- 4,029
- 22,427
- 159
गौरी अत्यधिक व्यग्र और बेचैन थी। जब जब वो अपनी माँ को किसी सर-कटी मुर्गी की तरह इधर उधर दौड़ भाग करते देखती, तो उसका दिल और बैठ जाता। वो उनके मन की दशा समझती थी – आज उसकी शादी जो थी। माँ ने अपनी तरफ से किसी भी तरह की कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। आखिर एकलौती लड़की की शादी जो थी। हाँलाकि ‘बाबूजी’ ने उसको समझाया था की वो किसी भी तरह की चिंता न करें, लेकिन फिर भी.. आखिर वो हैं तो उसकी माँ ही!
आज गौरी की शादी है – किसी भी लड़की के लिए यह बहुत ही भावुक दिन होता है – एक तरफ तो अपना मायका छोड़ने का दुःख, और दूसरी तरफ गृहस्थी में पहला कदम! जीवन के इस परिवर्तन करने वाली घटना ज्यादातर लड़कियों के लिए ख़ुशी देने वाली होती है। लेकिन गौरी के मन की हालत अच्छी नहीं थी – वो उदास थी, खिन्न थी, उसके मन में एक प्रकार का अन्धकार था। उसने खुद को आईने में देखा – हर वर्ष कितनी ही लड़कियों की शादी होती है, उसने सोचा। क्या सभी उसकी तरह सोचती होंगी?
दुल्हन के जोड़े में वो कितनी सुन्दर लग रही थी, इसका ध्यान भी गौरी को नहीं था। दुल्हन के लाल जोड़े में वो सचमुच किसी परी के समान लग रही थी। जो कुछ आदित्य के साथ विवाह के लिए सिलवाया था, वही उसने आज भी पहना हुआ था। और यह उसका दुःख और भी अधिक बढ़ा रहा था।
गौरी की बेचैनी और व्यग्रता का एक कारण था। वो दिन आज भी उसको याद है। आज पांच साल हो गए हैं उस बात को, फिर भी याद है। आज भी उस दिन की याद उसके ह्रदय में वैसी पीड़ा देता है, जैसा की उस दिन हुआ था। उस दिन, जब उसको आदित्य की मृत्यु की खबर मिली थी… उसका दिल जैसे कुछ क्षणों के लिए रुक गया था.. उसका आदित्य! उसका आदित्य अब इस संसार में नहीं था! इस बात पर वो विश्वास भी कैसे कर लेती? यह संभव भी कैसे था? वह तो अभी जीवित थी…
‘हे प्रभु - आपने मुझे भी मेरे आदित्य के साथ क्यों नहीं बुला लिया?’
पिछले पांच वर्षों से वह यही प्रार्थना कर रही थी, लेकिन भगवान ने आज तक उसकी प्रार्थना नहीं सुनी!
ठाकुर भूपेन्द्र (बाबूजी) और ठाकुर घनश्याम (पिताजी) दोनों बचपन के मित्र थे और बहुत ही घनिष्ठ मित्र थे। ऐसे मित्र जिनकी मित्रता की बाकी सारे लोग मिसालें देते थे। उनकी मित्रता उम्र के बढ़ने के साथ साथ और गाढ़ी होती चली गई। जब वो दोनों बड़े हुए, तो उन्होंने एक दूसरे को वचन दिया की यदि उनमे से किसी के यहाँ लड़का हुआ और दूसरे के यहाँ लड़की, तो वे उन दोनों का विवाह करवा देंगे, जिससे मित्रता का बंधन, रिश्तों के अडिग बंधन में बंध जाय। आज कल ऐसी बातें किस्से कहानियों में ही सुनने को मिलती हैं, लेकिन 1930 में यह सब बातें करी जाती थीं।
दोनों ही ठाकुरों ने एक साथ ही शादी करी – बस कुछ ही दिन आगे पीछे। दोनों की पत्नियाँ लगभग एक साथ ही गर्भवती भी हुईं। समय के साथ भूपेन्द्र को एक लड़का हुआ, जिसका नाम आदित्य रखा गया, और घनश्याम को एक लड़की, जिसका नाम गौरी रखा गया। दोनों बच्चे हमउम्र थे – बस कुछ ही दिनों का अंतर था दोनों के बीच! बचपन से ही उन दोनों को मालूम हो गया था कि बड़े होकर उनकी शादी हो जाएगी और वो दोनों साथ रहेंगे। दोनों ही बच्चे इसी विश्वास के साथ बड़े हो रहे थे। ख़ुशी की बात यह भी थी कि उन दोनों में प्रेम भी बहुत था। दोनों साथ में बहुत खुश रहते थे और उनको देख कर राम-सीता जैसी आकर्षक जोड़ी वाली मिसालें देते थे! दोनों परिवार भी इस सम्बन्ध से बहुत खुश थे - आखिर, दो बहुत ही संपन्न और प्रभावशाली परिवार एक होने वाले थे।
लेकिन शादी के दिन से ठीक दो महीने पहले ही वो शोकपूर्ण घटना घट गई।
‘ओह आदित्य!’ गौरी ने दुःख भरी गहरी साँस ली। पांच साल! लेकिन अभी भी लगता है जैसे वो घटना कल ही हुई हो। ठाकुर घनश्याम को उस घटना के कारण गहरा धक्का लगा। उसके बाद वो एक गहरे अवसाद में चले गए और उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया। आदित्य उनके लिए अपने खुद के बेटे से भी कहीं प्रिय था। ठाकुर भूपेन्द्र भी अचानक ही समय से पहले ही बूढ़े से दिखने लगे। जल्दी ही पिताजी की तबियत और बिगड़ने लगी। तब बाबूजी आये थे, पिताजी का हाल चाल देखने के लिए।
अपने परम प्रिय मित्र की ऐसी हालत देख कर ठाकुर भूपेन्द्र की आँखें छलक गईं। दोनों मित्र भाइयों से भी अधिक सगे थे। उस हालत में भी दोनों एक दूसरे को स्वान्त्वाना दे रहे थे और एक दूसरे की हिम्मत बढ़ा रहे थे। उस क्षण ठाकुर भूपेन्द्र ने एक बात कही, जो शायद वो कहने ही आये थे,
“ठाकुर, जैसे आदित्य तुम्हारा बेटा था, वैसे ही गौरी भी मेरी बेटी है। और हमेशा रहेगी। अब हमारा तुम्हारा क्या भरोसा - जिस गति से हम चल रहे हैं, उस गति को सोच कर लगता है की हमारी भगवान भोलेनाथ से जल्दी ही भेंट हो जाएगी। लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न यह है की हमारे बाद हमारी बिटिया का क्या होगा? इसलिए मेरे मन में एक बात है.. अगर तुमको कोई आपत्ति न हो तो…”
“नहीं नहीं ठाकुर, कैसी बातें कर रहे हो? तुम तो अपने हो! तुम्हारी बात पर भला मुझे कैसे आपत्ति हो सकती है?”
“अगर ऐसी बात है ठाकुर तो सुनो.. मैं गौरी का हाथ अपने आदर्श के लिए मांगना चाहता हूँ!”
“क्या कह रहे हो ठाकुर?” घनश्याम को यकीन ही नहीं हुआ की उन्होंने ठीक ठीक सुना है।
भूपेन्द्र ने बस सर हिला कर अपनी कही हुई बात की पुष्टि करी।
“लेकिन.. लेकिन.. वो तो उम्र में काफी छोटा है गौरी से…”
“ठाकुर..” भूपेन्द्र ने जैसे फैसला सुनाते हुए कहा, “हमारे परिवार एक हैं! इस तथ्य को स्वयं भोलेनाथ भी नहीं झुठला सकते! मुझे तो लगता है कि प्रभु ने मुझे दूसरा लड़का इसीलिए दिया कि हम अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर सकें, और अपनी दोस्ती को एक मिसाल बना सकें! अपने मन में झाँक कर देखो - क्या तुमको नहीं लगता की यह सब भोलेनाथ की माया है? क्या तुम्हे नहीं लगता की वो स्वयं चाहते हैं कि हमारे परिवार एक हो सकें?”
घनश्याम को तो जैसे मन मांगी मुराद मिल गई। और बस यूँ ही, अनायास ही, गौरी का भाग्य फिर से निर्धारित हो गया। अब वो आदित्य के छोटे भाई आदर्श की होने वाली पत्नी बन गई थी।
आदर्श, आदित्य का छोटा भाई, जो गौरी से आठ साल छोटा था!
उस समय उन दोनों की शादी नहीं हो सकी - आदर्श उस समय तक परिपक्व नहीं हुआ था। इसलिए हो ही नहीं सकती थी। इसलिए शादी तब तक के लिए टाल दी गई, जब तक आदर्श बड़ा न हो जाय! या गौरी के लिए राहत की बात थी। लेकिन सबसे अधिक जिस बात ने गौरी के दिल को कचोटा, वह यह थी कि किसी ने भी उसकी राय, उसकी मंशा जानने की कोशिश तक नहीं करी। न तो बाबू जी ने, वो उसको अपनी खुद की बेटी से भी बढ़ कर मानते थे, न ही माँ ने, और न ही आदर्श ने!
वो कल का छोकरा कैसे भूल सकता है कि वो गौरी को भाभी भाभी कह कर बुलाता रहता था, कभी नंगा, तो कभी कच्छे में उसके आगे पीछे होता रहता था, और आज वो उसी से शादी करना चाहता है! पिताजी को तो बस एक ही बात का भूत सवार था, और वो यह की गौरी आदर्श से शादी करने के लिए हाँ कर दे… इसके लिए उन्होंने गौरी से वायदा ले लिया कि वो आदर्श से ही शादी करे। उनकी हालत देख कर गौरी ‘न’ नहीं कह सकी। जब तक शादी की बात नहीं हो रही थी, तब तक तो सब ठीक था, लेकिन जैसे जैसे शादी का दिन करीब आता गया, वैसे वैसे ही गौरी भावनात्मक समुद्र के और गहरे में डूबती चली गई।
आखिरकार वो इतनी बेचैन कैसे न हो!
Last edited: