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Adultery गुजारिश

Rajesh Sarhadi

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#3

“कौन है , सामने आओ ” इस बार मैं जोर से चीख पड़ा पर कोई जवाब नहीं आया, ऐसा कभी नहीं हुआ था , अक्सर जानवर तो आ निकलते थे इस ओर , रात को औरते भी आती थी पर ऐसा नहीं होता था , कोई था तो जवाब देना चाहिए न , मैंने दो चार बार और आवाज दी पर वही हाल.

“माँ चुदा अपनी ” मेरे मुह से गाली निकली मैंने कस्सी को मिटटी के डोले पर रखा और झोपड़े की तरफ चल पड़ा, ठंड से पैर सुन्न पड़ गए थे , मैं अलाव के पास बैठ कर हाथ पाँव सेंकने लगा. गजब की राहत मिली, जलती लकड़ी जब टूटती तो वो कड कड की आवाज बड़ी मीठी लगती थी.

कुछ देर मैं अलाव के पास बैठा रहा, पर ये रात यूँ ही नहीं गुजर जानी थी , वो कहते है न की जब किसी कहानी की शुरुआत होती है तो बस अचानक से हो जाती है ये रात भी कुछ ऐसी ही थी . मैं वापिस लाइन पर जा ही रहा था की बिजली चली गयी ,

“इसे भी अभी जाना था ” बिजली के बहाने मैंने खुद को कोसा

लालटेन जलाई ही थी की मेरे कान के परदे बुरी तरह से हिल गए, चीख थी वो किसी औरत की , इस बियाबान, उजाड़ में पहले पायल की आवाज अब ये चीख,एक पल को तो खौफ से लालटेन गिर ही गयी जैसे हाथ से

“कौन है सामने क्यों नहीं आता ” लाठी उठाते हुए चिलाया मैं

वो चीख मेरे खेत के पास रस्ते की तरफ से आ रही थी , मैं दौड़कर उस तरह गया पर रास्ता पूरी तरह से शांत था, बेशक हवा सरसरा रही थी पर फिर भी ख़ामोशी थी. कोई और मुझे ऐसे बीच रस्ते पर लालटेन लिए देखता तो घबरा जाता इतनी रात को पर फ़िलहाल मेरी हालत ही अजीब थी .

कुछ दूर और आगे तक आगे जाके देखा मैंने कोई नहीं था , क्या सच में कोई नहीं था , हाँ मुझे तो बेशक ऐसे ही लगा था , बस एक पल के लिए ही क्योंकि अँधेरे से भागते हुए की मुझसे टकरा गया था . मेरे सीने से आ लगा था कोई .

“बचा लो मुझे , ” सुबकते हुए उसने कहा

मैंने उसे खुद से अलग किया, लालटेन ऊँची की अँधेरी रात में उसे जो लालटेन की लौ में देखा, बस देखता ही रह गया . वो सांवला चेहरा पसीने से भीगा , माथे पर चमकता वो टीका , जैसे सर्दी में डूबता सूरज वैसी लालिमा थी उस चेहरे में, बस ठगा सा रह गया मैं .

“बचा लो मुझे ” उसने कहा मुझसे

मैं- किस से , कौन हो तुम और इतनी रात को यहाँ कैसे

एक साँस में तमाम सवाल पूछ डाले मैंने .

“वो लोग मेरे पीछे है ” उसने घबराई आवाज में कहा

मैं- कौन लोग.

“बब्बन के लोग ” उसने जवाब दिया

बब्बन इस इलाके का एक बदमाश था .

मैं- मेरे साथ आ.

मैंने लालटेन बुझा दी और उसे अपने साथ झोपडी पर ले आया .

मैं- बैठ जा, भरोसा रख महफूज़ है तू.

मैंने उसे कम्बल दिया - ओढ़ ले जाड़ा बहुत है .

अलाव की रौशनी में बड़ी प्यारी लग रही थी वो ,

मैं- इतनी रात को कहाँ घूम रही थी तू , जानती है न सुरक्षित नहीं है इस इलाके में भटकना

वो- मेरे बापू जमींदारा के खेतो पर काम करते है , आज उनकी तबियत थोड़ी ख़राब थी और बिजली कभी सरा था तो मज़बूरी में मुझे ही पानी देने आना पड़ा, मैं अपने काम में लगी थी की तभी ये गुंडे उस तरफ आये, खेत के पास बैठ कर दारू पी रहेथे की उनकी नजर मुझ पर पड़ी , मैं इस तरफ भाग आई .

मैं- कौन सी आफत आ जानी थी एक दिन बाद पानी लगा देते

वो- हमारे खेत होते तो कर भी लेते, जमींदार की गुलामी करते है कर्जे के बोझ से दबे पड़े है न

मैंने उसकी बात में छिपी मज़बूरी को महसूस किया .

“चाय पीयेगी ” पूछा मैंने

वो- न

मैं- अरे पी ले, राहत मिलेगी तुझे, वैसे अच्छी चाय बनाता हु .

उसने सर हिला दिया , मैंने अलाव की एक लकड़ी ली और चूल्हा सुलगा दिया. कुछ देर बाद हम चुसकिया ले रहे थे .

बरसती ओस के बीच एक मंद पड़ चुके अलाव के पास बैठे हम दोनों चाय की चुसकिया भर रहे थे , ना वो कुछ बोल रही थी न मैं. कभी वो मुझे देखती कभी मैं उसे देखता . इसी देखा देखि में न जाने कब मेरी आँख लग गयी .

“उठ उठ, अरे उठ न ”

मेरी आँख खुली तो मैंने देखा कट्टु मुझे जक्झोर रहा है

मैं- क्या हुआ बे

वो- भाई उठ जल्दी

मैं हडबडा गया , अपनी हालत पर गौर किया तो पाया मैं अलाव के पास पड़ा था, मेरे बदन पर कम्बल था जो मैंने उस लड़की को दिया था , वो लड़की उसका ख्याल आया तो फट से मेरे होश काबू आ गए, मैं झोपडी से बाहर आया उसे देखा पर सिर्फ मैं था और कट्टु,

“कहाँ गयी ” मैंने अपने आप से कहा .

कट्टु- कुछ कहा भाई तूने,और ये तू जमीं पर क्यों सोया था ,

मैं- कुछ नहीं

कट्टु- बापू ने तुझे अभी बुलाया है

मैं- किसलिए

कट्टु- मालूम नहीं

मैं- चल फिर

मैं और करतार घर पहुँच गए.

कट्टु का बाप विक्रम मेरा चाचा लगता था रिश्ते में , और सच कहूँ तो बाप से बढ़कर था मेरे लिए, सब्जी का बड़ा व्यापर था उसका

मैं- बुलाया चाचा आपने

विक्रम- आओ बेटे, वो जो हमने अंगूर बेचे थे न पिछले सीजन में शराब वालो को उसके पैसे आ गए है ,

चाचा ने बक्से से गद्दिया निकाली और मेरे पास रख दी .

“मैं क्या करू इनका ” मैंने कहा

विक्रम- तुम्हारे ही है बेटे,

मैं- आजतक आप ही सँभालते हो न सब , रखो आप

विक्रम- अब तुम बड़े हो रहे हो बेटे, तुम्हे मालूम होना चाहिए तुम्हारी विरासत के बारे में

मैं- मुझे नहीं जरुरत

मैंने कहा और खड़ा हुआ जाने को

विक्रम- तुम्हारी काकी कह रही थी की तुम आजकल खाना कम खाते हो , कई बार तो आते भी नहीं कोई परेशानी है क्या

मैं- ऐसी कोई बात नहीं दरअसल मैं थोडा इधर उधर हो ता हूँ तू बाहर खा लेता हूँ .


मैं वहां से घर आ गया पर चैन नहीं था आँखों में बस उस लड़की की सूरत थी , बार बार जेहन में वो ही आ रही थी

कान में बस ये शब्द गूँज रहे थे “मौसम बदल रहा है ”
dekhte hain mausam kaise badalta hai
 
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Rajesh Sarhadi

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#4

तीन चार दिन गुजर गए थे मैं बस अपने आप में गुम था , आधी आधी रात मैं उस पेड़ के निचे बैठा रहता था जिसे मेरी माँ ने लगाया था .` अपने खाली घर में मैं हमेशा से ही मेरे माँ-बाप की निशानिया तलाशता था पर इस घर में कुछ नहीं था सिवाय मेरे. ऐसा नहीं था की वो मेरे लिए कुछ नहीं छोड़ कर गए थे, बैंक में लाखो रूपये , न जाने कितने बीघा जमीन , फलो के बाग़ जिनसे हर साल खूब पैसे आते थे , पर परिवार के नाम पर बस ये खाली मकान था या फिर विक्रम काका जो मेरे पिता के बचपन के दोस्त थे.

उसके आलावा मेरे सगे चाचा-ताऊ जिन्होंने शायद मेरे पैदा होने से पहले ही नाता तोड़ लिया था . मैं उन्हें जानता था पहचानता था पर बस दूर से ही कभी रस्ते में मुलाकात हुई भी तो उन्होंने देखा-अन्धेखा कर दिया. कहने को तो फर्क नहीं पड़ता था पर असल में फर्क पडता था इस बड़े से घर में मैं अकेला, कभी करतार मेरे पास सो जाता कभी नहीं .

कितने मौसम मैंने अकेलेपन में , तन्हाई में काट दिए, हर होली, दिवाली पर जब मैं अडोस-पड़ोस के लोगो को अपने परिवारों के साथ खुशिया मानते देखता मैं किसी कोने में बैठ कर रोता. पर शायद यही नियति थी मुझ बदनसीब की.

उस दोपहर मैं अपने खेत की मुंडेर पर बैठा था की लाला महिपाल की गाड़ी उधर से गुजरी , उसकी नजर मुझ पर पड़ी तो वो मेरे पास आया .

“तो क्या सोचा तुमने देव ” लाला ने कहा

मैं- कुछ नहीं , मेरा जवाब तुम्हे पता है लाला

लाला- देखो देव, तुम भी जानते हो इतनी बड़ी जायदाद तुम्हारे बस की नहीं है संभालनी ये नहर के पास वाली जमीन, मेरी जमीन के साथ लगती है , मेरे काम आ जाएगी , और फिर मैं तुम्हे बढ़िया कीमत दे रहा हूँ

मैं- लालाजी, मेरे पास मेरे बाप की बस यही निशानी है मैं कह चूका हूँ

लाला- देखो देव, मुझे बार बार कहने की आदत नहीं है जो मुझे पसंद होता है वो मैं हासिल कर ही लेता हूँ ,

मैं- कोशिश कर लो लाला,

लाला ने अपना चश्मा उतार कर मुझे देखा और फिर वापिस मुड गया .

मैं भी घर की तरफ चल दिया की रस्ते में मुझे करतार मिल गया .

कट्टु- भाई सुन जबसे तूने दाखिला लिया है एक बार भी कालेज नहीं गया है तू , कल तुझे जरुर चलना होगा

मैं- ठीक है . कल चलता हूँ , तूने वो टेलर से मालूम किया क्या मेरे नए कपडे सिल दिए

कट्टु- हफ्ते भर पहले ही मैं ले आया था और तुझे बता भी दिया था , वैसे आजकल न जाने तेरा ध्यान कहाँ रहता है .

मैं- कुछ नहीं यार ,तू घर चल मैं आता हु

कट्टु- कहाँ जा रहा है

मैं- बस आता हूँ थोड़ी देर में .

कट्टु से अलग होकर मैं मजार की तरफ चल पड़ा.वैसे तो मैं शाम को ही जाता था पर आज दोपहर को ही चल दिया, न जाने क्यों जबसे मालूम हुआ था की मेरे माँ-बाप इधर आते थे मेरा मन बार बार यही आने को करता था पर शायद आज कोई और बात थी , पर क्या ये खास बात थी .

जब मैं वहां पहुंचा तो कोई नहीं था , वो बाबा भी नहीं . बेशक दोपहर का समय था पर फिर भी ठण्ड गजब थी , शयद इधर पेड़ पौधे ज्यादा होने की वजह से. थोड़ी प्यास से लग रही थी तो मैं नलके के पास जाने ही लगा था की मेरी नजर अन्दर पड़ी.



मैंने उसे देखा ,आँखे बंद किये हाथ में एक माला लिए वो शायद कुछ पढ़ रही थी , ये वो लड़की ही थी जो उस रात खेत पर मिली थी . सर पर चुन्नी , पीला सूट उसके सांवले रंग पर बड़ा खिल रहा था . उसे देखा तो मैं प्यास भूल गया , लगा इबादत में वो थी दुआ मेरी कबूल हो गयी .

बस उसे ही देखता रहा , कुछ देर बाद उसने अपनी आँखे खोली उसने मुझे देखा मैंने उसे देखा.

वो बाहर आई .

मैं- कैसी हो

वो- ठीक हु , तुम

मैं- पहले से बेहतर

उसने मेरे हाथ में प्रसाद दिया .

मैं- उस दिन बिना बताये चली गयी

वो- तुम सो रहे थे मैंने जगाना ठीक नहीं समझा

वो पौधों को पानी देने लगी

मैं- मदद करू

वो- ठीक है

मैंने नलकी पकड़ ली और उसके साथ हो लिया .

मैं- बुरा न मानो तो एक बात कहूँ

वो बेशक

मैं- तुम्हे न जाने कैसा लगेगा पर उस मुलाकात के बाद मेरे जेहन में ये चेहरा ही आता है

वो- भला क्यों

मैं- तुम बताओ

वो- ख्याल तुम्हारे और सवाल मुझसे

मैं- चा पियोगी, ये चायवाला बहुत अच्छी चाय बनाता है

वो- मुझे दूध पसंद है . पर तुम कहते हो तो पी लुंगी वैसे भी ठंडी बढ़ सी गयी है .

मैं दौड़ कर गया और चाय ले आया. हम दिवार के पास बैठ गए.

वो- नाम क्या है तुम्हारा

मैं- देव,

वो- अच्छा नाम है . मैं रूपा

मैं- रूपा, बड़ा सुन्दर नाम है

वो- पर मैं सुन्दर नहीं हूँ

मैं- किसने कहा तुमसे

वो- सब कहते है

मैं- गलत कहते है वो लोग .

वो मुस्कुरा पड़ी. दिल तो चाहता था की ढेरो बाते करू उसके साथ पर शब्द जैसे खत्म हो गए थे कुछ देर बाद वो जाने को उठ खड़ी हुई . दिल उसे रोकना चाहता था

मैं- क्या हम फिर मिल सकते है

वो- तक़दीर में होगा तो जरुर .

मैंने सर हिलाया. वो अपने रस्ते बढ़ गयी कुछ दूर जाकर वो पलटी और बोली- मैं हर सोमवार यहाँ आती हु .

जाते जाते जो इशारा कर गयी थी वो दिल झूम उठा था . मेरी नजर उस पेड़ पर पड़ी लगा की वो भी झूम रहा था . वापसी में भूख सी लग आई तो मैं करतार के घर की तरफ चल पड़ा. दरवाजा खुला था मैं सीधा अन्दर गया तो मुझे आवाजे आई, सरोज काकी की .


मैं उसके कमरे की तरफ बढ़ा , खुली खिड़की के पास से गुजरते हुए मेरी नजर अन्दर गयी और मैंने जो देखा , मेरी तो आंखे ही बाहर आ गयी .
bahut khub
 
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Rajesh Sarhadi

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#5

कमरे में सरोज काकी बस लहंगे लहंगे में ही थी ऊपर से ऊपर वक्षस्थल पूरा नंगा,जिन्दगी में पहली बार था जब किसी औरत को ऐसे देख रहा था मैं , माध्यम आकार की दो चुचिया जो बिलकुल भी लटकी नहीं थी बल्कि किसी ईमारत के गुम्बदो की तरह शान से तनी हुई थी . गहरे भूरे रंग के निप्पल .मेरा तन बदन कांप गया इस नजारे को देख कर .



पर कमरे में सरोज काकी अकेली नहीं थी उसके साथ थी हमारी पड़ोसन कौशल्या जो सरोज की पक्की सहेली थी , कौशल्या के हाथ में एक प्याली थी जिस में शायद तेल था. सरोज बिस्तर पर लेट गयी , कौशल्या ने कटोरी से तेल लिया और उसकी छातियो पर गिरा दिया. सरोज- उफ्फ्फ

कौशल्या- री सरोज, तेरे बोबे अब तक कितने कसे हुए है , विक्रम खूब मसलता होगा

सरोज- तू भी ले ले मेरे मजे, तुझे तो मालूम ही है उसकी कहानी, क्या है उसके बस का , मुझे तो याद भी नहीं की आखिरी बार कब ली थी उसने मेरी .

कौसल्या ने अपने तेल से सने हाथ सरोज की चुचियो पर रखे और उनको भींच दिया .

“कुतिया, थोड़े आराम से दबा ” सरोज थोडा जोर से बोली.

कौशल्या- समझती हूँ तेरा हाल भी मेरे जैसा ही हैं मेरे आदमी ने भी सब बर्बाद कर लिया दारू के नशे में , अब तो उसका उठता ही नहीं , पर ये जिस्म की अगन निगोड़ी दिन दिन बढती जा रही है , तुझसे लिपट कर मन बहला लेती हु पर , इस जिस्म को इन बूंदों की नहीं भारी बरसात की जरुरत है . हमारी चुतो को लंड की जरुरत है .

सरोज- बात तो सही है , पर करे तो क्या करे ऐसे किसी के आगे भी टाँगे तो नहीं खोल सकते न . ऐसी बाते छुपती कहाँ है , बदनामी होगी अलग.

कौशल्या ने सरोज का लहंगा कमर तक उठा दिया. मुझे सरोज की मांसल गोरी जांघे दिखने लगी, मेरी पेंट में हलचल होने लगी थी , कमरे के अन्दर इतना शानदार नजारा जो था.

कौशल्या- मेरे पास एक योजना है जिस से हम दोनों की प्यास बुझ सकती है

सरोज- कैसे

कौशल्या- देव, देव गबरू हो गया है , उसे देखते ही मेरी चूत पनिया जाती है , मुझे यकीं है उसका औजार हमारी जमीं पर खूब खेती करेगा. तू तो उसके बहुत करीब है डोरे डाल ले उस पर .

सरोज- दिमाग ख़राब है क्या तेरा, बेटा है वो मेरा, शर्म नहीं आई तुझे ऐसा कहते

कौशल्या- बेटा नहीं, बेटे जैसा है , और कौन सा अपनी कोख से पैदा किया है तूने उसे. उस से चुदेगी तो तेरा ही फायदा है , घर की बात घर में ही रहेगी, न वो किसी से कहेगा न तू .

सरोज- चुप हो जा कुतिया

कौशल्या- मुझे तो चुप करवा सकती है तू पर इस प्यासी चूत की तड़प का क्या जो हर रात बिस्तर पर तुझे सुलगा देती है , हम दोनों ही इस सच को नहीं झुठला सकते की हमारे आदमी अब हमें चोदने लायक नहीं रहे.

कौशल्या ने अपनी ऊँगली सरोज की चूत में सरका दी. पर मैं दूर होने की वजह से चूत को देख नहीं पाया. पर उनकी इन गर्म बातो ने सर्द मौसम में भी मेरे माथे पर पसीना ला दिया था . पर तभी सरोज उठ बैठी .

“जानती है कौशल्या बिन माँ-बाप का बच्चा है , कभी कहता नहीं है वो पर मैं जानती हु , मैं पढ़ती हूँ उसके खाली मन को , कितनी रातो को रोते सुना है मैंने उसे, कभी कुछ नहीं मांगता वो. विक्रम देखता है उसका कारोबार, खेती सब कुछ पर कभी हिसाब नहीं मांगता वो. क्या नहीं है उसके पास , उसके चचः-ताऊ सब चोर है अपने खून को भुला बैठे है ” सरोज बोली

कौशल्या- जानती हु सरोज, उसका दुःख क्या छुपा है किसी से भगवान ने उसके हिस्से की ख़ुशी भी लिखी ही होगी तक़दीर के किसी पन्ने पर .

आगे मैंने उनकी बाते नहीं सुनी , घर से निकल कर मैं खेत पर चला गया , करतार वही पर था तो उसके साथ ही बाते करता रहा , कल मुझे कालेज जाना था उसके साथ .

शाम अँधेरे मैं एक बार फिर से मजार पर पहुँच गया उसी पेड़ के निचे बैठा था मैं, ऐसे लगता था की जैसे मेरी माँ के आँचल तले पनाह मिली है मुझे. जब आस पास कोई नहीं होता मैं बाते करता उस से, अपने दिल को बहलाने को ख्याल अच्छा था .

इकतारे वाला बाबा जैसे मेरे परिवार का हिस्सा हो गया था , देर रात तक हम दोनों बाते करते कभी कभी रोटी ले जाता मैं उसके लिए, तो कभी उसकी पकाई खाता .

“मुसफिरा आजकल तू बड़ा परेशान लगता है ” पूछा उसने

मैं- बाबा, मेरे माँ-बाप के बारे में जानना चाहता हूँ

बाबा ने ऊपर आसमान की तरफ देखा और बोला- हम्म, वक्त आएगा तो जान जायेगा वैसे भी कहाँ कुछ छुपा है किसी से

मैं- तुम बताओ मुझे, तुम जानते हो न

बाबा- मुसाफिरा , जानता है दुनिया में सबसे जालिम क्या है

मैं- क्या

बाबा- वक्त, इस से बड़ा जुल्मी कोई नहीं , इसके खेल निराले, पर जल्दी ही तेरा वक्त भी बदलने वाला है , मैंने तुझसे कहा था मौसम बदल रहा है , साथ ही तेरा नसीब भी, पैर मजबूत रखना तूफान दस्तक देगा जल्दी ही .

मैं - समझा नहीं

बाबा- मैं भी नहीं समझा


बाबा ने आँख मूँद ली और चिलम को होंठो से लगा लिया. मैंने कम्बल लपेटा और पेड़ के निचे जाके बैठ गया . आधी सी रात मेरी आँख खुली , मैं यही बैठे बैठे सो गया था, सांसे दुरुस्त की और मैं खेत की तरफ चल दिया. वहा जाके देखा झोपडी के पास अलाव जल रहा था ,
:claps:
 
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Game888

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#15

बैग में एक ब्लैक एंड वाइट तस्वीर थी जो काफी पुरानी लगती थी , पर चूँकि उसे सहेज कर रखा गया था तो हालत ठीक थी , वो तस्वीर शायद किसी रात में खींची गयी थी , आसमान में बादल थे , चाँद था, और एक काली स्याह हवेली थी . मैंने कहा तस्वीर खींची गयी थी , नहीं वो तस्वीर कैमरा की नहीं नहीं थी, उसे किस चित्रकार ने बनाया होगा, हाँ ऐसा ही था वो बनाई गयी तस्वीर थी .

“कुछ तो खास बात है इस तस्वीर में ” मैंने अपने आप से सवाल किया क्योंकि गाड़ी में पैसे भी थे पर मोना को फ़िक्र थी इस तस्वीर की . फिलहाल के लिए तो मैंने तस्वीर को वापिस बैग में डाला और गाँव की तरफ चल दिया. वैध जी को गाड़ी वापिस की कुछ पैसे दिए और मैं घर के लिए मुड गया .

रस्ते में मुझे कौशल्या मिल गयी .

मैं- कहा से आ रही हो काकी

काकी- लाला के घर से .

मैं- हम्म, सुन काकी तेरे से एक बहुत जरुरी काम है तू आज रात खेत पर मिल सकती है क्या .

मेरी बात सुन कर कौशल्या की आँखों में चमक आ गयी .

कौशल्या- तू रहने दे लला , तू फिर गच्चा दे जायेगा. मेरे अरमानो की आग बुझा नहीं सकता तो उसमे घी भी मत डाल .

मैं- तेरी चूत को आज अपने लंड के पानी से सींच दूंगा आ तो सही , पर चूत के आलावा मूझे एक काम और है

कौशल्या- बता तो सही

मैं- वहीँ बताऊंगा , तू वहां पहुँच जाना

कौशल्या- पक्का

मैंने कौशल्या से करार किया और फिर घर आया, रात की नींद तो थी ही कुछ देर के लिए सो गया . शाम से कुछ पहले मैं फिर सरोज के घर गया , मुझे देखते ही उसके गालो पर लाली आ गयी .

“करतार कहाँ है ” मैंने पूछा

सरोज- खेलने गया है

मैं- चाचा

सरोज- मंडी

इतना सुनते ही न जाने मुझे क्यों ख़ुशी सी हुई. मैंने सरोज से एक कप चाय बनाने को कहा और खुद बाहर जाकर दरवाजा बंद कर आया. फिर मैं रसोई में गया . सरोज की पीठ मेरी तरफ थी मैंने जाते ही सरोज को पीछे से अपनी बाँहों में भर लिया, पर वो चौंकी नहीं शायद उसे भी अहसास था .

जैसे ही उसके नितम्ब मेरे अगले हिस्से से छुए , मेरे लंड में उत्तेजना का ज्वार चढने लगा. सरोज खड़ी थी मैं निचे बैठा उसके लहंगे को उठाया और उसकी कच्छी को पैरो के निचे सरका दिया. सरोज के मस्त कुल्हे मेरी आँखों के सामने थे , मैंने बड़े प्यार से उनको सहलाया और अपने होंठ सरोज की चूत पर लगा दिए. सरोज ने अपनी गांड को पीछे की तरफ कर लिया और अपने हाथो को स्लैब पर रख कर सामने को झुक गयी .

मुझे नहीं लगता की झुकी औरत से ज्यादा सेक्सी कोई और पोजीशन होगी , मैंने थोडा और फैलाया उसके चूतडो को और अपनी जीभ को चूत से लेकर गांड के छोटे से छेद तक फेरा .स

“सीईई ” सरोज ने एक आह सी भरी . रुई के गुब्बारों से नितम्बो को मसलते हुए मैं उसकी चूत चाटने लगा था . सरोज बहुत प्यासी औरत थी और फिर अक्सर बड़ी उम्र की औरते छोटे लडको से सेक्स करते समय ज्यादा ही उत्तेजित हो जाती है तो सरोज भी आहे भरने लगी थी .


जब जब मेरी जीभ उसकी गांड के छेद पर रगड़ खाती सरोज की टांगो में बहुत तेज कम्पन होता, कुछ देर उसके दोनों छेद चूसने के बाद मैंने अपनी चेन खोली और लंड पर थूक लगाकर सरोज की एक टांग को फैलाया और लंड को चूत के गीले छेद पर टिका दिया. पुच की आवाज आई और सरोज का बदन एक पल को अकड़ गया



दो झटको में ही मैंने लंड चूत के अन्दर सरका दिया था ब्लाउज के ऊपर से उसकी चुचियो को दबाते, मसलते हुए मैं सरोज को चोदने लगा, कुछ ही पलो में हम दोनों चुदाई के आसमान में उड़ान भरने लगे थे , मैं उसका ब्लाउज खोलना चाहता था पर उसने मना किया. फच फच की आवाज रसोई के हर कोने में गूँज रही थी .

सरोज अब स्लैब से हट कर रसोई के बीचो बीच अपने घुटनों पर हाथ टिकाये झुकी हुई थी , सरपट सरपट लंड चूत में अन्दर बाहर हो रहा था किसी भी पल हम दोनों अपने अपने सुख को पा सकते थे पर तभी बीच में भांजी मार दी नसीब ने

बाहर से बिक्रम चाचा की आवाज आई तो हम दोनों के होश उड़ गए , सरोज ने जल्दी से मुझे अलग किया और अपनी कच्छी को जांघो पर चढाते हुए बाहर दरवाजे की तरफ भागी, मैंने भी अपनी हालत ठीक की और रसोई से बाहर आकर बैठ गया .

“बिल्ली दो चार दिन से अन्दर घुस जाती है तो दरवाजा बंद करना पड़ा, ” सरोज ने विक्रम चाचा को बताया और उसके लिए भी चाय बनाने रसोई में चली गयी . विक्रम मेरे पास चला गया .

मैं- आजकल शहर के बहुत दौरे हो रहे है .

विक्रम-बेटा, धंधा फैला रहे है , बड़े होटलों में आजकल देसी सब्जी की बड़ी डिमांड है तो अपन लोग सप्लाई दे रहे है .

मैं- आपको ठीक लगे तो सब्जिया ही उगा लेते है जमीन के एक बड़े हिस्से में ,

विक्रम- मेरा भी यही ख्याल है , मैं दो चार दिन में किसान केंद्र जाऊंगा वहां से मदद लूँगा किस प्रकार हम बढ़िया पैदावार कर सकते है .

मैं- चाचा आपको जो ठीक लगे आप कर लिया करो . वैसे वो मोटर साईकिल के बारे में क्या सोचा आपने

विक्रम- देखो बेटा मैं अपना फैसला तुम्हे बता चूका हूँ, मुझे बड़ा डर लगता है , कभी कभी तुम और करतार गाड़ी चलाते हो तभी मेरा जी घबरा जाता है , तुम्हे चाहे पैसे को आग लगानी है तुम लगा दो, जो करना है करो सब तुम्हारा ही है , पर मोटर साईकिल के बारे में मेरा फैसला नहीं बदलेगा. मैं अपने बेटो को मौत का साधन नहीं खरीद कर दूंगा.

मैं- कोई न चाचा मैं तो बस ऐसे ही पूछ रहा था .


फिर रात को खाने तक हम बाते करते रहे, सरोज की आँखों में मैंने अधूरी चुदाई की कसक देखि पर विक्रम और करतार के आगे थोड़ी न हम कुछ कर सकते थे . खाना खाने के बाद मैंने अपना कम्बल ओढा और घर वालो को बता कर की मैं खेत पर जा रहा हूँ मैं चल पड़ा. पर किस्मत मेरी या कौशल्या की बदकिस्मती गाँव से बाहर पीपल के पास आते ही मैं जान गया की एक बार फिर कौशल्या मेरा इंतज़ार करते ही रह जायेगी. .....................
Excellent story with outstanding updates
 

Game888

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#19

“माफ़ करना मेरा ध्यान भटका , क्या कह रहे थे तुम ” बोली रूपा

मैं- तूने किसी खोयी हुई हवेली के बारे में सुना है क्या

रूपा जोर जोर से हंसने लगी, इतना जोर जोर से की उसने अपना पेट पकड़ लिया.

“वाह रे, मजाक करना कोई तुमसे सीखे, जानता भी है हवेलिया कितनी बड़ी होती है , कोई छोटा मोटा सामान है क्या जो खो जाये ” रूपा बोली

मैं- ले ले मजे पर किसी ने मुझे बताया की एक हवेली खो गयी

रूपा- तो बताने वाले को जाके कह की खोयी चीज की रपट दर्ज करवाए थाने में .

इस बार मैं भी मुस्कुरा दिया.

रूपा- बहुत भोला है रे तु, जो भी तुझे बता दे मान लेता है मुझे डर लगता है कही तेरे इस सरल स्वभाव का फायदा दुनिया न उठाये.

“मेरी दुनिया तू है , उठा ले फायदा ” मैंने कहा

रूपा- इतना आगे मत बढ़ मुसाफिर , की पीछे लौट न सके

मैं- डरती है तू मेरे साथ सफ़र करने में

रूपा- डरती हूँ नसीब से,मुसाफिरों के नसीब में बस सफ़र होता है , मंजिले नहीं , मुसाफिर सफ़र करते है हमसफर नहीं बनते . और फिर मेरे चाहने न चाहने से क्या होता है , तू आसमान का तारा मैं धरती की रेत ,

मैं- इस रेत में पानी की बूँद बन कर घुलना चाहता हु मैं , माना की नसीब में सफ़र है पर हमसफर भी तो हैं .

रूपा- फिर कभी करेंगे ये बाते , मैं चलती हु देर हो रही है .

मैं- यही रुक जा न .

रूपा- आजकल बस तेरे साथ ही वक्त गुजर रहा है मेरा, मेरा काम रह जाता है तेरे चक्कर में

मैं- तुझे काम करने की कोई जरुरत नहीं , मेरा सब कुछ तेरा ही तो है

रूपा- जानती हु , पर हम इस बारे में बात कर चुके है ,

मैं- तेरी ये खुद्दारी

रूपा- गरीब के पास होता ही क्या है खुद्दारी के सिवा.

मैंने रूपा का हाथ पकड़ा और बोला- ऐसी बाते न किया कर, तू जानती है मेरा दिल कितना दुखता है , तेरे हाथो के ये छाले जब देखता हूँ न तो कलेजे में आग लगती है .

रूपा- क्या चाहता है तू

मैं- तुझे अपनी बनाना,

रूपा- आशकी में सब ऐसा कहते है

मैं- ब्याह करना चाहता हूँ तुझसे , तुझे अपना बनाना चाहता हु, मेरे पास एक मकान है उसे घर बनाना चाहता हु, आजतक बस अकेल्रा ही रहा हूँ अब तेरे साथ जीना चाहता हूँ .

रूपा के चेहरे पर एक फीकी मुस्कान आ गयी .

रूपा- देर हो रही है मुझे

मैं- रुक जा न

रूपा- फिर कभी रुक जाउंगी जाने दे मुझे

रूपा उठी और झोपडी से बाहर आई, आसमान से ओस बरस रही थी , ठण्ड बहुत ज्यादा थी , रूपा ने अपनी लालटेन जलाई . रौशनी में उसका सांवला चेहरा जैसे सुबह खिलता कोई ताजा फूल हो .

रूपा- चलती हु, शादी में से आके ही मिलूंगी अब

मैं- तेरी याद आएगी .

रूपा- यादो का क्या करना कुछ दिन में मैं खुद ही आ जाउंगी.

रूपा ने कदम आगे बढ़ाये और अपने रस्ते पर चल पड़ी. कुछ दूर जाकर वो पलटी, मेरी तरफ देखा उसने

मैं दौड़ कर गया उसके पास, बेशक दो चार कदम की दुरी थी पर साँस फूल गयी थी .

“न रोक सरकार , जाने दे मुझे जाना जरुरी है ” रूपा कांपते हुए बोली

मैं अब उसके सामने था , उसके करीब , इतना करीब की हमारी सांसे आपस में उलझने लगी थी , चाँद रात और दिलबर साथ . मैंने देखा रूपा के हाथ में लालटेन कांपने लगी थी .

मैंने रूपा की कमर में हाथ डाला और थोडा सा खींचा , वो मेरी बाँहों में झूल गयी , उसके होंठ मेरे गालो से टकराए.

“जाने दे मुझे ” आधी ख़ामोशी से बोली वो

मैं- तू अकेली नहीं जायेगी मेरी जान भी तो साथ ले जा रही है .

रूपा- ऐसी बाते मत कर, पिघलने लगी हूँ मैं परवाने

मैं- तो फिर जला दे मुझे शम्मा बनकर

रूपा- मज़बूरी समझ मेरी

मैं- अकेलापन समझ मेरा,

मेरे होंठ थोडा सा रूपा के होंठो से टकराए, मुझे ऐसे लगा की बर्फ चख ली मैंने पर उसने मुझे खुद से दूर कर लिया और बोली- जा रही हु मैं .

इस बार उसने मुड कर नहीं देखा , बस चली गयी .पर वो ऐसे ही नहीं गयी थी अपने साथ मेरा दिल भी ले गयी थी.



मैं वापिस आकर बिस्तर पर लेट गया . आँखों में न नींद थी न दिल में करार, खुली आँखों से मैं सपने देखने लगा था , ऐसे सपने जहाँ बस मैं था रूपा थी , पेडो पर डाले झूले में झूलते रूपा, पास बैठा उसे देखता मैं . नजाने कब मुझे नींद आई .

सुबह आँख खुली ,मै बाहर आया तो देखा की कौशल्या चली आ रही है .

मैं- इतनी सुबह कैसे,

कौशल्या- दस बज रहे है

मैं- बड़ी देर तक सोया मैं .

काकी- जाने दे सुन , शकुन्तला खुद तुझसे मिलना चाहती है , बातो बातो में उसने बताया मुझे

मैं- मुझसे पर क्यों

काकी- बड़ी परेशां है वो किसी बात को लेकर, मैंने पूछा पर उसने वो बात बताई नहीं

मैं- कब मिल सकते है

काकी- देख,तू ऐसा कर लाला का हाल पूछने के बहाने उसके घर जा

मैं- पर लाला तो हॉस्पिटल में है

काकी- तभी तो कह रही हूँ, हाल चाल पूछने के बहाने घर जा सकता है तू , और घर से बढ़िया जगह कहाँ रहेगी मिलने को

मैं- ठीक है कल जाता हु

काकी- मेरे कर्जे का क्या हुआ .

मैं- एक दो दिन में पैसे लाकर देता हु तुझे

काकी- ठीक है . और ..

मैं- और क्या

काकी- चोदेगा कब

मैं- दो चार दिन में

काकी-जैसी तेरी मर्जी और सुन बताना भूल गयी सरोज बोल रही थी तुझे, कल सुबह से गायब है तू, चिंता कर रही थी वो घर चले जाना

मैं- ठीक है , वो करतार के बारे में क्या सोचा

काकी- रिझाना शुरू कर दिया है , अभी सीधा टांगे खोल दूंगी तो अच्छा नहीं लगेगा न

मैं- ठीक है .


कौशल्या के जाने में बाद मैं सोचता रहा की शकुन्तला की कौन सी मज़बूरी है जो वो लालायित है मुझसे मिलने को , पर जबसे उसे मूतते देखा था मैंने भी तो सोच लिया था की उसकी चूत लेनी ही हैं मुझे, मेरा दिल तो उसी दिन आ गया था उस पर . सोचते सोचते मैं घर की तरफ चल पड़ा.
Maast update
 

Game888

Hum hai rahi pyar ke
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Superb story, try to continue this story with happy ending
 
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Ben Tennyson

Its Hero Time !!
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आप सब पाठकों की भावनायें समझता हूं मैं परंतु मेरी भी मजबूरी है, क्योंकि इस लैपटॉप मे ये कहानी थी वो टूट गया,
मुझे भी दुख है, आशा है आप समझेंगे इस बात को
कोई बात नहीं पर आप ज़बाब दे दिया करें हमारे लिए यही काफी है लेकिन कोई एक छोटा सा अपडेट जरुर डालें
 
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