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Incest काला नाग

sunoanuj

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Bahut hi behtarin kahani hai… 👏🏻👏🏻👏🏻
 

Dharmendra Kumar Patel

Nude av or dp not allowed. Edited
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बहुत ही शानदार कहानी
 
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काला नाग apna phan kab uthayega ya mar gya yeh to batado...waiting
 
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Reactions: Napster and parkas

mitzerotics

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अध्याय ७



जब रात की चांदनी आकाश के पटल पर अपनी चांदनी बिखेरती, तब मेरा मन व्याकुल हो जाता अपने अंगवस्त्र साधना वाले कमरे मे रखने को और जब सुबह की लालिमा आकाश में फैल जाती तो दिल इतना विचलित हो जाता अपने अंगवस्त्र साधना वाले कमरे से लाने को। मैं अथर्व के वीर्य की खुशबू की इतनी आदी हो गई थी की उसे सुंघे बिना मेरे दिन की शुरुवात नही होती थी। जब तक उसके वीर्य से भरे हुए मेरे अंगवस्त्र मेरे तन को नही छूते थे मुझे सब बेमानी सा लगता था। उसके वीर्य की तपिश मुझे उसके होने का एहसास दिलाती थी। मुझे कुछ एहसास हुआ कि मेरा साइज बदल रहा हैं। मेरे चूचे जो की पर्वत को चूनौती दे रहे थे वो अब और बड़ने लगे । अथर्व की लाई हुई ब्रा थोड़ी टाइट आने लगी।वो और कढ़ोर होने लगे जैसे कभी उनका मर्दन न किया गया हूं। निप्पल जरा सी सुरसुराहट पर ही तन जाते। मेरी चूत एकदम संकरी हो गई थी जहा पहले मैं चरमसुख के लिए दो उंगली आराम से डाल लेती थी पर अब तो एक उंगली के जाने से चिहुंक जाती हूं। मुझे ऐसा आभास होने लगा की जैसे मेरा कोमौर्य वापस आ गया हूं। मैं फिर से कुंवारी कन्या हो गई हूं। मेरी बेटियां मुझे मजाक मजाक में दीदी बोलने लगी l

ऐसे ही एक दिन बैठे हुए हम पांचों हसी मजाक कर रहे थे तभी अंजली कुछ सीरियस होके बोली

अंजली: मां मैं बुआ के यहां जाना चाहती हूं। ( नीलिमा मेरी ननद, जो की शादीशुदा हैं, सुशांत की छोटी बहन और निहायत ही खूबसूरत। शादी के बाद वो बड़े शहर में ही रहती थी, उसकी दो बेटियां भी हैं जिनके बारे में समय आने पर बताऊंगी)

मैं: तू वहा जीजी के यहां जाके क्या करेगी।

अंजली: मां मैं आगे की पढ़ाई करूंगी । पी एच डी करूंगी।

मैं: तू इतना तो पड़ चुकी हैं वो क्या कहते हैं एम ए कर लिया हैं। कुछ लड़के तो इसलिए भी चले जाते हैं को लड़की इतनी पड़ी लिखी हैं। ( हमारे यहां लड़कियां गांव में इतनी पढ़ी लिखी नहीं होती और लड़के ठाकुर या जमींदार घराने से हो तो वैसे ही आईयाश और कम पढ़े लिखे)

अंजली: मां शादी तो हो नहीं रही, और कुछ तो सोचू अपने बारे में। पी एच डी कर लूंगी तो एक अच्छे कॉलेज में प्रोफेसर की नौकरी मिल जायेगी।

मैं: पागल हो गई हो क्या। हम ठाकुरो के यहां लड़कियां नौकरी नहीं करती। और चिंता न कर लाडो अथर्व ने बोला हैं की कुछ एक या दो महीने बाद तुम चारो की शादी हो जायेगी।

अंजली: कौन से ठाकुरों की बात कर रही हो। जिस हवेली में हम मेहमानों की तरह जाते हो, जहा तुम बहुरानी और चाची ठकुराइन हैं। हम सिर्फ नाम के ठाकुर हैं। और रहीं बात अथर्व की तो उसकी मुझसे बात मत करो।

अथर्व का नाम लेते हुई अंजली की आंखों में क्रोध और करुणा दोनो थे, जो की एक औरत ही पहचान सकती थी।


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मैं: क्या बात हैं अंजली, कुछ कहा अथर्व ने।

अंजली: नही मां ऐसी कोई बात नही है।

मैं: अंजली मेरी लाडो, तेरी मां होने से पहले मैं एक औरत हूं और तेरी आंखों में उठ रहे बवंडर को अच्छी तरह समझ सकती हूं। अब बता बात क्या हैं। कुछ कहा या फिर कुछ किया अथर्व ने।

अंजली : मां वो, अब तुम्हे कैसे बताऊं।

मैं: अपनी सहेली समझ के बोल। जो कुछ तेरे दिल में हैं बोल।

अंजली: मां वो अथर्व कुछ अजीब निघाओं से घूरता है। और हर समय उसकी नजर या तो छाती पे या फिर पीछे होती है।

मैं: (गुस्से से) क्या बकवास कर रही हो अंजली भाई है वो तुम्हारा। कुछ गलतफहमी हुई होगी तुमको।

मेरा इतना बोलना था की दूसरे नंबर वाली अंजनी बोली

अंजनी: मां अंजली बिल्कुल सही कह रही हैं, ये सब कुछ हमे भी लगता है, हमने कई बार सोचा तुमसे बात करे पर फिर लगा की तुम हमे ही डांट दोगी, इसलिए तुमसे कुछ नही कहा और वैसे भी वो तो तुम्हारा लाडला हैं।

मुझे बहुत ही गहरा सदमा लगा, ऐसा लगा जैसे मेरा प्यार मुझ से छीन गया हूं। मेरी आंखों में आसूं भर आए। तभी अंजली ने एक और परहार किया

अंजली: कौन से भाई की बात कर रही हो, तीन साल का था वो जब हम चारो में से किसी ने उसे राखी बांधी हू। कब उसने हमे बहन माना। आज तक गिने चुने शब्द ही बोले होंगे उसने हमसे। वो तो सिर्फ तुम्हारा बेटा है, हमारा कुछ नही।

मैं अपने दुख को बटोर रही थी और मन में अंजली की बात का जवाब दे रही थी " तुझे नहीं पता अंजली, वो मेरा बेटा नहीं कुछ दिन में वो तुम्हारा नाजायज बाप बन जायेगा"। पर आज मैं बहुत आहत थी और सोच लिया था की में आज अथर्व से बात करके रहूंगी। आज पहली बार मैं उससे सवाल करूंगी। मेरी बेटियां अपने अपने कमरों में चली गई और मेरे मन में चल रहे बवंडर को अब मुझे अकेले ही झूझना पड़ेगा। बहुत समय तक मैं अथर्व का इंतजार करने लगी पर वो नही आया। मुझे फिर याद आया की इस उधेड़बुन में मैने अपने अंगवस्त्र तो अभी तक रखे नही हैं। मैं चल दी साधना वाले कक्ष की ओर और जब अपने अंगवस्त्र रखके वापस नीचे जा रही थी तभी सीडी पर अथर्व मुझे टकरा गया। उसने तुरंत ही मुझे बाहों में भरने की कोशिश करी जिसे मैंने झटक दिया।


अथर्व मुझे गहरी निघाओ से देखने लगा।

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अथर्व: क्या बात हैं ठकुराइन। मन व्याकुल है क्या। कुछ सवाल उठ रहे हैं क्या मन में। बता मुझे।

मैं अथर्व का हाथ पकड़ के वापस उसे साधना वाले कक्ष में ले गई।

मैं: ( मेरे अंदर झिझक थी और एक चेतावनी तांत्रिक वाली रोकने और टोकने वाली) अथर्व वो।

अयर्व: ये और वो मत कर ठकुराइन। अब रोकने और टोकने से बहुत ऊपर उठ चुका हूं मैं। तू मुझसे कुछ भी पूछ सकती है।

मैं: (थोड़ी निश्चिंत हो गई) वो मैं ये कह रही थी, वो तेरी बहने ये कह रही थी तू उन्हे गलत तरीके से घूरता है। मतलब समझ रहा है ना तू।

अथर्व: बिलकुल समझ गया! और हा देखता हू। तो क्या।

मैं: (गुस्से से) पर वो तेरी बहने हैं। समझा तू।

और मैंने अपना चेहरा मोड लिया पर तभी अथर्व ने मेरा चेहरा वापस अपनी तरफ मोड़ा और कुछ ऐसा बोला जिससे मेरा गुस्सा उड़न छू हो गया और मैं निशब्द सी खड़ी अथर्व को देखे जा रही थी। जानते हैं क्या बोला अथर्व ने

अथर्व: तू भी तो मां है।

इस ब्रहास्त्र के आगे तो मुझे नतमस्तक होना ही था। मैं बस स्तब्ध खड़ी अथर्व को घूरे जा रही थी। अथर्व ने अपने दोनो हाथो के बीच मेरा चेहरा लिया और बोला

अथर्व: तेरा कोई दिल नही दुखाना चाहता, पर तू यकीन तो करती हैं मुझ पर।

मैं: खुद से ज्यादा।

अथर्व: प्यार करती हैं मुझसे?

मैं: सबसे ज्यादा।

मेरा बस इतना बोलना था की अथर्व ने वो किया जिसकी मुझे उम्मीद ही नही थी। अथर्व ने अपने अधर मेरे अधर से मिला दिए। वो कुछ लम्हों के स्पर्श से मुझे अथर्व के अंदर की तपिश का एहसास हुआ।


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पर जब तक मैं कुछ कर पाती तब तक उसने अपने अधर वापस खीच लिए और मुझे बहुपाष में कस लिया। मैं उसके आलिंगन मात्र से चुदासी महसूस करने लगी।

अथर्व: (मेरे कान में) अभी सही समय नही आया ठकुराइन। बस कुछ दिन और फिर तुझे और मुझे कोई नही रोक पायेगा।


इतना बोल के वो मुझे अलग हुआ और मैं बाहर की ओर चलने लगी। मैं उसके होठों का एहसास करते हुए नीचे आने लगी। मेरे चेहरे पर एक मुस्कान थी। मेरे तन और मन पर उसने अपने प्यार की मोहर लगा दी थी। उसकी हर बात मेरे जेहन पर एक छाप छोड़ जाती है। मेरे जिस्म के हर एक अंग से बस एक ही आवाज आती हैं "काला नाग"
 
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mitzerotics

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अध्याय ८




उस दिन के बाद से मेरी बेटियां मुझे सौतन सी लगने लगी। जब भी अथर्व उन चारो में से किसी को देखता तो मुझे ईर्षा होती। लेकिन जब भी वो प्यार से या हसी मजाक में मुझे दीदी बोलती तो मुझे बड़ा अच्छा लगता।

अथर्व ने धनीराम(जो हमारे खेतो की रखवाली करता था) को अपने साथ मिला लिया। धनीराम रात को खेतो की रखवाली करता और दिन अथर्व उससे ड्रग्स बिकवाता। अथर्व ने अपने चाचा रंजीत का मॉल लूट लिया था और धीरे धीरे रंजीत का मॉल बेच रहा था। अथर्व का नाम होने लगा ड्रग्स के कारोबार में पर कोई अथर्व नही सब ब्लैक कोबरा ही जानते थे।


आइए अब थोड़ा रंजीत के बारे में भी जान लेते हैं:

१ ठाकुर रंजीत सिंह : मेरे देवर, जो ड्रग्स का कारोबार करते हैं और जबरदस्ती हमारे खेतो में अफीम उगा रहे हैं। बहुत हि चालाक और धूर्त इंसान। अपने मतलब के लिए गधे को भी बाप बना ले। उम्र ५६ वर्ष।


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२ ठकुराइन नलीनीं सिंह: उम्र ४२ साल। एक दम कड़क और जानदार मॉल। इसकी सुंदरता देखते ही बनती थी। जिस्म जैसे तराशा हुआ हीरा। हर एक अंग सांचे में ढाला हुआ। इसकी आंखे इतनी नशीली की पूरा मैंखाना भी काम पद जाए। तीन लड़कियों की मां पर कोई नही कह सकता। २० साल से प्यासी क्युकी अपने भाई की तरह रंजीत भी सब कुछ खो चुका था।


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३. साक्षी सिंग : सबसे बड़ी बेटी। उम्र २४ साल। थोड़ी नकचड़ी पर निहायत ही कामुक। अभी तक लन्ड नही लिया हैं पर रोज रात को बिना उंगली किए नींद नहीं आती।


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४. सीमा सिंह : मंझली बेटी। उम्र २२ साल । ये डॉक्टरी पड़ रही हैं। शहर में ही रहती हैं। इसके दर्जनों ब्वॉयफ्रेंड हैं पर चुदी नही है अभी तक। ये भी सुंदर अपनी मां के जैसे। ये अपने बाप की बहुत लाडली हैं।


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५ समीक्षा सिंह: सबसे छोटी बेटी। उम्र २१ वर्ष। ये भी शहर में ही कॉलेज कर रही हैं। सबके दिलो की रानी है ये। इसकी हिरनी जैसी चल अच्छे अच्छों का कत्ल कर दे। ये अपनी मां के बहुत करीब है। सिर्फ इसको पता है की इसकी मां पिछले २० सालो से कितनी प्यासी हैं।


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६. अशरफ पठान: ये रंजीत का सबसे बड़ा वफादार हैं। पूरे ड्रग्स का कारोबार ये ही संभालता हैं। दुनिया की इससे फटती हैं और इसकी अपनी अम्मी से। परिवार के वारिस के लिए इसकी अम्मी ने इसकी तीन शादियां करा दी पर नतीजा कुछ भी नही। इसकी अम्मी अब इसकी चौथी शादी करवाने वाली हैं। इसकी उम्र मात्र २८ साल है पर इसके जोर के आगे बड़े बड़े पहलवान भी पानी भरते हैं। (इसकी बीवी और अम्मी का जिक्र बाद में करेंगे)


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हवेली के नीचे बने तहखाने में रंजीत सिंह एक सिंहासन नुमा कुर्सी पर बैठा था और उसके सामने पठान खड़ा था।

रंजीत : कौन है ये ब्लैक कोबरा। जो हमारा ही मॉल लूटके हमारे ही कस्टमर्स को बेच रहा हैं और हमको उसके बारे में हमे कुछ भी नही पता। कहा से आता हैं, कब आता हैं, कुछ तो बताओ उसके बारे में।

पठान: ठाकुर साहब कुछ पता नहीं पड़ रहा। एक आदमी मिला भी पर वो उसके सप्लायर को जनता हैं ब्लैक कोबरा को नही। ब्लैक कोबरा को कोई नही जानता मालिक।

रंजीत: परसो मॉल आ रहा हैं, इस बार कोई गलती हुई तो याद रखियो पठान तेरी अम्मी और तेरी बीवियों को कोठे पे बैठा दूंगा। समझ ले अब कोई गलती की गुंजाइश नहीं हैं।

पठान : जी ठाकुर साहब इस बार गलती नही होगी। आप चिंता मत करे।

रंजीत सिंह उस तहखाने से बाहर निकल जाता है और पठान अड्डे पे आदमियों को कुछ समझाने लगता हैं।

वही आज अथर्व को पहली पेमेंट मिली थी ड्रग्स की। वो भी पूरे १० लाख रुपए। वो २०००० रुपए धनीराम को देता हैं और बाकी सब अपने पास रख लेता हैं। फिर अथर्व एक मोबाइल शॉप पर जाता हैं और अपने और अपनी ठकुराइन के लिए २ आईफोन खरीदता हैं।

घर आकर वो मुझे फोन देता हैं, मैं उसको देखकर खुश तो होती हूं पर

मैं : में क्या करू इसका, मुझे कौन सा चलाना आता हैं। मैं कोई ज्यादा पढ़ी लिखी तो हूं नहीं। फिर ये क्यू।

अथर्व: तुझे मैं चलाना सीखा दूंगा मेरी ठकुराइन, और ये इसलिए मैं जब चाहूं अपनी जान से बात कर सकू। और सुन ठकुराइन इसमें ६ लाख रुपए हैं इन तिजोरी में रख दे।

६ लाख सुनते ही मेरा लालच फिर से हावी हो गया। पर फिर हिम्मत करके मैने पूछा

मैं: इतने पैसे कहा से आए।

अथर्व: तू आम खा ठकुराइन गुटली मत गिन।

मैं: ठाकुर की ठकुराइन को सब पता होना चाहिए। समझे ठाकुर साहब।

अथर्व: रंजीत का मॉल लूटा मैने पूरा १० करोड़ का। आधा बाजार में उधार फेंक दिया। आधा टीका के रखा हुआ हैं।

मैं: उधार वाला पैसा वापस न आया तो।

अथर्व : ठकुराइन बेईमानी का काम सबसे ज्यादा ईमानदारी से होता हैं।

और अथर्व ने मुझे बाहों में समेट लिया। मैं उसकी बाहों में खुद को महफूज समझने लगी और पहली बार मैंने खुद अपनी बाहों में उसे कस लिया। ये आलिंगन इतना कस के था की हवा भी आर पार नही हो सकती थी। इस आलिंगन में प्यार की तपिश भी थीं और मिलन न हो पाने का दर्द भी। ये ५ मिनिट का आलिंगन मेरे जीवन के सबसे सुखद अनुभवों में से एक था। मैं चाहती थी वक्त यही थम जाए।


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अगले तीन दिनों में अथर्व और मेरी बेटियों ने मुझे फोन चलाना सीखा दिया। थोड़ा बहुत मैं खुद से सीखी। अथर्व ने मुझे व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम चलाना भी सिखाया। मेरी बेटी अदिति जो सबसे छोटी थी उसने मुझसे पूछा

अदिति: मां अथर्व क्या काम कर रहा हैं, जो उसने तुम्हे इतना महंगा फोन दिला दिया।

मैं: वो शहर में किसी वेद के साथ जड़ी बूटी का काम कर रहा हैं। (मैने सफेद झूठ बोला)

अदिति : मां लगता हैं उसका काम अच्छा चल रहा हैं, अथर्व से बोल के मुझे भी एक फोन दिलवा दे। मेरी सारी सहेलियों पर हैं।

मुझे मन में बहुत ईर्षा सी हुई, क्योंकि अब वो मेरी बेटी नही बल्कि मुझे अपनी सौत नजर आ रही थी। फिर भी मैने भारी मन से कहा

मैं: बोल दूंगी उसे, तुम चारो को भी ला देगा।

जब भी अथर्व घर से बाहर होता तो मुझे उसकी याद सताती और मैं हर आधे घंटे के बाद उसे कोई न कोई मैसेज व्हाट्सएप पर करती रहती। वो एक मिनट भी गवाए बगैर मुझे जवाब देता। हम दोनो को एक पल भी अब दूरी बर्दाश्त नहीं होती। एक ही आग में जल रहे थे मैं और मेरा काला नाग।
 
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