Boobsingh
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“अरे! आदर्श अभी उठा नहीं?” ठाकुर भूपेन्द्र चिंतातुर हो कर कह रहे थे। उनका बेटा तो सदा ही सूर्योदय से पहले ही उठ जाता है। कभी कभी तो चिड़ियाँ भी नहीं जागतीं, वो तब उठ जाता है। आज क्या हो गया!
लक्ष्मी देवी ने उनकी बात को अनसुना कर दिया। उनको तो अच्छी तरह मालूम था कि ऊपर क्या हो रहा है।
“उसकी तबियत तो ठीक है!” ठाकुर साहब खुद से ही बात कर रहे थे।
“और तो और, बिटिया भी नीचे नहीं आई!” उनकी चिंता बढती जा रही थी। आज लक्ष्मी देवी काम कर रही थीं.. ऐसा एक अर्से के बाद हुआ है.. क्या हुआ होगा बिटिया को!
“मैं जा कर देख कर आता हूँ.. पता नहीं क्या हो गया!”
“ठाकुर साहब.. आज वहां न जाइए..” उन्होंने एक अर्थपूर्ण भाव से यह बात कही।
“अरे क्यों?”
“क्योंकि आप वहां जायेंगे तो उनको बाधा होगी..”
“बाधा होगी..? मगर.. ओह.. ओओओओहह! अच्छा अच्छा!” अब उनको समझ आया!
****
दोनों प्रेमियों ने सोने से पहले दो बार, और सुबह उठने के बाद एक और बार सम्भोग किया। अब उन दोनों को भूख लगने लगी थी। गौरी को याद आया कि खाना इत्यादि भी तो बनाना है.. और सूरज तो काफी ऊपर चढ़ आया दिखता है! वो जल्दी से बिस्तर से उठी, और अपने कपडे पहनने लगी। लेकिन आदर्श ने उसको रोका,
“अम्मा की बात भूल गई? उन्होंने कहा था की वो हम दोनों को नंगा देखना चाहती हैं..”
“लेकिन मैं ऐसे कैसे बाहर निकलूँ?” गौरी ने लजाते हुए कहा। “सब ऐसे देखेंगे मुझे... क्या इज्ज़त रहेगी मेरी?”
“रुको..” आदर्श उठा, और अपने बक्से से एक थैली निकाल लाया।
“ये मैंने तुम्हारे लिए बनवाई थी..”
यह एक सोने की करधनी थी – उसमें छोटे छोटे काले रंग के मोती लगे हुए थे, और एक तरफ गुच्छे जैसा था.. जैसे की बेंदी में होता है। इसी के सेट में पायल और गले में पहनने वाला हार भी था।
“तुमको अच्छा लगा? पहनोगी?”
गौरी मुस्कुराई।
“सिर्फ इन्हें?”
आदर्श ने सर हिला कर हामी भरी।
गौरी फिर से मुस्कुराई।
“ठीक है..”
गौरी ने बड़े प्रेम से अपने पति के दिए उपहार को पहना। आदर्श ने करधनी के बेंदी वाले हिस्से को सामने तक लाया जिससे वो गौरी की योनि का कुछ हिसा ढक सके।
“एक और बात..” आदर्श ने गौरी के बालों को खोल दिया, जिससे उसके बाल उन्मुक्त हो सकें। “अब हम तैयार हैं..”
गौरी के खुले बालों के मध्य सिन्दूर सुशोभित हो रहा था, हाथों में कंगन और लाल चूड़ियाँ थीं, गले में छोटी काली मोतियों वाला हार / मंगलसूत्र था, जो उसके गौरवशाली स्तनों पर ठहरे हुए थे, और कमर में एक करधनी थी, जो बमुश्किल उसकी योनि को ढक पा रही थी। किसी के सामने नग्न होना वैसे भी मुश्किल काम है, और इस तरह से नग्न होना, कि खुद की प्रदर्शनी लग जाए, एक लगभग असंभव काम है। लेकिन अगर आदर्श उसके बगल खड़ा हो, तो यह सब कुछ मायने नहीं रखता। उसको कोई फर्क नहीं पड़ता। उसका पति उसके साथ है, बस, यह काफी है। गौरी ने एक गहरी साँस ली, मुस्कुराई और गौरान्वित भाव से अपने पति का हाथ पकड़ कर बाहर जाने को तैयार हो गई।
दोनों प्रेमी अंततः कमरे से बाहर निकले। बाहर निकलते ही उन्होंने वहीँ सामने लक्ष्मी देवी, ठाकुर भूपेन्द्र सिंह, और एक नौकरानी को खड़ा हुआ पाया... वो एक बड़ी सी थाल में कई सारी व्यंजन सामग्री ले कर खड़े हुए थे, और नौकरानी अपने हाथ में उनके लिए कपड़े! ऐसा लग रहा था जैसे वो इन नव-युगल का ही इंतज़ार कर रहे हों!
“आओ बच्चों!” लक्ष्मी देवी ने अपने तमाम जीवन में ऐसा प्यारा, ऐसा सुन्दर युगल नहीं देखा था.. उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “गृहस्थ जीवन में तुम दोनों का स्वागत है!”
* समाप्त *
कहानी के टाइटल से ही पहले इसको पढ़ने का सोचा और सच कहे तो एक बार जो पढ़ना शुरू किया फिर रुका नही गया....
स्लो सिडक्शन के जगह इसको स्लो रोमांस कह सकते है....
गौरी के लिए उसका पहला प्यार भूलना नामुमकिन था और होता भी कैसे नही आखिर हर इंसान जिसके जीवन में ये पहले प्यार की ठंडी फुहारे जब पड़ती है तो एक गहरा छाप उसके अस्तित्व पर उकेर देती है जो ताउम्र उसके दिलो दिमाग में ताजा रहता है.....
पर यहां पे सासु मां और आदर्श के समर्पण भाव या फिर ये कह ले की गौरी की सहमति जब तक नहीं बनी तब तक जो शिष्टाचार से उसने इंतजार किया उसका फल उसको मिला और मिलना भी चाहिए था आखिर गौरी उसके लिए भी तो उसका पहला प्यार ही थी ना....
आत्म तृप्त हो गया एकदम ये सम्पूर्ण प्रेमरस से सराबोर कहानी पढ़ के....
और लोग सही कहते है रोमांटिक कहानियां लिखने में आप जादूगर से कम नहीं है....और इसको पढ़ने के बाद उत्सुकता और बढ़ गई हैं की आगे आपके खजाने से और क्या क्या मिलेगा