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Shayari गुफ्तगू

Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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यही चेहरा..यही आंखें..यही रंगत निकले,
जब कोई ख्वाब तराशूं..तेरी सूरत निकले...

:heart::heart::heart:
 

VIKRANT

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खुशहाल ज़िन्दगी के लिए इतना ही काफी है,
मेरे दोस्त खुशी से मेरे आदाब का जवाब देते हैं।

khush-haal zindgi ke liye itna hi kaafi hai,
mere dost khushi se mere aadaab ka jawaab dete hain.
Greattt bro. :applause::applause::applause:
 

VIKRANT

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यही चेहरा..यही आंखें..यही रंगत निकले,
जब कोई ख्वाब तराशूं..तेरी सूरत निकले...
:heart::heart::heart:
Such a beautiful. :applause::applause::applause:
 

Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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इश्क जाहिर करना जरूरी तो नही है ना,
महक अपनी खुद ही खूशबू बिखेर देगी...

:heart::heart::heart:
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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यही चेहरा..यही आंखें..यही रंगत निकले,
जब कोई ख्वाब तराशूं..तेरी सूरत निकले...
:heart::heart::heart:
Waaah bahut khoob,,,,,
 
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TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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इश्क जाहिर करना जरूरी तो नही है ना,
महक अपनी खुद ही खूशबू बिखेर देगी...
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Ahut hi umda,,,,,
 
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TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता,
अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता।

तेरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूठ जाना,
कि खुशी से मर न जाते ग़र ऐतबार होता।

ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह,
कोई चारासाज होता कोई ग़म-गुसार होता

कहूँ किससे मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है,
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता।

कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर-ए-नीमकश को,
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता।
 
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इश्क जाहिर करना जरूरी तो नही है ना,
महक अपनी खुद ही खूशबू बिखेर देगी...
:heart::heart::heart:

सांसों में मेरी
नजदीकियों का इत्र घोल दे,

मैं ही क्यों इश्क जाहिर करूँ
तू भी कभी बोल दे.

sans'on main meri
nazdeeki'on ka itra ghol de,

main hi kyun ishq zaahir karu
tu bhi kabhi bol de.
 
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ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता,
अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता।

तेरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूठ जाना,
कि खुशी से मर न जाते ग़र ऐतबार होता।

ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह,
कोई चारासाज होता कोई ग़म-गुसार होता

कहूँ किससे मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है,
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता।

कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर-ए-नीमकश को,
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता।

हमदर्द है इक तू मेरा एतबार कैसे हो,
दर्दे जिगर तुमने दिये तो एतबार कैसे हो.

humdard hai ek tu mera aitbaar kaise ho,
dard-e-zigar tumne diye to aitbaar kaise ho.
 
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ऐसा भी कोई सवेरा हो
सर मेरा
कांधा तेरा हो,

जरूरी नही वस्ल ही हो
पर कांधा तेरा हो
और जनाजा मेरा हो.
 
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