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सब थके हुए थे, तो बात ज़्यादा नहीं हुई। सब सोने चले गए। वो रविवार का दिन था। इसलिए कविता ऑफिस नहीं गयी थी। सुबह 9 बजे उसने नास्ता बना लिया और ममता व जय को आवाज़ लगाई, पर दोनों घोड़े बेचकर सो रहे थे। कविता ने फिर पहले ममता को जगाया। ममता ने समय देखा तो हड़बड़ा गई और सीधे बाथरूम चल दी। तब कविता मौका देख जय के कमरे में घुस गई। जय सोया हुआ था, क्योंकि दो दिनों से अपनी माँ की बुर और गाँड़ चोद कर थका हुआ था।
कविता ने उसे उठाने की बहुत कोशिश की, हिलाया डुलाया पर वो उठा नहीं। फिर उसने एक दूसरी तरकीब निकाली, उसने अपनी लेग्गिंग्स उतारी और फिर अपनी पहनी हुई कच्छी उतार ली। फिर, वो कच्छी जय के नाक के पास ले गयी। जैसे ही उसकी बुर की खुशबू से भरी कच्छी जय के नाक के पास आई, उसके नथुने उस गंध को पहचान गए और हिलने लगे। कविता हंस रही थी। जय धीरे धीरे सूंघने के बाद आखिर जग गया। कविता को अपने पास खींच लिया।
कविता- कितना जगाए, पर उठे नहीं। हमारी पैंटी सूंघ कर जाग गए, ऐसा क्यों?
जय- हहम्मम, क्योंकि उसमें तुम्हारे बुर की गंध आ रही थी, कविता दीदी।
कविता- नास्ता तैयार है बाहर आ जाओ, और खा लो। भूख लगी होगी तुमको तो?
जय- हमारी भूख तो तुम्हारा यौवन ही बुझाएगा, हमरी जानेमन।और कविता के होंठों को चूसने लगा।
कविता खुद को छुड़ाते हुए बोली," माँ, आ जायेगी। और आज बड़ा प्यार आ रहा है। इतने दिनों से तो हमको याद किये नहीं, और अब प्यार जता रहे हो। माँ से फुरसत मिलेगी तब ना।
जय- कविता जान, तुम भी जानती हो, कि तुमको और माँ दोनों को हम बराबर प्यार करते हैं। तुम दोनों को खुश रखना है हमको। अभी से ऐसे करोगी तो कल तुम दोनों जब एक दूसरे की सौतन बनोगी, तब क्या करोगी?
ममता- हम मजाक कर रहे थे। तुम टेंशन क्यों लेते हो? हम दोनों माँ बेटी तुम्हारे साथ बहुत खुश रहेंगे, और तुमको भी खुश रखेंगे।
जय- तो फिर आ ना। और उसको चूमने के लिए और करीब लाया। तभी हॉल से ममता, के बाथरूम खोलने की आवाज़ आयी। कविता हड़बड़ा कर उठी, और अपनी पैंटी जय के हाथों से लेने की कोशिश की, पर जय ने उसकी पैंटी को अपने मुंह मे डाल लिया।
कविता उसकी ओर देख के हंसी, और अपनी लेग्गिंग्स पहन ली। जय ने फिर उसे पकड़ लिया और बोला," क्या हुआ, इतने दिन बाद आया हूँ, दोगी नहीं?
कविता- शशश.... माँ सुन लेगी। आज नहीं कल दूंगी, राखी के मौके पर। बहन का स्पेशल सरप्राइज। और वो भाग गई।
जय हंसता रहा, फिर उठकर फ्रेश हुआ और नास्ते की टेबल पर पहुंच गया। कविता और ममता दोनों पहले से बैठे थे। सब नास्ता करने लगे। खाना खाने के बाद वापिस से ममता सोने चली गयी। जय भी थका था वो भी सोफे पर सो गया। कविता अकेले घर की साफ सफाई में लग गयी थी। फिर वो अपनी माँ और जय के कपड़े धोने लगी। ऐसा करते काफी समय निकल गया।
शाम के समय जय के मामा का फोन आ गया। दरअसल हर साल राखी से पहले वो आते थे और ममता से राखी बंधवाते थे। लेकिन इस बार वो आ पाने में असमर्थ थे। ममता ने उससे कहा कि कोई बात नहीं जय हमको काल सुबह तुम्हारे यहाँ छोड़ देगा, वहीं तुमको रखी बांध देंगे। शाम को जय फिर हमें लेने आ जायेगा। सूर्यकांत को ये अच्छा आईडिया लगा। उसने भी हामी भर दी।
अगली सुबह ममता जल्दी तैयार हो गयी और जय के साथ ऑटो में बैठकर तिलकनगर की ओर निकल पड़ी। दोनों ऑटो में कुछ देर शांत बैठे थे तभी ममता को जय ने कसके पकड़ लिया। ममता कसमसाते हुए खुद को छुड़ाने लगी, पर जय से खुदको छुड़ा नहीं पाई। पूरे रास्ते जय उसको ऐसे ही पकड़ा रखा। जय और ममता थोड़ी देर में सूर्यनाथ के यहाँ पहुंच गए। शाम को कितने बजे लेने आये तुमको?
ममता- सात बजे तक।
जय- इतनी देर यहां क्या करोगी तुम?
ममता- अभी से हमको इतना कड़ाई करोगे,बाद में तो हमको कहीं जाने नहीं दोगे।
जय- तुमको तो....
तभी दरवाज़ा खुला जय और ममता अंदर गए। थोड़ी देर बाद जय ममता को छोड़कर वहां से चला गया। वो घर बेसब्री से वापिस जा रहा था। आखिर कविता से उसे भी तो राखी बंधवानी थी।
थोड़े ही देर में वो अपने घर वापिस आ गया। रास्तेभर वो ये सोचता रहा,की आज कविता क्या क्या करेगी? उसे उसकी बातें याद आ रही थी, राखी के दिन बहन का स्पेशल गिफ्ट।
जय ने 3- 4 बार घंटी बजाई, पर फिर भी दरवाज़ा नहीं खुला। जय ने आवाज़ लगाई तो कविता अंदर से बोली, " आई आई।" कविता ने दरवाजा खोला उसके दोनों हाथों में बेसन लगा हुआ था तो उसने किसी तरह दरवाज़ा खोला। जय ने फौरन दरवाज़ा बंद किया, और उसकी ओर देखा। कविता को अपने गोद में उठा लिया।
कविता- अरे हमको नीचे उतारो नहीं तो पकोड़ा जल जाएगा।
जय- इतने दिनों बाद मौके मिला है, और तुमको पकौड़ा का पड़ा है।
कविता- तुमसे ज़्यादा आग हमारे अंदर लगी हुई है। पर सब्र रखे हुए हैं। उसने मुस्कुरा कर कहा। तुमको तो माँ ने खूब मज़े करवाये हैं, पापा।
कविता ने उसे उठाने की बहुत कोशिश की, हिलाया डुलाया पर वो उठा नहीं। फिर उसने एक दूसरी तरकीब निकाली, उसने अपनी लेग्गिंग्स उतारी और फिर अपनी पहनी हुई कच्छी उतार ली। फिर, वो कच्छी जय के नाक के पास ले गयी। जैसे ही उसकी बुर की खुशबू से भरी कच्छी जय के नाक के पास आई, उसके नथुने उस गंध को पहचान गए और हिलने लगे। कविता हंस रही थी। जय धीरे धीरे सूंघने के बाद आखिर जग गया। कविता को अपने पास खींच लिया।
कविता- कितना जगाए, पर उठे नहीं। हमारी पैंटी सूंघ कर जाग गए, ऐसा क्यों?
जय- हहम्मम, क्योंकि उसमें तुम्हारे बुर की गंध आ रही थी, कविता दीदी।
कविता- नास्ता तैयार है बाहर आ जाओ, और खा लो। भूख लगी होगी तुमको तो?
जय- हमारी भूख तो तुम्हारा यौवन ही बुझाएगा, हमरी जानेमन।और कविता के होंठों को चूसने लगा।
कविता खुद को छुड़ाते हुए बोली," माँ, आ जायेगी। और आज बड़ा प्यार आ रहा है। इतने दिनों से तो हमको याद किये नहीं, और अब प्यार जता रहे हो। माँ से फुरसत मिलेगी तब ना।
जय- कविता जान, तुम भी जानती हो, कि तुमको और माँ दोनों को हम बराबर प्यार करते हैं। तुम दोनों को खुश रखना है हमको। अभी से ऐसे करोगी तो कल तुम दोनों जब एक दूसरे की सौतन बनोगी, तब क्या करोगी?
ममता- हम मजाक कर रहे थे। तुम टेंशन क्यों लेते हो? हम दोनों माँ बेटी तुम्हारे साथ बहुत खुश रहेंगे, और तुमको भी खुश रखेंगे।
जय- तो फिर आ ना। और उसको चूमने के लिए और करीब लाया। तभी हॉल से ममता, के बाथरूम खोलने की आवाज़ आयी। कविता हड़बड़ा कर उठी, और अपनी पैंटी जय के हाथों से लेने की कोशिश की, पर जय ने उसकी पैंटी को अपने मुंह मे डाल लिया।
कविता उसकी ओर देख के हंसी, और अपनी लेग्गिंग्स पहन ली। जय ने फिर उसे पकड़ लिया और बोला," क्या हुआ, इतने दिन बाद आया हूँ, दोगी नहीं?
कविता- शशश.... माँ सुन लेगी। आज नहीं कल दूंगी, राखी के मौके पर। बहन का स्पेशल सरप्राइज। और वो भाग गई।
जय हंसता रहा, फिर उठकर फ्रेश हुआ और नास्ते की टेबल पर पहुंच गया। कविता और ममता दोनों पहले से बैठे थे। सब नास्ता करने लगे। खाना खाने के बाद वापिस से ममता सोने चली गयी। जय भी थका था वो भी सोफे पर सो गया। कविता अकेले घर की साफ सफाई में लग गयी थी। फिर वो अपनी माँ और जय के कपड़े धोने लगी। ऐसा करते काफी समय निकल गया।
शाम के समय जय के मामा का फोन आ गया। दरअसल हर साल राखी से पहले वो आते थे और ममता से राखी बंधवाते थे। लेकिन इस बार वो आ पाने में असमर्थ थे। ममता ने उससे कहा कि कोई बात नहीं जय हमको काल सुबह तुम्हारे यहाँ छोड़ देगा, वहीं तुमको रखी बांध देंगे। शाम को जय फिर हमें लेने आ जायेगा। सूर्यकांत को ये अच्छा आईडिया लगा। उसने भी हामी भर दी।
अगली सुबह ममता जल्दी तैयार हो गयी और जय के साथ ऑटो में बैठकर तिलकनगर की ओर निकल पड़ी। दोनों ऑटो में कुछ देर शांत बैठे थे तभी ममता को जय ने कसके पकड़ लिया। ममता कसमसाते हुए खुद को छुड़ाने लगी, पर जय से खुदको छुड़ा नहीं पाई। पूरे रास्ते जय उसको ऐसे ही पकड़ा रखा। जय और ममता थोड़ी देर में सूर्यनाथ के यहाँ पहुंच गए। शाम को कितने बजे लेने आये तुमको?
ममता- सात बजे तक।
जय- इतनी देर यहां क्या करोगी तुम?
ममता- अभी से हमको इतना कड़ाई करोगे,बाद में तो हमको कहीं जाने नहीं दोगे।
जय- तुमको तो....
तभी दरवाज़ा खुला जय और ममता अंदर गए। थोड़ी देर बाद जय ममता को छोड़कर वहां से चला गया। वो घर बेसब्री से वापिस जा रहा था। आखिर कविता से उसे भी तो राखी बंधवानी थी।
थोड़े ही देर में वो अपने घर वापिस आ गया। रास्तेभर वो ये सोचता रहा,की आज कविता क्या क्या करेगी? उसे उसकी बातें याद आ रही थी, राखी के दिन बहन का स्पेशल गिफ्ट।
जय ने 3- 4 बार घंटी बजाई, पर फिर भी दरवाज़ा नहीं खुला। जय ने आवाज़ लगाई तो कविता अंदर से बोली, " आई आई।" कविता ने दरवाजा खोला उसके दोनों हाथों में बेसन लगा हुआ था तो उसने किसी तरह दरवाज़ा खोला। जय ने फौरन दरवाज़ा बंद किया, और उसकी ओर देखा। कविता को अपने गोद में उठा लिया।
कविता- अरे हमको नीचे उतारो नहीं तो पकोड़ा जल जाएगा।
जय- इतने दिनों बाद मौके मिला है, और तुमको पकौड़ा का पड़ा है।
कविता- तुमसे ज़्यादा आग हमारे अंदर लगी हुई है। पर सब्र रखे हुए हैं। उसने मुस्कुरा कर कहा। तुमको तो माँ ने खूब मज़े करवाये हैं, पापा।