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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग २८ - आतंकी हमले की आशंका पृष्ठ ३३५

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फागुन के दिन चार भाग २७

मैं,
गुड्डी और होटल

३,६०, ७४६

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गुड्डी फिर दूर खड़ी हो गई और वहीं से हुक्म दिया- “शर्ट उतारो…”

मैं एक मिनट सोचता रहा फिर बोला- “अरे यार मूड हो रहा है तो बेडरूम में चलते हैं ना। यहाँ कहाँ?”

गुड्डी मुश्कुरायी और बिना रुके पहले तो आराम से शर्ट के सारे बटन खोले और फिर उतारकर सीधे हुक पे, अगला नम्बर बनियान का था।

अब मैं पूरी तरह टापलेश था। गुड्डी ने पहले मुझे सामने से ध्यान से देखा, एकाध जगह हल्की खरोंच सी थी।


वहां हल्के से उसने उंगली के टिप से सहलाया और फिर पीछे जाकर, एक जगह शायद हल्का सा लाल था, वहां उसने दबाया, तो मेरी धीमी सी चीख निकल गई।

खड़े रहना…” गुड्डी बोली और बाहर जाकर फ्रिज से बर्फ एक टिशू पेपर में रैप करके ले आई और उस जगह लगा दिया। एक-दो जगह और शायद कुछ घूंसे लगे थे या गिरते पड़ते टेबल का कोना, वहां भी उसने बर्फ लगाकर हल्का-हल्का दबाया।

“पैंट उतारो…” मैडम जी ने हुकुम सुनाया।

पीछे से फिर बोली- “मैं ही बेवकूफ हूँ। तुम आलसी से अपने हाथ से कुछ करने की उम्मीद करना बेकार है…”

और मुझे पीछे से पकड़े-पकड़े मेरी बेल्ट खोल दी, और पैंट भी हुक पे शर्ट के ऊपर, और अब वो अपने घुटनों के बल बैठ गई थी। एक क्लोज इंस्पेक्शन मेरी टांगों का। फिर पीछे से घुटनों के पास एक बड़ी खरोंच थी। वाश बेसिन पे होटल वालों ने जो आफ्टर शेव दिया था उसे हाथ में लेकर उसने ढेर सारा घुटने पे लगा दिया।

“उईईई…” मैं बड़ी जोर से चीखा।

गुड्डी चिढ़ाते हुए बोली “ज्यादा चीखोगे। तो इसे खोलकर लगा दूंगी…”

मुश्कुराते हुए उसने अपनी लम्बी उंगलियों से चड्ढी के ऊपर से ‘उसे’ दबा दिया।
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दर्द, डर और मजे में बदल गया।


गुड्डी- “चड्ढी उतारोगे या मैं उतार दूँ? वैसे अन्दर वाला कई बार देख चुकी हूँ। आज इसलिए ज्यादा शर्माने की जरूरत नहीं है…”
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“नहीं मैं वो उतार दूंगा…” और मैंने झट से नीचे सरका दिया।

गुड्डी- “देखा। चड्ढी उतारने में कोई देरी नहीं…” मुश्कुराते हुए वो बोली। फिर पीछे से उसने देखा, एक हाथ में उसके बर्फ के क्यूब थे। मैं जो डर रहा था वही हुआ। वो बोली- “झुको…”

मैं झुक गया।

गुड्डी- टांगें फैलाओ।

मैंने फैला दी।
और बर्फ का क्यूब सीधे मेरे बाल्स पे और वहां से हटाने के बाद मेरे पिछवाड़े के छेद पे।


और असर वही जो होना था, वही हुआ। 90° डिग्री।


गुड्डी सामने आई खिलखिलाती और बोली- “मुँह धो लो या वो भी मैं करूँ?”
“नहीं नहीं…” कहकर मैंने वाश बेसिन पे रखे लिक्विड फेस सोप से मुँह अच्छी तरह धोया, सिर नीचे करके बाल भी।

तब तक वो गुनगुने पानी से भिगा के बाथ तौलिया ले आई थी और मेरी पूर देह उसने रगड़-रगड़कर पोंछ दी और टंगी बाथ गाउन उतारकर दे दिया की अभी यही पहन लो।

मैं एकदम से फ्रेश हो गया और हम लोग बाहर जाकर खाने की मेज पे ही सीधे बैठ गए। उसने रिमोट उठाकर टीवी आन कर दिया। एक कोई म्यूजिक चैनल आन हो गया।



गुड्डी- ठसके से मेरे बगल में आकर बैठ गई और बोली- “हे ये डी॰बी॰ कौन है?”
 
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डी॰बी॰
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गुड्डी का हाथ मेरे कंधे पे था और वो एकदम सटी हुई फिर मेरे कुछ बोलने से पहले बोलने लगी-

“हे ये मत बताना की तुम्हारे हास्टल में सीनियर थे, आई पी एस में में हैं यहाँ सिटी एस॰पी॰ हैं. लेकिन अभी एस एस पी के चार्ज में हैं ये सब मुझे आधे घंटे में दो-तीन बार सुनाई पड़ गया है। इनका पूरा नाम, …तुमसे लेकर सब लोग खाली डी॰बी॰,... डी॰बी॰ बोलते हो…”

मैं हँसने लगा।

गुड्डी बुरा सा मुँह बनाकर बैठ गई- “तो क्या मैंने चुटकुला सुनाया है?”

मैं- “अरे नहीं यार बात ही ऐसी ही। चलो मैं पूरी बात सुना देता हूँ। वो महाराष्ट्र के हैं। सतारा जिले के। ओके। पूरा नाम है, धुरंधर भाटवडेकर। उनके पिता जी जो फिल्में खास तौर से उत्पल दत्त की पिक्चरें बहुत पसंद हैं। एक पिक्चर आई थी रंग बिरंगी। उसमें उत्पल दत्त का वही नाम था,… बस।लेकिन वो इनीसियल ही इश्तेमाल करते हैं। बहुत लोगों को पूरा नाम मालूम नहीं है…”

और वो ' भाभी' जो तुझे बुला रही थीं,जानते हो उनको भी तुम "

मुस्करा के मुझे कुछ चिढ़ाते, कुछ रस लेते मेरे गाल पे चिकोटी काट के बोली,
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मैं भी मुस्कराने लगा और यादो के झुरमुट में खो गया, गर्ल्स हॉस्टल, कॉफी हाउस, थियेटर, ड्रामे की रिहर्सल, और डी बी सर ने सिर्फ मुझे मिलवाया था और पहली बार में ही गुड्डी की बात भी चल निकली थी।

देखते ही उन्होंने पूछ लिया डी बी से

" वही जिसकी चिट्ठी आती रहती है,... वही वाला न "
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मैं तो बीर बहूटी हो गया लेकिन वो समझ गयीं और खिलखलाती हुयी पूछी कब से चक्कर चल रहा है और मैंने कबूल दिया तीन साल से ज्यादा तो उन्होंने चिढ़ाया की अभी तक लिफाफा खोल पाए की नहीं

और ये बात सुन के गुड्डी भी खिलखिलाने लगी, फिर पूछी और उन लोगों का लिफाफा कब खुला,
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बात टाल के मैं बोला, उन्होंने तो शादी भी, ....जैसे उनकी ट्रेनिंग शुरू हुयी उसी समय,

" सीखो, कुछ सीखो "

गुड्डी हँसते हुए बोली और मैं डी बी के बारे में सोच रहा था, अकेडमी में भी उनके बड़े किस्से थे , गोल्ड मेडल भी उन्हें मिला था, शार्प तो वो थे ही स्ट्रांग भी और थियेटर और जासूसी कहानियों के शौक़ीन

और मैंने उसके हाथ से रिमोट लेकर चैनेल चेंज कर दिया कोई न्यूज।

गुड्डी ने मुश्कुराते हुए रिमोट फिर छीन लिया और बोली-

“तुम्हारे अन्दर यही बुराई है की तुम हर जगह अपनी बात चलाते हो…” और फिर से गाने वाला चैनल लगा दिया।

“जिया तू बिहार के लाला…” आ रहा था।

मैं- “तो ठीक है। जहां मेरी बात चलनी हो वहां तुम्हें मेरी बात माननी होगी, और बाकी जगह। …”

और मैं उसके पास सट गया। अब मेरे हाथ भी उसके कंधे पे और उंगलियां उसके उभार पे।

जरा सा रिमोट के लिए मैं रात का प्रोग्राम चौपट नहीं करना चाहता था।

गुड्डी मुश्कुरायी, कनखियों से मुझे देखा और मेरे हाथ जो उसके उभारों के पास था खींचकर उसे सीधे उसके ऊपर कर लिया और हल्के से दबा दिया। उसका दूसरा हाथ अब मेरे बाथिंग तौलिया के ऊपर, जंगबहादुर से एक इंच से भी कम दूर,


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बाथरूम में जो उसने शरारत की थी उससे वो कुनमुना तो गए ही थे अब फिर से उन्होंने सिर उठा लिया, और बिना मुझे देखे टीवी की ओर देखते बोली-

“मंजूर। लेकिन बाकी हर जगह मेरी बात चलेगी। समझ लो। फिर। इधर-उधर मत करना…”



मैं- “एकदम…” और मैंने अब उसका उभार हल्के से दबा दिया।

तभी कालबेल बजी- “खाना…”



उस नटखट किशोरी ने उठते-उठते मेरा बाथिंग गाउन खोल दिया और ‘वो’ बाहर पूरी तरह सिर उठाये, यही नहीं चलते चलाते वो उठी और खुले जंगबहादुर के सिर की टोपी भी खोल दी। अब सुपाड़ा पूरी तरह खुला। और गुड्डी ने दरवाजा खोल दिया।
 
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तान्या

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खाने की महक ने मेरी भूख जगा दी। एक डिनर ट्राली पे कुछ प्लेटें और ड्रिंक्स की बोतल लेकर एक सुपर सेक्सी वेट्रेस

और एक अधेड़ उम्र का आदमी। खिचड़ी फ्रेंच दाढ़ी।


वेट्रेस ने टिपिकल फ्रेंच मेड की कास्ट्यूम पहन रखी थी, खूब गोरी, हल्का गुलाबी फाउंडेशन, बड़ी सी आई लैशेज, मस्कारा, बाल पोनी टेल में, सफेद बस्टियर ऐसा टाप, थोड़ा छोटा और गहरी क्लीवेज वाला जिसमें से उसकी 34सी गोलाइयों का आकार साफ नजर आ रहा था। बस्टियर कमर पे बहुत टाईट था। एकदम आवर ग्लास की फिगर के लिए। ब्लैक स्कर्ट घुटनों से करीब एक डेढ़ बित्ते ऊपर और ब्लैक स्टाकिंग्स।



वेट्रेस- “गुड आफ्टर नून मेडम, गुड आफ्टर नून सर। मैं तान्या। आय आम हियर टू सर्व यू टूडे। और मेरे साथ हैं मोंस्यु सिम्नों। फ्राम आकवूड बार आवर वाइन हेड…”


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उन्होंने भी सिर झुका के ग्रीट किया और मैंने और गुड्डी ने भी जवाब दिया।

तान्या ने पहले तो दमस्क के टेबल मैट लगाये फिर सिल्वर वेयर, क्राकरी और नेपकिन।

तब तक मुझे अचानक याद आया की ‘वो’ तो खुला हुआ है।

मैं कुछ बोलता उसके पहले तान्या हमारी ओर बढ़ी लेकिन गुड्डी ने गनीमत थी नेपकिन से ‘उसे’ ढक दिया और खुद भी नेपकिन रख ली।

तान्या के चेहरे पे एक हल्की सी मुश्कुराहट खेल गई।

मैं समझ गया की वो समझ गई।

उसने गुड्डी की आँखों में देखा और एक मुश्कान दोनों की आँखों में तैर गई। लेकिन तान्या कम दुष्ट नहीं थी, वो हम लोगों की कुर्सी के पीछे खड़ी थी। बल्की ठीक मेरी कुर्सी के पीछे, और हल्की सी झुकी। उसके 34सी उभार मेरी गर्दन को पीछे से हल्के-हल्के ब्रश कर रहे थे, यहाँ तक की खड़े निपलों भी मैं फील कर सकता था। वो थोड़ा और झुकी अब उसके उभार खुलकर रगड़ रहे थे।


तान्या- “वुड यु लाइक टू हैव सम वाइन। वी हैव। सम आफ बेस्ट वाइनस…”


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मैं मना करता उसके पहले ही गुड्डी बोल पड़ी- “हाँ हाँ क्यों नहीं…”


और जब तान्या ने झुक के वाइन टेस्टिंग ग्लास सामने रखी तो मेरी आँखें खुशी से चमक पड़ी। मैंने उसकी आँखों की ओर चेहरा उठाकर कहा-

“आई विल हैव प्लेजर आफ टेस्टिंग। इफ यू परमिट…”


दुहरी खुशी। जब वो झुकी तो उसकी आधी गोलाईयां बस्टियर से छलक रही थी। परफेक्ट उभार, खूब कड़े और गुदाज। वो भी कनखियों से देख रही थी और आँखों में मुश्कुरा रही थी। और वो वाइन टेस्टिंग ग्लास, मेरलोत, कनोसियार्स डिलाईट।

मोंस्योर सिम्नों ने बोतल तान्या को दी और उसने थोड़ी सी डालकर मुझे दी। परफेक्ट व्हाईट ग्लोव सर्विस।

मैंने ग्लास ऊपर करके अपनी आँख के सामने लाकर देखा और मोंस्योर सिम्नों की ओर देखकर बोला- “बोर्देऔक्स…”



वो हल्का सा मुश्कुराए और तान्या भी।


मैंने ग्लास को हल्के से घुमाया, ट्विर्ल किया और ग्लास की ओर देखता रहा, हल्के से सूंघा और बोला- “लेफ्ट बैंक…”



अबकी तान्या और मोंस्योर सिम्नों दोनों की मुश्कुराहट ज्यादा स्पष्ट थी। फिर दो-चार बूंदें जीभ पे रखकर एक मिनट के लिए महसूस किया और मेरी आँखें बंद हो गई। धीमे-धीमे मैंने उसे गले के नीचे उतारा और जब मैंने आँखें खोली तो मेरी आँखें चमक रही थी-

“ग्रेट। ग्रेट विंटेज मोंस्योर। इफ आई आम नाट रांग। आई थिंक। 2005। 2005 एंड सैंट मार्टिन…”

बस मोंस्योर ने ताली नहीं बजाई। प् अब वो बोले- “यस। वी हव स्पेशली सेलेक्टेड फार यू…”



मैंने दो घूँट और मुँह में डाली और बोला- “मेर्लोत…” उनकी आँखें थोड़ी सिकुड़ी लेकिन फिर मैंने बोला ब्लेंड के लिए अक्चुअली- “कब्रेंते सुव्ग्नन…”

उन्होंने हल्के से झुक के बो किया और बोले- यु आर अ रियल गूर्मे, एनी थिंग मोर?”

मैंने हल्के से उठने की कोशिश की तो मुझे याद आया। अरे जंगबहादुर तो खुले हुए हैं और पीछे सटकर तान्या खड़ी है और मैं बैठ गया।

तान्या ने पीछे से मोंशुर से इशारा किया- “आई थिंक इट्स आल राईट। आई विल सर्व देम…”



जाते-जाते वो दरवाजे पे एक मिनट के लिए रुक के फिर बोले- “आय आम एत ओकवूड बार। एंड माय फ्रेंडस काल मी क्लोस्ज्युन। एंड नाऊ यू टू कैन काल मी…” और दरवाजा बंद कर दिया।



तान्या अब एक बार फिर सामने और उसके ड्रेस फाड़ते उरोज मेरा ध्यान खींच रहे थे। मैं नदीदों की तरह देख रहा था। उसने एक प्लेट में ढेर सारे कबाब रख दिए, और कहा-


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“ये हमारी। कबाब फैक्ट्री से हैं। टुंडा, गलवाटी, काकोरी, सीख और ढेर सारे। नानवेज प्लैटर। वेज प्लैटर भी दूँ?”

“नहीं। ये बहुत हैं। क्यों?” गुड्डी बोली और मुझसे पूछा।

मेरा ध्यान तो तान्या के उभारों में खो गया था। कड़े-कड़े मादक रसीले और जब वो झुकी थी तो आधी गोलाइयां बाहर झांकती, और फिर गुड्डी की बात टालना।

“हाँ हाँ…” मैंने भी बोला।

तान्या ने हम लोगों के प्लेट में डालना चाहा तो फिर गुड्डी ने मना कर दिया- “नहीं हम लोग ले लेंगे…”

लेकिन उसने बोतल से हम दोनों के वाइन ग्लास में रेड वाइन पोर कर दी।


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अभी भी ¾ बोतल बची थी। मैं भी अब सोच रहा था की वो कहीं ज्यादा देर रुकी और नेपकिन सरक गया तो बनी बनायी। सब गड़बड़ हो जायेगा। मेनू उसने बगल में रख दिया।

तान्या- “ओके। यू फिनिश योर ड्रिंक्स। देन काल मी। जस्ट प्रेस दिस बटन…”

उसने एक कार्डलेश काल बेल पकड़ा दी, और कहा- “एंड यु कैन आर्डर। आर जस्ट रिंग मी अट 104। एंड आई विल कम बोन अपेतित…”



“ओह्ह… थैंक्स…” मैंने और गुड्डी ने साथ-साथ बोला।



तान्या अपने नितम्ब मटकाते हुए बाहर गई और मेरी आँखों ने तुरंत नाप लिया- 35…” इंच।
 
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गुड्डी
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उसके जाते ही गुड्डी उठी और तुरंत जाकर दरवाजा लाक भी कर दिया।

बाद में हम लोगों ने देखा की उसके लिए भी एक रिमोट था, और लौटकर दो काम किया।

पहला मेरे ‘जंगबहादुर’ को नेपकिन मुक्त किया। वो हुंकार करते हुए बाहर निकला।
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और दूसरा, कसकर मुझे बाहों में भर लिया और मेरे होंठों से अपने होंठ चिपका के एक जबर्दस्त चुम्मी दी।

गुड्डी के अन्दर कई अच्छी बातें थी लेकिन एक सबसे अच्छी बात ये थी की वो अपनी बात बोलने के बाद जवाब सुनने का न तो इन्तजार करती थी ना उम्मीद। इसलिए उसको ये बताना बेकार था की जलवा मेरा नहीं मेरे सीनियर डी॰बी॰ का था।



फिर वो मुँह फुला कर बैठ गई, फिर मुश्कुराने लगी, और बोली-

“तुम कैसे लालचियों की तरह उसे देख रहे थे। खास तौर से उसके सीने को?”
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लेकिन फिर चालू हो गई- “वैसे माल मस्त था…”

और एक सिप उसने ड्रिंक का लिया। एक सिप मैंने भी।



इस वैरायटी में अल्कोहल बाकी रेड वाइन्स से थोड़ा ज्यादा होता है लेकिन उसका मजा भी है।

मेरा ‘वो’ जो नेपकिन से मुक्त हो गया था फिर कैद हो गया गुड्डी के बाएं हाथ में और सिर्फ कैद ही नहीं थी कैद बा-बा-मशक्कत थी। उसे मेहनत भी करनी पड़ रही थी। गुड्डी का हाथ आगे-पीछे हो रहा था।
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इस सांप का मंतर गुड्डी ने अच्छी तरह सीख लिया था। गुड्डी ने दूसरा, तीसरा सिप भी ले लिया।



पहले मैंने सोचा की बोलूं जरा धीरे-धीरे। लेकिन फिर टाल गया।


गुड्डी फिर बोली-

“यार वैसे आइडिया बुरा नहीं है। वो साली सिगनल इतना जबर्दस्त दे रही थी। यार मैं लड़कियों की आँख पहचानती हूँ। भले ऊपर से मना करें, और ये तो पिघली जा रही थी। वो आदमी था वरना। अबकी तो जरूर उसे इसकी झलक दिखलाऊँगी, गीली हो जायेगी, और खाने के बाद, स्वीट डिश में वही रस मलाई गप कर जाना। मेरा तो खुद मन कर रहा है लेकिन क्या करूँ? रात के पहले तो कुछ हो नहीं सकता। ये भी पगला रहा है बिचारा…”

मेरे लण्ड को कसकर मसलते वो बोली।


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गुड्डी आलमोस्ट मेरी गोद में बैठ गई थी।

लेकिन अब मुड़कर सीधे मेरी गोद में, मेरी ओर मुँह करके, मेरी ही चेयर पे। दोनों टांगें मेरी टांगों के बाहर की ओर फैलाकर गुड्डी के उभार मेरे सीने से रगड़ रहे थे और मेरा खड़ा मस्ताया खुला लण्ड उसकी शलवार के बीच में।

एक हाथ से उसने अपनी वाइन ग्लास की आधी बची वाइन सीधे एक बार में ही मेरे मुँह में उड़ेल दी और बोली-

“सच सच बतलाना। चलो तान्या की बात अभी छोड़ो…”


मैं- “पूछो ना जानम…” मेरे ऊपर भी हल्का सा एक साथ इतनी गई वाइन का सुरूर चढ़ गया और मैंने कसकर उसे अपनी बाहों में भींच लिया-

“तुमसे कोई बात छिपाता हूँ मैं?”

गुड्डी- “सच्ची। अगर तुम हिचकिचाए भी ना तो तुम जानते हो न मुझे…”



गुड्डी के होंठ मेरे होंठ से एक इंच भी दूर नहीं रहे होंगे।

मुझसे ज्यादा कौन जानता था उसको। अगर वो नाराज हो गई तो उसको मनाना असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर था। आज रात क्या पूरी होली की छुट्टी सूखी-सूखी बीतने वाली थी। और फिर सबसे बड़ी बात मैं अगर कोशिश भी करता न। तो उससे झूठ नहीं बोल सकता था। मेरा दिल अब मुझसे ज्यादा उसके कंट्रोल में था।

गुड्डी बड़ी सीरियस हो के, मेरी आँखों में आँखे झाँक के बोली,

“ये बताओ। मैं मजाक नहीं कर रही हूँ, सच सच पूछ रही हूँ। वो जो मेरी नाम राशि है, तेरी ममेरी बहन,... गुड्डी। उसे देखकर कभी कुछ मन वन किया?”



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मैं हिचकिचा रहा था। फिर बोला- “ऐसा कोई चक्कर नहीं है…”

मेरे गाल पे एक किस करके फिर गुड्डी बोली-

“ये तो मुझे भी मालूम है की कोई अफेयर वफेयर नहीं है,... लेकिन। मैंने कई बार तुम्हें उसके उभारों को देखते देखा है, वैसे ही जैसे आज तुम इसके सीने को देख रहे थे। खुद मैंने देखा है इसलिए झूठ मत बोलना…”


मैं झेंपते हुए नीचे देखते हुए बोला- “नहीं। वो नहीं। मेरा मतलब। अब यार। कोई लड़की सामने होगी। उसके उभार सामने होंगे तो नजर तो पड़ ही जायेगी ना…”

गुड्डी फिर बोली- “अरे सिर्फ नजर पड़ गई या उसे देखकर कुछ हुआ भी। माना उसके मेरे से छोटे ही होंगे लेकिन इतने छोटे भी नहीं हैं। हैं तो मस्त गदराये…”



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“हुआ क्यों नहीं? ऐसा कुछ खास भी नहीं, लेकिन तुम तो खुद ही बोल रही हो की,... की,... उसके भी मस्त उभार हैं। तो बस वही हुआ। मन किया…”

मैं हकलाते हुए बोल रहा था।

गुड्डी ने अब मेरी ग्लास मुड़कर उठा ली। एक सिप खुद ली और बाकी फिर मुझे पिला दिया-

“हाँ तो क्या मन किया उसके उभार देखकर साफ-साफ बोलो यार?” गुड्डी ने फिर पूछा।

कुछ रेड वाइन का असर, कुछ मेरे लण्ड पे गुड्डी के मस्त चूतड़ों की रगड़ाई का असर। मैंने कबूल दिया-

“अरे वही यार। जो होता है। मन करता है बस पकड़ लो दबा दो, मसल दो कसकर, चूम लो। वही…”



गुड्डी अब पीछे पड़ गयी मेरी ममेरी बहन को लेकर “अरे बुद्धू साफ-साफ क्यों नहीं बोलते की तू उसकी चूची मसलने के लिए तड़प रहे थे। सिर्फ चूची? लेने का मन नहीं किया कभी। एकाध बार। यार बुरी तो नहीं है वो। और मैं बताऊँ। मेरी तो सहेली है, मुझसे तो सब बताती है। तुम इतने बुद्धू न होते न तो वो खुद ही चढ़ जाती तेरे ऊपर। मैं ये नहीं कह रही हूँ की कोई चक्कर है या तू उसको पटाना चाहता है। बस एकाध बार मजे के लिए, कभी तो मन किया होगा ये खड़ा हुआ होगा उसके बारे में सोचकर?”


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गुड्डी खुद कस-कसकर अपने चूतड़ मेरे लण्ड पे रगड़ते बोली।

मेरा लण्ड अब पागल हो रहा था था। उसका बस चलता तो गुड्डी की शलवार फाड़कर उसके अन्दर घुस जाता।

लेकिन हाथ तो कुछ कर सकते थे। मैंने उसके टाईट कुरते के ऊपर से ही उसकी चूचियां दबानी शुरू कर दी। वो बात भी ऐसी कर रही थी।

गुड्डी- “नहीं यार। नहीं मेरा मतलब एकाध बार तो। यार किसका नहीं हो जायेगा। वो खुद ही…”

मैंने मान लिया- “हाँ दो-चार बार हुआ था एकदम ज्यादा। बस मन कर रहा था लेकिन। वैसा कुछ है नहीं हम दोनों के बीच में। लेकिन हाँ… ये खड़ा हुआ भी था कई बार सोचकर। लेकिन…”

गुड्डी- “चलो चलो कोई बात नहीं। अबकी होली में मैं दिलवा दूंगी। लेकिन तुम पीछे मत हटना। समझे वरना? मन तो तुम्हारा किया था ना उसकी लेने का। तो बस। अब उसको पटाना मेरा काम है। मंजूर?” और ये कहकर उसने कसकर फिर दो-चार किस लिए और अपनी कुर्सी पे।
 
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कबाब

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फिर प्लेट पे नजर डालकर जोर से चिल्लाई-

“ऊप्स। सारी। मैं तो भूल ही गई थी तुम प्योर वेजिटेरियन हो। अरे यार मिस्टेक हो गया। वेज स्टार्टर मैंने मना कर दिया और तुम भी तो तान्या की चूची दर्शन में इतने मगन थे की भूल गए। तुम क्यों नहीं बोले? अब चलो। तुम मेन कोर्स का इन्तजार करो मैं तो खाती हूँ…”


और फोर्क में एक कबाब का टुकड़ा लगाकर मुझे दिखाते हुए गड़प कर गई।



प्लैटर मैंने एक बार फिर से देखा। मैंने बचपन से अब तक नानवेज कभी नहीं खाया था, नाम के लिए भी नहीं। स्कूल और हास्टल में दोस्तों ने बहुत जिद की, फिर ट्रेनिंग और बाहर भी गया। लेकिन कभी नहीं। कोई धार्मिक या पारिवारिक कारण नहीं। बस नहीं खाया। भूख जोर से लगी थी। लेकिन अब जो गुड्डी ने बोला था मेन कोर्स का इन्तेजार करने के अलावा चारा ही क्या था? लेकिन उन सबसे बढ़कर इतनी अच्छी वाइन। एक ग्लास से ज्यादा तो मैं गटक गया था। गुड्डी के सौजन्य से। लेकिन खाली पेट और खाली पेट वाइन मतलब हैंगओवर। गैस और वाइन की ¾ भरी बोतल सामने थी।


मैंने फिर प्लेटर की ओर देखा। कम से कम 14 आइटम रहे होंगे। उसके अलावा सास, तरह-तरह की चटनी। पांच आइटम तो खाली चिकेन के थे- चिकेन लालीपाप, चिकेन टिक्का, चिकेन रेशमी कबाब, टंगड़ी कबाब और मुर्ग अचारी टिक्का।


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उसके बाद मटन के आइटम- मटन गिलाफी सीक, मटन, मटन मेथी सीक, मटन काकोरी कबाब और मटन लैम्ब चाप इन सिनेमम सास। फिर फिश फिंगर और फिश बटर फ्राई भी थी। इसके अलावा, झींगा लासुनी, थाई श्रिम्प केक और चिली गार्लिक प्रान।


गुड्डी- “तुमने कभी नानवेज नहीं खाया ना?” गुड्डी के होंठों के बीच में एक गिलाफी सीक था।

“न…” मैं वाइन की ग्लास हाथ में घुमाते बोल रहा था।

गुड्डी ने फिर पूछा- “घर में और कोई?”


मैं- “तुम्हें मालूम है। भाभी तो खाती है और कोई नहीं…” सामने वाइन का ग्लास तो मैंने भर लिया था। लेकिन।

गुड्डी- “नहीं खाओगे पक्का?” कहकर उसने मेरा इरादा टेस्ट किया।

“नहीं…” मैंने अपने निश्चय को पक्का करते हुए कहा, और गुड्डी के ग्लास में भी वाइन डाल दी।

गुड्डी- “चलो। मैं कहूँगी भी नहीं…” और अब वो मेरी ओर और सरक आई एकदम सटकर, और उसका हाथ मेरे कंधे पे। उसने मुझे अपनी ओर खींच रखा था। चिकेन लालीपाप उसके मुँह में था और वो मेरे मुँह के पास अपना मुँह लाकर बोली- “वैसे है बहुत स्वादिष्ट…”

मैं क्या बोलता?

गुड्डी बोली- “मुँह खोलो खूब बड़ा सा…”

मैं सशंकित- “क्यों?” मैंने धीमे से पूछा।

गुड्डी- “अभी क्या तय हुआ था उस समय? मैं तुम्हारी सब बात मानूंगी और बाकी समय तुम और इतनी जल्दी। मुँह ही खोलने को कह रही हूँ। और कुछ खोलने को तो नहीं कह रही हूँ…”

मैंने मुँह खोल दिया।

गुड्डी- “आँखें बंद…”



मैंने आँखें बंद कर ली। और अगले पल लालीपाप मेरे मुँह के अन्दर और गुड्डी मेरी गोद में- “यार तेरे हाथ मार कुटाई करके थक गए होंगे और अभी वो तान्या आती होगी, उसका भी जोबन मर्दन करना होगा। तो चलो थोड़ा आराम करो और थोड़ा प्रैक्टिस…”



मेरे हाथ गुड्डी के जोबन पे थे वो भी ऊपर से नहीं गुड्डी ने अपने कुरते के बटन खोलकर अन्दर सीधे वहीं। बाकी का लालीपाप गुड्डी के होंठों से कुचला कुचलाया। मेरे हाथ गुड्डी के रसीले उभारों का रस लूट रहे थे। थोड़ी देर में पूरा प्लेटर और वाइन की बोतल खतम हो गई थी। थोड़ा गुड्डी के हाथों से गया, थोड़ा गुड्डी के मुँह से और काफी कुछ मेरी जीभ ने गुड्डी के मुँह में जाकर निकालकर। मुख रस में लिथड़ा। अधखाया। कुचला।



और इस दौरान एक पल के लिए भी दुकान में हुई घटना। वो गुंडे,… वो पोलिस वाले जो हम लोगों को अन्दर करना चाहते थे और बाद में जो डी॰बी॰ ने बताया की जिससे मैं भिड़ गया था, शुक्ला एक नोन गैंगस्टर था,…. कुछ भी नहीं याद आया। गुड्डी ने जैसे सब कुछ इरेज कर दिया है और हम लोग सीधे उसके घर से रीत के पास से, अपने घर जा रहे हों, और बीच में जो हुआ वो एक दुस्वप्न था जिसे हम लोग भूल चुके हों।



गुड्डी ने पूछा- “मीनू देखें या?” और खुद ही फैसला कर दिया- “उस छैल छबीली को ही बोल देते हैं…” और फोन उठाकर गुड्डी ने बोल दिया। मैंने सिर्फ हाँ हूँ। एकदम सुना। पता ये चला की अबकी फिर गुड्डी ने नानवेज का ही आर्डर कर दिया और पूछने पे बोला- “कौन दिमाग लगाए। खाना तो खाना…”
जब तक मेन कोर्स आता मैं बाथरूम में जाकर अपने कपड़े पहनकर वापस आ गया और उसी समय तान्या फिर फूड ट्राली के साथ आई।

हम लोगों का पेट तो स्टार्टर्स से ही काफी भर गया था, लेकिन फिर भी इसरार करके। और इस बार भी। लैम्ब विद पोर्ट-रेड वाइन सास, चेत्तिनाड मटन करी, और लखनवी चिकेन दो प्याजा, साथ में असारटेड ब्रेड और हैदराबादी बिरयानी।


तान्या थी तो गुड्डी खिलाती नहीं, तो मुझे अपने हाथ से ही नानवेज खाना पड़ा और गुड्डी कनखियों से देखकर मुश्कुरा रही थी।

जैसे कह रही हो- “देखा। अभी तो ये शुरूआत है, देखो क्या-क्या करवाती हूँ तुमसे?”

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खाने के बाद जब गुड्डी बाथरूम गई तो तान्या ने राज खोला।

मेरी खातिर डी॰बी॰ के चक्कर में तो हो ही रही थी लेकिन कुछ-कुछ मेरे चक्कर में भी। शुक्ला के पकड़े जाने को पुलिस ने दबाकर रखा था और मुझे तो वैसे भी कोई नहीं जानता था, लेकिन थोड़ी बहुत खबर लग गई थी।

शुक्ला के नाम पे हर होटल में एक स्यूट रिजर्व रहता था। इसके आलावा ताज, क्लार्क हर जगह एक कमरा होटेल वालों को खाली रखना पड़ता था। उसकी मर्जी जहाँ रुके और ऐय्याशी भी उसने काफी शुरू कर दी थी। सेक्स के साथ-साथ वो सैडिस्ट भी था।

इसलिए और सब उससे डरते थे।


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तान्या पे भी उसकी नजर थी और वो बोलकर गया था की अगली बार वो होटल में आया तो रात उसे उसके साथ ही गुजारनी पड़ेगी। होटल के मैनेजर को उसने बोला था-

“आपकी लड़की शाम को चार बजे लहुराबीर कोचिंग के लिए जाती है…”



स्वीट डिश में रबड़ी, गुलाब जामुन, लेकिन गुलाब जामुन के चारों ओर बूंदी लगी थी। मीठी बूंदी।



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हमने स्वीट डिश शुरू ही किया था की मेरा फोन बजा, लेकिन कोई नंबर नहीं। मैंने फिर ध्यान से देखा तो लिखा था- “प्राइवेट नम्बर…”



अचानक मुझे ध्यान आया, डी॰बी॰ का नंबर। मुझे एस॰एम॰एस॰ किया था की कोई खास बात होगी तो मुझे वो इस नम्बर से रिंग करेगा। मैंने फोन उठाया।



डी॰बी॰ की आवाज बड़ी सीरियस थी, बोले - “टीवी देख रहे हो?”



मैं- “हाँ…” टीवी पर गाना आ रहा था हंटर वाला-

आई आम अ हंटर एंड शी वांट तो सी माई गन।

व्हेन आई पुल इट आउट द वोमन स्टार्ट टू रन

ऊ ऊ।

आवाज उनके फोन पे जा रही होगी।



डी॰बी॰बोले “अरे लोकल चेंनेल लगाओ न्यूज…”
 
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स्कूल में होली

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" हे तेरे स्कूल में होली जबरदस्त हुयी " मैंने कस के दोनों उभारों को मसलते हुए पूछा, जहाँ उसकी सहेलियों ने जम के रंग लगाया था।


गुंजा जोर से खिलखिलाई और गुड्डी की ओर इशारा करते बोली,

" अपनी दिलजनिया से पूछिए न, वो भी तो उसी स्कूल में हैं और दो दिन पहले जब ११ वी की छुट्टी हुयी तो क्या मस्ती काटी इनलोगो ने "

गुड्डी ने गुझिया मुझे खिलाते हुए गुंजा को बनावटी गुस्से से हड़काया, " हे ' अपनी ' का क्या मतलब, तू इनकी नहीं है कुछ क्या ?"

अपना हक़ जताते हुए मेरे खड़े खूंटे पे कस कस के अपने छोटे छोटे खुले चूतड़ गुंजा ने कस के रगड़ा, और बोली,


" एकदम हूँ, और साली का हक़ तो पहले होता है वो भी छोटी साली का, इसलिए तो मैं गोद में बैठी हूँ, क्यों जीजू "

और गुंजा ने कस के चुम्मी ली और अबकी गुंजा के मुंह से , उसके मुख रस के स्वाद के साथ बियर मेरे मुंह में।



और गुड्डी ने सुनाना शुरू किया लेकिन हंसी के मारे, वो बोली, एक तो हम दोनों के स्कुल का नाम ऐसे और फिर ही ही ही


बात गुंजा ने पूरी की और आगे होली के बदलते नियमो की बात भी



एक कोई मारवाड़ी सेठ ने अपनी पूज्य स्वर्गीया की स्मृति में स्कूल बनवाया था, मैनेंजमेंट और कंट्रोल पूरा उन्ही का, नाम था, चूड़ा देवी बालिका विद्यालय,

लेकिन सब लोग चू दे विद्यालय कहते थे, नयी सड़क के पास ही था। गुंजा ने अपने हाथ से बियर मुझे पिलाते हुए हंस के बोला,

" जीजू सोचिये न जिस स्कूल का नाम ही चुदे है वहां की लड़कियां नहीं चुदेंगी तो कहाँ की लड़कियां चुदेंगी"

" तो चुदवा ले न , देख बेचारे इतनी दुर्गत सह के भी छोटी साली के लिए रुके थे "


गुड्डी ने मेरी ओर देखते हुए गुंजा को चढ़ाया,



गुंजा ने बड़े प्यार से मेरे गाल पे एक खूब मीठी वाली चुम्मी ली और बोली, मेरे जीजू चाहे जो करें और गुड्डी ने स्कूल की होली का किस्सा शुरू किया।


पहले रूल्स बहुत स्ट्रिक्ट थे, जब गुड्डी क्लास ८ में थी, होली एकदम मना थी, लेकिन लड़कियां कहाँ मानती थीं तो जबतक गुड्डी नौ में पहुंची तो अबीर गुलाल की होली परमिट हो गयी लेकिन क्लास में नहीं, और वो भी सिर्फ टीका लगा के,


" दी उसमें क्या मजा आता होगा, जबतक अंदर हाथ डाल के गुब्बारे न रगड़े जाएँ " गुंजा ने बियर की एक घूँट लेते हुए कहा।



गुड्डी उसे देख के मुस्करा रही थी, बोली,

" तू क्या सोचती है, मैं थी न। मैं घर से तो गुलाल ही ले गयी घर पे भी नोटिस आयी थी अगर कोई लड़की रंग लाते हुए पकड़ी गयी या उसके बैग में रंग मिला तो फाइन। लेकिन मैं भी, रस्ते में एक दूकान से पूरे ढाई सौ ग्राम पक्का लाल रंग , ये बोल के की दुपटा रंगना है, और उसी गुलाल में मिला दिया और गुलाल का पैकेट फिर से बंद। स्कूल में भी सब के बैग चेक हुए दो चार के बैग में रंग पकड़ा गया तो वहीँ सब के सामने कान पकड़ के,... और सब पैकेट जब्त। "

फिर मैंने हुंकारी भरते हुए गुड्डी की ओर तारीफ़ की नजर से देखा और गुंजा ने अपने हाथ की बियर की बॉटल से मुझे बियर पिलाया।

असल में बियर पिलाने का कभी अपने मुंह से कभी बियर की बॉटल से गुंजा कर रही थी और भांग वाली गुझिया खिलाने का काम गुड्डी

मेरी तो मज़बूरी थी, दोनों हाथ फंसे थे, बिजी थे, उस सेक्सी किशोरी के उभरते हुए उभारों को मसलने रगड़ने में

और गुड्डी ने जब वो गुंजा की क्लास में थी उस समय की होली का किस्सा आगे बढ़ाया,



गुड्डी बोली,

" तो मेरा और मेरी और छह साथ सहेलियों के पास ' असली गुलाल ' वाला पैकेट था, फिर तो वही पक्का रंग मिला गुलाल, जबतक कोई टीचर देखती तो बस माथे पे और बहुत हुआ तो गाल पे, और टीचर भी तो कभी हम लोगो की तरह थीं तो जहां वो निकलीं,...


बस दो लड़कियां पीछे से हाथ पकड़ती और मैं यूनिफार्म वाले ब्लाउज के खोल के सीधे कबूतरों पे वो वाला गुलाल, और आराम से सहलाना मसलना और साथ में गरियाना भी,

"स्साली जाके अपने भाइयों से चूँची मिजवाओगी, रगड़वाओगी और हम लोगो से मसलवाने में शर्म आ रही है "




" दी एकदम सही कह रही हैं मेरी क्लास में भी करीब आधे से ज्यादा तो अपने भाइयों के साथ ही, ....दो चार तो सगे,रोज घपाघप करवाती हैं, बिना नागा और,... अगले दिन हम लोगो को जलाती हैं। ""


गुंजा मुझे बियर पिलाते बोली।

" लेकिन तब भी तो सूखा रंग ही रहा न, झाड़ झुड़ के " मेरे समझ में अभी गुड्डी की पूरी प्लानिंग नहीं आयी तो मैंने पूछ लिया।



" अरे तो फिर रंगरेज के यहाँ से दुपट्टे रंगने वाले रंग लेने का फायदा क्या, "

गुड्डी मुझे घूरते बोली, फिर उसने राज खोला,

उसकी और सहेलियों ने , कुछ ने रुमाल तो कुछ ने दुप्पट्टे ही स्कूल से निकलने के पहले गीले कर लिए थे और फिर निकलते समय फिर वही, एक ने पीछे से दोनों कलाई पकड़ी और गीली रुमाल या गीले दुपट्टे से तो टॉप के अंदर डाल के निचोड़ दिया, सूखा रंग गीला हो गया, और उसके बाद रगड़ रगड़ के फिर से दोनों गुब्बारे,




ज्यादातर लड़कियां जब हफ्ते भर की होली की छुट्टी के बाद लौटी तब भी उनके रंग पूरी तरह नहीं छूटे थे।



मान गया गुड्डी को मैं,


हम तीनो खूब हँसे, और गुंजा ने जोड़ा,

"तभी दीदी,… पिछले साल से जब आप दसवीं में थी, मुझे याद है , रंग परमिट हो गया था आखिरी दिन लेकिन बस अब दो कंडीशन है, यूनिफार्म पे रंग नहीं पड़ना चाहिए और क्लास में होली नहीं होगी, बाकी कुछ भी कर लो। अब तो आखिरी पीरियड में टीचर सब हर क्लास की, बस अटेंडेंस लेके चली जाती हैं टीचर रूम में और घंटे भर हम लोगों की मस्ती, और आज तो मस्ती हुयी, ....इंटरवल के बाद ही हम लोगो की टीचर चली गयी, बस दो घण्टे,"



"और ये किसने किया,"... गुड्डी ने एक भांग वाली गुझिया को सीधे गुंजा के मुंह में डालते हुए पूछा, "

गुड्डी का इशारा गुंजा के दोनों उभारों पर उँगलियों के निशानों पर था,

" और कौन करेगा, " गुझिया खाते हुए गुंजा बोली और फिर जोड़ा,

' वही शाजिया,




और अकेले पार तो पा नहीं सकती मुझसे तो वो कमीनी छिनार महक, उसने मेरे दोनों हाथ पीछे से पकड़ के अपने दुपट्टे से बाँध दिया और शाजिया ने गोल्डन पेण्ट अपने हाथ में लगा के, पूरे पांच मिनट तक दबाती रही, और बोली, यार तेरे जोबन इत्ते जबरदस्त हैं, जो भी तेरा यार होगा कम से कम मेरा इसी बहाने नाम पूछेगा "



" सच में दोनों बहने होली में एकदम पागल हो जाती हैं " मेरी कुछ समझ में नहीं आया तो गुड्डी ने मैं कुछ बोलूं, उसके पहले एक बियर की बोतल खोल के मेरे मुंह में, और बोलना शुरू कर दी,


" नादिया, ...नादिया है शाजिया की बड़ी बहन, मेरी अच्छी दोस्त है। वो और श्वेता, होली में ऐसे दोनों बौरातीं हैं, लड़कियां तो छोड़, लड़के भी उन दोनों से पनाह मानते हैं, श्वेता से तो कल वीडियो काल पे मिले थे, छुटकी के साथ,... "


और मैंने एक फैसला कर लिया।


गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी और गुड्डी की दोनों बहनों का तो कानपुर से होली के बाद लौटने का रिजर्वेशन तो कराना ही है , श्वेता का एकदम पक्का, उसने गुड्डी की दोनों बहनों के साथ होली आफ्टर होली में मेरा बटवारा कर लिया था, सर से कमर तक छुटकी के हिस्से, घुटने के नीचे दोनों पैर मंझली के हवाले और कमर से लेकर घुटने तक श्वेता के कब्जे में।

और गुझिया ख़तम कर के गुंजा ने अपने क्लास की होली की हाल बतानी शुरू की, लेकिन उसके पहले गुड्डी ने पूछ लिया और गाने में कौन जीता, और ये बात भी मेरे समझ में नहीं
आयी।
Amezing sali ke school ka kissa ya uske muh se apni vali ka sunoge. Hmmm guddi ke gyarvi ki chhutti vala kissa amezing. Vese gunja aap ki sali ne ek naya ward event kar diya
दिलजनिया

Me pichhli bar batana bhul gai thi. Vese aapki guddi he bahot chitar. Dekho school ke niyam tod kar gulal me pakka vala rang mila ke holi kheli hai. Dekho pakdi gai.

Vese maze to tumhare hai anand babu. Sali bear pila rahi hai aur aap apne vali ki kisse sun rahe ho. Aur hath tumhare chal rahe hai apni sali ke chhote chhote joban par.

Name to puchhega saziya. Tune kam hi esa kiya hai. Guddi ke joban ko anand babu ke lie itna bada jo math ke liya hai. Amezing kissa hai ye school vala to.

Pichhli bar dhudhla dikhne laga tha. Is lie dusri bar padh kar comments de rahi hu. Pura ye vala update fir se padha.


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komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग २७

मैं, गुड्डी और होटल पृष्ठ ३२५
and


भाग ९६ ननद की सास, और सास का प्लान -पृष्ठ १००५
 
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होली की मस्ती -गुंजा की क्लास


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" और कौन जीतेगा, मेरे प्यारे जीजू की छोटी साली, मेरे और शाजिया के आगे कौन टिकता स्साली छिनार ९ बी वालों की हम लोगो ने फाड़ के रख दी, पहला गाना मैंने शुरू किया,



"आओ बच्चो तुझे दिखाएं झांटे ९ बी वालियों की, इनकी बुर को तिलक करो ये बनी चुदवाने को,..."

कुछ समझ गया और कुछ गुड्डी ने समझा दिया,

क्लास नौ में दो सेक्शन हैं ९ ए और ९ बी, बस टीचर विचर के जाने के बाद, ये मुकाबला पहले तो दोनों ओर से पांच पांच गाने, फिर खुल के गालियां, दोनों क्लास की लड़कियों की ओर से फिर दोनों ओर की दो दो लड़किया और जब दो दो लड़कियों का मुकाबला होगा तो गाली एकदम नयी होनी चाहिए, घिसी पिटी नहीं

और आगे की बात गुंजा ने सम्हाली,

गाली के मामले में जैसे श्वेता है न आपकी सहेली,... वैसी ही शाजिया, और अब उसकी संगत में मैं भी भी , ...एक से एक नई नयी गाली, उधर से पूनम और चंदा थी तो बस शाजिया बोली,

'पूनम की माँ के भोंसडे में छाता डाल के खोल दूंगी" तो चंदा मेरे पीछे पड़ गयी,

'गुंजा के माँ के भोसड़े में छाते की दुकान '

तो शाजिया ने जवाब दिया तेरी माँ की गांड में झाड़ू पेल दूंगी, मोर बन के नाचेंगी,


लेकिन अंत में जीत मेरी ही वजह से मिली, वो सब बस माँ के पीछे, तेरी माँ के बुर में, ये तो हम लोग जैसे हम लोगो ने बोला की

पूनम और चंदा की माँ के भोंसडे में गोदौलिया तो वो सब बोली की

तेरी और शाजिया की माँ के भोंसडे में पूरा बनारस, तो शाजिया बोली की तुम दोनों छिनरों की माँ के भोंसडे में पूरा यूपी और उधर से जैसे जवाब आया तो मैं पहले से तैयार थी बोल दी,

तेरी माँ के भोंसडे में मेरी माँ ,.... बस हम सब जीत गए।


....

मेरी साली इस बेस्ट कह के मैंने कस के गुंजा को चूम लिया

लेकिन गुड्डी शरारत भरी मुस्कान से मुझे और गुंजा को देख रही थी और गुंजा को उकसाते हुए बोली,

"और तेरे जीजा की माँ के, ...."

और बात गुंजा के पाले में छोड़ दी।

गुंजा बदमाशी से अपनी शोख निगाहों से मुझे देखती रही फिर बोली,

"जीजू की माँ के भोसड़े में, जीजू तुम ही बोलो,... क्या जाएगा" और फिर झट्ट से बड़ी बड़ी आँखे नचाती, मुझे दिखाती वो शरारती बोली,

"जीजू की माँ के भोसड़े में, मेरे जीजू का,..."


और कुछ रुक के बात पूरी की

"जीजू के माँ के भोसड़े में मेरे जीजू का लंड. "




और हँसते हुए बोली, "अरे इनकी माँ का ही फायदा करा रही हूँ,"

बात टालने के लिए अब मुझे कुछ करना था वरना ये दोनों मिल के,... तो मैंने गुंजा से उसके क्लास की होली के बारे में पुछा और वो चालू हो गयी।

" वही साली सुनितवा,....




मैंने और महक ने तय कर रखा था आज कुछ भी हो कमीनी को पकड़ेंगे और सबसे कस के रगड़ेंगे, हर बार बच के निकल जाती थी .."

गुंजा ने अपने क्लास की होली का हाल सुनाना शुरू किया, गुड्डी मुस्करा रही थी लेकिन तभी गुंजा को याद आया की मुझे उसकी क्लास की लड़कियों के बारे में तो मालूम नहीं है तो उसने पात्र परिचय कराना शुरू कर दिया,

" अरे जीजू सुनितवा, मेरे क्लास की सबसे बड़ी लंडखोर,"


साफ़ था क्लास की होली के बाद बियर और भांग का असर भी चढ़ गया था उस पे, और बियर की बोतल खाली कर के आगे बढ़ायी बात उसने,

" सबसे पहले उसकी चिड़िया उडी मेरे क्लास, में जानते हैं दो चार महीने पहले नहीं,... पूरे डेढ़ साल पहले "

मेरे मन में उत्सुकता जग गयी, और मैं पूछ बैठा,

" किसके साथ " तो गुंजा बड़े जोर से मुस्करायी और बड़ी बड़ी आँख नचा के, खिलखिलाती हुयी बोली,

" और किसके साथ,... " फिर मामला साफ़ किया,




" जीजा, वो भी कोई सगे रिश्ते के नहीं,... अरे स्साली छिनार खुद ही गर्मायी थी, चूत में आग लगी थी, पड़ोस के मोहल्ले की एक दीदीथीं , पांच छह महीने पहले शादी हुयी थी, बस होली में, ....और ये भी पहुँच गयी, तो जीजू आप ही बताइये, अरे सामने रखी थाली और होली में साली कोई छोड़ता है, ...तो बस उसके जीजू ने भी नहीं छोड़ा, पेल दिया। तो चलिए पेलवा लिया कोई बात नहीं, जीजा साली की बात, लेकिन होली के बाद जब स्कूल खुला तो हम लोगो को इत्ता जलाया,

' अरे यार बड़ा मजा आया जीजा के साथ, ऐसा था वैसा था,"

और उससे भी बढ़ के अपनी बुलबुल खोल के दिखाया, देख जीजू ने धक्के मार मार के कितना लाल कर दिया है। सच में हम लोगो की फांके जैसे चिपकी रहती हैं वैसी नहीं थी, हलकी सी दरार, और सुनीता ने फैला के भी दिखाया, आराम से फ़ैल गयी। "

और वो फिर चुप हो गयी और कभी गुड्डी को देख के, कभी मुझे देख के मुस्कराने लगी, लेकिन मुझे कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन गुंजा खुद ही मुस्करा के कस के मेरे गाल पे चिकोटी काट के बोली,

..." उसी दिन मैं आके गुड्डी दी से बोली, दी पटाना आप, ...मजे मैं करुँगी,... छोडूंगी नहीं अभी से बोल दे रही हूँ। "


गुड्डी भी मीठा मीठा मुस्करा रही थी, डेढ़ साल पहले मैंने झट्ट से जोड़ लिया, उस समय तो मेरा गुड्डी का कस के, मामला थोड़ा बहुत देह तक पहुंच गया था, उसकी उँगलियों ने मेरे जंगबहादुर की नाप जोख कर ली थी।


मैं गुंजा या गुड्डी से कुछ बोलता उसके पहले गुंजा सुनीता के बारे में और किस्से चालु कर दी।

" जीजू, चलिए जीजा के साथ तो, ....और साली तो साली होती, छोटी बड़ी नहीं होती,... लेकिन उसके महीने भर के अंदर ही उसके एक फुफेरे भाई थे उससे पूरे सात साल बड़े, बस उसपे सुनीता ने लाइन मारनी शुरू कर दी और उनके साथ भी,... और फिर आके बताती, ...अभी तो चार पांच यार हैं उसके, कोई हफ्ता नहीं जाता जब कुटवाती नहीं और फिर आके हम लोगो को ललचाती है, ख़ास तौर से मुझे महक और शाजिया को, हम तीनो का क्लास में फेविकोल का जोड़ है.,... और अब खाली हम छह सात ही बची हैं "

लेकिन गुड्डी को होली का किस्सा सुनना था, वो भी उसी स्कूल में पढ़ती थी तो उसने कहानी को एड लगायी,

" अरे वो स्साली,सुनीता होली में फसी कैसे,तुम लोगो से "

"मैंने शाजिया और महक ने तय कर लिया था कुछ और लड़कियों से मिल के,.... आज होली में इस स्साली सुनीता की बुलबुल को हवा खिलाएंगे, लेकिन महक जानती थी की वो स्साली जरूर भागने की कोशिश करेगी, पीछे वाली सीढ़ी से, बस मैं और शाजिया तो नौ बी वालो की माँ बहन कर रहे थे,

लेकिन महक की नजर बाज ऐसी सीधे सुनीता पे, और जैसे सुनीता ने क्लास के पीछे वाले दरवाजे से निकलने की कोशिश की वो पंजाबन उड़ के क्या झपट्टा मारा, और फिर दो तीन लड़कियां और, और इधर हम लोग भी जीत गए थे, फिर तो मैं और शाजिया भी, "

मैं और गुड्डी दोनों ध्यान लगा के सुन रहे थे, गुंजा मुस्कराते हुए मेरी आँख में आँख डाल के बोली,

" जीजू, शाजिया, कभी मिलवाउंगी आपसे, ....पक्की कमीनी, लेकिन वो और महक मेरी पक्की दोस्त दर्जा ४ से,...



बस होली में कोई शाजिया की पकड़ में आ जाए,... महक और बाकी लड़कियों ने पीछे से हाथ पकड़ रखा था सुनीता का और शाजिया ने आराम से स्कर्ट उठा के धीरे धीरे चड्ढी खोली सुनीता की, दो टुकड़े किये और अपने बैग में रख ली, और जीजू आप मानेंगे नहीं, शाजिया ने उसकी बिल फैलाई तो भरभरा के सफेदा, और चारो ओर भी, मतलब स्कूल के रस्ते में किसी से चुदवा के आ रही थीं।

कम से कम पांच कोट रंग का और शाजिया ने कस के दो ऊँगली एक साथ उस की बिल में पेल दी, ऊपर वाला हिस्सा मेरे हिस्से में, ...चड्ढी शाजिया ने लूटी और ब्रा मैंने,... फिर मैंने भी खूब कस के रंग पेण्ट सब लगाया।

उस के साथ तो जो होली शुरू हुयी, आज पूरे दो घंटे थे, सीढ़ी वाले रास्ते से कोई जा नहीं सकता था महक उधर ही थी और जब तक फाइनल छुट्टी का घंटा नहीं बजता बाहर का गेट खुलता नहीं। इसलिए खूब जम के अबकी होली हुयी, ब्रा चड्ढी तो सबकी लूटी भी फटी भी, मैंने खुद तीन लूटीं, "

"लेकिन ये बताओ," मैंने उसके उभारो पर बने उँगलियों के निशानों की ओर इशारा किया ये

वो जोर से खिलखिलाई, " मन कर रहा है आपका शाजिया से मिलने का, बताया तो शाजिया के हाथ के निशान हैं लेकिन पहले मैंने ही, मैं सफ़ेद वार्निश वाली ३-४ डिब्बी ले गयी थी बस वही उसकी दोनों चूँचियों पे, एकदम इसी तरह, उसके भी और महक के भी, और शाजिया के तो पिछवाड़े भी, वहां तो छुड़ाने में भी उसकी हालत खराब हो जायेगी। "

हम तीनो ने मिल के चार बियर बॉटल और आधी दर्जन भांग वाली गुझिया ख़त्म कर दी थी और ज्यादा ही दोनों जीजा साली ने,



गुड्डी खाली प्लेट और बॉटल्स उठा के ले जाते हुए बोली, " और जीजा से होली कब खेलोगी "
Man gae komalji. Gunja ke muh se uski school ka kissa us chhoti si kishori ki jubani vakei me maza aa raha hai. Vo kya gana tha.

आओ बच्चो तुझे दिखाएं झांटे ९ बी वालियों की, इनकी बुर को तिलक करो ये बनी चुदवाने को,..."

Aur gunja ne uske class aur agli class ki ladkiyo ke bich mukable me jo maa bahen kari vo alag.

Guddi bhi badi chalak hai. Tumhari mahtari ka kissa gunja ki juban pe chhod diya. Aur gunja ne kitni masumiyat aur bholepan se tumhari maa bahen ek kar di.

Par apni saheli ke chhinarpan ko batate kya mast line boli.


Holi me hath aai sali aur samne aai thali ko kon chhodta hai.

Jab ki khud tumhari baho me hai. Aur he bhi tumhari sali. Vahi guddi se pahele hi hak bhi jata chuki hai. Tum patana me maje karungi. Are jab uski saheli ke jija se fadva aai to vo sab ko dikha rahi hai. Hanari gunja ko bhi moka do ki vo bhi agli holi me sab ko dikhae ki mere anand babu jija ne meri kesi fadi hai. Amezing..

Dekh lo anand babu. Ladkiyo ke school ki holi ka kissa. Aap ki sali teen chaddiya lut ke lai hai. Maza aa gaya.


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