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Adultery गुजारिश

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दो अपडेट में ही कहानी पूरी पलट गयी अगर देव के पास हवेली की चाबी रही और वो ताला भी खुला तो वो वारिस कैसे नहीं है ?

शहर के बाजार में दिखने वाली रूपा ही होगी वैसे मोना ने भी देव से नये दोगले रिश्ते को कबूल कर लिया है और देव के लिए अंतरंग रिश्ते के रास्ते खोल दिए है :D
 
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Naina

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#38

मेरे सामने कुछ ऐसा था कि आंखे कहती थी सच है और दिल जहन कहता था कि फ़साना है, मेरे और बारिश के बीच मे वो तस्वीर जिसे मैंने मोना के बैग मे देखा था, वो तस्वीर जीती जागती खड़ी थी. मुझे बहुत अच्छे से याद था कि यहां पर खलिहान था, अपने इलाके को मैं बहुत अच्छे से जानता था पर अब इस नयी हकीकत ने मुझे झुठला दिया था.

मेरी आँखों के सामने एक स्याह हवेली बड़ी खामोशी से खड़ी थी. बेशक पानी आँखों मे घुस रहा था फिर भी मैंने आंखे साफ़ की और देखा. दूर गरजता बदल और लहराती बिजली की कौंधती रोशनी मुझे उस हकीकत से रूबरू करवा रही थी जिस से मैं अनजान था. तीन मंजिल की मीनारों वालीं इमारत जिसका एक गुम्बद टूटा था. मेरे दिल मे बहुत कुछ था पर जैसे मैं सब भूल गया.

ऐसा लगता था कि ये इमारत बड़ी पुरानी है या शायद वक़्त ने इसकी ऐसी हालत कर दी होगी. काले संगमरमर पर बहता पानी बड़ा खूबसूरत लगा.
"मोना का ख्वाब सच है " मैंने अपने आप से कहा.
दिल जैसे ठहर सा गया था उस खूबसूरत इमारत के आगे, वो बड़ा सा दरवाजा जो अपने अंदर ना जाने क्या छुपाये हुआ था. आकर्षण से मैं भी खुद को रोक ना सका. मेरे कदम अपने आप उस दहलीज की तरफ बढ़ने लगे. भीगे जुते गीली मिट्टी पर फिसल रहे थे. आखिरकार मैंने सीढ़ियों पर कदम रखे और दरवाज़े को छुआ. बस छुआ ही था कि मेरे सीने मे आग लगा दी किसीने, सीने मे ऐसा दर्द हुआ कि मैं वहीं गिर पड़ा. मेरी पट्टी खुल गई रक्त बहने लगा.

मैं चीखना चाहता था पर मेरी आवाज़ गले मे ही रुंध गई, कुछ ही दिनों मे ऐसा दूसरी बार हुआ था मेरे साथ. सांसो को सम्भाले मैं उठा और दरवाज़े के बड़े से कुंदे को हिलाया.

"मदद करो, कोई है तो मदद करो " मैंने आवाज दी. पर शायद वहां कोई नहीं था मेरी सुनने वाला. मेरे हाथ नीचे गए तो मैंने पाया कि एक ताला था. ताला, मेरे दिमाग मे उस समय बस एक ही चीज आयी, वो थी ताऊ द्वारा दी गई चाबी, ना जाने ये कैसा इशारा था उपरवाले का या मेरी किस्मत जो उस घड़ी मुझे ये ख्याल आया. मैंने जेब से वो चाबी निकाली और ताले मे डालकर घुमाया

खट्ट की आवाज से ताला खुल गया. मैंने दरवाज़े को पूरी ताकत से धकेला और अंदर आ गया. जैसे ही मैंने कदम रखे अपने आप उजाला हो गया. मोमबत्तियां जल उठी. रोशनी से नहा गई वो पूरी हवेली. और सबसे बड़ी बात मुझे दर्द से राहत मिली, दर्द ऐसे गायब हुआ जैसे कभी हुआ ही नहीं था. मैंने देखा अंदर हालात कोई खास बढ़िया नहीं थे, ढेर सारी धूल पडी थी फर्श पर, छत पर जाले लगे थे. सीढिया चढ़ कर मैं ऊपर आया. यहां एक बहुत बड़ी तस्वीर थी. जिसमें तीन लोग थे. एक को मैं पहचान गया वो मेरे पिता थे. साथ मे एक औरत थी हसते हुए, बड़ी आंखे, भरा हुआ चेहरा. और मुझे यकीन था कि वो ऐसे ही दिखती होंगी, वो हो ना हो मेरी माँ थी. उनकी गोद मे मैं था.

"घर " मेरे मुह से ये शब्द निकले.

तो क्या ये इमारत मेरा घर थी. घर मेरा घर, मैंने एक दो कमरे खोले, मेरे माँ बाप की तस्वीरे, मेरे खिलौने. बेशक धूल मिट्टी, दीमक ने अपना कब्ज़ा कर लिया था पर फिर भी दिल मे एक अलग ही फिलिंग थी. पहली बार इस मुसाफिर को ऐसा लगा कि जैसे मंजिल कहीं है तो यहीं. ये एक ऐसा एहसास था जिसे शब्दों मे ब्यान करना मुमकिन नहीं. सब कुछ भूल कर मैं इधर उधर घूमने लगा. पर अचानक से मुझे ऐसा एहसास हुआ कि जैसे कि, जैसे कि मेरे अलावा कोई और भी हो. पर कौन.

जैसे कोई रेंग रहा हो, मैंने फर्श पर फिसलते हुए किसी को महसूस किया. मैं दौड़ कर नीचे आया. कोई नहीं था, या कोई था क्योंकि फर्श पर पडी धूल साफ़ बता रही थी कि कोई तो था और जब वो निशान मुझे समझ में आए तो मैं हिल गया. दरवाज़े पर मुझे वो दो पीली आंखे दिखी. मुझे ही घूर रही थी. हमारी आंखे मिली और अगले ही पल वो सर्प बाहर की तरफ चल पड़ा.
"रुको " मैं जोर से बोला. पर उसने जैसे सुना नहीं

"मैंने कहा रुको " मैं और जोर से चिल्लाया. इस बार उसने मूड कर देखा पर बस एक पल के लिए ही. उसने पुंछ जोर से पटकी और बाहर की तरफ भागा. मैं उसके पीछे भागा क्योंकि मैं जानता था कि इसका मुझसे कोई तो नाता है और क्या है वो ये बस यही बता सकता था. अपनी हालत भूल कर मैं भी हवेली से बाहर आया. बारिश बड़ी तेज हो चली थी.

मैंने बरसातों मे टिमटिमाते उन दो नयनो को देखा. अचानक ही मीरा के कहे शब्द मेरे जेहन मे गूंजने लगे. तो मीरा का दो दियों का मतलब ये आंखे थी, आज अमावस थी. आज मैं अपने घर आया था.

"बताते क्यों नहीं मुझे अपने बारे मे " मैंने सर्प से सवाल किया. हैरानी की बात मुझे उस से कोई डर नहीं लग रहा था मैं उसकी तरफ बढ़ा. वो पीछे हुआ. और अचानक ही पग डण्डी पर भाग लिया. मैं दौड़ने लगा और एक मोड़ पर मेरी आँखों के आगे जैसे सूरज आ गया.

एक तेज आवाज हुई, मैं किसी चीज से टकरा गया था. होश जब आया तो मैं सेशन हाउस था मेरे साथ थी मोना.

"तुम यहाँ कैसे " मैंने सीधा सवाल किया.

"मैं तुम्हें लेकर आयी. मेरी गाड़ी से टकरा गए थे तुम. " उसने कहा

मैं - आह, याद आया

मोना - पर तुम कहां भाग रहे थे. और ऐसे नाराज होकर कोई आता है क्या

मैं - दो मिनट मुझे साँस लेने दो. और चाय मंगा दो.

कुछ देर मे कप मेरे हाथ मे था. मैंने चुस्की ली तो क़रार आया

मोना - मुझे तुमसे बहुत सी बाते करनी है देव

मैं - मुझे भी, फ़िलहाल वक़्त नाराजगी का नहीं है मुझे कुछ कहना है

मोना - सुन रही हो

मैं - वो सच है मोना एकदम सच

मोना - क्या सच है देव

मैं - वो जो तस्वीर तुम्हारे बैग मे थी वो हवेली कोई फ़साना नहीं है मोना मैंने देखा उसे. वो वहां थी मोना वहीं पर मैं अंदर गया था, मैंने वहां पर..

"वहां पर तुम्हारा घर है देव, " मोना ने मेरी बात पूरी की
Pehli baat har ghatna dev se judi huyi hai par iska matlab yeh nahi hai ki har fate mein tang aadaye... pehle bhi bina jane bina sune ya samjhe kayi karname kiye hai isne aur uske ghatak natize abhi tak bhugat raha hai, ab yeh ek naya bawal..
Roopa saanp banke har wo jagah pahunch jaati hai, jahan jahan yeh dev jata hai... ya phir uska picha kar rahi ho har samay...
mona ka wahan hona koi coincidence nahi hai I mean woh accident... ... jarur baat kuch aur hai.. kyun kaise mona ko pata hai us haweli ki baade mein..
Khair.. let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skill :applause: :applause:
 

Naina

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"वहाँ तुम्हारा घर है देव " मोना ने कहा

मैं हैरानी से उसे देखने लगा.

मोना - हैरान होने की जरूरत नहीं देव, तुम्हारा ये सोचना कि मुझे कैसे मालूम उसके बारे मे सही है, मुझे उस के बारे में मालूम है क्योंकि मैं ना जाने कितनी बार वहां जा चुकी हूं, बचपन से ही मैं बुआ के बहुत करीब थी, लोग कहते थे मैं उनकी ही छाया हूं. बुआ का हाथ थामे ना जाने कितनी बार मैं आई गई.

मैं - वहां पर तो खलिहान है, इतनी बड़ी इमारत लोगों को क्यों नहीं दिखी और ऐसे अचानक

मोना - हर एक घटना के होने का एक निश्चित समय होता है, आज नहीं तो कल तुम्हें इस बारे मे मालूम होना ही था, कुछ खास रात होती है जब हवेली राह देखती है अपने वारिस की. कल भी ऐसी ही रात थी.

"तो मैं वारिस हूं " मैंने पूछा

मोना - क्या मैंने कहा ऐसा, घर तुम्हारा है इसमे कोई शक नहीं पर वारिस होना अलग बात है

मैं - समझा नहीं

मोना - बुआ हवेली मेरे नाम कर गई. अपनी विरासत वो मुझे दे गयी. पर कोई इशू नहीं है ये सब तुम्हारा ही है जब तुम कहोगे मैं तुम्हें दे दूंगी, मुझसे ज्यादा तुम्हारा हक है.

मैं - कैसी बात करती हो तुम. तुम्हें क्या लगता है मुझे ईन सब चीजों से कोई लगाव है. मैं बस अपने माँ बाप के बारे मे जानना चाहता हूं, अचानक से मेरी जिन्दगी इतने गोते खा गयी है कि मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा. तुम कहती हो कि हवेली मे तुम जाती रहती हो, तो मुझे उस सर्प के बारे मे बताओ जो हवेली मे था.

मोना - मैंने ये कहा कि बुआ के साथ मैं वहां जाती थी, ये नहीं कहा कि जाती रहती हूँ, बेशक बुआ वो मुझे दे गयी थी पर जब बुआ गई, हवेली गायब हो गई. और शायद कल तुमने उसे देखा. याद है जब तुमने मुझसे इस तस्वीर के बारे में पूछा था तो मैंने क्या कहा था कि ये एक ख्वाब है. वो ख्वाब जिसे वक़्त ने भुला दिया.

मैं - ऐसा कैसे हो सकता है कि इतनी बड़ी इमारत को छिपा दे.

मोना - पिछले दिनों से जो जिंदगी तुम जी रहे हो लगता है क्या की कुछ भी मुमकिन है या ना नामुमकिन है

मैं - और वो सर्प, उसका क्या

मोना - मुझे उस बारे मे कुछ नहीं मालूम, तस्वीर मे भी एक है तो सही पर जानकारी नहीं है.

मैं - तुम क्या कर रही थी उस मोड़ पर

मोना - तुम्हें मनाने आ रही थी और क्या, ऐसे कोई जाता है क्या

मैं - तुमने रोका भी तो नहीं

मोना आगे बढ़ी और मेरे गाल पर एक चुम्मा लिया

"दरअसल इस रिश्ते ने मुझे दो रहे पर लाकर खड़ा कर दिया है एक तरफ तुम्हें देखूँ तो मेरा मुसाफिर है और वहीं मुसाफिर बुआ का बेटा भी है तुम्हीं बताओ किस सच को अपना मानू किस सच से मुह मोड़ लू " मोना ने कहा

मैं - सच बस इतना है कि तुम वो हो जिसे मैं परिवार समझता हूं, सच बस इतना है कि तुम हो एक वज़ह मेरे जीने की.

मैंने एक बार अपने होंठ मोना के होंठो पर रख दिए. मोना ने अपना बदन ढीला छोड़ दिया और मुझे किस करने लगी. कुछ पलों के लिए हम खो से गए.

" कितनी बार कहा है होंठ को काटा ना करो "मोना ने कहा

मैं - कंट्रोल नहीं होता, जी करे है कि इनको बस चूसा ही करू

मोना - तुम्हारा दिल तो ना जाने क्या करेगा

मैं - दिल पर किसका जोर

मैंने मोना के स्तन को भींच दिया.

"बदमाश हो तुम, इसके लिए वक़्त है, फ़िलहाल तो हमे इस घाव के बारे मे सोचना चाहिए, ये बढ़ता जा रहा है तीन दिन बीते " मोना अचानक से गम्भीर हो गई.

"बाबा तलाश तप रहे है उपाय " मैंने कहा

मोना - बाबा का ही सहारा है

मैं - और मुझे तुम्हारा

मैंने एक बार फिर मोना को अपनी बाहों मे भर् लिया उसकी चिकनी टांगों को सहलाने लगा. मैंने अपना हाथ उसकी स्कर्ट मे डाल दिया और उसकी योनि को अपनी मुट्ठी मे भर् लिया.

"मान भी जाओ, मेरी जान सूखी जा रही है और तुम्हें मस्ती चढ़ रही है " मोना ने कहा

मैं - तुम हो ही ऐसी की जी चाहता है तुम्हें पा लू वैसे भी मेरे पास समय कम है, तो मरने से पहले तुम्हें अपना बना लू

"दुबारा ऐसा कभी ना कहना " मोना ने मेरे होंठो पर उंगली रखते हुए कहा.

मोना - तुम अमानत हो हमारी, तुम खुशी हो, ऐसी बात फिर कभी ना कहना कुछ नहीं होगा तुम्हें, कुछ नहीं होगा

मोना गंभीर हो गई.

"देखो नसीब क्या करे, दुख दिया तो सुख भी देगा खैर मुझे जाना होगा " मैंने कहा

मोना - कहीं नहीं जाना तुम्हें यही रहो मेरे पास

मैं - तुम्हारे पास ही तो हूं. पर घर से ज्यादातर बाहर रहूं तो सरोज काकी नाराज होती है उसका भी देखना पड़ता है. हर किसी को खुश रखना चाहिए ना

मोना - कल आती हूं मैं

मैं - नहीं, मैं ही आ जाऊँगा.

मोना - गाड़ी छोड़ आएगी तुम्हें

मैं - नहीं मेरी जान, मैं चला जाऊँगा वैसे भी शहर मे थोड़ा काम है मुझे


वहां से निकल कर मैं बाजार मे गया. अपने लिए कुछ नई शर्ट खरीदी और पैदल ही बस अड्डे की तरफ चल दिया. मैं अपनी मस्ती मे चले जा रहा था कि तभी मेरी नजर उस पर पडी.....
bete ke wajaye apni bhatiji ko waris banake gayi... mona naam kar gayi haweli... baat kuch at pati si hai....
waise gaur karne wali baat yeh hai ki mona baar baar us saanp ki baat ko taal rahi thi aur baad mein boli ki jaanti hi nahi... lekin in dino joh ghatanaye ghat rahi hai wahan pe sabhi jaante hai ki iske piche woh saanp hai, phir bhi nahi jaanti woh.... Dev ki maa ki sath rahti thi na woh phir bhi nahi jaanti ki us saanp se gahra nata hai dev ka..
Btw dev ek hawasi hai bas jise bas apni tharak bujhani hai chaahe uski maa saman saroj se ho ya phir khud ki hi didi se... woh pyar mohabbat ki baatein na hi kare toh achha hai... achha hai joh aaj suhashini inke bich nahi hai.. is dev ke harkato ke chalte jaane kitni baar sharamsar hoti apno ke hi samne....
Khair... shayad phir se roopa is baari insaani roop mein uske samne aayi hai..
pata nahi isko bhi kya masti chadhi hai.. kabhi saanp ghumti rahti hai toh kabhi insaan banke bich bich dev se milne aaya karti hai... :D
Let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skill :applause: :applause:
 

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waise gaur karne wali baat yeh hai ki mona baar baar us saanp ki baat ko taal rahi thi aur baad mein boli ki jaanti hi nahi... lekin in dino joh ghatanaye ghat rahi hai wahan pe sabhi jaante hai ki iske piche woh saanp hai, phir bhi nahi jaanti woh.... Dev ki maa ki sath rahti thi na woh phir bhi nahi jaanti ki us saanp se gahra nata hai dev ka..
Btw dev ek hawasi hai bas jise bas apni tharak bujhani hai chaahe uski maa saman saroj se ho ya phir khud ki hi didi se... woh pyar mohabbat ki baatein na hi kare toh achha hai... achha hai joh aaj suhashini inke bich nahi hai.. is dev ke harkato ke chalte jaane kitni baar sharamsar hoti apno ke hi samne....
Khair... shayad phir se roopa is baari insaani roop mein uske samne aayi hai..
pata nahi isko bhi kya masti chadhi hai.. kabhi saanp ghumti rahti hai toh kabhi insaan banke bich bich dev se milne aaya karti hai... :D
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रूपा के साथ साथ मोना भी शक के दायरे में है सब बातें धक्के खा खा के देव सीख रहा है मोना गोल मोल कर रही है, बाबा भी बातें तफ़सील से नही बताता
 

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रूपा के साथ साथ मोना भी शक के दायरे में है सब बातें धक्के खा खा के देव सीख रहा है मोना गोल मोल कर रही है, बाबा भी बातें तफ़सील से नही बताता
roopa aur mona dono hi kayi baatein chhupayi hai lekin yeh baat clear hai ki dono ki hi nata ush samshan se, haweli aur suhashini se bhi hai...
baba to bas baaton ko gol gol ghumane ke liye hi is story mein hai :D
 
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