तीसरा भाग
अभिषेक के पापा मुझे बहुत मानते थे। उनके लिए मैं और अभिषेक उनके बेटे जैसे थे, लेकिन अभिषेक की मम्मी को इसी बात से गुस्सा था कि वो मुझ जैसे निम्न माध्यम वर्ग के लड़के को इतना स्नेह क्यों करते हैं। इसका कारण ये था कि अभिषेक की मम्मी एक उच्च वर्गीय परिवार से संबंध रखती थी और अधिकतर अमीर लोगों का दिल और भावनाए बहुत संकीर्ण होती हैं।
उन्होंने अभिषेक से भी कई बार कहा था कि अभिषेक का मेरे साथ दोस्ती में अभिषेक का कोई लाभ नहीं है। लेकिन अभिषेक उनकी बात कभी नहीं मानी। यही कारण था कि वो मुझको बिल्कुल पसंद नहीं करती थी। अभिषेक के पापा की वजह से वो खुलकर कभी ये बात बोल नहीं पाती थी, क्योंकि अभिषेक के पापा थोड़ा सख्त मिज़ाज़ के थे और तुरंत ही प्रतिक्रिया दे देते थे। अभिषेक ने कई बात मुझे ये बात बताई जब कभी उसका मूड खराब होता था। मुझे ये जानकर बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था, लेकिन मैं चाचा और अभिषेक के लिए उनके घर चला जाता था।
बहरहाल मैं और अभिषेक उनसे अनुमति लेकर मेरे घर जाने के लिए निकल आए थे। वो भी अपनी साईकिल बाहर निकाल लाया। वैसे अभिषेक के घर में दो बाइक थी। उसे कहीं भी जाना होता तो वो बाइक से ही जाता था, लेकिन जब मेरे साथ चलना होता था तो हमेशा साईकल से ही चलता था। स्कूल भी वो साइकिल से ही आता था।
जब मैंने उसे साईकल निकालते देखा तो मैंने उससे कहा।
मैं- साईकल क्यों बाहर निकाल रहा है। आ जा इसी से दोनों लोग चलते हैं। बहुत मज़ा आएगा।
अभिषेक- फिर मैं वापस कैसे आऊंगा।
मैं- वैसे भी आज तू वापस आ नहीं पाएगा। पापा और काजल तुझे आने ही नहीं देंगे। मैं तुझे कल छोड़ दूंगा घर। चल अब जल्दी कर नहीं तो रात हो जाएगी।
फिर मैं साईकल चलाने लगा और अभिषेक उछलकर आगे डंडे पर बैठ गया। फिर हम दोनो बातचीत करते हुए आने लगे। 2 किलोमीटर तक साईकिल चलाने के बाद मैंने अभिषेक से साईकिल चलाने के लिए कहा। अभिषेक साईकिल चलाने लगा। मैं डंडे पर बैठ गया और एक पांव से पैडिल पर मारने लगा जिससे साइकिल की गति तेज हो गई।
मेरे घर से 500 मीटर पहले ही एक छोटा सा बाजार पड़ता है। जो हफ्ते में 3 दिन लगता है। उस दिन बाजार था तो वहां पर गोलगप्पे और टिकिया का ठेला लगा हुआ था। अभिषेक ने साईकिल रोक दी और बोला।
अभिषेक- देख भाई। मुझे तो तलब हो रही है गोलगप्पे खाने ने। तुझे भी खाना है तो आ जा।
मैं- अबे तुझे लड़कियों वाली आदत कब से पड़ गई।
अभिषेक- लड़कियों वाली आदत मतलब। तू कहना क्या चाहता है।
मैं- मतलब ये कि उन्हें ही गोलगप्पे ज्यादा पसंद होते हैं। देखता नहीं गोलगप्पे (गुपचुप, फुलकी) की दुकान पर कितनी भीड़ होती है लड़कियों की। चाहे वो खाना खा कर ही घर से निकलें, लेकिन अगर गोलगप्पे का ठेला दिख गया तो उनको फिर भूख लग जाती है। तेरा हाल भी उसी तरह है।
अभिषेक- देख भाई। पहली बात ये कि मैं कोई खाना वाना खा कर नहीं निकला हूँ। और दूसरी बात जब भूख लगती है तो कुछ भी अच्छा दिखे तो खाने में लड़का, लड़की नहीं देखा जाता। अरे मैं तुझसे बात ही क्यों कर रहा हूँ। तुझे खाना है तो आ नहीं तो मैं जा रहा हूं। साला तुझे भाषण देने के चक्कर में भूख और तेज़ हो गई है।
इतना कहकर अभिषेक गोलगप्पे के ठेले के पास पहुँच गया। वहाँ कुछ लड़कियां पहले ही गोलगप्पे खा रही थी। अभिषेक जाकर उनके बगल खड़ा हो गया। मैं भी मन मारकर ठेले के पास पहुँच गया।
अब यहां पर अभिषेक की हालत देखने लायक थी। जब लड़की गोलगप्पा उठती और अपने मुंह में डालती तो अभिषेक इस दौरान हुई उनको पूरी क्रिया को देखता और अपने होंठों पर जीभ फिरता। जब उसने दो चार बार ऐसा किया तो मैंने उससे कहा।
मैं- क्या कर रहा है यार तू। कहीं बीच बाजार मरवा न देना तुम।
अभिषेक- मैं क्या करूँ यार। बहुत भूख लगी है और मुंह में पानी आ रहा है और ये लड़कियाँ पता नहीं कितने जन्मों की भूखी हैं कि खाये ही जा रही हैं। जिनको नज़र नहीं आ रहा है कि दो शरीफ लड़के कब से गोलगप्पे खाने के लिए खड़े हैं।
मैं- मैंने तुझसे पहले ही कहा था कि लड़कियों का मनपसंद होता है गोलगप्पा। चल कहीं और चलते हैं कुछ और खाते हैं।
अभिषेक मेरी बात अनसुना कर दिया और कुछ देर इंतज़ार करने के बाद आखिरकार वो बोल ही पड़ा।
अभिषेक- लगता है तुम लोग कई दिन की भूखी प्यासी हो। कब से देख रहा हूँ गोलगप्पे खाए पड़ी हो। मुझे लगता है पूरा ठेला खाकर ही मानोगी तुम लोग।
अभिषेक की बात सुनकर उन लड़कियों ने उसे घूरकर देखा तो अभिषेक अपने दांत निकालकर हंसने लगा। आखिरकार वो लड़कियाँ गोलगप्पे खाकर चली गई। उनके जाने के बाद मैंने अभिषेक से कहा।
मैं- साले तू एक दिन बहुत पिटेगा। तुझे कितनी बार मना किया है कि ऐसे कोई भी बात मत बोला कर खासकर लड़कियों को, लेकिन तू है कि मेरी बात सुनता ही नहीं। जब मार पड़ेगी तो मुझसे मत कहना कि मैंने तुझे आगाह नहीं किया।
अभिषेक- कुछ नहीं होगा यार। कौन सा मैं उनको छेड़ रहा था। मैं तो बस कम खाने के लिए बोल रहा था। अच्छा अब ज्यादा बातें नहीं। गोलगप्पे वाले भैया। हमे भी गोलगप्पे खिलाइए।
फिर शुरू हुआ गोलगप्पे खाने का सिलसिला जो जाकर 70 ₹ पर खत्म हुआ। जिसमें से 10 ₹ का गोलगप्पा मैंने खाया था बाकी के 60 ₹ का गोलगप्पा अभिषेक ने खाया था। उसने गोलगप्पे खाकर एक लंबी डकार ली और अपने हाथ अपनी शर्ट में पोछ कर मुझसे बोला।
अभिषेक- हां। अब लग रहा है कि पेट में कुछ गया है।
मैं- कुछ गया है। भुक्खड़, अगर कुछ देर और खाता तो उसका पूरा ठेला खा डालता तू। कोई इतना खाता है क्या, ऐसा लग रहा था जैसे जन्मों का भूखा है तू।
अभिषेक- जब भूख लगी थी तो क्या करूँ मैं। अब ज्यादा बकचोदी मत कर। तुझे तो मेरे हर चीज से परेशानी है। अब जल्दी से पैसे दे और घर चल। आज कुछ अच्छा बनवाऊंगा खाने के लिए चाची से।
मैं- तू सच में पेटू है। अभी भी तेरा पेट नहीं भरा।
मैंने ये बात मुस्कुराते हुए बोली थी जिसे सुनकर क़र अभिषेक भी मुस्कुराने लगा। फिर मैं गोलगप्पे वाले को पैसे देकर वहां से चल दिया। बाजार पर होने पर मैं साईकिल की सीट पर बैठ गया और साईकिल आगे बढ़ा दी। अभिषेक उछलकर आगे डंडे पर बैठा तभी एक धमाका हुआ।
धड़ाम...... फुस्स सससससस....
उसके उछलकर बैठने से साईकिल का टायर पंचर हो गया। (वैसे टायर पंचर नहीं होता पंचर तो ट्यूब होती है, लेकिन गांव में इसे टायर पंचर ही बोलते हैं) और साईकिल तुरन्त रुक गई। मैं साईकिल स्टैंड पर खड़ीकर अगला टायर देखा तो वो फट गया था। मैं अभिषेक को देखने लगा। वो भी मुझे देख रहा था। मैंने उससे कहा।
मैं- ये सब तेरी वजह से ही हुआ है।
अभिषेक- मेरी वजह से? मैंने क्या किया है।
मैं- तुझे ही बड़ी भूख लगी थी न। और खाया भी तो कितना ठूंस ठूंस कर। फिर भी तेरा पेट नहीं भरा। अभी और खाने की बात कर रहा है। ना तू इतना ज्यादा खाता, न तेरा वजन बढ़ता और न ही टायर पंचर होता।
अभिषेक- देख नयन। अब कुछ ज्यादा ही बोल रहा है तू। मेरे गोलगप्पे खाने से कुछ नहीं हुआ समझे। ये तो टायर कमजोर था साइकिल का। इसलिए फट गया। और इसके लिए तू मुझे मत बोल। अपने आप को देख मुझसे ज्यादा वजन तो तेरा है।
उसकी बात सुनकर मैं चुप हो गया। क्योंकि उसने बात एकदम सही बोली थी। मेरा वजन उससे 2-4 किलो ज्यादा ही था। फिर हम दोनों बात करते हुए पैदल ही साईकिल को घसीटते हुए अपने घर की तरफ चल दिये। जब मैं घर पहुँचा तो पापा और काजल दुआर(घर के सामने की खाली जगह) में चारपाई/खटिया डाले बैठे हुए मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे। अभिषेक तुरंत जाकर पापा के पांव छू लिया और खटिया पर बैठ गया। उसे देखकर काजल ने कहा।
काजल- भैया आज आपका भी परिणाम आया होगा न। क्या हुआ बताओ न।
अभिषेक- वो सब बाद में बताऊंगा। पहले ये मिठाई खा और ये कपड़े रख जो पापा ने तेरे लिए भेजे हैं।
इतना कहकर अभिषेक ने मिठाई का डिब्बा, जो वह घर से लाया था निकालकर काजल को दे दिया साथ में कपड़े का बैग भी दे दिया तब तक मैं भी आकर पापा के पांव स्पर्श किया और उनकी बगल में बैठ गया। अभिषेक ने कहा।
अभिषेक- आपको पता है चाचा जी। मैं और नयन दोनों प्रथम श्रेणी में पास हुए हैं। अभी तक अंक नहीं देखा है। वो आपके सामने देखेंगे।
तबतक मेरी अम्मा भी घर से बाहर आ गई। पापा ने उन्हें देखते हुए कहा।
पापा- अरे सुनती हो भाग्यवान। दोनों बच्चे प्रथम श्रेणी में पास हुए हैं। जाओ इनके खाने लिए मैंने जो जलेबी लाई है उसे ले आओ।
अभिषेक- अरे वाह चाचा जी। आपने बहुत अच्छा किया। मेरे मुंह में पानी आ गया। जल्दी लेकर आइये चाची जी।
मैं- तू कितना बड़ा पेटू है अभिषेक। तेरे मुंह में तो हर खाने वाली चीज को देखकर पानी आ जाता है। अभी आधे घंटे पहले भरपेट गोलगप्पे खाकर आ रहा है। और फिर से तुझे भूख लग गई।
अभिषेक- इतनी दूर पैदल चलवाया तुमने। जो खाया था वो पच गया सब। अब पेट खाली हो गया है तो भूख तो लगेगी ही न और हां चाची जी। आज हम दोनों के पास होने की खुशी में कुछ अच्छा सा बनाइये खाने के लिए।
मम्मी- हां क्यों नहीं मेरे बच्चे पास हुए हैं।
उसके बाद मां एक थाली में जलेबी निकाल कर ले आई। हम सब मिलकर जलेबी खाने लगे और इधर उधर की बातें करने लगे। बातों बातों में मैंने सबको आधे घंटे पहले बाजार वाली कहानी बता दी कि कैसे अभिषेक ने गोलगप्पे खाते हुए लड़कियों को देख रहा था और कैसे इसके मुंह में पानी आ रहा था और कैसे साईकिल पंचर हो गई वगैरह वगैरह। जिसे सुनकर सब हंसने लगे।
इसके आगे की कहानी अगले भाग में।