komaalrani
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Update 19B
बलबीर ने डॉ रुस्तम की तरफ देखा. जैसे बलबीर उनकी परमिसन चाहता हो. डॉ रुस्तम ने भी गर्दन हिलाकर हा मे सहमति दे दि.
डॉ : हा बलबीर पर रुको. इस एनटीटी के बारे मे मै कुछ बताता हु.
ये अमूमन सुमशान रास्ते पर या जंगल या खाली खेतो मे ज्यादा मिलते है. ये लोहे और आग से दूर रहते है. लोग इस से ज़्यादातर पजेश तो गांव के बहार वाले रास्ते पर या खेतो मे अकेले ही होते है. इनकी सबसे खास बात ये है की ये किसी का भी रूप ले सकते है. कभी तो ये कुत्ता या गाय बन जाते है.
तो कभी बकरी. ये इंसान का भी रूप ले लेते है. कभी ये छोटा बच्चा बनाकर मिलेंगे तो कभी बुढ़िया बनकर. ये कभी कभी तो हमारे सामने हमारे माँ बाप भाई बहन या दोस्त के रूप मे भी मिल जाते है. इसी लिए इन्हे छलवा कहते है. बलबीर ने ऐसे किस्से गांव मे सुने ही होंगे. क्यों बलबीर क्या मे सही हु????
बलबीर : हा डॉक्टर साहब. हमारे गांव मे भी ऐसे किस्से हो चुके है. और वो भी मेरे बाबा मतलब मामा के साथ ही.
बलबीर गांव का भांजा था. वो अपने मामा के घर बड़ा हुआ था. छोटा था तब से ही वो अपने मामा मामी को ही माँ बाबा बोलता था.
बलबीर : उस वक्त मे काफ़ी छोटा था. कितनी उम्र होंगी याद नहीं. मेरे बाबा खेतो मे रात पानी देने गए थे.. ठंड बहोत थी. गेहूं का सबसे पहला पानी था. पानी देते वक्त उन्हें किसी ने पुकारा. आवज से जोरावर चाचा लग रहे थे.
जोरावर चाचा : रे भगवान सिंह. हुक्का पजार ले.
(भगवान सिंह हुक्का जला ले )
भगवान सिंह(मामा) : अब सबरे खेतन मे तो पानी हते. आयजा तोए बीड़ी पीबा दाऊ.
बाबा को जोरावर चाचा की आवाज तो सुनाई दि. पर वो दिखे नहीं थे. बाबा ने दो बीड़ी जला ली. पर जोरावर चाचा आए नहीं. बाबा ने आवाज भी दि.
भगवान सिंह : रे जोरावर... ओओ जोरावर. रे कहा रेह गो?? (कहा रहे गया???)
पर कोई नहीं आया. बाबा को शक हो गया. वो इस लिए नहीं आया क्यों की बाबा के हाथो मे फावड़ा था. वो हुक्का के बहाने बाबा से फावड़ा रखवाना चाहता था. वो आग जलाने से पहले बाबा को अपनी चपेट मे ले लेता. बाबा वहां से उसी वक्त चल दिये. ना तो उन्होंने अपना फावड़ा छोड़ा. और ना ही बीड़ी बूझने दी.
जब घर आए तो उन्होंने ये किस्सा माँ को सुनाया. मेने भी तब ही सुना. उन्होंने ये बात जोरावर चाचा को भी बताई. पर वो तो खेतो मे गए ही नहीं थे. अब इस बात के साल भर बाद. जोरावर चाचा बगल वाले गांव के एक लड़के से बात करते हुए गांव मे आ रहे थे. उस वक्त शाम थी. अंधेरा हो चूका था.
जोरावर : रे रामु सबेरे 4 बजे आ जाना. हम दोनों काम शुरू कर देंगे. हमें सुबह सुबह एक बिगा तो काम से काम खोदना ही पड़ेगा.
रामु : मै आ तो जाऊंगा चाचा. पर सबेरे सबेरे दरवाजा खट ख़तऊंगा चाची डांटेगी. पिछली साल भी मुजे खूब खरी खोटी सुनाई.
जोरावर : रे बावरे मै पहले ही कमरे मे सोऊंगा. तू बस आवज देना. दरवाजा मत खट खटाना.
रामु : ठीक है चाचा. 4 बजे मै आवाज लगा दूंगा. खेतो मे ही जंगल पानी( टॉयलेट) चले जाएंगे.
जोरावर : ठीक है.
अब जोरावर चाचा रात सो गए. उनके पास घड़ी थी नहीं. और उस वक्त मोबाइल कहा होता था. रात 2 बजे ही उन्हें रामु की आवाज आई.
रामु : चाचा.... चाचा...
जोरावर चाचा उठ गए. और दरवाजा खोल कर देखते है की रामु बहार खड़ा है.
जोरावर : रे रामु??? बड़ी जल्दी 4 बज गए रे. रुक मै औजार लेकर आता हु.
चाचा दो फावडे लेकर बहार निकले तो रामु आगे आगे चल दिया. अब चाचा को उसे फावडे पकड़वाने थे. मगर रामु तो आगे आगे चल रहा था. चाचा ने दो बीड़ी भी जलाई.
जोरावर : रे ले रामु. इतना तेज कहे चल रहा है. बीड़ी तो ले ले.
पर वो रुका नहीं.
रामु : अरे बीड़ी पिऊंगा तो यही लग जाएगी. जंगल पानी जाते वक्त ही लूंगा. जल्दी चलो सूरज माथे चढ़ गया तो काम होना मुश्किल है.
चाचा अपनी बीड़ी पीते चुप चाप चलने लगे. वो ट्यूबवेल के पास पहोचे और फावडे को अपने पास रखे बैठ कर दूसरी बीड़ी जलाकर पिने लगे. वो सोच रहे थे की पहले टॉयलेट जाए फिर काम शुरू करेंगे. पर आधा घंटा भी नहीं हुआ और रामु आ गया.
रामु : लो चाचा. पूरा खेत खोद दिया. अब चलो पोखर. जंगल पानी हो आए.
चाचा हैरान रहे गए. वो फावड़ा उठाकर खेतो मे गए. बात एक बिगा खोदने की थी. मगर 7 बिगाह खुद चूका था. चाचा हैरान रहे गए. अब चाचा को सक हुआ. पर रामु सामने ही खड़ा था.
रामु : अरे चलो ना चाचा. पोखर मे ही जंगल पानी हो जाएगा. वही धो लेंगे.
चाचा डर गए. और वो उसी के साथ चल पड़े. पर उन्हें ये ध्यान ही नहीं था की उनके हाथ मे फावड़ा है. जब पोखर के करीब पहोचे तब. वो दोनों खड़े हो गए.
रामु : चाचा ये फावड़ा यहाँ रखो. और जाओ हो आओ हलके.
चाचा : नहीं पहले तू जा आ.
रामु जैसे ही आगे गया. चाचा तुरंत वहां से गांव की तरफ चल पड़े. वो समझ गए थे की फावड़ा रखा तो वो जिन्दा नहीं बचेंगे. मगर जाती वक्त उन्हें आवाज भी सुनाई दीं. वो छलवा ही था.
छलावा : (हसना) जोरावर आज तू जिन्दा बच गया. मगर जिस दिन तू मेरे हाथ आया. तुझे जिन्दा नहीं छोडूंगा.
बलबीर शांत हो गया. मगर कोमल फटी आँखों से उसे ही देख रही थी. कोमल को ऐसे देख कर बलबीर डर गया.
बलबीर : कोमल... तुम ठीक...
कोमल : मुजे क्या हुआ. फट्टू हो तुम.
कोमल खड़ी हुई और किचन मे चली गई.
कोमल : मै डिनर बना रही हु. किसी को कुछ खाने का मन हो तो बता दो.
डॉ रुस्तम को हलकी सी हसीं आई. क्यों की बलबीर खुद कहानी सुनते हलका सा डर गया. मगर कोमल को तो बिलकुल डर नहीं था. उल्टा वो लीन होकर किस्सा सुन रही थी. जाने से पहले डॉ रुस्तम कोमल से पूछना चाहते थे की क्या वो इनके साथ पैरानॉरोल इन्वेस्टिगेशन मे काम करना चाहेगी या नहीं.
अब इस कहानी का स्तर इतना ऊपर हो गया है की इस में क्या कहा गया है, इसका कोई मतलब नहीं है। कहानी अच्छी है, पोस्ट बहुत अच्छी है , यह भी स्वयंसिद्ध बात को दुहराना है।
हाँ कहानी की कला, कथा शिल्प, कहानी कही कैसे गयी, मुझे चमत्त्कृत और प्रभावित करता है, और इससे बहुत से लेखक लेखिकाएं सीख सकते है। तीन बातें जो मुझे अच्छी लगीं, कहानी से कहानी को जोड़ने की तरकीब, पात्रों का इस्तेमाल और लोकभाषा और लोकविश्वासों का इस्तेमाल, इस कहानी को फोरम की सबसे अच्छी ( जो कहानियां मैंने पढ़ी हैं उनमे ) कहानियों की कतार में खड़ी करती है।
पहली बात इस प्रसंग को ही ले लें , छलावा, ( यह इस भाग का शीर्षक भी हो सकता था ) एक अलग कहानी के रूप में भी लिखी और पढ़ी जा सकती है और पूरी होगी। लेकिन वह कहानी का हिस्सा भी है, इस तरह से कहानी से कहानी निकालने की कला, ग्यारहवीं शताब्दी की प्रसिद्ध पुस्तक सोमदेव की कथासरित्सागर की याद दिलाती है।
लेकिन इसमें भी इस कहानी में एक अलग स्तर इस तरह छुआ की की कोई एक पात्र एक नयी कहानी नहीं शुरू करता बल्कि अलग अलग पात्र अपनी अपनी बात कहते हैं जैसे डाक्टर रुस्तम और बलबीर दोनों ने ही छलावा की ही बात की, अलग पृष्ठ्भूमि में ,
और लोकभाषा, ब्रज का बहुत अच्छा प्रयोग तो हुआ है लेकिन सबसे बड़ी बात है की कहानी में गाँव सिर्फ हैं नहीं, गाँव दीखता भी है।
अधिकतर कहानियों में गाँव का जिक्र आता है लेकिन न तो खेती किसानी की बात होती है न खेतों बगीचों और फसलों का, किस मौसम में खेत में क्या हो रहा है, कहानी पढ़कर पता ही नहीं लगता की सावन है की जेठ।
" मेरे बाबा खेतों में रात में पानी देने गए थे। ठण्ड बहुत थी। गेंहू का सबसे पहला पानी था "
पढ़कर लगता है बात गाँव की हो रही है और बात करने वाला वो नहीं है, जिसने सिर्फ फिल्मो में जमींदार का अत्याचार, हीरोइन का डांस देखा है या बस और ट्रेन से गाँव आते जाते देखा है ।
और उससे भी बड़ी बात, सिर्फ एक लाइन में स्थान और समय दोनों दर्शा दिया गया ,
बहुत ही बढ़िया अपडेट।
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