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Adultery काला साया – रात का सूपर हीरो(Completed)

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AK 24

Supreme
22,058
35,843
259
UPDATE-68


देवश : फिलहाल तो वक्त नहीं सब ठीक हो जाए फिर (देवश ने मामुन को ये नहीं बताया की उसे नौकरी से निकाल दिया गया है क्या पता मामुन अफ़सोस जताए वैसे भी उसे अपने पर्सनल चीज़ें शेयर करने का कोई शओक नहीं था)

मामुन देवश से गले मिलकर मुस्कान देकर निकल गया…देवश ने उसे स्टेशन तक चोद दिया…मामुन के जाने के बाद…देवश वापिस घर लौटा…और अपने कमरे में आकर सुस्टते हुए लाइट गया इतने में…खिड़की से झाँक रहे ऊस शॅक्स ने अपना नंबर मिलाया जो दूरबीन को एक हाथ में लिए बारीक़ी से फोन के उठने के इंतजार में था

“हाँ भाई वॉ घर पे है अबतक तो कोई नहीं आया उसके वहाँ ठीक है भाई”…..खलनायक के आदमी ने अपनी दूरबीन को रखा और फिर झधियो से निकलकर चला गया…इधर देवश अनजाने मुसीबत से बेख़बर बस सो रहा था…इतने में दरवाजे पे दस्तक हुई

देवश की एकदम से नींद टूटी…ना घर पे कोई था कंचन तो गयी हुई है शीतल की शादी में दूसरे गाँव…रोज़ को घर मालूम नहीं..शायद दिव्या ही होगी…सोचकर देवश उठ खड़ा हुआ…हूँ तेज कदमों से दरवाजे की तरफ आने लगा…और दरवाजे के दूसरी तरफ गुंडे हाथों में हॉकी का डंडा और गुण लिए बस दरवाजे के खुलने की प्रतीक्षा में थे

दरवाजा एकदम से खुला..वो लोग सतर्क हो गये.दरवाजा अभी खुलता उससे पहले ही दरवाजे पे सटा ऊस गुंडे के पेंट से गोली निकल गयी…गुंडा वही पेंट पकड़ा गिर पड़ा..उसके मरते ही चारों गुंडे सावधान हो गये और वो भी कोई हरकत कर पाते किसी ने खैच के दरवाजे पे एक लात अंदर से दे मारी..दरवाजों सहित हूँ गुंडे हड़बड़ाकर सीडियो से नीचे गिरते चले गये

सामने काला साया खड़ा था..ऊस्की मुस्कान ऊन लोगों को बताने के लिए काफी थी की उनकी प्रतीक्षा में हूँ खुद पलखे बिछाए बैठा हुआ था…”साले तेरी मां की”…अभी दूसरा गुंडा उठके गोलीचलता…उसके गर्दन पे काला साया के फुर्रत चाकू का निशाना धस्ता चला गया..काला साय कूदके ऊन गुंडों पे हावी हुआ….ऊँका शक यकीन में तब्दील हो सा गया की कहीं ये देवश ही तो नहीं हूँ लोग बस ऊसपे टूट परे…चाहे हूँ बचे या नॅब अच्छे…अब ऊँका शिकार एक ही था

देवश ने फुरती से हॉकी के डंडे से ऊँपे वार करना शुरू कर दिया..और जब वो लोग अपने हत्यार निकल पाते…काला साया ऊँपे गोली दंग देता…पांचों के पाँच गुंडे वही मारें गये…काला साया ने फौरन अपने मुखहोते को उतारके इधर उधर देखा..और फौरन रोज़ को फोन किया…मोहल्ले की आस पास घर नहीं था…इस वजह से देवश को दोपहर के वीरान में लर्र्ने का मौका मिल गया..वो एक पल चारों ओर निगाह डालते हुए लाशों को अंदर ले आया…तब्टलाक़ रोज़ भी आ गयी और ऊसने देवश की ओर देखा

देवश : मुझे आए थे मारने…यक़ीनन अब मैं खलनायक का नेक्स्ट टारगेट हूँ

रोज़ : बाप रे अच्छा हुआ तुम सतर्क थे..मैंने तो तुम्हें शायद आज खो ही दिया था (रोज़ ने देवश के गले लगते हुए कहा)

देवश : जल्दी से इन लाशों को ठिकाने लगाना है…अगर कोई आ गया तो प्राब्लम हो जाएगी पुलिस को पता नहीं चलना चाहिए

रोज़ : ठीक है (रोज़ और देवश ने मिलकर ऊन लाशों को बारे ही अच्छे से जीप में डाल दिया…और फिर देवश खुद लाश को खलनाया के एड एक पास ले जाकर फैक आया)

निशानेबाज़ को फोन आया “दमनीत इतना घंटा लगता है एक इंस्पेक्टर की लाश यहां लाने को”…..निशानेबाज़ ने जो फिर सुना अपने गुंडों से दंग रही गया…जल्द ही हूँ घटना स्थल पे पहुंचा और अपने गुंडों की लाश देखी हर किसी के ऊपर स्प्रे से लिखा था काला साया..जिसे पढ़कर निशानेबाज़ का खून खौल उठा

खलनायक : वाहह एक इंस्पेक्टर को मर नहीं पाए तुम लोग हुहह जबसे मैं इंडिया आया हूँ तबसे ना हार नाकामयाबी ही झेल रहा हूँ…पहले तो रोज़ फिर हूँ इंस्पेक्टर और भी ये काला साया…ऐसा क्यों लगता है? जैसे ये तीनों एक दूसरे के कड़ी हो

निशानेबाज़ शर्म से सर झुकाए था…ऊसने खलनायक से पूछा की हूँ चाहे तो खुद देवश को खत्म कर दे..उसे एक मौका चाहिए…लेकिन खलनायक को सूझने लगा की नहीं एक बार पहले ही तो उसे चान्स दिया था..अब देना बेवकूफी है…हार मानके निशानेबाज़ चुप हो गया…खलनायक ने फिर से काला साया की तस्वीर को देखा और फिर कुछ कुछ सोचने लगा…तब्टलाक़ काला लंड भी अपने शिकार को पकड़ने के लिए तैयार हो चुका था

खलनायक : एक तुम ही मेरी उम्मीद हो काला लंड क्या तुमसे मैं होप रख सकता हूँ (काला लंड कुछ नहीं बोला सिर्फ़ चुप रहा)

खलनायक : हम मतलब तुम मुझे निराश नहीं करने वाले तुम्हारी ये दहेकत्ि आँखें ये क़ास्सी मुट्ठी साफ बता रही है की तुम काला साया का खून देखने के लिए बरक़रार हो..एनीवेस उसके ठिकाने का पता लगाओ साथ में निशानेबाज़ को भी ले जाओ आज मुझे किसी भी हाल में काला साया मुर्दा चाहिए…वैसे भी ज़िंदा तो उसे काला लंड छोढ़ेगा नहीं क्यों है ना? (खलनायक ने मुस्कुराकर काला लंड की तरफ देखा..जो गुस्से से बस हामी भर रहा था)

खलनायक के आदेश पे ही…निशानेबाज़ और काला लंड अपने गुंडों को लेकर निकल गये…तब्टलाक़ टीवी पे कमिशनर की इंटरव्यू को सुन खलनायक कुर्सी पे बैठ गया…उधर रोज़ और देवश भी टीवी न्यूज को देख रहे थे

“कहा जा रहा है आज कमिशनर की बैठक में ऊन्होने हमें सूचित किया है की वो अब इस शहर में और खून ख़राबा नहीं होने देंगे केवल 10 किलोमीटर दूर कलकत्ता से इतर जैसे छोटे शहर में आज उगरवादी और मुज़रिमो का दायरा बन सा गया है…खलनायक जैसे बारे इंटरनॅशनल अपराधी इस छोटे से शहर में हाहाकार मचा रहे है…कमिशनर ने बताया की आज हूँ ये निश्चय कर रहे है की खलनायक और उससे जुड़े सभी अपराधी मारें जाएँगे…ये फैसला ऊन्होने यक़ीनन आक्च के लिए लिया हो पर कहीं ना कहीं पब्लिक के दबाव और सरकार को जवाब देन एक लिए ही ऐसा निर्णय लिया गया है…अभी हाल ही में एक इंस्पेक्टर को बर्कष्ट कर दिया गया कारण ऊँका मुज़रिमो से जुड़े होने का अंदेशा था…कमिशनर अब चुप बैठने वाले नहीं”…….चुपचाप रोज़ मुस्कुराकर देवश की तरफ देख रही थी

देवश : ये कमिशनर बहुत बरबोला है सबकुछ पब्लिक ने करवाया है

रोज़ : वैसे ये क्या? मर पाएगा खलनायक को एनकाउंटर तो कर नहीं सकता

देवश : हम अपने लिए शायद खलनायक के हाथों खुद की क़ब्र खुद्वा रहा है..


रोज़ : हुम्हें कुछ करना च्चाईए देवश ये बात तरफ रही है…खलनायक बहुत खतरनाक है आज ऊसने अपने गुंडों को भेजा कल भी निशानेबाज़ का तुमपे हमला होना…कहीं हूँ ये तो नहीं जान गये की तुम ही काला साया

देवश : नहीं रोज़ ऐसा नहीं है…खैर अगर ऐसा होता भी है तो मैं तैयार हूँ मैं उसे खुद इस देश से मिथौँगा…चाहे कुछ भी क्यों ना हो? चलो देर करना ठीक नहीं गश्त लगाना शुरू कर देना चाहिए आज मैं कहलनयक के आदमियों का सफ़ाया हर हाल में करूँगा

रोज़ : शायद वो भी ढूँढ रहे हो

देवश बस मुस्कराया और ऊसने अपने लिबास को पहनते हुए बाइक स्टार्ट कर ली…रोज़ भी बाइक स्टार्ट करके निकल गये….उधर खलनायक कमिशनर के न्यूज को सुन गुस्से से तमतमा उठा….एक के बाद एक दुश्मन बढ़ते जा रहे है…और ऊँपे लगाम कसने की दूर खलनायक ऊँका कुछ कर भी नहीं पा रहा सोचते ही खलनायक का गुस्सा दुगुना हो उठा

हूँ बस मुस्कुराकर कमिशनर के बने तेलएवेरसिओं स्क्रीन पी आ रहे तस्वीर को घूर्र रहा था..और दूसरी तरफ काला साय की मौत का लुत्फ़ उठाने की कोशिश में न्ता….

“पक्की खबर है”…….खबरी ने निशानेबाज़ को बताया…निशानेबाज़ एक बार वन में बैठे सिगार फहूंकते काला लंड की तरफ देखने लगा….”हम गाड़ी स्टार्ट कर और बताए पाते पर ले चल”…….जल्द ही गुंडे ने गाड़ी स्टार्ट की निशानेबाज़ भी सवार होकर निकल गया पीछे खबरी की लाश पड़ी हुई थी

काला लंड और निशानेबाज़ को पता लग चुका था की खलनायक आखिरी बार कहाँ देखा गया है…लेकिन खबरी ने जो बताया था हूँ सीधे दिव्या के घर का पता था…जिसे आखिरी बार उसके खबरी ने ऊधर ही देखा..जल्द ही गाड़ी सन्नते भारी रात में रुक गयी..और ऊस सड़क के चारों ओर घूर्रते हुए गुंडे बाहर निकल आए..सिगार को भुजाते हुए काला लंड और निशानेबाज़ मौत बनकर देवश केन आए वाले घर की ओर ही आ रहे थे

उधर घर के अंदर देवश की तस्वीर लिए दिव्या अनके मुंडें सो रही थी….इस बात से बेख़बर की एक अनचाहा ख़ौफफनाक मुसीबत दरवाजे पे दस्तक देने वाला हैबिके को तेज रफ्तार से रोज़ और काला साया दोनों दौड़ा रहे थे…काला साया की निगाहों में ना जाने एक अज़ीब सी बेचैनी थी ना ही अपने लिए पर किसी और के लिए…ऊसने फौरन बाइक बीच में रोक दी जब रोज़ ने उसे आवाज़ दी…रोज़ के बाइक के रुकते ही…काला साया भी बाइक को रोकके रोज़ की तरफ गंभीरता से देखने लगा..रोज़ एक लाश के तरफ जा रही थी

बाइक को रोकके…काला साया भी पीछे पीछे रोज़ के आया..तो पाया सड़क के बीचो बीच एक अधमरी लाश पड़ी हुई है…ये कोई और नहीं खलनायक का ही खबरी था जिसे मौत के घाट उतारके निशानेबाज़ और काला लंड निकल गये थे…

रोज़ : ओह में..य गोद इसकी साँसें थोड़ी बहुत मज़ूद है

काला साया : अरे ये तो खलनायक का खबरी लगता है आई आंखें खोल्लो तू..एमेम त..हीक हो

गाल को थपथपाते ही…साँस खींचते हुए बड़ी ही मुश्किल से गोली की जगह को पकड़े खबरी ने अधखुली आंखें खोली तो सामने काला साया को देखा…

काला साया : क्या हुआ तुम्हें? किसने किया ये सब?

खबरी : आ..हे से..हायद भ..अगवांन की लात..पे… हे… एमेम..मैंन आ… उघ (खबरी ने ऐत्ते हुए काला साया के गेरेबेअं को अपने खून भरे हाथों से पकड़ा काला साया ने उसके हथेली पे हाथ रखकर उसे आराम से बताने को कहा)

खबरी : एम्म..मैंन्न आहह सस्स डब्ल्यू..आस के..हलननेकक के गुंडे को आपक.ए ग..हरर का पा..था दी..या हूँ आहह वो लोग आपकी त..आलशह में..आइन आहह निकल्ली हे

काला साया : क्या? किस तरफ गये है वो कौन से घर का पता दे दिया तुमने?? जवाब दो सी’मॉनणन (काला साया के दिल की बेचैनी और बड़ी और ऊसने सख्त इसे खबरी को झिंजोध दिया रोज़ ने मना किया)

खबरी : में..आंफ का..र्ना शायद ज़्..इंदगी में..आइन ईकक पुना का काम कर पौउू आपकी मदद कर सकुउ वॉ लोग कॉलेज स्ट्रीट की तरफ (अभी कुछ और कह पता खबरी ने दम तोड़ दिया उसका हाथ ज़मीन पे गिर पड़ा)

काला साया एकदम से हताश उठ खड़ा हुआ…रोज़ ने उसके कंधे को झिंजोधा “के..या हुआ?”…….काला साया ने रोज़ की तरफ हड़बड़ाकर देखा और फिर एकदम से चिल्लाया “न्नहिी दिव्या घर पे है शितत्त सी’आंटी”…….रोज़ इससे पहले कुछ समझ पति एक बार लाश बने खबरी को देख वो फिर बाइक पे सवार होकर काला साया के साथ निकल आ गयी

काला साया पूरी रफ्तार से बाइक को नये खरीदे दादी वाले घर की ओर मूंड़ चुका था…वहां तो दिव्या है वो किस हाल में न्होगी..ये सब सोच सोचकर ही काला साया का बदन काँप राह था…जल्द ही वो लोग बांग्ला पहुंचे…वहां पहले से खड़ी खलनायक के जीप को देख…दोनों सटरक होकर दौड़ परे

काला साय ने फुरती से अपने लॉन में छलाँग लगते हुए टूटी खिड़की से आर पार हो गया…”द्डिवव्या दिवव्याअ”……काला साया दौड़ते हुए सीडियो पे चढ़के ऊपर वाले कमरे की ओर भागा..रोज़ जैसे अंदर आई ऊसने हैरानी से काला साय को दिव्या का नाम पुकारते सुना फिर चारों ओर के टूटे चीज़ों को बिखरा पड़ा देख गंभीरता लाया

काला साया अभी कमरे की तरफ पहुंचा ही त…उसके चेहरे पे एक पीपे का वार हुआ और काला साया हड़बड़ाकर दो तीन सीडी से नीचे आ गिरा…रोज़ ने उसे उसी पल उठाया…इतने में सामने से आते काला लंड जिसके गेरफ्त में दिव्या थी और उसके साथ दो गुंडे को देखकर दोनों भौक्ला उठे…दिव्या चिल्ला रही थी

काला साया ने उठके फौरन अपनी नानचाकू निकाली और उसके सामने वाले गुंडे पे एक ही वार कर डाला…गर्दन को पकड़े वो गुंडा देह गया…काला लंड सीधे दिव्या को चोद काला साया से जा टकराया….तब्टलाक़ पीछे से गोली के हमले से बचते हुए रोज़ सोफे के पीछे जा छुपी…और ऊसने भी अपने हत्यारों को निकालके वार करना शुरू किया…”दिवव्याअ इधर आओ”…रोज़ उसके पास जाना चाहती थी पर गोलियों के वजाहो से सोफे से उठ खड़ी नहीं हो पाई
 

AK 24

Supreme
22,058
35,843
259
UPDATE-69


दिव्या डर के मारें सहेंटे हुए क्‍ाअल लंड को काला साया से लर्टे देख बुरी तरह सहेमने लगी..काला लंड ने काला साया को कभी दूसरे दीवार पे कभी दूसरी ओर पतकना शुरू कर दिया…काला साया दर्द के मार्िएन खड़ा हो नहीं पा रहा था…काअ लंड ने जैसे ऊसपे पीपे का वार करना चाहा..काला साया ने नानचाकू से बेदर्दी से काला लंड पे प्रहार करना शुरू कर दिया..काला लंड नानचाकू के दर्द से दहढ़ उठता…रोज़ तब्टलाक़ मोर्चा संभा ल्चुकी थी..और ऊसने फुरती से गुंडों पे अपने घातक हमले शुरू कर दिए और गुंडों को गोलियों से ही चली कर दिया

लोग डरे सहमने अपने घर में घुस चुके थे…किसी की हिम्मत नहीं थी जो इन लोगों के मामलों में दखल देते…काला साया को घूर्रते हुए काला लंड ने उसके नानचाकू को अपने हाथों में लेकर फ़ेक दिया..और ऊसपे लैंप का वॉर किया..काला साया बच निकाला…ऊसने इस बार हाथों से हाथ भेड़ने का फैसला किया और काला लंड पे टूट पड़ा…उसके मुँह पे छाती पे कंधे पे टांगों पे लात घुस्सें माअरएन शुरू किए..रोज़ ने भी तब्टलाक़ अंदर घुस रहे सभी गुंडों को अपने करते स्किल से डरहाशी करते हुए फाइरिंग कर करके ऊँका तममम कर डाला था..इतने में एक तीर सीधे रोज़ के गुण पे लग्के उसे गिरा देता है

रोज़ निशानेबाज़ को बाहर खड़ा पति है और उसके करीब भागती है….निशानेबाज़ ऊसपे तीर का वार शुरू कर देता है..लेकिन गुलाटी और करतब्बाज़ रोज़ पे इसका असर नहीं हो पता वो उसके हर हमले से बच निकलती है…काला लंड और साए एक दूसरे से हाथापाई कर रहे थे….ना ही कोई हार मान रहा था…काला लंड जैसे उसके पास आता…खैच के एक कोब्रा पूंछ उसके मुँह पे पढ़ चुका था ऊसने मुँह से खून उगल डाला और उसका गुस्सा सातनवे आसमान पे चढ़ गया

तब्टलाक़ दिव्या सहेंटे हुए बाहर निकल चुकी थी….लेकिन काला साया को पीटते देख वो रही नहीं पा रही थी उसके करीब आने की नाकामयाब कोशिश कर रही थी…इधर रोज़ खुद निशानेबाज़ से झुझ रही थी…काला लंड ने सख्त इसे काला साय के दोनों हाथ गले पे काश दिए…काला साया साँस घोटने लगा..वो तड़पने लगा…”नहीं छोड्धह दूओ”……दिव्या ने काला लंड के काससे हाथों को अलग करना चाह लेकिन उसे एक धक्का मर के काला लंड ने सोफे पे गिरा डाला

दिव्या ने फौरन एक पास पड़ी बोतल काला लंड के पीछे आकर उसके सर पे मर दी..काला लंड को कुछ असर नहीं पड़ा बस पीछे से रिस रिस के खून बहाने लगा…ऊसने काला साया को वही चोद दिव्या की ओर आँखें घुमाई दिव्याशींटे हुए पीछे होने लगी…काला लंड ने उसे धार दबोचा…काला साया ख़ास्ते हुए अपने बेहोशी हालत से उठने की कोशिश करने लगा

दिव्या के पल्लू को ऊसने खींच के फाड़ डाला और उसके सर को मज़बूती से पकड़े तस्वीर पे दे मारा…दिव्या चीख उठी..और वही दम सांडके गिर पड़ी…अचानक काला लंड की निगाह दिव्या के अधखुली छातियो पे पड़ी…उसके अंदर का शैतान फिर जागने लगा अबतक वो सिर्फ़ काला साय की प्रतीक्षा कर रहा था इसलिए ऊसने अबतक दिव्या को जीवित रखा था..लेकिन अब उससे सवर् नहीं हुआ और वो दिव्या पे टूट पड़ा..दिव्या चिल्ला उठीी “ड्ड..एवूससह बाकच्छाऊओ प्लीज़ मुझहेब अचाऊ देवस्सह”………काला साया का गुस्सा दहेक उठा और ऊसने उठके के बार काला लंड की तरफ देखा और अपने पास रखी स्टूल सीधे उसके सर पे बाजाद दी..स्टूल टूट के बिखर गया और करहाते हुए हुए काला लंड अकड़ते हुए उठ खड़ा हुआ..काला साया ने उसके मुँह पे दो घुस्से मार्िएन और उसके गले को दबोचते हुए गिरा दिया…रोज़ तब्टलाक़ अपनी करते डर मूव्स से निशानेबाज़ के मुँह पे एक लात मारते हुए उसे लुड़का चुकी थी..इओतने में ऊसने पास रखी गमले को उठाया और सीधे निशानेबाज़ के सर पे दे मर दिया निशानेबाज़ वही गिर पड़ा

काला साया ने पास रखी लैंप की तार को खेनचके काल लंड के गले पे बाँध दिया और उसके गले को ज़ोर से खींचा…काला लंड दर्द से तड़पने लगा सांस घुटने लगी….लेकिन वो बस नाखून से काल साया के काससे हाथों को जख्मी कर रहा था…ऊसने काला लंड को बहुत देर तक वैसे ही गले को तार से काससे रखा…काला लंड बेहोश हो गया…काला साय ने उसे चोद दिया और साँस खेंचते हुए दिव्या को उठाकर उसके गले लग गया

दिव्या रोने लगी….रोज़ जबतक अंदर आई तब्टलाक़ ऊसने देवश को यूँ दिव्या से गले लगा हुआ पाया..अचानक से काला लंड जो अब भी धीरे धीरे उठ रहा था उसे देख रोज़ ने उसके मुँह पे एक लात जमानी चाही पर काला लंड ने उसके पाओ से ही उसे उठाकर दूसरी ओर फैक दिया…रोज़ को घायल होकर दर्द से चिल्ला उठी

काला साया अभी पीछे मुड़ता उसके गर्दन पे वही तार काला लंड ने काश दी थी….काला साया ने फुरती से कोहनी का वार सीधे कालल अंड के नाक पे कर दिया…काला लंड मुँह पकड़े बेदर्दी से काला साया के मास्क को खींच चुका था….और उसी हालत में नाक से बहते खून से लड़खधने लगा..देवश ने अपनी फुरती से लत सीधे काला लंड के अंडकोष पे जमा दी और उसे गुस्से से लॉन के दीवार पे दे फ़ैक्हा…लॉन का दीवार टूट गया…और काला लंड सड़क के दूसरी ओर जा गिरा…घायल काला लंड पे अब भी देवश की निगाह ही थी इतने में निशानेबाज़ कब लरखरके लाहुलुहन देवश के चेहरे को देखकर हक्का बक्का हो गया

“इसका मतलब काला साया कोई और नहीं इंस्पेक्टर देवश है”………ऊसने मुस्कुराकर एक बार देवश की ओर देखा और अपनी तीर का निशाना एक आखिरी बार सांधा…लरखरत हुए…तब्टलाक़ दिव्या ने निशानेबाज़ को निशाने सांधते हुए 10 कदम दूर देख ही लिया था…वो ज़ोर से चिल्लाते हुए काला साया के सामने जा खड़ी हुई “न्न्नाहिी इय्ाआहह”….ऊसने अपने दोनों हाथ हवा में उठा दिए ताकि देवश को कहीं से तीर ना लगे..लेकिन उसके पेंट को चीरती हुई तीर आर पार हो गयी…दिव्या वही तिठके बैठ गई…जब द्वेओश को अहसास हुआ वो चिल्ला उठा “दिववववययाआआ”…..ऊसने एक बार तीर पे काँपते हुए हाथ रखा जो पेंट के आर पार थी और एक बार थपथपति दिव्या की ओर देखा जिसके आंखें बंद हो रही थी

रोज़ तब्टलाक़ बाहर निकल चुकी थी और ऊसने अपनी गोली सीधे निशानेबाज़ के टाँग पे दे मारी…निशानेबाज़ गोली खाके पीछे गिर पड़ा…”दिवव्या दिवव्यया प्लीज़ अनाखहे मत बंद करना दिव्या”……साँस घूंटति दिव्या बस लाहुलुहन मुस्करा रही थी

दिव्या : में..उजहहे नहीं पता त हां कििई आज ये सफफ़ा..र्र आह यहीी ख़टमाम हो जाएगा
देवश : ना…ही दिव्या ना..ही तू..एम्म मुझे मचोड्धह्के नहीं दिव्व..या दिवव्यवाआ
दिव्या : मुझे..माफ़फ कर देना पा..र्र में…ऐंन्न य..ई हां..सीन ला..म्हू को नहीं भुल्ला सकूनगिइइइ तू…मने मेरे दिल में ज..ओ जा..गया गयी आहह द..आह के..आरृंगिइइ की तू …हां..मेस्सा मेरे..ई आर..अहोगग्गगीए उउगघह उहगगघ (दिव्या और कुछ कह नहीं पाई ऊसने एक बार रोज़ की तरफ अधखुली नजारे से देखा और एक बार देवश के टपकते आँसुयो कीरर्र ओररर)


ऊसने धीरे धीरे काअंपते हाथों से दे..वॉश के आँसुयो को पोंछा…और उसे शुक्र्रीयादा कहक्की थाम गयी..उसके हाथ ज़मीन पे गिर परे…ऊस्की साँसें बंद हो गयी और ऊस्की आंखें वैसे ही खुली की खुली रही गयी…देवश ने रोते हुए उसके हाथ को उठाकर चूमा और उसे अपने सीने से लगा लिया….दिव्या मर चुकी थी

निशानेबाज़ किसी तरह उठके लंगदाते हुए गाड़ी की तरफ दौधा…”वोब हाग रहा है”……रोज़ ने ज़ोर से चीलाया….देवश की आंखों में गुस्सा दहेक उठा…और वॉ चिल्लाके उसके पीछे दौरा “रृक्क्क हरामज़ादे”………देवश ने फौरन निशानेबाज़ का गला दबोच दिया और उसे उठाकर दूसरी ओर ज़मीन पे पटक दिया…और उसके गोली लगे जख्म से गोली को अपने हाथों से ही खींचके निकाल डाला “आआआअहह”……निशानेबाज़ ज़ोर से तड़प उठाा

देवश ने फौरन निशानेबाज़ के बाए ओर फँसे तिरो को उसके छाती और बदन के हर हिस्सों पे बेदर्दी से गुस्सा डाला…निशानेबाज़ चीखता रहा…और रोज़ उसके बेदर्द मौत को देख सकती थी जानती थी अब काला साया नहीं रुकने वाला…आज उसका अपना खोया था और अब उसके दुश्मनों को उसका ये खून का बदला खून से ही चुकाना था…देवश ने दर्द में कार्रहते हुए रोते निशानेबाज़ की ओर देखा और पास रखिी एत उठा ली “य्ाआआआअ”……और ऊसने वॉ एत से निशानेबाज़ के मुँह को टुकुच दिया…रोज़ ने क़ास्सके अपनी आंखें बंद कर ली एत लूड़कते हे दूसरी ओर खून से सनी गिर पड़ी

देवश बस घुर्रटा हुआ निशानेबाज़ के लाश के ऊपर खड़ा था…रोज़ ने मौके को समझा और फौरन देवश को संभाला…पीछे के गाड़ी से काला लंड को गुंडों ने जैसे तैसे उठाया और फरार हो गये…देवश दिव्या के पास आया और ऊस्की लाश को उठा लिया अपनी बाहों में…रोज़ ने फौरन देवश के चेहरे को मास्क से धक्का आस पास के लोग खिड़कियो से दोनों को जाते देख रहे थे जिनके बाहों में एक लाश थी एक मासूम लड़की की लाश जिसका इस घटना से कोई लेना देना नहिता…

पुलिस जल्द ही आ गयी…लोगों से तफ़तीश हुई घर पे कोई नहीं था ना ही देवश और ना ही दिव्या…लोगों ने बताया की खलनायक के गुंडों ने हमला किया और दिव्या को जान से मर दिया..पर देवश ऊन्हें नहीं दिखा सिर्फ़ काला साया और उसके साथी रोज़ दिखी थी दोनों ने ऊस्की लाश को ली और चले गये बाकी के गुंडे भी फरार हो चुके थे….पुलिस जो देवश का खास था उसे देवश की चिंता सताने लगी और उसे ढूंढ़ना जारी किया उसे लगा शायद देवश खलनायक के केस के खिलाफ लरआई कर रहा था क्या पता? कहीं उसे भी ऊस्की मैड दिव्या के साथ मर तो नहीं दिया…उनकी आंखें तब गंभीर हो उठी जब किनारे ऊन्हें बेदर्दी से निशानेबाज़ की लाश मिली जिसका बेरहें कत्ल हुआ था…इंस्पेक्टर जनता था ये काम काला साया को छोढ़के कोई नहीं कर सकता…ऊसने दो कॉन्स्टेबल बंगले पे तैनात किए और बाकी लाशों के लिए आंब्युलेन्स का बंदोबस किया

दूसरी ओर…आग की लपतो में चीट्टा बनी जलती….दिव्या की लाश जल रही थी…बेहद चुपचाप देवश को जैसे एक सदमा लगा था…रोज़ ने उसके कंधे पे हाथ रखा और उसे अपना दिल मज़बूत करने को कहा…देवश के आंखों में सिर्फ़ दिव्या की वो प्यार भारी बातें घूम रही थी इतना कुछ किया था दिव्या ने उसके लिए…अपनी ही ग़लतियो से जो कोई भी कहे आज अपनी ही ग़लतियो से ऊसने दिव्या को खो डाला…आज अगर वो काला साया ना होता तो दिव्या शायद मज़ूउद होती…लेकिन इस खून भारी जंग में उसे अपनों को तो खोना ही था…देवश की निगाहों में रोज़ की एक ही बात सामने आई….की खलनायक को इसका मुआवज़ा चुकाना है और यह तुम ही कर सकते हो सिर्फ़ तुम काला साया….जलती चीता के लपतो में देवश की आंखें भी अंगार बनकर दहेक उठी…
दरवाजे की दस्तक को सुन…आज फिर दिल में जैसी बेचैनी दौड़ आई…ऊस वक्त मैं किचन में चाय बना रहा था…दराज़ में पड़ी थी रिवाल्वर बस दो कदम दूर छलके निकालने की डायरी..और इधर दरवाजे पे दस्तक बढ़ती ही जा रही है…मैंने फौरन चाय का गॅस ऑफ किया…और धीरे कदमों से दराज़ से अपनी रिवाल्वर निकाल ली…एक यही सेल्फ़-डिफेन्स के लिए मेरे पास था…मैंने फौरन दरवाजे के आध में खड़ा हो गया और दरवाजे की चिटकनी खोल दी

जो शॅक्स अंदर घुसा…उसे देखकर जो हाथ गुण उठाने के लिए खड़े हुए थे वो वापिस झुक गये….”अरे काकी मां आप?”…….सामने मेरी मुस्कुराती अपर्णा काकी खड़ी थी

ऊसने मुझे यूँ सकते में देख कारण जाना…मैंने रिवाल्वर रख दी उनके भी चेहरे पे गंभीर भाव था..लेकिन मुझे ज्यादा बताने की जरूरत नहीं हुई क्योंकि ऊन्होने फौरन मुझे बता दिया की मेरा अभी हाल कैसा चल रहा है कैसे मुसीबतों से झुझा हूँ और पुलिस की नौकरी भी चोद दी..बातों बातों में मैंने चारों ओर देखकर झट से दरवाजा बंद करके दो कुण्डी लगा दी

अपर्णा – अरे बेटा तू ठीक तो है इतना कुछ हो गया और तूने अपनी मां को फोन भी नहीं किया

देवश : हालत ही कुछ ऐसे थे काकी की फोन करने का मन ना हुआ आप भी तो शीतल की शादियो में व्यस्त थी और मैं खमोखाः आपके इस खुशहाल पल को यूँ

अपर्णा : बस बस बना दिया मुझे तूने पराया बहुत सुन लिया अब तू मेरे साथ मेरे घर में रुकेगा

देवश : नहीं काकी मां समझा करो

अपर्णा : नहीं वही कुछ नहीं चुपचाप चल और अच्छा हुआ पुलिस की नौकरी तूने चोद दी खमोखाः आएदीन के हो रहे अपराध ओह मां तेरे को ज्यादा चोट तो नहीं आई तू ठीक तो है ना इस्सह बच्चा को अकेला चोद दिया था मैंने

देवश : अरे मेरी फ़िकरमंद काकी मां चिंता क्यों करती है? तेरा देवश सही सलामत है तू बस ये बता शीतल की शादी कैसे हुई पहले तो कान पकड़ के माँफी माँगता हूँ की मैं अपनी बहन का कंयाडान ना करा पाया वहां आपके साथ नहीं आया

अपर्णा : ना ना इतना कुछ हो जाने पे कौन इंसान खुशी मना सकता है? खैर तेरी शीतल बहुत खुश है और यहां आई हुई है शादी के बाद रस्म हुई है कुछ दिन मायके में रहने की उसी लिए आज तेरे से मिलने का ऊसने प्रोग्राम भी बना लिया है…
 

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देवश : अरे तो रामलाल के साथ उसका विवाहित जीवन कैसा चल रहा है पूछा ऊस्से? कहीं कोई

अपर्णा : अरे बेटा हर औरत जब काली से खिलती फूल बनती है ना तो फिर उसे व्यतीत करना ही पढ़ता है हाँ बहुत खुश है शीतल तेरे से मिलने के लिए दोनों छटपटा रहे है आख़िर तू शादी में जो नहीं आया बहटू कफा भी है

देवश : छी छी छी छी और मैंने शीतल को तोहफा भी नहीं दिया कोई बात नहीं मैं अभी बाज़ार से उसके और रामलाल के लिए तोहफा ले आता हूँ और मां अब मुझे मना मत करना कुछ तो देने दे आख़िर मेरी बहन है

अपर्णा : अच्छा बाबा अच्छा किसने रोका है तुझे? खूब करना अपनी बहन को प्यार (अपर्णा काकी ने फिर मेरे बारे में बताया की ऊन्हें आस पड़ोस के मालकिन से पता चला और मेरे नये घर को देखने भी गयी थी वहां पुलिस ने घर को बंद करवा दिया है इसलिए वो चटपटाते हुए सीधे यही चली आई)

कुछ देर बात करने के बाद…अपर्णा काकी ने मेरे लिए खाना बनाया और फिर चली गयी उनके रुकने का दिल तो था पर रामलाल शीतल को यहां छोढ़के अपने क्वार्टर चला गया ये सुनकर मुझे अच्छा ही लगा चलो कम से कम मेरी नयी नवेली शादी शुदा बहाना को देख तो पाऊँगा जी भर के खुशी जैसे उमड़ सी आई थी मेरे आँगन में

फटाफट बाज़ार से दो जोड़ा सारी कीमती वाली खरीद ली…कॉन्स्टेबल धीरज मिल गया ऊसने मुझे घर तक चोद दिया और बोला की अगर कोई भी प्राब्लम लगे सर तो फोन कर दीजिएगा..मैंने उसे जाने को कहा…फिर आर्डर करके कुछ पकवान मँगवाए शाम करीब करीब 5 बजे तक शीतल अपने पति रामलाल के साथ आ गयी

वाहह उसे सररी में देखकर लंड एकदम बेचैन हो गया ऊस्की सुंदरता भी खिल गयी थी…शीतल मुझे देखकर जान चुकी थी की मेरे साथ हाल ही में क्या कुछ हुआ है वो मेरे से लग्के रोने लगी…मैंने उसे गले लगाया ऊस्की पीठ पे बँधे पेटीकोट के डोरे पे हाथ घुमाया और रामलाल से भी गले मिला…दोनों बहुत खुश थे…मैं क्यों नहीं आया बहुत कफा हुए…फिर ऊन्हें मानने में 2 घंटे लग गये..रामलाल को मेरे लिए बहुत अफ़सोस हुआ साथ एमिन शीतल को भी मैंने कहा फिलहाल तो मैं सिर्फ़ ऊन दोनों की खुशी सुनना चाहता हूँ

शीतल हम मर्दों के बीच हँसी मज़ाक का विषया बन गयी थी…शीतल शर्माके बर्तन ढोने चली गयी….रामलाल को मैंने पूछा की सबकुछ कैसा चल रहा है शीतल खुश तो है ना तुम्हारे साथ?….इतना पूछना था रामलाल ने मेरा हाथ पकड़ लिया “भैया मैं बहुत खुश हूँ सब आपकी वजह से आप नहीं जानते शीतल का यौवन इतना मधुर है की मैं उसके बिना एक सेकेंड भी नहीं रही पाऊँगा ऐसा लगता है नौकरी भी चोद दम आपके कहें मुताबिक मैंने उसे खेत में ले जाकर उसके साथ खूब खुलके बातें की और जैसा अपने बताया था उसे खुश करने को वो भी किया”…..उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया….मैंने ऊस्की खूब मजे लिए

शीतल भी खुश थी ये जान्ँके खुशी हुई पर अब बहाना जी अपने ही भाई से शर्मा रही थी…बीच बीच में टोकती क्या बातें चल रही है मेरे भैया और पति के बीच….कुछ देर में अपर्णा काकी भी आ गयी खूब हँसी मज़ाक का दौड़ चला…फिर पता लगा की शीतल को वो अगले माह लेने आ जाएगा…खुशी तो बहुत हुई लेकिन मेरा मकसद भी इसी वक्त में चल रहा था इसलिए खुलके शीतल से एंजाय करना भी एक सजा…अपर्णा काकी ने बोला की वो रामलाल को छोढ़ने जा रही है….पर शीतल ने मना किया बोली उसे और टाइम स्पेंड करना है मेरे साथ..पर अपर्णा काकी ने बोला भला वो अपनी पति को सी ऑफ करने भी नहीं जाएगी

रामलाल को शक ना हो मैंने ही शीतल को जाने कहा की 1 महीना तो है और हमारे रामलाल का क्या होगा ऊन्हें भी तो प्यार देकर आओ…रामलाल मुस्कराया शीतल भी झेंप सी गयी..फिर अपर्णा काकी रामलाल और शीतल को लेकर निकल गयी…मैंने शीतल को पहले से ही किचन में पकड़कर कान में फुसफुसा दिया की वो जैसे तैसे रात को यहां आ जाए…ये काम शीतल को खुद करना था

उसके जाने के बाद करीब करीब 7 बज गया..पर शीतल नहीं आई..रामलाल तो शायद ट्रेन में बैठ भी चुका होगा….कुछ देर बाद शीतल की आवाज़ आई दस्तक देते हुए दरवाजे पे..मैं तो पहले ही तैयार था..और दरवाजा खोल के उसे अपनी बाहों में कैद कर लिया..शीतल एकदम शर्मा गयी “क्या भैया आप तो अपनी शादी शुदा बहन को शादी के भी नहीं चोद रहे”…..मेरे बालों से कहलते हुए…”क्या करे? बहाना हो ही तुम ऐसी चल आ बैठ तेरे से अब खुलके बात करूं”……..मैंने शीतल को बिस्तर पे बिठाया और अच्छी तरह से चारों घर का दौरा किया….मुझे पता है मजे में खलल तो पहुंचने वाला शैतान हमेशा होता है…फिर कमरे में आकर दरवाजा खिड़की सब बंद कर दिया…रोज़ का फोन आया और उसने बताया की वो दौरे पे है मैंने उसे झूठ कह दिया की मेरे घर पे अपर्णा काकी आए हुए है…रोज़ ने आपत्ति की उसे लगा शायद इस वक्त जाना ठीक नहीं…मैंने उसे सावधान रहने को बोलकर फोन कट कर दिया

तब्टलाक़ शीतल हाथों के बाल बिस्तर पे बैठी मुझे प्यार भारी अदायो से देख रही थी…”और भैया श मां इस्श इतना चोट कैसा लगा आपको?”……मैंने अपनी बनियान जैसे उतारी मेरे पीठ पे लगे चोट और पट्टी को देख ऊसने सवाल करा..उसे बताने के बाद उसके आंखों में भी आँसू आए पर वो खुश थी की मैं सुरक्षित हूँ…मैंने उससे अपना बताने के लिए पूछा

शीतल : मां तो चोद ही नहीं रही थी…मैंने बोला की भैया बुला रहे है आज वो मुझसे काफी प्यार करना चाहते है

देवश : अच्छा तू अब मुझे सुलही पे चढ़ाएगी अगर मां को पता चल गया तो


शीतल : अरे भैया शीतल ऐसी चीज़ है जो किसी को भनक ना लगने दे खैर भैया आपको पता है रामलाल ने मेरे साथ क्या किया?

देवश : क्या किया? (सुनाने को तो मैं भी बेचैन था ओसोसके मुँह से हालकनी मेरे सारे तरक़ीब जो रामलाल ने इस्तेमाल किए और मुझे बताए वही वो भी बता रही थी)

शीतल को वो खेत ले गया…और वहां ऊसने ऊस्की चुत चानति…और उसे मजा दिया…ऊसने शीतल को भी अपना लंड चुस्वाया…पहले तो ऊसने साफ इनकार किया…लेकिन शीतल के मनपसंद रसगुल्ले दिखाने पे शीतल शर्मा गयी…शीतल ने भी रामलाल का लंड छूसा और फिर उसका दिया हुआ रसगुल्ला खाया..रामलाल ने शीतल को काफ टाइम देना शुरू किया…और उसे गंदी गंदी पिक्चर दिखाने ले जाने लगा…उसका कहना था की मेरे से भी ज्यादा रामलाल ठरकी है…शीतल को वो बहुत देर तक मजा देता है..और अब शीतल भी शादी के बाद बहुत चुदासी हो गयी है..अभी तक दोनों में से किसी ने बच्चा लेने की सोची नहीं है…देवश ने शीतल को बधाई दी

देवश : हम ये बहुत अच्छा हुआ चल तू खुश तो है ना
शीतल : हाँ लेकिन शायद मेरे बिना आप खुश नहीं भैया
देवश : तो खुश कर दे (मेरे हाथ ने तुरंत शीतल के पल्लू को गिरा डाला)

शीतल बेशरम सी हो गयी थी वो खुद उठके अपने ब्लाउज के स्तनों मेरे सामने खड़ी होकर खोलने लगी…फिर ऊसने अपनी पेटीकोट के नारे को भी खुद ही खोल डाला…”मैं तो रामलाल के सामने ऐसे ही पेश होती हूँ रोज़ रात लेकिन लगता है आज भैया मुझे नहीं छोढ़ने वाले”….शीतल ने होठों के बीच उंगली रख आँख मारी..और अपने पेटीकोट को खोल के उतार दिया ऊसने एक छोटी सी फ़िटे वाली पैंटी पहनी थी….जो बिकिनी ज़्ीडा लग रही थी…ये भी रामलाल की चाय्स थी

शीतल ने वो कक़ची भी उतार डाली अब उसके भारी भरकम मांसल जांघों के बीच एक अच्छा ख़ासा झाँत उगा हुआ था..और ऊस्की नीचे से चुत भी ऊस्की गहरी काली खाई में खो सी गयी थी ऊसने पलटके अपने भारी नितंबों का भी दीदार कराया..अपने नितंबों को उचकके घोधी बनकर मुझे अपनी गान्ड की फहांक दिखाई उसके भी इर्द गिर्द थोड़े बाल उगे हुए थे बस गोल गहरा छेद दिखाई दे रहा था

मैं संभाल ना पाया..और अपनी बहन के ब्लाउज को धीरे से हटाया…बहन के छाती पेटीकोट से बाहर निकल आए…उसके मोटे निपल्स को मुँह में लेकर चूसे बगैर मैं रुक ना पाया..और बड़ी बड़ी से दोनों चुचियों को मुँह में भर लिया “हाँ भैया ऐसे ही चूसो ना हमारी आहह”……शीतल ने मुझे अपनी छाती से चिपका लिया..और मैं ऊस्की छातियो को ज़ोर से दबाने लगा शीतल और मेरे होंठ एक दूसरे से भीढ़ गये जुबान लार्न लगे होंठ गीले थूक से तरबतर हो गयी…शीतल की छातिया को मैं हाथों से मसलते हुए उसके होठों का जोरदार चुम्मा ले रहा था…शीतल की आंखें मंडी हुई थी

फिर शीतल को लाइटाया और ऊस्की टाँगें फैला दी…मैं उसे बिस्तर पे लैटाके घुटनों के बाल फर्श पे कुत्ता बनकर बैठ गया और ऊस्की मधक मनमोहक खुश्बुदार चुत पे जुबान फहरने लगा…ऊस्की झांतों भारी चुत को चूसने में जो मजा आया वो लाजवाब था…मेरी आग भधकी हुई थी वैसे इतने दीनों बाद आज ही इतने महीनों बाद बहन पे न्योछावर कर रहा था….ऊस्की चुत में मुँह लगा लग्के उसके अंगूर जैसे दाने को चूसा और ऊस्की गुलाबी फहाँको में जितना हो सका उतना जीभ रगड़ा घुसाया चाटना..छूसा सबकुछ किया

शीतल इस बीच मेरे बालों को सहलाने लगी…जब ऊस्की चुत मेरे लंबो से अलग हुई तो वो रस से तरबतर थी..”आहह भैया आहह ज़ोर से बारे ज़ोर से सस्स आहह हाइईइ दैया मैं गाइिईई”……शीतल का शरीर ज़ोर से अकड़ा और वो झधने लगी…उसका बरसता पानी मेरे चेहरे पे पढ़ने लगा…वो ठप ठप्प की आवाज़ अपने चुत पे मारते हाथों से निकालने लगी फिर अपनी ही चुत में उंगली की…ऊस्की चुत बेहद गहरी हो गयी थी चुदाई करते करते

मैंने उसे उठाया और पाओ तक सर को झुका दिया…अब ऊस्की गुकछेदार बालों के बीच के छेद पे मैं अपना लंड रगड़ने लगा..ऊसने बोला वो चूसना चाहती है लेकिन मुझे चुदाई की जल्दी थी…मैंने उसके गान्ड के छेद पे थूक खाकरते हुए फैका और उसे अंगुल से खोलना चाहा…फिर लंड को छेद पे दबा दिया..शीतल काँप गयी और मेरा लंड भी बारे ही सटाक से अंदर प्रवेश कर गया…गान्ड काफी पहले से सख्त थी…”ऊन्हें गीन आती हे भैया आहह इसलिए गान्ड नहीं मारते”……शीतल ने झुके झुएक ही मेरे लंड को गान्ड में महसूस करते हुए करहते हुए कहा

मैंने उसके गान्ड में फकच से लंड घुसाय और निकाला..और फिर बहुत आहिस्ता धक्का मारने लगा….शीतल पाओ पे हाथ रखकर खड़े खड़े झुककर चुद रही थी ऊस्की दबी आवाज़ सिसकियों के साथ साथ दर्द भी निकल रही थी…मैं उसे खूब काश क़ास्सके धक्के पेल रहा था..तप्प ठप्प फिर फ़च फ़च्छ…जैसे ही एक बार लंड अंदर धीमें सरकता फिर ऊस्की पेंट पे हाथ क़ास्सके 2-3 धक्के मारता करार करार…शीतल की तो जैसे जान निकल रही थी वॉ भी आहह आ आहह करके चुदवाती रही फिर मैंने लंड ऊस्की गान्ड के छेद से बाहर खींचा…और फिर शीतल को बिता ही दिया
 

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अब उसके मुँह में मेरा लंड था अपने गान्ड की आंद्रूणई महक और मेरे लंड के निकलते रस की मिली जुली खुशबू उसके मुँह में थी..जिसे सूँघके वो बदहवासी सी हो गयी थी बॅस उम्म्म्म एम्म करते हुए चुस्सें जा रही थी….फिर ऊसने मेरे अंडकोषो को भी मुँह में भरके चुस्सा…और फिर लंड को मुट्ठी में लेकर उसे तैयार करने लगी…ऐसा लगा जिसे अब तो मैं झड़ ही जाऊंगा

उसे मैंने अपने ऊपर सवार किया और गान्ड से उठाया…अब उसके चुत में लंड को टिकाया और ऊसने खुद ही लंड पे चुत को एडजस्ट करके खुद को बिठाया..अब वो मेरी गोदी में थी और मैं नीचे से उसे चोद रहा था….शीतल करारी कराई धक्को की सिसकियां निकाल रही थी…ऊसने चेहरा ऊपर कर लिया था मानो जैसे इस सुकध अहसास को वो झेल नहीं पाएगी ऊस्की चुत रस छोढ़ने लगी…जो मेरे पाओ और तंग से टपक रहा था..चुत बेतरती से गीला था…और मेरा लंड आसानी से अंदर बाहर प्रवेश हो रहा था हम दोनों की साँसें टकराई एक दूसरे को पागलों की तरह चुमन्ना शुरू किया होंठ चूसे जुबान से जबान लगाए एक दूसरे के मुँह में थूक उगला और मैं भी अकड़ते हुए उसी की चुत में झड़ गया उसे मैं लगभग पकड़ा ही रहा गान्ड पे एक हाथ एक हाथ उसके कमर पे क़ास्सके रखे ही रहा..जब मैं स्थिर हो गया तब हांफते हुए हम दोनों बिस्तर पे देह गये

वो मुझसे लिपट गयी..और मेरे लंड की निकलती बूँदो को निचोढ़ने लगी….करीब 9 बजे तक मैंने उसके साथ मनचाहा प्यार किया…इन घंटों के बीच उसे फिर 3-4 बार चोद दिया…मेरी हालत बहुत ताकि हुई सी हो गयी…ऊसने नंगे ही उठके मेरे लिए खाना बनाया और फिर गुसोल करने चली गयी….अचानक घंटी की आवाज़ सुनाई दी मैं सकपकके पास रखी पिस्तौल को हाथों में ले लिया…ऊस वक्त शीतल नहा रही थी…उसे पता नहीं लगा…मैं खुद ही पजामा पहनकर झट से दरवाजा खोला सामने अपर्णा काकी थी वो मुझे मुस्कुराकर देख रही थी वो शीतल को लेने आई थी “अब हो गयी बहन-भाई के बीच बातें अब चल भी शीतल कितना टाइम लगाएँगी भाई को भी आराम करने दे”…..सच ही कहा था ऊन्होने आराम ही तो करना था मुझे मैं भी मुस्कराया

अपर्णा काकी शीतल के तैयार होते तक ठहरी फिर ऊसने पूछा की शीतल अभी नहाई क्यों?…शीतल सकपका गयी पर्म आने बताया की उसे गर्मी लग रही थी और उसे जो सारी दी शायद उसका काप्रा मोटा है….अपर्णा काकी बस हस्सने लगी ऊन्हें शक ना हुआ…शीतल को लेकर दोनों को विदा करके मैं बिस्तर पे पष्ट हो गया…एक बार सोचा क्यों ना रोज़ को फोन करके हाल चाल पूछ लू? पर उसका फोन नहीं आ रहा था

मैं तैयार होकर आज पहली बार गश्त लगाने बाहर निकाला….काला साया बनकर जब अपने ख़ुफ़िया घर के भीतर बने अनॅलिसिस ऑफिस आया तो वहां भी रोज़ नहीं थी…शायद वो अब भी बाहर हो पूरी रास्ते गश्त लगाकर मैं वापिस घर आया..पर रोज़ कही न्ना मिली..मुझे लगा शायद वो अपने घर चली गयी हो उसका घर तो देखा हुआ नहीं था ना ही कभी पूछा अचानक दरवाजे के नीचे बाहर एक लिफाफा पड़ा हुआ था

मैंने उसे उठाया और ऊसमें एक सीडी देखी…उसे फौरन घर में घुस्सके डिस्क प्लेयर पे लगाया…वीडियो के ऑन होते ही जो देखा उससे मेरी साँसें अटक गयी…सामने मेरा चेहरा था और निशानेबाज़ की लाश के ऊपर मैं खड़ा…ये तो क्सिी वीडियो का क्लिप है उसके बाद एक भयंकर चेहरा चेहरा नहीं मुखहोटा..खलनायक का

खलनायक : इंस्पेक्टर देवश ना ना काला साया क्यों भैसाहेब? तो आप ड्युयल रोल में काम कर रहेः आई और हम सोच रहे है हमारे दुश्मन दो हाहाहा (तहकाल अगाते हुए ऊसने सिगरेट का धुंआ फहुंका) खैर जो भी हो तुम्हारी पार्ट्नर मेरा पहला प्यार यूँ बोले तो तेरा मेरा प्यार पीछे है मेरे


खलनायक के हटते ही स्क्रीन पे रोज़ एक चेयर पे बँधी बेहोश थी…खलनायक ने उसके गर्दन पे अपने होंठ रगड़ें..मेरा पारा चढ़ रहा था “हां हां हां ये चुंबन तो मैं इसे जिंदगी भर दूँगा काला साया क्योंकि ये मेरी है..लेकिन तेरा क्या? तूने जो शांटराज की बाज़ी आंखों में धूल झूँकके सबको उल्लू बनाया और क्‍ाअल साया बना रहा वो तू मुझपर नहीं कर सकता डर मत क्सिी को नहीं बताऊंगा जैसे मुझे तू नहीं जनता किस इस मुखहोते के पीछे कौन है? सिर्फ़ एक ही बात कहूँगा वीडियो के और होते ही एक अड्रेस शो होगा उसे पढ़ लेना और बताए जगह पे आ जाना क्योंकि जो तू चाहता है वो मैं भी चाहता हूँ रोज़ को पाना है और मुझे रोकना है तो आजा”………खलनायक का ओपन चॅलेंज सुनकर मैं चुपचाप बस उसे घूर्रता रहा

उसके बाद वीडियो ऑफ हो गया एक काले स्क्रीन पे लाल लाल फ़ॉन्ट पे अड्रेस शो हुआ…मैंने ऊस अड्रेस को पढ़ा और फौरन उसी पल दिमाग सकते में हो गया “अफ रोज़ काश तुम्हें मैंने अकेला नहीं छोडा होता..दिव्या के खोने के बाद मुझे अब रोज़ को खोने का डर सटा रहा था रोज़ उनके क़ब्ज़े में है और मुझे इस शायर की मांड में अकेले ही घुसना होगा”…….मैं चुपचाप बस अपनी काला साया के दिमाग से प्लान का जाल बुनने लगा

वीडियो की सीडी बाहर निकालके उसे मैंने फिर दराज़ के अंदर फ़ेक दिया…दिल इतना ज़ोर से गंभीर था की काअं और दिमाग सब सुन्न सा पार गया था…करूं तो करूं क्या? आज पहली बार काला साया को कोई ऐसा टक्कर का दुश्मन मिला था…मैंने फौरन दराज़ से अपनी रिवाल्वर निकाली और उसे पॉकेट में रख लिया

दूसरे ही पल मैं जीप पे सवार होकर रफ्तार से जीप को रास्ते पे दौड़ा दिया…पूरी तेज रफ्तार में बस मुझे अपनी नजारे के सामने रोज़ के जिस्म पे खलनायक हाथ फेराया दिख रहा था…ना जाने वो उसके साथ कैसे कैसे शरामणाक हरकत कर रहा होगा…रोज़ का प्यार मेरे लिए इतना ख्याल रखना…और ऊसपे हुए खलनायक के सितम सब दिमाग में जैसे घूमें लगा…दूसरी ओर दिव्या जो मुझे छोढ़के चली गयी उसका खून से लथपथ चेहरा मेरे सामने था ऊस्की लाश जिसे मैंने गोद में रखा था सबकुछ महसूस कर सकता था मैं

जल्द ही अपने इल्लीगल गुण के व्यापारी से मिला ऊसने मुझे एक सिल्वर कलर की हॅंड्ग्यून दी और फिर ऊस्की कुछ बातें बताई मैंने उससे एक-47 की दो बंदूक ले ली और साथ में बहुत से बुलेट्स..आजतक उसके व्यापार को मैंने कंट्रोल कर रखा था इसलिए ऊस्की मेरे सामने कुछ भी नहीं चलती थी….मैं वापिस गाड़ी पे सवार हुआ बताए जगह पे पहुंचने से पहले ही गाड़ी रोक दी

मैंने अपने एक-47 को दोनों हाथों में ले लिया और धीरे धीरे दुश्मन के बसे पे पहुंचा…इलाका सुनसान था या फिर वजह कुछ और थी…मुझे मारने का पूरा इंतजाम किया था खलनायक ने शायद वो मेरी प्रेज़ेन्स को बखूबी जनता था..लेकिन आज मेरे दिल में डर कम और गुस्सा ज्यादा उबाल रहा था…मेरे साथ कोई नहीं था अंदर रोज़ बेबस पड़ी होगी
 

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यही सोचकर मैं गाड़ी पे सवार हो गया और सीधे गाड़ी को फुरती बढ़ता से पोर्ट के वेरहाउस के करीब ले आया…अचानक से मुझपर तढ़ तढ़ करके गोलियां स्टार्ट हो गयी अब इतनी रात गये क्सि किस जगह से वो लोग चुत कर रहे थे पता नहीं लेकिन जब सामने के गुंडों को देख पाया तो ऊन्हें अपनी गाड़ी से ही राउंड डाला…मैं गाड़ी में ही छुपा रहा और गाड़ी को ड्रिफ्ट करते हुए रोक दिया..मैंने ऊपर की डीक्की का दरवाजा खोला और अपनी फ्री हेंड बाइनाक्युलर को क्लोज़ करके नाइट विषन मोड ऑन किया..टांक पे वेरहाउस के ऊपर जहां जहां वो छुपे थे वही पे फाइरिंग स्टार्ट कर दी कुछ तो बच गये और कुछ भाग खड़े हुए

ऊन्होने ने भी मुझपर तबतोध गोलियां चलानी शुरू कर दी….मैं गाड़ी से निकलकर पूरी लूड़करते हुए गिरते पारट वेरहाउस में जा घुसा…गुण की गोलियां चलनी फिर शुरू….इस बार मैं रहें नहीं करने वाला था सीधे बीच में ही चलने लगा और जो भी सामने आया ताबड़टोध गोलियां बरसानी शुउ कर दी…सीडियो पे चढ़ते हुए खड़े गुंडों को मारते हुए उनकी लाशों से चलते हुए और मैं ऊपर आया…फिर दूसरी ओर से आ रहे गुंडे पे फौरन एक-47 की गोलियों की बौछार कर दी….जो इधर छुपे थे सब मुझपर हमला करके अपनी गुण को रिलोड कर देते लेकिन आज मेरे सामने कोई टिकने नहीं वाला था…एका एक मैं बसे में मेरे सामने आते सभी पे गोलियां डाँगते जा रहा था एक गुण खत्म होती तो दूसरी एक-47 तैयार मैं जानभुज के गोली ऐसी जगहों में मारता की वो बेवकूफ़ गुंडे सामने आ खड़े होते….और ऐसा करते करते मैं अब वेरहाउस के दूसरी मंजिल पे पहुंच गया

अचानक फिर गोली स्टार्ट हो गौ इस बार मेरे बुलेट प्रूफ जॅकेट्स पे तीन चार लग भी गयी…मैं लुढ़क्के एक ओर हो गया और फिर अपनी गुण को रिलोड किया…और अपने हेंड ग्रीनेड का शेल कीचते हुए सीधे पास खड़े आ रहे गुंडों के तरफ लूड़कके फिख् डाला…बद्धाम्म एक जोरदार धमक हुआ और लोहे के जीने पे खड़े सबके वही दरशाही हो गये सिर्फ़ चारों ओर धुंआ चुट्त गया…मैं धुए से निकलकर पांचों गुंडे पे हावी हो गया और अपनी एक-47 ऊँपे दंग दी

“भाई ऊसने हमारे सारे गुंडों को अकेले ही खत्म कर दिया”……एक आदमी भौक्लते हुए बोला….खलनायक जो सोई रोज़ के ज़ुल्फो से खेल रहा था उठके मुस्कराया “आने दे आने दे थोड़ी हवा आने दे वैसे भी रोमीयो को कभी जूलिएट नसीब ही नहीं हुई”……..तहाका लगते हुए मुस्कराया खलनायक

मैं ओसोक्ी चाल में यक़ीनन फ़सस्ता जा रहा था मेरा समय और एनर्जी दोनों खर्चो हो रही थी….लेकिन एक के बाद एक गुंडे मेरा रास्ता रोके हुए खड़े थे…अब यहां मुझे फुरती से काम लेना था….फौरन गुण को रिलोड किया और एक ओर गोली मारी…सारेई न्गुंदे उसी ओर गोली चलाने लगे कुछ मेरे नज़दीक आए….मेरा नानचाकू उनकी प्रतीक्षा कर रहा था जैसे ही आए सटास से उसके गले पे चैन घूमता हुआ दबा दिया और दूसरे के माथे पे इतनी ज़ोर का प्रहार किया की वो वही देह गया…मैंने सोच लिया था की किसी गुप्त जगह पे ही खलनायक छुपा पड़ा हुआ है…और मुझे भी उसी लाइन में जाना है….फौरन पास के चिम्नी को देखते हुए मुझे कुछ कुछ आइडिया आया और मैं गुप्तिए चिम्नी में घुस्सता चला गया चिम्नी ना कहक के मैं उसे गुप्त रास्ता काहु तो ज्यादा बेहतर होगा

मैं धीरे धीरे चारों तरफ घुमके बड़ी ही कठिनाई से बीच बीच के जलियो में देखते हुए जा रहा था ऑफिस बंद परे मशीन के ऊपर के चिम्नी से मैं होते हुए सीधे सर्क्यूट वाइर्स जो अब बंद हो चुके थे उसके पास आया और जल्दी से ना जाने क्यों ऊन सिरकूत्स को चाकू से कांट दिया…खलनायक के कमरे की और शायद बाकी जगहों की लाइट्स कट हो गयी….मैंने फौरन एक जाली पे एक लात मर के ऊस्की फाटक को खोल के फैक दिया और सीधे नीचे धाधाम से गिर पड़ा

चोट तो आई पर मुझे अब अपना हत्यार संभालना था…”भाई वो मिल नहीं रहा शितत”…….गुंडे अंधेरे में ही खड़े डाल बनकर मुझे ही ढूँढ रहे थे….”मदारचोढ़ो उसे जल्दी ढुंढ़ो वरना एक एक की टाँग!”…धाधम्म्म…अचानक से खलनायक का दरवाजा टूट पड़ा…और मुझे सामने एमेग्ेर्नेसी लाइट में कहरा खलनाया और साथ में एक ओर बैठी रोज़ दिखी


उसके गुंडे मुझपर तबतोध गोली चलाने ही वाले थे मैंने ऊन्हें अपने गुण से ही चुत कर दिया…खलनायक बचते हुए मेरी ओर गोली चलता है जो मेरे बाज़ू को छू के निकल जाती है पर मैं हौसला बनाए रखता हूँ और ऊन गुंडों को गोली से आख़िरकार चुत कर देता हूँ…अब सामने लाशें और खलनायक और एक जगह रोज़ ही थी…बाकी गुंडे मुझे ढूँढते हुए गोली की आवाज़ सुनकर खलनायक के कमरे की ओर आ रहे थे मैंने लोहे के दरवाजा को ऐसा बंद किया अब उसके खुलने के तो चान्सस नहीं थे वो बस धक्के देकर गोलियां बरसा रहे थे जो कोई काम नहीं कर पा रहा था

खलनायक : वाहह रे वाहह आख़िरकार अपनी महबूबा को बचाने के लिए तू इतने जल्दी यहां भी आ गया मेरे गुंडों को भी मर गिराया वाहह
काला साया : आबे ओह सनकी इंसान तेरा अब पाँसा फैक्ना बंद अब तंशा देखेगा तू अपनी ही मौत का
खलनायक : भैया जी बहुत आए बहुत लोग मारें गये पर मुझ तक पहुंच नहीं पाए या यूँ कह लो मेरे इंस्पेक्टर भाई देवश

मेरा माता टांका य..ईयीई के..या बॅया..क्वास्स है? “तेरा भी मेरा ना कोई सगा है ना कोई अपना सब मर चुके”…..मैंने जाने की उक्सूता जाहिर की शायद उसे मेरे बारे में पता चल गया हो पर वो भी अपनी आइडेंटिटी रिवील कर दे….मैंने ऊस्की ओर तिठकते हुए ड्कहा गुण तो उसी की ओर पॉइंट करके था..लेकिन ऊसने एक छोटा पिस्तौल रोज़ के माथे पे लगा दिया उसके होश में आते ही वो भी हड़बड़ा गयी मुझे यूँ इस हालत में देखकर भौक्लाई पर खलनायक ने उसे चुप रहने को बोला…”खैर तू अपना ये मुखहोटा उतार फ़ेक मैं वादा करता हूँ की तेरे साथ सही तरीके से पेशौँगा”…….मैंने मुस्कराए ना में इशारा किया…”तू जो करना चाहता है कर ले पर रोज़ को जाने दे”……..मैंने गुस्से में तमतमाता

खलनायक : ओह हो मैं तो भूल गया बड़ा प्यार है तुझे इस पे खैरर तुझे सब समझता हूँ मैं (खलनायक ने अपने मुखहोते पे हाथ रखा मेरा बदन काँपने लगा अब ओसोका चेहरा मेरे सामने होने वाला था वो आख़िर मुझे इतना कैसे जनता है? लेकिन वो मुस्कराया और ऊस्की मुस्कुराहट जबतक समझ में आती)

एक पीपे का डंडा मेरे सर पे लग चुका था…पीछे काला लंड खड़ा था….मुझे घूर्र रहा था रोज़ ज़ोर से चीखी…”देवश सेफ उर्सेलफ”…..एक और डंडा मेरे मुँह पे लग गया और मैं ऐसा घास्शह खाके दूसरी ओर जा गिरा की मुझे उठने की हिम्मत नहीं हो पा रही थी…काला लंड बेसवरी से अपने ऊपर हुए ज़ख़्मो का बदला मुझसे लेने वाला था…”य्ाआअ”…..मैंने उठके उसके पेंट और छातियो पे घुसों की बरसात कर दी…लेकिन ऊसपे कोई फरक़ नहीं पड़ा और ऊसने मुझे उठाकर दूसरी ओर फ़ेक डाला…शीशे से टकराके मैं दोबारा ज़मीन पे आ गिरा

“क्यों काला साया? बहुत बारे स्पाइडरमॅन हो ना सूपरमन हो? करो करो लररू”…काला लंड ने मेरी गर्दन उठाई और खलनायक के हँसी मेरे कानों में गुज़नते रही…काला लंड ने मुझे उठाया और बाहर हग किया ऊसने इतना क़ास्सके मुझे जकड़ लिया की मेरे हड्डिया जैसे चटकने को हो गौ …आहह मैं दर्द से बिलबिला उठा…मैंने उसके दोनों गर्दन पे करते का एक चॉप वार किया वो अपनी ए सर को पकड़कर बैठ गया और ऊसने मुझे एक लात मारी

मैं सीधे दीवार से टकराया…मैं भी उठ रहा था और वो संभाल चुका था वो मेरे करीब आया और ऊसने मेरे मुँह को दोनों हाथों से पकड़ा और बेदर्दी से दीवार पे दो बार दे मारा…और फिर उठाकर एक पटकी और लगाई…मैं उठने की हिम्मत नहीं थी…मैंने अपने घुटने मोड़ के उसके मुँह पे दे मारा..उसके नाक से खून बहाने लगा वो ऊपर उठा और ऊसने मुझे उठाकर फिर एक घुसा मर दिया…मैं लरखरके उसे लार्न की नाकाम कोशिशें कर रहा था

लेकिन ऊसने मुझे फिर धक्का देकर गिरा दिया…उसके हाथ में मेरा टूटा मास्क था…ऊसने उसे फैका और मेरी ओर आया मैं घायल लरखरते हुए उठके उसके दोनों टांगों पे गोली चला दी…वो पहले तो घायल हुआ लेकिन ऊसने उठके फिर मेरे ऊपर हावी होना चाहा…ऊसने इस बार मेरी गर्दन दबोची और मुझे टीयूब लाइट पे मेरा गर्दन सहित सर घुसा दिया….तुबलेईघत के सर पे टूटते ही जैसे सर सुन्न सा पारह गया और मैं एक लाश बनकर फर्श पे मुँह के बाल गिर पड़ा
 

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रोज़ रोए जा रही थी उसके हाथों में नहीं था वरना जान से मर देती काला लंड को…काला लंड बस मुस्कुराकर मेरी ओर देखे जा रहा था….मैं अब उठने वाला नहीं था…अचानक काला लंड पे थूकती रोज़ को देख उसका पड़ा चढ़ गया लेकिन वो उसके करीब आता खलनायक ने उसे गुस्से भारी निगाहों से देखा…काला लंड ने गुस्से में तमतमते हुए खलनायक को ही एक गुस्सा झाड़ दिया खलनायक गिर पड़ा..रोज़ संभाल गयी..काला लंड रोज़ के नज़दीक आया और उसके होंठ पे अपने नाखुंब चुभने लगा रोज़ दर्द से बिलख उठी

इतने में खलनायक ने टीयूब लाइट सीधे काला लंड के पीठ पे दे मारी…लेकिन ओसोे कोई असर ना हुआ और ऊसने खलनायक की गर्दन दबोच ली….”आ…हह सस्सस्स के.आमीने मेरा..खाखी”……खलनायक को अब सख्त गुस्सा चढ़ गया और ऊसने अपने पास रखी चाबी ओसॉके हाथों में दे घुसाई

कालल अंड दर्द से गिर पड़ा…खलनायक ने जैसे गुण पकरी ही थी..काला लंड ने उसके गर्दन को दबोचा और उसके सर सहित शीशे के आएनए में दे फैका..खलनायक का पूरा गर्दन शीशे से टकराके आर पार हो गया और खलनायक काँपते हुए गिर पड़ा….काला लंड ने कुर्सी सहित रोज़ को गिरा दिया और ऊस्की राससियो को नोंच नॉचके फ़ेक दिया रोज़ चिल्लाने लगी पर काला लंड बेरेहम था..ऊसने उसके गर्दन को पकड़ा और उसके होन्ो को अपने दाँतों से कांट लिया..रोज़ चिल्लाई ऊस्की आवाज़ सुन्न मेरे आंखें खुल चुकी थी

रोज़ के साथ वो बहुत ही बुरी तरीके से बलात्कारके करने की कोशिशें कर रहा था..ऊसने उसका अभी जीन्स नीचे खिसका ही दिया था..तभी मैं उठ खड़ा हुआ…कालल अंड को जब ये बात महसूस हुई तो वो उठके मेरी ओर देखता है और मुस्कुराकर मुझसे भीढने के लिए आगे आता है…मैं अपना मशेटी निकाल चुका था तब्टलाक़

काला लंड मुझसे टकराता है हालाँकि इस बार मैं हार मानने वाला नहीं था…और उससे भीढ़ जाता हूँ…मैं उसके हाथ पे ही मशेटी चला देता हूँ…और ऊस्की दो उंगलियां कांतके गिर जाती है…मैं ऊस्की गर्दन दबोच लेता हूँ उसे मारना आसान तो नहीं था…लेकिन मुझे भी उससे लार्न की पूरी कोशिश आज कारण इति सबकुछ दाव पे लगा था….मैंने उसके कमज़ोरी उसके सर को पाया जिसे वो बच्चा रहा था और ऊसपे करते का वार शुरू किया…काला लंड अब पष्ट परने लगा लेकिन वो मुझपर हावी होना बंद नहीं कर पा रहा था

कभी इस ओर कभी ऊस ओर की चीओंज़ों पे मुझे पटक देता और मैं भी पूरी कोशिश में ऊसपे वार करके उसे उठाकर किसी तरह पटक देता…हाथाआपाई के दौरान ही मैंने अपने मशेटी से उसके सर के मास्क को चियर दिया और ऊसपे चढ़ गया जैसे ही उसके मास्क को दो भाग में चियर डाला वो एक दम दहधते हुए एक ओर गिरके छटपटाने लगा रेस्लर लोगों की एक कमज़ोरी होती है की वो अपने चेहरे को हमेशा छिपाते है ताकि ऊँका साल चेहरा दुनिया के सामने ना आ सके…गुण चलना बेवकूफी ही थी

मैंने उसके सर को पकड़ लिया और जिस तरह ऊसने रोज़ दिव्या और बाकी मौसम औरत को मारा था ठीक उसी तरह उसके सर को क़ास्सके पकड़ लिया वो लगभग छुड़ाने की तो कोशिश करने लगा पर बच ना पाया..और मैंने ऊस्की गर्दन को माड़ोध के तोड़ दया…वो ज़ोर से दहधा और वही मर के लाश बन गया रोज़ रोते हुए मेरे गले लग गयी…खलनायक तब्टलाक़ अपने आधे अधूरे फटे मास्क से मेरी ओर देख रहा था रोज़ मेरे पीछे हो गयी…उसके हाथ में बंदूक थी…वो लरखरा रहा था

“अब बचने का फायदा नहीं चुपचाप हार मान जा”…….मैंने गुस्से से बोला….खलनायक ने देखा की रोज़ नेरा मेरा हाथ पकड़ा है लेकिन ऊसने गुण नहीं चलाईइ उसके आंखों में मैं आँसू देख सकता था

“साल..आ जिंदगी एमेम..एन्न हे..आमएस्सा डर..ड्ड साहा आहह पर साअला एक प्याररर आदमी क्यों…तो..द्ध एटा है….क्यों..टते भी..आहुट्त किस.मात्ट वाला हे तुउउउ”…..खलनायक के आवाज़ में भारीपन था शायद उसके आँसू उसके दर्द को चेहरे ढके होने से भी नहीं छुपा पा रहे थे…ओसॉके एक आँख के निकलते अनसु को देख सकता था “जिंदगी में बहुत क्राइम किया अपून्ं ने लेकिन साला कभी सुख नहीं मिला पर साले तुम दोनों को मैं!”…….अभी वो गुण पॉइंट हुंपे कर पाता पुलिस की साइरन आवाज़ उठ गयी


“भागने की कोशिश मत करना खलनायक हमने इस पोर्ट कोचरो ओर से घेरर लिया है खलनायक अपने आदमियों के साथ खुद को हमारे हवालेक आर दो”…..खलनायक बहुक्ला उठा तब्टलाक़ मेरे गोली ओसॉके पाओ पे लग चुकी थी वो वही गिर पड़ा

काला साया : जी तो करता है यही मर दम तुझे पर साले तुझे ज़िंदा रहके दर्द सहना होगा जो दर्द तूने सबको दिया सिर्फ़ अपनी खुशी और बदले के लिए

मैं जानना तो चाहता वो कौन है? पर मुखहोटा उठाने का वक्त नहीं था..मैंने रोज़ को लिया और क्सिी तरह दूसरी ओर से निकालने लगा..खलनायक को भागना ही था…उसके आदमी जो बच गये थे वॉ पुलिस पे ही ताबड़टोध गोलीय बरसाने लगे..लेकिन एका एक पुलिस के मुत्बायर और गोलीबारियो में मारें जा रहे थे…खलनायक के पास शायद अब कोई बेक उप नहीं बच्चा त हां हूँ बस लरखरते हुए अपने टाँग से निकलते खून पे रूमाल चड़ा चुका था उसका अड्डा अब पूरी तरीके से तहेस नहेस होने जा रहा था…इधर मैं इन हाला तो में जैसे तैसे रोज़ के संग बाहर आया पीछे के रास्ते पे पुलिस थी…शायद कमिशनर ने ही इन लोगों को भेजा होगा…मैंने और रोज़ ने फौरन छलाँग लगा दी पिछवाड़े के फाटक से हम दोनों आज़बेस्टेर पे गिरते हुए सीधे नीचे आ गिरे…मुझे बेहद चोट आई रोज़ संभाल गयी ऊसने मुझे जैसे तैसे उठाया..पुलिस की टुकड़ी ऊस साइड भी आंर वाली थी…

मैं और हूँ गटर के अंदर घुस गये….और शटर लगा ली जिससे पुलिस को वहां किसी के आने का आवास नहीं हुआ….हम धीरे धीरे गटर के नीचे आए…हूँ गटर सीधे पोर्ट से सटे समंदर में खुलता था…बचना तो था ही पर रोज़ कटरा रही थी इतनी बड़ी जोखिम ऊसने कभी नहीं लिट ही..मैंने उसका हाथ पकड़ा और हम दोनों समंदर की धारा में कूद परे…गटर का पानी सीधे समंदर के फासले में आ गया लेकिन बीच में गटर और समंदर के बीच एक छेद था…गुण बेकार थी…रोज़ का साँस लेना मुश्किल पढ़ने लगा…मैं एक लात मारा गटर लोहे से सख्त था..मैंने हेंड ग्रीनेड बॉम्ब सीधे दरवाजा के छेद पे लगाया और उसका शेल खींच दिया हम दोनों जब तक वापिस गटर के रास्ते आते दरवाजा उड़ गया और इसके साथ ही इतनी ज़ोर का धक्का लगा पानी में ही कम गटर के द्वार से समंदर आ गये…मैंने रोज़ को पकड़ा और हम दोनों तैरते हुए ऊपर आने पुलिस के टाइम तैरने की अच्छी खासी ट्रेनिंग लिट ही…हम दोनों तैरते हुए ऊपर आए पानी का इतना बहाव था की पूछो मत….दूर पोर्ट के ऊपर पुलिस की टुकड़िया ऊपर नीचे आती जाती दिख रही थी…गाड़ियों की लाइट्स और समंदर पे भी रोशनी मारी जा रही थी जाना मना गॅंग्स्टर आज उनके हाथ लगने वाला था…तभी मैंने अपनी बाइनाक्युलर से देखा की खलनायक कबका समंदर की धारा में कूद चुका है…और हूँ सीधे बंद पड़ी खिड़की को तोधके समंदर में जा कूड़ा…मैं उसके करीब जाना चाहता था..पर रोज़ ने मुझे रो कड़िया पानी का बहाव रात को तेज हो जाता है हम दोनों बार बार डूबने के कगार पे पहुंचने लगे

रोज़ : उसे जाने दो वॉ इस बहती धारा में ही बहके डुबके मर जाएगा पुलिस उसी की तलाश कर रही है हमें देखती है कुछ भी कर सकती प्लीज़ बात को समझो

काला साया : मैं उसे नहीं चोदूंगा ऊस कमीने मेरी दिव्या को!

रोज़ : प्ल्स मेरे खातिर…(और कुछ कह नहीं पाया हम पोर्ट से बहुत दूर आ गये तभी खुदा के फ़ज़ल से एक मचवारा जो बहुत से गुजर रहा था हमें दिख गया)

मचवारा : दादा अपनी छोले आसुन छोले आसुन (भैया आप इधर आइये इधर आइये)

ऊसने हम दोनों को देख लिया था…हम दोनों फहत से उसके बहुत पे चढ़ गये…”पानी बहुत गहरा है आप लोग डूब जाएगा आप लोग लाइट जाओ वरना पुलिस देख लेगी हम देख रहा है ऊन्को”…….मचवारे ने हम दोनों को बहुत पे ही लाइट जाने को बोला हम दोनों वैसे ही पष्ट होकर खास रहे थे हम लाइट गये

काला साया : भाई जैसे भी करके ज़मीन पे पहुंचा दे

मचवारा : ठीक है साहेब आप जैसे महान आदमी को भला कौन नहीं साथ देगा
 

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मैं इतना चर्चित था ये बात का अंदाज़ा मुझे भी नहीं पता…बस मैं देख सकता था की अंधेरी समंदर की लहरो में ना जाने कहा खलनायक गायब हो गया क्या हूँ डूब गया? उसका कोई बॅकप भी नहीं था…लेकिन मैं ये जनता था इसके साथ ही शायद खलनायक और मेरी दुश्मनी की दास्तान यही उसके मौत से खत्म हो गयी थी

मैं बस चुपचाप रहा मैंने रोज़ की तरफ देखा और उसके होठों से होंठ लगा लिए मानो जैसे उसे पाके कितना खुश था? रोज़ के आंखों में आँसू थे मचवारा बस चोरी निगाहों से हम दोनों का प्रेम प्रसंग देख रहा था…हम दोनों वैसे ही जाली पे बहुत के ऊपर लेटे रहे जब तक ठोस ज़मीन और पुलिस की नजारे से दूर ना हो गये…

सुबह की चकाचौंड रोशनी जब खिड़की से परदों के इधर उधर से निकलते हुए बिस्तर पे पड़ी..तो एक बार आंखों को मलते हुए अपने नंगे सीने से लिपटी हुई अपना सर मेरे छाती पे रखे हुए…जिसके बाल इधर उधर बिखरे हुए थे जिसके आंखों से लेकर आधे चेहरे तक एक काला मुखहोटा था…और उसका एक हाथ मेरे सीने को पाखारे हुए पीछे तक..और एक हाथ मेरे चेहरे के मुखहोते को सहलाते हुए

आज 2 दिन जैसे मानो कितने साल गुजर गये हो?….कैसे? खलनायक से लर्रकर मैंने उसके आदमियों को मर डाला…काला लंड की लाश पुलिस को बाकी गुंडों के साथ मिल चुकी थी…लेकिन खलनायक का कुछ पता ना चल पाया…वो जो समंदर में डूबा उसके बाद ना तो मुझे और ना ही कभी पुलिस को नज़र आया…लेकिन कहीं ना कहीं इस देश को उससे शायद निजात मिल गया था…अगर वो मर चुका होगा या तो ऊस्की लाश डूबते हुए कहीं ना कहीं तो पहुंच जाएगी…लेकिन सबसे सुकून भरा दिन मुझे ये सुबह और अपने दिव्या के बदले पे जीत की हो रही थी

मैंने महसूस किया की रोज़ थोड़ी हिली है…मैंने उसके पीठ को सहलाते हुए उसके चेहरे को अपनी तरफ किया…वो मासूमियत निगाहों से मेरी ओर देखते हुए मेरे सीने पे सर रखकर मेरे होठों पे उंगली फहरने लगी…हम दोनों ही चादर के अंदर कब से नंगे एक दूसरे से लिपटे थे ये बात का हमें पता नहीं था…मैंने रोज़ को अपने ताक़त से अपने ऊपर उठा लिया..और उसके कमर से होते हुए ऊस्की गान्ड की फहाँको में हाथ फहरने लगा….रोज़ मेरे सीने पे अपना सर रखकर छोटे बच्चों की तरह सोने लगी

रोज़ : देवष

काला साया : हाँ रोज़!

रोज़ : सबकुछ फीरसे शांत हो गया ई होप की अब तुम सबकुछ भुला चुके हो

काला साया : नहीं भुला पाया हूँ कुछ चीज़ें (एकदम से हड़बड़ाकर रोज़ ने मेरी ओर चेहरे को मोड़ा उसके आंखों में सवालात थे अब क्या रही गया था?)

काला साया : हां हां हां अरे हाउ कॅन ई फर्गेट यू? (मेरी बात को सुन रोज़ मुस्कुराकर मुझसे और क़ास्सके लिपट गयी उसके भारी छातिया मेरे सीने पे जैसे पीस रही थी उसके कड़क निपल्स जैसे गुदगुदी पैदा कर रहे थे)

रोज़ : तो फाइनली तुम अब क्या चाहते हो?

काला साया : एक अच्छी जिंदगी एक नया मोड़

रोज़ : जैसे?

काला साया : जैसे तुमसे शादी (मैंने उसके चेहरे को हाथों में भर लिया)

रोज़ को मानो जैसे ऊस्की मन की मुराद पूरी मिल गयी थी…ऊसने मेरे होठों को क़ास्सके चूम लिया और ज़ोर से बोल पड़ी “रेअल्लययी”…..मैंने मुस्कुराकर उसके एग्ज़ाइट्मेंट भरे चेहरे पे हाथ रखकर क़ास्सके उससे कहा “बिलकुल मेरी जान”…….रोज़ मुझसे फिर गले लिपट गयीचदर कब हम दोनों थोड़ा अलग हो गया पता नहीं

दिल को बस एक सुकून था मानो जैसे आज सारी मुरादें पूरी हो गयी हो…रोज़ को इतना क़ास्सके अपने से लिपटाया की उसे छोढ़ने का दिल ना हुआ…कहते है जब खुदा मेहेरबन होता है तो चारों तरफ खुशिया बरसता है…आज उनकी मेहरबानी मुझपर थी….जिस पेज निक्की बेला के सपने देखा था उससे भी कई गुना खूबसूरत गोरी में मेरे आगोश में थी…जो खुद मुझसे शादी करने के प्रस्ताव रखी हुई कब से बैठी थी?….जब आदमी के सामने बर्गर हो तो वो रोती क्यों खाए? इतने अच्छे रिश्ते को अगर ठुकराया तो मुझसे बड़ा गान्डू फिर कौन बस ऊस दिन बस मैं उससे लिपटा ही रहा ना ही कोई कम का भोज ना ही कोई और लरआई सिर्फ़ हम और तुम


शादी के बारे में सोचते हुए मैं बाइक दौड़ा रहा था….बाज़ार के चारों ओर के लोगों की तरफ एक निगाह दौड़ाई…मानो जैसे इस शहर में कितना चहेल पहले हो…ना ही कोई लाफद ना ही कोई झगड़ा…एक पॅड्रे से बात कर ली…ऊन्होने मुझे बताया की रोज़ के साथ रोमन कॅतोलिक विवाह के रिवाज़क ए साथ कोर्ट मरीज़ भी कर लू….मैं बहुत खुश हुआ खैर पुलिसवालो का पता नहीं था की ऊँका एक्स-कॉप शादी करने वाला है….ऊस दिन वो आए थे मुझे बधाई दी लड्डू भी बाँटे खलनायक की मौत पे ऊँका जश्न्ञ देखकर मुझे भी खुशी हुई

कलकत्ता के चर्च में शादी का पूरा प्रोग्राम मैंने बना लिया…गुप्त रूप से शादी करके मैं रोज़ के साथ कोर्ट मरीज़ भी कर लूँगा…वापिस इतर पहुंचते पहुंचते शाम हो गयी….रोज़ को फोन पे ही खबर सुनाई वो काफी खुश थी…इधर कमिशनर के बार्िएन में पता चला की ऊँपे गवर्नमेंट और इंटरनॅशनल अफीशियल्स के दबाव मिल रहे है ऊन्होने कैसे खलनायक का एनकाउंटर करा दिया? उसे रंगे हाथों पकड़ना था सीक्रेट एजेंट्स का वो मोस्ट वांटेड क्रिमिनल था वगैरह वगैरह…कॉँमससिओनेर मिया की नींद तो ऐसे हराम हुई मानो ऊन्हें किसी ने शाप ही दे दिया हो

अपर्णा काकी को बताया तो वो भी बेहद खुश हुई की चलो मैंने कोई रिश्ता पसंद तो किया…लेकिन ऊन्होने ज्यादा आपत्ति नहीं जताई…क्योंकि मामला मेरा था बस मुझे सुझाव देने लगी…आज मैं बेहद खुश था…और खुशी के मारें एक राउंड अपर्णा काकी की चुत का भी ले लिया….बिस्तर पे ही लैटाके उनके पल्लू को हटाया और फिर उनके पेंट को चूमा और फिर उनके पेटीकोट को एकदम ुआप्र करके चड्डी को एक तरफ हटते हुए सीधे दे दाना दान धक्के पेल दिए काकी की चुत में…काकी मां तो पष्ट होकर बस धक्को का मजा लेती रही…इन औरतों को जितनी बेरहेमी से चोदा लेकिन ये लोग आहह ऊ ई तक की आवाज़ नहीं निकालती बस इन्हें तो लंड ले ले कीआदात हो जाती है और बस आहें भरती रहती है चाहे इनका भोसड़ा क्यों ना भर दे?

शीतल भी मांझी हुई खिलाड़ी थी….मां को जिस दिन ठंडा किया बेटी दूसरे ही दिन हाज़िर…क्या कारिएन चलो कभी कभी देसी खाना भी कहा लेना चाहिए…..अब तो हमारी शादी शुदा बहाना भाई से खूब जी भरके चुदवाती थी…ऊस्की मोटी मोटी गान्ड इतनी मोटी हो गयी थी की साला बाउन्स करती थी…उसे नंगा करके मैं खूब उसके पिछवाड़े को बाउन्स करवाता था…और फिर दान दाना दान लंड उसके गान्ड में डालकर चोदता था…और फिर वो अपने थूक से भरे मुँह में लंड लेकर जो चुस्ती अफ क्या कहने? जन्नत हो तो यही….मैंने शीतल से वादा किया मैंने उससे शादी की नहीं तो क्या उसे बच्चा तो जरूर दूँगा….शीतल भी अब जी भरके बिना कॉंडम के चुदवाने लगी मेरे पास 6-7 दिन ही था उसके बाद तो उसे वापिस अब जाना था

आख़िरकार शीतल को कुछ ही दीनों में उल्टिया शुरू हो गयी…और ऊसने रामलाल को मुबारकबाद दी जबक इशीतला जानती थी बच्चा तो मेरा है ऊस्की चुत को कब से चोद छोड़कर अपना पानी डाल रहा हूँ ये वो भी जानती है…रामलाल तो अपने होने वाले बच्चे के लिए पागल हो गया और ऊसने जल्दी से शीतल को अपने साथ लेकर चला गया

आख़िरकार खुशी जिंदगी ऐसे ही चलने लगी….एक दिन फोन बजा त्रृिंगगग त्रिंगगग…फोन को उठाते ही एक जानी पहचानी आवाज़ कानों में पड़ी
 

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UPDATE-75. (FINAL UPDATE)



मामुन : अययई बडी व्हातसस्स अप्प? कैसा हे तुऊउ?

देवश : अर्र…ई भी मेरे यार मेरी जानन्न तू सुना बस कैसा चल रहा है सब?

मामुन : चुप साले जबसे आया हो वएक बार भी फ़ॉएं नहीं किया तूने? ऐसा थोड़ी ना चलता है

देवश : भी मांफ कर दे कहूँ तो सॉरी पर प्लीज़ मेरी नादानी को मांफ़्क आर दे

मामुन : मांफ तो हम तब ही करेंगे जब आप यहां आएँगे म्ृर

देवश : भाई वो दरअसल!

मामुन : देख देख तूने नौकरी चोद दी है मुझे पता लग गया इतना पराया कर दिया मुझे तूने कोई प्राब्लम तो नहीं है ना पैसों की

देवश : भाई ज़मीदार के पोते है पैसों की कभी कमी हुई है भला

मामुन : ये हुई ना बात चल अच्छा हुआ अब तुझसे मुझसे डर नहीं लगेगा हाहाहा अच्छा भाई तुझे फोन करने का था की इस हफ्ते तू आजा मिलने देख ना मत करियो बहुत आस से फोन किया है यहां मैं काफी बोर हो रहा हूँ तू आएगा तो दिल बह लेगी

देवश : भाई लेकिन (कैसे कहता की अब मैं रोज़ से शादी को बेक़रार था लेकिन ना जाने क्या आया मैंने मुस्कुराकर हाँ कह दिया)

मामुन : ये हुई ना बात चल तू आजा पूरा खाने का इंतजाम करूँगा मैं वैसे सुनकर दुख हुआ की दिव्या!

देवश : भैया जाने दो प्लीज़

मामुन : ई आम सॉरी चल तू बस ये समझ की तेरा अपना अब भी ज़िंदा है कोई तू बस आजा मैं तेरा इंतजार कर रहा हूँ

देवश : ठीक है भाई

मामुन : ना रुकेगा कोई नहीं लेकिन भाई से मिल तो ले

देवश : अच्छा ठीक है बाबा आता हूँ

मामुन : यआःाहह चल फोन रख ओके बयी

मामुन ने फोन कट कर दिया….खैर ये भी ठीक ही था की एक बार मामुन से मिल लू ताकि गीले शिकवे सब दूर हो जाए…कैसे उसे काहु की मैं रोज़ से शादी करने वाला हूँ अब जैसे तैसे रोज़ से शादी करके मैं यहां से अब जाना ही चाहता था…जब इतना होप लेकर बुला र्हाः आई तो तहेरना कैसा?

देवश धीरे धीरे कवर्ड के पास गया और ऊसने मुस्कुराकर वो कवर्ड खोला जिसके अंदर एक गुण रखी थी….देवश ने उसे हाथ में लेकर बस मुस्कराए हुए अज़ीब निगाहों से देखा…”कभी कभी बदला अधूरा रही जाता है”…….देवश की मुस्कान एक पल के लिए कठोर सी हो गयी और ऊस्की निगाह फिर वही काला साया के रूप के भट्टी बदले की आग में जल उठी
रात के करीब 12 बज चुके थे….कुत्तों की हावव हावव आवाज़ को सुनकर एकबार बेचैनी से कमिशनर साहेब उठ बैठे….ऊन्होने एक नज़र अपनी बीवी की ओर की…जो घोड़े बेचके सो रही है…”अफ कितना बुरा सपना था काला साया ने तो मुझे मर ही डाला था”…..कमिशनर अपने भयंकर सपने को व्यतीत करते हुए बबदबड़ाया…ऊसने उठके झड़ से गिलास में डालकर एक गिलास पानी लिया और फिर धीमी साँस छोढ़ते हुए उठा…

“इतने बारे घर में इतनी सेक्यूरिटी है सबसे पहली बात घुसेगा कैसे हां हां हां हां”…….कमिशनर अपनी बुद्धि की तारीफ करते हुए तहाका लगाकर हंसा…”आज लगता है नींद नहीं आएगी अफ एक गिलास पी ही लेता हूँ”…..कॉँमससिओनेर धीरे धीरे अपने रूम से बाहर निकलकर सीडियो से नीचे उतरा…पास ही बने शराब की अलमारी से एक बोतल निकलकर वही पास के कुर्सी पे बैठकर टेबल पे रखकर गिलास में डालने लगा…”हां अच्छा हुआ वॉ मादरचोद खलनायक भी उम्म्म”….अपने गले में घोंटते हुए एक ही बार में जम खाली कर दी…दूसरा पेग बनाते हुए कमिशनर ने अभी आधी शराब पी ही थी की सामने खड़े ऊस शॅक्स को देखकर उसके हाथ से गिलास चुत के फर्श पे ही बिखर गया

कमिशनर : क्क्क..क्कहालननायक्ककक त..तूमम्म?

खलनायक : हाँ मैंन जिसके गान्ड के पीछे तू बहुत दीनो से पड़ा हुआ था बारे ही परवाचन सुनता है ना न्यूज मेंन अब बोल

कमिशनर : आररी रूपाल्ल्ल जीवँनन् आररी आई वातचममंणन्न् अरे कहाँ म्मररर गये सब के सब्बब? (कमिशनर डर के मारें चिल्ला उठा लेकिन कोई नहीं आया)

खलनायक : मुझे क्या इतना चूतिया समझा है की मैं ऐसे ही तेरे घर में घुस जाऊंगा उठ के देख उठ के देखह देखह (कॉँमससिओनेर भुआकलते हुए भागा बाहर की ओर बाहर का दरवाजा बंद था और बाहर के सारें सेक्यूरिटी मानो जैसे बेहोशी मुद्रा में परे थे) वैसे भी तेरी बीवी पे मुँह पे भी सेम स्प्रे छिड़का है अगर उसके ऊपर 10 आदमी भी चढ़ जाए ना हाहाहा तो उसे सुबह तक कुछ पता नहीं चलेगा

कमिशनर : से..हत्त अप्प द..एखू में..मैंन त..उंहें चोदूंगा नहीं यू आर..ए में..एससिंग डब्ल्यू.इतह आ पुलिस कोँमिससिओंनेर

खलनायक : हां हां हां हां जिसकी पेंट गीली है और जो अपने सामने कोई भी खतरनाक गुंडे को देखकर हल्का जाता है कॉँमससिओनेर उसे कहते है हां हां हां हां साले बेटीचोड़ तू भी बहुत बड़ा चोद लगता हे लेकिन तूने जो किया ना ऊस्की भरपाई तो तुझे दूँगा ही

खलनायक धीरे धीरे कोँमिससिओएंर के आगे आने लगा कमिशनर के पास कोई हत्यार नहीं था वो बस भौक्ला रहा था…भौक्लते भौक्लते उसके आँख इतने बारेह उए की वो ज़ोर से चिल्लाया और उसका जिस्म अकड़ने लगा….अपने सामने एक राक्षस जैसे मुखहोते को करीब आते देख जिसके हाथों में चाकू उसका दिल का दौरा बढ़ने लगा वो अपने कलेजे को पकड़ा वही गिरके छटपटाने लगा….खलनायक बस चुपचाप वैसे ही खड़ा रहा…कुछ देर बाद कमिशनर का बदन तहेर गया…खलनायक जनता था ऊस्की साँसें तांचुकी है

खलनायक : हां हां हां हां चलो आज पहली बार कोई मेरे खौफ से मारा है अगर ज़िंदा बचता तो बेदर्दी मौत मरता

अगले दिन कलकत्ता की एक पौष इलाके पे बने फ्लैट के अंदर देवश अड्रेस पूछते हुए आया….दरवाजा अपने आप खुल गया सामने मामुन सिगरेट पी रहा था उसका धुंआ छोढ़ते ही उसे कमरे में देवश आते दिखा “आए मेरे यार तू आ ही गया वाहह”……मामुन ने देवश से गले मिलकर उसके कंधे पे हाथ रखकर उसका स्वागत किया

देवश : क्या भाई तू तो बेहद अमीर हो गया ये सब क्या है? लगता है जैसे दावत रख है तूने मेरे लिए

मामुन : भाई आए और दावत ना रखू चल बैठ आज पहली बार आया है तू मेरे ग़रीबखाने चल एक एक पेग हो जाए

देवश : नहीं नहीं मैं पीता नहीं

मामुन : अच्छा ठीक है पर मैं तो इस जश्न्ञ में पिऊंगा (मामुन ने एक पेग बनाया और पीने लगा)

देवश चुपचाप मुस्कुराकर मामुन की ओर देखकर चारों ओर देखने लगा “वैसे काफी पैसेवला हो गया है तू?”….देवश ने तंग पे तंग रखते हुए कहा….मामुन बस पागलों की तरह हंस रहा था “भैईई सब खुदा की मर्जी है जिस आदमी के जिंदगी में पैसा ना हो वो कर भी क्या सकता था? और आज लौंडिया है पैसा है शौरहट है दौलत है”…….मामुन के आंखों में जैसे दुख के आँसू थे

देवश : हो भी क्यों ना? जो लोगों के दिल में दहशत फैलाए उसे तो सब खुदा ही मानेंगे ना मिस्टर खलनायक (चौका देने वाली थी ये बात मामुन कुछ देर तक गंभीर होकर देवश की शकल देखने लगा फिर मुस्कराया)

देवश : असल में तेरी चोरी पकड़ी गई है साले मुझे यकीन नहीं होता मेरा भाई खलनायक और मैं ही एक सूपरहीरो वाहह क्या फॅमिली है गंदा तो हमारा खून था ही जो कभी क्सिी के आँसुयो की कदर ना कर सका क्या बिगाड़ा था मैंने तेरा? जो तूने मुझसे इतना बड़ा बदला

मामुन : बदला बादडला में फूटत (मामुन ने एक ही झटके में टेबल पे साज़े सभी खाने को टेबल सहित उल्टा के फ़ेक दिया) अरे मैंने किसका क्या बिगाड़ा था? जो मुझे ये दिन देखना पारा एक दिन था जब रोती के लिए डर डर भीख माँगता था…तेरी वो दादी जिससे मेरे परिवार वालो ने अपना हक़ माँगा ऊसने मुझे मेरी मां सहित जॅलील करके भागाया मेरा बाप जो खुद एक नसेडी था ऊसने मुझे क्या दिया….भाई तुझे सब दिया और मुझे कुछ नहीं कुछ भी नहीं

देवश बस सुनता गया….”बचपन में ही मां को कैन्सर हो गया अपनी दादी से पैसे माँगे तो चाचा और चाची ने दादी सहित मुझे भगा दिया….फिर बापू का बढ़ता कर्ज़्ज़्ज़ कौन जी सकता है यार कौन? मां का दो साल में ही देहांत हो गया…बाप ने अपनी आदत नहीं छोढ़ी डर मैं भीख माँगता रहा दरवाजे दरवाजे पैसे की भीख माँगी…लेकिन दिल था की एक बहुत बड़ा आदमी बनूंगा और मैं बना भी खलनायक बना भी”…….मामुन की आंखें इस तरह अध्याना करने लगी जैसे ऊस्की सारी घटना उसके आंखों केसांने हो

“एक आदमी मिला एक दिन बोला मेरे बार में काम करेगा…मैं छोटा था मैंने हाँ कह दिया….असल में वो एक दूर्गस स्मगलिंग का धंधा करता था…धीरे धीरे मैं उसका अज़ीज़ बन गया उसके सारे पैटरे सीख लिए….और वो मेरे हाथ से सप्लाइ करवाने लगा ड्रग्स बंगाल से ब्ड तक ब्ड से मुंबई तक…हमारा कारोबार अच्छा चला…मैंने उसे साफ कहा की मैं पैसों के लिए कुछ भी कर सकता हूँ..चाहे किसी का खून भी एक जूननून था दिल में एक बड़ा जुनून एक दिन पुलिस ने पकड़ लिया 8 महीन के लिए जेल में डाल दिया…वापिस निकाला फिर कॉंटॅक्ट किया उसी आदमी से तब्टलाक़ मैं खुद बिज़्नेस संभालने लगा…और धीरे धीरे ब्ड में रहना शुरू कर दिया…यहां से मेरे काले धंधों का अच्छा कारोबार चलने लगा पैसा होने लगा…लौंडिया शौरहट सब होने लगा लेकिन जान का खतरा तो था ही…धीरे धीरे इसकी आदत पढ़ गयी और मैंने खुद के चेहरे को एक नाक़ा ब्सी ढक लिया जिस दुनिया में मुझे शैतान का नाम दिया गया था बुरा कहा जाता था वही नाम मैंने रखा…खलनायक्क इस तरह खलनायक बनकेना जाने कितनों की सुपारी ली कितने खून बहाए कितना दूर्गस बैचा कितनों की ज़िंदगया उज़ादी कितनों का घर उजड़ा लेकिन पैसा पैसाआ हर ओर से पैसा यही तो चाहिए एक मज़बूर को”……..मामुन की दास्तान सुनते सुनते मैं चुपचाप उसके हाथों में रखी ऊस खलनायक के मुखहोते को घूर्र रहा था

देवश : हम लेकिन तू बच्चा कैसे पिछली रात को? तू तो
मामुन : हां हां हां हां (तहाका लगाकर मामुन हंसा) अगर मेरा भाई एक शातिर खिलाड़ी हो सकता है काला साया तो मैं एक शातिर मुज़रिम क्यों नहीं? बेक उप प्लान बारे से बारे डॉन के पास रहता है…जल्दी से पिछली रास्ते से पानी में जब कूड़ा तो वहां मेरा बिसात पहले से ही बिछा हुआ था मुझे डूबना अच्छा आता है क्योंकि बहुत बार ड्रग्स जो पानी में गिरे है पुलिस की निगाहों से बचाने के लिए समंदर के अंदर तक छुपाया है…वैसे ही एक बहुत मैंने 20 में अंदर छुपाई थी…मौके पे फरार होने के लिए और उसी पल मैं कलकत्ता में प्रवेश कर गया
देवश : वाहह रे वाह फॅब्युलस डॉन बनना कोई तुझसे सीखे पर ये तेरी मज़बूरी नहीं थी तेरा शीतन बनने की दास्तान थी
मामुन : भाई जो भी बोल आज इस लाइन में बहुत पैसा है
देवश : रंडी के लाइन में भी पैसा है तो क्या अपनी गान्ड में लंड डालवौ और चुका बन जाओ वैसे भी तू हियिरा बन जा सरकार की तरफ से मुफ्त में!
मामुन : टेरी मां की चुत (देवश हस्सा मामुन के लाल लाल जलते आंखों को देख बस वो भी गंभीर हुआ)
देवश : आबे तू विक्टिम लगता है यार कोई डॉन नहीं मानता हूँ मज़बूरी इंसान को तबाह कर देती है पर तू खुद एक तबाह इंसान है कहीं भी तू जाए तुझे सरकार गोली मर देगी क्या मिलेगा ये सब करके? मुझे तो सुकून है तू मुझसे जलता है ना ये ले कागज़ पे लिखवाड़े तेरे नाम सबकुछ कर देता हूँ
मामुन : अरे भीख नहीं च्चाईए मुझे मना हम एक ही कश्ती के दो राही है पर तुझे सब मिला पर मुझे नहीं लेकिन अब तू बचेगा भी नहीं तूने वैसे ही आधे से ज्यादा मेरा प्लान बर्बाद कर दिया मेरी रोज़ को मुझसे छीन लिया
देवश : हां हां हां चाहे दौलत छीन के ले लेकिन याद रख प्यार पाया जाता है छीना नहीं

मामुन : शट अप्प यू रास्कल (मामुन ने गोली मेरे छाती पे रख दी मैं चुपचाप खड़ा रहा अचानक एक्ज़ोर्दार पीपे का प्रहार मेरे सर पे हुआ मैं बस वैसे ही त्तिहक के गिर पड़ा….जो पीछे खड़ा था उसे देखते ही मैं चौंक उठा ये कोई और नहीं मामुन का भाई कबीर था)


मामुन एकदम से तहाका लगकर हस्सने लगा “दास्तान तो सच्ची थी पर किरदार कोई और था तुझे क्या लगता है? की मैं खलनायक हूँ इतना बड़ा गान्डू समझा है मुझे जो अपना राज़ खुद ही बता दम…असली खलनायक तो ये है”……..मामुन ने अपने भाई के गले मिलते हुए बोला दोनों एक दूसरे से यूँ गले मिलते देख मैं दर्द से काँपते हुए उठने की कोशिश करने लगा कबीर मामुन का भाई जिसे आजतक मामुन ने छुपाएं रखा था

कबीर : हां हां हां कैसा है भाई मेरे? वाहह आज ऐसे सिचुयेशन में मिलना होगा सोचा नहीं था…मामुन बहुत अच्छा काम किया है तूने मेरे दुश्मन को मेरे ही घर लाके…दरअसल मामुन मेरा बिज़्नेस पार्ट्नर है शान्त्राज की चाल मैं चलता हूँ अंजाम ये उसे देता है खलनायक मैं बनता हूँ नाम ये लेता है समझा नहीं चल मैं समझता हूँ अबतक जो तूने सुना वो दास्तान इसकी नहीं मेरी थी….ये बेचारा तो हालत का मज़बूर था लेकिन जब खलनायक मैं बना तो इसे भी अपना अज़ीज़ बना लिया क्यों भाई?

मामुन : हाँ भाई

कबीर : वरना तू आ रहा है और मैं तेरे सामने आ जाओ ये जानते हुए की तू मुझे मारने के लिए पूरी तैयारी करके आएगा हां हः हां नो वे चल अब मैं तुझे सुनता हूँ आगे की दास्तान….मेरा भाई डर डर की ठोकरे कहा रहा था जब उसे पता चला की मैं एक शातिर डॉन बन गया हूँ खलनायक तो ऊसने मुझे हेल्प की…शातिर ऐसे नहीं बना मामुन की गर्लफ्रेंड क्या नाम था उसका

मामुन : चाँदनी भैईई

कबीर : हाँ चाँदनी ब्ड के सुपेरिटेंडेंट की बेटी जिसे जाल में इसने फंसाया मुझे बहुत पसंद थी मैं पुलिस की निगाहों में अबतक आया ही नहीं था पर साला दिल ये दिल एक दिन उसे इन्हीं हाथों से पकड़कर उसी के बिस्तर पे रेप किया मामुन बहुत कफा था मुझसे बहुत ज्यादा..लेकिन इसने भाई का फर्ज निभाया और हमने मिलकर ऊस्की नंगी लाश उसके बाप के सामने (दोनों भाई तहाका लगाकर हस्सने लगे मैं चुपचाप गिरा हुआ था)

कबीर : पूरा पुलिस फोर्स के जैसे आगे लगा दी हो गान्ड में हमारे पीछे पारह गये…इधर मेरी भी ताक़त दुगुनी होती गयी दुबई ओमान सौदी बांग्लादेश मुंबई सब जगह अपना ही बोलबाला होने लगा….और इधर मां जिसने हमें पाला मेरे बाप ने दूसरी शादी करके जिसे हामरे घर लाया जिसे ये भी पता ना इूसका बेटा कितना सफर्ड करके आज एक शख्सियत बना मेरा तो खून खौल गया और मैंने क्या किया पता हां? ऊस कुतिया को ब्लैकमेल किया अपनी ही सौतेली मां को पहले उसे ज़लील करने के लिए उसका बाय्फ्रेंड बनाया फिर उससे खलनायक बनकर फहईरौती माँगी और उसे पाते पे बुलाया और फिर उसके साथ मिलकर चोदा छोड़ी किया साली गान्ड बहुत टाइट थी….बाप को ये बात पता चल गयी और फिर हमने क्या किया पता है दोनों ने मिलकर ऊसको भी मर दिया हमारी सौतेली मां हम दोनों की रांड़ बन गयी हाहहाहा और एक दिन एक शीक की ऊसपे नज़र पड़ी और उसे भी हमने बैच दिया पहले तो बहुत नखरे कर रही थी फिर उसे इंजेक्शन लगा दिया उसके बाद इस तरह हमारी दास्तान चल पड़ी

देवश : आ..हह सोचा नहीं था की कभी इतने बार एमरडारचोड़ो से पाला पड़ेगा तुम जैसा दाज्जल अगर दुनिया में कोई होगा तो वो तुम दोनों ही होंगे लेकिन फिक्र नोट तुम लोग ये सोचक मुझे मरोगे की अब मैं पोलिसेवाल नहीं रहा तो ग़लतफहमी आहह (देवश ने उठते हुए मुस्कराया)

और ऊसने काला साया वाली चल चल दी अपने जुटे में रखकर ऊस पैकेट को जिसे ऊसने अपने हाथों में गिरे गिरे ही ले लिया था फौरन दोनों के ऊपर फैका हड़बड़ाहट में मामुन ने गोली चला दी जो सीधे पैकेट पे लगी और बढ़म्म से एक धुंआ फैल गया….देवश तब्टलाक़ अपनी भाई किक मामुन के छाती पे उतारके उसे गिरा चुका था…कबीर ख़ास्ते हुए पागलों की तरह अंधाधुंध पीपे मारें जा रहा था “मदारचोड़ड़ मेरे भाई को छोड्धह”…….मामुन कुछ का आर नहीं पा रहा था बस चीख और चिल्ला रहा था..

देवश ने उसके हाथों को बेदर्दी से माधोड़के तोड़ दिया…मामुन ज़ोर से चिल्ला उठा…पास रखी बोतल को देवश ने उठाकर उसके कनपाती पे दे मारा बोतल टूट गयी और मामुन के सर से खून निकालने लगा देवश ने मामुन के गर्दन को क़ास्सके जकड़ा और उसके पेंट पे ही जितनी बार होसका टूटी काँच की बोतल घुसेड़ दी…मामुन चीखता चिलाता रहा पर कबीर धुए की बदौलत अँधा हो गया था…कुछ देर बाद जब धुंआ हटा तो चीखते चिलाते कबीर ने सामने एक लाश देखी मामुन मर चुका था उसके पेंट गहराई तक कटा हुआ था चारों ओर खून ही खून

कबीर : हरामिी मदारचोद्द्दद्ड (कबीर का गुस्सा सातनवे आसमान पे चढ़ गया वो आग बाबूला होकर पागलों की तरह सोफा और टेबल को इधर उधर फैक्ने लगा)

तब्टलाक़ देवश बाथरूम में घुस चुका था और ऊसने अपनी गुण रेलोअडक आर ली…कबीर ने अपनी गुण निकाल ली और चारों ओर देवश को खोजने लगा “कमीने बाहर निकलल्ल्ल आज तुझहहे नहीं चोदूंगा”……अपने से खों भरे मामुन के लगे खून को हाथों से पोंछते हुए गुण किसी तरह देवश ने उठाया और दीवार से झाँका…कबीर ने फौरन फाइरिंग शुरू कर दी…दीवार में छेद हो गया देवश भागते हुए हेमां के पीछे चला गया ऊसने भी फाइरिंग शुरू कर दी….कबीर वैसे ही गिर पड़ा दोनों में से कोई हार नहीं मना….गोली से चारों ओर धुंआ धुंआ होने लगा

जब दोनों की गोली खाली हो गयी..तो फौरन कबीर ने गुण फ़ैक्हके देवश पे छलाँग लाग दी…देवश फौरन कबीर से हातपाई करने लगा…कबीर को जैसे खून सवार था ऊसने उसे फौरन पकड़कर दीवार पे दे मारा…देवश का आएना से सर टकरा गया वो धंस खाके गिर पड़ा….कबीर ने फौरन पास रखी तार देवश के गले पे लगाकर फसनी चाही…पा देवश ऊसपे घुसा और लात मरता रहा…कुछ देर में ही कबीर के सर पे पास रखकर वैसे का प्रहार हुआ और वो गिर पड़ा उसके माथे से खून बहाने लगा…देवश लंगदाते हुए बाहर निकल आया

कबीर ओसॉके ऊपर बैग की तरह झपटा..देवश ने फौरन उसके सर को पकड़ा और दोनों सोफे पे से गिरते हुए सीधे टेबल को ऊपर जा गिरे…टेबल टूट गया और दोनों घायल होकर इधर उधर गिर परे…देवश लंगदाते हुए फिर उठा…कबीर ने उसके दोनों आंखों में उंगली धस्सा दी…देवश ज़ोर से चिल्लाके सीडियो पे जा गिरा…कबीर ने तब्टलाक़ टीवी को उठाकर देवश पे मारना चाहा देवश सीडी से हाथ गया टीवी टूट गयी…देवश और कबीर दोनों ही खून खत्तर हो चुके थे….फार्महाउस जैसी जगह पे घर था दूर दूर तक कोई नहीं जैसे समझ आए की आख़िर मसला क्या है?

कबीर ने देवश को उठाया और सीधे दूसरी ओर पटक दिया…देवश बेहोश हो गया…कबीर इधर उधर भौक्लके गुण ढूंढ़ने लगा…ऊसने मामुन के गुण को उठा लिया और रोते हुए मामुन के चेहरे पे हाथ रखकर उसके माथे को चूमा मामुन की लाश वैसे ही पड़ी हुई थी…कबीर उठके चारों ओर देखने लगा “देवस्शह देवस्शह”…….पागलों की तरह कबीर इधर उधर खोजने लगा…लेकिन देवश वहां से गायब हो चुका था…कबीर को डर सताया और ऊसने बाहर की कुण्डी लगा दी..साथ ही साथ टूटी खिड़कियां और दरवाजे भी…ऊसने टीवी ऑन किया और फुल साउंड पे लगा दिया ताकि बाहर किसी को पता ना चल पाए की यहां क्या हो रहा है?

कबीर धीरे धीरे लंगदाते हुए पास रखी पीपे को उठाकर इधर उधर देवश को खोजने लगा “बाहर निकल्ल्ल मैंनी कहा बाहररर नियकल्ल्ल मदारचदोद्ड साली मेरे आदमियों को मर दिया मेरी महबूबा को मुझसे छीन लिया आहह आजज्ज तुझहही मैं ज़िदनान है छोढ़ूनाग तुझसे तेरा सबकुच छीन लूँगा मेरे भैईई को मारा तुन्नी हारांज़ाडी मेरी बाहियीई को”……कबीर चिल्लाता हुआ दहढ़ रहा था

अचानक वो पर्दे की तरफ जाने लगा..जैसे जैसे वो पर्दे के पास गया ऊसने एक ही झटके में परदा हटाया वहां कुछ नहीं था हवा से परदा हिल रहा था पूरे घर में खामोशी चाय थी सिर्फ़ टीवी की आवाज़ दूसरे कमरे से आ रही थी…इतने मेंन्न्न् कबीर एकदम से हड़बड़ाया और वो सीधे स्टोर रूम के दरवाजे से टकराते हुए उसके सामानो पे जा गिरा…”उग्गघ उहह आह”….ऊस्की आवाज़ घूंत्त चुकी थी सामने उसके ही मुखहोते को पहना खलनायक उसे मुस्कुराकर देख रहा था…कबीर मुँह से खून उगलता रहा उसके पेंट से आर पार एक चुरा हो चुका त हां….खलनायक ने उसे सख्त हाथों से खींचा कबीर ने उसका हाथ पकड़ना चाहा पर खलनायक ने उसे क़ास्सके एक बार और ज़ोर से खींचके निकाल डियाकबीर साँस खिंचता हुआ ऊस मुखहोते के तरफ हाथ बढ़ता है जिसे खलनायक पकड़ लेता है

“जिंदगी में एक आहेसन करना की दोबारा मिर जिंदगी में कभी मत आना अलविदा भी”…..खलनायक अपना मुखहोटा उठ आर फ़ैक्हता है देवोःस सामने खड़ा होता है और साथ ही उसका चुरा फिर कबीर के पेंट के अंदर धंस जाता है…कबीर की आंखें थे जाती है और वो मुस्कुराकर वैसे ही पत्थर बन जाता है

कुछ देर बाद लाहुलुहन लंगड़ते हुए देवश सुकून भर एअंडाज़ में मुस्कुराता है और कबीर की तरफ देखता है…कबीर के नास्स को छूते ही पता चलता है वो मारा जा चुका है चारों ओर सामान बिखरा पर है मामुन की एक जगह लस्शह पड़ी है “आख़िरकार खलनायक का अंत उसी के हाथों को चुका था”…..वो एक बार कमिशनर को खलने क्का मुखहोते पहनकर मर चुका त और उसका मुखहोटा कमिशनर के घर चोद आया था ताकि पुलिसवालो को लगे की खलनायक ने ही कमिशनर को मारा और इस देश से फरार हो गया

देवश बाथरूम में जाकर नहा लेता है और अपने आपको ठीक करते हुए एक बार दोनों लाशों की ओर देखता है कबीर के जगह पे पट्टी थी जहां उसे कल रात गोली लगी थी….देवश जानके खुश होता है खलनायक सच में ही मारा जा चुका है….देवश फोन करता है रोज़ को “हाँ रोज़ आहह से शादी की डेट फिक्स हो चुकी है हाँ तुम तैयार हो जाना प्लान चेंज हो गया है हम मेक्सिको जा रहे है हाँ बस जो कहा उसे सुन लो चुपचाप ओके में जान लव यू”……देवश मुस्कुराता है और खलनायक के मुखहोते को लेकर एक बार दोनों लाशों को देखता है फिर अपने कपड़े को बदलके घर से निकल जाता है….क्सिी को शक भी नहीं होता

देवश अपनी जीप स्टार्ट करता है और वहां से निकल जाता है….जल्द ही न्यूज सुनाने को मिलती है एक घर में दिन दहाड़े बेरहेमी से मौत कौन आया था कौन गया किसी को मालमूं नहीं? दो भाइयों की मौत जिनके बारे में पता चलता है की वो बांग्लादेश से है….कमिशनर का भी रात गये खून हुआ था सबूत में खलनायक का मुखहोटा मिलता है पुलिस को आख़िर खलनायक कौन था? ऊस्की मारने की वजह तो सामने आई ही थी की पुलिस उसके पीछे है और एनकाउंटर के आर्डर खुद कमिशनर ने दिए थे लेकिन खलनाया क्के मुखहोते के पीछे किसका चेहरा था ये आजतक ना तो पब्लिक और ना पुलिस ना जान पाए और ये भी शातिर गन्मन मुज़रिमो के लिस्ट में जुड़ चुका था

उधर काला साया फिर गुमनाम हो गया….ना जाने कहा चला गया लोग बस उसे अपना भगवान मानते थे रोज़ भी गायब थी पर कोई ये नहीं जनता था 2 साल बाद…मेक्सिको के समंदर पे पंचियो की आवाज़ को सुन लहरो को देखते हुए बहुत चलते देवश अपनी पत्नी रोज़ को बाहों में लिए बस अपने आनेवाली जिंदगी के बार्िएन में सोच रहा था …किस किस तरह जिंदगी ने ऐसा मोड़ लिया?….वो बस खुश था की आज उसका बदला यक़ीनन पूरी तरीके पूरा हो चुका था


THE END ??
 
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