अपडेट-12
आए दिन वीर्यस्खलन से राजू चिड़चिड़ेपन में रहने लगा। इसी बीच एक रात राजू की चड्डी बदलने/ धुलने की उठापटक में प्रेमा की नींद खुल गई उसने झरोखे से देखा तो उसका बेटा राजू रात के साढ़े तीन बजे नल के पास बैठा कोई कपड़ा धुल रहा था। उसने यह सोचकर कि सुबह पूछूंगी अपनी जिज्ञासा को मन में समेटे पुनः नींद की आगोश में सो गई। उधर अंबर ने राजू के चिड़चिड़ेपन से परेशान होकर उससे पूछा।
अंबर: क्या हुआ भाई? अब तुम्हारे चेहरे का तेज कैसे गायब हो गया है?
राजू: कुछ नही बस ऐसे ही?
अंबर: कुछ तो है......हम दोनों अपनी बात आपस में नही साझा करेंगे तो किससे करेंगे।
राजू: अंबर भाई! जब मै रात को सोता हूं तो सुबह करीब साढ़े तीन चार बजे किसी नग्न स्त्री का सपना आता है और मेरा वीर्यस्खलन हो जाता है और मैं कुछ नही कर पाता ।
अंबर: क्या बात कर रहा है! सपने में नग्न स्त्री....
राजू (झूठ बोलते हुए): हद तो तब हो गई जब एक दिन स्वप्न में तेरी मम्मी आ गईं।
अंबर: तू झूठ बोल रहा है ऐसा नहीं हो सकता।
राजू: मै इसीलिए नही बता रहा था तूने ही जिद की थी।
इस संवाद से अंबर के मन में विभिन्न प्रकार की जिज्ञासाएं उत्पन्न हुईं जिसे उसकी कमर के नीचे कुंडली मारकर बैठे नागराज भी महसूस कर रहे थे। यही कारण था कि उसके स्वप्न में भी उसके आसपास के परिवार के सदस्यों आने लगे जैसे जिससे उसे अधिक लगाव था कंचन से । लेकिन स्वप्नदोष किसी तर्क या लॉजिक के आधार पर नही होता इसलिए उसके सपने में किरन और सविता यहां तक कि अंजली और प्रेमा का भी आगमन हुआ। अब उसे राजू की बातों पर विश्वास हो गया।
इधर प्रेमा ने राजू से सवाल किया......प्रेमा: राजू बेटा रात में तीन चार बजे नल पर कपड़े क्यों धुल रहा था दिन में धुल लेता।
राजू जो इस बात से अनजान था कि कपड़े धुलते हुए उसे किसी ने देखा है......हड़बड़ाहट में उसने कहा....….. कुछ नही मां मै गमछा धुल रहा था। प्रेमा: रात में गमछा धुलने की क्या जरूरत आन पड़ी।
राजू: मां वो कल रात पशुओं को बांधते समय गोबर लग गया था। ........प्रेमा ने और कोई प्रश्न न करके अपने बेटे की असहजता खत्म कर दी। .........औषधि या दवा जो उपयोग करता है वह अक्सर उसका उपयोग करना भूल जाता है लेकिन देने वाले को उसका असर देखने की जल्दी रहती है इसीलिए...........एक दिन सजिया, सविता और प्रेमा की नीम की चबूतरे पर जमी महफिल में उस बाबा की दी हुई औषधि का जिक्र किया तो प्रेमा और सविता ने औषधि के नियमित सेवन की बात तो स्वीकारी लेकिन उसके परिणाम के बारे में सजिया को कोई जानकारी न दे सकीं। किंतु प्रेमा के मन में रात की घटना और राजू के गमछा धुलने की बात स्वीकारना पुनः स्मृति में आ गई और अब तो उसे गमछे में मुट्ठ मारने का भी शक हुआ...... उसे औषधि के सेवन से जोड़ना चाहा किंतु किसी ठोस पुष्टि के बगैर उसने इस बात को महफिल से दूर ही रखा और दोनो इस बात पर तैयार हुईं कि राजू और अंबर पर नजर रखकर औषधि के असर को जानना है अन्यथा इसका सेवन बंद कर देना चाहिए ताकि किसी प्रतिकूल प्रभाव से बचा जा सके।
एक दिन शाम को कंचन और किरन के कमरे में कंचन, किरन, अंबर तीनों लूडो खेल रहे थे जिसमे कंचन बार बार हार जाती थी इसलिए वह दोबारा जिद करके खेल प्रारंभ करवाती.....तभी सविता ने डांट लगाई तो किरन रोटी सेंकने चली गई......कुछ देर में वापस आई और दोनो को खाना खाने के लिए कहा.....किंतु कंचन ने जिद करके दोनों का भोजन वहीं मंगा लिया। किरन तो अपना खाना खाकर सो गई.....किंतु ये दोनो खेलते रहे......कब नींद आई दोनो में से किसी को पता नहीं चला। अंबर की नींद तब खुली जब वह करीब सुबह चार बजे कंचन को बाहों में लिए झटके लगाते हुए पैंट गीली कर चुका था वह चुपचाप उठकर अपने बिस्तर की ओर भागा लेकिन उसी समय पेशाब करने उठी सविता ने उसे देख लिया।........ कंचन की नींद खुल गई उसे लगा कोई और है वह डर गई उसने किरन को यह बात बताई। किरन ने चुपके से जाकर यही बात अपनी मां से बताई ताकि उसके पिता की नींद में व्यवधान न उत्पन्न हो। सविता ने मामले की गंभीरता समझते हुए किरन और कंचन को बहला कर सुला दिया........सविता को शक था कि अंबर ने यह जानबूझकर किया है......इसलिए उसी वक्त उसके पास जाकर बोली: अंबर ओ अंबर! अंबर सोने का नाटक करने लगा । सविता का शक और ज्यादा गहरा हो गया । सविता: अंबर नाटक मत कर तू कंचन के कमरे में क्या कर रहा था? अंबर की चड्डी तो गीली थी ही डर के मारे गांड़ भी फट गई.....दांव उल्टा पड़ गया.....जहां शर्म के मारे वह सब कुछ छुपा लेना चाहता था उसे सब कुछ विस्तार से समझाना पड़ा.....अंत में तो सविता ने चुपके से अचानक चादर हटा दिया.....अंबर: मां क्यों परेशान कर रही हो.....सविता: तुझे मैने अपने हाथ से हगाया शौंचाया है तू मुझ से क्या शर्म कर रहा है। सविता को लगा आज उसका बेटा सही मौके से फंस गया है आज इसकी जांच कर ही लेती हूं कि औषधि ने काम किया या नहीं? यही सोच कर सविता ने उसकी चढ्ढी भी नीचे खिसका दी और टॉर्च का फोकस उसी पर कर दिया ....सविता ने जब चड्डी हटाई तो देखा अंबर का लिंग शांत किंतु तनाव में कच्छे के अंदर बैठा है जैसे फिर किसी से लड़ने की मुद्रा में हो और पूरी चड्ढी वीर्य से सन गई थी.....अंबर ने तुरंत ही चढ्ढी फिर से पहन ली ......लेकिन इस बार किसी महिला के निकट होने से नागराज आकर्षित होकर बीच से सिर निकालकर झांकने लगे ......अंबर शर्म के मारे कोशिश करता रहा कि लिंग अंदर हो जाए लेकिन 10 इंच लंबे और साढ़े तीन इंच लंबे नागराज ने फन फुलाए रखा......अंत में अंबर ने उन्हें चादर से ढंक दिया और सविता भी अपने बेटे को और देर असहजता में नही रखना चाहती थी। सविता: ठीक है बेटा सो जा लेकिन चड्डी बदल ले और हां ध्यान रखा कर कंचन और किरन के साथ भूल से मत सोया कर। ......इस घटना से सविता का तो दिमाग ही घूम गया ....वह उत्साहित हो उठी कि औषधि ने तो कमाल कर दिया सजिया को आज ही बताऊंगी।
वहीं राजू दोपहर में खेत में कुछ काम करके आया मां से कुछ खाने को मांगा। प्रेमा अपने बेटे का परिश्रम देखकर खुश हो गई उसे अचार सहित दो पराठे दिए पानी भी लाकर दिया......दोपहर का खाली समय था प्रेमा खुशी के मारे अपने बेटे को खाते हुए देखकर वहीं बैठ गई उसे बेना (पंखी) झलने लगी। राजू: आप ये सब क्यों कर रही हो मुझे इतनी गर्मी नही लग रही है....और ये पानी क्यों ला कर रख दिया...पाने मै खुद ही नल से ले आऊंगा या वहीं जाकर पी लूंगा।
प्रेमा: तू मेरा बेटा है। तेरी सेवा नही करूंगी तो और किसकी करूंगी वह भी तब जब तो खेत के काम में हाथ बंटा कर आया है । राजू भोजन करने के बाद सो गया। लेकिन प्रेमा वहीं बैठी रही। क्योंकि वह हाथ में लोकगीत की एक किताब लेकर पढ़ रही थी और मुस्कुराए जा रही थी क्योंकि उसमे विभिन्न प्रकार के लोकगीत थे भक्ति, श्रृंगार, विरह और गारी (गाली) भी।
जैसे: -
दूल्हा के माई मौसी खुब करवावैं, हाँ खोब करवावैं कि नित करवावैं।
लिकिन काव? अरे सखियन से सोरहो सिंगार रसिया राम लला।
तुहैं गारी कवन विधि देंव रसिया राम लला।।
दुलहा के मम्मी खूब मिंजवावैं, हाँ खूब मींजवावैं कि रोज मिंजवावैं।
लिकिन काव? भला नाउन से बुकवा तेल रसिया राम लला।
तुहैं गारी तुहैँ गारी कवन विधि देंव रसिय राम लला।।
दुलहा के मम्मी जी खूब मरवावैं कि नित मरवावैं
लिकिन काव! श्री के साथे शिकार रसिया राम लला
तुहैं गारीऽ तुहैं गारी कवन विधि देंव रसिया राम लला।
.......प्रेमा लोकगीत पढ़ने में मग्न थी कि तभी उसे लगा कि राजू के बिस्तर पर कुछ हलचल है जब उसने राजू की ओर देखा तो दंग रह गई उसके पजामे में एक बड़ा तंबू बन गया था और उसमें लिंग के झटके दिखाई दे रहे थे तभी प्रेमा उठकर बाहर चली गई थोड़ी देर में वापिस आई । प्रेमा: राजू राजू: हां मां। प्रेमा: सो गया था क्या? राजू: हां मां नींद आ गई थी । प्रेमा: अरे ये बेटा तेरा पायजामा कैसे भीग गया है छी छी। पजामे में ही मूत दिया क्या बचपन की तरह। राजू: नही मां । प्रेमा: उतार ये पजामा दूसरा पहन। राजू: मां बाहर जाओ। प्रेमा: चुपचाप उतार के बदल ले ज्यादा नाटक मत कर मां से। राजू ने पजामा तो उतार दिया लेकिन उससे ज्यादा उसकी चड्डी भीगी हुई थी। वह दूसरा पैंट पहनने लगा तभी उसकी मां ने टोका अरे कच्छा तो बदल ले फिर पैंट बदलने का क्या मतलब रहा। उसने अपनी चड्डी बदलने के लिए तम्हक (लुंगी) पहन ली और गीली चड्डी उतार दी जब लिंग को खुला वातावरण मिला और लिंग में लगे वीर्य में हवा से ठंडक पहुंची तो लिंग ने अकड़ना शुरू कर दिया और ढीली बंधी लुंगी गिर गई । इस तरह होगा प्रेमा को भी आशंका न थी उसने झट से दौड़कर दरवाजा बंद कर दिया ताकि कोई अन्य न देख सके । राजू चूतड़ मां की ओर करते हुए मां मेरा कच्छा बाहर सूख रहा है कृपया लेते आओ। प्रेमा: अच्छा रुक मैं ले आती हूं।
प्रेमा चढ्ढी ले आई राजू के दस इंच लंबे लंड के कारण उसे थोड़ी दूरी बनाकर खड़ा होना पड़ा राजू बेचारा इतनी बेइज्जती होती देख शर्म से लाल हो गया था उसने तुरंत ही चड्डी पहनी लेकिन लंड बिल्कुल खड़ा रहा ....फिर उसने लंड को पेट की ओर करके चढ्ढी बंद कर दी और पैंट पहन लिया। प्रेमा तो चड्डी देकर ही बाहर आ गई थी। वह भी सविता की ही तरह इतना बड़ा और मोटा लंड देखकर चकरा गई और सजिया को सूचित करने के लिए उत्साहित थी ।
नीम के पेड़ के पास महफिल जमी।
सविता: सजिया तेरा बेटा कब आएगा?
सजिया: उसके पिता जी आ रहे हैं अगले सप्ताह तो साथ ही आएगा। क्यों क्या हुआ?
सविता: नही ऐसे ही पूछ लिया मैने कई महीने हो गए बंबई रहते हुए।
सजिया: उस दवा के बारे में कुछ पता चला।
सविता: अरे दवा कमाल की है सजिया.......10 का गया है बस इतना समझ ।
सजिया: सच ।
सविता (धीमी आवाज में): हां बहन मैने अंबर को सूसू करते हुए देखा था 10 इंच लंबा और तीन ईंच से ज्यादा मोटा हो गया है।
सजिया: सच्ची सविता: हां ।
प्रेमा: कहो क्या कानाफूसी चल रही है आपस में।
सजिया: तेरे बेटे राजू की बात चल रही है।
प्रेमा: उसकी क्या बात?
सजिया: उस पर दवा ने असर किया कि नही।
प्रेमा: हां सविता सजिया की दवा ने तो मेरे बेटे को घोड़ा बना दिया 10 लंबा और तीन से जादा मोटा है । सजिया ने तो कमाल कर दिया ऐसी औषधि लाकर दे दी कि बाजार में बेचने लगें तो दुनिया टूट पड़े।
सजिया: सच कह रही हो तुम दोनों।
प्रेमा और सजिया: यकीन न हो तो तुमको भी दर्शन करा दें।
सजिया शर्मा गई लेकिन: तुम दोनों ने दर्शन कर लिया क्या? हा हा हा
प्रेमा: हां री सविता तुझे कैसे पता अब भी अंबर की नुन्नी पकड़कर मुतवाती है क्या?
सविता: तुझे कैसे पता तू इंची टेप लेकर गई थी क्या?
प्रेमा: नही री इतना तो मैं देख कर बता दूं।
सविता: हां तूने कई लंड देखे हैं न।
प्रेमा: हरामजादी क्या बोल रही है।
सविता: बाबाजी का तो देखा है फुट लंबा लंड।
सजिया: चुप रहो दीदी आपस में मत लड़ो कोई सुन लेगा तो क्या कहेगा।
प्रेमा: मैने तो सोते हुए उसकी चढ्ढी उतार के देखा था। तू बता तूने कैसे देखा?
सविता: मैने तो अंबर को पेशाब करते हुए देखा था।
सजिया: चलो ठीक है औषधि ने काम तो किया मुझे तो उसपर ही संदेह था।
सविता: वह सब छोड़ ये बता अनवर आ रहा है और तू अपनी चूत बाबा से फड़वाके बैठी है उसका क्या करेगी।
सजिया: उसको तो कई महीने हो गए, लेकिन फिर भी जगह तो ज्यादा बन ही गई है क्या करूं आप बताओ।
प्रेमा: खेल चूसकर मत शुरू करना नही तो ढीला लंड बड़ी चूत में जाएगा तो कहीं खो जायेगा सीधा चूत से शुरू करवाना और बाद में चूस देना अपनी चूंची भी बाद में मसलवाना दूध भी बाद में पिलाना नही तो चूत पानी छोड़ेगी नाली नाला बन जाएगी फिर अनवर तेरी गांड़ की ऐसी तैसी करेगा।
इस बहस में अगर कुछ हुआ तो वह ये कि तीनों की चूत में चींटियां रेगने लगीं।
सजिया मन ही मन प्रसन्न हो गई हैदर पर आजमाने के लिए वह भी तो हफ्ते भर में आने वाला था।