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Shayari गुफ्तगू

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ज़फ़ा के ज़िक्र पे तक़रार भी ज़रूरी है
ये "गुफ़्तगू" भी सरे बाज़ार ज़रूरी है

मुफ़ाहमत का तकाज़ा है मसलेहत लेकिन
किसी सवाल पे इनकार भी ज़रूरी है

मेरी दोहाई कहीं खो ना दे वक़ार मेरा
ज़ुबां पे ताला ऐ गुफ़्तार भी ज़रूरी है

लिखे हैं जुर्म सदा मेरे नाम क्यों मुंशिफ़
सज़ा में अबके गुनहगार भी ज़रूरी है

छुपाये राज़ तो रूसवा ना इश्क़ हो जाये
किया है इश्क़ तो इनकार भी ज़रूरी है

शबे फ़िराक़ शबेग़म उदासियों के सितम
कभी कभी तो ये आज़ार भी ज़रूरी है

हम इश्क़ में तो रवादार है मगर
कभी कभी तेरा इशरार भी ज़रूरी है।
 
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महफ़िल ए अहबाब में सब निकलता है
मेरा हर राज़ ज़मींदोज़ अब निकलता है

मिलना है उस से तो सब्र शब तक का करो
धूप में चाँद कब निकलता है

मैं आदतन ख़ानाबदोश समझा जाता हूँ
घर से पर कौन बेसबब निकलता है

बन के ज़हर जिसके लफ़्ज़ ज़हन को चीरें
वो बड़ा शीरीन-ए-लब निकलता है।
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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117,163
354
हमदर्द है इक तू मेरा एतबार कैसे हो,
दर्दे जिगर तुमने दिये तो एतबार कैसे हो.

humdard hai ek tu mera aitbaar kaise ho,
dard-e-zigar tumne diye to aitbaar kaise ho.
Bahut khoob,,,,,
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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ज़फ़ा के ज़िक्र पे तक़रार भी ज़रूरी है
ये "गुफ़्तगू" भी सरे बाज़ार ज़रूरी है

मुफ़ाहमत का तकाज़ा है मसलेहत लेकिन
किसी सवाल पे इनकार भी ज़रूरी है

मेरी दोहाई कहीं खो ना दे वक़ार मेरा
ज़ुबां पे ताला ऐ गुफ़्तार भी ज़रूरी है

लिखे हैं जुर्म सदा मेरे नाम क्यों मुंशिफ़
सज़ा में अबके गुनहगार भी ज़रूरी है

छुपाये राज़ तो रूसवा ना इश्क़ हो जाये
किया है इश्क़ तो इनकार भी ज़रूरी है

शबे फ़िराक़ शबेग़म उदासियों के सितम
कभी कभी तो ये आज़ार भी ज़रूरी है

हम इश्क़ में तो रवादार है मगर
कभी कभी तेरा इशरार भी ज़रूरी है।
Waaah kya baat, bahut hi umda,,,,
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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ऐसा भी कोई सवेरा हो
सर मेरा
कांधा तेरा हो,

जरूरी नही वस्ल ही हो
पर कांधा तेरा हो
और जनाजा मेरा हो.
Bahut badhiya,,,,,
 
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159
Waaah kya baat, bahut hi umda,,,,

धन्यवाद दोस्त

बुरा ना लगे तो कुछ लाइनें आपके लिए.

अँधेरा दिखे जहां, इक चराग़ जलाइये उस रहगुज़र में,
कभी, किसी गली आपको भी रोशनी दरकार होगी.
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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धन्यवाद दोस्त

बुरा ना लगे तो कुछ लाइनें आपके लिए.

अँधेरा दिखे जहां, इक चराग़ जलाइये उस रहगुज़र में,
कभी, किसी गली आपको भी रोशनी दरकार होगी.
Bahut khoob bhai,,,,,,,

Bura lagne wali isme kaun si baat hai,,, :dost:
 

Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
Staff member
Moderator
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मोहब्बत करके वो जी ज़िन्दगी बनी अब ज़िन्दगी से जा रही है,
अपना बना कर छोड़ देने की रस्म थी उसकी, वो अब अपनी रस्म निभा रही है...

:heart::heart::heart:
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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मोहब्बत करके वो जी ज़िन्दगी बनी अब ज़िन्दगी से जा रही है,
अपना बना कर छोड़ देने की रस्म थी उसकी, वो अब अपनी रस्म निभा रही है...
:heart::heart::heart:
Bahut hi umda,,,,,,
 

Mr. Perfect

"Perfect Man"
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143
Waahh fountain_pen bhai what a shayri_______

महफ़िल ए अहबाब में सब निकलता है
मेरा हर राज़ ज़मींदोज़ अब निकलता है

मिलना है उस से तो सब्र शब तक का करो
धूप में चाँद कब निकलता है

मैं आदतन ख़ानाबदोश समझा जाता हूँ
घर से पर कौन बेसबब निकलता है

बन के ज़हर जिसके लफ़्ज़ ज़हन को चीरें
वो बड़ा शीरीन-ए-लब निकलता है।
 
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