बाबा का हवेली से संबंध
उस बाबा का हवेली से एक पुराना और गहरा कनेक्शन था, जो हवेली के अंधेरे इतिहास के रहस्यों में छिपा था। असल में वह बाबा एक समय में मितल परिवार का ही हिस्सा था—ठाकुर धर्मदास का सबसे छोटा भाई, जिसका असली नाम ब्रजमोहन था। बचपन से ही उसकी मानसिकता परिवार के बाकी सदस्यों से अलग थी। उसे तंत्र-मंत्र और साधना से कोई लगाव नहीं था वह अपने जीवन में शांति और परोपकार चाहता था, लेकिन मितल परिवार के अन्य सदस्य केवल सत्ता, धन, और शक्ति के पीछे पड़े थे।
जब वह किशोरावस्था में पहुंचा, तो उसे पहली बार अपने परिवार के काले कारनामों का पता चला। उसने देखा कि कैसे उसके भाई और भाभी निर्दोष लोगों को अपनी हवेली में कैद कर लेते थे, उन पर अमानवीय अत्याचार करते थे, और उनकी पीड़ा से अपने अंधविश्वासी तंत्र-मंत्र को बल देने का प्रयास करते थे। उसके लिए यह सब सहन करना मुश्किल था, लेकिन वह अपने ही परिवार के सामने असहाय महसूस करता था।
एक दिन, जब उसने देखा कि एक छोटी बच्ची, जो उसकी उम्र की थी, उसे हवेली में लाकर कैद किया गया है, तो उसका गुस्सा फूट पड़ा। उसने अपने भाई धर्मदास का विरोध करने का साहस किया और उससे सवाल पूछे, "तुम ये सब क्यों कर रहे हो? ये मासूम लोग तुम्हारा क्या बिगाड़ रहे हैं?" लेकिन धर्मदास ने हँसते हुए कहा, "शक्ति और डर ही असली ताकत हैं, और हमें अपने तंत्र-मंत्र को पूजित रखना है। ये लोग हमारी शक्ति बढ़ाते हैं।"
ब्रजमोहन को यह बात असहनीय लगी। उसने निर्णय लिया कि वह अपने भाई और उसके अमानवीय कर्मों का अंत करेगा। एक रात उसने चुपके से हवेली के बंद कमरों में से कुछ कैदियों को आजाद करने का प्रयास किया। लेकिन दुर्भाग्य से, उसे उसके भाई ने पकड़ लिया। धर्मदास ने इस विद्रोह को माफ नहीं किया और अपने छोटे भाई को सबके सामने शर्मिंदा करने के लिए उस पर भी भयंकर तांत्रिक साधनाएँ कीं।
धर्मदास ने ब्रजमोहन को हवेली से निकाल दिया और उसे श्राप दिया कि वह जंगल में भटकता रहेगा और कभी शांति नहीं पा सकेगा। यह श्राप इतना शक्तिशाली था कि ब्रजमोहन को किसी तरह की सांसारिक संपत्ति या संबंध से दूर कर दिया गया। वह अनगिनत रातों तक जंगल में भटकता रहा, और धीरे-धीरे उसकी मानसिक स्थिति बदलने लगी।
वह धीरे-धीरे एक बाबा बन गया, और उसने तंत्र विद्या का उपयोग अपने परिवार के खिलाफ विद्रोह करने के लिए किया। उसने प्रतिज्ञा ली कि वह मितल परिवार के अत्याचारों का अंत करेगा। उसके मन में केवल एक ही उद्देश्य था—धर्मदास और इंद्रा की आत्माओं को उनके पापों के लिए दंड दिलाना और उन आत्माओं को मुक्ति दिलाना जो इस हवेली में कैद हो चुकी थीं।
जंगल में बाबा ने गहरे तप और साधना की, ताकि वह उन आत्माओं को हवेली में कैद रख सके और अपने परिवार के अत्याचारों को रोके। उसके साथ-साथ, वह धर्मदास और इंद्रा की आत्माओं का सामना करने की तैयारी करता रहा। लेकिन वह स्वयं इतनी शक्ति नहीं जुटा पाया कि उन दोनों की आत्माओं का अंत कर सके। वह केवल इस सीमा तक पहुँच सका कि वह हवेली के बाहर आने वाली नई आत्माओं को रोक सके और जो लोग हवेली में प्रवेश करने वाले होते, उन्हें चेतावनी दे सके।
बाबा को हवेली में फंसे आत्माओं का दर्द महसूस होता था। वह उनके साथ एक अदृश्य रिश्ता साझा करता था, जो उसकी अपनी यातना का हिस्सा था। वह जानता था कि उन आत्माओं की मुक्ति तभी संभव थी जब धर्मदास और इंद्रा की आत्माओं का अंत हो। इसी कारण वह हर उस व्यक्ति को चेतावनी देता था जो काल वन के पास आता था। लेकिन लोग उसकी बात को नजरअंदाज कर देते थे और हवेली में चले जाते थे, जहां वे भी उन्हीं आत्माओं में परिवर्तित हो जाते थे।
वर्षों तक यह सिलसिला चलता रहा। बाबा ने अपनी पूरी शक्ति और साधना इस प्रतीक्षा में लगाई कि कोई दिन ऐसा आएगा, जब कोई उसे सुनेगा और उसकी मदद करेगा। उसे एक दिन कैरी, लोमल, और रिया के हवेली में जाने की जानकारी मिली। जब वह उन्हें रोकने के लिए उनके सामने आया, तो वह जानता था कि ये लोग अलग हैं—रिया के पास तंत्र विद्या का ज्ञान था, और कैरी और लोमल में भी साहस की कमी नहीं थी।
इस बार बाबा ने न केवल उन्हें चेतावनी दी, बल्कि यह भी बताया कि कैसे वह धर्मदास और इंद्रा के पापों का अंत कर सकते हैं। उसने रिया को अपने साथ ले जाकर कुछ खास मंत्रों और विधियों के बारे में बताया, जो कि उन आत्माओं को पकड़ने और उनकी शक्ति को समाप्त करने के लिए थे। रिया को समझ में आ गया कि बाबा का दुःख और संघर्ष केवल प्रतिशोध का नहीं, बल्कि आत्माओं की मुक्ति का था।
जब रिया, कैरी, और लोमल ने धर्मदास और इंद्रा की आत्माओं को हरा दिया, तब बाबा के दिल का एक बोझ भी हल्का हो गया। उसने रिया से कहा, “मेरी साधना पूरी हो गई। अब मुझे भी मुक्त कर दो।" रिया ने बाबा का आशीर्वाद लिया, और अपने मंत्रों से बाबा की आत्मा को भी मुक्त कर दिया।
ब्रजमोहन की आत्मा ने एक शांति की सांस ली और हवेली में कैद आत्माओं के साथ वह भी मुक्त हो गया। यह उस बाबा का अंत था, जिसने वर्षों तक हवेली के अंधेरे में अपने परिवार के पापों का भार उठाए रखा।
बाबा की आत्मा ने अंत में रिया, कैरी और लोमल को आशीर्वाद दिया और कहा, "तुम लोगों ने केवल इस हवेली को ही नहीं, बल्कि मेरी आत्मा को भी मुक्त किया है। अब इस जंगल में कोई दर्द, कोई चीख, और कोई आत्मा कैद नहीं रहेगी।"
और इस तरह, बाबा की आत्मा हमेशा के लिए इस संसार से विदा हो गई, जैसे कि उसकी आत्मा को भी उस अंधकार और यातना से मुक्ति मिल गई, जिसने उसे सदियों तक बांध रखा था।
ये कहानी यहीं समाप्त होती है। हवेली में लोगों के साथ मित्तल परिवारों ने कैसे पीढ़ी दर पीढ़ी लोगो पर जुल्म किए वो सब इसके अगले भाग में देखेंगे। ये भाग यहीं समाप्त होता है।