“तुम क्या कह रहे हो समीर ? जो हुआ उसे भूल जाऊँ ? कैसे ? " आँचल की पीड़ा अब गुस्से में बदल रही थी ।
एक तो वो पहले से ही परेशान थी , ऊपर से समीर का बड़ों की तरह ऐसे बातें करना उसे अच्छा नहीं लग रहा था ।
गुस्से से उसका मुंह लाल हो गया ।
“ आँचल , प्लीज , पहले मेरी बात सुनो । मैं सिर्फ ये कह रहा हूँ कि भाई बहन के बीच मर्यादा की जो रेखा होती है ,
हमें उसे पहले जैसे ही बरक़रार रखना चाहिए । मैं तुम्हारा भाई , तुम मेरी लाड़ली बहन हो । जो कुछ हुआ उसे बुरा सपना समझकर
भुला देना चाहिए । तुम्हें मेरी इतनी सी बात समझ क्यों नहीं आ रही है ? उस घटना को भूल जाने में तुम्हें प्रॉब्लम क्या है ? "
“ इतनी सी बात ...... ? ये इतनी सी बात है ......? बकवास बंद करो समीर !! भाड़ में गयी तुम्हारी ये लेक्चर बाजी ।
तुम्हें कुछ अंदाजा भी है कि उस रात के बाद से मुझ पर क्या गुजरी है ? और तुमने कितनी आसानी से कह दिया ,
सब भूल जाओ । मैं कैसे भूल जाऊँ ? मर्यादा की जिस रेखा की तुम बात कर रहे हो , उसे तो तुम कब का पार कर चुके हो ।
समीर अब वो रेखा हम दोनों भाई बहन के बीच है ही नहीं क्योंकि उस रात के बाद अब हम दोनों उस रेखा के एक ही तरफ हैं ।
उस रात जो बदन तुम्हारे जिस्म के नीचे था , वो मेरा बदन था , तुम्हारी अपनी सगी बहन का । अब आँखें फेर लेने से क्या होगा ।
सच को झुठला तो नहीं सकते ना तुम । "
आँचल की आँखों से टपटप आँसू बहने लगे ।
“ बात सिर्फ उस रात के सेक्स की नहीं है । लेकिन उस रात बिताये पलों के बाद , जाने अनजाने में , मेरे मन में
जो आशाएं , उम्मीदें , जो इच्छाएं जन्मी थी , उनका क्या ? जो सपने रात भर मुझे बेचैन किये रहते थे , उनका क्या ?
मैं उन्हें भुला ही नहीं सकती , चाहे मैं कितनी ही कोशिश क्यों ना कर लूँ । समझे तुम ? "
आँचल के अंदर की इतने दिनों की पीड़ा , उसकी तड़प , लावा बनकर फूट पड़ी ।