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Incest काला नाग

Rommy

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Raj

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अध्याय १



नमस्कार दोस्तो। मेरा नाम सविता हैं। मैं ४५ वर्ष की महिला हूं। हम लोग राजस्थान के एक छोटे से गांव में रहते हैं। मेरा जन्म एक बहुत ही साधारण से परिवार में हुआ। १७ बसंत निकलते मेरे रूप यौवन में गजब का निखार आ गया। जिसको देख मेरे बापू ने मेरे लिए लड़का ढूंढना शुरू कर दिया। और १८ बसंत निकलते ही मेरा विवाह दूर गांव के एक जमींदार के बेटे के साथ करवा दिया। सुशांत सिंह मेरे पति का नाम जो बहुत ही सीधे आदमी हैं, ना उनको कोई लोभ ना ही कोई मोह। पर मेरे देवर रंजीत सिंह एक बहुत ही गिरे हुए इंसान हैं। उनकी आंखों से वासना टपकती रहती और वो हर औरत को अपने नीचे लाने का सोचते। अपनी बीवी के होते हुए न जाने उनकी कितनी ही महिलाओं से संबंध थे। पर एक बार जो उनके नीचे आ गई वो हमेशा उनके नीचे आने को त्यार रहती। पर मेरी देवरानी (नंदिनी) हमेशा उनके प्यार को तरसती रहती।

इसी बीच मेरे ससुर ठाकुर शमशेर सिंह को कमर से नीचे हिस्से में फालिश मार गया और वो बिस्तर पर हो गए। उन्होंने ये एलान कर दिया जो भी उनका वंश आगे बढ़ाएगा वो ही सारी प्रॉपर्टी का मालिक होगा। ऐसे करते ही ६ साल निकल गए और मुझे ४ चांद सी बेटियां हुई और नंदिनी को ३ बेटियां पर किसी को बेटा नहीं हुआ। मुझे भी हल्का सा लालच आ गया था की किसी तरह मैं ठकुराइन बन जाऊ पर मेरे पति सुशांत को कोई फरक नही पढ़ रहा था। वो भले और उनकी दुनिया। इसी बीच मेरी भाभी कुछ दिन के लिए आई और मेरी समस्या उनको भी पता लगी तो उन्होंने मुझे इसका समाधान एक तांत्रिक बताया। मैं भी लालच में आ गई और उनके साथ इस तांत्रिक से मिलने गई।


तांत्रिक ने मेरी समस्या सुनी और मुझसे बोला: तेरी समस्या का निधान मैं कर दूंगा लेकिन तू मुझे क्या देगी।

मैं: जो भी मांगो बाबा रुपया पैसा हीरे मोती मैं सब दूंगी।

तांत्रिक: ये सब का मुझे कोई मोह नहीं हैं बस एक वचन दे तू कभी इस बालक को कुछ भी करने से नहीं रोकेगी क्युकी ये बालक जो तेरे गर्भ से इस धरती पर आएगा वो शैतान की संतान होगी और तेरे रोकने पर उसका विकास पूर्ण रूप से रूक जाएगा और तेरे परिवार का सर्वनाश होगा। बोल मंजूर हैं।

मैं: मुझे मंजूर हैं बाबा।

तांत्रिक ने मेरी उंगली को काट कर खून निकाला और हवन कुंड की अग्नि में समर्पित कर दिया और बोला अब तू इस वचन से बाध्य हैं और चाह कर भी पीछे नहीं हट सकती। और अब इस का परिणाम भी तुझे बता दू। तेरे गर्भ धारण करते ही तेरा पति हमेशा के लिए नुपांसक हो जायेगा। तू इस बालक की माता भी होगी और बीवी भी। तू आगे चल कर इस बालक से सात पुत्रों को जन्म देगी। तेरे परिवार में और भी बहुत कुछ होगा जो अभी मैं तुझको नही बता सकता क्योंकि मेरे स्वामी शैतान अभी मना कर रहे हैं। आज से तू भी शैतान की उपासक हैं और हर अमावस्या को व्रत रखेंगी और रात को मांस और मदिरा के सेवन से इस व्रत को खोलेगी। फिर उस तांत्रिक ने मुझे एक शीशी दी और कहा कि इसे अपने पति को आज रात मदिरा में मिलाके पीला देना और संभोग आज रात जरूर करना और आज के बाद कभी भी मेरे पास मत आना।

मैं लालच में आंधी हो गई थी और इस का परिणाम न समझ सकी। शुरू मैं तो मुझे अपने आप से घिन आती थी पर अब मैं सोचती हूं की मुझे इस से अच्छा वरदान नही मिल सकता। खैर छोड़ो कहानी पर वापस चलते हैं। जैसा तांत्रिक ने कहा मैंने वैसे ही किया। पूरे एक महीने बाद मैने गर्भ धारण किया और जैसा तांत्रिक ने बोला था वैसे ही हुआ। गर्भ धारण करते ही मेरे पति का लिंग शिथिल हो गया पर और भी कुछ हुआ।

पति के साथ साथ मेरे देवर और नंदोई दोनो नुपानसक हो गए। ये बात मुझे मेरी देवरानी और ननद ने बताई क्युकी औरतों मैं अक्सर ऐसे बाते होती हैं। मैं बहुत अचंभे में थी कई बार मन किया की में तांत्रिक के पास जाऊ पर नहीं गई क्युकी उसने मुझे मना किया था।

पर मेरी ये कुरबानी भी बेकार गई। सातवे महीने में ही देवर ने नंदोई के साथ मिलके सारी प्रॉपर्टी अपने नाम करा ली। पर ससुर जी ने हमारे नाम एक फॉर्महाउस और १०० बीघा खेत छोड़ दिए। मेरे पति संतुष्ट थे। उन्हे कोई फरक नही पड़ा। मेरी डिलीवरी से पहले ही ससुर जी स्वर्ग सिधार गए। सासु मां तो पहले ही जा चुकी थी।


९ महीने मैं मैने एक लड़के को जन्म दिया जो की भूजुंग काला था। लड़का बड़ा होने लगा और स्कूल जाने लगा सब जमींदार का लड़का हैं इसलिए कोई उसको मुंह पे कुछ नही बोलता था पर सब पीठ पीछे उसे बोलते थे " काला नाग"।
UPDATE SHAANDAAR AUR LAJAWAAB HAI.
KAHANI KI BHUMIKA BHI ACHCHHI HAI.
BAS ITNA HI REQUEST HAI KI KAHANI KO PURA JAROOR KARNA.NAHI TOH ADHURI PAHLE SE BAHUT HAIN YAHA
 

Raj

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अध्याय २


अब मैं कुछ मुख्य किरदारों का आपसे परिचय करवा दू:

१. मैं यानी सविता, आपकी लेखिका और सबसे मुख्य पात्र इस कहानी का। अब खुद की तारीफ मैं क्या करू। एक दम सांचे में ढाला हुआ जिस्म हैं मेरा। सबसे दिलक्कश हैं मेरे वक्ष या मेरी चूचियां जो की एक दम सीना तान खड़ी हैं। मेरे नितंब या मेरी गांड़ एक दम भरी हुई और गोल हैं। केले के तने समान चिकनी और सुडौल झांगे जो मेरे खजाने यानी की मेरी चूंत को और हसीन बनाती हैं। मेरे काले नाग से पूछो तो वो कहेगा की में उसकी अप्सरा हूं जिससे वो हर समय अपने लन्ड पर बिठाए रखना चाहता हैं।

२. सुशांत सिंह मेरे पति। इनका कुछ ज्यादा रोल नहीं हैं बस ये एक नेक और अच्छे इंसान हैं। हर चीज से बहुत जल्दी संतुष्ट हो जाते हैं। ज्यादा मन मुटाव किसी से रखते नही।

३. अंजली सिंह मेरी बड़ी बेटी उम्र २६ वर्ष

४. अंजनी सिंह मेरी दूसरी बेटी उम्र २५ वर्ष

५. अवनी सिंह मेरी तीसरी बेटी उम्र २३ वर्ष

६. अदिति सिंह मेरी चौथी बेटी उम्र २२ वर्ष

इनमे से किसी का भी फिगर या खूबसूरती का विवरण मैने नही किया हैं क्युकी मेरी बेटियां एक से बढ़कर एक। सब इतनी सुंदर हैं की आस पास के गांव तक इनके रूप यौवन के चर्चे हैं। घर में रहकर अपनी प्राइवेट से पढ़ाई पूरी कर रही हैं। अभी तक किसी की भी शादी नही हुई क्यू नही हुई ये नही पता। पर आगे पता पड़ जायेगा।

७ अंतिम और आखिरी किरदार हैं हमारा काला नाग यानी की मेरा बेटा, पति या फिर कही खुद शाक्षत शैतान अथर्व। जानते हैं इस को काला नाग क्यू बुलाते हैं। काला तो ये हैं किसी नीग्रो की तरह इस लिए काला और नाग आता हैं इसके बिल में से जो बहुत ही भयानक, खतरनाक और ताकतवर हैं। जी हैं में इसके लोड़े की ही बात कर रही हूं। १२ इंच लंबा और ४ इंच मोटा हैं इसका लोड़ा। एक बार घुस जाए तो छटी का दूध याद दिला देता हैं। इसकी बात ज्यादा नहीं करते क्युकी जितना मैं इसके लन्ड के बारे में बात करूंगी उतनी ही मेरी चूत चुदासी हो जाऊंगी और मैं ज्यादा कुछ अभी कर भी नहीं सकती क्युकी मेरा नौवा महीना चल रहा हैं। अथर्व अभी कुछ २१ साल का हैं। उसकी हाइट पूरे ६ फीट हैं और शरीर एक दम कसा हुआ और ठोस। एक एक घंटे तक मुझे गोद में उठाकर पेलता रहता हैं।

बाकी के किरदार जब आएंगे तब उनका परिचय भी करवा दूंगी फिलहाल इस भाग में कहानी इन्ही किरदारों के आस पास घूमेगी। चलिए चलते हैं आगे की कहानी की और।

मेरे ससुर जी के स्वर्गवास होते ही रंजीत यानी मेरा देवर ने हमे हवेली से निकलकर फॉर्महाउस में रहने के लिए बोल दिया। मेरे अहिंसा वादी पति देव ने बिना किसी बहस के वहा से पलायन करने का निर्णय ले लिया और अब हम अपने नए घर आ गए। घर तो बुरा नही था छोटा भी नही था पर कहा वो हवेली और कहा ये फॉर्महाउस। मेरे मन में कसक बहुत थी और कही न कही आक्रोश भी।

तय समय पर मैंने अथर्व को जन्म दिया और दाई ने हो मुझे बताया कि इतना बड़ा हतियार उसने आजतक किसी भी बालक का नही देखा हैं। नवजात शिशु का लिंग किसी ने २ इंच का देखा है क्या। पर वही से उसका नाम काला नाग पढ़ गया। मेरे पति तो नुपांसक हो गए थे पर अथर्व के जन्म के बाद मुझे रोज चरमसुख की प्राप्ति होने लगी। जब भी स्तनपान करता न जाने क्यों मैं झड़ जाती। लेकिन अथर्व के जन्म के बाद मेरे रूप यौवन में और निखार आने लगा। मुझे ऐसा प्रतीत होता की जैसे मैं फिर जवान हो रही हूं। मेरे वक्ष जो थोड़े लटक गए थे एक दम सुडौल और तन गए। मेरे अंदर स्फूर्ति आ गई और मैं हद से ज्यादा चुदासी रहने लगी। हर रात को मुझे एक सपना आता की मैं एक बिस्तर पर निर्वस्त्र लेटी हूं और चूदाई की आग में जल रही हूं पर कुछ कर नही पा रही। तभी कही दूर से एक आवाज आई ठहर मेरी जान मेरी रांड़ तेरी तड़प मैं शांत करूंगा बस थोड़ा इंतजार कर। कुछ दिन तक ये सपना रोज आया फिर गायब हो गया पर मेरी चुदासी बढ़ती गई।

१० साल तक अथर्व स्तनपान करता रहा और मुझे रोज एक नए सुख की अनुभूति होती। पर एक दिन अचानक उसने स्तनपान करना छोड़ दिया। अचंभा तो हुआ मुझे पर मैं अतर्व रोक या टोक नही सकती थी।

अथर्व बहुत ही तेज़ तर्रार था। बुद्धिमान भी पर सही कामों में नही वो हर काम का टेड़ा हल निकल लेता। इस बात पर उसके पिता उससे नाराज रहने लगे और धीरे धीरे उनका रोश एक तरह की नफरत में बदल गया। वो अब घर भी काम आते ज्यादातर अपना समय वो खेतो या फिर मंदिर में ही व्यतीत करते क्युकी खेत की कमान मैने अपने हाथो में ले रखी थी। इनका अगर बस चलता तो ये भी सब दान दे देते। खैर एक दिन आठवी कक्षा के छात्र ने बारव्वी के छात्र को इतना पीटा की वो अधमरा हो गया। ये कोई और नही अथर्व था। उसकी शिकायत हुई और उसके पिता ने उसे घर में बहुत मारा इसी दिन उसने निर्णय ले लिया की वो अब आगे नहीं पड़ेगा। और मैं कुछ भी नही बोल पाई।


अथर्व अब न तो स्कूल जाता बस दिन भर इधर उधर भटकता। एक रात मुझे कुछ जलने की बू आई तो मैं उस दिशा में चल पड़ी। घर के पीछे की तरफ एक नदी बहती थी। वहा से बहुत तेज रोशनी आ रही थी। मैं भी उस तरफ चल दी। बहुत बड़ा अग्निकुंड और उसमे से तेज तर्रार आग की लपटे और सामने एक व्यक्ति जो पूरी तरह से भस्म में रमा हुआ उस अग्निकुंड मैं आहुति दे रहा हैं और बहुत तेज तेज मंत्रो का उच्चारण कर रहा हैं। फिर वो व्यक्ति खड़ा हुआ तो मैं एकदम से आश्चर्य में रह गई की वो व्यक्ति बिलकुल नितंग नंगा हैं और उसका लोड़ा हवा में झूल रहा हैं जो की बहुत ही विकराल लग रहा था। फिर उस व्यक्ति ने एक तलवार उठाई और अपनी उंगली काट कर अपने लहू की आहुति दी अग्नि कुंड में। कुछ ही क्षण में उसका घाव भर भी गया जैसे कुछ हुआ ही ना हो। फिर उसने तलवार से वहा बंधे बकरे की बलि दी और जो रक्त बहा उससे एक बर्तन में एकत्रित किया और फिर वो उस रक्त को पी गया और उस बकरे का कच्चा मांस खाने लगा। पूरा बकरा खा गया वो व्यक्ति और फिर उस बकरे की हड्डियों को अग्निकुंड में आहुति दी। फिर से कुछ मंत्र और उस व्यक्ति ने एक जोरदार हुंकार भरी जिसे सुन मेरा मूत निकल गया। फिर वो व्यक्ति नदी में स्नान करने के लिए रुक गयाऔर उस व्यक्ति ने नदी में डुबकी लगाई और गायब हो गया नदी के अंदर ही।
Superb awesome fantastic excellent and interesting update
 

Raj

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अध्याय ३



मैं बहुत घबरा गई थी। अथर्व ने फिर कुछ मंत्र से पड़े और अग्निकुंड के समक्ष हाथ जोड़ के खड़ा हो गया। देखते ही देखते अग्नि शांत हो गई। अथर्व ने फिर अपने कपड़े पहनने शुरू किए तब मैंने वहा से निकलना ठीक समझा।

मुझे समझ नही आ रहा था जो मैंने देखा क्या वो सही था। अथर्व तांत्रिक क्रिया कर रहा था पर क्यू? लेकिन बार बार मेरे जेहन में उसका लन्ड आ रहा था। ऐसा लन्ड तो मैंने कभी देखा नहीं। इतना लंबा और इतना मोटा। मैं सोच सोच कर गरम होने लगी और अपने आप मेरा हाथ सारी के अंदर घुस गया और चूत को कुरेदने लगा। मैं सोचने लगी जब ऐसा लन्ड मेरी चूत में जायेगा तो इस निगोडी की तो लॉटरी लग जाएगी। कैसा कसा कसा जायेगा। अंदर तक हिला के रख देगा। मेरे हाथ तेजी से चलने लगे और दूसरे हाथ से मैं अपनी चूचियां दबाने लगी। चूचियां भी एक दम कठोर हो गई थी और निप्पल तन गए थे जैसे अथर्व के लन्ड को सलामी दे रहे। आधे घंटे तक मैं अपनी चूत रगड़ती रही पर चरमसुख की प्राप्ति नही हूं। कपड़े अब मुझे बोझ से लगने लगे। मैं जल्दी से जल्दी अपने चरम को पा लेना चाहती थी, मुझसे ये आग बर्दाश्त नहीं हो रही थी। एक एक करके मैने सारे कपड़े उतार दिए और दोनो टांगे फैला के अपनी चूत में उंगली करने लगी। इतनी चुदासी हो गई थी मैं की इस समय कुत्ते को भी अपने ऊपर चढ़ा लेती। मैं सामने लगे शीशे में खुद के रूप यौवन को निहारते हुए अपनी आग शांत करने में लगी थी पर आज पहली बार मुझे चरमसुख की प्राप्ति नही हो रही थी। १ घंटा निकल चुका था पर मेरी आग शांत होने की बजाय बढ़ती जा रही थी। मैं परेशान होने लगी पर यकायक एक धीमी आवाज मेरे कानो में पड़ी " ये अब ऐसे शांत नहीं होगी मेरी रानी बस कुछ समय और फिर तू रोज झड़ेगी, मैं अपने लन्ड पे तुझे भिटाके इस घर और हवेली के हर कोने में तुझे चोदूंगा वो भी रगड़ रगड़ कर। समझी मेरी रण्डी और फिर तू मेरे पुत्रों को जन्म देगी। हा हा हा हा हा हा और ठ्ठाहेके मारने लगा।"

ये आवाज सुनते ही मेरे हाथ पांव ठंडे पड़ गए और मैं एक दम स्थिर हो गई। जो आग मेरे अंदर जल रही थी वो एक दम से काफूर हो गई। क्युकी ये आवाज अथर्व की थी। मैने फुर्ती से अपने जिस्म को चादर से ढका और पूरे कमरे का जायजा लिए पर मुझे अथर्व या उसका अस्तित्व कही नही दिखा। यही सब सोचते हुए मुझे कब नींद आ गई पता ही नही पड़ा।

सुबह मेरी नींद देर से खुली। जब मैं नहाके किचन की ओर गई तब तक मेरी बड़ी बेटी सुबह का नाश्ता करा चुकी थी सब को पर अथर्व अभी तक सोया हुआ था। मैं चाय और नाश्ता लेके अथर्व के कमरे तक गई। दरवाजा बंद नही था और मेरे धकेलने से खुलता चला गया। अंदर अथर्व दुनिया से बेखबर सोया हुआ था। उसके शरीर पर सिर्फ एक निकर था बाकी इसके शरीर पर कुछ भी नही था। उसकी चौडी छाती देख कर मेरे सांसे तेज चलने लगी। उसकी बलिष्ट भुजाए देखकर उसकी मर्दानगी का मुझे एहसास होने लगा। उसकी लंबी टांगे देख कर मुझे उसकी ताकत का अंदाजा होने लगा। पर मेरी आंखे उसकी निकर के जोड़ पे अटक गई और मुझे उसके काले नाग का एहसास होने लगा। कितना बड़ा और मोटा हैं वो। मेरी पलक झपकना ही भूल गई और एक वासनात्मक खुमारी छाने लगी। मेरे दोनो हाथ में ट्रे थी पर मेरी चूत कुलबुलाने लगी। मेरी पलके नशे से भारी होने लगी। मैं ये सोचने लगी जब ये लन्ड मेरी चूत में जायेगा तब मेरा क्या हाल होगा। किस तरह से मुझे ये चोदेगा और मेरी चूत रस टपकाने लगी। इतने में ही अथर्व ने करवट ली और मैं अपनी सोच से बाहर आई। दिल के किसी कोने में मुझे खुद से अपराध बोध हुआ की में क्या सोच रही हूं ये मेरा खुद का बेटा हैं पर वही दूसरी आवाज भी आई याद हैं तांत्रिक ने क्या बोला था ये मेरा बेटा भी हैं और मेरा पति भी और इसके सात पुत्रों को मैं जन्म दूंगी। यही आवाज सुन के मैं शर्माने लगी। पर एक आवाज ने मुझे मेरी सोच से बाहर निकला।

अथर्व : मां ओ मां।

मैं अपनी सोच से बाहर निकली और देखा अथर्व उठ चुका हैं। मैं अपनी सोच से बाहर निकली।

मैं: कितनी देर तक सोता हैं। क्या करता हैं तू रात भर।

अथर्व : कल रात मैं साधना कर रहा था।

इतना बोलते ही मुझे रात का सारा सीन मेरी आंखों के सामने घूम गया। मैने देखा दरवाजा खुला हुआ हैं, मैने पहले जाके दरवाजा बंद किया और फिर अथर्व के पास जाके बेड पर बैठ गई।

मैं: अथर्व बेटा तू ये साधना क्यू कर रहा था। तुझे मालूम हैं तेरे बाबा को ये पता लग गया तो वो कितना गुस्सा करेंगे और बेटा ये साधनाएं कभी कभी उल्टी भी पढ़ जाति है। कही तुझे कुछ हो गया तो मैं क्या करूंगी। और मेरी आंख से पानी गिरने लगा।

अथर्व ने वो किया जो मैं सपने में भी नही सोच सकती। उसने अपनी जीव से मेरे आंसू चाट लिए। उसकी जीव का स्पर्श होते ही मेरे पूरे बदन मैं एक सनसनी सी दौड़ गई और मेरी आंखे मजे में बंद होती चली गई। ये चुवन एक मर्द की औरत से थी ना की बेटे की मां को। औरत को हर स्पर्श का एहसास होता हैं।

अथर्व: ( मुझे निहारे जा रहा था और उसकी आवाज से मैं अपने मजे से बाहर निकली)। मां तू चिंता मत कर मैं सब सोच समझ के कर रहा हूं। मेरे गुरु जी मुझे हर कदम पर सहायता करते हैं जब मैं साधना करता हूं।

मैं: (अचंभित होते हुए) तेरे गुरु जी। कौन हैं तेरे गुरु जी? कहा रहते है? और वो क्या चाहते हैं तुझसे?

अथर्व: मां मेरे गुरु जी बहुत पहुंचे हुए तांत्रिक हैं और वो जंगल में रहते हैं। वो कहते हैं की वो मुझे मेरे सही मुकाम तक पहुंचने में मदद करेंगे। मां चिंता मत कर तुझे जल्द ही उस हवेली की ठकुराइन बनाऊंगा और मैं उस हवेली का ठाकुर।

अथर्व ने एक बार फिर मेरी दुखती रग पर हाथ रखा।

मैं: ( झूठा गुस्सा दिखा कर) तू ठाकुर, तेरे बाबा क्यू नही।


अथर्व: क्यूंकि वो आदमी इस लायक नही है उसने कभी भी तुझे कोई खुशी नहीं दी। मैने तुझे हर रूप से तड़पते हुए देखा हैं। पर मैं तुझे रानी बनाऊंगा। और तू इन साधना की चिंता मत कर जब तक मैं हूं तुझे कुछ नहीं होने दूंगा ये मेरा वादा हैं। एक बात और साधना तो तू भी करती है हर अमावस्या की रात को। मैंने देखा हैं और हम दोनो मिलके एक दिन सब से बदला लेंगे। सब चीज से निश्चिंत हाेजा। मैं हूं ना तेरा काला नाग।
Shaandaar lajawab excellent and interesting update
 

Raj

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अध्याय ४



अथर्व की शैतानी प्रवृत्ति ने अपना पहला वार कर दिया था। उसने मेरे ही मन में मेरे पति के खिलाफ बीज बो दिया था। मैं लालच मैं आंधी नही समझ पाई। मेरे अंदर ठकुराइन बनने की लालसा फिर से जाग उठी।

मैं: सच अथर्व तू बनाएगा मुझे ठकुराइन। क्या तू मेरा ये सपना सच करेगा। क्या तू फिर से मुझे उस हवेली की दहलीज पे उसी मान सम्मान के साथ ले जाएगा। बोल अथर्व बोल।

अथर्व: सच में मैं तुम्हारा सपना सच करूंगा। रानी बनाऊंगा तुम्हे रानी। किसी की हिम्मत नही होगी तुम्हारी तरफ आंख उठाके देखने की। उस रंजीत सिंह को तुम्हारा पालतू कुत्ता बनाऊंगा तुम्हारा मूत पिलाऊंगा उसे। तुमपे गंदी नजर रखता हैं साला। और उस फूफा को तो नंगा घुमाऊंगा पूरे शहर में। साला तुमको होली के दिन भांग पिलाके तुम्हे अपने दोस्तो के साथ भोगना चाहता था।

मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। ये बाते जो केवल मुझे मालूम थी, मैने आज तक कभी भी इन बातो का जिक्र अपने पति से भी नही किया और अथर्व को कैसे ये बाते पता लगी।

मैं: तुझे कैसे पता लगी ये सब बाते। बता ना क्युकी इन बातो का जिक्र मैने आज तक किसी से नहीं किया हैं।

अथर्व: ये सब मेरी साधना का असर हैं ठकुराइन।

मैं: सच अथर्व, क्या तू वाकई मुझे ठाकराइन बनाएगा, क्या तू मेरी बेइज्जती का बदला लगा? बोल ना।

अथर्व: हां मेरी ठकुराइन मैं वो सब कुछ करूंगा जिससे तुझे खुशी मिले। मैं उन सालो को कही का नही छोडूंगा। तू देखती जा ठकुराइन।

इतना सुनते ही मैं अथर्व के गले लग गई और उसपर चुम्बनो की बौछार कर दी। एक क्षण ऐसे भी आया जब हम दोनो के अधर बिलकुल करीब थे। हम एक दूसरे की सांसों की गर्मी महसूस कर सकते थे। मैं और अथर्व बिना पलके झपकाए एक दूसरे की आंखों में देख रहे थे। हम दोनो के अधर व्याकुल थे बहुपाश में बांधने के लिए पर दोनो मै से कोई पहल नही कर रहा था। ऐसा लग रहता जैसे समय थम सा गया हूं। होठ सूखने लगे दोनो के और मेरे जिस्म में एक सनसनी सी दौड़ने लगी। मैने ही असमंजस की स्थिति में पहल करी और बेड से खड़ी हो गई पर तभी मुझे अथर्व ने पकड़ा और रुई की बोरी के समान अपनी गोद में उठा लिया। मैं मोटी तो नही पर फूल कुमारी भी नही हू अच्छा खासा वजन हैं पर अथर्व के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। उसके हाथो ने मेरी गांड़ को जकड़ रखा था और उसकी गर्म सांसे मेरी नाभि पे महसूस हो रही थी। इतने भर से ही मेरी चूत ने मेरा साथ छोड़ दिया, निगोडी रस टपकाने लगी। अथर्व ने फिर मुझे नीचे उतारा और मेरे शरीर का हर हिस्सा उसकी छाती से रगड़ खा रहा था। जब मैं पूरा नीचे आ गई तब पहली बार उसके लोड़े की दस्तक मेरी चूत पर हुई। उफ्फ आह ऐसा एहसास मुझे जिंदगी में कभी नहीं हुआ। मजे से मेरी आंखे बंद हो गई और शर्म की लालिमा मेरे मुखारबिंद पर छा गई। शर्म से मेरा चेहरा झुक सा गया और फिर अथर्व ने मेरी ठोड़ी उठाई और मैने अपने नयन खोले और अथर्व को देखने लगी। अथर्व ने मेरे चेहरे को अपने दोनो हाथो में लिया और मेरे मस्तक पे एक चुम्बन अंकित किया। मैं शर्मा के उसके चौड़े सीने से लिपट गई। अथर्व ने मुझे बाहों में कस लिया। हम दोनो को एक दूसरे के जिस्म का स्पर्श एक सुखद अनुभूति दे रहा था।

अथर्व: चिंता मत कर ठकुराइन सब होगा जैसा हम दोनो चाहेंगे वैसा ही होगा बस अभी थोड़ा समय हैं। हमे धीरज धरना होगा। मुझें अभी और साधनाएं करनी होगी और ध्यान से क्रिया करनी होगी जिस से मैं और शक्तिशाली बन जाऊ।

मैं: समझ गई पर अपना ध्यान रखना क्युकी तू ही मेरा सब कुछ हैं।

अथर्व: चिंता मत कर। कुछ नही होगा मुझे। सब का काल हू मैं।

अथर्व की आंखे एक दम सुरख लाल पड़ गई। मुझे थोड़ा सा डर लगने लगा, वो मेरी स्थिति समझ गया और मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया। न जाने कितनी देर हम दोनो यूं ही खड़े रहे। बड़ा सुकून मिल रहा था मुझे उसकी बाहों में। एक सन्नाटा सा छा गया था और इस सन्नाटे में मानो वक्त भी थम गया हो। अथर्व की वाणी ने इस सन्नाटे को चीरा।

अथर्व: मेरा एक काम करवा दे ठकुराइन।

मैं: बोल ना क्या चाहिए तुझे

अथर्व: मुझे छत पर एक कमरा जिसका रास्ता पीछे से होके जाता हो।

मैं: पीछे से क्यू?

अथर्व: ताकि वो तेरा चुतिया पति कभी भूले से भी ऊपर न आए। समझी ठकुराइन।

मैं: ( मेरे चेहरे पे हसी आ गई) पागल हैं बाबा हैं तेरे।

अथर्व: वो मेरे बाबा नही बस समाज के लिए तेरे पति हैं। और जोर जोर से हंसने लगा।

उसको देख वो मुझे भी हसी आ गई और कोई ग्लानि नही हुई मुझे क्युकी नफरत का बीज अथर्व बो चुका था। मुझे इस बात का भी आभास था जो काम मेरे निठले पति को करना चाहिए था वो काम अथर्व कर रहा था। मेरी हसरतों और इच्छाओं की पूर्ति कर रहा था।

अथर्व: एक काम और था वो भी कर दे।

मैं: बोल ना और क्या चाहिए।

अथर्व: मुझे २ लाख रुपए की भी जरूरत है।

मैं: इतने पैसे क्यू चाहिए। क्या करेगा तू।

अथर्व: अभी तो कुछ नही बता सकता बस ये समझ ले की हमारी इच्छा पूर्ति के लिए ये जरूरी हैं।

मैने अपनी कमर से तिजोरी की चाबी का गुच्छा निकाला और अथर्व के हाथो में दे दिया।

मैं: जितने चाहिए उतने लेले, सब तेरा हैं।

चाबी का गुच्छा मेरे हाथ से लेकर उसने फिर से मुझे अपने शरीर से कस लिया और एक बार फिर मुझे उसके लन्ड का एहसास हुआ। मेरे तन बदन मैं चिंगारी सी लग गई। और मजे से मेरी आंखे अथर्व की आंखे से टकरा गई। उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी।

अथर्व: जो मेरा हैं वो तो मैं ले ही लूंगा, सही समय आने पर। सब कुछ मैं ले ही लूंगा।

और उसने एक बार जोर से अपना लन्ड मेरी चूत पर रगड़ दिया। ना चाहते हुए भी मेरे मुंह से एक सिसकारी निकल गई। मैं उसके लन्ड की चुभन के मजे ले रहीं थी।

अथर्व: सुन ठकुराइन जो कमरा ऊपर बनवाना हैं उसका दरवाजा दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए और केवल एक रोशनदान जो उस दरवाजे के ऊपर होंगे उसके अलावा कोई रोशनदान नही। कोई बिजली नही बस सिर्फ एक नलका हो उस कमरे में वो भी पूर्व दिशा की ओर। समझ गई।

मैं: हां बाबा समझ गई। और कुछ चाहिए मेरे ठाकुर को।

ये पहली बार था जब मेने अथर्व को मेरे ठाकुर कहके संबोधित किया और ये ही सोच के मेरे चेहरा शर्म से लाल पड़ गया।

अथर्व: मुझे अभी बहुत सी साधना करनी पड़ेगी। कुछ तुझे पसंद भी न आए पर चिंता मत कर सब कुछ तेरे लिए ही कर रहा हूं। और सुन जो ऊपर की एक चाबी तेरे पास रहेगी और एक मेरे पास। कोई भी पूछे तो कह देना की मेरी कसरत के लिए बनवा रही हूं।

मैं: मुझे क्या जरूरत हैं ऊपर की चाबी की?

अथर्व: सुबह की सफाई सिर्फ तू करेगी ठकुराइन।

मैं: ठीक हैं ठाकुर साहब।

अथर्व के चेहरे पे मुस्कान फेल गई और उसने एक चिकोटी मेरी कमर पे काट ली। मैने उससे जोर से धक्का दिया और अपनी कमर मसलने लगी

मैं: आउच। कुत्ता कही का।

अथर्व: (हस्ते हुए) वो तो मैं हूं और तू मेरी कुतिया। चल अब पैसे निकालने चले मेरी कुतिया।

अथर्व का यूं मुझे कुत्तियां बोलना मुझे बिल्कुल भी बुरा नही लगा बल्कि वो शब्द मुझे रोमांचित करने लगा। जैसे एक कुत्ता कुत्तियां पे चढ़ता हैं वैसे ही अथर्व भी मुझ पर चढ़ेगा। हाय कब आएगा वो दिन। मैं बिना किसी सुद बुध के उसके पीछे चलने लगी। उसके कमरे से निकल कर मैं अपने कमरे में पहुंची तब तक अथर्व तिजोरी खोल के पैसे निकाल चुका था। उसने तिजोरी बंद करी और तिजोरी वापस बंद करी और चाबी का गुच्छा मुझे वापस करा और एक झंटेदार चपत मेरी गांड़ पे मारी। चिहुक सी निकल गई मेरी। वो जाते जाते पीछे मुड़ कर मुस्कुराने लगा।

मैं: कुत्ता कही का, साला काला नाग।
Jabardust mind blowing excellent erotic and interesting update
 

Raj

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अध्याय ५



अगले दिन ही मैने मिस्त्री को बुला के ऊपर के कमरे पर काम शुरू कर दिया। जब मेरे पति आए तब उन्होंने मुझ से पूछा।

सुशांत: ये ऊपर कमरा क्यू बनवा रही हो।

मैं: वो अथर्व की कसरत के लिए।

सुशांत: सांड सा हो रहा हैं तुम्हारा लाल अब और क्या बनेगा।

मैं: ये ही उमर हैं उसके शरीर बनाने की जो आगे चल कर उसके काम आएगा। कही तुम्हारे तरह भरी जवानी में लूल हो गया तो। ( ये पहली बार था जब मैंने अपने पति को उनकी नपुंसकता के लिए उलहाना दिया हो, क्युकी मुझे तो पता था कि ये सब कैसे हुआ है पर इन सब से अंजान बन के मैने उनकी दुखती रग पे हाथ रख दिया क्युकी अथर्व ने नफरत का बीज बो दिया था)

सुशांत: (बहुत अचंभित हो गए) सविता मुझे नहीं मालूम ये सब कैसे हुआ, कोई बुरा ऐब या शौक नहीं मुझे फिर भी हो गया। कितने ही डॉक्टर और वेद हकीम को दिखाया पर कुछ असर नहीं हुआ। मैने कोई जान मूछ कर तो नही किया हैं। मैं आज भी सिर्फ तुमसे प्यार करता हूं।

मैं: छोड़ो इन बातो को, अब क्या फरक पड़ता हैं। अब ये बताओ अंजली के लिए जो पिछले हफ्ते आए थे उनसे बात हुई।

सुशांत: हां हुई थी बात नही बनी, कहते हैं लड़की और लड़के की कुंडली नही मिल रही।

मैं: कुछ भी तो दोष नही हैं मेरी बच्ची की कुंडली में फिर भी बात क्यू नही बनती।

सुशांत: शुक्र हैं तुम्हे अपने लाडले के इलावा अपनी बच्चियों की भी चिंता हैं। मुझे तो कभी कभी लगता हैं की तुम्हे सिर्फ अथर्व को ही चिंता हैं।

मैं: देखना एक दिन मेरा अथर्व ही मेरी बेटियों का उद्धार करेगा। ( तब मुझे ये नही पता था कि अथर्व मेरी बेटियों को भी चोद कर उन्हें अपने बच्चो की मां बनाएगा।)

सुशांत: चलो देखते हैं, अच्छा सुनो मुझे ५००० रुपए दो।

मैं: हाय राम ५००० रुपए, इतने रुपया क्या करोगे।

सुशांत: अरे वो धनीराम हैं ना उसकी लुगाई बीमार हैं, उसको जरूरत हैं। विमला(धनीराम की लुगाई) आजकल खेतो पर भी नही आ रही काम करने।

मुझे मालूम हैं की धनीराम एक नंबर का शराबी हैं और जुआरी है, इसलिए उसके काम का मेहनताना मैं विमला को ही देती थी।

मैं: उसके लिए ५००० नही है मेरे पास, १००० २००० रुपए देदो। उसने वैसे भी शराब में उड़ने हैं। समझे।

सुशांत: अरे मैं उसे बोल चुका हूं, अगली बार मत देना। समझा करो मैं जबान दे चुका हूं।

मरती क्या न करती मैने सुशांत को तिजोरी में से निकाल के ५००० रुपए दे दिए। उसको लेके वो चले गए और ये बोले गए की अभी ४ ५ दिन वो घर नही आयेंगे क्युकी धनीराम रखवाली करने नही आयेगा। वो चले गए।

मैं भी अपने कामों में व्यस्त हो गई।

१ महीने में अथर्व का कमरा बनकर तैयार हो गया।

अथर्व अब रोज रात को साधना करता और मैं रोज सुबह उसके कमरे की सफाई करती। रोज कम से कम दो बॉटल शराब की मिलती मुझे। चिल्लम भी मिलती पर मैने उससे कुछ नही पूछा। एक दिन सफाई करते वक्त मेरे पैर मैं कुछ चीप चिपा लगा जो की बहुत मात्रा में था। मैने उंगली में लिया और सुंघा। सूंघते ही मैं मंत्रमुग्ध सी हो गई उसकी खुशबू में। जी है ये वो ही था जिसकी हर औरत दीवानी होती हैं और मैं तो खासकर, ये मेरे अथर्व का वीर्य था।

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क्या मर्दाना खुशबू आ रही थी उसमे से और इतना ज्यादा की एक बार में १० आदमी निकलते होंगे। ना जाने क्या हुआ में अथर्व का वीर्य उंगली से उठाके चाटने लगी।

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उसका स्वाद मुझे इतना अच्छा लगा की मैं उंगली में लगा एक एक कतरा चूसने लगी। तभी एक आवाज मेरे कानो में पड़ी " इस को चाट मत अपनी चूत पे मल और गांड़ के सुराख पर मल, थोड़ा सा अपनी चुचियों की घुंडी पे मल" और मैने वो ही किया। जैसे ही वीर्य को अपनी चूत पे मला मेरी चूत ने अमृत बरसाना शुरू कर दिया। मैं उसको अपनी बिना बालो वाली चूत पर मलने लगी। मेरे मुंह से सिसकारी फूटने लगी ।

मैं: आह ऊ ऊऊऊऊऊऊ आई आह, कितना गरम हैं तेरा वीर्य मेरे ठाकुर। कब डालेगा इसे मेरे अंदर सीधे अपने नलके से। सी सी सी आह ऊ ऊ। चोद डाल मुझे मेरे राजा। आह जल्दी कर मेरे ठाकुर तेरी ठकुराइन तड़प रही हैं तेरे लिए। चोद मुझे।

ना जाने कितनी देर तक मैं यूं ही करती रही पर मुझे चरमसुख प्राप्त नहीं हुआ। मेरी खुमारी और तड़प बढ़ती जा रही थी। पर इसके आगे मैं कुछ और कर भी नही सकती थी। हार कर मैने अपने कपड़े सही किए और कमरा साफ़ करने लगी। अब तो ये मेरा रोज का काम हो गया था। दिन प्रतिदिन वीर्य की मात्रा बढ़ती जा रही थी मुझे ऐसे ही अंदेशा हुआ।

अथर्व दिन भर घर पे नही रहता था और रात को भी देर से आता और साधना करता और सुबह उठते ही निकल जाता। एक दिन मैंने उसको सुबह जल्दी पकड़ किया और मुझको देखते ही उसने मुझे अपनी बाहों में भर लिया और अपना लन्ड मेरी चूत से सटा दिया।


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मैं : आह आह। अच्छा आज दिख गई तो प्यार जता रहा हैं वरना दिन भर कहा गायब रहता हैं। कब आता हैं कब जाता हैं कुछ पता नहीं पड़ता। क्या खाता हैं क्या पीता है, कुछ नही मालूम पड़ता।

अथर्व : तू चिंता मत कर ठकुराइन मैं जो भी कर रहा हूं, हम दोनो के लिए कर रहा हूं।

मैं: अच्छा तो दिन भर कहा हांडता फिरता हैं। कोई घर को सुध बुध हैं की नही। तू दिन भर न दिखे तो चिंता होती है। कभी घर पर रहकर घरवालों के साथ भी कुछ पल गुजारा कर। पता हैं तेरी बहन की रिश्ता फिर नही हुआ। मुझे बहुत चिंता हो रही हैं।

अथर्व: तू चिंता मत कर, अभी समय नही आया हैं अंजली की शादी का। ७ महीने बाद चारो की शादी को योग बनेगा, चिंता मत कर। मैं सब को संभाल लूंगा।

मैं: ( उसकी दुवार्थी बात को न समझ सकी) मुझे पता हैं की तू सब संभाल लेगा। अच्छा चल अब ये बता दिन भर कहा रहता हैं। रात को इतनी साधना करता हैं दिन को आराम किया कर।

अथर्व : आराम नही ठकुराइन समय कम हैं और बहुत काम करने हैं। दिन का काम तो बस एक दो महीने का और हैं फिर मैं बस दिन भर घर पे ही रहूंगा।

मैं: ऐसा क्या काम कर रहा हैं दिन में, अपनी ठकुराइन को नही बताएगा।

अथर्व: तू नही मानेगी ठकुराइन, तो सुन मैं दिन भर पड़ोस के शहर में एक वेद के पास से जड़ी बूटियों का ज्ञान ले रहा हूं। आगे जाके हम दोनो के बहुत काम आयेगा।

मैं: जड़ी बूटी से हमारा क्या काम?

अथर्व: तुझे नही मालूम वो मादरचोद रंजीत ड्रग्स का कारोबार कर रहा हैं। सरकार से चुप कर और पुलिस वालो को अपने साथ मिलाके हरामी अफीम की खेती कर रहा हैं, हमारे खेतो में। जड़ी बूटी का ज्ञान लेके हम उस से अच्छी अफीम उगाएंगे जब हवेली पर हमारा राज होगा। नोटो की बिस्तर पर सोएगी तु मेरी ठकुराइन। और जड़ी बूटी और भी बहुत काम की चीज हैं। हम सब को इसकी जरूरत पड़ेगी।

मैं: सच अथर्व, इतना पैसा होगा हमारे पास। ( एक बार फिर मेरा लालच मुझ पर हावी हो गया, मैने ये भी ध्यान नहीं दिया की अथर्व ने पहली बार मेरे सामने गाली का उपयोग किया)

अथर्व: ठकुराइन यकीन रख एक दिन तुझे सोने मैं तुझे सोने से लाद दूंगा।

और एक बार फिर उसने मुझे खुद से चिपका लिया। लोड़े की दस्तक फिर हुई मेरी चूत के द्वार पर। मेरी चूत तो पहले से ही द्वार खोले बैठी थी, पूरी फिसलन थी द्वार पर। मैने मस्ती में अपने होठ भींच लिए और अथर्व की आंखों में खोने लगी। तभी वो झटके से अलग हुआ घर से बाहर निकलने लगा। पीछे मुड़ के उसने देखा तो उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी।

अथर्व: जो प्रसाद मैं तेरे लिए छोड़ता हूं रोज उससे ग्रहण करती हैं या नहीं।

मैं: (अचंभित होते हुए) कौन सा प्रसाद।

अथर्व: वोही जो मैं रोज जमीन पे छोड़ता हूं तेरे लिए।

उसका इतना बोलते ही मेरी नजर शर्म से झुक गई और उसके गिरे हुए वीर्य का दृश्य मेरी आंखों के सामने घूम गया और न चाहते हुए भी मेरी गर्दन हां मैं हिलने लगी।

जब तक मेने नजरे उठाई तब तक अथर्व घर से बाहर निकल चुका था। और मैं तुरंत अथर्व के कमरे की ओर अपना प्रसाद ग्रहण करने के लिए। जब कमरे में पहुंची जो रोज की तरह उसी जगह मुझे मेरा प्रसाद पड़ा मिला। मैं उंगली में अपना प्रसाद लेनी वाली थी की फिर एक आवाज मेरे कानो में पड़ी "जीव से चाट ठकुराइन"


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और मैने वैसा ही किया। जीव से चाट अपना प्रसाद ग्रहण करने लगी। ऐसा करने से एक अजीब सी अनुभूति हुई, मेरी चूत में चीटियां रेंगने लगी। मैं कपड़े की ऊपर से ही अपनी रामप्यारी को सहलाने लगी, पर मेरी आग शांत होने का नाम नहीं ले रही। अपना प्रसाद ग्रहण करके मैं खड़ी हुई और मेरे चेहरे पर मुस्कान फैल गई। बरबस ही मेरे मुंह से निकला कितना प्यारा हैं मेरा "काला नाग"।
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Raj

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अध्याय ६



समय अपनी रफ्तार से चलता रहा। अथर्व और मेरी नजदीकियां बढ़ती जा रही थी। वो जब मिलता मुझे खुद से चिपका लेता। अपने लन्ड का एहसास कभी मेरी चूत या कभी मेरी गांड़ को कराता। उसकी चौड़ी छाती का स्पर्श हमेशा मेरी चूचियों पे रहता। उसके आलिंगन की कसावट हमेशा मेरी कमर पर महसूस होती। वो रोज मेरे लिए अपना प्रसाद छोड़ के जाता और मैं उसे किसी कुत्तियां की तरह चाटती, कभी उस प्रसाद तो अपनी चूत पे मलती कभी अपने आमों पर। मैं इतनी उत्तेजित रहने लगी की हर समय मुझे लंड की कमी खालती। मैं एक दम चुदासी रहने लगी। पर इक काम हो रहा था जिससे मैं अंजान थी, मेरे रूप यौवन में गजब का निखार हो रहा था। मेरी बेटियां मुझसे बोलती, पर मुझे लगता की में इनकी मां हूं इस वजह से बोल रही हैं।

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(मैं कुछ ऐसी दिखने लगी थी।)


पर इसका अंदेशा तब हुआ जब मेरी छोटी बेटी अदिति की सहेली घर आई। अदिति ने अभी एक साल पहले ही अपना गांव का स्कूल खतम किया था। अदिति की सहेली दूसरे गांव से थी और पहली बार हमारे घर आई थी। अदिति ने उसे अपनी बहनों और मुझसे मिल वाया। उस लड़की ने मेरा अभिवादन किया पर बड़े ही अचंभे में थी। अदिति उसको लेके अपने कमरे में गई और मैं उन दोनो के लिए नाश्ता पानी लेकर गई तब मुझे कुछ सुनने को मिला।

सहेली: यार ये सच मैं तेरी मम्मी है।

अदिति: पागल हो गई हैं क्या। जब से आई हैं तब से यही सवाल पूछ रही हैं। लास्ट बार बता रही हूं ये औरत जो नीचे मिली थी वो मेरी मम्मी हैं। समझी!

सहेली: तेरी सौतेली मां होंगी, तेरे पापा ने दूसरी शादी करी होगी, तभी ये इतनी जवान हैं।

अदिति: पागल हो गई हैं क्या, ये मुझे जन्म देने वाली मां हैं। मेरे पापा ने कोई दूसरी शादी नही करी।

सहेली: यार कितनी सुंदर हैं तेरी मम्मी इस उमर में भी। तेरे पापा की तो लॉटरी लग गई। तेरे पापा तो इन पर लट्टू होंगे। हर समय आगे पीछे ही घूमते होंगे। यार कोई नही बताए की ये तुम सब की मम्मी हैं तो सामने वाला ये ही सोचेगा की तुम लोगो की बहन हैं। तुझ्से एक आद साल बड़ी या बराबर की ही लगती हैं। यार मैं लड़का होती तो इन पे तो फुलटू लाइन मरती।

अदिति: चल पागल कुछ भी बोलती है।

फिर उन दोनो में कुछ खुसफुसाहट हुई और दोनो हसने लगे, शायद चुदाई की बात हुई होगी और दोनो जोर जोर से हंसने लगी। मैं अपने यौवन की प्रशंसा सुन कर शर्मा गई और इस रूप पर गर्वांवित महसूस करने लगी।

एक बार एक लड़का मेरी बड़ी बेटी अंजली को देखने आया। पर मेरे रूप यौवन को देखकर वो बोला मुझे इससे शादी करनी हैं। गलती से उस दिन अथर्व भी घर पर ही था। किसी ने नहीं देखा जो मैने देखा। अथर्व की आंखे गुस्से से सुर्ख लाल हो गई थी। सब ने उस लड़के की बात ही हसी में टाल दिया, यह तक की पति ने भी पर शायद अथर्व ने नही। अगले दिन खबर मिली की समस्त परिवार का रोड ऐक्सिडेंट हो गया, जब वो हमारे घर से अपने घर जा रहे थे कोई भी नही बचा। मैने इसके बारे में अथर्व से पूछा तो वो बोला

अथर्व: पाप किया था उसने, सजा तो मिलनी ही थी। मेरी ठकुराइन की तरफ कोई आंख उठाके देखे तो उसको जीने को कोई हक नही है। जो मेरा हैं वो सिर्फ और सिर्फ मेरा हैं। समझी ठकुराइन।

और जोर जोर से हंसने लगा। अथर्व का ये बेपनाह प्यार कभी कभी मुझे डराता भी था, पर एक भरोसा होने लगा था उस पर की जब तक वो हैं, मुझे कुछ नही हो सकता।

३ महीने निकल गए अथर्व अब ज्यादतर घर पर ही रहता। एक दिन वो मेरे पास मेरे रूम में आया

अथर्व: ठकुराइन मुझे साधना के लिए तेरे अंगवस्त्र( मतलब ब्रा और पैंटी) चाहिए।

मैं: (चौंकते हुए) अंगवस्त्र वो क्यू।

अथर्व: अब से रोज शाम को तू मुझे अपने अंगवस्त्र देगी, रात में मैं साधना करूंगा और अगले दिन तू वोही अंगवस्त्र पहनेगी।

मैं: ये कैसी साधना हैं।

अथर्व: मैं अपनी साधना के आखिरी पड़ाव पर हूं, फिर मेरे जन्मदिन वाले दिन ये साधना पूर्ण होगी। फिर हम दोनो जो चाहेंगे वोही होगा। दे मुझे अपने अंगवस्त्र।

मैं: यही दे दो। तू जा मैं तेरे कमरे में रख दूंगी।

अथर्व: अरे अभी दे दें, में जेब में घुसकर ले जाऊंगा।

मैं: तू मुझे भी बेशरम बना दे अपनी तरह।

अथर्व: जो दोनो हम दिल से चाहते हैं उसके लिए हम दोनो को बेशरम होना पड़ेगा।

अथर्व की बात सुनके मेरी आंखे शर्म से झुक गई, एक शर्मीली मुस्कुराहट पर चेहरे पर विराजमान हो गई। मैं उठी और अलमारी में से अपनी ब्रा और पैंटी निकाल के अथर्व के हाथो में दी।

अथर्व: कल सुबह इनको साधना वाले कमरे से उठा लेना और वहा पर एक बॉटल में जल होगा उसको ग्रहण कर लेना।

रात भर बेचैनी रही की अथर्व किस तरह की साधना कर रहा हैं। दिल ने चाहा की एक बार ऊपर देख के आया जाए पर फिर कही मेरा ठाकुर नाराज न हो जाए ये ही सोच के नही गई।

सुबह हुई अथर्व घर से बाहर गया हुआ था। मैं भाग कर साधना वाले कमरे में गई और देखा की मेरी ब्रा और पैंटी उसी जगह पड़ी हुई थी जहा पर रोज मेरा प्रसाद होता था। ब्रा और पैंटी दोनों पूरी तरह से अथर्व के वीर्य में भीगी हुई थी।


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अग्निकुंड के पास एक बोतल पड़ी थी जिसमे जल था और मैने उसको माथे से लगाया और उस जल को ग्रहण किया, बड़ा ही कसेला स्वाद था, ऐसा लग रहा था जैसे वो मूत हो। पर उसको पीते ही शरीर में सुफूर्ति और एक अनजान ऊर्जा का संचार हुआ।

मैने नहा धो कर वोही ब्रा और पैंटी पहनी जो अथर्व के वीर्य से भारी पड़ी थी। पूरे दिन मुझे उसके वीर्य की तपिश अपनी चूत और चुचियों पर हुई। एक क्षण भी ऐसा नहीं गया पूरे दिन में जब मुझे अथर्व की कमी न खली हू। उसके वीर्य ने मुझे उसके एहसास से दूर ही नहीं जाने दिया।

शाम को जब अपने कमरे में गई तो एक पैकेट मेरी अलमारी में पड़ा था। जब उसे खोला तो देखती रह गई। उसमे कई सारे जोड़े ब्रा और पैंटी के थे। ऐसी पैंटी कभी देखी ही नहीं थी जो सिर्फ गांड़ की लकीर में घुस के रह जायेगी। ब्रा सारी पेडेड और नेट वाली। कम से कम १५ १६ सेट थे।


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एक चिट्ठी भी थी।

ठाकुआइन तेरे अंगवस्त्र बड़े ही पुराने डिजाइन के थे। मैं चाहता हूं की मेरी रानी हमेशा टिप टॉप रहे इसलिए ये सब तेरे लिए। और हा एक जोड़ी अपने साथ ले गया हूं, कल सुबह ले लेना और जल नित्यक्रियम से ग्रहण करना। तुम्हारा और तुम्हारा ठाकुर।


चिट्ठी पड़ कर मुझे बहुत खुशी हुई की कोई मुझे इतना चाहता हैं। कभी सुशांत ने मेरी खुशी पे ध्यान ही नही दिया और अथर्व इतनी छोटी सी बात का भी ध्यान रखता हैं। मेरे चेहरे पर एक मुस्कराहट थी जो लड़की के होठ पे तब आती हैं जब उसे पहला प्यार होता है, बिलकुल ऐसा ही थी मेरी मुस्कुटाहट भी और जेहन में सिर्फ एक नाम "काला नाग"
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