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Horror किस्से अनहोनियों के

komaalrani

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Update 19B


बलबीर ने डॉ रुस्तम की तरफ देखा. जैसे बलबीर उनकी परमिसन चाहता हो. डॉ रुस्तम ने भी गर्दन हिलाकर हा मे सहमति दे दि.



डॉ : हा बलबीर पर रुको. इस एनटीटी के बारे मे मै कुछ बताता हु.

ये अमूमन सुमशान रास्ते पर या जंगल या खाली खेतो मे ज्यादा मिलते है. ये लोहे और आग से दूर रहते है. लोग इस से ज़्यादातर पजेश तो गांव के बहार वाले रास्ते पर या खेतो मे अकेले ही होते है. इनकी सबसे खास बात ये है की ये किसी का भी रूप ले सकते है. कभी तो ये कुत्ता या गाय बन जाते है.

तो कभी बकरी. ये इंसान का भी रूप ले लेते है. कभी ये छोटा बच्चा बनाकर मिलेंगे तो कभी बुढ़िया बनकर. ये कभी कभी तो हमारे सामने हमारे माँ बाप भाई बहन या दोस्त के रूप मे भी मिल जाते है. इसी लिए इन्हे छलवा कहते है. बलबीर ने ऐसे किस्से गांव मे सुने ही होंगे. क्यों बलबीर क्या मे सही हु????


बलबीर : हा डॉक्टर साहब. हमारे गांव मे भी ऐसे किस्से हो चुके है. और वो भी मेरे बाबा मतलब मामा के साथ ही.


बलबीर गांव का भांजा था. वो अपने मामा के घर बड़ा हुआ था. छोटा था तब से ही वो अपने मामा मामी को ही माँ बाबा बोलता था.


बलबीर : उस वक्त मे काफ़ी छोटा था. कितनी उम्र होंगी याद नहीं. मेरे बाबा खेतो मे रात पानी देने गए थे.. ठंड बहोत थी. गेहूं का सबसे पहला पानी था. पानी देते वक्त उन्हें किसी ने पुकारा. आवज से जोरावर चाचा लग रहे थे.


जोरावर चाचा : रे भगवान सिंह. हुक्का पजार ले.
(भगवान सिंह हुक्का जला ले )


भगवान सिंह(मामा) : अब सबरे खेतन मे तो पानी हते. आयजा तोए बीड़ी पीबा दाऊ.


बाबा को जोरावर चाचा की आवाज तो सुनाई दि. पर वो दिखे नहीं थे. बाबा ने दो बीड़ी जला ली. पर जोरावर चाचा आए नहीं. बाबा ने आवाज भी दि.


भगवान सिंह : रे जोरावर... ओओ जोरावर. रे कहा रेह गो?? (कहा रहे गया???)


पर कोई नहीं आया. बाबा को शक हो गया. वो इस लिए नहीं आया क्यों की बाबा के हाथो मे फावड़ा था. वो हुक्का के बहाने बाबा से फावड़ा रखवाना चाहता था. वो आग जलाने से पहले बाबा को अपनी चपेट मे ले लेता. बाबा वहां से उसी वक्त चल दिये. ना तो उन्होंने अपना फावड़ा छोड़ा. और ना ही बीड़ी बूझने दी.

जब घर आए तो उन्होंने ये किस्सा माँ को सुनाया. मेने भी तब ही सुना. उन्होंने ये बात जोरावर चाचा को भी बताई. पर वो तो खेतो मे गए ही नहीं थे. अब इस बात के साल भर बाद. जोरावर चाचा बगल वाले गांव के एक लड़के से बात करते हुए गांव मे आ रहे थे. उस वक्त शाम थी. अंधेरा हो चूका था.


जोरावर : रे रामु सबेरे 4 बजे आ जाना. हम दोनों काम शुरू कर देंगे. हमें सुबह सुबह एक बिगा तो काम से काम खोदना ही पड़ेगा.


रामु : मै आ तो जाऊंगा चाचा. पर सबेरे सबेरे दरवाजा खट ख़तऊंगा चाची डांटेगी. पिछली साल भी मुजे खूब खरी खोटी सुनाई.


जोरावर : रे बावरे मै पहले ही कमरे मे सोऊंगा. तू बस आवज देना. दरवाजा मत खट खटाना.


रामु : ठीक है चाचा. 4 बजे मै आवाज लगा दूंगा. खेतो मे ही जंगल पानी( टॉयलेट) चले जाएंगे.


जोरावर : ठीक है.


अब जोरावर चाचा रात सो गए. उनके पास घड़ी थी नहीं. और उस वक्त मोबाइल कहा होता था. रात 2 बजे ही उन्हें रामु की आवाज आई.


रामु : चाचा.... चाचा...


जोरावर चाचा उठ गए. और दरवाजा खोल कर देखते है की रामु बहार खड़ा है.


जोरावर : रे रामु??? बड़ी जल्दी 4 बज गए रे. रुक मै औजार लेकर आता हु.


चाचा दो फावडे लेकर बहार निकले तो रामु आगे आगे चल दिया. अब चाचा को उसे फावडे पकड़वाने थे. मगर रामु तो आगे आगे चल रहा था. चाचा ने दो बीड़ी भी जलाई.


जोरावर : रे ले रामु. इतना तेज कहे चल रहा है. बीड़ी तो ले ले.


पर वो रुका नहीं.


रामु : अरे बीड़ी पिऊंगा तो यही लग जाएगी. जंगल पानी जाते वक्त ही लूंगा. जल्दी चलो सूरज माथे चढ़ गया तो काम होना मुश्किल है.


चाचा अपनी बीड़ी पीते चुप चाप चलने लगे. वो ट्यूबवेल के पास पहोचे और फावडे को अपने पास रखे बैठ कर दूसरी बीड़ी जलाकर पिने लगे. वो सोच रहे थे की पहले टॉयलेट जाए फिर काम शुरू करेंगे. पर आधा घंटा भी नहीं हुआ और रामु आ गया.


रामु : लो चाचा. पूरा खेत खोद दिया. अब चलो पोखर. जंगल पानी हो आए.


चाचा हैरान रहे गए. वो फावड़ा उठाकर खेतो मे गए. बात एक बिगा खोदने की थी. मगर 7 बिगाह खुद चूका था. चाचा हैरान रहे गए. अब चाचा को सक हुआ. पर रामु सामने ही खड़ा था.


रामु : अरे चलो ना चाचा. पोखर मे ही जंगल पानी हो जाएगा. वही धो लेंगे.


चाचा डर गए. और वो उसी के साथ चल पड़े. पर उन्हें ये ध्यान ही नहीं था की उनके हाथ मे फावड़ा है. जब पोखर के करीब पहोचे तब. वो दोनों खड़े हो गए.


रामु : चाचा ये फावड़ा यहाँ रखो. और जाओ हो आओ हलके.


चाचा : नहीं पहले तू जा आ.


रामु जैसे ही आगे गया. चाचा तुरंत वहां से गांव की तरफ चल पड़े. वो समझ गए थे की फावड़ा रखा तो वो जिन्दा नहीं बचेंगे. मगर जाती वक्त उन्हें आवाज भी सुनाई दीं. वो छलवा ही था.


छलावा : (हसना) जोरावर आज तू जिन्दा बच गया. मगर जिस दिन तू मेरे हाथ आया. तुझे जिन्दा नहीं छोडूंगा.


बलबीर शांत हो गया. मगर कोमल फटी आँखों से उसे ही देख रही थी. कोमल को ऐसे देख कर बलबीर डर गया.


बलबीर : कोमल... तुम ठीक...


कोमल : मुजे क्या हुआ. फट्टू हो तुम.


कोमल खड़ी हुई और किचन मे चली गई.


कोमल : मै डिनर बना रही हु. किसी को कुछ खाने का मन हो तो बता दो.



डॉ रुस्तम को हलकी सी हसीं आई. क्यों की बलबीर खुद कहानी सुनते हलका सा डर गया. मगर कोमल को तो बिलकुल डर नहीं था. उल्टा वो लीन होकर किस्सा सुन रही थी. जाने से पहले डॉ रुस्तम कोमल से पूछना चाहते थे की क्या वो इनके साथ पैरानॉरोल इन्वेस्टिगेशन मे काम करना चाहेगी या नहीं.

अब इस कहानी का स्तर इतना ऊपर हो गया है की इस में क्या कहा गया है, इसका कोई मतलब नहीं है। कहानी अच्छी है, पोस्ट बहुत अच्छी है , यह भी स्वयंसिद्ध बात को दुहराना है।

हाँ कहानी की कला, कथा शिल्प, कहानी कही कैसे गयी, मुझे चमत्त्कृत और प्रभावित करता है, और इससे बहुत से लेखक लेखिकाएं सीख सकते है। तीन बातें जो मुझे अच्छी लगीं, कहानी से कहानी को जोड़ने की तरकीब, पात्रों का इस्तेमाल और लोकभाषा और लोकविश्वासों का इस्तेमाल, इस कहानी को फोरम की सबसे अच्छी ( जो कहानियां मैंने पढ़ी हैं उनमे ) कहानियों की कतार में खड़ी करती है।

पहली बात इस प्रसंग को ही ले लें , छलावा, ( यह इस भाग का शीर्षक भी हो सकता था ) एक अलग कहानी के रूप में भी लिखी और पढ़ी जा सकती है और पूरी होगी। लेकिन वह कहानी का हिस्सा भी है, इस तरह से कहानी से कहानी निकालने की कला, ग्यारहवीं शताब्दी की प्रसिद्ध पुस्तक सोमदेव की कथासरित्सागर की याद दिलाती है।

लेकिन इसमें भी इस कहानी में एक अलग स्तर इस तरह छुआ की की कोई एक पात्र एक नयी कहानी नहीं शुरू करता बल्कि अलग अलग पात्र अपनी अपनी बात कहते हैं जैसे डाक्टर रुस्तम और बलबीर दोनों ने ही छलावा की ही बात की, अलग पृष्ठ्भूमि में ,

और लोकभाषा, ब्रज का बहुत अच्छा प्रयोग तो हुआ है लेकिन सबसे बड़ी बात है की कहानी में गाँव सिर्फ हैं नहीं, गाँव दीखता भी है।

अधिकतर कहानियों में गाँव का जिक्र आता है लेकिन न तो खेती किसानी की बात होती है न खेतों बगीचों और फसलों का, किस मौसम में खेत में क्या हो रहा है, कहानी पढ़कर पता ही नहीं लगता की सावन है की जेठ।

" मेरे बाबा खेतों में रात में पानी देने गए थे। ठण्ड बहुत थी। गेंहू का सबसे पहला पानी था "

पढ़कर लगता है बात गाँव की हो रही है और बात करने वाला वो नहीं है, जिसने सिर्फ फिल्मो में जमींदार का अत्याचार, हीरोइन का डांस देखा है या बस और ट्रेन से गाँव आते जाते देखा है ।

और उससे भी बड़ी बात, सिर्फ एक लाइन में स्थान और समय दोनों दर्शा दिया गया ,

बहुत ही बढ़िया अपडेट।



:applause::applause::applause::applause::applause::applause::applause::applause::applause:
 
Last edited:

Shetan

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अब इस कहानी का स्तर इतना ऊपर हो गया है की इस में क्या कहा गया है, इसका कोई मतलब नहीं है। कहानी अच्छी है, पोस्ट बहुत अच्छी है , यह भी स्वयंसिद्ध बात को दुहराना है।

हाँ कहानी की कला, कथा शिल्प, कहानी कही कैसे गयी, मुझे चमत्त्कृत और प्रभावित करता है, और इससे बहुत से लेखक लेखिकाएं सीख सकते है। तीन बातें जो मुझे अच्छी लगीं, कहानी से कहानी को जोड़ने की तरकीब, पात्रों का इस्तेमाल और लोकभाषा और लोकविश्वासों का इस्तेमाल, इस कहानी को फोरम की सबसे अच्छी ( जो कहानियां मैंने पढ़ी हैं उनमे ) कहानियों की कतार में खड़ी करती है।

पहली बात इस प्रसंग को ही ले लें , छलावा, ( यह इस भाग का शीर्षक भी हो सकता था ) एक अलग कहानी के रूप में भी लिखी और पढ़ी जा सकती है और पूरी होगी। लेकिन वह कहानी का हिस्सा भी है, इस तरह से कहानी से कहानी निकालने की कला, ग्यारहवीं शताब्दी की प्रसिद्ध पुस्तक सोमदेव की कथासरित्सागर की याद दिलाती है।

लेकिन इसमें भी इस कहानी में एक अलग स्तर इस तरह छुआ की की कोई एक पात्र एक नयी कहानी नहीं शुरू करता बल्कि अलग अलग पात्र अपनी अपनी बात कहते हैं जैसे डाक्टर रुस्तम और बलबीर दोनों ने ही छलावा की ही बात की, अलग पृष्ठ्भूमि में ,

और लोकभाषा, ब्रज का बहुत अच्छा प्रयोग तो हुआ है लेकिन सबसे बड़ी बात है की कहानी में गाँव सिर्फ हैं नहीं, गाँव दीखता भी है।

अधिकतर कहानियों में गाँव का जिक्र आता है लेकिन न तो खेती किसानी की बात होती है न खेतों बगीचों और फसलों का, किस मौसम में खेत में क्या हो रहा है, कहानी पढ़कर पता ही नहीं लगता की सावन है की जेठ।

" मेरे बाबा खेतों में रात में पानी देने गए थे। ठण्ड बहुत थी। गेंहू का सबसे पहला पानी था "

पढ़कर लगता है बात गाँव की हो रही है और बात करने वाला वो नहीं है, जिसने सिर्फ फिल्मो में जमींदार का अत्याचार, हीरोइन का डांस देखा है या बस और ट्रेन से गाँव आते जाते देखा है ।

और उससे भी बड़ी बात, सिर्फ एक लाइन में स्थान और समय दोनों दर्शा दिया गया ,

बहुत ही बढ़िया अपडेट।



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Komalji me kya bolu muje kuchh samaz nahi aa raha he. Meri story par itna deep review aap ne hi diya. Thankyou so much. Par sayad thankyou bhi kam hi he.

Mene ab tak ki jitni bhi bhutiya ghatna likhi ye kisi na kisi ke sath ghati hui he. Is lie satik mousam aur mahol ko jatane ki puri kosis ki.

Jab aap pitth thap thapati ho na. To mood aur badhiya karne ko hone lagta hai.

Thankyou very very much.
 

Tiger 786

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Update 19A

दाई माँ चली गई. कोमल का रो रो कर बुरा हाल हो गया. दाई माँ उसके घर पहेली बार आई. और उसका भला कर के चली गई. ना उसके साथ रहने का मौका मिला और ना ही दाई माँ की सेवा करने का.

पर दाई माँ भी क्या करती. दो ख़तरनाक जिन्न उनके पास जो थे. दाई माँ अपने काम को लेकर मुल्क के वो सभी इलाके मे घूम चुकी थी. जिस से दाई माँ के पेशे से वास्ता था. सबसे नजदीक जगह दाई माँ को पता था.

गुजरात मे ही एक सारंगपुर नाम की जगह थी. जहापर एक पीर का स्थान था. वहां पर दरगाह के साथ ही एक पेड़ है. जिसपर कई सारी एनटीटी को बांध कर लटका दिया जता है. क्यों की पृथ्वी पर सभी जीवो का वक्त मुकरर है.

ऐसी एनटीटी जो दुसरो को तकलीफ पहोंचा सकती है. वो ऐसी जगह पर ही अपना वक्त बिताई यही सही है. ताकि कोई पजेश ना हो. दाई माँ एक लोकल ट्रैन पकड़ कर सारंगपुर के लिए तुरंत ही निकल गई.

वही कोमल बलबीर की बाहो मे मुँह छीपाए बस रोए ही जा रही थी. पर डॉ रुस्तम आगे की करवाई मे तुरंत ही जुट गए. उस ड्रेसिंग टेबल के शीशे को हवन की कलिक से काला किया. पर इतने बड़े टेबल को जलाने के लिए निचे ले जाना ज्यादा जरुरी था. वो अकेले नहीं लेजा सकते थे. ताकि उस एनटीटी का कोई लिंक ना रहे.


डॉ : ऐसे बैठे रहने से काम नहीं चलेगा. हमें काम ख़तम करना है. इस टेबल को निचे पहोंचाना होगा.


बलबीर तुरंत खड़ा हुआ. दोनों मिलकर टेबल निचे लेजाने लगे. कोमल ये सब खड़े खड़े देख रही थी. पर उसे भी लगा की उसे भी कुछ करना चाहिये. वो भी उनके साथ लग गई. कड़ी महेनत के बस वो तीनो मिलकर उस ड्रेसिंग टेबल को निचे पहोंचा देते है. कोमल की फ्लेट की बिल्डिंग के पास ही एक खाली प्लाट था. जिसमे झाड़िया जंगल टाइप हो गया था.

उस टेबल को वही लेजाकर जला दिया गया. वो तीनो थक गए. उस एनटीटी से जुडी सभी चीजे जल चुकी थी. वो तीनो ऊपर आए और थके हुए सोफे पर ही बैठ गए. कुछ देर कोई नहीं बोला.


डॉ : मेरे ख्याल से मुजे अब जाना चाहिये. मै रात की कोई फ्लाइट बुक कर लेता हु.


कोमल : प्लीज डॉक्टर साहब. आज तो रुक जाइये. देखो माँ भी मुजे छोड़ कर चली गई.


डॉ : उन्हें इस वक्त तो जाना ही बहेतर था. दो खतरनाक एनटीटी को लेकर किसी एक जगह रुकना ठीक नहीं है.


कोमल और सभी को काफ़ी अच्छा फील हो रहा था. माहोल मे एकदम से बदलाव आ चूका था. चारो तरफ पॉजिटिव वाइब्स आने लगी थी. हवन की खुशबु अब भी आ रही थी. कोमल डॉ रुस्तम के कहने का मतलब समझ भी गई. और उसका माइंड भी दाई माँ के दुख से डाइवर्ट हो चूका था.


डॉ : ठीक है. पर मै सिर्फ आज ही रुकूंगा. कल मे चले जाऊंगा.


कोमल : (स्माइल) इसी बात पे गरमा गरम चाय हो जाए.


कोमल तुरंत उठकर किचन मे चली गई. और चाय बनाने लगी. बलबीर और डॉ रुस्तम दोनों आमने सामने थे. कोमल भी उनकी बाते आसानी से सुन भी सकती थी. और बाते भी कर सकती थी.


बलबीर : डॉक्टर साहब आप इस पेशे मे कैसे आए??? मतलब ये सब भुत प्रेत आप ने पहेली बार कैसे देखे मतलब...


कोमल भी ये सब सुन रही थी. डॉ रुस्तम सोच मे पड़ गए. पर उन्होंने अपनी कहानी सुनना स्टार्ट किया.


डॉ : मै पहले एयर फोर्स मे था. मुजे जो सबसे पहेली एनटीटी मिली वो कुछ अलग ही थी. इस से पहले मेने कभी कोई पैरानॉर्मल एक्टिविटीज नहीं देखि थी. और ना ही मुजे किसी हॉरर स्टोरी मे इंटरस था.


कोमल : (किचन से ही) एयरफोर्स वाओ..


डॉ : उस वक्त मे सिर्फ 21 इयर्स का ही था. मै फ़्लाइंग लेफ्टनें की रैंक पर था.


कोमल : (किचन से ही) वाओ मतलब आप पायलट भी थे??


डॉ : जी बिलकुल. जयपुर एयर बेस पर मेरी पोस्टिंग थी. ये मेरी दूसरी पोस्टिंग थी. ये गर्मियों की बात है.

मै अपनी सोटी ख़तम कर के आ रहा था.
उस वक्त कैंप के चारो तरफ दिवार नहीं हुआ करती थी. बस तार से बाउंड्री फेंसिंग बनी हुई होती थी. कैंप हमेशा शहर के बहार की तरफ ही बनाए जाते है. और कैंप के पास कोई रेजिडेंस भी नहीं होते.

बस कुछ 10 या 12 घर ही होते है. जिसका दाना पानी कैंप की वजह से ही चलता है. फ्रेश, दूध, बहोत कुछ सप्लाई करने वाले ही कैंप के पास अपना घर बना लेते है. हा कैंप के बहार बाउंड्री की तरफ पोल लाइट जरूर होती है. बाउंड्री की उस तरफ कच्चा रस्ता भी था.

जिसपर हमारी पेट्रोल पार्टी, शहर जाने के लिए रोड तक का रस्ता हुआ करता था. जब मै अपनी सोटी कम्प्लीट कर के वापिस आ रहा था. मुजे बाउंड्री पर एक बच्चा दिखाई दिया. कुछ 4 या 5 साल का लग रहा था. मेरे आगे मेरे एक साथी भी चल रहे थे. जो मुझसे सीनियर थे. मेने उन्हें आवाज दि.



मै : संदीप सर.


उन्होंने पीछे मुड़कर मुजे देखा. मै उनके पास गया.


मै : सर मेने वहां एक 4,5 साल के बच्चे को देखा. जो बोल से खेल रहा है.


संदीप : हम्म्म्म होगा कोई घर पे माँ बाप सो रहे होंगे. बच्चा बहार निकल गया होगा.


मै : सर मै उसे उसके घर तक पहोंचाकर आता हु.


संदीप : गुड... जाओ मगर अपना बेल्ट और पिस्तौल मुजे दे दो. और छोड़ कर जल्दी आ जाना.


मेने उन्हें पिस्टल और बेल्ट दे दिया. और बाउंड्री की तरफ दोडते हुए जाने लगा. जब मै कैम्प की बाउंड्री की तरफ गया तो देखा की सच मे वो छोटा बच्चा ही था. और अकेला मस्त एक बोल के साथ खेल रहा था.


तभी वहां कोमल चाय की ट्रे लेकर आ गई.


कोमल : कैसे माँ बाप होंगे जिन्हे होश तक नहीं की उनका बच्चा इतनी रात को घर से बहार निकल गया. कितने बज रहे होंगे वो टाइम.


डॉ रुस्तम बस थोडा सा हसे कोमल ने उनकी तरफ चाय का कप बढ़ाया था. उसे ले लेते है.


डॉ : (स्माइल एक्क्सइटेड) रात के एक बज रहे थे उस वक्त.


सुनते ही कोमल के होश ही उड़ गए.


कोमल : फिर तो अच्छा ही हुआ की आप की नजर पड़ गई. कोई जानवर या किसी बदमाश के हाथ आ जाता तो...


डॉ रुस्तम को हसीं आने लगी.


डॉ : (स्माइल) जो दीखता है. हर बार ऐसा नहीं होता. जो तुम सोच रही हो.

मेने भी ऐसा ही सोचा था. मै बाउंड्री तक पहोच कर उस बच्चे को देखने लगा. वो तो मस्त होकर खेल रहा था. कभी बोल को उछालता और खुद ही कैच करने की कोसिस करता. मेने दए बाए भी देखा. वहां कोई नहीं था. मेने उस बच्चे को आवाज दि.


मै : हेलो बेटा हेलो हेलो.


आवाज देते ही वो रुक गया. और मुजे देखने लगा.


मै : हेलो बेटा तुम्हारा घर कहा है????


उसने उस रास्ते की तरफ बस हाथ दिखाया. वो रस्ता कैम्प के साइड से ही कैंप की बाउंड्री बाउंड्री गेट तक जाता है. बस वही सिविलियन के घर भी है. कुछ 10, 12 के आस पास. मै बाउंड्री मेसे बहार निकल गया. और उसके पास गया.


मै : बेटा इतनी रात को बहार नहीं निकलते. चलो मै तुम्हे तुम्हारे घर छोड़ देता हु.


मेने उसे गोदी मे उठा लिया. और कैंप के बहार की तरफ के कच्चे रास्ते पर चलने लगा. वो रस्ता कैंप के साथ साथ ही था. उस वक्त मुजे टॉफी खाने की बहोत आदत थी. चालू सोटी मे भी मै टॉफी खाया करता था. मेने जेब से एक टॉफी निकली और उसे दे दि.


मै : लो बेटा टॉफी खाओ.


उसने वो टॉफी ले ली. उसे गोद मे उठाए मै चले जा रहा था. मै उस से कुछ भी पूछता वो जवाब ही नहीं दे रहा था. पर जो मेरे साथ हो रहा था. वो कुछ अजीब था. उस बच्चे को जब मेने उठाया. वो एकदम हलका ही था. जैसे हर बच्चे का वजन होता है. पर धीरे धीरे मुजे एहसास होने लगा की उसका वेट बढ़ रहा है. अब जो मै बताऊंगा तो तुम्हारे होश उड़ जाएंगे. वो बच्चा धीरे धीरे बड़ा हो रहा था. गांव मे मेने लोगो से ऐसे किस्से सुने थे.

मै समझ गया की ये कोई गलत चीज है. मेने उसे जोर से पटका. और वो बच्चा एकदम बड़ा जमीन पर गिरा. और गिरते ही वो वहां से भागने लगा. मै देखता ही रहे गया. वो वहां से भाग गया.


बलबीर : वो तो फिर छलवा था.


बलबीर गांव का था. और उसने ऐसे किस्से सुन रखे थे. भले ही उसने ऐसा कुछ देखा नहीं था. पर उसे जानकारी थी.


डॉ : बिलकुल सही कहा. हम फौजी किसी चीज से डरते तो नहीं. पर मेरे साथ पहेली बार हुआ था. इस लिए मुजे डर लगने लगा.

मै वहां से कैंप मै आ गया. मै बाउंड्री से नहीं गया. बल्कि रास्ते से ही गेट तक आया. सुबह मेने अपने सीनियर संदीप सर को भी ये किस्सा सुनाया. पर सर बोले की उस वक्त मुजे कोई बच्चा नहीं दिखा. मेने तुम्हारी बात पर यकीन किया.

बाद मे मै और संदीप सर उन सिविल मकानों की तरफ गए. सर सायद किसी को जानते थे. वहां एक बंजारा भी रहता था. जो अपनी भेड़ बकरिया कैंप के पास चराया करता था. हमने उनसे बात करी. और उसने हमें बताया की वो एक छलवा था.


कोमल : चलावा??? वो क्या होता है???


बलबीर : छलवा वो होता है जो सुमसान रास्ते या खेत मे मिले लोगो को छल से फसता है. और उन्हें किसी ना किसी तरह मरवाता है. जैसे की एक्सीडेंट करवाएगा. किसी गाड़ी के निचे ले आएगा. या पानी मे डुबवा देगा. या खाई मे कुड़वा देगा.


कोमल : तो फिर उन्होंने डॉक्टर साहब को कैसे जिन्दा छोड़ दिया??.


बलबीर : क्यों की डॉक्टर साहब ने उसे टॉफी दि थी. अगर उसे कोई चीज दे दो तो वो उन्हें नहीं फसता है. पर डॉक्टर साहब उसे गोद मे लेकर चलने लगे तो उसे उनसे पीछा छुड़ाना था. इस लिए उस छालावे ने ऐसा किया.


कोमल : (स्माइल) वाह बलबीर तुम तो बहोत कुछ जानते हो. पर तुम छालावे के बारे मे इतना सब कैसे जानते हो?.?
Awesome update
 

Tiger 786

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Update 19B


बलबीर ने डॉ रुस्तम की तरफ देखा. जैसे बलबीर उनकी परमिसन चाहता हो. डॉ रुस्तम ने भी गर्दन हिलाकर हा मे सहमति दे दि.



डॉ : हा बलबीर पर रुको. इस एनटीटी के बारे मे मै कुछ बताता हु.

ये अमूमन सुमशान रास्ते पर या जंगल या खाली खेतो मे ज्यादा मिलते है. ये लोहे और आग से दूर रहते है. लोग इस से ज़्यादातर पजेश तो गांव के बहार वाले रास्ते पर या खेतो मे अकेले ही होते है. इनकी सबसे खास बात ये है की ये किसी का भी रूप ले सकते है. कभी तो ये कुत्ता या गाय बन जाते है.

तो कभी बकरी. ये इंसान का भी रूप ले लेते है. कभी ये छोटा बच्चा बनाकर मिलेंगे तो कभी बुढ़िया बनकर. ये कभी कभी तो हमारे सामने हमारे माँ बाप भाई बहन या दोस्त के रूप मे भी मिल जाते है. इसी लिए इन्हे छलवा कहते है. बलबीर ने ऐसे किस्से गांव मे सुने ही होंगे. क्यों बलबीर क्या मे सही हु????


बलबीर : हा डॉक्टर साहब. हमारे गांव मे भी ऐसे किस्से हो चुके है. और वो भी मेरे बाबा मतलब मामा के साथ ही.


बलबीर गांव का भांजा था. वो अपने मामा के घर बड़ा हुआ था. छोटा था तब से ही वो अपने मामा मामी को ही माँ बाबा बोलता था.


बलबीर : उस वक्त मे काफ़ी छोटा था. कितनी उम्र होंगी याद नहीं. मेरे बाबा खेतो मे रात पानी देने गए थे.. ठंड बहोत थी. गेहूं का सबसे पहला पानी था. पानी देते वक्त उन्हें किसी ने पुकारा. आवज से जोरावर चाचा लग रहे थे.


जोरावर चाचा : रे भगवान सिंह. हुक्का पजार ले.
(भगवान सिंह हुक्का जला ले )


भगवान सिंह(मामा) : अब सबरे खेतन मे तो पानी हते. आयजा तोए बीड़ी पीबा दाऊ.


बाबा को जोरावर चाचा की आवाज तो सुनाई दि. पर वो दिखे नहीं थे. बाबा ने दो बीड़ी जला ली. पर जोरावर चाचा आए नहीं. बाबा ने आवाज भी दि.


भगवान सिंह : रे जोरावर... ओओ जोरावर. रे कहा रेह गो?? (कहा रहे गया???)


पर कोई नहीं आया. बाबा को शक हो गया. वो इस लिए नहीं आया क्यों की बाबा के हाथो मे फावड़ा था. वो हुक्का के बहाने बाबा से फावड़ा रखवाना चाहता था. वो आग जलाने से पहले बाबा को अपनी चपेट मे ले लेता. बाबा वहां से उसी वक्त चल दिये. ना तो उन्होंने अपना फावड़ा छोड़ा. और ना ही बीड़ी बूझने दी.

जब घर आए तो उन्होंने ये किस्सा माँ को सुनाया. मेने भी तब ही सुना. उन्होंने ये बात जोरावर चाचा को भी बताई. पर वो तो खेतो मे गए ही नहीं थे. अब इस बात के साल भर बाद. जोरावर चाचा बगल वाले गांव के एक लड़के से बात करते हुए गांव मे आ रहे थे. उस वक्त शाम थी. अंधेरा हो चूका था.


जोरावर : रे रामु सबेरे 4 बजे आ जाना. हम दोनों काम शुरू कर देंगे. हमें सुबह सुबह एक बिगा तो काम से काम खोदना ही पड़ेगा.


रामु : मै आ तो जाऊंगा चाचा. पर सबेरे सबेरे दरवाजा खट ख़तऊंगा चाची डांटेगी. पिछली साल भी मुजे खूब खरी खोटी सुनाई.


जोरावर : रे बावरे मै पहले ही कमरे मे सोऊंगा. तू बस आवज देना. दरवाजा मत खट खटाना.


रामु : ठीक है चाचा. 4 बजे मै आवाज लगा दूंगा. खेतो मे ही जंगल पानी( टॉयलेट) चले जाएंगे.


जोरावर : ठीक है.


अब जोरावर चाचा रात सो गए. उनके पास घड़ी थी नहीं. और उस वक्त मोबाइल कहा होता था. रात 2 बजे ही उन्हें रामु की आवाज आई.


रामु : चाचा.... चाचा...


जोरावर चाचा उठ गए. और दरवाजा खोल कर देखते है की रामु बहार खड़ा है.


जोरावर : रे रामु??? बड़ी जल्दी 4 बज गए रे. रुक मै औजार लेकर आता हु.


चाचा दो फावडे लेकर बहार निकले तो रामु आगे आगे चल दिया. अब चाचा को उसे फावडे पकड़वाने थे. मगर रामु तो आगे आगे चल रहा था. चाचा ने दो बीड़ी भी जलाई.


जोरावर : रे ले रामु. इतना तेज कहे चल रहा है. बीड़ी तो ले ले.


पर वो रुका नहीं.


रामु : अरे बीड़ी पिऊंगा तो यही लग जाएगी. जंगल पानी जाते वक्त ही लूंगा. जल्दी चलो सूरज माथे चढ़ गया तो काम होना मुश्किल है.


चाचा अपनी बीड़ी पीते चुप चाप चलने लगे. वो ट्यूबवेल के पास पहोचे और फावडे को अपने पास रखे बैठ कर दूसरी बीड़ी जलाकर पिने लगे. वो सोच रहे थे की पहले टॉयलेट जाए फिर काम शुरू करेंगे. पर आधा घंटा भी नहीं हुआ और रामु आ गया.


रामु : लो चाचा. पूरा खेत खोद दिया. अब चलो पोखर. जंगल पानी हो आए.


चाचा हैरान रहे गए. वो फावड़ा उठाकर खेतो मे गए. बात एक बिगा खोदने की थी. मगर 7 बिगाह खुद चूका था. चाचा हैरान रहे गए. अब चाचा को सक हुआ. पर रामु सामने ही खड़ा था.


रामु : अरे चलो ना चाचा. पोखर मे ही जंगल पानी हो जाएगा. वही धो लेंगे.


चाचा डर गए. और वो उसी के साथ चल पड़े. पर उन्हें ये ध्यान ही नहीं था की उनके हाथ मे फावड़ा है. जब पोखर के करीब पहोचे तब. वो दोनों खड़े हो गए.


रामु : चाचा ये फावड़ा यहाँ रखो. और जाओ हो आओ हलके.


चाचा : नहीं पहले तू जा आ.


रामु जैसे ही आगे गया. चाचा तुरंत वहां से गांव की तरफ चल पड़े. वो समझ गए थे की फावड़ा रखा तो वो जिन्दा नहीं बचेंगे. मगर जाती वक्त उन्हें आवाज भी सुनाई दीं. वो छलवा ही था.


छलावा : (हसना) जोरावर आज तू जिन्दा बच गया. मगर जिस दिन तू मेरे हाथ आया. तुझे जिन्दा नहीं छोडूंगा.


बलबीर शांत हो गया. मगर कोमल फटी आँखों से उसे ही देख रही थी. कोमल को ऐसे देख कर बलबीर डर गया.


बलबीर : कोमल... तुम ठीक...


कोमल : मुजे क्या हुआ. फट्टू हो तुम.


कोमल खड़ी हुई और किचन मे चली गई.


कोमल : मै डिनर बना रही हु. किसी को कुछ खाने का मन हो तो बता दो.



डॉ रुस्तम को हलकी सी हसीं आई. क्यों की बलबीर खुद कहानी सुनते हलका सा डर गया. मगर कोमल को तो बिलकुल डर नहीं था. उल्टा वो लीन होकर किस्सा सुन रही थी. जाने से पहले डॉ रुस्तम कोमल से पूछना चाहते थे की क्या वो इनके साथ पैरानॉरोल इन्वेस्टिगेशन मे काम करना चाहेगी या नहीं.
Fantastic update
 

Shetan

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Shetan ji hum wait karte reh gae, Sunday ko na to Saya 2.. aur Naa hi Kisse... ka koi update aaya.... Awaiting updates on both 🙏
Kal tak saya 2 ke update aa jaenge mene kisse unhoniyo ke update diya to. Aap ne koi review hi nahi diya. Update no 19 aur 19B
 

Shetan

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DEVIL MAXIMUM

"सर्वेभ्यः सर्वभावेभ्यः सर्वात्मना नमः।"
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Update 17

कोमल ने डोर पर खड़े रुस्तम को देखा. जो मुस्कुरा रहा था. पर स्माइल तो कोमल के फेस पर भी थी. कुछ हद तक उस माहौल मे एक अलग ही एनर्जी फेल गई थी. क्यों की सारी विंडो खुली हुई थी. बहार से सुबह की धुप और बहोत ही प्यारी हवा चल रही थी. ऊपर से कोमल के हौसले जैसे बुलंद हो रखे हो. बलबीर ने लाई हुई मूर्ति के आगे दिया जल रहा था.


कोमल : (स्माइल) आइये डॉ साहब.


डॉ : (स्माइल) आज मै कोनसी कोमल को देख रहा हु??? क्या ये कोमल असली है. या वो जो फोन पर थी.


कोमल बस जरासा मुस्कुराकर निचे देखने लगी.


कोमल : कोमल तो वो भी असली ही थी. बस हालत बदल गए.


डॉ : (स्माइल) बिलकुल वही लड़की जैसा दाई माँ ने बताया था.


दाई माँ को याद कर के कोमल को ख़ुशी तो हुई. पर उसी वक्त उसे एक डर भी लगा. बलबीर बिना ब्याहे उसके घर मे पति की तरह रहे रहा था. वो दाई माँ को क्या मुँह दिखाएगी.


कोमल : (स्माइल) दाई माँ मुजे मुझसे ज्यादा समज़ती है. खेर आप आइये बैठिये.


कोमल ने डॉ रुस्तम को सोफे पर बैठने का हिशारा किया. डॉ रुस्तम एक बैग ही लेकर आया था. वो उसे निचे रख कर सोफे पर बैठ गया.


डॉ : मै चाय पिऊंगा.


तीनो हसने लगे.


कोमल : (स्माइल) अभी बनाती हु.


कोमल किचन मे गई. और चाय बनाने लगी. बलबीर और डॉ रुस्तम दोनों बैठ कर बाते कर रहे थे. कोमल उन दोनों की बाते साफ सुन सकती थी.


बलबीर : और कुछ बताया माँ ने???


लम्बी शांस लेते हुए डॉ रुस्तम कुछ सोचने लगा. वो भी जानता था की उनकी बाते कोमल सुन रही है. क्यों की किचन तो सिर्फ 5 कदम की दूरी पर ही था.


डॉ : दाई माँ बता रही थी वो 2 जिन्न है. जो तुम्हे परेशान कर रहे है.


कोमल के कान खड़े हो गए. वो देख तो पतिले मे उबालते पानी को रही थी. मगर उसका ध्यान अब बलबीर और डॉ रुस्तम की बातो पर चले गया. मगर झटका सिर्फ कोमल को ही नहीं. बलबीर को भी लगा. क्यों के उसने भी कोमल के पास अजीब से दिखने वाले दो लोगो बैठा देखा था.


बलबीर : (सॉक) दो जिन्न??? पर ये आए कहा से???


डॉ : वही से. जहा से पहले वाला आया था.


बलबीर और कोमल दोनों ही समझ गए. जो पलकेश के अंदर जिन्न था. वो बलवीर के खेत मे जो पेड़ था. उसी से आया था. बलबीर डॉ रुस्तम को हैरत भरी नजरों से देखने लगा. कोमल भी किचन के डोर तक आ गई. डॉ रुस्तम कभी बलबीर को देखता तो कभी कोमल को.


डॉ : वो तीन थे. जिसमे से एक ने पलकेश को पजेश किया. पर बाकि 2 यही है. तुम्हारे घर मे. और ये बात मुजे खुद दाई माँ ने बताई.


बलबीर और कोमल दोनों को मानो झटका ही लगा था. कोमल किचन के डोर से ही खड़े खड़े डॉ रुस्तम से सवाल करने लगी.


कोमल : दाई माँ को कैसे पता चला.


डॉ : दाई माँ ने कोई एनर्जी सिद्ध की हुई है.

जब मेने उन्हें पलकेश के जिन्न के बारे मे बताया तब उन्होंने अपनी एनर्जी से संपर्क किया. धीरे धीरे उन्हें जानकारी मिलने लगी. और धीरे धीरे सब पता चलने लगा. वो किस हद तक तुम्हे परेशान कर रहे है. सब दाई माँ को पता चल रहा है. वो मुजे हर बात बताती है. वो मूर्ति वाली बात भी और डोर पर लगे उस स्टिकर की बात भी.


कोमल सॉक जरूर थी. पर उसने ये नहीं सोचा की बलबीर के साथ उसके रिश्ते की बात भी तो दाई माँ को पता चल गई होंगी. कोमल का तो मानो सर चक्र गया था.


कोमल : अमम... मुजे मुजे कुछ समझ नहीं आ रहा है.


डॉ : तुम फ़िक्र मत करो. वो सब ठीक कर देगी. तकलीफ तो तब ज्यादा होती जब वो दोनों जिन्न मे से एक भी तुम्हारे अंदर आ चूका होता.


बलबीर : मतलब अभी डरने की जरुरत नहीं??


डॉ : हा वैसे तो डरने की जरुरत नहीं है. पर वो तुम्हे ऐसे ही परेशान जरूर करेगा.


कोमल : (गुस्सा)(किचन से ही) करने दो साले को जो करना है. मै डरने वाली नहीं हु.


डॉ रुस्तम को ये बहोत अच्छा लगा की कोमल के हौसले बुलंद है. कुछ पल के लिए माहौल शांत हो गया. लेकिन कोमल और बलबीर दोनों के मन मे अजीब से सवाल चल रहे थे. उन्होंने जिन्न कभी देखा नहीं था.

पलकेश के साथ हुए हादसे से पहले तक तो वो जिन्न मतलब कुछ और ही समझ रहे थे. टीवी पर एक काल्पनिक धारावाहिक अलिफ़ लैला जो देखा था. उनके हिसाब से तो जिन्न वैसा ही मानते थे. जो चिराग घिसने पर एक बड़ासा जिन्न निकलता है.

और वो सारी मनोकामना पूरी करता है. पर पलकेश के साथ हुए हादसे के बाद तो कोमल और बलबीर के सारे वहेम एकदम से ही दूर हो गए. आखिर बलबीर ने हिचकते सवाल पूछ ही लिया.


बलबीर : जिन्न इतने खतरनाक हो सकते है. ये मेने कभी सोचा ही नहीं था.


डॉ : जिन्न किसी के अंदर आए बिना भी इतनी तकलीफ पहोंचा सकता है. तुम सोच नहीं सकते.


तभी कोमल चाय की ट्रे लेकर आ गई. वो तीनो की चाय लेकर आई. उसने बलबीर और डॉ रुस्तम को चाय दी. और खुद भी चाय लेकर बैठ गई. कोमल भी डॉ रुस्तम की बातो को बड़े ध्यान से सुन रही थी.


डॉ : अगर किसी को पजेश करने की कोसिस करेगा तो वो सिर्फ नापाक जिन्न.

नापाक माने तो बुरा या गन्दा. ये इतने बुरे होते है की इनके आने से मनहूसियत तक छा जाती है. अच्छे कामों को बिगड़ देते है. इंसान सिर्फ साथ होने के असर से ही अइयासी नशे बहोत कुछ बुरी चीजों मे पड़ जाते है. तुम्हे वो हर अच्छी चीजों से दूर करने की कोसिस करेगा.


कोमल भी अपने आप को रोक नहीं पाई. क्यों की वो जिन्न तो सबसे ज्यादा कोमल को ही परेशान कर रहा था.


कोमल : अगर वो किसी के अंदर आ जाए तो कितना परेशान करेगा????


बलबीर : पलकेश को तो तुमने देखा ही ना.


बलबीर डॉ रुस्तम की तरफ देखता है. जैसे अपनी बात पर हामी भरवाने की कोसिस कर रहा हो.


डॉ : उस से भी ज्यादा.


कोमल : उस से भी ज्यादा???


कोमल हैरान रहे गई. क्यों की पलकेश के किस्से मे ही वो दोनों जबरदस्त परेशान रहे थे. पलकेश ने हर पल अलग अलग प्रकार से झटके दिये थे.


डॉ : अपने मोबाइल पर विकिपीडिया निकालो. तुम्हे एक किस्सा बताता हु. बांग्लादेश किस्सा है.


कोमल ने अपना मोबाइल लिया. और उसमे विकिपीडिया खोला. डॉ रुतम ने जो कहा उसने वही सर्च किया. कोमल को वो किस्सा मिल गया. एक बांग्लादेश की न्यूज़ थी.


बलबीर : आप ही बताओ ना??


कोमल ने भी तुरंत अपना मोबाइल बंद किया और डॉ रुस्तम की तरफ देखने लगी. कोमल वैसे भी भूतिया किस्सा सुन ने को ज्यादा ही बेताब रहती थी. वो ये भूल गई की उसे खुद को 2 जिन्न परेशान कर रहे थे. डॉ रुस्तम वो किस्सा बताने लगे.


सच्ची कहानी - दोस्तों बांग्लादेश न्यूज़ और विकिपीडिया पर ये किस्सा उपलब्ध है. बांग्लादेश मेडिकल रिसर्च ने हमारे देश और दुनिया के सारे बड़े पैरानार्मल इन्वेस्टीकेटर्स को ये किस्सा पोस्ट किया था. जिसमे हमारे मुल्क के सबसे बड़े पैरानार्मल इन्वेस्टीकेटर गौरव तिवारी सर भी शामिल थे. हलाकि आज के वक्त मे हमारे गौरव तिवारी सर जीवित नहीं है. पर स्पेशल उन्हें ये किस्सा ईमेल पोस्ट के द्वारा ये किस्सा खास तौर पर भेजा गया था.


डॉ : ये किस्सा 10 साल पुराना बांग्लादेश ढाका का है. रहेमान मालिक का.

रहेमान 34 साल का था. उसकी एक बीवी और 2 बच्चे थे. एक बेटा और एक बेटी. बेटी कुछ 8 साल की थी. पर बेटा तो जस्ट हुआ ही था. कुछ 2 या 3 महीने का ही होगा. रहेमान घर से कुडा फेकने गया. ढाका मे वैसे भी बहोत गंदगी है. कुछ मकानों के बिच एक खाली जगह थी. जहा कूड़े का पहाड़ जैसा बना हुआ था.

रहेमान ने वही अपना कुदा फेका. वहां एक पेड़ था. पेड़ के निचे एक छोटी मटकी(हांडी) और एक दिया जल रहा था. रहेमान ने बस एक ही गलती की. उस मटकी को जाते हुए जोर से लात मारी. वो मटकी सीधा कूड़े के ढेर मे जा गिरी. रहेमान जाने लगा. पर जाते हुए उसे सर मे तेज़ दर्द सा उठा. वो अपना सर पकड़ कर वही बैठ गया.

पर थोड़ी ही देर मे वो दर्द ठीक हो गया. रहेमान ने घूम कर उसी पेड़ को देखा. वो हैरान रहे गया. उसे उस पेड़ के निचे वही दिया जलता हुआ दिखा. पर साथ मे उसे कुछ और ही दिखा.


बलबीर : क्या????


डॉ : उसका खुद का कटा हुआ सर.


बलबीर : (सॉक) क्या????


डॉ : हा सही सुना तुमने.


कोमल भी अपने आप को रोक नहीं पाई.


कोमल : एएए एक मिनट. मतलब रहेमान ने उस पेड़ के निचे उस मटकी की जगह खुद का ही कटा हुआ सर देखा???


डॉ : हा तो मै भी तो वही कहे रहा हु. उसने खुद का ही कटा हुआ सर देखा.


ये सुनकर कोमल और बलबीर दोनों ही एकदम हैरान रहे गए. उन्हें सुनकर बड़ा अजीब लगा. लेकिन बोलते हुए वैसी ही हैरानी डॉ रुस्तम मे भी नजर आ रही थी.


डॉ : रहेमान वहां से चले गया. वो बहोत घबरा गया था. पर अपने घर आते आते रहेमान रहेमान नहीं रहा था. उसमे बदलाव आ गया था. उसकी बीवी का नाम रुबीना था. आते ही उसने रुबीना से पानी माँगा. रुबीना ने उसे ग्लास पानी दिया. रहेमान पी गया.


रहेमान : और दो.


रुबीना ने फ्रिज से बोतल निकली. और एक ग्लास और भर दिया. रहेमान पी गया.


रहेमान : और.


रुबीना ने उसे पानी की बोतल ही थमा दी.


रुबीना : कितनी प्यास लगी है तुम्हे???


रहेमान पूरी बोतल पानी पी गया.


रहेमान : और पानी दो.


रुबीना फ्रिज से दूसरी बोतल ले आई. और रहेमान को थमा दी.


रुबीना : ये लो. क्या किया जो आप को इतनी ज्यादा प्यास लग रही है.


रहेमान ने वो बोतल तो ले ली. मगर रुबीना को एक उलटे हाथ का जोर डर थमाचा रुबीना को मारा. रुबीना दूर जा गिरी. रहेमान दूसरी बोतल भी पानी पी गया. वो खुद ही खड़ा हुआ. और बारी बारी फ्रिज की सारी बोतलो का पानी पी गया.

रुबीना हैरान रहे गई. वो बस रहेमान को ही देखे जा रही थी. इस से पहले रहेमान ने कभी रुबीना पर हाथ नहीं उठाया था. वो एक डरपोक इंसान था. मगर उसमे अजीब सा बदलाव आ गया था. रहेमान पलट कर फिर रुबीना के पास गया.


रहेमान : मुजे और पानी दो.


रुबीना ने बस मटके की तरफ हिशारा किया. क्यों की वो भी डर गई थी. रहेमान मटके के पास गया. वो 10 लीटर के आस पास से भरा मटका उठता है. और मुँह लगाकर पानी पिने लगा. ये देख कर रुबीना डर गई. और वहां से भाग निकली.

उसके मकान के बगल मे ही रहेमान के बड़े भाई का घर था. अयान मालिक. अयान रुबीना के बुलाने पर आया. वही रहेमान उस मटके का पानी पीते उसे फेक दिया. और दूसरा मटका भी उठाकर वैसे ही पानी पिने लगा.


अयान भी ये देख कर सॉक हो गया. वो अपने छोटे भाई के पास आया. उसके कंधे पर हाथ रखा.


अयान : क्या हो गया तुम्हे रहेमान????


रहेमान ने घूम कर अयान को जोर से थप्पड़ मारा. अयान भी गिर गया. उसका सर चकरा गया. वो समझ गया की वो उसका भाई नहीं. कोई और है. अयान भी मार खाकर वहां से चले गया. रात रहेमान ने रुबीना का जबरदस्त बलात्कार किया. बच्चे रोते रहे और रुबीना चिल्लाती रही. मगर रहेमान को कोई फर्क नहीं पड़ा.

दो तीन दिन निकल गए. रुबीना फस चुकी थी. अयान भी उनके घर नहीं आ रहा था. रहेमान ऐसे ही घर का सारा पानी पी जाता. पर तक़रीबन चार दिन बाद रुबीना की मानो रूह ही कांप गई. एक शाम उसे अपना बेटा नहीं मिल रहा था. वो परेशान हो गई. आखिर घर से बच्चा गायब कैसे हो गया.


कोमल : (सॉक) क्या वही बच्चा??? जो दो तीन महीने का था???


डॉ : हा. उसका बेटा. उस शाम रुबीना को अपने बच्चे के रोने की आवाज आने लगी. पर कहा से वो समझ नहीं आया. रुबीना ने अपना पूरा घर छान मारा. मगर उसका बेटा मिल ही नहीं रहा था. बच्चे के रोने की आवाज ज्यादा आने लगी. रुबीना घर से बहार आ गई.

वो आवाज बहार ज्यादा आ रही थी. रुबीना दए बाए देखने लगी. फिर अचानक उसकी नजर ऊपर गई. और जो देखा. वो देख कर वो बुरी तरह से डर गई. रहेमान बच्चे की एक टांग पकडे छत से निचे लटका रखा था. एक माँ ये कैसे बरदास कर लेती. रुबीना बहोत तेज़ी से भाग कर सीढिया चढने लगी.

और बहोत जल्दी पहोच कर रहेमान के हाथो से अपना बच्चा छीन लिया. रुबीना सीधा अयान के घर चली गई. सारी बाते अयान को जाकर बताई.
अब तक आस पास के लोगो को भी ये बात पता चल चुकी थी. रहेमान की हालत ठीक नहीं है.

उसके अंदर कुछ है. अयान एक मौलवी को बुलाकर लाया. पर रहेमान ने तो उस मौलवी की हालत भी ख़राब कर दी.



कोमल : तो क्या मौलवी भी जिन्न को काबू नहीं कर सकते???


डॉ : नहीं ऐसा नहीं है. एक मौलवी 5 वक्त का पक्का नमाज़ी होता है.

वो ऊपर वाले की बहोत खिदमत करता है. उसे आयात और कुरान का अच्छा नॉलेज होता है. पर उस मौलवी ने अपनी तालीम बंगाली भाषा मे की थी. जिस कारण उसका कई शब्दो का ज्ञान अधूरा था. ऊपर से वो बिना पूरी तालीम लिए ही मौलवी का काम सँभालने लगा था.

वो रहेमान के हाथ चढ़ गया. रहेमान ने उसे कोई आयत पढ़ने ही नहीं दिया. और पिट पिट कर भगा दिया. कोई रस्ता नहीं था. सबने रहेमान को उसी के हाल पर छोड़ दिया. एक शाम रुबीना को रहेमान कही दिखाई नहीं दे रहा था. घर का सारा पिने वाला पानी ख़तम था.

बल्कि रुबीना ने पहले से ही भरा ही नहीं था. उसे प्यास लगती तो वो पड़ोस मे अयान के घर पी आती. बच्चों को भी उसी के घर छोड़ दिया था. रुबीना को घर मे कही भी रहेमान नहीं दिखा तो वो उसे खोजने लगी. मगर जब उसे रहेमान दिखा.

रुबीना की रूह कांप गई. वो बुरी तरह से घबरा गई. रहेमान बाथरूम मे निचे बैठा हुआ था. बाथरूम का नल खुला हुआ था. और पानी सीधा निचे बैठे रहेमान के मुँह मे ही गिर रहा था. नल से जिस स्पीड मे पानी गिरता है. उतनी स्पीड से तो इंसान क्या कोई जानवर भी पानी नहीं पी सकता. मगर बाथरूम के नल से पानी रहेमान के मुँह मे ऐसे गिर रहा था. जैसे रहेमान के पेट मे कोई बड़ी टंकी हो.

रुबीना डर कर वहां से चिल्लाते हुए भागी. सभी लोग जमा हो गए. इस किस्से को दशवा दिन (10 days) हो गया था. जब सब लोग आए तब देखा की रहेमान की हालत ज्यादा ख़राब हो गई थी. चहेरा सफ़ेद हो गया था होंठ सुख गए थे. जैसे चहेरे से नमी ही गायब हो गई हो. रहेमान बाथरूम मे ही गिरा पड़ा था. बस पलके झबक रही थी. सब ने मिलकर रहेमान को उठाया और हॉस्पिटल ले गए.

रहेमान को ढाका की मेडिकल कॉलेज लेजाया गया. पर जब डॉक्टर्स ने रहेमान को चेक किया तो वो भी हैरान रहे गए. मेडिकल रिपोर्ट बता रही थी की ज्यादा पानी शरीर मे होने के कारण रहेमान 10 दिन पहले ही मर चूका था. जब की रहेमान उनके सामने जिन्दा था.


कोमल : (सॉक) क्या????? वो दस दिन पहले ही मर चूका था????


बलबीर : पर जब रहेमान उनके सामने जिन्दा था तो उसे रिपोर्ट मे कैसे मरा हुआ घोषित कर सकते थे.


डॉ : तुम समझ क्यों नहीं रहे. उसे मरा हुआ घोषित नहीं किया. रिपोर्ट के अनुसार रहेमान की मौत तो 10 दिन पहले ही हो चुकी थी.

जब मेडिकल कॉलेज ने उस केस से हाथ खड़े किये तब वो लोग रहेमान को घर लेजाने लगे. मगर हॉस्पिटल से बहार निकलते ही रहेमान पूरी तरह से मर गया. रुबीना और अयान ने मेडिकल कॉलेज पर ही दावा ठोक दिया की उसे हॉस्पिटल मे डॉ ने ही मार डाला. अब डॉ भी फस गए. डेडबॉडी जा चुकी थी. और उनके पास रिपोर्ट के अनुसार रहेमान की मौत 10 दिन पहले ही हो चुकी थी.

गवाह पूरा माहौला था. नतीजा यह हुआ की मेडिकल कॉलेज को मुआबजा देना पड़ा.


कोमल : तो वो क्या जिन्न था????


डॉ : बिलकुल. उस हॉस्पिटल मे कुछ डॉक्टर्स पैरानार्मल इन्वेस्टीकेटर्स थे.

उन्होंने बाद मे इस केस पर आगे काम किया. वो एक नापाक जिन्न था. और उसी कूड़े मे रहे रहा था. बाद मे उसने रुबीना को बहोत परेशान किया. उसके लिए स्पेशल लखनऊ से मौलवी को बुलाकर उस जिन्न से पीछा छुड़वाया गया.


काफ़ी वक्त उस किस्से को सुनते हो गया था. कोमल खड़ी हुई और किचन मे चली गई. और लंच की तैयारी करने लगी.
Kafi herat angej kissa hai ye wala
10 din pehle mara hua insaan 10 din se ghr me aashanti felay hue tha Kamal hai ye
 

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Wah ky bat hai Shetan Devi ji aap to such me bhot khoobsurat ho
.
Bhot khoobsurat gajal likh rha ho
Tumhe dekh kr aaj kal likh rha ho
Mile kb kha kitne lamhe gujare
Mai gin gin ke wo sare pal likh rha ho

Bhot khobsurat gajal likh rha ho
Tumhe dekh kr aaj kal likh rha ho
Tumhare jwa khobsurat badan ko
Tarasha hua ek Mahal likh rha ho

Bhot khobsurat gajal likh rha ho
Haa Tumhe dekh kr aaj kal likh rha ho
Na pocho meri bekarari ka aalam
Mai raato ko karawat badal likh rha ho

Bhot khobsurat gajal likh rha ho
Tumhe dekh kr aaj kal likh rha ho
Haaa tumhe dekh kr aaj kal likh rha hoooo
 

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