाये बिस्तर पर ठीके थे और मैं अब भी उसकी गिरफ्त से छूटने को अपना जिस्म पीछे खींच रहा था|

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मुझे डर लग रहा था की अगर कोई ऊपर आ गया तो, इसलिए मैंने जोर लगाया और ऋतू के होठों की गिरफ्त से अलग हुआ| पर ये क्या ऋतू ने "I Love You" रटना शुरू कर दिया| वो तो अपनी आँख भी नहीं झपक रही थी बस लेटे हुए मुझे देख रही थी और I Love You की माला रट रही थी| मैंने उस के कमरे को बाहर से कुण्डी लगाईं और रसोई में गया और वहाँ से कटोरी में आम का अचार निकाल लाया| ऋतू के कमरे की कुण्डी खोली तो छत पर देखते हुए अब भी I Love You बड़बड़ा रही थी| मैंने कटोरी से एक आम के अचार का पीस उठाया और ऋतू के सिरहाने बैठ गया| मुझे अपने पास देखते ही उसने मुझे अपनी बाहों में कस लिया| मैंने आम का पीस उसकी तरफ बढ़ाया तो अपने होंठ एक दम से बंद कर लिए| पर मैंने भी थोड़ा उस्तादी दिखाते हुए पीस वापस कटोरी में रखा और अपनी ऊँगली ऋतू को चटा दी| ऊँगली में थोड़ा अचार का मसाला लगा था, ऋतू ने खटास के कारन अपना मुँह खोला और मैंने फटाफट अचार का टुकड़ा उसके मुँह में डाल दिया| ऋतू एक दम से मुँह बनाते हुए उठ बैठी और उसने वो अचार का पीस उगल दिया| मुझे उसका ऐसा मुँह बनाते हुए देख बहुत हँसी आई पर वो मेरी तरफ सड़ा हुआ मुँह बना कर देखने लगी| "सो जा अब!" मैंने ऋतू को कहा और उठ कर नीचे आ गया| बारी-बारी कर के सब को अचार चटाया और सब के सब ऋतू की ही तरह मुँह बना रहे थे और मुझे बहुत हँसी आ रही थी| सबसे आखिर में मैंने चन्दर को अचार चटाया तो उस पर जैसे फर्क ही नहीं पड़ा, वो तो अब भी बेसुध से पड़ा था| अब मैं इससे ज्यादा कुछ कर नहीं सकता था तो उसे ऐसे ही छोड़ दिया| बाकी सब के सब नशा होने के कारन सो रहे थे, इधर मुझे भूख लग गई थी| वो तो शुक्र है की घर पर पकोड़े बने थे जिन्हें खा कर मैं अपने कमरे में आ कर सो गया|


शाम को चार बजे उठा तो पाया की घर वाले अब भी सो रहे हैं| मैंने अपने लिए चाय बनाई और फिर रात के लिए खाना बनाने लगा| मैं यही सोच रहा था की बहनचोद चन्दर ने ऐसी कौन सी भाँग खिला दी की सब के सब सो रहे हैं? पर फिर जब मुझे अपने कॉलेज वाला किस्सा याद आया तो मुझे याद आया की जब पहली बार मैंने भाँग खाई थी तो मैंने सुबह तक क्या काण्ड किया था! खेर खाना बन गया था और मेरे उठाने के बाद भी कोई नहीं उठा था| सब के सब कुनमुना रहे थे बस| एक बात तो तय थी की कल चन्दर की सुताई होना तय है!

मैंने अपना खाना खाया और ऊपर आ गया, रात के 1 बजे होंगे की मुझ नीचे से आवाज आई; "मानु!" मैं फटाफट नीचे आया तो देखा ताई जी और माँ चारपाई पर सर झुकाये बैठे हैं| मैंने उन्हें पानी दिया और फुसफुसाते हुए पुछा; "ताई जी भूख लगी है?" उन्होंने हाँ में सर हिलाया तो मैं माँ और उनके लिए खाना परोस लाया| फिर मैंने पिताजी और ताऊ जी को उठाया और उन्हें भी खाना परोस कर दिया| इधर ऋतू भी नीचे आ गई और उसे देखते ही मैं मुस्कुराया और उसे माँ के पास बैठने को कहा| उसका खाना ले कर उसे दिया और मैं सीढ़ियों पर बैठ गया| तभी भाभी ने दरवाजा खटखटाया, क्योंकि उनके कमरे का दरवाजा मैंने बंद कर दिया था इस डर से की कहीं ताऊ जी और पिताजी उठ गए और उन्हें ऐसी आपत्तिजनक हालत में देख लिया तो! भाभी बाहर आईं और सीधा बाथरूम में घुस गईं| वो वपस आईं तो उन्हें भी मैंने ही खाना परोस के दिया| सब ने फटाफट खाना खाया और कोई एक शब्द भी नहीं बोला| खाना खाने के बाद ताऊ जी अपने कमरे से बाहर आये और उन्होंने चन्दर को जमीन पर पड़े हुए देखा तो उनका खून खौल गया| उन्होंने ठन्डे पानी की एक बाल्टी उठाई और पूरा का पूरा पानी उस पर उड़ेल दिया| इतना पानी अपने ऊपर पड़ते ही चन्दर बुदबुदाता हुआ उठा और ताऊ जी ने उसे एक खींच कर थप्पड़ मारा| चन्दर जमीन पर फिर से जा गिरा; "हरामजादे! तेरी हिम्मत कैसे हुई सब को भाँग के लड्डू खिलाने की? वो तो मानु यहाँ था तो उसने सब को संभाल लिया वरना यहाँ कोई घुस कर क्या-क्या कर के चला जाता किसी को पता ही नहीं चलता| तुझे जरा भी अक्ल नहीं है की घर में औरतें हैं, तेरी बीवी है, बच्ची है?” पर चन्दर को तो जैसे फर्क ही नहीं पड़ रहा था| मैंने भाभी को कहा की इन्हें अंदर ले कर जाओ, तो भाभी ने उन्हें सहारा दे कर उठाया और कमरे में ले गईं| इधर पिताजी ताऊ जी की गर्जन सुन कर बाहर आये और मुझे इशारे से अपने पास बुलाया| मैं उनके पास गया और पिताजी का शायद सर घूम रहा था इसलिए मैंने उन्हें सहारा दे कर बैठक में बिठा दिया| सब के सब बैठक में आ कर बैठ गए और मुझसे पूछने लगे की आखिर हुआ क्या था? मैंने उन्हें सारी बात विस्तार से बता दी और अचार वाली बात पर सारे हँसने लगे| पर तभी पिताजी ने पुछा; "तुझे कैसे पता की अचार चटाना है?" अब ये सुन कर मैं फँस गया था| पहले तो सोचा की झूठ बोल दूँ, फिर मैंने सोचा की मेरा किस्सा सुन कर सब हंस पड़ेंगे और घर का माहौल हल्का हो जायेगा इसलिए मैंने अपना किस्सा सुनाना शुरू किया|


"कॉलेज फर्स्ट ईयर था और होली पर घर नहीं आ पाया था क्योंकि असाइनमेंट्स पूरे नहीं हुए थे| होली के दिन सुबह दोस्त लोग आ गए और मुझे अपने साथ कॉलेज ले आये जहाँ हमने खूब होली खेली! फिर दोपहर को हम वापस हॉस्टल पहुँचे और नाहा धो कर खाना खाने आ गए| आज हॉस्टल में पकोड़े बने थे जो सब ने पेट भर कर खाये| जब वापस कमरे में आये तो मेरा एक दोस्त कहीं से भाँग की गोलियाँ ले आया था| उसने सब को जबरदस्ती खाने को दी ये कह कर की ये भगवान का प्रसाद है| अब प्रसाद को ना कैसे कहते, जब सब ने एक-एक गोली खा ली तो वो सच बोला की ये भाँग की गोली है| हम टोटल 4 दोस्त थे, अमन, मनीष और कुणाल| कुणाल को छोड़ कर बाकी तीनों डर गए थे की अब तो हम गए, पता नहीं ये भाँग का नशा क्या करवाएगा| हम ने सुना था की भाँग का नशा बहुत गन्दा होता है और आज जब पहलीबार खाई तो डर हावी हो गया| पर 15 मिनट तक जब किसी ने कोई उत-पटांग हरकत नहीं की तो हम तीनों ने चैन की साँस ली! हमें लगा की किसी ने बेवकूफ बना कर कुणाल को मीठी गोलियाँ भाँग की गोलियाँ बोल कर पकड़ा दीं| ये कहते हुए अमन ने हँसना शुरू किया और उसकी देखा-देखि मैं और मनीष भी हँसने लगा| कुणाल को ताव आया की हम तीनों उसे बेवकूफ कह रहे हैं तो उसने हमें चुनौती दी; 'हिम्मत है तो एक-एक और खा के दिखाओ|' हम तीनों ने भी जोश-जोश में एक-एक गोली और खा ली| और फिर से उस पर हँसने लगे| हम तीनों ये नहीं जानते थे की भाँग का असर हम पर शुरू हो चूका था, तभी तो हम हँसे जा रहे थे| उधर कुणाल बिचारा छोटे बच्चे की तरह रोने लगा था और उसे देख कर हम तीनों पेट पकड़ कर हँस रहे थे| 15 मिनट तक हँसते-हँसते पेट दर्द होने लगा था और बड़ी मुश्किल से हँसी रोकी और तब मनीष ने सब को डरा दिया ये कह कर की हमें भाँग चढ़ गई है| अब ये सुन कर हम चारों एक दूसरे की शक्ल देख रहे थे की अब हम क्या करेंगे? अमन तो इतना डर गया था की कहने लगा मुझे हॉस्पिटल ले चलो, मैं मरने वाला हूँ| तो कुणाल बोला की कुछ नहीं होगा थोड़ी देर सो ले ठीक हो जायेगा, पर मनीष को बेचैनी सोने नहीं दे रही थी| इधर मनीष को गर्मी लगने लगी और वो सारे कपडे उतार कर नंगा हो गया और उसने पंखा चला दिया| मुझे भी डर लगने लगा की कहीं मैं मर गया तो? इसलिए मैंने सोचा की ये हॉस्पिटल जाएँ चाहे नहीं मैं तो जा रहा हूँ| अभी मैं दरवाजे के पास पहुँचा ही था की कुणाल ने हँसते हुए रोक लिया और बोला; 'कहाँ जा रहा है? बड़ी हँसी आ रही थी ना तुझे? और खायेगा?' मैं उस हाथ जोड़ कर मिन्नत करने लगा की भाई माफ़ कर दे, आज के बाद कभी नहीं खाऊँगा ये भाँग का गोला! मैं जैसे-तैसे बाहर आया और घडी देखि ये सोच कर की कहीं हॉस्पिटल बंद तो नहीं हो गया? उस वक़्त बजे थे रात के 2, यानी हम चारों शाम के 4 बजे से रात के दो बजे तक ये ड्रामा कर रहे थे| अब हमारा कमरा था चौथी मंजिल पर, इसलिए मैं हमारे कमरे के दरवाजे के सामने लिफ्ट और सीढ़ियों के बीच खड़ा हो कर सोचने लगा की नीचे जाऊँ तो जाऊँ कैसे? अगर लिफ्ट से गया और दरवाजा नहीं खुला तो मैं तो अंदर मर जाऊँगा? और सीढ़ियों से गया तो पता नहीं कितने दिन लगे नीचे उतरने में? मैं खड़ा-खड़ा यही सोच रहा था की हमारे हॉस्टल के वार्डन का लड़का आ गया और मुझे ऐसे सोचते हुए देख कर मुझे झिंझोड़ते हुए पुछा की मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ? मैंने उसे बताया की मैं हिसाब लगा रहा हूँ की सिढीयोंसे जाना सही है या लिफ्ट से? ये सुन कर वो बुरी तरह हँसने लगा| क्योंकि वहाँ लिफ्ट थी ही नहीं और जिसे मैं लिफ्ट समझ रहा था वो एक पुरानी शाफ़्ट थी जिसमें बाथरूम की पाइपें लगी थी| पर मैं अब भी नहीं समझ पाया था की हुआ क्या है और ये क्यों हँस रहा है? वो मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुझे कमरे में ले आया और अंदर का सीन देख कर हैरान हो गया| मनीष पूरा नंगा था और उसने अपने गले में तौलिया बाँध रखा था जैसे की वो सुपरमैन हो और एक पलंग से दूसरे पर कूद रहा था| अमन बिचारा एक कोने में बैठा अपना सर दिवार में मार रहा था और बुदबुदाए जा रहा था; 'अब नहीं खाऊँगा....अब नहीं खाऊँगा....अब नहीं खाऊँगा...' कुणाल फर्श पर उल्टा पड़ा था और चूँकि उसे मछलियां बहुत पसंद थी तो वो खुद को मछली समझ कर फड़फड़ा रहा था और मैं रात के 2 बजे से सुबह के 6 बजे तक बाहर खड़ा हो कर हिसाब लगा रहा था की सीढ़यों से जाऊँ या फिर लिफ्ट से!

उसी लड़के ने एक-एक कर हमें आम चटाया और हमारा नशा उतारा| इसलिए उस दिन से कान पकडे की कभी भाँग नहीं खाऊँगा|"


मेरी पूरी राम-कहानी सुन कर सारे घर वाले खूब हँसे और शुक्र है की किसी ने मुझे भाँग खाने के लिए डाँटा नहीं! बात करते-करते सुबह के चार बज गए थे इसलिए ताऊ जी ने कहा की सब कुछ देर आराम कर लें पर मुझे तो सुबह ही निकलना था| पर ताऊ जी ने कहा की आराम कर लो और 7 बजे उठ जाना, इसलिए सारे लोग सो गए और सुबह सात बजे जब मैं उठा तो ताई जी, भाभी और माँ रसोई में नाश्ता बना रहे थे| फ्रेश हो कर नाश्ता किया और ताई जी ने रास्ते के लिए भी बाँध दिया की भूख लगे तो खा लेना| शहर हम 11 बजे पहुँचे और पहले ऋतू को कॉलेज छोड़ मैं ऑफिस पहुँचा| सर ने थोड़ा डाँटा पर मैंने जाने दिया क्योंकि आधा दिन लेट था मैं! दिन गुजरते गए और ऋतू के Exams आ गए और उसने फिर से क्लास में टॉप किया! ये ख़ुशी सेलिब्रेट करना तो बनता था, तो संडे को मैं उसे लंच पर ले जाना चाहता था पर उसके कॉलेज के दोस्त भी साथ हो लिए और सब ने कॉन्ट्री कर के लंच किया|


कुछ महीने और बीते और ऋतू का जन्मदिन आया, मैंने उसे पहले ही बता दिया था की एक दिन पहले ही मैं उसे लेने आऊंगा पर ऋतू कहने लगी की उसके असाइनमेंट्स पेंडिंग हैं और अपने दोस्तों के साथ उसने कुछ क्लास बंक की थीं तो वो भी कवर करना है उसे! तो मेरा प्लान फुस्स हो गया! पर वो बोली की शाम को उसके सारे दोस्त उसके पीछे पड़े हैं की उन्हें ट्रीट चाहिए तो हम शाम को मिलते हैं| अब कहाँ तो मैं सोच रहा था की उसका बर्थडे हम अकेले सेलिब्रेट कर्नेगे और कहाँ उसके दोस्त बीच में आ गए| पर मैं ये सोच कर चुप रहा की कॉलेज के दोस्त कभी-कभी करीब होते हैं और मुझे ऋतू को थोड़ी आजादी देनी चाहिए वरना उसे लगेगा की मैं Possessive हो रहा हूँ! अब मैं भी इस दौर से गुजरा था इसलिए दिमाग का इस्तेमाल किया और ऋतू के बर्थडे को खराब नहीं किया, बल्कि उसी जोश और उमंग से मनाया जैसे मनाना चाहिए| ऋतू के चेहरे की ख़ुशी सब कुछ बयान कर रही थी और मेरे लिए वही काफी था| दिन बीतने लगे और ऋतू के कॉलेज के दोस्तों ने कोई ट्रिप प्लान कर लिया, मुझे लगा की शायद मुझे भी जाना है पर मुझे तो इन्विते ही नहीं किया गया क्योंकि वैसे भी मैं कॉलेज वाला नहीं था| ऋतू ने मुझसे मिन्नत करते हुए जाने की इज्जाजत मांगी तो मैंने उसे मना नहीं किया| इस ट्रिप पर बनने वाली यादें उसे उम्र भर याद रहेंगी| जितने दिन वो नहीं थी उतने दिन मैं रोज उसे सुबह-शाम फ़ोन करता और उसका हाल-चाल लेता रहता| जब वो वापस आई तो बहुत खुश थी और मुझे उसने ट्रिप की सारी pictures दिखाईं और वो संडे मेरा बस ऋतू की ट्रिप की बातें सुनते हुए निकला| दिन बीत रहे थे और काम की वजह से कई बार मुझे सैटरडे को बरेली जाना पड़ता और इसलिए हम सैटरडे को मिल नहीं पाते पर संडे मेरा सिर्फ और सिर्फ ऋतू के लिए था| उस दिन वो आती तो मेरे लिए खाना बनाती और कॉलेज की सारी बातें बताती और कई बार तो हम संडे को पढ़ाई भी करते!
Ye bhang kuchh jyada he chadh gayi he :lol:
Aur ye chandan ke raaz ke pitare akhir kab khulenge :waiting1:
Idhar Rutu ab shayad 3rd year me he aur apne Dosto ke jyada he karib hoti dikh rahi he :hinthint2:
 
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