चौथा भाग
पापा को मालूम था कि हम दोनों परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाएंगे, इसी खुशी में उन्होंने 1 किलो चुटहिवा जलेबी (इलाहाबाद में गांव में गुड़ की जलेबी को इस नाम से बोलते हैं) लेकर आए थे। मेरी अम्मा ने जलेबी एक थाली में निकालकर लाई और हम सब ने साथ में जलेबी खाने लगे। जलेबी खाने के दौरान मैंने अभिषेक के घर से मेरे घर तक जो वाकया घटा था उसे बात दिया, जिसे सुनकर सब हंसने लगे।
जलेबी खाने के बाद अम्मा खाना बनाने के लिए चली गई। मैं और अभिषेक पापा के पास बैठे रहे तभी काजल ने कहा।
काजल- भैया आप दोनों को कितने अंक मिले हैं। और किस विषय में ज्यादा मिले हैं।
काजल की बात सुनकर मैंने और अभिषेक दोबारा अपना परिणाम वाली वेबसाइट पर खोली। सबसे पहले अभिषेक ने अपना अनुक्रमांक डाला तो उसका अंक खुलकर सामने आ गया। उसको 600 में से 404 अंक प्राप्त हुए थे। अंग्रेजी और गणित विषय में उसे डिक्टेनसन(75 से ज्यादा अंक) मिला था। विज्ञान और हिंदी में उसके 60 से कम अंक आए थे।
उसके बाद अभिषेक मेरा अनुक्रमांक डाला और बोला।
अभिषेक- अरे भाई तेरा तो फिर नहीं दिख रहा है।
मैं- अब न तू पिटने वाला है मुझसे। सच बोल रहा हूं मैं। तुझे एक बार में संतुष्टि नहीं मिली। अब ज्यादा नाटक मत कर और ठीक से देख।
अभिषेक- अरे यार में तो मज़ाक कर रहा था।
फिर अभिषेक में मेरा अंक देखा। मुझे 600 में 402 अंक प्राप्त हुए थे। मुझे गणित और हिंदी विषय मे डिक्टेनसन मिला था। विज्ञान में 58 अंक और अंग्रेजों की भाषा यानी कि अंग्रेज़ी में 48 अंक प्राप्त हुए थे।
हम दोनों अपने अंक देखकर बहुत खुश हुए, मेरा अंग्रेजी से 36 का आँकड़ा था तो मैं 48 अंक पाकर भी खुश था। हम दोनों के अंक देखकर पापा ने कहा।
पापा- तुम दोनों को अपने कमजोर विषयों पर ध्यान देना पड़ेगा। उस पर जितनी जल्दी ध्यान दोगे उतना अच्छा होगा, क्योंकि आने वाले समय में जीवन के हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। सरकारी नौकरियों के लिए हिंदी और अंग्रेज़ी विषय बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। इसलिए अभी से तुम दोनों इन विषयों पर ज्यादा ध्यान देना शुरू कर दो।
पापा की बात सुनकर हम दोनों ने अपनी सहमति जता दी। काजल ने बताया कि खाना बन गया है तो हम लोग जाकर बोरा बिछाकर जमीन में खाने के लिए बैठ गए। अम्मा ने पालक का साग और कचौड़ी बनाई थी। इसके साथ मीठे में खीर भी बनाई थी। फिर सब लोगों ने साथ में खाना खाया। खाना समाप्त होने से पहले अम्मा ने रसगुल्ला दिया सबको खाने के लिए। मैंने रसगुल्ला देखकर उसके बारे में पूछा तो पता चला की पापा जलेबी के साथ रसगुल्ला भी ले कर आए थे।
हम सब ने खाना खाया और सोने की तैयारी करने लगे। मेरा घर ज्यादा बड़ा नहीं था। बरामदे के समान 3 कमरे बने हुए थे। इन कमरों में बस सामने दरवाज़ा था। पहले वाले कमरे के कोने में खेती से संबंधित समान रखा गया था। एक में बक्सा रखा गया था कपड़ा रखने के लिए। और कुछ सामान थे जो उनमे रखे गए थे। हम सब उसी में सोते थे। मैं और अभिषेक एक चारपाई पर लेट गए। पापा एक चारपाई पर और काजल कर अम्मा एक चारपाई पर लेट गए। थोड़े देर बाद हमें नींदा गई।
सुबह सबसे पहले हम दोनों की नींद खुली तो हम चल दिये फ्रेश होने के लिए नहर की ओर। मेरे गांव के पास से एक नहे बहती थी। ऐसा नहीं है कि मेरे घर शौचालय नहीं है। प्रधानमंत्री की शौचालय योजना के अंतर्गत ग्राम प्रधान ने मेरे घर भी शौचालय बनवा दिया था, लेकिन मैं उसका उपयोग बहुत विषम परिस्थितियों में करता था, क्योंकि जो मज़ा नहर के किनारे आता था, ठंडी ठंडी हवा, नहर का ठंडा ठंडा पानी और सुबह का घूमना हो जाता था। वो मज़ा घर में बने शौचालय में कहां। इसका मज़ा तो वही जानते हैं जो गांव के रहने वाले हैं और जिनके गांव के आस- पास नहर हो और वहां वो शौच के लिए जाते हैं। हमारे गांव से कुछ ही दूरी पर नहर बहती थी। जिसमें गांव के अधिकतर लोग सुबह और शाम शौच के लिए जाते थे।
(नोट- मैं बाहर शौच के लिए लोगों को इस कहानी के माध्यम से प्रेरित नहीं कर रही हूँ। बस कहानी की मांग के अनुसार इसे यहां लिख रही हूँ)
हम लोग नहर पर पहुंच कर एक अच्छी जगह देखकर बैठ गए। शौच करने के बाद नहर के पानी से अपने को साफ किया हम दोनों ने और घर की तरफ चल दिए। नहर की पुलिया पर हमें महेश मिल गया, जो मेरे बगल वाले गांव में रहता था और हम लोगों के साथ ही पढ़ता था।
महेश- अरे नूनू भाई क्या हाल हैं आपके। बहुत दिन बाद नज़र आए। सब खैरियत तो है।
मैं- साले भों... के तुझे कितनी बार कहा है कि मेरा नाम नयन है। तो तू मुझे नूनू क्यों बोलता है। ठीक से नाम लिया कर मेरा।
महेश- अबे तू जानता है कि मैं तुझे नूनू ही बुलाऊंगा। फिर भी तू हर बार नाराज़ हो जाता है। अच्छा ये सब छोड़ ये बता की कल परिणाम आया। तुम दोनों के कितने अंक प्राप्त हुए हैं।
मैं- हम दोनों तो प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए हैं। मेरे 402 अंक आए हैं और अभिषेक के 404 अंक आए हैं। तुम अपना बताओ।
महेश- अबे पूछो मत इन सालों कॉपी जांचने वालों के ऊपर बहुत गुस्सा आ रहा है। इन्ही की वजह से मैं द्वितीय श्रेणी में पास हुआ। मेरा बस चले तो सालों को पटक पटक कर मरूं। पढ़ाई में इतने अच्छे खासे लड़के को द्वितीय श्रेणी में पास किया।
अभिषेक- अबे ये लड़कियों की तरह रोना बन्द कर और बात क्या है ये बता।
महेश- अबे क्या बताऊँ 600 में से 359 अंक प्राप्त हुए हैं। 1 अंक से प्रथम आने से वंचित रह गया। अगर कॉपी जांचने वाले मास्टर 1 अंक अगर ज्यादा दे देते तो उनका क्या बिगड़ जाता। उन लोगों ने मेरे भविष्य से खिलवाड़ किया है भगवान उन्हें कभी माफ नहीं करेगा।
मैं- तेरे साथ तो बहुत बुरा हुआ भाई। बस 1 अंक से तू द्वितीय स्थान पर रहा। चल कोई बात नहीं आगे से और मेहनत करना। ताकि 1 अंक वाली गुंजाइश ही न रहे।
महेश- सही कहा तुमने यार अब शोक मनाने से कुछ मिलने वाला तो है नहीं। मुझे आगे की तरफ ध्यान देना चाहिए। अच्छा एक बात बताओ। उसी स्कूल में पढ़ोगे या किसी दूसरी स्कूल में पढ़ने का विचार है।
अभिषेक- कहीं और क्यों जाएंगे भाई। इतनी अच्छी पढ़ाई होती है वहां तो 12वीं तक तो वहीं पढ़ेंगे। उसके बाद देखते हैं कि क्या करना है।
महेश- ठीक है फिर अब मैं चलता हूँ बाद में मिलते हैं।
इतना कहकर महेश अपने गांव की तरफ चल पड़ा। उसके जाने के बाद मैं और अभिषेक भी अपने घर आ गए। घर आकर हमने दातून से अपने दाँत साफ किये और चारपाई पर बैठ गए। अम्मा ने बताया कि पापा किसी जरूरी काम से बाहर गए हुए हैं फिर अम्मा ने दो थाली में कलेवा लाकर हम दोनों को खाने के लिए दिया (रात में बचे हुए भोजन को अगर सुबह खाते हैं नाश्ते के रूप में, तो गांव में उसे कलेवा कहते हैं) मैंने और अभिषेक ने कलेवा खाया और हाथ मुंह धोकर अम्मा से कहा।
मैं- अम्मा मैं अभिषेक को उसके घर छोड़ने जा रहा हूँ। मुझे लौटने में देर हो जाएगी तो आप लोग खाना खा लेना। और पापा से भी बता देना कि मैं अभिषेक के यहां गया हूँ।
अम्मा को बताकर मैंने अपनी पंचर साईकिल निकली और अभिषेक के साथ पैदल ही चल पड़ा। अभी हम कुछ ही दूर गए थे कि महेश के गांव की दो हमउम्र लड़कियां आती हुई दिखाई दी उन्हें देखकर अभिषेक बोला।
अभिषेक- अबे नयन देख तो। क्या लड़कियां हैं यार। इतनी खूबसूरत हैं दोनों। विश्वास नहीं होता कि गांव में भी इतनी खूबसूरत लड़कियां होती हैं। मेरे मन इनसे बात करने का हो रहा है। क्या बोलता है तू बात करूँ।
मैं- साले पागल है क्या। ऐसा सोचना भी मत। वो मुझे पहचानती हैं खामखाह तेरी वजह से मेरी फजीहत हो जानी है।
अभिषेक- कुछ नहीं होगा यार। मैं सब संभाल लूंगा। इन्हें देखकर मन करता है कि कोई एक भी इनमें से पट जाए तो जिंदगी बन जाए। तो रुक मैं बात करता हूँ उनसे।
मैं- साले तू तो मरेगा और साथ में मुझे भी मरवाएगा। जा तुझे पीटने का बहुत शौक है न। बाद में मुझे मत कहना।
मेरी बात को अनसुना कर उन लड़कियों के पास गया और उनसे बोला।
अभिषेक- हाय ब्यूटीफुल। कैसी हो।
उन लड़कियों ने कोई जवाब नहीं दिया। तो अभिषेक को पता नहीं क्या सूझा उसने उन लड़कियों पर एक शायरी कर दी।
आपकी आंखों में सुरमा लगा है ऐसे।
जैसे चाकू पर धार लगाई हो किसी ने।।
उसकी बात सुनकर उनमें से एक लड़की ने कहा।
लड़की- हो गया तुम्हारा, अब जाते हो यहां से या चाकू की धार भी देखनी है। पता नहीं कहाँ कहाँ के ऐसे लोगों को दोस्त बना लेते हैं नयन भैया। अगर तुम उनके साथ न होते तो जिस चाकू पर धार लगाई है किसी ने उसी चाकू से अभी तुमपर मैं धार उस जगह धार लगा देती। कि जिंदगी भर ये शायरी याद रखते। चल भाग यहां से।
लड़की की बात सुनकर अभिषेक अपना से मुंह लेकर मेरे पास आया और बोला।
अभिषेक- चल भाई यहां से। ये अपने लायक नहीं है। कहाँ तेरा ये भाई इतना सीधा सादा और कहां वो इतनी तेज तर्रार।
उसकी बात सुनकर मैं मुस्कुराने लगा। और सोचने लगा कि जब अंगूर खट्टे हों तो अपने लायक होते ही नहीं हैं।
उसके बाद हम दोनों पंचर ठीक करवाने साईकिल की दुकान पर चले।
इसके आगे की कहानी अगले भाग में।