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Adultery काला साया – रात का सूपर हीरो(Completed)

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AK 24

Supreme
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UPDATE-58


देवश : तुम ने सारी बातें दिल से कहीं है पर मेरी बहन कुँवारी है लेकिन काकी मां ने मुझे बताया की शीतल भी बहुत ज्यादा जवान खून है समझ रहे हो ना अगर उसे तुम खुश रख पाओगे तो मैं इस रिश्ते को हाँ कहूँगा ये हम मर्दों की बीच की बात है तुम्हें ध्यान से समझना होगा इसमें कोई बुराई नहीं ना ही मेरी बहन कोई ठरकी है पर फिर भी औरत का असली गहना उसका मर्द होता है और उसका सुख

रामलाल कुछ दायरटक सोचता है मुझे लगा मैंने कुछ ज्यादा कह डाला क्या? लेकिन ऊसने मुस्कुराकर बोला उसे ये रिश्ता मंजूर है पर वो शीतल को मनाए कैसे?…..मैंने मुस्कुराकर उसे बहुत ही राज़ की बात कहीं की उसे कैसे बहलाना है और कैसे प्यार करना है? वो खुद पे खुद ऊसपे नीचावर हो जाएगी रामलाल बहुत ही हैरान हुआ की वो कैसे घर में शादी करने जा रहा है लेकिन आक्साइड तो बंदा था ही जो औरत से दूर रहे वो आक्साइड तो होगा ही फिर ऊसने तरक़ीब को समझा और मुझसे विदा लेकर चला गया

मैं बहुत खुश था अब जल्द ही रामलाल शीतल को पता लेगा और उससे शादी भी कर लेगा….रामलाल भी यही चाहता था उसे भी कोई शर्म नहीं हुई…फिर मैं जीप पे सवार हुआ तभी विरेसलेशस से सूचना मिली थाने आने को

मैंने फौरन जीप थाने की ओर रुख की…देखता हूँ की काफी भीढ़ है…और एक औरत की लाश के ओसफेद कफ़न से धक्का हुआ है जो ऊपर से पाओ तक शायद नंगी ढकी हुई है (ये वही लाश थी जो खलनायक ने अपने काल लंड के संतुष्टि के लिए किडनॅप की थी और उसे परोसा था बेरहें साइको के सामने)…मैं उसके करीब गया एक तरफ कुछ औरतों के झूंड रो रहे थे शायद वो ऊस्की मां थी…जो कलेजा पीँत रही थी…हवलदार ने सूचित किया की ऊस्की बेटी की लाश को यहां खलनायक के गुंडों ने चोद दिया और ऊस लड़की के साथ बलात्कार हुआ है और उसे बेरेहमी से मर डाला है और जानभुजके थाने पे ऊस्की लास हचोढ़ दी

मैं उसके करीब जाकर उसका जैसे काप्रा हटाया तो मेरी आँखें शर्म से बंद गयी…जल्दी से काप्रा धक्का उसका शरीर नंगा था प्रेससवाले ऊस्की तस्वीर खींचें जा रहे थे…”आप लोगों की वजहह से मेरी बेट्तिी को मर डाला ऊन हरामज़दाओ आख़िर कैसे पुलिसवाले हो आप लोग जिसने मेरी फूल जैसी बची को बच्चा ना पाया ऊन कामीनो को पकड़ ना सके “……ऊस्की मां रो रोके मुझे और मेरे अफ़सर्स को गालिया दी जा रही थी मैं बहुत खुद को बेबस महसूस कर रहा था

हवलदार ने बताया की लड़की को कल रात अगवा किया गया था खलनायक के गुंडों ने जब वो ट्यूशन से आ रही थी और फिर सुबह ही ऊस्क इलाश दिन दहाड़े के थाने के पास फ़ेक दी मुआना किया तो दिल शहर गया लड़की के चुत से खून बंद ही नहीं हुआ और उसके बदन पे इर्द गिर्द बेरेहमी से खरॉच दाँत काटने के चोटों के निशान है उसके चेहरे को इतनी बुरी तरीके से किसी चीज़ पे पटका है की पहचान करना भी थोड़ा मुश्किल था…पता नहीं किस जालिम ने इतनी बेदर्दी से ऐसी मासूम को अपने होश का शिकार बनाया मेरा तो खून खौल उठा थानेक एब ईछो बीच खलनायक ने ऊस लड़की को नंगा करके ऊस्की लाश फैक दी…इसका एक ही परिणाम है की वो मेरी मर्दानगी को ललकार रहा है….मेरा गुस्सा सातनवे आसमान पे चढ़ गया

सबके जुबान पे था काश काला साया होता ना जाने वो कहाँ गायब हो गया? वो लड़की जो खुद को इस शहर की बचाव कहती है वो रोज़ कहाँ है? सबके जुबान पे रोज़ और खुद के नाम को सुन सच में आज मेरी मर्दानगी को जैसे ललकार मिला था मैं शर्म के मार्िएन लाश को जल्द से जल्द मॉर्ग के लिए रवाना कर डाला…और वहां मैं खड़ा नहीं रही पाया थाने के अंदर घुस गया

थाने में बैठा बैठा बस चुपचाप डेस्क टेबल के बॉल को घुमा रहा था…इतने में बाहर का शोर्र सुनाई दिया….पुलिस के नाम की हाय्ी हाय्ी हो रही थी…प्रेस वालो किसी तरह हवलदार रोकें जा रहे थे इतना बड़ा घटना घाट गया इतनी शरामणाक हत्या हुई थी एक मासूम लड़की की…पब्लिक के साथ साथ न्यूज वालो का भी गुस्सा उबाल रहा था हर कोई जवाबा चाहता था आख़िर क्यों नहीं पुलिस काला साया की तरह काम करती..

मेरा पारा चढ़ गया….अगर कॉन्स्टेबल नहीं रोकता तो मैं बाहर निकल जाता…लेकिन हालत काबू से बाहर नहीं थे सारे आम पुलिस पे कीचड़ उछाला जा रहा था…पुलिस की बेज़्ज़ती हो रही थी…कुछ पुलिस अफसरों ने लाठी चार्ज करने तक को कह डाला पर मैंने मना किया क्योंकि कहीं ना कहीं कुसूरवार तो हम थे ही…जो एनकाउंटर स्पेशलिस्ट अफसरों ने काला साया को मर गिराया था मतलब ऊन्हें लगता था वो भी आज सर झुकाए अफ़सोस कर रहे थे उनके झुके चेहरों को देख मेरे अंदर की ज्वाला कमिशनर और ऊस खलनायक पे निकल रही थी

किसी तरह बाहर आया धारणा शाम तक चल रही था…सबने मुझसे पूछताछ स्टार्ट कर दी…”दीखिई बात सुनिईए मेरी बाट्ट सुनिईए”……..मैंने गारज़ते हुए कहा सब चुप हो गये….”मानता हूँ हमने बहुत बड़ी ग़लतिया की पर इस गलती को सुधारने का मुझे मौका चाहिए आप लोग जैसा सोच रहे है वैसा नहीं है”………मैंने अभी कहा ही था की एक आदमी ने चिल्लाके कहा की उनकी बेटी के सात हहुआ वो क्या अच्छा था? जबसे काला साया गायब हुआ है तबसे वारदातें बढ़ी जा रही है फिर से हाय्ी हाय की बोल श्रुऊ हो गयी…”शुतत्त उप”……इस बार मैं भड़क उठा


देवश : आप लोगों को मैं समझाए जा रहा हूँ पर आप लोग कुछ समझने के लिए राजी ही नहीं है…आज एक खून हुआ कलकत्ता जाए दिल्ली जाए हिन्दुस्तान के हर कोने में जाए क्या क्राइम रुकता है नहीं ना क्राइम आप हम जैसे लोगों से पनपता है…हम पुलिस वाले तो सिर्फ़ उसे रोकने की कोशिश करते है पर हमारे हाथ बँधे है अपने ही हथकड़ियों से जी हाँ हम कोई भी एक्शन लेंगे ऊपर से हुंपे दबाव आता है बड़ी बड़ी पहुंच होती है भ्रष्ट पॉलिटिशियन्स का पहरा होता है तो क्या हम लोग जानभुज्के मुर्ज़िमो को सजा नहीं देना चाहते ज़रा सोचिए

काला साया आज हमारी ही बदौलत इस दुनिया में नहीं है…ये बात सुनते ही सब शॉक्ड हो गये सब खामोश थे जैसे क़ब्रुस्तन में सन्नाटा छा जाता है….”काला साया जरूर आता अगर ऊस्की साँसें चलती तो…काला साया को मर दिया गया है…महानन्दा नदी में अपनी बचाव और एनकाउंटर से बचने के लिए ऊसने खूड़खुशी कर ली”……….ये सुनते ही सब भड़क उठे

देवश : आप चाहते है ना की हमने गलती की तो ज़रा सोचिए हम तो छोटे मुलाज़िम है असली सरकार तो वहां ऊपर बैठी है क्यों नहीं उससे सवाल करते क्यों नहीं जवाब माँगते लेकिन मैं वचन देता हूओ खलनायक और उसके बढ़ते अपराध को मैं रोकुंगा चाहे इसमें मेरी जान क्यों ना चली जाए? आपको जो सवाल पूछना है वो सारे जवाब मैं दे चुका यक़ीनन मैं आपकी बेटी को वापिस नहीं ला पाऊँगा मुझमें वो ताक़त नहीं लेकिन कसम देता हूँ की मैं इंसाफ जरूर करूँगा

प्रेस रिपोर्टर्स मेरी बातों को ध्यान से सुन रहे थे मेरे आंखों से निकलते आँसुयो को पढ़ रहे थे…मेरी चेहरे पे फ्लॅशलाइट्स हो रही थी…न्यूज चॅनेल में मेरा इंटरव्यू यक़ीनन कमिशनर देखकर हक्का बक्का हो गया था..ऊस्की तो जैसे गान्ड फटने लगी थी…और धीरे धीरे उसे हर जगहों से कॉल आने लगा…काला साया जो पब्लिक का देवता था उसका एनकाउंटर किसने कराया? कोँमिसिओनेर ने क्यों आर्डर दिया?…खलनायक भी इस इंटरव्यू को सुनकर बस तहाका लगाकर हंस रहा था..

जल्द ही लोग धीरे धीरे गुस्से की आग में जाने लगे उनके पास सवाल तो थे गुस्सा भी पुलिसवालो पे लेकिन उनके हर सवाल का जवाब उपरी लोगों के पास था…ऊन लोगों ने तायी किया की अब वो कलकत्ता पुलिस हेक़ुआर्तेर जाकर ये जवाब माँगेंगे….मैं केबिन में बैठा हवलदार और सब मुस्करा रहे थे और ऊन्होने मुझे पानी दिया शांत होने को कहा…मेरी हालत ठीक नहीं थी मैं फौरन जीप पे सवार होकर घर के लिए रवाना हो गया

“फ्फूककक थींम फुक्कक तेमम्म अल्ल्ल बस्टर्द्ड़स”….रोज़ इधर से उधर तहेलते हुए लंगड़ाके मेरी ओर देख रही थी मैं एकदम गुमसूँ चुपचाप मुँह पे हाथ रखकर गहरी सोच में डूबा हुआ था

रोज़ : क्या सोच रहे हो? काश मैं ऊन बॅस्टर्ड्स को सबक सीखा पति काश मेरी ये कमज़ोर हाथों में कुछ और दम होता

देवश : गलती तुम्हारी नहीं है रोज़ तुम इंजूर्ड थी वरना ये वारदात कभी नहीं होती

रोज़ : ऊन हरामजादो ने अपना रेज निकालने के लिए एक लड़की पे अपना गुस्सा निकाला हमारा…ऊस काले नक़ाबपोश को मैं ज़िंदा नहीं छोढ़ूंगी

देवश : तुम कुछ नहीं करने वाली कुछ भी नहीं

रोज़ : वॉट अरे यू आउट ऑफ और माइंड? इतना कुछ हो गया और तूमम्म?

देवश : बिलकुल वो लोग बहुत ताकतवर है हमें ऊओनेहीं हराना होगा हम पिचें आयी हटेंगे पर कभी कभी जंग में कूदना आसान नहीं होता..

रोज़ : तो तुम कहना क्या चाहते हो? हम ऊन्हें कैसे रोकेंगे?

देवश : मेरे आर्डर आने तक तुम कही नहीं जाओगिइइइ

रोज़ : देवस्शह प्लीज़ ऐसा मत करो

देवश : ई साइड नो मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता और रही बात लोगों की ई विल गुड ताकि केर ऑफ तात्ट प्लीज़ इस बार मान जाओ

रोज़ : फिनने मैं जा रही हो

देवश : रोस्सी रोस्सईए (रोज़ बाइक पे सवार होकर निकल गयी यक़ीनन वो अब क्राइम-फाइटिंग तो नहीं करेगी लेकिन उसके दिल में मेरी बात कही चुभ गयी थी)

मैं अपने चेहरे पे हाथ रखकर वही बैठ गया…जब दूसरी ओर निगाह पड़ी…तो शीशे में बंद काला साया के कपड़े और उसका मास्क मेरे सामने था….मेरे आंखों में अंगार सी छा गयी आज खुद को अकेला महसूस कर रहा था…एक तो रोज़ बिना कुछ कहें निकल चुकी थी और इधर मैं कशमकश में कहीं खोया हुआ था सबकी बातें दिमाग में जैसे गूंज रही थी अगर काला साया होता? अगर वो होता? तो क्या वो रोक सकता?
 

AK 24

Supreme
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(UPDATE-59)



मैं आज हार गया हूँ दिव्या”…….दिव्या के गाओड़ी में सर रखकर मेरे आंखों से आँसू बह रहे थे

“तुम ऐसा क्यों सोच रहे हो? देवश…मानती हूँ अपराध को रोका नहीं जा सकता तो क्या तुम ऐसे घूंत्त घूँट के कबतक जियोगे अगर आज काल साया ना होता तो क्या ये लोग सुरक्षित रही सकते थे….तुम एक महेज़ इंसान हो कोई देवता नहीं हर इंसान को अपनी बचाव खुद करनी पढ़ती है अगर कल तुम मुसीबत में फासे तो कौन बचाएगा”…….मैं दिव्या के बातों को सुन रहा था उसके हाथों को अपने बालों को सहलाते महसूस कर रहा था

देवश : तुम सही हो दिव्या बहुत सही हो आज मेरा मूंड़ नहीं हे मैं थोड़ा गश्त लगाकर आता हूँ

दिव्या : सावधान रहना मुझे तुम्हारी फिक्र लगी रहेगिइइ

देवश : तुम हो ना साथ मेरे (दिव्या के माथे को चूमते हुए मैं निकल गया)

जीप को फुरती से 60 की बढ़ता में चला रहा था…सड़क एकदम सुनसान थी….जगह जगह सड़क के कुत्ते भौंक रहे थे कहीं रो रहे थे कोई शराबी कचदे के धायर पे सोया हुआ है…कहीं कोई ग़रेबे सड़क पे चादर बिछाए सो रहा है….रात का 1 बज रहा था…आंखों से आँसुयो को रोक नहीं पाया…साला ये जिंदगी की भी अज़ीब है कहाँ से श्रुऊ किया था? कहाँ चल रहा है? एक वक्त था बदले की भावना में जी रहा था और आज ऐसे मोड़ पे हूँ की जिस गलियों को छोडा जिस भैईस को चोदा आज ऊस्की इतनी जरूरत महसूस हो रही है…कमिशनर की मां तो चुद रही होगी बारे बारे उक्चे लोग पब्लिक सब ऊसपे क्वेस्चन की बरसात कर रही होगी हम और होना भी च्चाईए ऊस जैसे मतलबी इंसान को क्या समझा आए की काला साया की क्या जरूरत थी?…..अचानक देखता हूँ की किसी ने मेरी जीप को ओवर्टेक किया

पुलिस की जीप को ओवर्टेक..मैं जीप रोककर फौरन उतरा…”आए कौन्ण है?”…….वन से कुछ गुंडे बाहर निकले….और दूसरी ओर निशानेबाज़ मज़ूद था…जो सिगरेट फहुंककर मुझे देख रहा था मुस्करा रहा था..”तो तू है वो इंस्पेक्टर जिसने रोज़ को बचाया हरमजादे”……..एक गुंडे ने बताया वाइर्ले पे अभी हाथ रखने ही वाला था

की इतने में हॉकी का एकदांडा हाथ पे पड़ते पड़ते बच्चा.आ..मैंने फ़ौरना उसके चेहरे पे एक घुसा मर के उसे गिरा डाला….पीछे से चैन मेरी गर्दन पे…और गुंडे के लात घुषो की बौछार मुजपे…आज इतना बेबस हो जाऊंगा सोचा नहीं था…ऊन्होने फुरती से एक लात मर के मुझे गिरा डाला…”शितत मोबाइल भी दूर जाकर गिरी अब ना तो रोज़ को कॉल कर सकता था और ना ही पुलिस को सूचना दे सकता था…आज बेबस हो गया त मैं”…….तभी एक हॉकी का डंडा सीधे मेरे सर पे पारा….आहह…मैं दूसरी ओर गिर पड़ा

हाहहाहा…ऊन लोगों की तहाका लगती हँसी मेरे अंदर के खून को खौला रही थी….”बड़ा आया इंस्पेक्टर साले उठ हाहाहा खलनायक भाई से पंगा लेगा कांट दो साले के हाथ पाओ हड्डी तोड़ दो इसकी”……..निशानेबाज़ ऊन गुंडों की बातेयसुनके उठ बैठा

“आबे ओह जान से मत मर देना मर के खलनायक भाई के पास लेकर भी जाना है”…….ऊस्की बात को सुनकर गुंडे ने हाँ में सर हिलाया मेरी ओर हिंसक निगाहों से आगे आए…मुझे उठाते ही फिर मेरे पेंट और मुँह पे हॉकी का बल्ला पड़ा…बहुत क़ास्सके दर्द उठा…लेकिन तीसरे वार जैसे ही मुझपर होता ऊस हॉकी के बल्ले को हाथ से रोक डाला…काला साया यक़ीनन नहिता पर दानव पैच तो थे ही बरक़रार

फौरन जंग की शुरूवात की और भाई किक सामने हॉकी का बल्ला पकड़े शॅक्स के मुँह पे…वो लोग मुझपर भीढ़ गये…अब मैं अपने फॉर्म में आ गया और अपनी मंकी किक सामने वाले के सीने पे उतार डाली वो वन पे जा गिरा…शीशा खनक से टूटा और उसके पीठ पे धंस गया….दूसरी आईडी की चोट एक गुंडे की गर्दन पे…मैंने फुरती से अपनी पेंट के पीछे से नानचाकू निकाला…और ऐसे करतबो से चलाने लगा….की वो लोग सहम गये

“आओ सुवार की औलादो क्या हुआ? रांड़ की पैदाइश हो क्या?”…….ऊन्होने मेरे गाली को सुनते ही आक्रमण कर डाला…मैंने नानचाकू को बारे फुरती से ऊँपे चला डाला…किसी का सर किसी का टाँग किसी की गर्दन किसी का मुँह…किसी की अँड सबपे नानचाकू बरसाने लगा…ऊन लोगों की टूटती हड्डिया और बिबीलते स्वरो से वही धैरहोणे लगे….”पुलिसवाले के पास नानचाकू स्ट्रेंज”……निशानेबाज़ जो सोच रहा था की ऊस्की पलूए इस पुलिस को मर गिराएँगे डर्सल चूतिया था उसे क्या पता? की जिस शेयर को वो लोग पुलिसवाला समझ रहे है वो असल में कौन है?


निशानेबाज़ मेरा एक्शन देखने लगा….ऊन गुंडों को इतनी मर मारा की वो लोग उठ नहीं पाए जल्द ही निशानेबाज़ ने फुरती से मेरे ऊपर तीर चला दी जो मेरे बाए कूल्हे पे लगा…”आअहह”……मैं दर्द से बिबिला उठा वो अभी दूसरा हमला करता उसके तीर को मैंने हाथों से लोक लिया.और फिर ऊसपे नानचाकू फ़ैक्हा..उसके चेहरे पे जा लगा….निशानेबाज़ हड़बड़ा गया…मैं उसके पीछे दौरा…ओसोने फिर तिरो का हमला किया इस बार मैं बच ना पाया पीठ और गर्दन पे तीर धंस गया

निशानेबाज़ तहाका लगाकर हस्सने लगा….मैंने पास रखी हॉकी स्टिक उठाई और उसके मुँह पे मारी….वो बच निकाला लेकिन मैंने उसके पाओ को पकड़कर नीचे पटक डाला…”टीटी..तू इतना हुनर कैसे जनता है साले”……निशानेबाज़ करते का हमला करने लगा…”मैंने उसके दोनों हाथ ओको क़ास्सके दबोच लिया…”क्योंकि तू मुझे नहीं जनता मैं कौन हूँ और सीधे उसके मुँह पे एक लात जमा दी

निशानेबाज़ देख सकता था की इतने घायल होने के बाद भी मुझमें कितनी हिम्मत थी खलनायक ने सक़ती से मना किया था की मैं जान से ना मारू..निशानेबाज़ मुझे पाक्ड़ने आया था लेकिन अब वो साँप को कैसे पकड़ पाता..”बिना तीर के तू कुछ नहीं कर सकता कमीने”…….मेरी एक लात उसके पीठ पे जम गयी

निशानेबाज़ भागा…मैं भी उसके पीछे तीर को उकाध के अपने कमर और जिस्मो से अलग करके फैक्ने लगा…जल्द ही वो साए की तरह वापिस अपनी गुप्तिए निए गाड़ी में सवार हो गया…मैं उसके पीछे जाता ही लेकिन ऊसने गाड़ी मेरे ऊपर चलानी की सोची मैंने फौरन कूदके उसके रास्ते से हाथ गया और वो बढ़ता में गाड़ी को लेकर कहीन्द और भाग गया…पुलिस को सूचना देना बेकार ही था…वो भाग चुका था…मैं वैसे ही घायल हालत में इधर उधर देखते हुए जीप पे सवार हुआ गुंडे धायर हो चुके थे

एक को उठाकर उससे पूछताछ की तो पाया खलनायक ने मुझे किडनॅप करने के लिए भेजा था…और ऊस्की नज़र मुझपर है क्योंकि मैंने उसका माल और ऊस्की दुश्मन रोज़ को बचाया है….मैंने ऊस अधमरे गुंडे को वही फ़ेक डाला…और अपनी जीप एप सवार हो गया…क्योंकि ठिकाना उसे भी पता नहीं था

किसी तरह जीप को बीच में ही रोकना पड़ा दर्द बहुत ज्यादा बढ़ने लगा…मैंने देखा सामने एक घर है जो जाना पहचाना है वही लंगदाते हुए दरवाजा खटखटने लगा….अचानक दरवाजा खुला और एक साया मेरे सामने खड़ा था

“कोई हे दरवाज़..आ के..होल्ल्लो”……मेरी आवाज़ बुरी तरीके से कनपें जा रही थी…दर्द से बेचैनी हो रही थी…बार बार आंखें बंद होने लगी थी…”अरे कोई है आहह”……धधस्स से एकदम से दरवाजा खुल गया…और एक साया सामने अंदर से बल्ब की रोशनी में साफ उसके चेहरे को देखते ही जान में जान आई ये जाना पहचाना साया कंचन का था..

ऊसने मुँह पे हाथ रखकर…मेरी तरफ देखा और मेरे फटे कपड़ों से निकल रहे खून को…”अरे साहाबब आप?”…….इससे पहले वो कुछ और कह पति…मैंने उससे अंदर आने की इजाज़त माँगी..ऊसने फौरन झट से मुझे घर के अंदर दाखिल करवाया ऊसने क़ास्सके मेरे कंधे को पकड़ा हुआ था…मेरी चलने की हिम्मत नहीं थी…वो तो अच्छा हुआ की कंचन का सहारा मिल गया…ऊस्की बस्ती पास ही में दिख पड़ी…जल्दी से ऊसने दरवाजा बंद करके मुझे खतिए पे लेटा दिया

मैं दर्द से सिसक रहा था…ऊसने फौरन मेरे ज़ख़्मो को देखते हुए बोला “या अल्लाह आपका तो खून बह रहा हाीइ आपको क्या हुआ साहेब?”……..मैं कुछ बोल नहीं पा रहा था फिर किसी तरह उठके इस हालत को खुद ही संभालना था

फौरन अपने फटे वर्दी वाले शर्ट को उतार फ़ेक अब मेरे जिस्मो के इर्द लगे तीर के घाव को देखकर कंचन ने मुँह पे हाथ रख दिया और फिर मेरी पीठ पे भी देखा….खून से बनियान थोड़ी लाल हो गयी थी “अल्लाह जख्म बहुत गहरा है अब क्या करे?”……वो सोच में पारह गयी “आ..हे के..आँचनन्न फ़ौरान किसी डॉक्टर को बुला लाओ जो तुम्हारे बस्ती के कहीं पास रहता हो बोल देना आहह दारोगा घायल है प्ल्स जल्दी करो”……..कंचन गरीब जरूर थी पर नुस्खे और होशियार चाँद भी थी
 

AK 24

Supreme
22,057
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259
(UPDATE-60)



ऊसने फौरन मुझे बताया की पास के एक बस्ती में एक डॉक्टर रहता है वो उसे बुला सकती है…वो भागके निकल आ गयी दरवाजा लगाकर मैं वैसे ही पड़ा रहा…जल्दी दो आवा सुनी..कमरे में डॉक्टर बातचीत करते हुए आया और फौरन मेरे ज़ख़्मो को देखते हुए कथिए पे बैठ गया….”ओह माइ गॉड इंस्पेक्टर बाबू आप ठीक है?”…….डॉक्टर ने सवाल किया…”आहह हान्न्न बस खून बहन जा रहा है प्ल्स आप मेरा यही इलाज़ कर दीजिए हॉस्पिटल जाने की मेरी हिम्मत नहीं है ना ही उठने की अब”……डॉक्टर कुछ देर सोचते हुए मेरे घाव का निरक्षण करते हुए

बक्सा खोलता है अपना…फहरी मुझे एक इंजेक्शन लगता है साथ ही साथ कंचन को एक कटोरा और गरम पानी और कुछ चीज़ें लाने को कहता है…कंचन बेचारी फटाफट अपने छोटे से कोने के रसोईघर से कुछ चीज़ें ले आती है…फिर डॉक्टर मुझे बेहोश कर देता है उसके बाद मुझे नहीं पता की मेरे साथ क्या हुआ सब जलन सी लग रही थी

जब होश आया तो पाया डॉक्टर अपने पसीने को पोंछते हुए मुस्करा रहा था मैं खतिए पे आध नंगा लेटा हुआ था..सिर्फ़ चड्डी में था मेरे पूरे बदन के इर्द गिर्द पत्तियां लगी हुई थी…”अफ अब आप सुरक्षित है वो तो अच्छा हुआ तीर ज्यादा गहरा नहीं घुसा वरना जान भी जा सकती थी आपके गर्दन में तीर बुरी तरीके से घुस गया था बहुत मुश्किल से ड्रेसिंग कर पाया हूँ सिलाई भी कर दी है अब आप कुछ देर आराम कीजिए”……बेचारे डॉक्टर ने जो हिम्मत और ईमान दिखाई मेरे प्रति मेरे आंखों में आँसू घुल गये इस गरीब बस्ती में इतना अपनापन है कभी सोचा नहीं था शायद काला साया के वक्त पुणे कमाने का नतीजा था

डॉक्टर : अच्छा इन्हें ये कुछ दवैया दे देना बाकी दवाई दिन में किसी फार्मेसी शॉप से खरीद ले आना

कंचन : अच्छा डॉक्टर बाबू

देवश : आ..हह डॉक्टर प्ल्स आप ये बात बाहर किसी को मत बतायेगा

डॉक्टर : पर आप्पे जनन्लेवा हमला हुआ है इंस्पेक्टर बाबू आपको अपने पुलिस

देवश : एक केस पे काम कर रहा हूँ ना तो उसी के कुछ गुंडों ने मुझे घायल कर दिया बचते बचाते यहां आ गया फिक्र मत करो कंचन वो लोग यहाँ नहीं आ पाएँगे मैंने ऊन्हें अच्छा चकमा दे दिया है बस ये बात इस घर से बाहर ना निकले प्ल्स डॉक्टर बाबू

डॉक्टर : अच्छा ठीक है आप आराम कीजिए

डॉक्टर के जाते ही…कंचन कुछ देर तक खतिए के पास ज़मीन पे तापकरे खून को साफ करने लगी फिर पोंछा मारने के बाद…ऊसने बाल्टी भर के मेरे बदन के इर्द की सफाई भी की…साला कच्चे में भी लेटा हुआ उसके बदन को घूर्रने की आदत नहीं गई थी ऐसे हालत में भी लंड अपनी औकवाद पे आ ही जाता है…पर मुझे कंचन पे बहुत प्यार उमड़ रहा था उसे बेचारी ने मेरे लिए इतना किया और मैंने अपने फायदे के लिए उसे नौकरी से निकाल दिया था


कंचन : बाबू अब आप ठीक हे ?

देवश : बहुत आराम मिल रहा है

कंचन : अब आप जल्दी ठीक हो जाएँगे मैं आपको हल्दी का ढूंढ़ लाके देती हूँ

कंचन ने कुछ देर बाद हल्दी का दूध मुझे दिया…ऊसने मुझे क्सिी तरह अपने हाथों के सहारे से उठाया और बिताके गरम दूध दिया फहुंक फहुंक के ईंे के बाद…10 गाज के घर के चारों ओर देखते हुए मैंने ऊसपे नज़र डाली “और बताओ कैसी हो?”………मेरे मुस्कराने पे वो भी अपने पुराने ही बात विचार में आ गयी

कंचन : हम तो ठीक है बाबू आप सुनाए?

देवश : अरे तुम्हा..रहा पति कहाँ है? और तुम्हारे बच्चे?

कंचन : ऊ सब तो नानी के गाँव गये है और हमरा पति कुछ महीनों पहले ही गुजर गया

देवश : हे भगवान जानके दुख हुआ

कंचन : ना ऊस शराबी निक्कममे के लिए क्या दुख करना बाबू आप आराम कीजिए हम आज नीचे सो जाएँगे

देवश : मेरी वजह से तुमको इतनी दिक्कतें उतनी पड़ी है ना

कंचन : अरे बाबू आपका नमक खाया है? हम तो ए बात से खुश है की आप अपने फर्ज के प्रति कितने जागरूक हो गये है आपको यूँ लधता देख हमें बहुत खुशी मिली हम गरीब से जो जुड़ेगा हम आपके लिए करेंगे पर अभी आपको कहीं जाने ना देंगे

देवश : अरे पगली हां हां हां चलो तुम्हारे अंदर मेरे लिए कोई नफरत तो नहीं है ना मैंने तुम्हें काम से आने पे

कंचन : ना ना बाबू आप बारे लोग है जब चाहे तब रखे जब चाहे तब निकले हम कौन होते है नफरत करने वाले हमारी औकवाद ही क्या?

देवश : अच्छा ग ऐसा नहीं बोलते तुम्हारा दिल तो सोने जैसा है जो अपने बाबू के लिए इतना कुछ की हो

कंचन : इंसानियत है आपका नमक खाया आपके पैसों से रोती खाई है

देवश : अच्छा तुम एक काम करो तुम सो जाओ खामोखाः मेरे वजह से तुम्हारी नींद भी खराब हो गयी

कंचन : ठीक है बाबूजी आप भी सो जाए

कंचन ने पल्लू नहीं उतरा…और वही नीली सारी पहनें चटाई बिछाके बिस्तर बनकर सो गयी….मैं भी दर्द में आराम महसूस करने लगा था आँख भारी हो आई…कंचन को जब काल साया बनकर बचाया था तो उसके बदन की खुशबू आजतक नाथुनो में थी…लेकिन कैसे कहिएं कंचन जी को की हम ही काला साया है हम तो उनके लिए सिर्फ़ उनके मालिक बाबू देवश मिया ही थे
 

AK 24

Supreme
22,057
35,843
259
(UPDATE-61)


खलनायक सिगरेट सुलगते हुए…अपने नक़ाब को थोड़ा ऊपर उठाकर होठों के बीच सिगरेट सुलगाए काश ले रहा था…इतने में ऊस्की निगाह निशानेबाज़ पे पड़ी जिसका मुँह चोटों से सूज गया था…और अकेले खड़ा था….”हां हां हां एक पुलिसवाला तुमसब् पर भारी कानून कब से तुम्हारी मां चोदने लगा”……खलनायक ने उठके माधुरी डिक्सिट का गाना चोली के पीछे क्या है ? सुनते हुए मुस्कुराकर निशनीबाज़ की ओर देखा…जो चुपचाप आँखें झुकाए खड़ा था

“क्या? यही काम के लिए भेजा था”………खलनायक ने सिगरेट को पाओ के नीचे दबाते हुए कहा

“आपने आर्डर दिया था वरना ऊस साले को तो मैंने तीर से चली कर देता”……खलनायक ने आगे आकर उसके चेहरे पे एक थप्पड़ रसीद दिया ऐसा पहली बार हुआ था..चट्टकक के इयवाज़ सुन पास खड़े गुंडे सहम गये…निशनीबाज़ के आंखों से आँसू का कटरा निकल गया

“हरंखोर मां छुड़ाने के लिए अपना बॉडीगार्ड बनाया है तुझे”…..खलनायक गुस्से में उसके माथे पे उंगली मारते हुए बोला..”भेजे में कुछ समझ नहीं आता मादरचोद गान्डू”…..खलनायक का गुस्सा उबाल सा गया था

खलनायक : पहले तो ऊस लौंडिया रोज़ को नहीं मर पाए वो हरामी का बीज बीच में आ गया फिर उसके पकड़ने भेजा तो बेटीचोड़ अपनी गान्ड मरवके आ गये तो अकेला तुम सब पे भारी उसका इतना मोटा लंड था जो तुम लोग ऊस्की लेने के लिए अपनी टाँगें खोल के लाइट गये…बोल्लो हरामजादो

खलनायक पहले कभी इतना गुस्सा नहीं हुआ था..ब्ड से यहां आने के बाद आज पहल इबार उसे अपने शिकार से नाकामयाबी हासिल हो रही थी…”अफ मैं भी कितना पागल हूँ काश ये काम काला लंड को देता…तुझे बस तीर चलाने ही आता है…”………खलान्यक कमर पे हाथ रखकर सोच ही रहा था

निशानेबाज़ : भैईई मैंने उसके गर्दन और बदन पे तीर चला दी थी वो साला घाया लज़रूर हुआ है..अगर उसे इलाज़ ना मिला तो मरने की गारंटी पक्की एक बार और चान्स दो भैईई

खलनायक : हम नानचाकू चलता है अकेले ही फुरती से हुनर से तुझे हरा दिया मामूली आदमी नहीं होगा वो जो रोज़ जैसी सुपेरहेरोइने का साथ दे रहा है पक्का कुछ गड़बड़ है एक पुलिस इंस्पेक्टर इतना तेज इतना फुर्तीला इतना हुनरबाज़ ना हो ही नहीं सकता जो निशनीबाज़ का निशाना रोक दे…आज तक जिसके भी ऊपर तूने तीर छोडा गर्दन से आर पार हुई है उसके और तू एक मामूली इंस्पेक्टर हम

खलनायक सोचते हुए मुस्कुराता है…”चल ठीक है आज तेरी इस गुस्तकी को मांफ की पर तुझे नेक्स्ट चान्स नहीं मिलेगा”…..निशानेबाज़ जैसे बच्चों की तरह मिन्नटें करने लगा “पार भैईई प्लीज़ सिर्फ़ एककक”……खलनायक ने उसे गुस्से भारी निगाह दिखाई “बार बार नाकामयाबी हमें काटतायी पसंद नहीं जा मां छुड़ा अब”………खलनायक की बातों को सुनकर निशानेबाज़ हॉल से बाहर चला गया

खलनायक : आए ऊस इंस्पेक्टओए पे नज़र रखना और हाँ वॉ नयी मीटिंग कब की है वृंदमुनई मात में नेक्स्ट मीटिंग होनी चाहिए रात 12 बजे सुना है वो गर्दन 2 सालों से बंद पड़ा है अरेंज करो और अपने डीलर को कॉल करो (अपने आदमियों को कहते हुए सबने ठीक है भाई बोला)

उधर रोज़ अपने बिस्तर पे आँख मंडी पड़ी थी…उसके ज़ुल्फो से उसका चेहरा धक्का था पर ऊस्की निगाहें साफ सोच में दुबई थी….उसका एक तरफ मुखहोटा पड़ा हुआ था…आज देवश की बात ने उसे कही न्ना कहीं तोड़ डाला था…तो क्या इसलिए ऊसने चोरी चाकरी छोढ़के ईमान का रास्ता अपनाया ताकि ज़ुल्मो से पीछे हटे…ना अब वो इस लाइन में आ चुकी थी…उसे ही कुछ अकेले अब करना था..शातिर तो हत इचोरी के टाइम भी ऊसने अकेले ही सबकुछ हैंडिल किया तो अब क्यों नहीं

रोज़ : हम आज रात को नींद तो नहीं आनेवाली मुझे देवश को शर्मिंदगी उठानी पड़ी उसका बदला मैं ऊस कमीने खलनायक से लेकर रहूंगीइ और इसका सिस्टम मुझे पता है कैसे करना है पुरानी रोज़ का दिमाग चलना होगा…(सोच की कस्माकश में दुबई रोज़ एकदम से मुस्कान भरने लगी)

रोज़ : एस्स पहले ये आइडिया कायु नहीं आया? पार मैं अब अकेली थोड़ी ना हूँ उसके साथ दगाबाजी नहीं कर सकतीी क्या सोचा देवश मेरे बार्िएन में ? नहीं ये सब उसके लिए ही तो है अब बेटा खलनायक तू बचेगा नहीं

रोज़ उठके अपने मुखहोते को पहन लेती है…और पास रखी पनचिंग बैग पे पूंछ मार्ण एलगती है…

उधर नींद की आगोश से जब टूटा…तो देखता हूँ कंचन कार्रहते भर रही इहा इसाली का चर्विदार बदन आंखों में जैसे घूम रहा है….”काश एक बार रगड़ सकता छी छी देवश ये क्या सोच रहा है? जिसने तेरे लिए इतना किया उसके साथ पर तूने कर भी तो रखा है नहीं भाई रिस्क नहीं ले विधवा बन चुकी है क्या पता गलत सोचे”………देवश अपने लंड से लड़ने कहा पर ऊस्की औकवाद बैठने का नाम नहीं ले रही थी

ऊसने एक बार उठके देखा तो कंचन की नीली सारी का पल्लू हाथ गया था और ऊस्की सपाट नंगी पेंट और गोल गहरी नाभी ऊपर नीचे हो रही थी उसके ब्लाउज के भीतर छुपी मोटे मोटे खरबूजे भी ऊपर नीचे साँसों की वजाहो से हो रहे थे…कथिए पे किसी तरह करवट बदले देवश अपनी आंखों से सोई कंचन के बदन को सैक रहा था


मैं धीरे धीरे बैठ से जब नीचे झाँका तो देखा की कंचन का सपाट पेंट और उसके ब्लाउज में ढकी अधखुली छातियो का दीदार हो रहा है…मैंने फौरन जैसे तैसे उठके एक बार अंगड़ाई ली पूरे बदन पे पट्टी थी…दवाई का हल्का हल्का नशा था…पर चड्डी से लंड एकदम मिसाइल की तरह खड़ा होकर सलामी दे रहा था…

तरकपन की आग में जलते हुए धीरे धीरे कथिए से नीचे उतरा…और कंचन के पास जाकर लाइत्न्े लगा….मैंने देखा कंचन गहरी साँसें ले रही है…उसी पल उसके पेंट पे हाथ फेरने लगा अफ कितना मुलायम गुदाज़ पेंट था…अगर वो जान जाए की मैं काला साया हूँ और उसे चोद भी रखा हूँ तो शायद वो मुझसे सहएमे ना और शायद चुदाया भी ले पर शायद वो मैंने तब ना पर उसके क़िस्सो से पक्का था की वो भी काला साया के साथ राजी ही थी

मैंने धीरे उसके पल्लू को एकदम दूसरी ओर फ़ेक दिया…अब वो पेटीकोट और ब्लाउज में मेरे सामने लेटी हुई थी….मैं उसके पेंट की नाभी पे उंगली घुमाने लगा…उसका सीना ज़ोर ज़ोर से ढक ढक कर रहा था ऊस्की कसमसाहट और ऊस्की ऊपर नीचे हो रही छातियो को देखकर समझ आ रहा था…मैंने फिर उसके पेंट पे ही हाथ घुमाएं रखा इतने में ऊस्की नींद टूट गयी और मुझे देखकर हड़बड़ाकर उठ बैठीी “से..अहेब आ..पे ये क्या?”…….मेरा हाथ अब भी उसके पेंट पे था

देवश : सस्सह अरे पगली बस तूने मेरी इतनी सेवा की उसी लिए तुझसे प्यार करने का दिल किया

कंचन : पर साहेब मैं आपकी नौकर हूँ आप मेरे साथ ये सब क्यों कर रहे है? आपकी हालत ठीक नहीं लाइट जाए साहेब बाहर हल्ला हुआ तो गज़ब हो जाएगा

देवश : तुम बनाएगी की मैं (मैंने हाथ उसके ब्लाउज के ऊपर रखते हुए उसके छाती पे रख दिया कंचन ने हाथ धकेलने की कोशिश की और ऊसने मेरा हाथ क़ास्सके पकड़ लिया जो उसके छातियो पे चल रहे थे)

देवश : कंचन आज तुझे एक सक्चई बताना चाहता हूँ अगर तुझमें हिम्मत है तो सुनकर घबराएगी तो नहीं

कंचन : आप कहना क्या चाहते हो?

देवश : काला साया मैं ही हूँ (कंचन एकदम से चौंके उठ बैठिी पूरी तरीके से मेरा हाथ उसके पेंट से हाथ चुका था वो मेरी ओर एकटक देखने लगी और फिर मैंने मुस्कुराकर उसे सारी दास्तान सुना दी)

कंचन मुँह पे हाथ रखकर मेरी ओर देखकर एकदम से मुस्कराने लगी..”साहेब आप तो देवता हो देवता यकीन नहीं हो रहा की आप जैसे आदमी जिसको मैं निकँमा और बुज़दिल समंझती थी आप इतने नायक दिल दिलेर निकोल्गे”………मैंने कंचन का हाथ पकड़ा और उसे शांत होने कहा

देवश : पर कंचन मैंने तो तेरे साथ किया है वो रात तो मज़बूरी में थी पर हम दोनों को मजा आय था ना

कंचन : आप भी ना

देवश : अरे तू शर्मा क्यों रही है? तेरी झांतों भारी चुत तेरे टांगों के बीच जो थी आज भी मेरे दिमाग में घूम रही है और तेरे ये ब्राउन निपल्स जो दूधु निकलते है ऊन्हें तो देखकर लगता है जैसे रस पी जाओ काश मैं तुझसे शादी कर पता

कंचन : आप तो बारे छिछोरे निकले साहेब अगर ऐसा था तो पहले आपने खुद के पहचान क्यों नहीं बताई हमें हम कौन सा शहर में ढिंढोरा पीटते

देवश : अरे पगली ऊस वक्त हालत सही नहीं थे चल कंचन अब मुझे वो करने दे जो मैं करना चाहता हूँ

कंचन पर वॉर करने लगी…पर मैंने ऊस्की एक ना सुनी और उसके ब्लाउज का हुक खोलने लगा…कंचन झेंप सी गयी थी..पर उसे यकीन नहीं हो रहा था की मैं काला साया ही हूँ..ऊसने अपनी ब्लाउज का स्तनों खोल डाला…मेरे अश्लील बातों ने उसे गरमा दिया था….फिर मैंने ऊस्की ब्रा से ही ऊस्की छातियो को दबाते हुए उसका ब्रा का हुक भी खोल डाला…फिर धीरे से ऊस्की पेटीकोट का नारा भी खिच के उतार दिया…कंचन एकदम मूर्ति की तरह अपने बदन को छूने दे रही थी उसके चेहरे शर्म से लाल हो चुके थे

मैंने जैसे ही ऊस्की पेटीकोट के नारे खोल के उसे नीचे खिसकाया..ऊस्की मांसल मोटी जांघों के बीच पैंटी के इर्द सीन इकाल्ती झांतों के गुकचे बाहर निकल आए….मैंने ऊस्की पैंटी पे मुँह रगड़ा तो कंचन वपयस लाइट गयी…मैंने ऊस्की पसीने डर महेकदर चड्डी भी खिसकाके उतार दी

“अब चल कंचन आज फिर मजे ले ले”…..कहते हुए मैंने उसके ब्रा को खोल के फ़ेक दिया…और ऊस्की सूजी झाँटो भारी चुत की फहाँको में एक उंगली डाला दी…”उईईई”…..कंचन के मुँह से सिसकने की आवाज़ निकल उठी…मैंने कंचन की चुत में उंगली कर दिया…और उसके छातियो को भरपूर तरीके से दबाने लगा…..”आहह अफ आप तो सच में वॉ हो”………कंचन कसमसाने लगी ऊसने मुझे अपने ऊपर खींच लिया और मैं उसके छातियो को चुस्सने लगा अफ कितने मोटे निपल्स थे उसे ही चूसने में पूरा टाइम लग गया था
 

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कंचन ने टाँगें खोल ली…और मैं ऊस्की चुचियों को चूसता रहा…ऊसपे अपना सर रगड़ने लगा…फिर धीरे उसके ऊपर चढ़ा और उसके पेंट को चूमते हुए ऊस्की झांतों भारी चुत में मुँह लगा डाला “हाय्ी दाययाअ आहह साहेब्ब्ब आपको गंदा लगेगा हम साफ नहीं करते”……मैंने कंचन के उंगलियों में अपनी उंगलियां फ़सा ली…एक हाथ से ऊस्की छातियो को दबाते हुए ऊस्की महेकदर चुत में मुँह लगा दिया ऊस्की कुरकुरी बालों में जुबान फहरते हुए उसके छेद में जबान फहीराने लगा…ऐसा नमकीन स्वाद था की दिमाग खराब हो गया

कंचन पानी चोद रही थी अपनी चुत से…साली की चुत इतने जल्दी गीली हो गयी थी…मैंने फौरन ऊस्की चुत को मुट्ठी में लेकर भींचा और ऊसपे फिर मुँह लगते हुए चाटने लगा….कंचन अकड़ने लगी और ऊसने फिर ज़ोर से चिल्लाते हुए रस चोद दिया….मैं कंचन के ऊपर आया और घुटनों के बाल बैठते हुए उसके मुँह के पास लंड लाया “अब चुस्स इसे”…….कंचन के आँख लाल थी वो भी किसी रंडी की तरह मेरे लंड को चुस्सने लगी…स्लूर्रप स्लूर्रप की आवाज़ मुँह से निकल रही थी वो एकदम प्यार से मेरे मोटे लंड को चुस्स रही थी…उसके चंदे के आगे पीछे हाथों से किए चुस्स रही थी

कुछ ही देर में ऊसने अपने थूक से मेरा लंड पूरा गीला कर डाला…मेरे गोलियों को भी कुछ छूसा…और फिर मैं उसके मुँह में ही धक्के मारने लगा…कंचन ओओउू ओउू करती हुई मुँह के भीतर तक लंड ले रही थी…मैं किसी तरह उसके मुँह से लंड निकलकर ऊस्की टाँगों को फैला लिया…मैंने ऊस्की चुत के मुँह पे लंड रखा…और एक क़ास्सके धक्का मारा…फकच्छ से लंड गीली चुत के भीतर तक जा बैठा

कंचन को कोई फर्क नहीं पड़ा चुदासी औरत तो थी ही साली का हज़्बेंड खूब रगड़ता था उसे…इन इंडियन औरतों में एक बात होती है की इन लोगों की गर्मी बहुत होती है मैं उसके चुत में ढापा धाप धक्के मारने लगा…फ़च फ़च करके ऊस्की चुत से लंड अंदर बाहर होने लगा…”आहह आहह आअहह और आरामम्म से बाबूजी आहह धीरे आहह”………कंचन की चुत पे लंड पेलते पेलते साला मजा दुगुना हो गया अब रस छोढ़ने का वक्त होने लगा और उसी पल शरीर में अकड़न महसूस हुई और मैं लगभग कनपता हुआ कंचन के ऊपर देह गया…लंड कंचन की चुत में लबालब रस छोढ़े जा रहा था…मैं उसके गालों को चूमते हुए पसीने पसीने हो गया कंचन भी पसीने पसीने निढल सी पढ़ गयी थी

रोज़ दीवार के ऊपर चढ़ते हुए वृंदमुनई के ऊस बंद परे गर्दन में घुस गयी…चारों ओर एक बारे बारे पेड़ के चाव में छूपते हुए ऊसने गौर किया एक तरफ दो जीप खड़ी है बाहर और कुछ दूरी से तहाका लगानी की हँसी आ रही है…”उम्म इन्फार्मेशन तो यही थी की आज ही के आज ये लोग यहां डीलिंग करेंगे”………रोज़ किसी तरह दूसरे ओर प्रवेश करती है…तभी उसे 10 गुंडे दिखते है एक तरफ जानमाना लोकल गॅंग्स्टर तो दूसरी ओर खलनायक

रोज़ उसे बेहद गौर से देखते हुए अपनी गुण निकाल लेती है…उसका गुस्सा सांत्वे आसमान पे चढ़ जाता है….पहले वो कुछ फोटोस ऊन लोगों की डीलिंग की गुप्टीनिए तरीके से ले लेती है..अचानक खलनायक को कुछ महसूस होता है…और वो अपने आदमियों को झाधी के पास जाने को कहता है…गुंडे लोग ऊस ओर जैसे जाते है ऊँपे फियरिंग स्टार्ट हो जाती है…पांचों के पाँच गुंडे वही देह जाते है

खलनायक भौक्लते हुए माफिया पे गोली दंग देता है “बेटीचोड़ तूने हमें फंसाने के लिए आदमी भेजा है हरंखोर दगाबाज़”……….इससे पहले वो गॅंग्स्टर कुछ और कह पता उसका काम वही तमाम हो जाता है…खलनायक अपने मुखहोते को ठीक करते हुए गुंडों को ऊस साए पे गोली चलाने का आर्डर देते हुए बाहर की ओर भागने लगता है

रोज़ किसी हुनरबाज़ करतबो की तरह गुलाटी मारते हुए…झाड़ी के कभी इस पार तो कभी ऊस पार अंधेरे में ऊन गुंडों पे आकरमन करने लगती है…ऊस्की गोली खत्म होती है तो मारे गुंडों की गोली से रिलोडेड करके ऊन लोगों पे गोलियां चलाने लगती है ऊस्की स्किल्स इतने परफेक्ट हो गयी थी एक हाथ से वो गोली किसी भी एंगल में चला रही थी….आख़िर कार सारे गुंडों को धायर करते हुए वो फौरन बाहर के रास्ते की ओर भागती है

खलनायक दीवार फहांदणे की कोशिश करता है…पर तब्टलाक़ उसे महसूस होता है की गाड़ी में बैठा उसका ड्राइवर मारा जा चुका है….वो पीछे की ओर जैसे मुड़ता है तो वही तहेर जाता है…रोज़ सामने खड़ी होती है…”हिलना मत वरना गोली चला दूँगी”……खलनायक को रोज़ का डर नहीं था पर उसे डर था की कहीं पुलिस ना आ ढँके उसके दोनों गुंडों को ऊसने आज अपने साथ लाआया नहीं होता

खलनायक : ठीक अच्छे मैंने अपने हाथ उठा दिए मेरे पास कोई हत्यार नहीं अब क्या करना चाहती है तू?

रोज़ : हिम्मत की अंकल देनी होगी दूसरे के देश में घुसके जीना हराम कर डाला तूने सभी का

खलनायक : भाई यही तो मेरी रोज़ी रोती है इसे लात मारूँगा तो ख़ौँगा क्या? (खलनायक तहाका लगाकर हस्सता है रोज़ उसे चिल्लाके चुप कर देती है)

रोज़ : पुलिस यहां किसी भी पल पहुचेगी पर उससे पहले तू अपना मुखहोटा उतारके मुझे अपना चेहरा दिखाएगा

खलनायक : खलनायक ने ये कसम खाई है की वो ये चेहरा किसी को नहीं दिखाएगा चाहे ऊस्की मौत भी क्यों ना हो जाए चला दे गोली वैसे भी आज पहली बार एक खूबसूरत हसीना के हाथों से मारूँगा हाहाहा शवाब तो मिलेगा या शायद कोई पुण्या किया था जो आज ये हालत देख रहा हूँ

रोज़ : वही रुक जा

खलनायक बहुत शातिर था…ऊसने फौरन अपने जुटे में लगी लेज़र को अपने हाथों में लगे स्तनों से ऑन किया और सीधे रोज़ के टांगों के बीच के भाग पे लगा दिया..रोज़ को एक जलन हुई उसके चंदे के कपड़े पे छेद था..”इसे कहते है नियत जल उठी”……..खलनायक ने फौरन फुरती से रोज़ को पकड़ लिया


रोज़ का गुण दूसरी ओर गिर पड़ा…दोनों एक दूसरे पे लात घुसों की बौछार करने लगे….लेकिन दोनों में से कोई हार नहीं मान रहा था…अचानक खलनायक ने रोज़ के दोनों हाथों को बाँध दिया फुरती से उसी के कपड़े को फाड़के और उसे ज़मीन पे गिरा दिया पास से गुण भी उठा ली “अब बता चित भी मेरे पटा भी मेरा…क्या सजा डूटुझे?”………रोज़ गुस्से भारी निगाहों से खुद को बेबस महसूस करते हुए खलनायक की ओर देख रही थी

खलनायक : तुझे मारने का बहुत दिल कर रहा है पर तुझ जैसी खूबसूरत्त मासूम तीखी चालबाज़ मज़बूत लौंडिया जैसी कोई नहीं तूने मेरा बहुत नुकसान किया फिर भी दिल तुझपे मेहेरबान आयी

रोज़ : कमीने हाथ तो खोल फिर तुझे अपनी खूबसूरती का दीदार करती हूँ (गुस्से से थूकते हुए)

खलनायक : अच्छा ग चाहू तो काला लंड के हवाले तुझे कर दम पर तू दिल को जैसे भा गयी है

रोज़ : मर दे मुझे कमीने इंतजार मत कर

खलनायक : तू मुझे ललकार मत मैं तुझे इतनी आसान मौत नहीं दूँगा तू खुद मेरे नाम से तडपेगी ऐसा जादू तुझपे करूँगा

खलनायक जो बेरहेमी और लड़कियों के प्रति इतना कठोर था आज ना जाने क्यों वो बार बार रोज़ के चेहरे को प्यार से देख रहा था…आजतक उसके जिंदगी में बेहद खूबसूरत औरतें आई जो काला लंड के हवाले मौत के आगोश में गयी पर ना जाने क्यों रोज़ उसे पागल सी कर रही थी…..दूसरी ओर रोज़ को वो तरक़ीब भाने लगी…और ऊसने सोचा की यही आसान तरीका है खलनायक के चेहरे उसका परदा उठाने का…ताकि वो खलनायक को अपने हुस्न के जाल में डालकर उसे मर स्काए…ऊसने दिल ही दिल में देवश से माँफी माँगी अपनी होने वाली गुस्ताख़ी के लिए और खलनायक को मुस्कुराकर देखा

खलनायक हाथ बँधे रोज़ के तरफ देख रहा था उसके चेहरे पे लगे नक़ाअब होने से वो मुस्करा रहा था या नहीं इसका पता नहीं चल पा रहा था…बस उसके इस राक्षस जैसी मुखहोते के अंदर की दो आँखें जो बेहद तिरछी निगाहों से रोज़ की ओर देख रही थी….रोज़ बस अपने हाथ को छुड़ाने की नाकाम कोशिशों में बस हिल डुल रही थी वो बैठी बैठी बस खलनायक के वार का इंतजार कर रही थी

खलनायक : सोचा नहीं था की टेढ़ी लड़की जिंदगी में मिलेगी और तुझ जैसी लौंडिया के लिए तो अपुन पूरा माफिया लाइन चोद दे (खलनायक रोज़ के चेहरे पे हाथ फिरता है और उसके होठों पे पागलों की तरह उंगलियां चलाने लगता है रोज़ कसमसा रही थी हाथों के स्पर्श से ही उसका दिल ढक ढक करने लगा था)

खलनायक फौरन अपने एक हाथ में रखी गुण को लिए ही…अपनी जॅकेट उतारने लगता है और फिर अपना शर्ट भी…उसका चिकना बदन रोज़ के सामने होता है…फिर वो अपनी बेल्ट को ढीली करने लगता है और फिर अपनी ज़िप भी…वो किसी बलात्कारी की तरह सेक्स पसंद नहीं करता था…लेकिन ज़बरदस्ती एमिन वो सिर्फ़ लड़कियों के हाथ पकड़ लेता था.और ऊँपे चढ़ जाता था….ऊसने धीरे से अपनी पेंट भी उतार के फ़ेक दी…और फिर चारों ओर देखा सन्नाटा में बस लाशों का धायर पड़ा हुआ था..कहीं उसके आदमी तो कहीं उसका डीलर

खलनायक : चल तूने फायदा तो किया वरना मुझे अपनी ड्रग्स बेचनी पढ़ती अब तो पैसे भ इमेरे हाथ में ड्रग्स भी बेचने नहीं पड़ेगी और एक कमसिन लड़की भी पूरी रात इस सन्नाटे भरे वीरान जंगल में बिताने को हाहाहा

कहीं दूर कुत्ता रो रहा था…एकदम ठंडी वीरनीयत थी..वो धीरे से अपने कक़ची को भी खिसका के उतार फैक्टा है…रोज़ दूसरी ओर मुँह मोड़ लेती है…खलनायक उसके मुखहोते लगे चेहरे को अपनी ओर करता है और फिर उसके संग बैठ जाता है…हालाँकि रोज़ चाहे तो उसे मर सकती है पर ना जाने क्यों देवश से हुई ऊस्की एक दूरिया उसे खलनायक जैसे खतरनाक मर्द की ओर भी आक्रशित कर रही थी उसके पास खींच रही थी…ऊस जैसा ज़लैईं खतरनाक अमीर कोई नहीं चाहे तो उसका हाथ थाम ले तो दुनिया उसके कदम चूमे पर रोज़ को तो अपना प्लान अंजाम देना ही था खुद के जिस्म को हवाले करके

खलनायक ने झट से रोज़ को एक धक्का दिया…रोज़ गिर पड़ी उतना चाहा लेकिन तभी खलनायक ने रोज़ के गर्दन पे एक हाथ दे मारा…रोज़ चिल्ला उठी उसके बाद धीरे धीरे ऊस्की आंखें बंद हो गयी….”अब आया ना मजा”……रोज़ बस धुंधली निगाहों से खलनायक को अपने जिस्म को छूते महसूस कर रही थी

खलनायक ने रोज़ की जॅकेट के ज़िप को धीरे धीरे आहिस्ते से उतार डाला..फिर ऊस्की बुलेटप्रूफ हाफ स्लीव जॅकेट को भी रोज़ टॉप में थी…खलनायक ने बिना पवाह किए रोज़ को सहारे से उठाया और उसके कमर से टॉप का सिरहा निकलते हुए उसे रोज़ के जिस्म से निकलते हुए उतार फ़ैक्हा…रोज़ के गले में ऐसा दर्द था की वो बदहवासी हो गयी थी खलनायक का ऊसने गला दबोचना भी चाहा पर खलनायक ने उसके हाथ को झट से अलग कर दिया…और उसे फिर लेटा दिया..वो रोज़ के सपाट चिकने पेंट पे उंगलियां फहीराने लगा..रोज़ हुहह जैसी आवाज़ निकालने लगी

कसमसाती रोज़ को देखकर खलनायक पागल सा होने लगा…ऊसने रोज़ के जीन्स पे हाथ डाला और बेल्ट को और जीन्स को भी ढीला करके खिसाके टांगों से निकाल डाला…रोज़ अब एक काली पैंटी में थी और ब्रा में…खलनायक ने उसके ब्रा को खैच के उतार दिया जिसे ब्रा का हुक टूट गया और फिर ऊस्की पैंटी पे नाक लगते हुए ऊस चड्डी को भी खिसाके उतार दिया

रोज़ मदरजात एकदम नंगी थी बस अपने छातियो को हाथों से छुपा रही थी और अपनी टांगों के बीच के भाग को भी क़ास्सके टांगों से छुपा लिया…खलनायक ने रोज़ के पूरे बदन पे एक बार हाथ फायरा…जैसे निरक्षण कर रहा हो..फिर ऊसने रोज़ के ऊपर चढ़ते हुए उसके होठों पे होंठ सटाये रोज़ उसे किस तो नहीं कर रही थी पर खलनायक उसके होठों को मुँह में लेकर बुरी तरीके से चुस्स जरूर राह था…म्‍म्म्ममम एमेम करती रोज़ पाओ पटकने लगी
 

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(UPDATE-63)


वो अपने हाथों से खलनायक को धकेलने लगी पर सब नाकामयाब….खलनायक ने उसके दोनों हाथ को क़ास्सके पकड़ा और उसके महेकते बदन पे मुँह फहीराने लगा….और फिर धीरे उसके छातियो से हाथों को हटा कर देखने लगा ऊसने उसके सख्त निपल्स को मुँह में भर लिया..रोज़ एकदम पत्थर सी बन गयी…खलान्यक बारे फहुराती से छातियो को दबा रहा था…अपनी टाँग रोज़ के टांगों के बीच फहीरा रहा था….रोज़ चुट्त नहीं सकती थी…वो बस खलनायक के बदन से लिपटी हुई थी…खलनायक ने रोज़ के छातियो को दबाते हुए उसके पेंट पे मुँह लगाया और वहां एक चुम्मा लिया…रोज़ एकदम सिसक उठी वो अपने बदन को हवा में उठाने लगी

खलनायक ने थोड़ा सा मास्क उठाया और अपने होठों से निकलती लपलपाती जुबान और होंठ दोनों पेंट पे रखक्के चुम्मने लगा..नाभी को चाटने लगा…रोज़ का बदन गोरी होने से अंधेरे में भी चमक रहा था….खलनायक पागलों की तरह पेंट को किस करता हुआ नीचे होने लगा

फिर ऊसने दोनों टांगों को हाथ से अपने फैलाया…और फिर बीच के सूजी चुत के भाग पे अपना मास्क आधा उठाते हुए अपने मुँह को रख दिया…रोज़ चौंक उठी…वो खलनायक के सर पे हाथ रखने लगी उसके मास्क को भी उठाने की कोशिश करने लगी…पर खलनायक इतना चूतिया नहीं था ऊसने क़ास्सके रोज़ के हाथ को अपने सर पे ही पकड़े रखा…और उसके सूजी चुत के नमकीन रस को पीने लगा

रोज़ की सूजी चुत के भीतर मुँह लगाकर ऊस्की महक को सूंघते ही जैसे वो पागल हो गया और बारे ही फुरती से रोज़ के हाथों को पकड़े पकड़े वो रोज़ के चुत के भीतर मुँह लगाए जबान चलता रहा उसके दाने को भी चुस्सता रहा…रोज़ कसमसाने लगी आहें भरने लगी…अपने छातियो पे ना चाहते हुए भी दबाने लगी…आजतक ऊसने ये बदन क्सिी को अँहि सौंपा था सिवाय अपने बाय्फ्रेंड और फिर अपने होने वाले प्यार देवश को लेकिन आज उसे समझ नहीं आ रहा था ऊसने ये क्या निर्णय लिया था

रोज़ के टांगों के बीच मुँह लगाए करीब कुछ देर तक खलनायक चुत को चाँटता रहा…और ऊसपे मुँह लगाए एक बार रोज़ की तरफ देख पढ़ता…ऊसने देखा की रोज़ एकदम लाल हो गयी है…तो फौरन चुत के मुआने पे दो उंगली डाली…फकच से उंगली अंदर धंस गयी…खलनेयक ज़ोर से चुत में उंगली करने लगा…बीच बीच में आहें भरती कार्रहती इधर उधर रगड़ती रोज़ को देखकर मजे भी लेने लगा….

रोज़ कुछ नहीं कह पा रही थी लेकिन ऊस्की चुत पे होती उंगली ने उसे रस छोढ़ने को मज़बूर कर दिया और वो कुछ ही पल में झड़ गयी खलनेयक ने नमकीन रस भारी चुत में फिर मुँह लगाकर उसे छूसा…और उसका स्वाद चक्खा…फिर ऊसने उठके रोज़ के छातियो को भी चूसना शुरू किया….इस बीच रोज़ के चुत पे लंड घिस्स रहा था…जब ये बात खलनायक ने नोटिस की तो ऊसने रोज़ को कांपता पाया…उसे लगा शायद रोज़ भी चुद ने को बेक़रार है अब घोड़ी की लगाम उसके हाथ में आ चुकी है

ये सोचते ही ऊसने अपने लंड को चुत पे घिस्सते हुए रस भारी चिकनी छेद में एक ही धक्के में पेल दिया…लंड अंदर घुस्सते ही रोज़ दहढ़ उठी…खलनायक ने एक हाथ से रोज़ के मुँह पे रख दिया..रोज़ फिर लाइट गयी ऊसने बारे ही आहिस्ते आहिस्ते लंड को करार धक्को से अंदर तक घुसेड़ दिया…रोज़ इस धक्को से बीच बीच में तड़प उठती…अब जो होना था वो हो चुका था…रोज़ की चुत में खलनायक का लंड धंस चुका था…

कुछ देर खलनायक वैसे ही रोज़ को देखते हुए दोनों पंजों को धंस को पाकड़े ही एक करारा धक्का लगता है…रोज़ फिर चीख उठती है….खलनायक रोज़ को तड़पते देखकर फिर चुदाई शुरू करता है…और फिर धक्के तेजी से बढ़ता है लंड चुत से अंदर बाहर धीरे धीरे होते होते राजधानी एक्सप्रेस की तरह एकदम ज़ोर की रफ्तार से अंदर बाहर होने लगता है…फचक पकच करके रोज़ की गीली चुत पानी छोढ़ने लगती है और फवारे की तरह चुत से निकालने लगती है लंड के चारों ओर से…लंड इतना चिकना था की चुत में आराम से प्रवेश करते गया

रोज़ की आंखों में आँसू देखकर खलनायक उसके चेहरे के करीब अपना चेहरा रखकर उससे नज़र मिलता है “तेरे आंखों के आँसू बता रहे है की तू मज़बूर है…और मैं तेरे मज़बूरी का फायदा उठा नहीं रहा बल्कि मैं इस रात का फायदा यू था रहा हूँ हालत का फायदा उठा रहा हूँ”………खलनायक रोज़ के होठों पे होंठ रखकर उसे किस करने लगता है…अब रोज़ भी धक्को से सिहरने लगती है

दोनों के बदन आपस में मिलने लगते है रोज़ आंखें मुंडें रहती है…और खलनायक बड़ी ही धीमी आवाज़ में आहें भरते हुए रोज़ की चुत में लंड अंदर बाहर कर रहा होता है…वो रोज़ की छातियो को दबाए हुए रोज़ के गाल और होठों पे चूमने लगता है…कुछ ही देर में ऊस्की रफ्तार बेहद तेज हो जाती है और फिर वो झधने की कगार पे पहुंचने लगता है…दोनों की मीठी मीठी सिसकियां पूरे माहौल में गुणंज़े लगती है


कुछ ही देर में खलनायक अपना लंड रोज़ की चुत से निकल लेता है और उसके मुँह पे रखकर मूठ मारने लगता है….रोज़ को ना चाहते हुए भी ये काम तो करना ही था वो खलनायक के मोटे लंड को चुस्सने लगती है…ताकि वो अपने प्लान को अंजाम दे सके….रोज़ अओउ ुआओउ करके बेधधक बेसवार जलती आग में तारक की खलनायक के सिसकियों को सुनते हुए उसके लंड को चुस्सती है…..और कुछ ही पल में खलनायक लंड को रोज़ के मुँह से बाहर निकलकर उसके चेहरे पे ही झधने लगता है

रोज़ का पूरा चेहरे और मुखहोते पे सफेद गाढ़ा रस लगने लगता है…खलनायक भी हापसने लगता है पसीने पसीने होते हुए भी वो घुटनों के बाल बैठा नंगा नंगी रोज़ के चेहरे पे लंड फहीराते हुए अपने रस को निचोड़ रहा था…

रोज़ का चेहरा रस से गीला था…और उसके होठों पे लंड लगते के साथ ही रोज़ ने फौरन एक मुक्का उसके अंडकोष पे झड़ दिया…खलनायक गिर पड़ा…वो बहुत तक गया था…रोज़ ने फौरन ऊसपे न्नंगी चढ़ते हुए उसके मास्क को उतारना चाहा…पर नाकमााबी टूर से खलनायक ने उसे एक ही लात में हवा में फ़ेक दिया रोज़ दूर जाकर थोड़ा गिर पड़ी…खलनायक हंसते हुए उठा और काँपते हुए अपनी जीन्स पहनने लगा

इतने में पुलिस की साइरन की आवाज़ आने लगी…”तेरे पास भी वक्त नहीं और ना मेरे पास है पार्कसम से ये रात हमेशा याद आएगी चाहे तो अभी मेरा हाथ पकड़ और मेरा साथ निकल जा इस जगह से कहीं दूर..चोद ईमान को क्या रखा है इसमें सिर्फ़ दुख है दर्द और गरीबी”……….रोज़ के तरफ खलनायक हापसते हुए उसे हाथ देता है…रोज़ कीिस बैग की तरह न्नंगी घुर्रा रही थी जैसे अभी झपट पड़ेगी…पर पुलिस की साइरन को सुन वो भी काँप उठी

खलनायक अपने मास्क को ठीक करता हुआ..जीन्स और जॅकेट पहनने की कोशिश करने लगा ऊसने एक बार रोज़ की तरफ देखा और उसे उसके कपड़े फ़ेक के दिए….रोज़ ने ऊस हालत में जैसे तैसे कपड़े पहने…लेकिन ऊस्की फटी ब्रा खलनायक एह आठो एमिन थी उसे खलनायक सूंघ रहा था…रोज़ गुस्से से उबाल रही थी “तेरे लिए हमेशा मेरा दरवाजा खुला है मानता हूँ तू मुझे पुलिस के हवलए करना चाहती है लेकिन वो कभी नहीं होने वाला पर तेरे लिए मेरे घरके दरवाजे हमेशा खुला है कभी मिलना हो तो ढूँढ लेना मेरे आदमी बता देंगे तुझे हाहहहा”…….तहाका लगते हुए खलनायक भाग निकला

रोज़ को सख्त गुस्सा आ रहा था..आज वो इतना करीब होकर भी खलनायक को पकड़न आ सकी और ऊसने अपने बदन भी उसके हवाले कर दिया उसे खुद पे गुस्स्सा तो बहुत आया…लेकिन शर्मिंदगी के सिवाह और कोई चारा नहीं था…ऊसने जैसे तैसे अपने रूमाल से मुखहोते को उतारके पूरे चेहरे को पोंछा और वहां से फौरन दूसरी साइड से भाग निकली…जल्दी पुलिस को गाड़ी मिली खलनायक की और संग में घासो पे बिछी लाशें खलनायक ऊन में से कही नहीं था एक बार फिर पुलिस हाथ मलते रही गयी

रोज़ अपनी बाइक को तेजी से दौड़ा रही थी उसके ज़हन में खलनायक की बातें गूंज रही थी खलनायक ने उसे सिर्फ़ छुआ नहीं बल्कि उसे अपना साथी बनने का हाथ दे रहा था वो आदमी खतरनाक है चाहता तो गोली से मुझे मर देता पर ऊसने मुझे मारा क्यों नहीं? दूसरी ओर ऊसने अपने माथे को टांका की ये सब क्या किया मैंने? देवश के साथ धोखा ऊसपे क्या बीतेगी जब उसे पता चलेगा की मैंने खलनायक के साथ!….रोज़ को अपने ऊपर घिन्ना भी हो रही थी बेरहेआल ऊसने फैसला कर लिया की इस बारे में वो देवश को कुछ नहीं बनाएगी

सुबह 4 बजने से पहले ही..मैंने किसी तरह उठके अपनी पत्तियो के अंदर को ज़ख़्मो को टटोला..और फिर धीरे धीरे अपनी फटी वर्दी को किसी तरह पहनें…बिना कंचन को जगाए दरवाजे से निकल गया…ताकि उसके मोहल्ले वालो में किसी को मेरे यहां तहेरने की भनक ना लग जाए..एक तो ऐसे ही बेचारी विधवा है ऊपर से उसका कोई भी नहीं अब सब उसी पे उंगली उठाएँगे…मैंने जैसे तैसे एक नोट चोद दिया बांग्ला में…और वहां से निकल गया

पता चला जीप किनारे में ही वैसी की वैसी खड़ी है…चलो पुलिस को कुछ पता तो नहीं चला..मैंने जीप जैसे तैसे स्टार्ट की और अपने नये घर में आकर हॉर्न बजाई…दिव्या की नींद टूट गयी और ऊसने हप्पी छोढ़ते हुए दरवाजा खोला…मैंने फौरन गाड़ी अंदर कर ली…दिव्या मुझे अज़ीब तरीके से चलते देख पास आई

दिव्या : के..क्या हुआ तुम्हें?
 

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देवश : नहीं पहले घर के अंदर मुझे ले चलो फौरन (दिव्या ने मुझे कंधे से पकड़ा और अंदर ले आई)

अंदर आकर एक गिलास ठंडी लस्सी पी..और फिर अपने फटे कपड़े को उतार फ़ैक्हा कपड़ों पे लगा खून और जगह में इतने गहरे छेड़ो को देखकर दिव्या मेरी ओर गंभीरता से देखने लगी ऊस्की निगाह मेरे बदन पे लगी इर्द गिर्द के पत्तियो पे पड़ी…”हे भगवान ये सब कैसे?”………मैंने उसे अपने पास बिठाया

और तफ़सील से उसे सारी बातें बता दी की कल रात गश्त के दौरान खलनायक के आदमियों ने मुझपर हमला किया…दिव्या अपने मुँह पे हाथ रखकर रोई सूरत से मुझे देख रही थी…मेरे जख्म अब भी भरे नहीं थे…दिव्या ने मुझे लिटा दिया और मेरी बताई दवाई मार्केट से खरीदकर जल्दी से ले आई

कंचन भी उठके मुझे ही ढूँढेगी और हड़बड़ाकर मेरे पहले वाले घर आएगी और मैं वहां ना मिलूँगा तो फिक्र अलग…इतनी औरतें जिंदगी में हो गयी की की किस को बताते फीरू….फिर अचानक आँख ढाल गयी….अचानक फोन बज उठा…दिव्या ने मुझे फोन दिया बोला किसी बारे अफ़सर का फोन है

मैंने फोन जैसे उठाया हवलदार ने बताया की आपको कमिशनर ने कलकत्ता बुलाया है अर्जेंट…मैंने अपने हाल के बारे में बताया हवलदार बहुत परेशना हुआ साथ में कॉन्स्टेबल्स ने भी मेरे यहां आने की इजाज़त माँगी वो सब फ़िकरमंद थे मैंने ऊन्हें बुला लिया….2 कॉन्स्टेबल और मेरे काबिल अफ़सर्स जिन्होंने काला साया को मर गिराया था और हवलदार आए….दिव्या ने सबको चाय पानी दिया…सबने मुझे सपोर्ट किया और गुस्सा हुआ की आप हमें सूचित क्यों नहीं किए? खलनायक के बढ़ते अपराध बहुत ज्यादा घातक होते जा रहे है

मैंने ऊन्हें समझाया ये तो चलता ही रहेगा हमारा कमिशनर कभी ऊन्हें मारने का आर्डर नहीं देगा…अफसरों को भी दुख था की ऊन्होने गलत रास्ता इकतियार किया ऊन्हें गिल्ट था की काला साया को मारने के बजाय ऊन्हें इन खतरनाक मुर्ज़िमो को मर गिरना चाहिए था….लेकिन सारी लगाम तो कमिशनर के हाथ में है वो लोग तो सिर्फ़ मामूली मुलाज़िम थीं मेरी तरह…खैर हवलदार ने बोला की आपको आज ही बुलाया गया है…दिव्या थोड़ी फिक्र करने लगी पर मैंने कहा मैं जल्दी ऊनसे बात करके आ जाऊंगा…शायद कल की प्रेस रिपोर्टिंग में कॉँमससिओनेर को मुझपर गुस्सा आया है की काला साया की मौत का खुलासा हो गया है और खलनायक को मारने केओर्दर्स नहीं दिए जा रहे

मैं जैसे तैसे किसी तरह ठीक होकर जीप से कलकत्ता के लिए रवाना हुआ…रोज़ की भी फिक्र थी अभी तक वो आई भी होगी की नहीं? मैंने ही तो उसे उसके फर्ज से निकाल दिया था…कुछ समझ नहीं आ रहा था जिंदगी में इतने घाव कभी नहीं झेले थे…जल्द ही कलकत्ता पहुंचा पुलिस हेडक्वॉर्टर्स…वहां पहले से ही कुछ लोग धारणा दिए बैठे थे मुझे देखते ही ऊन्होने रास्ता चोद दिया

कमिशनर के केबिन में आते ही…कमिशनर ने मुझे बारे ही गौर से देखा और फाइल पटकते हुए खड़े हो गये…”आओ आओ हमारे काबिल ऑफिसर आइये बैठेंगे या चाय पिएँगे”……..मैंने सलाम ठोनकटे हुए आश्चर्य नजारे से कमिशनर की ओर देखा

कमिशनर : ये जो बाहर लाइन देख रहे है ना सब आपका ही किया धारा है…मुझे ये उम्मीद नहीं थी अपने ऑफिसर से की वॉ अपने ही कमिशनर और रेस्पेक्टेड सर पे उंगली उठाएँगा ऊँपे कीचड़ उछालेगा प्रेस वालो के सामने

देवश : मैंने कोई कीचड़ नहीं उछाला है सर सिर्फ़ हालत को देखते हुए कहा है

कमिशनर : ओह चुत उप मुझसे बदला जो लेना था तुम्हें क्यों? ठंडक मिल गयी अपने ही अफसरों पे कीचड़ उछालके बेज़्ज़ती करके हाउ कुड यू दो तीस? ई डिड्न’त ईवन थिंक डेठ बाहर देखा कितने लोग धारणा दे रहे है हिज़डो की तरह तालिया बजकर हमारा मज़ाक उड़ा रहे है वॉट दो यू थिंक अभी अरे जोक?

देवश : सर डेठ’से नोट देयर फॉल्ट गलती हमारे सिस्टम की है अगर आपने ठोस वक्त पे एक्शन!

कमिशनर : ये क्या तुम्हें हिन्दी फिल्म लग रहा है जहाँ पे कमिशनर ने आर्डर दिया और तुम गोली बरसाने निकल गये कानून भी कोई चीज़ है बेटा..अगर हम ही लॉ को नहीं मानेगे तो हुममें और मुज़रिमो में फर्क क्या रहेगा बताओ ज़रा

देवश : ई वाज़ जस्ट ट्राइयिंग तो तेल यू अबौट और फॉल्ट सर देखिए मैंने कोई कीचड़ नहीं उछाला खलनायक ने कल एक मासूम लड़की के साथ घिनौना सोशण किया और उसे मर के सरेआम थाने के सामने नंगा चोद दिया दीदी यू एवर फील डेठ अगर यही अगर आपकी बेटी या बहन

कमिशनर : श शुतत्त उप (कमिशनर ने गुस्सा होकर गाराज़ उठा लेकिन देवश एक टॅस से मास नहीं हुआ)

देवश : लगता है ना ऐसे ही जिसके घर पे बीती है उसे लगता है…वो तो महेज़ 19 साल की एक मासूम जवान लड़की थी…कल कोई और भी होगा खुदा ना खस्ता कुछ अगर हो जाए तो क्या ये वर्दी ये कानून देख पाएगा और एक लाश नहीं सर मैं ये केस हैंडिल जरूर कर रहा हूँ और अब मैं भी इन लोगों की तरह यही चाहता हूँ की मैं खलनायक और उसके आदमियों के सीने में गोली भर दम


कमिशनर : ये नहीं हो सकता क्योंकि खलनायक एक इंटरनॅशनल मुज़रिम है और बाहर कंट्री को वो ज़िंदा चाहिए अगर वो ज़िंदा ना मिला तो इंडिया के फंड्स तक रुक जाएँगे

देवश : हाहाहा देश को अपनी फिक्र है बाकी जो देश के लोगों के साथ हो वो जाए भढ़ में वाह सर आपसे ये सीख सीखने को मिला इस फंड का क्या? ऐसे रस्ेआचेस का क्या? क्या ये ऊस लड़की को वापिस ला देगा? क्या वो लोग हमारे देश को क्राइम फ्री कर देंगे नहीं सर जो करेंगे हम खुद करेंगे और मैं अब यही चाहता हूँ अपने जो काला साया

कमिशनर : देखो देवश काला साया काला साया वॉट आ क्रोक काला साया सिर्फ़ एक महेज़ मुज़रिम था एक मामूली इंडियन मुज़रिम ना ही कोई इंटरनॅशनल उसे मारना जरूरी था

देवश : हाँ क्योंकि वो आपके फंड्स रोक रहा था यही ना

कमिशनर : अपनी हद में रही लो देवश यू अरे टॉकिंग विड और सीनियर वैसे भी तुममिेन और मुज़रिमो के किससे आम है सुन रहा हूँ रोज़ के साथ भी तुम आजकल घूम रहे हो ये ना हो की कहीं तुम ही पुलिस की टारगेट बन जाओ…ई आम रियली परेशान डेठ की जो तुम्हारे साथ हुआ मुझे पुलिस नबाताया लेकिन हमें ये सब सहना होगा

देवश : सहन वो करते है जिन्हें मरवाने का शौक होता है मुझे नहीं मैं मारने का शौक रखता हूँ और नो सर ई आम टॉकिंग विड आ लाइयर आ लाइयर हूँ जस्ट लाइयिंग विद हिज़ ओन पीपल वेर हे ऑल्वेज़ ट्राइयिंग तो प्रिटेंड डेठ थे पुलिस इस फॉर थे प्रोटेक्शन और अगेन्स्ट क्राइम और यू जस्ट सेल्लिंग तीस पीपल फॉर और ओन प्रॉफिट इस्न;त इट? अब मातृ भाषा में बोलता हूँ ई आम रिज़ाइनिंग तीस जॉब

मैं गुस्से की आग में केबिन से निकल ही रहा था….”सोच लो देवश तुम बहुत बड़ी गलती करने जा रहे हो”……..मैं मूधा “सर गलती की थी जिंदगी में अपने असल पहलू को छोढ़के बदले की भावना को छोढ़के अब मैं आज़ाद हूँ थेन्क यू सर आपके साथ काम करके मुझे सही गलत की पहचान हुई”……..कमिशनर झल्ला उठा

“गेट आउट ई साइड गेट आउट यू अरे सस्पेंडेड”……..मैंने मुस्कुराकर कुछ और नहीं कहा..बस अपनी गुण और अपने स्टार्स को उतारके टेबल पे रख डाला…और फिर अपनी बेल्ट भी उतार के फ़ेक दी “सर ये तो सिर्फ़ एक पत्ता था कुत्ते के गले में अब ये कुत्ता काटने को आज़ाद है क्योंकि अबतक ये सिर्फ़ भौंक सकता था”……..कमिशनर का गुस्सा सांत्वे आसमान पे था…मैंने मुस्कुराकर निकल गया

सब कोई सुन चुका था…हर कोई मेरे ओर देख रहा था…मैं सस्पेंडेड हो चुका था और मुझे फकर भी था…कॉन्स्टेबल और हवलदार के आंखों में आँसू थे…मैंने उनके कंधे पे हाथ रखा और सबको हाथ जोड़के अपनी जीप पे सवार हो गया….धारणा फिर शुरू हो गया और मैं जीप पे सवार होकर अपने घर निकल गया

ऊस दिन मैं टूट सा गया था….कुछ अच्छा नहीं लग रहा था…..अपने वीरान घर पहुंचा….अनॅलिसिस ऑफिस की बत्तिया जलाई…काला साया के नक़ाब और कपड़ों को शीशे के अंदर देखा…और फिर मुस्कुराकर अपनी आँसुयो को पोंछके सोफे पे बैठ गया…सोफे पे हाथ रखते ही मुझे रोज़ की याद आई….आज मेरी ही वजाहो से मैंने रोज़ को अकेला कर डाला था..सिर्फ़ मेरी वजाहो से….4 दिन हो गये ना रोज़ आई ना ही उसका कोई खत उसका पता भी नहीं जनता था…इधर दिव्या भी मेरे लिए दुखी थी क्योंकि मैं टूट सा गया था उधर एक खुशख़बरी सुनाने को मिली की शीतल रामलाल के साथ बर्दमान में ब्याह के लिए जा चुकी है…अपर्णा ने मुझे न्योता भेजा पर मेरे आने का कोई मतलब नहीं था और ना मन था… अब मैं अपने फर्ज से बिलकुल दूर हो चुका था और बढ़ते अपराध पे अब मेरा कोई हक़ नहीं था रोकने का

उधर खलनायक अपने कुर्सी पे बैठा..रोज़ के ब्रा को सूंघ रहा था जिसे ऊसने ऊस्की चुदाई के वक्त खींच के फाड़ दिया था…सफेद ब्रा को सूंघते देख उसके आदमी मुस्कराने लगे….तभी कमरे में निशानेबाज़ आया…और ऊसने मुस्कुराकर खलनायक को ब्रा सूंघते पाया

निशनीबाज़ : सर?

खलनायक : बोलो ब्रदर क्या खबर लाए हो ? (खलनायक खुशी मन से ऐत्ते हुए बोलता है)

निशानेबाज़ : वो साला देवश पुलिसवाला नहीं रहा उसे सस्पेंड कर दिया ज्यादा ज्यादा आगे आगे कर रहा था अब तो साले को मारना और भी आसान है

खलनायक : हाहाहा वाहह बहुत खूब वैसे भी हमारा माल हमारे हाथों मेंआअ सी हुका है….पुलिस भी अब हुंपे नज़र कड़े कर चुकी यक़ीनन इस देवश की वजह से कहीं पुलिस हमारे मौत का पैगाम का सुना दे

निशानेबाज़ : आप कहें तो इन अफसरों को भी!
 

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खलनायक : खून ख़राबा हमें पसंद है लेकिन मौके पे…जब हम यहां से निकलेंगे वैसे ऊस लड़की रोज़ को भी हम साथ ले जाएँगे

निशणेबाज़ : पर सर ये आप क्या कह रहे है? वॉ तो हमारी दुश्मन उसके वजह से हमें कितना नुकसान उठना पड़ा माल को लेकर

काला लंड चुपचाप एक जगह खड़ा सुन रहा था…”नुकसान हुआ तो भरपाई भी कर दी है ऊसने”……..निशानेबाज़ और बाकी गुंडे हैरान थे….”अब भरपाई कैसे की उसका तुम्हें बयान करना मैं जरूरी नहीं समझता…रोज़ के पीछे लग जाओ और इस बार मैं इसमें ंसाथ दूँगा मुझे वो लौंडिया ज़िंदा चाहिए और उसके ठीक मेरे हाथों में आने के बाद मैं ऊस देवश और इस देश में एक हड़कंप मचके यहां से फरार हो जाऊंगा गॉट इट”……….निशानेबाज़ ने सिर्फ़ आदेश का पालन करते हुए सर झुकाया

“अब जाओ हमें कुछ देर आराम करने दो”…….सारे गुंडे और निशनीबाज़ बाहर निकल गये…क्सिी को भी हक़ नहीं की ऊस हाथों में ब्रा की बात छेद दे…यक़ीनन ऊन लोगों को लगा किसी का शिकार खलनायक ने किया है…पर वो जानते नहीं की रोज़ खलनायक के दिल में बस चुकी है

काला लंड बार बार ऊस ब्रा को देख राह था….और ऊसने पास आकर खलनायक के जाते ही ऊस दराज़ से ऊस ब्रा को सूँघा…और उसके आंखों में एक जुनून सवार हो गया और ऊसने ऊस ब्रा कोफौरन दराज़ में रख डाला..इसकी खुशबू में तो ऊस औरत की महक है”……काला लंड का गुस्सा सातनवे आसमान पे चढ़ गया उसे सब समझ आ चुका था….

उधर रोज़ देवश की तस्वीर को देखकर उदास थी…और खलनायक के खुद के जिस्मो पे हुए हर स्पर्श को महसूस कर सकती थी…ऊसने फौरन देवश के तस्वीर पे लगे आँसू को जल्दी से पोंछा…और फिर अपने कपड़ों की ओर देखा….ऊसने ऊन कपड़ों को जल्दी से पहन लिया..और फिर एक बार नक़ाबपोश रोज़ बन गयी..जिसके आंखों में अंगार था….आज वो फिर गश्त के लिए बाइक पे सवार होकर निकल जाती है…और ऊस्की आंखें आज खलनायक के आदमियों को ढूदन्ह रही होती है….

आँधी तूफान की तरह बाइक को पूरी रफ्तार से चलते हुए…रोज़ हेलमेट के अंदर से ही चारों ओर के सन्नाटे अंधेरे में देख रही थी….बस ऊस्की बाइक की मोटर की आवाज़ उसे सुनाई दे सकती थी…इस वीरने में एक चिटी भी नहीं दिख रहा था…लेकिन तभी ऊस्की निगाह एकदम से सामने हुई और बाइक को फौरन ब्रेक मर दी…बाइक ने एक ज़ोर का झटका खाया और रुक गयी…रोज़ वैसे ही बाइक पे सवार बस सामने घूर्र रही थी

वन की गाड़ी में बैठा एक जाना पहचाना शॅक्स था जिसके चेहरे के नक़ाबपोश से साफ मालूम हो चुका था की यह कौन है?….खलनायक ऊस्की ओर देखते हुए जैसे उठा…उसके मोष्टंडे गुंडे और पेड़ की दूसरी ओर छुपे टहनियो पे निशानेबाज़ ऊसपे निशाना लगाए बैठा है….

रोज़ बाइक को बंद करके चाबी निकलती है…और फिर फुरती से खड़ी हो जाती है…ऊन गुंडों की तरफ देखते हुए एक बार हल्का मुस्कुराती है और खलनायक के तरफ आने लगती है “आज तुम्हें मेरे गुंडों से लार्न की जरूरत नहीं तुम्हें रोज़…आज ये गुंडे तुम्हें उठाने आए है”…….खलनायक की बात सुन वही रोज़ रुक जाती है

रोज़ : मुझे क्या कोई कमज़ोर औरत समझ रखा है तूने कमीने?

खलनायक : हाहाहा इसी आइडिया पे तो मैं फिदा हूँ तुम्हारे रोज़ अपनी महक मेरे जिंदगी में भी डाल दो तो शायद इस ज़िल्लत भारी जिंदगी दो पल का प्यार मिल सके

रोज़ : तुम जैसा आदमी प्यार तो क्या नफरत के भी काबिल नहीं

खलनायक : क्या सोचती हो तुम? की यहां इस दो कौड़ी के लोगों के लिए तुम इतना जोखिम उठाकर क्राइम का सफ़ाया कर डोगी..हां हां हां तुमसे भी शातिर मुज़रिम है दुनिया में और मैं जनता हूँ ऊस कमीने इंस्पेक्टर के लिए तूने ये रास्ता छूना तेरा पूरा हिस्ट्री पता लग चुका है मुझे अपनी हाँ दे दे और मेरा हाथ थाम ले

रोज़ : मुज़रिम हाला तो ने बनाया और ऊसने तो एक अच्छा रास्ता दिखाया आज मैं उसी में सुकून महसूस करती हूँ जिसे तू दो ताकि की कह रहा है वो मेरे अपने है और तू जिसका नाम गाल्त लवज़ो से लेरहा है ऊस्की मैं कोई लगती हूँ

खलनायक का गुस्सा सातनवे आसमान पे था…निशानेबाज़ बस खलनायक की कमज़ोरी पे ऊस्की खिल्ली मन ही मन उड़ा रहा था…खलनायक ने अपने आदमियों को इशारा किया….ऊन्हें पहले से ही बताया गया था जैसे भी हो आज रोज़ को उठाना है ताकि वो उसे किडनॅप करके अपनी बना सके और फिर उसे अपने साथ इस देश को एक गहरा जख्म देकर बांग्लादेश ले जाए

जैसे ही गुंडे रोज़ की तरफ आए…रोज़ फुरती से उनके ऊपर खुद ही बरस पड़ी…रोज़ ने फौरन अपनी बेक किक सामने वाले गुंडे के छाती पे मारी..और ऊन गुंडों से भीढ़ गयी….निशनीबाज़ बस हमको के इंतजार में था…वैसे ही वो खिजलाया हुआ था देवश की वजह से पर सख्त ऑर्डर्स थे खलनायक के एक खरॉच भी ऊस्की जान लेने के लिए काफी थी….


रोज़ गुंडों से मुकाबला करने लगी…ऐसा लग ही नहीं रहा था की यह खतरनाक हसीना किसी के हाथ में आने वाली है…खलनायक बस चुपचाप देखता रहा…कुछ ही पल में रोज़ ने ऊन सब गुंडों को दरशाही कर दिया…वो लोग ऊस देवी से भीख मागने लगे…”देख लिया कुत्ते अपने गुंडों को कैसे भीख माँग रहे है जान की बेहतर है अपने आपको मेरे हवाले कर दे”………खलनायक तहाका लगाकर हस्सने लगा…कुछ समझ नहीं पाई रोज़ पर वो जानती थी खलनायक का कोई खतरनाक ही मूव था उसी पल एक तीर उसके कंधे को छूते निकल गयी रोज़ ने जैसे ही ऊपर उठना चाहा…दूसरा तीर उसके मुखहोते पे लग्के उसके मुखहोते को चेहरे से जुड़ा करके पेड़ पे धासा…तीर पे उसका मुखहोटा लटक सा गया

रोज़ आशय होकर गिर पड़ी ऊसने अपना चहरा छुपा लिया…निशनीबाज़ ने खलनायक की ओर देखा ऊसने निशानेबाज़ को उतार जाने को कहा…बिना मुखहोटा के रोज़ का लरना नामुमकिन ही था वो बस अपने बेबसी पे एक बार फिर पछताने लगी वो चेहरे को हाथों में लिए टांगों को सिमते ज़मीन पे लाइट गयी…”ज़रा देखे तो इस चेहरे की मालकिन कैसी है?”….खलनायक के हाथ अभी रोज़ के चेहरे तक पहुंचे ही थे….और ऊसने उसका हाथ को लगभग हटाने की कोशिश की ही थी…इतने में एक और बाइक की आवाज़ सुनाई दी..हेडलाइट की चकाचौंड रोशनी से खलनाया की आँखें बंद सी हो गयी वो अपने मुखहोते पे हाथ रखकर पीछे होकर खड़ा हो गया

वो बाइक सवार ठीक खलनायक से 20 कदम दूरी पे आ खड़ा हुआ…निशानेबाज़ भी उसे घूर्र घूर्र के देखने लगा…खलनायक को कुछ समझ नहीं आया..लेकिन जब हेडलाइट ऑन करके वो धीरे धीरे बाइक से उतरा…और उसके नज़दीक आने लगा…तो निशानेबाज़ और खलनायक दोनों हैरान हो गये ऊन्हें मालूम नहीं था ये कौन है?……सामने वही काले कपड़ों में…काले नक़ाब के ऊपर एक और मुखहोटा…जिसे देखकर कोई भी कह देगा की ये कोई और नहीं “काला साया” है

खलनायक : कौन है तू?

काला साया : काला साया (रोज़ फुरती से एकदम चेहरे को ढके ही खड़ी हो गयी जो गुंडे उसे जानते थे उनकी साँसें रुक सी गयी सब ठिठक गये सिवाय खलनायक के और निशानेबाज़ के जो उसे जानते नहीं थे)

खलनायक : तो शायद ये नहीं जनता की क्सिी के रास्ते में आने का क्या अंजाम होता है?

काला साया : तू शायद ये नहीं जनता की इस शहर का पहले कभी कोई योद्धा भी रही चुका है…जिससे तू अंजान है अपने अंजाम की सोच

खलनायक गुस्से में तो था ही ऊसने अपनी गुण निकाल ली…काला साया ने फुरती से अपने छुपे हाथ की गुण सीधे खलनायक के हाथों पे मर दी…गोली सीधे नीचे गिर पड़ी खलनायक के हाथों से वो अपने हाथ पे लगे गोली से दहेक उठा…काला साया उसके करीब जैसे आया…निशानेबाज़ ने निशाना सांड़ दिया…काला साया फुरती से दूसरी ओर जा कूड़ा…निशानो पे निशाना लेकिन हर हमले से ऐसे बच रहा था जैसे कोई तेज तरह नेवला….खलनायक ने अपनी गोलियों से निशाना सांड़ दिया…जो सीधे निशनीबाज़ के ऊपर बरस उठी वो संभाल ना पाया और उसे लास्ट में जंगल के ढलान में कूद जाना पड़ा..

दूसरी ओर खलनायक ठिठक सा गया उसके आदमी वैसे ही लाहुलुहान परे थे जो बचे कुचे थे वो तो काला साया के नाम से ही भाग गये…खलनायक ने खुद ही मोर्चा संभाला…और रोज़ पे जैसे हाथ लगाने की कोशिश की…काला साया एकदम से उसके चेहरे पे लात दे मारता है…खलनायक दूर जा गिरता है

खलनायक पहली बार किसी से टकरा राहत हां….वो अपने जेब से लंबा सा चाकू निकलता है और काला साया पे फुरती से चलाने लगता है…काला साया उसके हर हमले से बचते हुए उसके हाथ को पकड़ लेता है लेकिन उसके पेंट पे खलनायक की लात जैसे लगती है वो पीछे हो जाता है खलनायक जैसे ही दूसरा लात मारता…काला साया ने उसके टाँग को पकड़ा और उसे एक ही झटके में अपने दूसरे बेक किक से गिरा डाला…अभी चाकू उठाने के लिए खलनायक पलटा ही था काला साया ने उसके गोली लगे हाथ पे पाओ रख दिया…खलनायक ज़ोर से दहढ़ उठा

काला साया कुछ समझ नहीं पा रहा था की इस मुखहोते के भीतर कौन है…लेकिन तभी उसके कमर पे निशनीबाज़ का तीर एक बार फिर छू जाता है…काला साया दर्द से बिबिला उठता है…और वो गुस्से भारी निगाहों से निशानेबाज़ की ओर देखता है इससे पहले निशानेबाज़ और तीर लगा पता वो उसके ऊपर अपनी स्विस नाइफ निकलकर फैक देता है जो सीधे उसके टहनी पे जा लगती है और निशानेबाज़ गिर परता है
 

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UPDATE-66


खलनायक को इतने देर में मौका मिल चुका था काला साया को धकेलके गाड़ी पे सवार होने का….काला साया तब्टलाक़ तीर से मुखहोटा निकलकर रोज़ को देता है…रोज़ चुपचाप बस काला साया की ओर देखती है…काला साया उसके चेहरे पे हाथ रखकर मुस्कुराता है..और फिर गुस्से से खलनायक के पीछे भागता है निशनीबाज़ गुस्से में सामने खड़ा हो जाता है…काला साया जैसे ऊसपे हमला करता है वो अपने करते डर मूव्स को उसे करता है…काला साया अपने नानचाकू को निकलकर ऊसपे बरसाने लगता है उसके करते धरे के धरे रही जाते है

और काला साया उसके चेहरे पे मिट्टी फैक्टा हुआ उसके पूरे बदन पे नानचाकू का वार बरसा देता है….निशानेबाज़ भी भागने लगता है….तब्टलाक़ खलनायक भी गाड़ी पे सवार होकर अपने ड्राइव को भागने के लिए कहता है…रोज़ पहले ही वन के पिछले भाग से अंदर घुस जाती है और खलनायक का गर्दन दबोच लेती है….खलनायक उसे धकेल देता है और रफ्तार तेज करने को बोलता है काला साया पीछे भागता है निशानेबाज़ को उठते देख वो अपनी गोली अपने बदले को याद करके निशानेबाज़ के उसी जगह पे मारता है जहाँ निशानेबाज़ ने उसे तब मारा था जब वो देवश था…निशानेबाज़ गोली खाके दूसरी ओर गिर परता है

काला साया पहाड़ी के ढलान पे चढ़ते हुए दूसरी ओर मुड़ती वन के ऊपर सीधे छलाँग लगा देता है पूरी बढ़ता की वन पे छलाँग लगते ही किसी मकड़े की तरह दोनों ओर हाथ से पकड़ते हुए बैलेन्स बनता है…खलनायक अपना चाकू वन के छत्त पे घुसाने लगता है…काला साया हर हमले से मुश्किल से बचता है

रोज़ इस बीच खलनायक को रोकने की कोशिश करती है और उसी पल काला साया शीशे पे अपने घुस्से का वार करके शीशा तोड़ देता है और ड्राइवर का गला पकड़ लेता है गाड़ी कभी इधर तो हकाभी उधर धंस खाने लगती है…इतने में काला साया अपनी गोली सीधे ड्राइवर के भेजे पे चला देता है…ड्राइवर मौके पे ही मर जाता है….खलनायक उसे धकेलटा हुआ खुद ही ड्राइविंग करने लगता है..काला साया पीछे के खुले फाटक से गाड़ी पे प्रवेश करता है….

काला साया : रोज़ अपना हाथ दो

रोज़ जैसे ही काला साया को अपना हाथ देने वाली होती है…खलनायक उसे पकड़ लेता है रोज़ उसके मुँह पे एक लात मार्टी है…खलनायक को गहरी चोट लगती है…और तब्टलाक़ काला साया रोज़ के साथ गाड़ी से छलाँग लगा देता है…खलनायक रुक नहीं पता अपनी हार को देख उसे वहां से भाग जाना ही परता है गाड़ी को पूरी रफ्तार में करके वो एक बार पीछे मुदके अपनी रोज़ को काला साया की बाहों में देखता है और फिर गाड़ी को बढ़ता में बहुत दूर ले जाता है

निशानेबाज़ भी दर्द में करहाते हुए किसी तरह अपनी बाइक पे बैठकर वहां से रफूचक्कर हो जाता है…काला साया और रोज़ एक दूसरे के गले मिलते है मानो जैसे दोनों के दुख आज एकदुसरेक ओ देखकर खत्म हुए हो….रोज़ प्यार से काला साया के गाल को चूमती है

रोज़ : मुझे मांफ कर देना देवश मैंने तुम्हें गलत समझा बहुत दिल दुखाया है तुम्हारा

काला साया बस उसे चुप रहने का इशारा करके मुस्कुराता है और उसके होठों पे उंगली रख देता है….कुछ देर बाद वो खुद ही पुलिस को फोन करके सूचित करता है…और फिर एक नज़र निशानेबाज़ पे दौरता है पर वो गायब हो चुका था…काला साया फौरन अपनी बाइक पे रोज़ को सवार करते हुए पूरी रफ्तार से वहां सीन इकल जाता है….इलाके में चाय पीते लोगों की निगाह जैसे ही रोज़ और साथ में अपने पुराने हीरो काला साया पे पड़ी वो लोग चिल्लाने लगते है खुशी से….पर पूरी रफ्तार से रास्ते से गुजरता हुआ काला साया सिर्फ़ मुस्कुराकर ऊन लोगों की तरफ देखता है


सबके होठों पे एक ही बात आ गयी थी “काला साया वापिस आ गया है”…अगली सुबह जल्द ही पुलिस हेडक्वॉर्टर में कमिशनर को फोन आया और जैसे ऊसने रिसीवर उठाया..ऊस्की साँसें थाम गयी उसका हाथ काँप गया “वॉट नॉनसेन्स?”……कमिशनर को कल रात की घटना पुलिस बताती है की मुठभैरर में काला साया खलनायक से लारा है उसके आदमियों को अरेस्ट करके बयान किया गया….अब शायद काला साया अकेले ही खलनायक का सफ़ाया कर देगा इस बात को सुन एक बार फिर कमिशनर कुर्सी पे गिर परता है

और उसके आंखों के सामने अख़बार में फ्रंट पेज पे छापा होता है

बदल गारज़ने लगते है मौसम जैसे बिगड़ने लगता है…जल्द ही अपने वीरान घर पहुंचकर काला साया और रोज़ दोनों अपने गुप्तिए कमरे में आकर पष्ट हो जाते है….रोज़ एकटक काला साया की ओर देखती है…जो अपने दर्द से सिसक रहा है…रोज़ उसके करीब आकर उसके बदन पे हाथ फेरते हुए जख्म को टटोलने लगती है…तभी उसे जॅकेट के पीछे एक हल्की सी थोड़ी गहरी जख्म दिखती है..गनीमत थी सिर्फ़ 1इंच ही तीर अंदर घुस पाया था…रोज़ काला साया के कपड़ों को उतारने लगती है

जैसे ही काला साया अपने सारे कपड़े उतारके अपने अंडरगार्मेंट्स में आता है…उसे देखते ही रोज़ मुँह पे हाथ रख लेती उसके पहले से ही बदन पे कई जगह पत्तियां थी..काला साया अहसास करके मुस्कुराता है

काला साया : ये निशानेबाज़ से पहली मुठभैर के है जो कुछ दिन पहले हुए थे

रोज़ : ओह माइ गॉड मेरी वजह.हे ये सब हुआ है मैंने ही तुम्हें अकेला अपनी बेवकूफ़ियो के लिए मुझे मांफ कर देना

काला साया : अरे यार इधर आओ (रोज़ को अपने जाँघ पे बिताते हुए)

उसके प्यार से ज़ुल्फो पे उंगलियां फहीयर्ता है “वो मज़बूर देवश था काला साया नहीं…तुम अगर मुझे धोखा भी डोगी ना तो भी मैं तुम्हें मांफ कर दूँगा ना जाने क्यों पर तुमसे कुछ जुड़ सा गया है”…….अपने दिल पे हाथ रखते हुए काला साया ने मुस्कराया

रोज़ ने उसके चेहरे से उसका मास्क और उसका काला काप्रा उतार दिया…वो चाहती थी की क्या ये सच में ऊस का देवश है जिसे लोग नाम से काला साया बुलाते है..मुखहोते के उतरते ही सामने देवश का पसीने भरा चेहरा देखकर रोज़ मुस्कुराकर देवश से गले लग गयी

“ई लॉवी यू ई वाज़ सो मिस्सिंग यू”…….रोज़ ने चिल्लाते हुए देवश से एकदम लिपटके कहा

देवश : सस्स्शह इट’से ओके आहह से

रोज़ : ओह तुम्हारा जख्म प्ल्स मुझे दवाई लगाने दो

देवश मुस्कुराकर बिना कुछ कहें पेंट के बाल लाइट जाता है…फिर रोज़ ऊस्की सिखाई तरह से ड्रेसिंग करने लगती है और ऊस जख्म पे दवाई लगाने लगती है…देवश बस अपने दर्द को भी भूल मुस्कुराकर रोज़ के गिरते ज़ुल्फो के साथ उसके चेहरे को देख रहा था…रोज़ की जब निगाह पड़ी रोज़ मुस्कराने लगी

उधर खलनायक चीज़ों पे चीज़ें तोड़ रहता…उसे शांत करना किसी के बस की बात नहीं थी…जब खलनायक घुर्राटें हुए ऊन गुंडों के करीब आकर उनके गर्दन को पकड़कर ऊन्हें धकेलने लगा…”सालों मां के लौदो किसी काम के नहीं हो तुम पहली बार एक दो कौदीी के आदमी से भागना पड़ा पहली बार खलनायक को जंग से पीछे हटना पड़ा…इस्शह”………खलनायक का गुस्सा शांत नहीं हो रहा था
 

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निशानेबाज़ जिसके कंधे से लेकर छाती तक पट्टी लगी थी चुपचाप पष्ट पड़ा लेटा हुआ था…डॉक्टर सहेंटे हुए बाहर निकल गया…खलनायक ने गुण निकाली और एक आदमी के मुँह में लगा दी “मुझे ऊस हरामी की एक एक इन्फार्मेशन चाहिए वो कौन है? कहाँ से आया? सबकुछ”……..खलनायक ने झल्लाते हुए बोला

आदमी 2 – सर इन्फार्मेशन ही क्या अपुन ऊस्की पूरी कुंडली जनता है तभी तो अपने पंतर लोग एक ही झटके में वहां से सतक लिए

खलनायक घुर्राटे हुए ऊस बंदे की हिम्मत की अंकल दे रहा था जो इतना कुछ कह गया…ऊस आदमी ने पुराने पुराने न्यूसपेपर्स के आर्टिकल्स तस्वीर के साथ खलनायक के सामने टेबल पे पेश की…खलनायक उसे उठा उठाकर पढ़ने लगा…ऊसमें उसी बंदे काला साया की तस्वीर थी…”हम”….वो बस धीमी साँस छोढ़ता हुआ पढ़ने लगा

आदमी 2 : यही नहीं सर ये आदमी इस शहर के पुलिस के साथ मुरज़रीमो के नाक में दम कर गया रॉबरी करप्षन मर्डर या कोई भी क्रिमिनल केस ही जो पुलिस के हॅंडोवर होने से पहले ये सुलझता है…ये ना ही किसी पे रहें करता है और अपने मुज़रिमो को गोली से उड़ा देता है…कलकत्ता की पुलिस भी इसे ढूँढ रही है लेकिन बाद में इसके बढ़ते अपराध के लिए पुलिस ने इसका एनकाउंटर जारी कर दिया था लेकिन ये साला बच निकाला…और वापिस आया आपसे लार्न

खलनायक : हम लेकिन रोज़ को देखकर लग रहा था जैसे वो उसे जानती हो…

निशानेबाज़ : आहह भी हूँ सकता है की ये रोज़ उसे पहले से जानती हो? क्या पता काला साया की वॉ (निशानेबाज़ ने और कुछ नहीं कहा क्योंकि जलते अंगरो भारी आंखों को खलनायक के वो और घूर्र नहीं सकता था)

खलनायक : मुझे किसी की बात नहीं सुन्नी रोज़ सिर्फ़ मेरी है रही बात इस नये दुश्मन की काला साया इसके जिंदगी पे तो मैं काला ग्रेें लगाउँगा पहली बार कोई टक्कर का आदमी मिला है…इसके लिए तो तुम ही ठीक हो है ना काला लंड

काला लंड अंधेरे से निकलकर सामने आया और ऊसने एक बार ऊस तस्वीर की ओर देखते हुए घूरा…काला लंड ने ऊस तस्वीर को एक ही झटके में फाड़ डाला…”समझो ये मेरा अगला अपोनेंट है रेसलिंग का”…..ऊस्की गारज़ान ने खालनयक को तहाका लगाने पे मज़बूर कर दिया…वो जनता था काला लंड से भीढना साक्षात बेदर्द मौत को गले लगाना….काला लंड बस चुपचाप खलनायक को घूर्र रहा था…और फिर ऊस फटे तस्वीर को

रोज़ काला साया के छातियो को चूमते हुए उसके लंड पे कूद रही थी…नीचे से काला साया धक्के लगते हुए रोज़ के चुचियों को मुँह में भरके थोड़ा उठके चुस्स रहा था….रोज़ बैठी बैठी बस लंड पे रगदाई खाके अपनी गान्ड को पूरी रफ्तार में ऊपर नीचे उछाल रही थी…काला साया फौरन रोज़ के छातियो को क़ास्सके दबाने लगा….रोज़ चाह रही थी की वो सारी बात काला साया को बता दे पर ऊस्की हिम्मत नहीं हो पा रही थी..फिर अचानक से काला साया ने रोज़ को अपने नीचे लेटा दिया और ऊस्की टांगों को अपनी कमर में फ़साए ऊस पे चढ़के धक्के लगाने लगा

रोज़ ऊन धक्को का जवाब अपने मीठे मीठे सिसकियों से दे रही थी….ऊस्की आंखें ढाल सी गयी थी…काला साया के हाथ रोज़ के मुखहोते पे आ गये…पर वो कटरा रहा था बिना मर्जी के बिना शायद रोज़ गुस्सा हो जाए….पर रोज़ शायद यही चाहती थी और आज इतने दीनों बाद खुद ऊसने अपना मास्क उतार फैका…उसके चेहरे को देखते ही जैसे सागर का पानी नहेर में गिर रहा हो ऐसा हाल काला साया का था…और दोनों प्यार से एक दूसरे से लिपट गये

काला साया उर्फ देवश ने उसके मखमल जैसे चेहरे पे उंगलियां फहीराई उसके चेहरे को वो बहुत ही प्यार से घूर्र रहा था..फिर ऊसने उसके कंपकपाते होठों से होंठ लगा दिए…रोज़ ने अपनी गान्ड उठा ली…और देवश भी बारे ही काश क़ास्सके धक्के पेलने लगा…चुत से लंड फ़च से निकलता और धंस जाता
ऐसी हालत में सिर्फ़ देवश उसके चेहरे को चूम रहा था…और ऊसने फिर फौरन अपना लंड बाहर खींचा

और रोज़ के सामने ही उसके पेंट पे अपना रस उगलने लगा…जब उसके लंड से आखिरी बंद भी टपक के गिर पड़ी…तब जाकर देवश पष्ट होकर अपनी अँग्रेज़ गोरी में रोज़ के गले से लिपट गया….और उसके पेंट पे लगे रस को हाथों से पेंट और छातियो पे रोज़ के मलने लगा….”देवश मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूँ”…….रोज़ ने देवश के चेहरे की ओर देखते हुए बोला

फिर उसके बाद रोज़ ने खलनायक के संग हुए मुठभैर के बारे में सबकुछ बता दिया…की उसके साथ क्या क्या हुआ था?….देवश बस सुनता गया पहले तो उसे अपने कानों पे विश्वास नहीं हुआ की वो ये क्या सुन रहा है की रोज़ खलनायक के साथ…उसे बेहद गुस्सा आया आख़िर क्यों? क्यों वो अकेले लर्र्ने चली गयी जबकि उसे देवश ने मना किया था….देवश कुछ देर तक खामोश रहा शायद रोज़ को डर था कहीं देवश उससे दूर ना हो जाए

देवश ने रोज़ के चेहरे पे हाथ रखा..और ऊस्की तरफ देखा…रोज़ के आंखों में नांसु थे…”मैंने तुमसे क्या कहा था? की चाहे जो भी हो मैं तुमसे दूर नहीं हो सकता…लेकिन तुम्हें ये बात मुझे बतानी चाहिए थी…एनीवेस जो हुआ उसे भूल जाओ इतना सब हो गया और मैं कुछ ना कर सका”…..मैं गुस्से में बैठ गया

रोज़ भी बैत्टते हुए मेरे कंधे पे हाथ रखकर समझने लगी “प्ल्स देवश ट्राइ तो अंडरस्टॅंड गलती मेरी ही थी मुझे लगा की मैं उसे”…….मैंने रोज़ की तरफ देखा और उसके हाथ को हटाया “पर तुमने इतना भरा खतरा अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो यानि अब ऊस्की निगाह तुमपर है ये बात खतरे की है रोज़ और मैं नह्िचाहता तुम ऊन लोगों से और उलझो प्ल्ज़्ज़”……मैंने रोज़ को समझाया रोज़ चुप होकर सुबकने लगी


मैंने उसके आँसुयो को पोंछा और उसे अपने गले से लगा लिया…हालकनी मुझे खलनायक पे बेहद गुस्सा आ चुका था…पर मेरे पास सवर् के अलावा और कोई चारा नहीं था…ना ही मैं जनता था की मुझे मारने की खलनायक ने पूरी प्लॅनिंग कर ली थी…मुझे मर के वो रोज़ को हमेशा हमेशा के लिए अपने साथ ले जाएगा…इस बात से मैं कहीं ना कहीं थोड़ा बेख़बर था

अगले दिन जब मैं घर पहुंचा…तो पाया दिव्या टीवी पे न्यूज देख रही है…कल रात के हादसे और काला साया के वापिस आने की खबर शायद वो सुन चुकी थी जब मैं अंदर आया तो वो मुझे आँसुयो भारी निगाहों से घूर्रने लगी

दिव्या : क्यों ? तो क्या इसी लिए तुम रात रातभर गायब रहते थे? यही था तुम्हारा प्लान तुम फीरसे?
देवश : देखो दिव्या मुझे बनना जरूरी था…मेरे अपनों को मेरी जरूरत थी
दिव्या : तुमने मुझसे वादा किया था की तुम ये लाइन चोद दोगे फिर क्यों?
देवश : कुछ चीज़ें हमारे हाथों में नहीं होती यक़ीनन मैंने जो फैसला लिया आज ऊस फैसले से अलग हो रहा हूँ पर ये जरूरी था…खलनायक को रोकने के लिए जानती हो अब मेरे पास कोई चारा नहीं है जब चाहे तब कोई ना कोई दुश्मन मेरा आकर मुझे मर सकता है
दिव्या : पर!

दिव्या के पास कोई चारा नहीं था…देवश उसे समझने लगा पर वो देवश की जान जोखिम में डालने के लिए खिलाफ थी…दिव्या उसे कफा हो गयी…फिर ऊसेन खुद ही दिव्या को अपने पास बिठाया और उसे विश्वास दिलाया की अब पुलिस उसके पीछे नहीं लगेगी और ऊसने जो कसम ली है वॉ खलनायक को मर के ही खत्म होंगी….दिव्या को अपने मन को मज़बूत करना होगा..दिव्या सुनती चली गयी देवश के मकसद को…ऊसने रोज़ के बारे में पूछा उसे थोड़ा खटका लगा दोनों को साथ बाइक पे…देवश ने सारी बात खुलके बता दी की वो ऊस्की पार्ट्नर है…दिव्या ने कुछ और नहीं कहा और फिर देवश के कंधे पे सर रखकर उससे लिपट गयी…देवश जनता था जुर्म और लौंदियो को संभालना उससे कोई नहीं सीख सकता…लेकिन रोज़ के अपमान का उसे खलनायक से बदला लेना ही था
“वॉट नॉनसेन्स? इस तीस सीरियस्ली?”……..एकदम से कमिशनर पीछे मुदके अपने काबिल पुलिस ऑफिसर्स पे जो सर झुकाए खड़े थे ऊँपे कमिशनर बरस पड़ा…काला साया की खबर अख़बार में चप्प चुकी थी…पुलिस की निंदा की जा रही थी….और ऊपर से दबाव भी पब्लिक का बढ़ते जा रहा था…

कमिशनर : क्या मैं यही एक्सपेक्ट कर सकता हूँ? तुम गंदूयो से…एनकाउंटर स्पेशलिस्ट खुद को बोलते हो लानत है जो एक महेज़ इंसान को

पुलिस ऑफिसर से.पे – सॉरी पर अब ई डॉन’त थिंक की हमारी टीम ज़िल्ले में अच्छा काम कर रही है क्योंकि काला साया पुलिस से एक कदम आगे हमेशा होता है अब वो ऊस नदी में कूदके कैसे बच्चा ये तो खुदा ही जाने

कमिशनर : वाहह तुम्हें खुद ही यकीन नहीं की तुम्हारी बंदूक से निकली गोली एक मुज़रिम को छू भी सकती है…हुहह मुझे तुम बॅस्टर्ड्स को केस ही नाहिदेना चाहिए था एक तो ऊस देवश इंस्पेक्टर देवश जिन्हें मैंने बारे ही आदर से ट्रांसफर दी और आज वॉ हुहह सस्पेंडेड क्या किया ऊसने हम सब की गान्ड में लंड डालकर चला गया

पुलिस ऑफिसर – सर गुस्ताख़ी मांफ कीजिएगा पर देवश सर अपना काम काबिल-ए-तारीफ से कर रहे थे…हाँ सर से.पे सर सही कह रहे है आपके ऑर्डर्स पे ही देवश सर ऊन्हें मारने का हमको दिया था….यही नहीं सर हमने पूरी कोशिश की थी…लेकिन हम ये नहीं समझ पा रहे की आप काला साया को छोढ़के खलनायक जैसे शातिर मुज़रिम को मारने का क्यों नहीं ऑर्ड रहे

कमिशनर : ओह अब तुम पुलिस ऑफिसर्स मुझपर अपने सर पे ही उंगली उठा रहे हो…ये सब ऊस देवश किया धारा है ई वन’त फर्गिव हिं ई वन’त गेट आउट ई साइड गेट आउट

कमिशनर चिल्ला उठा..पुलिस ऑफिसर्स दाँतों पे दाँत पीसके बाहर निकल गये…सब अंदर ही अंदर कमिशनर को गाली दे रहे थे महेज़ अपने पैसे और लालच के चक्कर में वो अडमेंट हो चुका है

उधर जल्द ही पुलिस वालो ने देवश को ये खबर दी..की कमिशनर आजकल ज्यादा ही खिस्सिया गये है….देवश उनके साथ हँसी मज़ाक करने लगा…ऊन्हें भी फक्र था की देवश ने नौकरी सही राह के लिए छोढ़ी….काला साया के बारे में बताते ही देवश ने भी हैरानी भाव का नाटक प्रकट किया…कुछ ही देर में पुलिस फोर्स चली गयी….लेकिन देवश थमा नहीं था काला साया तो आज नहीं तो कल उसे फिर बनकर निकलना ही था

देवश अपने जैसे घर लौटा…दिव्या को छोढ़के तो ऊसने देखा मामुन बैग पैक कर रहा है….”और भाई क्या फुर्सत मिल गयी?”…….मामुन ने मुस्कुराते हुए कहा

देवश : हाँ भाई सॉरी यार तुझे ज्यादा टाइम नहीं दे पाया वो दरअसल काम में इतना उलझा हुआ था की (मामुन ने देवश के कंधे पे हाथ रखा)

मामुन : अरे यार क्या बात है? भाई से मिल लिया मेरे लिए बहुत है चल मेरा टाइम भी हो गया अब मुझे भी जाना है कलकत्ता वापिस

देवश : थोड़े दिन और रुक जाता तो सही रहता

मामुन : भाई वक्त कभी किसी के लिए नहीं रुकता खैर तुझे मिस करूँगा भाई और आते रहना यार कलकत्ता आता क्यों नहीं?
 
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