अध्याय २
अब मैं कुछ मुख्य किरदारों का आपसे परिचय करवा दू:
१. मैं यानी सविता, आपकी लेखिका और सबसे मुख्य पात्र इस कहानी का। अब खुद की तारीफ मैं क्या करू। एक दम सांचे में ढाला हुआ जिस्म हैं मेरा। सबसे दिलक्कश हैं मेरे वक्ष या मेरी चूचियां जो की एक दम सीना तान खड़ी हैं। मेरे नितंब या मेरी गांड़ एक दम भरी हुई और गोल हैं। केले के तने समान चिकनी और सुडौल झांगे जो मेरे खजाने यानी की मेरी चूंत को और हसीन बनाती हैं। मेरे काले नाग से पूछो तो वो कहेगा की में उसकी अप्सरा हूं जिससे वो हर समय अपने लन्ड पर बिठाए रखना चाहता हैं।
२. सुशांत सिंह मेरे पति। इनका कुछ ज्यादा रोल नहीं हैं बस ये एक नेक और अच्छे इंसान हैं। हर चीज से बहुत जल्दी संतुष्ट हो जाते हैं। ज्यादा मन मुटाव किसी से रखते नही।
३. अंजली सिंह मेरी बड़ी बेटी उम्र २६ वर्ष
४. अंजनी सिंह मेरी दूसरी बेटी उम्र २५ वर्ष
५. अवनी सिंह मेरी तीसरी बेटी उम्र २३ वर्ष
६. अदिति सिंह मेरी चौथी बेटी उम्र २२ वर्ष
इनमे से किसी का भी फिगर या खूबसूरती का विवरण मैने नही किया हैं क्युकी मेरी बेटियां एक से बढ़कर एक। सब इतनी सुंदर हैं की आस पास के गांव तक इनके रूप यौवन के चर्चे हैं। घर में रहकर अपनी प्राइवेट से पढ़ाई पूरी कर रही हैं। अभी तक किसी की भी शादी नही हुई क्यू नही हुई ये नही पता। पर आगे पता पड़ जायेगा।
७ अंतिम और आखिरी किरदार हैं हमारा काला नाग यानी की मेरा बेटा, पति या फिर कही खुद शाक्षत शैतान अथर्व। जानते हैं इस को काला नाग क्यू बुलाते हैं। काला तो ये हैं किसी नीग्रो की तरह इस लिए काला और नाग आता हैं इसके बिल में से जो बहुत ही भयानक, खतरनाक और ताकतवर हैं। जी हैं में इसके लोड़े की ही बात कर रही हूं। १२ इंच लंबा और ४ इंच मोटा हैं इसका लोड़ा। एक बार घुस जाए तो छटी का दूध याद दिला देता हैं। इसकी बात ज्यादा नहीं करते क्युकी जितना मैं इसके लन्ड के बारे में बात करूंगी उतनी ही मेरी चूत चुदासी हो जाऊंगी और मैं ज्यादा कुछ अभी कर भी नहीं सकती क्युकी मेरा नौवा महीना चल रहा हैं। अथर्व अभी कुछ २१ साल का हैं। उसकी हाइट पूरे ६ फीट हैं और शरीर एक दम कसा हुआ और ठोस। एक एक घंटे तक मुझे गोद में उठाकर पेलता रहता हैं।
बाकी के किरदार जब आएंगे तब उनका परिचय भी करवा दूंगी फिलहाल इस भाग में कहानी इन्ही किरदारों के आस पास घूमेगी। चलिए चलते हैं आगे की कहानी की और।
मेरे ससुर जी के स्वर्गवास होते ही रंजीत यानी मेरा देवर ने हमे हवेली से निकलकर फॉर्महाउस में रहने के लिए बोल दिया। मेरे अहिंसा वादी पति देव ने बिना किसी बहस के वहा से पलायन करने का निर्णय ले लिया और अब हम अपने नए घर आ गए। घर तो बुरा नही था छोटा भी नही था पर कहा वो हवेली और कहा ये फॉर्महाउस। मेरे मन में कसक बहुत थी और कही न कही आक्रोश भी।
तय समय पर मैंने अथर्व को जन्म दिया और दाई ने हो मुझे बताया कि इतना बड़ा हतियार उसने आजतक किसी भी बालक का नही देखा हैं। नवजात शिशु का लिंग किसी ने २ इंच का देखा है क्या। पर वही से उसका नाम काला नाग पढ़ गया। मेरे पति तो नुपांसक हो गए थे पर अथर्व के जन्म के बाद मुझे रोज चरमसुख की प्राप्ति होने लगी। जब भी स्तनपान करता न जाने क्यों मैं झड़ जाती। लेकिन अथर्व के जन्म के बाद मेरे रूप यौवन में और निखार आने लगा। मुझे ऐसा प्रतीत होता की जैसे मैं फिर जवान हो रही हूं। मेरे वक्ष जो थोड़े लटक गए थे एक दम सुडौल और तन गए। मेरे अंदर स्फूर्ति आ गई और मैं हद से ज्यादा चुदासी रहने लगी। हर रात को मुझे एक सपना आता की मैं एक बिस्तर पर निर्वस्त्र लेटी हूं और चूदाई की आग में जल रही हूं पर कुछ कर नही पा रही। तभी कही दूर से एक आवाज आई ठहर मेरी जान मेरी रांड़ तेरी तड़प मैं शांत करूंगा बस थोड़ा इंतजार कर। कुछ दिन तक ये सपना रोज आया फिर गायब हो गया पर मेरी चुदासी बढ़ती गई।
१० साल तक अथर्व स्तनपान करता रहा और मुझे रोज एक नए सुख की अनुभूति होती। पर एक दिन अचानक उसने स्तनपान करना छोड़ दिया। अचंभा तो हुआ मुझे पर मैं अतर्व रोक या टोक नही सकती थी।
अथर्व बहुत ही तेज़ तर्रार था। बुद्धिमान भी पर सही कामों में नही वो हर काम का टेड़ा हल निकल लेता। इस बात पर उसके पिता उससे नाराज रहने लगे और धीरे धीरे उनका रोश एक तरह की नफरत में बदल गया। वो अब घर भी काम आते ज्यादातर अपना समय वो खेतो या फिर मंदिर में ही व्यतीत करते क्युकी खेत की कमान मैने अपने हाथो में ले रखी थी। इनका अगर बस चलता तो ये भी सब दान दे देते। खैर एक दिन आठवी कक्षा के छात्र ने बारव्वी के छात्र को इतना पीटा की वो अधमरा हो गया। ये कोई और नही अथर्व था। उसकी शिकायत हुई और उसके पिता ने उसे घर में बहुत मारा इसी दिन उसने निर्णय ले लिया की वो अब आगे नहीं पड़ेगा। और मैं कुछ भी नही बोल पाई।
अथर्व अब न तो स्कूल जाता बस दिन भर इधर उधर भटकता। एक रात मुझे कुछ जलने की बू आई तो मैं उस दिशा में चल पड़ी। घर के पीछे की तरफ एक नदी बहती थी। वहा से बहुत तेज रोशनी आ रही थी। मैं भी उस तरफ चल दी। बहुत बड़ा अग्निकुंड और उसमे से तेज तर्रार आग की लपटे और सामने एक व्यक्ति जो पूरी तरह से भस्म में रमा हुआ उस अग्निकुंड मैं आहुति दे रहा हैं और बहुत तेज तेज मंत्रो का उच्चारण कर रहा हैं। फिर वो व्यक्ति खड़ा हुआ तो मैं एकदम से आश्चर्य में रह गई की वो व्यक्ति बिलकुल नितंग नंगा हैं और उसका लोड़ा हवा में झूल रहा हैं जो की बहुत ही विकराल लग रहा था। फिर उस व्यक्ति ने एक तलवार उठाई और अपनी उंगली काट कर अपने लहू की आहुति दी अग्नि कुंड में। कुछ ही क्षण में उसका घाव भर भी गया जैसे कुछ हुआ ही ना हो। फिर उसने तलवार से वहा बंधे बकरे की बलि दी और जो रक्त बहा उससे एक बर्तन में एकत्रित किया और फिर वो उस रक्त को पी गया और उस बकरे का कच्चा मांस खाने लगा। पूरा बकरा खा गया वो व्यक्ति और फिर उस बकरे की हड्डियों को अग्निकुंड में आहुति दी। फिर से कुछ मंत्र और उस व्यक्ति ने एक जोरदार हुंकार भरी जिसे सुन मेरा मूत निकल गया। फिर वो व्यक्ति नदी में स्नान करने के लिए रुक गयाऔर उस व्यक्ति ने नदी में डुबकी लगाई और गायब हो गया नदी के अंदर ही।