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कोशिश पूरी करूंगा। आप लोगो का प्यार और आशीर्वाद चाहिए।Bahut he shandar story h.
Umeed h ap is kahani ko jaroor pura kre ga
कोशिश पूरी करूंगा। आप लोगो का प्यार और आशीर्वाद चाहिए।Bahut he shandar story h.
Umeed h ap is kahani ko jaroor pura kre ga
Zaroor...aur aapne ek post mein reply kiya tha ki story mein bahut sex bhi hai..uska bhi intezaar hain :कोशिश पूरी करूंगा। आप लोगो का प्यार और आशीर्वाद चाहिए।
Mast update.अध्याय ६
समय अपनी रफ्तार से चलता रहा। अथर्व और मेरी नजदीकियां बढ़ती जा रही थी। वो जब मिलता मुझे खुद से चिपका लेता। अपने लन्ड का एहसास कभी मेरी चूत या कभी मेरी गांड़ को कराता। उसकी चौड़ी छाती का स्पर्श हमेशा मेरी चूचियों पे रहता। उसके आलिंगन की कसावट हमेशा मेरी कमर पर महसूस होती। वो रोज मेरे लिए अपना प्रसाद छोड़ के जाता और मैं उसे किसी कुत्तियां की तरह चाटती, कभी उस प्रसाद तो अपनी चूत पे मलती कभी अपने आमों पर। मैं इतनी उत्तेजित रहने लगी की हर समय मुझे लंड की कमी खालती। मैं एक दम चुदासी रहने लगी। पर इक काम हो रहा था जिससे मैं अंजान थी, मेरे रूप यौवन में गजब का निखार हो रहा था। मेरी बेटियां मुझसे बोलती, पर मुझे लगता की में इनकी मां हूं इस वजह से बोल रही हैं।
(मैं कुछ ऐसी दिखने लगी थी।)
पर इसका अंदेशा तब हुआ जब मेरी छोटी बेटी अदिति की सहेली घर आई। अदिति ने अभी एक साल पहले ही अपना गांव का स्कूल खतम किया था। अदिति की सहेली दूसरे गांव से थी और पहली बार हमारे घर आई थी। अदिति ने उसे अपनी बहनों और मुझसे मिल वाया। उस लड़की ने मेरा अभिवादन किया पर बड़े ही अचंभे में थी। अदिति उसको लेके अपने कमरे में गई और मैं उन दोनो के लिए नाश्ता पानी लेकर गई तब मुझे कुछ सुनने को मिला।
सहेली: यार ये सच मैं तेरी मम्मी है।
अदिति: पागल हो गई हैं क्या। जब से आई हैं तब से यही सवाल पूछ रही हैं। लास्ट बार बता रही हूं ये औरत जो नीचे मिली थी वो मेरी मम्मी हैं। समझी!
सहेली: तेरी सौतेली मां होंगी, तेरे पापा ने दूसरी शादी करी होगी, तभी ये इतनी जवान हैं।
अदिति: पागल हो गई हैं क्या, ये मुझे जन्म देने वाली मां हैं। मेरे पापा ने कोई दूसरी शादी नही करी।
सहेली: यार कितनी सुंदर हैं तेरी मम्मी इस उमर में भी। तेरे पापा की तो लॉटरी लग गई। तेरे पापा तो इन पर लट्टू होंगे। हर समय आगे पीछे ही घूमते होंगे। यार कोई नही बताए की ये तुम सब की मम्मी हैं तो सामने वाला ये ही सोचेगा की तुम लोगो की बहन हैं। तुझ्से एक आद साल बड़ी या बराबर की ही लगती हैं। यार मैं लड़का होती तो इन पे तो फुलटू लाइन मरती।
अदिति: चल पागल कुछ भी बोलती है।
फिर उन दोनो में कुछ खुसफुसाहट हुई और दोनो हसने लगे, शायद चुदाई की बात हुई होगी और दोनो जोर जोर से हंसने लगी। मैं अपने यौवन की प्रशंसा सुन कर शर्मा गई और इस रूप पर गर्वांवित महसूस करने लगी।
एक बार एक लड़का मेरी बड़ी बेटी अंजली को देखने आया। पर मेरे रूप यौवन को देखकर वो बोला मुझे इससे शादी करनी हैं। गलती से उस दिन अथर्व भी घर पर ही था। किसी ने नहीं देखा जो मैने देखा। अथर्व की आंखे गुस्से से सुर्ख लाल हो गई थी। सब ने उस लड़के की बात ही हसी में टाल दिया, यह तक की पति ने भी पर शायद अथर्व ने नही। अगले दिन खबर मिली की समस्त परिवार का रोड ऐक्सिडेंट हो गया, जब वो हमारे घर से अपने घर जा रहे थे कोई भी नही बचा। मैने इसके बारे में अथर्व से पूछा तो वो बोला
अथर्व: पाप किया था उसने, सजा तो मिलनी ही थी। मेरी ठकुराइन की तरफ कोई आंख उठाके देखे तो उसको जीने को कोई हक नही है। जो मेरा हैं वो सिर्फ और सिर्फ मेरा हैं। समझी ठकुराइन।
और जोर जोर से हंसने लगा। अथर्व का ये बेपनाह प्यार कभी कभी मुझे डराता भी था, पर एक भरोसा होने लगा था उस पर की जब तक वो हैं, मुझे कुछ नही हो सकता।
३ महीने निकल गए अथर्व अब ज्यादतर घर पर ही रहता। एक दिन वो मेरे पास मेरे रूम में आया
अथर्व: ठकुराइन मुझे साधना के लिए तेरे अंगवस्त्र( मतलब ब्रा और पैंटी) चाहिए।
मैं: (चौंकते हुए) अंगवस्त्र वो क्यू।
अथर्व: अब से रोज शाम को तू मुझे अपने अंगवस्त्र देगी, रात में मैं साधना करूंगा और अगले दिन तू वोही अंगवस्त्र पहनेगी।
मैं: ये कैसी साधना हैं।
अथर्व: मैं अपनी साधना के आखिरी पड़ाव पर हूं, फिर मेरे जन्मदिन वाले दिन ये साधना पूर्ण होगी। फिर हम दोनो जो चाहेंगे वोही होगा। दे मुझे अपने अंगवस्त्र।
मैं: यही दे दो। तू जा मैं तेरे कमरे में रख दूंगी।
अथर्व: अरे अभी दे दें, में जेब में घुसकर ले जाऊंगा।
मैं: तू मुझे भी बेशरम बना दे अपनी तरह।
अथर्व: जो दोनो हम दिल से चाहते हैं उसके लिए हम दोनो को बेशरम होना पड़ेगा।
अथर्व की बात सुनके मेरी आंखे शर्म से झुक गई, एक शर्मीली मुस्कुराहट पर चेहरे पर विराजमान हो गई। मैं उठी और अलमारी में से अपनी ब्रा और पैंटी निकाल के अथर्व के हाथो में दी।
अथर्व: कल सुबह इनको साधना वाले कमरे से उठा लेना और वहा पर एक बॉटल में जल होगा उसको ग्रहण कर लेना।
रात भर बेचैनी रही की अथर्व किस तरह की साधना कर रहा हैं। दिल ने चाहा की एक बार ऊपर देख के आया जाए पर फिर कही मेरा ठाकुर नाराज न हो जाए ये ही सोच के नही गई।
सुबह हुई अथर्व घर से बाहर गया हुआ था। मैं भाग कर साधना वाले कमरे में गई और देखा की मेरी ब्रा और पैंटी उसी जगह पड़ी हुई थी जहा पर रोज मेरा प्रसाद होता था। ब्रा और पैंटी दोनों पूरी तरह से अथर्व के वीर्य में भीगी हुई थी।
अग्निकुंड के पास एक बोतल पड़ी थी जिसमे जल था और मैने उसको माथे से लगाया और उस जल को ग्रहण किया, बड़ा ही कसेला स्वाद था, ऐसा लग रहा था जैसे वो मूत हो। पर उसको पीते ही शरीर में सुफूर्ति और एक अनजान ऊर्जा का संचार हुआ।
मैने नहा धो कर वोही ब्रा और पैंटी पहनी जो अथर्व के वीर्य से भारी पड़ी थी। पूरे दिन मुझे उसके वीर्य की तपिश अपनी चूत और चुचियों पर हुई। एक क्षण भी ऐसा नहीं गया पूरे दिन में जब मुझे अथर्व की कमी न खली हू। उसके वीर्य ने मुझे उसकेबेहसास से दूर ही नहीं जाने दिया।
शाम को जब अपने कमरे में गई तो एक पैकेट मेरी अलमारी में पड़ा था। जब उसे खोला तो देखती रह गई। उसमे कई सारे जोड़े ब्रा और पैंटी के थे। ऐसी पैंटी कभी देखी ही नहीं थी जो सिर्फ गांड़ की लकीर में घुस के रह जायेगी। ब्रा सारी पेडेड और नेट वाली। कम से कम १५ १६ सेट थे।
एक चिट्ठी भी थी।
ठाकुआइन तेरे अंगवस्त्र बड़े ही पुराने डिजाइन के थे। मैं चाहता हूं की मेरी रानी हमेशा टिप टॉप रहे इसलिए ये सब तेरे लिए। और हा एक जोड़ी अपने साथ ले गया हूं, कल सुबह ले लेना और जल नित्यक्रियम से ग्रहण करना। तुम्हारा और तुम्हारा ठाकुर।
चिट्ठी पड़ कर मुझे बहुत खुशी हुई की कोई मुझे इतना चाहता हैं। कभी सुशांत ने मेरी खुशी पे ध्यान ही नही दिया और अथर्व इतनी छोटी सी बात का भी ध्यान रखता हैं। मेरे चेहरे पर एक मुस्कराहट थी जो लड़की के होता पे तब आती हैं जब उसे पहला प्यार होता है, बिलकुल ऐसा ही मेरी मुस्कुटाहट भी और जेहन में सिर्फ एक नाम "काला नाग"
Awesome update❤❤.अध्याय ६
समय अपनी रफ्तार से चलता रहा। अथर्व और मेरी नजदीकियां बढ़ती जा रही थी। वो जब मिलता मुझे खुद से चिपका लेता। अपने लन्ड का एहसास कभी मेरी चूत या कभी मेरी गांड़ को कराता। उसकी चौड़ी छाती का स्पर्श हमेशा मेरी चूचियों पे रहता। उसके आलिंगन की कसावट हमेशा मेरी कमर पर महसूस होती। वो रोज मेरे लिए अपना प्रसाद छोड़ के जाता और मैं उसे किसी कुत्तियां की तरह चाटती, कभी उस प्रसाद तो अपनी चूत पे मलती कभी अपने आमों पर। मैं इतनी उत्तेजित रहने लगी की हर समय मुझे लंड की कमी खालती। मैं एक दम चुदासी रहने लगी। पर इक काम हो रहा था जिससे मैं अंजान थी, मेरे रूप यौवन में गजब का निखार हो रहा था। मेरी बेटियां मुझसे बोलती, पर मुझे लगता की में इनकी मां हूं इस वजह से बोल रही हैं।
(मैं कुछ ऐसी दिखने लगी थी।)
पर इसका अंदेशा तब हुआ जब मेरी छोटी बेटी अदिति की सहेली घर आई। अदिति ने अभी एक साल पहले ही अपना गांव का स्कूल खतम किया था। अदिति की सहेली दूसरे गांव से थी और पहली बार हमारे घर आई थी। अदिति ने उसे अपनी बहनों और मुझसे मिल वाया। उस लड़की ने मेरा अभिवादन किया पर बड़े ही अचंभे में थी। अदिति उसको लेके अपने कमरे में गई और मैं उन दोनो के लिए नाश्ता पानी लेकर गई तब मुझे कुछ सुनने को मिला।
सहेली: यार ये सच मैं तेरी मम्मी है।
अदिति: पागल हो गई हैं क्या। जब से आई हैं तब से यही सवाल पूछ रही हैं। लास्ट बार बता रही हूं ये औरत जो नीचे मिली थी वो मेरी मम्मी हैं। समझी!
सहेली: तेरी सौतेली मां होंगी, तेरे पापा ने दूसरी शादी करी होगी, तभी ये इतनी जवान हैं।
अदिति: पागल हो गई हैं क्या, ये मुझे जन्म देने वाली मां हैं। मेरे पापा ने कोई दूसरी शादी नही करी।
सहेली: यार कितनी सुंदर हैं तेरी मम्मी इस उमर में भी। तेरे पापा की तो लॉटरी लग गई। तेरे पापा तो इन पर लट्टू होंगे। हर समय आगे पीछे ही घूमते होंगे। यार कोई नही बताए की ये तुम सब की मम्मी हैं तो सामने वाला ये ही सोचेगा की तुम लोगो की बहन हैं। तुझ्से एक आद साल बड़ी या बराबर की ही लगती हैं। यार मैं लड़का होती तो इन पे तो फुलटू लाइन मरती।
अदिति: चल पागल कुछ भी बोलती है।
फिर उन दोनो में कुछ खुसफुसाहट हुई और दोनो हसने लगे, शायद चुदाई की बात हुई होगी और दोनो जोर जोर से हंसने लगी। मैं अपने यौवन की प्रशंसा सुन कर शर्मा गई और इस रूप पर गर्वांवित महसूस करने लगी।
एक बार एक लड़का मेरी बड़ी बेटी अंजली को देखने आया। पर मेरे रूप यौवन को देखकर वो बोला मुझे इससे शादी करनी हैं। गलती से उस दिन अथर्व भी घर पर ही था। किसी ने नहीं देखा जो मैने देखा। अथर्व की आंखे गुस्से से सुर्ख लाल हो गई थी। सब ने उस लड़के की बात ही हसी में टाल दिया, यह तक की पति ने भी पर शायद अथर्व ने नही। अगले दिन खबर मिली की समस्त परिवार का रोड ऐक्सिडेंट हो गया, जब वो हमारे घर से अपने घर जा रहे थे कोई भी नही बचा। मैने इसके बारे में अथर्व से पूछा तो वो बोला
अथर्व: पाप किया था उसने, सजा तो मिलनी ही थी। मेरी ठकुराइन की तरफ कोई आंख उठाके देखे तो उसको जीने को कोई हक नही है। जो मेरा हैं वो सिर्फ और सिर्फ मेरा हैं। समझी ठकुराइन।
और जोर जोर से हंसने लगा। अथर्व का ये बेपनाह प्यार कभी कभी मुझे डराता भी था, पर एक भरोसा होने लगा था उस पर की जब तक वो हैं, मुझे कुछ नही हो सकता।
३ महीने निकल गए अथर्व अब ज्यादतर घर पर ही रहता। एक दिन वो मेरे पास मेरे रूम में आया
अथर्व: ठकुराइन मुझे साधना के लिए तेरे अंगवस्त्र( मतलब ब्रा और पैंटी) चाहिए।
मैं: (चौंकते हुए) अंगवस्त्र वो क्यू।
अथर्व: अब से रोज शाम को तू मुझे अपने अंगवस्त्र देगी, रात में मैं साधना करूंगा और अगले दिन तू वोही अंगवस्त्र पहनेगी।
मैं: ये कैसी साधना हैं।
अथर्व: मैं अपनी साधना के आखिरी पड़ाव पर हूं, फिर मेरे जन्मदिन वाले दिन ये साधना पूर्ण होगी। फिर हम दोनो जो चाहेंगे वोही होगा। दे मुझे अपने अंगवस्त्र।
मैं: यही दे दो। तू जा मैं तेरे कमरे में रख दूंगी।
अथर्व: अरे अभी दे दें, में जेब में घुसकर ले जाऊंगा।
मैं: तू मुझे भी बेशरम बना दे अपनी तरह।
अथर्व: जो दोनो हम दिल से चाहते हैं उसके लिए हम दोनो को बेशरम होना पड़ेगा।
अथर्व की बात सुनके मेरी आंखे शर्म से झुक गई, एक शर्मीली मुस्कुराहट पर चेहरे पर विराजमान हो गई। मैं उठी और अलमारी में से अपनी ब्रा और पैंटी निकाल के अथर्व के हाथो में दी।
अथर्व: कल सुबह इनको साधना वाले कमरे से उठा लेना और वहा पर एक बॉटल में जल होगा उसको ग्रहण कर लेना।
रात भर बेचैनी रही की अथर्व किस तरह की साधना कर रहा हैं। दिल ने चाहा की एक बार ऊपर देख के आया जाए पर फिर कही मेरा ठाकुर नाराज न हो जाए ये ही सोच के नही गई।
सुबह हुई अथर्व घर से बाहर गया हुआ था। मैं भाग कर साधना वाले कमरे में गई और देखा की मेरी ब्रा और पैंटी उसी जगह पड़ी हुई थी जहा पर रोज मेरा प्रसाद होता था। ब्रा और पैंटी दोनों पूरी तरह से अथर्व के वीर्य में भीगी हुई थी।
अग्निकुंड के पास एक बोतल पड़ी थी जिसमे जल था और मैने उसको माथे से लगाया और उस जल को ग्रहण किया, बड़ा ही कसेला स्वाद था, ऐसा लग रहा था जैसे वो मूत हो। पर उसको पीते ही शरीर में सुफूर्ति और एक अनजान ऊर्जा का संचार हुआ।
मैने नहा धो कर वोही ब्रा और पैंटी पहनी जो अथर्व के वीर्य से भारी पड़ी थी। पूरे दिन मुझे उसके वीर्य की तपिश अपनी चूत और चुचियों पर हुई। एक क्षण भी ऐसा नहीं गया पूरे दिन में जब मुझे अथर्व की कमी न खली हू। उसके वीर्य ने मुझे उसके एहसास से दूर ही नहीं जाने दिया।
शाम को जब अपने कमरे में गई तो एक पैकेट मेरी अलमारी में पड़ा था। जब उसे खोला तो देखती रह गई। उसमे कई सारे जोड़े ब्रा और पैंटी के थे। ऐसी पैंटी कभी देखी ही नहीं थी जो सिर्फ गांड़ की लकीर में घुस के रह जायेगी। ब्रा सारी पेडेड और नेट वाली। कम से कम १५ १६ सेट थे।
एक चिट्ठी भी थी।
ठाकुआइन तेरे अंगवस्त्र बड़े ही पुराने डिजाइन के थे। मैं चाहता हूं की मेरी रानी हमेशा टिप टॉप रहे इसलिए ये सब तेरे लिए। और हा एक जोड़ी अपने साथ ले गया हूं, कल सुबह ले लेना और जल नित्यक्रियम से ग्रहण करना। तुम्हारा और तुम्हारा ठाकुर।
चिट्ठी पड़ कर मुझे बहुत खुशी हुई की कोई मुझे इतना चाहता हैं। कभी सुशांत ने मेरी खुशी पे ध्यान ही नही दिया और अथर्व इतनी छोटी सी बात का भी ध्यान रखता हैं। मेरे चेहरे पर एक मुस्कराहट थी जो लड़की के होठ पे तब आती हैं जब उसे पहला प्यार होता है, बिलकुल ऐसा ही थी मेरी मुस्कुटाहट भी और जेहन में सिर्फ एक नाम "काला नाग