मेरा मोबाइल काफी देर से घनघना रहा था। मैंने तपाक से फोन उठाया और जवाब दिया, “हम्म, हेलो !"
“हद है, देव भाई ! तुम ऐसा ही करते हो हमेशा एक तो वीकेंड का प्लान भी बनाओ और बिना बताए खुद कैन्सिल भी कर दो। यदि प्लान कैन्सिल है तो बता ही दो कम से कम मैं कब से फ़ोन कर रहा हूँ, उठा क्यों नहीं रहे?", गुस्से में एकदम शताब्दी एक्सप्रेस की तरह फ़ोन पर
दूसरी तरफ से विकास की आवाज आई। “अरे यार ! किसने कहा कि प्लान कैन्सिल हो गया?", से प्रतिउत्तर में कहा। मैंने तपाक
“जब फ़ोन नहीं उठा रहे तो इसको मैं क्या समझू ?", विकास
फिर ताने मारते हुए कहा। “भाई. जब तुमने फोन किया था, तब मैं बाइक चला रहा था। फिर
घर आते ही मैं वॉशरूम चला गया था।”, मैंने उसको शान्त करवाने की
कोशिश की।
"ओह! चलो ठीक है। तो फिर क्या प्लान है कल का चलना है
ना?”, विकास ने उत्सुकता से मुझसे पूछा ।
“बिल्कुल भाई !”, मैंने हामी भरी। “मैंने तो सब तैयारी कर ली है। बाकी तुम्हारे ऊपर है।”, विकास ने इस बार खुश हो कर कहा ।
"तो फिर बताओ, कल कब और कहाँ मिलोगे?”, मैंने विकास से कल के प्लान को अमलीजामा पहनाने के लिए पूछा ।
"देखो. मैं आज रात 11:30 बजे गुरुग्राम से बस से निकलूंगा, जो मुझे 'देहरादून आईएसबीटी' सुबह 5:30 बजे पहुँचा देगी। फिर में वहाँ से
रेलवे स्टेशन पहुँच जाऊंगा। तुम वहाँ कितने बजे तक आ जाओगे?" "मैं 6 बजे तक आ जाऊंगा। तब तक तुम मसूरी जाने के लिए टिकट ले लेना।", मैंने जवाब दिया।
"ठीक है! हमेशा की तरह देर मत करना। समय से आ जाना, नहीं तो मैं वहाँ बैठे-बैठे बोर हो जाऊंगा।", विकास ने कहा।
मैंने उसको फोन पर ही दिलासा दिया और उम्मीद बनाए रखने को कहा।
मैं, देव, देहरादून में शास्त्री नगर अपने घर आया हुआ था । विकास गुरुग्राम में पिछले चार साल से किसी कंपनी में नौकरी करता था। हम दोनों ने शुक्रवार और शनिवार, दो दिनों की ट्रेकिंग पर जाने की योजना बनाई थी।
ट्रेकिंग के लिए तीन तरह की तैयारियां करनी पड़ती है, जिन्हें शारीरिक, मानसिक और आर्थिक तैयारियां कह सकते हैं। किसी भी यात्रा के लिए मेरा जोर मानसिक तैयारी पर ज्यादा रहता है। उसमें उस इलाके की अधिक से अधिक जानकारी हासिल करना शामिल होता है। कहने का मतलब यह हुआ कि वहाँ का मौसम, भौगोलिक परिस्थिति और उस जगह का इतिहास। आपको जितनी ज्यादा जानकारी होगी. मुश्किल हालातों में यह उतनी ही काम आएगी। मानसिक पटल पर वैकल्पिक मार्ग भी तैयार होना चाहिए।
बहरहाल, इसके लिए सबसे पहले हमें शुक्रवार की सुबह देहरादून में इकट्ठे होकर, वहाँ से मसूरी निकलना था। देहरादून से मसूरी लगभग 35 कि.मी. की दूरी और 6170 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यह पहाड़ों की रानी से विख्यात है।