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फागुन के दिन चार भाग २८ - आतंकी हमले की आशंका पृष्ठ ३३५
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Amezing sali ke school ka kissa ya uske muh se apni vali ka sunoge. Hmmm guddi ke gyarvi ki chhutti vala kissa amezing. Vese gunja aap ki sali ne ek naya ward event kar diyaस्कूल में होली
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" हे तेरे स्कूल में होली जबरदस्त हुयी " मैंने कस के दोनों उभारों को मसलते हुए पूछा, जहाँ उसकी सहेलियों ने जम के रंग लगाया था।
गुंजा जोर से खिलखिलाई और गुड्डी की ओर इशारा करते बोली,
" अपनी दिलजनिया से पूछिए न, वो भी तो उसी स्कूल में हैं और दो दिन पहले जब ११ वी की छुट्टी हुयी तो क्या मस्ती काटी इनलोगो ने "
गुड्डी ने गुझिया मुझे खिलाते हुए गुंजा को बनावटी गुस्से से हड़काया, " हे ' अपनी ' का क्या मतलब, तू इनकी नहीं है कुछ क्या ?"
अपना हक़ जताते हुए मेरे खड़े खूंटे पे कस कस के अपने छोटे छोटे खुले चूतड़ गुंजा ने कस के रगड़ा, और बोली,
" एकदम हूँ, और साली का हक़ तो पहले होता है वो भी छोटी साली का, इसलिए तो मैं गोद में बैठी हूँ, क्यों जीजू "
और गुंजा ने कस के चुम्मी ली और अबकी गुंजा के मुंह से , उसके मुख रस के स्वाद के साथ बियर मेरे मुंह में।
और गुड्डी ने सुनाना शुरू किया लेकिन हंसी के मारे, वो बोली, एक तो हम दोनों के स्कुल का नाम ऐसे और फिर ही ही ही
बात गुंजा ने पूरी की और आगे होली के बदलते नियमो की बात भी
एक कोई मारवाड़ी सेठ ने अपनी पूज्य स्वर्गीया की स्मृति में स्कूल बनवाया था, मैनेंजमेंट और कंट्रोल पूरा उन्ही का, नाम था, चूड़ा देवी बालिका विद्यालय,
लेकिन सब लोग चू दे विद्यालय कहते थे, नयी सड़क के पास ही था। गुंजा ने अपने हाथ से बियर मुझे पिलाते हुए हंस के बोला,
" जीजू सोचिये न जिस स्कूल का नाम ही चुदे है वहां की लड़कियां नहीं चुदेंगी तो कहाँ की लड़कियां चुदेंगी"
" तो चुदवा ले न , देख बेचारे इतनी दुर्गत सह के भी छोटी साली के लिए रुके थे "
गुड्डी ने मेरी ओर देखते हुए गुंजा को चढ़ाया,
गुंजा ने बड़े प्यार से मेरे गाल पे एक खूब मीठी वाली चुम्मी ली और बोली, मेरे जीजू चाहे जो करें और गुड्डी ने स्कूल की होली का किस्सा शुरू किया।
पहले रूल्स बहुत स्ट्रिक्ट थे, जब गुड्डी क्लास ८ में थी, होली एकदम मना थी, लेकिन लड़कियां कहाँ मानती थीं तो जबतक गुड्डी नौ में पहुंची तो अबीर गुलाल की होली परमिट हो गयी लेकिन क्लास में नहीं, और वो भी सिर्फ टीका लगा के,
" दी उसमें क्या मजा आता होगा, जबतक अंदर हाथ डाल के गुब्बारे न रगड़े जाएँ " गुंजा ने बियर की एक घूँट लेते हुए कहा।
गुड्डी उसे देख के मुस्करा रही थी, बोली,
" तू क्या सोचती है, मैं थी न। मैं घर से तो गुलाल ही ले गयी घर पे भी नोटिस आयी थी अगर कोई लड़की रंग लाते हुए पकड़ी गयी या उसके बैग में रंग मिला तो फाइन। लेकिन मैं भी, रस्ते में एक दूकान से पूरे ढाई सौ ग्राम पक्का लाल रंग , ये बोल के की दुपटा रंगना है, और उसी गुलाल में मिला दिया और गुलाल का पैकेट फिर से बंद। स्कूल में भी सब के बैग चेक हुए दो चार के बैग में रंग पकड़ा गया तो वहीँ सब के सामने कान पकड़ के,... और सब पैकेट जब्त। "
फिर मैंने हुंकारी भरते हुए गुड्डी की ओर तारीफ़ की नजर से देखा और गुंजा ने अपने हाथ की बियर की बॉटल से मुझे बियर पिलाया।
असल में बियर पिलाने का कभी अपने मुंह से कभी बियर की बॉटल से गुंजा कर रही थी और भांग वाली गुझिया खिलाने का काम गुड्डी
मेरी तो मज़बूरी थी, दोनों हाथ फंसे थे, बिजी थे, उस सेक्सी किशोरी के उभरते हुए उभारों को मसलने रगड़ने में
और गुड्डी ने जब वो गुंजा की क्लास में थी उस समय की होली का किस्सा आगे बढ़ाया,
गुड्डी बोली,
" तो मेरा और मेरी और छह साथ सहेलियों के पास ' असली गुलाल ' वाला पैकेट था, फिर तो वही पक्का रंग मिला गुलाल, जबतक कोई टीचर देखती तो बस माथे पे और बहुत हुआ तो गाल पे, और टीचर भी तो कभी हम लोगो की तरह थीं तो जहां वो निकलीं,...
बस दो लड़कियां पीछे से हाथ पकड़ती और मैं यूनिफार्म वाले ब्लाउज के खोल के सीधे कबूतरों पे वो वाला गुलाल, और आराम से सहलाना मसलना और साथ में गरियाना भी,
"स्साली जाके अपने भाइयों से चूँची मिजवाओगी, रगड़वाओगी और हम लोगो से मसलवाने में शर्म आ रही है "
" दी एकदम सही कह रही हैं मेरी क्लास में भी करीब आधे से ज्यादा तो अपने भाइयों के साथ ही, ....दो चार तो सगे,रोज घपाघप करवाती हैं, बिना नागा और,... अगले दिन हम लोगो को जलाती हैं। ""
गुंजा मुझे बियर पिलाते बोली।
" लेकिन तब भी तो सूखा रंग ही रहा न, झाड़ झुड़ के " मेरे समझ में अभी गुड्डी की पूरी प्लानिंग नहीं आयी तो मैंने पूछ लिया।
" अरे तो फिर रंगरेज के यहाँ से दुपट्टे रंगने वाले रंग लेने का फायदा क्या, "
गुड्डी मुझे घूरते बोली, फिर उसने राज खोला,
उसकी और सहेलियों ने , कुछ ने रुमाल तो कुछ ने दुप्पट्टे ही स्कूल से निकलने के पहले गीले कर लिए थे और फिर निकलते समय फिर वही, एक ने पीछे से दोनों कलाई पकड़ी और गीली रुमाल या गीले दुपट्टे से तो टॉप के अंदर डाल के निचोड़ दिया, सूखा रंग गीला हो गया, और उसके बाद रगड़ रगड़ के फिर से दोनों गुब्बारे,
ज्यादातर लड़कियां जब हफ्ते भर की होली की छुट्टी के बाद लौटी तब भी उनके रंग पूरी तरह नहीं छूटे थे।
मान गया गुड्डी को मैं,
हम तीनो खूब हँसे, और गुंजा ने जोड़ा,
"तभी दीदी,… पिछले साल से जब आप दसवीं में थी, मुझे याद है , रंग परमिट हो गया था आखिरी दिन लेकिन बस अब दो कंडीशन है, यूनिफार्म पे रंग नहीं पड़ना चाहिए और क्लास में होली नहीं होगी, बाकी कुछ भी कर लो। अब तो आखिरी पीरियड में टीचर सब हर क्लास की, बस अटेंडेंस लेके चली जाती हैं टीचर रूम में और घंटे भर हम लोगों की मस्ती, और आज तो मस्ती हुयी, ....इंटरवल के बाद ही हम लोगो की टीचर चली गयी, बस दो घण्टे,"
"और ये किसने किया,"... गुड्डी ने एक भांग वाली गुझिया को सीधे गुंजा के मुंह में डालते हुए पूछा, "
गुड्डी का इशारा गुंजा के दोनों उभारों पर उँगलियों के निशानों पर था,
" और कौन करेगा, " गुझिया खाते हुए गुंजा बोली और फिर जोड़ा,
' वही शाजिया,
और अकेले पार तो पा नहीं सकती मुझसे तो वो कमीनी छिनार महक, उसने मेरे दोनों हाथ पीछे से पकड़ के अपने दुपट्टे से बाँध दिया और शाजिया ने गोल्डन पेण्ट अपने हाथ में लगा के, पूरे पांच मिनट तक दबाती रही, और बोली, यार तेरे जोबन इत्ते जबरदस्त हैं, जो भी तेरा यार होगा कम से कम मेरा इसी बहाने नाम पूछेगा "
" सच में दोनों बहने होली में एकदम पागल हो जाती हैं " मेरी कुछ समझ में नहीं आया तो गुड्डी ने मैं कुछ बोलूं, उसके पहले एक बियर की बोतल खोल के मेरे मुंह में, और बोलना शुरू कर दी,
" नादिया, ...नादिया है शाजिया की बड़ी बहन, मेरी अच्छी दोस्त है। वो और श्वेता, होली में ऐसे दोनों बौरातीं हैं, लड़कियां तो छोड़, लड़के भी उन दोनों से पनाह मानते हैं, श्वेता से तो कल वीडियो काल पे मिले थे, छुटकी के साथ,... "
और मैंने एक फैसला कर लिया।
गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी और गुड्डी की दोनों बहनों का तो कानपुर से होली के बाद लौटने का रिजर्वेशन तो कराना ही है , श्वेता का एकदम पक्का, उसने गुड्डी की दोनों बहनों के साथ होली आफ्टर होली में मेरा बटवारा कर लिया था, सर से कमर तक छुटकी के हिस्से, घुटने के नीचे दोनों पैर मंझली के हवाले और कमर से लेकर घुटने तक श्वेता के कब्जे में।
और गुझिया ख़तम कर के गुंजा ने अपने क्लास की होली की हाल बतानी शुरू की, लेकिन उसके पहले गुड्डी ने पूछ लिया और गाने में कौन जीता, और ये बात भी मेरे समझ में नहीं आयी।
Man gae komalji. Gunja ke muh se uski school ka kissa us chhoti si kishori ki jubani vakei me maza aa raha hai. Vo kya gana tha.होली की मस्ती -गुंजा की क्लास
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" और कौन जीतेगा, मेरे प्यारे जीजू की छोटी साली, मेरे और शाजिया के आगे कौन टिकता स्साली छिनार ९ बी वालों की हम लोगो ने फाड़ के रख दी, पहला गाना मैंने शुरू किया,
"आओ बच्चो तुझे दिखाएं झांटे ९ बी वालियों की, इनकी बुर को तिलक करो ये बनी चुदवाने को,..."
कुछ समझ गया और कुछ गुड्डी ने समझा दिया,
क्लास नौ में दो सेक्शन हैं ९ ए और ९ बी, बस टीचर विचर के जाने के बाद, ये मुकाबला पहले तो दोनों ओर से पांच पांच गाने, फिर खुल के गालियां, दोनों क्लास की लड़कियों की ओर से फिर दोनों ओर की दो दो लड़किया और जब दो दो लड़कियों का मुकाबला होगा तो गाली एकदम नयी होनी चाहिए, घिसी पिटी नहीं
और आगे की बात गुंजा ने सम्हाली,
गाली के मामले में जैसे श्वेता है न आपकी सहेली,... वैसी ही शाजिया, और अब उसकी संगत में मैं भी भी , ...एक से एक नई नयी गाली, उधर से पूनम और चंदा थी तो बस शाजिया बोली,
'पूनम की माँ के भोंसडे में छाता डाल के खोल दूंगी" तो चंदा मेरे पीछे पड़ गयी,
'गुंजा के माँ के भोसड़े में छाते की दुकान '
तो शाजिया ने जवाब दिया तेरी माँ की गांड में झाड़ू पेल दूंगी, मोर बन के नाचेंगी,
लेकिन अंत में जीत मेरी ही वजह से मिली, वो सब बस माँ के पीछे, तेरी माँ के बुर में, ये तो हम लोग जैसे हम लोगो ने बोला की
पूनम और चंदा की माँ के भोंसडे में गोदौलिया तो वो सब बोली की
तेरी और शाजिया की माँ के भोंसडे में पूरा बनारस, तो शाजिया बोली की तुम दोनों छिनरों की माँ के भोंसडे में पूरा यूपी और उधर से जैसे जवाब आया तो मैं पहले से तैयार थी बोल दी,
तेरी माँ के भोंसडे में मेरी माँ ,.... बस हम सब जीत गए।
....
मेरी साली इस बेस्ट कह के मैंने कस के गुंजा को चूम लिया
लेकिन गुड्डी शरारत भरी मुस्कान से मुझे और गुंजा को देख रही थी और गुंजा को उकसाते हुए बोली,
"और तेरे जीजा की माँ के, ...."
और बात गुंजा के पाले में छोड़ दी।
गुंजा बदमाशी से अपनी शोख निगाहों से मुझे देखती रही फिर बोली,
"जीजू की माँ के भोसड़े में, जीजू तुम ही बोलो,... क्या जाएगा" और फिर झट्ट से बड़ी बड़ी आँखे नचाती, मुझे दिखाती वो शरारती बोली,
"जीजू की माँ के भोसड़े में, मेरे जीजू का,..."
और कुछ रुक के बात पूरी की
"जीजू के माँ के भोसड़े में मेरे जीजू का लंड. "
और हँसते हुए बोली, "अरे इनकी माँ का ही फायदा करा रही हूँ,"
बात टालने के लिए अब मुझे कुछ करना था वरना ये दोनों मिल के,... तो मैंने गुंजा से उसके क्लास की होली के बारे में पुछा और वो चालू हो गयी।
" वही साली सुनितवा,....
मैंने और महक ने तय कर रखा था आज कुछ भी हो कमीनी को पकड़ेंगे और सबसे कस के रगड़ेंगे, हर बार बच के निकल जाती थी .."
गुंजा ने अपने क्लास की होली का हाल सुनाना शुरू किया, गुड्डी मुस्करा रही थी लेकिन तभी गुंजा को याद आया की मुझे उसकी क्लास की लड़कियों के बारे में तो मालूम नहीं है तो उसने पात्र परिचय कराना शुरू कर दिया,
" अरे जीजू सुनितवा, मेरे क्लास की सबसे बड़ी लंडखोर,"
साफ़ था क्लास की होली के बाद बियर और भांग का असर भी चढ़ गया था उस पे, और बियर की बोतल खाली कर के आगे बढ़ायी बात उसने,
" सबसे पहले उसकी चिड़िया उडी मेरे क्लास, में जानते हैं दो चार महीने पहले नहीं,... पूरे डेढ़ साल पहले "
मेरे मन में उत्सुकता जग गयी, और मैं पूछ बैठा,
" किसके साथ " तो गुंजा बड़े जोर से मुस्करायी और बड़ी बड़ी आँख नचा के, खिलखिलाती हुयी बोली,
" और किसके साथ,... " फिर मामला साफ़ किया,
" जीजा, वो भी कोई सगे रिश्ते के नहीं,... अरे स्साली छिनार खुद ही गर्मायी थी, चूत में आग लगी थी, पड़ोस के मोहल्ले की एक दीदीथीं , पांच छह महीने पहले शादी हुयी थी, बस होली में, ....और ये भी पहुँच गयी, तो जीजू आप ही बताइये, अरे सामने रखी थाली और होली में साली कोई छोड़ता है, ...तो बस उसके जीजू ने भी नहीं छोड़ा, पेल दिया। तो चलिए पेलवा लिया कोई बात नहीं, जीजा साली की बात, लेकिन होली के बाद जब स्कूल खुला तो हम लोगो को इत्ता जलाया,
' अरे यार बड़ा मजा आया जीजा के साथ, ऐसा था वैसा था,"
और उससे भी बढ़ के अपनी बुलबुल खोल के दिखाया, देख जीजू ने धक्के मार मार के कितना लाल कर दिया है। सच में हम लोगो की फांके जैसे चिपकी रहती हैं वैसी नहीं थी, हलकी सी दरार, और सुनीता ने फैला के भी दिखाया, आराम से फ़ैल गयी। "
और वो फिर चुप हो गयी और कभी गुड्डी को देख के, कभी मुझे देख के मुस्कराने लगी, लेकिन मुझे कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन गुंजा खुद ही मुस्करा के कस के मेरे गाल पे चिकोटी काट के बोली,
..." उसी दिन मैं आके गुड्डी दी से बोली, दी पटाना आप, ...मजे मैं करुँगी,... छोडूंगी नहीं अभी से बोल दे रही हूँ। "
गुड्डी भी मीठा मीठा मुस्करा रही थी, डेढ़ साल पहले मैंने झट्ट से जोड़ लिया, उस समय तो मेरा गुड्डी का कस के, मामला थोड़ा बहुत देह तक पहुंच गया था, उसकी उँगलियों ने मेरे जंगबहादुर की नाप जोख कर ली थी।
मैं गुंजा या गुड्डी से कुछ बोलता उसके पहले गुंजा सुनीता के बारे में और किस्से चालु कर दी।
" जीजू, चलिए जीजा के साथ तो, ....और साली तो साली होती, छोटी बड़ी नहीं होती,... लेकिन उसके महीने भर के अंदर ही उसके एक फुफेरे भाई थे उससे पूरे सात साल बड़े, बस उसपे सुनीता ने लाइन मारनी शुरू कर दी और उनके साथ भी,... और फिर आके बताती, ...अभी तो चार पांच यार हैं उसके, कोई हफ्ता नहीं जाता जब कुटवाती नहीं और फिर आके हम लोगो को ललचाती है, ख़ास तौर से मुझे महक और शाजिया को, हम तीनो का क्लास में फेविकोल का जोड़ है.,... और अब खाली हम छह सात ही बची हैं "
लेकिन गुड्डी को होली का किस्सा सुनना था, वो भी उसी स्कूल में पढ़ती थी तो उसने कहानी को एड लगायी,
" अरे वो स्साली,सुनीता होली में फसी कैसे,तुम लोगो से "
"मैंने शाजिया और महक ने तय कर लिया था कुछ और लड़कियों से मिल के,.... आज होली में इस स्साली सुनीता की बुलबुल को हवा खिलाएंगे, लेकिन महक जानती थी की वो स्साली जरूर भागने की कोशिश करेगी, पीछे वाली सीढ़ी से, बस मैं और शाजिया तो नौ बी वालो की माँ बहन कर रहे थे,
लेकिन महक की नजर बाज ऐसी सीधे सुनीता पे, और जैसे सुनीता ने क्लास के पीछे वाले दरवाजे से निकलने की कोशिश की वो पंजाबन उड़ के क्या झपट्टा मारा, और फिर दो तीन लड़कियां और, और इधर हम लोग भी जीत गए थे, फिर तो मैं और शाजिया भी, "
मैं और गुड्डी दोनों ध्यान लगा के सुन रहे थे, गुंजा मुस्कराते हुए मेरी आँख में आँख डाल के बोली,
" जीजू, शाजिया, कभी मिलवाउंगी आपसे, ....पक्की कमीनी, लेकिन वो और महक मेरी पक्की दोस्त दर्जा ४ से,...
बस होली में कोई शाजिया की पकड़ में आ जाए,... महक और बाकी लड़कियों ने पीछे से हाथ पकड़ रखा था सुनीता का और शाजिया ने आराम से स्कर्ट उठा के धीरे धीरे चड्ढी खोली सुनीता की, दो टुकड़े किये और अपने बैग में रख ली, और जीजू आप मानेंगे नहीं, शाजिया ने उसकी बिल फैलाई तो भरभरा के सफेदा, और चारो ओर भी, मतलब स्कूल के रस्ते में किसी से चुदवा के आ रही थीं।
कम से कम पांच कोट रंग का और शाजिया ने कस के दो ऊँगली एक साथ उस की बिल में पेल दी, ऊपर वाला हिस्सा मेरे हिस्से में, ...चड्ढी शाजिया ने लूटी और ब्रा मैंने,... फिर मैंने भी खूब कस के रंग पेण्ट सब लगाया।
उस के साथ तो जो होली शुरू हुयी, आज पूरे दो घंटे थे, सीढ़ी वाले रास्ते से कोई जा नहीं सकता था महक उधर ही थी और जब तक फाइनल छुट्टी का घंटा नहीं बजता बाहर का गेट खुलता नहीं। इसलिए खूब जम के अबकी होली हुयी, ब्रा चड्ढी तो सबकी लूटी भी फटी भी, मैंने खुद तीन लूटीं, "
"लेकिन ये बताओ," मैंने उसके उभारो पर बने उँगलियों के निशानों की ओर इशारा किया ये
वो जोर से खिलखिलाई, " मन कर रहा है आपका शाजिया से मिलने का, बताया तो शाजिया के हाथ के निशान हैं लेकिन पहले मैंने ही, मैं सफ़ेद वार्निश वाली ३-४ डिब्बी ले गयी थी बस वही उसकी दोनों चूँचियों पे, एकदम इसी तरह, उसके भी और महक के भी, और शाजिया के तो पिछवाड़े भी, वहां तो छुड़ाने में भी उसकी हालत खराब हो जायेगी। "
हम तीनो ने मिल के चार बियर बॉटल और आधी दर्जन भांग वाली गुझिया ख़त्म कर दी थी और ज्यादा ही दोनों जीजा साली ने,
गुड्डी खाली प्लेट और बॉटल्स उठा के ले जाते हुए बोली, " और जीजा से होली कब खेलोगी "