Update 14D
बलबीर कोमल से पहले ही उठ चूका था. कोमल के किचन मे ही मंदिर था. जब कोमल अपने किचन मे घुसी. बलबीर मंदिर की साफ सफाई कर रहा था.
कोमल : (स्माइल) गुडमॉर्निंग. मे भी यही सोच रही थी.
बलबीर ने उस दिन मंदिर की साफ सफाई की. और दिया बत्ती भी की. जब कोमल और पलकेश ने वो फ्लेट लिया था. उस वक्त कोमल की माँ जयश्री ने हवन करवाया था. उसके बाद पहेली बार उस फ्लेट मे किसी ने दिया बत्ती की. भगवान के आगे ज्योत जली. ज्यादा तो नहीं पर कुछ पलों के लिए एक अच्छा माहौल वहां बन गया. कोमल बाथरूम मे चली गई. वो जब नहा कर बाथरूम से निकली और तैयार होकर वो भी किचन मे आई तब उसकी नजर मंदिर पर गई. वो दिया बुझा हुआ था.
मतलब दिया था. अंदर तेल भी था. बाती थी. मगर ज्योत जो जली वो बुझी हुई थी. जब की ना ही बहार से कोई हवा चली. और ना ही किचन का फेन चल रहा था. पर कोमल इन सब बातो को गौर नहीं करती. वो फिर ज्योत जलाकर पहेली बार उस मंदिर के आगे हाथ जोड़ती है. हाथ जोड़ने के वक्त उसने अपनी आंखे बंद कर ली. पर जब वो अपनी आंखे खोलती है. वो ज्योत दोबारा बूझ चुकी थी. कोमल ने एक बार और ज्योत जला दी. और अपने काम मे लग गई. इस बार उसने ध्यान नहीं दिया.
मगर कोमल के मुड़ते ही वो ज्योत एक बार और बूझ चुकी थी. कोमल और पलकेश ने ब्रेकफास्ट और बाकि सभी काम कर लिए. कोमल को एक छोटी सी जमीन डील के किए कोर्ट मे फ़ाइल पेश करनी थी. बलबीर निचे कार मे बैठा कोमल का इंतजार कर रहा था. कोमल को पता था वो फ़ाइल कहा रखती है. वो अपने बेडरूम मे गई. अलमारी की ड्रवार खोली और फ़ाइल निकल ली. पर बंद करते वक्त कोमल की किसी चीज पर नजर गई. और वो हैरान रहे गई. वो कोमल की पैंटी थी.
और ये वही पैंटी थी जो कोमल ने नहाते वक्त उतरी थी. जो पैंटी नहाने की वजह से गीली थी. वो सुखी हुई थी. और कोमल ने तो उसे बाथरूम मे उतरी थी. वो उस ड्रावार मे कैसे आई. कोमल ने उस पैंटी को हाथ मे लिया और जाते हुए बाथरूम मे फेक दिया. वो डोर खिलने ही वाली थी. पर उसकी नजर उस स्टिकर पर गई. जो डोर पर चिपका होने की बजाय निचे गिरा हुआ था. कोमल ने उसे फिर उठाया और चिपकने की कोसिस की. पर वो चिपक ही नहीं रहा था. कोमल ने उस स्टिकर को अपने पर्स मे ही रख लिया. कोमल निचे आई और कार मे बैठ गई. वो अपने काम के लिए निकल गए.
रस्ते मे कोमल ने बलबीर को वो सारी बाते बताई. पर बलबीर को पैंटी वाली बात पर यकीन नहीं हुआ. पर स्टिकर वाली बात पर बलबीर कुछ सोचने लगा. बलबीर कोमल को कोर्ट तक ले गया. जब कोमल अंदर कोर्ट मे गई. बलबीर कही चले गया. कोमल खुश थी. जब वो कोर्ट से बहार आई. बलबीर उसे कोर्ट के बहार ही मिला. वो आई और तुरंत कार का डोर खोलकर अंदर बैठ गई.
बलबीर : (स्माइल) क्या बात है??? आज बहोत खुश नजर आ रही हो.
कोमल : (स्माइल) आज दो पेमेंट भी आ गई. और एक बड़ा जमीन का केस भी मिला है.
बलबीर : वाह ये तो बहोत अच्छी खुश खबरी है. पर मेरे पास भी तुम्हारे लिए कुछ है.
कोमल : (स्माइल) क्या???
बलबीर ने पिछली सीट से एक चीज निकली. जो पेपर से कवर थी. कोमल ने उसे जल्दी जल्दी खोला. उसमे गणेश भगवान की मूर्ति थी. कोमल खुश हो गई. आज का उसका दिन अच्छा था. कोमल की भगवान के प्रति आस्था बढ़ने लगी. वो दोनों घर के लिए वहां से निकल गए.
कोमल : आज का दिन अच्छा है यार.
कोमल इन बातो मे खुद के साथ जो छोटे मोटे इत्तफाक हो रहे थे. उन्हें भूल गई.
बलबीर : हा चलो अच्छा है. अब सायद मनहूशीयत गई. हमें लगता है की हमें घर पर एक हवन रखना चाहिये.
कोमल को अपनी माँ से हुई बात याद आती है. उसकी माँ ने भी यही सलाह दी थी. बाते करते हुए वो दोनों अपने घर आ गए. मूर्ति को मंदिर मे रखा गया. दोनों बहोत खुश थे. एक या दो दिन बाद कोमल ने अपनी माँ से कहकर अपने घर मे हवन भी रखवाया. कोमल की माँ जयश्री को ये पता नहीं चलने दिया गया की बलबीर और कोमल दोनों एक साथ पति पत्नी की तरह साथ रहे रहे है. हवन के दिन सब मौजूद थे. सारा काम जयश्री और बलबीर ने संभल लिया. माहौल बहोत अच्छा था.
कोमल की माँ जयश्री, बहन हेमा, कुछ उनके पडोसी बसलबीर और उसके दोनों बच्चे. कुछ कोमल की पुरानी फ्रेंड शामिल हुए. पंडितजी को कोमल की माँ जयश्री ही लेकर आई थी. एक अच्छा माहौल क्रिएट हुआ. मंत्रो के जाप के साथ हवन शुरू हो गया. पर एक ऐसी घटना हुई. जिसे देख कर सभी अचंबित रहे गए. हवन करती वक्त ना बहार से कोई हवा चल रही थी. ना ही घर मे पंखा. हवन कुंड की आग से निकालने वाला धुँआ सीधा डोर से बहार जा रहा था. ये चीज सभी ने नोटे की.
जयश्री : बेटा हेमा... तू बच्चों को घर लेजा.
अपनी माँ के ऐसे रविये से कोमल को बड़ी हेरत हुई. पर पंडितजी ने हवन बंद नहीं किया. वो मंत्रो को पढता रहा. और जैसे ही वो हवन सामग्री की आहुति देने के लिए हाथ आगे बढ़ता है. एकदम से आग तेज़ हो गई. आग एकदम से तेज़ होकर ऊपर छत को टच कर गई. इसमें बेचारे पंडितजी का हाथ भी जल गया. वो एकदम से पीछे को खिसक गया.
पंडित जी : अहह ससस यहाँ कुछ तो गलत हो रहा है. कुछ ठीक नहीं लग रहा.
तभी हवन कुंड के पास पड़ा नारियल एकदम से जैसे ब्लास्ट हुआ हो. और उसका एक छिलका कोमल की माँ जयश्री को लगने ही वाला होता है. बलबीर बिच मे आ गया. वो सुकर था की बलबीर जयश्री के बगल मे ही था. वो एकदम से जयश्री के आगे ढाल बन गया. वो नारियल का टुकड़ा बलबीर की पिठ पर लगा. सभी महेमान बिना कुछ बोले ही वहा से जाने लगे.
कोमल भी हैरान थी. पर और ज्यादा हैरानी तब बढ़ी जब उस फूटे हुए नारियल को देखा. उसके अंदर से काला पानी था. जो इधर उधर फैला हुआ था. और नारियल के टुकड़ो से बड़ी सड़ी हुई बदबू भी आ रही थी. पंडितजी तुरंत वहां से खड़े हो गए.
पंडितजी : हवन अब खंडित हो गया है. तुम्हे किसी सयाने को बुलाना चाहिये.
बोल कर पंडितजी चले गए. कोमल की माँ, कोमल, बलबीर तीनो हैरान थे.
जयश्री ने जिद की वो उसके साथ घर चले. वो उस घर मे अकेली ना रहे. पर कोमल नहीं मानती. क्यों की फिर बलवीर अकेला हो जता. जयश्री जिद करने लगी की वो भी यही रुकेगी. तब कोमल ने बलबीर का नाम लिया. की वो उसे वहां रोक लेगी. ये बात जयश्री को थोड़ी बुरी तो लगी. लेकिन ऐसे वक्त एक मर्द का होना ज्यादा अच्छा था. कोमल ने अपनी माँ जयश्री को समझा बुझा कर उसके घर भेज दिया. कोमल और बलबीर दोनों ही परेशान थे.
कोमल : ये क्या हो रहा है. मुजे कुछ समझ नहीं आ रहा.
बलबीर : ये कुछ बुरी चीज है. दाई माँ को कैसे भी बुलाओ.
कोमल ने अपना फोन उठाया. और दाई माँ को call लगाया. पर फ़ोन तो स्विच ऑफ आ रहा था.
कोमल : (परेशान) उनका फोन तो बंद है. अब क्या करें.
वो दोनों ही सोचने लगे. तभी बलबीर के मुँह से ही निकला.
बलबीर : क्या डॉक्टर सहाब????
कोमल को सही लगा. उनका नम्बर सेव था. कोमल ने तुरंत ही call लगा दिया. सिर्फ 2 ही रिंग मे डॉ रुस्तम ने call पिक कर लिया.
डॉ : हेलो कोमलजी??? मुजे भुरोसा था. काम से काम आज तो आप का call आएगा..
कोमल : पर मेने तो....
डॉ ने कोमल की बात काट दी.
डॉ : मुसीबत मे होना. दाई माँ का फोन आया था. उन्होंने ही मुजे बताया. तुम खुद मुशीबत मे हो. पर ये अच्छा है. वो तुम दोनों मे से किसी के भी अंदर घुस नहीं पाया.
कोमल : लेकिन उनका फोन तो स्विच ऑफ आ रहा है. उन्हें कैसे पता चला???
डॉ : वो मूर्ति कहा है. जो तुम खरीद कर लाए थे???
कोमल याद करने लगी. उसे याद आया की बलवीर ने एक गणेश भगवान की मूर्ति खरीदी थी. जिसे भगवान के मंदिर मे बैठाया था. कोमल तुरंत ही किचन मे गई. और मंदिर मे देखा. वो मूर्ति वहां नहीं थी.
कोमल : (घबराहट) हेलो.. वो मूर्ति.
डॉ : वो तुम्हारे टेरिस पर है. जाके ले आओ.
कोमल ने फ़ोन कान पे लगाए लगाए ही बलबीर को अपने साथ आने का हिशारा करती है. बलबीर भी कोमल को थोडा डरा घबराया हुआ देख रहा था. वो झट से खड़ा हुआ. और कोमल के पीछे जाने लगा. कोमल तेज़ी से सीढिया चढने लगी. बलबीर भी उसके साथ तेज़ी से ही सीढिया चढ़ रहा था. वो बिल्डिंग भी 10 मंजिला थी. जिसमे कोमल का फ्लेट 5th फ्लोर पर था. धुप बहोत तेज़ थी और कोमल नंगे पाऊ ही ऊपर आ गई.
ऊपर आते ही कोमल यहाँ वहां देखने लगी. बलबीर भी उसके साथ ही था. बस एक मिनट भी नहीं हुआ और कोमल के पाऊ जलने लगे. वो खड़ी यहाँ वहां देख कर एक पाऊ ऊपर निचे कर रही थी.
बलबीर : तुम ढूढ़ क्या रही हो ये तो बताओ???
कोमल : (दर्द हड़बड़ट) अरे... वो मूर्ति.
बलबीर पूरा तो नहीं समझा. पर उसे ये तो पता चल गया की ढूढ़ना क्या है.
बलबीर : तुम वहां चली जाओ. मै देखता हु.
बलबीर खोजने लगा. और उसे वो मूर्ति दिख गई. बलबीर तो देखते ही समझ गया. क्यों की वो खुद ही उसे खरीद कर लाया था. जब कोमल ने मूर्ति देखि तब उसे थोड़ी राहत हुई. वो दोनों निचे आए. कोमल की आँखों से अंशू निकल आए. उसे याद आया की call चालू था.
कोमल : हेलो????
डॉ : दाई माँ कामख्या मे है. वो कल ट्रैन मे बैठ जाएगी. उन्हें तुम तक पहोचने मे 4 दिन लग जाएंगे.
कोमल : उनसे कहो की फ्लाइट मे आ जाए. मै सब अरेंज कर दूंगी.
डॉ : वो प्लेन मे कभी नहीं बैठती. मेने उनकी टिकट कर दी है. तब तक धीरज रखो. और जिसे भी तुम मानते हो उसे पूजते रहो.
वो call कट हो गया. कोमल को समझ ही नहीं आ रहा था की उसपर कोनसी मुशीबत आ गई है.