• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest घर की जवान बूरें और मोटे लंड - [ Incest - घरेलू चुदाई की कहानी ]

पायल किस से अपनी सील तुड़वाये ?

  • पापा

    Votes: 196 70.0%
  • सोनू

    Votes: 80 28.6%
  • शादी के बाद अपने पति से

    Votes: 4 1.4%

  • Total voters
    280
  • Poll closed .

Smartluñdwala101

Dekhne ke liye msg kare.
29
29
13
प्रिय पाठकों,

मस्तरानी का आप सभी को प्यार भरा नमस्कार |

इस कहानी का नाम है, "घर की जवान बूरें और मोटे लंड"
आशा करती हूँ की ये कहानी आप सभी को बहुत पसंद आएगी और इसे आप सभी का बहुत प्यार मिलेगा |

तो और वक़्त ज़ाया ना करते हुए मैं इस कहानी की शुरुवात करने जा रही हूँ |

घर की जवान बूरें और मोटे लंड


चेतावनी : ये कहानी पारिवारिक रिश्तों की कामुकता पर आधारित है जो समाज के नियमों के खिलाफ है | अगर आप ये पसंद नहीं करते तो ये आपके लिए बिलकुल भी नहीं है |

संसार में बूर और लंड का रिश्ता सबसे प्यारा होता है | लंड हमेशा से ही अपनी पत्नी और गर्लफ्रेंड की बूरों से अपनी प्यास बुझाते आये हैं, ठीक वैसे ही बूरें भी अपने पति और बॉयफ्रेंड से अपनी प्यास बुझती आईं हैं | लेकिन बुर या लंड पत्नी, गर्लफ्रेंड, पति, बॉयफ्रेंड के अलावा किसी और का हो तो मजा दुगना हो जाता है| जैसे पड़ोसन, पड़ोसी, शिक्षक, शिक्षिका इत्यादि... |

लेकिन एक बूर और लंड को सबसे ज्यादा मज़ा उनके अपने ही परिवार के लंड और बूरें ही दे सकती हैं | किसी भी मर्द का लंड सबसे विकराल रूप तभी लेता है जब उसके सामने जो बूर है वो उसकी अपनी सगी बेटी, बहन या माँ की हो | ठीक वैसे ही किसी भी लड़की या औरत की बूर अपने आप खुल के सबसे ज्यादा तभी रिसती है जब उसके सामने जो लंड है वो उसके अपने सगे बाप, भाई या बेटे का हो |

ये कहानी भी एक परिवार के ऐसे ही कुछ बुरों और लंडों की है जो समाज के नियमो को तार तार करते हुए चुदाई का अनोखा आनंद लेते हैं |

कहानी रामपुर के एक उच्च मध्यम परिवार की है | कहानी के किरदार कुछ इस प्रकार हैं |

पिता : रमेश सिंह ; उम्र ५२ साल. एक किराने की दूकान चलाते हैं. १० साल पहले तक वो अपने खेतों में काम भी करते थे और कसरत भी इसलिए बदन ५२ साल की उम्र में भी उनका बदन कसा हुआ है.

माँ : उमा देवी ; उम्र ४८ साल. घर को संभालने के अलावा वो हिसाब किताब का भी ध्यान रखती है. ज्यादा पढ़ी लिखी ना होने पर भी उसे दुनियादारी की समझ है .

बेटा (बड़ा) : रौनक सिंह ; उम्र २६ साल. एक प्राइवेट कंपनी में काम करता है. सेल्स में होने के कारण वो ज्यादातर टूर पे ही रहता है. वो एक जिम्मेदार बेटा है.

बहु : उर्मिला सिंह ; उम्र २४ साल. अपनी सास के साथ घर संभालती है. १ साल पहले ही शादी कर के इस घर घर में आई थी और जल्द हे सबकी चहेती बन गई है. गोरा रंग, सुड़ौल बदन और अदाएं ऐसी की किसी भी मर्द के होश उड़ा दे.

बेटी/बहन : पायल सिंह ; उम्र २१ साल. बी.ए फर्स्ट इयर की क्षात्रा. इसी साल कॉलेज में एडमिशन लिया है. पायल इस कहानी की मुख्य पात्र भी है. गोरा रंग, भरी हुई चुचियां, पतली कमर और उभरी हुई चुतड देख के उसके कॉलेज के लड़को को अपने बैग सामने टांगने पड़ते हैं.

बेटा (छोटा): सोनू सिंह ; उम्र १८ ; १२ वीं कक्षा का क्षात्र. अव्वल दर्जे का कमीना. स्कूल में लडकियों की स्कर्ट में हमेशा झांकता रहता है. उसके बैग में हमेशा गन्दी कहानियों की ३-४ किताबें रहती है.


सुबह के ६ बजे रहे है. सूरज की पहली किरण खिड़की से होते हुए उर्मिला की आँखों पर पड़ती है. उर्मिला टीम-टीमाती हुई आँखों से एक बार खिड़की से सूरज की और देखती है और फिर एक अंगडाई लेते हुए बिस्तर पर बैठ जाती है. हांफी लेते हुए उर्मिला की नज़र पास के टेबल पर रखी रौनक की तस्वीर पर जाती है तो उसके चेहरे पे हलकी सी मुस्कान आ जाती है. अपनी हथेली को ओठो के निचे रख के वो रौनक की तस्वीर को एक फ्लाइंग किस देती है और अपनी नाईटी ठीक करते हुए बाथरूम में घुस जाती है.

७ बज चुके है. नाश्ता लगभग बन चूका है और गैस पे चाय बन रही है. उर्मिला तेज़ कदमो के साथ अपनी ननद पायल के कमरे की तरफ बढती है. दरवाज़ा खोल के वो अन्दर दाखिल होती है. सामने बिस्तर पे पायल एक टॉप और पजामे में सो रही है. करवट हो कर सोने से पायल की चौड़ी चुतड उभर के दिख रही है. उर्मिला पायल की उभरी हुई चूतड़ों को ध्यान से देखती है. उसके चेहरे पे मुस्कान आ जाती है. वो मन ही मन सोचती है, "देखो तो कैसे अपनी चौड़ी चूतड़ को उठा के सो रही है. किसी मर्द की नज़र पड़ जाये तो उसका लंड अभी सलामी देने लगे". उर्मिला उसके करीब जाती है और एक चपत उसकी उठी हुई चुतड पे लगा देती है.

उर्मिला : ओ महारानी ... ७ बज गए है. (पायल की चुतड को थपथपाते हुए) और इसे क्यूँ उठा रखा है? कॉलेज नहीं जाना?

पायल: (दोनों हाथो को उठा के अंगडाई लेते हुए उर्मिला भाभी की तरफ देखती है. टॉप के ऊपर से उसकी बड़ी बड़ी चुचियां ऐसे उभर के दिख रही है जैसे टॉप में किसी ने दो बड़े गोल गोल खरबूजे रख दिए हो) उंssss
भाभी...बस ५ मिनट और सोने दीजिये ना प्लीज..!! कल रात देर तक पढाई की थी. बस भाभी ..और ५ मिनट....(पायल गिडगिडाते हुए कहती है).

उर्मिला : अच्छा बाबा ठीक है.. लेकिन सिर्फ ५ मिनट. अगर ५ मिनट में तू अपने कमरे से बाहर नहीं आई तो मई मम्मीजी को भेज दूंगी. फिर तो तुझे सुबह सुबह भजन सुनाएगी तो तेरी नींद अपने आप ही खुल जाएगी (उर्मिला हँसते हुए कहती है)

पायल : नहीं भाभी प्लीज. मैं पक्का ५ मिनट में उठ जाउंगी. आप मम्मी से मत बोलियेगा.

उर्मिला : हाँ हाँ नहीं कहूँगी. पर तू ५ मिनट में उठ जाना.

पायल : हाँ भाभी... (फिर पायल तकिये के निचे सर छुपा के सो जाती है और पायल कमरे से बाहर चली जाती है)

उर्मिला रसोई में आती है तो उसकी सास उमा देवी चाय को कप में डाल रही है.

उर्मिला: अरे मम्मी जी ... मैं तो बस पायल को उठा के आ ही रही थी. आप जाईये और टीवी देखिये. आपके प्रवचन का टाइम हो गया है.

उमा : कोई बात नहीं बेटी. थोडा काम मुझे भी तो कर लेने दिया कर. सारा काम तो तू ही करती है घर का (उमा देवी बड़े हे प्यार से उर्मिला से कहती है)

उर्मिला : कप मुझे दीजिये मम्मी जी... मैं सोनू को भी उठा देती हूँ. ये दोनों भाई बहन बिना उठाये उठते ही नहीं है.

उमा : सोनू को मैं उठा दूंगी. तू ये कप ले और पहले अपने बाबूजी को चाय दे दे. बूढ़े हो चले हैं लेकिन अब भी इनकी जवानी नहीं गई. इस उम्र में लोग सुबह सैर सपाटे के लिए जाते है और एक ये हैं की कसरत करेंगे (उमा देवी मुह बनाते हुए कहती है)

उर्मिला : (हँसते हुए) मम्मी जी आप भी ना..बस...!! ५२ साल की उम्र में भी बाबूजी कितने हट्टे-कट्ठे लगते है. उनके सामने तो आजकल के जवान लड़के भी मात खा जाए. आप तो बस यूँ ही बाबूजी को भला-बुर कहती रहती हैं (उर्मिला के चेहरे पर हलकी सी मायूसी आ जाती है)

उमा : (उर्मिला की ठोड़ी को पकड़ के उसका चेहरा प्यार से उठा के कहती है) अरे मेरी बहुरानी को बुरा लग गया? अच्छा बाबा अब नहीं कहूँगी तेरे बाबूजी के बारें में कुछ भी. अब ठीक है? (उमा देवी की बात सुनके उर्मिला के चेहरे पे मुस्कान वापस आ जाती है. उसकी मुस्कान देख के उमा कहती है) इतनी सुन्दर और प्यारी बहु मिली है मुझे. सबका कितना ख्याल रखती है. नहीं तो आज कल कौनसी बहु अपने सास ससुर का इतना ख्याल रखती है?

उर्मिला : क्यूँ ना रखूँ मम्मी जी? आप दोनों ने हमेशा से ही मुझे अपनी बहु नहीं बेटी माना है तो मेरा भी तो फ़र्ज़ है की मैं आप दोनों को अपने माता पिता का दर्ज़ा दू. कप दीजिये.. मैं बाबूजी को है दे कर आती हूँ. वैसे बाबूजी हैं कहाँ?

उमा : छत पर होंगे और कहाँ ? कर रहे होंगे अपने कसरत की तैयारी.

उमा देवी की बात सुनके उर्मिला हँस देती है और छत की सीढीयों की ओर बढ़ जाती है.

छत पर रमेश अपने कसे हुए बदन पर सरसों का तेल लगा रहा है. खुला बदन, निचे एक सफ़ेद धोती जो घुटनों तक उठा राखी है. सूरज की रौशनी में उसका तेल से भरा बदन जैसे चमक रहा है. उर्मिला चाय का कप ले कर छत पर आती है और उसकी नज़र बाबूजी के नंगे सक्त बदन पर पड़ती है. वैसे उर्मिला ने बाबूजी को कई बार इस हाल में देखा है, उनके बदन को कई बार दूर से निहारा भी है. रौनक का घर से दूर रहना उर्मिला के इस बर्ताव के कई कारणों में से एक था. उर्मिला कुछ पल बाबूजी के बदन को दूर से ही निहारती है फिर चाय ले कर उनके पास जाती है.

उर्मिला : ये लीजिये बाबूजी आपकी चाय (चाय पास के टेबल पर रखते हुए कहती है)

रमेश : सही टाइम पे चाय लायी हो बहु. मैं अभी कसरत शुरू करने हे वाला था. ५ मिनट बाद आती तो शायद नहीं पी पाता.

उर्मिला : (बाबूजी की बात सुनके उर्मिला का मुह छोटा हो जाता है. वो जानती है की बाबूजी कसरत सिर्फ लंगोट पहन के करते है. अगर वो ५ मिनट के बाद आती तो बाबूजी को लंगोट में देखने का आनंद ले पाती) आपकी बहु हूँ बाबूजी. आपकी सुबह की चाय कैसे मिस होने देती?

रमेश : (हँसते हुए) हहाहाहा... बहु..सही कहा तुमने. इसलिए तो मैं हमेशा कहता हूँ की मेरी एक नहीं दो बेटियां है.

उर्मिला : ये तो आप हो बाबूजी जो अपनी बहु को बेटी का दर्ज़ा दे रहे हो, नहीं तो लोग तो अपनी बहु को नौकरानी बना के रखते है.

रमेश : ना ना बहु...तू है ही इतनी सुन्दर...और प्यारी. कोई ऐसी बहु को नौकरानी बना के रखता है क्या भला?

बाबूजी की बात सुनके उर्मिला उनके पैर पढने के लये निचे झुकती है. नहाने के बाद उर्मिला ने जो ब्लाउज पहना है उसका गला थोडा गहरा है. झुकने से साड़ी का पल्लू निचे गिर जाता है जिसे उर्मिला सँभालने की जरा भी कोशिश नहीं करती. गहरे गले के ब्लाउज से उर्मिला के तरबूज जैसी चुचियों के बीच की गहराई साफ़ दिखने लगती है. बाबूजी की नज़र जैसे ही उर्मिला की बड़ी बड़ी चुचियों के बीच की घाटी पे पड़ती है उनकी आँखे बड़ी और थूक गले में अटक जाता है. रमेश ने वैसे बहुत सी लडकियों और औरतों को अपने लंड का पानी पिलाया है लेकिन अपनी बहु की जवानी के सामने वो सब पानी भारती है. किसी तरह से रमेश थूक को गले से निचे उतारते हुए कहता है.

रमेश : अरे बस बस बहु. मेरा आशीर्वाद तो हमेशा तेरे साथ है. (बहु के सर पे हाथ रख के आशीर्वाद देने के बाद रमेश उर्मिला के दोनों कंधो को पकड़ के उसे उठाता है) जुग जुग जियो बहु..सदा सुहागन रहो...

उर्मिला : (मुस्कुराते हुए नज़रे झुका के अपना पल्लू ठीक करती है) अच्छा बाबूजी... मैं अब चलती हु. मम्मी जी की रसोई में मदद कर दूँ.

रमेश : हाँ बहु..तुम जाओ. मैं भी अपनी कसरत कर लेता हूँ.

उर्मिला धीरे धीरे सीढीयों की तरफ बढ़ने लगती है. "उफ़ ..!! बाबूजी कैसे मेरी बड़ी बड़ी चुचियों के बीच की गहराई में झाँक रहे थे. उनका लंड तो पक्का धोती में करवटें ले रहा होगा". उर्मिला के दिल में ये ख्याल आता है. उसके कदम सीढीयों से उतरते हुए अपने आप ही थम जाते है. कुछ सोच कर वो दबे पावँ छत के दरवाज़े के पास जाती है और वहीं दिवार की आड़ में बैठ जाती है. थोड़ी दूरी पर बाबूजी खड़े है. चाय की ३-४ चुस्कियां ले कर वो कप टेबल पर रख देते है और अपनी धोती की गाँठ खोलने लगते हैं. उनकी पीठ उर्मिला की तरफ है. धोती खोल कर पास पड़ी खाट पर डालने के बाद बाबूजी अपने दोनों हाथों को कन्धों की सीध में लाते हैं और फिर अपने शारीर के उपरी हिस्से को दायें बाएं करने लगते है. जैसे से बाबूजी दाई तरफ मुड़ते हैं, उर्मिला की नज़र उनके लंगोट के आगे वाले हिस्से पर पड़ती है. उर्मिला के मुह से हलकी आवाज़ निकल जाती है, "हाय दैया ...!!". लंगोट का अगला हिस्सा फूल के उभरा हुआ है, करीब ३-४ इंच. लंगोट के उभार के दोनों तरफ से कुछ काले सफ़ेद बाल दिखाई पड़ रहे है. "उफ़..!! लंगोट का उभार ही ३-४ इंच का है तो बाबूजी का ल ....हे भगवान्....पता नहीं मम्मी जी ने कैसे झेला होगा इसे...". उर्मिला अपने आप में ही बडबडाने लगती है. उसकी नज़र लंगोट के उस उभरे हुए हिस्से पे मानो फंस सी जाती है.

वहां छत पर उर्मिला अपनी दुनिया में खोई हुई है और यहाँ उमा देवी चाय का कप ले कर अपने बेटे सोनू के कमरे तक पहुँच गई है. वो कमरे में घुसती है. सामने सोनू बिस्तर पे चादर ओढ़ के पड़ा हुआ है.

उमा : लल्ला...!! सोनू बेटा..!! उठ जा..आज स्कूल नहीं जाना है क्या?

सोनू : (आँखे खोल के एक बार मम्मी को देखता है और फिर आँखे बंद कर लेता है) मम्मी अभी सोने दीजिये ना...

उमा : (कप टेबल पे रख के) चुप कर..बड़ा आया अभी सोने दीजिये ना वाला..चल उठ जल्दी से...७:३० हो गए है. अभी सोता रहेगा फिर पायल से लडेगा नहाने के लिए....और ये टेबल कितना गन्दा कर रखा है. किताबें तो ठीक से रखा कर बेटा..

उमा टेबल पे रखी किताबें ठीक करने लगती है. जैसे हे वो निचे गिरी किताब उठाने के लिए झुकती है, उसके लो कट ब्लाउज के गले से उसकी फुटबॉल जैसी चुचियों के बीच की गहराई दिखने लगती है. कमीना सोनू रोज इसी मौके का इंतज़ार करता है. अपनी माँ के ब्लाउज में झांकते हुए वो दोनों चुचियों का साइज़ मापने लगता है. चादर के अन्दर उसका एक हाथ चड्डी के ऊपर से लंड को मसल रहा है. उमा किताब उठा के टेबल पे रखती है और दूसरी तरफ घूम के कुर्सी पे रखे कपडे झुक के उठाने लगती है. सोनू की नज़रों के सामने उसके माँ की चौड़ी चुतड उठ के दिखने लगती है जो साड़ी के अन्दर कैद है. सोनू माँ की चुतड को घूरता हुआ अपना हाथ चड्डी में दाल देता है और लंड की चमड़ी निचे खींच के लंड के मोटे टोपे को बिस्तर पे दबा देता है. माँ की चुतड को देखते हुए सोनू लंड के टोपे को एक बार जोर से बिस्तर पे दबाता है और वैसे ही अपनी कमर का जोर लगा के रखता है मानो वो असल में ही अपनी मम्मी की गांड के छेद में अपना लंड घुसाने की कोशिश कर रहा हो. उमा जसी हे कपडे ठीक करके सोनू की तरफ घुमती है, सोनू झट से हाथ चड्डी से बाहर निकाल लेता है और आँखे बंद कर लेता है.

उमा : नहीं सुनेगा तू सोनू? (उमा कड़क आवाज़ में कहती है)

सोनू : अच्छा मम्मी आप जाइये. मैं २ मिनट में आता हूँ.

उमा : अगर तू २ मिनट में नहीं आया तो तुझे आज नाश्ता नहीं मिलेगा. मेरे ही लाड़ प्यार से इसे बिगाड़ दिया है. ना मैं इसे सर पे चढ़ाती, ना ये बिगड़ता..(उमा बडबडाते हुए कमरे से बाहर चली जाती है)

वहां छत पर उर्मिला बाबूजी की लंगोट पर नज़रे गड़ाए हुए है. वो लंगोट के उभरे हुए हिस्से को देख कर लंड के साइज़ का अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रही है. "९ इंच ... ना ना ...१० से ११ इंच का तो होगा ही. जिस लड़की पर भी बाबूजी चड़ेंगे, पसीना छुडवा देंगे". तभी बाबूजी ज़मीन पर सीधा हो कर लेट जाते हैं और दंड पेलने लगते है. बाबूजी की कमर ज़मीन से बार बार ऊपर उठ कर फिर से ज़मीन पर पटकन ले रही हैं. उर्मिला ये नज़ारा गौर से देख रही है. एक बार तो उसका दिल किया की दौड़ के बाबूजी के निचे लेट जाए और साड़ी उठा के अपनी टाँगे खोल दें. लेकिन वो बेचारी करती भी क्या? समाज के नियम उसे ऐसा करने से रोक रहे थे. एक बार को वो उन नियमो को तोड़ भी देती पर क्या बाबूजी उसे ऐसा करने देंगे? उसके दिमाग में ये सारी बातें और सवाल घूम रहे थे. निचे उसकी बूर चिपचिपा पानी छोड़ने लगी थी. बैठे हुए उर्मिला ने साड़ी निचे से जांघो तक उठाई और झुक के अपनी बूर को देखने लगी. उसकी बूर के ऊपर घने और दोनों तरफ हलके काले घुंगराले बाल थे. उसकी बूर डबल रोटी की तरह फूल गई थी और बूर की दरार से चिपचिपा पानी रिस रहा था. उर्मिला ने अपनी बूर को देखते हुए धीरे से कहा, "लेगी बाबूजी का लंड? बहुत लम्बा और मोटा है, गधे के लंड जैसा. लेगी तो पूरी फ़ैल जाएगी. बोल...फैलवाना है बाबूजी का लंड खा के?". अपने ही मुहँ से ये बात सुन के उर्मिला मुस्कुरा देती है फिर वो बाबूजी के लंगोट को देखते हुए २ उँगलियाँ अपनी बूर में ठूँस देती है. बाबूजी के हर दण्ड पेलने पर उर्मिला अपनी कमर को आगे की और झटका देती है और साथ ही साथ दोनों उंगलियों को बूर की गहराई में पेल देती है. उर्मिला बाबूजी के दंड पेलने के साथ ताल में ताल मिलाते हुए अपनी कमर को झटके दे रही है और उंगलियों को बूर में ठूंस रही है. उर्मिला ने ऐसा ताल मिलाया था की अगर उसे बाबूजी के निचे ज़मीन पर लेटा दिया जाए तो बाबूजी के हर दंड पर उसकी कमर उठे और उनका लंड जड़ तक उर्मिला की बूर में घुस जाये.

बाबूजी के १०-१५ दंड पलते ही उर्मिला की उंगलियों ने राजधानी की रफ़्तार पकड़ ली. वो इतनी मदहोश हो चुकी थी की उससे पता ही नहीं चला की कब वो ज़मीन पर दोनों टाँगे खोले लेट गई और उसी अवस्था में अपनी बूर में दोनों उँगलियाँ पेले जा रही है. "ओह बाबूजी...!! एक दो दंड मुझ पर भी पेल दीजिये ना...!! आहsss..!!". उर्मिला अपने होश खो कर बडबडाने लगी थी. कुछ ही पल में उसका बदन अकड़ने लगा और कमर अपने आप ही झटके खाने लगी. एक बार उसके मुहँ से "ओह बाबूजी... आहssssss" निकला और उसकी बूर गाढ़ा सफ़ेद पानी फेकने लगी. पानी इतनी जोर से निकला की कुछ छींटे सामने वाली दिवार पर भी पड़ गए. कुछ ही पल में उर्मिला को होश आया और उसने ज़मीन पर पड़े हुए ही बाबूजी को देखा तो वो अब भी दंड पेल रहे थे. उर्मिला झट से उठी और अपनी साड़ी से बूर और फिर दिवार को साफ़ किया. साड़ी को ठीक करते हुए वो तेज़ कदमो से सीढीयों से निचे उतरने लगी.

(कहानी जारी है. शुरुआत कैसी है कृपया कर के बतायें )
Ye to lagta hai babuji ka lund lekar hi manegi urmila apne sasur se chudwayegi uffffffffffff
 
169
476
78
इस कहानी के अपडेट कब तक आएंगे..

इंतजार में लन्ड अकड़ कर मुरझा जाता है।अब तो आ जाओ पानी निकालने 💧💧
 
  • Love
Reactions: Sanjay dutt

Hunk1988

Active Member
1,771
2,055
144
प्रिय पाठकों,

मस्तरानी का आप सभी को प्यार भरा नमस्कार |

इस कहानी का नाम है, "घर की जवान बूरें और मोटे लंड"
आशा करती हूँ की ये कहानी आप सभी को बहुत पसंद आएगी और इसे आप सभी का बहुत प्यार मिलेगा |

तो और वक़्त ज़ाया ना करते हुए मैं इस कहानी की शुरुवात करने जा रही हूँ |

घर की जवान बूरें और मोटे लंड


चेतावनी : ये कहानी पारिवारिक रिश्तों की कामुकता पर आधारित है जो समाज के नियमों के खिलाफ है | अगर आप ये पसंद नहीं करते तो ये आपके लिए बिलकुल भी नहीं है |

संसार में बूर और लंड का रिश्ता सबसे प्यारा होता है | लंड हमेशा से ही अपनी पत्नी और गर्लफ्रेंड की बूरों से अपनी प्यास बुझाते आये हैं, ठीक वैसे ही बूरें भी अपने पति और बॉयफ्रेंड से अपनी प्यास बुझती आईं हैं | लेकिन बुर या लंड पत्नी, गर्लफ्रेंड, पति, बॉयफ्रेंड के अलावा किसी और का हो तो मजा दुगना हो जाता है| जैसे पड़ोसन, पड़ोसी, शिक्षक, शिक्षिका इत्यादि... |

लेकिन एक बूर और लंड को सबसे ज्यादा मज़ा उनके अपने ही परिवार के लंड और बूरें ही दे सकती हैं | किसी भी मर्द का लंड सबसे विकराल रूप तभी लेता है जब उसके सामने जो बूर है वो उसकी अपनी सगी बेटी, बहन या माँ की हो | ठीक वैसे ही किसी भी लड़की या औरत की बूर अपने आप खुल के सबसे ज्यादा तभी रिसती है जब उसके सामने जो लंड है वो उसके अपने सगे बाप, भाई या बेटे का हो |

ये कहानी भी एक परिवार के ऐसे ही कुछ बुरों और लंडों की है जो समाज के नियमो को तार तार करते हुए चुदाई का अनोखा आनंद लेते हैं |

कहानी रामपुर के एक उच्च मध्यम परिवार की है | कहानी के किरदार कुछ इस प्रकार हैं |

पिता : रमेश सिंह ; उम्र ५२ साल. एक किराने की दूकान चलाते हैं. १० साल पहले तक वो अपने खेतों में काम भी करते थे और कसरत भी इसलिए बदन ५२ साल की उम्र में भी उनका बदन कसा हुआ है.

माँ : उमा देवी ; उम्र ४८ साल. घर को संभालने के अलावा वो हिसाब किताब का भी ध्यान रखती है. ज्यादा पढ़ी लिखी ना होने पर भी उसे दुनियादारी की समझ है .

बेटा (बड़ा) : रौनक सिंह ; उम्र २६ साल. एक प्राइवेट कंपनी में काम करता है. सेल्स में होने के कारण वो ज्यादातर टूर पे ही रहता है. वो एक जिम्मेदार बेटा है.

बहु : उर्मिला सिंह ; उम्र २४ साल. अपनी सास के साथ घर संभालती है. १ साल पहले ही शादी कर के इस घर घर में आई थी और जल्द हे सबकी चहेती बन गई है. गोरा रंग, सुड़ौल बदन और अदाएं ऐसी की किसी भी मर्द के होश उड़ा दे.

बेटी/बहन : पायल सिंह ; उम्र २१ साल. बी.ए फर्स्ट इयर की क्षात्रा. इसी साल कॉलेज में एडमिशन लिया है. पायल इस कहानी की मुख्य पात्र भी है. गोरा रंग, भरी हुई चुचियां, पतली कमर और उभरी हुई चुतड देख के उसके कॉलेज के लड़को को अपने बैग सामने टांगने पड़ते हैं.

बेटा (छोटा): सोनू सिंह ; उम्र १८ ; १२ वीं कक्षा का क्षात्र. अव्वल दर्जे का कमीना. स्कूल में लडकियों की स्कर्ट में हमेशा झांकता रहता है. उसके बैग में हमेशा गन्दी कहानियों की ३-४ किताबें रहती है.


सुबह के ६ बजे रहे है. सूरज की पहली किरण खिड़की से होते हुए उर्मिला की आँखों पर पड़ती है. उर्मिला टीम-टीमाती हुई आँखों से एक बार खिड़की से सूरज की और देखती है और फिर एक अंगडाई लेते हुए बिस्तर पर बैठ जाती है. हांफी लेते हुए उर्मिला की नज़र पास के टेबल पर रखी रौनक की तस्वीर पर जाती है तो उसके चेहरे पे हलकी सी मुस्कान आ जाती है. अपनी हथेली को ओठो के निचे रख के वो रौनक की तस्वीर को एक फ्लाइंग किस देती है और अपनी नाईटी ठीक करते हुए बाथरूम में घुस जाती है.

७ बज चुके है. नाश्ता लगभग बन चूका है और गैस पे चाय बन रही है. उर्मिला तेज़ कदमो के साथ अपनी ननद पायल के कमरे की तरफ बढती है. दरवाज़ा खोल के वो अन्दर दाखिल होती है. सामने बिस्तर पे पायल एक टॉप और पजामे में सो रही है. करवट हो कर सोने से पायल की चौड़ी चुतड उभर के दिख रही है. उर्मिला पायल की उभरी हुई चूतड़ों को ध्यान से देखती है. उसके चेहरे पे मुस्कान आ जाती है. वो मन ही मन सोचती है, "देखो तो कैसे अपनी चौड़ी चूतड़ को उठा के सो रही है. किसी मर्द की नज़र पड़ जाये तो उसका लंड अभी सलामी देने लगे". उर्मिला उसके करीब जाती है और एक चपत उसकी उठी हुई चुतड पे लगा देती है.

उर्मिला : ओ महारानी ... ७ बज गए है. (पायल की चुतड को थपथपाते हुए) और इसे क्यूँ उठा रखा है? कॉलेज नहीं जाना?

पायल: (दोनों हाथो को उठा के अंगडाई लेते हुए उर्मिला भाभी की तरफ देखती है. टॉप के ऊपर से उसकी बड़ी बड़ी चुचियां ऐसे उभर के दिख रही है जैसे टॉप में किसी ने दो बड़े गोल गोल खरबूजे रख दिए हो) उंssss
भाभी...बस ५ मिनट और सोने दीजिये ना प्लीज..!! कल रात देर तक पढाई की थी. बस भाभी ..और ५ मिनट....(पायल गिडगिडाते हुए कहती है).

उर्मिला : अच्छा बाबा ठीक है.. लेकिन सिर्फ ५ मिनट. अगर ५ मिनट में तू अपने कमरे से बाहर नहीं आई तो मई मम्मीजी को भेज दूंगी. फिर तो तुझे सुबह सुबह भजन सुनाएगी तो तेरी नींद अपने आप ही खुल जाएगी (उर्मिला हँसते हुए कहती है)

पायल : नहीं भाभी प्लीज. मैं पक्का ५ मिनट में उठ जाउंगी. आप मम्मी से मत बोलियेगा.

उर्मिला : हाँ हाँ नहीं कहूँगी. पर तू ५ मिनट में उठ जाना.

पायल : हाँ भाभी... (फिर पायल तकिये के निचे सर छुपा के सो जाती है और पायल कमरे से बाहर चली जाती है)

उर्मिला रसोई में आती है तो उसकी सास उमा देवी चाय को कप में डाल रही है.

उर्मिला: अरे मम्मी जी ... मैं तो बस पायल को उठा के आ ही रही थी. आप जाईये और टीवी देखिये. आपके प्रवचन का टाइम हो गया है.

उमा : कोई बात नहीं बेटी. थोडा काम मुझे भी तो कर लेने दिया कर. सारा काम तो तू ही करती है घर का (उमा देवी बड़े हे प्यार से उर्मिला से कहती है)

उर्मिला : कप मुझे दीजिये मम्मी जी... मैं सोनू को भी उठा देती हूँ. ये दोनों भाई बहन बिना उठाये उठते ही नहीं है.

उमा : सोनू को मैं उठा दूंगी. तू ये कप ले और पहले अपने बाबूजी को चाय दे दे. बूढ़े हो चले हैं लेकिन अब भी इनकी जवानी नहीं गई. इस उम्र में लोग सुबह सैर सपाटे के लिए जाते है और एक ये हैं की कसरत करेंगे (उमा देवी मुह बनाते हुए कहती है)

उर्मिला : (हँसते हुए) मम्मी जी आप भी ना..बस...!! ५२ साल की उम्र में भी बाबूजी कितने हट्टे-कट्ठे लगते है. उनके सामने तो आजकल के जवान लड़के भी मात खा जाए. आप तो बस यूँ ही बाबूजी को भला-बुर कहती रहती हैं (उर्मिला के चेहरे पर हलकी सी मायूसी आ जाती है)

उमा : (उर्मिला की ठोड़ी को पकड़ के उसका चेहरा प्यार से उठा के कहती है) अरे मेरी बहुरानी को बुरा लग गया? अच्छा बाबा अब नहीं कहूँगी तेरे बाबूजी के बारें में कुछ भी. अब ठीक है? (उमा देवी की बात सुनके उर्मिला के चेहरे पे मुस्कान वापस आ जाती है. उसकी मुस्कान देख के उमा कहती है) इतनी सुन्दर और प्यारी बहु मिली है मुझे. सबका कितना ख्याल रखती है. नहीं तो आज कल कौनसी बहु अपने सास ससुर का इतना ख्याल रखती है?

उर्मिला : क्यूँ ना रखूँ मम्मी जी? आप दोनों ने हमेशा से ही मुझे अपनी बहु नहीं बेटी माना है तो मेरा भी तो फ़र्ज़ है की मैं आप दोनों को अपने माता पिता का दर्ज़ा दू. कप दीजिये.. मैं बाबूजी को है दे कर आती हूँ. वैसे बाबूजी हैं कहाँ?

उमा : छत पर होंगे और कहाँ ? कर रहे होंगे अपने कसरत की तैयारी.

उमा देवी की बात सुनके उर्मिला हँस देती है और छत की सीढीयों की ओर बढ़ जाती है.

छत पर रमेश अपने कसे हुए बदन पर सरसों का तेल लगा रहा है. खुला बदन, निचे एक सफ़ेद धोती जो घुटनों तक उठा राखी है. सूरज की रौशनी में उसका तेल से भरा बदन जैसे चमक रहा है. उर्मिला चाय का कप ले कर छत पर आती है और उसकी नज़र बाबूजी के नंगे सक्त बदन पर पड़ती है. वैसे उर्मिला ने बाबूजी को कई बार इस हाल में देखा है, उनके बदन को कई बार दूर से निहारा भी है. रौनक का घर से दूर रहना उर्मिला के इस बर्ताव के कई कारणों में से एक था. उर्मिला कुछ पल बाबूजी के बदन को दूर से ही निहारती है फिर चाय ले कर उनके पास जाती है.

उर्मिला : ये लीजिये बाबूजी आपकी चाय (चाय पास के टेबल पर रखते हुए कहती है)

रमेश : सही टाइम पे चाय लायी हो बहु. मैं अभी कसरत शुरू करने हे वाला था. ५ मिनट बाद आती तो शायद नहीं पी पाता.

उर्मिला : (बाबूजी की बात सुनके उर्मिला का मुह छोटा हो जाता है. वो जानती है की बाबूजी कसरत सिर्फ लंगोट पहन के करते है. अगर वो ५ मिनट के बाद आती तो बाबूजी को लंगोट में देखने का आनंद ले पाती) आपकी बहु हूँ बाबूजी. आपकी सुबह की चाय कैसे मिस होने देती?

रमेश : (हँसते हुए) हहाहाहा... बहु..सही कहा तुमने. इसलिए तो मैं हमेशा कहता हूँ की मेरी एक नहीं दो बेटियां है.

उर्मिला : ये तो आप हो बाबूजी जो अपनी बहु को बेटी का दर्ज़ा दे रहे हो, नहीं तो लोग तो अपनी बहु को नौकरानी बना के रखते है.

रमेश : ना ना बहु...तू है ही इतनी सुन्दर...और प्यारी. कोई ऐसी बहु को नौकरानी बना के रखता है क्या भला?

बाबूजी की बात सुनके उर्मिला उनके पैर पढने के लये निचे झुकती है. नहाने के बाद उर्मिला ने जो ब्लाउज पहना है उसका गला थोडा गहरा है. झुकने से साड़ी का पल्लू निचे गिर जाता है जिसे उर्मिला सँभालने की जरा भी कोशिश नहीं करती. गहरे गले के ब्लाउज से उर्मिला के तरबूज जैसी चुचियों के बीच की गहराई साफ़ दिखने लगती है. बाबूजी की नज़र जैसे ही उर्मिला की बड़ी बड़ी चुचियों के बीच की घाटी पे पड़ती है उनकी आँखे बड़ी और थूक गले में अटक जाता है. रमेश ने वैसे बहुत सी लडकियों और औरतों को अपने लंड का पानी पिलाया है लेकिन अपनी बहु की जवानी के सामने वो सब पानी भारती है. किसी तरह से रमेश थूक को गले से निचे उतारते हुए कहता है.

रमेश : अरे बस बस बहु. मेरा आशीर्वाद तो हमेशा तेरे साथ है. (बहु के सर पे हाथ रख के आशीर्वाद देने के बाद रमेश उर्मिला के दोनों कंधो को पकड़ के उसे उठाता है) जुग जुग जियो बहु..सदा सुहागन रहो...

उर्मिला : (मुस्कुराते हुए नज़रे झुका के अपना पल्लू ठीक करती है) अच्छा बाबूजी... मैं अब चलती हु. मम्मी जी की रसोई में मदद कर दूँ.

रमेश : हाँ बहु..तुम जाओ. मैं भी अपनी कसरत कर लेता हूँ.

उर्मिला धीरे धीरे सीढीयों की तरफ बढ़ने लगती है. "उफ़ ..!! बाबूजी कैसे मेरी बड़ी बड़ी चुचियों के बीच की गहराई में झाँक रहे थे. उनका लंड तो पक्का धोती में करवटें ले रहा होगा". उर्मिला के दिल में ये ख्याल आता है. उसके कदम सीढीयों से उतरते हुए अपने आप ही थम जाते है. कुछ सोच कर वो दबे पावँ छत के दरवाज़े के पास जाती है और वहीं दिवार की आड़ में बैठ जाती है. थोड़ी दूरी पर बाबूजी खड़े है. चाय की ३-४ चुस्कियां ले कर वो कप टेबल पर रख देते है और अपनी धोती की गाँठ खोलने लगते हैं. उनकी पीठ उर्मिला की तरफ है. धोती खोल कर पास पड़ी खाट पर डालने के बाद बाबूजी अपने दोनों हाथों को कन्धों की सीध में लाते हैं और फिर अपने शारीर के उपरी हिस्से को दायें बाएं करने लगते है. जैसे से बाबूजी दाई तरफ मुड़ते हैं, उर्मिला की नज़र उनके लंगोट के आगे वाले हिस्से पर पड़ती है. उर्मिला के मुह से हलकी आवाज़ निकल जाती है, "हाय दैया ...!!". लंगोट का अगला हिस्सा फूल के उभरा हुआ है, करीब ३-४ इंच. लंगोट के उभार के दोनों तरफ से कुछ काले सफ़ेद बाल दिखाई पड़ रहे है. "उफ़..!! लंगोट का उभार ही ३-४ इंच का है तो बाबूजी का ल ....हे भगवान्....पता नहीं मम्मी जी ने कैसे झेला होगा इसे...". उर्मिला अपने आप में ही बडबडाने लगती है. उसकी नज़र लंगोट के उस उभरे हुए हिस्से पे मानो फंस सी जाती है.

वहां छत पर उर्मिला अपनी दुनिया में खोई हुई है और यहाँ उमा देवी चाय का कप ले कर अपने बेटे सोनू के कमरे तक पहुँच गई है. वो कमरे में घुसती है. सामने सोनू बिस्तर पे चादर ओढ़ के पड़ा हुआ है.

उमा : लल्ला...!! सोनू बेटा..!! उठ जा..आज स्कूल नहीं जाना है क्या?

सोनू : (आँखे खोल के एक बार मम्मी को देखता है और फिर आँखे बंद कर लेता है) मम्मी अभी सोने दीजिये ना...

उमा : (कप टेबल पे रख के) चुप कर..बड़ा आया अभी सोने दीजिये ना वाला..चल उठ जल्दी से...७:३० हो गए है. अभी सोता रहेगा फिर पायल से लडेगा नहाने के लिए....और ये टेबल कितना गन्दा कर रखा है. किताबें तो ठीक से रखा कर बेटा..

उमा टेबल पे रखी किताबें ठीक करने लगती है. जैसे हे वो निचे गिरी किताब उठाने के लिए झुकती है, उसके लो कट ब्लाउज के गले से उसकी फुटबॉल जैसी चुचियों के बीच की गहराई दिखने लगती है. कमीना सोनू रोज इसी मौके का इंतज़ार करता है. अपनी माँ के ब्लाउज में झांकते हुए वो दोनों चुचियों का साइज़ मापने लगता है. चादर के अन्दर उसका एक हाथ चड्डी के ऊपर से लंड को मसल रहा है. उमा किताब उठा के टेबल पे रखती है और दूसरी तरफ घूम के कुर्सी पे रखे कपडे झुक के उठाने लगती है. सोनू की नज़रों के सामने उसके माँ की चौड़ी चुतड उठ के दिखने लगती है जो साड़ी के अन्दर कैद है. सोनू माँ की चुतड को घूरता हुआ अपना हाथ चड्डी में दाल देता है और लंड की चमड़ी निचे खींच के लंड के मोटे टोपे को बिस्तर पे दबा देता है. माँ की चुतड को देखते हुए सोनू लंड के टोपे को एक बार जोर से बिस्तर पे दबाता है और वैसे ही अपनी कमर का जोर लगा के रखता है मानो वो असल में ही अपनी मम्मी की गांड के छेद में अपना लंड घुसाने की कोशिश कर रहा हो. उमा जसी हे कपडे ठीक करके सोनू की तरफ घुमती है, सोनू झट से हाथ चड्डी से बाहर निकाल लेता है और आँखे बंद कर लेता है.

उमा : नहीं सुनेगा तू सोनू? (उमा कड़क आवाज़ में कहती है)

सोनू : अच्छा मम्मी आप जाइये. मैं २ मिनट में आता हूँ.

उमा : अगर तू २ मिनट में नहीं आया तो तुझे आज नाश्ता नहीं मिलेगा. मेरे ही लाड़ प्यार से इसे बिगाड़ दिया है. ना मैं इसे सर पे चढ़ाती, ना ये बिगड़ता..(उमा बडबडाते हुए कमरे से बाहर चली जाती है)

वहां छत पर उर्मिला बाबूजी की लंगोट पर नज़रे गड़ाए हुए है. वो लंगोट के उभरे हुए हिस्से को देख कर लंड के साइज़ का अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रही है. "९ इंच ... ना ना ...१० से ११ इंच का तो होगा ही. जिस लड़की पर भी बाबूजी चड़ेंगे, पसीना छुडवा देंगे". तभी बाबूजी ज़मीन पर सीधा हो कर लेट जाते हैं और दंड पेलने लगते है. बाबूजी की कमर ज़मीन से बार बार ऊपर उठ कर फिर से ज़मीन पर पटकन ले रही हैं. उर्मिला ये नज़ारा गौर से देख रही है. एक बार तो उसका दिल किया की दौड़ के बाबूजी के निचे लेट जाए और साड़ी उठा के अपनी टाँगे खोल दें. लेकिन वो बेचारी करती भी क्या? समाज के नियम उसे ऐसा करने से रोक रहे थे. एक बार को वो उन नियमो को तोड़ भी देती पर क्या बाबूजी उसे ऐसा करने देंगे? उसके दिमाग में ये सारी बातें और सवाल घूम रहे थे. निचे उसकी बूर चिपचिपा पानी छोड़ने लगी थी. बैठे हुए उर्मिला ने साड़ी निचे से जांघो तक उठाई और झुक के अपनी बूर को देखने लगी. उसकी बूर के ऊपर घने और दोनों तरफ हलके काले घुंगराले बाल थे. उसकी बूर डबल रोटी की तरह फूल गई थी और बूर की दरार से चिपचिपा पानी रिस रहा था. उर्मिला ने अपनी बूर को देखते हुए धीरे से कहा, "लेगी बाबूजी का लंड? बहुत लम्बा और मोटा है, गधे के लंड जैसा. लेगी तो पूरी फ़ैल जाएगी. बोल...फैलवाना है बाबूजी का लंड खा के?". अपने ही मुहँ से ये बात सुन के उर्मिला मुस्कुरा देती है फिर वो बाबूजी के लंगोट को देखते हुए २ उँगलियाँ अपनी बूर में ठूँस देती है. बाबूजी के हर दण्ड पेलने पर उर्मिला अपनी कमर को आगे की और झटका देती है और साथ ही साथ दोनों उंगलियों को बूर की गहराई में पेल देती है. उर्मिला बाबूजी के दंड पेलने के साथ ताल में ताल मिलाते हुए अपनी कमर को झटके दे रही है और उंगलियों को बूर में ठूंस रही है. उर्मिला ने ऐसा ताल मिलाया था की अगर उसे बाबूजी के निचे ज़मीन पर लेटा दिया जाए तो बाबूजी के हर दंड पर उसकी कमर उठे और उनका लंड जड़ तक उर्मिला की बूर में घुस जाये.

बाबूजी के १०-१५ दंड पलते ही उर्मिला की उंगलियों ने राजधानी की रफ़्तार पकड़ ली. वो इतनी मदहोश हो चुकी थी की उससे पता ही नहीं चला की कब वो ज़मीन पर दोनों टाँगे खोले लेट गई और उसी अवस्था में अपनी बूर में दोनों उँगलियाँ पेले जा रही है. "ओह बाबूजी...!! एक दो दंड मुझ पर भी पेल दीजिये ना...!! आहsss..!!". उर्मिला अपने होश खो कर बडबडाने लगी थी. कुछ ही पल में उसका बदन अकड़ने लगा और कमर अपने आप ही झटके खाने लगी. एक बार उसके मुहँ से "ओह बाबूजी... आहssssss" निकला और उसकी बूर गाढ़ा सफ़ेद पानी फेकने लगी. पानी इतनी जोर से निकला की कुछ छींटे सामने वाली दिवार पर भी पड़ गए. कुछ ही पल में उर्मिला को होश आया और उसने ज़मीन पर पड़े हुए ही बाबूजी को देखा तो वो अब भी दंड पेल रहे थे. उर्मिला झट से उठी और अपनी साड़ी से बूर और फिर दिवार को साफ़ किया. साड़ी को ठीक करते हुए वो तेज़ कदमो से सीढीयों से निचे उतरने लगी.

(कहानी जारी है. शुरुआत कैसी है कृपया कर के बतायें )
Bilkul real scene create kr diya yr aapne,lgta h kahani k kirdar me padhne wala khud hi h
 
Top