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Adultery गुजारिश

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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Ab kya kahun main
meri favorite story character jassi urf thakurain jashpreet ko kahani ki ant mein maarva diya tha ju ne... ab us galti ki saza kisi ko toh bhugatni toh hogi hi.. hai na.. zyada nahi bas taane...
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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Bhai aisa lagta hai bus tum likhte raho or hum padhte rahe
 

Ben Tennyson

Its Hero Time !!
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सुपर अपडेट भाई.. यहां रुपा भी तंत्र साधना बाली लग रही है ..या हो सकता है वो मोना हो या ..कोई और शक्श ...
 

MR SINGH

Cold blood 🔫🕵️‍♂️🦂⏳
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5 saal se ju ki stories read karing....thodi bahot idea toh hume bhi hai dear.... aur haan soch ke nahi, balki story ki gaharai ko samajh ke bol rahi hoon... dekh lena wohi hone wala hai aage chalke :D
Naina ji aise mat kahiye writer sahab suspense thriller likh rahe hain . Agar aap aise hi sachayi batati jaogi toh writer shab bhi story ko ghumate rahenge aur fir hame kuch samaj mein nahi ayega k kya ho raha hai. Try to understand its suspense
 

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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#35

मेरे सामने वो उस इंसान की तस्वीर थी जिसे मैं कभी जिंदा नहीं देख पाया था मेरे सामने युद्ध वीर सिंह की तस्वीर थी, जो बहुत कुछ मेरे जैसे ही दिखते थे. ऊंचा लंबा कद कांधे तक आते बाल, घोड़े पर बैठे हुए. मैंने तस्वीर को उतारा और सीने से लगा लिया. दिल भारी सा हो आया था. सामने एक अलमारी थी जो किताबों से भरी थी. पास ही एक संदूक था जिसमें कपड़े रखे थे. मैंने कुछ और तस्वीरे देखी जो किसी जंगल की थी.
आँखों मे एक दरिया था पर इस शादी वाले घर मे मैं तमाशा तो कर नहीं सकता था इसलिए कमरे से बाहर आया. शाम तक मैं वहां रहा. अचानक से सीने मे दर्द बढ़ने लगा तो मैं बाबा से मिलने चल प़डा पर बाबा मजार पर नहीं थे. जब और कुछ नहीं सूझा तो मैं खेतों की तरफ हो लिया.

गांव से बाहर निकलते ही ढलते दिन की छाया मे जोर पकड़ती ठंड को महसूस किया, हवा मे खामोशी थी, मैं उस पीपल के पास से गुजरा जहां पहली बार रूपा मिली थी मुझे, जहां पहली बार उस सर्प से सामना हुआ था मेरा. जैकेट के अंदर हाथ डाल कर मैंने देखा पट्टियों से रक्त रिसने लगा था
.
साँझ ढ़ल रही थी हल्का अंधेरा होने लगा था, झोपड़ी पर जाकर मैंने अलाव जलाया, घाव ने सारी पट्टी खराब कर दी थी, जी घबराने लगा था. बाबा ने सही कहा था ये घाव बड़ा दर्द देगा, मैंने रज़ाई अपने बदन पर डाली और आंखे बंद कर ली. पर चैन किसे था, करार किसे था. आंख बंद करते ही उस रात वाला किस्सा सामने आ जाता था.

चाहकर भी मैं उस हादसे को भुला नहीं पा रहा था, वो श्मशान साधारण नहीं था कोई तो राज छुपा था वहां, मुझे फिर जाना होगा वहाँ मैंने सोचा. एक के बाद एक मैं सभी बातों को जोड़ने की कोशिश कर ही रहा था कि मुझे बाहर रोशनी सी दिखी, इससे पहले कि मैं बिस्तर से उठ पाता, झोपड़ी का पल्ला खुला और मेरे सामने रूपा थी.

"वापिस लौटते ही सबसे पहले तुझसे मिलने चली आयी मेरे मुसाफिर " रूपा ने कंबल उतारते हुए कहा
उसे देखते ही दिल अपना दर्द भूल गया.

"मैं तुझे ही याद कर रहा था " मैंने कहा

रूपा - तभी मैं कहूँ ये हिचकियाँ पीछा क्यों नहीं

छोड़ती मेरा. बाकी बाते बाद मे खाना लायी हू चल उठ परोसती हूं

मैं - अभी नहीं

रूपा - मुझे भी भूख लगी है, तेरे साथ ही खाने का सोचा था, पर कोई ना थोड़ी देर और सही, चल परे को सरक, ठंड बहुत है

रुपा बिस्तर पर चढ़ आयी उसका बोझ मेरे सीने पर आया तो मेरी आह निकल गई

रूपा - क्या हुआ देव

मैं - कुछ नहीं सरकार,

रूपा - तो फिर आह क्यों भरी, क्या छिपा रहा है

रूपा ने मेरे ऊपर से रज़ाई हटा दी और उसकी आँखों के सामने मेरा छलनी सीना था,

"किसने किया ये " पूछा उसने

मैने कुछ नहीं कहा

"किसने किया ये, किसकी इतनी हिम्मत जो मेरे यार को चोट पहुंचाने की सोचे मुझे नाम बता उसका " रूपा बड़े गुस्से से बोली

मैं - शांत हो जा मेरी जान, छोटा सा ज़ख्म है कुछ दिनों मे भर जाएगा. और फिर मुझे भला क्या फिक्र मेरी जान मेरे पास है

रूपा - मामूली है ये ज़ख्म पूरा सीना चीर दिया है, अब तू मुझसे बाते भी छुपाने लगा है मेरे दिलदार

रूपा की आँखों मे आंसू भर् आए, सुबक कर रोने लगी वो. मैंने उसका हाथ थामा.

"कैसे हुआ ये " पूछा उसने

मैने उसे बताया कि कैसे उस रात मैं रास्ता भटक गया और शिवाले जा पहुंचा और ये हमला हुआ

"सब मेरी गलती है, मुझे डर था कि कोई तुझसे मिलते ना देख ले इसलिए मैंने तुझे वहां बुलाया, तुझे कुछ हो गया तो मैं किसके सहारे रहूंगी, मेरे यार मेरी गलती से ये क्या हो गया " रूपा रोने लगी

मैं - रोती क्यों है पगली, भाग मे दुख है तो दुख सही, चल अब आंसू पोंछ

मैंने रूपा के माथे को चूमा.

"मैंने सोचा है कि इधर ही कहीं नया मकान बना लू " मैंने कहा

रूपा - अच्छी बात है

मैं - बस तू कहे तो तेरे बापू से बात करू ब्याह की, अब दूर नहीं रहा जाता, तेरे आने से लगता है कि जिंदा हूं तू दुल्हन बनके आए तो घर, घर जैसा लगे

रूपा - इस बार फसल बढ़िया है, बापू कह रहा था सब ठीक रहा तो कर्जा चुक जाएगा, सावन तक नसीब ने चाहा तो हम एक होंगे.

मैं--जो तेरी मर्जी, मुझ तन्हा को तूने अपनाया मेरा नसीब है,

रूपा - अहसान तो तेरा है मेरे सरकार

मैंने उसे अपनी बाहों मे भर् लिया

"अब तो दो निवाले खा ले बड़े प्यार से बनाकर लाई हूं तेरे लिए " उसने कहा

रूपा ने डिब्बा खोला और खाना परोसा. एक दूसरे को देखते हुए हमने खाना खाया. बात करने की जरूरत ही नहीं थी निगाहें ही काफी थी.

"चल मैं चलती हूं, कल आऊंगी " उसने कहा

मैं - रुक जा ना यही


रूपा - आज नहीं फिर कभी

उसने मेरे माथे को चूमा और चली गई. मैं सोने की कोशिश करने लगा.

रात का अंतिम पहर था. सर्द हवा जैसे चीख रही थी, वेग इतना था कि जैसे आँधी आ गई हो, चांद भी बादलों की ओट मे छिपा हुआ था. पर एक साया था जो बेखौफ चले जा रहा था. क्रोध के मारे उसके कदम कांप रहे थे, आंखे जल रही थी. कोई तो बात थी जो उसकी आहट से शिवाले के कच्चे कलवे भी जा छुपे थे.

वो साया अब ठीक शंभू के सामने था, एक पल को तो वो मूर्ति भी जैसे उन क्रोधित आँखों का सामना नहीं कर पायी थी. उसने पास स्थापित दंड को उठाया और पल भर् मे उसके दो टुकड़े कर दिए. इस पर भी उसका क्रोध शांत नहीं हुआ तो उसने पास पडी शिला को उठाकर फेंक दिया.


"किस बात की सजा दे रहे हो मुझे किस बात की क्या दोष है मेरा जो हर खुशी छीन लेना चाहते हो मेरी. महत्व तो तुम्हारा बरसो पहले ही समाप्त हो गया था, पर अब मैं चुप नहीं हूं, तीन दिन मे मुझे तोड़ चाहिए, सुन रहे हो ना तुम बस तीन दिन, उसे यदि कुछ भी हुआ तो कसम तुम्हारी इस संसार को राख होते देर नहीं लगेगी, शुरू किसने किया मुझे परवाह नहीं समाप्त मेरे हाथो होगा. तीन दिन बस तीन दिन. "
dekha.... :lol:
khul gayi saari pol patti.... :D
ab premi ko ghayal dekh roopa apni asli roop mein aa hi gayi..
dekho kaise fuffkar rahin hai sarp ki tarah... are sarp ki tarah nahi balki sarp hi toh hai woh....jiski nata hai purani... dev ke sang....
waise iski tevar ne hi bata diya hai ki agar woh jakhm thik karne ke liye koi upay na diya to shayad hi koi bache uski krodh se..
Khair let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skill :applause: :applause:
 
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Naina

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Naina ji aise mat kahiye writer sahab suspense thriller likh rahe hain . Agar aap aise hi sachayi batati jaogi toh writer shab bhi story ko ghumate rahenge aur fir hame kuch samaj mein nahi ayega k kya ho raha hai. Try to understand its suspense
Okay okay :approve:
 

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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#36
जिंदगी कुछ ऐसी उलझी थी कि सुबह और रातों मे कोई खास फर्क़ नहीं रह गया था. सुबह अंधेरे ही मैं उठ गया था पर बदन मे बड़ी कमजोरी थी, लालटेन की रोशनी मे मैने देखा बिस्तर पूरा सना था खून से. मैंने उसे साफ़ करने की कोशिश नहीं की ब्लकि बिस्तर को झोपड़ी से बाहर फेंक दिया.

इस बेहद मुश्किल रात के बाद मुझे अह्सास होने लगा था कि मैं किसी बड़ी मुसीबत मे हूं, फिलहाल मैं बस सोच सकता था, मैंने नागेश के बारे मे सोचा, मेरी माँ के बारे मे मुझे ऐसी बाते मालूम हुई जो आसानी से गले नहीं उतरने वाली थी.

"हो ना हो इस कहानी की जड़ जूनागढ मे ही है, मुझे फिर वहां जाना होगा " मैंने निर्णय किया और बाबा से मिलने चल प़डा. रास्ते मे मुझे सरोज काकी मिल गई,
"मैं खेतों पर ही आ रही थी, घर आने की फुर्सत ही नहीं तुझे तो, पहले कम से कम खाना तो समय से खा लेता था अब तो ना जाने क्या हुआ है " काकी ने एक साँस मे ढेर सारी बात कह दी

मैं - थोड़ी जल्दी मे हूं काकी, जल्दी ही आता हूं घर
काकी - क्या जल्दी क्या देर, तुझे मुझे बताना होगा किस उधेड बुन मे लगा है तू, रात रात भर गायब रहते हो, जबसे उस मजार वाले से संगति की है अपनेआप मे नही हो, देखना तुम कभी ना कभी लड़ बैठीं ना मैं उससे तो मत कहना

मैं - बाबा का कुछ लेनादेना नहीं काकी, मैं बस उस पेड़ के पास जाता हूँ

काकी - मुझे डर लगता है देव, हम पहले ही बहुत कुछ खो चुके है, तुम्हें नहीं खोना चाहते, तुम बस घर रहो तुम्हें जो चाहिए मैं दूंगी.

मैं - घर ही तो चाहिए मुझे.

काकी कुछ पलों के लिए चुप हो गई.

"वहाँ क्या हुआ था " पूछा काकी ने

मैं - कहाँ क्या हुआ

काकी - जहां तुम गए थे, कौन लड़की है वो मुझे बताओ, जैसा तुम चाहते हो वैसा ही होगा, हम ब्याह करवा देंगे उसी से, उसी बहाने कम-से-कम भटकना तो नहीं होगा तुम्हारा

मैं - ऐसी कोई बात नहीं है, ऐसा कुछ होता तो मैं तुम्हें बताता

काकी - रख मेरे सर पर हाथ

मैं - क्या काकी तुम भी छोटी मोटी बात को इतना तूल दे रही हो

काकी - मैं तूल दे रही हूँ मैं, जानते हो रात रात भर सो नहीं पाती हूँ, विक्रम को जबसे मालूम हुआ है तुम वहाँ गए थे कितना घबराए हुए है वो और तुम कहते हो कि मैं तूल दे रही हूँ

मैं समझ गया कि काकी का पारा चढ़ गया मैंने मैंने उसे मनाया और घर आ गया. बेशक मेरा बाबा से मिलना जरूरी था पर कुछ अनचाही मजबूरियाँ भी थी. मैं सरोज के साथ घर आया और सबसे पहले पट्टी बदली ताकि कुछ आराम मिले. मैं सरोज से हर हाल में इस ज़ख्म को छुपाना चाहता था. खैर पूरा दिन मैं काकी की नजरो मे ही रहा. पर रात को मैं मजार पर पहुंच गया.

बाबा वहाँ नहीं था पर मोना थी.

मैं - तुम कब आयी

मोना - कुछ देर पहले, मालूम था तुम यही मिलोगे तो आ गई.

मैं - नहीं आना था तुम्हारा पैर ठीक नहीं है

मोना - कैसे नहीं आती, तुम इस हालत मे हो मुझे चैन कैसे आएगा

मैं - हमे तुम्हारे गाँव जाना होगा अभी.

मोना - अभी पर क्यों

मैं - दर्द वहीं मिला तो इलाज भी उधर ही मिलेगा

मोना ने देर ना कि और हम जल्दी ही शिवाले पर खड़े थे, पर यहां जैसे तूफान आया था. सब अस्त व्यस्त था. आँधी आकर चली गई थी.

"किसने किया ये, अपशकुन है ये तो " मोना ने कहा
मैं - इस श्मशान की कहानी बताओ मुझे.

मोना - मैं कुछ खास नहीं जानती, पर गांव के पुजारी बाबा जरूर बता सकते है, कहो तो मिले उनसे

मैं - जरूर

मोना - कल सुबह सुबह मिलते है उनसे

फिर हम मोना की हवेली आ गए. एक बार फिर वो मेरे साथ थी, हालात चाहे जैसे भी थे पर उसका साथ होना एक एहसास था. हम दोनों एक बिस्तर पर लेटे हुए थे. कोई और लम्हा होता तो हम गुस्ताखी कर ही बैठते. पर सम्हालना अभी भी मुश्किल था

मोना के होंठो को पीते हुए मेरे हाथ उसके नर्म उभार मसल रहे थे, पर फिर उसने मुझे रोक दिया.

"ये ठीक समय नहीं है " उसने कहा तो हम अलग हो गए. सुबह मोना मुझे वहाँ ले गई जहां पुजारी था. एक छोटा सा मंदिर था बस पर पुराना था.

मोना - बाबा हमे थोड़ा समय चाहिए आपका

पुजारी - बिटिया अवश्य परंतु थोड़ा इंतजार करना होगा, आज अमावस है और हर अमावस को रानी साहिबा तर्पण देने आती है, उसके बाद मैं मिलता हूँ
"बाबा, हम एक बहुत जरूरी मामले मे आपके पास आए है " मैंने हाथ जोड़े

पुजारी - मेरे बच्चे, यहां से कोई खाली नहीं जाता तुम्हारी भी मुराद पूरी होगी.

बाबा ने मेरे कांधे पर हाथ रखा और अंदर चले गए. मैं मोना के साथ वहीं बैठ गया.

"कौन है ये रानी साहिबा " मैंने पूछा

मोना - मेरी दादी

मोना की दादी यानी मेरी नानी.

मैं - मिलना चाहता हूं मैं उनसे

मोना - कोशिश कर लो, थोड़ी देर मे जनता को खाना देंगी वो.

मैं - तुम मिलवा दो

मोना - मुमकिन नहीं. बरसों से कोई बात नहीं हुई हमारी.

मैं - मैं कोशिश करूंगा

मैंने कंबल ओढ़ा और जनता मे जाके बैठ गया. कुछ देर बाद वो मंदिर से बाहर आयी, उम्र के थपेड़ों ने बेशक शरीर को बुढ़ा कर दिया था पर फिर भी शॉन शौकत दिखती थी. उनके नौकरों ने सबको पत्तल दी. वो खुद खाना परोस रही थी.

"लो बेटा, प्रसाद, आज हमारी बेटी की बरसी है, उसकी आत्मा के लिए दुआ करना " नानी ने प्रसाद मेरी पत्तल मे रखते हुए कहा

"नानी, उसी बेटी की निशानी आपसे मिलने आयी है " मैंने कहा

रानी साहिबा के हाथ से खीर की कटोरी नीचे गिर गई, उन्होंने मुझे देखा, मैंने उनकी आँखों मे आंसू देखे.

"चौखट पर इंतजार करेंगे "उन्होंने कहा और आगे बढ़ गई.
ab jaake ishe hosh aaya hai ushe jakhm ko leke....
waise ish ne galti pe galti ki hai aur ab bhi kar raha hai...
jinhone pal posh ke ishe is layak banaya.. unhi se jhuth bol raha hai, baatein chhupayi jaa rahi hai.... ab natiza samne hai... ab bhugto...
lo ek aur nayi kirdaar iski nani ki roop mein saamne aayi...
Khair let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skill :applause: :applause:
 
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