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Adultery गुजारिश

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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Sunday ko bhi readers ki gujarish na huyi manjur 😕
 

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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मैंने तेज जहर को अपनी नसों में बहते महसूस किया, नशा सा चढ़ने लगा पर बस कुछ पलो के लिए . फिर मेरा खून नागिन के बदन में जाने लगा. थोड़ी ही देर में उसकी हालात बहुत बेहतर हो गयी . कुछ तो था उसके और मेरे बिच में . ऐसा नाता जिसे अब वो चाह कर भी नहीं छुपा सकती थी .

“जब तू जाये तो मुझे नजरे छिपा कर जाना ” मैंने कहा .

वो सुनती रही . कुछ न बोली.

मुझे इस ख़ामोशी से कोफ़्त सी होने लगी थी .

“जाती क्यों नहीं अब किसने रोका है तुझे, जा चली जा वैसे भी तू मेरी कौन लगती है ” मैंने थोड़े गुस्से से कहा .

“तुझसे पूछ कर जाउंगी क्या , जा नहीं जाती ” उसने भी जवाब दिया.

मैं- ऐसा लगता है की मेरा दिल टुटा है , दिमाग मेरे काबू में नहीं है मैं कही तुझे कुछ उल्टा सीधा न बोल पडू

नागिन- चलो इसी बहाने तेरा मन तो हल्का हो जायेगा.

मैं- ये दोहरी बात न कर , जब तुझे रोकना चाह तो जाने की जिद थी अब जाती नहीं .

नागिन- तो क्या करू मैं . मेरी बेबसी मेरी मज़बूरी मैं करू तो क्या करू.

मैं- मैं तुझसे ये नहीं कहूँगा की मैं दुनिया में अकेला हूँ , मेरा कोई नहीं है तेरे सिवा , तू ही है बस मेरी , तू नहीं रहेगी तो मैं कैसे जियूँगा . मेरे दुश्मन मुझे मार देंगे. फलाना फलाना. अरे तू नहीं थी , मेरा मतलब जब मुझे मालूम नहीं था तेरे बारे में तब भी तो मैं जीता था , माना तेरे अहसान है मुझ पर और मेरी खाल की जुती बनाके तुझे पहना दू तो भी मैं तेरे अहसान नहीं चूका सकता . पर तुझे जाना है तो जा , चली जा जी लेंगे तेरे बिन भी . जो मिला सबने धोखा दिया तेरा भी सह लेंगे, अरे हम तो मुसाफिर है , और मुसाफिरों को मंजिले नहीं मिला करती, गलती मेरी ही थी जो भूल गया. और सुलतान बाबा से भी कहना अब उसे दूसरी मंजिल को छुपाने की कभी जरुरत नहीं पड़ेगी , मुसाफिर अब कभी हवेली में कदम नहीं रखेगा . जा चली जा मुझसे दूर हो जा. और मैं अगर मर भी जाऊ तो तुझे कसम है मेरी तू न आना.



मैंने अपना मुह उस से मोड़ा और अपने कदम उस रस्ते पर बढ़ा दिए जहाँ थी तो बस जुदाई .

उसने भी रोका नहीं और मैं भी नहीं रुका. मैं तो ये जानता भी नहीं था किस बंधन में मैं बंध गया हूँ उस से, जिन्दगी में अचानक से कुछ ऐसे लोग आ गए थे जिन्होंने मेरे और मेरे अक्स के बीच फर्क कर दिया था .

पर मेरी असली समस्या अब शुरू होनी थी , मेरे पास कोई ठिकाना नहीं था जहाँ मैं जा सकू, कभी कभी इन्सान अहंकार में इतना डूब जाता है की बाद में उसे पछताना ही पड़ता है , सरोज का घर मैं छोड़ चूका था , हवेली मैं , तो अब कहाँ जाऊ. मैंने खुद अ घर बनाने का निर्णय लिया वैसे भी रूपा से ब्याह के बाद मुझे घर तो चाहिए ही था .



सुबह होते ही मैं गाँव में मजदूरो के घर गया और उनसे बात की की मेरी किस जमीन पर मैं घर बनाना चाहता हूँ, शहर जाकर मैंने बैंक से कुछ रकम निकाली और मजदूरो को दी. और जल्दी से जल्दी काम शुरू करने को कहा. शाम को मैं पीपल के पास बैठा पेग लगा रहा था की मैंने रूपा को आते देखा .

“कहाँ कहाँ नहीं ढूंढा तुझे और तू यहाँ बैठा है ” उसने कहा

मैं- बस यूँ ही दिल थोडा परेशां था .

रूपा- तो शराब से परेशानी दूर होगी तेरी. मुझसे कह तेरी परेशानी तेरे दर्दे दिल के दवा मैं करुँगी .

मैं- मैं जिस पर भी भरोसा करता हु वो छलता है मुझे ,

रूपा- दस्तूर है दुनिया का नया क्या है

मैं- ऐसा लगता है की मैं टूट कर बिखर जाऊंगा ,

रूपा- थाम लेगी तुझे तेरी रूपा. वैसे भी किसी ने कहा ही है की दो बर्बाद मिलकर आबाद हो ही जाते है .

मैं- घर बनाने का सोचा है , एक दो दिन में काम शुरू हो जायेगा.

रूपा- बढ़िया है . एक घर ही तो होता है जाना इन्सान को सकून मिलता है .

मैं- एक पेग लेगी .

रूपा- नहीं रे, मेरे बस की नहीं

मैं- तो क्या है तेरे बस का

रूपा- तुमसे इश्क करना.

रूपा ने मेरे गाल को चूम लिया.

“ये छेड़खानी न किया कर मेरा काबू नहीं रहता खुद पर . ” मैंने कहा

रूपा- तो बेकाबू हो जा किसने रोका है मेरे सरकार.

मैं- क्या इरादा है तेरा.

रूपा- तुझे पाने का.

मैं- तो बन क्यों नहीं जाती मेरी . क्यों देर करती है .

रूपा- मैं देर करती नहीं देर हो जाती है .

मैं- उफ्फ्फ तेरी बाते ,

रूपा- बाते तो होती रहेंगी, ताजा सरसों तोड़ के लायी हु आजा चल आज साग बनाती हूँ तेरे लिए.

मैं- बाजरे की रोटी बनाएगी तो आऊंगा.

“जो हुकुम सरकार, अब चलो भी ” रूपा ने हँसते हुए कहा और हाथो में हाथ डाले हम उसके घर की तरफ चल पड़े. रूपा के साथ होने से बड़ा सकून मिलता था मुझे. एक दुसरे को छेड़ते हुए हम उसके घर से थोडा दूर ही थे की वो बोली- देव, गुड ले आ. थोडा चूरमा भी बना लुंगी .

मैं- ठीक है तू चल मैं लाता हूँ .

मैं वहां से दूकान की तरफ चल पड़ा . मैंने गुड लिया और वापस चला ही था की एक गाडी मेरे सामने आकर रुकी, मैंने देखा वो नानी थी . वो गाड़ी से उतर कर मेरे पास आई .

मैं-आप इस समय यहाँ

नानी- तुमसे मिलने ही आई थी .

मैं- मुझसे, यकीन नहीं होता.

नानी- तो यकीन कर लो .

नानी ने एक बक्सा मुझे दिया.

मैं- क्या है इसमें

नानी- खोल कर देखो .

मैंने बक्सा खोला . उसमे एक हार और चार चूडिया थी .

मैं- मेरा क्या काम इनका.

नानी- ये तेरी माँ की है .मैंने सोचा तुझे लौटा दू .

मैंने उनको माथे से लगाया .

नानी- मोना का कुछ पता चला

मैं- अभी तक तो नहीं

नानी- मेरे पोते की शादी है कुछ दिनों में . उसे ले आ बेटे .

मैं- आपसे ज्यादा मोना की मुझे फ़िक्र है और वो आ भी गयी तो आएगी नहीं शादी में .

नानी- तुम मना लाओ उसे, बड़े सालो बाद घर में कोई ख़ुशी आई है , मैं तो कुछ दिन की हूँ अंतिम इच्छा बस यही है की एक बार परिवार को इकट्ठा देख लू. मोना के सबसे करीब तुम ही हो, तुम ही तलाश सकते हो उसे.

मैं- अपने बेटे से क्यों नहीं पूछती , मुझे तो यकीन है उसने ही कुछ किया है मोना के साथ .

नानी- ऐसा नहीं है , मुझे मालूम है सतनाम लाख गलत है पर मोना का अहित कभी नहीं करेगा वो .

मैं- तो आप ही बताओ कहाँ तलाश करू उसे .

नानी-तुम तलाश कर लोगे उसकी .

मैं- एक बात पुछू

नानी- हाँ

मैं- क्या मैं जब्बर पर भरोसा कर सकता हूँ

नानी- ये तुम जानो

नानी के जाने के बाद मैंरूपा के घर की तरफ चल पड़ा आधे रस्ते पहुंचा ही था की ऐसा लगा कोई आस पास है . जैसे कोई मेरा पीछा कर रहा हो. एक दो बार मैंने रुक कर देखा भी पर कोई नहीं था . मैं थोडा तेज तेज चलने लगा. फिर मुझे चूड़ी की हलकी सी आवाज आई.




चूड़ी की आवाज , मैं चलता रहा फिर से आवाज आई जैसे हवा में वो आवाज लहरा रही थी . फिर किसी ने मुझे पुकारा . “देव ”
lagta kuch zyada hi khafa hai nagin se... ki khud hi dur ho gaya usse.. usse, jisse milne ke liye pagal huye jaa raha tha..
roopa ki baatein jaise kavi ki koi kavita jaisi ... adhe toh dimag ke upor se jaaye upor se yeh dev ab tak mona ko dhund na paya aur kehta hai ki fikar hai uski jaan se zyada....
Btw ab bhi kuch raaz hai joh roopa nahi bata rahi...
Khair...
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Naina

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किसी ने मुझे पुकारा, “देव ”

खेतो से एक साया निकल कर मेरे पास आया , मैंने देखा ये सरोज थी .

“तुम यहाँ कैसे ” मैंने कहा

सरोज- तुम्हे ढूंढते ढूंढते आ गयी , मुझे तुमसे बेहद जरुरी बात करनी थी .

मैं- जब्बर को मेरी मौत की सुपारी देने से ज्यादा जरुरी क्या बात है अब .

सरोज- मैं जानती थी ऐसा ही होगा. ये सब एक साजिश है हम दोनों के बीच दरार डालने की देव, मुझे मालूम हो गया है तुमने घर क्यों छोड़ा विक्रम उस शकुन्तला के साथ मिल कर जो भी कर रहा है उसमे मेरा उसका कोई साथ नहीं है देव, और जब्बर तो उनका ही मोहरा है .

मैं- जो भी हो मैं इस हालात में नहीं हूँ की किसी पर भी भरोसा कर सकू. मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो.

सरोज- तुम्हे मेरी बात सुननी ही होगी,

मैं- मैंने कहा न जाओ तुम यहाँ से.

सरोज- इतना कठोर मत बनो देव, मुझ पर भरोसा नहीं कर सकते और मेरे पास ऐसा कोई सबूत नहीं है जो तुम्हे भरोसा दिला सके. बस मेरी जान है जो तुम ले लो शायद तब तुम्हे यकीन आये.

मैं- मैंने कहा न मेरे हालात ऐसे नहीं है , और तुम्हे अगर मेरी फ़िक्र है तो फिर मत आना मेरे पास.

मैंने कहा और आगे बढ़ गया . सरोज मुझे आवाज देती रह गयी .समझ नहीं आ रहा था की क्या करू क्या न करू. रिश्तो की ऐसी भूलभुलैया में उलझा था मैं की अपने पराये सच्चे झूठे का भेद समाप्त हो गया था .



रूपा के घर जब तक मैं पंहुचा , वो मेरी ही राह देख रही थी .

रूपा- बड़ी देर लगाई कब से राह देख रही हूँ मैं .



मैं- बस देर हो गयी .

रूपा- ये कैसा बक्सा है हाथ में .

मैं- रख ले तेरे पास , मुझे भूख लगी है बाद में देखेंगे इसे , हिफाजत से रख दे.

रूपा- जो हुकुम सरकार.

रूपा खाना बनाने लगी मैं वही दिवार का सहारा लेकर बैठ गया .

मैं- तू जादू करना जानती है

रूपा- कितनी बार तुझे बताऊ ,

मैं- कोई ऐसी तरकीब है की मैं अतीत देख पाउँगा

रूपा- बाबा सुलतान से पूछ , वैसे जादू में ऐसा होता है कुछ जादूगर अपनी यादो को कही छुपा देते है . वैसे तुझे किसका अतीत देखना है .

मैं- नागेश का

रूपा- जानता है तू क्या कह रहा है .

मैं- तू शायद जानती नहीं पर मुझे लगता है उसका मुझसे कोई नाता है .

रूपा- नागेश किवंदिती के सिवा कुछ भी नहीं . उसे मरे जमाना हुआ .

मैं- बाबा को लगता है की वो लौट आया है . चरवाहों का तिबारा शायद उसने ही तोडा है .

रूपा- नहीं ऐसा नहीं है .

मैं- क्यों

रूपा- वो तिबारा मैंने तोडा है .

मुझे जैसे रूपा ने झटका सा दिया.

मैं- पर क्यों

रूपा- जब तुझे चोट लगी तो मेरा दिमाग भन्ना सा गया था . मैं इलाज के लिए उपचार तलाश कर रही थी , तुझे मालूम नहीं उसे चरवाहों का तिबारा क्यों कहा जाता था क्योंकि वहां पर ये जादूगर लोग अपने सफ़र के दौरान अक्सर रुकते थे , एक तरह का गुप्त ठिकाना था ये लोगो को मालूम न हो की जादूगर है तो वो चरवाहों का भेस ले लेते थे .

मैं- पर तूने तोडा क्यों

रूपा- बता तो रही हूँ , उस रात जब मैं वहां पर पहुंची . तो मुझे कटोरे की तलाश थी जो मन्नते पूरी करता था .

मैं- कैसा कटोरा .

रूपा- तिबारे में हमेशा से एक कटोरा रखा होता था जिसमे से जो मांगो मिल जाता था , मतलब कुछ जरुरत की चीजे .

मैं- तो तुझे क्या जरुरत थी

रूपा- कितने सवाल करता है तू

मैं- बस उत्सुकता .

रूपा- मैं प्रतिकृति पत्थर को तलाश रही थी .

मैं- क्या होता है ये .

रूपा- एक तरह का छलावा .

मैं- समझा नहीं

रूपा- तेरा घाव तेरे कलेजे को खा रहा था , यदि जल्दी से उपचार न होता तो जहर तेरे कलेजे को भेद देता. चूँकि मुझे उपचारों का ज्ञान है तो मैंने एक रिस्क लेने का सोचा, मैं तेरे कलेजे की नकल बनाती और उस तंत्र वार के असर को उस पर उतार लेती बाद में कलेजा वापिस कर देती.

पर ये पत्थर मिलना दुर्लभ है तो बस मैं अपनी हताशा को रोक नहीं पाई.

मैं- मैं कैसे ठीक हुआ तुमने उस रात क्या किया था .

रूपा- कुछ भी नहीं किया मैंने .

मैं- रूपा, मुझे सच बता तुझे मेरी कसम है सच बता.

रूपा- मैंने कुछ नहीं किया सिवाय तेरे जख्म को सिलने के. जो किया उस नागिन ने किया उसने ....

रूपा ने एक आह भरी

मैं- क्या किया था उसने बताती क्यों नहीं .

रूपा- उसने तेरी जान के बदले खुद की जान रख दी. वो कोई मामूली नागिन नहीं है वो अलग है , हम सब जानते थे की नागेश के वार का कोई भी तोड़ नहीं है . तो उसने एक ऐसा फैसला किया जो बस काम कर गया . उसने तेरी जान के बदले अपनी जान रख दी. नागो की अपनी शक्तिया होती है , उसने रक्तभ्स्म तुझे दी .

मैं- क्या होती है ये .

रूपा- जैसे इंसानों के लिए शरीर में रक्त जरुरी होता है , नागो के लिए रक्त्भास्म होती है . वार उतारने के कुछ नियम होते है हर चीज का मूल्य होता है उसने तेरे कलेजे के बदले अपना कलेजा रख दिया. उसने सोचा था की उसका जहर नागेश के वार को झेल लेगा पर ऐसा हुआ नहीं .

मैं- मतलब

रूपा- मतलब ये की नागिन पल पल मर रही है , उसके पास समय बहुत कम है इस श्राप ने हम तीनो को आपस में जोड़ दिया है . उसका कलेजा गल रहा है , हर रात तेरी भारी होगी दर्द से, और मेरी पीठ का ये जख्म सदा ताजा रहेगा कभी भरेगा नहीं .

मैं- तू सब जानती थी तो तूने क्यों किया ऐसा.

रूपा- आशिकी इम्तेहान लेती है मेरे सरकार. और जब तुझसे नाता जोड़ा है तो फिर मैं कैसे कदम पीछे हटाती, जब सुख में तेरी साथी हूँ तो तेरा दर्द भी मेरा हुआ न .

मैं- पर नागिन ने मेरे लिए अपनी जान की बाजी क्यों लगाई,

रूपा- मुझे भी इंतजार है इस सवाल के जवाब का .

हम दोनों के दरमियान कुछ देर के लिए एक ख़ामोशी छा गयी. जिसे मैं इतना भला बुरा कह आया था वो मौत के करीब थी सिर्फ मेरी वजह से सिर्फ मेरी वजह से. अब मुझे समझ आया की मेरे खून से उसकी हालात क्यों ठीक हो रही थी क्योंकि मेरे खून में रक्त भस्म भी थी .

“रक्त भस्म कहा मिलेगी रूपा ” मैंने पूछा

रूपा- परचून की दुकान पर तो नहीं मिलेगी.

मैं- बता न .

रूपा- मैं नागो के बारे में गहराई से नहीं जानती मुसाफिर, बाबा से पूछ .

मैं- ठीक है उनके पास ही जाता हूँ ,

रूपा- खाना तो खा ले पहले

मैं- मुझे जाना होगा.

रूपा- बेशक पर पहले खाना खा, बड़ा सकून होता है जब मैं तेरे साथ रोटी खाती हूँ , इस थोड़े से सुख पर तो मेरा अधिकार रहने दे सरकार.

रूपा ने साग, चूरमा परोसा मुझे . और कुछ पालो के लिए मैं सब कुछ भूल गया . खाने के बाद मैं वहां से निकल कर चल दिया मुझे मालूम था की कहाँ जाना है , आधे रस्ते में मुझे सुलतान बाबा मिल गए.

बाबा- कहाँ था तू, तुझे ही तलाश रहा था मैं .

मैं- मैं भी तुम्हारे पास ही रहा था बाबा , मुझे मालूम हो गया इस झोले में क्या है


बाबा के चेहरे पर हवाइया उड़ने लगी.
sabne apni apni tarkib lagayi par akhir mein jaan bachane wali devi roop mein woh nagin hi nikli.. bina apne praan ki fikar kiye.. sath diya roopa ne bhi... dev toh bach gaya par joh hona tha woh ho gaya.. roopa ko jakhm aur nagin... woh toh mrityu ki aurr jaa rahi hai pal, prati pal...
Yeh dev ek baat pe kayam nahi reh sakta..even bina soche samjhe hi decision le leta hai.. bina yeh jaane ki woh galat hai ya sahi.. abhi kuch der pehle nagesh ko dhundne ke bawla ho raha tha ab ushe woh tod chahiye jisse nagin ko thik kar sake...
Khair... saroj ki bhi apni hi ek alag kahani...
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बाबा के चेहरे पर हवाइया उड़ रही थी .

“झोला दिखाओ मुझे बाबा ” मैंने कहा

बाबा- तेरे मतलब का सामान नहीं है इसमें

मैं- कब तक छुपाओगे बाबा ,

बाबा कुछ नहीं बोला. मैंने हाथ आगे बढाकर झोला ले लिया और खोला पर उसमे वो नहीं था जो मैंने सोचा था बल्कि कुछ ऐसा था जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी .झोले में एक जिंदा दिल फडफडा रहा था . किसी कटे कबूतर जैसा .

“ये तो दिल है बाबा , मैंने सोचा था आपने झोले में नागिन छुपाई है ” मैंने कहा

बाबा- उसे छुपाने की जरुरत नहीं ,

मैं- तो इस दिल का क्या करेंगे, किसका है ये .

बाबा- ये प्रतिकृति है , मुझे लगता है ये कारगर होगा.

मैं- असली उपाय क्या है , नागिन को कैसे रक्तभ्स्म दी जाये.

बाबा- गूढ़ है रक्त्भास्म प्राप्त करना . नागो के नियम जादू के नियम से अलग होते है

मैं- मुझे बस ये जानना है कैसे मिलेगी वो भस्म क्योंकि वही नागिन को प्राणदान दे सकती है .

बाबा- उत्सुकता ठीक है परन्तु अधुरा ज्ञान सदैव हानिकारक होता है मुसाफिर .

मैं- मतलब

बाबा- मतलब ये की मैं आजतक समझ नहीं पाया हूँ की तुम कौन हो अस्तित्व क्या है तुम्हारा, तुम साधारण होकर भी असाधारन हो , तुम्हारे अन्दर जादू नहीं है पर कुछ तो ऐसा है जो असामान्य है , तुम्हारे रक्त को पीकर नागिन के जख्म भरे, वो बेहतर हुई ये बड़ी हैरानी की बात है .

मैं- क्योंकि रक्तभ्स्म मेरे शरीर में है .

बाबा- और क्या ये तुम्हे साधारण लगता है . आखिर क्यों बड़ी आसानी से उस दिव्य भस्म को आत्मसात कर लिया तुमने , कभी सोचा .

मैं- मुझे लगा ऐसा ही होता होगा.

बाबा- रक्त भस्म इसलिए दिव्य है की स्वयं शम्भू के तन पर मली जाती है , शमशान की राख जब महादेव का अभिषेक करती है , तो वो उसका अंग हो जाती है , जिसे स्वयं शम्भू अपने बदन पर स्थान दे तो उसके गुण दिव्य होते है , एक खास वंश के नाग ही उसका तेज झेल पाते है .

मैं- तो क्या मैं नाग हूँ

बाबा- निसंदेह नहीं और यही बात मुझे खटक रही है .

मैं- पर मेरी प्राथमिकता नागिन को बचाना है

बाबा- सीधे शब्दों में मैं कहूँ तो हर दस दिन में यदि वो तुम्हारा खून पीती रहे तो उसे कुछ नहीं होगा.

मैं- पर ये हमेशा का उपाय नहीं है .

बाबा- तो फिर रक्त भस्म ले आओ ,

मैं- कहाँ मिलेगी ये तो बताओ

बाबा- मुझे क्या मालूम , मैं अपनी कोशिश करूँगा तुम अपनी करो . मैं प्रतिकृति को असली की जगह स्थापित करके छलावा कामयाब करने की कोशिश करूँगा.

मैंने झोला वापिस बाबा को दिया. बाबा चला गया और कुछ नए सवाल में उलझा गया मुझे, उसने तो मेरे अस्तित्व पर ही सवाल उठा दिए थे . मुझे आज मेरी माँ की बड़ी कमी महसूस हो रही थी काश वो होती तो मेरी समस्या यु सुलझा देती . पर वो नहीं थी, दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति होती है माँ, और माँ से मुझे घर की याद आई, नागिन का घर था वो मंदिर जो तोड़ दिया गया था .

“उसे वापिस खोदना होगा. ” मैंने अपने आप से कहा . घर किसी के लिए भी सबसे सुरक्षित होता है , अक्सर घर में ही सबसे चाहती वस्तुए रखी जाती है पर क्या वो हवेली मेरा घर नहीं थी . मेरी माँ सुहासिनी एक बड़ी जादूगरनी थी तो क्या ये मुमकिन नहीं था की मुझे हवेली में कुछ न कुछ मिले जो मेरे काम आ सके. बेशक मैंने वहां न जाने की कसम खाई थी पर नागिन के प्राणों के आगे मेरा अहंकार बहुत तुच्छ था . मैं तुरंत हवेली की तरफ चल दिया.

ये हवेली बाहर से जितना खामोश थी अपने अन्दर उतने ही तूफ़ान छुपाये हुई थी , जितनी बार भी मैं आता था यहाँ पर इसका स्वरूप हर बार बदला हुआ होता था . इस बार यहाँ पर सिर्फ एक ही मंजिल थी . तमाम मोमबतिया बुझी थी , बस एक जल रही थी उस बड़ी सी मेज के ऊपर . मैंने अपनी जैकेट उतारी और वहां गया . हमेशा की तरह गर्म चाय मेरा इंतजार कर रही थी .

“ये मेरा घर है और यहाँ जो भी जादुई अहसास है उसे मेरी बात जरुर माननी होगी ” मैंने सोचा .

मैं- मैं चाहता हूँ की थोड़ी और रौशनी हो जाये.

और तुरंत ही मोमबतिया जल गयी .

मैंने बस हवा में तीर मारा था पर वो तुक्का सही लगा था .

“मैं पहली मंजिल पर जाना चाहता हूँ ” मैंने कहा और सीढिया खुल गयी .

“दूसरी मंजिल ” मैंने कहा . पर इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ. ये बड़ी हैरानी की बात थी . मैंने फिर दोहराया पर कुछ नहीं हुआ.

“मैं सुहासिनी के कमरे में जाना चाहता हूँ ” इस बार भी कुछ नहीं हुआ.

मैं- मैं मोना के कमरे में जाना चाहता हूँ,

कुछ देर ख़ामोशी छाई रही फिर चर्र्रर्र्र की एक जोर से आवाज आयी मेरी दाई तरफ वाला एक दरवाजा थोडा सा खुल गया था. मुझे बड़ी उत्सुकता हुई दौड़ता हुआ मैं उस कमरे में गया . छोटा सा कमरा था , कुछ खास नहीं था वहां पर दिवार पर कुछ कपडे टंगे थे, दो बैग पड़े थे और मैं जानता था की ये सामान मोना का था . मतलब मोना गायब होने से पहले यहाँ आई थी जरुर. कुछ और खास नहीं मिला तो मैं वापिस आकर कुर्सी पर बैठ गया . मेरे दिमाग में बहुत सवाल थे.

“नागिन क्या तुम यहाँ पर हो , अगर हो तो सामने आओ, हम बात कर सकते है ” मैंने कहा . पर कोई जवाब नहीं आया. शायद वो यहाँ नहीं थी. अचानक से मेरे सीने में दर्द होने लगा. अब तो मुझे आदत सी हो चली थी इसकी पर दर्द तो बस दर्द होता है. न चाहते हुए भी मैं अपनी चीखो पर काबू नहीं रख पाया. मैं कुर्सी से गिर गया और फर्श पर तड़पने लगा. अभी इस दर्द से फारिग हुआ भी नहीं था की दरवाजे पर ऐसी तेज आवाज हुई जैसे की किसी ने कोई बड़ा पत्थर दे मारा हो .

खुद को सँभालते हुए मैं दरवाजे के पास गया उसे खोला और मेरे सामने एक लाश आ गिरी. वो लाश ............. .
dev na toh naag hai aur na hi koi jadugar.. woh mahaz ek insaan hai aur joh maha tharki hai.. aur is baat koi sandeh nahi :D

Abhi kayi raaz dafan hai.. jisse parda nahi hataye gaye... lo kuch raaz aur jud gaye... dusri manjil ko ke leke saaval aur kuch jigyasha ki akhir yeh jadu tona koun kar hai wahan pe
upor se haweli ki chaukhat pe ab yeh jaane kiski lash pari huyi hai..
So baba jhole mein kaleja liye ghum phir raha tha...
Khair let's see what happens next
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वो लाश जब्बर की थी . दरअसल मुझे इस बात ने नहीं चौंकाया था की लाश जब्बर की थी , मेरा ध्यान इस बात पर था की लाश की हालत ठीक वैसी ही थी जैसी की लाला महिपाल की लाश थी , बिलकुल सफ़ेद, जैसे किसी ने सारा खून चूस लिया हो . पर कातिल ने इसे यहाँ पर क्यों फेंका. क्या कातिल को भी हवेली के बारे में पता था .



मेरे आस पास ये जो भी लोग थे एक एक करके मौत के मुह में जा रहे थे , कौन मार रहा था क्यों मार रहा था किसी को कुछ नहीं मालूम था . मैंने दरवाजा बंद किया और वापिस हवेली के अन्दर आ गया. जब्बर की मौत से कुछ समीकरण बदल जाने थे . पर फिलहाल मुझे इंतजार था सुबह होने का . मैं एक कमरे में गया और सोने की कोशिश करने लगा. बिस्तर आरामदेह था . मालूम नहीं मैं नींद में था या सपने में था . पर ऐसा लगा की कोई तो है मेरे साथ .

मैंने हलके से आँखे खोली कमरे में घुप्प अँधेरा था . जबकि मैं सोया तब रौशनी थी , मुझे लगा की कमरे में दो लोगो की सांसे चल रही थी . कौन हो सकता है इस समय. आँखे जब अँधेरे की आदी हुई तो मैंने देखा , कुर्सी पर एक साया था जो शायद आराम कर रहा था , क्योंकि वो हलचल नहीं कर रहा था . मेरे सिवा इस हवेली में कौन हो सकता था .

“मोना क्या ये तुम हो ” मैंने आवाज दी.

साये की आँखे एक झटके से खुल गयी .और वो तेजी से बाहर की तरफ भागा मैं भी उसके पीछे भागा. पर मेरा पैर चादर में उलझ गया जब तक मैं बाहर आया वहां कोई नहीं था .

“सामने क्यों नहीं आते, क्यों सता रहे हो तुम अपनी पहचान उजागर क्यों नहीं करते तुम.” मैं चीख पड़ा.

कलाई में बंधी घडी पर नजर पड़ी तो देखा तीन पच्चीस हो रहे थे . मैं निचे आया थोडा पानी पिया और हवेली से बाहर जाने के लिए सीढियों से उतरा .न जाने क्यों मेरे दिल को ऐसा लग रहा था की वो मेरे आसपास ही है, यही कही है , दूर होकर भी मेरे पास है . इतनी शिद्दत पहले कभी नहीं हुई थी . पर वो जब पास थी तो ये दुरी क्यों थी. क्यों छिप रही थी मुझसे.

सुबह होते ही मैंने कुछ मशीन और मजदुर बुलवाए और मंदिर की खुदाई शुरू करवा दी. शकुन्तला ने भरपूर विरोध किया पर गाँव की पंचायत ने मेरा साथ दिया. गाँव वालो को भी लगता था की मंदिर का दुबारा से निर्माण होना चाहिए. दिन भर धुल मिटटी में बीत गया. शाम को मैं चाय पि रहा था की मैंने बाबा सुलतान को आते देखा.

बाबा- एक बार जो सोच लिया फिर रुकता नहीं तू.

मैं- बरसो से उपेक्षित मंदिर की शान दुबारा लौट आये तो बुरा क्या है .

बाबा- पर तेरे मनसूबे तो कुछ और है .

मैं- क्या फर्क पड़ता है .

बाबा- बेकार है तुझसे कुछ भी कहना अब , खैर तेरी बात सही है इसी बहाने हम भी शम्भू के दर्शन कर लेंगे.

बाबा मुस्कुराने लगे.

मैं- एक बात और कहनी थी .

बाबा- हाँ

मैं- मैं ब्याह करना चाहता हूँ

बाबा- बेशक, सब करते है तू भी कर ले

मैं- मैं चाहता हूँ आप लड़की के बाप से बात करे. ब्याह की तारीख आप पक्की करे.

बाबा- पर मैं कैसे.

मैं- मेरा कौन है आपके सिवा.

बाबा- मुझे लगता है तू तेरे ताऊ के पास जा

मैं- मैंने कहा न आप ही करेंगे ये काम.

बाबा- ठीक है मुसाफिर , अब तेरी मर्जी के आगे मेरी क्या , तू मुझे पता दे उसका मैं चला जाऊंगा.

मैंने बाबा को एक पर्ची लिख कर दी. बस रूपा का नाम नहीं लिखा मैं बाबा को देखना चाहता था जब वो वहां रूपा को पाएंगे. बाबा ने पर्ची झोले में रख ली . हम खुदाई देखते रहे. शाम को मजदूरो के जाने के बाद बाबा मुझे खंडित ईमारत में ले गए.

“जैसे बस कल ही की बात हो ” बाबा ने गहरी साँस ली .

मैंने पहली बार बाबा की आँखों में पानी देखा. उन आँखों में पानी था , उन होंठो पर मुस्कान थी , रमता जोगी अपने आप में जैसे खो गया था , बाबा को मेरा होना न होना जैसे एक ही था उस समय. कभी इस टूटी दिवार के पास जाते वो कभी उस दिवार से लिपट जाते. इतना तो मैं समझ गया था की बाबा का बड़ा गहरा नाता रहा हो गा इस जगह से.



वो बस अपने अतीत में खो गए थे, क्या कहा मैंने अपने अतीत में, पर बाबा का क्या लेना देना था यहाँ से ,कही बाबा नागिन के पिता तो नहीं जो शायद किसी तरह से बच गए थे . मैंने सोचा. शायद हो भी सकता है क्योंकि नागिन को उनसे बेहतर कोई नहीं जानता था . अब सीधा सीधा तो मेरी हिम्मत नहीं थी उनसे पूछने की पर इस बात को पुख्ता करने का मैंने निर्णय ले लिया था.

“इधर आ बेटे, ” बाबा ने मुझे पुकारा .

मैं दौड़ कर उनके पास गया .

बाबा- ये मिटटी हटाने में मदद कर मेरी .

मैं- सुबह मजदुर हटा देंगे न

बाबा- तुझसे कहा न मैंने

मैं- ठीक है , आप रौशनी करो मैं मशीन चालू करता हूँ

बाबा के कहे अनुसार मैंने मिटटी हटाना शुरू किया करीब पंद्रह मिनट बाद मुझे वो दिखने लगा जो बाबा देखना चाहते थे . वो एक टूटा कमरा था शायद मंदिर का मुख्य कमरा रहा होगा. क्योंकि पास में एक टूटा जलपात्र पड़ा था. एक नंदी की छोटी मूर्ति थी . बाबा ने उसे अपने सीने से लगा लिया और जोर जोर से रोने लगे.

पर जिस चीज ने मेरा ध्यान खींचा था वो ये था की शिव की मूर्ति नहीं थी वहां पर.

“मूर्ति कहाँ है बाबा ” मैंने सवाल किया .

पर बाबा को जैसे कोई सरोकार नहीं था. बाबा मूझे न जाने क्या बता रहे थे , अपने अतीत की बाते, यहाँ ये होता था यहाँ वो होता था आदी, ऐसे ही काफी समय बीत गया अचानक से बाबा की तबियत कुछ ख़राब सी होने लगी . बाबा असहज होने लगे.

मैं- क्या हुआ बाबा,


बाबा ने कोई जवाब नहीं दिया , अपना झोला लिया और लगभग वहां से दौड़ पड़े मैं आवाज देता रह गया . और मेरे साथ रह गयी ये ख़ामोशी. ये तन्हाई. मैंने नंदी की मूर्ति को उठाया और साफ़ करके एक तरफ रख दिया. तभी मेरे पैरो के निचे कुछ आ गया . मैंने मिटटी हटाई तो देखा की......................
ab yeh saya kiski hai..
lo ek aur kirdaar maara gaya.. par khooni koun... shayad wohi saya... joh shayad vampire hai joh sara khoon chus leta hai shikar se...
Yeh achha kiya joh phir se mandir ko nirmaan kar raha hai dev...
ab ek aur gutthi... baba ka kya nata hai mandir se... par joh hai, hai nata purana...
I think yeh baba hi nagesh hai...
ab joh bhi hai yeh toh aane wale update mein hi pata chale..
Let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skill :applause: :applause:
 
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