ममता अपनी बेटी को ज्ञान देते हुए बोली," कविता, ये हमेशा से ही औरतों का कर्तव्य रहा है, कि बिस्तर में रंडी का स्वभाव अपनाए। एक औरत को जीवन में सब किरदार, निभाने होते हैं, पत्नी का, माँ का, बहन का, बेटी का और बिस्तर में वेश्या का। हर पत्नी पति की वेश्या होती है। और वेश्या का काम, अपने मर्द को खुश करना होता है।बिस्तर में उनकी नाज़ायज़ मांग भी पूरी की जाती है,ताकि वो तुम्हारे बदन का भोग करके, संतुष्ट हो जाये। इस वक़्त तुम और हम एक वेश्या के किरदार में है। अगर हम दोनों बिस्तर पर, जय का पूरा ध्यान रखेंगे, तो ही ये हमारी हर ज़रूरत पूरी करेगा। हम चाहते हैं, तुम इस बात को ध्यान में रखो। और खुदको, समर्पित कर दो। तुम जब भी चुदवाती हो, तुम्हारे अंदर हम खुद को देखते हैं। अपनी जवानी की झलक मिलती है। वही चुच्चियों को हिलना, वही गाँड़ का थिरकना, बुर से बहता लसलसा पानी और चेहरे पर चुदने की प्रबल इच्छा। तुम वाकई, किसी भी मर्द को खुश कर सकती हो।" ममता उसकी उछलती चुच्चियों को भींचते हुए ज्ञान दे रही थी। एक माँ, अपनी बेटी को चुदाई का प्रैक्टिकल क्लास दे रही थी।
जय- वाह, रे रंडी बहुत अच्छा ज्ञान दे रही हो, अपनी बेटी को। तुम जैसी महान माँ, हो तो घर में बेटी को रंडी की ट्रेनिंग फ्री में मिलेगी। चलो अब लण्ड चाटो, और अपनी बेटी के बुर का स्वाद चखो।"
ममता हंसी, कविता कामुकता की वजह से सिर्फ मुस्कुराई। ममता झुककर सीधा, बुर से अंदर बाहर होते, उसके रस से भीगे चमकते लण्ड पर, अपनी जीभ फेरने लगी। वो ने के टांगों के बीच लेटी थी, कविता लण्ड पर सवारी कर रही थी। बेटी बुर में लण्ड घुसाए कूद रही थी, और माँ उसके बुर के रस को बेटे के लण्ड पर से साफ कर रही थी। ममता की आंखे, दोनों के यौनांगों, के एक दम करीब थी। जय का आंड़ जामुन की तरह लटका था, और लण्ड कविता के बुर में घुसकर गायब हो जाता था, फिर उछलने से आधा दिखता था। कविता की बुर जैसे लण्ड को चारों तरफ से पकड़के सिकंजा कसे हुए थी। ममता, कविता के चूतड़ पकड़के, उसकी उछलने में मदद कर रही थी। लण्ड के निचले हिस्से, की फूली हुई नली और नसें, उसके जीभ के संपर्क में आकर और लण्ड की फड़कन बढ़ा रही थी। कविता की बुर का निचला हिस्सा, जिधर गाँड़ होता है, उस हिस्से से गजब की महक आ रही थी। कविता के बुर का रस, लण्ड और बुर की गर्मी से, कामुक गंध में बदल कर ममता के नाक में घुस रही थी। कविता के गाँड़ और बुर के बीच का हिस्सा कोई आधा इंच का गहरा साँवला रंग का था। ममता उस हिस्से को जीभ से चाटने लगी और जय के आंड़ को सहला रही थी। ममता चाटते हुए बीच में थूक लगा देती। कविता के चूतड़ों से जय के लण्ड के बांए और दांये, बुर के रस और थूक के मिश्रण से बने गीली पदार्थ के धागे जुड़ गए थे। पूरे कमरे में थप थप की मधुर आवाज़ें गूंज रही थी, जो कविता के चूतड़ों के प्रहार से उत्पन्न हो रही थी। कमरे की निर्जीव चीज़े, भी जैसे इस मनोरम दृश्य को देख रही थी। तभी कविता के तेजी से चूतड़ उछालने की वजह से लण्ड बाहर आ गया और ममता के गालों से टकराया। कविता हंसने लगी और बोली," माँ, देखो ना लण्ड नाराज़ तो नहीं है, बाहर भाग गया।"