Rockstar_Rocky
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मैने अचानक कहानी लिखना शुरू किया था। शीर्षक के बारे में सोचा नहीं था।
यह अंतिम शीर्षक है।
अपडेट-15राजू और अंबर की जिंदगी में सबकुछ ठीक चल रहा था उन्हें घर के सभी रिश्ते भी समझ में आ गए थे उन्हें यह भी पता चल गया था कि गांव में किसी के साथ आशिकी या अंतरंग संबंध बनाए तो धोखा हो सकता है मां बाप कि इज्जत मट्टी में मिल जाएगी। लेकिन आयु की वजह से लंड आए दिन रात के दूसरे पहर में उल्टी कर ही देता था लेकिन क्या किया जा सकता है बेचारों ने सह लिया और अपनी किस्मत समझ कर खुद को दिलासा देते रहे। सविता और प्रेमा को भी धीरे धीरे विश्वास हो गया था कि औषधि का सेवन बंद कर दिया गया है लंड की अधिक लंबाई धीरे धीरे उसके बच्चे समायोजित (एडजस्ट) कर लेंगे। जमुना प्रसाद आज फिर दोनो बछड़ों को खेत पर ले जा रहा था प्रेमा किसी काम में लगी थी सविता ने राजू से खोलने को बोल दिया बछड़ा रस्सी खुलते ही राजू को खींचने लगा प्रेमा या सजिया होतीं तो रस्सी छोड़ देतीं लेकिन राजू मर्द था उसने उसे नियंत्रित करने का प्रयास किया लेकिन उस बिगड़ैल बछड़े ने एक झटका दिया कि रस्सी राजू के हाथ से छूट जाए लेकिन राजू दुर्भाग्य से झटके में गिर गया और करीब दो मीटर तक घसीट उठा। सविता को शुरुआत में ही लगा था कि रस्सी छोड़ने को बोल दे लेकिन बाद में उसे भरोसा हो गया था कि राजू इसे संभाल लेगा। अचानक हुए घटनाक्रम में सविता ने राजू को हाथ देकर उठाया और चुप रहने का इशारा करते हुए अपने घर ले गई।सविता: राजू थोड़ी देर बैठ मै आती हूं।राजू: चाची! सुनो तो......सविता: कंचन के पापा! राजू का बछड़ा मुझसे रस्सी छुड़ा के भाग लिया।जमुना: अभी देखता हूं। ई ससुरा बहुत बिगड़ैल है .....खेत में चलना सीख जाए तो जल्दी ही इसको चंद्रभान भइया से पूछकर इसको बेंच आऊंगा।....और जाकर बछड़े को कुछ देर दौड़ाया ताकि थक जाय फिर उसे हाथ से ही दो हाथ मारा क्योंकि खेत में ले जा रहा था इसलिए पीटना सही नही समझा।सविता भागते भागते वापिस आई।सविता: हे राजू! राजू: हां चाची.....क्या हुआ?सविता: कुछ नही रे! तुझे कहीं चोट तो नही लगी?राजू: कुछ नही दाहिने पैर का घुटना थोड़ा छिल गया है। और बाएं हाथ के बल झटके से गिरने पर ज्यादा जोर आ गया था मरोड़ जैसा दर्द है इसमें। लेकिन आप इतनी क्यों परेशान हो रही हो।सविता: अरे राजू बेटवा! अगर चोट अंबर को लगी होती तो मैं परेशान नहीं होती । तुम्हारी मम्मी को पता चल जाएगा तो मुझे बहुत सुनाएंगी कि मेरे बेटे को इसी ने चोटिल करवा दिया।राजू: कुछ नही होगा चाची।सविता: तुम हाथ की चोट एक दो दिन छिपा लेना बस बाकी घुटने में दर्द होगा नही उसमे भी जल्दी पपड़ी बन कर निकल जाएगी।राजू: ठीक है चाची मै चलता हूं।सविता: रुक हल्दी तेल लगा देती हूं। एक घंटे रुक जा फिर हल्दी धुल कर चले जाना और घुटने में एक मरहम है वो लगा देती हूं।राजू अब जब बड़ा होकर महिलाओं से दूर हुआ था उसके बाद से अचानक आज ही किसी महिला के इतने करीब आया था वह भी कोठरी में जिस बिस्तर पर सविता रात को सोती थी.....हां वहीं ले आई थी सविता सबसे छिपा के जो रखना था । उसने बहुत नियंत्रण की कोशिश की लेकिन उसके नागराज ने चाची के पसीने से चूत तक की खुशबू सूंघ ली थी इसीलिए बाहर झांकने का प्रयास करने लगे । राजू फंस गया था खड़ा लंड लेकर खाट पर से उठ भी नही सकता था और उधर सविता हल्दी तेल लाने गई थी। उसे जैसे ही सविता के कदमों की आहट सुनाई दी उसने अपना पेट खींच कर किसी तरह नागराज को चित कर दिया लेकिन उसने गलती कर दी थी.......वह नागराज के अगले दांव से अनजान था जैसे ही सविता राजू के पास आकर खाट पर बैठी नागराज ने दोगुनी तेजी से सिर उठाया बाहर झांकने के लिए अब एकमात्र बचे विकल्प का इस्तेमाल किया उसने एक हाथ से चुपके से लंड को दबाए रखा लेकिन इस बार दोबारा और बड़ी गलती हो गई दूसरे हाथ में दर्द था ।सविता: पैंट ऊपर करले बेटा घुटने में मरहम लगा देती हूं।राजू: पहले हाथ में हल्दी लगा दीजिए।अगर दाएं हाथ से लंड को नही दबाए होता तो खुद ही हल्दी लगा लेता इसलिए ऊपर लिखे वाक्य को उसने इतने प्यार भरे लहजे में पहली बार बोला था उसमें अजीब आकर्षण और लड़कपन था। सविता जैसे मोहित सी हो गई ।सविता: ला बेटा पहले हाथ में ही लगा देती हूं।सविता राजू का ऐसे इलाज कर रही थी जैसे वह वैद्य हो पूरी जिम्मेदारी से, इसीलिए ज्यादा प्यार बरसाने के कारण राजू की निगाहें सविता के वक्षस्थल का अवलोकन करने ही लगीं । सविता ने राजू को शांत देखकर उसका चेहरा देखा तब उसे समझ आया कि वह एक जवान का हाथ मल रही है न कि किसी बच्चे का उसने इस काम को फौरन समेटा और मरहम के लिए पैंट उठाने के लिए बोला। अब उसे बायां हाथ हटाना ही पड़ा, अंदर नागराज तड़फड़ा रहे थे सविता को शक था कि इसके बाएं हाथ में भी चोट है इसलिए उसके हाथ हटाने पर नजर गई तो ऊंचे उभार और कसक को देखकर वह कारण नही समझ सकी कि आखिर इसका लंड खड़ा क्यों है क्या यह मेरे बारे में .........नही नही राजू मेरे अंबर की तरह अच्छा बेटा है ......फिर उसे समझ आया उसे दया आ गई बेचारे गबरू जवान मेरे राजू और अंबर इनकी अभी शादी भी हाल ही में नही होने वाली इनका भी क्या कसूर है ऊपर से सजिया ने और तंग कर दिया।राजू: ठीक है मैं चलता हूं।सविता: रुक कहां जा रहा है आराम कर ले ।राजू: नही चाची चलता हूं देर हो गई अभी मम्मी पूछेंगी कहां था।सविता: तो क्या कहेगा।राजू: यही कि अंबर की मम्मी के पास।सविता मन में ( हे भगवान ये अजीब लड़का है बातें बचकानी करता है और औजार पैंट में नही समा रहा....प्रेमा ये सब सुन गई तो पता नही क्या मतलब निकालेगी)सविता: नही बेटा कह देना अंबर के साथ बातें कर रहा था।राजू: लेकिन वह तो मेरी मम्मी के साथ गया है बीज बोने में मदद करने.......वह बराबर दाने छिड़कता है न! मुझसे ज्यादा कम हो जाता है।सविता निरुत्तर हो गई ।सविता: ठीक है बेटा फिर तो तू बोल देना मै घर ही था और तेरी मम्मी आ गई हों तो बोल देना यही टहल के आ रहा हूं।प्रेमा: अंबर! इधर आ बेटा।अंबर: क्या हुआ बड़की मम्मी।प्रेमा: मै पूछ रही थी वो खेत में बीज बोना था राजू के पापा रिश्तेदारी गए हैं बीज भिगोया हुआ है सड़ जाएगा फुरसत हो तो साथ चलेगा।अंबर: क्यों नही चलूंगा? चलो।बड़ी मम्मी के साथ चलने के कारण अंबर को ऐसा लग रहा था जैसे वह कोई बड़ी जिम्मेदारी संभालने जा रहा है ।प्रेमा और अंबर बीज बोने आए थे दोनो के मध्य कोई अश्लील विचार नहीं था किंतु अंबर का बड़ा लंड फास्फोरस का घर था कोई तीली लगा दे तो आग बन जाए उससे तो जवानी इतनी बर्दाश्त नहीं होती थी कि वह सविता को भी चोरी छिपे पेशाब करते हुए देखने की सोचता था लेकिन कभी सफलता हाथ नहीं लगी। कई घंटे बीत गए घर से खाया हुआ खाना पाचन ग्रंथियों ने पचाकर गुर्दे ने पानी अलग कर दिया प्रेमा को पेशाब लग गई बाग दूर था । उसकी बेचैनी से अंबर का अश्लील मस्तिष्क जाग गया वह भांप गया बड़ी मम्मी को पेशाब लगी है आज उसे चुदी चुदाई ही सही किसी बुर के दर्शन तो हो जायेंगे। प्रेमा ने भी अंबर से यह कहने में हिचकिचाहट महसूस की कि बेटा थोड़ा उधर देखना मै पेशाब करती हूं। प्रेमा को लगा कि सामान्यतः पेशाब करूंगी तो अंबर का भी ध्यान नहीं जाएगा।अंततः प्रेमा कम से कम बीस कदम दूर मेड़ के बगल बैठकर पेशाब करने लगी। अंबर के शातिर दिमाग ने इतनी तेज काम किया कि वह बीज छींटकते हुए मेड़ के किनारे से ही गुजरा हालांकि नजर बिलकुल सीधी थी किंतु तीन सेकंड के लिए उसने नजर प्रेमा की गांड़ पर टिका दी थी लेकिन आधी गांड़ ही दिख रही थी आधी तो साड़ी से ढकी हुई थी। लेकिन पेशाब की धार से पता चल रहा था कि प्रेमा चावल खा कर आई थी तभी उसे पेशाब पहले लग गई और कुकर की सीटी खेत में चूत बजा रहा थी।अंबर का लंड आधी गांड़ देखकर ही पूरा बाहर आने का प्रयास करने लगा किंतु अंबर तो चल रहा था इसलिए लंड नीचे से बाहर निकलने का असफल प्रयत्न कर रहा था क्योंकि पैर की लंबाई तो बेहद अधिक थी। प्रेमा ने देखा तो सोचा कि ई अंबरवा कौन पेन रखा है जेब में ई तौ बहुत मोटी दिखाई पड़ रही है।अंबर: राजू के मम्मी चलो हो गया बीज भी खतम हो गया और पूरे खेत में पड़ भी गया।प्रेमा: एक बात बता ई कौन सा पेन रखा है जेब में छोटा रेडियो है का?इतना सुनते ही लंड महोदय अंबर की मदद के लिए चुपके से छिप गए।अंबर: कुछ तो नही है ।प्रेमा ने दोबारा देखा तो वहां कुछ नही था बेचारी बोल के पछता रही थी।प्रेमा (मन में): अरे ये तो लिंग था अंबर का प्रेमा तू भी बिना सोचे समझे फट से प्रश्न पूछ बैठती है। लेकिन इसका लिंग खेत में मेहनत करते हुए कैसे सख्त हो सकता है कहीं मेरी गांड़ देखकर तो नही......प्रेमा ने खेत में मदद करवाई थी इसलिए उसने अंबर को पहले राजू के बिस्तर पर बिठाया बेना ( पंख) झला उसके बाद गुड़ देकर पानी पिलाया ।प्रेमा: पान सुपाड़ी तो खाता नही होगा बेटा?अंबर: नही नही आप परेशान मत होओ.प्रेमा: बेटा थोड़ी देर आराम कर ले तो मुझे भी अच्छा लगेगा संतुष्टि मिलगी ख्वामखाह धूप में तुझे परेशान कर दिया।आराम के दौरान विश्राम कर रहे लंड महाशय फिर विचरण करने निकल पड़े फूलकर पैंट में ही गुबार बन गए।प्रेमा (मन में): सजिया तूने तो कमाल कर दिया राजू और अंबर अब किसी घोड़े से कम नहीं बस इन बेचारों की जवानी संभल जाय ।ये दोनो ही घटनाएं प्रेमा और सविता के लिए सामान्य थीं लेकिन राजू और अंबर के लिए डूबते को तिनके का सहारा लग रहा था। एक बार मन कह रहा था ये सब गलत है तभी लंड की प्रेरणा से अश्लील मस्तिष्क कहता था भोग तो नही सकता लेकिन एक बार दर्शन करने में क्या हर्ज है फिर मैं अपनी मम्मी के मम्मों का दर्शन करने की थोड़ी सोच रहा हूं मैं तो राजू की मम्मी / अंबर की मम्मी के मम्मों का दर्शन करने की सोच रहा हूं।अरहर में प्रेमा शौच के लिए गई थी कि शौच से निवृत्त होकर बाहर आई अरहर और गेहूं के बीच बने मेढ़ पर चल कर वापिस जा रही थी कि तभी अंबर जो कि शाम की वजह से दूर शौच करने गया था सिर नीचे की ओर करके मस्ती में आ रहा था कि तभी एक नीलबैल (नीलगाय का नर रूप जिसके नुकीले सींग होते हैं) उसकी ओर दौड़ता हुआ दिखाई दिया यह वही नील बैल था जो बाबा की कुटिया के पास गोबर करता था । दरअसल नीलबैल को किसी ने अपने खेत में चरते हुए देख कर उसे ह् वा ह् वा कर के भगा दिया था रास्ते में छिपने की जगह न पाकर वह अरहर की ओर भागा था लेकिन अंबर को देखकर उसे लगा कि लोग उसे घेर रहे हैं और वह सरपट बाग की ओर भागा । नीलबैल और बाग के बीच ऐसा कोण बन रहा था कि अंबर को लगा वह उसकी ओर आ रहा है। अचानक अंबर गांव की ओर भागा जब प्रेमा से पांच फीट दूरी रह रह गई तब उसका ध्यान प्रेमा की ओर गया।
प्रेमा पीछे मुड़ी राजू ने अपनी रफ्तार पर ब्रेक लगाई और अनियंत्रित होकर प्रेमा को लेकर गेंहू के खेत में ही लोट गया ।
अंबर ऊपर होता तो झट से उठ जाता लेकिन वह नीचे आ गया था ऊपर प्रेमा थी पहले तो दोनो को कुछ समझ ही नही आया प्रेमा का वक्षस्थल अंबर के सीने पर रख उठा वह प्रेमा के उठने का इंतजार करने लगा प्रेमा की साड़ी अस्त व्यस्त हो गई थी ...... दोनों को एक दूसरी के शरीर की गरमी महसूस हो रही थी....जोर लगाकर किसी तरह प्रेमा उठ गई अपना आंचल ठीक किया ।
प्रेमा जब उठने के लिए जोर लगाई तो अंबर का मन कह रहा था कि दोनो हाथ से पकड़ के इसी गेहूं में बेलन की तरह घूम जाए लेकिन हिम्मत नही हुई।
अंबर ने पूरा घटना क्रम सुनाया।
प्रेमा: अंबर बेटा तुझे बुखार है क्या?
अंबर: नही तो।
प्रेमा (मन में): शरीर तो इसकी दहक रही थी।
अपडेट 3:ये पांचों तो नित अलग अलग अनुभव कर ही रहे थे। राजू और अंबर को एक और काम सौंपा गया था गोरू {गाय, बछरू (बछड़े) या भैंस} चराने का जिन्हे घर से डेढ़ किलोमीटर दूर तालाब के इर्द गिर्द चराना होता था हालांकि बरसात के दिनों में इतनी दूर नहीं जाना पड़ता था क्योंकि उस समय घर के आस पास और खाली खेतों में घनी घास उग आती थी। तालाब बड़ा था इसी तरह तालाब के उस तरफ से भी एक डेढ़ किलोमीटर दूर गांवों से लोग जानवर चराने ले आते थे। फिर जब शाम के पांच बजते तो मिट्टी के रास्ते जानवर वापिस आते और धूल उड़ने लगती इसलिए आज भी शाम का समय जब अंधेरा हो रहा होता है को अवधी लोग गौधिरिया (हिंदी -गोधूलि) कहते हैं। इसका अपना अलग ही आनंद होता था । कभी कभार जब खेत में बहुत जरूरी काम होता और मांओं को भी फुरसत न रहती तो अंजली और किरन जानवर चराने ले जाती हठ करके कंचन भी साथ हो लेती। हालांकि गांवों में उस समय इतना ईमान होता था कि अकेली लड़की भी सुनसान जगह पर मिल जाए तो कोई जबरदस्ती नहीं करता लेकिन फिर भी प्रेमा और सविता उन्हें समझा बुझा के समय से घर आने की हिदायत दे देतीं। एक बात और थी घर से एक -डेढ़ किलोमीटर दूर तालाब से जब राजू और अंबर वापिस जानवरों के ले आते तो जब घर छः सात सौ मीटर दूर रह जाता उस समय तक सब अपनी अपनी ओर निकल चुके होते अब 700 मीटर की दूरी सिर्फ राजू और अंबर के जानवर तय करते थे। वहीं पर एक बाबा तपस्या करते थे, मिट्टी की छोटी दीवार और सरपत से छाई हुई कुटिया में रहते थे बाहर एक नीम का पेड़ था। एक बार एक ब्लॉक प्रमुख ने सरकारी नल भी लगवा दिया था। बाबा ज्यादातर चैत (चैत्र या अप्रैल) और कातिक (कार्तिक या नवंबर) में क्रमशः गेहूं और धान के संचय हेतु मांगने निकलते थे। सुबह जल्दी उठना, कसरत और योग करना, प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन और तपस्या ही उनकी दिनचर्या थी। कुछ लोग उन्हें माठा (लस्सी) या खेत उगी सब्जी दे जाया करते थे। लौटते समय राजू और अंबर भी प्यास लगने पर पानी पी लिया करते थे। बाबा शाम पांच बजे तक भोजन बनाकर रख देते थे और उसके बाद विश्राम करते थे । कुटिया में दिन भर तो सूर्य का प्रकाश रहता था लेकिन साढ़े चार बजे के बाद जब सूरज पश्चिम की ओर ढलता तो प्रकाश में तीव्रता नही रह जाती थी और बाहर लगे नीम की घनेरी शाखाएं प्रकाश के रास्ते को और अवरुद्ध कर देती। एक दिन अंजली, किरन और कंचन जानवरों को लेकर वापस आ रही थी तभी कंचन ने प्यास लगने की बात कही और बाबा जी की कुटिया के पास लगे नल से पानी पीने लगी। कुटिया में कोई हलचल नहीं थी क्योंकि बाबा जी विश्राम कर रहे थे। वहीं किरन ने अपनी सलवार और चढ्ढी निकाली और नल की नाली के पास मूतने लगी नाली की मिट्टी बिल्कुल कीचड़ जैसी थी इसलिए पेशाब कीचड़ में रास्ता बनाने लगा और एक मधुर ध्वनि कंपन के साथ निकल पड़ी सुर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्र सुर्रर्रर्र ऽऽऽ. बाबा जी ने पहले सोचा था कि अंबर और राजू पानी पीने आए होंगे लेकिन अब उन्होंने सोचा कि नीलबैल (नीलगाय का नर रूप) गोबर करने आया है और आज उसको नही छोडूंगा। अक्सर नीलबैल बाबाजी की कुटिया के पास ही शाम को आकर नल के गड्ढे में पानी पीता थोड़ा इधर उधर अंगड़ाई लेता फिर गोबर करता और कभी कभी मूत कर चला जाता फिर बाबा जी को साफ करके फेंकना पड़ता नही तो उसमे गुबरैले उसमे गोली बनाते और बाबा जी कुटिया में ढकेल कर ले जाते। लेकिन जब बाबाजी ने आंख खोलकर करवट ली और बाहर झांक कर देखा तो कोई नीलबैल नही था जबकि एक सुंदर कन्या बीस तीस मीटर दूर लगे नल की नाली के पास मूत रही थी जिसकी एक दम गोरी सुडौल नरम गांड़ बाबा जी को बिल्कुल साफ दिख रही थी । किंतु कंचन अभी कच्ची थी सो बाबाजी ने ओह! अपने मन बच्ची लघुशंका कर रही है । कह कर अपना ध्यान पूरी तरह हटा लिया। किंतु इसी तरह जब एक दिन अंजली ने सलवार और चढ्ढी उतारकर गांड़ खोली और मूतने लगी तब बाबाजी की दोबारा ध्यान गया किंतु आज बाबा जी का ध्यान हटाए नही हट रहा था गोल गोल दो चबूतरे गोरी गांड़ के बीच एक सांवला छिद्र और उसके पास उगे छोटे छोटे बाल और मूतने की मधुर ध्वनि ने बाबाजी को मोह लिया आज पहली बार बाबाजी ने अपने जीवन में इस प्रकार कुंवारी कन्या की स्पष्ट गांड़ देखी थी जिसे मनभर कर देखा जा सकता था। वरना तो बाबाजी को महिलाएं रस्ता विरस्ता आते जाते मूतते हुए दिख ही जाती थी किंतु वहां ध्यान नहीं केंद्रित किया जा सकता था। खैर बाबाजी ने अपने लंड को कंट्रोल किया लेकिन थोड़ी ही देर में जैसे कछुआ अपना मुंह खोल से निकालता है लंड भी बाबा जी के ढीले लंगोट से बाहर निकल आया। बाबा जी को पता चल गया की इसमें इतने वर्षों से वीर्य संचित है अब यह बैठेगा नही और अंजली को पकड़कर या बहलाकर या मनाकर चोद भी दिया तो बेहोश हो जायेगी क्योंकि बाबा जी का बिना खड़ा हुआ एकदम काला लंड आठ इंच लंबा और साढ़े तीन इंच मोटा लटका रहता था। खड़े होने पर कितना बड़ा होगा ये बाबाजी को ही नही पता था सो बाबाजी ने लंड को लंगोट में बांधा और चुपके से निकलकर कुटिया के पीछे से जाकर उन तीनों से मिले ताकि उन्हें शक न हो बाबाजी ने देख लिया है और किरन को एक किनारे ले जाकर कहा कि अपनी मम्मी से कह देना बाबाजी ने किसी जरूरी काम के लिए बुलाया है। उसने कहा ठीक है बाबाजी।किरण ने यह बात अपनी मम्मी को बताई सविता ने सोचा बाबाजी ने बुलाया है तो जरूर कोई गंभीर बात होगी। दूसरे दिन सुबह शौच के उपरांत वहीं से ही सविता बाबाजी जी कुटिया के लिए निकल गई । सविता: बाबाजी आपने बुलाया था ?किरन कह रही थी। क्या हुआ? दाल वगैरह चाहिए क्या?बाबा: नही सविता।अब कैसे बताऊं तुम्हारे बच्चियों ने मेरी इंद्रियों का वश तुड़वा दिया।सविता: क्या हुआ मैं कुछ समझी नही।बाबा: तुम्हारी दोनो लड़कियां और प्रेमा की लड़की कल इस नल के पास,,,सविता: नल के पास क्या बाबाजी नल खराब कर दिया क्या बताओ मैं अभी इन हरामजादियों को दुरुस्त करके आती हूं।बाबाजी: वो नल के पास सलवार खोल के मूत रही थीं।सविता: कोई बात नही मैं उन दोनो को मना कर दूंगी।बाबा: लेकिन उससे मेरा मेरी इंद्रिय पर से वश छूट गया। मेरा लिंग आज चालीस साल की उम्र तक मेरे वश में था लेकिन कल शाम से आज तक बैठ नही रहा इसका क्या करूं दर्द ऊपर से हो रहा है। बीच बीच में थोड़ा सा वीर्य रिस जाता है ।सविता: तो मैं इसमें क्या करूं?बाबा: उस प्रेमा की बेटी ने मेरा इंद्रियवश भंग किया है तो मैं सोच रहा हूं की सजा भी उसे ही दूं। मै उसे ही बुला लेता लेकिन मेरा खूंटे जैसा लिंग वो संभाल नहीं पाएगी इसलिए उसे पकड़ने के लिए एक महिला जरूर चाहिए। इसलिए आपको बुलाया है। उसे लिंग के बारे में छोड़कर पूरी बात बताकर उसे सहमत करके आज दोपहर में ले आना खेत में काम के बहाने।सविता: अजीब आफत है । मै कोशिश करूंगी।और सविता जल्दी जल्दी घर आ गईखाना पीना करने के बाद जब फुर्सत मिली तो प्रेमा के घर गई।सविता : प्रेमा! क्या कर रही है।प्रेमा: आजा बहिनी सीधा (गेहूं पीसने के लिए पछोरकर तैयार करना) बना रही हूं आटा सिर्फ कल सुबह तक का बचा है।सविता : वो सब तो ठीक है पता है तुम्हरी बेटी ने बाबा जी का इंद्रियवश भंग कर दिया।प्रेमा: क्या बक रही है तू मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा है।सविता: तेरी बेटी बाबाजी की कुटी के सामने गांड़ खोलकर मूत रही थी अब उनका लंड काबू से बाहर हो गया बिना किसी योनि में गए अब शांत नही होगा।प्रेमा: तो मै क्या करूं?सविता: तेरी बेटी ने ये सब किया है तो तुम्हे ही कोई समाधान करना पड़ेगा आसमान से परी तो आयेगी नही।सविता ने प्रेमा को किसी तरह तैयार कर लिया।प्रेमा: चल एक ही बार की तो बात है।सविता: हां अंजली के पापा के साथ साथ एक और सही का कुछू घट जाएगा।प्रेमा: धत !
अपडेट- 16चंद्रभान और जमुना की बड़ी ट्यूबवेल साझे में थी जो खेत दूर था उसके लिए किन्तु घर पर साग सब्जी उगाने के लिए छोटे खेत के लिए केवल चंद्रभान की ट्यूबवेल थी।उसी ट्यूबवेल से सविता ने राजू को कहकर पानी लगाया था बरसीम का छोटा खेत जल्द ही भर गया बगल के खेत में आलू बोई हुई थी जो कि खोदने लायक हो गई थी......सविता की साड़ी नीचे पैरों के पास भीगी हुई थी....उसने तेजी से चलकर पानी बंद करवाना चाहा.....किंतु साड़ी में पैर अटक गया और वह गिर पड़ी..छपाक से... बरहे (सिंचाई हेतु पानी की नाली) में पूरी क्षमता से पानी जा रहा था और मिट्टी भी पिघल गई थी ......सविता की छातियों और एक तरफ के बाल में भी रेत जैसी मिट्टी घुस गई...... छपाक की आवाज सुनकर राजू दौड़कर आया अपनी चाची को पकड़कर उठाया।राजू: क्या हुआ चाची कैसे गिर पड़ीं।सविता: अरे बेटा पानी बंद कर पहले इसी के लिए मै तेज चलके आ रही थी साड़ी की वजह से गिर गई।राजू जाते हुए: तो आवाज लगा देती दौड़ने की क्या जरूरत थी।सविता पीछे पीछे आते हुए: बेटा मुझे थोड़ी मालूम था गिर जाऊंगी।राजू: ठीक है आप जाओ जल्दी से नहा लो।सविता: इसे ही फिर चला दे न टंकी में ही नहा लूं ....कहां जाऊंगी कीचड़ लपेट कर घर पर भी सब हंसेंगे।राजू: लेकिन पानी कहां जाएगा?सविता: इसी छोटे गड्ढे में काट दे पशुओं के लिए भी पानी भर जाएगा फिर पांच मिनट का ही तो काम है।राजू: चला तो देता मै लेकिन उसमे पानी काट कर मै नहाऊंगा।सविता: मै नहाऊंगा.....जैसे तू नहाएगा वैसे मै भी नहा लूंगी।राजू ने पानी चला दिया सविता ने टंकी में डुबकी लगाई लगभग सारी मिट्टी जो ऊपर से दिख रही थी छूट गई।लेकिन राजू नहाने नही उतरा उसे शरम आ रही थी सविता को लगा मेरी वजह से ही बेचारा नही नहा रहा है अब नल से पानी भर कर नहाएगा और रूष्ट भी हो जाएगा।सविता टंकी से शरीर की मैल साफ करने की मुद्रा में बाहर निकली राजू को धकेल कर गिरा दिया टंकी में।सविता: चल बड़ा आया ख्वामखाह ही शरमा रहा है तू नहा ले मै बाहर हूं.....बाहर आ जा मै नहा लूं...बस हो गया ....।जब राजू अंदर होता तो सविता बिना उसके निकलने का इंतजार किए ही घुस जाती लेकिन झट से राजू बाहर आ जाता....आता भी क्यों न शरम के बहाने स्तन के भी दर्शन हो रहे थे क्योंकि सविता टंकी में घुसकर बालों और चूंचियों में घुसी मिट्टी निकाल रही थी।राजू ने भी टंकी में गिरने के बाद शर्ट तो उतार दी लेकिन पैंट नही उतारी क्योंकि उसे लंड का कारनामा पता था।दोनो नहाकर बाहर आए सविता भागते हुए घर गई कपड़े बदलने और राजू ने भीगे कपड़े में ही ट्यूबवेल बंद की और घर चला गया......इस घटना ने राजू के मस्तिष्क में पानी के कारण सविता की बाहर से झलक रही चूंचियों का वास्तविक दर्शन करने की तीव्र इच्छा जगा दी।चूंकि यह घटना नहाते वक्त घटी थी इसलिए राजू को लगा कि नहाते हुए ही चाची के चूचों के दर्शन किए जा सकते हैं ।उसने अस्थाई स्नानघर में मौका पाकर झांकना शुरू कर दिया । चूंकि सविता तीन बच्चों की मां थी इसलिए वह नहाते समय इतना ध्यान नहीं देती थी उसे यह उम्मीद भी नही थी कि कोई उसके स्तन देखने के लिए स्नानघर में झांकेगा यही कारण था कि राजू बचता रहा। एक दिन वह ईंट खिसक गई जिस पर खड़ा होकर वह झांकता था तीन चार ईंटें एक साथ गिरीं राजू नौ दो ग्यारह हो गया......सविता झट से बाहर निकली कोई नही दिखा..... चार पांच ईंटें दिखीं लेकिन ये क्या ये ईंटें तो ऐसे लग रहा था जैसे महीनों से रखी हों ....दोबारा आ कर नहाने लगी ....उसे यह तो मालूम हो गया था कि उसे कोई कई दिन से निहार रहा है लेकिन कौन है यह अंदाजा नही लगा पाई......वह अपने स्तन देखकर मुस्कुरा उठी जो धीरे धीरे सख्त हो रहे थे।सविता भी कम शातिर नही थी ....उसने फिर लापरवाही करनी शुरू कर दी और एक दिन रंगे हाथ पकड़ लिया राजू को।किंतु सविता ने हो हल्ला करने की बजाय दिमाग से काम लिया उसे पकड़कर अपने शयनकक्ष में ले गई।राजू: माफ करदो चाची!सविता: क्या देख रहा था बेटा?राजू: कुछ नही?सविता: तू महीने भर से झांक रहा है मुझे पता है सच सच बोल दे वरना तेरी मम्मी से बताऊंगी तब तू सुधरेगा।राजू: ये देख रहा था।सविता: ये क्या?राजू: आपका दूध।राजू: दोबारा ऐसी गलती नही होगी माफ करदो चाची।सविता: ठीक है जा दोबारा ऐसी हरकत की तो सीधा तेरी मम्मी से बताऊंगी।राजू बेचारे ने पहला प्रयास किया था उसमे भी पकड़ा गया।एक दिन पशुशाला के चढ़े छप्पर पर लगी सब्जी तोड़ने का प्रयास कर रही थी लेकिन पहुंच नही रही थी पास ही राजू अपनी पशुशाला में चारा पानी दे रहा था।सविता: राजू चल सब्जी तोड़ दे मैं पहुंच नही रही हूं।राजू: चलो चाची।राजू भी नही पहुंच रहा था।राजू: रुको मैं साइकिल लाता हूं...उस पर चढ़कर तोड़ लेना।सविता: हां...और मैं गिर गई तो मेरा दांत भी तोड़ लेना। हाथ से ही उठा दे थोड़ी कसर तो रह रही है।राजू ने कमर पकड़ी और उठा दिया सविता ने सब्जी तोड़ी ...राजू ने पहली बार किसी महिला को अपनी बाहों में पकड़ा था वह उतार ही नही रहा था।सविता: नीचे उतार बेटा! आज के लिए बहुत हो गई सब्जी।सविता को आज किसी कुंवारे लड़के के बदन की गर्मी का एहसास हुआ था।मास्टरमाइंड तो लंड महोदय थे वही ये सब कर रहे थे उन्हें तो सभी बाधाएं पार करके चूत में प्रवेश करना था।सविता अपने दूर वाले अरहर के खेत में जोंधरी (बाजरे का एक प्रकार जो अरहर के साथ बो दिया जाता है और भुट्टा निकलने पर काटा जाता है) काटने जाया करती थी।राजू भी दूसरे छोर से प्रवेश कर जाता था सोचकर जाता था कि पीछे से पकड़ लूंगा चाची को लेकिन गांड़ फट जाती थी वापस आ जाता था। एक दिन सविता ने साड़ी उठाई और मूतने लगी सूर्र सुर्र सूूूू ूूूू ूूूू ूूूू ूूूू ूूूू ूूूूर्र सुर्र राजू को सविता की नंगी गांड़ दिख गई गोरी गोरी गोल बड़ी गांड़ लंड को पैंट से बाहर निकाला पीठ दूसरी ओर की दोनो हाथों से मुट्ठ मारने लगा। औरतों की आदत होती है मूतने पहले इधर उधर देखेंगी और मूतने के बाद भी....कोई है तो नही ....पहली बार तो राजू बैठा हुआ था बच गया लेकिन दूसरी बार सविता की गांड़ देखने के लिए खड़ा हो गया था और मुट्ठ मार रहा था सविता ने देख लिया राजू खड़ा है उसका पैंट ढीला है दोनों हाथ आगे पीछे कर रहा है।सविता (मन में) : हे भगवान मेरा पीछा करते करते यहां तक आ गया .....क्या करूं इसका प्रेमा से बताऊं तो मुझ पर ही शक करेगी, इसके पापा से ये सब कह नहीं पाऊंगी कह भी दिया तो इसकी हड्डी पसली एक कर देंगे। इसी से बात करनी पड़ेगी।एक दिन राजू अरहर के खेत में छिप कर बैठा था घुटनों के बल हाथ में लंड लिए.....तभी सविता ने आवाज लगा दी राजू बेटा क्या कर रहे हो इसमें शौच मत किया करो इसमें मै जोंधरी काट कर ले जाती हूं। और उसी की ओर आगे बढ़ने लगी उसे तो पता ही था ये शौच करने नही आता।राजू की फट गई बेचारे ने आज पजामा पहना था जो लंड को संभाल नही पा रहा था और तंबू बन जा रहा था।राजू: हां ...हां! चाची नहीं आऊंगा ।और बाहर निकलने लगा।सविता: रुक बेटा रुक कहां जा रहा है।राजू रुक गया ।सविता: अरे बेटा तेरा लोटा कहां है।राजू: लोटा नही है।सविता: तो क्या कर रहा था यहां?राजू: कुछ नही भुट्टा ले जाने आया था चूल्हे में भूनकर खाता हूं।सविता: तो तेरी हंसिया कहां है? किससे काटेगा?राजू: हाथ से तोडूंगा।सविता: चुपकर! मुझे बेवकूफ मत बना । हाथ से तू क्या तोड़ता है मुझे अच्छी तरह मालूम है। सच सच बता यहां क्या करने आता है वरना इस बार सीधे तेरे पापा से बताऊंगी।राजू: नही नही पापा से मत बताना आपके पांव पड़ता हूं।सविता: जल्दी बता फिर।राजू: मुट्ठ मारने आता हूं।सविता: तो इसके लिए यहां आने की क्या जरूरत है? कलमुहे! घर में मार लिया कर जब जवानी नही संभलती।राजू: आपके ये देखकर मारने में आनंद आता है।सविता: ये क्या?राजू सिर नीचे करते हुए: आपके चूतड़।सविता (मन में): अब क्या करूं ये तो पीछे ही पड़ गया है आगे वाला छेद देख लिया तो क्या कर बैठेगा कुछ पता नहीं।सविता कुछ देर के लिए निरुत्तर हो गई । उसे गुस्सा आ गया।सविता ने ब्लाउज के बटन खोलकर राजू के सामने परोस दिए सविता: ले देख ले जी भर ले मेरे पीछे क्यों पड़ा है तू ....तेरे साथ साथ मेरे ऊपर भी लांछन लग जाएगा।राजू को दूध भरी चूंचियां देखकर लालच आ गया आपा खो बैठा और एक चूंची मुंह में भरकर पीने लगा।सविता का गुस्सा दिखाकर सद्बुद्धि लाने वाला दांव फेल हो गया ....अब वह हटा भी नही सकती थी चूचक में दांत लग जाता....बेचारी सिसियाती रही और राजू एक चूंची तब तक पीता रहा जब तक कि दूध आना बंद नही हो गया।राजू ने दुग्ध पान करने के बाद रुकना ठीक नही समझा और जाने लगा तभी सविता ने उसका हाथ पकड़ लिया ....सविता को पता था एक चूंची खाली हो गई और एक भरी रह गई तो रात में दर्द करेगी...सविता: इसे कौन खाली करेगा?राजू दूसरी चूंची पकड़ कर पीने लगा। इस बार सविता ने कहा था इसलिए वह चूचियों को मसल मसल कर पीने लगा। कुंवारे लड़के के स्पर्श से सविता की दुग्ध ग्रंथियों से लेकर योनि कि रक्तवाहिनियां तक सक्रिय हो गईं उसे पता चल गया था आज चूत राजू का लंड लिए बिना नही मानेगी आग भड़क चुकी थी लेकिन तीली तो स्वयं नहीं मार सकती थी ....वह इंतजार कर रही थी कि राजू कोई पहल करे लेकिन राजू ने इतना बड़ी हिम्मत करके चाची की चूंचियों को चूस लिया था उसकी गांड़ फटी हुई थी उसका लंड भी अब कह रहा था अरहर से बाहर हो जा राजू।राजू: ठीक है चाची मै चलता हूं।सविता: बेटा तू यहां क्या करता था पूरा विस्तार से बता तभी जाएगा तूने मेरा दूध भी पी लिया हां।राजू डरते हुए: बताता हूं चाची।राजू: मै आपके मूतने का इंतजार करता था।सविता: उसके बाद।राजू: आपके चूतड़ देखता था।सविता पेटीकोट सहित साड़ी उठाकर मूतने लगी।सविता: फिर क्या करता था।राजू : अपना लिंग निकालकर आगे पीछे करता था।सविता: जैसे मैने मूत कर दिखाया वैसे करके दिखा।राजू ने अपना लंड निकाला जो कि नजदीक से गांड़ के दर्शन करने के बाद उसी छेद में घुसने के लिए लालायित हो गया था......सविता के निर्देश अनुसार .....मुट्ठ मार कर दिखाने लगा ।सविता अचंभित रह गई 10 इंच लंबा कुंवारा लंड देखकर उसने हाथ में पकड़कर महसूस करना चाहा.....उत्तेजना में आकर राजू ने सविता का हाथ लंड पर पकड़कर आगे पीछे करने लगा ....पांच मिनट तक रगड़ने के बाद सामने बैठी सविता के माथे पर फिर आंख पर नाक पर और रफ्तार कम होने पर होंठ पर वीर्य की पिचकारी फैल गई।इस बार सविता को सामने का पेटीकोट उठाकर आंख साफ करने लगी तभी राजू को झांटों मध्य ध्यान से देखने पर दो गुलाबी रंग की फलकें दिखाईं दीं जिनके बीच से सफेद द्रव्य की पतली धार लगातार रिस रही थी। उसने उसकी गहराई नापनी चाही इसलिए उसने उसमे बीच वाली उंगली घुसाई उंगली पूरी अंदर घुस गई लेकिन राजू को छेद का अंत नही मिला।अब जब लंड को अपना अंतिम लक्ष्य एकदम नजदीक दिख रहा था उसने पूरा जोर लगा दिया तड़फड़ाने लगा फन फुलाकर विष छिड़कने लगा।अब सविता ने अपना दांव चला।सविता: ठीक है जा बेटा तू जो चाहता था वह सब मैने दिखा दिया अब घर जा और इस तरह की हरकत मत करना।राजू रूआंसा होकर: चाची एक बार दे दो बस......केवल एक बार।सविता: क्या दे दूं मेरे पास क्या है?राजू लंड को सहलाते हुए: अपनी बुर दे दो एक बार।सविता: कैसे दे दूं निकाल कर खुद को लगवाएगा क्या?राजू: राजू एक बार ये लंड इस छेद में घुसाने दो बस हाथ जोड़ता हूं ।सविता: चल ठीक है तेरी खुशी के लिए यह भी सही जल्दी डाल के निकाल।राजू लंड को हाथ में पकड़कर सीधा किया जो पता नही क्यों पेट की ओर भाग रहा था चूत पर लगाया और धीरे धीरे घुसाना शुरू किया टोपा तो रजोरस से भीगकर अंदर घुस गया लेकिन बाकी लंड अंदर नही जा रहा था।सविता को पता था यह पहली बार कर रहा है इसलिए मुझे ही सहना पड़ेगा और सिखाना पड़ेगा।सविता ने चूत को अधिकतम सीमा तक ढीली छोड़ दिया।सविता: डाल अब देर क्यों कर रहा है?राजू ने तीन चार बार में लड़ को अंदर कर दिया।अब जब लंड अंदर प्रवेश कर गया तो प्यासी चूत ने उसे पकड़कर रखने किए कसना चाहा लेकिन चूत की पूरी त्वचा लंड की मोटाई को समायोजित (एडजस्ट) करने में लग गई थी इसलिए जब चूत ने कसना शुरू किया तो उसके किनारे फटने शुरू हो गए ।सविता को तेज दर्द हुआ लेकिन आस पास खेतों लोगों के काम करने की संभावना थी इसलिए वह सहती रही इसीलिए उसकी आंख से आंसू छलक पड़े । वह यह भी जानती थी कि चाहूं तो एक बार में झटका देकर निकाल दूं लेकिन दोबारा ये फट चुकी चूत लंड नही लेने देगी जबरदस्ती डालने की इसकी हिम्मत होगी नही ।राजू की पहली चुदाई थी गरम खून था उसने धीरे धीरे आगे पीछे करना शुरू कर दिया ।सविता का मन कर रहा था राजू की पीठ को खरोंच दे लेकिन उसने पीठ पकड़कर तेज तेज सहलाना शुरू कर दिया।राजू कुछ पता नही था उसने प्रेमा को खूब कसकर पकड़ा और उत्तेजना में लंड को तेज गति से आगे पीछे करना शुरू कर दिया।सविता की चूत के चीथड़े उड़ने लगे उसका सब्र का बांध टूट गया ....उसने राजू की बांह से निकलने का प्रयास किया लेकिन राजू ने बेहद तेजी से पकड़ा हुआ था।सविता बेहद धीमी और पस्त आवाज में अपना दर्द बयां कर रही थी।सविता: हे माई रे ई प्रेमा का घोड़ा जान ले लिहिस हमाऽऽऽर..... हाई रे कोई बचा ले इससे आहि रे माई मर गई ... सजिया रंडी का खिला दी लाके .......उसकी गांड़ में यही लंड डालूंगी.... हाय रे....बस कर राजू...चाची समझकर छोड़ दे...ये आवाजें बेहद धीमी थी राजू को लग रहा था उसकी चाची जोश में बडबडा रही हैं ।राजू को परम आनंद की अनुभूति हो रही थी उसने चूत को फ़ाड़ दिया था अब चूत से आवाज आ रही फच फ़च फ़च फच्च फच्च ।करीब पंद्रह मिनट तक चोदने के बाद राजू झड़ गया।सविता का शरीर अकड़ गया उसकी चूत हलाल होने के बावजूद तीन बार झड़ी थी उसका जो दर्द जोश में थोड़ा बहुत छिप गया था वह जाहिर होने लगा चूत ने ढेर सारा पानी भी छोड़ा ।राजू ने जब चाची को अलग करना चाहा तब उसे पता चला उसकी चाची को तो चक्कर आ गया था ।राजू डर गया उसने सविता को धीरे धीरे नीचे बैठाया अपने पैर पर सिर रखकर बिठाया साड़ी पेटीकोट सही किया ।शरीर के लेटने की मुद्रा में आने पर रक्त संचार संतुलित हुआ तो सविता होश में आई।उसकी आंखों से बहे आंसू देखकर राजू बोलाराजू: क्या हुआ चाची रो क्यों रही हो।सविता: कुछ नही बेटे। अब तू जल्दी घर जा नही तो समस्या खड़ी हो जाएगी।राजू: आप कैसे आओगी?सविता: सुन एक काम कर वो वहां मैने जोंधरी रखी है तू जल्दी जल्दी इतनी और काटकर दूसरी तरफ से जाकर मेरी पशुशाला में रख देना अगर वहां कोई हो तो अपनी में रख लेना बाद में मेरी वाली में रख देना।सविता: मै किसी तरह आ ही जाऊंगी।राजू ने अपना काम झटपट निपटा दिया।और सविता चाची का इंतजार करने लगा।सविता आते हुए रास्ते में दो बार बैठ गई। किसी तरह घर पहुंची खाना भी खुद ही बनाया जबरदस्ती दर्द सहन करके। चुपके से रसोई में तेल गरम करके ठंडा किया अपने बिस्तर पर ले जाकर चूत पर मालिश किया । आज उसे किसी पर गुस्सा आ रहा था तो सजिया पर ।सजिया और प्रेमा ने तो इससे भी बड़ा और मोटा लंड लिया था लेकिन वहां पर कोई न कोई मदद करने वाला था।यहां तो सविता अपने दम पर चुदी थी चिल्लाने की भी गुंजाइश नहीं थी। सविता के मन में एक ही खयाल आ रहा था मौका मिला तो इसी लंड से सजिया की गांड़ मरवाऊंगी तब जाकर मुझे इस मामले में संतुष्टि मिलेगी... सजिया रंडी ने हमारे बच्चों को पता नही कौन सी दवा लाकर खिला दी....बेचारा अंबर किस स्थिति से गुजर रहा होगा यह भी देखना पड़ेगा।