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Incest काला नाग

mitzerotics

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अध्याय ३



मैं बहुत घबरा गई थी। अथर्व ने फिर कुछ मंत्र से पड़े और अग्निकुंड के समक्ष हाथ जोड़ के खड़ा हो गया। देखते ही देखते अग्नि शांत हो गई। अथर्व ने फिर अपने कपड़े पहनने शुरू किए तब मैंने वहा से निकलना ठीक समझा।

मुझे समझ नही आ रहा था जो मैंने देखा क्या वो सही था। अथर्व तांत्रिक क्रिया कर रहा था पर क्यू? लेकिन बार बार मेरे जेहन में उसका लन्ड आ रहा था। ऐसा लन्ड तो मैंने कभी देखा नहीं। इतना लंबा और इतना मोटा। मैं सोच सोच कर गरम होने लगी और अपने आप मेरा हाथ सारी के अंदर घुस गया और चूत को कुरेदने लगा। मैं सोचने लगी जब ऐसा लन्ड मेरी चूत में जायेगा तो इस निगोडी की तो लॉटरी लग जाएगी। कैसा कसा कसा जायेगा। अंदर तक हिला के रख देगा। मेरे हाथ तेजी से चलने लगे और दूसरे हाथ से मैं अपनी चूचियां दबाने लगी। चूचियां भी एक दम कठोर हो गई थी और निप्पल तन गए थे जैसे अथर्व के लन्ड को सलामी दे रहे। आधे घंटे तक मैं अपनी चूत रगड़ती रही पर चरमसुख की प्राप्ति नही हूं। कपड़े अब मुझे बोझ से लगने लगे। मैं जल्दी से जल्दी अपने चरम को पा लेना चाहती थी, मुझसे ये आग बर्दाश्त नहीं हो रही थी। एक एक करके मैने सारे कपड़े उतार दिए और दोनो टांगे फैला के अपनी चूत में उंगली करने लगी। इतनी चुदासी हो गई थी मैं की इस समय कुत्ते को भी अपने ऊपर चढ़ा लेती। मैं सामने लगे शीशे में खुद के रूप यौवन को निहारते हुए अपनी आग शांत करने में लगी थी पर आज पहली बार मुझे चरमसुख की प्राप्ति नही हो रही थी। १ घंटा निकल चुका था पर मेरी आग शांत होने की बजाय बढ़ती जा रही थी। मैं परेशान होने लगी पर यकायक एक धीमी आवाज मेरे कानो में पड़ी " ये अब ऐसे शांत नहीं होगी मेरी रानी बस कुछ समय और फिर तू रोज झड़ेगी, मैं अपने लन्ड पे तुझे भिटाके इस घर और हवेली के हर कोने में तुझे चोदूंगा वो भी रगड़ रगड़ कर। समझी मेरी रण्डी और फिर तू मेरे पुत्रों को जन्म देगी। हा हा हा हा हा हा और ठ्ठाहेके मारने लगा।"

ये आवाज सुनते ही मेरे हाथ पांव ठंडे पड़ गए और मैं एक दम स्थिर हो गई। जो आग मेरे अंदर जल रही थी वो एक दम से काफूर हो गई। क्युकी ये आवाज अथर्व की थी। मैने फुर्ती से अपने जिस्म को चादर से ढका और पूरे कमरे का जायजा लिए पर मुझे अथर्व या उसका अस्तित्व कही नही दिखा। यही सब सोचते हुए मुझे कब नींद आ गई पता ही नही पड़ा।

सुबह मेरी नींद देर से खुली। जब मैं नहाके किचन की ओर गई तब तक मेरी बड़ी बेटी सुबह का नाश्ता करा चुकी थी सब को पर अथर्व अभी तक सोया हुआ था। मैं चाय और नाश्ता लेके अथर्व के कमरे तक गई। दरवाजा बंद नही था और मेरे धकेलने से खुलता चला गया। अंदर अथर्व दुनिया से बेखबर सोया हुआ था। उसके शरीर पर सिर्फ एक निकर था बाकी इसके शरीर पर कुछ भी नही था। उसकी चौडी छाती देख कर मेरे सांसे तेज चलने लगी। उसकी बलिष्ट भुजाए देखकर उसकी मर्दानगी का मुझे एहसास होने लगा। उसकी लंबी टांगे देख कर मुझे उसकी ताकत का अंदाजा होने लगा। पर मेरी आंखे उसकी निकर के जोड़ पे अटक गई और मुझे उसके काले नाग का एहसास होने लगा। कितना बड़ा और मोटा हैं वो। मेरी पलक झपकना ही भूल गई और एक वासनात्मक खुमारी छाने लगी। मेरे दोनो हाथ में ट्रे थी पर मेरी चूत कुलबुलाने लगी। मेरी पलके नशे से भारी होने लगी। मैं ये सोचने लगी जब ये लन्ड मेरी चूत में जायेगा तब मेरा क्या हाल होगा। किस तरह से मुझे ये चोदेगा और मेरी चूत रस टपकाने लगी। इतने में ही अथर्व ने करवट ली और मैं अपनी सोच से बाहर आई। दिल के किसी कोने में मुझे खुद से अपराध बोध हुआ की में क्या सोच रही हूं ये मेरा खुद का बेटा हैं पर वही दूसरी आवाज भी आई याद हैं तांत्रिक ने क्या बोला था ये मेरा बेटा भी हैं और मेरा पति भी और इसके सात पुत्रों को मैं जन्म दूंगी। यही आवाज सुन के मैं शर्माने लगी। पर एक आवाज ने मुझे मेरी सोच से बाहर निकला।

अथर्व : मां ओ मां।

मैं अपनी सोच से बाहर निकली और देखा अथर्व उठ चुका हैं। मैं अपनी सोच से बाहर निकली।

मैं: कितनी देर तक सोता हैं। क्या करता हैं तू रात भर।

अथर्व : कल रात मैं साधना कर रहा था।

इतना बोलते ही मुझे रात का सारा सीन मेरी आंखों के सामने घूम गया। मैने देखा दरवाजा खुला हुआ हैं, मैने पहले जाके दरवाजा बंद किया और फिर अथर्व के पास जाके बेड पर बैठ गई।

मैं: अथर्व बेटा तू ये साधना क्यू कर रहा था। तुझे मालूम हैं तेरे बाबा को ये पता लग गया तो वो कितना गुस्सा करेंगे और बेटा ये साधनाएं कभी कभी उल्टी भी पढ़ जाति है। कही तुझे कुछ हो गया तो मैं क्या करूंगी। और मेरी आंख से पानी गिरने लगा।

अथर्व ने वो किया जो मैं सपने में भी नही सोच सकती। उसने अपनी जीव से मेरे आंसू चाट लिए। उसकी जीव का स्पर्श होते ही मेरे पूरे बदन मैं एक सनसनी सी दौड़ गई और मेरी आंखे मजे में बंद होती चली गई। ये चुवन एक मर्द की औरत से थी ना की बेटे की मां को। औरत को हर स्पर्श का एहसास होता हैं।

अथर्व: ( मुझे निहारे जा रहा था और उसकी आवाज से मैं अपने मजे से बाहर निकली)। मां तू चिंता मत कर मैं सब सोच समझ के कर रहा हूं। मेरे गुरु जी मुझे हर कदम पर सहायता करते हैं जब मैं साधना करता हूं।

मैं: (अचंभित होते हुए) तेरे गुरु जी। कौन हैं तेरे गुरु जी? कहा रहते है? और वो क्या चाहते हैं तुझसे?

अथर्व: मां मेरे गुरु जी बहुत पहुंचे हुए तांत्रिक हैं और वो जंगल में रहते हैं। वो कहते हैं की वो मुझे मेरे सही मुकाम तक पहुंचने में मदद करेंगे। मां चिंता मत कर तुझे जल्द ही उस हवेली की ठकुराइन बनाऊंगा और मैं उस हवेली का ठाकुर।

अथर्व ने एक बार फिर मेरी दुखती रग पर हाथ रखा।

मैं: ( झूठा गुस्सा दिखा कर) तू ठाकुर, तेरे बाबा क्यू नही।


अथर्व: क्यूंकि वो आदमी इस लायक नही है उसने कभी भी तुझे कोई खुशी नहीं दी। मैने तुझे हर रूप से तड़पते हुए देखा हैं। पर मैं तुझे रानी बनाऊंगा। और तू इन साधना की चिंता मत कर जब तक मैं हूं तुझे कुछ नहीं होने दूंगा ये मेरा वादा हैं। एक बात और साधना तो तू भी करती है हर अमावस्या की रात को। मैंने देखा हैं और हम दोनो मिलके एक दिन सब से बदला लेंगे। सब चीज से निश्चिंत हाेजा। मैं हूं ना तेरा काला नाग।
 
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अध्याय ४



अथर्व की शैतानी प्रवृत्ति ने अपना पहला वार कर दिया था। उसने मेरे ही मन में मेरे पति के खिलाफ बीज बो दिया था। मैं लालच मैं आंधी नही समझ पाई। मेरे अंदर ठकुराइन बनने की लालसा फिर से जाग उठी।

मैं: सच अथर्व तू बनाएगा मुझे ठकुराइन। क्या तू मेरा ये सपना सच करेगा। क्या तू फिर से मुझे उस हवेली की दहलीज पे उसी मान सम्मान के साथ ले जाएगा। बोल अथर्व बोल।

अथर्व: सच में मैं तुम्हारा सपना सच करूंगा। रानी बनाऊंगा तुम्हे रानी। किसी की हिम्मत नही होगी तुम्हारी तरफ आंख उठाके देखने की। उस रंजीत सिंह को तुम्हारा पालतू कुत्ता बनाऊंगा तुम्हारा मूत पिलाऊंगा उसे। तुमपे गंदी नजर रखता हैं साला। और उस फूफा को तो नंगा घुमाऊंगा पूरे शहर में। साला तुमको होली के दिन भांग पिलाके तुम्हे अपने दोस्तो के साथ भोगना चाहता था।

मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। ये बाते जो केवल मुझे मालूम थी, मैने आज तक कभी भी इन बातो का जिक्र अपने पति से भी नही किया और अथर्व को कैसे ये बाते पता लगी।

मैं: तुझे कैसे पता लगी ये सब बाते। बता ना क्युकी इन बातो का जिक्र मैने आज तक किसी से नहीं किया हैं।

अथर्व: ये सब मेरी साधना का असर हैं ठकुराइन।

मैं: सच अथर्व, क्या तू वाकई मुझे ठाकराइन बनाएगा, क्या तू मेरी बेइज्जती का बदला लगा? बोल ना।

अथर्व: हां मेरी ठकुराइन मैं वो सब कुछ करूंगा जिससे तुझे खुशी मिले। मैं उन सालो को कही का नही छोडूंगा। तू देखती जा ठकुराइन।

इतना सुनते ही मैं अथर्व के गले लग गई और उसपर चुम्बनो की बौछार कर दी। एक क्षण ऐसे भी आया जब हम दोनो के अधर बिलकुल करीब थे। हम एक दूसरे की सांसों की गर्मी महसूस कर सकते थे। मैं और अथर्व बिना पलके झपकाए एक दूसरे की आंखों में देख रहे थे। हम दोनो के अधर व्याकुल थे बहुपाश में बांधने के लिए पर दोनो मै से कोई पहल नही कर रहा था। ऐसा लग रहता जैसे समय थम सा गया हूं। होठ सूखने लगे दोनो के और मेरे जिस्म में एक सनसनी सी दौड़ने लगी। मैने ही असमंजस की स्थिति में पहल करी और बेड से खड़ी हो गई पर तभी मुझे अथर्व ने पकड़ा और रुई की बोरी के समान अपनी गोद में उठा लिया। मैं मोटी तो नही पर फूल कुमारी भी नही हू अच्छा खासा वजन हैं पर अथर्व के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। उसके हाथो ने मेरी गांड़ को जकड़ रखा था और उसकी गर्म सांसे मेरी नाभि पे महसूस हो रही थी। इतने भर से ही मेरी चूत ने मेरा साथ छोड़ दिया, निगोडी रस टपकाने लगी। अथर्व ने फिर मुझे नीचे उतारा और मेरे शरीर का हर हिस्सा उसकी छाती से रगड़ खा रहा था। जब मैं पूरा नीचे आ गई तब पहली बार उसके लोड़े की दस्तक मेरी चूत पर हुई। उफ्फ आह ऐसा एहसास मुझे जिंदगी में कभी नहीं हुआ। मजे से मेरी आंखे बंद हो गई और शर्म की लालिमा मेरे मुखारबिंद पर छा गई। शर्म से मेरा चेहरा झुक सा गया और फिर अथर्व ने मेरी ठोड़ी उठाई और मैने अपने नयन खोले और अथर्व को देखने लगी। अथर्व ने मेरे चेहरे को अपने दोनो हाथो में लिया और मेरे मस्तक पे एक चुम्बन अंकित किया। मैं शर्मा के उसके चौड़े सीने से लिपट गई। अथर्व ने मुझे बाहों में कस लिया। हम दोनो को एक दूसरे के जिस्म का स्पर्श एक सुखद अनुभूति दे रहा था।

अथर्व: चिंता मत कर ठकुराइन सब होगा जैसा हम दोनो चाहेंगे वैसा ही होगा बस अभी थोड़ा समय हैं। हमे धीरज धरना होगा। मुझें अभी और साधनाएं करनी होगी और ध्यान से क्रिया करनी होगी जिस से मैं और शक्तिशाली बन जाऊ।

मैं: समझ गई पर अपना ध्यान रखना क्युकी तू ही मेरा सब कुछ हैं।

अथर्व: चिंता मत कर। कुछ नही होगा मुझे। सब का काल हू मैं।

अथर्व की आंखे एक दम सुरख लाल पड़ गई। मुझे थोड़ा सा डर लगने लगा, वो मेरी स्थिति समझ गया और मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया। न जाने कितनी देर हम दोनो यूं ही खड़े रहे। बड़ा सुकून मिल रहा था मुझे उसकी बाहों में। एक सन्नाटा सा छा गया था और इस सन्नाटे में मानो वक्त भी थम गया हो। अथर्व की वाणी ने इस सन्नाटे को चीरा।

अथर्व: मेरा एक काम करवा दे ठकुराइन।

मैं: बोल ना क्या चाहिए तुझे

अथर्व: मुझे छत पर एक कमरा जिसका रास्ता पीछे से होके जाता हो।

मैं: पीछे से क्यू?

अथर्व: ताकि वो तेरा चुतिया पति कभी भूले से भी ऊपर न आए। समझी ठकुराइन।

मैं: ( मेरे चेहरे पे हसी आ गई) पागल हैं बाबा हैं तेरे।

अथर्व: वो मेरे बाबा नही बस समाज के लिए तेरे पति हैं। और जोर जोर से हंसने लगा।

उसको देख वो मुझे भी हसी आ गई और कोई ग्लानि नही हुई मुझे क्युकी नफरत का बीज अथर्व बो चुका था। मुझे इस बात का भी आभास था जो काम मेरे निठले पति को करना चाहिए था वो काम अथर्व कर रहा था। मेरी हसरतों और इच्छाओं की पूर्ति कर रहा था।

अथर्व: एक काम और था वो भी कर दे।

मैं: बोल ना और क्या चाहिए।

अथर्व: मुझे २ लाख रुपए की भी जरूरत है।

मैं: इतने पैसे क्यू चाहिए। क्या करेगा तू।

अथर्व: अभी तो कुछ नही बता सकता बस ये समझ ले की हमारी इच्छा पूर्ति के लिए ये जरूरी हैं।

मैने अपनी कमर से तिजोरी की चाबी का गुच्छा निकाला और अथर्व के हाथो में दे दिया।

मैं: जितने चाहिए उतने लेले, सब तेरा हैं।

चाबी का गुच्छा मेरे हाथ से लेकर उसने फिर से मुझे अपने शरीर से कस लिया और एक बार फिर मुझे उसके लन्ड का एहसास हुआ। मेरे तन बदन मैं चिंगारी सी लग गई। और मजे से मेरी आंखे अथर्व की आंखे से टकरा गई। उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी।

अथर्व: जो मेरा हैं वो तो मैं ले ही लूंगा, सही समय आने पर। सब कुछ मैं ले ही लूंगा।

और उसने एक बार जोर से अपना लन्ड मेरी चूत पर रगड़ दिया। ना चाहते हुए भी मेरे मुंह से एक सिसकारी निकल गई। मैं उसके लन्ड की चुभन के मजे ले रहीं थी।

अथर्व: सुन ठकुराइन जो कमरा ऊपर बनवाना हैं उसका दरवाजा दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए और केवल एक रोशनदान जो उस दरवाजे के ऊपर होंगे उसके अलावा कोई रोशनदान नही। कोई बिजली नही बस सिर्फ एक नलका हो उस कमरे में वो भी पूर्व दिशा की ओर। समझ गई।

मैं: हां बाबा समझ गई। और कुछ चाहिए मेरे ठाकुर को।

ये पहली बार था जब मेने अथर्व को मेरे ठाकुर कहके संबोधित किया और ये ही सोच के मेरे चेहरा शर्म से लाल पड़ गया।

अथर्व: मुझे अभी बहुत सी साधना करनी पड़ेगी। कुछ तुझे पसंद भी न आए पर चिंता मत कर सब कुछ तेरे लिए ही कर रहा हूं। और सुन जो ऊपर की एक चाबी तेरे पास रहेगी और एक मेरे पास। कोई भी पूछे तो कह देना की मेरी कसरत के लिए बनवा रही हूं।

मैं: मुझे क्या जरूरत हैं ऊपर की चाबी की?

अथर्व: सुबह की सफाई सिर्फ तू करेगी ठकुराइन।

मैं: ठीक हैं ठाकुर साहब।

अथर्व के चेहरे पे मुस्कान फेल गई और उसने एक चिकोटी मेरी कमर पे काट ली। मैने उससे जोर से धक्का दिया और अपनी कमर मसलने लगी

मैं: आउच। कुत्ता कही का।

अथर्व: (हस्ते हुए) वो तो मैं हूं और तू मेरी कुतिया। चल अब पैसे निकालने चले मेरी कुतिया।

अथर्व का यूं मुझे कुत्तियां बोलना मुझे बिल्कुल भी बुरा नही लगा बल्कि वो शब्द मुझे रोमांचित करने लगा। जैसे एक कुत्ता कुत्तियां पे चढ़ता हैं वैसे ही अथर्व भी मुझ पर चढ़ेगा। हाय कब आएगा वो दिन। मैं बिना किसी सुद बुध के उसके पीछे चलने लगी। उसके कमरे से निकल कर मैं अपने कमरे में पहुंची तब तक अथर्व तिजोरी खोल के पैसे निकाल चुका था। उसने तिजोरी बंद करी और तिजोरी वापस बंद करी और चाबी का गुच्छा मुझे वापस करा और एक झंटेदार चपत मेरी गांड़ पे मारी। चिहुक सी निकल गई मेरी। वो जाते जाते पीछे मुड़ कर मुस्कुराने लगा।

मैं: कुत्ता कही का, साला काला नाग।
 
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१. कुछ इस तरह दिखती हू मैं, यानी ठकुराइन आपकी सविता।


२. मेरी बड़ी बेटी अंजली


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३. मेरी दूसरी बेटी अंजनी


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४. मेरी तीसरी बेटी अवनी


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५. मेरी चौथी बेटी अदिति



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