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ममता और जय फिर सोने की कोशिश करने लगे। रात में पर दोनों को नींद कहाँ आ रही थी। जय ने आज दिनभर ममता की हरकतों को याद किया, उसका साया बांध के बाथरूम से आना, यूं खुले आम लड़कियों के बारे में बात करना, फिर मूतते समय अपनी चिकनी गाँड़ दिखाना, उसने मन में सोचा कि शायद उसकी तरफ से ग्रीन सिग्नल है।
जय ने ममता की ओर देखा ममता दूसरी तरफ करवट लेकर, उसकी आधी पीठ नंगी थी। और उस नाइटी की बांहें घिसकने की वजह से कंधे भी नंगे थे। उसका लण्ड ये देखकर खड़ा था।जय ने इस बार पहले ममता को पूरी तरह उत्तेजित करने की सोची। वो उसके करीब आ गया। और उसकी नंगी पीठ पर हल्के से छुआ। ममता के कंधे पर अपने होंठों से छुआ। फिर उसके बाल को हटाकर उसके कान के पीछे चूम लिया। ममता कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रही थी। जय ने देखा कि ममता, वैसे ही लेटी रही। जय ने उसकी गर्दन को चूमा।
जय ने ममता की गाँड़ पर हाथ रखा, और उसके चुत्तरों को सहलाया। फिर उसकी नाइटी, को खींचकर उसकी जांघों तक ले आया। और अंदर हाथ घुसा दिया। ममता ने ब्रा पैंटी कुछ नहीं पहनी थी। उसका एक हाथ ममता की चुच्चियों को और दूसरा उसकी बुर को टटोल रहा था।
पर ममता कुछ नहीं बोली। जय ने उसके बाद उसके चेहरे को पकड़के अपनी ओर घुमाया। ममता जैसे जबरदस्ती आंख बंद की हुई थी, वो आहिस्ते से थूक घोंट रही थी।
जय," आंखे खोलो ना माँ।
ममता," जय हमको ये नहीं करना चाहिए, ये सही नहीं है।
जय," एक औरत मर्द का मिलन तुमको सही नहीं लगता माँ। तुम एक औरत हो और तुम खुद की प्यास को मत मारो। अपनी इच्छाओं को मारना भी अपराध है। हम तुम्हारी हर इच्छा पूरी करेंगे।
ममता- पर ये रिश्ता अपने बेटे के साथ कैसे बनाऊंगी। औरत और मर्द का रिश्ता तो तुम्हारे बाप के साथ है। क्या तुम अपने बाप की जगह लेना चाहते हो ?
जय- तुमने ही कहा था कि अब तुम और कविता हमारी जिम्मेदारी हो। इसलिए तुम दोनों को हम बाबूजी की तरह संभालेंगे। तुम भी यही चाहती हो ना।
ममता नज़रें झुकाये हुए- जय लेकिन तुम्हारे साथ ये करके, हम कैसे खुद से नज़रें मिलाएंगे और क्या तुमको बुरा नहीं लगेगा।
जय उसके हाथों को पकड़ लिया और बोला," माँ ये रिश्ता समाज ने हमको दिया है ना, ये कहाँ लिखा है कि बेटा और माँ में ये रिश्ता कायम नहीं हो सकता। अगर तुम्हारे अंदर की औरत प्यासी है, तो क्या उसको शांत नही करोगी। अगर समाज के बनाये बंधन इतने मज़बूत होते तो, तुम्हारी बुर कल रात पनियाती नहीं, जो अभी भी हो रही होगी। ना तुमको देखके हमारा लौड़ा खड़ा होता।" ममता का हाथ पकड़के लण्ड पे डाल दिया।
कल रात तुम सपने में हमारा नाम लेकर चुदवाने को बोल रही थी। मतलब तुम्हारे सपने में हम तुमको चोद रहे थे। जब तुम सपने में हमसे चुदवा रही थी, तो असली में क्यों नहीं ?
ममता- कल रात हम तुम्हारा नाम ले रहे थे..... क्योंकि सपने में मंदिर की नंगी प्रतिमायें सजीव हो उठी थी, और तुम ही एक मर्द थे तो जो हमको मंदिर के प्रांगण में नंगी लिटाकर करने वाले थे। पर वो तो सपना था ना।
जय ने उसको बोला," उस सपने को सच करने का समय आ गया है। और ममता के होंठों को चूमने लगा। ममता ने ना तो उसका सहयोग दिया और नाहीं विरोध किया। बस उसके चुम्बन का एहसास कर रही थी। चुम्मा खत्म करने पर ममता बोली, ये गलत है, पर कितना अच्छा लग रहा है।
जय- कभी कभी गलती भी हसीन होती है।
ममता- किसीको पता चल गया तो? कितनी बदनामी होगी।
जय- किसीको पता नहीं चलेगा, इस कमरे में तुम और हम हैं। और कोई नही है। तुम खुद को स्वच्छंद हो जाने दो माँ।
जय ने ममता की ओर देखा ममता दूसरी तरफ करवट लेकर, उसकी आधी पीठ नंगी थी। और उस नाइटी की बांहें घिसकने की वजह से कंधे भी नंगे थे। उसका लण्ड ये देखकर खड़ा था।जय ने इस बार पहले ममता को पूरी तरह उत्तेजित करने की सोची। वो उसके करीब आ गया। और उसकी नंगी पीठ पर हल्के से छुआ। ममता के कंधे पर अपने होंठों से छुआ। फिर उसके बाल को हटाकर उसके कान के पीछे चूम लिया। ममता कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रही थी। जय ने देखा कि ममता, वैसे ही लेटी रही। जय ने उसकी गर्दन को चूमा।
जय ने ममता की गाँड़ पर हाथ रखा, और उसके चुत्तरों को सहलाया। फिर उसकी नाइटी, को खींचकर उसकी जांघों तक ले आया। और अंदर हाथ घुसा दिया। ममता ने ब्रा पैंटी कुछ नहीं पहनी थी। उसका एक हाथ ममता की चुच्चियों को और दूसरा उसकी बुर को टटोल रहा था।
पर ममता कुछ नहीं बोली। जय ने उसके बाद उसके चेहरे को पकड़के अपनी ओर घुमाया। ममता जैसे जबरदस्ती आंख बंद की हुई थी, वो आहिस्ते से थूक घोंट रही थी।
जय," आंखे खोलो ना माँ।
ममता," जय हमको ये नहीं करना चाहिए, ये सही नहीं है।
जय," एक औरत मर्द का मिलन तुमको सही नहीं लगता माँ। तुम एक औरत हो और तुम खुद की प्यास को मत मारो। अपनी इच्छाओं को मारना भी अपराध है। हम तुम्हारी हर इच्छा पूरी करेंगे।
ममता- पर ये रिश्ता अपने बेटे के साथ कैसे बनाऊंगी। औरत और मर्द का रिश्ता तो तुम्हारे बाप के साथ है। क्या तुम अपने बाप की जगह लेना चाहते हो ?
जय- तुमने ही कहा था कि अब तुम और कविता हमारी जिम्मेदारी हो। इसलिए तुम दोनों को हम बाबूजी की तरह संभालेंगे। तुम भी यही चाहती हो ना।
ममता नज़रें झुकाये हुए- जय लेकिन तुम्हारे साथ ये करके, हम कैसे खुद से नज़रें मिलाएंगे और क्या तुमको बुरा नहीं लगेगा।
जय उसके हाथों को पकड़ लिया और बोला," माँ ये रिश्ता समाज ने हमको दिया है ना, ये कहाँ लिखा है कि बेटा और माँ में ये रिश्ता कायम नहीं हो सकता। अगर तुम्हारे अंदर की औरत प्यासी है, तो क्या उसको शांत नही करोगी। अगर समाज के बनाये बंधन इतने मज़बूत होते तो, तुम्हारी बुर कल रात पनियाती नहीं, जो अभी भी हो रही होगी। ना तुमको देखके हमारा लौड़ा खड़ा होता।" ममता का हाथ पकड़के लण्ड पे डाल दिया।
कल रात तुम सपने में हमारा नाम लेकर चुदवाने को बोल रही थी। मतलब तुम्हारे सपने में हम तुमको चोद रहे थे। जब तुम सपने में हमसे चुदवा रही थी, तो असली में क्यों नहीं ?
ममता- कल रात हम तुम्हारा नाम ले रहे थे..... क्योंकि सपने में मंदिर की नंगी प्रतिमायें सजीव हो उठी थी, और तुम ही एक मर्द थे तो जो हमको मंदिर के प्रांगण में नंगी लिटाकर करने वाले थे। पर वो तो सपना था ना।
जय ने उसको बोला," उस सपने को सच करने का समय आ गया है। और ममता के होंठों को चूमने लगा। ममता ने ना तो उसका सहयोग दिया और नाहीं विरोध किया। बस उसके चुम्बन का एहसास कर रही थी। चुम्मा खत्म करने पर ममता बोली, ये गलत है, पर कितना अच्छा लग रहा है।
जय- कभी कभी गलती भी हसीन होती है।
ममता- किसीको पता चल गया तो? कितनी बदनामी होगी।
जय- किसीको पता नहीं चलेगा, इस कमरे में तुम और हम हैं। और कोई नही है। तुम खुद को स्वच्छंद हो जाने दो माँ।