अपडेट-14
अगले दिन सजिया नीम के पास लगी महफिल में शामिल हो गई ताकि सविता और प्रेमा यह न कह सकें कि बलम के घर आने के बाद से दिखाई नहीं दे रही।......किंतु आते समय उसकी चाल बदली बदली सी लग रही थी सविता व प्रेमा देखते ही भांप गईं......
सविता: आते ही हैदर के पापा ने तेरी जवानी रगड़ दी लेकिन तू ऐसे टेढ़े मेढ़े पैर कैसे रख रही है वह तेरी पहले भी लेता था आज कोई नई बात थोड़ी है।
प्रेमा: सजिया कल रात तो पलंग पर सोने नही पाई होगी रात भर, ये तेरी चाल को क्या हो गया।
सजिया: कुछ नही सही तो चल रही हूं वो पैर में एक कांटा चुभ गया था।
प्रेमा: तू भी सजिया हम दोनो से झूठ बोलती है हम लोगों से क्या छिपाती है ऐसे तो हम भी आगे से कुछ नही बताएंगी।
सजिया: दीदी वो कल थोड़ा ज्यादा हो गया था रात में ।
सविता: दो दो बच्चों की महतारी (मां) हो गई है ....रात में ऐसा क्या हो गया जो तेरी चाल बदल गई।
सजिया: वो कल........कहकर सजिया ने दुपट्टे से अपना मुंह ढक लिया।
प्रेमा: बता बता शरमा क्यों रही है?
सविता (प्रेमा के कान में): कहीं हैदर के पापा ने इसकी गांड़ तो नही मार दी।
प्रेमा: पूछ के देख ले क्या पता इसीलिए शरमा रही हो।
सविता: इतना क्यों शरमा रही है कहीं फिजा के पापा ने तेरी गांड़ तो नही मार दी।
सजिया घूंघट के अंदर से ही धीमी आवाज में: हां
सविता: हे भगवान! तेरा मरद भी बंबई से पता नही क्या क्या सीख के आया है हम सब तो अभी तक सिर्फ गाली में ही इस्तेमाल करते थे उन्होंने तो तेरी सच में ही मार दी वह भी पहली ही रात में ।
प्रेमा: हमारी इतनी उमर हो गई हमने तो किसी से नहीं मरवाई।
सजिया जो इतनी देर से दबाव महसूस कर रही थी एक ही लफ्ज में दोनो को परास्त कर दिया: अब मरवा लो बहुत मजा आएगा।
प्रेमा: हे भगवान! देख रही हो सविता सजिया आज कैसी कैसी बात कर रही है।
सविता: सही तो कह रही है रोज दिन में चार बार गांड़ खुजलाती हो मरवा लो सारी खाज मिट जाएगी।
चढ़ली जवनिया के ले ला मजा रानी नाही तौ पिछवाऽऽऽ बहुत पछितइबू।
पछितइबू ... बहुत पछितइबू।।
चढ़ली जवनिया के ले ला मजा रानी नाही तौ पिछवाऽऽ बहुत पछितइबू।
पछितइबू ... बहुत पछितइबू।।
आज काल्हि करबू गोरिया नखरा देखइबु दुइ दिन मा माटिया के मोल होइ जइबू।
आज काल्हि करबू गोरिया नखरा देखइबु दुइ दिन मा माटिया के मोल होइ जइबू।
लड़े लड़ावे में ढली जवनिया तौ पिछवा के रानी बहुत तू रोइबू खूब रोइबू... बहुत तू रोइबू ।
चढ़ली जवनिया के ले ला मजा रानी नाही तौ पिछवाऽऽ बहुत पछितइबू।
पछितइबू ... बहुत पछितइबू।।
प्रेमा: हट हरामजादी तू मरवा ले तुझे ज्यादा खुजली है लेकिन गाना बहुत अच्छा गाया है।
सविता: मै तो मरवा लेती लेकिन अंबर के पापा ने कभी इच्छा नही जताई तो मै भी मन में रखकर रह गई।
प्रेमा: तो हैदर के पापा से मरवा ले।
सजिया: छी! चुप करो अंजली के मम्मी जो मन में आता है बोल देती हो।
प्रेमा: तू इसको भी रोक न ये भी तो ऐसे ही मनमर्जी बोल देती है। और तेरे मरद ने आते ही तेरी गांड़ कैसे मार दी कुछ बताएगी?
सजिया: तुमने ही कहा था शुरुआत में ही चूत में लंड ले लेना मैने वैसे ही किया था चूत सूखी थी तो उन्होंने थूक लगाया लेकिन वो चूत की बजाय गांड़ में लग गया और प्यासा लंड सरक के गांड़ में घुस गया ........
सविता और प्रेमा: फिर!
सजिया: फिर क्या मेरी गांड़ में पहली बार ऐसा कुछ घुसा था मेरी गांड़ ने सिकुड़ के लंड को पकड़ लिया और हैदर के पापा ने जोर का झटका लगाया था उनका लंड रगड़ खा गया वो गुस्सा हो गए और मेरी गांड़ हलाल कर दी।
सविता: अब तू संभल के रहना अब तेरे दोनो छेद खुल गए हैं चूत में आग लग गई तो गांड़ में भी पकड़ लेगी फिर फायर ब्रिगेड बुलानी ही पड़ेगी फिजा के पापा अगर परदेश में रहे तो फायर ब्रिगेड कहां से आएगी?
प्रेमा: वो सब छोड़ तू मौका है हैदर को वह औषधि दे दिया कर जवानी में कदम रखा ही है उसने औषधि बहुत अच्छे से काम करेगी लेकिन उसकी उमर के हिसाब से औषधि के साथ दूध और घी भी सही मात्रा में देना नही तो सारी ताकत नीचे चली जायेगी और तेरा बेटा सूख जाएगा।
सविता: घी न हो तो बता देना मै दे दूंगी।
सजिया: मुझे ध्यान तो था लेकिन मैने सोचा पहले पहले दिन ही देना सही नही है .....आज ही शुरू कर दूंगी।
सजिया वापिस जा रही थी कि राजू और अंबर एक पेड़ की ओट में बैठकर बातें कर रहे थे और रेडियो में कैसेट लगाकर अवधी गाना सुन रहे थे। बोल कुछ इस तरह से था:-
माल बड़ा तू चोखा हऊ और कबो का लोका हऊ बाकी बनावट टंच हो,
माल बड़ा तू चोखा हऊ और कबो का लोका हऊ बाकी बनावट टंच हो,
मौका मिली तौ रगड़ देब जवानी.. का करिहैं मुखिया अउर पंच हो।
छिप जाई सोना चांदी जवानी छिप ना पाई... बहियां में आजा रानी रवानी फिर न आई ।
छिप जाई सोना चांदी जवानी छिप ना पाई... बहियां में आजा रानी रवानी फिर न आई ।
जिन मारा नक्सा हमरा से कइ लेब अरहरिया में लंच हो ।
मौका मिली तौ रगड़ देब जवानी.....................
अंखियां तरेरा तारु हो.... लागता फोर देबू बम, हमरा के सीधा साधा समझिहा न मैडम
गांव भरे से ऊपर हई न हमरा जैसन कोई लंठ हो,
देखा तू आके सढ़ुआइन नजर हमसे लड़ाला नसा मा आके नस गोरिया हमसे सटाला..... दूर दूर तू उड़िला रानी लागल बा तोहरेऽव पंख हो,
मौका मिली तौ रगड़ देब जवानी का करिहैं मुखिया अउर पंच हो।
माल बड़ा तू चोखा हऊ और कबो का लोका हऊ बाकी बनावट टंच हो,
मौका मिली तौ रगड़ देब जवानी का करिहैं मुखिया अउर पंच हो।
सजिया बुदबुदाते हुए निकल गई: इनको शरम भी नही आती कैसे कैसे गाने सुन रहे हैं। लेकिन आगे बढ़ने पर जब गाने का अर्थ समझ आया और पुरानी बातें याद आईं तो सजिया को लगा ये तो सच में किसी की भी जवानी रगड़ सकते हैं लेकिन सजिया ने ध्यान हटाकर हैदर पर केंद्रित कर लिया।
उधर अनवर ने एक महीने तक सजिया का खूब रस चूसा रोज दूध पीता था चूत पीता था तीन दिन में एक दिन गांड़ मारता था। सजिया का दूध ऐसे बनने लगा था जैसे उसका कोई दुधमुंहा बालक हो।
साथ ही अनवर ने जाने से पहले अपनी कमाई से शौचालय भी बनवा दिया ताकि सजिया व उसके बच्चों को बाहर न जाना पड़े शौच करने।
लेकिन जाने से पहले अनवर ने अपने लाए हुए कपड़े पहनाकर सजिया की अंतिम दिन, रात दो बजे तक गांड़ और चूत मार मार के सुजा दी और उसने अपना वीर्य हर बार चूत में ही गिराया उसकी इच्छा थी कि सजिया एक बच्चों की मां और बने तीन वैसे भी कोई ज्यादा नहीं है। सजिया ने अपने अकेलेपन का हवाला देकर दो दिन पहले ही जिद करके हैदर की टिकट रद्द करवा दी थी । सजिया ने आंसू पोंछते हुए उसे विदा कर दिया......तब तक देखती रही जब तक आंखो से ओझल नहीं हो गया..... उसे वह लोकगीत याद आ गया:
रेलिया बैरन पिया को लिहे जाय रे!
जौने सहरिया को बलमा मोरे जैहें, रे सजना मोरे जैहें,
आगी लागै सहर जल जाए रे, रेलिया बैरन पिया को लिहे जाय रे!
जौन सहबवा के सैंया मोरे नौकर, रे बलमा मोरे नौकर,
गोली दागै घायल कर जाए रे, रेलिया बैरन पिया को लिहे जाय रे!
जौन सवतिया पे बलमा मोरे रीझे, रे सजना मोरे रीझें,
खाए धतूरा सवत बौराए रे, रेलिया बैरन पिया को लिहे जाय रे!”
इस रात सजिया को नींद नहीं आई ।
फिलहाल उसने संतोष किया कि हैदर तो कम से कम घर पर है। उसने अपना दिमाग अपने बेटे को जवानी में काम आने वाले अस्त्र को पुष्ट करने में लगाया जिसमे धार लगाने के लिए मिली औषधि की भारी कीमत सजिया ने चुकाई थी ।