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Fantasy क्या यही प्यार है

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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बहुत बहुत धन्यवाद आपका महोदय की आपने शुरू से लेकर अंत कर अपनी इतनी उपयोगी समीक्षा से इस कहानी को सुशोभित किया। इस तरह की प्रेम कहानी मैं फिर से शुरू करूँगी जो अभी जो कहानी चल रही है उसके बाद लिखूँगी।। तब तक के लिए अभी वाली कहानी का आनंद उठा सकते हैं।।

🙏🙏🙏🏽🙏🏽🙏🏼🙏🏼
Aaj kal waqt hi nahi mil pa raha likhne padhne ko. Apni story ke update likhne ka bhi theek se time nahi milta. Khair kisi tarah to manage karna hi padega,,,,:dazed:

By the way, Kya yahi pyaar hai jaisi story complete karne ke baad incest aur adultery likhne ka khayaal kaise aaya,,,,:D
 

Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
Supreme
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Aaj kal waqt hi nahi mil pa raha likhne padhne ko. Apni story ke update likhne ka bhi theek se time nahi milta. Khair kisi tarah to manage karna hi padega,,,,:dazed:
आपका जब भी मन हो या जब भी आपके पास समय हो तब आप कहानी पढ़ सकते हैं महोदय। आपकी कहानी पर भी हमको सिद्दत से प्रतीक्षा है अगले भाग की।।
By the way, Kya yahi pyaar hai jaisi story complete karne ke baad incest aur adultery likhne ka khayaal kaise aaya,,,,:D
बात ये है कि मैंने बहुत पहले ही बोल दिया था कि क्या यही प्यार है के बाद तुम्हारे लिए और उसके बाद बाप का माल लिखेंगे।

तुम्हारे लिए एक रोमांटिक प्रेम कहानी के साथ साथ सस्पेन्स और थ्रिल वाली कहानी है जिसे क्या यही प्यार है के बाद हम लिखने वाले थे, उस कहानी का मैने 25 भाग लिख लिया था जो हमारे कार्यालय के कम्प्यूटर में था, इस कहानी के खत्म होने से एक दिन पहले ही कार्यालय का कम्प्यूटर फुससससस हो गया। लॉक डाउन की वजह से देरी से बनाने वाला आया। जब उसने उसे चेक किया तो हार्ड डिस्क खराब हो गयी थी। मतलब तुम्हारे लिए का 25 भाग काम से गया। उस कहानी को दोबारा लिखने का मन नहीं था मेरा उस समय। इसलिए मैंने ये कहानी शुरू कर दी। इस कहानी के बाद कहानी तुम्हारे लिए लिखेंगे।।

बस यही बाप का माल शुरू करने की दर्द भरी दास्तान है हमारी। पढ़कर आपकी आंखों में भी आँसू आ जाएंगे।🤓🤓🤓🤓🤓😜😜😜🤣🤣🤣🤣
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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बस यही बाप का माल शुरू करने की दर्द भरी दास्तान है हमारी। पढ़कर आपकी आंखों में भी आँसू आ जाएंगे।🤓🤓🤓🤓🤓😜😜😜🤣🤣🤣🤣
:lotpot:
Yakeenan padh kar aankho me aansu aa gaye,,,,:lol:
 

Destiny

Will Change With Time
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नमस्कार पाठकों और मित्रों

आप सब ने प्यार के बारे में सुना ही होगा। प्यार किसी के जीवन को खुशियों से भर देता है तो किसी का जीवन बरबाद कर देता है। प्यार में कोई अपने प्यार को दुआ देता है तो कोई प्यार को बद्दुआ देता है। कोई अपने प्यार के लिए दुनिया से टकरा जाता है तो कोई दुनिया से डरकर अपने प्यार को छोड़ देता है। किसी के लिए उनके प्यार जीवन भर की तपस्या है तो किसी के लिए प्यार महज एक खेल है। कुछ लोग दुनिया में ऐसे हैं जो प्यार को मजाक समझते हैं लोगों की भावनाओं के साथ खेलने में उनको मजा आता है। उनके लिए प्यार अपनी जिस्म की भूख मिटाने का एक आसान साधन जो वो किसी लड़के या लड़की को प्यार का झाँसा देकर, कसमें वादें करके अपनी इच्छा पूरी करते हैं।

ये कहानी भी प्यार और धोखे पर आधारित है। कहानी ज्यादा लंबी नहीं होगी, लेकिन जितनी भी होगी उतने में ही मैं कोशिश करूँगी की पाठकों को भरपूर आनन्द मिले।


तो पाठकों पहले भाग की प्रतीक्षा कीजिए और साथ बने रहिए।

प्यार बदलते समय के साथ अपग्रेड हों गया हैं। पहले प्यार दो दिलों का, दो आत्माओं का और दो विपरीत लिंगों के भावनाओं का मेल हुआ करता था। लेकिन प्यार का अपग्रेड वर्जन जो आकर्षण से शुरू होकर दो जिस्मों के मेल तक ही सीमित रह गया।

कहानी का आंशिक विवरण बहुत शानदार हैं।
 

Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
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प्यार बदलते समय के साथ अपग्रेड हों गया हैं। पहले प्यार दो दिलों का, दो आत्माओं का और दो विपरीत लिंगों के भावनाओं का मेल हुआ करता था। लेकिन प्यार का अपग्रेड वर्जन जो आकर्षण से शुरू होकर दो जिस्मों के मेल तक ही सीमित रह गया।

कहानी का आंशिक विवरण बहुत शानदार हैं।
धन्यवाद आपका महोदय,

सही कहा आपने आजकल प्यार का नया तरीका आ गया यही आजकल फैशन में है। युवा पीढ़ी इसी के पीछे भाग रही है।।

साथ बने रहिए।।
 
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Destiny

Will Change With Time
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चौथा भाग


पापा को मालूम था कि हम दोनों परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाएंगे, इसी खुशी में उन्होंने 1 किलो चुटहिवा जलेबी (इलाहाबाद में गांव में गुड़ की जलेबी को इस नाम से बोलते हैं) लेकर आए थे। मेरी अम्मा ने जलेबी एक थाली में निकालकर लाई और हम सब ने साथ में जलेबी खाने लगे। जलेबी खाने के दौरान मैंने अभिषेक के घर से मेरे घर तक जो वाकया घटा था उसे बात दिया, जिसे सुनकर सब हंसने लगे।

जलेबी खाने के बाद अम्मा खाना बनाने के लिए चली गई। मैं और अभिषेक पापा के पास बैठे रहे तभी काजल ने कहा।

काजल- भैया आप दोनों को कितने अंक मिले हैं। और किस विषय में ज्यादा मिले हैं।

काजल की बात सुनकर मैंने और अभिषेक दोबारा अपना परिणाम वाली वेबसाइट पर खोली। सबसे पहले अभिषेक ने अपना अनुक्रमांक डाला तो उसका अंक खुलकर सामने आ गया। उसको 600 में से 404 अंक प्राप्त हुए थे। अंग्रेजी और गणित विषय में उसे डिक्टेनसन(75 से ज्यादा अंक) मिला था। विज्ञान और हिंदी में उसके 60 से कम अंक आए थे।

उसके बाद अभिषेक मेरा अनुक्रमांक डाला और बोला।

अभिषेक- अरे भाई तेरा तो फिर नहीं दिख रहा है।

मैं- अब न तू पिटने वाला है मुझसे। सच बोल रहा हूं मैं। तुझे एक बार में संतुष्टि नहीं मिली। अब ज्यादा नाटक मत कर और ठीक से देख।

अभिषेक- अरे यार में तो मज़ाक कर रहा था।

फिर अभिषेक में मेरा अंक देखा। मुझे 600 में 402 अंक प्राप्त हुए थे। मुझे गणित और हिंदी विषय मे डिक्टेनसन मिला था। विज्ञान में 58 अंक और अंग्रेजों की भाषा यानी कि अंग्रेज़ी में 48 अंक प्राप्त हुए थे।

हम दोनों अपने अंक देखकर बहुत खुश हुए, मेरा अंग्रेजी से 36 का आँकड़ा था तो मैं 48 अंक पाकर भी खुश था। हम दोनों के अंक देखकर पापा ने कहा।

पापा- तुम दोनों को अपने कमजोर विषयों पर ध्यान देना पड़ेगा। उस पर जितनी जल्दी ध्यान दोगे उतना अच्छा होगा, क्योंकि आने वाले समय में जीवन के हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। सरकारी नौकरियों के लिए हिंदी और अंग्रेज़ी विषय बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। इसलिए अभी से तुम दोनों इन विषयों पर ज्यादा ध्यान देना शुरू कर दो।

पापा की बात सुनकर हम दोनों ने अपनी सहमति जता दी। काजल ने बताया कि खाना बन गया है तो हम लोग जाकर बोरा बिछाकर जमीन में खाने के लिए बैठ गए। अम्मा ने पालक का साग और कचौड़ी बनाई थी। इसके साथ मीठे में खीर भी बनाई थी। फिर सब लोगों ने साथ में खाना खाया। खाना समाप्त होने से पहले अम्मा ने रसगुल्ला दिया सबको खाने के लिए। मैंने रसगुल्ला देखकर उसके बारे में पूछा तो पता चला की पापा जलेबी के साथ रसगुल्ला भी ले कर आए थे।

हम सब ने खाना खाया और सोने की तैयारी करने लगे। मेरा घर ज्यादा बड़ा नहीं था। बरामदे के समान 3 कमरे बने हुए थे। इन कमरों में बस सामने दरवाज़ा था। पहले वाले कमरे के कोने में खेती से संबंधित समान रखा गया था। एक में बक्सा रखा गया था कपड़ा रखने के लिए। और कुछ सामान थे जो उनमे रखे गए थे। हम सब उसी में सोते थे। मैं और अभिषेक एक चारपाई पर लेट गए। पापा एक चारपाई पर और काजल कर अम्मा एक चारपाई पर लेट गए। थोड़े देर बाद हमें नींदा गई।

सुबह सबसे पहले हम दोनों की नींद खुली तो हम चल दिये फ्रेश होने के लिए नहर की ओर। मेरे गांव के पास से एक नहे बहती थी। ऐसा नहीं है कि मेरे घर शौचालय नहीं है। प्रधानमंत्री की शौचालय योजना के अंतर्गत ग्राम प्रधान ने मेरे घर भी शौचालय बनवा दिया था, लेकिन मैं उसका उपयोग बहुत विषम परिस्थितियों में करता था, क्योंकि जो मज़ा नहर के किनारे आता था, ठंडी ठंडी हवा, नहर का ठंडा ठंडा पानी और सुबह का घूमना हो जाता था। वो मज़ा घर में बने शौचालय में कहां। इसका मज़ा तो वही जानते हैं जो गांव के रहने वाले हैं और जिनके गांव के आस- पास नहर हो और वहां वो शौच के लिए जाते हैं। हमारे गांव से कुछ ही दूरी पर नहर बहती थी। जिसमें गांव के अधिकतर लोग सुबह और शाम शौच के लिए जाते थे।


(नोट- मैं बाहर शौच के लिए लोगों को इस कहानी के माध्यम से प्रेरित नहीं कर रही हूँ। बस कहानी की मांग के अनुसार इसे यहां लिख रही हूँ)

हम लोग नहर पर पहुंच कर एक अच्छी जगह देखकर बैठ गए। शौच करने के बाद नहर के पानी से अपने को साफ किया हम दोनों ने और घर की तरफ चल दिए। नहर की पुलिया पर हमें महेश मिल गया, जो मेरे बगल वाले गांव में रहता था और हम लोगों के साथ ही पढ़ता था।

महेश- अरे नूनू भाई क्या हाल हैं आपके। बहुत दिन बाद नज़र आए। सब खैरियत तो है।

मैं- साले भों... के तुझे कितनी बार कहा है कि मेरा नाम नयन है। तो तू मुझे नूनू क्यों बोलता है। ठीक से नाम लिया कर मेरा।

महेश- अबे तू जानता है कि मैं तुझे नूनू ही बुलाऊंगा। फिर भी तू हर बार नाराज़ हो जाता है। अच्छा ये सब छोड़ ये बता की कल परिणाम आया। तुम दोनों के कितने अंक प्राप्त हुए हैं।

मैं- हम दोनों तो प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए हैं। मेरे 402 अंक आए हैं और अभिषेक के 404 अंक आए हैं। तुम अपना बताओ।

महेश- अबे पूछो मत इन सालों कॉपी जांचने वालों के ऊपर बहुत गुस्सा आ रहा है। इन्ही की वजह से मैं द्वितीय श्रेणी में पास हुआ। मेरा बस चले तो सालों को पटक पटक कर मरूं। पढ़ाई में इतने अच्छे खासे लड़के को द्वितीय श्रेणी में पास किया।

अभिषेक- अबे ये लड़कियों की तरह रोना बन्द कर और बात क्या है ये बता।

महेश- अबे क्या बताऊँ 600 में से 359 अंक प्राप्त हुए हैं। 1 अंक से प्रथम आने से वंचित रह गया। अगर कॉपी जांचने वाले मास्टर 1 अंक अगर ज्यादा दे देते तो उनका क्या बिगड़ जाता। उन लोगों ने मेरे भविष्य से खिलवाड़ किया है भगवान उन्हें कभी माफ नहीं करेगा।

मैं- तेरे साथ तो बहुत बुरा हुआ भाई। बस 1 अंक से तू द्वितीय स्थान पर रहा। चल कोई बात नहीं आगे से और मेहनत करना। ताकि 1 अंक वाली गुंजाइश ही न रहे।

महेश- सही कहा तुमने यार अब शोक मनाने से कुछ मिलने वाला तो है नहीं। मुझे आगे की तरफ ध्यान देना चाहिए। अच्छा एक बात बताओ। उसी स्कूल में पढ़ोगे या किसी दूसरी स्कूल में पढ़ने का विचार है।

अभिषेक- कहीं और क्यों जाएंगे भाई। इतनी अच्छी पढ़ाई होती है वहां तो 12वीं तक तो वहीं पढ़ेंगे। उसके बाद देखते हैं कि क्या करना है।

महेश- ठीक है फिर अब मैं चलता हूँ बाद में मिलते हैं।

इतना कहकर महेश अपने गांव की तरफ चल पड़ा। उसके जाने के बाद मैं और अभिषेक भी अपने घर आ गए। घर आकर हमने दातून से अपने दाँत साफ किये और चारपाई पर बैठ गए। अम्मा ने बताया कि पापा किसी जरूरी काम से बाहर गए हुए हैं फिर अम्मा ने दो थाली में कलेवा लाकर हम दोनों को खाने के लिए दिया (रात में बचे हुए भोजन को अगर सुबह खाते हैं नाश्ते के रूप में, तो गांव में उसे कलेवा कहते हैं) मैंने और अभिषेक ने कलेवा खाया और हाथ मुंह धोकर अम्मा से कहा।

मैं- अम्मा मैं अभिषेक को उसके घर छोड़ने जा रहा हूँ। मुझे लौटने में देर हो जाएगी तो आप लोग खाना खा लेना। और पापा से भी बता देना कि मैं अभिषेक के यहां गया हूँ।

अम्मा को बताकर मैंने अपनी पंचर साईकिल निकली और अभिषेक के साथ पैदल ही चल पड़ा। अभी हम कुछ ही दूर गए थे कि महेश के गांव की दो हमउम्र लड़कियां आती हुई दिखाई दी उन्हें देखकर अभिषेक बोला।

अभिषेक- अबे नयन देख तो। क्या लड़कियां हैं यार। इतनी खूबसूरत हैं दोनों। विश्वास नहीं होता कि गांव में भी इतनी खूबसूरत लड़कियां होती हैं। मेरे मन इनसे बात करने का हो रहा है। क्या बोलता है तू बात करूँ।

मैं- साले पागल है क्या। ऐसा सोचना भी मत। वो मुझे पहचानती हैं खामखाह तेरी वजह से मेरी फजीहत हो जानी है।

अभिषेक- कुछ नहीं होगा यार। मैं सब संभाल लूंगा। इन्हें देखकर मन करता है कि कोई एक भी इनमें से पट जाए तो जिंदगी बन जाए। तो रुक मैं बात करता हूँ उनसे।

मैं- साले तू तो मरेगा और साथ में मुझे भी मरवाएगा। जा तुझे पीटने का बहुत शौक है न। बाद में मुझे मत कहना।

मेरी बात को अनसुना कर उन लड़कियों के पास गया और उनसे बोला।

अभिषेक- हाय ब्यूटीफुल। कैसी हो।

उन लड़कियों ने कोई जवाब नहीं दिया। तो अभिषेक को पता नहीं क्या सूझा उसने उन लड़कियों पर एक शायरी कर दी।


आपकी आंखों में सुरमा लगा है ऐसे।

जैसे चाकू पर धार लगाई हो किसी ने।।


उसकी बात सुनकर उनमें से एक लड़की ने कहा।

लड़की- हो गया तुम्हारा, अब जाते हो यहां से या चाकू की धार भी देखनी है। पता नहीं कहाँ कहाँ के ऐसे लोगों को दोस्त बना लेते हैं नयन भैया। अगर तुम उनके साथ न होते तो जिस चाकू पर धार लगाई है किसी ने उसी चाकू से अभी तुमपर मैं धार उस जगह धार लगा देती। कि जिंदगी भर ये शायरी याद रखते। चल भाग यहां से।

लड़की की बात सुनकर अभिषेक अपना से मुंह लेकर मेरे पास आया और बोला।

अभिषेक- चल भाई यहां से। ये अपने लायक नहीं है। कहाँ तेरा ये भाई इतना सीधा सादा और कहां वो इतनी तेज तर्रार।

उसकी बात सुनकर मैं मुस्कुराने लगा। और सोचने लगा कि जब अंगूर खट्टे हों तो अपने लायक होते ही नहीं हैं।

उसके बाद हम दोनों पंचर ठीक करवाने साईकिल की दुकान पर चले।



इसके आगे की कहानी अगले भाग में।

सुपर्ब माही जी

लड़की ने धारधर छुरी समान जीव लपलपा कर बिल्कुल सही बार किया। विचारा अभिषेक गया था खुबसूरत लङकी पटाने लेकिन खुद ही पीटने से बचाकर मुंह लटकाकर आ गया।

रात के बचे खाने को कलेवा कहते हैं आज पाता चला वरना हमारे यहां तो बसी भोजन बोलते हैं।
 

Mahi Maurya

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सुपर्ब माही जी

लड़की ने धारधर छुरी समान जीव लपलपा कर बिल्कुल सही बार किया। विचारा अभिषेक गया था खुबसूरत लङकी पटाने लेकिन खुद ही पीटने से बचाकर मुंह लटकाकर आ गया।

रात के बचे खाने को कलेवा कहते हैं आज पाता चला वरना हमारे यहां तो बसी भोजन बोलते हैं।
धन्यवाद आपका मान्यवर।।
अभिषेक तो बस मज़ा लेने गया था कि शायद इसी मज़े के चक्कर में उसका काम भी बन जाए, लेकिन लड़की ने बड़ी सफाई से उसपर ही पलटवार कर दिया।।
हमारे इलाहाबाद में तो कलेवा ही बोलते हैं। बाकी जगह का मुझे पता नहीं।।
 
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Kala Nag

Mr. X
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सच कहता हूँ माही जी यह मेरे पढ़े हुए सारे कहानियों में प्रथम है
क्यूंकि जब मैं इस फोरम में साइलेंट रीडर था तो यही प्रथम कहानी थी जो मैंने पढ़ी थी और विश्वास कीजिए यह कहानी मेरे हृदय के बहुत निकट है
 

Mahi Maurya

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सच कहता हूँ माही जी यह मेरे पढ़े हुए सारे कहानियों में प्रथम है
क्यूंकि जब मैं इस फोरम में साइलेंट रीडर था तो यही प्रथम कहानी थी जो मैंने पढ़ी थी और विश्वास कीजिए यह कहानी मेरे हृदय के बहुत निकट है
धन्यवाद आपका मान्यवर बहुत बहुत। आपको मेरी ये कहानी अच्छी लगी ये जानकर मुझे बहुत खुशी हुई।।
सच में जब ऐसी टिप्पणी से बहुत उत्साहवर्धन होता है कहानी को और भी अच्छी तरह से लिखने में।।

अगली कहानी चल रही है। आपकी टिप्पणी की प्रतीक्षा वहाँ भी है।।
 

drx prince

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पहला भाग


मैं नयन, इलाहाबाद शहर के एक छोटे से गांव का रहने वाला हूँ। मेरा गांव इलाहाबाद शहर से 35 किलोमीटर दूर पड़ता है। मैं देखने मे बहुत ज्यादा आकर्षक तो नहीं हूँ। पर ठीक ठाक हूँ। चूंकि मेरे पापा किसान हैं तो मुझे खेतों में भी बचपन से काम करना पड़ता था। इसलिए मेरा शरीर गठीला हो गया था इस समय मेरी उम्र 23 वर्ष की है। ये पूरी कहानी मेरी जुबानी ही चलेगी।

मेरे पापा श्री विनोद कुमार। मुख्य पेशा किसानी है। हमारे पास 5 बीघा खेत है जिस पर पापा खेती करते हैं आप सब को तो पता है हमारे देश में किसानों की क्या स्थिति है। किसान अपना परिवार चला ले अपने बच्चों को पढ़ा ले। बस इतनी ही कमाई होती है खेती से।

मेरी माँ नैना देवी। इन्हीं के नाम पर मेरा नाम नयन रखा गया है। एक सामान्य गृहिणी। हमारी देखभाल और घर के काम के अलावा मेरी माँ ने कभी कोई ख्वाहिश नहीं रखी।

मेरी बहन काजल। थोड़ी सी सांवली, लेकिन तीखे नैन नक्श वाली लड़की। मेरा मेरी बहन के साथ बहुत लगाव था। मैं अपनी बहन से हर बात साझा करता था। हम दोनों में सामंजस्य बहुत अच्छा था। उम्र इस समय 18 वर्ष है।

अभिषेक मेरे बचपन का मित्र और लगोटिया यार। मेरे गांव से 5 किलोमीटर दूर उसका गांव था। इसके पापा ग्रामीण बैंक में प्रबंधक के पद पर थे और घर मे पुस्तैनी जमीन भी बहुत थी लगभग 25 बीघे। तो घर में पैसों की कोई कमी नहीं थी। अभिषेक बचपन से बड़ा शरारती और मस्त मौला इंसान था। इसकी उम्र इस समय मेरे ही बराबर थी यानी कि 23 वर्ष। इसके मम्मी पापा का इस कहानी में ज्यादा भूमिका नहीं है इसलिए उनका जिक्र नहीं किया।

पायल अभिषेक की बहन। देखने में बहुत ही गोरी चिट्टी लड़की है और खूबसूरत भी है। इस कहानी में पायल की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण है। इसकी उम्र इस समय 20 वर्ष है।

ये थे कहानी के मुख्य पात्र। आगे और भी पात्र आएंगे कहानी में। तो उसी समय उनका जिक्र करूँगा।

तो जैसा मैंने बताया कि मैं शुरू से गांव में रहने वाला लड़का हूँ और मेरा बचपन गांव में ही बीता है मैं अपने माँ बाप का इकलौता बेटा हूँ तो लाड प्यार भी मुझे बहुत मिला है खासकर पापा से। मेरी प्रारंभिक शिक्षा गांव से 3 किलोमीटर दूर स्थित स्कूल में हुई थी इंटर तक की पढ़ाई मैंने गांव में की थी।

अभिषेक का घर मेरे घर से 5 किलोमीटर दूर था स्कूल से 2 किलोमीटर दूर। मेरी दोस्ती वहीं पर अभिषेक से हुई। मैं निम्न माध्यम वर्गीय परिवार से हूँ तो अभिषेक माध्यम उच्च वर्गीय परिवार से, लेकिन हमारे बीच कभी भी यह दीवार रोड़ा नहीं बनी।

मैं कहानी तब से शुरू कर रहा हूं जब मैं कक्षा 10 की परीक्षा दे चुका था।

जिस दिन परीक्षा का परिणाम घोषित होने वाला था मैं अपने घर में बैठा भगवान से अच्छे अंक से पास करने की प्रार्थना कर रहा था। चूंकि मैं पढ़ाई में औवल दर्जे का नहीं था। फिर भी अच्छा खासा था। उस समय तो मुझे थोड़ा डर भी लग रहा था ऊपर से जिस स्कूल में मेरी परीक्षा हुई थी वो हमारे क्षेत्र का जाना माना स्कूल था, इस स्कूल की एक खासियत ये थी कि यहाँ नकल बिल्कुल नहीं होती थी।

वैसे नकल किसी स्कूल में नहीं होनी चाहिए। लेकिन अगर पढ़ने वाला मेरे जैसा हो तो उसे थोड़ी सी उम्मीद रहती है कि थोड़ी बहुत मदद किसी भी बहाने मिल जाए तो अच्छे से बेड़ा पार हो जाए।

तो मैं कमरे में बैठा हुआ उत्तीर्ण होने के लिए आंख बंद भगवान से प्रार्थना कर रहा था।

मैं- हे भगवान तुम तो जानते हो मैं कैसे हूँ। मैंने पूरी निष्ठा और ईमानदारी से परीक्षा दी है। और नकल भी नहीं की। आपके होते हुए मैं नकल करने के बारे में सोच भी नहीं सकता। मुझे आप पर पूरा भरोसा है। मैं आप को अच्छी तरह जानता हूँ आप मुझे असफल होने ही नहीं देंगे और अच्छे अंक से पास करेंगे। फिर भी अगर आपके कोई आशंका हो या घूंस लेने से आप ऐसा करें तो मैं 10 किलो लड्डू चढ़ाऊँगा आपको। नहीं नहीं 10 किलो तो बहुत ज्यादा जो गया। मेरे पास तो इतने पैसे भी नहीं हैं। इस बार 1 किलो से काम चला लीजिए अगली बार पक्का 10 किलो लड्डू खिलाऊँगा आपको।

मेरे इतना बोलने के बाद मेरे कानों में एक आवाज़ सुनाई पड़ी।

वत्स। मुझे लड्डू नहीं 100 रुपए दे देना। मैं तुम्हारी मनोकामना जरूर पूरी करूँगा।

मुझे ये आवाज़ एकदम भगवान की लगी इसलिए आवाज़ सुनकर मैंने अपनी आँख खोली और इधर उधर देखने लगा। तभी मुझे फिर से वो आवाज़ सुनाई पड़ी।

अरे मूर्ख। इधर उधर क्या देख रहा है। दरवाज़े की तरफ देख मैं वहीं खड़ा हूँ।

आवाज़ सुनकर मैंने दरवाज़े की तरफ देखा तो काजल के साथ-साथ पापा हाथ में खाली बोतल लिए हंसते हुए कमरे में दाखिल हुए। पापा उसी बोतल में मुंह लगाकर बोल रहे थे जिससे उनकी आवाज़ बदली बदली लग रही थी। जैसे शोले फ़िल्म में बसन्ती को पटाने के लिए अपने धरम पाजी ने किया था ठीक वैसा ही। मुझे देखते हुए पापा हंसकर बोले।

पापा- क्यों वत्स। पहचाना अपने प्रभु को। बोलो क्या कष्ट है तुमको वत्स।

इतना कहकर पापा हंसने लगे। साथ साथ काजल भी हंसने लगी। मेरे चेहरे पर भी मुस्कुराहट दौड़ गई। मैंने नाराजगी का नाटक करते हुए पापा से कहा।

मैं- क्या पापा आप भी मेरी खिंचाई कर रहे हैं। मैं यहां इतना परेशान हूँ और आपको मज़ा आ रहा है मेरी परेशानी देखकर।

पापा- अरे नहीं नयन। ऐसा कुछ नहीं है। मुझे पता है कि तू अच्छे अंकों से पास होगा। फिर इतनी परेशानी किस बात की है तुझे। तेरे परेशान होने से परिणाम तो नहीं बदल जाएगा न। चल अब ज्यादा मत सोच। सब अच्छा ही होगा।

काजल- पापा भैया तो आपकी आवाज सुनकर एकदम चौक गए थे। भैया ने सोचा भगवान इनसे बात कर रहे हैं। ही ही ही ही

मैं- तेरी जुबान बहुत तेज़ हो गई है, और इसमें सोचने वाली बात कहां से आ गई। मेरे पापा मेरे लिए भगवान से बढ़कर हैं समझी तू। चल भाग यहां से पागल।

काजल- देखो न पापा। भैया हर समय मुझे डाँटते रहते हैं। जाओ मैं आपसे बात नहीं करूंगी।

वो रूठते हुए मुझसे बोली तो मैं उसे पकड़कर अपनी गोद में उठाते हुए उसके माथे को चूमकर बोला।

मैं- अरे तू तो नाराज़ हो गई। मैं तो मज़ाक कर रहा था तेरे साथ। भला मैं अपनी प्यारी बहन को क्यों डाटूंगा। अच्छा अब तू जा पढ़ाई कर नहीं तो कल तू भी मेरी तरह ही करने लगेगी।

मेरी बात सुनकर काजल मुंह बनाती हुई बाहर चली गई। उसके जाने के बाद मैंने पापा से कहा।

मैं- पापा, मुझे बहुत बेचैनी हो रही है अपने परीक्षा परिणाम के बारे में। मैं अच्छे अंक से पास तो हो जाऊंगा न।

पापा- अरे इसमें बेचैन होने की जरूरत नहीं है और तो अच्छे अंकों से नहीं बहुत अच्छे अंकों से पास होगा। देख लेना। ये तुम्हारे इन प्रभु का आशीर्वाद है।

पापा की बात सुनकर मैं उनके गले लग गया। फिर मुझे एकाएक कुछ याद आया तो मैंने पापा से कहा।

पापा मेरे साथ तो अभिषेक का भी परीक्षा परिणाम आएगा न। मैं तो अपने चक्कर में उसे भूल ही गया था। मैं अभी उनके पास जा रहा हूँ। परिणाम आने के बाद उसे लेकर घर आऊंगा।

इतना कहकर मैंने अपनी साइकिल उठाई और अभिषेक के घर चल पड़ा। ऐसा नहीं है कि मेरे घर में बाइक नहीं है, पापा ने हीरो कंपनी की पैशन प्रो बाइक खरीदी हुई है, लेकिन मुझे साईकिल चलना बहुत पसंद है। इसके दो कारण है। एक तो पैसे की बचत होती है जो निम्न माध्यम वर्ग के लिए बहुत जरूरी है। और दूसरा कारण है अगर आप 4-5 किलोमीटर साईकिल चला लेते हैं तो आपका अलग से कसरत करने की जरूरत नहीं रहती।

बहरहाल मैं साईकिल लेकर अभिषेक के घर की तकरफ निकल गया। आज मौसम का मिज़ाज़ भी कुछ बदला बदला लग रहा था। आखिर बदले भी क्यों न आखिर आज कितने लोगों की किस्मत जो बदलने वाली थी। अभिषेक के घर पहुंच कर मैंने उसके घर का दरवाजा खटखटाया। थोड़ी देर बाद उसकी बहन पायल ने दरवाजा खोला। उस समय पायल कक्षा 8 में पढ़ती थी और उम्र लगभग 13 वर्ष की रही होगी। लेकिन वो अपनी उम्र से ज्यादा दिखती थी। मतलब उसके शरीर का भराव उसकी उम्र की लड़कियों से अधित था।

मैंने कभी भी उसे गलत नज़र से नहीं देखा था। चूंकि अभिषेक मेरा लंगोटिया मित्र था और एक भाई की तरह था तो पायल भी मेरी बहन थी। ये मैं मानता था, लेकिन पायल के मन में क्या था ये आपको आगे पता चलेगा।

बहरहाल दरवाज़ा खोलने के बाद वो मुझे एक तक ऊपर से नीचे देखने लगी। मैंने उसे इस तरख देखते हुए देखा तो मुझे लगा कि कहीं मेरे कपड़े में कुछ लगा तो नहीं है, इसलिए मैंने अपने कपड़े को देखते हुए उससे पूछा।

मैं- क्या हुआ पायल। इसे क्या देख रही हो। मैं हूँ नयन। अभिषेक का दोस्त।

पायल- कुछ नहीं भैया। बड़े दिन बाद आए आप। आइये अंदर। अभिषेक भैया अपने कमरे में हैं।

इतना कहकर वह दरवाज़े से हट गई और मैं अंदर आते हुए सीधे अभिषेक के कमरे की तरफ चल पड़ा। पायल मुझे जाते हुए पीछे से देखती रही।



इसके आगे की कहानी अगले भाग में।
Nice updte starting achchi hai
 
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