#48
सरोज के साथ चुदाई करके मैंने अपने तन की प्यास तो मिटा ली थी पर मेरा मन बेचैन था . बेशक अब मुझे नींद की जरुरत थी पर मोना की वजह से मैं बेचैनी महसूस कर रहा था . वो किस हाल में होगी, क्या हुआ उसके साथ .तमाम सवाल मुझे पागल कर रहे थे . दोपहर के खाने के बाद मैं सरोज के साथ बैठा बाते कर रहा था .
सरोज- लाला की मौत ने शकुन्तला को तोड़ कर रख दिया है बुरा हाल है उसका.
मैं- पति मर गया गम तो होगा ही .
सरोज- पर लाला की मौत से कुछ बाते भी उड़ रही है गाँव में
मैं- कैसी बाते
सरोज- लाला की लाश में एक बूँद खून भी नहीं था . जिसने भी उसे देखा यही कहा ऐसा लगता था की जैसे किसी ने सारा खून निचोड़ लिया हो.
मैं- लाला कौन सा भला था , उसने भी तो गाँव वालो का खून पिया था .
सरोज- सो तो है पर ऐसे कोई क्यों करेगा, ऐसी दरिंदगी
मैं- ये दुनिया बड़ी जालिम है , लाला का कोई दुश्मन रहा होगा जिसने पेल दिया उस को . अब इतने लोगो की आत्मा सताई है अंत ऐसा ही होना था .
सरोज- शकुन्तला कहती है की सर्प ने मारा है लाला को .
मैं- सर्प खून नहीं पीते वो डसते है लोगो को ये मामला अलग ही है .
सरोज- गाँव में भय का माहौल है अँधेरा होने के बाद आजकल कोई निकलता नहीं घर से बाहर बस तुम लोग ही हो जो घूमते रहते हो .
मैं- पर हमारा किसी से क्या लेना देना है
सरोज- बेशक, पर फ़िक्र तो होती है न .
मैं- अब इतनी भी फ़िक्र न किया करो. खैर, मैं आता हूँ थोड़ी देर में
सरोज- कहाँ चले
मैं- खेतो पर चक्कर लगा कर आता हूँ .
दरअसल मेरे सीने में दर्द होने लगा था . मैं ये बात घरवालो से छुपाना चाहता था . मैंने साइकिल उठाई और खेतो पर पहुंचा . ऐसा लगता था की छाती फट जाएगी. अन्दर किसी ने आग लगा दी हो . झोपडी में पड़े पड़े मैंने दर्द के उस दौर को झेला . मुझे गुस्सा आ रहा था उस नागेश पर जिसकी वजह से बिना किसी बात मुझे ये समस्या मिल गयी थी .
जीवन में आये इन परिवर्तनों के कारन मैं सब कुछ भूल बैठा था ये खेत खलिहान . मैंने खेतो में कुछ चक्कर लगाये.सरसों काफी बड़ी हो चुकी थी . पीले फूल बड़े अच्छे लग रहे थे . मैं ऐसे ही किसी डोले पर बैठ गया और खुद को इस परिवेश के हवाले कर दिया. दो पल के लिए ही सही मुझे सकून तो मिला.
पर इस सकून की क्या कीमत थी ये कोई नहीं जानता था . शाम होते होते मैं वापिस घर चला गया . मजार पर जाने का मेरा मन ही नहीं हुआ. चाय पर हम सब बैठे हुए थे की सरोज काकी ने अचानक से ऐसा विषय छेड़ दिया जिसकी मुझे उम्मीद नहीं थी.
“हमें अब देव के ब्याह के बारे में सोचना चाहिए, घर में बहु आ जाएगी तो कम से कम रसोई से तो आजादी मिलेगी मुझे , घर और बाहर का इतना काम हो जाता है की मेरे बस का नहीं है अब ” काकी ने चाचा से कहा .
चाचा ने बड़े गौर से सुनी ये बात और बोले- विचार तो ठीक है तुम्हारा पर देव क्या कहता है .
सरोज- देव क्या कहेगा. ब्याह तो सभी करते है बस किसी का थोड़ी जड़ी तो किसी का देर से हो जाता है .
विक्रम- ठीक कहती हो , मैं देखता हूँ . आज ही अपने लोगो में जिक्र करता हूँ कोई ठीक लड़की मिली तो बात आगे बढ़ा लेंगे.
मैं और करतार बस उनकी बाते सुनते रहे . कुछ देर बाद विक्रम चाचा उठे और बोले- भई, मैं शहर जा रहा हूँ. एक सेठ है जो अपनी जूस फक्ट्री के लिए हमारे बागो से फल खरीदना चाहता है तो मीटिंग है .
करतार- पापा. मुझे भी शहर छोड़ देना
विकर्म-तू क्या करेगा
करतार- मेरे दोस्त चंदू का जन्मदिन है तो उसके लिए
विक्रम- हाँ ठीक है .
करतार- भई तुम भी चलो. चंदू बहुत याद करता है तुम्हे.
मैं- तुझे तो मालूम है मुझे ये दिखावे पसंद नहीं . पर चंदू के लिए कुछ अच्छे कपडे खरीदना मेरी तरफ से और अपनी तरफ से जो तुम्हे ठीक लगे.
कुछ देर बाद वो दोनों चले गए और रह गए मैं और सरोज. सरोज मेरी तरफ सेक्सी अदाओ से देखने लगी. वो दरवाजा बंद करके आई तब तक मैंने अपनी पेंट उतार दी थी . सरोज मेरे सामने आई और मुझे अपना लंड सहलाते हुए देख कर आहे भरने लगी. उसने भी तुरंत अपने कपडे उतार फेंके और मटकते हुए मेरे पास आ गयी.
मैं कुर्सी पर बैठा था सरोज घुटनों के बल बैठी और मेरे लंड को अपने हाथो में थाम लिया. उसकी नर्म उंगलियों ने जैसे ही उसे सहलाया मेरी आँखों में मस्ती छाने लगी. सरोज ने मेरे सुपाडे की खाल को निचे सरकाया और अपने होंठ वहां पर रख दिए. कसम से मेरा पूरा बदन झनझनाना गया . कुछ देर तक वो होंठ रगडती रही फिर उसने अपना मुह खोला और आधे से ज्यादा लिंग को मुह में भर लिया.
उसकी खुरदुरी जीभ मेरे सुपाडे पर गोल गोल घूम रही थी ऐसा लग रहा था की मैं हवा में उड़ने लगा हूँ .सरोज मेरे अन्डकोशो को सहला रही थी उसके होंठो से गिरता थूक अन्डकोशो को चिकने कर रहा था .सरोज ने बड़े दिन बाद मेरा लुंड चूसा था और जब हम अकेले थे वो इस मौके को कैसे हाथ से जाने दे सकती थी .
अब पूरा लंड उसके मुह में भरा था जिसे वो बहार नहीं निकाल रही थी . मैं उसके सर को बार बार निचे को दबा रहा था . मैं लंड को उसके गले तक डाल देना चाहता था . कुछ देर बाद वो उठ गयी और लम्बे सांस लेने लगी . मैंने उसे सोफे पर आने को कहा . सरोज अब घोड़ी बन गयी थी .
किसी भी औरत की खूबसूरती उसके चेहरे से नहीं बल्कि जब वो घोड़ी बनती है तो उसकी गांड के उभार से मालूम होती है .
“तेरी गांड बड़ी प्यारी है काकी, ” मैंने उसके गांड के छेद को ऊँगली से कुरेदते हुए कहा . वो कुछ नहीं बोली बस चुतड हिलाने लगी जो संकेत था की वो चुदने को तैयार है . मैंने उसकी चूत को थोडा सा खोला और अपना मुह वहां पर लगा दिया.