अध्याय ८
उस दिन के बाद से मेरी बेटियां मुझे सौतन सी लगने लगी। जब भी अथर्व उन चारो में से किसी को देखता तो मुझे ईर्षा होती। लेकिन जब भी वो प्यार से या हसी मजाक में मुझे दीदी बोलती तो मुझे बड़ा अच्छा लगता।
अथर्व ने धनीराम(जो हमारे खेतो की रखवाली करता था) को अपने साथ मिला लिया। धनीराम रात को खेतो की रखवाली करता और दिन अथर्व उससे ड्रग्स बिकवाता। अथर्व ने अपने चाचा रंजीत का मॉल लूट लिया था और धीरे धीरे रंजीत का मॉल बेच रहा था। अथर्व का नाम होने लगा ड्रग्स के कारोबार में पर कोई अथर्व नही सब ब्लैक कोबरा ही जानते थे।
आइए अब थोड़ा रंजीत के बारे में भी जान लेते हैं:
१ ठाकुर रंजीत सिंह : मेरे देवर, जो ड्रग्स का कारोबार करते हैं और जबरदस्ती हमारे खेतो में अफीम उगा रहे हैं। बहुत हि चालाक और धूर्त इंसान। अपने मतलब के लिए गधे को भी बाप बना ले। उम्र ५६ वर्ष।
२ ठकुराइन नलीनीं सिंह: उम्र ४२ साल। एक दम कड़क और जानदार मॉल। इसकी सुंदरता देखते ही बनती थी। जिस्म जैसे तराशा हुआ हीरा। हर एक अंग सांचे में ढाला हुआ। इसकी आंखे इतनी नशीली की पूरा मैंखाना भी काम पद जाए। तीन लड़कियों की मां पर कोई नही कह सकता। २० साल से प्यासी क्युकी अपने भाई की तरह रंजीत भी सब कुछ खो चुका था।
३. साक्षी सिंग : सबसे बड़ी बेटी। उम्र २४ साल। थोड़ी नकचड़ी पर निहायत ही कामुक। अभी तक लन्ड नही लिया हैं पर रोज रात को बिना उंगली किए नींद नहीं आती।
४. सीमा सिंह : मंझली बेटी। उम्र २२ साल । ये डॉक्टरी पड़ रही हैं। शहर में ही रहती हैं। इसके दर्जनों ब्वॉयफ्रेंड हैं पर चुदी नही है अभी तक। ये भी सुंदर अपनी मां के जैसे। ये अपने बाप की बहुत लाडली हैं।
५ समीक्षा सिंह: सबसे छोटी बेटी। उम्र २१ वर्ष। ये भी शहर में ही कॉलेज कर रही हैं। सबके दिलो की रानी है ये। इसकी हिरनी जैसी चल अच्छे अच्छों का कत्ल कर दे। ये अपनी मां के बहुत करीब है। सिर्फ इसको पता है की इसकी मां पिछले २० सालो से कितनी प्यासी हैं।
६. अशरफ पठान: ये रंजीत का सबसे बड़ा वफादार हैं। पूरे ड्रग्स का कारोबार ये ही संभालता हैं। दुनिया की इससे फटती हैं और इसकी अपनी अम्मी से। परिवार के वारिस के लिए इसकी अम्मी ने इसकी तीन शादियां करा दी पर नतीजा कुछ भी नही। इसकी अम्मी अब इसकी चौथी शादी करवाने वाली हैं। इसकी उम्र मात्र २८ साल है पर इसके जोर के आगे बड़े बड़े पहलवान भी पानी भरते हैं। (इसकी बीवी और अम्मी का जिक्र बाद में करेंगे)
हवेली के नीचे बने तहखाने में रंजीत सिंह एक सिंहासन नुमा कुर्सी पर बैठा था और उसके सामने पठान खड़ा था।
रंजीत : कौन है ये ब्लैक कोबरा। जो हमारा ही मॉल लूटके हमारे ही कस्टमर्स को बेच रहा हैं और हमको उसके बारे में हमे कुछ भी नही पता। कहा से आता हैं, कब आता हैं, कुछ तो बताओ उसके बारे में।
पठान: ठाकुर साहब कुछ पता नहीं पड़ रहा। एक आदमी मिला भी पर वो उसके सप्लायर को जनता हैं ब्लैक कोबरा को नही। ब्लैक कोबरा को कोई नही जानता मालिक।
रंजीत: परसो मॉल आ रहा हैं, इस बार कोई गलती हुई तो याद रखियो पठान तेरी अम्मी और तेरी बीवियों को कोठे पे बैठा दूंगा। समझ ले अब कोई गलती की गुंजाइश नहीं हैं।
पठान : जी ठाकुर साहब इस बार गलती नही होगी। आप चिंता मत करे।
रंजीत सिंह उस तहखाने से बाहर निकल जाता है और पठान अड्डे पे आदमियों को कुछ समझाने लगता हैं।
वही आज अथर्व को पहली पेमेंट मिली थी ड्रग्स की। वो भी पूरे १० लाख रुपए। वो २०००० रुपए धनीराम को देता हैं और बाकी सब अपने पास रख लेता हैं। फिर अथर्व एक मोबाइल शॉप पर जाता हैं और अपने और अपनी ठकुराइन के लिए २ आईफोन खरीदता हैं।
घर आकर वो मुझे फोन देता हैं, मैं उसको देखकर खुश तो होती हूं पर
मैं : में क्या करू इसका, मुझे कौन सा चलाना आता हैं। मैं कोई ज्यादा पढ़ी लिखी तो हूं नहीं। फिर ये क्यू।
अथर्व: तुझे मैं चलाना सीखा दूंगा मेरी ठकुराइन, और ये इसलिए मैं जब चाहूं अपनी जान से बात कर सकू। और सुन ठकुराइन इसमें ६ लाख रुपए हैं इन तिजोरी में रख दे।
६ लाख सुनते ही मेरा लालच फिर से हावी हो गया। पर फिर हिम्मत करके मैने पूछा
मैं: इतने पैसे कहा से आए।
अथर्व: तू आम खा ठकुराइन गुटली मत गिन।
मैं: ठाकुर की ठकुराइन को सब पता होना चाहिए। समझे ठाकुर साहब।
अथर्व: रंजीत का मॉल लूटा मैने पूरा १० करोड़ का। आधा बाजार में उधार फेंक दिया। आधा टीका के रखा हुआ हैं।
मैं: उधार वाला पैसा वापस न आया तो।
अथर्व : ठकुराइन बेईमानी का काम सबसे ज्यादा ईमानदारी से होता हैं।
और अथर्व ने मुझे बाहों में समेट लिया। मैं उसकी बाहों में खुद को महफूज समझने लगी और पहली बार मैंने खुद अपनी बाहों में उसे कस लिया। ये आलिंगन इतना कस के था की हवा भी आर पार नही हो सकती थी। इस आलिंगन में प्यार की तपिश भी थीं और मिलन न हो पाने का दर्द भी। ये ५ मिनिट का आलिंगन मेरे जीवन के सबसे सुखद अनुभवों में से एक था। मैं चाहती थी वक्त यही थम जाए।
अगले तीन दिनों में अथर्व और मेरी बेटियों ने मुझे फोन चलाना सीखा दिया। थोड़ा बहुत मैं खुद से सीखी। अथर्व ने मुझे व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम चलाना भी सिखाया। मेरी बेटी अदिति जो सबसे छोटी थी उसने मुझसे पूछा
अदिति: मां अथर्व क्या काम कर रहा हैं, जो उसने तुम्हे इतना महंगा फोन दिला दिया।
मैं: वो शहर में किसी वेद के साथ जड़ी बूटी का काम कर रहा हैं। (मैने सफेद झूठ बोला)
अदिति : मां लगता हैं उसका काम अच्छा चल रहा हैं, अथर्व से बोल के मुझे भी एक फोन दिलवा दे। मेरी सारी सहेलियों पर हैं।
मुझे मन में बहुत ईर्षा सी हुई, क्योंकि अब वो मेरी बेटी नही बल्कि मुझे अपनी सौत नजर आ रही थी। फिर भी मैने भारी मन से कहा
मैं: बोल दूंगी उसे, तुम चारो को भी ला देगा।
जब भी अथर्व घर से बाहर होता तो मुझे उसकी याद सताती और मैं हर आधे घंटे के बाद उसे कोई न कोई मैसेज व्हाट्सएप पर करती रहती। वो एक मिनट भी गवाए बगैर मुझे जवाब देता। हम दोनो को एक पल भी अब दूरी बर्दाश्त नहीं होती। एक ही आग में जल रहे थे मैं और मेरा काला नाग।