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Incest घर-पड़ोस की चूत और गांड़, घर के घोड़े देंगे फाड़

ajey11

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अपडेट-14
अगले दिन सजिया नीम के पास लगी महफिल में शामिल हो गई ताकि सविता और प्रेमा यह न कह सकें कि बलम के घर आने के बाद से दिखाई नहीं दे रही।......किंतु आते समय उसकी चाल बदली बदली सी लग रही थी सविता व प्रेमा देखते ही भांप गईं......
सविता: आते ही हैदर के पापा ने तेरी जवानी रगड़ दी लेकिन तू ऐसे टेढ़े मेढ़े पैर कैसे रख रही है वह तेरी पहले भी लेता था आज कोई नई बात थोड़ी है।
प्रेमा: सजिया कल रात तो पलंग पर सोने नही पाई होगी रात भर, ये तेरी चाल को क्या हो गया।
सजिया: कुछ नही सही तो चल रही हूं वो पैर में एक कांटा चुभ गया था।
प्रेमा: तू भी सजिया हम दोनो से झूठ बोलती है हम लोगों से क्या छिपाती है ऐसे तो हम भी आगे से कुछ नही बताएंगी।
सजिया: दीदी वो कल थोड़ा ज्यादा हो गया था रात में ।
सविता: दो दो बच्चों की महतारी (मां) हो गई है ....रात में ऐसा क्या हो गया जो तेरी चाल बदल गई।
सजिया: वो कल........कहकर सजिया ने दुपट्टे से अपना मुंह ढक लिया।
प्रेमा: बता बता शरमा क्यों रही है?
सविता (प्रेमा के कान में): कहीं हैदर के पापा ने इसकी गांड़ तो नही मार दी।
प्रेमा: पूछ के देख ले क्या पता इसीलिए शरमा रही हो।
सविता: इतना क्यों शरमा रही है कहीं फिजा के पापा ने तेरी गांड़ तो नही मार दी।
सजिया घूंघट के अंदर से ही धीमी आवाज में: हां
सविता: हे भगवान! तेरा मरद भी बंबई से पता नही क्या क्या सीख के आया है हम सब तो अभी तक सिर्फ गाली में ही इस्तेमाल करते थे उन्होंने तो तेरी सच में ही मार दी वह भी पहली ही रात में ।
प्रेमा: हमारी इतनी उमर हो गई हमने तो किसी से नहीं मरवाई।
सजिया जो इतनी देर से दबाव महसूस कर रही थी एक ही लफ्ज में दोनो को परास्त कर दिया: अब मरवा लो बहुत मजा आएगा।
प्रेमा: हे भगवान! देख रही हो सविता सजिया आज कैसी कैसी बात कर रही है।
सविता: सही तो कह रही है रोज दिन में चार बार गांड़ खुजलाती हो मरवा लो सारी खाज मिट जाएगी।
चढ़ली जवनिया के ले ला मजा रानी नाही तौ पिछवाऽऽऽ बहुत पछितइबू।
पछितइबू ... बहुत पछितइबू।।
चढ़ली जवनिया के ले ला मजा रानी नाही तौ पिछवाऽऽ बहुत पछितइबू।
पछितइबू ... बहुत पछितइबू।।
आज काल्हि करबू गोरिया नखरा देखइबु दुइ दिन मा माटिया के मोल होइ जइबू।
आज काल्हि करबू गोरिया नखरा देखइबु दुइ दिन मा माटिया के मोल होइ जइबू।
लड़े लड़ावे में ढली जवनिया तौ पिछवा के रानी बहुत तू रोइबू खूब रोइबू... बहुत तू रोइबू ।
चढ़ली जवनिया के ले ला मजा रानी नाही तौ पिछवाऽऽ बहुत पछितइबू।
पछितइबू ... बहुत पछितइबू।।
प्रेमा: हट हरामजादी तू मरवा ले तुझे ज्यादा खुजली है लेकिन गाना बहुत अच्छा गाया है।
सविता: मै तो मरवा लेती लेकिन अंबर के पापा ने कभी इच्छा नही जताई तो मै भी मन में रखकर रह गई।
प्रेमा: तो हैदर के पापा से मरवा ले।
सजिया: छी! चुप करो अंजली के मम्मी जो मन में आता है बोल देती हो।
प्रेमा: तू इसको भी रोक न ये भी तो ऐसे ही मनमर्जी बोल देती है। और तेरे मरद ने आते ही तेरी गांड़ कैसे मार दी कुछ बताएगी?
सजिया: तुमने ही कहा था शुरुआत में ही चूत में लंड ले लेना मैने वैसे ही किया था चूत सूखी थी तो उन्होंने थूक लगाया लेकिन वो चूत की बजाय गांड़ में लग गया और प्यासा लंड सरक के गांड़ में घुस गया ........
सविता और प्रेमा: फिर!
सजिया: फिर क्या मेरी गांड़ में पहली बार ऐसा कुछ घुसा था मेरी गांड़ ने सिकुड़ के लंड को पकड़ लिया और हैदर के पापा ने जोर का झटका लगाया था उनका लंड रगड़ खा गया वो गुस्सा हो गए और मेरी गांड़ हलाल कर दी।
सविता: अब तू संभल के रहना अब तेरे दोनो छेद खुल गए हैं चूत में आग लग गई तो गांड़ में भी पकड़ लेगी फिर फायर ब्रिगेड बुलानी ही पड़ेगी फिजा के पापा अगर परदेश में रहे तो फायर ब्रिगेड कहां से आएगी?
प्रेमा: वो सब छोड़ तू मौका है हैदर को वह औषधि दे दिया कर जवानी में कदम रखा ही है उसने औषधि बहुत अच्छे से काम करेगी लेकिन उसकी उमर के हिसाब से औषधि के साथ दूध और घी भी सही मात्रा में देना नही तो सारी ताकत नीचे चली जायेगी और तेरा बेटा सूख जाएगा।
सविता: घी न हो तो बता देना मै दे दूंगी।
सजिया: मुझे ध्यान तो था लेकिन मैने सोचा पहले पहले दिन ही देना सही नही है .....आज ही शुरू कर दूंगी।
सजिया वापिस जा रही थी कि राजू और अंबर एक पेड़ की ओट में बैठकर बातें कर रहे थे और रेडियो में कैसेट लगाकर अवधी गाना सुन रहे थे। बोल कुछ इस तरह से था:-
🎶🎵🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎵🎵🎵
माल बड़ा तू चोखा हऊ और कबो का लोका हऊ बाकी बनावट टंच हो,
मौका मिली तौ रगड़ देब जवानी का करिहैं मुखिया अउर पंच हो।🎶🎶🎶
माल बड़ा तू चोखा हऊ और कबो का लोका हऊ बाकी बनावट टंच हो,
मौका मिली तौ रगड़ देब जवानी.. का करिहैं मुखिया अउर पंच हो।
🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶
छिप जाई सोना चांदी जवानी छिप ना पाई... बहियां में आजा रानी रवानी फिर न आई ।
छिप जाई सोना चांदी जवानी छिप ना पाई... बहियां में आजा रानी रवानी फिर न आई ।
जिन मारा नक्सा हमरा से कइ लेब अरहरिया में लंच हो ।
मौका मिली तौ रगड़ देब जवानी.....................
मौका मिली तौ रगड़ देब जवानी का करिहैं मुखिया अउर पंच हो।🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶
अंखियां तरेरा तारु हो.... लागता फोर देबू बम, हमरा के सीधा साधा समझिहा न मैडम
गांव भरे से ऊपर हई न हमरा जैसन कोई लंठ हो,
मौका मिली तौ रगड़ देब जवानी का करिहैं मुखिया अउर पंच हो। 🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶
देखा तू आके सढ़ुआइन नजर हमसे लड़ाला नसा मा आके नस गोरिया हमसे सटाला..... दूर दूर तू उड़िला रानी लागल बा तोहरेऽव पंख हो,
मौका मिली तौ रगड़ देब जवानी का करिहैं मुखिया अउर पंच हो।
माल बड़ा तू चोखा हऊ और कबो का लोका हऊ बाकी बनावट टंच हो,
मौका मिली तौ रगड़ देब जवानी का करिहैं मुखिया अउर पंच हो।
सजिया बुदबुदाते हुए निकल गई: इनको शरम भी नही आती कैसे कैसे गाने सुन रहे हैं। लेकिन आगे बढ़ने पर जब गाने का अर्थ समझ आया और पुरानी बातें याद आईं तो सजिया को लगा ये तो सच में किसी की भी जवानी रगड़ सकते हैं लेकिन सजिया ने ध्यान हटाकर हैदर पर केंद्रित कर लिया।
उधर अनवर ने एक महीने तक सजिया का खूब रस चूसा रोज दूध पीता था चूत पीता था तीन दिन में एक दिन गांड़ मारता था। सजिया का दूध ऐसे बनने लगा था जैसे उसका कोई दुधमुंहा बालक हो।
साथ ही अनवर ने जाने से पहले अपनी कमाई से शौचालय भी बनवा दिया ताकि सजिया व उसके बच्चों को बाहर न जाना पड़े शौच करने।
लेकिन जाने से पहले अनवर ने अपने लाए हुए कपड़े पहनाकर सजिया की अंतिम दिन, रात दो बजे तक गांड़ और चूत मार मार के सुजा दी और उसने अपना वीर्य हर बार चूत में ही गिराया उसकी इच्छा थी कि सजिया एक बच्चों की मां और बने तीन वैसे भी कोई ज्यादा नहीं है। सजिया ने अपने अकेलेपन का हवाला देकर दो दिन पहले ही जिद करके हैदर की टिकट रद्द करवा दी थी । सजिया ने आंसू पोंछते हुए उसे विदा कर दिया......तब तक देखती रही जब तक आंखो से ओझल नहीं हो गया..... उसे वह लोकगीत याद आ गया:
रेलिया बैरन पिया को लिहे जाय रे!
जौने सहरिया को बलमा मोरे जैहें, रे सजना मोरे जैहें,
आगी लागै सहर जल जाए रे, रेलिया बैरन पिया को लिहे जाय रे!
जौन सहबवा के सैंया मोरे नौकर, रे बलमा मोरे नौकर,
गोली दागै घायल कर जाए रे, रेलिया बैरन पिया को लिहे जाय रे!
जौन सवतिया पे बलमा मोरे रीझे, रे सजना मोरे रीझें,
खाए धतूरा सवत बौराए रे, रेलिया बैरन पिया को लिहे जाय रे!”
इस रात सजिया को नींद नहीं आई ।
फिलहाल उसने संतोष किया कि हैदर तो कम से कम घर पर है। उसने अपना दिमाग अपने बेटे को जवानी में काम आने वाले अस्त्र को पुष्ट करने में लगाया जिसमे धार लगाने के लिए मिली औषधि की भारी कीमत सजिया ने चुकाई थी ।
 

Sanju@

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अपडेट-9...…
जमुना प्रसाद........​
अपने बड़े भाई से सीखकर जमुना प्रसाद ने भी पशुपालन अपना लिया। जमुना प्रसाद खेती के काम तो संभाल देता था लेकिन पशुपालन के काम में हाथ नही बटा पाता था क्योंकि वह बैल खरीदने बेचने का भी काम करता था । प्रत्येक बुधवार को जब गांव से सात किलोमीटर दूर एक गांव में बाजार लगती तो वह पैदल ही बैलों को ले जाता था। कई बैलों को अपने खेत में चलाकर सुधारता था फिर उनके अच्छे दाम लगते थे। गांवों में एक कहावत मशहूर है भैंस के साथ भैंसा बनना पड़ता है मतलब भैंस पालना बहुत ही मेहनती काम है। यही हाल जमुना का था बैलों को ले जाना अनजान बैलों को ले आना नियंत्रित करना । इन्ही सब कारणों से उसकी शरीर भी बैल जैसी हो गई थी। दूध दही, घी का सेवन खूब करता था तभी तो बैल लेकर सात किलोमीटर पैदल चला जाता था और वापस आ जाता था। और अपने बच्चों को भी घी के सेवन की सलाह कतिपय दे ही देता था। पशुओं का काम सविता ही संभालती थी ज्यादातर। बाद में सविता ने किरन को भी इस काम में लगाना शुरू कर दिया। बांधने चराने का काम तो अंबर कर ही देता था। जमुना सविता को कुछ दिनों के अंतराल पर चोदता था शायद इसलिए कि इससे वीर्य अधिक इकट्ठा हो जाता था और सविता की चूत भी तंग हो जाती थी यही कारण था कि सविता कभी कभार गरमी में रहती थी इस वजह से ही उसके संवाद में गालियों का मिश्रण प्रारंभ हुआ था वरना प्रेमा तो इससे अधिक उम्र की थी फिर भी सविता ने ही प्रेमा को गालियों के मिश्रण से संवाद को निखारना सिखाया था। सविता तो गोबर कांछते समय, चारा डालते समय बछियों को भी गाली दे दिया करती थी। उसे पशुओं से संबंधित अनुभव भी खूब था, किसी भी गाय या बछिया को देख कर बता देती थी कि गाभिन है या नहीं वह भी सांड या कृत्रिम गर्भाधान के केवल एक महीने बाद। एक बार जमुना एक बछड़ा लेकर आया था जो खेत में बिल्कुल भी चलना नही जानता था और अभी तक उसका बधियाकरण (नपुंसक बनाने की विधि) भी नहीं किया गया था। जमुना सोचने लगा मिला तो कम दाम ने है लेकिन इसकी जोड़ी किससे लगाऊं।​
सविता: क्या सोच रहे हो।​
जमुना: यही की इस बछड़े का क्या करूं?​
सविता: इसे तो राजू के बछड़े के साथ नाध दो।​
जमुना: ठीक है तुम बात कर लेना । मै एक बार खेत की ओर जा रहा हूं।​
सविता: ठीक है।​
सविता: राजू के माई का कर रही हो।​
प्रेमा: कुछ नही अपनी सुनाओ क्या खबर लेकर आई हो।​
सविता: किरन के पापा एक बछड़ा लेकर आए हैं, मै सोच रही थी तुम्हारे बछड़े के साथ जोड़ लग जाए ।........... या फिर सांड बनाओगी उसे।​
प्रेमा: काहे का सांड बनाऊंगी। तू सही कह रही है वैसे भी दिन भर खों खोँ करता रहता है।​
सविता: हां कद काठी में ज्यादा नहीं है लेकिन कई साल का हो गया है।​
सविता: ठीक है फिर किरन के पापा से बोल दूंगी वह मेरी पशुशाला में बांध देंगे।​
प्रेमा (मन में): हामी तो भर ली लेकिन मेरी योजना अधूरी रह जाएगी।​
प्रेमा: तू क्यों परेशान होगी चारा मै ही डाल दूंगी अपने बछड़े को जब खेत में ले जाना हो ले जाएंगे किरन के पापा........सब एक ही तो है....चाहे यहां बंधा रहे चाहे तुम्हारे यहां। और एक साथ बांधने पर हो सकता है दोनो लड़ने लग जाएं दोनो में से एक भी बधिया नही किया गया है।​
सविता: ठीक जैसी मर्जी तुम्हारी।​
जमुना दूसरे दिन ही इन बैलों को सुधारने के लिए ले जाने की तैयारी करने लगा।​
जमुना: सविता ! जा राजू का बछड़ा लेते आ।​
सविता गई बछड़ा खोलने पहले तो वह भड़क गया लेकिन थोड़ी देर गला सहलाने के बाद सविता उसे खोलने के लिए जैसे ही झुकी उसने आगे दोनो पैर उठाए और चढ़ गया डेढ़ फुट का नुकीला लंड लहराते हुए हालांकि इतने में सविता खड़ी हो गई जिससे बछड़े का लौड़ा गांड़ के उपरी छोर से लेकर पीठ तक रगड़ खा गया। सविता की साड़ी भीगे भीगी महसूस हुई।​
सविता ने एक डंडा लिया फिर रस्सी खोली और बाहर ले जाने लगी। आधे रास्ते में ही बछड़ा सविता से छुड़ा कर भाग निकला । फिर जमुना ने उसे कंट्रोल किया।​
शुरू में दोनो बछड़े एक दूसरे को देख कर घूरते रहे उसके बाद दोनो ने पेशाब किया । धीरे धीरे जमुना ने नियंत्रित करके उन्हें खेत जोत दिया, प्रारंभ में उन्होंने काफी नाटक किया लेकिन कुछ देर बाद धीमे धीमे चलना शुरू किया।​
गांव में एक मात्र मुस्लिम परिवार था। सदस्य अनवर उसकी पत्नी सजिया बेटा हैदर बेटी फिजा। अनवर को जब गांव में आय का स्रोत नही नजर आया तो वह बॉम्बे चला गया एक साल बाद उसने अपने बेटे को भी वहीं बुला लिया बेटी फिजा यहीं साजिया के साथ रह गई।जब अनवर परदेस गया तब उसकी उम्र यही कोई 33-34 वर्ष रही होगी । सजिया की जिंदगी में अकेलेपन का अंधकार छा गया समय बिताना मुश्किल हो गया और तो और उसका वजन भी बढ़ गया।​
29 की उमर में उसकी जवानी सुलगने लगी और आग लगाने का काम किया उसके खान पान ने (मांसाहार ने) ।​
सविता : सजिया!​
सजिया को लगा तो किसी ने बुलाया लेकिन वह आवाज का पीछा विपरीत दिशा की ओर करते हुए आगे बढ़ने लगी।​
प्रेमा और सविता एक स्वर में: ओ सजिया!​
सजिया का जैसे ही ध्यान गया वह घूम गई। आई बहन।​
सविता: तू तो सुनती भी नही ।​
सजिया: न बहन ऐसी बात न है। मुझे लगा कोई किसी और को बुला रहा है।​
प्रेमा: बैठ! वैसे कहां जा रही थी।​
सजिया: मै तो खेत की ओर टहलने जा रही थी सोचा थोड़ा वजन कम कर लूं।​
सविता: ऐसे टहलने से क्या होगा। मरद बाहर रहता है, तो समय बिताने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा एक दो बकरी रख ले....तालाब की चराने निकल जाया कर....तेरी गांड़ की भी चर्बी न निकल गई तो बताना।​
सजिया: क्या बोल रही हो बहन।​
सजिया को सुझाव अच्छा लगा और उसने एक बकरी का प्रबंध कर लिया। हालांकि बकरी को तालाब किनारे ले जाने का कोई मतलब नहीं था। लेकिन 29 बरस की उमर में भी सजिया शरीर को ढीला नही पड़ने देना चाहती थी।​
इधर किरन, अंजली और कंचन को तो जानवर चराने से छुट्टी दे ही दे गई थी।​
बाबाजी को अब कभी कभार भी गांड़ का दर्शन नही होता था।​
समय बदला और सजिया उसी रस्ते से रोजाना गुजरती थी।​
एक दिन बाबाजी विश्राम कर रहे थे तभी सजिया आई और नल चलाकर पानी पीने लगी । जब तक नल के मुहाने पर हाथ लगाती तब तक पानी आना बंद हो जाता ।​
बाबाजी ने सिर्फ लंगोट पहन रखा था उठे और एक लाल गमछा बदन डाल लिया ।​
सजिया देखते ही डर गई और मुंह पर दुपट्टा डाल लिया।​
बाबाजी: डरो मत, पानी पिलाना तो पुण्य का कार्य है बेटी। और नल चलाने लगे .....​
सजिया बैठकर पानी पीने लगी और बाबाजी सजिया के कामुक गदराए बदन का मूल्यांकन करने लगे।​
उसके बाद झट से कुटिया में जाकर छेद पर आंख गड़ा ली सजिया मूतेगी।​
अंजली, किरन और कंचन तो तीन जनी थी किसी न किसी के पेशाब लग ही जाती थी।​
लेकिन सजिया को पेशाब नही लगी थी इससे बाबजी निराश हो गए।​
एक अन्य दिन​
बाबाजी: बिटिया कहां से आती हो किसके घर से आती हो? गांव में अभी तक तो किसी ने बकरी नही रखी थी।​
सजिया: मै हैदर की अम्मी। उसके पापा परदेस रहने लगे तो समय बिताने के लिए रख लिया ।​
हैदर कौन है? उसके पिता का नाम बताओ तब तो मालूम भी पड़े।​
सजिया (धीमी आवाज में): अनवर।​
बाबाजी: अच्छा अच्छा अनवर । सही है बेटी तुम्हारा पति कमाने गया है वरना यहां तो कोई रोजगार है नही खेती और पशु पालने के अलावा।​
सजिया इन सब चीजों से अनजान थी बाब सन्यास तपस्या आदि इसलिए जिज्ञासा वश पूछ बैठी।​
सजिया: आप यहां अकेले में क्या करत हैं। शुरुआत में तो मुझे लगा यहां कोई नहीं रहता।​
बाबाजी: मै यहां प्राचीन धर्म ग्रंथों का अध्ययन करता हूं, मैंने गृह का त्याग कर दिया है वानप्रस्थ जीवन व्यतीत कर रहा हूं।​
सजिया: भोजन कौन पकाता है बाबाजी।​
बाबा: मै स्वयं ही पकाता हूं।​
सजिया: क्यों आपकी पत्नी नहीं रहती साथ।​
बाबा (हंसते हुए): अरे बेटी! वानप्रस्थ जीवन में पत्नी का सवाल ही पैदा नहीं होता। मैने शादी ही नही की है।​
सजिया की नजर बाबा के लंगोट पर गई उसने देखा नीचे सामान्य से तीन चार गुना उभार था गोल गोल ....तनाव भी था।​
सजिया (पाने गटकते हुए): फिर भी आप कपड़े पहन लिया करो बाबा मुझे असहज लगता है।​
बाबा: बेटी मेरा यही वस्त्र है। मुझसे तो परदा भी करना व्यर्थ है।​
सजिया ने जैसे ही बाबा के उभार की कल्पना बड़े लिंग से की उसके शरीर में झुरझुरी छूट गई। आज उसे पेशाब लग गई।​
बाबाजी को आज सजिया के गांड़ का दर्शन करने का मौका मिल ही गया। बाबाजी इतनी सुंदर, मांसल गांड़ देखकर पागल हो गए। बाबाजी का लौड़ा फनफनाने लगा। उछलकर बाबाजी का लौड़ा लंगोट से बाहर आ गया।​
वैसे तो सजिया दीवार की ओट में मूत रही थी लेकिन मूतते हुए उसे लगा कहीं कोई देख न रहा हो कहीं बाबाजी ने देख लिया तो। इसी ख्याल से उसकी पेशाब रूक गई उसकी शरीर में गर्मी बढ़ गई। मूतने में दोगुना टाइम लगा।​
बाबाजी की समस्या ये थी शुरुआत कैसे की जाए। शादीशुदा औरत से कुछ कह दिया और गांव वालों को पता चल गया तो गांव वाले अस्मिता का सवाल बनाकर जान से मार डालेंगे। अब गेंद सजिया के पाले में थी।​
लेकिन सजिया तो जवानी की आग में जल ही रही थी लंबे समय में बाबाजी से उसका लगाव बढ़ गया और उसे लगने लगा कि अगर बाबाजी का लंड मिल जाए तो यह तो वानप्रस्थ जीवन बिता रहे हैं इनपर कोई शक भी नहीं करेगा और मेरी चूत की खुजली भी मिट जाएगी।​
बहुत ही शानदार अपडेट है
 

Babulaskar

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Waise is update ka besabri se intezar tha. Lekin khoda pahad nikla chuha" Eh sabit hua. Is me na romance tha aur naa hi koi fantacy ya uttejna. Update ka jyada hissa look geeti gaane ki gaand me ghus gaya. Ummed hai agli baar kuch dhamaka ho.
 
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ajey11

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Waise is update ka besabri se intezar tha. Lekin khoda pahad nikla chuha" Eh sabit hua. Is me na romance tha aur naa hi koi fantacy ya uttejna. Update ka jyada hissa look geeti gaane ki gaand me ghus gaya. Ummed hai agli baar kuch dhamaka ho.​

बाबूलस्कर जी मै Xफोरम पर आने वाले सभी पाठकों की भावनाएं समझता हूं इसीलिए प्रारंभ में लगभग सभी अपडेट उत्तेजना से भरे थे। तब एक पाठक ने शिकायत की थी कि कहानी इनसेस्ट की पटरी से नीचे फिसल रही है (उस समय ऐसा लग भी रहा था)।​
किंतु अब आपने कहानी के कई अपडेट पढ़ लिए हैं इसलिए अब आपको कहानी का हर हिस्सा स्पर्श करे और इनसेस्ट महसूस हो इसी प्रयास के साथ कहानी आगे बढ़ रही है। अनवर परदेस में रहता है इसलिए उसका काम भी वहीं है उसे विदा करना जरूरी हो गया था और हैदर को घर पर रखना आवश्यक हो गया था। और इस विरह के माहौल में चुदाई करवाना टाइफाइड में मुट्ठ मारने जैसा था। 😀
 
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ajey11

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Do dharam ko involve karna jaruri tha.... Ek dharam ke log nahi rakh sakte the, pehle baba se chudwa diye ghar ki aurat ko aur sajiya ko bhi faaltu me pel diya kahani me​
यह संभोग है यहां जाति, धर्म, रंग यहां तक कि रिश्ते का भी कोई स्थान नहीं है यहां सिर्फ दो जिस्म एक साथ होते हैं जिसे सहवास कहते हैं और दोनों एक दूसरे को तृप्त करते हैं । इस प्रकार की टिप्पणी का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि हो सकता है इस तरह की टिप्पणी पढ़ कर अन्य पाठक भी धर्म के नजरिए से देखने की ओर उन्मुख हों । आपने पात्रों का संवाद भी पढ़ा होगा आपको कभी ऐसा लगा कि दोनो के मध्य कोई तनाव है या ईर्ष्या है? बाकी पात्र तो काल्पनिक हैं ही उनमें कोई भिन्नता नही होगी तो कहानी आगे कैसे बढ़ेगी। अंजलि और किरन में क्या फर्क रह गया है सिर्फ यही कि एक राजू की बहन है एक अंबर की वरना दोनो एक जैसे प्रतीत होते । इसलिए कहानी में भिन्न प्रकार के पात्र जरूरी हैं।जहां तक बाबा कि बात है तो वह सामान्य व्यक्ति ही हैं किंतु गृहत्याग कर रखा है, वह कोई मंदिर के पुजारी नही हैं।​
बाकी आप सुझाव दें कहानी की दिशा परिवर्तित हो जाएगी किंतु इंसेस्ट के विपरीत नही जाएगी।​
 
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Blackmamba

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I am not interested in this story anymore....
यह संभोग है यहां जाति, धर्म, रंग यहां तक कि रिश्ते का भी कोई स्थान नहीं है यहां सिर्फ दो जिस्म एक साथ होते हैं जिसे सहवास कहते हैं और दोनों एक दूसरे को तृप्त करते हैं । इस प्रकार की टिप्पणी का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि हो सकता है इस तरह की टिप्पणी पढ़ कर अन्य पाठक भी धर्म के नजरिए से देखने की ओर उन्मुख हों । आपने पात्रों का संवाद भी पढ़ा होगा आपको कभी ऐसा लगा कि दोनो के मध्य कोई तनाव है या ईर्ष्या है? बाकी पात्र तो काल्पनिक हैं ही उनमें कोई भिन्नता नही होगी तो कहानी आगे कैसे बढ़ेगी। अंजलि और किरन में क्या फर्क रह गया है सिर्फ यही कि एक राजू की बहन है एक अंबर की वरना दोनो एक जैसे प्रतीत होते । इसलिए कहानी में भिन्न प्रकार के पात्र जरूरी हैं।
बाकी आप सुझाव दें कहानी की दिशा परिवर्तित हो जाएगी किंतु इंसेस्ट के विपरीत नही जाएगी।
 
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Blackmamba

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aapki story hai aap jaise chaho likho
 
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