ममता ने उसकी ओर देखा," हाँ, कविता तेरे भाई ने पता नहीं क्या जादू कर दिया है। ये जिस्म की प्यास बड़ी कमबख्त चीज़ है। देखो तुम्हारी माँ कैसे जल रही है।"
कविता उसकी आँखों मे देखकर बोली," हम भी उस आग में अभी जल रहे हैं माँ। क्यों ना हम दोनों एक दूसरे के साथ आज की रात......."
इतना कहना था कि ममता ने कविता को पकड़के होंठो पर चूम लिया। दोनों लंबा चुम्मा लेने लगे।
( आज का दिन) तभी जय बोला," अरे तुम दोनों चूमती रहोगी एक दूसरे को या आगे भी कुछ बताओगी।" ममता और कविता एक दूसरे के बाल पकड़े, होंठो से होंठो को मिलाए चूम रही थी। उन्होंने किस करते हुए तिरछी नज़रों से जय की ओर देखा। फिर मुस्कुराई। कविता बोली," सॉरी हम दोनों उस दिन में डूब गए। फिर आगे सुनो.....
(फ्लैशबैक)
दोनों एक दूसरे के ऊपर चढ़ गई थी। किस करते हुए कब वो दोनों जंगली बिल्लियां बन गयी, पता ही नहीं चला।दोनों एक दूसरे को बेतहाशा चूमे जा रही थी। ममता ने कविता की टॉप उतार दी। वो उसके चूचियों की क्लीवेज के ऊपर चूम रही थी। कविता ममता की चूचियाँ दबा रही थी। उसने भी ममता के ब्लाउज के बटन खोल दिये। दोनों उठके बैठ गयी। और एक दूसरे की ब्रा उतार दी। दोनों ऊपर से बिल्कुल नंगी हो चली थी।कविता अपनी लेग्गिंग्स और कच्छी उतार फेंकी। और ममता के मुंह मे अपनी चुच्ची दे दी। ममता के जांघों पर वो इस वक़्त बैठी थी। ममता उसकी चुच्चियों को चूमते हुए, उसके चूचक चूस रही थी। कविता ममता के सर को पकड़े उसे अपनी चुच्ची पर दबा रही थी। दोनों की सांसें अब तेज़ चल रही थी। क्या दृश्य था, जिस माँ ने अपनी बेटी को दूध पिलाया था, वो बेटी आज अपनी माँ को अपनी चुच्ची चुसवा रही थी। कविता ममता की बुर को लगातार छेड़ रही थी। ममता ने भी अपनी गीली कच्छी उतार दी। दोनों माँ बेटी अब नंगी थी। ममता को कविता को देखकर उसकी जवानी याद आ गयी। वो बिल्कुल ममता पर जो गयी थी। वही बाल, वैसे ही आंखे, वही चेहरा, वही चुच्चियाँ, वही कमर, वैसे ही चूतड़, वही जाँघे। सच पूछो तो इस वक़्त ममता कविता के साथ नहीं अपने 21 साल पुराने जिस्म के साथ काम क्रीड़ा कर रही थी। ममता बारी बारी से उसकी चुच्चियाँ चूस रही थी।कविता की आँहें तेज हो रही थी। तब ममता ने कविता को लिटा दिया और उसके ऊपर आ गयी। उसके गालों को चूमा, फिर उसके रसीले होंठों को चूमने लगी। कविता अपनी माँ को गालों से पकड़के भरपूर सहयोग दे रही थी। दोनों की चुच्चियाँ एक दूसरे की चुच्चियों से दबी हुई थी।ममता की चूचियाँ कविता के मुकाबले भारी और बड़ी थी। उनके निप्पल आपस में रगड़ खा रहे थे। दोनों जानबूझकर एक दूसरे की चुच्चियों पर दबाव बना रहे थे। जिससे दोनों को असीम आनंद मिल रहा था। ममता उसको चूमते हुए नीचे की ओर बढ़ी, और उसकी चूचियों को दबाते हुए चूसने लगी।कविता के मुंह से सीत्कारें उठने लगी। ऊहहहहह, आआहहहहहहह, ऊऊईई कमरे में चारों ओर आवाज़ें गूंज रही थी। थोड़ी देर उसकी चुच्चियाँ चूसने के बाद, ममता उसके पेट को चूमते हुए, उसकी बुर पर पहुंची, जहाँ उसकी बेटी की बुर हल्की झाँटों से ढकी हुई थी। ममता ने देखा, वहां कविता ने छिदाई करवा रही थी। उसने इशारों से कविता से पूछा," ये क्या है? कविता बोली," आपके बेटे ने करवाया है।" और हंस दी। ममता को ये बहुत आकर्षक लगा। वो कविता की बुर को चूसने लगी।उसकी बुर तो पहले से ही काफी गीली थी। ममता की लपलपाती जीभ, उसके बुर पर एहसास होते ही और ज्यादा रस गिराने लगी। ममता ने ये खेल पहले भी माया के साथ खेला था, तो वो इस खेल की पुरानी खिलाड़ी थी। वो कविता की बुर में उंगलियां घुसाकर अंदर बाहर करने लगी। कविता अपने बुर के ऊपरी हिस्से को गोल गोल घुमाते हुए सहला रही थी। दूसरे हाथ से ममता के सर को पकड़े हुए थी। ममता कभी उसके बुर को हाथों से रगड़ती, कभी अपनी जीभ से उसके खट्टे नमकीन बुर के रस को चाटती। उसके बुर में एक एक करके अपनी दो उंगलियां घुसा देती और ज़ोर ज़ोर से अंदर बाहर करते हुए, हिलाती। बुर पर चिकनाई कम होती तो थूक देती थी। कविता तो जैसे सातवें आसमान पर थी।