#23
“तुम्हे क्या चाहिए ” शकुन्तला ने पूछा
मैं- क्या दे सकती हो तुम
शकुन्तला- जो तुम सोच रहे हो वो मुमकिन नहीं
मैं- पर मैंने तो कुछ सोचा ही नहीं
शकुन्तला- कच्ची गोटिया नहीं खेली मैंने छोटे चौधरी, जितनी तुम्हारी उम्र है उस से जायदा साल मुझे चुदते हुए हो गए,
मैं- तो एक बार और चुदने में क्या हर्ज है
शकुन्तला- मैंने कहा न ये मुमकिन नहीं .
अब मैं उसे ये नहीं बताना चाहता था की मैं उतावला हूँ उसे चोदने को और औरत के आगे जितना मर्जी खुशामद करो उतना ही उसके नखरे बढ़ते है , तो मैं बिना उसका जबाब सुने वहां से चल दिया. घर आकर मैंने कपडे बदलने चाहे तो देखा की जिस्म पर गहरे नीले घाव थे, बदन में कही भी कोई दर्द नहीं था पर पुरे सीने, पेट पैरो पर ये नीले निशान थे, ये एक और अजीब बात थी .
मैंने रजाई ओढ़ी और आँखे बंद कर ली, दिमाग में शकुन्तला की कही बाते घूम रही थी ,मेरा उस सर्प से क्या रिश्ता था , और सबसे बड़ी बात शकुन्तला समझ गयी थी की मैं उसकी चूत लेना चाहता था , मेरे परिवार के इतिहास में कुछ तो ऐसे राज़ दफन थे , जिन पर समय की धुल जम चुकी थी मुझे कुछ भी करके उस धुल को साफ़ करना था .
जो भी था या नहीं था , फिलहाल इतना जरुर था की मैंने एक सपना देखा था , उस सपने में एक खेत था सरसों का लहलहाता और आंचल लहराती रूपा , मैं खेत के डोले पर बैठे उसे देख रहा था , पीली सरसों में नीला सूट पहने रूपा बाहें फैलाये मुझे अपनी तरफ बुला रही थी , मैं बस रूपा के साथ जीना चाहता था . मेरे अकेलेपन को अगर कोई भर सकती थी वो थी रूपा.
और किस्मत देखो , मैं भी जूनागढ़ जा रहा था जहाँ वो भी गयी हुई थी . रूपा का ख्याल आते ही होंठो पर एक ऐसी मुस्कान आ गयी जिसे बस आशिक लोग ही समझ सकते है . मैं उठा और खिड़की खोली, बिजली आ रही थी, डेक चलाया और गाने लगा दिए. दिल न जाने क्यों झूम रहा था .
शाम को मैं सरोज काकी के घर गया तो सबसे पहले वो चाय ले आई.
सरोज- पुरे दिन सेआये नहीं खाना भी नहीं खाया.
मैं- भूख -प्यास अब लगती नहीं मुझे
काकी- वो क्यों भला.
मैं- क्या मालूम
काकी- तो किस चीज की चाह है
मैं- मालूम नहीं , दिल ही जाने
काकी- अच्छा तो बात दिलो तक पहुँच गयी , मुझे बताओ कौन है वो , मैं करती हु तुम्हारे चाचा से बात , मैं भी थक जाती हु घर के कामो में कोई आएगी तो मेरा हाथ भी हल्का रहेगा.
मैं- बड़ी दूर तक पहुंच गयी काकी, ऐसा भी कुछ नहीं है वो तो मैं बस यु ही फिरकी ले रहा था .
काकी- मुझसे झूठ नहीं बोल पाओगे, ये जो चेहरे पर गुलाबी रंगत आई है समझती हु मैं .
मैंने चाय का कप निचे रखा और सरोज के पास जाकर बोला- इस रंगत का कारण तुम हो . जब से तुम्हे देखा है , तुम्हे पाया है एक नयी दुनिया देखि है,
मैंने सरोज की चूची पर हाथ रखा और उसे दबाने लगा.
सरोज- अभी नहीं , करतार बस दूकान तक गया है आता ही होगा. जल्दी ही करती हु तुम्हारे लिए कुछ .
मैं- ठीक है .
सरोज- क्या ख़ाक ठीक है , घर पर रहोगे जब कुछ होगा न, मै देना भी चाहू तो तुम रहते ही नहीं , पहले तो केवल रातो में गुम रहते थे अब दिन में भी गायब . क्या करू मैं तुम्हारा.
मैं- कभी कभी बस हो जाता है .
काकी- खैर, तुम कल दरजी के पास हो आओ, शादी के लिए नए कपडे सिलवा लो
मैं- मैं नहीं जा रहा शादी में
काकी- क्यों देव, ये अच्छा मौका है परिवार से जुड़ने का .
मैं- दरअसल मुझे कही और जाना है और समय पर लौट आया तो पक्का जाऊंगा.
काकी- कहाँ जाना है तुम्हे
मैं- बस यही शहर में
काकी- मुझे बताओ पूरी बात
मैं- कालेज में एक दोस्त बना है बस उसके साथ ही थोडा घुमने जा रहा हु मैं
काकी- जो करना है वो करना ही है तुम्हे , मेरी फ़िक्र क्या मायने रखती है तुम्हारे लिए ,
मैं- इसीलिए तो कह रहा हूँ बस दो चार रोज में आ जाऊंगा वापिस.
काकी- मैं जाने से नहीं रोक रही बस ये पूछ रही हूँ की जा कहाँ रहे हो .
मैं- बताया न दोस्त के साथ उसके गाँव वाले घर पर .
काकी- तुम लाख झूठ बोल लो पर जितना मैं तुम्हे जानती हूँ तुम्हारे हर झूठ को पकड़ ही लुंगी
मैं- सो तो है मेरी सरकार , पर मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता हूँ
काकी- बेशक
मैं- क्या कोई सांप मुझे यहाँ छोड़ कर गया था बचपन में
मेरी बात सुनकर सरोज के चेहरे के भाव बदल गए .
“किसने कहा तुमसे ऐसा ” सरोज काकी गुस्से से बोली
मैं- किसी ने नहीं बस मुझे मालूम हो गया .
“मैं जानती हूँ कौन लगा रही है ये आग, जरुर ये लाला की रांड ने तुम्हे कहा होगा. उसके सिवा कोई नहीं करेगा ऐसा, उस हरामजादी की चोटी उखाड़ दूंगी मैं तू देखना ” सरोज का पारा आसमान पर चढ़ गया था .
मैं- तो ये सच बात है .
काकी- देव मेरे बच्चे, तू समझने की कोशिश कर दुनिया वैसी नहीं है जैसी तुम समझते हो . , तू वादा कर उस रांड से दूर रहेगा, उसकी किसी भी बात पर विश्वास नहीं करेगा.
मैं- आप कहती हो तो नहीं करूँगा, पर शकुन्तला ने सच ही तो कहा .
काकी- कुछ नहीं पता उस चूतिया की बच्ची को . वो सांप बस इत्तेफाक से वहां पर था जब तुम्हारे दादा को तुम मिले थे .
मैं- और दादा को भी उसी ने मारा था .
काकी- हे भगबान क्या क्या सुन आये हो तुम
मैं- अभी तो तुमसे ही सुनना चाहता हूँ
काकी- तुम्हारे दादा को तुम कभी पसंद नहीं थे,वो तुम्हे तुम्हारे पिता का हत्यारा मानते थे .......
काकी के शब्दों ने बहुत गहरी चोट की थी मुझ पर
“मुझे, मुझे तो याद भी नहीं की मेरे माता-पिता कौन थे , कैसे दीखते थे फिर मैं कैसे ” मैंने कहा
काकी- मैं कहाँ ऐसा कह रही हूँ बस तुम्हारे दादा की सोच थी ये . क्योंकि तुम्हारे जन्म के कुछ महीनो बाद ही उनकी हत्या हो गयी थी , और आज तक कातिल का कोई पता नहीं मिला.
“क्या मेरी माँ जूनागढ़ की थी ” मैंने पूछा ......