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Incest क्या ये गलत है ? (completed)

Rakesh1999

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सब थके हुए थे, तो बात ज़्यादा नहीं हुई। सब सोने चले गए। वो रविवार का दिन था। इसलिए कविता ऑफिस नहीं गयी थी। सुबह 9 बजे उसने नास्ता बना लिया और ममता व जय को आवाज़ लगाई, पर दोनों घोड़े बेचकर सो रहे थे। कविता ने फिर पहले ममता को जगाया। ममता ने समय देखा तो हड़बड़ा गई और सीधे बाथरूम चल दी। तब कविता मौका देख जय के कमरे में घुस गई। जय सोया हुआ था, क्योंकि दो दिनों से अपनी माँ की बुर और गाँड़ चोद कर थका हुआ था।
कविता ने उसे उठाने की बहुत कोशिश की, हिलाया डुलाया पर वो उठा नहीं। फिर उसने एक दूसरी तरकीब निकाली, उसने अपनी लेग्गिंग्स उतारी और फिर अपनी पहनी हुई कच्छी उतार ली। फिर, वो कच्छी जय के नाक के पास ले गयी। जैसे ही उसकी बुर की खुशबू से भरी कच्छी जय के नाक के पास आई, उसके नथुने उस गंध को पहचान गए और हिलने लगे। कविता हंस रही थी। जय धीरे धीरे सूंघने के बाद आखिर जग गया। कविता को अपने पास खींच लिया।
कविता- कितना जगाए, पर उठे नहीं। हमारी पैंटी सूंघ कर जाग गए, ऐसा क्यों?
जय- हहम्मम, क्योंकि उसमें तुम्हारे बुर की गंध आ रही थी, कविता दीदी।
कविता- नास्ता तैयार है बाहर आ जाओ, और खा लो। भूख लगी होगी तुमको तो?
जय- हमारी भूख तो तुम्हारा यौवन ही बुझाएगा, हमरी जानेमन।और कविता के होंठों को चूसने लगा।
कविता खुद को छुड़ाते हुए बोली," माँ, आ जायेगी। और आज बड़ा प्यार आ रहा है। इतने दिनों से तो हमको याद किये नहीं, और अब प्यार जता रहे हो। माँ से फुरसत मिलेगी तब ना।
जय- कविता जान, तुम भी जानती हो, कि तुमको और माँ दोनों को हम बराबर प्यार करते हैं। तुम दोनों को खुश रखना है हमको। अभी से ऐसे करोगी तो कल तुम दोनों जब एक दूसरे की सौतन बनोगी, तब क्या करोगी?
ममता- हम मजाक कर रहे थे। तुम टेंशन क्यों लेते हो? हम दोनों माँ बेटी तुम्हारे साथ बहुत खुश रहेंगे, और तुमको भी खुश रखेंगे।
जय- तो फिर आ ना। और उसको चूमने के लिए और करीब लाया। तभी हॉल से ममता, के बाथरूम खोलने की आवाज़ आयी। कविता हड़बड़ा कर उठी, और अपनी पैंटी जय के हाथों से लेने की कोशिश की, पर जय ने उसकी पैंटी को अपने मुंह मे डाल लिया।
कविता उसकी ओर देख के हंसी, और अपनी लेग्गिंग्स पहन ली। जय ने फिर उसे पकड़ लिया और बोला," क्या हुआ, इतने दिन बाद आया हूँ, दोगी नहीं?
कविता- शशश.... माँ सुन लेगी। आज नहीं कल दूंगी, राखी के मौके पर। बहन का स्पेशल सरप्राइज। और वो भाग गई।
जय हंसता रहा, फिर उठकर फ्रेश हुआ और नास्ते की टेबल पर पहुंच गया। कविता और ममता दोनों पहले से बैठे थे। सब नास्ता करने लगे। खाना खाने के बाद वापिस से ममता सोने चली गयी। जय भी थका था वो भी सोफे पर सो गया। कविता अकेले घर की साफ सफाई में लग गयी थी। फिर वो अपनी माँ और जय के कपड़े धोने लगी। ऐसा करते काफी समय निकल गया।


शाम के समय जय के मामा का फोन आ गया। दरअसल हर साल राखी से पहले वो आते थे और ममता से राखी बंधवाते थे। लेकिन इस बार वो आ पाने में असमर्थ थे। ममता ने उससे कहा कि कोई बात नहीं जय हमको काल सुबह तुम्हारे यहाँ छोड़ देगा, वहीं तुमको रखी बांध देंगे। शाम को जय फिर हमें लेने आ जायेगा। सूर्यकांत को ये अच्छा आईडिया लगा। उसने भी हामी भर दी।
अगली सुबह ममता जल्दी तैयार हो गयी और जय के साथ ऑटो में बैठकर तिलकनगर की ओर निकल पड़ी। दोनों ऑटो में कुछ देर शांत बैठे थे तभी ममता को जय ने कसके पकड़ लिया। ममता कसमसाते हुए खुद को छुड़ाने लगी, पर जय से खुदको छुड़ा नहीं पाई। पूरे रास्ते जय उसको ऐसे ही पकड़ा रखा। जय और ममता थोड़ी देर में सूर्यनाथ के यहाँ पहुंच गए। शाम को कितने बजे लेने आये तुमको?
ममता- सात बजे तक।
जय- इतनी देर यहां क्या करोगी तुम?
ममता- अभी से हमको इतना कड़ाई करोगे,बाद में तो हमको कहीं जाने नहीं दोगे।
जय- तुमको तो....
तभी दरवाज़ा खुला जय और ममता अंदर गए। थोड़ी देर बाद जय ममता को छोड़कर वहां से चला गया। वो घर बेसब्री से वापिस जा रहा था। आखिर कविता से उसे भी तो राखी बंधवानी थी।
थोड़े ही देर में वो अपने घर वापिस आ गया। रास्तेभर वो ये सोचता रहा,की आज कविता क्या क्या करेगी? उसे उसकी बातें याद आ रही थी, राखी के दिन बहन का स्पेशल गिफ्ट।
जय ने 3- 4 बार घंटी बजाई, पर फिर भी दरवाज़ा नहीं खुला। जय ने आवाज़ लगाई तो कविता अंदर से बोली, " आई आई।" कविता ने दरवाजा खोला उसके दोनों हाथों में बेसन लगा हुआ था तो उसने किसी तरह दरवाज़ा खोला। जय ने फौरन दरवाज़ा बंद किया, और उसकी ओर देखा। कविता को अपने गोद में उठा लिया।
कविता- अरे हमको नीचे उतारो नहीं तो पकोड़ा जल जाएगा।
जय- इतने दिनों बाद मौके मिला है, और तुमको पकौड़ा का पड़ा है।
कविता- तुमसे ज़्यादा आग हमारे अंदर लगी हुई है। पर सब्र रखे हुए हैं। उसने मुस्कुरा कर कहा। तुमको तो माँ ने खूब मज़े करवाये हैं, पापा।
 

Rakesh1999

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जय- तुम हमको पापा बोली हो। तुम हमारी बेटी हो या बहन।
कविता- दोनों, बहन तो हम हैं ही, अबसे आपकी बेटी भी हैं, माँ के आशिक़।
कविता ने उसकी नाक पर बेसन लगा दिया।
जय- आज तुम हमारी बहन हो। ये कहके जैसे ही उसको चूमने वाला था, की कूकर की सीटी बज गई। कविता भागते हुए किचन में चली गयी। उसने वहीं से चिल्ला कर बोला," जल्दी से नहा लो और तैयार हो जाओ।
जय- और तुम?
कविता- हम नहां चुके हैं। तुम जल्दी से तैयार हो जाओ।
जय तुरंत बाथरूम गया। वहां शेव किया, शैम्पू और फिर नहाने लगा। थोड़ी देर बाद वो बाहर निकला। अपने कमरे में तैयार होने लगा। कविता की आवाज़ बाहर से गूंजी, जय तैयार हो गए क्या?
जय- बस आया।
 

Rakesh1999

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जय बाहर आया तो देखा, कविता बाहर हॉल में बिल्कुल नए कपड़ों में सजी हाथ में थाली लिए खड़ी थी। थाली में राखी, मिठाई, दिया, अगरबत्ती और टीका लगाने को सिंदूर रखा था। वो मुस्कुरा रही थी।
जय का मुँह खुला का खुला रह गया। कविता उसको अपनी ओर देखते हुए बोली," आओ ना भैया, कभी हमको नहीं देखो हो क्या? आज हम और तुम मस्त रक्षाबंधन मनाएंगे।
जय उसके तरफ निःशब्द होकर बढ़ चला। कविता ने फुल मेक अप किया था। लिपस्टिक की लाली उसके होंठों को गुलाब की पंखुड़ियों की तरह सजा रही थी। गालों पे रूज़ लगने से गाल पूरी तरह मुलायम और रसगुल्ले की तरह लग रहे थे। आंखों में काजल उसकी आँखों को शराब के पैमानों की तरह नशीला और उनमें डुबाने को तैयार थे। उसके बाल खुले हुए थे,जैसे कि जय को पसंद थे। जय उसके करीब आया तो उसने जय को आंखों से बैठने का इशारा किया।
जय सोफे पर बैठ गया, उसने कविता को अपने पास बुलाया। कविता उसकी तरफ दो कदम बढाके सामने खड़ी हो गयी। फिर उसने अपने भाई के माथे पर टिका लगाया और उसकी आरती उतारने लगी। जय का मुंह खुला ही था।
कविता हंसती हुई आरती उतारती रही। फिर थाली टेबल पर रख उसके हाथों पर राखी बांध दी। फिर उसने जय के मुंह मे मिठाई दे दी। जय ने उसको भी मिठाई खिलाने के लिए थाली से मिठाई उठाया तो कविता बोली," हमारे लिए अपने मुंह मे रखे मिठाई का आधा टुकड़ा दे दो भैया।"
जय ने मुस्कुराते हुए वही टुकड़ा बढ़ाया।कविता उस टुकड़े को मुंह मे दबा ली। कविता- हहम्म अब हमारा गिफ्ट दो।
जय- क्या चाहिए तुमको कविता दीदी बोलो ना?
कविता- तुम अपने हिसाब से दोगे ना, हम क्या बताएं?
जय- पर हम कुछ लाये नहीं तुम्हरे लिए।
कविता झूठा सा गुस्सा और बुरा मुँह बनाके बोली," कैसे भाई हो तुम? बहन को एक गिफ्ट भी नहीं दोगे।" और दूसरे तरफ मुँह घुमा ली।
जैसे ही मुड़ी जय ने पीछे से उसके गले मे एक सोने का हार रख दिया, और मुस्कुराते हुए बोला," ये पहला मौका है रक्षाबंधन का की हम तुमको कुछ दे सकते हैं, तो ये मौका कैसे जाने देते। खुश हो ना दीदी।"
कविता चहकती हुई," हहम्म बहुत खुश जय।
जय- अब हमारा गिफ्ट दो।
कविता- आज जो गिफ्ट हम तुमको देंगे शायद ही किसी बहन ने अपने भाई को दी होगी।
जय- वो क्या?
कविता- जय अब हमदोनों एडल्ट रक्षाबंधन मनाएंगे।
जय- वो कैसे कविता दीदी।


कविता हम बताते हैं कैसे। कविता ने जय की ओर पीठ की और बाल पकड़के आगे कर दिया। कविता की पीठ पूरी खुली हुई थी। उसकी चोली के दो धागे पीठ पर कसके बंधे थे। उसकी गोरी त्वचा गर्दन से लेके कमर तक पूरी खुली हुई थी। कविता ने ब्रा नहीं पहनी थी। उसने बोला," जय हमारी चोली के धागे खोल दो।"
जय उसके कहे अनुसार, उसकी गर्दन के पास बंधे धागों की गांठ खोल दिया, फिर उसने पीठ के बीचों बीच की डोरियों को भी खोल दिया।। कविता के कंधों और बांहों पर चोली लटक रही थी। फिर जय ने कविता के दुप्पटे को उसके कंधों से उठाके फर्श पर गिरा दिया। कविता ने फिर अपनी कमर की ओर इशारा करके बोला," अब इस घाघरे के नारे भी खोल दो।" कहकर उसने एक लंबी साँस ली। जय ने उसके घाघरे के नारे को एक झटके के साथ खोल दिया। घाघरे कविता के चूतड़ों पर हल्का टिका हुआ था। कविता ने अंदर पैंटी नहीं पहनी थी। जय ने कविता के घाघरे को पकडके फैला दिया, तो घाघरे फौरन ज़मीन पर जा गिरा कविता के पैरों में। जय ने फिर कविता के चोली को उसके कंधों से उतार दिया और कविता को अपनी बांहों में ले लिया। उनके गर्दन और कंधों को चूमते हुए उसकी बांहों से चोली उतार दी और कोने में फेंक दी। कविता बिल्कुल नंगी हो चुकी थी। जय के पायजामे में भी लण्ड कड़क होक तंबू बना चुका था।जो सीधा कविता के चूतड़ों से टकड़ा रहा था। कविता का हाथ उसके लण्ड पर जा चुका था। कविता जय की ओर मुड़ी और उसको धक्का देकर सोफे पर बिठा दिया। जय के कुर्ते को खोल दिया और फिर उसके पायजामे को भी खोल दिया। जय सिर्फ अंडरवियर पहने था। कविता ने उसे भी तुरंत उताड़ दिया। जय और कविता दोनों बिना कुछ बोले इन चीजों को अंजाम दे रहे थे। अब दोनों बिल्कुल नंगे थे। तब कविता जय के गोद में कूदकर बैठ गयी। और उसके लण्ड को अपनी गाँड़ के नीचे दबाकर हिलाने लगी। फिर उसने जय को अपनी चूचियों के बीच चिपका लिया। जय कविता को कमर से कसके पकड़े हुया था।
कविता ने जय को अपनी ओर घुमाया और उसकी आँखों मे गौर से देखने लगी। फिर बोली," ये राखी तुमको याद दिलाएगी, की तुम अपनी दीदी को चोद रहे हो। अपनी सगी बहन को चोदोगे ना भैया? तुम्हारी ये बहन लण्ड की भूखी है, और मूठ की प्यासी है।"
जय," तुम्हारी हर इच्छा पूरी करेंगे, दीदी।
कविता," पर ऐसे नहीं, अभी तुम्हारे इस लण्ड पर भी राखी बांधेंगे।"
जय ये सुनकर पागल हो गया," क्याआआआ?
 

Rakesh1999

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कविता उसकी गोद से उतरी और उस थाली से एक राखी उठायी। फिर नीचे घुटनो पर बैठकर जय के लण्ड को चूमा, फिर उसने जय के लण्ड पर राखी बांध दी। जय को तो ये बिल्कुल मज़ेदार और चौकाने वाला लग रहा था।
कविता," अब आज इसको मत उतारना। आज हम एक नया रिश्ता शुरू कर रहे हैं।"
कविता ने फिर म्यूजिक ऑन किया, और एक बेहद सेक्सी गाना" एक तो कम ज़िन्दगानी" कमरे में बजने लगा। कविता उस गाने की बीट पकड़के नाचने लगी। कविता को अपनी माँ ममता से नाचने की कला विरासत में मिली थी। अब तो जय का बुरा हाल शुरू होने लगा। कविता बेहद कामुक मूव्स कर रही थी, जो कि उस भद्दे गाने की बोल से मिल रहे थे। जैसे अपने चूतड़ों को ज़ोर ज़ोर से हिलाना। चूचियों को उठा उठा कर हिलाना। होंठों को रगड़ना, आंखे मारना, अपनी बुर को वो इस सब के दौरान छुपाए हुए थी। जय खुश भी था और हैरान भी अपनी कविता दीदी का ये रूप देखकर।
थोड़ी देर बाद गाना बंद हो गया, और जय ने ताली बजाई। कविता ने हंसकर आदाब के इशारे से धन्यवाद किया।


फिर, जय उसके पास आ गया और, दूसरा गाना लगाया," गले लग जा,ना जा...मेरी इतनी सी हशरत है।"कटरीना और अक्षय कुमार वाला। और दोनों उस धुन पर नंगे नाचने लगे। इस दौरान जय और कविता ने एक दूसरे को कितनी बार चूमा, सहलाया उसका कोई हिसाब नहीं था। दोनों बिल्कुल एक दूसरे में मगन हो गए थे। जब गाना खत्म हुआ तो कविता जय के कमर के आसपास कैंची बनाकर उसके गोद में चढ़ी हुई थी। कविता को ऐसे ही उठाकर जय अब कमरे की ओर बढ़ चला। दोनों एक दूसरे को देख मुस्कुराते हुए हांफ रहे थे। जय कविता को कमरे में ले आया, तो कविता ने जय से कहा," भाई आज का दिन यादगार बनाना होगा। तुम्हारे लण्ड पर जो राखी बांधी है उसकी कसम, आज पूरा दिन चुदवाएंगे। इसलिए आज हम और तुम वियाग्रा खा लेते हैं।"
जय- कहाँ रखी हो जान?
कविता- वहां रैक पर रखी है। आज के दिन की तैयारी है।
पहले वो कविता को बिस्तर पर रखता है, फिर वियाग्रा लाता है और दोनों एक एक गोली खा लेते हैं। फिर जय को देख कविता बोलती है," ये देखो जय, तुमको ये देखकर अच्छा लगेगा।
जय- क्या?
कविता अपना बुर जय को दिखाती है, जहां वो पियरसिंग करवाई थी। जय तो अवाक रह जाता है। जय उसके ओर देखता है और बोलता है," आई लव योर बुर दीदी।" और बुर को चूसने लगता है। कविता की सावली बुर पर हल्के बाल थे। उस पर मेटालिक रंग की पियरसिंग रिंग मस्त लग रही थी। कविता भी अपना बुर मज़े से चटवाने लगी। उसकी बुर का रस जय अपने जीभ से मज़े से चाटने लगा। बुर का नमकीन रस लगातार चू रहा था। कविता मुस्कुराते हुए जय को देख रही थी। जय पूरा मगन होकर बुर को फैलाके चाट रहा था। उसने बुर को अपने थूक से नहला दिया।
कविता- उम्मममम, भैया आज बहुत दिनों बाद मिले हो, अपनी बहन की बुर कैसी लग रही है? कैसी लग रही है बुर की छिदाई?
जय बुर चाटते हुए बोला," दीदी तुम्हारी बुर बहुत मस्त है,खूबसूरत है। लिक... लिक.... और ये बुर की छिदाई जो तुम करवाई हो, वो तुम्हारी बुर पर चार चांद लगा दिया है। हमको पता होता तो तुम्हारे लिए मस्त डायमंड की रिंग लाते बुर पर पहनने के लिए। तुम आज हमारा दिल जीत ली हो।लिक.... लिक... उम्म्मम।
कविता- ऊ ऊ ऊ हमारे भैया, कितने अच्छे हो तुम। पर आज हमको तुम्हारा लण्ड चाहिए और कुछ नहीं। अपनी बहन को खूब चोदो इस रक्षाबंधन के पवित्र त्योहार पर। अपना लण्ड दो ना।
जय- कविता दीदी, आज दिनभर तुमको खूब चोदेंगे। टेंशन मत लो।
कविता- टेंशन बुर में है, भैया। प्लीज घुसा दो ना अपना लौड़ा।
जय- ठीक है, पर चुसोगी नहीं लण्ड को,सीधे घुसा दें बुर में।
कविता- हाँ, प्लीज अब घुसाओ, बाद में चूसेंगे।आज वियाग्रा इसलिए ही तो खाये हैं कि, तुम्हारा तंबू खड़ा रहे।
जय- ठीक है। तो तुम ऊपर आओ और हम लेटते हैं।
 

Rakesh1999

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कविता बिना देर किए जय के ऊपर आ गयी। फिर उसने जय के लण्ड पर थूक दिया। और उसके लण्ड को अपनी बुर पर सेट कर उसपर बैठते हुए पूरे नीचे चली गयी। लण्ड पूरी तरह उसके बुर में समा गया। उसके मुंह से एक लंबी आआहह निकली। इस वक़्त वो जय के छाती पर हाथ टिकाए थी और उसका चेहरा छत की ओर था। उसका मुंह खुला था। जय के हाथ कविता की चुच्चियों को मसल रहे थे। कविता की कमर धीरे धीरे हिल रही थी। जिससे उसे मज़ा आ रहा था। कविता," उम्म्म्म्मममः, ऊफ़्फ़फ़, की आवाज़ें निकाल रही थी। जय के लण्ड पर बंधी राखी को कविता के बुर से चूते रस से भीग चुकी थी। उस राखी की किस्मत में भी शायद यही लिखा था, कि एक बहन का प्यार इस हद तक बढ़ जाएगा कि उसको भाई के लण्ड पर बंधना होगा।
जय कविता को निहार रहा था। कविता पूरी मस्त हो चली थी। अब उसकी कमर की स्पीड बढ़ चुकी थी। वो तेजी से अपने भारी चूतड़ों को उछाल रही थी। जय भी जोश में आ चुका था। पर वो इस वक़्त कविता की बेशर्मी और बेशब्री का मज़ा ले रहा था। कुछ आधे घंटे तक कविता ऐसे ही चुद रही थी। फिर वो चीखते हुए झड़ गयी। जय ने उसको अपनी बाहों में भर लिया। कविता बोली," जय आई लव यू,। वो हांफ रही थी।
जय- आई लव यू टू, कविता दीदी।

अब आगे क्या क्या होगा? आज दिनभर कविता और जय के बीच क्या क्या होगा? क्या ममता को जय और कविता के बारे में पता चल जाएगा? आखिर ममता उनके बदले रिश्ते की मंजूरी देगी? देखते हैं अगले भाग में।
 

Rakesh1999

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कहानी जारी रहेगी।अगला अपडेट जल्दी ही।
कहानी के बारेे में अपनी राय अवश्य लिखे।
 
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urc4me

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Rasprad aur Romanchak. Waiting for next update
 

Lutgaya

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Jaisa ki iss kahani ka title hai kya ye galat hai to meri nazar me nahi ye galat nahi hai ye bilkul sahi hai aur aur bhi jyada sahi tab hoga jab ye kahani puri complete hogi real life me bhi sage bhai bahan aapas mai chudaie karte hain ye bilkul sach hai
भाई आज तक रियल में कोई भाई बहन चुदाई करने वाला मिला तो नही कहानी में ही पढा है
 
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Rakesh1999

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कविता अपने भाई के ऊपर नंगी पड़ी हुई थी। जय उसके बालों को सहला रहा था। उसने कविता की चूचियों को अपने मुंह मे दबा रखा था। जैसे कोई बच्चा कविता अपने भाई के ऊपर नंगी पड़ी हुई थी। जय उसके बालों को सहला रहा था। उसने कविता की चूचियों को अपने मुंह मे दबा रखा था। जैसे कोई बच्चा अपनी माँ का दूध पीता है। साथ ही साथ वो उसके चूतड़ों को भी सहला रहा था। जय का लण्ड कविता की गाँड़ की दरार से चिपका हुआ था। उसका लण्ड तो फौलाद की तरह कड़क था।
कविता- मज़ा आया तुमको जय भाईजानू?
जय- कविता दीदी तुम जब दीदी का चोला उतार, रंडी बन जाती हो तब हमको बड़ा मजा आता है। हमको बड़ा मजा आता है, जब तुम खुलके चुदती हो।
कविता- ओह्ह हमारे जानू भैया। तुमको हम सारी उम्र मज़े कराएंगे। चाहे उसके लिए हमको जो करना पड़े। तुमको हम अपना स्वामी मानते हैं, और एक दासी का यही कर्तव्य है कि अपने स्वामी को खुश रखे।
जय- तो तुम हमारी दासी हो! तो जो हम कहेंगे तुमको करना पड़ेगा हमारी प्यारी रंडी कविता दीदी।
कविता- हुक्म तो करके देखो तुम,ओह्ह सॉरी आप?
जय- ठीक है, बेड से उतरो और कुत्ती बन जाओ।
कविता ने वैसे ही किया। वो कुतिया की तरह चौपाया हो गयी। फिर जय उसके बालों को पकड़के उसको कमरे से बाहर ले आया, और उसके कमरे में ले गया। उसने पूछा," लिपस्टिक कहा है तुम्हारी? कविता- वो वहां दराज़ में है। इतना कहना था कि जय ने एक थप्पड़ उसके गाल पर जड़ दिया, और बोला," कुतिया बोलती नहीं सिर्फ भौंकती है, जीभ बाहर लटकाती है। इशारों से बात कर हरामज़्यादी, कुत्ती कमीनी, तोहर माँ के चोदू, भोंसड़ीवाली, कुतिया की पिल्ली।
कविता का चेहरा लाल हो उठा। पर उसे समझ आ गया था कि जय शायद आज कोई नरमी नहीं बरतेगा। कहीं ना कहीं वो भी जय के हाथों जलील होना पसंद करती थी। कविता," भौं भौं ( ठीक है)।
जय- ये हुई ना बात, कुतिया साली।
जय ने लिपस्टिक निकाला और कविता के माथे पर हिंदी में लिखा" रंडी"।
जय ने उसके सामने फर्श पर थूका, और कविता से बोला," चाट ले इसे"। कविता एक पालतू कुतिया की तरह लपलपाती जीभ से बिना एक पल हिचके थूक चाट गयी।जय- और चाटेगी?
कविता- भौं भौं वुफ ( जरूर जरूर, हां)। जय ने उसके खुले मुंह मे थूक दिया। कविता उसे पेडिग्री समझ के निगल गयी।
जय- कविता माई बिच, हमारा फोन ले आओ। कविता जय का फोन अपने मुँह में उठा लाती है। जय कविता की गाँड़ को सहलाते हुए उससे फोन ले लेता है। फिर जय कविता की कुछ तस्वीरें निकालता है। कविता बिल्कुल कुत्ती बानी हुई थी।
जय- तुम अब वापिस कविता दीदी बन सकती हो।
कविता उठके जय के पास बैठ गयी। फिर जय ने उससे पूछा," कैसा लगा दीदी?
कविता- जय तुम बुरा तो नहीं मानोगे ना, या हमको गलत मत समझना। पर जो तुमने अभी किया, उसमे हमको बहुत मज़ा आया। हम आजतक ब्लू फिल्मों में देखे थे, ऐसे करते हुए।
जय- हम बुरा काहे मानेंगे। पगला गयी हो क्या? तुमको अगर मज़ा आया तो हमको डबल मज़ा आया ये करने में।
 
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