- 3,092
- 12,424
- 159
कविता- अच्छा जी, हमारे राजा भैया को हमारी हंसी बहुत अच्छी लगती है। तो लो ये हंसी अबसे बरकरार रहेगी, इन होंठों पर। कविता की आंखे नसीली हो रही थी। वो आगे बोली- एक बात बताओगे राजा भैया, अपनी ही बड़ी बहन को इस तरह नंगी गोद में बिठाके, ब्लू फिल्म दिखाना तुमको कैसा लगता है। जय," बहुत अच्छा लग रहा है, की तुम नंगी हमारे गोद मे बैठी हो, एक दम निर्लज्जता से। असल में तुम ऐसी हो दीदी, बाहर की दुनिया के लिए जो तुम नाटक करती हो ना, एक दम साफ सुथरी, पवित्र व शुद्ध विचारों वाली, जिसे बाहर दुनिया बहुत अच्छी लड़की कहते हैं, वो तुम्हारा स्वाभाविक रूप नहीं है। तुम्हारा स्वाभाविक रूप ये है, हम सिर्फ तुम्हारे इस वक़्त के नंगेपन की बात नही कर रहे हैं, बल्कि उस कविता की बात कर रहे हैं, जो इस वक़्त समाज के अनुरूप अच्छे बुरे होने की डर से दूर है। जो बंद कमरों में रहती है तो, ब्लू फिल्म्स देखती है। जिसने अपनी कामुकता को दुनिया के लिए खत्म कर दिया है, पर बंद कमरे में कामुकता से लबरेज़ हो मूठ मारती है। ये तुम्हारा असली रूप है कविता दीदी। अपनी कामुकता को तुम अभी ही खुलके जी सकती हो। तुम जैसी काम की देवी हमारे साथ नग्नावस्था में बैठेगी तो मज़ा तो आएगा ही ना।
कविता ये सुनकर कामुक हो उठी। वियाग्रा की गोली भी धीरे धीरे असर कर रही थी। कविता ने जय की आंखों में देखा और बोली- ये लो इस काम की देवी का प्रसाद और उसके होंठों को चूमने लगी। अपने रसीले होंठ उसके होंठों को सौंप दी। जय ने कविता के होंठों को अपने होंठों से भींच लिया, और चूसने लगा। कविता जय की ओर मुड़ गयी, और दोनों पैर उसके कमर के इर्द गिर्द रखके उसकी गोद में ही बैठी रही। जय ने उसके कमर को पकड़के अपनी ओर कसके चिपका लिया। कविता के हाथ जय को कसके पकड़े हुए थे, उसकी दोनों हथेली जय की पीठ पर टिके थे। जिससे वो उसे अपनी ओर लगातार खींच रही थी। दोनों एक हो जाना चाहते थे।
जय के हाथ भी कविता की गर्दन से लेकर गाँड़ तक को पूरा महसूस कर रहे थे। कविता ने करीब 5 मिनट चले इस चुम्बन को, तोड़ा और जय की आंखों में देखकर बोली, " आज तुमको दिखाते हैं, हम।
जय- क्या दिखाओगी, कविता दीदी?
कविता- अपनी दीदी का स्वाभाविक रूप देखने है ना तुमको। आज तुमको अपना काम रूप दिखाएंगे। उधर वो ब्लू फिल्म चलने दो, और इधर तुम अपनी बड़ी बहन के साथ असली ब्लू फिल्म का आनंद लो।
जय- क्या बात है, तुम तो बिल्कुल मस्त हो गयी हो हमारी जान। वियाग्रा अब धीरे से जय पर भी असर कर रहा था। उसने कविता के बाल खींचे और उसके पूरे चेहरे को चूमने लगा। कविता के गाल,पलकों, माथे,नाक सब पर चुम्मों की बौछार लगा दी। कुछ ही पलों में सैंकड़ो चुम्मे धर दिए। कविता कामुक सिसकारियां भर रही थी। उसने कविता के गालों को चाटा, उसकी पूरे गालों पर थूक चमकने लगी। जीभ से हल्के हल्के उसकी ठुड्ढी को भी चाट रहा था। कविता अपने निचले होंठ को दांतों में दबाके इस गीले एहसास का आनंद ले रही थी। जय कविता की ये हालात देखके खुश हो रहा था, लेकिन वो चाहता था कि कविता ये सब करते हुए ब्लू फिल्म भी देखे। इस स्थिति में कविता ब्लू फिल्म नहीं देख पा रही थी। जय- तुम ठीक से फ़िल्म नहीं देख पा रही हो क्या? कविता- नहीं, बस आवाज़ सुन रहे हैं। जय- उतरो, दीदी तुमको अच्छे से दिखाएंगे। कविता- अब हम नहीं उतरेंगे, उसकी चुम्मी लेते हुए बोली। जय बोला- ठीक है तुम बैठी रहो। तुम अपने टांगों से हमारे कमर पर कैंची बना लो और हमको कसके पकड़ लो। कविता ने ठीक वैसे ही किया।
कविता ये सुनकर कामुक हो उठी। वियाग्रा की गोली भी धीरे धीरे असर कर रही थी। कविता ने जय की आंखों में देखा और बोली- ये लो इस काम की देवी का प्रसाद और उसके होंठों को चूमने लगी। अपने रसीले होंठ उसके होंठों को सौंप दी। जय ने कविता के होंठों को अपने होंठों से भींच लिया, और चूसने लगा। कविता जय की ओर मुड़ गयी, और दोनों पैर उसके कमर के इर्द गिर्द रखके उसकी गोद में ही बैठी रही। जय ने उसके कमर को पकड़के अपनी ओर कसके चिपका लिया। कविता के हाथ जय को कसके पकड़े हुए थे, उसकी दोनों हथेली जय की पीठ पर टिके थे। जिससे वो उसे अपनी ओर लगातार खींच रही थी। दोनों एक हो जाना चाहते थे।
जय के हाथ भी कविता की गर्दन से लेकर गाँड़ तक को पूरा महसूस कर रहे थे। कविता ने करीब 5 मिनट चले इस चुम्बन को, तोड़ा और जय की आंखों में देखकर बोली, " आज तुमको दिखाते हैं, हम।
जय- क्या दिखाओगी, कविता दीदी?
कविता- अपनी दीदी का स्वाभाविक रूप देखने है ना तुमको। आज तुमको अपना काम रूप दिखाएंगे। उधर वो ब्लू फिल्म चलने दो, और इधर तुम अपनी बड़ी बहन के साथ असली ब्लू फिल्म का आनंद लो।
जय- क्या बात है, तुम तो बिल्कुल मस्त हो गयी हो हमारी जान। वियाग्रा अब धीरे से जय पर भी असर कर रहा था। उसने कविता के बाल खींचे और उसके पूरे चेहरे को चूमने लगा। कविता के गाल,पलकों, माथे,नाक सब पर चुम्मों की बौछार लगा दी। कुछ ही पलों में सैंकड़ो चुम्मे धर दिए। कविता कामुक सिसकारियां भर रही थी। उसने कविता के गालों को चाटा, उसकी पूरे गालों पर थूक चमकने लगी। जीभ से हल्के हल्के उसकी ठुड्ढी को भी चाट रहा था। कविता अपने निचले होंठ को दांतों में दबाके इस गीले एहसास का आनंद ले रही थी। जय कविता की ये हालात देखके खुश हो रहा था, लेकिन वो चाहता था कि कविता ये सब करते हुए ब्लू फिल्म भी देखे। इस स्थिति में कविता ब्लू फिल्म नहीं देख पा रही थी। जय- तुम ठीक से फ़िल्म नहीं देख पा रही हो क्या? कविता- नहीं, बस आवाज़ सुन रहे हैं। जय- उतरो, दीदी तुमको अच्छे से दिखाएंगे। कविता- अब हम नहीं उतरेंगे, उसकी चुम्मी लेते हुए बोली। जय बोला- ठीक है तुम बैठी रहो। तुम अपने टांगों से हमारे कमर पर कैंची बना लो और हमको कसके पकड़ लो। कविता ने ठीक वैसे ही किया।