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भाग 9: अमित, रोहन, नीलम और सिम्मी के परिवार की रात
गांव के उस डरावने सराय में जहां वे सब रुकने के लिए मजबूर हुए थे, रात का सन्नाटा गहरा चुका था। सराय के आसपास केवल झींगुरों की आवाज और हल्की-हल्की हवा की सरसराहट सुनाई दे रही थी। अमित, रोहन, नीलम और सिम्मी के माता-पिता दिन भर की थकावट के बाद अपने-अपने कमरे में सो चुके थे। सराय के पुराने कमरे, टूटे खिड़कियों और दीवारों पर लगे पुराने चित्रों के साथ, एक अजीब सी दहशत पैदा कर रहे थे।
नीलम की मां, सुजाता देवी, आधी रात को अचानक उठ गईं। उन्हें लगा कि कोई उनके सिरहाने खड़ा है। जैसे ही उन्होंने आंखें खोलीं, उन्हें कुछ नहीं दिखा, बस एक ठंडी हवा का झोंका उनके चेहरे पर महसूस हुआ। उन्होंने सोचा शायद यह उनका वहम था और फिर से सोने की कोशिश की।
लेकिन तभी, एक कमरे से हल्की सी रोने की आवाज सुनाई दी। वह आवाज मानो किसी छोटे बच्चे की थी जो दर्द में चीख रहा हो। सुजाता देवी ने चौंक कर अपने पति को जगाया। "सुनो, ये आवाज़ सुन रहे हो?" उन्होंने धीमे स्वर में पूछा। उनके पति ने करवट बदलते हुए कहा, "यह सब तुम्हारा वहम है। गांव है, यहां तो इस तरह की आवाजें सामान्य हैं।"
अमित के माता-पिता भी गहरी नींद में थे। लेकिन तभी अचानक उनके कमरे में दरवाजा धीमे-धीमे खुलने लगा। ऐसा लगा जैसे कोई उसे धीरे-धीरे अंदर से धक्का दे रहा हो। अमित की मां, मधु, ने आंखें खोलीं और देखा कि दरवाजा खुला हुआ था। "यह दरवाजा हमने बंद किया था, है न?" उन्होंने घबराते हुए अपने पति से पूछा।
उनके पति, अरुण, ने उठकर दरवाजा बंद किया और बोले, "हवा से खुल गया होगा। चिंता मत करो।" लेकिन जैसे ही उन्होंने दरवाजे को पकड़ा, किसी ने जोर से उसे खींच लिया। दरवाजा उनके हाथ से छूट गया और फिर से खुल गया। अरुण ने डरते हुए पीछे देखा, लेकिन वहां कोई नहीं था।
रोहन की मां, कमला देवी, को एक अजीब सपना आया। उन्होंने देखा कि वे एक पुराने महल के बीच में खड़ी हैं और उनके चारों ओर खून से सने चेहरों वाले लोग उन्हें घूर रहे हैं। उनकी आंखें लाल थीं, और वे धीरे-धीरे उनकी ओर बढ़ रहे थे। वह चिल्लाईं, "मुझे छोड़ दो! मैं कुछ नहीं जानती!"
अचानक उनकी आंख खुल गई, और उन्होंने देखा कि कमरे के कोने में सचमुच एक परछाई खड़ी थी। "ये सपना नहीं हो सकता," उन्होंने खुद से कहा। जैसे ही उन्होंने हिम्मत करके उस परछाई की ओर देखा, वह गायब हो गई।
सिम्मी के माता-पिता को अचानक दरवाजे पर किसी के खटखटाने की आवाज सुनाई दी। उनके पिता ने दरवाजा खोला, लेकिन बाहर कोई नहीं था। जैसे ही वे दरवाजा बंद करने लगे, उन्हें ऐसा लगा जैसे किसी ने उनके कंधे पर हाथ रखा हो। उन्होंने पलट कर देखा, लेकिन वहां कोई नहीं था।
"यह जगह ठीक नहीं लग रही," सिम्मी के पिता ने कहा।
डर और बेचैनी के कारण सभी परिवार के सदस्य धीरे-धीरे अपने-अपने कमरों से बाहर आ गए। सभी के चेहरे पर घबराहट साफ झलक रही थी। अमित की मां ने कहा, "कुछ तो गड़बड़ है। यह आवाजें, यह परछाइयां, यह सब हमारा वहम नहीं हो सकता।"
रोहन के पिता ने सुझाव दिया, "हमें यहां से तुरंत निकल जाना चाहिए। इस सराय में कोई नकारात्मक ऊर्जा है।"
लेकिन तभी, चारों ओर से तेज़ चीखने की आवाजें आने लगीं। ऐसा लगा जैसे दर्जनों लोग दर्द और गुस्से में एक साथ चिल्ला रहे हों। उनकी चीखें सीधा दिल को चीरती हुई महसूस हो रही थीं। हर किसी का चेहरा सफेद पड़ गया।
सभी लोग मुख्य हॉल में एकत्रित हो गए। तभी खिड़की पर अचानक एक अजीब चेहरा दिखाई दिया—पीला, डरावना और जली हुई त्वचा वाला। उसकी आंखें चमक रही थीं। सिम्मी की मां जोर से चीख पड़ीं। रोहन के पिता ने पास पड़ी एक लाठी उठाई और खिड़की की ओर बढ़े। लेकिन जैसे ही उन्होंने खिड़की खोली, चेहरा गायब हो गया।
उसी समय, सराय का मालिक वहां आया और बोला, "मैंने आप लोगों को पहले ही चेतावनी दी थी। यह गांव और यह जगह आपके रहने के लिए सही नहीं है। यह आत्माओं का इलाका है। आप लोग यहां से जितनी जल्दी हो सके निकल जाएं।"
अमित के पिता ने पूछा, "लेकिन यह सब हो क्यों रहा है? हमें इन आत्माओं से क्या खतरा है?"
सराय का मालिक गंभीर स्वर में बोला, "यह सब काल वन और हवेली से जुड़ा हुआ है। आप लोगों के बच्चों ने उस जगह पर कदम रखा है, और अब वे आत्माएं उनके साथ आप पर भी गुस्सा निकाल रही हैं।"
गांव के उस डरावने सराय में जहां वे सब रुकने के लिए मजबूर हुए थे, रात का सन्नाटा गहरा चुका था। सराय के आसपास केवल झींगुरों की आवाज और हल्की-हल्की हवा की सरसराहट सुनाई दे रही थी। अमित, रोहन, नीलम और सिम्मी के माता-पिता दिन भर की थकावट के बाद अपने-अपने कमरे में सो चुके थे। सराय के पुराने कमरे, टूटे खिड़कियों और दीवारों पर लगे पुराने चित्रों के साथ, एक अजीब सी दहशत पैदा कर रहे थे।
नीलम की मां, सुजाता देवी, आधी रात को अचानक उठ गईं। उन्हें लगा कि कोई उनके सिरहाने खड़ा है। जैसे ही उन्होंने आंखें खोलीं, उन्हें कुछ नहीं दिखा, बस एक ठंडी हवा का झोंका उनके चेहरे पर महसूस हुआ। उन्होंने सोचा शायद यह उनका वहम था और फिर से सोने की कोशिश की।
लेकिन तभी, एक कमरे से हल्की सी रोने की आवाज सुनाई दी। वह आवाज मानो किसी छोटे बच्चे की थी जो दर्द में चीख रहा हो। सुजाता देवी ने चौंक कर अपने पति को जगाया। "सुनो, ये आवाज़ सुन रहे हो?" उन्होंने धीमे स्वर में पूछा। उनके पति ने करवट बदलते हुए कहा, "यह सब तुम्हारा वहम है। गांव है, यहां तो इस तरह की आवाजें सामान्य हैं।"
अमित के माता-पिता भी गहरी नींद में थे। लेकिन तभी अचानक उनके कमरे में दरवाजा धीमे-धीमे खुलने लगा। ऐसा लगा जैसे कोई उसे धीरे-धीरे अंदर से धक्का दे रहा हो। अमित की मां, मधु, ने आंखें खोलीं और देखा कि दरवाजा खुला हुआ था। "यह दरवाजा हमने बंद किया था, है न?" उन्होंने घबराते हुए अपने पति से पूछा।
उनके पति, अरुण, ने उठकर दरवाजा बंद किया और बोले, "हवा से खुल गया होगा। चिंता मत करो।" लेकिन जैसे ही उन्होंने दरवाजे को पकड़ा, किसी ने जोर से उसे खींच लिया। दरवाजा उनके हाथ से छूट गया और फिर से खुल गया। अरुण ने डरते हुए पीछे देखा, लेकिन वहां कोई नहीं था।
रोहन की मां, कमला देवी, को एक अजीब सपना आया। उन्होंने देखा कि वे एक पुराने महल के बीच में खड़ी हैं और उनके चारों ओर खून से सने चेहरों वाले लोग उन्हें घूर रहे हैं। उनकी आंखें लाल थीं, और वे धीरे-धीरे उनकी ओर बढ़ रहे थे। वह चिल्लाईं, "मुझे छोड़ दो! मैं कुछ नहीं जानती!"
अचानक उनकी आंख खुल गई, और उन्होंने देखा कि कमरे के कोने में सचमुच एक परछाई खड़ी थी। "ये सपना नहीं हो सकता," उन्होंने खुद से कहा। जैसे ही उन्होंने हिम्मत करके उस परछाई की ओर देखा, वह गायब हो गई।
सिम्मी के माता-पिता को अचानक दरवाजे पर किसी के खटखटाने की आवाज सुनाई दी। उनके पिता ने दरवाजा खोला, लेकिन बाहर कोई नहीं था। जैसे ही वे दरवाजा बंद करने लगे, उन्हें ऐसा लगा जैसे किसी ने उनके कंधे पर हाथ रखा हो। उन्होंने पलट कर देखा, लेकिन वहां कोई नहीं था।
"यह जगह ठीक नहीं लग रही," सिम्मी के पिता ने कहा।
डर और बेचैनी के कारण सभी परिवार के सदस्य धीरे-धीरे अपने-अपने कमरों से बाहर आ गए। सभी के चेहरे पर घबराहट साफ झलक रही थी। अमित की मां ने कहा, "कुछ तो गड़बड़ है। यह आवाजें, यह परछाइयां, यह सब हमारा वहम नहीं हो सकता।"
रोहन के पिता ने सुझाव दिया, "हमें यहां से तुरंत निकल जाना चाहिए। इस सराय में कोई नकारात्मक ऊर्जा है।"
लेकिन तभी, चारों ओर से तेज़ चीखने की आवाजें आने लगीं। ऐसा लगा जैसे दर्जनों लोग दर्द और गुस्से में एक साथ चिल्ला रहे हों। उनकी चीखें सीधा दिल को चीरती हुई महसूस हो रही थीं। हर किसी का चेहरा सफेद पड़ गया।
सभी लोग मुख्य हॉल में एकत्रित हो गए। तभी खिड़की पर अचानक एक अजीब चेहरा दिखाई दिया—पीला, डरावना और जली हुई त्वचा वाला। उसकी आंखें चमक रही थीं। सिम्मी की मां जोर से चीख पड़ीं। रोहन के पिता ने पास पड़ी एक लाठी उठाई और खिड़की की ओर बढ़े। लेकिन जैसे ही उन्होंने खिड़की खोली, चेहरा गायब हो गया।
उसी समय, सराय का मालिक वहां आया और बोला, "मैंने आप लोगों को पहले ही चेतावनी दी थी। यह गांव और यह जगह आपके रहने के लिए सही नहीं है। यह आत्माओं का इलाका है। आप लोग यहां से जितनी जल्दी हो सके निकल जाएं।"
अमित के पिता ने पूछा, "लेकिन यह सब हो क्यों रहा है? हमें इन आत्माओं से क्या खतरा है?"
सराय का मालिक गंभीर स्वर में बोला, "यह सब काल वन और हवेली से जुड़ा हुआ है। आप लोगों के बच्चों ने उस जगह पर कदम रखा है, और अब वे आत्माएं उनके साथ आप पर भी गुस्सा निकाल रही हैं।"
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