अध्याय ४
अथर्व की शैतानी प्रवृत्ति ने अपना पहला वार कर दिया था। उसने मेरे ही मन में मेरे पति के खिलाफ बीज बो दिया था। मैं लालच मैं आंधी नही समझ पाई। मेरे अंदर ठकुराइन बनने की लालसा फिर से जाग उठी।
मैं: सच अथर्व तू बनाएगा मुझे ठकुराइन। क्या तू मेरा ये सपना सच करेगा। क्या तू फिर से मुझे उस हवेली की दहलीज पे उसी मान सम्मान के साथ ले जाएगा। बोल अथर्व बोल।
अथर्व: सच में मैं तुम्हारा सपना सच करूंगा। रानी बनाऊंगा तुम्हे रानी। किसी की हिम्मत नही होगी तुम्हारी तरफ आंख उठाके देखने की। उस रंजीत सिंह को तुम्हारा पालतू कुत्ता बनाऊंगा तुम्हारा मूत पिलाऊंगा उसे। तुमपे गंदी नजर रखता हैं साला। और उस फूफा को तो नंगा घुमाऊंगा पूरे शहर में। साला तुमको होली के दिन भांग पिलाके तुम्हे अपने दोस्तो के साथ भोगना चाहता था।
मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। ये बाते जो केवल मुझे मालूम थी, मैने आज तक कभी भी इन बातो का जिक्र अपने पति से भी नही किया और अथर्व को कैसे ये बाते पता लगी।
मैं: तुझे कैसे पता लगी ये सब बाते। बता ना क्युकी इन बातो का जिक्र मैने आज तक किसी से नहीं किया हैं।
अथर्व: ये सब मेरी साधना का असर हैं ठकुराइन।
मैं: सच अथर्व, क्या तू वाकई मुझे ठाकराइन बनाएगा, क्या तू मेरी बेइज्जती का बदला लगा? बोल ना।
अथर्व: हां मेरी ठकुराइन मैं वो सब कुछ करूंगा जिससे तुझे खुशी मिले। मैं उन सालो को कही का नही छोडूंगा। तू देखती जा ठकुराइन।
इतना सुनते ही मैं अथर्व के गले लग गई और उसपर चुम्बनो की बौछार कर दी। एक क्षण ऐसे भी आया जब हम दोनो के अधर बिलकुल करीब थे। हम एक दूसरे की सांसों की गर्मी महसूस कर सकते थे। मैं और अथर्व बिना पलके झपकाए एक दूसरे की आंखों में देख रहे थे। हम दोनो के अधर व्याकुल थे बहुपाश में बांधने के लिए पर दोनो मै से कोई पहल नही कर रहा था। ऐसा लग रहता जैसे समय थम सा गया हूं। होठ सूखने लगे दोनो के और मेरे जिस्म में एक सनसनी सी दौड़ने लगी। मैने ही असमंजस की स्थिति में पहल करी और बेड से खड़ी हो गई पर तभी मुझे अथर्व ने पकड़ा और रुई की बोरी के समान अपनी गोद में उठा लिया। मैं मोटी तो नही पर फूल कुमारी भी नही हू अच्छा खासा वजन हैं पर अथर्व के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। उसके हाथो ने मेरी गांड़ को जकड़ रखा था और उसकी गर्म सांसे मेरी नाभि पे महसूस हो रही थी। इतने भर से ही मेरी चूत ने मेरा साथ छोड़ दिया, निगोडी रस टपकाने लगी। अथर्व ने फिर मुझे नीचे उतारा और मेरे शरीर का हर हिस्सा उसकी छाती से रगड़ खा रहा था। जब मैं पूरा नीचे आ गई तब पहली बार उसके लोड़े की दस्तक मेरी चूत पर हुई। उफ्फ आह ऐसा एहसास मुझे जिंदगी में कभी नहीं हुआ। मजे से मेरी आंखे बंद हो गई और शर्म की लालिमा मेरे मुखारबिंद पर छा गई। शर्म से मेरा चेहरा झुक सा गया और फिर अथर्व ने मेरी ठोड़ी उठाई और मैने अपने नयन खोले और अथर्व को देखने लगी। अथर्व ने मेरे चेहरे को अपने दोनो हाथो में लिया और मेरे मस्तक पे एक चुम्बन अंकित किया। मैं शर्मा के उसके चौड़े सीने से लिपट गई। अथर्व ने मुझे बाहों में कस लिया। हम दोनो को एक दूसरे के जिस्म का स्पर्श एक सुखद अनुभूति दे रहा था।
अथर्व: चिंता मत कर ठकुराइन सब होगा जैसा हम दोनो चाहेंगे वैसा ही होगा बस अभी थोड़ा समय हैं। हमे धीरज धरना होगा। मुझें अभी और साधनाएं करनी होगी और ध्यान से क्रिया करनी होगी जिस से मैं और शक्तिशाली बन जाऊ।
मैं: समझ गई पर अपना ध्यान रखना क्युकी तू ही मेरा सब कुछ हैं।
अथर्व: चिंता मत कर। कुछ नही होगा मुझे। सब का काल हू मैं।
अथर्व की आंखे एक दम सुरख लाल पड़ गई। मुझे थोड़ा सा डर लगने लगा, वो मेरी स्थिति समझ गया और मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया। न जाने कितनी देर हम दोनो यूं ही खड़े रहे। बड़ा सुकून मिल रहा था मुझे उसकी बाहों में। एक सन्नाटा सा छा गया था और इस सन्नाटे में मानो वक्त भी थम गया हो। अथर्व की वाणी ने इस सन्नाटे को चीरा।
अथर्व: मेरा एक काम करवा दे ठकुराइन।
मैं: बोल ना क्या चाहिए तुझे
अथर्व: मुझे छत पर एक कमरा जिसका रास्ता पीछे से होके जाता हो।
मैं: पीछे से क्यू?
अथर्व: ताकि वो तेरा चुतिया पति कभी भूले से भी ऊपर न आए। समझी ठकुराइन।
मैं: ( मेरे चेहरे पे हसी आ गई) पागल हैं बाबा हैं तेरे।
अथर्व: वो मेरे बाबा नही बस समाज के लिए तेरे पति हैं। और जोर जोर से हंसने लगा।
उसको देख वो मुझे भी हसी आ गई और कोई ग्लानि नही हुई मुझे क्युकी नफरत का बीज अथर्व बो चुका था। मुझे इस बात का भी आभास था जो काम मेरे निठले पति को करना चाहिए था वो काम अथर्व कर रहा था। मेरी हसरतों और इच्छाओं की पूर्ति कर रहा था।
अथर्व: एक काम और था वो भी कर दे।
मैं: बोल ना और क्या चाहिए।
अथर्व: मुझे २ लाख रुपए की भी जरूरत है।
मैं: इतने पैसे क्यू चाहिए। क्या करेगा तू।
अथर्व: अभी तो कुछ नही बता सकता बस ये समझ ले की हमारी इच्छा पूर्ति के लिए ये जरूरी हैं।
मैने अपनी कमर से तिजोरी की चाबी का गुच्छा निकाला और अथर्व के हाथो में दे दिया।
मैं: जितने चाहिए उतने लेले, सब तेरा हैं।
चाबी का गुच्छा मेरे हाथ से लेकर उसने फिर से मुझे अपने शरीर से कस लिया और एक बार फिर मुझे उसके लन्ड का एहसास हुआ। मेरे तन बदन मैं चिंगारी सी लग गई। और मजे से मेरी आंखे अथर्व की आंखे से टकरा गई। उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी।
अथर्व: जो मेरा हैं वो तो मैं ले ही लूंगा, सही समय आने पर। सब कुछ मैं ले ही लूंगा।
और उसने एक बार जोर से अपना लन्ड मेरी चूत पर रगड़ दिया। ना चाहते हुए भी मेरे मुंह से एक सिसकारी निकल गई। मैं उसके लन्ड की चुभन के मजे ले रहीं थी।
अथर्व: सुन ठकुराइन जो कमरा ऊपर बनवाना हैं उसका दरवाजा दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए और केवल एक रोशनदान जो उस दरवाजे के ऊपर होंगे उसके अलावा कोई रोशनदान नही। कोई बिजली नही बस सिर्फ एक नलका हो उस कमरे में वो भी पूर्व दिशा की ओर। समझ गई।
मैं: हां बाबा समझ गई। और कुछ चाहिए मेरे ठाकुर को।
ये पहली बार था जब मेने अथर्व को मेरे ठाकुर कहके संबोधित किया और ये ही सोच के मेरे चेहरा शर्म से लाल पड़ गया।
अथर्व: मुझे अभी बहुत सी साधना करनी पड़ेगी। कुछ तुझे पसंद भी न आए पर चिंता मत कर सब कुछ तेरे लिए ही कर रहा हूं। और सुन जो ऊपर की एक चाबी तेरे पास रहेगी और एक मेरे पास। कोई भी पूछे तो कह देना की मेरी कसरत के लिए बनवा रही हूं।
मैं: मुझे क्या जरूरत हैं ऊपर की चाबी की?
अथर्व: सुबह की सफाई सिर्फ तू करेगी ठकुराइन।
मैं: ठीक हैं ठाकुर साहब।
अथर्व के चेहरे पे मुस्कान फेल गई और उसने एक चिकोटी मेरी कमर पे काट ली। मैने उससे जोर से धक्का दिया और अपनी कमर मसलने लगी
मैं: आउच। कुत्ता कही का।
अथर्व: (हस्ते हुए) वो तो मैं हूं और तू मेरी कुतिया। चल अब पैसे निकालने चले मेरी कुतिया।
अथर्व का यूं मुझे कुत्तियां बोलना मुझे बिल्कुल भी बुरा नही लगा बल्कि वो शब्द मुझे रोमांचित करने लगा। जैसे एक कुत्ता कुत्तियां पे चढ़ता हैं वैसे ही अथर्व भी मुझ पर चढ़ेगा। हाय कब आएगा वो दिन। मैं बिना किसी सुद बुध के उसके पीछे चलने लगी। उसके कमरे से निकल कर मैं अपने कमरे में पहुंची तब तक अथर्व तिजोरी खोल के पैसे निकाल चुका था। उसने तिजोरी बंद करी और तिजोरी वापस बंद करी और चाबी का गुच्छा मुझे वापस करा और एक झंटेदार चपत मेरी गांड़ पे मारी। चिहुक सी निकल गई मेरी। वो जाते जाते पीछे मुड़ कर मुस्कुराने लगा।
मैं: कुत्ता कही का, साला काला नाग।