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कविता- नहीं माने हमको लगा कि कहीं, तुमको बुरा लगे कि तुम्हारी सगी दीदी को इस तरह घिनौना खेल पसंद है, इसलिए बोले थे। हमको हमेशा से इसी तरह चुदने का मन है। खूब गंदी चुदाई, गाली गलौच से भरी हुई। हमको एक दम घटिया सस्ती रंडी बनाकर चोदो। ऐसे चोदो की कल सुबह हम अपने नज़रों से गिर जाए। तुम तो बहुत प्यार से चोदते हो। ना तो भद्दी भद्दी गालियां देते हो, ना हमको जलील करते हो। हमको एहसास दिलाओ कि हम सिर्फ चुदने के लिए बने हैं। समझ लो कि तुम हमको खरीद लिए हो, और बस तुम्हारे लिए भोगने की चीज़ हैं। हमारे अंदर अपनी बहन को नहीं, एक कोठे की रंडी को देखो। तुमको खुश………
जय- एक मिनट.... एक मिनट.... तुम ये सब जो बोल रही हो। सच मे बोल रही हो ना। तुम सच मे हमारी शरीफ कविता दीदी हो ना। हमको नहीं पता था कि तुमको ऐसे चुदवाने का शौक है। अब तो बस तुम देखोगी की कैसे हम तुमको जलील कर करके चोदेंगे।
कविता- हमको हमेशा से ऐसे ही चुदने का मन है। पर शर्म से बोल नहीं पाती थी।
जय- अरे रंडी की बच्ची, चल अब शर्म को हमेशा के लिए टाटा बोल दो,क्योंकि अब जो तुम्हारे साथ होगा,उसमें तो शर्म को भी शर्म आ जायेगा।
जा अपनी गंदी कच्छी ले आओ और किचन से गिलास और गाजर का हलवा ले आओ।
कविता गाँड़ मटकाते हुए चली गयी। जय अपने लण्ड पर बंधी राखी को देखकर सोच रहा था कि क्या किस्मत है उसकी। कविता थोड़ी देर बाद वापिस आ गयी। उसके हाथ में गंदी मैरून रंग की पैंटी थी। दूसरे हाथ में कटोरी में गाजर का हलवा और गिलास था। जय के पास वापिस आकर बैठ गयी। जय ने कविता से कहा," छिनाल सुन इधर सामने आओ। अपनी बुर को फैलाओ।" उसने उसकी पैंटी को कविता के बुर में घुसा दिया। उसके बाद उसने कविता को पीछे घोड़ी बनने को बोला। कविता तुरंत घोड़ी बन गयी, और पीछे मुड़कर बोली," क्या करने वाले हो?"
जय- चल अपनी गाँड़ को फैला, तुम्हारी गाँड़ में ये पूरा गाजर का हलवा जाएगा।
कविता उत्साहित होकर- क्या??
जय- हाँ, सही सुना तुमने। चलो फैलाओ।
कविता ने वैसा ही किया," ये लो"।
जय ने धीरे धीरे एक एक चम्मच करके पूरा गाजर का हलवा कविता की गाँड़ में ठूस दिया। कविता हंसते,मुस्कुराते हुए सब देख रही थी, और मज़े ले रही थी। तब जय ने कविता के बाल पकड़के अपनी तरफ घुमा लिया। और उसके हाथों में वो कटोरी पकड़ा दी। जय- कैसा लग रहा है तुमको, बुरचोदी साली?
कविता- सारा हलवा तो तुम हमारे गाँड़ में डाल दिये, अब क्या करोगे?
जय- वो अभी रहने दो। पहले अब लण्ड चूसो। पर जब तुम चुसोगी तो तुम अपना थूक इस कटोरे में चुआओगी। हमारे लण्ड से जो तुम्हारा थूक चुएगा वो भी इस कटोरे में और हम जो थूकेंगे वो भी इसी में। इसे फेंकना मत हराम की पिल्ली।
कविता- ओह, वाओ ठीक है।
और जय का लण्ड चूसने लगी। जय आराम से बेड पर बैठा था। और कविता अपने मुंह का जादू दिखा रही थी। जय कविता के चूतड़ों को सहलाते हुए उस पर थाप भी मार रहा था। कविता धीरे धीरे जय के लण्ड को कसके चूसने लगी। जय ने कविता को भद्दी भद्दी गालियां देने शुरू कर दिया," क्या बात है माँ की लौड़ी, भोंसड़ीवाली, साली तुमको तो पोर्नस्टार होना चाहिए। कहां से बिहार में पैदा हो गयी, तुमको तो अमेरिका में पैदा होना चाहिए था, वो भी किसी पोर्नस्टार के घर या रंडी के। तुझ पे शराफत जचेगी ही नही।अच्छा हुआ अपना असली रूप खुलके बता दिया, अपने अंदर ऐसी खतरनाक जंगली बिल्ली छुपा के रखी थी, मादरचोद।
जय- एक मिनट.... एक मिनट.... तुम ये सब जो बोल रही हो। सच मे बोल रही हो ना। तुम सच मे हमारी शरीफ कविता दीदी हो ना। हमको नहीं पता था कि तुमको ऐसे चुदवाने का शौक है। अब तो बस तुम देखोगी की कैसे हम तुमको जलील कर करके चोदेंगे।
कविता- हमको हमेशा से ऐसे ही चुदने का मन है। पर शर्म से बोल नहीं पाती थी।
जय- अरे रंडी की बच्ची, चल अब शर्म को हमेशा के लिए टाटा बोल दो,क्योंकि अब जो तुम्हारे साथ होगा,उसमें तो शर्म को भी शर्म आ जायेगा।
जा अपनी गंदी कच्छी ले आओ और किचन से गिलास और गाजर का हलवा ले आओ।
कविता गाँड़ मटकाते हुए चली गयी। जय अपने लण्ड पर बंधी राखी को देखकर सोच रहा था कि क्या किस्मत है उसकी। कविता थोड़ी देर बाद वापिस आ गयी। उसके हाथ में गंदी मैरून रंग की पैंटी थी। दूसरे हाथ में कटोरी में गाजर का हलवा और गिलास था। जय के पास वापिस आकर बैठ गयी। जय ने कविता से कहा," छिनाल सुन इधर सामने आओ। अपनी बुर को फैलाओ।" उसने उसकी पैंटी को कविता के बुर में घुसा दिया। उसके बाद उसने कविता को पीछे घोड़ी बनने को बोला। कविता तुरंत घोड़ी बन गयी, और पीछे मुड़कर बोली," क्या करने वाले हो?"
जय- चल अपनी गाँड़ को फैला, तुम्हारी गाँड़ में ये पूरा गाजर का हलवा जाएगा।
कविता उत्साहित होकर- क्या??
जय- हाँ, सही सुना तुमने। चलो फैलाओ।
कविता ने वैसा ही किया," ये लो"।
जय ने धीरे धीरे एक एक चम्मच करके पूरा गाजर का हलवा कविता की गाँड़ में ठूस दिया। कविता हंसते,मुस्कुराते हुए सब देख रही थी, और मज़े ले रही थी। तब जय ने कविता के बाल पकड़के अपनी तरफ घुमा लिया। और उसके हाथों में वो कटोरी पकड़ा दी। जय- कैसा लग रहा है तुमको, बुरचोदी साली?
कविता- सारा हलवा तो तुम हमारे गाँड़ में डाल दिये, अब क्या करोगे?
जय- वो अभी रहने दो। पहले अब लण्ड चूसो। पर जब तुम चुसोगी तो तुम अपना थूक इस कटोरे में चुआओगी। हमारे लण्ड से जो तुम्हारा थूक चुएगा वो भी इस कटोरे में और हम जो थूकेंगे वो भी इसी में। इसे फेंकना मत हराम की पिल्ली।
कविता- ओह, वाओ ठीक है।
और जय का लण्ड चूसने लगी। जय आराम से बेड पर बैठा था। और कविता अपने मुंह का जादू दिखा रही थी। जय कविता के चूतड़ों को सहलाते हुए उस पर थाप भी मार रहा था। कविता धीरे धीरे जय के लण्ड को कसके चूसने लगी। जय ने कविता को भद्दी भद्दी गालियां देने शुरू कर दिया," क्या बात है माँ की लौड़ी, भोंसड़ीवाली, साली तुमको तो पोर्नस्टार होना चाहिए। कहां से बिहार में पैदा हो गयी, तुमको तो अमेरिका में पैदा होना चाहिए था, वो भी किसी पोर्नस्टार के घर या रंडी के। तुझ पे शराफत जचेगी ही नही।अच्छा हुआ अपना असली रूप खुलके बता दिया, अपने अंदर ऐसी खतरनाक जंगली बिल्ली छुपा के रखी थी, मादरचोद।