अपडेट-10
बाबाजी ने सजिया की आशा में एक गद्देदार नरम बिस्तर तैयार कर लिया था और निश्चय किया था कि इस बार मौका मिला तो प्रेमा की तरह जल्दबाजी की बजाय आराम से धीरे धीरे चुसूंगा, चाटूंगा चोदूंगा। किंतु लंबा समय बीत जाने के बाद बाबाजी निराश हो गए थे।
बाबाजी सजिया को इतने दिनों से पानी पिलाते थे और सजिया ने बाबाजी जी के साथ सहवास का भी सपना संजो लिया था .......हालांकि यह लगाव केवल कामुक ही नही था बल्कि इसमें जिज्ञासा कौतूहल आदि भी था......सजिया मुस्लिम थी और दुर्लभ ही है कि किसी महिला को एक वानप्रस्थ बाबा को इतने निकट से जानने समझने का मौका मिले। सजिया तमाम प्रकार के प्रश्न बाबाजी से पूछा करती थी.....जैसे आपने किस आयु में गृह त्याग किया?....क्या आप पुनः गृहस्थ नहीं बन सकते?....आप जैसे सभी हो जाएं तो मानव सभ्यता का क्या होगा?......क्या आपने गृहस्थ जीवन का त्याग करके अपने मां बाप के साथ सही किया?....क्या आपने अन्य धर्मों की भी धार्मिक पुस्तकें पढ़ीं हैं ?......इसी तरह भांति भांति की जिज्ञासाएं बाबाजी से प्रश्न पूछकर सजिया शांत करती थी।.... और बाबाजी भी बिलकुल शांत चित्त से उत्तर दिया करते थे.....एक प्रकार से सजिया को बाबाजी से लगाव हो गया था।
एक दिन भोर में ही बाबा बबूल की दातून लाने गए थे दातून तोड़ी कांटे भरी डाली फेंकी और दातून करते हुए ही वापस कुटिया की ओर आने लगे रास्ते में कांटे से बचने के चक्कर में बाबाजी ने पैर उठाया और दूसरी ओर रखने वाले थे कि शरीर का संतुलन बिगड़ गया क्योंकि दूसरी ओर भी कुछ कांटे बिखरे हुए थे। इतना बाबाजी के लिए क्या था खेलते हुए बच्चे के गिरने जैसा बाबाजी तुरंत उठ खड़े हुए। ....उठते ही बाबाजी को एहसास हुआ एक कांटा पैर बचाने के चक्कर में हाथ में चुभ गया और एक लिंग में हाथ का कांटा बाद में बाबाजी ने संभल कर निकाल लिया। लेकिन फुर्ती से उठने के कारण लिंग वाला कांटा टूट गया हालांकि लिंग में कांटे की बहुत ही मामूली लंबाई शेष रह गई थी क्योंकि ऊपर लंगोट था। किंतु बबूल के कांटे से खून शायद ही कभी निकल लेकिन दर्द तेज होता है । बाबा कुछ देर के लिए फिर से बैठ गए लंगोट खोली कांटे को निकालने का प्रयास किया लेकिन व्यर्थ रहा ।
संयोग से सजिया उसी दिन बकरियों को घर की ओर हांकते हुए आ पहुंची। नल चलाया आवाज हुई लेकिन आज बाबाजी बाहर नहीं निकले।
सजिया बाबाजी के न आने का कारण जानने के लिए कुटिया के चौखट से ही झांकने लगी। उसे डर था कहीं गैर हिन्दू को बाबाजी टोक न दें । आहट मात्र से बाबाजी की स्वान निद्रा टूटी।
बाबा धीमी आवाज में : सजिया बिटिया अंदर आ जाओ बाहर से क्यों झांक रही हो। ......धीमे आवाज का कारण था से कर उठने के बाद कांटे का तीव्र दर्द.......सजिया बाबाजी का पास जाकर हाल जानना तो चाहती थी। किंतु
सजिया: नही बाबा मै बाहर ही ठीक हूं।
जिस तरह सजिया हमेशा ही बाबाजी को उत्साह में देखती थी आज वैसी स्थिति नही थी। इसलिए सजिया को लगा बाबा किसी गंभीर कष्ट में हैं।
बाबा: सजिया बेटी अगर मेरी चौखट पर कोई आकर बिना कुटिया में तनिक भी विश्राम किए वापस लौट जाए तो मेरा जीवन व्यर्थ है । तुम्हे अंदर आना होगा।
सजिया अंदर गई बाबाजी का हाल जाना तो पता चला कुछ नही हुआ हाथ में एक कांटा चुभ गया था। (बाबाजी ने असली बात छिपा ली हाथ का कांटा तो वो निकाल चुके थे)। थोड़ी देर के बाद सजिया अपने घर चली की ओर चल दी।
तीन दिन बाद फिर से सजिया का आगमन हुआ ।.......बाबाजी आज नल के पास पहुंचे तो लेकिन मंद गति से।
सजिया: अब क्या हुआ बाबा? हाथ तो ठीक हो गया आपका? ये इतना धीरे और छोटे कदम क्यों रख रहे हो आप?
बाबा: हां बेटी हाथ तो ठीक हो गया। कुछ नही बेटी बस कमर में दर्द है।
अब सजिया अकारण भी बाबाजी का हाल जानने पानी के बहाने आ जाया करती थी।
लेकिन बाबाजी जितना सोच रहे थे कांटा उतनी आसानी से पीछा नहीं छोड़ रहा था। लिंग का मध्य भाग टपटपाने (जैसे कोई फुंसी शुरुआत में पकती है) लगा तरीका भी केवल यही था कांटा पक कर ही निकल सकता था। एड़ियों की तरह दूसरे कांटे से खोदकर तो नही निकाला जा सकता था।
बाबाजी कई दिन छिपाते रहे। लेकिन जब सजिया एक दिन पीछे ही पड़ गई तो उन्हें सच्चाई बतानी पड़ी। सजियाने भी तीन चार दिन इंतजार किया लेकिन कांटा बहुत ही धीरे धीरे पक रहा था। सजिया को लगा बाबाजी जब मुझसे इतने दिन छिपाते रहे और इसी तरह करते रहे तो यह इनके पूरे लिंग को चपेट में ले सकता है।
सजिया ने सोचा कांटा तो अपनी रफ्तार से पकेगा लेकिन अगर यह पहले ही फूट जाए तो बह कर हफ्ते भर में ठीक हो जाएगा। उसने दिल कठोर किया और एक दिन बाबाजी की कुटिया में सीधे घुस गई।
सजिया: बाबाजी मै आज एक नुस्खा लाई हूं। काम हो गया तो अच्छी बात है न हुआ तो भी आपको कोई हानि नहीं होगी।
बाबाजी: लाओ बेटी नुस्खा कहां है?
सजिया: पहले आंख बंद करो बाबा?
बाबा ने आंख बंद की ........ सजिया ने अपनी कमीज उतार दी और वक्षस्थल को दुपट्टे से ढक दिया।
तेज धड़कन के साथ सजिया: आंख खोलो बाबाजी।
बाबाजी ने आंख खोली.......उन्हे सर्वप्रथम सजिया के गोरे पेट और नाभि का दर्शन हुआ ......कई दिनों से से रहे लंड ने सजिया का सलवार और नाड़ा देखकर उसे खोलने की चेष्टा करने लगा......लेकिन बाबाजी कराहने लगे.....किंतु सजिया के मांसल और दुग्ध से भरपूर चूंचियों को देखने की चेष्टा कम न कर सके. सजिया ने बाएं वक्षस्थल से दुपट्टा हटा दिया......अब बाबाजी को लंगोट खोलना पड़ गया लेकिन उन्होंने लिंग को लंगोट से ढके रखा। सजिया ने अंतिम दांव चला और पूरा दुपट्टा हटा दिया । बाबाजी ने गोल बड़ी दूध से भरी चूंचियां जिनमे तनिक भी ढीलापन न था देखी होश खो बैठे, कराहते भी रहे, लंगोट से कपड़ा हटा और उनका लंड फूलते इस स्तर पर पहुंच गया कि बाबाजी जोर से चिल्लाए उनका कांटे वाला भाग फूट गया और थोड़ी मवाद के साथ बह गया।
सजिया का नुस्खा काम कर गया इसलिए खुश तो हुई लेकिन बाबाजी का 12 फूट लंबा और चार इंच मोटा का लंड देखकर डर गई । बाबाजी को जब आराम मिला तो उन्होंने दूध पीने की इच्छा प्रकट की।
सजिया के तंग हो चूके चूचकों में से दूध बाहर आने को ही था इसलिए सजिया भी तैयार हो गई।
बाबाजी ने पहले सजिया के चूचकों की टोह ली फिर करीब दस मिनट तक दोनो चूंचियों को मींजते (मसलते) रहे। .....बाबाजी को सजिया की देंह से निकल रही गरमी महसूस हो रही थी सचमुच बेहद गरम बदन था शायद लंबे समय तक संभोग न करने और मांसाहार का सेवन की वजह से (हालांकि बाद में वह केवल अंडे का सेवन करती थी)।
सजिया खुद को बहुत संभालती रही कि कामुक आवाजें न निकलें लेकिन उससे रहा नही गया और मसलते समय आह आह करने के बाद पीते समय बाबाजी जी की पीठ सहलाती रही ।
बाबाजी (चूसते हुए): आ उम बहुत मीठे हैं तुम्हारे दूध सजिया पहले क्यों नही चखाया तुमने।उसके बाद बाबाजी ने दोनों चूचकों से करीब चार- चार सौ मिलीलीटर दूध खींचा । सजिया की चूत भी रिसने लगी थी लेकिन बाबाजी के लंड से डरी सजिया: आह आह आह बाबाजी अब चलती हूं सांझ हो गई है। कपड़े पहने और घर लौट आई। सजिया घर आई लेकिन उसे आज रात करीब डेढ़ बजे तक नींद नही आई उसके मन में कुलबुलाहट थी कि मैंने आज अपने पति से धोखा कर दिया....किंतु मैंने तो सिर्फ बाबाजी का इलाज किया था....भांति भांति के विचार.....लेकिन जब बाबाजी के लंड की छवि उसके मन में उभरती उसकी चूत चोक लेने लगती गांड़ के छिद्र सिकुड़ने लगते पुनः दोगुनी उत्तेजना से ढीले होते ...इस तरह आखिरकार सजिया सो ही गई।
सजिया के सामने दुविधा थी एक ओर उसकी चूत बाबाजी के साथ संभोग करके पति की कमी पूरा कर लेना चाहती थी वहीं मन उसका इतने बड़े लंड के साथ संभोग की गवाही नहीं दे रहा था।
अब सजिया बाबाजी से करीबी को दूरी में बदलना चाह रही थी क्योंकि वह बाबाजी के लंड से सचमुच डर गई थी अब बातें भी गांव, गोरू और अध्यात्म की अधिक करने लगी। लेकिन बाबाजी ने जो दूध पिया था वह दो दिन में फिर बन गया जबकि सजिया न तो किसी बच्चे को दूध पिलाती थी न ही गर्भवती थी।
करीब पंद्रह दिन इस घटना को गुजर गए बाबाजी का लंड ठीक हो गया।
बाबाजी: सजिया उस दिन तुम्हारा नुस्खा काम कर गया मै तो फिर से चंगा हो गया। लगता है तुम्हारा दूध काम कर गया।
सजिया: नही बाबाजी वह तो मुझसे भूल हो गई थी।
बाबाजी: भूल किस बात की तुमने तो मुझ पर एहसान किया है सजिया। मै भी तुम्हारे लिए कुछ करना चाहिए।
आओ चलो बैठो थोड़ी देर कुटिया में। सजिया ने पहले मना किया लेकिन बाबाजी के हठ करने पर चली गई बाबाजी जी ने गुड़ और चबैना (देसी चावल की लाई) दिया सजिया ने खाया और बाबाजी का दिया हुआ पानी पिया । बाबाजी अर्धनग्न रहते थे इसलिए करीब बैठी महिला का उत्तेजित होना लाजमी तो था ही बाबाजी जो पहले से ही संभोग का विचार बनाए हुए थे का भी लंड लंगोट के भीतर गुलाटी मारने लगा।
बाबाजी ने डरी हुई धीमी आवाज में कहा: सजिया आज फिर दूध पिला दो। और सिर नीचे झुका लिया। सजिया बाबाजी के लंड से डरी हुई थी लेकिन उसे बाबाजी पर तरस आ गया और उसने सोचा उस दिन की तरह ही दूध पिला कर चली जाऊंगी। यह सोचते ही उसके चूचक कड़े हो गए चूंचियां तन गईं शरीर से धाह निकलने लगी उसके कमीज उठाते ही बाबाजी टूट पड़े दोनो चुचियों को मसल डाला । लंड लंगोट में नहीं समा रहा था।इसलिए अलथी पालथी मार कर बैठ गए और उसे भी सामने पहले तो आलथी पालथी बैठाया लेकिन दूध चूसने में हो रही दिक्कत के कारण उसके दोनो पैर अपने पैरों के उस पार रख कर सजिया के साथ आमने सामने सट कर बैठ गए। बाबाजी ने दोनो चूचकों में से दूध पिया मसल तो पहले ही दिया था। सजिया होश खो बैठी थी । बाबाजी ने दूध चूसने के बाद उसका पेट चाटना शुरू कर दिया जिससे वह अपना भार पीछे की ओर रखकर लेट गई। बाबाजी ने नाभि से होते हुए अपने हाथ को सलवार के नाड़े के पास रखा । बाबाजी के हाथ को अत्यधिक तेज जलन महसूस हुई। बाबाजी ने अचानक सलवार के अंदर हाथ डाल दिया बाबाजी का हाथ भीग गया । सजिया ने बाबाजी का हाथ पकड़ कर निकाल दिया और उठना चाही लेकिन उसकी चूत ने उसे ऐसा करने से मना कर दिया और लेटी रही। बाबाजी का लंड जो अभी तक लंगोट के अंदर गुलाटी मार रहा था लंगोट के ढीला होने के कारण बाहर आ गया । बाबाजी ने आव देखा न ताव सजिया का नाड़ा खींच लिया सजिया ने अपनी चूत पर हाथ रख कर उसे छिपा लिया लेकिन उसकी उठने की हिम्मत न हुई।बाबाजी ने नाभि के निचले हिस्से को सहलाते हुए उसके हाथ को हटा दिया सजिया की आंखे बंद हो गईं। सजिया की छोटी छोटी झांटों के बीच बने छिद्र से पानी रिस रहा था जो उसके नीचे बने एक और सांवले छिद्र तक जाता था उसके बाद सलवार से लग कर उसे गीला कर रहा था। बाबाजी ने सोचा इसकी सलवार गीली हो गई तो घर कैसे जायेगी यह द्रव्य तो बहुत ही चिपचिपा है पता नहीं सूखेगा भी या नहीं कहीं दाग न पड़ जाए। और उन्होंने सजिया की चूत की भगशिश्निका को रगड़ते हुए धीरे धीरे सलवार को उतार कर दें दिया अभी तक कुटिया का दरवाजा बिल्कुल खुला हुआ था । बाबाजी दरवाजे पर बांस से बने दरवाजे को रखने के लिए उठे वापस बैठते समय सजिया ने आंख खोल ली थी । बाबाजी का बड़ा काला नाग जैसा झूलता लंड सजिया ने देख लिया।
सजिया डरते हुए: मै इसे नही ले पाऊंगी....मुझ पर रहम कर दो जाने दो।
बाबाजी: सजिया तुम तो ख्वामखाह ही डर रही हो। मुझे दूध पीना था मैने पी लिया अब तुम जा सकती हो मै कोई जोर जबरदस्ती थोड़ी करूंगा।
बाबाजी सजिया के बगल आ कर लेट गए। अंदर से बहुत कष्ट था लेकिन उसे सलवार वापस पहनाने लगे। जैसे ही बाबाजी का हाथ सजिया की चूत के पास पहुंचा इतनी देर से उत्तेजना को दबाए बैठी सजिया चूत जोर जोर से खुजलाने लगी और उसने बाबाजी का हाथ वही दबा दिया और कस कस के रगड़ने लगी और बाबाजी के होंठ पीने लगी । बाबा जी की दो उंगलियां सजिया की चूत में घुस गईं कुछ देर में सजिया झड़ गई .....बहुत ही अधिक योनिरस निकला था बाबाजी का हाथ भीग गय बाबाजी की लिंग अब बर्दाश्त से बाहर हो रहा था। सजिया तो पड़ गई थी उसे आज कही महीनों बाद पुरुष के स्पर्श से झड़ने का मौका मिला था। बाबाजी ने सजिया को फिर से उत्तेजित करने के लिए इस बार गांड़ का सहारा लिया बाबा ने सजिया की गांड़ सहलानी शुरू की तो सजिया ने दोनो पैर फैलाने शुरू किए बाबाजी ने गांड़ में दो उंगलियां डाल दीं उसके बाद एक ही हाथ का अंगूठा चूत में और दो उंगलियां गांड़ में चलाने लगे । चूत और गांड़ एक साथ चोक लेने लगी सजिया के दोनो पैर खुल गए। सजिया फिर से डी उत्तेजित हो गई आप लोगों को पता होगा कोई एक बार झड़ कर फिर से उत्तेजित हो जाए तो दोबारा झड़ने में बहुत समय लगता है।
सजिया: आह आह आ आ आह आज क्या होगा बाबाजी
बाबाजी: जो तुम्हारी इजाजत होगी।
सजिया: डाल दो बाबाजी अब और बर्दास नहीं होता।
बाबाजी ने अपना लंड पकड़ा जो कि अभी तक रिस रिस के भीग गया था और सजिया की चूत पर पटकने लगे सजिया सिसकारियां लेने लगी।बाबाजी ने लिंग को चूत में प्रवेश करने जा प्रयास किया लेकिन चूत और लिंग दोनो के भीगे होने के कारण लिंग फिसल गया। लिंग अपने पूरे आकार में था बाबाजी ने हाथ से पकड़ के लंड को चूत पर लगाया और आधा इंच अंदर कर दिया। सजिया छटपटाने लगी पलट कर खुद को बाबाजी से अलग कर लिया। बाबाजी को लंड चूत के मुंहाने तक पहुंचने के बाद हटाना पड़ा था बाबाजी को कुछ नही सूझा और उन्होंने सजिया से कहा अगर यह तुम्हारी चूत में नही जा सकता तो इसे मुंह से ही शांत कर दो और सजिया के कुछ न बोलने पर उसके मुंह में डाल दिया। सजिया का मुंह भर गया लेकिन बाबाजी जोश में थे उन्होंने गचा गच मुंह में चोदने लगे जब सजिया की सांस फूलने लगी तो बाहर निकालकर उसके चेहरे पर पट पट मारने लगे फिर से अंदर किया ढाई मिनट तक अनियंत्रित गति से चोदने के बाद जब बाबाजी के लंड ने वीर्य उगला लंड थोड़ा पीछे आया तो सजिया की अटकी सांस के साथ पूरा वीर्य अंदर चला गया लेकिन लंड से वीर्य बहता रहा सजिया पीती रही करीब दो सौ एमएल वीर्य निकला होगा।
बाबाजी: मैने आज तुम्हे भी दूध पिला दिया सजिया।
सजिया (खांसते हुए): बच गई मैं नहीं तो मेरी जान निकल जाती।
अब बाबाजी बिस्तर पर लेट गए। लेकिन सजिया की चूत की खुजली बढ़ती जा रही थी।
बाबाजी ने कहा: मुझे लगता है आज अगर हम दोनो संभोग नही कर लेते तब तक दोनो में से किसी को भी चैन सुकून नहीं मिलेगा।
सजिया: बात तो सही है आपकी लेकिन ये जाएगा कैसे आपका मूसल और ये इतना बड़ा और मोटा कैसे हो गया है?
बाबाजी: मेरे गुरु जी ने दिया था किसी और काम के लिए लेकिन मै भी इसका कैसा उपयोग कर.... सजिया ये बात किसी और दिन .....
सजिया: ठीक है बाबाजी कोई उपाय जल्दी ढूंढों।
बाबाजी: अभी मेरे लिंग शांत है इसे अपने दोनो हाथों से जबरदस्ती धकेल धकेल के घुसा लो फिर धीरे धीरे कोशिश करेंगे तो हमे विजय जरूरी मिलेगी ।
सजिया: ये तरीका सही सुझाया आपने लेकिन जल्दी करो आज इस चूत की प्यास मिटा दो सींच दो इसे वीर्य से ।
बाबाजी और सजिया आपसी सहमति से एक दूसरे में पैर डालकर बैठ गए सजिया और बाबाजी के प्रयास से करीब चार इंच लंड अंदर गया होगा कि बाबाजी का लंड उत्तेजित होने लगा बाबाजी ने सजिया की पीठ हाथ से बांध ली और लिंग को अंदर घुसाने लगे बाबाजी को पता था इस बार नही गया तो कभी नहीं जाएगा। सजिया पहले कसमसाई फिर छटपटाने लगी बाबाजी ने सजिया के होंठ पर होंठ रखकर लंड को एक झटके में पूरा अंदर कर दिया सजिया जोर से चिल्लाई हाय अल्ला रे सिवान में दूर तक आवाज गूंज गई उसके दोनो आंखों के किनारों से आंसू छलकने लगे बेचारी रोने लगी हाथ पटकने लगी बाबाजी मूर्त रूप में बैठकर सजिया के पीठ पर हाथ बांधे रक्खा। सजिया रोते रोते बोली हाय अल्ला मर गई आज और उसे चक्कर आ गया उसकी चूत की दीवारें जो योनिरस से तरबतर थीं वह भी छलनी हो गईं उनमें दरार आ गई खून रिसने लगा उसकी चूत हलाल हो गई । किंतु प्रेमा की चुदाई की तरह ही बाबाजी को विश्वास था कि हमारा संभोग पूर्णता को जरूर प्राप्त करेगा। बाबाजी ने चक्कर के दौरान ही बेरहमी से लंड को चलाकर जगह बना डाली खड़े लंड को बाहर निकाला सजिया की चूत का खून पोंछा जल्दी जल्दी में कुछ हरी टहनियां तोड़कर बकरियों को देकर दरवाजा पुनः ढक दिया बकरियां अपनी मालकिन के इंतजार में दरवाजे के बिलकुल बाहर बैठ गईं थी समय ज्यादा होने पर वे भी मिमियाने लगी थीं। खैर बाबाजी वापिस आए सजिया की चूत पर ठंडा लेप लगाया शरीर पर मटके का शीतल जल छिड़का तब जाकर सजिया उठी उसका दर्द तो गायब हो गया था लेकिन जब उसने अपने चूत की हालत देखी तो उसकी आंख से फिर से आंसू ढुलकने लगे जो बंद होने का नाम ही नही ले रहे थे । सजिया को बाबाजी ने बाहों में भर लिया गांड़ पर हाथ लगाकर लंड को उसपार कर दिया ताकि उसे चुभे न और सजिया को सहलाने लगे।
बाबाजी: सजिया तुम कितनी प्यारी हो । मेरे पास अपर कोई उपाय भी नही था । मुझे माफ करदो सजिया।
सजिया कुछ नही बोली उसके आंसू नहीं रुक रक रहे थे। तब बाबाजी ने उसके होंठों पर होंठ रख कर चूसा उसकी चूंचियों को सहलाया (इस बार मसला नहीं) बाबा का लंड जो कि सजिया की गांड़ के नीचे से उस पार झांक रहा था उसे सजिया की भावनाओं को कोई कदर नही थी उसके मुंह पर तो खून भी अभी तक लगा हुआ था वह बार उठक बैठक लगाए हुए था जिससे सजिया की गांड़ में रगड़ के कारण गुदगुदी हो रही थी जो उत्तेजना का संकेत (सिग्नल) चूत को भी भेज रही अचानक सजिया की बुर पनियाने लगी सजिया का हाथ स्वयं ही बाबाजी के लंड को पकड़कर चूत के पास ले जाने लगा बाबाजी का खड़ा लंड तो यही चाह रहा था। बाबाजी ने लंड को अंदर किया ठंडे लेप का असर था ही चूत में दर्द तो होना नही था लेकिन हलाल होने से कौन बचा सकता था बाबाजी अनियंत्रित गति से लंड को अंदर बाहर करने लगे ।कचा कच भचा भच फचा फच की तो एक लय छोटी सी कुटिया में गूंजने लगी। सजिया भी इस बार साथ दे रही थी उसकी गरमी अब दिख रही थी वह अपनी गरमी के बल पर ही बाबाजी जैसे मर्द को टक्कर दे रही थी टक्कर ऐसी थी की पहली बार बाबाजी खड़े उसके दो मिनट बाद सजिया (हालांकि बाबाजी पहले इस बार खड़े क्योंकि उनका लंड काफी देर से खड़ा था) ।लेकिन सजिया उस समय चिल्लाने लगती जब चूत की कोई नई कोशिका फट जाती हालांकि ज्यादातर कोशिकाएं पिछले बार ही फट गईं थी जो लंड की राह में रुकावट पैदा कर रहीं थीं।
सजिया: आह आ आ आअ आऽऽऽह मार दो इस बुरचोदी को आज रात दिन कुलबुलाऽऽऽतीऽऽऽऽरहतीऽऽऽहै आ आई आई आह आऽऽऽआह और जोर से आह आईईई ऊह आह । सिसकारियों का सिलसिला चलता रहा पूरे पैंतीस मिनट की चुदाई में बाबाजी तीन बार झड़े तीन बार सजिया भी झड़ी । अंतिम बार सजिया ने वीर्य पीने की इच्छा जताई और पूरा वीर्य पी गई। दोनो एक दूसरे से लिपटे हुए ही बिस्तर पर ही गिर पड़े। दोनो की कामरस की थैलियां पर्याप्त खाली हो गईं थी। दोनो उठे एक दूसरे के जननांगों को दोनो ने साफ किया । दोनो के अंगो में पुनः थोड़ी मात्रा में उत्तेजना आई किंतु बाबाजी ने अपने नागराज को लंगोट में बंद कर दिया तो वहीं सजिया ने अपनी कामदेवी को सलवार में कैद कर दिया। बाबाजी ने सजिया को पौष्टिक पंजीरी खिला कर शरबत पिलाया ताकि उसमे ऊर्जा आ सके किंतु सजिया उठते कर बाहर जैसे ही आई लंगड़ाने लगी बाबाजी ने दौड़कर कंधा दिया फिर से कुटिया में बैठाया । दोनो बाहर के वातावरण से बेखबर थे बाहर निकले तो समय ज्यादा हो गया था पर्याप्त अंधेरा छा गया था सजिया का जी कचोटने लगा अपनी बिटिया फिजा के बारे में सोचकर जो सजिया के आने के बाद पड़ोसियों के बच्चों के साथ खेलती थी उसका दिल रोने लगा कि उसने देंह की आग बुझाने के लिए बेटी को भूल गई......किंतु एक खयाल और सजिया के मन में उठ रहा था कि अगर बिटिया ने दिया नही जलाया होगा और डरकर किसी और के घर रुक गई होगी तो सबको पता चल जाएगा ...कैसे मुंह दिखाऊंगी लोगों को....और इन बकरियों के साथ तो जाना बिलकुल ठीक नही....ये चिल्लाकर सभी को बता देंगी । बाबाजी की टॉर्च का सेल खतम था लेकिन नाम मात्र का बचा था । समस्या पर समस्या खड़ी हो गई कि सजिया घर कैसे जायेगी रास्ते में उसे डर लगेगा बकरियों को सियार परेशान करेंगे वगैरह वगैरह ।बाबाजी ने दिमाग लगाया और दोनो बकरियों के मुंह पर कपड़ा बांध दिया। सजिया को घोड़इयां (पीठ पर) बैठाया और चल दिया गांव की ओर गांव अधिक दूर तो था नहीं बाबाजी जी गांव के करीब पहुंच गए गनीमत थी कि सजिया का घर गांव के बीच में नही था उसके घर का एक दरवाजा बाहर की ओर तो दूसरा उसके घर से सटे घरों के दरवाजे की दिशा में खुलता था। बाबाजी ने सजिया से बकरियों के बांधने का स्थान पूछा और चुपके से बांध कर वापस आ गए । अब जाकर दोनों की सांस में सांस आई ......लेकिन सजिया का जी बेटी में ही लगा रहा । बाबाजी ने टॉर्च बुझाकर सजिया को घर के और करीब किया ताकि वहां से अगर वह न जा पाए तो कोई बहाना बना सके। इतनी दूर से पैदल चल कर आए थे बाबा सो मन बहलाने के लिए बाबाजी ने सजिया की गांड़ में हाथ लगाकर उठा लिया। सजिया: बाबाजी आप भी एकदम बेशरम हो। बाबा: अच्छा सजिया मैं चलता हूं अपना खयाल रखना।
सजिया रेंगते हुए किसी तरह घर पहुंची । देखा तो उसकी बेटी ने दिया जला दिया था और सो रही थी लेकिन उसका बिस्तर सिर के आस पास भीगा हुआ था सजिया समझ गई उसकी बेटी उसके इंतजार में घर पर ही रह गई होगी और जब बाहर अंधेरा हो गया होगा तब डर के मारे किसी के यहां न जा सकी और रो रोकर सो गई मेरी प्यारी बिटिया । उसने खाट के पास बैठकर बिटिया को एक चुम्मी ली उसके बाद बिना जगाए किसी तरह कपड़े बदलकर, हाथ मुंह पैर धुलकर खाना बनाने लगी । खाना बनाकर अपनी बिटिया को जगाया तो उसकी बिटिया तेज तेज रोने लगी सजिया ने उसे छाती से लगा लिया फिर भी वह रह रहकर रोती रही किसी तरह चुप कराया खाना खिलाया । थकी मांदी बेचारी अपनी बिटिया के साथ ही सो गई ।