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Adultery गुजारिश

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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#49

पर मेरे नसीब में वो सुख नहीं था जिसकी मुझे तलब थी , इस से पहले की एक बार और मैं और सरोज एक हो जाते दरवाजा जोरो से पीटा जाने लगा. हमने जल्दी से कपडे पहने और निचे आये तो देखा की शकुन्तला दरवाजे पर थी . मुझे देखते ही उसके अन्दर का गुबार फूट पड़ा.

“मैंने तुमसे कहा था की उसे समझा लो पर तुमने मेरी नहीं मानी ” वो जोर जोर से चिलाने लगी.

मैं- ये क्या तमाशा कर रही हो अपने घर जाओ .

“चली जाउंगी, मैं बस तुम्हे ये बताने आई हूँ की दुश्मनी की आग में तुम भी झुल्सोगे, आज मैं रो रही हूँ, कल तुम्हारी बारी है तुम्हारी आँखों के सामने मैं उसे मार दूंगी. आग जो मेरे कलेजे में लगी है उसमे तुम्हे न जला दूंगी तब तक चैन नहीं आएगा मुझे ” शकुन्तला ने कहा

सरोज- सेठानी, औकात से ज्यादा बोल रही हो , ये मत भूलो की देव अकेला नहीं है .

शकुन्तला- तू तो चुप रह सरोज, तुझे नहीं मालूम तेरे इस देव ने क्या किया है . मेरी मांग का सिंदूर इसकी वजह से मिटा है इसके उस सांप ने मारा है मेरे पति को . मैं कसम खाती हूँ उस सांप को इसकी आँखों के सामने मारूंगी

सरोज- मार दे , चाहे जो कर हमें क्या लेना देना बस मेरे बच्चे को इसमें मत घसीट वैसे भी तेरा पति दूध का धुला नहीं था , तू भी जानती है , मेरे बच्चे को अगर खरोंच भी आई तो मैं खाल उतार लुंगी तेरी .

शकुन्तला- अपने पर आई तो कैसे बिलबिला गयी तू, इस से कह की उस सान्प को मेरे सामने ले आये. मैं बात खत्म कर दूंगी.

मैं- सेठानी मैं तेरे दुःख को समझता हूँ पर तेरे इस पागलपन को नहीं, तू जा यहाँ से , कोई फायदा नहीं है दुनिया को तमाशा दिखाने का .

शकुन्तला- जा रही हूँ पर दिन गिनने शुरू कर दे. और तूने जो उसे बचाने की कोशिश की तो पहला वार तुझ पर ही होगा.

मैं- तेरी यही इच्छा है तो ठीक है तू कर अपनी कोशिश , पर इतना याद रखना दुश्मनी की आग में तुझे ही झुलसना है . रही बात उस सांप की तो तू कोशिश करके देख ले . तेरा अंजाम तेरे सामने होगा.

शकुन्तला- तू ये मत समझना मैं अकेली हूँ मेरे साथ और भी लोग है .

मैं- जिसके लंड पर उछालना है उछल ले . पर मेरी बात याद रखना मेरे इस घर के किसी भी सदस्य को जरा भी खरोंच आई तो मैं क्या करूँगा सोच भी नहीं सकती तू.

शकुन्तला- भुगतेगा तू जल्दी ही .

वो तो चली गयी थी पर हमारे घर में कलेश कर गयी थी .सरोज काकी चढ़ गयी थी मुझ पर .

सरोज- ये क्या कांड कर दिया है तुमने ऐसा क्या किया है जो मुझसे छुपाया है , तुम्हे सब बताना होगा मुझे.

“तेरे सर की कसम काकी, लाला की मौत से मेरा कोई लेना देना नहीं है ” मैंने कहा .

सरोज- तू घर पर ही रहेगा कहीं नहीं जाएगा आगे से तू इस रांड का कोई भरोसा नहीं

मैं- तू घबरा न काकी. मैं देख लूँगा सेठानी को .

सरोज कुछ कहना चाहती थी पर उसने खुद को रोक लिया. शाम को सीधा मजार पर पहुंचा. बाबा धूनी सुलगा रहा था मुझे देख कर वो खुश हो गया .

मैं- लाला की घरवाली को लगता है की मैंने नागिन को कहकर लाला को मरवाया है . मुझ पर आरोप लगाया उसने .

बाबा- पर लाला को नागिन ने नहीं मारा .

मैं- मैं जानता हु इस बात को पर दुनिया नहीं मानती .

बाबा- दुनिया की दुनिया जाने.

मैं- शकुन्तला ने कसम खायी है नागिन को मारने की.

बाबा- कसम खायी है तो कर लेगी पूरी , उसकी वो जाने

मैं- नागिन से मिलना है मुझे

बाबा- मिल जाएगी

मैं- कब

बाबा- जब उसका मन होगा .

मैं-समझते क्यों नहीं बाबा.

बाबा- तुम नहीं समझते मुसाफिर , तुम नहीं समझते. ये नयी दुनिया जिसमे तुम आये हो ये कुछ नहीं है महज एक छलावे के . इसके रहस्य इतने गूढ़ है की तुम कभी नहीं समझ पाओगे. नागिन ने लाला के काफिलो पर हमला किया था वो लाला को मार ही देना चाहती थी पर वो बच गया . लाला से अपना बदला लेना चाहती थी वो .

“कैसा बदला बाबा ” मैंने कहा .

बाबा- बरसो पहले शिवाले में एक जोड़ा रहता था . मंदिर की साफ सफाई करते, भजन करते पूजा करते. मंदिर में बड़ी बरकत थी और धन भी था . मंदिर में शिवजी को सोने का छत्र था . लाला और उसके दोस्तों ने मंदिर में चोरी की . और इल्जाम उन भले मानसों पर लगा दिया. उनकी किसी ने नहीं सुनी . ये जो अपना पीपल है न यही पर होता था वो मंदिर . इसी पीपल पर फांसी लगा दी गयी उन दोनों भक्तो को .

मैं- ये तो अनर्थ हुआ बाबा. किसी ने विरोध नहीं किया . क्या सब मर गए थे , पंचायत भी खामोश रही .

बाबा- कुछ ऐसा ही समझ लो. उस समय तुम्हारे पिता कही बाहर थे जब वो लौटे और इस काण्ड का उन्हें मालूम हुआ तो गाँव का माहौल बहुत बिगड़ गया . युद्धवीर ने लाला और उसके दोस्तों के खिलाफ तलवार उठा ली. तब तुम्हारे दादा बीच में आये. चूँकि लाला और उसके दोस्तों के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं था तो पंचायत भी कुछ न कर सकी. युधवीर बहुत मानता था भोले को . उसे इस बात का क्रोध था की खुद भोले के दरबार के ये अनर्थ हुआ तो और कहाँ न्याय मिलेगा. युद्ध की नजर जब उस जोड़े की बच्ची पर पड़ी. तो उसका मन बहुत व्याकुल हो गया . हमेशा सबका भला करने वाले, सबसे मिलकर चलने वाले युधवीर ने मंदिर तोड़ दिया. तुम्हारे दादा और युद्ध के बीच वैसे ही किसी बाट को लेकर अनबन थी उन दिनों बस उन्होंने युद्ध को घर से निकल जाने को कहा . और फरमान भी सुना दिया की परिवार का कोई भी सदस्य उस से रिश्ता न रखे.

बाबा की बाते सुनकर मेरे दिल में एक तीस उठ गयी .

मैं- तो वो बच्ची ही ये नागिन है

बाबा- हाँ ,

मैं- मैं उसे कुछ नहीं होने दूंगा. उसकी रक्षा करूँगा. बाबा मुझे मिलवा दो उस से

बाबा- हर पूर्णमासी की रात को वो पीपल के पास आती है .

बाबा ने कहा और चिलम सुलगाने लगे.


मैं अपनी माँ के पेड़ के पास आकार बैठ गया और सोचने लगा. मुझे ध्यान आया की चांदरात को ही तो मैंने उसे पहली बार देखा था . कुछ देर बाद मैं अपनी झोपडी की तरफ चल दिया. आधे रस्ते में पहुंचा ही था की मेरे सामने चार पांच गाड़िया आकर रुक गयी . गाड़ी में से जो सख्स सबसे पहले उतरा उसे देख कर मेरे मुह से निकला “तू यहाँ .”
Awesome Super Fantastic update.
Nagin ke mata pita ka rahahy khul gaya ab dev use bacah pata hai ya Shankuntala marne me safal ho jati hai . Par lala ko kisne mara kon khel raha hai yah khel ? Lagta hai Dev ke nana ke aaadmi aaye hai shankuntala ke bualne par ab dekhte hai kya hota hai ?
 
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वो- मुझे दूध पसंद है . पर तुम कहते हो तो पी लुंगी वैसे भी ठंडी बढ़ सी गयी है .
rupa ko doodh pasand hai ....???..aaj har ek update padh lunga dobara but thoda fast ???
 
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वो- तू सतनाम गुजेरा को नहीं जानता, अरे वो जूनागढ़ वाले नेताजी क् . ये परवीन उसी डॉन का छोटा बेटा है
ye satnam gujera aur satnam mudki ek hi hai ya alag ???
aur ye bra kiski thi abhi pata bmnahi chala ..
 
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#12

उसने बोला कुछ नहीं , बस सामने की तरफ इशारा कर दिया. सामने कुछ लाशे पड़ी थी , कुछ नहीं बल्कि बहुत सारी लाशे, कम से कम पन्द्रह-बीस लाशे, मालूम हुआ की ये सब लाला महिपाल के आदमी थे, कल रात किसी ने महिपाल के काफिले पर हमला किया. लाला को भी गहरी चोटे लगी थी पर जान बच गयी थी, बाकि ये आदमी मारे गए थे .

गाँव के लिए ये घटना किसी बड़े हमले जैसे ही थी, क्योंकि गाँव बहुत शांतिप्रिय था यहाँ तो आपस में भी किसी की तू तू मैं मैं भी नहीं होती थी तो ऐसा हमला शक पैदा करने वाला ही था .



मेरा जी घबराने लगा था तो मैं वहां से अपने घर की तरफ चल पड़ा. पर मेरे मन में एक सवाल और आ गया था की इस घटना और लाला के मुनीम की मौत दोनों का आपस में सम्बन्ध जरुर था . सोचते सोचते मैं घर पहुंचा तो पाया की सरोज काकी मेरे घर पर ही थी . काकी को देखते ही मैं सब कुछ भूल गया . हमारी नजरे मिली. काकी ने बेशक सिम्पल घाघरा चोली पहनी थी पर वो कमाल लग रही थी .

“देव, कहाँ थे तुम , मैंने कितनी बार कहा है की ऐसे बिना बताये गायब न हुआ करो, परेशान हो जाती हु मैं ” सरोज बोली

मैं- माफ़ करना मैं कल समय से घर नहीं आ पाया, बारिश ने फंस गया था .

काकी- कोई बात नहीं पर जमाना ख़राब है , कमसे कम रात को तो घर पर रह सकते हो न .

काकी जब बोल रही थी तो उसका सीना जोरो से ऊपर निचे हो रहा था . मेरा मन बेईमान होने लगा , पर मैं अपने अपराध बोध से घबरा रहा था , ऐसा नहीं था की मैं सरोज को दुबारा नही चोद सकता था , एक बार चुदाई होने के बाद बार बार भी हो सकती थी , पर मेरे पास परिवार के नाम पर ये लोग ही तो थे, मैंने कभी अपनी माँ को नहीं देखा था , पर माँ के रूप में सरोज को जरुर देखा था .



बस इस अपराधबोध के कारन ही मैं काकी से नजरे नहीं मिला पा रहा था

“तुम सुन रहे हो न मैं क्या कह रही हूँ ” काकी थोडा जोर से बोली

मैं- हाँ काकी.

सरोज- क्या काकी, करनी तो तुम्हे अपने मन की ही हैं .

मैं- ऐसी बात नहीं है काकी, वो दरअसल परसों रात खेत में जो हुआ .............

मैंने जान बुझ कर अपनी बात अधूरी छोड़ दी, दरअसल मैं नहीं चाहता था की हम दोनों में से कोई भी शर्मिंदा हो . पर ये भी सच था की इस सच को अब ज्यादा देर तक हम दोनों ही झुठला नहीं सकते थे.

सरोज- क्या हुआ था , कुछ नहीं हुआ था . वो रात थी बीत गयी , और बीती बातो को दिल पर नहीं लिया करते देव.

मैं- तो क्या आप मुझसे नाराज नहीं है

सरोज- किसलिए नाराजगी होगी मुझे, मेरा मतलब वो कुछ कमजोर लम्हे थे , तुम्हे इतना सोचने की जरुरत नहीं है बस इतना रहे की ये बात हम दोनों के बीच ही रहे.

मैंने सर हाँ में हिलाया. सरोज मेरे पास आकर बैठी और मेरे गाल को हलके से चूम लिया. उसके नर्म होंठो को अपने गाल पर महसूस करते ही मेरे तन में जैसे बिजली दौड़ गयी .

“याद रखना मेरी बात ” उसने कहा और उठने लगी , पर मैंने उसका हाथ पकड़ लिया, थोडा सा जोर लगाया तो वो मेरी गोद में आ गिरी. मैंने उसे अपने आगोश में थाम लिया. सरोज ने आँखे मूँद ली, उसका ऊपर निचे होता सीना किसी धौंकनी सा चल रहा था. कुछ तो कशिश थी उसके बदन में , मैंने अपना चेहरा निचे किया और सरोज के लबो को चूम लिया.

उसने कोई प्रतिकार नहीं किया, मक्खन से होंठ उसके , मेरे मुह में अपनी चिकनाई घोलने लगे थे, मेरे हाथ अपने आप उसकी छातियो को मसलने लगे थे. ,स सारी दुनिया भूलकर हम दोनों एक दुसरे में खो ही गए थे अगर निचे से वो आवाज नहीं आई होती. एक झटके से हम वापिस धरातल पर आये.

वो करतार की आवाज थी . “भाई भाई ”

“ऊपर आजा करतार ” मैंने उसे बुलाया तब तक सरोज भी अपने कपडे ठीक कर चुकी थी .

“भाई , ” कट्टु बोला

मैं- हाँ आगे भी बोल यार

कट्टु- भाई, तुम्हारे ताऊ मिले थे अभी जब मैं आ रहा था ,

मैं- तो

वो- उसने कहा की तुम्हे बता दू आज शाम ६ बजे वो तुम्हारा इंतज़ार करेंगे नदी की पुलिया पर .

मैं- मेरा इंतज़ार किसलिए

कट्टु- मालूम नहीं , पर मुझे वो जगह ठीक नहीं लगी तो मैंने कह दिया की मजार पर आके मिले, और मैं साथ रहूँगा तुम्हारे

मैं- ठीक है , पर तुम्हे ये कहना चाहिए था की यहाँ आकर मिले. आखिर उनके भाई का घर है .

सरोज- पर इस मुलाकात की क्या जरुरत पड़ी, कहीं शादी के लिए तो नहीं

मैं- नहीं काकी, मामला कुछ और है, वर्ना इतने सालो में अचानक अपना कैसे लगने लगा उनको मैं.

मैंने सरोज को चाय के बहाने निचे भेजा और करतार से बोला- सारी बाते छोड़, ये बता लाला पर हमला किसने किया .

कट्टु- मालूम नहीं भाई, पर जिसने भी किया साला चुतिया था पेल ही देता लाला को

मैं- बात तो सही है पर कौन,ये जानना जरुरी है , मुझे लगता है मुनीम की मौत भी इसी कड़ी का हिस्सा है .

कट्टु- पर उसे तो हार्ट अटैक आया था .

मैं- शायद उसने कुछ ऐसा देखा था की कमजोर जिस्म सह नहीं पाया.

कट्टु- तुम भी तो थे तब वहां तुमने देखा कुछ .

मैं- नहीं रे, धुंध बहुत थी वहां , मैं थोडा पीछे था और वो दूसरी तरफ से आ रहा था .

कट्टु- धुंध नहीं होती तो उसी दिन मालूम हो जाता , वैसे कल कालेज चल रहे हो न ,

मैं- हाँ चलेंगे ,

उसके बाद हमने चाय पी , फिर करतार सरोज के साथ अपने घर चला गया , मैंने कपडे बदले और घर से बाहर निकल गया. बस शाम होने का इंतज़ार था . ६ बजने में थोड़ी देर पहले मैं मजार की तरफ निकल गया. बारिश की वजह से मौसम काफी मस्त हो गया था. कच्चे रस्ते पर कीचड था पर किसे परवाह थी,


जब मैं वहां पहुंचा तो ताऊ पहले से ही था . मैंने नमस्ते किया उसने सर हिलाया पर बोला कुछ नहीं , बस मेरे हाथ में एक चाबी रख दी. एक चाबी, छोटी सी, जंग खाई हुई, ....................
yaha par hamla kiya tha naagin ne lala ke upar ...jo baba ne dev ko bataya ..
 
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#16

बेशक सर्द हवा ने मुझे कम्बल को और कसने को मजबूर कर दिया था , पर सामने से आती उस सूरत को देख कर मुझे कम्बल की जरुरत रह नहीं गयी थी . मैंने लालटेन की लौ और थोड़ी तेज कर दी, अँधेरी रात में एक लौ लालटेन की थी और एक उस चेहरे का नूर था जिसने मुझे मुस्कुराने पर मजबूर कर दिया था .

“तू जब देखो मुझे रास्तो में मिल ही जाता है ” रूपा ने सवाल किया

मैं- यही बात तुझसे भी कह सकता हु मैं

रूपा- हाँ बिलकुल कह सकते हो .

मैं- कहाँ इतने अँधेरे

रूपा- अरे आज सोमबार है , आज दिन में दिया जलाने नहीं जा पायी तो सोचा हो आती हूँ

मैं- तुझे कितनी बार कहा है अकेले मत निकला कर खासकर रात को ,

रूपा- मेरी आड़ मेरे साथ है तो क्या फ़िक्र मुझे

उसकी हंसी सीधा कलेजे में उतरती थी मेरे .

मैं- फिर भी ध्यान रखा कर

वो- जैसा तू कहे

मैं और रूपा मजार वाले रस्ते हो लिए.

“जाड़े की राते भी बड़ी लम्बी होती है मुसाफिर ” बोली रूपा

मैं- सो तो है , और बता सब ठीक ठाक

रूपा- बस गुजारा हो रहा है

मैं- मेरी बात पर विचार किया तूने

रूपा- तुझसे पैसे नहीं ले सकती मैं

मैं- क्या मैं तेरे लिए इतना भी नहीं कर सकता

रूपा- जहाँ पैसा बीच में आ जाता हैं न फिर उस रिश्ते की मिठास कम हो जाती है मुसाफिर

मैं- चल छोड़ फिर इस बात को ,

रूपा- छोड़ना ही बेहतर

मै- कभी आ जा मेरे घर , बरसो से मेरे सिवा कोई और आया नहीं वहां

रूपा - तेरा घर गाँव के बीच में है ,ऐसे अकेली आउंगी तो लोग क्या कहेंगे

मैं- तो बता तू, तुझे कैसे ले चलू मेरे घर ,

रूपा- चल उदास मत हो , कभी उधर से गुजरूंगी तो पक्का आउंगी .

मैं मुस्कुरा दिया . बाते करते करते हम मजार तक आ पहुचे , इक्का दुक्का लोग ही थे अब बाबा भी नहीं था .

“चल दिया जलाते है ” रूपा ने कहा

मैं- तू जला

रूपा- अरे आ न , मैंने सुना है जोड़े से मांगी दुआ जल्दी ही कबूल होती है

मैं- और कहीं मैं दुआ में तेरा जोड़ा ही न मांग बैठू

रूपा-वो तेरा नसीब मुसाफिर . रूपा का भाग तो बस मजदूरी, गरीबी में बीत रहा है , भाग में तेरा साथ हुआ तो वो भी देखूंगी पर अभी तो दुआ मांगते है .

रूपा ने अपने सर पर चुन्नी ओढ़ी, और इबादत में बैठ गई, मैंने उसके साथ दिया जलाया. दिल जैसे उड़ने लगा था . बहुत बेहतर लगने लगा था , फिर हम बाहर आकर बैठ गए. मेरी माँ के पेड़ के निचे . रूपा ने अपना झोला खोला और एक डिब्बे से कुछ बलुस्याही निकाली

“ले खा ” बोली वो

मैंने एक टुकड़ा तोडा.

मैं- जानती है ये पेड़ किसका है

रूपा- हाँ , ये पेड़ सुहासिनी ठकुराइन ने लगाया था ऐसा मेरा बाबा कहते है , जानता है इस पेड़ की खास बात क्या है

मैं- नहीं तू बता

रूपा- आजतक चाहे जो मौसम रहे , ये पेड़ हरा ही है , वैसे एक खास बात और है

मैं- जानता हु , ये मेरी माँ का पेड़ है .

रूपा बस हलके से मुस्कुराई, उसने मेरा हाथ पकड़ा और बोली- मैं जानती हूँ मैं समझती हूँ तेरे मन की बात तुझे कहने की कोई जरुरत नहीं तेरे दिल को अपने सीने में महसूस करती हु मैं .

मैंने अपना कम्बल और टाइट कर लिया .

“मैं अपने माँ-बाप के बारे में जानना चाहता हु रूपा, पर कोई भी मुझे बताता नहीं है न जाने क्यों ”

रूपा- तो मालूम कर ,अपने लोगो से जुड़, तेरे परिवार काका- ताऊ से मेल झोल कर तुझे कुछ तो जरुर मालूम होगा . लोग कहते है एक ज़माने में तेरे दादा का सिक्का चलता था , पर तेरे बाकि परिवार वाले उतने रुतबेदार नहीं निकले, मेरे बाबा कहते है की सुहासिनी ठकुराइन बहुत भली थी , कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता था उनके यहाँ से मेरे बाबा की बहुत मदद की थी उन्होंने,

“तेरे जन्म के कुछ समय बाद ही उनकी हत्या हो गयी थी , किसने की, किसलिए की सब बाते बस राज बनकर रह गयी , पर ऐसा कहते है लोग की तेरे पिता की मौत से पहले बाप-बेटे का खूब झगड़ा हुआ था . ” रूपा ने कहा

मैं- सुना मैंने भी , पर रूपा मुझे इसलिए भी डर लगता है की कहीं गड़े मुर्दे उखाड़ने के चक्कर में आने वाला कल न उलझ जाये .

रूपा- सब तक़दीर के लेख है मुसाफिर, लिखे हुए को कौन मिटा सके है .

मैंने रूपा का हाथ पकड़ा , सर्दी में ठंडा हुआ पड़ा था

“तू देगी साथ मेरा ” मैंने पूछा

रूपा- हाँ पर मेरी भी कुछ मजबुरिया है मेरे कंधे पर बुजुर्ग बाप की जिमीदारी है

मैं- तो मेरी बात क्यों नहीं मान लेती, तेरा कर्जा मैं उतार देता हु न

रूपा- मेरे कंधे बेशक गरीबी से झुके है पर जमीर है मुझमे , तुझसे पैसे ले लुंगी न तो ये दोस्ती फिर लालच वाली हो जाएगी, पर हाँ जब भी मुझे मदद चाहिए होगी मैं सबसे पहले तेरे दर पर आउंगी. चल अब समय हुआ चलते है .

चलते चलते हम उसी मोड़ पर आये जहाँ से हमारी राहे जुदा होती थी ,

मैं- घर तक छोड़ आऊ तुझे ,

रूपा मेरे पास आई और बोली- घर पर ले चलना .......


उसने हौले से मेरे गाल को चूमा और अपने रास्ते पर चल पड़ी. मैं खड़ा रह गया उसी मोड़ पर . फिर मुझे याद आया की कौशल्या मेरी राह देख रही होगी तो मैं तेज कदमो से खेत की तरफ चल पड़ा.
kaushalya ko har baar pyasa hi rehna padta hai ??..
 
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#17

मैंने देखा कौशल्या रजाई ओढ़े सोयी पड़ी थी मैंने उसे जगाया .

“मैंने तो सोच लिया था आज फिर धोखा दे गया लड़का ” कौशल्या ने अंगड़ाई लेते हुए कहा .

मैं- काकी, तेरी चूत लेने नहीं बुलाया तुझे कम से कम आज तो नहीं ले रहा मैं तेरी

कौशल्या- तो फिर किसलिए बुलाया मुझे

मैं- तुझसे एक बात करनी थी , देख मेरे कुछ काम है तू वो कर बदले में मैं तेरे कर्जे की जितनी भी रकम है लाला महिपाल को चूका दूंगा

काकी- क्या करवाना चाहता है मुझसे तू

मैं- बस थोडा मजा और थोड़ी जानकारी जो तू लाकर देगी मुझे

काकी- समझी नहीं मैं

मैं- सुन ध्यान से , सबसे पहले तो मुझे शकुन्तला के पल पल की खबर चाहिए वो क्या करती है , कहाँ आती जाती है , कौन दोस्त है कौन दुश्मन है उसके .

काकी- तुझे क्या करना है ये जानकार

मैं- वो तेरा मतलब नहीं .

काकी- और दूसरा काम

मैं- तुझे सोना पड़ेगा करतार के साथ ,

काकी- बावला हुआ है क्या

मैं- मेरे साथ सो सकती है उसके साथ नहीं , देख मैं जानता हु तुझे लंड की बहुत जरुरत है , करतार को दे, ये दोनों काम कर मैं महिपाल से बात करूँगा , ,मैं जानता हु तेरी चूत में बहुत आग है करतार संग लग जा .

काकी- सोचती हूँ

मैं- सोचने का समय नहीं है

काकी पर आज तो कर ले मेरे साथ , देख इतना तो तू भी कर ही सकता है मेरे लिए.

मैंने कुछ सोच कर कौशल्या से हाँ कह दी ,

चुदाई के बाद नींद सी आ गई , सुबह मैं करतार के साथ कालेज गया . दो तीन क्लास लेने के बाद मैं चंदू के पास चला गया .

चंदू- और भाई कैसे हो

मैं- बढ़िया कुछ खिला दे यार .

चंदू कुछ समोसे और चाय ले आया .

चंदू- भाई , रोज नहीं आते तुम

मैं- बस ऐसे ही पढाई में मन नहीं है करतार के साथ आ जाता हूँबस

फिर मुझे कुछ याद आया तो मैंने चंदू से पूछा - यार ये मुड्कियो की थोड़ी डिटेल चाहिए मुझे

चंदू ने घुर कर देखा मुझे और बोला- जानते हो न कितने खतरनाक है वो

मैं- अपने दोस्त के लिए इतना नहीं करेगा तू

चंदू- दोस्ती की है निभानी तो पड़ेगी ही . अभी परसों की बात है तुम नहीं आये थे उस दिन छोटे मुडकी ने कालेज में एक लड़के को इतना पीटा , उसका पाँव तोड़ दिया .

मैं - किसलिए

चंदू- मुदकी ने लड़के से कहा की उसके जूते को जीभ से चाटे , उसने मना किया तो उसका ऐसा हाल किया.. कोई रोकने टोकने वाला तो हैं नहीं . बाप के खौफ का पूरा फायदा उठाता है ये .

मैं- इसकी बहन जज है न

चंदू- हाँ , अपने इधर ही है कचहरी में, पर वो इन जैसी नहीं है बहुत अलग और सज्जन है , बल्कि वो काफी समय से अलग ही रहती है , उसने अपने भाई को ही सजा सुना दी थी .

मैं- तू जानता है उसे

चंदू- नहीं भाई, अपना क्या संपर्क बड़े लोगो से बस मैंने भी खबरे सुन ली लोगो से

मैं - और बता क्या चल रहा है

चंदू- क्या बताऊ बड़ी मुश्किल है भाई , सोचता हूँ कोई छोटी मोटी नौकरी मिल जाये तो अच्छा रहे, कहने को तो मैं और मेरी माँ ही है परिवार में पर दो समय की रोटियों के भी लाले पड़े है .

मैं- तेरा भाई किसलिए है फिर , मुझे बताना था न फिर .

मैंने जेब से पैसे निकाले और चंदू को दिए.

चंदू- अरे नहीं यार, ये सब नहीं

मैं- छोटा भाई है मेरा ,बड़े भाई के नाते दे रहा हूँ रख ले .

शाम को मैं गाँव पहुंचा तब तक अँधेरा घिर चूका था , मैंने हाथ पांव धोये ही थे की सरोज आ गयी.

सरोज- तुमने कुछ किया क्या, कुछ हुआ तुमसे

मैं- नहीं तो ,क्या हुआ

सरोज- आज एक पुलिसवाला आया था , कह गया की तुम्हे सेसन हाउस बुलाया है

मैं- अच्छा

सरोज- सेसन हाउस क्या होता है थाने को अंग्रेजी में कहते है क्या, देव सच बताओ मुझे .

मैं - ऐसा कुछ नहीं है , मेरा एक दोस्त बना है उसके पिता बड़े अधिकारी है वो पुलिसवाला उनका सुरक्षा गार्ड है तो उसके हाथ संदेस भेजा होगा .

सरोज- मुझे फ़िक्र रहती है तुम्हारी

मैं- समझता हूँ

मोना सिंह ने बुलवाया था मुझे , मैंने कल जाने का सोचा. मैं मजार की तरफ चल पड़ा. दरसल मजार तो अब बहाना थी मेरा मकसद रूपा का दीदार होता था . बस कुछ ही मुलाकातों में अपनी लगने लगी थी वो , उसके साथ दो सूखी रोटिया भी पकवानों से बेहतर लगती थी मुझे.



रूपा के बारे में सोचते हुए मैं बेफिक्र चला जा रहा था , की मोड़ पर मैंने कुछ ऐसा देखा की मेरा कलेजा जैसे सीने से बाहर आने को हो गया . ऐसी चीज़ बल्कि यु कहू ऐसा द्रश्य मैंने तो क्या किसी ने भी नहीं देखा होगा.

कच्ची सड़क के बीचो बीच , एक बड़े से सांप ने नीलगाय को जकड़ा हुआ था , नीलगाय तड़प रही थी , कितना बड़ा सांप था वो कम से कम दस फूट से ऊपर का , रहा होगा, उसकी मोटाई भी बड़ी ज्यादा था , अँधेरे में इतना साफ़ नहीं दिख रहा था पर आँखे उसे देख पा रही थी .

नीलगाय बड़ी तकलीफ में थी , मैंने सड़क से कुछ पत्थर उठाये और सांप के ऊपर फेंके, कुछ असर नहीं हुआ अबकी बार मैंने कुछ बड़े पत्थर उठाये और फिर से फेंके, इस बार शायद मेरा पत्थर उसे जोर से लगा. एक अजीब सी चीख मैंने सुनी,

और फिर मैंने उस सांप को पलटते हुए देखा, चीखते हुए वो मेरी तरफ पलटा ........


और जब वो ऊपर उठा तो मेरी बारी थी चीखने की , पर मेरी आवाज मेरे गले में ही घुट गयी , घुटने कांप गए वो सांप, वो सांप.............
nice ..ye aur ek saap jo 10 foot se jyada lamba hai ..jo neel gaay ko kha raha hai ..
 
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#18

क्या वो मेरी नजरो का धोखा था या सच था , ये जो भी था मेरी आँखे देख रही थी पर दिल मान नहीं रहा था , मैंने देखा उसका धड बड़े सांप का था और ऊपर का तन इन्सान का , लम्बे बाल जो खून से लथपथ थे, अँधेरे में चेहरा नहीं दिख रहा था पर उसकी पीली आँखे जुगनू सी चमक रही थी .

अजीब सी आवाज करते हुए उसने अपनी पूँछ मेरी तरफ पटकी, जैसे किसी भारी पत्थर ने मुझे ठोकर मारी हो , मैं दर्द के मारे जमीं पर गिर गया , चिंघाड़ते हुए वो जीव मेरे पास आया , उसके बालो से टपकता खून मेरे जिस्म पर गिरने लगा. मैं जैसे बुत बन गया था , वो साया मेरे ऊपर झुकते जा रहा था किसी भी पल वो मुझे खा सकता था, वार कर सकता था , डर के मारे मेरी आँखे बंद होने लगी . पर कुछ देर बाद मुझे अहसास हुआ ख़ामोशी का .

मैंने आँखे खोली, कुछ नहीं था , सिवाय मेरे और उस नीलगाय की लाश के जो सबूत थी की मैंने अभी अभी कुछ ऐसा देखा था जो देख कर भी अनदेखा था . थोडा समय लगा उखड़ी साँसों को सँभालने में , मैं भागते हुए सीधा मजार पर गया और बाबा को सारी बात बताई , बाबा के माथे पर बल पड़ गए.

बाबा- कितनी बार तुझे समझाया है अंधेरो में मत घुमा कर पर तू सुनता नहीं, ये दुनिया बड़ी जालिम है मुसफिरा, यहाँ आईने है , हकीकते है , छलावे है , ऐसे ही किसी छलावे को देख आया है तू. ये धरती अपने अन्दर न जाने कितने राज छुपाये हुए बैठी है , ये रेत न जाने कितनी कहानियो का हिस्सा रह चुकी है .

मैं- बाबा, पर वो था क्या

बाबा- एक बुरा ख्वाब . पर तू भूल नहीं सकता उस खवाब को ,

बाबा ने ऊपर आसमान की तरफ देखा और बोले- तेरा नसीब गोते खा रहा है , ख़ुशी तेरी दहलीज पर खड़ी है पर ........

बाबा ने बात अधूरी छोड़ दी .

मैं- पर क्या बाबा

बाबा- मैंने कहा था न मौसम बदल रहा है तेरी आँखों में इश्क देखता हु मैं

मैं-नहीं बाबा . ऐसा कुछ नहीं

बाबा- मुझसे झूठ बोल सकता है नसीब से नहीं .

बाबा ने फिर कुछ नहीं बोला. बस अपना इकतारा बजाने लगा. मैं वापिस जाने को हुआ पर उसने मुझे वही रहने का इशारा किया . रात भर वो इकतारा बजाता रहा मैं उसके पास बैठा रहा .

अगले दिन कालेज के बाद मैं सीधा सेशन हाउस गया. मोना सिंह से मिलने. मुझे देखते ही उसके चेहरे पर जैसे ख़ुशी आ गयी .

“देव, कैसे हो तुम ” पूछा उसने

मैं- आप कैसी है , तबियत ठीक है

मोना- बेहतर हु, पैर टुटा है तो टाइम लगेगा ठीक होने में , खैर ये बताओ क्या लोग चाय, काफी, ठंडा , कहना क्या मैं मंगवा ही लेती हु .

कुछ ही देर में नाशता आ गया . मैंने थोडा सा खाया

मैं- सीधा काम की बात पर आते है .

मोना ने सर हिलाया

मैंने वो बैग मोना के सामने रखा उसने वो तस्वीर देखि और बैग को अपने पास रख लिया.

मोना- थैंक्स, इसकी हिफाजत करने के लिए.

मैं- कुछ ख़ास है इस तस्वीर में क्या , मैंने देखा आपको पैसे की फ़िक्र नहीं थी बस इस तस्वीर की थी .

मोना- ये किसी की अमानत है देव,

मैं- कीमती है क्या ये तस्वीर

मोना- नहीं , दरअसल ये किसी का घर है पर ये हैं कहाँ ये कोई नहीं जानता , ऐसी कहानी है की इसे छुपाया गया है .

मैं- ऐसा हो सकता है .

मोना-मैं भी ये जानना चाहती हु,

मैं- आप जज है , काफी पढ़ी लिखी हैं आप इन बातो पर विश्वास करती है ,

मोना- मैं जहाँ से हूँ न देव, वहां पर हर कोई विश्वास करता है , तुमने जूनागढ़ का नाम सुना है

मैं- हाँ सुना है ,

मोना- वो खिड़की से परदे हटाओ जरा .

मैंने वैसा किया.

मोना- किसी ने तुम्हे बताया की जूनागढ़ और तुम्हारे गाँव का क्या सम्बन्ध है .

मैं- मालूम नहीं ,

मोना- बरसो पहले तुम्हारे गाँव का एक लड़का , जूनागढ़ की लड़की को भगा ले गया था मंडप से,

मैं- तो

मोना- उस घटना ने दोनों गाँवों के भाईचारे को समाप्त कर दिया.

मैं- मुझे क्यों बता रही है .

मोना- क्योंकि तुमने मेरी मदद की , तुम्हे मेरे बारे में जानना चाहिए

मैं- वो इसलिए की इन्सान ही इन्सान के काम आता है , मुझे तो मालूम भी नहीं था की आप कौन हो , क्या हो, कहाँ की हो .

मोना- इसलिए मैं प्रभावित हुई हु, तुमसे ,

मैं मुस्कुरा दिया.

मोना- देव, कभी कोई काम हो तो मुझे कह सकते हो .

मैं- जी, शुक्रिया

मोना- कभी भी किसी भी समय तुम मुझसे मिलने आ सकते हो , बस मैं कोर्ट में न रहू उस समय

मैंने सर हिला दिया .

मैं वापिस जाने को उठा की मुझे कुछ याद आया

मैं- एक बात पुछू

मोना- हाँ

मैं- वो हवेली किसकी है वैसे

मोना- एक मुसाफिर की .

मोना की बात सुनकर मैं फिर मुस्कुरा पड़ा

मोना- क्या हुआ .

मैं- जी कुछ नहीं .

मोना से विदा लेकर मैं वापिस अपने गाँव की बस में बैठ गया . रस्ते भर मैं उस तस्वीर के बारे में सोचता रहा , किसी मुसाफिर की थी वो हवेली और एक मुसाफिर मैं भी था , क्या वो मेरी थी , एक मिनट ताऊ ने मुझे जो चाबी दी, क्या वो उस हवेली की ही थी . सोचते सोचते मेरे सर में दर्द होने लगा.

मैं सीधा अपने खेत पर गया . तो देखा की रूपा वहां पहले से मोजूद थी .

रूपा- तेरा ही इंतज़ार कर रही थी मैं

मैं- किसलिए

रूपा- किसलिए का क्या मतलब , क्या मैं तेरा इंतजार नहीं कर सकती

मैं- अरे नाराज क्यों होती है बस ऐसे ही पूछा मैंने

रूपा- आज हलवा बनाया था मैंने तो तेरे लिए लायी हु

मैं- एक मिनट मैं हाथ पाँव धो लू जरा

मैं वापिस आया तब तक रूपा ने चूल्हा जला दिया था .

रूपा- ठण्ड बहुत है चाय बस बनी ही

मैंने डिब्बा उठाया और हलवा खाने लगा. कसम से रूपा बड़ा स्वादिष्ट खाना बनाती थी .

“ले चाय ” उसने मुझे कप दिया.

मैं- तू नहीं पीयेगी

रूपा- कितनी बार बताऊ, दूध पसंद है मुझे ,

उसने अपने कप में दूध भरते हुए कहा

मैं हंस पड़ा

रूपा- तू ऐसे बेमतलब मत हंसा कर

मैंने चाय की चुस्की भरी

रूपा- ये बताने आई थी की कुछ दिन मिल नहीं पाऊँगी तुझे

मैं- क्यों भला सब राजी ख़ुशी तो है

रूपा- मैं जूनागढ़ जा रही हूँ,

मैं- क्यों

रूपा-शादी में

मैं- अपनी रिश्तेदारी है उधर

रूपा- नहीं

मैं- तो कैसे

रूपा- तू क्या करेगा ये जानकार , हर बात बतानी जरुरी तो नहीं

मैं- क्या बात है रूपा , क्या बताना नहीं चाहती तू मुझे

रूपा- क्या बताऊ तुझे , बापू के किसी जान पहचान वाले की शादी है इसलिए जा रहे है बस अब और मत पूछना

मुझे लगा की कुछ तो छुपा रही है रूपा पर मैंने बात को टाल दिया.

मैं- रूपा तू किसी हवेली के बारे में जानती है जो खो गयी .


रूपा के हाथ से कप निचे गिर गया .
mil gaya wo dusra saap jo gaay ko kha raha tha aur uska aadha sharir insaan ka hai aur aadha saap ka ....par us saap ne dev ko kyu nahi maara ye bhi ek sawaal hai ???...shayad ye naagesh ho ? ..par wo saap aurat thi yaa mard ye pata nahi chala kyunki dev ne sirf aankhe dekhi chehra nahi ...
 
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#19

“माफ़ करना मेरा ध्यान भटका , क्या कह रहे थे तुम ” बोली रूपा

मैं- तूने किसी खोयी हुई हवेली के बारे में सुना है क्या

रूपा जोर जोर से हंसने लगी, इतना जोर जोर से की उसने अपना पेट पकड़ लिया.

“वाह रे, मजाक करना कोई तुमसे सीखे, जानता भी है हवेलिया कितनी बड़ी होती है , कोई छोटा मोटा सामान है क्या जो खो जाये ” रूपा बोली

मैं- ले ले मजे पर किसी ने मुझे बताया की एक हवेली खो गयी

रूपा- तो बताने वाले को जाके कह की खोयी चीज की रपट दर्ज करवाए थाने में .

इस बार मैं भी मुस्कुरा दिया.

रूपा- बहुत भोला है रे तु, जो भी तुझे बता दे मान लेता है मुझे डर लगता है कही तेरे इस सरल स्वभाव का फायदा दुनिया न उठाये.

“मेरी दुनिया तू है , उठा ले फायदा ” मैंने कहा

रूपा- इतना आगे मत बढ़ मुसाफिर , की पीछे लौट न सके

मैं- डरती है तू मेरे साथ सफ़र करने में

रूपा- डरती हूँ नसीब से,मुसाफिरों के नसीब में बस सफ़र होता है , मंजिले नहीं , मुसाफिर सफ़र करते है हमसफर नहीं बनते . और फिर मेरे चाहने न चाहने से क्या होता है , तू आसमान का तारा मैं धरती की रेत ,

मैं- इस रेत में पानी की बूँद बन कर घुलना चाहता हु मैं , माना की नसीब में सफ़र है पर हमसफर भी तो हैं .

रूपा- फिर कभी करेंगे ये बाते , मैं चलती हु देर हो रही है .

मैं- यही रुक जा न .

रूपा- आजकल बस तेरे साथ ही वक्त गुजर रहा है मेरा, मेरा काम रह जाता है तेरे चक्कर में

मैं- तुझे काम करने की कोई जरुरत नहीं , मेरा सब कुछ तेरा ही तो है

रूपा- जानती हु , पर हम इस बारे में बात कर चुके है ,

मैं- तेरी ये खुद्दारी

रूपा- गरीब के पास होता ही क्या है खुद्दारी के सिवा.

मैंने रूपा का हाथ पकड़ा और बोला- ऐसी बाते न किया कर, तू जानती है मेरा दिल कितना दुखता है , तेरे हाथो के ये छाले जब देखता हूँ न तो कलेजे में आग लगती है .

रूपा- क्या चाहता है तू

मैं- तुझे अपनी बनाना,

रूपा- आशकी में सब ऐसा कहते है

मैं- ब्याह करना चाहता हूँ तुझसे , तुझे अपना बनाना चाहता हु, मेरे पास एक मकान है उसे घर बनाना चाहता हु, आजतक बस अकेल्रा ही रहा हूँ अब तेरे साथ जीना चाहता हूँ .

रूपा के चेहरे पर एक फीकी मुस्कान आ गयी .

रूपा- देर हो रही है मुझे

मैं- रुक जा न

रूपा- फिर कभी रुक जाउंगी जाने दे मुझे

रूपा उठी और झोपडी से बाहर आई, आसमान से ओस बरस रही थी , ठण्ड बहुत ज्यादा थी , रूपा ने अपनी लालटेन जलाई . रौशनी में उसका सांवला चेहरा जैसे सुबह खिलता कोई ताजा फूल हो .

रूपा- चलती हु, शादी में से आके ही मिलूंगी अब

मैं- तेरी याद आएगी .

रूपा- यादो का क्या करना कुछ दिन में मैं खुद ही आ जाउंगी.

रूपा ने कदम आगे बढ़ाये और अपने रस्ते पर चल पड़ी. कुछ दूर जाकर वो पलटी, मेरी तरफ देखा उसने

मैं दौड़ कर गया उसके पास, बेशक दो चार कदम की दुरी थी पर साँस फूल गयी थी .

“न रोक सरकार , जाने दे मुझे जाना जरुरी है ” रूपा कांपते हुए बोली

मैं अब उसके सामने था , उसके करीब , इतना करीब की हमारी सांसे आपस में उलझने लगी थी , चाँद रात और दिलबर साथ . मैंने देखा रूपा के हाथ में लालटेन कांपने लगी थी .

मैंने रूपा की कमर में हाथ डाला और थोडा सा खींचा , वो मेरी बाँहों में झूल गयी , उसके होंठ मेरे गालो से टकराए.

“जाने दे मुझे ” आधी ख़ामोशी से बोली वो

मैं- तू अकेली नहीं जायेगी मेरी जान भी तो साथ ले जा रही है .

रूपा- ऐसी बाते मत कर, पिघलने लगी हूँ मैं परवाने

मैं- तो फिर जला दे मुझे शम्मा बनकर

रूपा- मज़बूरी समझ मेरी

मैं- अकेलापन समझ मेरा,

मेरे होंठ थोडा सा रूपा के होंठो से टकराए, मुझे ऐसे लगा की बर्फ चख ली मैंने पर उसने मुझे खुद से दूर कर लिया और बोली- जा रही हु मैं .

इस बार उसने मुड कर नहीं देखा , बस चली गयी .पर वो ऐसे ही नहीं गयी थी अपने साथ मेरा दिल भी ले गयी थी.



मैं वापिस आकर बिस्तर पर लेट गया . आँखों में न नींद थी न दिल में करार, खुली आँखों से मैं सपने देखने लगा था , ऐसे सपने जहाँ बस मैं था रूपा थी , पेडो पर डाले झूले में झूलते रूपा, पास बैठा उसे देखता मैं . नजाने कब मुझे नींद आई .

सुबह आँख खुली ,मै बाहर आया तो देखा की कौशल्या चली आ रही है .

मैं- इतनी सुबह कैसे,

कौशल्या- दस बज रहे है

मैं- बड़ी देर तक सोया मैं .

काकी- जाने दे सुन , शकुन्तला खुद तुझसे मिलना चाहती है , बातो बातो में उसने बताया मुझे

मैं- मुझसे पर क्यों

काकी- बड़ी परेशां है वो किसी बात को लेकर, मैंने पूछा पर उसने वो बात बताई नहीं

मैं- कब मिल सकते है

काकी- देख,तू ऐसा कर लाला का हाल पूछने के बहाने उसके घर जा

मैं- पर लाला तो हॉस्पिटल में है

काकी- तभी तो कह रही हूँ, हाल चाल पूछने के बहाने घर जा सकता है तू , और घर से बढ़िया जगह कहाँ रहेगी मिलने को

मैं- ठीक है कल जाता हु

काकी- मेरे कर्जे का क्या हुआ .

मैं- एक दो दिन में पैसे लाकर देता हु तुझे

काकी- ठीक है . और ..

मैं- और क्या

काकी- चोदेगा कब

मैं- दो चार दिन में

काकी-जैसी तेरी मर्जी और सुन बताना भूल गयी सरोज बोल रही थी तुझे, कल सुबह से गायब है तू, चिंता कर रही थी वो घर चले जाना

मैं- ठीक है , वो करतार के बारे में क्या सोचा

काकी- रिझाना शुरू कर दिया है , अभी सीधा टांगे खोल दूंगी तो अच्छा नहीं लगेगा न

मैं- ठीक है .


कौशल्या के जाने में बाद मैं सोचता रहा की शकुन्तला की कौन सी मज़बूरी है जो वो लालायित है मुझसे मिलने को , पर जबसे उसे मूतते देखा था मैंने भी तो सोच लिया था की उसकी चूत लेनी ही हैं मुझे, मेरा दिल तो उसी दिन आ गया था उस पर . सोचते सोचते मैं घर की तरफ चल पड़ा.
nice ..agar rupa saap aur baba ke baare me jaanti hai to us haweli ke baare me bhi jaanti ho shayad ...par usne dev ke sawaal ko majak me uda diya ,,matlab wo bhi dev se bahut kuch chupati aayi hai shuruwat se ..
 
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#21

मैंने दो शांत पीली आँखे देखि , पुलिया के बीचो बीच , बेशक अँधेरा घना था पर वो आँखे जुगनू सी चमक रही थी , मेरे पैर उसे देखते ही थम गए, और इस बार मुझे पक्का यकीन हो गया ये जो भी था इतना जरुर था की मेरा भ्रम नहीं था . पर एक चीज और थी जिस पर मेरा ध्यान अभी नहीं गया था और जब गया तो मैंने अपनी पेंट में गीलापन महसूस किया.

पुलिया के पास चार पांच कटी फटी लाशें पड़ी थी , ठीक उसी तरह से जैसे वो नीलगाय का हाल था इन लाशो का हाल था पर एक बात और थी वो सांप वैसा बिलकुल नहीं था जैसा मैंने उस दिन देखा था बेशक बड़ा इतना ही था पर ये पूरा सांप था , मतलब इसका मुह सांप जैसा था बेशक उसके और मेरे बीच थोड़ी दुरी थी पर इतना जरुर था की वो सांप शायद सो रहा था .



कायदा तो ये था की मुझे रास्ता बदल लेना चाहिए था , मेरा कुछ भी लेना देना नहीं था और पिछली मुलाकात भी कुछ ठीक नहीं थी , पर कहते है न की इन्सान में चुल होती है और यही चुल उस से खुराफात करवाती है . मेरा हाल भी ऐसा ही था , मैं दबे पाँव आगे बढ़ा उस सांप की तरफ, मेरे कुछ कदमो ने हमारे बीच की दुरी और घटा दी थी , और आगे बढ़ते हुए मैं इतना तो जान गया था की ये सांप सो ही रहा था , बस उसकी आँखे खुली थी .

पर वो कहते है न शिकारी अगर सोया भी हो तो घात में सोता है , मेरे पैरो की हलकी सी आवाज हुई और मैंने बस उस बड़े से फन को अपने तरफ आते देखा, वो फन बड़ी जोर से मेरे सीने से टकराया , जैसे किसी पहाड़ की चट्टान आ गिरी हो मुझ पर , चीखते हुए मैं जमीन पर गिर पड़ा.

मेरे कानो ने वो ही तेज चीख सुनी जो मैंने उस दिन सुनी थी , जमीं पर पड़े पड़े ही मैंने महसूस किया की सांप की पूँछ मुझे जकड रही है , मेरे शारीर पर उसका दबाव बढ़ रहा था , और फिर उसने मुझे ऊपर हवा में उठा लिया , मैं अब उन पीली आँखों के सामने था , वो आँखे बड़े गौर से घुर रही थी मुझे ,जकड़ के मारे हड्डिया कद्कड़ाने लगी थी ,



फन से एक लम्बी सी जीभ मेरी तरफ लपलापाई , मेरा चेहरा जैसे किसी गाढे लिजलिजे द्रव से नहा गया , बड़ी गन्दी बदबू थी वो , मेरा सर चकराने लगा. बेहोशी सी छाने लगी , आँखे बंद होने लगी, फिर जैसे सब शांत हो गया . जैसे कुछ हुआ ही न हो.

जब मुझे होश आया तो मैं खुद को संभाल नहीं पाया बहुत देर तक तो मुझे समझ ही नहीं आया की मैं हु कहाँ , बदन दर्द से तड़प रहा था होश फाख्ता थे, क्या समय था मालूम नहीं था भोर का पहला पहर था शायद , ठण्ड बहुत तेज थी ,

मैंने आस पास का जायजा लिया ,दिमाग पर जैसे बहुत बोझ था , मैं वही पुलिया पर पड़ा था उन लाशो के बीच , जैसे तैसे मैं अपने खेत पर पहुंचा और पानी उडेला खुद पर . दो बार मेरा सामना ऐसे जीव से हुआ था जो लोगो को मार रहा था , पर उसने मुझे नहीं मारा . ये सवाल किसी हथोड़े की तरह मेरे दिल पर चोट कर रहा था .

क्या उस सांप का मुझ से कोई रिश्ता था ? पर कैसे ? कम्बल ओढ़े अलाव को ताकते हुए मैं बस यही सोच रहा था , मैं देव चौधरी, जिसके पास न कोई अतीत था और न कोई भविष्य . न जाने क्यों मुझे डर लगने लगा था , ऐसा डर जो मेरी रीढ़ की हड्डी में बैठ रहा था . छोटी सी हलचल मुझे लगती थी की वो सांप मेरे आसपास है .



कुछ और न सूझा तो मैं मजार वाले बाबा के पास चल दिया. पर वहां जाकर मैंने कुछ और ही देखा. व्हील चेयर पर बैठी मोना मजार पर थी , अपनी आँखे मूंदे जैसे कोई दुआ मांग रही हो वो. और उसका वहां होना मुझे बड़ा अच्छा लगा. मैं बस उसे देखता रहा . कुछ देर बाद उसने आँखे खोली

“देव, तुम यहाँ ” पूछा उसने

मैं- आप भी यहाँ

मोना- इबादत का कहाँ कोई समय होता है

मैं- सो तो है ,

मोना- जूनागढ़ जा रही थी एक शादी के सिलसिले में तो सोचा इधर होती चलू , बड़े दिन बीते इधर से आना ही नहीं हुआ

मैं- अच्छा किया इसी बहाने अपनी मुलाकात हो गयी .

मोना- मुलाकाते तो होती ही रहनी है , और बताओ

मैं- आप बताओ तबियत कैसी है अब

मोना- देख ही रहे हो. अभी तो इस चेयर के सहारे हु, पर जल्दी ही प्लास्टर खुल जायेगा.

मैं- जल्दी से ठीक हो जाओ आप.

मोना- कोशिश तो है .

मोना कोई ३२-३३ साल की औरत थी , शादी नहीं की थी उसने, पर यौवन से भरपूर, एक दम गुलाबी रंगत लिए और इस ठण्ड में वो और गुलाब लग रही थी . जैसे मैं एक पल को उसके रूप में खो ही गया था .

“अब इतनी शिद्दत से मत देखो मुझे देव, ” उसने मुस्कुराते हुए कहा

मैं उसकी बात सुनकर झेंप सा गया . वो मुस्कुराई

मैं- घर चलते है , चाय पियेंगे

मोना- जरुर, पर आज नहीं फिर कभी अभी मुझे निकलना है जूनागढ़ के लिए ,वैसे तुम एक काम क्यों नहीं करते , आ जाओ उधर, मेरा घर है , छुट्टिया भी हैं मेरी, इसी बहाने तुम्हारा एक ट्रिप भी हो जायेगा और मैं भी थोडा टाइम अपने नए दोस्त के साथ बिता सकुंगी.

मैं- पर मैं कैसे ...........

मोना- कैसे, क्या, अब एक दोस्त क्या दुसरे दोस्त के घर नहीं आ सकता क्या

मैं- क्यों नहीं आ सकता .

मोना- तो फिर आ जाओ, मैं परसों गाडी भेज दूंगी तुम्हे लेने .

मैंने सर हिला दिया.

मोना ने मुझे अपने पास बुलाया. मैं उसके पास गया और घुटनों पर बैठ गया उसने मेरा हाथ पकड़ा और बोली- दुनिया में सब कुछ मिल जाता है बस अच्छे दोस्त बड़ी मुश्किल से मिलते है , दुनिया के लिए मैं अफसर हु पर तुम्हारे लिए बस मोना, तुम्हारी दोस्त मोना.

मैं- शुक्रिया .

मैंने खुद मोना की चेयर को गाडी तक छोड़ा .

मोना- परसों

मैं- पक्का.




बेशक ये कुछ मिनट की मुलाक़ात थी पर इसने दिमाग को हल्का कर दिया था , मेरी तक़दीर के मोहरे अपनी चाल चल रहे थे , मैं जूनागढ़ जाने वाला था , मैं कहा जनता था की नसीब का लेख मुझे वहां बुला रहा है , मैं तो ये सोच कर खुश था की रूपा भी होगी वहां .
ye aur ek saap tha ..jo poora saap ke sharir ka tha ,,agar ye wo bachane wali saapin hai to usne dev ko jakda kyu???
 
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