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Incest घर-पड़ोस की चूत और गांड़, घर के घोड़े देंगे फाड़

Raguhalkal

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xforum pe dharam kaha or kabse gus gaya be maine tho kabhi bhi nahi dekha ki jo ab tak maine story padi hai unme bahut se log antar dharm sahavaas karte hai maine badi chaav se padi hai saari story

pls bhai log jo koi bi ho kisi bi dharm ki ho xf me ane ke baad wo ek hi maa ki bache hote hai isliye tho yaha baat baat pe bhai bhai karle baat ki jaati hai so pls xf me dharm ko mat laavo story pado pasanad nahi aya mat pado bas
 

Lutgaya

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आपको कहानी नही पसंद तो आप बिलकुल न पढ़ें आलोचना भी करें लेकिन ध्यान रहे आलोचना के पैमाने धर्म और जाति कदापि न हों ।
Blackmamba के कमेन्ट से निरूत्साहित होकर लिखना बन्द मत कर देना मित्र बेबाक लिखो
ये लोग यहां सेक्स स्टोरी पढने आते हैं या राजनीति शास्त्र ,समझ से परे है ।
नही पसन्द तो मत पढो पर दूसरो का मजा मत खराब करो भाई।
 

Lutgaya

Well-Known Member
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आपको कहानी नही पसंद तो आप बिलकुल न पढ़ें आलोचना भी करें लेकिन ध्यान रहे आलोचना के पैमाने धर्म और जाति कदापि न हों ।
Blackmamba के कमेन्ट से निरूत्साहित होकर लिखना बन्द मत कर देना मित्र बेबाक लिखो
ये लोग यहां सेक्स स्टोरी पढने आते हैं या राजनीति शास्त्र ,समझ से परे है ।
नही पसन्द तो मत पढो पर दूसरो का मजा मत खराब करो भाई।
 

Sanju@

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अपडेट-10​
बाबाजी ने सजिया की आशा में एक गद्देदार नरम बिस्तर तैयार कर लिया था और निश्चय किया था कि इस बार मौका मिला तो प्रेमा की तरह जल्दबाजी की बजाय आराम से धीरे धीरे चुसूंगा, चाटूंगा चोदूंगा। किंतु लंबा समय बीत जाने के बाद बाबाजी निराश हो गए थे।​
बाबाजी सजिया को इतने दिनों से पानी पिलाते थे और सजिया ने बाबाजी जी के साथ सहवास का भी सपना संजो लिया था .......हालांकि यह लगाव केवल कामुक ही नही था बल्कि इसमें जिज्ञासा कौतूहल आदि भी था......सजिया मुस्लिम थी और दुर्लभ ही है कि किसी महिला को एक वानप्रस्थ बाबा को इतने निकट से जानने समझने का मौका मिले। सजिया तमाम प्रकार के प्रश्न बाबाजी से पूछा करती थी.....जैसे आपने किस आयु में गृह त्याग किया?....क्या आप पुनः गृहस्थ नहीं बन सकते?....आप जैसे सभी हो जाएं तो मानव सभ्यता का क्या होगा?......क्या आपने गृहस्थ जीवन का त्याग करके अपने मां बाप के साथ सही किया?....क्या आपने अन्य धर्मों की भी धार्मिक पुस्तकें पढ़ीं हैं ?......इसी तरह भांति भांति की जिज्ञासाएं बाबाजी से प्रश्न पूछकर सजिया शांत करती थी।.... और बाबाजी भी बिलकुल शांत चित्त से उत्तर दिया करते थे.....एक प्रकार से सजिया को बाबाजी से लगाव हो गया था।​
एक दिन भोर में ही बाबा बबूल की दातून लाने गए थे दातून तोड़ी कांटे भरी डाली फेंकी और दातून करते हुए ही वापस कुटिया की ओर आने लगे रास्ते में कांटे से बचने के चक्कर में बाबाजी ने पैर उठाया और दूसरी ओर रखने वाले थे कि शरीर का संतुलन बिगड़ गया क्योंकि दूसरी ओर भी कुछ कांटे बिखरे हुए थे। इतना बाबाजी के लिए क्या था खेलते हुए बच्चे के गिरने जैसा बाबाजी तुरंत उठ खड़े हुए। ....उठते ही बाबाजी को एहसास हुआ एक कांटा पैर बचाने के चक्कर में हाथ में चुभ गया और एक लिंग में हाथ का कांटा बाद में बाबाजी ने संभल कर निकाल लिया। लेकिन फुर्ती से उठने के कारण लिंग वाला कांटा टूट गया हालांकि लिंग में कांटे की बहुत ही मामूली लंबाई शेष रह गई थी क्योंकि ऊपर लंगोट था। किंतु बबूल के कांटे से खून शायद ही कभी निकल लेकिन दर्द तेज होता है । बाबा कुछ देर के लिए फिर से बैठ गए लंगोट खोली कांटे को निकालने का प्रयास किया लेकिन व्यर्थ रहा ।​
संयोग से सजिया उसी दिन बकरियों को घर की ओर हांकते हुए आ पहुंची। नल चलाया आवाज हुई लेकिन आज बाबाजी बाहर नहीं निकले।​
सजिया बाबाजी के न आने का कारण जानने के लिए कुटिया के चौखट से ही झांकने लगी। उसे डर था कहीं गैर हिन्दू को बाबाजी टोक न दें । आहट मात्र से बाबाजी की स्वान निद्रा टूटी।​
बाबा धीमी आवाज में : सजिया बिटिया अंदर आ जाओ बाहर से क्यों झांक रही हो। ......धीमे आवाज का कारण था से कर उठने के बाद कांटे का तीव्र दर्द.......सजिया बाबाजी का पास जाकर हाल जानना तो चाहती थी। किंतु​
सजिया: नही बाबा मै बाहर ही ठीक हूं।​
जिस तरह सजिया हमेशा ही बाबाजी को उत्साह में देखती थी आज वैसी स्थिति नही थी। इसलिए सजिया को लगा बाबा किसी गंभीर कष्ट में हैं।​
बाबा: सजिया बेटी अगर मेरी चौखट पर कोई आकर बिना कुटिया में तनिक भी विश्राम किए वापस लौट जाए तो मेरा जीवन व्यर्थ है । तुम्हे अंदर आना होगा।​
सजिया अंदर गई बाबाजी का हाल जाना तो पता चला कुछ नही हुआ हाथ में एक कांटा चुभ गया था। (बाबाजी ने असली बात छिपा ली हाथ का कांटा तो वो निकाल चुके थे)। थोड़ी देर के बाद सजिया अपने घर चली की ओर चल दी।​
तीन दिन बाद फिर से सजिया का आगमन हुआ ।.......बाबाजी आज नल के पास पहुंचे तो लेकिन मंद गति से।​
सजिया: अब क्या हुआ बाबा? हाथ तो ठीक हो गया आपका? ये इतना धीरे और छोटे कदम क्यों रख रहे हो आप?​
बाबा: हां बेटी हाथ तो ठीक हो गया। कुछ नही बेटी बस कमर में दर्द है।​
अब सजिया अकारण भी बाबाजी का हाल जानने पानी के बहाने आ जाया करती थी।​
लेकिन बाबाजी जितना सोच रहे थे कांटा उतनी आसानी से पीछा नहीं छोड़ रहा था। लिंग का मध्य भाग टपटपाने (जैसे कोई फुंसी शुरुआत में पकती है) लगा तरीका भी केवल यही था कांटा पक कर ही निकल सकता था। एड़ियों की तरह दूसरे कांटे से खोदकर तो नही निकाला जा सकता था।​
बाबाजी कई दिन छिपाते रहे। लेकिन जब सजिया एक दिन पीछे ही पड़ गई तो उन्हें सच्चाई बतानी पड़ी। सजियाने भी तीन चार दिन इंतजार किया लेकिन कांटा बहुत ही धीरे धीरे पक रहा था। सजिया को लगा बाबाजी जब मुझसे इतने दिन छिपाते रहे और इसी तरह करते रहे तो यह इनके पूरे लिंग को चपेट में ले सकता है।​
सजिया ने सोचा कांटा तो अपनी रफ्तार से पकेगा लेकिन अगर यह पहले ही फूट जाए तो बह कर हफ्ते भर में ठीक हो जाएगा। उसने दिल कठोर किया और एक दिन बाबाजी की कुटिया में सीधे घुस गई।​
सजिया: बाबाजी मै आज एक नुस्खा लाई हूं। काम हो गया तो अच्छी बात है न हुआ तो भी आपको कोई हानि नहीं होगी।​
बाबाजी: लाओ बेटी नुस्खा कहां है?​
सजिया: पहले आंख बंद करो बाबा?​
बाबा ने आंख बंद की ........ सजिया ने अपनी कमीज उतार दी और वक्षस्थल को दुपट्टे से ढक दिया।​
तेज धड़कन के साथ सजिया: आंख खोलो बाबाजी।​
बाबाजी ने आंख खोली.......उन्हे सर्वप्रथम सजिया के गोरे पेट और नाभि का दर्शन हुआ ......कई दिनों से से रहे लंड ने सजिया का सलवार और नाड़ा देखकर उसे खोलने की चेष्टा करने लगा......लेकिन बाबाजी कराहने लगे.....किंतु सजिया के मांसल और दुग्ध से भरपूर चूंचियों को देखने की चेष्टा कम न कर सके. सजिया ने बाएं वक्षस्थल से दुपट्टा हटा दिया......अब बाबाजी को लंगोट खोलना पड़ गया लेकिन उन्होंने लिंग को लंगोट से ढके रखा। सजिया ने अंतिम दांव चला और पूरा दुपट्टा हटा दिया । बाबाजी ने गोल बड़ी दूध से भरी चूंचियां जिनमे तनिक भी ढीलापन न था देखी होश खो बैठे, कराहते भी रहे, लंगोट से कपड़ा हटा और उनका लंड फूलते इस स्तर पर पहुंच गया कि बाबाजी जोर से चिल्लाए उनका कांटे वाला भाग फूट गया और थोड़ी मवाद के साथ बह गया।​
सजिया का नुस्खा काम कर गया इसलिए खुश तो हुई लेकिन बाबाजी का 12 फूट लंबा और चार इंच मोटा का लंड देखकर डर गई । बाबाजी को जब आराम मिला तो उन्होंने दूध पीने की इच्छा प्रकट की।​
सजिया के तंग हो चूके चूचकों में से दूध बाहर आने को ही था इसलिए सजिया भी तैयार हो गई।​
बाबाजी ने पहले सजिया के चूचकों की टोह ली फिर करीब दस मिनट तक दोनो चूंचियों को मींजते (मसलते) रहे। .....बाबाजी को सजिया की देंह से निकल रही गरमी महसूस हो रही थी सचमुच बेहद गरम बदन था शायद लंबे समय तक संभोग न करने और मांसाहार का सेवन की वजह से (हालांकि बाद में वह केवल अंडे का सेवन करती थी)।​
सजिया खुद को बहुत संभालती रही कि कामुक आवाजें न निकलें लेकिन उससे रहा नही गया और मसलते समय आह आह करने के बाद पीते समय बाबाजी जी की पीठ सहलाती रही ।​
बाबाजी (चूसते हुए): आ उम बहुत मीठे हैं तुम्हारे दूध सजिया पहले क्यों नही चखाया तुमने।उसके बाद बाबाजी ने दोनों चूचकों से करीब चार- चार सौ मिलीलीटर दूध खींचा । सजिया की चूत भी रिसने लगी थी लेकिन बाबाजी के लंड से डरी सजिया: आह आह आह बाबाजी अब चलती हूं सांझ हो गई है। कपड़े पहने और घर लौट आई। सजिया घर आई लेकिन उसे आज रात करीब डेढ़ बजे तक नींद नही आई उसके मन में कुलबुलाहट थी कि मैंने आज अपने पति से धोखा कर दिया....किंतु मैंने तो सिर्फ बाबाजी का इलाज किया था....भांति भांति के विचार.....लेकिन जब बाबाजी के लंड की छवि उसके मन में उभरती उसकी चूत चोक लेने लगती गांड़ के छिद्र सिकुड़ने लगते पुनः दोगुनी उत्तेजना से ढीले होते ...इस तरह आखिरकार सजिया सो ही गई।​
सजिया के सामने दुविधा थी एक ओर उसकी चूत बाबाजी के साथ संभोग करके पति की कमी पूरा कर लेना चाहती थी वहीं मन उसका इतने बड़े लंड के साथ संभोग की गवाही नहीं दे रहा था।​
अब सजिया बाबाजी से करीबी को दूरी में बदलना चाह रही थी क्योंकि वह बाबाजी के लंड से सचमुच डर गई थी अब बातें भी गांव, गोरू और अध्यात्म की अधिक करने लगी। लेकिन बाबाजी ने जो दूध पिया था वह दो दिन में फिर बन गया जबकि सजिया न तो किसी बच्चे को दूध पिलाती थी न ही गर्भवती थी।​
करीब पंद्रह दिन इस घटना को गुजर गए बाबाजी का लंड ठीक हो गया।​
बाबाजी: सजिया उस दिन तुम्हारा नुस्खा काम कर गया मै तो फिर से चंगा हो गया। लगता है तुम्हारा दूध काम कर गया।​
सजिया: नही बाबाजी वह तो मुझसे भूल हो गई थी।​
बाबाजी: भूल किस बात की तुमने तो मुझ पर एहसान किया है सजिया। मै भी तुम्हारे लिए कुछ करना चाहिए।​
आओ चलो बैठो थोड़ी देर कुटिया में। सजिया ने पहले मना किया लेकिन बाबाजी के हठ करने पर चली गई बाबाजी जी ने गुड़ और चबैना (देसी चावल की लाई) दिया सजिया ने खाया और बाबाजी का दिया हुआ पानी पिया । बाबाजी अर्धनग्न रहते थे इसलिए करीब बैठी महिला का उत्तेजित होना लाजमी तो था ही बाबाजी जो पहले से ही संभोग का विचार बनाए हुए थे का भी लंड लंगोट के भीतर गुलाटी मारने लगा।​
बाबाजी ने डरी हुई धीमी आवाज में कहा: सजिया आज फिर दूध पिला दो। और सिर नीचे झुका लिया। सजिया बाबाजी के लंड से डरी हुई थी लेकिन उसे बाबाजी पर तरस आ गया और उसने सोचा उस दिन की तरह ही दूध पिला कर चली जाऊंगी। यह सोचते ही उसके चूचक कड़े हो गए चूंचियां तन गईं शरीर से धाह निकलने लगी उसके कमीज उठाते ही बाबाजी टूट पड़े दोनो चुचियों को मसल डाला । लंड लंगोट में नहीं समा रहा था।इसलिए अलथी पालथी मार कर बैठ गए और उसे भी सामने पहले तो आलथी पालथी बैठाया लेकिन दूध चूसने में हो रही दिक्कत के कारण उसके दोनो पैर अपने पैरों के उस पार रख कर सजिया के साथ आमने सामने सट कर बैठ गए। बाबाजी ने दोनो चूचकों में से दूध पिया मसल तो पहले ही दिया था। सजिया होश खो बैठी थी । बाबाजी ने दूध चूसने के बाद उसका पेट चाटना शुरू कर दिया जिससे वह अपना भार पीछे की ओर रखकर लेट गई। बाबाजी ने नाभि से होते हुए अपने हाथ को सलवार के नाड़े के पास रखा । बाबाजी के हाथ को अत्यधिक तेज जलन महसूस हुई। बाबाजी ने अचानक सलवार के अंदर हाथ डाल दिया बाबाजी का हाथ भीग गया । सजिया ने बाबाजी का हाथ पकड़ कर निकाल दिया और उठना चाही लेकिन उसकी चूत ने उसे ऐसा करने से मना कर दिया और लेटी रही। बाबाजी का लंड जो अभी तक लंगोट के अंदर गुलाटी मार रहा था लंगोट के ढीला होने के कारण बाहर आ गया । बाबाजी ने आव देखा न ताव सजिया का नाड़ा खींच लिया सजिया ने अपनी चूत पर हाथ रख कर उसे छिपा लिया लेकिन उसकी उठने की हिम्मत न हुई।बाबाजी ने नाभि के निचले हिस्से को सहलाते हुए उसके हाथ को हटा दिया सजिया की आंखे बंद हो गईं। सजिया की छोटी छोटी झांटों के बीच बने छिद्र से पानी रिस रहा था जो उसके नीचे बने एक और सांवले छिद्र तक जाता था उसके बाद सलवार से लग कर उसे गीला कर रहा था। बाबाजी ने सोचा इसकी सलवार गीली हो गई तो घर कैसे जायेगी यह द्रव्य तो बहुत ही चिपचिपा है पता नहीं सूखेगा भी या नहीं कहीं दाग न पड़ जाए। और उन्होंने सजिया की चूत की भगशिश्निका को रगड़ते हुए धीरे धीरे सलवार को उतार कर दें दिया अभी तक कुटिया का दरवाजा बिल्कुल खुला हुआ था । बाबाजी दरवाजे पर बांस से बने दरवाजे को रखने के लिए उठे वापस बैठते समय सजिया ने आंख खोल ली थी । बाबाजी का बड़ा काला नाग जैसा झूलता लंड सजिया ने देख लिया।​
सजिया डरते हुए: मै इसे नही ले पाऊंगी....मुझ पर रहम कर दो जाने दो।​
बाबाजी: सजिया तुम तो ख्वामखाह ही डर रही हो। मुझे दूध पीना था मैने पी लिया अब तुम जा सकती हो मै कोई जोर जबरदस्ती थोड़ी करूंगा।​
बाबाजी सजिया के बगल आ कर लेट गए। अंदर से बहुत कष्ट था लेकिन उसे सलवार वापस पहनाने लगे। जैसे ही बाबाजी का हाथ सजिया की चूत के पास पहुंचा इतनी देर से उत्तेजना को दबाए बैठी सजिया चूत जोर जोर से खुजलाने लगी और उसने बाबाजी का हाथ वही दबा दिया और कस कस के रगड़ने लगी और बाबाजी के होंठ पीने लगी । बाबा जी की दो उंगलियां सजिया की चूत में घुस गईं कुछ देर में सजिया झड़ गई .....बहुत ही अधिक योनिरस निकला था बाबाजी का हाथ भीग गय बाबाजी की लिंग अब बर्दाश्त से बाहर हो रहा था। सजिया तो पड़ गई थी उसे आज कही महीनों बाद पुरुष के स्पर्श से झड़ने का मौका मिला था। बाबाजी ने सजिया को फिर से उत्तेजित करने के लिए इस बार गांड़ का सहारा लिया बाबा ने सजिया की गांड़ सहलानी शुरू की तो सजिया ने दोनो पैर फैलाने शुरू किए बाबाजी ने गांड़ में दो उंगलियां डाल दीं उसके बाद एक ही हाथ का अंगूठा चूत में और दो उंगलियां गांड़ में चलाने लगे । चूत और गांड़ एक साथ चोक लेने लगी सजिया के दोनो पैर खुल गए। सजिया फिर से डी उत्तेजित हो गई आप लोगों को पता होगा कोई एक बार झड़ कर फिर से उत्तेजित हो जाए तो दोबारा झड़ने में बहुत समय लगता है।​
सजिया: आह आह आ आ आह आज क्या होगा बाबाजी​
बाबाजी: जो तुम्हारी इजाजत होगी।​
सजिया: डाल दो बाबाजी अब और बर्दास नहीं होता।​
बाबाजी ने अपना लंड पकड़ा जो कि अभी तक रिस रिस के भीग गया था और सजिया की चूत पर पटकने लगे सजिया सिसकारियां लेने लगी।बाबाजी ने लिंग को चूत में प्रवेश करने जा प्रयास किया लेकिन चूत और लिंग दोनो के भीगे होने के कारण लिंग फिसल गया। लिंग अपने पूरे आकार में था बाबाजी ने हाथ से पकड़ के लंड को चूत पर लगाया और आधा इंच अंदर कर दिया। सजिया छटपटाने लगी पलट कर खुद को बाबाजी से अलग कर लिया। बाबाजी को लंड चूत के मुंहाने तक पहुंचने के बाद हटाना पड़ा था बाबाजी को कुछ नही सूझा और उन्होंने सजिया से कहा अगर यह तुम्हारी चूत में नही जा सकता तो इसे मुंह से ही शांत कर दो और सजिया के कुछ न बोलने पर उसके मुंह में डाल दिया। सजिया का मुंह भर गया लेकिन बाबाजी जोश में थे उन्होंने गचा गच मुंह में चोदने लगे जब सजिया की सांस फूलने लगी तो बाहर निकालकर उसके चेहरे पर पट पट मारने लगे फिर से अंदर किया ढाई मिनट तक अनियंत्रित गति से चोदने के बाद जब बाबाजी के लंड ने वीर्य उगला लंड थोड़ा पीछे आया तो सजिया की अटकी सांस के साथ पूरा वीर्य अंदर चला गया लेकिन लंड से वीर्य बहता रहा सजिया पीती रही करीब दो सौ एमएल वीर्य निकला होगा।​
बाबाजी: मैने आज तुम्हे भी दूध पिला दिया सजिया।​
सजिया (खांसते हुए): बच गई मैं नहीं तो मेरी जान निकल जाती।​
अब बाबाजी बिस्तर पर लेट गए। लेकिन सजिया की चूत की खुजली बढ़ती जा रही थी।​
बाबाजी ने कहा: मुझे लगता है आज अगर हम दोनो संभोग नही कर लेते तब तक दोनो में से किसी को भी चैन सुकून नहीं मिलेगा।​
सजिया: बात तो सही है आपकी लेकिन ये जाएगा कैसे आपका मूसल और ये इतना बड़ा और मोटा कैसे हो गया है?​
बाबाजी: मेरे गुरु जी ने दिया था किसी और काम के लिए लेकिन मै भी इसका कैसा उपयोग कर.... सजिया ये बात किसी और दिन .....​
सजिया: ठीक है बाबाजी कोई उपाय जल्दी ढूंढों।​
बाबाजी: अभी मेरे लिंग शांत है इसे अपने दोनो हाथों से जबरदस्ती धकेल धकेल के घुसा लो फिर धीरे धीरे कोशिश करेंगे तो हमे विजय जरूरी मिलेगी ।​
सजिया: ये तरीका सही सुझाया आपने लेकिन जल्दी करो आज इस चूत की प्यास मिटा दो सींच दो इसे वीर्य से ।​
बाबाजी और सजिया आपसी सहमति से एक दूसरे में पैर डालकर बैठ गए सजिया और बाबाजी के प्रयास से करीब चार इंच लंड अंदर गया होगा कि बाबाजी का लंड उत्तेजित होने लगा बाबाजी ने सजिया की पीठ हाथ से बांध ली और लिंग को अंदर घुसाने लगे बाबाजी को पता था इस बार नही गया तो कभी नहीं जाएगा। सजिया पहले कसमसाई फिर छटपटाने लगी बाबाजी ने सजिया के होंठ पर होंठ रखकर लंड को एक झटके में पूरा अंदर कर दिया सजिया जोर से चिल्लाई हाय अल्ला रे सिवान में दूर तक आवाज गूंज गई उसके दोनो आंखों के किनारों से आंसू छलकने लगे बेचारी रोने लगी हाथ पटकने लगी बाबाजी मूर्त रूप में बैठकर सजिया के पीठ पर हाथ बांधे रक्खा। सजिया रोते रोते बोली हाय अल्ला मर गई आज और उसे चक्कर आ गया उसकी चूत की दीवारें जो योनिरस से तरबतर थीं वह भी छलनी हो गईं उनमें दरार आ गई खून रिसने लगा उसकी चूत हलाल हो गई । किंतु प्रेमा की चुदाई की तरह ही बाबाजी को विश्वास था कि हमारा संभोग पूर्णता को जरूर प्राप्त करेगा। बाबाजी ने चक्कर के दौरान ही बेरहमी से लंड को चलाकर जगह बना डाली खड़े लंड को बाहर निकाला सजिया की चूत का खून पोंछा जल्दी जल्दी में कुछ हरी टहनियां तोड़कर बकरियों को देकर दरवाजा पुनः ढक दिया बकरियां अपनी मालकिन के इंतजार में दरवाजे के बिलकुल बाहर बैठ गईं थी समय ज्यादा होने पर वे भी मिमियाने लगी थीं। खैर बाबाजी वापिस आए सजिया की चूत पर ठंडा लेप लगाया शरीर पर मटके का शीतल जल छिड़का तब जाकर सजिया उठी उसका दर्द तो गायब हो गया था लेकिन जब उसने अपने चूत की हालत देखी तो उसकी आंख से फिर से आंसू ढुलकने लगे जो बंद होने का नाम ही नही ले रहे थे । सजिया को बाबाजी ने बाहों में भर लिया गांड़ पर हाथ लगाकर लंड को उसपार कर दिया ताकि उसे चुभे न और सजिया को सहलाने लगे।​
बाबाजी: सजिया तुम कितनी प्यारी हो । मेरे पास अपर कोई उपाय भी नही था । मुझे माफ करदो सजिया।​
सजिया कुछ नही बोली उसके आंसू नहीं रुक रक रहे थे। तब बाबाजी ने उसके होंठों पर होंठ रख कर चूसा उसकी चूंचियों को सहलाया (इस बार मसला नहीं) बाबा का लंड जो कि सजिया की गांड़ के नीचे से उस पार झांक रहा था उसे सजिया की भावनाओं को कोई कदर नही थी उसके मुंह पर तो खून भी अभी तक लगा हुआ था वह बार उठक बैठक लगाए हुए था जिससे सजिया की गांड़ में रगड़ के कारण गुदगुदी हो रही थी जो उत्तेजना का संकेत (सिग्नल) चूत को भी भेज रही अचानक सजिया की बुर पनियाने लगी सजिया का हाथ स्वयं ही बाबाजी के लंड को पकड़कर चूत के पास ले जाने लगा बाबाजी का खड़ा लंड तो यही चाह रहा था। बाबाजी ने लंड को अंदर किया ठंडे लेप का असर था ही चूत में दर्द तो होना नही था लेकिन हलाल होने से कौन बचा सकता था बाबाजी अनियंत्रित गति से लंड को अंदर बाहर करने लगे ।कचा कच भचा भच फचा फच की तो एक लय छोटी सी कुटिया में गूंजने लगी। सजिया भी इस बार साथ दे रही थी उसकी गरमी अब दिख रही थी वह अपनी गरमी के बल पर ही बाबाजी जैसे मर्द को टक्कर दे रही थी टक्कर ऐसी थी की पहली बार बाबाजी खड़े उसके दो मिनट बाद सजिया (हालांकि बाबाजी पहले इस बार खड़े क्योंकि उनका लंड काफी देर से खड़ा था) ।लेकिन सजिया उस समय चिल्लाने लगती जब चूत की कोई नई कोशिका फट जाती हालांकि ज्यादातर कोशिकाएं पिछले बार ही फट गईं थी जो लंड की राह में रुकावट पैदा कर रहीं थीं।​
सजिया: आह आ आ आअ आऽऽऽह मार दो इस बुरचोदी को आज रात दिन कुलबुलाऽऽऽतीऽऽऽऽरहतीऽऽऽहै आ आई आई आह आऽऽऽआह और जोर से आह आईईई ऊह आह । सिसकारियों का सिलसिला चलता रहा पूरे पैंतीस मिनट की चुदाई में बाबाजी तीन बार झड़े तीन बार सजिया भी झड़ी । अंतिम बार सजिया ने वीर्य पीने की इच्छा जताई और पूरा वीर्य पी गई। दोनो एक दूसरे से लिपटे हुए ही बिस्तर पर ही गिर पड़े। दोनो की कामरस की थैलियां पर्याप्त खाली हो गईं थी। दोनो उठे एक दूसरे के जननांगों को दोनो ने साफ किया । दोनो के अंगो में पुनः थोड़ी मात्रा में उत्तेजना आई किंतु बाबाजी ने अपने नागराज को लंगोट में बंद कर दिया तो वहीं सजिया ने अपनी कामदेवी को सलवार में कैद कर दिया। बाबाजी ने सजिया को पौष्टिक पंजीरी खिला कर शरबत पिलाया ताकि उसमे ऊर्जा आ सके किंतु सजिया उठते कर बाहर जैसे ही आई लंगड़ाने लगी बाबाजी ने दौड़कर कंधा दिया फिर से कुटिया में बैठाया । दोनो बाहर के वातावरण से बेखबर थे बाहर निकले तो समय ज्यादा हो गया था पर्याप्त अंधेरा छा गया था सजिया का जी कचोटने लगा अपनी बिटिया फिजा के बारे में सोचकर जो सजिया के आने के बाद पड़ोसियों के बच्चों के साथ खेलती थी उसका दिल रोने लगा कि उसने देंह की आग बुझाने के लिए बेटी को भूल गई......किंतु एक खयाल और सजिया के मन में उठ रहा था कि अगर बिटिया ने दिया नही जलाया होगा और डरकर किसी और के घर रुक गई होगी तो सबको पता चल जाएगा ...कैसे मुंह दिखाऊंगी लोगों को....और इन बकरियों के साथ तो जाना बिलकुल ठीक नही....ये चिल्लाकर सभी को बता देंगी । बाबाजी की टॉर्च का सेल खतम था लेकिन नाम मात्र का बचा था । समस्या पर समस्या खड़ी हो गई कि सजिया घर कैसे जायेगी रास्ते में उसे डर लगेगा बकरियों को सियार परेशान करेंगे वगैरह वगैरह ।बाबाजी ने दिमाग लगाया और दोनो बकरियों के मुंह पर कपड़ा बांध दिया। सजिया को घोड़इयां (पीठ पर) बैठाया और चल दिया गांव की ओर गांव अधिक दूर तो था नहीं बाबाजी जी गांव के करीब पहुंच गए गनीमत थी कि सजिया का घर गांव के बीच में नही था उसके घर का एक दरवाजा बाहर की ओर तो दूसरा उसके घर से सटे घरों के दरवाजे की दिशा में खुलता था। बाबाजी ने सजिया से बकरियों के बांधने का स्थान पूछा और चुपके से बांध कर वापस आ गए । अब जाकर दोनों की सांस में सांस आई ......लेकिन सजिया का जी बेटी में ही लगा रहा । बाबाजी ने टॉर्च बुझाकर सजिया को घर के और करीब किया ताकि वहां से अगर वह न जा पाए तो कोई बहाना बना सके। इतनी दूर से पैदल चल कर आए थे बाबा सो मन बहलाने के लिए बाबाजी ने सजिया की गांड़ में हाथ लगाकर उठा लिया। सजिया: बाबाजी आप भी एकदम बेशरम हो। बाबा: अच्छा सजिया मैं चलता हूं अपना खयाल रखना।​
सजिया रेंगते हुए किसी तरह घर पहुंची । देखा तो उसकी बेटी ने दिया जला दिया था और सो रही थी लेकिन उसका बिस्तर सिर के आस पास भीगा हुआ था सजिया समझ गई उसकी बेटी उसके इंतजार में घर पर ही रह गई होगी और जब बाहर अंधेरा हो गया होगा तब डर के मारे किसी के यहां न जा सकी और रो रोकर सो गई मेरी प्यारी बिटिया । उसने खाट के पास बैठकर बिटिया को एक चुम्मी ली उसके बाद बिना जगाए किसी तरह कपड़े बदलकर, हाथ मुंह पैर धुलकर खाना बनाने लगी । खाना बनाकर अपनी बिटिया को जगाया तो उसकी बिटिया तेज तेज रोने लगी सजिया ने उसे छाती से लगा लिया फिर भी वह रह रहकर रोती रही किसी तरह चुप कराया खाना खिलाया । थकी मांदी बेचारी अपनी बिटिया के साथ ही सो गई ।​

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Sanju@

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अपडेट-11​
सजिया शाम को तो खुशी खुशी सो गई क्योंकि वह जो मुंह काला करवाके आई थी उसके बारे में किसी को भनक नहीं लगी। सविता, प्रेमा के साथ लगभग हरदिन बात बतकही करने वाली सजिया जब तीन दिन नही आई तब ।​
सविता: प्रेमा! सजिया नही दिखाई दे रही कई दिन से।​
प्रेमा: क्या पता उसका मंसेधु (पति) आ गया हो बंबई से।​
सविता: उसका भतार (पति) आया होता तो वह भी तो गांव में आते जाते दिखाता।​
प्रेमा: चल सविता देख ही आते हैं अकेली रहती है बेचारी क्या पता धूप में जाने के कारण जूड़ी (सर्दी) बुखार आ गया हो।​
दोनों उसके घर गईं प्रेमा ने आवाज लगाई: सजिया ओ सजिया क्या बात है हमसे रूठ गई क्या..... किसी बात से...... बता देना ।​
सजिया जो खाट पर सलवार घुटने तक करके ऊपर से हल्की चादर रखकर आराम कर रही थी। अचानक से सलवार बांधी।​
सजिया: आई दीदी ।​
किसी तरह उठकर धीरे धीरे मंद गति से दरवाजे तक आई।​
सविता: हे भगवान! क्या हो गया सजिया तुझे तभी मै कहूं आजकल काहे नहीं दिखाई दे रही।​
सजिया: आप दोनो अंदर आ जाओ बाहर क्यों खड़ी हो।​
प्रेमा: कोई बात नही, बाहर ही ठीक है ।​
सजिया: चलो आंगन में बैठ कर बाते करेंगे।​
सविता: चल प्रेमा।​
सविता: अब बता सजिया क्या हो गया तुझे इतने दिन क्यों नहीं आई।​
सजिया: कुछ नही बस कमर चमक गई थी।​
प्रेमा: कमर इतने दिन चमकती है कहीं।​
सजिया: मेरा मतलब मोच आ गई थी।​
सविता: चल खाट पर लेट, तेरी कमर की मालिश कर देती हैं हम दोनों ।​
सजिया मुस्कुराते हुए: नही नही अब तो ठीक हो गई हूं।​
प्रेमा: ठीक कितनी है तेरी चाल ही बता रही है। चल खाट पर लेट नही तो चोट एक बार घर कर गई तो हर साल सर्दी बरसात में चलने नही पाएगी.....और हां कमर में कैसे मोच आ गई तेरे....तू कौन सा खेत में फावड़ा भांज रही थी तेरे जानवर भी तो छोटे हैं...वह भी तो तुझे नही घसीट सकते।​
दोनो को शक होने लगा प्रश्नों की बौछार देखकर सजिया खाट पर लेट गई।​
सजिया ने कमर में मोच का बहाना तो बना दिया था लेकिन उसमे कैसी प्रतिक्रिया देनी है इससे अनजान थी। खाट के एक ओर प्रेमा बैठी दूसरी ओर सविता दोनो ने मालिश करना शुरू किया गुदगुदी के मारे सजिया केवल हंसती रही। सविता ने अपने शक को विश्वास में बदलने के लिए बीच बीच में कमर की हड्डियों और मांसपेशियों को तेज दबा देती थी लेकिन सजिया की ओर से किसी दर्द की प्रतिक्रिया नहीं आई। सविता से रहा नही गया और उसने प्रेमा से इशारे में दरवाजा लगाने के लिए कहा जैसे ही प्रेमा वापस आई सविता ने सजिया की सलवार का नाड़ा खींच दिया और सलवार उतारने लगी लेकिन सजिया ने मजबूती से अपनी सलवार पकड़ ली। प्रेमा और सविता ने उसकी सलवार उतार दी।​
प्रेमा: हाय दईया! कहां मुंह काला करवाके आ गई अनवर को पता चला तो तुझे घर से निकाल देगा।​
सविता: प्रेमा इसकी बुर तो तेरी तरह ही फट गई है चिथड़े निकल गए हैं इसके।​
प्रेमा: चुपकर सविता क्या बोल गई।​
सविता: कहीं तू उस बाबा के चक्कर में तो नहीं फंस गई ।​
सजिया: नही दीदी ये तो मैने जोश में इसमें खीरा डाल लिया था।​
प्रेमा: चुपकर अपने हाथ से कोई बदन का एक बूंद खून निकालने में डर जाता है। और तेरी चूत के आस पास की सूजन बता रही है कि उस बाबा ने ही तेरा मुंह काला किया है।​
सविता: सच सच बता दे सजिया ताकि हम लोग तेरी मदद कर सकें नही तो किसी और को पता चल गया तो गांव में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगी।​
सजिया ने अब जाके हामी भरी।​
प्रेमा जो ये सब झेल चुकी थी।​
प्रेमा: फिर तू घर कैसे आ गई अकेली?​
सजिया: बाबाजी छोड़ने आए थे।​
सविता: हाय दईया! इस बाबा ने बेचारी सजिया की बुर का भरता बना दिया ।​
सजिया: लेकिन बाबाजी के बारे में आपको कैसे पता।​
प्रेमा: तुझसे क्या छिपाना सजिया इस गांड़चोदी सविता ने मुझे भी उस बाबा से हलाल करवा दिया था।​
सजिया: कैसे कब क्यों कहां?​
प्रेमा ने संक्षिप्त वाकया सुना दिया। सविता मुस्कुराए जा रही थी।​
प्रेमा: हंस ले और हंस ले किसी दिन मौका मिला न तो तुझे भी नही छोडूंगी। और तू सजिया ये सलवार सूट की बजाय साड़ी ब्लाउज पहन ले चूत को आराम मिलेगा और कम चलाकर जिससे चूत की दोनो फांके रगड़ेंगी नही आपस में और तू जल्दी ठीक हो जाएगी।​
सजिया ने प्रेमा की बातों का पालन किया और हफ्ते भर में चूत की फटी कोशिकाएं पपड़ी बनकर निकल गईं उनकी जगह नई कोशिकाओं ने ले ली। अब उसका फिर से प्रेमा और सविता के पास आना जाना प्रारंभ हो गया ।​
चुदाई के बाद जब पहली बार सजिया बाबा से मिली तो उसने बाबाजी के सामने सवालों की झड़ी लगा दी। दो सवाल प्रमुख थे कि जब आप वानप्रस्थ सन्यासी बाबा हैं तो आपने उस दिन मेरे साथ सहवास क्यों किया मैं भले ही कितना क्यों न बहक गई रही होऊं? इसका जवाब बाबा को विस्तार देना पड़ा। दूसरा प्रमुख सवाल कि आपका लिंग इतना मोटा और लंबा कैसे है?​
बाबाजी: सजिया बेटी​
सजिया टोकते हुए: बेटी मत कहो आप​
बाबा: बात ऐसी है कि यहीं पहले मेरे गुरुजी रहते थे मै उनसे प्रभावित होकर उनसे उनका शिष्य बनने की इच्छा प्रकट की। उन्होंने मुझसे पहली बार ही कह दिया था तुम बाबा नही बन सकते इसमें कठोर इंद्रिय वश की जरूरत होती है और तुम्हारी उम्र भी कम है। बहुत हठ करने पर बाबाजी ने मुझे अपना शिष्य बनाया, अनुशासन सिखाया और पंद्रह वर्ष बाद वह नही रहे । वैसे तो उन्होंने मुझे कई औषधियां दी थीं लेकिन उसी के साथ एक दवा दी थी जो मनुष्य के लिंग में वृद्धि करती थी उस समय मैने बाबाजी से पूछा भी था कि इसे आप मुझे क्यों दे रहे हैं? तब उन्होंने मुझे देकर कहा था कि मैने इसका सेवन करके अपना लिंग बेहद लंबा और मोटा कर लिया है लेकिन मेरे सामने किसी नग्न स्त्री को भी खड़ा करदो तब भी मेरा इंद्रिय संयम कायम रहेगा। मैं तुम्हे इस औषधि को दे रहा हूं इसका सेवन करते रहो और इंद्रिय पर संयम रखो अगर तुमने अपनी इंद्रिय पर उस आयु तक संयम बनाए रखा जब तक कि तुम्हारे इंद्रिय का वीर्य समाप्त न हो जाए तब ही खुद को मेरा शिष्य समझना अन्यथा नहीं।​
मुझे भी अपने लिंग पर काबू था क्योंकि इस कुटिया के पास कभी कोई स्त्री नही आती थी। जब बाहर जाता तो भी कभी किसी स्त्री के नाजुक अंगों का दर्शन नहीं होता था। किंतु उसके बाद की घटना तो मैने पहले उत्तर में ही सुना दी।​
सजिया: क्या वह औषधि आपके पास अभी भी है?​
बाबाजी: हां है लेकिन किस काम की वह तो युवावस्था में ही काम करती है।​
सजिया: वह औषधि मुझे चाहिए।​
बाबा: क्यों किसके लिए?​
सजिया: मेरे पुत्र के लिए।​
बाबा: नही, तुम्हारी बहू का क्या हाल होगा?​
सजिया: आपने उस दिन मेरा क्या हाल किया था? मुझे वह औषधि दे दीजिए।​
बाबा: ठीक है ले जाओ जिस औषधि कि वजह से मै अपने गुरु जी का आदर्श शिष्य न बन सका उस औषधि का इस कुटिया में क्या काम? इसे ले जाओ इसे किंतु इसका सेवन दूध के साथ ही करना है घी का सेवन बढ़ा देना है इसका सही असर लगातार 108 दिनो के सेवन पर होता है। यह औषधि ज्यादा है कम से कम दस लोगों के लिए इसका समुचित उपयोग करना बची औषधि को फेंक देना जो तुम्हारी इच्छा हो किंतु यह औषधि मेरी कुटिया में अब नही रहेगी। लेकिन एक बात और बता दूं सजिया इसका कुटिया में सेवन कर रहा था और कुटिया के आस पास दूर दूर तक किसी स्त्री का आगमन नही होता था घर में किसी को सेवन कराओगी तो उसकी कैसी प्रतिक्रिया होगी इस बारे में मुझे तनिक भी अनुभव नहीं उसकी जिम्मेवार तुम होवोगी। सजिया ने औषधि ली और वापिस आने लगी तभी पीछे से बाबाजी ने उसकी गांड़ पकड़ के चूत तक भींच लिया। बाबाजी को एहसास हो गया चूत ठीक होकर फैल गई है।​
सजिया घर आ गई औषधि को एक जगह छिपा दिया और सोचने लगी जब मेरा बेटा हैदर आएगा तब उसे बिना बताए दूध में सेवन करा दूंगी ।​
किंतु जब अनवर की एक माह तक घर आने की कोई योजना नहीं बनी तो सजिया बाबाजी की दी हुई औषधि की सच्चाई जानने के लिए उसे आजमाने की सोचने लगी।​
इस बारे में अपनी सच्ची सहेलियों प्रेमा और सविता से बताया। पहले तो कहने लगी बाबा बेवकूफ बना रहा होगा तुझे। बाद में वह दोनो भी तैयार हो गईं राजू और अंबर पर आजमाने के लिए।​
सजिया, प्रेमा सविता तीनों ही अब काम क्रीड़ाओं के मामले में बिलकुल खुल कर बातें करने लगी थीं । किंतु मनुष्य की यह प्रवृत्ति होती है कि पिता हमेशा अपनी बेटियों को बच्ची समझता है कम से कम तब तक जब तक उसके हाथ न पीले करवा दे। यही हाल मांओं का होता है वह अपने बेटों को बच्चा ही समझती हैं जब तक वह बाप न बन जाए। कहने का आशय यह है कि राजू और अंबर पर दवा आजमाने तक सविता और प्रेमा के दिमाग में कौटुंभिक व्यभिचार की कोई विचार मात्र तक नहीं था।​
राजू और अंबर की जवानी तो उफान मार ही रही थी प्रारंभ में मुट्ठ मारने की वजह से दोनो का लंड लंबा और पतला हो गया था दोनो शारीरिक रूप से भी कमजोर हो गए थे किंतु जब उन्हें बालिकाओं से दूर होना पड़ा तो शरीर ने आकार लेना शुरू किया, कंधे चौड़े हो गए, दोनो हाथ और जांघें मांसल हो गईं । दोनो को भाई बहन का रिश्ता भी समझ आ गया था। किंतु इसी बीच उनकी बिना जानकारी के दोनो के साथ औषधि का प्रयोग प्रारंभ हो गया । दो महीने तक तो दोनो को पता नहीं चला, लेकिन उसके बाद जब औषधि ने लंड की मोटाई बढ़ान शुरू की तब उन्हे चड्डी का साइज बदलना पड़ा लेकिन औषधि यहां तक नहीं रुकी जब दोनो के लंड 10 इंच लंबे साढ़े तीन इंच मोटे हो गए तब औषधि ने लंड में वीर्य का संचय बढ़ा दिया। अब राजू और अंबर के बस की भी बात नही थी वीर्य को बाहर निकलने से रोकना। रात्रि को स्वयं ही स्वप्न आ जाते और उत्तेजना में नागराज फन फुला के थूक देते वह स्वप्नदोष का शिकार हो गया को कि लाजमी था क्योंकि उसने मुट्ठ मारना लगभग बंद कर दिया था तो नागराज के पास यही एक विकल्प बचा था। यहां तक भी सहने योग्य था। अक्सर उसके सपने में अनजान सुंदरी आती थी धीरे धीरे झड़ने से पूर्व उसकी नींद खुलने लगी और वह पेट को पीछे खींच कर वीर्य निकलने से रोक देता। अब नागराज हैरान परेशान उन्होंने संकेत (सिग्नल) मस्तिष्क को भेजा और मस्तिष्क ने वीर्य बाहर निकालने के प्रयास जारी कर दिए । एक रात्रि राजू के स्वप्न में उसकी मां आ गई वह भी बहुत ही कामुक अंदाज में सपना छोटा था जिसमे उसे जगने से पांच मिनट पहले तक स्मरण रहा प्रेमा का पेटीकोट चूत से एक फीट नीचे खिसका हुआ था और उसने चूत में लंड डाल के पांच मिनट तक चुदाई की और उसकी नींद खुल गई चड्डी भीग गई रात के तीन बज रहे थे सुबह तक सूखने की कोई आशंका न होते देख उसे उठना पड़ा और चड्डी बदलनी पड़ी।​

बहुत ही शानदार अपडेट है
 

Rockstar_Rocky

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अपडेट-14
अगले दिन सजिया नीम के पास लगी महफिल में शामिल हो गई ताकि सविता और प्रेमा यह न कह सकें कि बलम के घर आने के बाद से दिखाई नहीं दे रही।......किंतु आते समय उसकी चाल बदली बदली सी लग रही थी सविता व प्रेमा देखते ही भांप गईं......
सविता: आते ही हैदर के पापा ने तेरी जवानी रगड़ दी लेकिन तू ऐसे टेढ़े मेढ़े पैर कैसे रख रही है वह तेरी पहले भी लेता था आज कोई नई बात थोड़ी है।
प्रेमा: सजिया कल रात तो पलंग पर सोने नही पाई होगी रात भर, ये तेरी चाल को क्या हो गया।
सजिया: कुछ नही सही तो चल रही हूं वो पैर में एक कांटा चुभ गया था।
प्रेमा: तू भी सजिया हम दोनो से झूठ बोलती है हम लोगों से क्या छिपाती है ऐसे तो हम भी आगे से कुछ नही बताएंगी।
सजिया: दीदी वो कल थोड़ा ज्यादा हो गया था रात में ।
सविता: दो दो बच्चों की महतारी (मां) हो गई है ....रात में ऐसा क्या हो गया जो तेरी चाल बदल गई।
सजिया: वो कल........कहकर सजिया ने दुपट्टे से अपना मुंह ढक लिया।
प्रेमा: बता बता शरमा क्यों रही है?
सविता (प्रेमा के कान में): कहीं हैदर के पापा ने इसकी गांड़ तो नही मार दी।
प्रेमा: पूछ के देख ले क्या पता इसीलिए शरमा रही हो।
सविता: इतना क्यों शरमा रही है कहीं फिजा के पापा ने तेरी गांड़ तो नही मार दी।
सजिया घूंघट के अंदर से ही धीमी आवाज में: हां
सविता: हे भगवान! तेरा मरद भी बंबई से पता नही क्या क्या सीख के आया है हम सब तो अभी तक सिर्फ गाली में ही इस्तेमाल करते थे उन्होंने तो तेरी सच में ही मार दी वह भी पहली ही रात में ।
प्रेमा: हमारी इतनी उमर हो गई हमने तो किसी से नहीं मरवाई।
सजिया जो इतनी देर से दबाव महसूस कर रही थी एक ही लफ्ज में दोनो को परास्त कर दिया: अब मरवा लो बहुत मजा आएगा।
प्रेमा: हे भगवान! देख रही हो सविता सजिया आज कैसी कैसी बात कर रही है।
सविता: सही तो कह रही है रोज दिन में चार बार गांड़ खुजलाती हो मरवा लो सारी खाज मिट जाएगी।
चढ़ली जवनिया के ले ला मजा रानी नाही तौ पिछवाऽऽऽ बहुत पछितइबू।
पछितइबू ... बहुत पछितइबू।।
चढ़ली जवनिया के ले ला मजा रानी नाही तौ पिछवाऽऽ बहुत पछितइबू।
पछितइबू ... बहुत पछितइबू।।
आज काल्हि करबू गोरिया नखरा देखइबु दुइ दिन मा माटिया के मोल होइ जइबू।
आज काल्हि करबू गोरिया नखरा देखइबु दुइ दिन मा माटिया के मोल होइ जइबू।
लड़े लड़ावे में ढली जवनिया तौ पिछवा के रानी बहुत तू रोइबू खूब रोइबू... बहुत तू रोइबू ।
चढ़ली जवनिया के ले ला मजा रानी नाही तौ पिछवाऽऽ बहुत पछितइबू।
पछितइबू ... बहुत पछितइबू।।
प्रेमा: हट हरामजादी तू मरवा ले तुझे ज्यादा खुजली है लेकिन गाना बहुत अच्छा गाया है।
सविता: मै तो मरवा लेती लेकिन अंबर के पापा ने कभी इच्छा नही जताई तो मै भी मन में रखकर रह गई।
प्रेमा: तो हैदर के पापा से मरवा ले।
सजिया: छी! चुप करो अंजली के मम्मी जो मन में आता है बोल देती हो।
प्रेमा: तू इसको भी रोक न ये भी तो ऐसे ही मनमर्जी बोल देती है। और तेरे मरद ने आते ही तेरी गांड़ कैसे मार दी कुछ बताएगी?
सजिया: तुमने ही कहा था शुरुआत में ही चूत में लंड ले लेना मैने वैसे ही किया था चूत सूखी थी तो उन्होंने थूक लगाया लेकिन वो चूत की बजाय गांड़ में लग गया और प्यासा लंड सरक के गांड़ में घुस गया ........
सविता और प्रेमा: फिर!
सजिया: फिर क्या मेरी गांड़ में पहली बार ऐसा कुछ घुसा था मेरी गांड़ ने सिकुड़ के लंड को पकड़ लिया और हैदर के पापा ने जोर का झटका लगाया था उनका लंड रगड़ खा गया वो गुस्सा हो गए और मेरी गांड़ हलाल कर दी।
सविता: अब तू संभल के रहना अब तेरे दोनो छेद खुल गए हैं चूत में आग लग गई तो गांड़ में भी पकड़ लेगी फिर फायर ब्रिगेड बुलानी ही पड़ेगी फिजा के पापा अगर परदेश में रहे तो फायर ब्रिगेड कहां से आएगी?
प्रेमा: वो सब छोड़ तू मौका है हैदर को वह औषधि दे दिया कर जवानी में कदम रखा ही है उसने औषधि बहुत अच्छे से काम करेगी लेकिन उसकी उमर के हिसाब से औषधि के साथ दूध और घी भी सही मात्रा में देना नही तो सारी ताकत नीचे चली जायेगी और तेरा बेटा सूख जाएगा।
सविता: घी न हो तो बता देना मै दे दूंगी।
सजिया: मुझे ध्यान तो था लेकिन मैने सोचा पहले पहले दिन ही देना सही नही है .....आज ही शुरू कर दूंगी।
सजिया वापिस जा रही थी कि राजू और अंबर एक पेड़ की ओट में बैठकर बातें कर रहे थे और रेडियो में कैसेट लगाकर अवधी गाना सुन रहे थे। बोल कुछ इस तरह से था:-

🎶🎵🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎵🎵🎵
माल बड़ा तू चोखा हऊ और कबो का लोका हऊ बाकी बनावट टंच हो,
मौका मिली तौ रगड़ देब जवानी का करिहैं मुखिया अउर पंच हो।🎶🎶🎶
माल बड़ा तू चोखा हऊ और कबो का लोका हऊ बाकी बनावट टंच हो,
मौका मिली तौ रगड़ देब जवानी.. का करिहैं मुखिया अउर पंच हो।

🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶
छिप जाई सोना चांदी जवानी छिप ना पाई... बहियां में आजा रानी रवानी फिर न आई ।
छिप जाई सोना चांदी जवानी छिप ना पाई... बहियां में आजा रानी रवानी फिर न आई ।
जिन मारा नक्सा हमरा से कइ लेब अरहरिया में लंच हो ।
मौका मिली तौ रगड़ देब जवानी.....................
मौका मिली तौ रगड़ देब जवानी का करिहैं मुखिया अउर पंच हो।🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶
अंखियां तरेरा तारु हो.... लागता फोर देबू बम, हमरा के सीधा साधा समझिहा न मैडम
गांव भरे से ऊपर हई न हमरा जैसन कोई लंठ हो,
मौका मिली तौ रगड़ देब जवानी का करिहैं मुखिया अउर पंच हो। 🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶
देखा तू आके सढ़ुआइन नजर हमसे लड़ाला नसा मा आके नस गोरिया हमसे सटाला..... दूर दूर तू उड़िला रानी लागल बा तोहरेऽव पंख हो,
मौका मिली तौ रगड़ देब जवानी का करिहैं मुखिया अउर पंच हो।
माल बड़ा तू चोखा हऊ और कबो का लोका हऊ बाकी बनावट टंच हो,
मौका मिली तौ रगड़ देब जवानी का करिहैं मुखिया अउर पंच हो।
सजिया बुदबुदाते हुए निकल गई: इनको शरम भी नही आती कैसे कैसे गाने सुन रहे हैं। लेकिन आगे बढ़ने पर जब गाने का अर्थ समझ आया और पुरानी बातें याद आईं तो सजिया को लगा ये तो सच में किसी की भी जवानी रगड़ सकते हैं लेकिन सजिया ने ध्यान हटाकर हैदर पर केंद्रित कर लिया।
उधर अनवर ने एक महीने तक सजिया का खूब रस चूसा रोज दूध पीता था चूत पीता था तीन दिन में एक दिन गांड़ मारता था। सजिया का दूध ऐसे बनने लगा था जैसे उसका कोई दुधमुंहा बालक हो।
साथ ही अनवर ने जाने से पहले अपनी कमाई से शौचालय भी बनवा दिया ताकि सजिया व उसके बच्चों को बाहर न जाना पड़े शौच करने।
लेकिन जाने से पहले अनवर ने अपने लाए हुए कपड़े पहनाकर सजिया की अंतिम दिन, रात दो बजे तक गांड़ और चूत मार मार के सुजा दी और उसने अपना वीर्य हर बार चूत में ही गिराया उसकी इच्छा थी कि सजिया एक बच्चों की मां और बने तीन वैसे भी कोई ज्यादा नहीं है। सजिया ने अपने अकेलेपन का हवाला देकर दो दिन पहले ही जिद करके हैदर की टिकट रद्द करवा दी थी । सजिया ने आंसू पोंछते हुए उसे विदा कर दिया......तब तक देखती रही जब तक आंखो से ओझल नहीं हो गया..... उसे वह लोकगीत याद आ गया:
रेलिया बैरन पिया को लिहे जाय रे!
जौने सहरिया को बलमा मोरे जैहें, रे सजना मोरे जैहें,
आगी लागै सहर जल जाए रे, रेलिया बैरन पिया को लिहे जाय रे!
जौन सहबवा के सैंया मोरे नौकर, रे बलमा मोरे नौकर,
गोली दागै घायल कर जाए रे, रेलिया बैरन पिया को लिहे जाय रे!
जौन सवतिया पे बलमा मोरे रीझे, रे सजना मोरे रीझें,
खाए धतूरा सवत बौराए रे, रेलिया बैरन पिया को लिहे जाय रे!”
इस रात सजिया को नींद नहीं आई ।
फिलहाल उसने संतोष किया कि हैदर तो कम से कम घर पर है। उसने अपना दिमाग अपने बेटे को जवानी में काम आने वाले अस्त्र को पुष्ट करने में लगाया जिसमे धार लगाने के लिए मिली औषधि की भारी कीमत सजिया ने चुकाई थी ।

इस update को पढ़ने के बाद सभी पाठक:

:lotpot:
खैर, मज़ाक को एक तरफ करते हुए:

मित्र आपकी ये update गाँव के रंगीन मिज़ाज़ लौंडों के बारे में थी, अवधि भाषा में गाये ऐसे रसभरे गाने को सुन कर बहुत आनंद आया| आगे भी अपनी update में इसी प्रकार गानों की चंद पंक्तियाँ लिखते रहिये| Update को जितना कामुक हो सके उतना बनाएं, चाहे तो एक-आध दिन और ले लें मगर इस तरह हम पाठकों को गर्म कर ठंडा न छोड़ें! :D
 

Rockstar_Rocky

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एक और बात मित्र, अपने आलोचकों की बात का बुरा न मानें| ये आलोचक ही हमें और जोश से लिखने का उत्साह देते हैं| जब भी कोई आलोचक आ कर कमेंट करे तो कृपया इस meme का प्रयोग करें:
 
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