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Incest क्या ये गलत है ? (completed)

Rakesh1999

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दूसरी तरफ मिठनपुरा में शशिकांत के घर पर बाहर से सब शांत था। पर शशिकांत के कमरे के बाहर बन्द दरवाज़े के बावजूद किसी औरत की चुदाई के कारण सिसकियां की आवाज़ निकल रही थी। कमरे के अंदर हल्का अंधेरा था, खिड़कियां बंद होने के बावजूद। कमरे की फर्श पर साड़ी साया ब्लाउज ब्रा पैंटी, पायजामा कुर्ता बिखरे हुए थे। बिस्तर पर शशिकांत लेटा हुआ था और उसके लण्ड पर कोई महिला बैठके उछल रही थी। वो अपने हाथ अपने सर के पीछे रखके अपनी लंबी काली जुल्फ़े उठाती है। वो कोई और नहीं ममता थी।

ममता-आआहहहहहह क्या मस्त हो रहे हैं हम। ऊफ़्फ़फ़फ़ आज तो दिनभर पेलवाएंगे। इतने दिन बाद मौका मिला है, लण्ड का स्वाद चखने का। हमने मज़बूरी में ये रिश्ता जोरा था, पर अब तो इसमें बहुत मज़ा आता है। देवरजी, हमको अपने पास ही रख लो ना। आपकी दासी बनके रहेंगे।
आआहह चोदिये अपनी भाभी को । ऊऊईईईईईईईई..... ऊफ़्फ़फ़फ़
शशि- अरे हम तो तुमको अपने पास ही रखना चाहते हैं। पर हमारी मज़बूरी तुमको पता ही है भौजी। तुम्हरे जैसी औरत को कौन नही रखना चाहेगा। तुम जिस दिन से ब्याहके ई घर में आई हो ना, तभे से तुमको चोदना चाहते थे।
शशि ने ममता को पकड़के बिस्तर पर पटक दिया, और खुद उसके ऊपर चढ़ गया। शशि का शरीर अब हल्का थुलथुला हो चुका था, पर बाहें अभी भी मजबूत थी। उसके नीचे वो पूरी दब गई।
शशि- आज भी तुम उतने खूबसूरत हो जितनी, पहले दिन भैय्या के साथे ब्याह करके आयी थी।
ममता- सच बोल रहे हो देवरजी।
शशि- और नहीं तो का? अपनी बच्ची के कसम खाते हैं। भौजी आज गाँड़ मरवाओगी?
ममता हँसके - उम्म देवरजी, क्यों नहीं।
ममता ने पूछा- कैसे मारोगे? खड़े होके या लेटकर ?
शशि बगल से सरसों तेल की शीशी लेते हुए बोला- तुम कुत्ती बन जाओ।
ममता उठके कुत्ती बन गयी और अपनी पीठ झुकाके गाँड़ बाहर निकाल ली।
शशि ने पहले उसकी गाँड़ की भूरी सिंकुड़ी छेद पर थूका और फिर ढेर सारा सरसों तेल मल दिया। ममता मस्ती में तेल मलवा रही थी। फिर शशि ने एक उंगली ममता की गाँड़ में डाली, उसके मुंह से ऊऊ............ निकल गया। ममता अपने होंठ दांतो से दबाए पीछे मुड़के शशि को कामुक दृष्टि से देख रही थी। शशि ने फिर दूसरी उंगली और धीरे से तीसरी उंगली घुसा दी। ममता पहले भी गाँड़ मरवा चुकी थी,इसलिए उसकी गाँड़ के अंदर का हल्का गुलाबी मांस दिखने लगा।
शशि ने फिर उंगलियां उसकी गाँड़ में आगे पीछे की, ममता बस आहें भर एहि थी। फिर जब उसने देखा कि गाँड़ लण्ड लेने लायक हो चुकी है। तब उसने अपने लण्ड पर तेल लगाया, जो कि पहले से ही ममता की बुर के रस की वजह से चिकना हो चुका था। उसने ममता को संभलने का मौका ही नही दिया और उसके गाँड़ के छेद पर लण्ड सटाकर घुसाने लगा। ममता हाँलाकि, इस अनुभव से परिचित थी, पर फिर भी लण्ड का सुपाड़ा घुसने से चिहुंक उठी। आआआआ ..... ऊउईईईईईईई दददेवववरररजीजीजी......
शशि ने उसकी परवाह किये बिना अपना प्रयास चालू रखा। ममता की कमर पकड़के लण्ड को धीरे धीरे उसकी गाँड़ में पूरा उतार दिया।
 

Rakesh1999

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अनुभवी ममता का दर्द भी जल्दी ही मस्ती में बदलने लगा। देखते देखते उसकी गाँड़ शशि के लण्ड को अपनी मांसल गहराइयों में उतार चुकी थी। उसके लण्ड के चारों ओर ममता के गाँड़ की ऐसी घेराबंदी थी कि हल्की सी भी जगह नही बची थी, लण्ड और गाँड़ की छेद की गोलाई के बीच। गाँड़ की सिकुरन सीधी हो गयी थी।

शशि कुछ देर तक लण्ड को बस घुसाके छोड़ दिया था। ममता अब पूरी मस्ती में आ चुकी थी, वो धीरे धीरे कमर हिला रही थी। शशि ने ममता को देखा तो जैसे वो अपनी आंखों से धक्कों की भीख मांग रही थी। शशि ने धीरे धीरे से धक्का मारना शुरू किया, और फिर स्पीड बढ़ाने लगा। ममता को हल्का दर्द हुआ पर कब वो दर्द मस्ती में बदल गया उसे पता ही नहीं चला। अब शशि उसे बहुत बुरी तरह चोद रहा था। कमरे में ममता की सिसकारियां और आँहें गूंज रही थी। शशि गाँड़ मारते हुए उसके चुतरो पर थप्पड़ भी लगा रहा था। ममता - आह ओह्ह, ऊउईईई हहम्मम्म बस ऐसी ही आवाज़ें निकाल रही थी। शशि भी आआहह, उफ़्फ़फ़फ़फ़फ़ कर रहा था। इसी तरह ये चुदाई कुछ 15 मिनट चली, फिर शशि ने ममता की गाँड़ में ही अपना मूठ निकाल दिया। अपनी गाँड़ में गरम लावा महसूस करके ममता की बुर ने भी पानी छोड़ दिया। ममता अपनी चुदी हुई गाँड़ से शशि के लण्ड का पानी निकलता महसूस कर रही थी। उसकी गाँड़ की छेद इस वक़्त कोई दो से ढाई इंच चौड़ी दिख रही थी। वो पूरी तरह फैलकर ढीली हो गयी थी। पर थोड़ी देर में फिर पुरानी स्थिति में आ गयी। शशि ममता के ऊपर लेटा था, और ममता पीठ के बल लेटी हुई थी।
ममता- ले लिए ना भौजी की गाँड़?
शशि- हाँ, भौजी बहुत मज़ा आया।
ममता- क्यों, माया नहीं देती है क्या?
शशि- जो मज़ा तुममें है वो तुम्हरि बहन माया में नहीं है। उसने तो कभी हमको प्यार ही नहीं दिया। ये तो तुमको भी पता है, भौजी।
ममता उसके गाल को सहलाते हुए बोली- हाँ, याद है आज भी हमको, आपके भैया माया के स्कूल में ही थे। और वो दोनों एक दूसरे को चाहते थे। उन्होंने ससुरजी को उसका हाथ मांगने भेजा था, पर बाबूजी ने कहा कि पहले बड़ी बेटी की शादी करेंगे तब ही छोटी बेटी की। आपके बाबूजी को हम ज़्यादा पसंद आये। उन्होंने हमारी और आपके भैया का ब्याह तय कर दिया, उनकी हिम्मत नहीं थी ससुरजी के खिलाफ जाने की। आप भी तो आये थे, हमको देखने। पर ब्याह के बाद हमको पता चला कि आप हमको पसंद करते थे। ब्याह करके आये तब आपके भैया हमसे दूर ही रहते थे। बाद में उनके दूर रहने का कारण समझ मे आया था।
शशि- ढाई साल बाद में बाबूजी और तुम्हारे पिताजी ने माया और हमारा ब्याह कर दिया, क्योंकि हम तो तभी बस लफुवागिरी करते थे, पढ़ते कहा थे। कॉलेज भी महीने में एक बार जाते थे। बाबूजी ने सोचा कि माया टीचर है ही तो घर मे आमदनी आती रहेगी। माया हमारी बीवी बनके आ गयी। तुम दोनों बहन एक ही घर मे बहु बनके आ गयी।
 

Rakesh1999

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ममता- हाँ देवरजी, हम दोनों बहनें एक ही ससुराल में आकर खुश थी। माया ने हमारी शादी के बाद आपके भैया को भुला दिया था। और आपको अपना जीवनसाथी बनाया।
शशि- पर हमको नहीं लगता कि वो आज भी हमको चाहती है। और बाद में जो कुछ भी हुआ उसके बाद तो घर का माहौल ही बदल गया था।
ममता- हाँ, ठीक कहा आपने। ससुरजी चल बसे और अकेली सासु माँ बची थी। तीन साल हो चुके थे, हमारी शादी को पर बच्चा नहीं हो पा रहा था।
सासु माँ दिन रात हमको ताने मारती थी। एक दिन जब कोई नहीं था, तब हम फूट फूटकर रो रहे थे, की माया स्कूल से आई। उसने हमसे पूरी बात पूछी। हम सब बता दिए कि, उसके जीजाजी और आपके भैया का मूठ बहुत कम निकलता है, जिससे हमको बच्चा नहीं हो रहा था। माया हमारे दर्द को समझी और आपके भैया को बुलाकर सारी बातें पूछी। उन्होंने शर्म से कबूल किया पर अपनी माँ को नहीं बता पा रहे थे। माया ने डॉक्टर की रिपोर्ट भी पढ़ी थी।
तब आप पटना गए हुए थे, सासु माँ को लेके डॉक्टर से दिखाने।
हम और माया बहुत सोच रहे थे, की क्या किया जाए?

जब आप वापिस आये अगले दिन, तो माया और हमने ये बात आपकी माँ को बता दी। सासु माँ गंभीर हो गयी। पर उन्होंने रात को सबको बुलाया।
शशि- उस रात माँ के साथ हम और भैया के अलावे तुम दोनों बहनें भी थी। माँ ने बहुत ही गंभीर फैसला सुनाया था, जिससे तुम्हारे और हमारे रिश्ते की शुरुवात हुई। माँ ने ये बात घर के बाहर जाने नहीं देने का हम सबसे वचन लिया। फिर, माया और भैया की सहमति से, तुमको हमारे साथ सोने के लिए कहा। तुम्हारा सारा सामान भैया के कमरे से हमारे और माया के कमरे में लाया गया। माया शुरू में थोड़ा नाराज़ हुई, पर समझ गयी थी। वो भी नही चाहती थी, की अमर भैया की इज़्ज़त बाहर उछले, आखिर कभी प्यार किया था उसको। फिर हमको तुम दोनों बहन मिल गयी थी। बाद में तुमने हमारे बच्चों को जन्म दिया। माया ने कभी माँ ना बनने का फैसला किया। और उसने तुमसे तुम्हारी दूसरी बेटी, कंचन को मांगकर अपनी बेटी की तरह पाला।
ममता- वो आपको बहुत प्यार करती है। पर आपने हमे ऐसे घर से निकाला, वो समझ नहीं आया।
शशि- लोगों को शक था कि कविता और जय मेरे बच्चे हैं, उन्हें और तुमको निकालके सबका शक दूर किया। पर तुम्हे अपने पास बुलाते रहते है ना।
पिछली बार तुम बाबूजी के नाम जो मंदिर बनवाये हैं, उस बहाने से आई थी।
ममता- हाँ, उसके बाद तो आपके कमरे में हम दोनों बहनें रहने लगी, वापिस ही नही गयी। हम दोनों बहनों को पहले दियादनी, फिर सौतन बना दिया। ममता हंसकर बोली।
शशि- हमपर तो क्या गुजरी है क्या बताएं, दो जिगड़ के टुकड़े ले गयी हो। उनदोनों की तस्वीर लायी हो भौजी।
ममता- हाँ, लायी हूँ।
तभी बाहर से माया की आवाज़ गूँजी- दीदी, आते ही शुरू हो गयी क्या? दरवाज़ा खोलो। ममता ने नंगी ही दरवाज़ा उठके खोला, और माया को अंदर खींच ली। दरवाज़ा बंद कर दिया।
 

Rakesh1999

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दोस्तों यहां से 2 महिला पात्र इस कहानी में बढ़ रहे हैं।
. माया उम्र 43 साल
बिल्कुल अपनी बड़ी बहन ममता की तरह ही शरीर से धनी है।
36 की चुच्चियाँ और 38 की गाँड़।
अपनी कामुकता को हरदम छुपाये रखती है। ये उसी स्कूल में शिक्षक है जिसमे अमरकांत पढाते थे।



दूसरी कंचन- उम्र 23 साल

अभी तक ग्रेजुएशन नहीं की है। बस अपनी सहेलियों संग खेलती रहती है। भगवान ने उसे 32 की चुच्चियाँ और 28 की कमर, साथ मे 36 की गाँड़ से नवाजा है। दिखने में बिल्कुल कविता के जैसी है, बस ऊंचाई में उससे लंबी है। उसकी आंखें बिल्कुल सहालग थी। होंठ एक दम पतले थे।





माया जब अंदर घुसी, तो सामने ममता नग्नावस्था में खड़ी मुस्कुरा रही थी। ममता इस वक़्त काम की देवी लग रही थी। चुदने के बाद उसके बाल बिखरे हुए थे, जो लहराते हुए उसकी मस्ती भरी चुदाई की कहानी कह रहे थे। उसके चेहरे पर चुुुदने की थकान के साथ खुशी भी मिली हुई थी। आंखों में एक अजीब सी नशीली लहर दौड़ रही थी। गालों पर शशिकांत के काटने के निशान थे, आंखों का काजल उसके गालों पर बिखर चुका था। होंठों से लिपस्टिक पूरी तरह गायब हो चुका था। चूसे जाने की वजह से हल्के सूज चुके थे। बदन पर एक भी कपड़ा नहीं था। उसकी 60 किलो वजनी शरीर मे कमर, जांघें, बाहें, टांगों, चूतड़ों पर अच्छी खासी चर्बी जमा थी, पर वो उसे बदसूरत या बेढंगा बनाने की बजाए उसको एक बेहद खूबसूरत सेक्सी देसी बिहारी औरत बना रही थी। उसने आभूषण के नाम पर दोनों कानों में छोटी बाली पहन रखी थी।
माया- दीदी कुछ देर रुक तो जाती, आते ही शुरू कर दी देवर के साथ मस्ती।
ममता- क्या करें, जब साल भर लौड़ा नहीं मिलता, तो समझ नहीं आता माया की क्या सही समय है। तुमको क्या है, देवरजी तो यहीं रहते हैं, खूब चुदवाती होगी। जब तुमको नही मिलेगा तो, पता चलेगा।
माया- हमको तो तुमको देखके तुम्हारी चुदने की प्यास साफ दिख रही है। शुरू की मजबूरी में, अब पूरा मज़ा ले रही हो।
ममता- तुम भी आओ ना, देवरजी के साथ तीनों मस्ती करेंगे। बड़ा मजा आएगा। हम जब साथ रहते थे, तो कई बार कितनी मस्ती की हुई है।
माया- दीदी, अभी नही कंचन आ गयी तो, छी छी क्या सोचेगी।
ममता- शर्मा क्यों रही हो बेकार में, तेरी दीदी नंगी खड़ी है कि नहीं तेरे सामने। चल आना।
माया- दीदी तुम भी ना, बस..........
शशि- ममता भौजी रहने दो उ नहीं आना चाहती तो, वैसे भी हमको अब निकलना है। कुछ काम से पटना जाना है।
ममता- आपको क्या हुआ? बोले थे ना कि आज का पूरा दिन हमलोग साथ रहेंगे।
शशि- हाँ, पर कुच्छो जरूरी काम आ गया है। परसों से छुट्टी हो जाएगी ना।
माया- कहां जा रहे हैं, सुबह भी बिना खाये निकल गए थे। कुछ खा लीजिये। खाना बन गया होगा। हम खाना निकालके लाते हैं।
शशि- हमको नहीं खाना है। तुम दोनों बहन खाओ, हम शाम तक आएंगे।
अपने कुर्ते के बटन लगाते हुए बोला। उसने उठके घड़ी बांधी, चश्मा लगाया। और ममता की साड़ी फर्श से उठाके उसके नंगे शरीर को ढक दिया। शशि घर के बाहर लगी रॉयल एनफील्ड को लेके निकल गया।
 

Rakesh1999

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ममता को कुछ अजीब सा लगा। शायद माया और शशि के बीच मे कुछ झगड़ा हुआ है। ममता ने माया को पूछा," क्या बात है माया, देवरजी से झगड़ा हुआ है क्या? वो इतने उखड़ क्यों गए?
माया- नहीं, दीदी कुछ नहीं हुआ है। सब ठीक है। तुम तो जानती हो इनको कभी कभी अचानक से खिसिया जाते हैं।
ममता अपनी कच्छी और ब्रा पहने बिना, साया ( पेटीकोट) को बांध ली और ब्लाउज पहनते हुए बोली- नहीं कुछ तो बात हुई है, सच बताओ ना। फिर उसके करीब आयी तो देखा कि माया के गाल पर थप्पड़ के निशान थे। उसके मुंह से अनायास ही अचंभे से निकला," ये क्या हुआ है, मारा देवरजी ने तुझे?

माया- छोड़ो ना दीदी, पति पत्नी के बीच ये सब तो होता रहता है ना। पति हैं, हमको दो थप्पड़ मारा तो क्या हो गया। कुछ नहीं आओ, हम खाना लगाते हैं।
ममता- नहीं, देवरजी तो ऐसे नहीं हैं। वो तो काफी शांत स्वभाव के हैं। क्या बात हुई है बताओ? तुम नहीं बताओगी तो हम देवरजी से पूछेंगे।
माया की आंखों में आंसू आ गए थे। वो अपने आँचल से जब तक उसे पोछती तब तक ममता ने उसे गले लगा लिया," चुप हो जा, माया चुप ऐसे क्यों रो रही है। हम हैं ना तेरी दीदी। बता क्या बात हुई है।
माया ने बोलना शुरू किया," वो.....वो...सिसक...वो कल ऐसा हुआ कि, हमको पता चला कि इन्होंने, .....
कंचन की आवाज़ गूँजी, वो अपने सहेलियों के साथ घर के पीछे वाली गली से आ रही थी। माया चुप हो गयी। उसने अपने आंशु पोछे और बोली," दीदी कंचन आ गयी, हम बाद में बताते हैं।
कंचन की सहेलियां उसे घर के सामने छोड़कर चली गयी। कंचन आयी उसे पता नहीं था कि उसकी मौसी जो असल मे उसकी माँ थी आयी है और अपने कमरे में चली गयी। माया और ममता दोनों कमरे से बाहर निकलकर रसोई में चली गयी। ममता ने अपनी साड़ी पहन ली, कमरे से जब वो बाहर निकली तो उसे देखके कोई नहीं कह सकता था कि अभी अभी इसकी गाँड़ चुदाई हुई है। वो बिल्कुल शरीफ परिवार की महिला लग रही थी।

वहां से करीब 1000 कि मी दूर दिल्ली में कविता और जय एक दूसरे में खोए हुए थे। कविता जय की बाहों में बैठी थी, जय उसके गर्दन पर किस कर रहा था। जिससे कविता को गुदगुदी हो रही थी, वो बीच बीच मे खिलखिला कर हंस रही थी। कविता ने डीडी को संभाल के रख दिया था। जय- दीदी आज तो खूब मजा करेंगे। एक ही झटके में सारी गरीबी दूर हो गयी। अब देखना की हम तुमको कितना खुश रखेंगे। तुमको और माँ को कोई तकलीफ नहीं होने देंगे। अब हमलोगों की सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी।
कविता हंसकर बोली," हाँ, जय अब तो तुम करोड़पति हो गए। ये तो हमारे बाबूजी की देन है। आज हमको खुशी मिली उस कुत्ते शशिकांत ने जिसने हमे घर से बेघर कर दिया था, अब उसको पता चलायेंगे। वो दिन हम भूल नही सकते हैं, जब उसने हमको बाहर निकाल दिया था। हम चाहते हैं कि अब तुम उसका बदला लो। पर माँ अभी भी गाँव जाती रहती है, पता नहीं क्यों, कुछ समझ नहीं आता।
 

Rakesh1999

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जय जो ये सब सुनते हुए कविता के चेहरे और गले पर चूम रहा था बोला," हाँ, पता नहीं माँ क्यों बार बार हर साल किसी ना किसी वजह से गांव चली जाती है। तुम तो शायद कभी नहीं जाती। खैर छोड़ो, करोड़पति तो बन गए, अब तुम अपना पति बना लो दीदी।
कविता हँस के बोली," हम तो तुमको पति मान लिए हैं। तन मन और धन से। पर......
जय- पर क्या कविता दीदी?
कविता उसकी आँखों में झांकते हुए बोली- क्या हम दोनों शादी के बंधन में बंध पाएंगे। क्या ऐसा कभी हो पायेगा? अब माँ को डीडी के बारे में पता चलेगा, तो कहीं मेरी शादी ना कर दे? शादी हो जाएगी तो हम तुमसे दूर हो जाएंगे। तुमसे दूर अब हम रह नहीं सकते।



जय उसके होंठो को चूम के बोला- ससससस........ हम तुमको कभी खुद से दूर नही होने देंगे। तुम हमारी हो, तुमको हम कहीं नहीं जाने देंगे। तुम हमारे लिए जन्मी हो। इस घर मे अब तक तुम हमारी दीदी बनके थी, आगे भी रहोगी, बस एक जिम्मेदारी बढ़ेगी की अब दीदी के साथ तुम बीवी की ज़िम्मेदारी भी निभाओगी। तुम्हारी शादी हमसे होगी, नहीं तो नहीं होगी।
और कविता को चूमने लगता है। कविता अपने भाई के बातों से छलकते आत्मविश्वास से प्रभावित हो चुकी थी। उसने भी जय के सर को पकड़ लिया और चूमने लगी। जय कविता के ऊपर लेटा था। कविता ने एक हाथ से जय के लण्ड को पकड़ लिया और सहलाने लगी।
जय ने कविता की आंखों में देखा, वो मदहोश हो चुकी थी। जय ने कविता को खड़े होने को कहा, और खुद उठके बैठ गया। उसने कविता के नाभि को चूमा, और उसमें जीभ घुसाके चाटने लगा। कविता खड़ी खड़ी आहें भर रही थी। वो अपने दोनों हाथ जय के कंधों पर रखी हुई थी। उसकी आंखें बंद थी, और भौएँ कामुकता से तनी हुई थी। जय ने कविता के बुर में उंगलिया घुसा रखी थी। वो कविता के बुर में तेजी से उंगलियां अंदर बाहर कर रहा था। कविता की आवाज़ें, कमरे में दीवारों को तोड़ना चाहती थी, ऊफ़्फ़फ़, आआहहहहहहहहहह.......।
जय- दीदी, इस समय क्या मस्त लग रही हो, तुम। मन कर रहा है, तुमको हमेशा ऐसे ही देखें, रुको कैमरा लेके आते हैं।
कविता जय को रोकते हुए बोली, " जय, नहीं अभी नहीं,प्लीज बाद में इस वक़्त तो हमको तुम्हारा लौड़ा चाहिए। हम बहुत चुदासी हो गए हैं। उफ़्फ़फ़फ़फ़फ़, कितना अच्छा लग रहा है, लौड़ा डालोगे तो और मज़ा आएगा। हाय........
जय- तुम्हारा यही एक्सप्रेशन तो चाहिए, कविता रानी। बस तुरंत आ जाऊंगा और जितना चाहोगी उतना पेलूँगा तुमको। जय ने उसकी बुर से उंगली निकाली और चाट गया। कविता चुदासी थी, वो अपने अंग अंग को खुद ही सहला रही थी। जय फौरन अपने माँ के कमरे में गया, और अलमीरा से कैमरा ले आया। कविता खड़ी खड़ी अपने बुर को मल रही थी। जय ने उसको बिना बताए कुछ फ़ोटो ली उसी अवस्था में। फिर उसने कविता को सोफे पर छत की ओर देखते हुए लेटने को कहा।
कविता सोफे पर लेट गयी, जय ने उसे सर सोफे के हैंडल पर रखने को बोला, बालों को समेटकर बाहर लटका दिए। फिर, कविता एक हाथ से अपने बुर को फैलाई और दूसरा हाथ की पहली उंगली मुंह मे दबा ली ।
परफेक्ट, जय बोला।
कविता - जय तुम अभी लण्ड दो ना हमको, प्लीज बाद में तुम अलग से फोटोज ले लेना। जैसा तुम कहोगे वैसे करेंगे।
जय- इसमें कोई शक नही है, कविता डार्लिंग पर तुम्हारे चेहरे पर अभी जो चुदने की प्राकृतिक लालसा है, तुम जितनी चुदासी हो रही है, लण्ड लेने के लिए जो तुम्हारे मन की प्यास है, ये बहुमूल्य भाव तुम्हारे चेहरे पर किसी गहने की तरह तुम्हारी अंदर की औरत को निखार रही है।
कहते हुए जय ने 4 5 तस्वीरें क्लिक की। कविता अपनी बुर को रगड़ते हुए भिन्न मुद्राओं में तस्वीर खिंचवा रही थी। जय उसकी नग्नता को तस्वीरों में कैद कर रहा था।
उसने कविता को करवट लेकर लिटाया जिससे उसकी गाँड़ जय के सामने आ गए। कविता ने जय का इशारा पाकर चूतड़ों को फैलाया। उसने कुछ और तस्वीरें ली।
फिर कविता फर्श पर घुटनो के बल बैठ गयी, और दोनों हाथों से अपनी चुच्चियों को पकड़के, जीभ बाहर निकाल ली। जय खुश होकर फोटो लेता रहा। जय ने फिर बोला," दीदी अपने बालों को हाथों से पकड़के ऊपर उठा लो, और कैमरे की तरफ देखो, हाँ .... थोड़ा सर को झुकाओ और हाँ और चुदासी लाओ चेहरा पर, हहम्मम्म सही।
कविता ने वैसे करके पूछा - ठीक है, ये।
 

Rakesh1999

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जय ने कविता को फिर फर्श पर कुतिया की तरह दोनों हाथ और घुटनों पर आने को कहा," हहम्म, वाह क्या लग रही हो। अपनी पीठ झुकाओ और पीछे चूतड़ को और उठाओ।
कविता ने वैसा ही किया, इन सब के दौरान दोनों बहुत उत्तेजना में आ चुके थे। कविता करीब 15 मिनट तक जय जैसे बताता गया वैसे पोज़ देती रही। फिर कविता को ये बर्दाश्त के बाहर होने लगा।
कविता ने जय से कहा," जय, प्लीज अब ना तड़पाओ, हमारे बुर से देखो कितना पानी चू रहा है। अपनी दीदी को इतना चुदासी कर दिए हो। हमारे अंदर लण्ड की प्यास बढ़ती जा रही है। अगर तुम नही डालोगे ना अब तो जबरदस्ती उठके बैठ जाएंगे तुम्हारे लण्ड पर। कविता मदहोश आंखों और कामुक स्वर में बोली।
जय- अच्छा, आ जाओ ये काम अभी पूरा नहीं हुआ है। तुम्हारी और तस्वीरें लेनी है। बाद में लेंगे और भी मज़ेदार तरीके से। अभी प्यास बुझा लो।
कविता कुतिया की हालत में थी, उसने जय की ओर घूमके अपने चूतड़ों पर एक कसके थप्पड़ मारा, और बोली," दे दो अपना लौड़ा बुर में, भाई रे।
जय भी घुटनो पर आके कविता के चुतरो के पीछे आ गया, जिससे उसका लण्ड कविता के बुर से टकरा रहा था। जय ने अपने लण्ड पर थूका, और पूरा मल दिया। फिर उसने कविता के बुर पर थूका, जिसकी जरूरत नही थी क्योंकि वो पहले से ही काफी चिकनी हो चुकी थी। कविता के बुर का रंग शरीर के रंग से गहरा साँवला था, बेहद हल्के बाल होने की वजह से और भी मस्त लग रहा था। उसकी बुर चमचमा रही थी। जय ने उसकी बुर की फांकों को अलग किया, तो अंदर से गुलाबी दिखने लगा। जय ने बुर पर अपने लौड़े का शिश्न छुआ दिया। कविता की सिसकी निकल गयी। जय ने फिर उसे हटा लिया, और आगे करके फिर से छुवाया। कविता पीछे मुड़के बोली, " हटा क्यों लिया ? जय हँसके बोला- दो ही दिन में लण्ड की आदत लग गयी है, क्या बात है?
कविता- शैतान कहीं के, दीदी को तड़पा रहे हो। अरे डालो ना ।
जय- जैसी तुम्हारी मर्ज़ी, डार्लिंग दीदी। और लण्ड को धीरे से कविता की बुर में घुसाने लगा। कविता को अपने बुर में प्रवेश करते लण्ड का एहसास बड़ा ही आनंददायक लगने लगा। उसकी मुंह से लंबी आह निकली," आआहहहह।
जय ने लण्ड को अभी आधा ही घुसाया था, उसे अपनी बहन की बुर में लण्ड घुसाने में स्वर्ग से आनंद लग रहा था। बुर अंदर से गर्म थी, जैसे लण्ड के स्वागत के लिए बुर ने तैयारी कर रखी हो। बुर को लण्ड का पूरा पूरा एहसास हो रहा था, जय ने जैसे ही लण्ड को पूरा उतारा, की कविता उन्माद में बोली," ऊफ़्फ़फ़फ़, कितना भरा भरा महसूस हो रहा है, आआहह। ये लण्ड आज थोड़ा बड़ा लग रहा है।
जय- लण्ड तो वही है, पर आज जो तुमने मॉडल की तरह फोटोज़ खिंचवाई है ना, उससे और कड़क हो गया है।
कविता- पता नहीं, जो भी हो लण्ड से बुर पूरा भर चुका है।
जय ने कविता के बालों का गुच्छा कसके पकड़ लिया, और धक्के मारने लगा। कविता भी अपनी कमर से पीछे धक्के लगा रही थी। जय कविता को अभी प्यार से धक्के लगा रहा था। जय की नज़र कविता के गाँड़ की छेद पर गयी। उसने कविता से बिना बताए अपनी एक उंगली उसकी गाँड़ में घुसा दिया।
जय- ऊफ़्फ़फ़ ये गाँड़ कितनी टाइट है, काश हम इसमें लौड़ा घुसा पाते।
कविता की आवाज़ में धक्कों की वजह से कंपन थी," हमको पता था कि तुम इसकी डिमांड करोगे, आजकल मर्द औरतों की बुर के साथ गाँड़ जरूर चोदते हैं। ये आजकल चुदाई का नया स्वरूप है। बुर के साथ गाँड़ कंप्लीमेंट्री चाहिए सबको। तुम भी लेना, हम मना नहीं करेंगे, पर पहले बुर की चुदाई हो जाये।
जय- ये तुमने ठीक कहा, बुर का लण्ड पर पहला हक़ है। हम भी पहले इसकी खूब चुदाई करेंगे, फिर तुम्हारी गाँड़ मारेंगे।
 

Rakesh1999

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कविता- हमारे राजा भैया कितना मज़ा आ रहा है, खूब चोदो ऊउईईई आहहहहहह ज़ोर से चोदो ना। आह और ज़ोर से। और ज़ोर से
जय कविता के कहने पर अपनी स्पीड बढ़ाते जा रहा था। कविता मस्ती में चुदवा रही थी। इस तरह जय कविता की गाँड़ में भी उंगली तेज़ी से कर रहा था। दोनों एक दूसरे को खुश करने में लगे थे। जय ने कविता की गाँड़ से उंगली निकालके सूंघने लगा। जय ने जैसे ही उसे सूँघा मानो पागल हो उठा और खूब ज़ोरों से धक्के मारने लगा। कविता की गाँड़ की खुसबू उसे दीवाना कर गयी थी। कविता जय के बढ़े तेज धक्कों से अति कामुक हो उठी, और अपने बुर पर उसका बस ना चला। बुर धीरे से कविता को चरम सुख की ओर ले जा रही थी। जय के धक्कों से बुर के अंदर का लावा फूटने लगा। और कविता चीखते हुए झड़ गयी। जय ने महसूस किया कि बुर जैसे लण्ड को निचोड़ रही हो। उसके लण्ड पर बुर का सारा रस निकल गया, पर जय ने किसी तरह लण्ड को झड़ने से रोक ही लिया।
कविता फर्श पर ढेर हो गयी, जैसे उसके शरीर मे कुछ बाकी ही ना रहा हो। जय भी कविता के ऊपर लेट कर थोड़ी देर शांत होकर लेट गया। वो जानता था कि कविता की गाँड़ मारने में जल्दी करेगा तो ज्यादा देर तजीक नही पायेगा। कविता मुस्कुराते हुए लेटी हुई थी। जय उसके बालों को सहला रहा था। कुछ देर तक ऐसे लेटने के बाद जय उठा और फर्श पर ही बैठ गया। कविता में उठने की हिम्मत ही नही थी। जय ने उसे उठाया और अपने सीने से लगा लिया। कविता ने आंखे आधी खोली और जय को देखा, हल्का मुस्कुराई। जय - क्या बात है थक गई क्या?
कविता- उम्म्म्ममम्म.... थोड़ा सा, पर तुम्हारी इच्छा पूरी करेंगे, टेंशन ना लो।
जय- हमको कोई हड़बड़ी नहीं है, कविता दीदी।
कविता- कितने प्यारे हो तुम जय, अपनी बहन का कितना ध्यान है।
 

Rakesh1999

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उधर माया के घर-
तो ये बात थी दीदी। तुम ही बोलो हम कुच्छो गलत बोले थे। उसपर हमको दो थप्पड़ मारे काल रात में।" माया सुबकते हुए बोली।
ममता तुमने फिर क्या किया? शशीजी को पलट के कुछ कहा तो नहीं?
माया- नहीं दीदी, माँ के संस्कार हमको याद हैं, कैसे भी हैं पति हैं जो करेंगे ठीक ही।
ममता- चुप हो जा तूने बिल्कुल ठीक किया, रात को आने दो देवरजी को तब देखेंगे। पर उन्होंने ऐसा कुछ किया, ये हमको पता ही नहीं चला। खैर कंचन को बुला ले, साथ में खाना खाएंगे।
माया ने कंचन को आवाज़ लगाई- कंचन, अरे देखो ना कौन आया है? तेरी मौसी आयी है। आजा।
कंचन दरवाज़ा खोली और दौड़ के पास आई, ममता मौसी कैसी है तुम? कब आयी?
ममता ने उसे गले लगा लिया, और आंखों से उसके आंसू जाने लगे। मन ही मन बोली- अरे पगली, हम तुम्हारी मौसी नहीं माँ हैं।
ममता- सुबह आये हैं। तुम कहां गयी थी?
कंचन- ट्यूशन गए थे।
माया- पढाई में मन ही नही लगता है इसका तो, कब पास करेगी भगवान जाने। शादी की उम्र हो गयी है, फिर भी सहेलियों के साथ घूमती फिरती है।
ममता- चुप कर, पास हो जाएगी। हाँ पर सयानी हो गयी है। बेटी तुम्हारे लिए सलवार सूट लाये हैं।
कंचन- सच, जैसा हम बोले थे वैसा ना। दिखाओ ना मौसी।
ममता- अरे पहले खा लो।
कंचन- नहीं पहले देखेंगे।
ममता- बहुत ज़िद्दी है, जा सूटकेस में रखा है।
ममता और माया एक दूसरे को देखके मुस्कुराई, कंचन अपने कपड़े देखने चली गयी।दोनों इधर खाना खाने लगी।
कंचन ने सारे कपड़े उठाये और अपने कमरे में चली गयी। ममता और माया भी खाना खाकर आराम करने चली गयी।
 

Rakesh1999

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कविता अपने भाई की बाहों में कोई आधा घंटा बैठी उसकी छाती पर सर रखके आराम कर रही थी। कविता की बारी थी अपना वादा निभाने की।उसने अपनी गाँड़ के छेद में उंगली घुसाई। बड़ी दिक्कत से उसकी गाँड़ में उंगली घुसी। उसने दूसरे हाथ से जय के फूले लण्ड को पकड़ा, और जय की ओर देखा। अपनी उंगली गाँड़ से निकालके उसको दिखाते हुए बोली," जय, ये तो बहुत दिक्कत से इतना ही घुसा, तुम अपना लौड़ा कैसे घुसओगे?
जय उसकी उंगली को मुंह मे रख के चूसने लगा। कविता ने अपनी उंगली निकालनी चाही, पर जय उसकी कलाई पकड़के उसे हटाने नहीं दिया।
जय जब पूरा चूस चुका, तब बोला- क्या स्वाद है तुम्हारी गाँड़ का, बिल्कुल मीठी और स्वादिष्ट है।
कविता- छी, तुम कैसे चूस लिए। वहां से हम हगते हैं। गन्दी जगह है ना वो तो।
जय- अरे मेरी भोली दीदी, तुम्हारी कोई भी चीज़ हमको गंदी नहीं लगती। हम तो तुम्हारी पाद को भी खुसबू समझते हैं।
कविता - तुम ना पागल हो। कोई किसी की पाद का कैसे दीवाना हो सकता है।
जय कविता की गाँड़ को टटोलते हुए बोला," तुम हो ही इस पागलपन और दीवानगी के लायक। हम तुमको अब बताएंगे, जाओ तेल लेके आओ।
कविता- तुमको जो अच्छा लगे वो करो, हम तुमको कभी नहीं रोकेंगे। आज हमारे पिछले दरवाज़े में घुसा के ही मानोगे ना। कहकर हंसते हुए उसकी गोद से उठ गई। थोड़ी देर में वो नारियल तेल लेके वापिस आयी। वो बैठने लगी तो जय ने उसे खड़े रहने को बोला।



जय- अपनी गाँड़ हमारे चेहरे के सामने लाओ, और अपने चूतड़ों को फैलाओ।
कविता जय के कहने पर वैसे ही खड़ी हो गयी। उसने कविता के चुतरो पर तीन चार थप्पड़ मारे। कविता हर थप्पड़ पर - ईशशशश कर उठती।
जय ने कविता की गाँड़ की दरार में ढेर सारा थूक डाला। वो थूक उसकी गाँड़ की दरार को गीली करते हुए में किसी नदी की तरह चूते हुए उसकी गाँड़ की छेद को गीला करने लगी। कविता उसको अपने हाथों से वहां थूक मलने लगी। जय ने उसके हाथ को वहां से हटा दिया, और अपना मुंह उसकी गाँड़ की घाटी में घुसा दिया। उसका पूरा चेहरा कविता की गाँड़ की दरार में खो गया। कविता अपने भाई के चेहरे पर गाँड़ का दबाव बढ़ाने लगी। जय के चेहरे पर गाँड़ को रगड़ने लगी। जय के मुंह से आआहह निकल रही थी, पर गाँड़ की वादियों में उसकी आहें, गूँ.. गूँ में बदल गयी थी। कविता की चुच्चियाँ कड़क हो चुकी थी, बुर से पानी निकल रहा था।
जय ने उसकी गाँड़ की छेद को अपनी जीभ से छेड़ने लगा।गाँड़ की सिंकुड़ी हुई छेद उसके मुंह मे समा जा रही थी। उसकी गाँड़ के छेद को अपनी जीभ से खोलने की कोशिश कर रहा था। धीरे धीरे गीला होने की वजह से जीभ ने थोड़ी जगह बना ली, और कविता के गाँड़ में आधा इंच प्रवेश पा लिया। जय उस जगह को चाटने लगा। चाटने क्या लगा मानो उसकी सफाई करने लगा। कविता को अपनी गाँड़ में अजीब सा आनंद महसूस हो रहा था।
कविता सिर्फ उफ़्फ़फ़फ़फ़फ़, आह आह कर रही थी। गाँड़ चटवाने में इतना आनंद मिलता है ये उसे पता नहीं था। जय तो मानो जैसे कविता की गाँड़ खा जाना चाहता था। जय ने उसे इसी तरह खड़ा रखा, और दस मिनट तक यूँही चूसता रहा। कविता ने फिर मस्ती में अपनी गाँड़ को जय के चेहरे पर दांये बायें हिलाकर रगड़ा।
फिर उसने कविता को कहा- दीदी, हम लेटते हैं। तुम हमारे मुंह पर बैठके अपनी गाँड़ को रगड़ना।
 
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