इस कहानी के बारे में क्या ही कहूं, दिल अपना प्रीत पराई के बाद ये दूसरी कहानी है जिसने दिल को छू ही नहीं लिया बल्कि रूह तक में समा गई है। फ़ौजी भाई, सोचा नहीं था कि इतना जल्दी ये कहानी समाप्त हो जाएगी और दिल धक्क से रह जाएगा किंतु एक दिन तो ये होना ही था। रहस्य, रोमांच, कौतूहल और उत्सुकता का ये धागा हम सबके गले में वैसा ही पड़ गया था जैसा रीना के गले में पड़ा था। लाजवाब लेखनी, लाजवाब कल्पना और बेहद ही सुंदर शब्दों द्वारा पिरोया गया कहानी का हर डायलॉग और हर दृश्य....अद्भुत।
अर्जुन सिंह की जो छवि हमारे ज़हन में बन गई थी वो उससे अलग ही निकला। अक्सर जो दिखता है वो सच नहीं होता और ये बात अर्जुन सिंह के क़िरदार से साबित भी हो गई। अतीत में ये जो कुछ भी हुआ था वो तो नियति का ही खेल था जिसमें मंदा के साथ इतना बड़ा अन्याय और अत्याचार हुआ था। ये अलग बात है कि नियति के खेल में जहां मंदा जैसी लड़की का सब कुछ लुट गया वहीं अर्जुन सिंह जैसे अच्छे इंसान और भाई पर ऐसा घिनौना लांछन भी लग गया कि उसने अपनी मुंह बोली बहन को बर्बाद किया था। ख़ैर ऊपर बैठे विधाता के खेल निराले हैं, हम सब तो उसके हाथ की कठपुतलियां हैं।
एक तरफ अर्जुन सिंह का पिता तो दूसरी तरफ दद्दा ठाकुर का बेटा बलवीर जिसने ऐसे कर्मकाण्ड की बुनियाद रखी थी। ज़ाहिर है जब इस तरह का कुकर्म किसी के साथ होगा तो ऐसे बुरे कर्म का फल भी किसी न किसी रूप में भोगने को मिलेगा ही। इस कहानी में ये जान कर हैरत हुई कि मीता और रीना दोनों ही मंदा की बेटियां थीं और आपस में सगी बहनें थीं। दोनों की पैदाइश भी अलग तरह से हुई जो कि हैरतंगेज बात है। मीता का तो समझ में आया किंतु रीना कैसे पैदा हुई क्योंकि मंदा तो कदाचित जीवित ही न बची थी?
मंदा ने प्रतिशोध लिया और जिस जिस ने उसके साथ बुरा किया था उसे उसने जहन्नुम भेज दिया, अंततः अर्जुन सिंह और संध्या के द्वारा उसे ये सच भी पता चला कि अर्जुन सिंह ने उसके साथ कभी कुछ बुरा नहीं किया था बल्कि उसने तो वो काम किया था जो आज के युग में कोई किसी के लिए नहीं कर सकता। उसने घिनौना इल्ज़ाम अपने सिर ले लिया और उसकी बेटियों को जीवित रखा। खुद सोलह साल उसने सब कुछ त्याग कर अज्ञातवास की तरह गुजारे किंतु न तो उसने कभी मंदा के चरित्र पर दाग़ लगने दिया और न ही उसकी बेटियों का भविष्य अंधकारमय होने दिया। पृथ्वी का चरित्र भी अपने बाप बलवीर की तरह ही घटिया था जिसका उसे दण्ड मिला। मेरा खयाल है कि अब शायद ही उसके वंश में कोई ऐसा बचा हो जो दद्दा ठाकुर की वंश बेल को आगे बढ़ा सके। ख़ैर अर्जुन सिंह और संध्या के द्वारा सच का पता चल जाने पर मंदा का क्रोध शांत हुआ और उसके मन से अर्जुन सिंह के प्रति गुस्सा और प्रतिशोध की भावना ख़त्म हो गई। अंततः उसे उस भयानक योनि और बंधन से मुक्ति गई।
मनीष को रीना और मीता दोनों का ही प्रेम मिल गया। हालाकि मीता एक तरह से संध्या की बेटी भी हुई और उस नाते वो मनीष की बहन हुई। किंतु ज़ाहिर है प्रेम के आगे ये सब बेमतलब ही है। वैसे भी किसी को अब इस रिश्ते से कोई आपत्ती नहीं थी। ख़ैर मनीष को भी इतने दुखों और संघर्षों के बाद खुशियां मिल गई जिसका वो वाकई में हकदार था।
कहानी तो समाप्त हो गई किंतु इस दृश्य को पढ़ कर ऐसा प्रतीत हुआ जैसे अभी भी कुछ शेष रह गया है। शुरू से सवालों के साथ उसके जवाबों की उम्मीद में ही रहे थे और आख़िर में भी कुछ सवाल हमारे लिए प्रसाद के रूप में थमा दिया आपने। अब ये उत्सुकता बनी ही रहेगी कि वो औरत कौन थी जिससे अर्जुन सिंह इस तरह मिलने गया? जिस मैदान में कुछ नहीं था वहां पर काला महल कैसे और क्यों नज़र आने लगा? ये सब बातें ऐसी हैं जो चीख चीख कर बता रही हैं कि कहानी का कुछ तो अंश अभी भी शेष है। उम्मीद है या तो इन सवालों के जवाब मिलेंगे या फिर शेष बचे हुए इस अंश को विस्तार से पढ़ने का हमें मौका मिलेगा। या फिर ऐसा भी हो सकता है कि ये अंत एक नई कहानी की शुरुआत का इशारा कर रहा हो। अगर ऐसा है तो यकीनन ये हम सबके लिए खुशी की बात होगी क्योंकि ऐसी लेखनी और ऐसी कहानी को पढ़ने के लिए हम सब पूरी शिद्दत से तैयार रहने वाले हैं।
बहुत ही खूबसूरत कहानी लिखी है फ़ौजी भाई आपने। ऐसी कहानियां पढ़ने से ही खुशी और सुकून प्राप्त होता है। हमेशा यही ख्वाईश रहती है कि ऐसी कहानियां हमेशा लिखी जाएं और हम इन्हें पढ़ कर एक अलग ही तरह का रोमांच महसूस करें। मैं ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूं कि आप हमेशा स्वस्थ और सलामत रहें और अपनी खूबसूरत लेखनी के द्वारा हमें ऐसी अद्भुत कहानियों का लुत्फ उठाने का सौभाग्य प्रदान करते रहें।