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Fantasy क्या यही प्यार है

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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सत्रहवाँ भाग


तनु- अरे यार तुम्हारा दोस्त पिछले तीन दिन से साडू मुँह बनाकर घूम रहा है। मुझसे बात ही नहीं करता तो मैं कैसे अच्छी हो सकती हूँ।

इतना बोलकर तनु अभिषेक की तरफ मुखातिब होकर अभिषेक से बोली।

अभिषेक- मुझे माफ कर दो यार। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई थी उस दिन जो मैंने नयन को उलटा सीधा बोल दिया था। वो क्या है न कि तुम दोनो जब मुझे नजरअंदाज करके चले गए थे तो मुझे तुमपर बहुत गुस्सा आया। मैं तुमसे नाराज हो गई थी।और यही जताने के लिए कक्षा में आ रही थी और नयन से टक्कर हो गई। एक तो मैं पहले से ही गुस्सा थी ऊपर से ये टक्कर हो गई तो मुझे और गुस्सा आ गया और जो गुस्सा मैं तुमपर निकालना चाहती थी वो नयन पर निकल गया। मैंने दो दिन इस बारे में सोचा तब मुझे एहसास हुआ कि मैंने गलती की है। इसलिए मैं तुमसे माफी माँग रही हूँ। मुझे माफ कर दो अभिषेक, प्लीज, प्लीज।

तनु की बात सुनकर हम सब तनु को देखने लगे। उसकी बात मुझे भी सही लग रही थी, लेकिन महेश था जो उसे अभी भी तनु की बात पर विश्वास नहीं हो रहा था, परंतु वो चुपचाप बैठा हुआ था। तनु की बात सुनकर अभिषेक ने कहा।

अभिषेक- अगर तुम्हें अपनी गलती का एहसास है तो तुम मुझसे नहीं नयन से माफी माँगो। अगर उसने तुम्हें माफ कर दिया तो मुझे कोई दिक्कत नहीं है।

तनु- नयन मुझे मेरी उस दिन की गलती के लिए माफ कर दो। मैंने उस दिन जो कुछ भी किया वो गलत था, लेकिन मैं गुस्से में थी इसलिए मुझे सही गलत कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। प्लीज मुझे माफ कर दो।

मैं- तुम्हें माफी माँगने की जरूरत नहीं है तनु। मैं तो उसी दिन समझ गया था कि तुमने गुस्से में ये सब किया है। इसलिए मैंने तुम्हें उसी दिन माफ कर दिया था। अभिषेक अब तू भी गुस्सा थूक दे और तनु को माफ कर दे।

मेरी बात सुनकर अभिषेक ने अपना मुँह पीछे किया और आ... थू किया। उसे देख कर महेश ने कहा।

महेश- अब ये क्या था बे।

अभिषेक- अभी तो नयन ने कहा न कि अपना गुस्सा थूक दो। तो मैं वही कर रहा था अपना गुस्सा थूक रहा था।

उसकी बात सुनकर हम सब हँसने लगे। उसके बाद तनु के कहा।

तनु- तो अभिषेक अब तो तुम मुझसे नाराज नहीं हो न। मुझे माफ कर दिया न तुमने।

अभिषेक- हां माफ कर दिया मैंने तुम्हें। लेकिन आगे से ऐसा कभी मत करना यार। ये मेरा भाई है।

इतना सुनकर तनु अभिषेक के ऊपर टूट पड़ी और उसके ऊपर चुम्बनों की झड़ी लगा दी। अभिषेक बहुत मुश्किल से तनु को अपने से अलग करते हुए कहा।

अभिषेक- ये सब क्या है। तुम पागल हो क्या। जब देखो तब तुम मेरे ऊपर चढ़ जाती हो और चूमने लगती हो। ये भी नहीं देखती कि हम लोग कहाँ बैठे हुए हैं। अगर मैं अकेले में तुम्हें मिल जाऊँ तो पता नहीं तुम मेरे साथ क्या करोगी।

तनु- ये तो मेरे प्यार जताने का तरीका है अभिषेक। कभी अकेले में मिलो तुम।तुम्हें खुद पता चल जाएगा कि मैं क्या करूँगी।

अभिषेक- चलो अब बहुत हुआ तुम्हारा प्यार। अब कक्षा में चलते हैं वहीं बैठकर बात करेंगे।

तनु- तुम सब चलो मैं कुछ देर में आती हूँ। मुझे अपनी एक सहेली से कुछ जरूरी काम है।

तनु की बात सुनकर मैं अभिषेक और महेश अपनी कक्षा में जाने के लिए उठ गए। फिर मैं अभिषेक से बाथरूम जाने का बोलकर बाथरूम में चला गया। जब मैं बाथरूम से वापस होकर लौटा तो देखा कि तनु किसी से बात कर रही है। उसे देखकर मैं सोच में पड़ गया कि तनु ने तो बोला था कि उसे अपनी किसी सहेली से जरूरी काम है, तो क्या ये उसकी सहेली है। लेकिन ये उसकी सहेली कब से बन गई। हो सकता है कुछ और बात कर रहीं हों दोनो। मैंने अपने दिमाक को झटकते हुए अपनी कक्षा में आ गया। थोड़ी देर बाद तनु भी कक्षा में आ गई। मैंने बाहर वाली बात उससे पूछना जरूरी नहीं समझा क्योंकि वो कोई इतनी बड़ी बात नहीं थी और पूछने का मतलब था कि तनु फिर से शक कर लेती की मैं उसकी जासूसी कर रहा हूँ।

खैर शिक्षक आए और कक्षा शुरू हो गई। इसी तरह समय बीतता गया और स्कूल की छुट्टी हो गई। हम लोग अपने घर की तरफ चल पड़े। रास्ते में मुझसे महेश ने कहा।

महेश- नूनू भाई। तुम्हें क्या लगता है कि तनु सच में पहले जैसी हो गई है।

मैं- हाँ मुझे तो यही लग रहा है कि जो हमने तनु के बारे में सोचा था वो गलत था। तनु वैसी ही थी जैसी वो पहले थी।

महेश- लेकिन भाई। मुझे अब भी तनु के ऊपर शक है। मुझे लगता है कि उसके दिमाग में कुछ-न-कुछ चल रहा है।

मैं- तेरे पास दिमाग है जो तू सोच रहा है। ऐसा कुछ भी नहीं है। बस उसने तेरा प्यार स्वीकार नहीं किया इसलिए तू उसपर लांछन लगा रहा है। अब अपना ज्यादा दिमाग मत इस्तेमाल कर और चुपचाप घर चल।

इसी तरह दिन बीतते रहे और हम चारों की दोस्ती फिर से पहले जैसी हो गई, लेकिन महेश का तनु के ऊपर का शक अभी भी मिटा नहीं था। तनु की हम लोगों से मित्रवत बातचीत को दोबारा शुरू हुए 15 दिन बीत चुके थे। हम लोग भोजनावकाश के समय स्कूल परिसर में बैठे हुए बाते कर रहे थे। तभी तनु ने कहा।

तनु- एक बात है जो मेरे मन में कई दिन से आ रही है। अगर तुम लोग सुनो तो मैं कहूँ।

अभिषेक- हाँ क्यों नहीं बताओ तो क्या बात है।

तनु- देखो। अब हम लोगों की बोर्ड परीक्षा को ज्यादा से ज्यादा 20-22 दिन बचे हुए हैं। और इस परीक्षा के बाद हो सकता है कि हमारी मुलाकात दोबारा न हो। और अगर होती भी है तो कभी कभार होगी। पता नहीं कौन किस कॉलेज में जाएगा। कौन अपनी पढ़ाई आगे बढ़ाएगा। कौन पढ़ाई बन्द कर देगा।

महेश- हाँ ये बात तो तुम बिलकुल सही कह रही हो। इस परीक्षा के बाद तो बहुत मुश्किल से मिलना होगा।

तनु- तो मैं ये सोच रही थी कि इस स्कूल से जाते जाते हम अपनी इस दोस्ती को कुछ यादगार बनाएँ और पिछली जो भी बुरी यादें हमारे साथ रही हैं अब तक उन्हें पीछे छोड़कर कुछ अच्छी यादों को इस स्कूल से जाते समय अपने साथ ले जाएँ।

नयन- हाँ यार बात तो तुम्हारी एकदम सही है तनु। इन सब बातों पर तो हमने कभी गौर किया ही नहीं, लेकिन ये हमें इसके लिए करना क्या होगा। मेरे मतलब है कि हम अपने स्कूल के बचे हुए कुछ दिन यादगार कैसे बनाएँ।

तनु- हाँ तो सुनो। मैं ये कह रही थी कि क्यों ने हम दो-तीन दिन के लिए कहीं बारह घूमने चलें। बाहर मतलब। किसी दूसरे राज्य में। और मैंने तो जगह भी सोच ली है। राजगिरी। पटना शहर से कुछ घंटे की दूरी पर है ये। मेरी एक सहेली वहाँ घूमकर आई है बता रही थी कि बहुत ही अच्छी जगह है। क्या बोलते हो तुम लोग।

अभिषेक- बात तो तुम्हारी सही है तनु, लेकिन कुछ दिन बाद परीक्षा है और इस समय जाने पर पढ़ाई का नुकसान भी होगा। और सबसे बड़ी बात इतनी बड़ी बात। इतनी दूर घर वाले जाने की इजाजत भी नहीं देंगे। मुझे तो गाँव के पास नहर पर हगने जाने पर भी डाट सुननी पड़ती है तो पटना जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता और वो भी अकेले जाने का।

तनु- अरे यार। पहले मेरी बात तो पूरा सुन लो। हम लोग अकेला नहीं जा रहे हैं। अपने स्कूल के और भी बच्चे और शिक्षक भी साथ में चलेंगे। तब तो तुम्हारे मम्मी पापा को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए।

अभिषेक- हाँ अगर ऐसा होता है तो फिर मम्मी पापा को मैं मना लूँगा किसी तरह। और शिक्षक के जाने पर पापा शायद मना भी नहीं करेंगे।

महेश- लेकिन ये होगा कैसे। क्या तुमने सभी से बात कर ली है जाने के लिए।

तनु- अभी नहीं। पहले मैं तुम लोगों से सहमति तो ले लूँ, क्योंकि अगर तुम लोग ही तैयार नहीं हुए तो वहाँ जाने का कोई मतलब ही नहीं है। अगर तुम लोग तैयार हो तो बात करते हैं अन्य छात्रों और प्रधानाचार्य महोदय से।

तनु की बात सुनकर हम सब एक दूसरे को देखने लगे। सच में तनु का प्लान वाकई गजब का था। इसलिए किसी की आपत्ति का प्रश्न ही नहीं उठता था। इसलिए हम सभी की सहमति बन गई। तो तनु ने कहा।

तनु- तो चलो सबसे पहले अन्य छात्र/छात्राओं से बात करते हैं। अगर ज्यादा लोग तैयार हो गए चलने के लिए तो प्रधानाचार्य महोदय को मनाने में आसानी होगी।

तनु की बात सुनकर हम सब अपनी कक्षा में चले गए और छात्र/छात्राओं को अपने इस प्लान के बारे में बताया। जिसे सुनकर ज्यादा छात्र/छात्राएँ तो नहीं किंतु 15 लोगों ने अपनी सहमति जता दी। किन्तु हम सबको मिलाकर भी संख्या 20 नहीं पहुँच रही थी तो हम लोग बाहर आकर आपस में बात करने लगे। तनु ने कहा।

तनु- क्यों न हम लोग कक्षा 10 के विद्यार्थियों से बात करें आखिर उनका भी बोर्ड की परीक्षा है। अगर वो हमारे साथ चलते हैं तो उनका भी दिमाग फ्रेश हो जाएगा। और घूम भी लेंगे सभी।

हमें तनु की बात ठीक लगी। हम लोगों ने कक्षा 10 के विद्यार्थियों से बात की तो वहाँ से भी 25 विद्यार्थी मिल गए। फिर हमने अपनी बात को प्रधानाचार्य महोदय के सामने रखने की सोची। और उनके कक्ष की तरफ चल पड़े। हम लोगों ने अनुमति लेकर उनके कक्ष में गए और उनके समक्ष अपनी बात रखी तो उन्होंने कहा।

प्रधानाचार्य महोदय- तुम्हारा प्लान तो बहुत अच्छा है, लेकिन तुम लोग शायद यह भूल रहे हो कि बोर्ड की परीक्षाएँ नजदीक हैं और वहां जाने से पढ़ाई का नुकसान भी हो सकता है।

तनु- नहीं सर पढ़ाई का नुकसान बिलकुल नहीं होगा। आप ही सोचिए सर कि साल भर से वही वही चीज पढ़ते पढ़ते विद्यार्थी परेशान हो जाते हैं। मानसिक दबाव में रहने लगते हैं। अगर इस बीच किसी अच्छी जगह पर घूम कर आया जाए तो दिमाग के सारे दबाव और परेशानियाँ दूर हो जाती हैं और दिमाग एकदम तरोतोजा हो जाता है। और वैसे भी कुछ समय बाद हम सब एक दूसरे से बहुत कम मिल सकेंगे तो कम से कम इसी बहाने हम कुछ यादें संजो कर रखना चाहते हैं।

प्रधानाचार्य महोदय- बात तो तुम्हारी ठीक है तनु, लेकिन मैं कोई निर्णय अकेले नहीं ले सकता। क्योंकि मैं अगर तैयार भी हो जाता हूँ तो तुम लोगों को अकेले तो भेज नहीं सकता। इसके लिए कम से कम 4-5 शिक्षक भी साथ जाएँगे। तो हम उनसे बात कर लें पहले फिर सोचेंगे इसके बारे मैं। शाम तक तुम लोगों को बताते हैं कि क्या निर्णय लिया गया है।

इसके बाद हम लोग प्रधानाचार्य के कक्ष से बाहर आ जाते हैं और अपनी कक्षा में जाते हैं तो कक्षा में शिक्षक मौजूद थे और पढ़ा रहे थे। हमें देखते ही शिक्षक ने कहा।

शिक्षक- कहाँ से आ रही है चंडाल चौकड़ी घूम कर।

महेश- ये चंडाल चौकड़ी प्रधानाचार्य महोदय के कक्ष से सफर करते हुए अभी अभी अपनी कक्षा में प्रवेश कर रही है।

महेश ने ये बात मजाकिया लहजे में कही। जिसे सुनकर सारे विद्यार्थी हँसने लगे। शिक्षक ने हमें घूर कर देखा तो हम जल्दी से अपनी सीट पर बैठ गए। स्कूल की छुट्टी होने के कुछ देर पहले ही चपरासी ने आकर हमें सूचित किया कि हम चारों लोगों को प्रधानाचार्य महोदय ने अपने कक्ष में बुलाया है। चपरासी की बात सुनकर हम चारों प्रधानाचार्य महोदय के कक्ष की तरफ चल पड़ें।



इसके आगे की कहानी अगले भाग में।
वाह क्या प्लान बना पायल के साथ मिल कर।

बढ़िया कहानी माही जी
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
19,190
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पचासवाँ भाग


उसके बाद अभिषेक ने खुशबू को फोन किया। दोनों की बातें बहुत देर तक चली। अभिषेक खुशबू को दिलासा देता रहा, लेकिन खुशबू बस एक ही रट लगाए रही कि अगर उसकी शादी अभिषेक से नहीं हुई तो वो अपने आप को कुछ कर लगी। अभिषेक ने उसे कोचिंग में मिलने के लिए कह दिया और फोन वापस रख दिय़ा। फोन रखने के बाद अभिषेक अपना सिर पकड़कर बैठ गया। मैंने उसे दिलासा दिया कि सबकुछ ठीक हो जाएगा। कुछ देर बाद कोचिंग जाने का समय हो गया तो हम दोनों कोचिंग चले गए। अभी रेशमा और पल्लवी नहीं आई थी तो हम उन दोनों का इंतजार करने लगे। कुछ देर बाद महिमा आ गई और हम दोनों से कुछ दूर पर खड़े होकर मुझे देखने लगी। उसके चेहरे पर हमेशा की तरह चिर परिचित मुस्कान थी। लेकिन आज मुझे दिमागी परेशानी बहुत ज्यादा थी तो उसकी हँसी मुझे अच्छी नहीं लग रही थी। थोड़ी देर बात रेशमा और पल्लवी आ गए। उन्होंने आने के बाद हम दोनों को चेहरे को देखकर अंदाजा लगा लिया कि कुछ भी अच्छा नहीं हुआ है। पल्लवी के पूछने पर मैंने संजू के साथ हुई सारी बातचीत बता दी, जिसे सुनने के बाद उसने कहा।

पल्लवी- यार मामला तो सच में बहुत पेंचीदा हो गया है। अनामिका ने बहुत गहरी साजिश रची है। मुझे ऐसा लग रहा है कि ये गर्भवती की बात भी उसकी नकली है। क्योंकि संजू के कहने के मुताबिक उसने गर्भावस्था की जाँच रिपोर्ट के बारे में उसको नहीं बताया, जब उसने उसके बारे में पूछा तब उसने बताया कि वो उसके बच्चे की माँ बनने वाली है।

अभिषेक- लेकिन एक बात और ध्यान देने योग्य है कि वह डीएनए जाँच के लिए भी तैयार है, अगर वो गर्भवती नहीं होती तो वो इसके लिए क्यों तैयार होती। ये बात उसके पक्ष में जा रही है।

रेशमा- हाँ ये बात तो सही है। वैसे एक बात तो है। तुमको, नयन को और संजू को उस अनामिका का धन्यवाद कहना चाहिए कि तुम तीनों को अनामिका ने किसी क्षेत्र में अनुभवी बना दिया है।

अनामिका ने ये बात एक आँख दबाते हुए कही। उसकी बात सुनकर मैं और अभिषेक झेंप गए। पल्लवी ने उसे चुप कराते हुए कहा।

पल्लवी- चुप कर। तुझे इस स्थिति में भी मजाक सूझ रहा है। यहाँ नयन की लगी पड़ी है और तुझे मस्ती सूझ रही है।

पल्लवी की ये बात सुनकर मुझे हँसी आ गई। मुझे हँसते हुए देख कर रेशमा ने कहा।

रेशमा- अब तुम क्यों दाँत निकाल रहे हो।

मैं- मेरी ही नहीं। अभिषेक की भी लगी पड़ी है।

इतना कहकर मैं हँसने लगा। अभिषेक के चेहरे पर मुस्कान आ गई। जिससे माहौल थोड़ा हल्का हो गया। उन दोनों को कुछ समझ न आया तो रेशमा ने पूछा।

रेशमा- अभिषेक को क्या हो गया। कहीं खुशबू ने तो इसकी वाट नहीं लगा दी।

अभिषेक- खुशबू ने नहीं यार उसके पापा ने।

अभिषेक ने एकदम संजीदा अंदाज में ये बात कही। जिसे सुनने के बाद पल्लवी ने कहा।

पल्लवी- खुशबू के पापा ने। मतलब।

फिर अभिषेक ने पल्लवी को वो सबकुछ बता दिया जो मैंने अभिषेक को बताया था और खुशबू से फोन पर जो भी बातें हुई थी। जिसे सुनने के बाद पल्लवी ने कहा।

पल्लवी- मामला तो सचमुच बहुत गंभीर है। तुम क्या करने वाले हो अब।

अभिषेक- करना क्या है उसके पापा से मिलकर बात करनी पड़ेगी और उन्हें समझाना पड़ेगा।

अभी हम बात कर ही रहे थे कि खुशबू भी आ गई। आते ही वो मेरे गले लग गई और बोली।

खुशबू- अभिषेक। कुछ करो। मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ। तुम नहीं मिले तो मैं जी नहीं पाऊँगी।

अभिषेक- मैं भी तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। तुम्हारे पापा से मिलकर बात करूँगा इसके बारे में।

खुशबू- अगर पापा नहीं माने तो क्या करोगे तुम।

अभिषेक- अभी उसके बारे में सोचा नहीं है। वो सब बाद की बात है। मिलकर बात करने पर हो सकता है कि वो मान जाएँ।

उसके बाद हम सभी अपनी कक्षा में जाने लगे। मैंने एक नजर महिमा पर डाली बो अभी भी प्यार भरी नजरों से मुझे देख रही थी। इतनी परेशानी में घिरे होने के कारण मुझे उसका इस तरह से देखना अच्छा नहीं लग रहा था। तो मैं कुछ सोचकर महिमा से बात करने की सोची। मैं उन लोगों को आगे छोड़कर वापस महिमा के पास आया। मुझे अपने पास आता देखकर उसकी मुस्कान और गहरी हो गई। मैंने उसके पास जाकर कहा।

मैं- क्या है ये सब महिमा। मैंने तुमसे पहले भी कह दिया है कि जो तुम चाहती हो वो मैं नहीं कर सकता। अब ये फैसला मेरे अम्मा पापा करेंगे। तो तुम मेरे पीछे अपना समय क्यों बरबाद कर रही हो। तुम्हें एक बार में कुछ समझ में नहीं आता है क्या। देखो मेरा दिमाग पहले से ही खराब है। तुम इसे और खराब मत करो।

मैंने ये बात थोड़ा सख्त लहजे में की थी, जिसे सुनने के बाद भी महिमा ने प्यार से मुझसे कहा।

महिमा- मैं आपसे कहाँ कुछ कह रही हूँ। आप किसी और का गुस्सा मुझपर निकाल रहे हैं। आपका सवाल वही है और मेरे जवाब आज भी वही है जो पहले थे। आप मुझे प्यार करने से नहीं रोक सकते।

उसकी बात सुनकर मैं झुंझला गया और बोला।

मैं- तुम ना....... तुमसे तो बात करना ही बेकार है। करो तुमको जो करना है। मैं जा रहा हूँ।

इतना बोलकर मैं कक्षा में चला गया। महिमा मेरे पीछे पीछे मुस्कुराते हुए आकर पल्लवी के बगल में बैठ गई। कक्षा खत्म हो जाने के बाद घर जाते समय पल्लवी ने कहा।

पल्लवी- अच्छा सुनो समीक्षा अधिकारी/सहायक समीक्षा अधिकारी की मुख्य परीक्षा की तिथि आ गई है। एक हफ्ते बाद मुख्य परीक्षा की तिथि रखी गई है।

मैं- तुम्हें तो पता है कि इस वक्त अपनी वाट लगी पड़ी है। तुम हम दोनों का प्रवेश-पत्र निकाल लेना। परीक्षा तो देनी ही है किसी न किसी तरह।

उसके बाद वो सब अपने अपने घर चले गए एवं मैं और अभिषेक अपने कमरे पर चला गया। कमरे पर आने के बाद अभिषेक ने बहुत सोच विचार करने के बाद परीक्षा के बाद खुशबू के पापा से बात करने का निर्णय लिया। फिर हम दोनों अपनी अपनी किताब निकाल कर एक हफ्ते बाद होने वाली परीक्षा की तैयारी में जुट गए। इस एक हफ्ते हम लोगों ने कोचिंग के अलावा कहीं आना जाना बंद कर दिया। महेश को भी फोन करके बता दिया कि अपनी छुट्टी आगे बढ़ाकर आए। फिर हम दोनों अपनी पढ़ाई में जुट गए। बीच बीच में मन विचलित हो जाता था, लेकिन भविष्य का सवाल था तो हम दोनों अपनी पढ़ाई में जुटे रहे। दो दिन बाद संजू को फोन आया तो अभिषेक ने उससे बात की।

अभिषेक- देखो संजू। इतना तो तय है कि वो बच्चा नयन का नहीं है। तो हम दोनों को तुम्हारे मामले से कोई लेना देना नहीं होना चाहिए, लेकिन यहाँ बात अनामिका की है। इसलिए इस मामले में हम तुम्हारी पूरी मदद करेंगे, लेकिन 5 दिन बाद हमारी परीक्षा है। तो अभी हम तुम्हारी कोई मदद नहीं कर पाएँगे। हाँ परीक्षा के बाद हम तुम्हारी पूरी मदद करेंगे। तब तक तुम कैसे भी करके अनामिका को संभालो। उसे झूठ ही बोल दो कि तुमने घर में बात कर ली है। सब तैयार हैं। बस कुछ जरूरी काम की वजह से नहीं जा पा रहें हैं उसके घर और कोशिश करो कि वो डीएनए जाँच के लिए मान जाए। उसके बाद हम कोई-न-कोई रास्ता निकाल लेंगे। शायद तुम्हारी मदद कर देने से हमारे लिए भी कुछ अच्छा हो जाए।

संजू- लेकिन यार एक हफ्ते तो बहुत ज्यादा हो जाएगा। वो कैसे मानेगी इसके लिए।

अभिषेक- ये कैसे करना है तुम देख लो इसके, लेकिन एक हफ्ता तो रुकना ही पड़ेगा।

अभिषेक ने संजू से बात करने के बाद फोन रख दिया और फिर हम लोग अपनी पढ़ाई में जुट गए। मैं सुबह कोचिंग पढ़ाने जाता और शाम को पढ़ने। इसी तरह परीक्षा का दिन भी आ गया और हमने परीक्षा भी दे दी। परीक्षा उम्मीद के मुताबिक अच्छी ही गई थी। परीक्षा देने के बाद उसी शाम को अभिषेक ने खुशबू से बात की।

अभिषेक- खुशबू। अपने घर का पूरा पता दो। मैं कल सुबह तुम्हारे पापा से बात करने आ रहा हूँ। अपने पापा को बता देना।

खुशबू ये बात सुनकर बहुत खुश हुई। उसके अपना पूरा पता अभिषेक को दे दिया।

अभिषेक- एक बात और। तुम एक काम करना। तुम अपनी किसी सहेली के यहाँ चली जाना, क्योंकि तुम्हारे घर में रहते बात नहीं हो पाएगी अच्छे से तुम्हारे पापा से।

खुशबू- मैं क्यों जाऊँगी कहीं। नहीं मैं नहीं जाऊँगी। मुझे भी जानना की कि तुम्हारे और मेरे पापा के बीच क्या बात होती है।

अभिषेक- खुशबू तुम समझ नहीं रही हो। ये इतना आसान मामला नहीं है। मैं तुम्हारे घर आ रहा हूँ तुम्हारे बारे में तुम्हारे पापा से बात करने के लिए। तो हो सकता है उस समय तुम्हारे पापा गुस्से में दो-चार उलटी-सीधी बात कह दें। जो कि गलत नहीं है। और मैं नहीं चाहता कि इन बातों को लेकर तुम्हारे और तुम्हारे पापा के बीच में कुछ अनबन हो। मेरी बात समझने की कोशिश करो तुम।

खुशबू- ठीक है। जैसा तुम कहोगे मैं वैसा ही करूँगी।

उसके बाद हम लोग अगले दिन का इंतजार करने लगे। रात में एक खुशखबरी मिली रश्मि का फोन आया था।

मैं- हाँ रश्मि कैसी हो। बड़े दिन बाद याद किया तुमने।

रश्मि- अच्छी हूँ यार। बस काम के कारण समय नहीं मिल पाया। सुन न एक अच्छी खबर सुनाने के लिए फोन किया है।

मैं- अरे वाह। सुनाओ सुनाओ। बहुत दिन हो गया कोई अच्छी खबर सुने हुए।

रश्मि- अरे मेरे स्थानांतरण इलाहाबाद में हो गया है। हफ्ते-दस दिन में मैं इलाहाबाद आ जाऊँगी।

मैं- अरे वाह यार। ये तो सच में बहुत ही अच्छी खबर है। चल जल्दी से आ जा फिर मिलकर बात करते हैं सभी।

उसके बाद मैंने फोन रख दिया। अगली सुबह मैं और अभिषेक खुशबू के बताए हुए पते पर पहुँच गए। खुशबू का घर बहुत अच्छा बना हुआ था। मैंने गेट पर लगी बटन दबा दी। कुछ देर बाद एक बीस-बाइस साल के लड़के ने गेट खोला और पूछा।

मैं- क्या खुशबू का घर यही है।

लड़का- जी हाँ। मैं उसका छोटा भाई हूँ। आप लोग कौन हैं।

मैं- हम उसके साथ ही पढ़ते हैं। मुझे तुम्हारे पापा से कुछ जरूरी बात करनी है।

मेरी बात सुनकर लड़का समझ गया कि क्या बात करनी है। इसलिए उसने हमे घर के अंदर आने दिया। हम दोनों को लिवाकर वो बैठक कक्ष में गया और हम दोनों को सोफे पर बैठा दिया। कुछ देर बाद खुशबू के मम्मी पापा भी वहाँ आ गए। हम दोनों ने उठकर खुशबू के मम्मी पापा के पाँव छुए। उन्होंने हम दोनों को बैठने के लिए कहा। उसके पापा ने बैठते हुए कहा।

खु.पापा- तुम दोनों अपना परिचय नहीं दोगे।

अभिषेक- मैं अभिषेक और ये मेरा दोस्त नयन।

खु.पापा- मैंने सुना है कि तुम और खुशबू प्यार करते हो।

अभिषेक- हाँ चाचा जी। आप ने बिलकुल सही सुना है। मैं और खुशबू एक दूसरे से प्यार करते हैं।

खु.पापा- तुम्हें पता है न कि तुम एक बाप के सामने बैठकर उसकी बेटी से प्यार करने की बात कर रहे हो।

अभिषेक- जी हाँ पता है। लेकिन जो सच है उसे कहने में बुराई क्या है।

खु.पापा- तुम्हें खुशबू ने ये भी बताया होगा कि मैंने उसके लिए एक रिश्ता देख रखा है और उसकी शादी वहीं करना चाहता हूँ।

अभिषेक- जी हाँ खुशबू ने बताया है मुझे। लेकिन मैं खुशबू से बहुत प्यार करता हूँ और उससे शादी करना चाहता हूँ।

खु.पापा- (थोड़ा गुस्से से) मैं तुम दोनों के प्यार को नहीं मानता। शादी तो बहुत दूर की बात है।

अभिषेक- चाचा जी। आपके मानने या न मानने से सच्चाई तो नहीं बदल जाएगी। मैं खुशबू से प्यार करता हूँ और उससे शादी करना चाहता हूँ ये बात सत्य है।

खु. पापा- इसके मतलब ये है कि अगर मैंने तुम्हारी बात नहीं मानी तो तुम मेरी बेटी को भगाकर शादी कर लोगे।

अभिषेक- ये आपसे किसने कह दिया कि मेरी बात न मानने पर मैं खुशबू को भगाकर उससे शादी करूँगा। मैं उससे शादी आप लोगों की मरजी से करना चाहता हूँ न कि उस भगा कर।

मेरी बात सुनकर खुशबू के पापा मुझे थोड़ी देर देखते रहे। फिर मुझसे बोले।

खु.पापा- हम लोगों की मरजी नहीं है तुम्हारे साथ अपनी बेटी की शादी करने की। और तुम्हें खुशबू तभी मिलेगी जब तुम उसको भगाकर उससे शादी करोगे, लेकिन तुम उसके लिए भी मना कर रहे हो। इसकी वजह जान सकता हूँ।

मैं- देखिए चाचा जी। ये तो सच है कि मैं खुशबू को भगाकर शादी नहीं करूँगा क्योंकि मैं भले ही खुशबू से बहुत प्यार करता हूँ, लेकिन मुझसे ज्यादा प्यार उसे आप लोग करते हैं। मेरा प्यार तो बस साल भर का है, लेकिन आप लोग तो उसे पिछले 23 साल से प्यार और स्नेह देते आ रहे हैं। आप लोगों के प्यार के सामने मेरा प्यार कुछ भी नहीं है। और मुझे ये भी पता है कि अगर लड़की घर से भाग जाती है तो लड़कों का तो कुछ नहीं जाता, लेकिन लड़की के घर से सारी खुशियाँ भाग जाती हैं। उस समय लड़की के माँ-बाप को जो पीड़ा होती है। उसको सिर्फ वही महसूस करता है। जिसके ऊपर ये बीतती है। आप उसके माँ बाप हैं। उसका अच्छा बुरा मुझसे ज्यादा आप लोग सोच सकते हैं। मैं तो बस ये कहने आया था कि मैं खुशबू से बहुत प्यार करता हूँ और उसे पूरी जिंदगी खुश रखूँगा।

मेरी बात सुनकर खुशबू के पापा मम्मी और भाई एक दूसरे को देखने लगे। बीच बीच में वो मुझे भी देख लेते थे। थोड़ी देर बात उसके पापा ने कहा।

खु. पापा- तुम्हारी बातों से एक बात तो साफ है कि तुम कोई लोफर या बुरे लड़के नहीं हो। तुम बहुत ही संस्कारी लड़के हो। क्योंकि तुमने जो बात कही है वो मुझे बहुत अच्छी लगी। तुम्हारी सोच बहुत अच्छी है। मैंने तुमसे अभी जो भी बातें कही हैं। वो तुम्हें परखने के लिए थी कि मैं तुमसे जो बात कहना चाहता हूँ तुम उसके काबिल हो या नहीं। और तुम्हारी बातों से लगता है कि खुशबू ने तुम्हारे बारे में जो कुछ भी बताया था वो बिलकुल सही था।

अच्छा यो बताओ ये तुम्हारे साथ तुम्हारे मित्र आए हैं। इनको कब से जानते हो तुम।

अभिषेक- चाचा जी। ये मेरे बचपन का मित्र है। मेरे लंगोटिया यार है ये। कक्षा नर्सरी से हम लोग साथ में ही पढ़ते आ रहे हैं। बस स्नातक की पढ़ाई के लिए हम दोनों अलग हुए था बाकी साथ साथ ही हैं।

खु.पापा.- तुम दोनों की दोस्ती कितनी गहरी है। मेरा मतलब है कि तुम दोनों की जुगलबंदी कैसी है। तुम्हारे और कितने दोस्त हैं।

अभिषेक- हम दोनों की दोस्ती बहुत गहरी है। हमारे साथ हमारा एक दोस्त और भी है जो इस समय लखनऊ में नौकरी करता है और तीन लड़कियाँ भी हैं जिनसे हमारी दोस्ती बहुत गहरी है, लेकिन इसके साथ कुछ ज्यादा ही लगाव है मेरा।

खु.पापा.- अगर मान लो कि तुम्हारे सामने मात्र दो रास्ते बचे हों। एक पर चलकर तुम्हें खुशबू मिल सकती है और दूसरे पर चलकर तुम्हारा ये दोस्त। तो तुम किस रास्ते पर जाओगे।

खुशबू के पापा के इस सवाल ने अभिषेक को फँसा दिया। क्योंकि इसका जवाब अभिषेक को भी पता था और मुझे भी। अभिषेक मेरी तरफ देखने लगा। मैंने इशारे में उसे बोल दिया कि खूशबू की तरफ ही बोलना। थोड़ी देर मुझे देखने के बाद अभिषेक को भी मामला समझ में आ गया था कि खुशबू को पापा ने उसे फँसा लिया है। इसलिए उसने कहा।

अभिषेक- जो रास्ता मेरे इस दोस्त की तरफ जाता है मैं उस रास्ते पर ही जाऊँगा।

खु. पापा- क्या मैं जान सकता हूँ कि तुमने खुशबू को ठुकरा कर अपने दोस्त को क्यों चुना।

अभिषेक- सीधी सी बात है चाचा जी। हम दोनों की दोस्ती ऐसी है कि इस दोस्ती के लिए मैं दुनिया की सभी लड़कियों को छोड़ सकता हूँ। हम दो भले ही हैं। लेकिन एक जान हैं। हम दोनों की दोस्ती किसी शर्त या परिस्थिति की मोहताज नहीं है। लेकिन अगर दोस्ती को आप छोड़ दें तो मेरे जीवन में अपने माता पिता और अपनी बहन के बाद खुशबू की अहमियत बहुत ज्यादा है।

खु.पापा- चलो दोस्ती को छोड़ देते हैं। लेकिन माता पिता के पहले क्यों नहीं है खुशबू की अहमियत उसके बाद क्यों है।

अभिषेक- वो इसलिए कि मेरे जन्मदाता वही हैं। उनके बिना मेरा कोई अस्तित्त्व ही नहीं है। और जो लोग अपने प्यार को अपने माता-पिता से बढ़कर मानते हैं। उनसे बड़ा बदनसीब दुनिया में कोई नहीं है।

आपकी इन बातों से मुझे एक बात समझ में आ गई है कि आपको मेरी और खुशबू की शादी से ऐतराज है। जिसके लिए मुझे कोई आपत्ति नहीं है। क्योंकि मुझसे ज्यादा खुशबू पर आपलोगों का हक है। लेकिन फिर भी अगर आपको ऐतराज न हो तो क्या आप इसका कारण मुझे बता सकते हैं।

खु.पापा- तुमने सही समझा बेटे। इसमें कोई शक नहीं कि तुम बहुत ही अच्छे, संस्कारी और नेक लड़के हो। जिसके तुम दामाद बनोगे वो बहुत ही भाग्यशाली होंगें। तुम्हारे विचार, तुम्हारे बात करने का तरीका, बड़ों के प्रति तुम्हारे मन में सम्मान और सबसे बड़ी बात कि तुम खुशबू को भगाकर ले जाने के बजाय मुझसे बात करने के लिए आए हो। जो मुझको बहुत अच्छा लगा।

मैं ये भी जानता हूँ कि तुम खुशबू को हमेशा खुश रखोगे। किसी के भविष्य के बारे में विधाता के अलावा किसी को पता नहीं होता। इंसान जो कुछ भी करता है वर्तमान में करता है भविष्य उज्जवल करने के लिए। जैसा कि तुमने बताया कि तुम उसके साथ पढ़ते हो। इसका मतलब ये है कि अभी तुम्हारे पास रोजगार नहीं है। मैं ये भी मानता हूँ कि तुम आने वाले समय में बहुत ही बड़े आदमी बन सकते हो। लेकिन मैं एक लड़की का बाप हूँ। मुझे अपनी वेटी के लिए सारे निर्णय वर्तमान को देखकर लेने होंगे न कि भविष्य को देखकर। मैंने अपने दोस्त के बेटे से खुशबू के रिश्ते की बात की है। हम दोनों की दोस्ती भी कुछ कुछ वैसी ही है जैसी तुम दोनों की। तुम लोगों की तरह हम लोग भी एक दूसरे के लिए कुछ भी कर सकते थे, लेकिन इसका मतलब तुम ये कभी न समझना कि मैं अपनी दोस्ती के लिए अपने बेटी के प्यार की कुर्बानी दे रहा हूँ। इसका कारण ये है कि लड़का नई दिल्ली में आयकर विभाग मे इंस्पेक्टर के पद पर है। तो वर्तमान में मुझे खुशबू का भविष्य तुम्हारे साथ नहीं बल्कि मेरे दोस्त के बेटे के साथ ज्यादा सुरक्षित नजर आ रहा है। किसका भविष्य कैसा होगा इस बारे में मैं नहीं बोल सकता।

मैंने खुशबू से इस बारे में बात की तो वो कहती है कि वो ये शादी नहीं करेगी। या तो वो घर से भाग जाएगी या तो कुछ उलटा सीधा कर लेगी। वो किसी भी कीमत पर इसके लिए तैयार नहीं है। और मैं भी अपनी बेटी के साथ कोई जबरदस्ती नहीं करना चाहता। इसलिए मैं खुद तुमसे मिलने वाला था, लेकिन खुशबू ने बताया कि तुम्हारी कोई परीक्षा है जिसके बाद तुम खुद मुझसे मिलोगे। तुम्हारी पढ़ाई में कोई बाधा न उत्पन्न हो, इसलिए मैं तुमसे मिलने नहीं आया। मैं तुमसे यही कहना चाहता हूँ कि तुम खुशबू को समझाओ वो तुम्हारी बात जरूर मानेगी।

खुशबू के पापा की बात सुनने के बाद हम दोनों स्तब्ध थे। अभिषेक ने मेरी तरफ देखा तो उसकी आँखों में दर्द और चेहरे पर पीड़ा दिख रही थी। अभिषेक ने उनकी बात का कोई जवाब नहीं दिया तो मैंने उनसे कहा।

मैं- जैसा कि आपने कहा कि खुशबू के साथ आप जबरदस्ती नहीं करना चाहते और खुशबू अभिषेक के साथ भागने के लिए भी तैयार है। तो ये जरूरी नहीं है कि हम आपकी बात मानें ही। फिर आपको ऐसा क्यों लगता है कि हम खुशबू को समझाएँगे।

खु.पापा- तुम्हारी ये बात भी सही है बेटा। मुझे इसलिए विश्वास है तुम लोगों पर कि तुम दोनों एक दूसरे के लिए कुछ भी कर करते हो। तो तुम्हें हमारी दोस्ती की भी गहराई समझ आ रही होगी। अब ये तुम लोगों पर निर्भर है कि तुम लोगों को खुशबू के भविष्य की परवाह है या नहीं। अगर अभिषेक को हम लोगों के अरमानों की अर्थी पर अपने प्यार का आशियाना बसाना हो तो शौक से तुम लोग ऐसा कर सकते हो। अगर अभिषेक एक माता-पिता की आँखों में खुशियाँ नहीं दर्द के आँसू भरना चाहे तो तुम लोग ऐसा कर सकते हो। हम भी अपनी बेटी से बहुत प्यार करते हैं। हम उससे ज्यादा दिन नाराज नहीं रह सकते।

अभिषेक- ठीक है चाचा जी। हम इस बारे में खुशबू से बात करेंगे। उसे समझाएँगे कि वो आप लोगों की बात मान ले। अच्छा मैं चलता हूँ अब।

खु. पापा- ठीक है बेटा। और हमें माफ कर दो बेटा। मैं शायद आपने स्वार्थ के लिए तुम्हारे प्यार का बलिदान कर रहा हूँ। जिसके लिए भगवान शायद ही हमें माफ करे। लेकिन मैं एक बाप हूँ न।

इतना कहकर खुशबू के माता पिता अभिषेक के पैरों में झुकने लगे तो अभिषेक ने उनके हाथ पकड़ लिया और कहा।

अभिषेक- ये आप लोग क्या कर रहे हैं। माता पिता के हाथ अपने बच्चों को आशीर्वीद देने के लिए होते हैं। और आप लोग मेरे पैर छूकर मुझे पाप का भागीदार बना रहे हैं। आप मुझे आशीर्वाद दीजिए कि मैं खुशबू के अपने से दूर होने पर मिलने वाले गम से उबर पाऊँ। और मुझे ये आशीर्वाद दीजिए कि मैं खुशबू को इस शादी के लिए मना पाऊँ।

ख.मम्मी- भगवान तुम्हारे भला करे बेटा। तुमने एक माँ बाप की मजबूरी को समझा। भगवान तुम्हारी झोली खुशियों से भर दे। तुम्हें बहुत बड़ा आदमी बनाए।

उसके बाद अभिषेक वहाँ नहीं रुका और उनके घर से बाहर आ गया। मैं भी अभिषेक के पीछे पीछे बाहर आ गया। मैंने देखा कि अभिषेक की आखों से झरझर आँसू बह रहे थे। अभिषेक एक मिनट भी वहाँ नहीं रुकना चाहता था। इसलिए उसने गाड़ी तुरंत कमरे पर चलने के लिए कहा। मैंने भी गाड़ी स्टार्ट की और अभिषेक को लेकर कमरे पर आ गया।



इसके आगे की कहानी अगले भाग में।
बहुत सुंदर तरीके से इस भाग को लिखा है आने माही जी, सच में मां बाप हर रिश्ते में वर्तमान को ही तजरीह देंगे, पर कम से कम कुछ समय तो दे ही सकते थे अभिषेक और खुशबू को, शायद अभिषेक का वर्तमान और उज्ज्वल हो जाता।
 

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उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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साठवाँ एवं अंतिम भाग


कोचिंग खोलने के लिए अभिषेक और मैं अपने अभिभावक को लेकर महेश के घर चले गए। सबका अभिवादन और प्रणाम करने के बाद बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ।

अभिषेक- हम लोग एक बहुत जरूरी बात करने के लिए इकट्ठा हुए हैं। हम लोग चाहते थे कि ये बाद हमारे माता-पिता के सामने हो। क्योंकि हम लोगों को आपकी सहमति चाहिए।

पापा- बात क्या है ये बताओ।

मैं- पापा आपको पता है। परास्नातक करने के बाद मैंने आपसे कोचिंग सेंटर खोलने की बात की थी तो आपने कहा था कि मैं पहले सरकारी नौकरी के लिए प्रयत्न करूँ। कोचिंग को मैं दूसरे विकल्प के रूप में रखूँ।

पापा- हाँ तुमने मुझसे बात की थी और मैंने तुमको ये बात कही थी।

महेश- तो हम लोग अब भी यही चाहते हैं कि हम तीनों मिलकर एक कोचिंग सेंटर खोलें। जिसमें गाँव के बच्चों को कम शुल्क पर शिक्षित करें। इसी के लिए हम लोगों को आप सब से बात करनी थी।

अ.पापा- लेकिन ये कैसे हो सकता है। सरकारी नौकरी में रहते हुए कोई लाभ का दूसरा काम अपने नाम से नहीं कर सकते तुम तीनों। इसके अलावा तुम्हारे पास समय कहाँ रहेगा कि तुम लोग बच्चों को पढ़ाओ।

अभिषेक- हम लोगों के पास समय नहीं है। लेकिन खुशबू, पल्लवी भाभी और महिमा भाभी के पास तो समय है न। ये तीनों लोग कोचिंग पढ़ा सकती हैं।

म.पापा- क्या। ये तुम क्या बोल रहे हो बेटा। ये लोग कैसे कोचिंग पढ़ा सकती हैं।

महेश- क्यों नहीं पढ़ा सकती पापा। तीनों पढ़ी लिखी हैं। तीनों को अपने विषयों में पकड़ भी है। इतने पढ़ने लिखने का क्या फायदा जब पढ़ाई लिखाई का सदुपयोग ही न हो तो।

म.मम्मी- लेकिन इसके लिए पहले इन तीनों से तो पूछ लो कि ये तैयार हैं या नहीं पढ़ाने के लिए।

मैं- इस बारे में उन लोगों से बात हो चुकी है। उनकी सहमति मिलने के बाद ही आप लोगों के समक्ष अपनी बात रख रहा हूँ।

मम्मी- वो तो ठीक है बेटा। लेकिन बहुएँ अगर कोचिंग पढ़ाने जाएँगी तो गाँव समाज में तरह-तरह की बातें उठने लगेंगी। उसका क्या।

अभिषेक- उसी लिए तो हम लोगों ने आप सबसे बात करना उचित समझा। अपने गाँव के आस-पास कोई ढंग का कोचिंग सेंटर नहीं है। और जो है भी वहाँ एक ही विषय पढाया जाता है। दूसरे विषय के लिए दूसरी कोचिंग में जाना पड़ता है। ऊपर से हर विषय के लिए अलग-अलग शुल्क जमा करने पड़ता है, लेकिन हमने जिस कोचिंग सेंटर के बारे में सोचा है उसमें सभी महत्त्वपूर्ण विषय एक ही जगह बच्चों को पढ़ने के लिए उपलब्ध हो जाएगा।

म.पापा- बात तो तुम्हारी ठीक है, लेकिन बात वहीं आकर रुक जाती है कि गाँव समाज तरह तरह की बातें बनाने लगेगा। तुम लोगों को तो पता है कि कोई भी अच्छा काम अगर शुरू करो तो उसकी सराहना करने वाले कम और नुक्श निकालने वाले ज्यादा लोग आ जाते हैं।

मैं- हम लोग जो भी काम करने चाहते हैं आप लोगों की सहमति से करना चाहते हैं। मैं ये जानता हूँ कि गाँव के कुछ लोग हैं जिनको हमारी पत्नियों के कोचिंग पढ़ाने से परेशानी होगी। कुछ दिन बात बनाएँगे और बाद में सब चुप हो जाएँगे और हम समाज की खुशी के लिए अपने अरमानों का गला तो नहीं घोंट सकते। इन लोगों की इच्छा है कि ये लोग भी कुछ काम करें, लेकिन गाँव में काम मिलने से रहा और ये लोग आप लोगों को छोड़कर शहर जाकर काम करेंगी नहीं। तो इन लोगों को भी तो अपनी इच्छाओं/सपनों को पूरा करने का हक है। जो ये कोचिंग पढ़ाकर पूरा करना चाहती हैं। हमारे सपने को ये लोग साकार करना चाहती हैं। तो इसमें बुराई क्या है। हम जो कुछ कर रहे हैं समाज के हित के लिए कर रहे हैं। समाज में रहने वाले बच्चों के लिए कर रहे हैं। हमें समाज की नहीं आप लोगों की हाँ और न से फर्क पड़ता है। आप लोगों की खुशी या नाखुशी से फर्क पड़ता है। अगर आप लोगों को ये सही नहीं लगता तो हम ये बात दोबारा नहीं करेंगे आप लोगों से।

इतना कहकर मैं शांत हो गया। मेरे शांत होने के बाद कुछ देर वहाँ खामोशी छाई रही। सभी के अभिभावक हमको और अपनी बहुओं को देखने लगे। फिर हम लोगों से थोड़ा दूर हटकर कुछ सलाह मशवरा किया और हम लोगों के पास वापस आ गए। कुछ देर बाद पापा ने कहा।

पापा- देखो बेटों। हमें तुम लोगों के फैसले से कोई ऐतराज नहीं है। तुम लोगों की खुशी में हमारी भी खुशी है। तुम लोगों के सपनों के बीच हम लोग बाधा नहीं बनेंगे। तुम लोग कोचिंग खोलना चाहते हो तो खुशी खुशी खोलो हम सब लोग तुम्हारे साथ हैं, लेकिन उसके पहले हमारी कुछ शर्त है जो तुम लोगों को पूरा करना होगा। तभी कोचिंग खोलने की इजाजत मिलेगी।

हम छहों एक दूसरे की तरफ देखने लगे कि आखिर पापा की शर्त क्या है। थोड़ी देर एक दूसरे को देखने के बाद अभिषेक ने कहा।

अभिषेक- आप लोगों की जो भी शर्त है वो हमें मंजूर है। बताईए क्या शर्त है आपकी।

म.पापा- बात ये है कि अब हम लोगों की उमर बीत चुकी है। या उमर के उस पड़ाव पर हैं जहाँ हमें बेटों और बहुओं के होते हुए कुछ आराम मिलना चाहिए। तुम तीनों तो सुबह अपने कार्यालय चले जाते हो। कोचिंग खुलने के बाद बहुएँ भी पढ़ाने के लिए चली जाएँगी। तो हम लोगों की सेवा कौन करेगा। इसलिए हम लोग चाहते है कि हमें चाय नाश्ता और खाना यही लोग बनाकर देंगी। ऐसा नहीं कि मम्मी मैं कोचिंग पढ़ाने जा रही हूँ। तो आप खाना बना लीजिएगा, चाय-नाश्ता बना लीजिएगा। ऐसा नहीं होना चाहिए। हम लोग इन्हें बेटी मानते हैं तो एक मा-बाप की तरह हमें पूरा सम्मान मिलना चाहिए जैसे अभी तक मिलता रहा है। कोई भी ऐसा काम नहीं होना चाहिए जिससे हमारी मान-मर्यादा को ठेस पहुँचे। क्योंकि अक्सर देखा गया है कि अगर परिवार की तरफ से छूट मिलती है तो उसका नाजायज फायदा उठाया जाता है।

पल्लवी- ऐसा ही होगा पापा। हम लोग ऐसा कोई भी काम नहीं करेंगे जिससे हमारे परिवार के ऊपर कोई उंगली उठा सके। आप लोग हमारे माँ बाप हैं। आपकी सेवा करना हमारा धर्म भी है और फर्ज भी। जो हम हमेशा निभाएँगे। आप लोगों को कभी शिकायत का मौका नहीं देंगे।

अ.पापा- ठीक है फिर तुम लोग कोचिंग खोल सकते हो। पर कोचिंग का नाम क्या रखोगे।

अभिषेक- आप लोग ही निर्णय लीजिए की क्या नाम रखा जाए कोचिंग का।

पापा- (कुछ देर सोचने के बाद) तुम लोग अपने नाम से ही कोचिंग का नाम क्यों नहीं रख लेते। तीनों के नाम का पहला अक्षर अमन (अभिषेक, महेश, नयन) ।

मैं- ठीक है पापा, लेकिन अमन के साथ ही ये कोचिंग सेंटर आप लोगों के आशीर्वाद के बिना नहीं चलना मुश्किल है। तो इसलिए आप लोगों का आशीर्वाद पहले और हम लोगों का नाम बाद में। इसलिए कोचिंग का नाम आशीर्वाद अमन रखेंगे।

इस नाम पर सभी लोगों ने अपनी सहमति जता दी। फिर कुछ देर बात-चीत करने के बाद हम लोग अपने अभिभावक के साथ अपने घर पर आ गए। अगले दिन हम लोगों ने मुख्य मार्ग के आस पास कोचिंग सेंटर खोलने के लिए कमरे की तलाश करने लगे। दो चार जगह बात करने के बाद चार बड़ा बड़ा कमरा आसानी से मिल गया। फिर हम लोगों ने कोचिंग खोलने के लिए जरूरी सामान महीने भर में जमा कर लिया और कोचिंग सेंटर शुरू कर दिया। शुरू के दो महीने तो बच्चों की संख्या कम रही, लेकिन दो महीने के बाद बच्चों की संख्या में बढ़ोत्तरी होने लगी। कोचिंग सेटर अच्छी तरीके से चलने लगा।

हम लोगों के गाँव में भी तरह तरह ही बात उठने लगी। कि लालची हैं। पैसे के पीछे भाग रहे हैं। बहुओं के जरिए पैसे कमा रहे हैं। वगैरह वगैरह। कई बड़े बुजुर्ग लोगों ने हम लोगों के पापा से भी इस बारे में बात की कि बहुओ का यूँ घर से बाहर तीन-तीन, चार-चार घंटे रहना अच्छी बात नहीं है। जमाना बहुत खराब है। कोई ऊंच-नीच घटना हो सकती है।, लेकिन हमारे अभिभावकों ने उन्हें बस एक ही जवाब दिया कि मेरी बहुएँ समझदार मैं पढ़ी लिखी हैं। वो आने वाली परेशानियों का सामना कर सकती हैं। शुरू-शुरू में जो बातें उठी थी। वो समय बीतने के साथ धीरे धीरे समाप्त होती चली गई। देखते ही देखते कोचिंग सेंटर बहुत अच्छा चलने लगा। शुरू शुरू में जो लोग मम्मी पापा की बुराई करते थे। वो भी धीरे-धीरे तारीफ करने लगे कि बहु और बेटा हों तो फलाने के बहु बेटे जैसे। हम लोगों का शादीशुदा जीवन भी बहुत अच्छा चल रहा था। शादी के डेढ़-से दो वर्ष के अंदर ही महेश-पल्लवी, अभिषेक-खुशबू और मैं-महिमा माँ बाप भी बन गए।हमने पढ़ाई में अच्छे कुछ लड़के लड़कियों को भी कोचिंग पढ़ाने के लिए रख लिया। ताकि तीनों लडकियों को कुछ मदद मिल सके।



तीन साल बाद।


इन तीन सालों में कुछ भी नहीं बदला। हम लोगों की दोस्ती और प्यार वैसे ही रहा जैसे पहले रहा था। हम सभी अपनी पत्नियों के साथ बहुत खुश थे। हमारे अभिभावक भी इतनी संस्कारी और अच्छी बहु पाकर खुश थे। बदलाव बस एक हुआ था कि हमारे कोचिंग सेंटर की प्रसिद्धि बहुत बढ़ गई थी। और हमने ये देखते हुए इस कोचिंग सेंटर की तीन और शाखाएँ खोल दी थी। जिसमें हमने कुछ अच्छे और जानकार लड़के लड़कियों को पढ़ाने के लिए रख लिया था।

आज मेरा कार्यालय बंद था तो मैं घर में ही था। सुबह के लगभग 11 बजे का समय था तभी दो लाल बत्ती वाली गाड़ियाँ जो मंडल अधिकारी एवं पुलिस अधीक्षक की गड़ियाँ थी। आकर मेरे घर के सामने रुकी। उसके साथ एक गाड़ी पुलिस की गाड़ी भी थी। पूरे गाँव में ये चर्चा हो गई थी कि मेरे यहाँ पुलिस वाले आए थे। गाँव के कुछ लोग भी मेरे घर के आस पास आ गए ये पता करने के लिए कि आखिर माजरा क्या है। उस गाड़ी से एक लड़का जो लगभग 26-27 वर्ष का था एवं एक लड़की जो कि 24-25 वर्ष की थी। नीचे उतरे। उस समय पापा घर से बाहर चूल्हे में लगाने के लिए लकड़ी चीर रहे थे और मैं अपने कमरे में कुछ काम कर रहा था। महिमा और काजल अम्मा के साथ बाहर बैठकर बात कर रही थी। साथ में मेरा बेटा भी था। अपने घर पर पुलिस को देखकर एक बार तो सभी डर गए। पापा को किसी अनहोनी की आशंका हुई तो वो तुरंत उनके पास गए। लड़की और लड़के ने पापा के पैर छुए। लड़की ने विनम्र भाव से पूछा।

लड़की- क्या नयन सर का घर यही है।

पापा- हाँ यही है आप कौंन हैं।

लड़की- जी मेरा नाम दिव्या है मैं कौशाम्बी जिले की पुलिस अधीक्षक हूँ। ये मेरे भाई सुनील कुमार प्रतापगढ़ जिले के मंडल अधिकारी हैं। हमें सर से मिलना था। क्यो वो घर पर हैं।

पापा- हाँ। आइए बैठिए। मैं बुलाता हूँ उसे।

इतना कहकर पापा ने काजल को कुर्सियाँ लाने के लिए कहा। काजल दौड़कर घर में गई और कुर्सियाँ लेकर आई। तबतक महिमा ने मुझे बता दिया था कि बाहर पुलिस आई है और एक लड़की मुझे पूछ रही है। मुझे भी समझ में नहीं आ रहा था कि मैंने ऐसा कौन सा काम कर दिया है जिसके लिए पुलिस को मेरे घर आना पड़ा। मैं भी अपने कमरे से बाहर आया। तो देखा कि एक लड़का और एक लड़की बाहर कुर्सी पर बैठे हुए पापा से बातें कर रहे हैं। मैं उनके पास पहुँच गया और बोला।

मैं- हाँ मैडम जी। मैं नयन हूँ आपको कुछ काम था क्या मुझसे।

मेरी आवाज सुनकर लड़की कुर्सी से उठी और मेरे पैर छूने लगी। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि ये लड़की ऐसा क्यो कर रही है। मै थोड़ा पीछे हटकर उस लड़की को अपना पैर छूने से रोका और कहा।

मैं- ये आप क्या कर रही हैं मैडम।

लड़की- मैं आपकी मैडम नहीं हूँ सर। मैं वही कर रही हूँ जो एक विद्यार्थी को शिक्षक के साथ करना चाहिए।

उसकी बात सुनकर मेरे साथ अम्मा पापा भी उसे देखने लगे। मैंने उसके कहा।

मैं- ये क्या बोल रही हैं आप मैडम। आप इतनी बड़ी अधिकारी होकर मेरे पैर छू रही हैं। लोग तो आपके पैर छूते हैं। और आप मेरी विद्यार्थी। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि आप क्या कह रही हैं।

इसी बीच काजल ने सबके लिए जलपान लाकर मेज पर रख दिया और अंदर चली गई। लड़की ने कहा।

लड़की- सर मैं दिव्या। आपको शायद याद नहीं है। मैं .................... कोचिंग में कक्षा 12 में पढ़ती थी। आगे वाली सीट पर बैठती थी। जिसने अपनी मर्यादा भूलकर गलत हरकत की थी तो आपने एक दिन मुझे एक छोटा लेकिन अनमोल सा ज्ञान दिया था। कुछ याद आया आपको सर जी। मैं वही दिव्या हूँ।

लड़की की बात सुनकर मुझे वो वाकया याद आ गया जब मैंने एक लड़की को अपने अंग दिखाने के कारण अकेले में बैठाकर समझाया था। मुझे उसको इस रूप में देखकर बहुत खुशी हुई। मुझे खुशी इस बात की हुई कि उसने मेरी बात को इतनी संजीदगी से लिए और आज इस मुकाम पर पहुँच गई है। मैंने उससे कहा।

मैं- दिव्या तुम। मुझे से विश्वास ही नहीं हो रहा है कि तुम मुझसे मिलने के लिए आओगी। वो भी इस रूप में। मुझे सच में बहुत खुशी हो रही है तुम्हें अफसर के रूप में देखकर।

दिव्या- मेरी इस सफलता के पीछे सबसे बड़ा हाथ आपका है सर जी। आज मैं जिस मुकाम पर पहुँची हूँ वो आपके कारण ही संभव हुआ है।

मैं- नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है। ये सब तुम्हारी मेहनत और लगन का परिणाम है। तुमने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मेहनत की और अपने लक्ष्य को प्राप्त किया।

दिव्या- ये सच है सर जी कि मैंने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मेहनत की है, लेकिन मुझे यह मेहनत करने के लिए आपने ही प्रोत्साहित किया था। जब मेरे कदम भटक गए थे तो आप ने ही मेरे भटके कदम को सही राह पर लाने की कोशिश की थी। आपने मुझको समझाया था कि मुझे वो काम करना चाहिए जिससे मेरे माता-पिता का नाम रोशन हो, उन्हें मुझपर गर्व हो, न कि मेरी काम से उनके शर्मिंदगी महसूस हो। मैंने आपकी उस बात को गाँठ बाँध लिया और उसके बाद मैंने कोई की गलत काम नहीं किया और अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर केंद्रित किया। और उसी का नतीजा है कि आज मै इस मुकाम पर हूँ। अगर आपने उस दिन मेरे भटकने में मेरा साथ दिया होता तो आज मैं यहाँ तक कभी नहीं पहुँच पाती। इसलिए मेरी इस सफलता का श्रेय आपको जाता है सर जी। अब तो आप मुझे अपना आशीर्वाद देंगे न कि मैं भविष्य में और ऊँचाइयों को छुऊँ।

मैं- अब तुम बड़ी हो गई हो। और एक अफसर भी बन गई हो। तुम अपने कनिष्ठ अधिकारियों/कर्मचारियों के सामने मेरे पैर छुओ। ये अच्छा नहीं लगता।

ये बात मैंने उसके साथ आए हुए पुलिसकर्मियों को देखकर कही थी। जो हम लोगों की तरफ ही देख रहे थे। मेरी बात सुनकर दिव्या ने कहा।

दिव्या- मैं चाहे जितनी बड़ी हो जाऊँ और चाहे जितनी बड़ी अधिकारी बन जाऊँ। लोकिन हमेशा आपकी विद्यार्थी ही रहूँगी। और आप हमेशा मेरे गुरु रहेंगे। गुरू का स्थान सबसे बड़ा होता है। मैं अपने कनिष्ठ अधिकारियों कर्मचारियों के सामने आपके पैर छुऊँगी तो में छोटी नहीं हो जाऊँगी सर जी। बल्कि उनको भी ये संदेश मिलेगा कि माता-पिता के बाद शिक्षक ही भगवान के दूसरा रूप होता है। इसलिए आप मुझे अपने आशीर्वाद से वंचित मत करिए सर। आपका आशीर्वाद लिए बिना मैं यहाँ से नहीं जाने वाली।

दिव्या ने इतना कहकर मेरे पैर छुए। मैंने इस बार उसको नहीं रोका। मेरे पैर छूने के बाद दिव्या ने कहा।

दिव्या- बातों बातों में मैं तो भूल ही गई। ये मेरे भाई हैं सुनील कुमार। ये प्रतापगढ़ में सर्किल अधिकारी (Circle Officer City) के पद पर हैं। मैं इनसे कुछ नहीं छुपाती। जब मैंने भइया को बताया कि मैं आपसे मिलने आ रही हूँ तो ये भी जिद करके मेरे साथ में आ गए। ये भी आपसे मिलना चाहते थे।

दिव्या के बताने पर उसने भी मेरे पैरे छूने चाहे तो मैंने उसे मना करते हुए कहा।

मैं- देखो मिस्टर सुनील। दिव्या मेरी विद्यार्थी है तो उसने मेरे पैर छुए। लेकिन तुम मेरे विद्यार्थी नहीं हो तो तुम मुझसे गले मिलो।

मैं और सुनील आपस में गले मिले। फिर दिव्या ने मुझसे कहा।

दिव्या- सर मैंने सुना है कि आपकी शादी भी हो गई है। तो क्या मुझे मैडम से नहीं मिलाएँगे।

मैं- अरे क्यों नहीं। (अम्मा पापा की तरफ इशारा करते हुए) ये मेरी अम्मा हैं ये मेरे पापा हैं। (महिमा और काजल को अपने पास बुलाकर), ये मेरी पत्नी महिमा और ये मेरी बहन काजल, और ये मेरा प्यारा बेटा अंश है।

दिव्या और सुनील ने मेरे अम्मा और पापा के पाँव छुए। दिव्या ने महिमा के पैर छुए और काजल को अपने गले लगाया और मेरे बेटे को अपनी गोद में उठाकर दुलार किया। सुनील ने महिमा और काजल को नमस्ते किया।कुछ देर बातचीत करने के बाद मैंने दिव्या से पूछा।

मैं- दिव्या। तुम्हें मेरे घर का पता कैसे मिला। तुम कोचिंग गई थी क्या।

दिव्या- हाँ सर। मैं कोचिंग गई थी। नित्या मैडम से मिली थी तो उन्होंने बताया कि आपकी शादी हो गई है। फिर कोचिंग के रिकॉर्ड से आपका पता मिल गया। मुझे तो लगता था कि आपका घर ढ़ूढ़ने में परेशानी होगी, लेकिन यहाँ तो मुख्य सड़क पर ही आपके बारे में सब पता चल गया। आपकी कोचिंग के कारण आपको सभी जानते हैं। आप बहुत ही अच्छा काम कर रहे हैं। एक तरह से ये भी समाज सेवा ही है।

पापा- ये इसका सपना था बेटी, लेकिन नौकरी लग जाने के बाद इसके सपने को मेरी बहू ने साकार किया है। जिसमें इसके दोस्तों ने बहुत साथ दिया इसका। मेरे बेटे और बहू ने मेरा सिर गर्व से ऊँचा कर दिया है।

दिव्या- सर हैं ही ऐसे। सर की संगत में जो भी रहेगा उसका भला ही होगा। जिसके पास सर जैसा बेटा हो उसका सिर कभी नहीं झुक सकता चाचा जी। आप से एक निवेदन है चाचा जी अगर आप बुरा न मानें तो।

पापा- कहो न बेटी। इसमें बुरा मानने वाली कौन सी बात है।

दिव्या- मुझे भूख लगी है। तो क्या मैं आपके घर पर खाना खा सकती हूँ। प्लीज।

दिव्या ने ये बात इतनी मासूम सी शक्ल बनाकर कही कि हम लोगों के चेहरे पर मुस्कान आ गई। पापा ने कहा।

पापा- क्यों नहीं बेटी। तुम सभी लोग खाना खाकर ही जाना घर। मैं अभी खाना बनवाता हूँ तुम लोगों के लिए।

इतना कहकह पापा ने महिमा और काजल को सबके लिए खाना बनाने के लिए कहा। दिव्या भी जिद करके महिमा और काजल के साथ रसोईघर में चली गई। सबने मिलकर खाना बनाया। उसके बाद दिव्या, सुनील और उसके उसके साथ जो पुलिस वाले आए थे। सबने खाना खाया। खाना खाने के बाद दिव्या और उसका भाई हम लोगों के विदा लेकर चले गए। उनके जाने के बाद पापा ने कहा।

पापा- मुझे तुमपर बहुत गर्व है बेटा। तुमने उस समय जो किया इस बच्ची के साथ। उसे सुनकर मुझे फक्र महसूस होता है कि मैंने तुझे कभी गलत संस्कार नहीं दिए थे। ये भी प्यार को एक स्वरूप है बेटा। जिसके साथ जैसा व्यवहार और प्यार दिखाओगे। देर-सबेर उसका फल भी तुम्हें जरूर मिलेगा। इस बात को हमेशा याद रखना।

मैं- जी पापा जरूर।

इसी तरह दिन गुजरने लगे। काजल भी अब शादी योग्य हो गई थी 23-24 वर्ष की उम्र हो गई थी। पापा ने जान पहचान वालों से अच्छे रिश्ते के बारे में बोल दिया था। दिव्या को मेरे यहाँ आए हुए दस दिन ही हुए थे एक मैं नौकरी से घर पहुंचा ही था और हाथ मुँह धोकर बैठकर चाय की चुस्कियाँ ले रहा था। अम्मा और पापा भी साथ में बैठे थे। कि दिव्या का फोन मेरे मोबाइल पर आया।

मैं- हेलो दिव्या।

दिव्या- प्रणाम सर जी।

मै- प्रमाम। बोलो दिव्या। कुछ काम था।

दिव्या- सर एक बात कहना था आपसे।

मैं- हाँ दिव्या बोलो।

दिव्या- मुझे ये पूछना था कि आपकी बहन काजल की शादी कहीं तय हो गई है क्या।

मैं- नहीं दिव्या। अभी लड़का देख रहे हैं। अगर कहीं अच्छा लड़का मिला तो शादी कर देंगे।

दिव्या- सर अगर मैं आपसे कुछ माँगू तो आप मना तो नहीं करेंगे।

मैं- मेरे पास ऐसा क्या है दिव्या जो मैं तुम्हें दो सकता हूँ। कुछ ज्ञान था जो मैं तुम्हें पहले ही दे चुका हूँ। अब मुझे नहीं लगता कि तुम्हें उसकी जरूरत होगी। फिर भी बताओ अगर मेरे सामर्थ्य में होगा तो मैं मना नहीं करूँगा।

दिव्या- वो आपके सामर्थ्य में ही तभी तो मैं आपसे माँग रही हूँ।

मैं- बताओ दिव्या। मैं पूरी कोशिश करूँगा।

दिव्या- सर मैं आपकी बहन काजल को अपनी भाभी बनाना चाहती हूँ। अपने भाई के लिए आपकी बहन का हाथ माँग रही हूँ।

मैं- क्या। ये क्या बोल रही हो तुम। तुमको कुछ समझ में आ रहा है। कि तुम क्या माँग रही हो।

दिव्या- हाँ मुझे पता है कि मैं क्या बोल रही हूँ। मेरे भैया को काजल पसंद है। भैया ने खुद मुझसे कहा है। और भैया ने मम्मी पापा से भी बात कर ली है। उनको भी कोई आपत्ति नहीं है। और आप भी तो काजल के लिए रिश्ता देख ही रहे हैं। तो इसमें बुराई क्या है। हाँ अगर मेरे भैया आपको अच्छे नहीं लगे तो अलग बता है।

मैं- ऐसी बात नहीं है। तुम्हारे भाई में कोई कमी नहीं है। लेकिन कहाँ तुम लोग और कहाँ हम। जमीन आसमान का अंतर है हम दोनों की हैसियत में। और हमारे पास इतना पैसा भी नहीं है कि हम इतनी अच्छी तरह से काजल की शादी कर पाएँगे तुम्हारे भाई के साथ। समझ रही हो न कि मैं क्या कहना चाहता हूँ। और शादी की बात घर के बड़े बुजुर्गों पर छोड़ देनी चाहिए।

दिव्या- आप जो कहना चाहते हैं वो मैं समझ रही हूँ सर जी। लेकिन मैं आपको बता दूँ कि आपकी हैंसियत मुझसे बहुत ज्यादा है सर। मेरी नजर में आपकी हैंसियत आपका पैसा नहीं। आपके संस्कार हैं आपके गुण हैं। और यही सब काजल के अंदर भी है। वो भी आपकी तरह गुणवान है। जिसकी कोई कीमत नहीं है। हमें दहेज में कुछ नहीं चाहिए सर जी। सारा दहेज काजल के गुणों के रूप में हमें मिल जाएगा। बस आप हाँ कर दीजिए।

मैं- देखो दिव्या मैं हाँ नहीं बोल सकता। इसके लिए पहले मुझे अपने अम्मा पापा से बात करनी पड़ेगी। अगर उनको कोई आपत्ति नहीं होगी तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। मैं अभी फोन रखता हूँ। अम्मा पापा से बात करने के बाद तुमको बताऊँगा।

इतना कहकर मैंने अपने फोन रख दिया। और अम्मा पापा को सारी बात बता दी जो दिव्या से हुई थी। अम्मा पापा को तो मानों यकीन ही नहीं हो रहा था कि इतने बड़े घर का रिश्ता खुद चलकर आया है। लेकिन पापा और अम्मा ने हाँ करने से पहले काजल की राय जाननी चाही। काजल ने कह दिया कि आप लोग जहाँ भी मेरे रिश्ता तय करेंगे मैं वहाँ शादी कर लूँगी। महिमा ने भी इस रिश्ते के लिए अपनी सहमति जता दी। अगले दिन सुबह ही मैंने दिव्या को फोन करके उसके पता लिया और अम्मा पापा को लेकर उसके घर चला गया। दोनों के अभिभावकों ने कुछ देर बात की और दोनों तरफ से रिश्ता तय हो गया। रिश्ता तय होने के बाद मैंने अपने सभी दोस्तो को इस बारे में बता दिया। सभी लोग बहुत खुश हुए। मैंने संजू और पायल को भी इसके बारे में बता दिया। समय बीतने के साथ काजल और सुनील की सगाई धूम धाम से हो गई। सारे गाँव और पास पड़ोस के गाँवों में ये चर्चा का विषय था कि एक गरीब किसान के बेटी की शादी एक मंडल अधिकारी के साथ हो रही है। कुछ को जलन हुई तो कुछ को खुशी मिली। सगाई होने के दो महीने बाद काजल और सुनील की शादी भी धूम-धाम से संपन्न हुई।

आज हमारी दोस्ती, हमारा प्यार आज सबकुछ हमारे पास था। इस प्रकार हम सब अपना अपना जीवन खुशी-खुशी बिताने लगे।




मित्रों एवं पाठकों।

ये कहानी यहीं समाप्त होती है। जैसा कि कहानी के शुरू में मैंने कहा था कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्यार का अलग-अलग मतलब होता है। हर व्यक्ति प्यार का मतलब अपने अपने हिसाब से निकालता है। किसी के लिए टूट कर प्यार करने वाले के प्यार की कोई कीमत नहीं होती तो किसी के लिए प्यार के दो मीठे बोल ही प्यार की नई इबारत लिख देता है।


मैंने इस कहानी से यही बताने का प्रयास किया है कि प्यार के कितने रंग होते हैं और हर इंसान प्यार के किसी न किसी रंग में रंगा होता है।


ये कहानी यहीं समाप्त हो गई है तो आप सभी पाठकों से जिन्होंने नियमित कहानी पढ़ी है उनसे भी और जिन्होंने मूक पाठक बनकर कहानी पढ़ी है उनसे भी मैं चाहूँगी कि आप पूरी कहानी से संबंध में अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया/टिप्पणी/समीक्षा चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक हो, जरूर दें ताकि मुझे भविष्य में आगे लिखने वाली कहानियों के संबंध में प्रेरणा मिल सके और जो भी कमियाँ इस कहानी में रह गई हैं उसे सुधारने की कोशिश कर सकूँ।


साथ में उस सभी पाठकों का धन्यवाद जिन्होंने अपनी महत्त्वपूर्ण समीक्षा देकर मुझे कहानी को लिखने के लिए प्रेरित किया, क्योंकि बिना समीक्षा के कहानी लिखने में लेखक का भी मन नहीं लगता। साथ ही ऐसे पाठकों को भी धन्यवाद जिन्होंने समय समय पर नकारात्मक टिप्पणी देकर मुझे यह अवगत कराया कि कहानी में कहाँ कहाँ गलतियाँ हो रही हैं। जिसमें मुझे सुधार करना चाहिए।



कहानी खत्म करने से पहले प्यार को लेकर मैंने चंद पंक्तियाँ लिखी हैं। जिसे आप भी एक बार पढ़ें और आनंद लें।

प्यार के कितने फलसफें हैं जिसे बयान नहीं किया जा सकता।

कितने ही अनकहे किस्से हैं जिसे जबान नहीं दिया जा सकता।

तुम्हारे प्रेम में गर हवस है, कपट है, धोखा है, छल है।

तो कसमें कितनी भी खाओ प्यार की सम्मान नहीं किया जा सकता।




किसी को पा लेना ही प्यार नहीं, किसी को खो कर भी प्यार किया जाता है।

हमेशा हँसना ही नहीं सिखाता, कभी रो कर भी प्यार किया जाता है।

प्यार करने के लिए चाहिए सच्ची नीयत, पवित्र मन और खूबसूरत एहसास।

प्यार जीते जी नहीं मिलता कभी कभी, गहरी नींद में सो कर भी प्यार किया जाता है।




प्यार मन के एहसासों से होता है।

प्यार किसी के जज्बातों से होता है।

प्यार के लिए जरूरी नहीं रोज मिलना।


प्यार तो चंद मुलाकातों से होता है।



प्यार में साथ जीने मरने की कसमें हों ये जरूरी नहीं।


हमेशा साथ रहने की भी कसमें हों ये जरूरी नहीं।

कभी कभी प्यार जुदाई भी माँगता है दोस्तों

प्यार किया हो तो शादी की रश्में हों ये जरूरी नहीं।




किसी को प्यार करके बिस्तर पर सुला दो तो वो प्यार नहीं रहता।

वो तुम्हें याद करें और तुम उसे भुला दो तो वो प्यार नहीं रहता।

प्यार एक दूसरे को टूट कर किया जाए ये जरूरी नहीं।

मगर किसी को हँसा कर फिर उसे रूला दो तो वो प्यार नहीं रहता।




पूर्ण/समाप्त/खत्म
बहुत सुंदर कहानी लिखी आपने माही जी।

स्त्री के सारे रूपों को दिखा दिया आपने इस कहानी में।

नैना और अभिषेक की मां सम्पूर्ण रूप से मां के किरदार में थी, तो वहीं काजल एक सच्ची बहन, पायल ने पहले जहां एक जलनखोर युवती के रूप में थी तो वहीं बाद में वो भी एक सच्ची बहन बनी।

तनु और वर्षा त्रिया चरित्र दिखा रहीं थी, वही अनामिका पूरी तरह से बदचलन स्त्री थी।

रेशमा और रश्मि संपूर्ण मित्र, तो वहीं पल्लवी मित्र के साथ सहगामिनी भी। महिमा ने तो प्रेम का असली रूप दिखाया सबको।

बस मुझे एक कमी खली। अनामिका और अभिषेक का अयोध्या में मिलने पर कोई भी भावना व्यक्त न करना, और वापसी में भी अभिषेक द्वारा उसका कोई जिक्र न करना।
 

chantu

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puri kahani pad ke aakhon me aashun aa gye
 
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Mahi Maurya

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वाह क्या प्लान बना पायल के साथ मिल कर।

बढ़िया कहानी माही जी
धन्यवाद आपका मान्यवर।
 
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Mahi Maurya

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बहुत सुंदर तरीके से इस भाग को लिखा है आने माही जी, सच में मां बाप हर रिश्ते में वर्तमान को ही तजरीह देंगे, पर कम से कम कुछ समय तो दे ही सकते थे अभिषेक और खुशबू को, शायद अभिषेक का वर्तमान और उज्ज्वल हो जाता।
आपकी बात बिल्कुल सही है कि खुश्बू के पापा को अभिषेक को समय देना चाहिए था, लेकिन वो भी हर बाप की तरह अपनी बेटी का भविष्य ही उस समय सोचे थे। ये अलग की बात है कि अभिषेक में उन्हें कोई कमी नजर नहीं आई थी।
 
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Mahi Maurya

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कहानी इतनी ज्यादा भावुकतापूर्ण नहीं है। फिर भी आपको पसंद आई उसके लिए धन्यवाद आपका मान्यवर।
 
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