#19
“माफ़ करना मेरा ध्यान भटका , क्या कह रहे थे तुम ” बोली रूपा
मैं- तूने किसी खोयी हुई हवेली के बारे में सुना है क्या
रूपा जोर जोर से हंसने लगी, इतना जोर जोर से की उसने अपना पेट पकड़ लिया.
“वाह रे, मजाक करना कोई तुमसे सीखे, जानता भी है हवेलिया कितनी बड़ी होती है , कोई छोटा मोटा सामान है क्या जो खो जाये ” रूपा बोली
मैं- ले ले मजे पर किसी ने मुझे बताया की एक हवेली खो गयी
रूपा- तो बताने वाले को जाके कह की खोयी चीज की रपट दर्ज करवाए थाने में .
इस बार मैं भी मुस्कुरा दिया.
रूपा- बहुत भोला है रे तु, जो भी तुझे बता दे मान लेता है मुझे डर लगता है कही तेरे इस सरल स्वभाव का फायदा दुनिया न उठाये.
“मेरी दुनिया तू है , उठा ले फायदा ” मैंने कहा
रूपा- इतना आगे मत बढ़ मुसाफिर , की पीछे लौट न सके
मैं- डरती है तू मेरे साथ सफ़र करने में
रूपा- डरती हूँ नसीब से,मुसाफिरों के नसीब में बस सफ़र होता है , मंजिले नहीं , मुसाफिर सफ़र करते है हमसफर नहीं बनते . और फिर मेरे चाहने न चाहने से क्या होता है , तू आसमान का तारा मैं धरती की रेत ,
मैं- इस रेत में पानी की बूँद बन कर घुलना चाहता हु मैं , माना की नसीब में सफ़र है पर हमसफर भी तो हैं .
रूपा- फिर कभी करेंगे ये बाते , मैं चलती हु देर हो रही है .
मैं- यही रुक जा न .
रूपा- आजकल बस तेरे साथ ही वक्त गुजर रहा है मेरा, मेरा काम रह जाता है तेरे चक्कर में
मैं- तुझे काम करने की कोई जरुरत नहीं , मेरा सब कुछ तेरा ही तो है
रूपा- जानती हु , पर हम इस बारे में बात कर चुके है ,
मैं- तेरी ये खुद्दारी
रूपा- गरीब के पास होता ही क्या है खुद्दारी के सिवा.
मैंने रूपा का हाथ पकड़ा और बोला- ऐसी बाते न किया कर, तू जानती है मेरा दिल कितना दुखता है , तेरे हाथो के ये छाले जब देखता हूँ न तो कलेजे में आग लगती है .
रूपा- क्या चाहता है तू
मैं- तुझे अपनी बनाना,
रूपा- आशकी में सब ऐसा कहते है
मैं- ब्याह करना चाहता हूँ तुझसे , तुझे अपना बनाना चाहता हु, मेरे पास एक मकान है उसे घर बनाना चाहता हु, आजतक बस अकेल्रा ही रहा हूँ अब तेरे साथ जीना चाहता हूँ .
रूपा के चेहरे पर एक फीकी मुस्कान आ गयी .
रूपा- देर हो रही है मुझे
मैं- रुक जा न
रूपा- फिर कभी रुक जाउंगी जाने दे मुझे
रूपा उठी और झोपडी से बाहर आई, आसमान से ओस बरस रही थी , ठण्ड बहुत ज्यादा थी , रूपा ने अपनी लालटेन जलाई . रौशनी में उसका सांवला चेहरा जैसे सुबह खिलता कोई ताजा फूल हो .
रूपा- चलती हु, शादी में से आके ही मिलूंगी अब
मैं- तेरी याद आएगी .
रूपा- यादो का क्या करना कुछ दिन में मैं खुद ही आ जाउंगी.
रूपा ने कदम आगे बढ़ाये और अपने रस्ते पर चल पड़ी. कुछ दूर जाकर वो पलटी, मेरी तरफ देखा उसने
मैं दौड़ कर गया उसके पास, बेशक दो चार कदम की दुरी थी पर साँस फूल गयी थी .
“न रोक सरकार , जाने दे मुझे जाना जरुरी है ” रूपा कांपते हुए बोली
मैं अब उसके सामने था , उसके करीब , इतना करीब की हमारी सांसे आपस में उलझने लगी थी , चाँद रात और दिलबर साथ . मैंने देखा रूपा के हाथ में लालटेन कांपने लगी थी .
मैंने रूपा की कमर में हाथ डाला और थोडा सा खींचा , वो मेरी बाँहों में झूल गयी , उसके होंठ मेरे गालो से टकराए.
“जाने दे मुझे ” आधी ख़ामोशी से बोली वो
मैं- तू अकेली नहीं जायेगी मेरी जान भी तो साथ ले जा रही है .
रूपा- ऐसी बाते मत कर, पिघलने लगी हूँ मैं परवाने
मैं- तो फिर जला दे मुझे शम्मा बनकर
रूपा- मज़बूरी समझ मेरी
मैं- अकेलापन समझ मेरा,
मेरे होंठ थोडा सा रूपा के होंठो से टकराए, मुझे ऐसे लगा की बर्फ चख ली मैंने पर उसने मुझे खुद से दूर कर लिया और बोली- जा रही हु मैं .
इस बार उसने मुड कर नहीं देखा , बस चली गयी .पर वो ऐसे ही नहीं गयी थी अपने साथ मेरा दिल भी ले गयी थी.
मैं वापिस आकर बिस्तर पर लेट गया . आँखों में न नींद थी न दिल में करार, खुली आँखों से मैं सपने देखने लगा था , ऐसे सपने जहाँ बस मैं था रूपा थी , पेडो पर डाले झूले में झूलते रूपा, पास बैठा उसे देखता मैं . नजाने कब मुझे नींद आई .
सुबह आँख खुली ,मै बाहर आया तो देखा की कौशल्या चली आ रही है .
मैं- इतनी सुबह कैसे,
कौशल्या- दस बज रहे है
मैं- बड़ी देर तक सोया मैं .
काकी- जाने दे सुन , शकुन्तला खुद तुझसे मिलना चाहती है , बातो बातो में उसने बताया मुझे
मैं- मुझसे पर क्यों
काकी- बड़ी परेशां है वो किसी बात को लेकर, मैंने पूछा पर उसने वो बात बताई नहीं
मैं- कब मिल सकते है
काकी- देख,तू ऐसा कर लाला का हाल पूछने के बहाने उसके घर जा
मैं- पर लाला तो हॉस्पिटल में है
काकी- तभी तो कह रही हूँ, हाल चाल पूछने के बहाने घर जा सकता है तू , और घर से बढ़िया जगह कहाँ रहेगी मिलने को
मैं- ठीक है कल जाता हु
काकी- मेरे कर्जे का क्या हुआ .
मैं- एक दो दिन में पैसे लाकर देता हु तुझे
काकी- ठीक है . और ..
मैं- और क्या
काकी- चोदेगा कब
मैं- दो चार दिन में
काकी-जैसी तेरी मर्जी और सुन बताना भूल गयी सरोज बोल रही थी तुझे, कल सुबह से गायब है तू, चिंता कर रही थी वो घर चले जाना
मैं- ठीक है , वो करतार के बारे में क्या सोचा
काकी- रिझाना शुरू कर दिया है , अभी सीधा टांगे खोल दूंगी तो अच्छा नहीं लगेगा न
मैं- ठीक है .
कौशल्या के जाने में बाद मैं सोचता रहा की शकुन्तला की कौन सी मज़बूरी है जो वो लालायित है मुझसे मिलने को , पर जबसे उसे मूतते देखा था मैंने भी तो सोच लिया था की उसकी चूत लेनी ही हैं मुझे, मेरा दिल तो उसी दिन आ गया था उस पर . सोचते सोचते मैं घर की तरफ चल पड़ा.