कविता की नींद खुली जब ज़ोर ज़ोर से घर के दरवाजे की घंटी लगातार बज रही थी। कविता ने घड़ी में देखा सुबह के 10 बज रहे थे। वो जय के सीने पर अपना सर रखके ही सोई थी। कविता की बांयी टांग जय के ऊपर थी। जय उसे बांहों में पकड़े सोया था। कविता को वो इस समय बहुत क्यूट लग रहा था। उसने उसकी छाती को चूमा, फिर उसके होंठों को चूमा। फिर उठके उसने अपनी मैक्सी पहन ली, और बालों को बांधते हुए दरवाज़े की ओर बढ़ी। उसने दरवाज़ा खोला, तो सामने कूरियर वाला था। उसने पूछा- क्या मैडम इतनी देर से घंटी बजा रहा हूँ। ये जयकांत झा यहीं रहते हैं ना?
कविता- जी, क्या बात है?
कूरियर वाला- उनके नाम का कूरियर आया है। वो हैं घर पर?
कविता- जी वो सो रहे हैं। आप हमको दे दीजिए।
कूरियर वाला- वो आपके पति हैं क्या?
कविता गुस्से से - जी..... जी नहीं हम उसकी ब...
कूरियर वाला- अरे कोई बात नहीं मिया बीवी में झगड़ा होता रहता है, हे..... हे ये लीजिये आप ही रिसीव कीजिये। उसने कविता की ओर कलम और पेपर बढ़ा के कहा।
कविता ने उसे कुछ नही कहा बस दस्तखत कर दिया। वो पार्सल देकर चला गया। उसके जाते ही कविता की हंसी छूट गयी, उसकी बात सोचके। दरवाज़ा पर परा दूध का पैकेट उठायी और दरवाज़ा बन्द करके अंदर आ गयी। दूध फ्रिज में डालकर वो हॉल में आ गयी। उसने शीशे में खुदको देखा, सारा काजल निकल गया था और जय के लण्ड के पानी उसके चेहरे पर सूखे हुए थे। वो पपड़ी की तरह कड़क हो गए थे। कविता ने अपना चेहरा धोया, और टॉवल से पोछने लगी। उसे तब ख्याल आया कि कूरियर वाले ने भी ये देखा होगा। उसकी चेहरे पर शर्म के साथ हंसी छूट गयी। तभी उसे जय के बनाये नियम की याद आ गयी, कि उसे घर के अंदर बिना कपड़ों के नंगी होकर रहना है। उसने अपनी मैक्सी के बटन खोले और दोनों हाथ बाजुओं से निकाल दिए। मैक्सी सरसराती हुई उसके पैरों में गिर गयी। उसने फिर अपने हर अंग को देखा, पूरे बदन पर रात की चुदाई की कहानी का सारांश लिखा हुआ था। जय के दांतों के निशान उसकी चुच्चियों पर, गर्दन पर, उसके पेट पर, उसके चूतड़ों पर भी थे। कितना वाइल्ड सेक्स रहा था। कविता फिर ब्रश की और सीधा किचन में नास्ता बनाने लगी। जय ने उसे नहाने से भी तो मना किया था। कविता नंगी ही खाना बना रही थी। एक तो गर्मी उस पर से खाना बनाना वो पसीने से नहा गयी थी। उसके गर्दन से चल पसीना उसके पीठ के रास्ते उसकी गाँड़ में लुप्त हो जाता था। गले से टपक कर पसीना सीधे उसकी चुच्चियों के घुंडीयों पर से चू रहा था।बदन से पसीना टप टप कर चू रहा था। उसने जल्दी से खाना बना लिया और बाहर हॉल में आके पंखे के नीचे खड़ी हो गयी। उसे बहुत राहत मिली। थोड़ी देर में सारा पसीना सूख गया, पर हल्की बदबू रह गयी। उसने फिर चेहरे पर मेक अप किया, और अपने भाई को उठाने उसके कमरे में घुस गई। कविता अब खूबसूरत लग रही थी, क्योंकि उसने फ्रेश मेक अप किया था, काजल, मस्कारा, क्रीम, रूज़ सबसे सज चुकी थी। फिर अपने भाई के चेहरे के करीब अपना चेहरा लायी और उसके होंठों को चूमने लगी। फिर उसके माथे को चूमी। जय की नींद इस प्यार भरे चुम्मों ने उड़ा दी। अपनी दीदी का चांद सा चेहरा देखके उसके होंठो पर मुस्कुराहट छा गयी। उसने कविता को अपने ऊपर खींच लिया। कविता ने कोई विरोध नहीं किया। उसके बदन से पसीने की बदबू आ रही थी जो जय को खुसबू समान लग रही थी। कविता की चुच्चियाँ जय के सीने में चुभ रही थी। जय कविता की बड़ी गाँड़ को अपने हाथों से सहला रहा था।
कविता- बहुत थके लग रहे हो, रात इतनी मेहनत जो कि है इसलिए शायद।
जय- हाँ, थोड़ा सा पर, तुमको देखके सब थकान खत्म हो गया है।
कविता- हाँ, वो तो पता चल रहा है, ये जो तैनात होकर खड़ा हो गया है। कविता उसके लण्ड को पकड़ते हुए बोली।