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♥ ? ? ? घर की जवान बूरें और मोटे लंड - [ Incest - घरेलू चुदाई की कहानी ] ???♥ ***INDEX*** |
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♥ ? ? ? घर की जवान बूरें और मोटे लंड - [ Incest - घरेलू चुदाई की कहानी ] ???♥ ***INDEX*** |
चुददम चुदाई से ज्यादा मजा तो ऐसे ही आरहा हैं, बहुत ही बढ़िया विस्तार से लिख रहीं हैं आपअपडेट ४१:
'भैया मेरे....राखी के बंधन को निभानाssss...., भैया मेरे....छोटी बहन को न भुलानाssss......., देखो ये वादा निभाना, निभानाsssss.....भैया मेरे....राखी के बंधन को निभानाssss......!!'
सुबह के ८ बज रहे थे. ये सुबह भाई-बहन के पवित्र रिश्ते और प्यार की, मतलब रक्षाबंधन की थी. आस-पास के घरों से रक्षाबंधन के गीत की मधुर आवाज़ यहाँ तक आ रही थी. ऊपर वाले बड़े से बेडरूम में सारी बहने तैयार हो रही थी. उर्मिला, पायल और खुशबू ने रक्षाबंधन के लिए जो कपडे लिए थे वो बिस्तर पर रखे हुए थे. वहीँ पास बैठी कम्मो एक-एक हाथ में दो अलग-अलग कपडे लिए कुछ सोच रही थी. कुछ देर सोचने के बाद वो उर्मिला के पास दोंनो कपड़ो को ले कर पहुँच जाती है.
कम्मो: भाभी...!! मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है. आप बताइए ना मैं कौनसी ड्रेस पहनू?
उर्मिला: (आईने में देखकर बाल बनाते हुए) अपने लिए खुद ही पसंद की थी तो अब इतना क्या सोच रही है?
कम्मो: पता नहीं भाभी. एक बार आप देखिये ना....
उर्मिला: (उसकी तरफ घूमकर) अच्छा ला, दिखा कौनसे कपडे है.
उर्मिला कम्मो के हाथों से कपड़ों को लेती है और ध्यान से देखने लगती है. कुछ देर गौर से देखने के बाद कहती है.
उर्मिला: तू आज ये कपडे पहनेगी?
कम्मो: (बड़ी-बड़ी आँखों से) हाँ भाभी...क्या हुआ?
उर्मिला: (आँखे ऊपर चडाकर लम्बी सांस छोड़ते हुए) तू भी ना कम्मो...!! रक्षाबंधन के दिन बहने क्या ऐसे कपडे पहना करती है?
कम्मो: हाँ भाभी. मैं तो रक्षाबंधन के दिन ऐसे ही कपडे पहनती हूँ.
उर्मिला: वो इसलिए कम्मो क्यूंकि तू रक्षाबंधन अपने घर में सबके सामने मनाती है. यहाँ पर घर का कोई भी नहीं है. सिर्फ हम चार बहने और हमारे भाई हैं. यहाँ पर ऐसे कपडे नहीं चलेंगे.
कम्मो: (आश्चर्य से) वो क्यूँ भाभी?
उर्मिला: अब तुझे समझाने के वक़्त नहीं है मेरे पास. (खुशबू की तरफ घूमकर) खुशबू....!!
खुशबू: जी भाभी...?
उर्मिला: तेरे पास कम्मो महारानी के लिए कोई अच्छी सी डीप कट और बिना बाहं वाली चोली है?
खुशबू: (मुस्कुराते हुए) हाँ भाभी, है ना. बैकलेस वाली चलेगी ना?
उर्मिला: (खुश होते हुए) दौड़ेगी खुशबू रानी...ला दे मुझे....!
खुशबू अपने बैग से एक चोली निकालकर उर्मिला को देती है. उर्मिला उस चोली को देखकर खुश हो जाती है और फिर कम्मो को देते हुए कहती है.
उर्मिला: ये ले...ये पहन...
कम्मो: पर भाभी....ये...? ऐसे कपडे तो मैं कभी रक्षाबंधन के दिन नहीं पहनती हूँ.
खुशबू: (हँसते हुए) अरे पहन ले कम्मो. कम से कम तुझे ये तो पहनने मिल रहा है, अगर अभी मैं भैया के साथ अपने घर पर होती तो शायद कुछ भी नहीं पहनने मिलता मुझे.
खुसबू की इस बात पर सभी जोर-जोर से हंसने लगते है. उर्मिला कम्मो के सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहती है...
उर्मिला: पहन ले कम्मो....! वैसे भी बाद में तो सब उतरने ही वाला है.
इस बात पर तो सभी लडकियां खिलखिला कर हँसने लगती है. फिर सभी अपने-अपने कपडे पहनने लगती है तो उर्मिला उन्हें याद दिलाती है.
उर्मिला: याद हैं न सबको? ब्रा और पैन्टी कोई नहीं पहनेगा.....
पायल, खुशबू और कम्मो एक दुसरे की तरफ देखकर मुस्कुरा देती है और फिर एक साथ जवाब देती है, "हाँ भाभी...याद है...!!"
सभी बहने लहंगा और चोली पहन लेती है जो उन्होंने बाज़ार में पसंद किया था. शुक्र था की खुशबू की दी हुई चोली कम्मो को बिलकुल फिट आई थी और क्यूँ न आती. दोनों की चुचियाँ जो एक जैसी बड़ी-बड़ी थी. उर्मिला की नज़र पायल पर पड़ती है. उसकी चोली का डिजाईन और बनावट देखकर उर्मिला का मन प्रसन्न हो जाता है. वो पायल के पास जाती है और उसके सर पर हाथ रखते हुए कहती है.
उर्मिला: बहुत प्यारी लग रही है तू पायल. तेरी चोली तो कयामत ढा देगी. आज तो सोनू की खैर नहीं.
पायल: (शर्माते हुए) थैंक यू भाभी...!!
तभी खुशबू भी वहां आ जाती है और उर्मिला की चोली देखकर ताना मारते हुए कहती है.
खुशबू: पायल की चोली तो क़यामत ढा ही देगी भाभी, पर आज आपको क्या हुआ है?
उर्मिला: (मुहँ बनाते हुए) मुझे..? मुझे कुछ क्यूँ होने लगा..?
खुशबू: ये आपकी चोली बार-बार फिसली क्यूँ जा रही है भाभी?
उर्मिला: (शर्माकर अपनी चोली ठीक करते हुए) कहाँ फिसल रही है? कुछ भी बोलती है तू....
खुशबू की बात सुनकर अब पायल भी मैदान में कूद पड़ती है. उर्मिला भाभी को छेड़ने का उसके लिए ये अच्छा मौका था.
पायल: ओये-होय भाभी...!! आपके गालों पर ये लाली कैसी? (उर्मिला की चोली की डोर पकड़ते हुए) और ये तो देखो जरा...इतने भारी दूध का बोझ इस छोटी सी चोली पर और सबका बोझ इस अकेली पतली सी डोर पर. कहीं राजू भैया ने डोर की गाँठ छु भी दी तो चोली एक ही झटके में ज़मीन पर होगी.
पायल की बात सुनकर खुशबू, कम्मो और पायल हंसने लगती है. अब तो उर्मिला के गालो की लाली का रंग और भी गहरा हो जाता है. गालो का ऐसा लाल रंग तो शायद उसकी सुहागरात में भी नहीं हुआ होगा. शर्माकर उर्मिला अपना चेहरा दोनों हाथो से छुपा लेती है. वो उर्मिला जो सबके सामने नेतागिरी करते फिरती थी, आज शर्म से लाल हुए जा रही थी. रक्षाबंधन का दिन और अपने छोटे भाई से डेढ़ साल बाद मिलना उर्मिला को अपनी जवानी के दिनों में फिर एक बार ले आया था. उर्मिला हाथ हटाती है और चेहरे पर शर्म और हलकी सी मुस्कान लिए कहती है.
उर्मिला: तुम सब मिलकर मुझे छेड़ रहे हो ना? भगवान करे आज तुम्हारे भाई तुम्हे पटक-पटक कर चोदे.
खुशबू: आप तो हमे बद्दुआ देते-देते दुआ दे गई भाभी.....! (सभी हंसने लगती है)
पायल: और यही दुआ भाभी भगवान से अपने लिए रात भर मांग रही थी.
सभी फिर से हंसने लगती है. उर्मिला भी शर्मा कर हँसती है फिर अपने आप पर काबू पाते हुए कहती है.
उर्मिला: अच्छा चलो, बहुत हो गया हंसी-मजाक. अब जल्दी से तैयारी करो.
सभी लडकियां अपने-अपने काम में लग जाती है. यहाँ बहने तैयारी में लगी थी वहाँ सभी भाई धोती और कुरता पहन कर ड्राइंग रूम में आ चुके थे. सभी सोफे पर बैठ जाते है. राजू घड़ी की और देखता है.
राजू: बड़ी देर लगा दी इन लोगो ने.
सोनू: हाँ राजू भैया. लडकियां तो तैयार होने में देर लगाती ही है ना.
छेदी: अब आज के दिन इतना भी क्या तैयार होना? कुछ देर बाद तो सब कुछ उतरना ही है.
छेदी की बात पर सभी लड़के हँसने लगते है.
राजू: गोलू और सोनू का तो घर से बाहर ऐसा पहला रक्षाबंधन होगा ना?
सोनू: हाँ भैया. अब तक तो घर में ही दीदी के साथ रक्षाबंधन मनाया है.
गोलू: हाँ भैया, मैंने भी.
छेदी: अरे सूखे रक्षाबंधन में क्या मजा है भाई. असली मजा तो तब है जब भाई-बहन रक्षाबंधन के दिन घरवालों की नज़रों से बच के अकेले में रक्षाबंधन मनाये.
राजू: ये बात आपने बिलकुल ठीक कही है छेदी भैया. रक्षाबंधन के दिन जब बहने सज-धज कर भाइयों के सामने आती है तो उनकी जवानी पुरे जोश में होती है.
गोलू: सच छेदी भैया?
छेदी: और नहीं तो क्या. रक्षाबंधन के दिन जितनी गर्मी भाइयों के लंड में नहीं होती है उस से ज्यादा गर्मी बहनों की बूर में होती है. बहनों का बस चले तो रक्षाबंधन के दिन नंगी ही हाथ में राखी की थाल लिए भाइयों के सामने आ जाये.
सोनू: राजू भैया...! आपने तो उर्मिला भाभी के साथ ऐसा रक्षाबंधन बहुत बार मनाया होगा ना?
राजू: बहुत बार मनाया है. पर जब से दीदी की शादी हुई है तब से रक्षाबंधन के दिन दीदी को याद करके दिन भर हिलाता ही रहता था. सुबह से शाम तक न जाने कितनी बार दीदी की याद में पानी निकाल देता था.
सोनू: राजू भैया...! उर्मिला भाभी भी रक्षाबंधन के दिन पूरे जोश में रहती थी क्या?
राजू: अरे पूछ मत सोनू. रक्षाबंधन के दिन उर्मिला दीदी तो पागल हो जाती थी. एक बार माँ और बाबूजी घर पर ही थे. दीदी राखी बाँधने के बहाने मुझे अपने कमरे में ले गई. पीछे-पीछे माँ भी आ गई. दीदी ने किसी बहाने से माँ को कुछ लाने भेजा और माँ के जाते ही मेरा लंड मुहँ में भर लिया. दीदी इतने जोश में थी की लग रहा था मेरा लंड खा ही जाएगी. माँ आ रही थी और उर्मिला दीदी थी की मेरा लंड अपने मुहँ में भरे जा रही थी. मैं दीदी को मन कर रहा था और उन्हें अलग करने की कोशिश कर रहा था पर दीदी इतने जोश में थी की मेरा लंड मुहँ से निकाल हे नहीं रही थी. वो तो मैंने एन वक़्त पर दीदी कर सर पकड़ कर अलग कर दिया वरना उस दिन तो हम पकडे ही जाते.
गोलू: तो राजू भैया उस दिन आप उर्मिला भाभी की चुदाई नहीं कर पाए?
राजू: उर्मिला दीदी बिना चुदवाये मानने वाली थी क्या? अपनी सहेली के घर जाने के बहाने मुझे पास के जंगल में ले गई और नंगी हो कर करीब २ घंटे 'भैया, भैया' चिल्लाते हुए अच्छे से चुदी तब जा कर दीदी को ठंडक पहुंची.
छेदी: ये बात तो बिलकुल सच है की रक्षाबंधन के दिन बहने भाइयों के लंड के लिए पगला जाती है. जब तक बहने अपने भाइयों से पटक-पटक के 'भैया-भैया' चिल्लाते हुए अच्छे से चुदवा नहीं लेती, उनका रक्षाबंधन पूरा नहीं होता.
ये सारी बातें करते हुए भाइयों के लंड धोती में तन्ना गए थे. सोनू और गोलू तो २-३ बार धोती पर से अपने लंड को मसल भी चुके थे. बातों का दौर चल रहा था की अचानक सभी को क़दमों की आहट सुनाई देती है. सभी भाई एक साथ सीढ़ी की ओर देखते है तो उनकी नज़र बहनों पर पड़ती है जो सज-धज कर, हाथ में पूजा की थाल लिए, मुस्कुराते हुए धीरे-धीरे सीढ़ियों से उतर रही थी. सभी अपनी-अपनी बहनों को देखकर भोंचक्के रह जाते है. सभी बहने घागरा और बिना बाहं वाली चोली में क़यामत ढा रही थी.
राजू गौर से उर्मिला को देखता है जो सबसे आगे थी. गोरे बदन पर पीले रंग की घागरा-चोली खिल के दिख रही थी. बड़े-बड़े दूध पर कसी हुई छोटी सी चोली जो एक पतली सी डोर के सहारे पीठ पर बंधी हुई थी. चोली का गला इतना गहरा था की उर्मिला के दूधों के बीच के गहराई साफ़ दिखाई दे रही थी. घगरा कमर के थोडा निचे बंधा होने से उर्मिला की गहरी नाभि भी साफ़ दिख रही थी. आँखों में काजल, माथे पर सोने का टीका, कानो में सोने का झुमका और गले में सोने का हार उर्मिला की सुन्दरता पर चार चाँद लगा रहे थे. सीढ़ियों से उतारते हुए उर्मिला ने जब अपने लाल लिपस्टिक वाले ओंठों को दांतों तले दबा दिया तो राजू की 'आह्ह्ह..!!' निकल गई.
सोनू भी पायल को मंत्रमुग्ध होकर देखे जा रहा था जो उर्मिला के पीछे सीढ़ियों से उतर रही थी. पायल ने लाल रंग का घागरा-चोली पहन रखा था. बिना बाहं वाली चोली पायल के बड़े-बड़े दूध पर कसी हुई थी और चोली के दोनों बड़े-बड़े कटोरे पतली सी डोर से पीठ पर बंधे हुए थे. चोली का निचला हिस्सा भी एक डोर से पीठ पर कसा हुआ था. बिना ब्रा की चोली पहने पायल जैसे एक कदम सीढ़ी पर निचे रखती, चोली में बंधे उसके दूध उच्छल जाते. दूध जैसे ही उच्छल कर निचे आते, चोली के गहरे गले से दूध के बीच के गहराई साफ़ दिख जाती. अपनी दीदी का ये रूप देखकर सोनू का लंड धोती में झटके खाने लगा था.
पायल के पीछे खुशबू चली आ रही थी. खुशबू को देखकर छेदी के मुहँ से पानी टपकने लगा था. हरे रंग का घागरा-चोली पहने खुशबू चली आ रही थी. गहरे गले की बिना बाहं वाली बेकलेस चोली क़यामत ढा रही थी. खुशबू अपने भैया की कमजोरी अच्छे से जानती थी. जैसे ही उसकी नज़र छेदी पर पड़ी वो एक हाथ से घागरा संभालने का नाटक करते हुए आगे झुक गई. बड़े-बड़े दूध के बीच के गहराई पर जैसे ही छेदी की नज़र पड़ी, उसने धोती पर से अपना लंड मसल दिया.
कम्मो अपनी ही मस्ती में सबसे पीछे चली आ रही थी. गुलाबी रंग के घागरा-चोली में कम्मो किसी अप्सरा की तरह दिख रही थी. उसकी चोली भी खुशबू की तरह गहरे गले, बिना बाहं वाली और बेकलेस थी. कम्मो के बड़े-बड़े दूध बिना ब्रा के चोली में किसी तरह समां रहे थे. मस्ती में सीढ़ियों से उतरती कम्मो के हर कदम पर उसके दूध उच्छलते हुए दाँये-बाँये हो रहे थे जिसे देखकर गोलू भी उच्छल पड़ा.
धीरे-धीरे मुस्कुराते हुए सारी बहने निचे आ जाती है. हाथ में पूजा की थाल लिए, चुतड हिलाती हुई सभी बहने भाइयों के पास आने लगती है. छेदी की नज़र खुशबू की हिलती हुई चौड़ी चुतड पर पड़ती है तो वो उसे छेड़ते हुए गाना गाने लगता है.
छेदी: (खुशबू की हिलती हुई चुतड देखते हुए) तौबा ये मतवाली चाल, झुक जाए फूलों की डाल.....
छेदी को गाता देख राजू, सोनू और गोलू भी अपनी-अपनी बहनों की चूतड़ों को देखते हुए छेदी के साथ गाने लगते है.
सभी भाई एक साथ : तौबा ये मतवाली चाल, झुक जाए फूलों की डाल.....चाँद और सूरज आकर माँगें तुझसे रँग-ए-जमाल....हसीना ! तेरी मिसालssssss कहाँsssss...!
भाइयों को चूतड़ों को घूरते हुए गाता देख, सभी बहने भी मस्ती में अपनी चूतड़ों को झटका देते हुए हिलाकर चलने लगती है. सारे भाई एक लम्बे से सोफे पर एक-साथ बैठे हुए थे. बहने चलते हुए उनके सामने थोड़ी दूर पर जा कर खड़ी हो जाती है. एक नजर अपने-अपने भाइयों को देखकर सभी एक दुसरे की तरफ देखकर मुस्कुरा देती है. सभी बहनों का आपस में आँखों ही आँखों में इशारा होता है. एक हाथ से सभी पूजा की थाल उठाये अपने भाइयों को देखते हुए, कमर हिलाते हुए एक साथ रक्षाबंधन का गीत गाने लगती है.
सभी बहने : (पूजा की थाल उठाये, कमर को झटके देते हुए) रंग-बिरंगी राखी लेके आई बहनाsss......ओssss राखी..बँधवा लेss मेरे वीरssss ओssss राखी.. बँधवा लेss मेरे वीरssss
अपनी बहनों की झलकती जवानी और उनके मुहँ से रक्षाबंधन के गीत सुनके भाइयों के लंड भी धोती में डोलने लगते है.बड़ी-बड़ी आँखों से सभी अपनी बहनों के योवन को घूरने लगते है.
सभी बहने : मैं न चाँदी, न सोने के हार माँगूँsss, मैं न चाँदी न भैयाsss सोने के हार माँगू , (सभी अपने भाइयों की टांगो के बीच बने उभार को देखते हुए) अपने भैयाss का थोड़ा सा प्यार माँगू, थोड़ा सा प्यार माँगू.....(सभी बहने आगे झुक कर चोली में छुपे बड़े-बड़े दूध के बीच की गहराई दिखाते हुए) इस राखी में प्यार छुपा के लाई बहनाssss....ओssss...रंग-बिरंगी राखी लेके आई बहनाsss....राखी..बँधवा लेss मेरे वीरssss ओssss राखी.. बँधवा लेss मेरे वीरssss
बहनों की अदा और इस गीत ने तो भाइयों के होश उड़ा दिए थे. आँखे फाड़े और खुले मुहँ से सभी अपनी बहनों को घूरे जा रहे थे. बहने भी मुस्कुराते हुए धीरे-धीरे चलते हुए आती है और थाल एक तरफ रखकर उनके सामने खड़ी हो जाती है.
उर्मिला: (मुस्कुराते हुए राजू से) ऐसे क्या देख रहा है अपनी दीदी को?
राजू: (ऊपर से निचे उर्मिला की जवानी को घूरते हुए) आप कितनी सुन्दर लग रही हो दीदी, किसी अप्सरा की तरह. आपको देखकर किसी का भी मन डोल जाए.
उर्मिला: (राजू की धोती में झटके लेते लंड को देखकर) वो तो मैं देख ही रही हूँ. मन के साथ-साथ कुछ और भी डोल रहा है.
राजू: आप हो ही इतनी सुन्दर तो ये बेचारा भी क्या करे दीदी? थोडा करीब आइये ना...
उर्मिला राजू के करीब आती है. राजू उर्मिला के नंगे गोर सपाट पेट पर हाथ फेरता है. उसकी गहरी नाभि पर अंगूठा फेरते हुए दो उँगलियों से फैला देता है. थोडा झुक कर राजू फैली हुई नाभि के अन्दर झांकता है और फिर सर उठकर उर्मिला को देखता है. उर्मिला भी राजू को देखकर अपने ओंठ काट लेती है. राजू फिर एक बार उँगलियों से फैलाकर उर्मिला की नाभि को देखता है और सर आगे बढ़ाकर अपने गर्म ओंठ नाभि पर रख देता है. उर्मिला सिंहर उठती है. राजू धीरे से अपनी जीभ निकालकर उर्मिला की गहरी नाभि में घुसा देता है. जीभ अन्दर घुमाते हुए एक बार जोर से चूस लेता है. उर्मिला आँखे बंद किये सिसिया देती है.
पास ही पायल भी सोनू के सामने खड़ी थी. निचे रखी थाल से वो कपूर का डिब्बा उठाने झुकती है तो सोनू उसके कंधे पर हाथ रख देता है. पायल वैसे ही आधी झुकी हुई सोनू को देखने लगती है. सोनू तेज़ साँसे लेता हुआ पायल की आँखों में देखने लगता है. पायल भी सोनू की आँखों में देखते हुए खो सी जाती है. अपने सगे छोटे भाई की आँखों में अपनी बहन के लिए प्यार और हवस वो साफ़ देख रही थी. सोनू की नज़र पायल के ओंठों पर पड़ती है जिसपर लाल लिपस्टिक का रंग चड़ा हुआ था. अपनी दीदी के लाल ओंठों को सोनू आंहे भरता हुआ देखता है. अपने अंगूठे को धीरे से पायल के निचले ओंठ पर रखकर सोनू धीरे-धीरे फेरने लगता है. सोनू के अंगूठे से पायल के ओंठ खुल जाते है. पायल सोनू की आँखों में देखते हुए धीरे से जीभ निकालकर उसका अंगूठा चाट लेती है. सोनू भी पायल की आँखों में देखते हुए अपने अंगूठे को पायल के ओंठों के बीच रोक देता है. पायल सोनू की आँखों में देखते हुए एक बार अपनी आँखे छोटी करती है और फिर धीरे से सोनू का अंगूठा अपने ओंठों में भर लेती है. दोनों भाई-बहन एक दुसरे की आँखों में खो से गए थे. पायल सोनू का अंगूठा मुहँ में भरकर चूसने लगी थी. सोनू तेज़ साँसों से पायल को देखे जा रहा था. वो धीरे से अपना अंगूठा पायल के मुहँ से निकालकर बीच वाली ऊँगली उसके मुहँ में डाल देता है जिसे पायल चूसने लगती है. अब सोनू धीरे-धीरे अपनी ऊँगली पायल के मुहँ में अंदर-बाहर करने लगता है. पायल ऊँगली के छोर पर अपनी जीभ घुमाती है तो सोनू दूसरी ऊँगली भी पायल के मुहँ में घुसा देता है. अब पायल भी मस्ती में सोनू की दो उँगलियों को मुहँ में भरे चूसने लगती है. अपने सर को आगे-पीछे करते हुए वो सोनू की दो उंगलियो को मुहँ में अंदर-बाहर करने लगती है.
पास ही खुशबू भी छेदी के सामने आ चुकी थी. छेदी खुशबू के बदन को घुर के देखता है. दोनों हाथों को खुशबू की कमर पर फेरते हुए उसकी चौड़ी चूतड़ों पर ले जाता है और पंजो से दबोच लेता है. सीसीयाते हुए खुशबू अपने हाथों को छेदी के कन्धों पर रख देती है और आगे झुक जाती है. खुशबू के दोनों बड़े-बड़े दूध छेदी के मुहँ के सामने आ जाते है. बिना ब्रा के चोली से उभरते हुए दोनों निप्पल को छेदी घुर के देखता है और फिर धीरे से सर आगे बढ़ा कर दांतों से चोली पर उभरे एक निप्पल को काट लेता है. अपने ओंठ काटते हुए खुशबू सिसिया जाती है. खुशबू के बदन को ऊपर से निचे सूँघता हुआ छेदी उसके जाँघों के बीच आ कर रुक जाता है. खुशबू ने पैन्टी नहीं पहनी थी और उसकी बूर तो पहले से ही पानी छोड़ रही थी. अपनी सगी बहन की बूर से निकलती तेज़ गंध को घागरे के ऊपर से सूँघते ही छेदी पर नशा सा चढ़ जाता है.
कम्मो जैसे ही गोलू के सामने जाती है तो उसकी नज़र धोती में बने बड़े से तम्बू पर पड़ती है. कम्मो को धोती में खड़े लंड को घूरता देख गोलू कमर को एक हल्का सा झटका देता है तो टोपे से पानी की एक बूँद निकलकर धोती पर गीला धब्बा बना देती है. धोती पर गीला धब्बा देखकर कम्मो अपने ओंठ काट लेती है. गोलू कम्मो का एक हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख देता है. कम्मो गोलू का लंड हाथ में पकडे उसकी मोटाई नापने लगती है. आज गोलू का लंड पहले से भी ज्यादा मोटा जान पड़ रहा था. ये रक्षाबंदन और सामने खड़ी जवान बहन का असर था. गोलू आँखों के इशारे से कम्मो को अपना लंड दिखाता है और फिर एक हाथ उसकी चूतड़ों पर ले जा कर जोर से दबा देता है. कम्मो बड़ी-बड़ी आँखे किये गोलू के इशारे को समझने की कोशिश करने लगती है. कम्मो की दुविधा दूर करने के लिए गोलू अपनी कमर को हलके झटके देते हुए लंड उच्छालने लगता है और साथ ही साथ एक ऊँगली घागरे के ऊपर से कम्मो की चूतड़ों के बीच दबाने लगता है. इस बार कम्मो गोलू का इशारा समझ जाती है और उसका मुहँ खुल जाता है.
उधर राजू उर्मिला की नाभि चुसे जा रहा था. उर्मिला भी उसके सर पर हाथ रखे आँखे बंद किया मजा ले रही थी. तभी उसकी आँखे खुलती है और उसकी नज़र सोनू-पायल, छेदी-खुशबू और गोलू-कम्मो पर पड़ती है. उसे ध्यान आता है की अभी तो रक्षाबंधन की कोई रस्म भी नहीं हुई और उसके साथ-साथ बाकी सभी भी शुरू हो गए. वो राजू से अलग होते हुए कहती है.
उर्मिला: अरे अरे...!! रक्षाबंधन है तो बहन से टिका आरती ये सब नहीं करवाओगे क्या?
उर्मिला की बात पर बाकी लोग भी अलग हो जाते है. सभी बहने थाली से रुमाल उठाकर अपने भाइयों के सर पर ओढा देती है. उर्मिला थाल पर रखे लाल-टिके पर ऊँगली घुमाकर राजू के सर पर लगाती है. टिका लागाते वक़्त उर्मिला के हाथ ऊपर होते है और राजू को उसकी बिना बाहं वाली चोली से हलके बालोवाली बगल दिख जाती है. राजू की नज़रे उर्मिला की बगल पर ही रुक जाती है जिसे उर्मिला भी समझ जाती है. टिका लगाकर उर्मिला राजू के सर पर रखा रुमाल ठीक करने के बहाने से आगे झुकती है और दुसरे हाथ को धीरे से उठा देती है. मौका देखकर राजू झट से आगे बढ़कर अपनी नाक सीधे उर्मिला की बगल में घुसा देता है और पसीने की गंध सूंघ लेता है. एक दो बार अच्छे से सूंघने के बाद वो पीछे हो कर उर्मिला को देखता है तो वो भी मुस्कुराते हुए पीछे हो जाती है.
पायल जब सोनू के माथे पर टिका लगाती है तो सोनू की नज़रे पायल के बड़े-बड़े दूध के बीच की गहराई पर ठहर जाती है. पायल ये बात भांप लेती है. वो जानबूझ कर वैसे ही अपनी ऊँगली सोनू के माथे पर रखे हुए थोडा और झुक जाती है जिससे उसके दूध के बीच के गहराई और भी खुल के दिखने लगती है. सोनू भी थोड़ी गर्दन झुकाके पायल के दूध की गहराई में झांकने लगता है. पायल मस्ती में दुसरे हाथ की ऊँगली चोली के बड़े गले में फँसाकर एक तरफ खींचती है तो उसके दूध के एक निप्पल के इर्द-गिर्द का हलके ब्राउन रंग का हिस्सा दिखने लगता है. सोनू उसे देखकर अपने ओंठों पर जीभ फेरने लगता है. फिर पायल को देखकर इशारे से मिन्नत करता हुआ निप्पल दिखाने कहता है. पायल सर हिलाते हुए मन करती है और मुस्कुराते हुए चोली के गले से ऊँगली निकाल देती है. आगे झुक कर धीरे से सोनू के कान में कहती है, "रक्षाबंधन के दिन अपनी दीदी का निप्पल देखेगा....! तुझे शर्म नहीं आती". ये सुनकर सोनू का मुहँ उतर जाता है तो पायल हँस देती है.
खुशबू भी छेदी के माथे पर टिका लगाती है. छेदी खुशबू को देखकर अपनी लम्बी सी जीभ निकालकर उसे दिखाता है और फिर उसकी जांघो के बीच देखते हुए घुमाने लगता है. खुशबू ये देखकर मुस्कुरा देती है और शर्मा जाती है. छेद फिर से जीभ निकालकर खुशबू की जाँघों के बीच देखते हुए जीभ को किसी आईस-क्रीम चाटने के अंदाज़ में निचे से ऊपर करने लगता है. ये देखकर खुशबू को हंसी आ जाती है. फिर वो बनावटी गुस्सा दिखाते हुए धीरे से कहती है, "धत्त भैया....!! कम से कम टिका और आरती होने तक तो ये सब मत करिए...!"
कम्मो जैसे ही गोलू के माथे पर टिका लगाती है, गोलू धीरे से बोल पड़ता है, "दीदी....!! आज मैं आपकी बहुत जम के लूँगा". मुहँ बनाते हुए कम्मो कहती है, "क्या लेगा?". गोलू अपना हाथ धीरे से कम्मो के घागरे में घुसा देता है और एक ऊँगली उसकी चूतड़ों के बीच घुसा कर गांड के छेद पर दबाते हुए कहता है, "ये दीदी...!!". एक पल के लिए कम्मो की आँखे बड़ी और मुहँ खुल जाता है फिर वो धीरे से मुस्कुराते हुए कहती है, "भाभी ठीक ही कहती है. सारे भाई गंदे होते है. अभी ना ठीक से टिका किया और ना आरती और ये भाई है की कहीं और ही ध्यान है"
भाई-बहनों पर रक्षाबंधन का खुमार चड़ने लगा था. रस्मे अभी बाकी थी पर भाइयों के सब्र का बाँध कमजोर होता जा रहा था. रक्षाबंधन के दिन जब पूरे परिवार के सामने बहने सज-धज कर आती है तो भाइयों का वहाँ भी अपने लंड को संभालना मुश्किल हो जाता है. यहाँ तो ना कोई बंदिश थी और न ही कोई बंधन, ये था भाई बहन का असली रक्षाबंधन.
(कहानी जारी है. अब तक कैसी लगी कृपया कर के बतायें
Mast kahni hai, lage rahiye.प्रिय पाठकों,
मस्तरानी का आप सभी को प्यार भरा नमस्कार |
इस कहानी का नाम है, "घर की जवान बूरें और मोटे लंड"
आशा करती हूँ की ये कहानी आप सभी को बहुत पसंद आएगी और इसे आप सभी का बहुत प्यार मिलेगा |
तो और वक़्त ज़ाया ना करते हुए मैं इस कहानी की शुरुवात करने जा रही हूँ |
घर की जवान बूरें और मोटे लंड
चेतावनी : ये कहानी पारिवारिक रिश्तों की कामुकता पर आधारित है जो समाज के नियमों के खिलाफ है | अगर आप ये पसंद नहीं करते तो ये आपके लिए बिलकुल भी नहीं है |
संसार में बूर और लंड का रिश्ता सबसे प्यारा होता है | लंड हमेशा से ही अपनी पत्नी और गर्लफ्रेंड की बूरों से अपनी प्यास बुझाते आये हैं, ठीक वैसे ही बूरें भी अपने पति और बॉयफ्रेंड से अपनी प्यास बुझती आईं हैं | लेकिन बुर या लंड पत्नी, गर्लफ्रेंड, पति, बॉयफ्रेंड के अलावा किसी और का हो तो मजा दुगना हो जाता है| जैसे पड़ोसन, पड़ोसी, शिक्षक, शिक्षिका इत्यादि... |
लेकिन एक बूर और लंड को सबसे ज्यादा मज़ा उनके अपने ही परिवार के लंड और बूरें ही दे सकती हैं | किसी भी मर्द का लंड सबसे विकराल रूप तभी लेता है जब उसके सामने जो बूर है वो उसकी अपनी सगी बेटी, बहन या माँ की हो | ठीक वैसे ही किसी भी लड़की या औरत की बूर अपने आप खुल के सबसे ज्यादा तभी रिसती है जब उसके सामने जो लंड है वो उसके अपने सगे बाप, भाई या बेटे का हो |
ये कहानी भी एक परिवार के ऐसे ही कुछ बुरों और लंडों की है जो समाज के नियमो को तार तार करते हुए चुदाई का अनोखा आनंद लेते हैं |
कहानी रामपुर के एक उच्च मध्यम परिवार की है | कहानी के किरदार कुछ इस प्रकार हैं |
पिता : रमेश सिंह ; उम्र ५२ साल. एक किराने की दूकान चलाते हैं. १० साल पहले तक वो अपने खेतों में काम भी करते थे और कसरत भी इसलिए बदन ५२ साल की उम्र में भी उनका बदन कसा हुआ है.
माँ : उमा देवी ; उम्र ४८ साल. घर को संभालने के अलावा वो हिसाब किताब का भी ध्यान रखती है. ज्यादा पढ़ी लिखी ना होने पर भी उसे दुनियादारी की समझ है .
बेटा (बड़ा) : रौनक सिंह ; उम्र २६ साल. एक प्राइवेट कंपनी में काम करता है. सेल्स में होने के कारण वो ज्यादातर टूर पे ही रहता है. वो एक जिम्मेदार बेटा है.
बहु : उर्मिला सिंह ; उम्र २४ साल. अपनी सास के साथ घर संभालती है. १ साल पहले ही शादी कर के इस घर घर में आई थी और जल्द हे सबकी चहेती बन गई है. गोरा रंग, सुड़ौल बदन और अदाएं ऐसी की किसी भी मर्द के होश उड़ा दे.
बेटी/बहन : पायल सिंह ; उम्र २१ साल. बी.ए फर्स्ट इयर की क्षात्रा. इसी साल कॉलेज में एडमिशन लिया है. पायल इस कहानी की मुख्य पात्र भी है. गोरा रंग, भरी हुई चुचियां, पतली कमर और उभरी हुई चुतड देख के उसके कॉलेज के लड़को को अपने बैग सामने टांगने पड़ते हैं.
बेटा (छोटा): सोनू सिंह ; उम्र १८ ; १२ वीं कक्षा का क्षात्र. अव्वल दर्जे का कमीना. स्कूल में लडकियों की स्कर्ट में हमेशा झांकता रहता है. उसके बैग में हमेशा गन्दी कहानियों की ३-४ किताबें रहती है.
सुबह के ६ बजे रहे है. सूरज की पहली किरण खिड़की से होते हुए उर्मिला की आँखों पर पड़ती है. उर्मिला टीम-टीमाती हुई आँखों से एक बार खिड़की से सूरज की और देखती है और फिर एक अंगडाई लेते हुए बिस्तर पर बैठ जाती है. हांफी लेते हुए उर्मिला की नज़र पास के टेबल पर रखी रौनक की तस्वीर पर जाती है तो उसके चेहरे पे हलकी सी मुस्कान आ जाती है. अपनी हथेली को ओठो के निचे रख के वो रौनक की तस्वीर को एक फ्लाइंग किस देती है और अपनी नाईटी ठीक करते हुए बाथरूम में घुस जाती है.
७ बज चुके है. नाश्ता लगभग बन चूका है और गैस पे चाय बन रही है. उर्मिला तेज़ कदमो के साथ अपनी ननद पायल के कमरे की तरफ बढती है. दरवाज़ा खोल के वो अन्दर दाखिल होती है. सामने बिस्तर पे पायल एक टॉप और पजामे में सो रही है. करवट हो कर सोने से पायल की चौड़ी चुतड उभर के दिख रही है. उर्मिला पायल की उभरी हुई चूतड़ों को ध्यान से देखती है. उसके चेहरे पे मुस्कान आ जाती है. वो मन ही मन सोचती है, "देखो तो कैसे अपनी चौड़ी चूतड़ को उठा के सो रही है. किसी मर्द की नज़र पड़ जाये तो उसका लंड अभी सलामी देने लगे". उर्मिला उसके करीब जाती है और एक चपत उसकी उठी हुई चुतड पे लगा देती है.
उर्मिला : ओ महारानी ... ७ बज गए है. (पायल की चुतड को थपथपाते हुए) और इसे क्यूँ उठा रखा है? कॉलेज नहीं जाना?
पायल: (दोनों हाथो को उठा के अंगडाई लेते हुए उर्मिला भाभी की तरफ देखती है. टॉप के ऊपर से उसकी बड़ी बड़ी चुचियां ऐसे उभर के दिख रही है जैसे टॉप में किसी ने दो बड़े गोल गोल खरबूजे रख दिए हो) उंssss
भाभी...बस ५ मिनट और सोने दीजिये ना प्लीज..!! कल रात देर तक पढाई की थी. बस भाभी ..और ५ मिनट....(पायल गिडगिडाते हुए कहती है).
उर्मिला : अच्छा बाबा ठीक है.. लेकिन सिर्फ ५ मिनट. अगर ५ मिनट में तू अपने कमरे से बाहर नहीं आई तो मई मम्मीजी को भेज दूंगी. फिर तो तुझे सुबह सुबह भजन सुनाएगी तो तेरी नींद अपने आप ही खुल जाएगी (उर्मिला हँसते हुए कहती है)
पायल : नहीं भाभी प्लीज. मैं पक्का ५ मिनट में उठ जाउंगी. आप मम्मी से मत बोलियेगा.
उर्मिला : हाँ हाँ नहीं कहूँगी. पर तू ५ मिनट में उठ जाना.
पायल : हाँ भाभी... (फिर पायल तकिये के निचे सर छुपा के सो जाती है और पायल कमरे से बाहर चली जाती है)
उर्मिला रसोई में आती है तो उसकी सास उमा देवी चाय को कप में डाल रही है.
उर्मिला: अरे मम्मी जी ... मैं तो बस पायल को उठा के आ ही रही थी. आप जाईये और टीवी देखिये. आपके प्रवचन का टाइम हो गया है.
उमा : कोई बात नहीं बेटी. थोडा काम मुझे भी तो कर लेने दिया कर. सारा काम तो तू ही करती है घर का (उमा देवी बड़े हे प्यार से उर्मिला से कहती है)
उर्मिला : कप मुझे दीजिये मम्मी जी... मैं सोनू को भी उठा देती हूँ. ये दोनों भाई बहन बिना उठाये उठते ही नहीं है.
उमा : सोनू को मैं उठा दूंगी. तू ये कप ले और पहले अपने बाबूजी को चाय दे दे. बूढ़े हो चले हैं लेकिन अब भी इनकी जवानी नहीं गई. इस उम्र में लोग सुबह सैर सपाटे के लिए जाते है और एक ये हैं की कसरत करेंगे (उमा देवी मुह बनाते हुए कहती है)
उर्मिला : (हँसते हुए) मम्मी जी आप भी ना..बस...!! ५२ साल की उम्र में भी बाबूजी कितने हट्टे-कट्ठे लगते है. उनके सामने तो आजकल के जवान लड़के भी मात खा जाए. आप तो बस यूँ ही बाबूजी को भला-बुर कहती रहती हैं (उर्मिला के चेहरे पर हलकी सी मायूसी आ जाती है)
उमा : (उर्मिला की ठोड़ी को पकड़ के उसका चेहरा प्यार से उठा के कहती है) अरे मेरी बहुरानी को बुरा लग गया? अच्छा बाबा अब नहीं कहूँगी तेरे बाबूजी के बारें में कुछ भी. अब ठीक है? (उमा देवी की बात सुनके उर्मिला के चेहरे पे मुस्कान वापस आ जाती है. उसकी मुस्कान देख के उमा कहती है) इतनी सुन्दर और प्यारी बहु मिली है मुझे. सबका कितना ख्याल रखती है. नहीं तो आज कल कौनसी बहु अपने सास ससुर का इतना ख्याल रखती है?
उर्मिला : क्यूँ ना रखूँ मम्मी जी? आप दोनों ने हमेशा से ही मुझे अपनी बहु नहीं बेटी माना है तो मेरा भी तो फ़र्ज़ है की मैं आप दोनों को अपने माता पिता का दर्ज़ा दू. कप दीजिये.. मैं बाबूजी को है दे कर आती हूँ. वैसे बाबूजी हैं कहाँ?
उमा : छत पर होंगे और कहाँ ? कर रहे होंगे अपने कसरत की तैयारी.
उमा देवी की बात सुनके उर्मिला हँस देती है और छत की सीढीयों की ओर बढ़ जाती है.
छत पर रमेश अपने कसे हुए बदन पर सरसों का तेल लगा रहा है. खुला बदन, निचे एक सफ़ेद धोती जो घुटनों तक उठा राखी है. सूरज की रौशनी में उसका तेल से भरा बदन जैसे चमक रहा है. उर्मिला चाय का कप ले कर छत पर आती है और उसकी नज़र बाबूजी के नंगे सक्त बदन पर पड़ती है. वैसे उर्मिला ने बाबूजी को कई बार इस हाल में देखा है, उनके बदन को कई बार दूर से निहारा भी है. रौनक का घर से दूर रहना उर्मिला के इस बर्ताव के कई कारणों में से एक था. उर्मिला कुछ पल बाबूजी के बदन को दूर से ही निहारती है फिर चाय ले कर उनके पास जाती है.
उर्मिला : ये लीजिये बाबूजी आपकी चाय (चाय पास के टेबल पर रखते हुए कहती है)
रमेश : सही टाइम पे चाय लायी हो बहु. मैं अभी कसरत शुरू करने हे वाला था. ५ मिनट बाद आती तो शायद नहीं पी पाता.
उर्मिला : (बाबूजी की बात सुनके उर्मिला का मुह छोटा हो जाता है. वो जानती है की बाबूजी कसरत सिर्फ लंगोट पहन के करते है. अगर वो ५ मिनट के बाद आती तो बाबूजी को लंगोट में देखने का आनंद ले पाती) आपकी बहु हूँ बाबूजी. आपकी सुबह की चाय कैसे मिस होने देती?
रमेश : (हँसते हुए) हहाहाहा... बहु..सही कहा तुमने. इसलिए तो मैं हमेशा कहता हूँ की मेरी एक नहीं दो बेटियां है.
उर्मिला : ये तो आप हो बाबूजी जो अपनी बहु को बेटी का दर्ज़ा दे रहे हो, नहीं तो लोग तो अपनी बहु को नौकरानी बना के रखते है.
रमेश : ना ना बहु...तू है ही इतनी सुन्दर...और प्यारी. कोई ऐसी बहु को नौकरानी बना के रखता है क्या भला?
बाबूजी की बात सुनके उर्मिला उनके पैर पढने के लये निचे झुकती है. नहाने के बाद उर्मिला ने जो ब्लाउज पहना है उसका गला थोडा गहरा है. झुकने से साड़ी का पल्लू निचे गिर जाता है जिसे उर्मिला सँभालने की जरा भी कोशिश नहीं करती. गहरे गले के ब्लाउज से उर्मिला के तरबूज जैसी चुचियों के बीच की गहराई साफ़ दिखने लगती है. बाबूजी की नज़र जैसे ही उर्मिला की बड़ी बड़ी चुचियों के बीच की घाटी पे पड़ती है उनकी आँखे बड़ी और थूक गले में अटक जाता है. रमेश ने वैसे बहुत सी लडकियों और औरतों को अपने लंड का पानी पिलाया है लेकिन अपनी बहु की जवानी के सामने वो सब पानी भारती है. किसी तरह से रमेश थूक को गले से निचे उतारते हुए कहता है.
रमेश : अरे बस बस बहु. मेरा आशीर्वाद तो हमेशा तेरे साथ है. (बहु के सर पे हाथ रख के आशीर्वाद देने के बाद रमेश उर्मिला के दोनों कंधो को पकड़ के उसे उठाता है) जुग जुग जियो बहु..सदा सुहागन रहो...
उर्मिला : (मुस्कुराते हुए नज़रे झुका के अपना पल्लू ठीक करती है) अच्छा बाबूजी... मैं अब चलती हु. मम्मी जी की रसोई में मदद कर दूँ.
रमेश : हाँ बहु..तुम जाओ. मैं भी अपनी कसरत कर लेता हूँ.
उर्मिला धीरे धीरे सीढीयों की तरफ बढ़ने लगती है. "उफ़ ..!! बाबूजी कैसे मेरी बड़ी बड़ी चुचियों के बीच की गहराई में झाँक रहे थे. उनका लंड तो पक्का धोती में करवटें ले रहा होगा". उर्मिला के दिल में ये ख्याल आता है. उसके कदम सीढीयों से उतरते हुए अपने आप ही थम जाते है. कुछ सोच कर वो दबे पावँ छत के दरवाज़े के पास जाती है और वहीं दिवार की आड़ में बैठ जाती है. थोड़ी दूरी पर बाबूजी खड़े है. चाय की ३-४ चुस्कियां ले कर वो कप टेबल पर रख देते है और अपनी धोती की गाँठ खोलने लगते हैं. उनकी पीठ उर्मिला की तरफ है. धोती खोल कर पास पड़ी खाट पर डालने के बाद बाबूजी अपने दोनों हाथों को कन्धों की सीध में लाते हैं और फिर अपने शारीर के उपरी हिस्से को दायें बाएं करने लगते है. जैसे से बाबूजी दाई तरफ मुड़ते हैं, उर्मिला की नज़र उनके लंगोट के आगे वाले हिस्से पर पड़ती है. उर्मिला के मुह से हलकी आवाज़ निकल जाती है, "हाय दैया ...!!". लंगोट का अगला हिस्सा फूल के उभरा हुआ है, करीब ३-४ इंच. लंगोट के उभार के दोनों तरफ से कुछ काले सफ़ेद बाल दिखाई पड़ रहे है. "उफ़..!! लंगोट का उभार ही ३-४ इंच का है तो बाबूजी का ल ....हे भगवान्....पता नहीं मम्मी जी ने कैसे झेला होगा इसे...". उर्मिला अपने आप में ही बडबडाने लगती है. उसकी नज़र लंगोट के उस उभरे हुए हिस्से पे मानो फंस सी जाती है.
वहां छत पर उर्मिला अपनी दुनिया में खोई हुई है और यहाँ उमा देवी चाय का कप ले कर अपने बेटे सोनू के कमरे तक पहुँच गई है. वो कमरे में घुसती है. सामने सोनू बिस्तर पे चादर ओढ़ के पड़ा हुआ है.
उमा : लल्ला...!! सोनू बेटा..!! उठ जा..आज स्कूल नहीं जाना है क्या?
सोनू : (आँखे खोल के एक बार मम्मी को देखता है और फिर आँखे बंद कर लेता है) मम्मी अभी सोने दीजिये ना...
उमा : (कप टेबल पे रख के) चुप कर..बड़ा आया अभी सोने दीजिये ना वाला..चल उठ जल्दी से...७:३० हो गए है. अभी सोता रहेगा फिर पायल से लडेगा नहाने के लिए....और ये टेबल कितना गन्दा कर रखा है. किताबें तो ठीक से रखा कर बेटा..
उमा टेबल पे रखी किताबें ठीक करने लगती है. जैसे हे वो निचे गिरी किताब उठाने के लिए झुकती है, उसके लो कट ब्लाउज के गले से उसकी फुटबॉल जैसी चुचियों के बीच की गहराई दिखने लगती है. कमीना सोनू रोज इसी मौके का इंतज़ार करता है. अपनी माँ के ब्लाउज में झांकते हुए वो दोनों चुचियों का साइज़ मापने लगता है. चादर के अन्दर उसका एक हाथ चड्डी के ऊपर से लंड को मसल रहा है. उमा किताब उठा के टेबल पे रखती है और दूसरी तरफ घूम के कुर्सी पे रखे कपडे झुक के उठाने लगती है. सोनू की नज़रों के सामने उसके माँ की चौड़ी चुतड उठ के दिखने लगती है जो साड़ी के अन्दर कैद है. सोनू माँ की चुतड को घूरता हुआ अपना हाथ चड्डी में दाल देता है और लंड की चमड़ी निचे खींच के लंड के मोटे टोपे को बिस्तर पे दबा देता है. माँ की चुतड को देखते हुए सोनू लंड के टोपे को एक बार जोर से बिस्तर पे दबाता है और वैसे ही अपनी कमर का जोर लगा के रखता है मानो वो असल में ही अपनी मम्मी की गांड के छेद में अपना लंड घुसाने की कोशिश कर रहा हो. उमा जसी हे कपडे ठीक करके सोनू की तरफ घुमती है, सोनू झट से हाथ चड्डी से बाहर निकाल लेता है और आँखे बंद कर लेता है.
उमा : नहीं सुनेगा तू सोनू? (उमा कड़क आवाज़ में कहती है)
सोनू : अच्छा मम्मी आप जाइये. मैं २ मिनट में आता हूँ.
उमा : अगर तू २ मिनट में नहीं आया तो तुझे आज नाश्ता नहीं मिलेगा. मेरे ही लाड़ प्यार से इसे बिगाड़ दिया है. ना मैं इसे सर पे चढ़ाती, ना ये बिगड़ता..(उमा बडबडाते हुए कमरे से बाहर चली जाती है)
वहां छत पर उर्मिला बाबूजी की लंगोट पर नज़रे गड़ाए हुए है. वो लंगोट के उभरे हुए हिस्से को देख कर लंड के साइज़ का अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रही है. "९ इंच ... ना ना ...१० से ११ इंच का तो होगा ही. जिस लड़की पर भी बाबूजी चड़ेंगे, पसीना छुडवा देंगे". तभी बाबूजी ज़मीन पर सीधा हो कर लेट जाते हैं और दंड पेलने लगते है. बाबूजी की कमर ज़मीन से बार बार ऊपर उठ कर फिर से ज़मीन पर पटकन ले रही हैं. उर्मिला ये नज़ारा गौर से देख रही है. एक बार तो उसका दिल किया की दौड़ के बाबूजी के निचे लेट जाए और साड़ी उठा के अपनी टाँगे खोल दें. लेकिन वो बेचारी करती भी क्या? समाज के नियम उसे ऐसा करने से रोक रहे थे. एक बार को वो उन नियमो को तोड़ भी देती पर क्या बाबूजी उसे ऐसा करने देंगे? उसके दिमाग में ये सारी बातें और सवाल घूम रहे थे. निचे उसकी बूर चिपचिपा पानी छोड़ने लगी थी. बैठे हुए उर्मिला ने साड़ी निचे से जांघो तक उठाई और झुक के अपनी बूर को देखने लगी. उसकी बूर के ऊपर घने और दोनों तरफ हलके काले घुंगराले बाल थे. उसकी बूर डबल रोटी की तरह फूल गई थी और बूर की दरार से चिपचिपा पानी रिस रहा था. उर्मिला ने अपनी बूर को देखते हुए धीरे से कहा, "लेगी बाबूजी का लंड? बहुत लम्बा और मोटा है, गधे के लंड जैसा. लेगी तो पूरी फ़ैल जाएगी. बोल...फैलवाना है बाबूजी का लंड खा के?". अपने ही मुहँ से ये बात सुन के उर्मिला मुस्कुरा देती है फिर वो बाबूजी के लंगोट को देखते हुए २ उँगलियाँ अपनी बूर में ठूँस देती है. बाबूजी के हर दण्ड पेलने पर उर्मिला अपनी कमर को आगे की और झटका देती है और साथ ही साथ दोनों उंगलियों को बूर की गहराई में पेल देती है. उर्मिला बाबूजी के दंड पेलने के साथ ताल में ताल मिलाते हुए अपनी कमर को झटके दे रही है और उंगलियों को बूर में ठूंस रही है. उर्मिला ने ऐसा ताल मिलाया था की अगर उसे बाबूजी के निचे ज़मीन पर लेटा दिया जाए तो बाबूजी के हर दंड पर उसकी कमर उठे और उनका लंड जड़ तक उर्मिला की बूर में घुस जाये.
बाबूजी के १०-१५ दंड पलते ही उर्मिला की उंगलियों ने राजधानी की रफ़्तार पकड़ ली. वो इतनी मदहोश हो चुकी थी की उससे पता ही नहीं चला की कब वो ज़मीन पर दोनों टाँगे खोले लेट गई और उसी अवस्था में अपनी बूर में दोनों उँगलियाँ पेले जा रही है. "ओह बाबूजी...!! एक दो दंड मुझ पर भी पेल दीजिये ना...!! आहsss..!!". उर्मिला अपने होश खो कर बडबडाने लगी थी. कुछ ही पल में उसका बदन अकड़ने लगा और कमर अपने आप ही झटके खाने लगी. एक बार उसके मुहँ से "ओह बाबूजी... आहssssss" निकला और उसकी बूर गाढ़ा सफ़ेद पानी फेकने लगी. पानी इतनी जोर से निकला की कुछ छींटे सामने वाली दिवार पर भी पड़ गए. कुछ ही पल में उर्मिला को होश आया और उसने ज़मीन पर पड़े हुए ही बाबूजी को देखा तो वो अब भी दंड पेल रहे थे. उर्मिला झट से उठी और अपनी साड़ी से बूर और फिर दिवार को साफ़ किया. साड़ी को ठीक करते हुए वो तेज़ कदमो से सीढीयों से निचे उतरने लगी.
(कहानी जारी है. शुरुआत कैसी है कृपया कर के बतायें )
मस्तरानी मस्तराम के साथ हनीमून पर हैMast kahni hai, lage rahiye.