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Incest क्या ये गलत है ? (completed)

Rakesh1999

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कविता- नहीं माने हमको लगा कि कहीं, तुमको बुरा लगे कि तुम्हारी सगी दीदी को इस तरह घिनौना खेल पसंद है, इसलिए बोले थे। हमको हमेशा से इसी तरह चुदने का मन है। खूब गंदी चुदाई, गाली गलौच से भरी हुई। हमको एक दम घटिया सस्ती रंडी बनाकर चोदो। ऐसे चोदो की कल सुबह हम अपने नज़रों से गिर जाए। तुम तो बहुत प्यार से चोदते हो। ना तो भद्दी भद्दी गालियां देते हो, ना हमको जलील करते हो। हमको एहसास दिलाओ कि हम सिर्फ चुदने के लिए बने हैं। समझ लो कि तुम हमको खरीद लिए हो, और बस तुम्हारे लिए भोगने की चीज़ हैं। हमारे अंदर अपनी बहन को नहीं, एक कोठे की रंडी को देखो। तुमको खुश………
जय- एक मिनट.... एक मिनट.... तुम ये सब जो बोल रही हो। सच मे बोल रही हो ना। तुम सच मे हमारी शरीफ कविता दीदी हो ना। हमको नहीं पता था कि तुमको ऐसे चुदवाने का शौक है। अब तो बस तुम देखोगी की कैसे हम तुमको जलील कर करके चोदेंगे।
कविता- हमको हमेशा से ऐसे ही चुदने का मन है। पर शर्म से बोल नहीं पाती थी।
जय- अरे रंडी की बच्ची, चल अब शर्म को हमेशा के लिए टाटा बोल दो,क्योंकि अब जो तुम्हारे साथ होगा,उसमें तो शर्म को भी शर्म आ जायेगा।
जा अपनी गंदी कच्छी ले आओ और किचन से गिलास और गाजर का हलवा ले आओ।
कविता गाँड़ मटकाते हुए चली गयी। जय अपने लण्ड पर बंधी राखी को देखकर सोच रहा था कि क्या किस्मत है उसकी। कविता थोड़ी देर बाद वापिस आ गयी। उसके हाथ में गंदी मैरून रंग की पैंटी थी। दूसरे हाथ में कटोरी में गाजर का हलवा और गिलास था। जय के पास वापिस आकर बैठ गयी। जय ने कविता से कहा," छिनाल सुन इधर सामने आओ। अपनी बुर को फैलाओ।" उसने उसकी पैंटी को कविता के बुर में घुसा दिया। उसके बाद उसने कविता को पीछे घोड़ी बनने को बोला। कविता तुरंत घोड़ी बन गयी, और पीछे मुड़कर बोली," क्या करने वाले हो?"
जय- चल अपनी गाँड़ को फैला, तुम्हारी गाँड़ में ये पूरा गाजर का हलवा जाएगा।
कविता उत्साहित होकर- क्या??
जय- हाँ, सही सुना तुमने। चलो फैलाओ।
कविता ने वैसा ही किया," ये लो"।
जय ने धीरे धीरे एक एक चम्मच करके पूरा गाजर का हलवा कविता की गाँड़ में ठूस दिया। कविता हंसते,मुस्कुराते हुए सब देख रही थी, और मज़े ले रही थी। तब जय ने कविता के बाल पकड़के अपनी तरफ घुमा लिया। और उसके हाथों में वो कटोरी पकड़ा दी। जय- कैसा लग रहा है तुमको, बुरचोदी साली?
कविता- सारा हलवा तो तुम हमारे गाँड़ में डाल दिये, अब क्या करोगे?
जय- वो अभी रहने दो। पहले अब लण्ड चूसो। पर जब तुम चुसोगी तो तुम अपना थूक इस कटोरे में चुआओगी। हमारे लण्ड से जो तुम्हारा थूक चुएगा वो भी इस कटोरे में और हम जो थूकेंगे वो भी इसी में। इसे फेंकना मत हराम की पिल्ली।
कविता- ओह, वाओ ठीक है।
और जय का लण्ड चूसने लगी। जय आराम से बेड पर बैठा था। और कविता अपने मुंह का जादू दिखा रही थी। जय कविता के चूतड़ों को सहलाते हुए उस पर थाप भी मार रहा था। कविता धीरे धीरे जय के लण्ड को कसके चूसने लगी। जय ने कविता को भद्दी भद्दी गालियां देने शुरू कर दिया," क्या बात है माँ की लौड़ी, भोंसड़ीवाली, साली तुमको तो पोर्नस्टार होना चाहिए। कहां से बिहार में पैदा हो गयी, तुमको तो अमेरिका में पैदा होना चाहिए था, वो भी किसी पोर्नस्टार के घर या रंडी के। तुझ पे शराफत जचेगी ही नही।अच्छा हुआ अपना असली रूप खुलके बता दिया, अपने अंदर ऐसी खतरनाक जंगली बिल्ली छुपा के रखी थी, मादरचोद।
 

Rakesh1999

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कविता मुस्कुराते हुए लण्ड चुसि रही थी। तभी जय ने लण्ड का दबाव कविता के हलक तक पहुंचा दिया। कविता हटना चाहती थी, पर जय ने उसपर जोर बनाये रखा। उसके होंठों जय के लण्ड के जड़ में बंधी रखी से टकड़ा रहे थे। कविता गूं....गूं... उबकाई के साथ स्वतः छूट गई। जय का लण्ड थूक से सना हुआ था, और लण्ड से थूक चूने लगा तो कविता ने कटोरी लण्ड के नीचे लगा दिया, और अपने मुंह से चूते हुए लेर को हाथों में इकठ्ठा कर उस कटोरी में डाल दिया। जय ने उसी वक़्त कविता से कहा," अरे बड़े घर की छिनाल लड़की, इतने से काम नहीं चलेगा। तुमको टाइम बढ़ाना होगा।" कविता हाँ में सर हिलाई। और वापिस से जय के लण्ड को मुंह मे घुसा ली। जय- हाँ.... आआहह...आ..आ.. बहुत अच्छे अच्छा कर रही हो। ये लो इनाम।" और उसने उस कटोरी में थूक का बड़ा लौंदा गिरा दिया। कविता ने कटोरी बढाके उसमें थूक ले लिया। कविता फिर कटोरी को अपने मुंह के ठीक नीचे,जहां लण्ड उसके मुंह मे घुसा था, लगा दिया। उसके मुंह से लगातार थूक और लेर अब चूने लगे थे। जय को ये बेहद कामुक लग रहा था। कविता धीरे धीरे, अपनी स्पीड भी बढ़ा रही थी। उसने जय के लण्ड को और अंदर लेना शुरू किया। जय उसके गालों पर हल्की थपकियाँ मार रहा था। कविता धीरे से पूरा लण्ड अपने मुंह मे समा ली। और जय के लण्ड के अंतिम छोड़ तक जा पहुंची। जय ने उसका प्रोत्साहन बढ़ाया," हां, कविता रंडी दीदी ऐसे ही, बहुत अच्छे। अभी मुंह मे लिए रहो, देखो कितनी देर तक रुक सकती है।कविता आँखे बड़ी करके जय की आंखों में देख रही थी। और जय के प्रोत्साहन से सांसे थाम कोई 15 सेकण्ड्स तक टिकी रही। फिर गैग रिफ्लेक्स की वजह से स्वतः अलग हो गयी। और हांफते हुए हंस रही थी।
जय कविता को हंसता देख हसने लगा। कविता- ठीक कर रहे हैं ना हम?
जय- हहम्मम्म पर तुम इससे और अच्छा कर सकती हो, समझी। और ट्राय करो।" कविता के चेहरे को वापिस भीगे लण्ड पर झुका दिया। कविता फिर लण्ड चूसने की प्रक्रिया में लीन हो गयी। कविता इस बार खुदको ही हराने के चक्कड़ में थी। इस बार उसने पूरे 30 सेकंड तक पूरे लण्ड को अपने हलक में छुपाए रखा। जय को इतनी देर की उम्मीद नहीं थी। जय के आंड़ कविता के ठुड्ढी पर लटक रहे थे। कविता के चेहरे का निचला हिस्सा पूरी तरह गीला हो चुका था। उसके हाथों में रखी कटोरी आधी भर चुकी थी। आखिरकार कविता ने मुंह से लण्ड को निकाला। जय ने उसके लिए ताली बजाई। कविता करीब 10 मिनट तक लण्ड चूसती रही।
जय- चल अब तुम्हारी गाँड़ चोदेंगे, और मज़ा आएगा।
कविता- पर उसमे तो हलवा भरे हुए हो। उसका क्या?
जय- लण्ड अपनी जगह बना लेगा। तुम कुतिया बन जाओ।
कविता फिर चौपाया हो गयी और जय के सामने अपनी भूरी छेद वाली गाँड़ परोस दी। जय ने उसके भारी भरकम चूतड़ों पर पहले थूका और तीन चार करारे थप्पड़ मारे। कविता थप्पड़ से उठे दर्द से ज्यादा आनंद महसूस कर रही थी। उसने खुद ही अपने चूतड़ पर तमाचे मारे सटाक... सटाक...," और मारो, हमारे गाँड़ पर। लाल कर दो।" और अपनी गाँड़ हिलाने लगी। जय ने फिर और कसके झापड़ मारे। फट....फट....सट।
जय ने फिर अपना लण्ड कविता की गाँड़ पर रखा, और पूछा," क्यों रे रंडी की बच्ची, लण्ड चाहिए।
कविता- हहम्म, हां चाहिए हमको।
जय- क्या चाहिए कुत्ती खुलके बोल। उसके बाल खींचते हुए बोला।
कविता- लण्ड आपका लण्ड हमको अपनी गाँड़ में चाहिए।
जय- भीख मांग लण्ड के लिए।
कविता- प्लीज हम भीख मांगते हैं, ये मस्त लण्ड हमारी गाँड़ में डालो। हमारी गाँड़ मारिये ना प्लीज। उफ़्फ़फ़ प्लीज प्लीज।
जय ने कविता के गाँड़ में अचानक से लण्ड के आगे का हिस्सा घुसाया।कविता के मुंह से चीख निकली, पर जय को कोई फर्क नहीं परा। कविता के बाल पकड़े हुए, उसने लण्ड को घुसाना चालू रखा। कविता एक हाथ से अपने बांयी चूतड़ को पकड़े थी। गाँड़ के अंदर मौजूद गाजर का हलवा लण्ड के दबाव की वजह से और अंदर अंतरियों की ओर घुस गया। जय के लण्ड पर हलवे का दबाव एक गद्दे की तरह लग रहा। थोड़ी देर में में कविता की गाँड़ जय के घुसपैठिये लण्ड से अभ्यस्त हो चुकी थी। जय कविता की गाँड़ में लण्ड रखे उसकी गाँड़ के अंदर का पूरा अंदाज़ा लगा रहा था। एक तो कविता की गाँड़ में नेचुरल मूंग के हलवे जैसा टेक्सचर, था और अब गाजर का हलवा उसमें क़यामत ढा रहा था। कुछ देर ऐसे रहने के बाद जय कविता से पूछा," मस्त गाँड़ है तुम्हारी कविता रंडी दीदी ?
कविता मुस्कुराते हुए," धत्त, क्या अच्छा है?
 

Rakesh1999

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जय- पता है, तुम्हारी गाँड़ लाखों में एक है। उफ़्फ़फ़, क्या शेप है तुम्हारे चुत्तर का। उसने धीरे धीरे धक्के मारने शुरू किए। कविता के मुंह, से सीत्कारें, उठने लगी। जय ने उसकी गाँड़ पर बने टैटू को छूते हुए, कस कसके उसकी गाँड़ मारने लगा। कविता के पास चीखें मारने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। जय को उसमे बेहद आनंद आ रहा था। गाँड़ मारते हुए, कविता की गाँड़ से हलवा थोड़ा थोड़ा नीचे गिरने लगा। पर जय ने कुछ नही कहा।अब कविता भी दर्द से निकल आनंद के चौखट चूम रही थी।
कविता पीछे मुड़के, जय की ओर देखते हुए, बोली," ऊऊऊ...हहहहहह हां..... ऐसे ही मारो गाँड़। इस रक्षाबंधननन... बहन का तोहफा है। मज़ा आ रहा है ना। हम भाईचोदी रंडी है। ऊऊऊ हहहहहहह आआहह, ऊफ़्फ़फ़।
जय- हम इस पावन अवसर पर तुम्हारी गाँड़ मार रहे हैं दीदी, वो भी अपने लण्ड पर तुम्हारी बंधी हुई राखी के साथ। इससे बड़ा घिनौना रिश्ता हम कायम नही कर सकते। तेरी गाँड़ में जो हलवा है, उससे मज़ा और बढ़ गया है। तुमको अभी लण्ड भी चुसायेंगे। तुम्हारी गाँड़ में हलवा मिक्स तैयार कर रहे हैं। तुम्हारी गाँड़ का स्वाद, हलवे का स्वाद और लण्ड का स्वाद मिक्स हो जाएगा। खाएगी ना।
कविता पे सेक्स और वियाग्रा का नशा चढ़ा हुआ था। उसने जीभ से होंठों को चाटते हुए कहा," उम्म्महह, ऊफ़्फ़फ़ सोचके ही मुंह मे पानी आ रहा है। इस तरह तो और मज़ा आएगा। लाओ दो ना।
जय- सब्र करो रंडी रानी, तुमको मीठा फल मिलेगा। पहले अपनी गाँड़ की चुदाई तो करने दे।" जय उसको करीब पांच मिनट और चोदा, कविता के बार बार कहने पर उसने लण्ड निकाला और कविता भूखी कुतिया की तरह लण्ड चाटने लगी। लण्ड पर चिपचिपा लसलसा पदार्थ लगा हुआ था। कविता ने उसे जी भर के चाटा। कविता की बुर में उसकी पैंटी बाहर आ रही थी, जय ने वो पैंटी उसके मुंह मे घुसा दी। जय ने फिर लण्ड वापिस कविता की गाँड़ में घुसा दिया, और चोदने लगा। कविता के मुंह मे उसकी बुर के रास से भीगी पैंटी थी, जिससे उसकी आवाज़ सिर्फ गूं...गूं.... कर आ रही थी। कविता एक हाथ से अपना बुर रगड़ रही थी। पर दोनों में से कोई अभी रुकने को तैयार नहीं था। थोड़ी देर बाद जय ने फिर लण्ड निकाला, और कविता की खुली चुदी फैली गाँड़ को निहारा। उसने थूक उसकी गाँड़ में थूका। और फिर गाँड़ मारने लगा। जय ने फिर और थोड़ी देर कविता की गाँड़ मारी। फिर कविता के हाथों से कटोरी ले ली। उसने लण्ड निकाला, और उसकी गाँड़ में कटोरी में इकट्ठा थूक और लेर सब डाल दिया। उसने फिर लण्ड वापिस घुसा दिया। कविता की गाँड़ में एक मस्त मीठा मसाला तैयार हो रहा था। जय ने उसकी पैंटी निकालकर अपने गले में डाल लिया। कविता मस्ती में ठुकवाती जा रही थी। उसने बोला,"ऊफ़्फ़फ़, आआहह, ऊईई तुम बिल्कुल वैसे ही कर रहे हो, जैसा हमको चाहिए था। ऊफ़्फ़फ़। हमारी गाँड़ में सब मिला दिया। इसका क्या करेंगे? हमको खिलाओगे ना।
जय- हां डार्लिंग तुम्हारे लिए ही है, तुमको यही खाना है। अभी थोड़ी देर में हम मूठ भी गिरा देंगे। फिर तुम्हारा प्रोटीन भी आ जायेगा इस मीठे मसाले में। और ठहाका लगाके हंसा। कविता भी हंसने लगी। थोड़ी देर बाद जय बोला," ऊफ़्फ़फ़ ओह्ह ओह्ह लगता है मूठ गिरने वाला है। आह....आह।
कविता," आआहह हमारा भी होने वाला है। आह ओऊऊऊ... अंदर ही गिराओगे ना। अपनी बहन को दे दो, अपना ताज़ा ताज़ा मूठ। हमको बहुत मस्त लगता है। आ जाओ चुआ दो। आआहहहहहहहहह
और दोनों एक साथ झड़ गए। जय ने मूठ की 5 6 लंबी पिचकारियां मारी। फिर उसने अपना लण्ड निकाला, और उसकी पैंटी कविता की गाँड़ में ठूस दी।
कविता- ये क्यों ठूस दी।
जय- जहाँ तक तुमको जानते हैं दीदी, तुम कुछ भी बर्बाद नहीं करना चाहोगी। इसलिए पहले तुम लण्ड से सब चाटके साफ करोगी। और जो डिश तुम्हारी गाँड़ में है, उसे तुम्हारी पैंटी रोके रखेगी।
कविता बिल्कुल माधुरी दीक्षित सी मूती से दांत बिखेड़ दी। पर वासना से डूबे उसकी आंखें बिना पालक झपके उसके लण्ड को निहार रही थी। जय के लण्ड पर मटमैले लाल रंग चढ़ा हुआ था। क्योंकि उसमें गाजर का लाल हलवा, थूक, मूठ का मिला जुला मिश्रण था। कविता घुटनो के बल नीचे बैठ गयी। और जय की ओर देखते हुए, लण्ड को उठाकर निचले हिस्से को चाटने लगी। फिर मुस्कुराते हुए बोली," ये तो मीठा है।"
जय हंसते हुए," क्यों नही जान तुम्हारे गाँड़ और गाजर की हलवे की मिठास मिलकर और मीठी हो गयी होगी।" कविता झट से बोली," और तुम्हारा थूक और मूठ भी।" जय और कविता दोनों हंसे। कविता पूरा लण्ड साफ कर गयी और जय के लण्ड जे अंदर बचा खुचा मूठ भी चूस गयी।
फिर जय ने कविता को कटोरी वापिस दे दी। और कविता हगने की पोज़ में बैठ गयी। कटोरी को ठीक गाँड़ के नीचे लगा लिया। कविता," गाँड़ बहुत भारी लग रहा है, जैसे कि हगने के पहले लगता है।"
 

Rakesh1999

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जय," तो अभी हगोगी ही ना, उस मीठे मसाले को जिसे अपने गाँड़ में भारी हुई हो।"
कविता," पैंटी निकाल दो ना।" जय," ये लो अभी निकाल देता हूँ।" वो पीछे से जाकर पैंटी निकाल देता है। पैंटी निकालने के बाद कविता की वीडियो रिकॉर्ड करने लगता है। कविता के गाँड़ से चिपचिपा लुवेदार पदार्थ निकलने लगता है। एकदम मटमैले लाल रंग सा। वो सीधा कटोरी में गिर रहा था। जय बड़े गौर से देख रहा था। कविता धीरे धीरे सब निकाल रही थी। कटोरी भर गई। जय ने पूछा, " सब निकल गया।" कविता," नहीं अभी इतना और है अंदर।" जय ने फिर पैंटी उसकी गाँड़ में घुसा दी। और चम्मच से गाँड़ के छेद के आसपास लटकती उस पदार्थ को कटोरी में डाल दिया। कविता की ओर कटोरी बढाके उसने कहा," ये है सब्र का मीठा फल। खा लो।"
कविता कटोरी ले लेती है और एक चम्मच खाती है," उम्म्मम, बहुत टेस्टी है, वाओ, बहुत मजेदार है।" वो धीरे धीरे चम्मच से कहा रही थी, जबकि जय उसकी वीडियो बना रहा था।
" मीठा है, साथ में प्रोटीन भी है इसमें, ये तो हेल्थी है।" तुमने तो कमाल कर दिया हमको एक नया डिश बाबाके खिलाये।"कविता बोले जा रही थी।
कविता," क्या हम अच्छी लड़की नहीं हैं? अब ये तो हमारा मन हमको ये सब करबे को कहता है। हम जो हैं वही हैं। तुमको हम ऐसे अच्छे लगते हैं या शरीफ दीदी की तरह।"
जय उसके बाल संवारते हुए," तुम एक बहुत अच्छी लड़की हो कविता दीदी। जैसी हो वैसे ही रहो। बल्कि तुम्हारा ये रूप देख हम और तुमको चाहने लगे हैं। तुम ये बताओ ऐसा घिनौना सेक्स ही तुमको पसंद है ना?
कविता मैस्कुराते हुए," हां, सही बोल रहे हैं। इसीमें तो मज़ा आता है।" कटोरी चाटते हुए बोली। वो सब खा चुकी थी।
तभी पता नहीं जय को क्या सूझा कविता को बोला," मूत पियोगी और घिनौना होगा। हम अपना मूत पिलाते हैं तुमको।
कविता गिलास उठा ली, और मुस्कुराते हुए जय के लण्ड के सामने गिलास रख दी।

माँ का दूध पीता है। साथ ही साथ वो उसके चूतड़ों को भी सहला रहा था। जय का लण्ड कविता की गाँड़ की दरार से चिपका हुआ था। उसका लण्ड तो फौलाद की तरह कड़क था।
कविता- मज़ा आया तुमको जय भाईजानू?
जय- कविता दीदी तुम जब दीदी का चोला उतार, रंडी बन जाती हो तब हमको बड़ा मजा आता है। हमको बड़ा मजा आता है, जब तुम खुलके चुदती हो।
कविता- ओह्ह हमारे जानू भैया। तुमको हम सारी उम्र मज़े कराएंगे। चाहे उसके लिए हमको जो करना पड़े। तुमको हम अपना स्वामी मानते हैं, और एक दासी का यही कर्तव्य है कि अपने स्वामी को खुश रखे।
जय- तो तुम हमारी दासी हो! तो जो हम कहेंगे तुमको करना पड़ेगा हमारी प्यारी रंडी कविता दीदी।
कविता- हुक्म तो करके देखो तुम,ओह्ह सॉरी आप?
जय- ठीक है, बेड से उतरो और कुत्ती बन जाओ।
कविता ने वैसे ही किया। वो कुतिया की तरह चौपाया हो गयी। फिर जय उसके बालों को पकड़के उसको कमरे से बाहर ले आया, और उसके कमरे में ले गया। उसने पूछा," लिपस्टिक कहा है तुम्हारी? कविता- वो वहां दराज़ में है। इतना कहना था कि जय ने एक थप्पड़ उसके गाल पर जड़ दिया, और बोला," कुतिया बोलती नहीं सिर्फ भौंकती है, जीभ बाहर लटकाती है। इशारों से बात कर हरामज़्यादी, कुत्ती कमीनी, तोहर माँ के चोदू, भोंसड़ीवाली, कुतिया की पिल्ली।
कविता का चेहरा लाल हो उठा। पर उसे समझ आ गया था कि जय शायद आज कोई नरमी नहीं बरतेगा। कहीं ना कहीं वो भी जय के हाथों जलील होना पसंद करती थी। कविता," भौं भौं ( ठीक है)।
जय- ये हुई ना बात, कुतिया साली।
जय ने लिपस्टिक निकाला और कविता के माथे पर हिंदी में लिखा" रंडी"।
जय ने उसके सामने फर्श पर थूका, और कविता से बोला," चाट ले इसे"। कविता एक पालतू कुतिया की तरह लपलपाती जीभ से बिना एक पल हिचके थूक चाट गयी।जय- और चाटेगी?
 

Rakesh1999

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कविता- भौं भौं वुफ ( जरूर जरूर, हां)। जय ने उसके खुले मुंह मे थूक दिया। कविता उसे पेडिग्री समझ के निगल गयी।
जय- कविता माई बिच, हमारा फोन ले आओ। कविता जय का फोन अपने मुँह में उठा लाती है। जय कविता की गाँड़ को सहलाते हुए उससे फोन ले लेता है। फिर जय कविता की कुछ तस्वीरें निकालता है। कविता बिल्कुल कुत्ती बानी हुई थी।
जय- तुम अब वापिस कविता दीदी बन सकती हो।
कविता उठके जय के पास बैठ गयी। फिर जय ने उससे पूछा," कैसा लगा दीदी?
कविता- जय तुम बुरा तो नहीं मानोगे ना, या हमको गलत मत समझना। पर जो तुमने अभी किया, उसमे हमको बहुत मज़ा आया। हम आजतक ब्लू फिल्मों में देखे थे, ऐसे करते हुए।
जय- हम बुरा काहे मानेंगे। पगला गयी हो क्या? तुमको अगर मज़ा आया तो हमको डबल मज़ा आया ये करने में।
कविता- नहीं माने हमको लगा कि कहीं, तुमको बुरा लगे कि तुम्हारी सगी दीदी को इस तरह घिनौना खेल पसंद है, इसलिए बोले थे। हमको हमेशा से इसी तरह चुदने का मन है। खूब गंदी चुदाई, गाली गलौच से भरी हुई। हमको एक दम घटिया सस्ती रंडी बनाकर चोदो। ऐसे चोदो की कल सुबह हम अपने नज़रों से गिर जाए। तुम तो बहुत प्यार से चोदते हो। ना तो भद्दी भद्दी गालियां देते हो, ना हमको जलील करते हो। हमको एहसास दिलाओ कि हम सिर्फ चुदने के लिए बने हैं। समझ लो कि तुम हमको खरीद लिए हो, और बस तुम्हारे लिए भोगने की चीज़ हैं। हमारे अंदर अपनी बहन को नहीं, एक कोठे की रंडी को देखो। तुमको खुश………
जय- एक मिनट.... एक मिनट.... तुम ये सब जो बोल रही हो। सच मे बोल रही हो ना। तुम सच मे हमारी शरीफ कविता दीदी हो ना। हमको नहीं पता था कि तुमको ऐसे चुदवाने का शौक है। अब तो बस तुम देखोगी की कैसे हम तुमको जलील कर करके चोदेंगे।
कविता- हमको हमेशा से ऐसे ही चुदने का मन है। पर शर्म से बोल नहीं पाती थी।
जय- अरे रंडी की बच्ची, चल अब शर्म को हमेशा के लिए टाटा बोल दो,क्योंकि अब जो तुम्हारे साथ होगा,उसमें तो शर्म को भी शर्म आ जायेगा।



जा अपनी गंदी कच्छी ले आओ और किचन से गिलास और गाजर का हलवा ले आओ।
कविता गाँड़ मटकाते हुए चली गयी। जय अपने लण्ड पर बंधी राखी को देखकर सोच रहा था कि क्या किस्मत है उसकी। कविता थोड़ी देर बाद वापिस आ गयी। उसके हाथ में गंदी मैरून रंग की पैंटी थी। दूसरे हाथ में कटोरी में गाजर का हलवा और गिलास था। जय के पास वापिस आकर बैठ गयी। जय ने कविता से कहा," छिनाल सुन इधर सामने आओ। अपनी बुर को फैलाओ।" उसने उसकी पैंटी को कविता के बुर में घुसा दिया। उसके बाद उसने कविता को पीछे घोड़ी बनने को बोला। कविता तुरंत घोड़ी बन गयी, और पीछे मुड़कर बोली," क्या करने वाले हो?"
जय- चल अपनी गाँड़ को फैला, तुम्हारी गाँड़ में ये पूरा गाजर का हलवा जाएगा।
कविता उत्साहित होकर- क्या??
जय- हाँ, सही सुना तुमने। चलो फैलाओ।
कविता ने वैसा ही किया," ये लो"।
जय ने धीरे धीरे एक एक चम्मच करके पूरा गाजर का हलवा कविता की गाँड़ में ठूस दिया। कविता हंसते,मुस्कुराते हुए सब देख रही थी, और मज़े ले रही थी। तब जय ने कविता के बाल पकड़के अपनी तरफ घुमा लिया। और उसके हाथों में वो कटोरी पकड़ा दी। जय- कैसा लग रहा है तुमको, बुरचोदी साली?
कविता- सारा हलवा तो तुम हमारे गाँड़ में डाल दिये, अब क्या करोगे?
जय- वो अभी रहने दो। पहले अब लण्ड चूसो। पर जब तुम चुसोगी तो तुम अपना थूक इस कटोरे में चुआओगी। हमारे लण्ड से जो तुम्हारा थूक चुएगा वो भी इस कटोरे में और हम जो थूकेंगे वो भी इसी में। इसे फेंकना मत हराम की पिल्ली।
कविता- ओह, वाओ ठीक है।
और जय का लण्ड चूसने लगी। जय आराम से बेड पर बैठा था। और कविता अपने मुंह का जादू दिखा रही थी। जय कविता के चूतड़ों को सहलाते हुए उस पर थाप भी मार रहा था।
 

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कविता धीरे धीरे जय के लण्ड को कसके चूसने लगी। जय ने कविता को भद्दी भद्दी गालियां देने शुरू कर दिया," क्या बात है माँ की लौड़ी, भोंसड़ीवाली, साली तुमको तो पोर्नस्टार होना चाहिए। कहां से बिहार में पैदा हो गयी, तुमको तो अमेरिका में पैदा होना चाहिए था, वो भी किसी पोर्नस्टार के घर या रंडी के। तुझ पे शराफत जचेगी ही नही।अच्छा हुआ अपना असली रूप खुलके बता दिया, अपने अंदर ऐसी खतरनाक जंगली बिल्ली छुपा के रखी थी, मादरचोद।
कविता मुस्कुराते हुए लण्ड चुसि रही थी। तभी जय ने लण्ड का दबाव कविता के हलक तक पहुंचा दिया। कविता हटना चाहती थी, पर जय ने उसपर जोर बनाये रखा। उसके होंठों जय के लण्ड के जड़ में बंधी रखी से टकड़ा रहे थे। कविता गूं....गूं... उबकाई के साथ स्वतः छूट गई। जय का लण्ड थूक से सना हुआ था, और लण्ड से थूक चूने लगा तो कविता ने कटोरी लण्ड के नीचे लगा दिया, और अपने मुंह से चूते हुए लेर को हाथों में इकठ्ठा कर उस कटोरी में डाल दिया। जय ने उसी वक़्त कविता से कहा," अरे बड़े घर की छिनाल लड़की, इतने से काम नहीं चलेगा। तुमको टाइम बढ़ाना होगा।" कविता हाँ में सर हिलाई। और वापिस से जय के लण्ड को मुंह मे घुसा ली। जय- हाँ.... आआहह...आ..आ.. बहुत अच्छे अच्छा कर रही हो। ये लो इनाम।" और उसने उस कटोरी में थूक का बड़ा लौंदा गिरा दिया। कविता ने कटोरी बढाके उसमें थूक ले लिया। कविता फिर कटोरी को अपने मुंह के ठीक नीचे,जहां लण्ड उसके मुंह मे घुसा था, लगा दिया। उसके मुंह से लगातार थूक और लेर अब चूने लगे थे। जय को ये बेहद कामुक लग रहा था। कविता धीरे धीरे, अपनी स्पीड भी बढ़ा रही थी। उसने जय के लण्ड को और अंदर लेना शुरू किया। जय उसके गालों पर हल्की थपकियाँ मार रहा था। कविता धीरे से पूरा लण्ड अपने मुंह मे समा ली। और जय के लण्ड के अंतिम छोड़ तक जा पहुंची। जय ने उसका प्रोत्साहन बढ़ाया," हां, कविता रंडी दीदी ऐसे ही, बहुत अच्छे। अभी मुंह मे लिए रहो, देखो कितनी देर तक रुक सकती है।कविता आँखे बड़ी करके जय की आंखों में देख रही थी। और जय के प्रोत्साहन से सांसे थाम कोई 15 सेकण्ड्स तक टिकी रही। फिर गैग रिफ्लेक्स की वजह से स्वतः अलग हो गयी। और हांफते हुए हंस रही थी।
जय कविता को हंसता देख हसने लगा। कविता- ठीक कर रहे हैं ना हम?
जय- हहम्मम्म पर तुम इससे और अच्छा कर सकती हो, समझी। और ट्राय करो।" कविता के चेहरे को वापिस भीगे लण्ड पर झुका दिया। कविता फिर लण्ड चूसने की प्रक्रिया में लीन हो गयी। कविता इस बार खुदको ही हराने के चक्कड़ में थी। इस बार उसने पूरे 30 सेकंड तक पूरे लण्ड को अपने हलक में छुपाए रखा। जय को इतनी देर की उम्मीद नहीं थी। जय के आंड़ कविता के ठुड्ढी पर लटक रहे थे। कविता के चेहरे का निचला हिस्सा पूरी तरह गीला हो चुका था। उसके हाथों में रखी कटोरी आधी भर चुकी थी। आखिरकार कविता ने मुंह से लण्ड को निकाला। जय ने उसके लिए ताली बजाई। कविता करीब 10 मिनट तक लण्ड चूसती रही।
जय- चल अब तुम्हारी गाँड़ चोदेंगे, और मज़ा आएगा।
कविता- पर उसमे तो हलवा भरे हुए हो। उसका क्या?



जय- लण्ड अपनी जगह बना लेगा। तुम कुतिया बन जाओ।
कविता फिर चौपाया हो गयी और जय के सामने अपनी भूरी छेद वाली गाँड़ परोस दी। जय ने उसके भारी भरकम चूतड़ों पर पहले थूका और तीन चार करारे थप्पड़ मारे। कविता थप्पड़ से उठे दर्द से ज्यादा आनंद महसूस कर रही थी। उसने खुद ही अपने चूतड़ पर तमाचे मारे सटाक... सटाक...," और मारो, हमारे गाँड़ पर। लाल कर दो।" और अपनी गाँड़ हिलाने लगी। जय ने फिर और कसके झापड़ मारे। फट....फट....सट।
जय ने फिर अपना लण्ड कविता की गाँड़ पर रखा, और पूछा," क्यों रे रंडी की बच्ची, लण्ड चाहिए।
कविता- हहम्म, हां चाहिए हमको।
जय- क्या चाहिए कुत्ती खुलके बोल। उसके बाल खींचते हुए बोला।
कविता- लण्ड आपका लण्ड हमको अपनी गाँड़ में चाहिए।
जय- भीख मांग लण्ड के लिए।
कविता- प्लीज हम भीख मांगते हैं, ये मस्त लण्ड हमारी गाँड़ में डालो। हमारी गाँड़ मारिये ना प्लीज। उफ़्फ़फ़ प्लीज प्लीज।
 

Rakesh1999

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जय ने कविता के गाँड़ में अचानक से लण्ड के आगे का हिस्सा घुसाया।कविता के मुंह से चीख निकली, पर जय को कोई फर्क नहीं परा। कविता के बाल पकड़े हुए, उसने लण्ड को घुसाना चालू रखा। कविता एक हाथ से अपने बांयी चूतड़ को पकड़े थी। गाँड़ के अंदर मौजूद गाजर का हलवा लण्ड के दबाव की वजह से और अंदर अंतरियों की ओर घुस गया। जय के लण्ड पर हलवे का दबाव एक गद्दे की तरह लग रहा। थोड़ी देर में में कविता की गाँड़ जय के घुसपैठिये लण्ड से अभ्यस्त हो चुकी थी। जय कविता की गाँड़ में लण्ड रखे उसकी गाँड़ के अंदर का पूरा अंदाज़ा लगा रहा था। एक तो कविता की गाँड़ में नेचुरल मूंग के हलवे जैसा टेक्सचर, था और अब गाजर का हलवा उसमें क़यामत ढा रहा था। कुछ देर ऐसे रहने के बाद जय कविता से पूछा," मस्त गाँड़ है तुम्हारी कविता रंडी दीदी ?
कविता मुस्कुराते हुए," धत्त, क्या अच्छा है?
जय- पता है, तुम्हारी गाँड़ लाखों में एक है। उफ़्फ़फ़, क्या शेप है तुम्हारे चुत्तर का। उसने धीरे धीरे धक्के मारने शुरू किए। कविता के मुंह, से सीत्कारें, उठने लगी। जय ने उसकी गाँड़ पर बने टैटू को छूते हुए, कस कसके उसकी गाँड़ मारने लगा। कविता के पास चीखें मारने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। जय को उसमे बेहद आनंद आ रहा था। गाँड़ मारते हुए, कविता की गाँड़ से हलवा थोड़ा थोड़ा नीचे गिरने लगा। पर जय ने कुछ नही कहा।अब कविता भी दर्द से निकल आनंद के चौखट चूम रही थी।
कविता पीछे मुड़के, जय की ओर देखते हुए, बोली," ऊऊऊ...हहहहहह हां..... ऐसे ही मारो गाँड़। इस रक्षाबंधननन... बहन का तोहफा है। मज़ा आ रहा है ना। हम भाईचोदी रंडी है। ऊऊऊ हहहहहहह आआहह, ऊफ़्फ़फ़।
जय- हम इस पावन अवसर पर तुम्हारी गाँड़ मार रहे हैं दीदी, वो भी अपने लण्ड पर तुम्हारी बंधी हुई राखी के साथ। इससे बड़ा घिनौना रिश्ता हम कायम नही कर सकते। तेरी गाँड़ में जो हलवा है, उससे मज़ा और बढ़ गया है। तुमको अभी लण्ड भी चुसायेंगे। तुम्हारी गाँड़ में हलवा मिक्स तैयार कर रहे हैं। तुम्हारी गाँड़ का स्वाद, हलवे का स्वाद और लण्ड का स्वाद मिक्स हो जाएगा। खाएगी ना।
कविता पे सेक्स और वियाग्रा का नशा चढ़ा हुआ था। उसने जीभ से होंठों को चाटते हुए कहा," उम्म्महह, ऊफ़्फ़फ़ सोचके ही मुंह मे पानी आ रहा है। इस तरह तो और मज़ा आएगा। लाओ दो ना।



जय- सब्र करो रंडी रानी, तुमको मीठा फल मिलेगा। पहले अपनी गाँड़ की चुदाई तो करने दे।" जय उसको करीब पांच मिनट और चोदा, कविता के बार बार कहने पर उसने लण्ड निकाला और कविता भूखी कुतिया की तरह लण्ड चाटने लगी। लण्ड पर चिपचिपा लसलसा पदार्थ लगा हुआ था। कविता ने उसे जी भर के चाटा। कविता की बुर में उसकी पैंटी बाहर आ रही थी, जय ने वो पैंटी उसके मुंह मे घुसा दी। जय ने फिर लण्ड वापिस कविता की गाँड़ में घुसा दिया, और चोदने लगा। कविता के मुंह मे उसकी बुर के रास से भीगी पैंटी थी, जिससे उसकी आवाज़ सिर्फ गूं...गूं.... कर आ रही थी। कविता एक हाथ से अपना बुर रगड़ रही थी। पर दोनों में से कोई अभी रुकने को तैयार नहीं था। थोड़ी देर बाद जय ने फिर लण्ड निकाला, और कविता की खुली चुदी फैली गाँड़ को निहारा। उसने थूक उसकी गाँड़ में थूका। और फिर गाँड़ मारने लगा। जय ने फिर और थोड़ी देर कविता की गाँड़ मारी। फिर कविता के हाथों से कटोरी ले ली। उसने लण्ड निकाला, और उसकी गाँड़ में कटोरी में इकट्ठा थूक और लेर सब डाल दिया। उसने फिर लण्ड वापिस घुसा दिया। कविता की गाँड़ में एक मस्त मीठा मसाला तैयार हो रहा था। जय ने उसकी पैंटी निकालकर अपने गले में डाल लिया। कविता मस्ती में ठुकवाती जा रही थी। उसने बोला,"ऊफ़्फ़फ़, आआहह, ऊईई तुम बिल्कुल वैसे ही कर रहे हो, जैसा हमको चाहिए था। ऊफ़्फ़फ़। हमारी गाँड़ में सब मिला दिया। इसका क्या करेंगे? हमको खिलाओगे ना।
जय- हां डार्लिंग तुम्हारे लिए ही है, तुमको यही खाना है। अभी थोड़ी देर में हम मूठ भी गिरा देंगे। फिर तुम्हारा प्रोटीन भी आ जायेगा इस मीठे मसाले में। और ठहाका लगाके हंसा। कविता भी हंसने लगी। थोड़ी देर बाद जय बोला," ऊफ़्फ़फ़ ओह्ह ओह्ह लगता है मूठ गिरने वाला है। आह....आह।
कविता," आआहह हमारा भी होने वाला है। आह ओऊऊऊ... अंदर ही गिराओगे ना। अपनी बहन को दे दो, अपना ताज़ा ताज़ा मूठ। हमको बहुत मस्त लगता है। आ जाओ चुआ दो। आआहहहहहहहहह
और दोनों एक साथ झड़ गए। जय ने मूठ की 5 6 लंबी पिचकारियां मारी। फिर उसने अपना लण्ड निकाला, और उसकी पैंटी कविता की गाँड़ में ठूस दी।
कविता- ये क्यों ठूस दी।
जय- जहाँ तक तुमको जानते हैं दीदी, तुम कुछ भी बर्बाद नहीं करना चाहोगी। इसलिए पहले तुम लण्ड से सब चाटके साफ करोगी। और जो डिश तुम्हारी गाँड़ में है, उसे तुम्हारी पैंटी रोके रखेगी।
 

Rakesh1999

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कविता बिल्कुल माधुरी दीक्षित सी मूती से दांत बिखेड़ दी। पर वासना से डूबे उसकी आंखें बिना पालक झपके उसके लण्ड को निहार रही थी। जय के लण्ड पर मटमैले लाल रंग चढ़ा हुआ था। क्योंकि उसमें गाजर का लाल हलवा, थूक, मूठ का मिला जुला मिश्रण था। कविता घुटनो के बल नीचे बैठ गयी। और जय की ओर देखते हुए, लण्ड को उठाकर निचले हिस्से को चाटने लगी। फिर मुस्कुराते हुए बोली," ये तो मीठा है।"
जय हंसते हुए," क्यों नही जान तुम्हारे गाँड़ और गाजर की हलवे की मिठास मिलकर और मीठी हो गयी होगी।" कविता झट से बोली," और तुम्हारा थूक और मूठ भी।" जय और कविता दोनों हंसे। कविता पूरा लण्ड साफ कर गयी और जय के लण्ड जे अंदर बचा खुचा मूठ भी चूस गयी।
फिर जय ने कविता को कटोरी वापिस दे दी। और कविता हगने की पोज़ में बैठ गयी। कटोरी को ठीक गाँड़ के नीचे लगा लिया। कविता," गाँड़ बहुत भारी लग रहा है, जैसे कि हगने के पहले लगता है।"


जय," तो अभी हगोगी ही ना, उस मीठे मसाले को जिसे अपने गाँड़ में भारी हुई हो।"
कविता," पैंटी निकाल दो ना।" जय," ये लो अभी निकाल देता हूँ।" वो पीछे से जाकर पैंटी निकाल देता है। पैंटी निकालने के बाद कविता की वीडियो रिकॉर्ड करने लगता है। कविता के गाँड़ से चिपचिपा लुवेदार पदार्थ निकलने लगता है। एकदम मटमैले लाल रंग सा। वो सीधा कटोरी में गिर रहा था। जय बड़े गौर से देख रहा था। कविता धीरे धीरे सब निकाल रही थी। कटोरी भर गई। जय ने पूछा, " सब निकल गया।" कविता," नहीं अभी इतना और है अंदर।" जय ने फिर पैंटी उसकी गाँड़ में घुसा दी। और चम्मच से गाँड़ के छेद के आसपास लटकती उस पदार्थ को कटोरी में डाल दिया। कविता की ओर कटोरी बढाके उसने कहा," ये है सब्र का मीठा फल। खा लो।"
कविता कटोरी ले लेती है और एक चम्मच खाती है," उम्म्मम, बहुत टेस्टी है, वाओ, बहुत मजेदार है।" वो धीरे धीरे चम्मच से कहा रही थी, जबकि जय उसकी वीडियो बना रहा था।
" मीठा है, साथ में प्रोटीन भी है इसमें, ये तो हेल्थी है।" तुमने तो कमाल कर दिया हमको एक नया डिश बनाके खिलाये।"कविता बोले जा रही थी।
कविता," क्या हम अच्छी लड़की नहीं हैं? अब ये तो हमारा मन हमको ये सब करने को कहता है। हम जो हैं वही हैं। तुमको हम ऐसे अच्छे लगते हैं या शरीफ दीदी की तरह।"
जय उसके बाल संवारते हुए," तुम एक बहुत अच्छी लड़की हो कविता दीदी। जैसी हो वैसे ही रहो। बल्कि तुम्हारा ये रूप देख हम और तुमको चाहने लगे हैं। तुम ये बताओ ऐसा घिनौना सेक्स ही तुमको पसंद है ना?
कविता मैस्कुराते हुए," हां, सही बोल रहे हैं। इसीमें तो मज़ा आता है।" कटोरी चाटते हुए बोली। वो सब खा चुकी थी।


अब आगे क्या होगा क्योंकि अभी आधा दिन बाकी है इन दोनों के लिए। कविता और जय किस हद तक जाएंगे? ममता भी आनेवाली है।
 

Rakesh1999

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कहानी जारी रहेगी।अगला अपडेट जल्दी ही।
कहानी के बारेे में अपनी राय अवश्य लिखे।
 
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Rakesh1999

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Sex thoda jyada ganda ho gaya hai.jinhe pasand na ho wo na padhe.thanks
 
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