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धन्यवाद मित्रbahut hi sundar story hai...
“अरे! आदर्श अभी उठा नहीं?” ठाकुर भूपेन्द्र चिंतातुर हो कर कह रहे थे। उनका बेटा तो सदा ही सूर्योदय से पहले ही उठ जाता है। कभी कभी तो चिड़ियाँ भी नहीं जागतीं, वो तब उठ जाता है। आज क्या हो गया!
लक्ष्मी देवी ने उनकी बात को अनसुना कर दिया। उनको तो अच्छी तरह मालूम था कि ऊपर क्या हो रहा है।
“उसकी तबियत तो ठीक है!” ठाकुर साहब खुद से ही बात कर रहे थे।
“और तो और, बिटिया भी नीचे नहीं आई!” उनकी चिंता बढती जा रही थी। आज लक्ष्मी देवी काम कर रही थीं.. ऐसा एक अर्से के बाद हुआ है.. क्या हुआ होगा बिटिया को!
“मैं जा कर देख कर आता हूँ.. पता नहीं क्या हो गया!”
“ठाकुर साहब.. आज वहां न जाइए..” उन्होंने एक अर्थपूर्ण भाव से यह बात कही।
“अरे क्यों?”
“क्योंकि आप वहां जायेंगे तो उनको बाधा होगी..”
“बाधा होगी..? मगर.. ओह.. ओओओओहह! अच्छा अच्छा!” अब उनको समझ आया!
****
दोनों प्रेमियों ने सोने से पहले दो बार, और सुबह उठने के बाद एक और बार सम्भोग किया। अब उन दोनों को भूख लगने लगी थी। गौरी को याद आया कि खाना इत्यादि भी तो बनाना है.. और सूरज तो काफी ऊपर चढ़ आया दिखता है! वो जल्दी से बिस्तर से उठी, और अपने कपडे पहनने लगी। लेकिन आदर्श ने उसको रोका,
“अम्मा की बात भूल गई? उन्होंने कहा था की वो हम दोनों को नंगा देखना चाहती हैं..”
“लेकिन मैं ऐसे कैसे बाहर निकलूँ?” गौरी ने लजाते हुए कहा। “सब ऐसे देखेंगे मुझे... क्या इज्ज़त रहेगी मेरी?”
“रुको..” आदर्श उठा, और अपने बक्से से एक थैली निकाल लाया।
“ये मैंने तुम्हारे लिए बनवाई थी..”
यह एक सोने की करधनी थी – उसमें छोटे छोटे काले रंग के मोती लगे हुए थे, और एक तरफ गुच्छे जैसा था.. जैसे की बेंदी में होता है। इसी के सेट में पायल और गले में पहनने वाला हार भी था।
“तुमको अच्छा लगा? पहनोगी?”
गौरी मुस्कुराई।
“सिर्फ इन्हें?”
आदर्श ने सर हिला कर हामी भरी।
गौरी फिर से मुस्कुराई।
“ठीक है..”
गौरी ने बड़े प्रेम से अपने पति के दिए उपहार को पहना। आदर्श ने करधनी के बेंदी वाले हिस्से को सामने तक लाया जिससे वो गौरी की योनि का कुछ हिसा ढक सके।
“एक और बात..” आदर्श ने गौरी के बालों को खोल दिया, जिससे उसके बाल उन्मुक्त हो सकें। “अब हम तैयार हैं..”
गौरी के खुले बालों के मध्य सिन्दूर सुशोभित हो रहा था, हाथों में कंगन और लाल चूड़ियाँ थीं, गले में छोटी काली मोतियों वाला हार / मंगलसूत्र था, जो उसके गौरवशाली स्तनों पर ठहरे हुए थे, और कमर में एक करधनी थी, जो बमुश्किल उसकी योनि को ढक पा रही थी। किसी के सामने नग्न होना वैसे भी मुश्किल काम है, और इस तरह से नग्न होना, कि खुद की प्रदर्शनी लग जाए, एक लगभग असंभव काम है। लेकिन अगर आदर्श उसके बगल खड़ा हो, तो यह सब कुछ मायने नहीं रखता। उसको कोई फर्क नहीं पड़ता। उसका पति उसके साथ है, बस, यह काफी है। गौरी ने एक गहरी साँस ली, मुस्कुराई और गौरान्वित भाव से अपने पति का हाथ पकड़ कर बाहर जाने को तैयार हो गई।
दोनों प्रेमी अंततः कमरे से बाहर निकले। बाहर निकलते ही उन्होंने वहीँ सामने लक्ष्मी देवी, ठाकुर भूपेन्द्र सिंह, और एक नौकरानी को खड़ा हुआ पाया... वो एक बड़ी सी थाल में कई सारी व्यंजन सामग्री ले कर खड़े हुए थे, और नौकरानी अपने हाथ में उनके लिए कपड़े! ऐसा लग रहा था जैसे वो इन नव-युगल का ही इंतज़ार कर रहे हों!
“आओ बच्चों!” लक्ष्मी देवी ने अपने तमाम जीवन में ऐसा प्यारा, ऐसा सुन्दर युगल नहीं देखा था.. उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “गृहस्थ जीवन में तुम दोनों का स्वागत है!”
* समाप्त *
प्रिय avsji आज तो कमाल ही कर दिया। इतने सारे अपडेट?
कायाकल्प का समापन। सुनील और सुमन का सम्भोग और अब ये गौरी व आदर्श की कथा।
गौरी को भी Xossip में पहले पढ़ चुका था। फिर एक बार आज यहां पढ़ना हो गया।
अच्छा लगा।
बहुत अच्छा लगा।
मजा आ गया भाई।
आशु
Bahut badhiya story bhai“अरे! आदर्श अभी उठा नहीं?” ठाकुर भूपेन्द्र चिंतातुर हो कर कह रहे थे। उनका बेटा तो सदा ही सूर्योदय से पहले ही उठ जाता है। कभी कभी तो चिड़ियाँ भी नहीं जागतीं, वो तब उठ जाता है। आज क्या हो गया!
लक्ष्मी देवी ने उनकी बात को अनसुना कर दिया। उनको तो अच्छी तरह मालूम था कि ऊपर क्या हो रहा है।
“उसकी तबियत तो ठीक है!” ठाकुर साहब खुद से ही बात कर रहे थे।
“और तो और, बिटिया भी नीचे नहीं आई!” उनकी चिंता बढती जा रही थी। आज लक्ष्मी देवी काम कर रही थीं.. ऐसा एक अर्से के बाद हुआ है.. क्या हुआ होगा बिटिया को!
“मैं जा कर देख कर आता हूँ.. पता नहीं क्या हो गया!”
“ठाकुर साहब.. आज वहां न जाइए..” उन्होंने एक अर्थपूर्ण भाव से यह बात कही।
“अरे क्यों?”
“क्योंकि आप वहां जायेंगे तो उनको बाधा होगी..”
“बाधा होगी..? मगर.. ओह.. ओओओओहह! अच्छा अच्छा!” अब उनको समझ आया!
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दोनों प्रेमियों ने सोने से पहले दो बार, और सुबह उठने के बाद एक और बार सम्भोग किया। अब उन दोनों को भूख लगने लगी थी। गौरी को याद आया कि खाना इत्यादि भी तो बनाना है.. और सूरज तो काफी ऊपर चढ़ आया दिखता है! वो जल्दी से बिस्तर से उठी, और अपने कपडे पहनने लगी। लेकिन आदर्श ने उसको रोका,
“अम्मा की बात भूल गई? उन्होंने कहा था की वो हम दोनों को नंगा देखना चाहती हैं..”
“लेकिन मैं ऐसे कैसे बाहर निकलूँ?” गौरी ने लजाते हुए कहा। “सब ऐसे देखेंगे मुझे... क्या इज्ज़त रहेगी मेरी?”
“रुको..” आदर्श उठा, और अपने बक्से से एक थैली निकाल लाया।
“ये मैंने तुम्हारे लिए बनवाई थी..”
यह एक सोने की करधनी थी – उसमें छोटे छोटे काले रंग के मोती लगे हुए थे, और एक तरफ गुच्छे जैसा था.. जैसे की बेंदी में होता है। इसी के सेट में पायल और गले में पहनने वाला हार भी था।
“तुमको अच्छा लगा? पहनोगी?”
गौरी मुस्कुराई।
“सिर्फ इन्हें?”
आदर्श ने सर हिला कर हामी भरी।
गौरी फिर से मुस्कुराई।
“ठीक है..”
गौरी ने बड़े प्रेम से अपने पति के दिए उपहार को पहना। आदर्श ने करधनी के बेंदी वाले हिस्से को सामने तक लाया जिससे वो गौरी की योनि का कुछ हिसा ढक सके।
“एक और बात..” आदर्श ने गौरी के बालों को खोल दिया, जिससे उसके बाल उन्मुक्त हो सकें। “अब हम तैयार हैं..”
गौरी के खुले बालों के मध्य सिन्दूर सुशोभित हो रहा था, हाथों में कंगन और लाल चूड़ियाँ थीं, गले में छोटी काली मोतियों वाला हार / मंगलसूत्र था, जो उसके गौरवशाली स्तनों पर ठहरे हुए थे, और कमर में एक करधनी थी, जो बमुश्किल उसकी योनि को ढक पा रही थी। किसी के सामने नग्न होना वैसे भी मुश्किल काम है, और इस तरह से नग्न होना, कि खुद की प्रदर्शनी लग जाए, एक लगभग असंभव काम है। लेकिन अगर आदर्श उसके बगल खड़ा हो, तो यह सब कुछ मायने नहीं रखता। उसको कोई फर्क नहीं पड़ता। उसका पति उसके साथ है, बस, यह काफी है। गौरी ने एक गहरी साँस ली, मुस्कुराई और गौरान्वित भाव से अपने पति का हाथ पकड़ कर बाहर जाने को तैयार हो गई।
दोनों प्रेमी अंततः कमरे से बाहर निकले। बाहर निकलते ही उन्होंने वहीँ सामने लक्ष्मी देवी, ठाकुर भूपेन्द्र सिंह, और एक नौकरानी को खड़ा हुआ पाया... वो एक बड़ी सी थाल में कई सारी व्यंजन सामग्री ले कर खड़े हुए थे, और नौकरानी अपने हाथ में उनके लिए कपड़े! ऐसा लग रहा था जैसे वो इन नव-युगल का ही इंतज़ार कर रहे हों!
“आओ बच्चों!” लक्ष्मी देवी ने अपने तमाम जीवन में ऐसा प्यारा, ऐसा सुन्दर युगल नहीं देखा था.. उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “गृहस्थ जीवन में तुम दोनों का स्वागत है!”
* समाप्त *
aise rishte se kya bhala jab dono hi khus na ho... bas aupcharikta bhar hi toh hain... kya wo iss ghar ka dekhbhal karne ke liye aayee thee.. aur phir adarsh bhi kyun nibha raha hain... jab paraspar prem hain hee nahin... lekin ek baat samajh se pare hain... kehte hain bujurgo kee najar bari tej hoti hain... kay unhe iss kami ka abhas na hota hain kee unka beta ek peera apne man mein dabaye hue baitha hain... ek saath do zindagi barbad kar ke unhe kya mila.... aur khaskar un samay mein balak paida karne kee bari jaldi hoti thee.... log kitne bhi adhunik kyun na ho jaye... unhe santanutpatti kee bari jaldi hoti the.. khaskar dada-dadi bannne kee chah kya unhone ek baar bhi na jatayee... saal lagte toh balak khelne lagte the....किसी आदर्श भारतीय बहू के समान गौरी ने तुरंत ही पूरे घर और कारोबार की जिम्मेदारी अपने सर पर ले ली, और साथ ही साथ लक्ष्मी देवी को अनावश्यक कार्यों से मुक्ति दे दी। गौरी न केवल उच्च शिक्षित लड़की थी, बल्कि एक बेहद समझदार लड़की भी थी। साथ ही साथ उसको कृषि और उससे सम्बंधित व्यापार के बारे में अच्छी समझ भी थी। अपने घर पर उसने अपने पिताजी का अक्सर हाथ बँटाया था। इसलिए अपने ससुराल आकर उसने कृषि और वाणिज्य में भी पहल लेनी शुरू कर दी। उसको किसी ने रोका भी नहीं – ठाकुर भूपेन्द्र को इस बारे में मालूम था, और उनको गौरी के कौशल पर पूरा भरोसा भी था।
सच पूछो, तो उनको एक तरह से तसल्ली ही हुई की अब उनका लड़का भी बहू की संगत में रह कर कुछ सीख लेगा। और हुआ भी लगभग ऐसा ही – उसके निर्देश में पहली फसल का विक्रय उम्मीद से कहीं अधिक मूल्य पर हुआ। धीरे धीरे उसने कृषि की लागत भी कम करनी शुरू कर दी। खेतों में काम करने वाले मजदूरों के लिए वही खेतों में ही स्थाई आवास भी बनवाए, जिससे सभी मजदूर खेतों में ही अपने परिवारों के साथ रहने लगे। कहने वाली बात नहीं है कि काम करने वाले सभी लोग इस बात से अत्यंत प्रसन्न हुए और गौरी और ठाकुर परिवार के लिए उनकी निष्ठा और भी बढ़ गई। सभी लोग गौरी को बहुत पसंद करते थे, और उसका आदर भी करते थे। सिर्फ वाणिज्य और कृषि के काम में ही नहीं, गौरी गृह संचालन में भी अत्यंत निपुण साबित हुई। बस कुछ ही दिनों में यह एक आम चर्चा हो गयी कि ठाकुर की बहू साक्षात् लक्ष्मी का अवतार है!
आदर्श के लिए कृषि और वाणिज्य का क्षेत्र नया था; और साथ ही साथ वो अपनी पढ़ाई भी कर रहा था। लेकिन, जो कमी उसके अनुभव में थी, वो कमी उसने अपने कठिन परिश्रम और लगन से पूरी कर दी। वो स्वयं भी एक सक्षम नेता था; वो अपने लोगों के साथ ही मेहनत करता, सभी के भले का ख़याल रखता, और सभी से ही बेहद मज़बूत रिश्ते बना के रखता था। साथ ही साथ, वो अपनी पढ़ाई भी बड़ी लगन के साथ कर रहा था।
ज्यादातर लोगों ने इस जोड़े से इस प्रकार की करामात की उम्मीद नहीं करी थी, लेकिन साल भर बाद सभी यह कहने पर मजबूर हो गए कि ठाकुर ने क्या किस्मत पाई है! सच में! बहू नहीं, लक्ष्मी ही घर में आई है! गौरी आदर्श का ख़याल रखती – जैसे वो उसकी भाभी होने पर करती; और आदर्श भी गौरी का पूरा ध्यान रखता था – क्या वो खाना ठीक से खा रही है, समय पर सो रही है, थक तो नहीं गई इत्यादि। यह सब तो ठीक है, लेकिन उन दोनों के बीच किसी भी तरह की अंतरंगता नहीं थी। उस रात के बाद, आदर्श ने गौरी को छुआ तक नहीं था। तो अपने कमरे के एकांत में दोनों पूरी तरह से अजनबी थे।
लेकिन, यह सब बाहर से नहीं दिखता था। दोनों साथ में काम करते, बात करते, और ऐसे लगते जैसे एक दूसरे के पूरक हों – देखने वाले को इस राज़ की भनक भी नहीं हो सकती थी। खैर, इस कठिन परिश्रम का फल यह हुआ कि इस वर्ष में खेती से होने वाली आय दोगुनी हो गयी। ठाकुर भूपेन्द्र को समझ आ गया कि अब वो शांति से सेवानिवृत्त हो सकते हैं।
और वो सचमुच सेवानिवृत्त हो गए! उनके साथ साथ ही लक्ष्मी देवी, जो पहले काम के बोझ तले दबी रहती थीं, को भी आराम मिला गया और आराम के साथ साथ ढेर सारा समय भी। ठाकुर और ठकुराइन को अपने वैवाहिक जीवन में पहली बार एक दूसरे के लिए इतना समय मिल सका। जब इतना समय मिला, तो उस समय का उपयोग उन दोनों ने अपने पारस्परिक प्रेम की ज्योति को पुनः प्रज्ज्वलित करने में किया। दोनों की उम्र अधिक नहीं थी – ठकुराइन कुछ चालीस साल की रही होंगी, और ठाकुर भूपेन्द्र कोई पैतालीस साल के। अपार फुर्सत मिलने के कारण दोनों दीर्घकालिक और संतोषजनक सम्भोग करने लगे। उनके वैवाहिक जीवन का यह सबसे आनंददायक अंतराल था। अब उनको हर बात के लिए समय मिलने लगा – वो अपने मित्रों से मिलते, सामाजिक कार्यों में भाग लेते, धार्मिक कार्यों में भाग लेते... अचानक ही वो दोनों पहले से कम उम्र लगने लगे – सच कहें तो चालीस से भी कम उम्र लगने लगे। दोनों प्रसन्न रहने लगे। दोनों ही संतुष्ट रहने लगे।
आदर्श जब कभी दोपहर में घर आता, तो उसको अपने माता-पिता के कमरे से सम्भोग करने की आवाजें आती। ऐसा नहीं है कि उसको बुरा लगता – सच पूछे तो उसको अच्छा ही लगता। उसको अच्छा लगता कि आखिरकार उसके माता पिता को बहुत ज़रूरी आनंद मिल पा रहा है। साथ ही साथ उसको एक उम्मीद भी होती, कि कभी वो अपनी राजकुमारी को भी इसी तरह से प्रेम कर सकेगा।
गौरी को भी अपने सास ससुर के बीच बढ़ते हुए प्रेम के बारे में मालूम था। उसको भी अच्छा लगता था कि दोनों एक दूसरे के कितने करीब हैं! अपने बड़े बेटे की मृत्यु के बाद, उस दोनों को प्रसन्न रहने की बहुत ही ज़रुरत थी.. और यह अच्छी बात थी कि वो दोनों अब खुश रह पा रहे हैं। बस, उसके एक बात का मलाल था, और वह यह कि आदर्श की पीड़ा उससे देखी नहीं जाती थी। उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया था जिससे वो ऐसे दंड का अधिकारी बने! लेकिन वो क्या करे!
खैर, देखते देखते ही आदर्श एक जिम्मेदार और आदरणीय नवयुवक बन कर उभरा। अपने ही गाँव क्या, उसकी बढ़ाई आस पास के कई गावों के लोग करने लगे। वो अपने गुणों के कारण विख्यात होने लगा। लोग उसको अपने यहाँ सलाह लेने के लिए बुलाते, और आदर्श भी इतना नेक था कि वो किसी को भी सहायता करने से मना नहीं करता था। ठाकुर भूपेन्द्र का सीना गर्व से चौड़ा हो गया।
गौरी को मालूम नहीं था कि उसको बिना बताए ही आदर्श उसकी माँ को देखने जाया करता था; उनकी देखभाल करने के लिए उसने एक आया और ससुराल की कृषि और वाणिज्य की देखभाल के लिए मुनीम और अन्य कर्मचारी लगा दिया था। कम से कम गौरी की अम्मा अब भगवान् भरोसे नहीं थीं। उनकी अच्छी देखभाल हो रही थी – उसके एहसान तले बहुत से लोग दब गए थे और किसी भी तरह से उसके उपकार का बदला चुकाना चाहते थे। इसलिए गौरी की अम्मा की देखभाल उत्तरदायी हाथों में थी। जल्दी ही उनकी शारीरिक हालत और आर्थिक हालत में सुधार आने लगा। साल भर में उस घर की सम्पन्नता भी वापस आ गई।
*****
akhirkar saas ne hi kaman apne haatho mein lee... akhir kab tak apne bete aur bahu kee aisi halat hote dekhti... lekin kya wakai gauri ko pyar tha.. ya phir samman kee bhawna jag gayee use guno kee bare mein jaan kar... waise itne khule vicharo waale maa toh kahanio mein hi dikhne ko milte hain... 30s mein aisi soch virle hi honge....कुछ दिनों बाद –
“बिटिया, क्या तुम दोनों ने.. मेरा मतलब, सम्भोग करना शुरू किया?” लक्ष्मी देवी ने खुलेआम उससे पूछ लिया।
गौरी ने शर्म से सर झुका कर ‘न’ में सर हिलाया।
“मुझे मालूम था। मुझे मालूम था कि कुछ नहीं हुआ होगा। तुम दोनों ही बेकार हो – तुम भी, और तेरा पति भी! बस! अब बहुत हो गया! अब मैं इसको और घिसटने नहीं दूंगा। अगर मैं ऐसे ही इंतज़ार करती रही, तो बिना अपने पोते पोतियों का मुँह देखे ही चल बसूँगी...” उन्होंने कुछ क्षण रुक कर कुछ सोचा और आगे कहा, “ठीक है.. अब मैं जैसा कहती हूँ, ठीक वैसा ही कर! इसको अपनी अम्मा का आदेश मान। जा, और जा कर नहा कर आ.. फिर सारी बाते बताऊंगी..”
‘नहा कर..!’ गौरी को समझ नहीं आया, लेकिन अम्मा की बात नकारने की उसकी फितरत नहीं थी। जब वो नहा धो कर बाहर आई, तो लक्ष्मी देवी एक नौकरानी के साथ जेवर, और नए कपडे – लहँगा-चोली, और.. और.. ये क्या है? गौरी को अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ, जब उसने कपड़ों के बीच में विदेशी चड्ढी, और ब्रा देखी। ‘ये कहाँ से आई!’
“तेरे बाबूजी ने मंगवाया था.. वो क्या नाम है.. हाँ, अमरीका से! तेरा सीना भी मेरे जितना लगता है, तो.. तुझको भी दुरुस्त आएगा। और..” लक्ष्मी देवी ने दबी आवाज़ में मुस्कुराते हुए आगे कहा, “ये सामने से खुलता है..”
गौरी का चेहरा शर्म से चुकंदर के जैसा लाल लाल हो गया।
“तू समझ रही है न बिटिया रानी? आज तेरी सुहागरात है। कल जब तू उस कमरे से बाहर निकले न, तो कुमारी नहीं रहनी चाहिए। न तू, और न ही आदर्श! चल.. अब जल्दी से तुझे तैयार कर देती हूँ! आदर्श भी आने वाला होगा..”
****
इसको सुहागरात नहीं, सुहाग-शाम कहना अधिक मुनासिब होगा!
शाम के करीब पांच बजे होंगे, लेकिन लक्ष्मी देवी ने जिद कर के दोनों को उनके कमरे में भेज दिया। उन्होंने गौरी को बिस्तर पर बैठाया, उसका माथा चूमा, और निकलने से पहले उन दोनों से कहा,
“एक बात और... जब तुम दोनों कल इस कमरे से बाहर निकलो, तो मैं तुम दोनों को पूरी तरह से नंगा देखना चाहती हूँ.. समझे? पूरे नंगे.. तुम दोनों को..” और यह कह कर उन्होंने दरवाज़े का पल्ला लगा दिया।
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“गौरी..” आदर्श बिस्तर पर नहीं बैठा; बस खड़े खड़े ही एक नपी तुली आवाज़ में बोला, “आप यह सब कहीं अम्मा के दबाव में आकर तो नहीं कर रही हैं?”
गौरी फिर से चुप!
“भगवान् के वास्ते गौरी! आप कुछ कहती क्यों नहीं..?”
गौरी ने ‘न’ में सर हिलाया।
“इसका क्या मतलब है?”
गौरी के लिए अपनी आवाज़ को पाना ही दूभर हो रहा था। वो कैसे इस अन्तरंग विषय पर बात करे! क्या आदर्श को नहीं मालूम, कि संसर्ग जैसे विषय पर लडकियाँ कुछ बोल नहीं पातीं! खैर, उसने जैसे तैसे तो तमाम हिम्मत बटोर कर कहा.. कहा क्या, बस एक अस्पष्ट फुसफुसाहट सी निकली,
“नहीं.. उन उनके दबाव में न्न्न्नहीं..”
आदर्श ने इतनी दबी हुई बात भी साफ़ सुनी। इस एक छोटे से वाक्य ने उसके जीवन को एक अलग ही दिशा प्रदान कर दी।
“क्या सच?” वो मुस्कुराया! विजय वाली मुस्कराहट नहीं.. चाहे जाने पर प्रसन्न होने वाली मुस्कराहट!
गौरी ने उसको मुस्कुराते हुए तो नहीं देखा – वो तो अपना सर अपने घुटनों में छुपाए बैठी हुई थी। लेकिन वो भी मुस्कुराई। उसने हलके से सहमति में सर हिलाया। इस एक छोटे से संकेत से आदर्श के शिश्न में जीवन का संचार हो गया। युवावस्था तो होती ही ऐसी है! पल पल भर में शिश्न संभोगरत को तैयार हो जाता है।
“गौरी.. आप तो हमारे दिल की रानी हो..”
कहते हुए वो गौरी के समीप पलंग पर बैठा, और उंगली से उसकी ठोढ़ी उठा कर उसके रसीले गुलाब से होंठों को चूम लिया।
गौरी भी आदर्श के लिए अपने में, अपने ह्रदय में उमड़ते घुमड़ते प्रेम के सागर में डूबने लगी; जब आदर्श ने उसको चूमा, तो उसके सब्र का बाँध भी टूट गया – उसने आदर्श के चुम्बन का समुचित उत्तर दिया। उसको नहीं मालूम था कि चुम्बन कैसा होता है, या कैसे करते हैं.. लेकिन फिर भी, उसने कोशिश करी। और फिर एक चुम्बन के बाद दूसरा चुम्बन के बाद तीसरा चुम्बन.. प्रेमी युगल जल्दी ही अपने चुम्बनों के आदान प्रदान में गिनती भूल गया।
जब वो एक दूसरे से अलग हुए, तो भावना की दीवार जिसके भीतर गौरी ने स्वयं को बंद कर रखा था, वो टूट गई, और आंसू के रूप में उसके गालों पर ढलक गई। आदर्श को समझ में नहीं आया कि गौरी दुखी है या प्रसन्न – लेकिन उसने उसको अपने प्रेममय आलिंगन में बाँध लिया।
प्रेममय आलिंगन तो था ही, लेकिन उस आलिंगन में दो युवा शरीर बंधे हुए थे। पहली बार दोनों विपरीत लिंग के संसर्ग में बंधे हुए थे। आदर्श को गौरी के स्तन अपने सीने पर दबते हुए महसूस हुए। गौरी को भी महसूस हुआ – ऐसे कोमल और अन्तरंग एहसास लडकियों से चूक नहीं सकते। उसने गौरी की आँखों में देखा, मानो उससे कुछ कहना चाहता हो.. लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। गौरी भी कुछ देर रुकी – उसको भी लगा कि आदर्श उससे कुछ कहना चाहता था, लेकिन जब उसने कुछ नहीं कहा, तो उसने आगे बढ़ कर एक बार फिर से आदर्श के होंठों को चूम लिया। हलके से ही सही, यह चुम्बन गौरी की पहल की निशानी था। दोनों प्रेमी पुनः अधर-रस-पान करने में लीन हो गए। जब तक दोनों का चुम्बन छूटा, तब तक दोनों की साँसें भारी हो चली थीं।
दोनों ने पुनः एक दूसरे की आँखों में देखा। तेज़ साँसों के साथ साथ गौरी के स्तन भी तेजी से ऊपर नीचे हो रहे थे। ऐसा मनोहारी दृश्य आदर्श की आँखों से बच नहीं सका – उसकी कौतूहल और उत्साह भरी दृष्टि मानों गौरी के स्तनों पर ही चिपक गई। गौरी को मालूम था कि वो क्या देख रहा है, लेकिन फिर भी सहज रूप से आदर्श की दृष्टि का पीछा करते हुए उसकी आँख अपने ही स्तनों पर चली गई। ऐसे देखे जाने पर गौरी को लगा जैसे आदर्श उसको आँखों से ही निर्वस्त्र कर रहा हो। गौरी को लगा जैसे आदर्श उसकी मूक बढ़ाई करा रहा हो.. वैसी अनुभूति जैसे खुद को बड़ी शिद्दत से चाहे जाने पर होती है। लेकिन साथ ही साथ उसको शर्म भी आई कि उसके वक्षस्थल को इस प्रकार की निर्लज्जता से देखा जा रहा है! लज्जा से उसका चेहरा पुनः लाल हो गया... अपनी योनि के भीतर उसको एक अपरिचित सी झुनझुनी महसूस हुई। शर्म के मारे, उसने अपना चेहरा अपने हाथों से ढक लिया।
समय बस पास ही था! आदर्श से अब रहा नहीं जा रहा था। उसने आगे बढ़ कर गौरी की चोली के निचले किनारे को ऊपर की तरफ हलके से खींचा। यह इशारा उसने समझा।
“प्प्पीछे.. से..” उसने हलकी सी घबराहट के साथ कहा।
yaar hum hi log pichhar gaye... saale yeh toh pehle hi india itna adhunik vicharo wala tha... nudists toh gharo mein hi paye jaate the... kuchh ajeeb na hain... jahan tak suna tha thakuro ke naak hamesha hi unchi rahti thee.. aise apni beta aur bahu ko nirvastra dekhna.... khair hame kya... hamesha kee tarah aapki shabdo ka chayan aur vartalap ke tarike anuthe hain....“अरे! आदर्श अभी उठा नहीं?” ठाकुर भूपेन्द्र चिंतातुर हो कर कह रहे थे। उनका बेटा तो सदा ही सूर्योदय से पहले ही उठ जाता है। कभी कभी तो चिड़ियाँ भी नहीं जागतीं, वो तब उठ जाता है। आज क्या हो गया!
लक्ष्मी देवी ने उनकी बात को अनसुना कर दिया। उनको तो अच्छी तरह मालूम था कि ऊपर क्या हो रहा है।
“उसकी तबियत तो ठीक है!” ठाकुर साहब खुद से ही बात कर रहे थे।
“और तो और, बिटिया भी नीचे नहीं आई!” उनकी चिंता बढती जा रही थी। आज लक्ष्मी देवी काम कर रही थीं.. ऐसा एक अर्से के बाद हुआ है.. क्या हुआ होगा बिटिया को!
“मैं जा कर देख कर आता हूँ.. पता नहीं क्या हो गया!”
“ठाकुर साहब.. आज वहां न जाइए..” उन्होंने एक अर्थपूर्ण भाव से यह बात कही।
“अरे क्यों?”
“क्योंकि आप वहां जायेंगे तो उनको बाधा होगी..”
“बाधा होगी..? मगर.. ओह.. ओओओओहह! अच्छा अच्छा!” अब उनको समझ आया!
****
दोनों प्रेमियों ने सोने से पहले दो बार, और सुबह उठने के बाद एक और बार सम्भोग किया। अब उन दोनों को भूख लगने लगी थी। गौरी को याद आया कि खाना इत्यादि भी तो बनाना है.. और सूरज तो काफी ऊपर चढ़ आया दिखता है! वो जल्दी से बिस्तर से उठी, और अपने कपडे पहनने लगी। लेकिन आदर्श ने उसको रोका,
“अम्मा की बात भूल गई? उन्होंने कहा था की वो हम दोनों को नंगा देखना चाहती हैं..”
“लेकिन मैं ऐसे कैसे बाहर निकलूँ?” गौरी ने लजाते हुए कहा। “सब ऐसे देखेंगे मुझे... क्या इज्ज़त रहेगी मेरी?”
“रुको..” आदर्श उठा, और अपने बक्से से एक थैली निकाल लाया।
“ये मैंने तुम्हारे लिए बनवाई थी..”
यह एक सोने की करधनी थी – उसमें छोटे छोटे काले रंग के मोती लगे हुए थे, और एक तरफ गुच्छे जैसा था.. जैसे की बेंदी में होता है। इसी के सेट में पायल और गले में पहनने वाला हार भी था।
“तुमको अच्छा लगा? पहनोगी?”
गौरी मुस्कुराई।
“सिर्फ इन्हें?”
आदर्श ने सर हिला कर हामी भरी।
गौरी फिर से मुस्कुराई।
“ठीक है..”
गौरी ने बड़े प्रेम से अपने पति के दिए उपहार को पहना। आदर्श ने करधनी के बेंदी वाले हिस्से को सामने तक लाया जिससे वो गौरी की योनि का कुछ हिसा ढक सके।
“एक और बात..” आदर्श ने गौरी के बालों को खोल दिया, जिससे उसके बाल उन्मुक्त हो सकें। “अब हम तैयार हैं..”
गौरी के खुले बालों के मध्य सिन्दूर सुशोभित हो रहा था, हाथों में कंगन और लाल चूड़ियाँ थीं, गले में छोटी काली मोतियों वाला हार / मंगलसूत्र था, जो उसके गौरवशाली स्तनों पर ठहरे हुए थे, और कमर में एक करधनी थी, जो बमुश्किल उसकी योनि को ढक पा रही थी। किसी के सामने नग्न होना वैसे भी मुश्किल काम है, और इस तरह से नग्न होना, कि खुद की प्रदर्शनी लग जाए, एक लगभग असंभव काम है। लेकिन अगर आदर्श उसके बगल खड़ा हो, तो यह सब कुछ मायने नहीं रखता। उसको कोई फर्क नहीं पड़ता। उसका पति उसके साथ है, बस, यह काफी है। गौरी ने एक गहरी साँस ली, मुस्कुराई और गौरान्वित भाव से अपने पति का हाथ पकड़ कर बाहर जाने को तैयार हो गई।
दोनों प्रेमी अंततः कमरे से बाहर निकले। बाहर निकलते ही उन्होंने वहीँ सामने लक्ष्मी देवी, ठाकुर भूपेन्द्र सिंह, और एक नौकरानी को खड़ा हुआ पाया... वो एक बड़ी सी थाल में कई सारी व्यंजन सामग्री ले कर खड़े हुए थे, और नौकरानी अपने हाथ में उनके लिए कपड़े! ऐसा लग रहा था जैसे वो इन नव-युगल का ही इंतज़ार कर रहे हों!
“आओ बच्चों!” लक्ष्मी देवी ने अपने तमाम जीवन में ऐसा प्यारा, ऐसा सुन्दर युगल नहीं देखा था.. उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “गृहस्थ जीवन में तुम दोनों का स्वागत है!”
* समाप्त *
aise rishte se kya bhala jab dono hi khus na ho... bas aupcharikta bhar hi toh hain... kya wo iss ghar ka dekhbhal karne ke liye aayee thee.. aur phir adarsh bhi kyun nibha raha hain... jab paraspar prem hain hee nahin... lekin ek baat samajh se pare hain... kehte hain bujurgo kee najar bari tej hoti hain... kay unhe iss kami ka abhas na hota hain kee unka beta ek peera apne man mein dabaye hue baitha hain... ek saath do zindagi barbad kar ke unhe kya mila.... aur khaskar un samay mein balak paida karne kee bari jaldi hoti thee.... log kitne bhi adhunik kyun na ho jaye... unhe santanutpatti kee bari jaldi hoti the.. khaskar dada-dadi bannne kee chah kya unhone ek baar bhi na jatayee... saal lagte toh balak khelne lagte the....
akhirkar saas ne hi kaman apne haatho mein lee... akhir kab tak apne bete aur bahu kee aisi halat hote dekhti... lekin kya wakai gauri ko pyar tha.. ya phir samman kee bhawna jag gayee use guno kee bare mein jaan kar... waise itne khule vicharo waale maa toh kahanio mein hi dikhne ko milte hain... 30s mein aisi soch virle hi honge....
yaar hum hi log pichhar gaye... saale yeh toh pehle hi india itna adhunik vicharo wala tha... nudists toh gharo mein hi paye jaate the... kuchh ajeeb na hain... jahan tak suna tha thakuro ke naak hamesha hi unchi rahti thee.. aise apni beta aur bahu ko nirvastra dekhna.... khair hame kya... hamesha kee tarah aapki shabdo ka chayan aur vartalap ke tarike anuthe hain....