Bahut hi kamuk aur garma garam update dost.Agle update ka intzaar rahega.......
Shaandaar update bhaiराजू और अंजलि, अंबर, किरन और कंचन पांचों साथ ही बड़े हुए । बचपन में इनके मां बाप इन्हे शौच कराने खेत में ले जाते थे लेकिन जब ये धीरे बड़े हुए ये साथ ही शौच के लिए जाते थे। जब ने गौण लैंगिक लक्षण आने शुरू हुए तो अंजलि किरण और कंचन एक साथ जाने लगीं तथा राजू और अंबर एक साथ जाने लगे। प्रारंभ में ये खुले खेत में शौच करने जाते थे लेकिन अब ये पांचों ही अरहर के खेत में जाने लगे क्योंकि इसमें दूर दूर तक दिखता नहीं।एक दिन राजू और अंबर शौच करने गए थे नित्य क्रिया करने के बाद अंबर को शरारत सूझी और उसने अपने लंड की चमड़ी को पीछे खींचने लगा उसमें सफेद सफेद कचरा लगा हुआ था एक प्रकार की मादक बदबू आ रही थी बचे हुए पानी से उसे धोने लगा इसी तरह राजू ने भी किया उसे भी मजा आया। इसी तरह दोनो साथ शौच जाते और बाद में लंड कर चमड़ी को पीछे खींचते । एक दिन राजू ने लंड को मुठ्ठी में भर लिया और चमड़ी पीछे खींची मजा आया तो आगे पीछे करने लगा। यही क्रिया अंबर ने भी दोहराई इसी तरह कुछ दिन बाद अम्बर ने राजू का लंड पकड़कर चमड़ी आज पीछे करने लगा राजू तो सिहर उठा उसे बहुत जादा मजा आया । फिर दोनो प्रतिदिन एक दूसरे का लंड रगड़ने लगे लेकिन लंड की चमड़ी फिर भी अलग न हुई राजू ने कहा मैं तो इसे एक दिन अलग कर दूंगा अंबर: मैं भी। इसी तरह दोनो एक दूसरे की मुट्ठ मारते धीरे धीरे चमड़ी अलग होती गई और एक दिन जोर से मुट्ठ मारने में दर्द के साथ राजू की अलग हो गई इसी तरह तीन चार दिन बाद अंबर की भी सील टूट गई। रोज रोज एक ही क्रिया करने से दोनो ही ऊब गए थे सो उन्होंने अपने लंड को एक दूसरे लड़ाना शुरू किया फिर चोदने की मुद्रा में दोनो एक दूसरे को पकड़कर आपस लंड को ही रगड़ते । एक दिन दोनो नित्यकर्म के बाद बिना मुट्ठ मारे ही उठने लगने अंबर आधा ही उठा था कि इतने राजू उसकी गांड़ पकड़कर उसम लंड घुसेडने लगा। छेद छोटा था लंड तो गया नही लेकिन राजू को मजा आया । अंबर गुस्सा हो गया ।इधर अंजली, किरन और कंचन में अंजली सबसे बड़ी थी । चूचियां तो तीनों का आकार ले रही थीं लेकिन झांट के बाल सबसे पहले अंजली के ही आने शुरू हुए। तब किरन और कंचन ने शौच करते समय पूछा दीदी ये आपके तो नीचे भी बाल अब आये हमारे भी आयेंगे क्या। तो किरन कहती हां हां तुम्हारे भी आयेंगे । कंचन - कब आयेंगे। अंजलि आ जायेंगे। धीरे धीरे किरन और कंचन की भी चूत के पास रोंए उगने शुरू हुए जो धीरे धीरे बड़े होने लगे लेकिन तब तक अंजलि की झांटे बड़ी बड़ी हो गईं थीं। जिससे मूतते समय कभी कोई बाल सामने उलझ जाता तो चढ्ढी में छींटे पड़ते तो उसकी सहेली ने उसे झांट के बाल बनाने जा उपाय सुझाया और उसने चुपके से अपनी झांट के बाल साफ़ कर लिए। जब दूसरे दिन खेत गई तो किरन और कंचन हैरान हो गई । दीदी आपके नीचे वाले बाल कहां गए आपके सिर के बाल तो हमेशा वैसे ही रहते हैं आप नाई की दुकान पर गई थी? अब किरन के पास कोई जवाब नही था सो उसने मूत के छींटे वाला स्पष्ट कारण बता दिया लेकिन फिर दोनों जिद करने लगीं की मुझे भी बनाना है। अंजली ने खूब समझाया की जब बड़े हो जाएं तह हटाना लेकिन हो दोनो नही मानी। अतः तय हुआ कि कल दोनो की झांट बनाई जायेगी। दूसरे दिन अंजली शेविंग मशीन ले आई और दे दिया लो बनाओं लेकिन उन दोनो ने से किसी को भी चलाना नही आता था वो भी नाजुक जगह पर चलाना था। सो उन्होंने अरहर के खेत में ही तय किया की हम लोग जिस ओर शौच करने आते हैं उससे दूर वाले छोर पर थोड़ी दूर की अरहर के पेड़ दबाकर लेटने लायक बनाकर वहीं आराम से बनाएंगे। सो तीनों ने अरहर के कई पेड़ गिराकर लेटने की जगह बना दी और सबसे पहले कंचन को सलवार और चढ्ढी उतारकर लिटवाया जैसे ही शेविंग मशीन चलाई कंचन सी सी आह आह सी दी ईई दी आह करने लगी। धीरे धीरे कंचन की झांट बन गई उसके बाद किरन को लिटाया वो इससे भी ज्यादा सिहरने लगी सी सी आह आह सी दी ईई दी आह सी सी आह।अब तो तीनों की झांट बम गई थी दूसरे दिन कंचन फिर कहने लगी दीदी आज फिर बनाओ प्लीज कल बहुत मजा आया था । अंजली - अब तो बाल ही नही हैं। तो क्या हुआ दीदी। तीनों फिर उसी जगह पर गईं और कंचन को नंगी लिटाकर दोनो उसकी चूत पर हाथ फेरने लगी उसे आज और ज्यादा मजा आ रहा था। कल तो शेविंग मशीन थी आज हाथ था आज उसने दोनों का पकड़कर चूत पर कसकर दबाना रगड़ना शुरू कर दिया अंत में उसकी चूत से थोड़ा सा सफेद लसलसा पदार्थ रिसा और वो शांत हो गई, यही प्रक्रिया किरन के साथ भी दोहराई गई उसकी चूत से ज्यादा रस निकला। और अंजलि ने तो काफी देर चूत रगड़वाई और उंगली भी डलवाई तब जाकर उसके चूत से कामरस का लावा फूट गया । कंचन जिद करने लगी की मेरे वाले से इतना नही निकला। धीरे धीरे यही आए दिन होता रहा और तीनों की चूत से कामरस का लावा फूटने लगा। तीनों ने इसी बीच चूंचियां भी मसलना सीख लिया एक दिन अंजली ने अपनी चूत पर थूकने को कहा किरन बिल्कुल नजदीक से थूका अंजली को इतना अच्छा लगा की उसने उसका मुंह अपनी चूत में भिगो दिया । इस तरह उन्होंने एक दूसरे की चूत भी चाटनी स्टार्ट कर दी। धीरे धीरे उन्हें महसूस होने लगा चूत में घुसेड़ना चाहिए। इसी तरह राजू और अंबर ने भी एक दूसरे चूसकर मुट्ठ मारने का भी तरीका ईजाद कर लिया। इन दोनो को भी महसूस होने लगा की कोई छेद हो जिसमें हम अपने लंड को घुसेड़ सकें तो मजा आ जाए।
Great workदोपहर हुई दोनो निकल पड़ी बाबा की कुटिया की ओर। सविता तो मन ही मन मुस्कुरा रही थी यह सोचकर की बाबाजी आज प्रेमा की कसके बजाएंगे और मै जैसे गाय के ऊपर सांड चढ़वाते हैं वैसे ही प्रेमा के ऊपर बाबाजी चढ़ेंगे। लेकिन प्रेमा ऊहापोह की स्थिति में थी उसे शर्म आ रही थी बदन में झुरझरी। भी छूट रही थी क्योंकि बाबाजी का ऊपर बदन तो लगभग नंगा ही रहता था जिसे प्रेमा ने आते जाते देखा था। बाबाजी का बदन कसरत करने की वजह से बिलकुल ठोस और चिकना था लेकिन सीने पर घने बाल थे झांट में तो एक दम जंगल लगा हुआ था।प्रेमा और सविता बाबाजी की सुनसान कुटिया पर पहुंच गई, बाबाजी वहीं अपना लंगोट ढीला करके विश्राम कर रहे थे।सविता: बाबाजी! मै प्रेमा को लेकर आ गई।बाबाजी ने चालाकी से लंड को पीछे खींच लिया, लंगोट सही किया और बोले आ जाओ सविता आई प्रेमा।सविता: चल प्रेमा अंदरप्रेमा: मुझे असहज लग रहा है।सविता: चल मै भी तो चाल रही हूं।दोनो अंदर गईं, बाबाजी ने एक बार फिर से पूरा वाकया प्रेमा को सुनाया तो उसे भी अब ये काम उसकी जिम्मेदारी लगने लगी । उसने कहा ठीक है बाबाजी । हालांकि इतनी दोपहर में कोई वहां नही जाता था लेकिन फिर भी बाबाजी ने कुटिया के गेट पर बांस की फट्टी से बनाया हुआ गेट रख दिया।बाबाजी ने पेट अंदर खींचकर लंड को पीछे खींच रखा था लेकिन लंड से वीर्यरस लगातार इस रहा था । बाबाजी ने सविता को इशारा किया उसने प्रेमा को घोड़ी बनने के लिए कहा। प्रेमा सविता से कहने लगी मुझे डर लग रहा है पहले मै देखूंगी कितना बड़ा है तो बाबाजी ने वही मुरझाया हुआ लंड दिखा दिया बाबाजी का बिना खड़ा हुआ आठ इंच लंबा और साढ़े तीन इंच मोटे लंड को प्रेमा झांटों के जंगल के कारण साढ़े छः इंच का समझ बैठी और घोड़ी बन गई । सविता ने प्रेमा की साड़ी और पेटीकोट एक साथ पकड़कर ऊपर खींच दिया । बाबाजी को चुदाई का कोई खास ज्ञान नहीं था लेकिन हथियार तगड़ा था और उन्हें तो सिर्फ लंड की आग बुझाने थी । बाबाजी प्रेमा के पीछे आकर खड़े हुए । बाबा ने प्रेमा की चूत हाथ से ढूंढना चाही लेकिन उन्हें गांड़ का छेद हाथ लगा क्योंकि प्रेमा ठीक से झुकी नही थी प्रेमा की गांड़ गरम गरम महसूस हुई । बाबाजी ने छेद ढूंढने के चक्कर में गांड़ में ही उंगली डाल दी। प्रेमा कसमसाने लगी। बाबाजी ने प्रेमा की रीढ़ पकड़ कर दबाई जिससे उसकी चूत थोड़ा और ऊपर आई और सविता से कहकर प्रेमा के बिलाउज का बटन खुलवा दिया क्यूंकि बाबाजी को पकड़ने के लिए कुछ नही मिल रहा था। आखिरकार बाबाजी के हाथ ने चूत का छेद ढूंढ ही लिया लेकिन बाबाजी के हाथ की दो उंगलियां प्रेमा की चूत में फिसल कर घुस गईं प्रेमा छटपटाकर मूतने लगी। बाबाजी ने उसके मूतने का इंतजार किया और सोचने लगे ये मां बेटियां दोनो मूतने में बड़ी तेज हैं और ध्वनि गजब निकलती है। प्रेमा से अब बर्दाशप्रे से बाहर हो रहा था और उसने सविता से कहा अब खड़ी क्या है जल्दी डलवा दे रे । प्रेमा की चूत का आकार बड़ा था क्यूंकि वो दो बच्चों की मां थी लेकिन बाबाजी जी को पता था कि उनका खड़ा लंड प्रेमा की चूत में नही जाएगा। तो उन्होंने एक बार फिर अपने पेट को अंदर खींचा और आधे लंड को हाथ से धकेलकर अंदर कर दिया प्रेमा बोली आह! बाबाजी ऐसे ही। प्रेमा की चूत में जाते ही बाबाजी का लंड कंट्रोल से बाहर हो गया बाबाजी जी का पेट बाहर आया और लंड फूलने लगा बाबाजी ने तुरंत पूरे लंड को अंदर कर दिया अब लंड फूलकर चार इंच का हो गया । अब प्रेमा की चूत की दीवारें चरचराने लगी जब लंड ने पूरा 12 x 4.5 इंच का आकार लिया तो प्रेमा के मुंह से तेज आवाज निकली अरे माई रे जिससे बाहर नीम के पेड़ पर बैठे पंछी भी उड़ गए । बाबा जी ने लंड को बाहर निकालना चाहा लेकिन उनका लंड प्रेमा की बुर में फंस गया था और बुर के आस पास खून रिस रहा था। प्रेमा को चक्कर आ गया। सविता और बाबा दोनो डर गए। फिर सविता ने प्रेमा की ब्लाउज और साड़ी उतार फेंकी पेटीकोट को भी सिर के रास्ते निकाल लिया। उसके बाद किसी गाय की तरह उसके सिर को सहलाने लगी और बाबाजी को उसकी दोनो चूंचियां पकड़ाई और मसलने के लिए कहा। बाबाजी ने दोनो चुचियों को पकड़कर मसला और सविता ने प्रेमा की चूत के पास सहलाना शुरू कर दिया। अब जाकर प्रेमा को थोड़ा होश आया ।( प्रेमा: बहुत धीमी आवाज में) सविता तूने आज मुझे मरवा दिया आज मै पता नही घर जा पाऊंगी या नहीं। सविता के सहलाने की वजह से प्रेमा की चूत थोड़ी ढीली हुई और प्रेमा ने इतना भावुक हो कर चार शब्द बोले थे तो उसने प्रेमा की पीठ पकड़कर उसे आगे खींच लिया बाबाजी का लंड टप्प की आवाज के साथ निकल गया । प्रेमा वहीं गिर गई। कुछ देर में उसे फिर होश आया और उसने बाबाजी का लंड देख लिया । प्रेमा डर के मारे सविता के पीछे छुप गई। बाबाजी का लंड फूलकर दर्द कर रहा था। बाबाजी ने अपने संदूक से एक लेप निकाला और सविता को दे दिया उसने प्रेमा की चूत कर लगाया प्रेमा की चूत का दर्द गायब हो गया । दोनो ने पकड़कर प्रेमा को फिर से खड़ा किया रीढ़ दबाई और लंड अंदर तक डाल दिया प्रेमा फिर बेहोश हो गई लेप ने दर्द तो गायब कर दिया लेकिन घाव को तुरंत नही ठीक कर सकता था। सविता के पास दो जिम्मेदारी थी गाय को भी घर भी ले जाना था और सांड को भी चढ़वाना था। सविता ने रिस्क लिया और प्रेमा की बेहोशी में ही बाबाजी को लंड चलाने के लिए कहा ताकि रास्ता बन जाए। बाबाजी ने लंड चलाना शुरू किया तो बिलकुल जाम था।सविता: बाबाजी लंड को एक बार बाहर निकालो इस पर ढेर सारा थूक लगाकर प्रेमा के उठने से पहले पेल दो।बाबाजी ने लंड निकाला देर सारा थूक लगाया और दोबारा लंड प्रेमा की चूत में पेल दिया।सविता: धक्के लगाओ बाबाजी नही तो गड़बड़ हो जाएगी।बाबाजी ने धक्के लगाने शुरू किए धीरे धीरे रास्ता बनना शुरू हुआ, दर्द खत्म करने वाला लेप तो लगा ही हुआ था। सविता ने बाबाजी को लंड चूत में ही डालकर चुपचाप खड़ा रहने की सलाह दी और दोनो प्रेमा के होश आने का इंतजार करती रहे। इस बीच बाबा प्रेमा की दोनो चूंचियों को मसलते रहे और सविता प्रेमा की चूत और गांड़ के इलाके को सहलाकर नरम करती रही । आखिरकार प्रेमा को होश आया उसकी चूत कई जगह छिल गई थी लेकिन दर्द गायब था। लंड अंदर बाहर होने से प्रेमा की चूत से भी काम रस बह रहा था अब उसे भी लंड का अंदर होना अच्छा लग रहा था लेकिन घोड़ी बनने के कारण वो कुछ कर नही सकती थी। उसने खुद को आगे बढ़ाया और बाबा का लंड टप्प से कर के फिर बाहर आ गया। इस बार प्रेमा ने आगे से लंड लेने के लिए मुड़ी तो सविता ने उसकी आंखे ढंक दी। बाबाजी ने दोनो हाथों से प्रेम को पकड़ा और लंड को नीचे से घुसेड़ते हुए ताबड़तोड़ धक्कों की बौछार कर दी इस बार प्रेमा को चक्कर नही आया इसलिए वो छटपटाने चिल्लाने लगी।प्रेमा: अअ अ रे मा आ आ आ ईईई रे कंचअ अ नवा के माई आज मरवावे ले आई है।आह आ ईई ईई ऊऊह आ आ आ सी ईई आहजब उसकी चूत चर्राने लगी तो उसने बाबाजी को नोचना शुरू कर दिया तो सविता ने उसका दोनो हाथ पकड़ रस्सी से बांध दिया । सविता ने बाबाजी को बताया और वो चोदते चोदते प्रेमा का दूध पीने लगे अब प्रेमा भी धक्के में साथ देने लगी और अब विरोध करना बंद कर दिया।बाबा का पूरे जीवन का वीर्य इकट्ठा था । आधे घंटे चली चुदाई में दो बार झड़ने के बावजूद बैठा नही इतने में प्रेमा पांच बार झड़ चुकी थी और वहीं गिर के सोने लगी चूत पूरी जलते वीर्य से भर गई थी। अब क्या किया जा सकता था । एक ही विकल्प था सविता की चूत मारी जाए लेकिन समस्या ये थी उसे कौन पकड़ता । फिर दोनो वापिस कैसे जाएंगी।सविता ने कहा प्रेमा की गांऽऽऽऽऽऽड और चुप हो गई। जब दो बच्चे निकालने वाली चूत न सह पाई बाबाजी के खूंटे तो गांड़ कैसे सह सकती थी तो यह विकल्प भी नहीं था।फिर सविता ने बाबाजी को प्रेमा को फिर से तैयार करने की सलाह दी । बाबाजी ने प्रेमा की दोनो चूंचियों से जबरदस्ती 200-200 ml दूध खींचा, उसके बाद सविता की सलाह पर चूत को चाटना शुरू किया। बाबाजी ने चूत को चाटने की बजाय चूसना शुरू कर दिया जिससे अंदर की कोशिकाएं बाहर की ओर खिंचने लगीं और प्रेमा को तेज गुदगुदी लगी वह आह आह आह बाबाजी अपना मूसल डाल दो आह बाबाजी इस बार अपने आसन पर बैठकर प्रेमा को अपनी गोद में बिठा लिया और उसके होंठों को चूसने लगे ।बाबाजी का लंड प्रेमा की गांड़ की दरार में घुस रहा था। प्रेमा ने मदहोशी में बाबाजी जी का लंड चूत पर लगाकर धीरे बैठ गई। इस बार बाबाजी होंठ और चूंची चाटते रहे प्रेमा ने खुद ही उछल उछलकर चुदाई की और झड़ गई । बाबाजी प्रेमा की चूत में लंड डाले हुए ही उठे साथ में ही प्रेमा को भी दोनों हाथों से उठाया और सविता को प्रेमा के दोनो हाथ पकड़ने को कहा जो इन दोनो की चुदाई देखकर अपनी चूत में उंगली कर रही थी। बाबाजी ने रफ्तार पकड़ी और सटा सट सटा सट चोदना शुरू कर दिया प्रेमा आह आह करती रही उसके आंख से आंसू भी ढुलकते रहे। करीब 35 मिनट चोदने के बाद बाबाजी का लंड झुक गया। उन्होंने तुरंत ही अपना लंगोट बांध लिया। प्रेमा निढाल हो गई । बाबाजी ने एक कपड़े से प्रेमा की बुर पोंछी और लेप लगाया, चुंचियो पर भी लेप लगाया। उसे सविता से कपड़ा पहनवाया और अपने बिस्तर पर लिटा दिया माथे पर थोड़ा पानी छिड़क दिया।सविता की चूत बेचारी तड़पती रही।सविता ने बीस मिनट बाद प्रेमा को उठाया वह उठ गई बाबा जी ने दोनो को हल्का भोजन करवाया, शरबत पिलाया तब जाकर प्रेमा का चित सही हुआ।बाबाजी: ठीक है फिर तुम लोग जाओ अब फिर मिलेंगे।प्रेमा: नही ऐसे कैसे चली जाऊंगी।सविता की चूत में तो आग लगी ही थी वह बोल पड़ी।सविता: तो क्या अपनी गांड़ फी फड़वाएगी।प्रेमा: नही सविता बुरचोदी... तुमने मुझे लाकर फंसा दिया ... जान तेरी चूत बाबाजी नही फाड़ेंगे तब तक नहीं जाऊंगी। प्रेमा हाथ धोने के लिए बाहर जाने को उठी लेकिन लठखड़ाकर गिर पड़ी।सविता: प्रेमा गांड़चोदव तुम्हे घर तक कौन छोड़ेगा।बाबाजी: प्रेमा! सविता सही कह रही है।प्रेमा: ठीक है लेकिन बाबाजी वादा करो कि एकदिन इसकी भी चूत के साथ ही गांड़ भी फाड़ोगे।बाबाजी: इसके बारे में सविता से पूछो।प्रेमा: क्यों रे सविता रण्डी मुझे क्यों बहलाकर ले आई ।सविता: ठीक है मै तैयार हूं जब तू कहे प्रेमा बुरचोदी ।प्रेमा: अब बताओ बाबाजी! जब इसे लाऊंगी तो इसकी चूत फाड़ोगे की नही?बाबाजी: (मन में सोचते हुए सविता ने आज मेरी बहुत मदद की है) ठीक है सविता तैयार हो तभी लाना।सविता सहारा देते हुए प्रेमा को घर लाई। और चंद्रभान को कमर में मोच का बहाना बता दिया ।
Amazing updateअपडेट -5प्रेमा को जितनी चोट दिन में महसूस हुई थी अंदर से कहीं अधिक चोट लगी थी। सुबह उसकी बच्चेदानी तक दुख रही थी । चूत में तो बहुत ज्यादा दर्द था विशेषकर किनारों पर जहां चूत की दरारें फट गईं थी। ..... प्रेमा ने इतना सब झेलने के कारण मन ही मन सोच लिया था की जल्दी ही सविता से बदला लूंगी। और इस हरामजादी अंजली को भी सबक सिखाऊंगी । धीरे धीरे एक हफ्ते में प्रेमा पहले जैसी हो गई।राजू के यहां एक गोशाला थी जिसमें दो गायें एक बछिया और एक बछड़ा था। बछड़ा कमजोर और कद में छोटा था लेकिन बछिया से उमर में बड़ा था और वह भी जवानी में नया कदम रख रहा था इसलिए कभी कभी बछिया पर चढ़ जाता था लेकिन उसका लंड नहीं निकलता था, लेकिन कुछ महीनों बाद वह बछिया गाय या कोई चारा डालने आता जैसे राजू या चंद्रभान पर भी चढ़ने की कोशिश करता शुरुआत में बछड़े ऐसे ही करते हैं और अब तो उसका नुकीला सवा फीट लंबा लंड भी निकलने लगा था। गोशाला में दोनो ओर चरही (चौकोर हौद) बनी थी और बीच में थोड़ी जगह खाली थी । बछड़ा उसी खाली जगह वाले किनारे पर बांधा जाता था और उस बीच में कोई चारा देकर वापस जा रहा होता तब एक बार चढ़कर उतर जाता। जब अचानक चढ़कर उतरता तब उसका लंड केवल चार इंच बिल्कुल नुकीला लाल लाल निकलता था। एक दिन गांव में किसी की बछिया गरम थी और चिल्ला रही थी उसे सुनकर बछड़ा बार बार अपने खूंटे पर घूम रहा था उसी समय प्रेमा चारा देने आई प्रेमा जैसे ही चारा देकर दूसरी ओर जाने के लिए बीच से निकल रही थी तभी बछड़े ने डेढ़ फीट लंबा लंड निकालते हुए प्रेमा पर चढ़ गया बछड़े के वजन से प्रेमा झुक गई बछड़े का लंड साड़ी सहित ढाई तीन इंच प्रेमा की गांड़ में घुस गया। प्रेमा घूमी और उसे छोटी सी डंडी से मारकर भाग आई। प्रेमा के लिए यह घटना अनोखी थी बाद में प्रेमा सोचने लगी की सविता ने बाबाजी के घोड़े जैसे लंड से मेरी चूत का भोसड़ा बनवाया था क्यों न इसकी गांड़ अपने बछड़े से मरवा दूं। उसने सोचा बदला लेने का ये तरीका सहर रहेगा । लेकिन उसे यह नहीं सूझ रहा था कि योजना कैसे बनाई जाए।.... इधर बाबा जी के सामने आने से अंजली, किरन और कंचन भी पता चल गया था कि इसमें बाबाजी आते हैं अब अगर उन्हें पानी पीने के बाद पेशाब लगती तो बाबाजी की कुटिया की दीवार की ओट में बैठकर मूतती । लेकिन बाबाजी के दिमाग में अंजली की गोरी गांड़ का दोबारा दर्शन करने की प्रबल इच्छा हो रही थी। सो बाबाजी ने दीवार में एक छेद बना लिया। आज किरन ने सलवार और चढ्ढी उतारकर गांड़ खोली और दीवार की ओट में मूतने लगी बाबाजी ने उन सब को दौर से आते देख लिया था उन्होंने छेद से देखा तो उस दिन से भी जादा नरम गांड़ गोल गोल गोरी गोरी दिख रही थी जिसके बीचोबीच काला सुराख था और मूतने की मधुर ध्वनि सुनाई दे रही थी आज बाबाजी का लौड़ा लंगोट से बाहर आ गया और झटके मारने लगा किसी तरह दोनों हाथों से पकड़कर बाबाजी ने मुट्ठ मारी और लौड़े को शांत किया। बाबाजी ने इस प्रकार अलग अलग दिन तीनों की गांड़ के दर्शन कर लिए थे और मुट्ठें भी मारी थी। लेकिन अब बाबाजी को फिर से चूत का भूत चढ़ रहा था ।इधर राजू और अंबर शौच करने गए तो अंबर आश्चर्यचकित रह गया राजू की झांटे तो बिलकुल साफ थी ।अंबर: तेरे ये बाल कहां गए। तू नाई के यह गया था? मुझे भी साथ ले चलता।राजू: ये बाल तेरी बहन कंचन ने साफ किए हैं।अंबर: साले तूने मेरी बहन से झांट के बाल बनवा लिए।राजू: कल तूने ही तो उन सबकी गांड़ मारने की बात की थी। चल तुझे वो जगह दिखाता हूं जहां कंचन ने झांट बनाई थी।राजू और अंबर जैसे ही वहां पहुंचे। पूरी तरह नंगी लेटी हुई अंजली और उसकी चूत मसल रही किरन दंग रह गए उसकी चूंचियों का मसाज कर रही कंचन तो राजू के साथ आ ही चुकी थी एक बार।अंजली: तुम सब यहां क्या कर रहे हो?अंबर: हम तो शौच के लिए आए थे । लेकिन तुम ये नंगी क्यों लेटी हो और ये अपनी मूतने की जगह को क्यों रगड़वा रही हो।अंजली: ऐसे ही मजा आता है । तुम सब जाओ यहां से मुझे शर्म आ रही है।अंबर: मुझसे कैसी शर्म कुछ साल पहले हम सब एक साथ ही बैठकर तो शौच करते थे किसका मूत कितनी दूर जाएगा शर्त लगाते थे।अंबर राजू की चढ्ढी नीचे खींच देता है जिससे उसका खड़ा लंड नीचे झूलने लगता है।राजू भी अंबर की शरारत का जवाब देता है और अंबर की चढ्ढी नीचे खींच देता है।अंबर: राजू कह रहा था तुम तीनों में से किसी ने इसकी झांट के बाल बनाए थे किसने बनाया था?कंचन खुशी से: मैंने बनाया था परसों।अंबर: कंचन ने राजू की झांट बनाई थी तो अंजली अब तुम मेरी झांट बनाओगी प्लीज।तीनों का ये खेल इतने दिन से चल रहा था कि अंजली ने शेविंग मशीन भी अरहर में ही छुपा रखी थी।वो थोड़ी दूर गई और शेविंग मशीन लाकर अंबर की झांट बना दी।अंबर को खूब गुदगुदी हुई और उसके लंड ने अंजली के मुंह पर पिचकारी मार दी । अंजली की चूत भी खुजला रही थी वह फिर नंगी लेट गई और कंचन से चूत रगड़वाने लगी । राजू बेचारा अकेले खड़ा था ।तो उसने किरन से कहा तुम भी लेट जाओ।किरन भी सलवार और कच्छी उतारकर लेट गई । थोड़ी देर कंचन के रगड़ने के बाद अंजली की आंखे बंद हो गईं तो कंचन को हटाकर अंबर ने उसकी चूत रगड़ने शुरू कर दी। इससे अंजली ने जल्दी ही पानी छोड़ दिया। राजू ने तो कंचन की चूत मुंह से भी चूस रखी थी तो उसने किरन की चूत पर मुंह रखा और दूध की तरह पीने लगा किरन को जवानी के बाद पहली बार किसी मर्द ने टच किया था उससे बर्दास्त नही हुआ और बह भी झड़ गई। धीरे धीरे सब को समझ में आ गया की चूत में लंड जाता है और लंड चूत में जाता है। इसके लिए सबने योजना बनाई कि जिस दिन दोनो के घर पर कोई न हो उस दिन हम लोग चुदम चुदाई का खेल खेलेंगे।लेकिन इस तरह का मौका नहीं मिल रहा था। इसलिए ये सब अरहर में ही मिलते रहे ।
Nice update bhaiअपडेट- 7.......चंद्रभान ने 11वीं तक पढ़ाई की थी युवावस्था में चाहता तो सरकारी नौकरी मिल जाती लेकिन उसने खेती चुनी और वर्ष भर किसानी और पशुपालन में ही लगा रहता था, इन्ही सब कारण से उसका शरीर बलिष्ठ था लंड भी मोटा और आठ इंच लम्बा था। खेत की सिंचाई के लिए लगे इंजन की रिपेयरिंग भी स्वयं ही करता था पशुपालन के कारण ही उसकी अच्छी खासी आय हो जाती थी जिससे उसका परिवार अभाव में नही था उसके दोनो बच्चे प्रारंभ में सरकारी स्कूल में पढ़ने के बाद गांव से सात किलोमीटर दूर कस्बे में पढ़ने जाते थे वह शिक्षा की कीमत जानता था । उसकी एक अजीब मानसिकता थी वह अपनी गायों (या जब भैंसे रखता था) को कृत्रिम विधि से गर्भाधान नही करवाता था वह इसके लिए तर्क भी देता था कि इससे सांडों का हक मारा जा रहा है और वह परंपरागत विधि से गाय को बांधकर सांड़ को गाय के ऊपर चढ़वाता था। किंतु चंद्रभान की पशुशाला में बनी हौद की ऊंचाई जादा नही थी इसलिए गाय या बछिया जब गरम होती और सांड़ उन पर छोड़ा जाता तो उनके दूसरी तरफ कूदने का डर रहता था उनका गला कस सकता था या गंभीर चोट आ सकती थी इसलिए गाय जब गरम होती तो उसे सविता भाभी की पशुशाला में गाय बांधनी पड़ती। उसे गुस्सा जल्दी नहीं आता था लेकिन जब आ जाता था तो वह क्या कर जाए कुछ नही पता।सीधे शब्दों में चंद्रभान पढ़ा लिखा मेहनती और सीधा साधा आदमी था लेकिन जवानी में लंड को एक ही तरफ रखने के कारण उसका लंड थोड़ा टेढ़ा हो गया था इसलिए वह जब प्रेमा की चुदाई करता उसकी गांड़ फट जाती कारण ये था कि जब चंद्रभान प्रेमा को सामने से चोदता तो उसका लंड प्रेमा की चूत की बाईं साइड ले लेता और जब पीछे से चोदता तो चूत की दाईं साइड । इस कारण से एक तरफ लंड का दबाव कम हो जाता और एक तरफ दबाव ज्यादा बढ़ जाता। चूत का एक हिस्सा हलाल हो जाता जबकि दूसरा हिस्सा कम चुदने के कारण तरसता रहता। इसलिए चंद्रभान ज्यादातर प्रेमा की एक ही तरफ से चुदाई करता था जिससे प्रेमा झड़ भी जाती और उत्तेजना भी बनी रहती जिससे प्रेमा अगले दिन मना नहीं करती थी।आज चंद्रभान को खेत पर कोई खास काम नहीं करना पड़ा था..... लेकिन आज जब वह खेत अपने और एक खेत के बीच की मेड़ पर बैठा फसल निहार रहा था उसी समय एक खेत जो पास के ही दूसरे गांव के एक व्यक्ति का था । उस खेत में लाल साड़ी पहने घूंघट काढ़े एक महिला निराई कर रही थी जब वह थक जाती बीच में उठकर अपनी कमर सीधी करने के लिए उठती उसके बदन में गजब का उत्साह था वह निश्छल भाव से निराई कर रही थी लेकिन उसका गदराया बदन, कसी चूंचियां गांड़ की सीमित किंतु स्पष्ट गोलाई किसी भी मर्द की नियत खराब कर सकता था। चंद्रभान तुरंत समझ गया कि उसे जरूर उसकी सास लाई होगी खेत दिखाने.... लेकिन बहू गजब मिली है कसम से (मन में) । दोनो के निराई करने के कारण घास ज्यादा इकट्ठा हो गई इस वजह से बहू ने सास का गट्ठर तो उठा दिया लेकिन बहू का गट्ठर कौन उठाए, चंद्रभान उनकी इस समस्या को भांप गया और मेड़ पर खड़ा होकर फसल का मुआयना करने के बहाने घूमने लगा। महिला ने चंद्र भान को बुलाया चंदर तनिक ये घास का गट्ठर उठा दो ......उसकी बहू ने शरम के मारे पूरा घूंघट काढ़ लिया नाभि के आसपास के हिस्से को भी छिपा लिया। चंद्रभान उसका चेहरा तो न देख सका लेकिन गट्ठर उठाते समय उसके हाथ को टच करके और उसकी गरम सांसों का कायल हो गया।....चंद्रभान भोजन करके बिस्तर पर आ गया और लाइट बुझा दी मन में सोचने लगा आज प्रेमा को नहीं छोडूंगा। शाम को सविता से कामुक बातें और इन लड़कियों की गांड़ का दर्शन और दस दिन से चूत में लंड न जाने के कारण प्रेमा की चूत की कोशिकाएं लगातार दिमाग को सिग्नल भेज रही थीं कि कोई लंड आकर उन्हें मसले उनकी खुजली मिटाए। प्रेमा ने रात्रि को भोजन आदि किया और बिस्तर पर जाने के लिए आंगन से कमरे में गई वहां बिल्कुल अंधेरा। प्रेमा: राजू के पापा लाइट इतनी जल्दी क्यों बुझा दी।चंद्रभान: ऐसे ही आ जाओ प्रेमा आवाज से दिशा पहचानकर प्रेमा बिस्तर पर आ गई लेकिन रोज की भांति आज उसका शरीर बिस्तर पर शांत नहीं था उसकी चूत में हो रही कुलबुलाहट के कारण आज वह असहज थी .....बार बार कभी इस करवट लेटती कभी उस करवट.... कभी दोनो पैरों को दबाकर चूत को सिकोड़ देती लेकिन दोबारा जब पैर खोलती तो चूत लार टपकाते हुए दोगुनी उत्तेजित हो जाती।चंद्रभान: तेरी कमर सही हुई की नही।प्रेमा: अब तो ठीक हो गई है जी।आईअब चंद्रभान ने बिना हलचल किए सारे कपड़े उतारकर बेड के नीचे फेंक दिया पूरा नंगा हो गया ।उसके बाद दूर से ही प्रेमा की साड़ी पेटीकोट सहित ऊपर कर दी।प्रेमा:क्या कर रहे हो।चंद्रभान: कुछ नही रात में कपड़े पहन कर क्या करोगी । और धीरे धीरे करके प्रेमा की चूत को आजाद कर दिया।और धीरे से उठकर प्रेमा की गांड़ में हाथ लगाकर उसे उठाया और अचानक अपने लंड पर बैठा दिया प्रेमा चौंक गई उसकी चूत की बाईं साइड छिलती चली गई । कुछ देर ऐसे ही बैठाए रखा और ब्लाउज उतारकर फेंक दिया और उसके दूध मसलने लगा होंठ चूमने लगा आह ओह आह ऐसे ही आह करते हुए चंदर की पीठ चूमने लगी और धीरे धीरे लंड पर उठना बैठना शुरू कर दिया। अब चंद्रभान ने भी धक्का लगाना शुरू कर दिया और सट्ट सट्ट फच्च फच्च की आवाज आने लगी। प्रेमा बड़बड़ाने लगी और जोर से और जोर से आहि आहि सीईईईई आआह । चंद्रभान: ले बुरचोदी । इस तरह पंद्रह मिनट तक रस्साकसी का दौर चलता रहा आखिरकार दोनो दो बार झड़कर लेट गए।लेकिन इस चुदाई में प्रेमा को किसी तरह की परेशान नहीं हुई मजा खूब आया । कारण दो थे एक तो बुर सांझ से ही पनिया रही थी और बाबाजी के घोड़े जैसे लंड ने तो प्रेमा को घोड़ी बना ही दिया था।चंद्रभान ने पूछा भी: प्रेमा आज मेरा लंड तेरी चूत में बहुत सरक रहा था जबकि टेढ़ा भी है।प्रेमा: दस दिन से उसे लंड नही मिला था न इसलिए।चंद्रभान ने लाइट जलाई प्रेमा की साड़ी और पेटीकोट को दूर फेंक दिया ...…. चूत चाट कर साफ कर दिया । साफ करने के बाद चूत का अवलोकन किया तो उसने पाया की चूत में टाइट पन तो है लेकिन छेद ज्यादा बड़ा हो गया है। उसका माथा ठनक गया लेकिन वह समझ नही सका कि दस दिन में ही छेद इतना बड़ा कैसे हो गया थोड़ा सा उसे गुस्सा जैसा आ गया । उसने प्रेमा की गांड़ में दो उंगली डाली और ऊपर की ओर खींचने लगा । प्रेमा : अरे आह क्या कर रहे हो।चंद्रभान: बुरचोदी घोड़ी बन।प्रेमा घोड़ी बन गई उसकी दोनो टाइट चूंचियां हवा में लटकने लगीं।चंद्रभान ने दोनो छुचीय को दुहा लेकिन ज्यादा दूध नही निकला क्योंकि पहली चुदाई में उसने खूब दूध खींचा था।का लंड फिर से खड़ा हो गयाप्रेमा इस सब से तो वाकिफ थी ।लेकिन चंद्रभान पीछे आकर खड़ा हुआ और गांड़ की दोनो गोलाईयों को सहलाते हुए चार थप्पड़ चट्ट चट्ट लगाए।अचानक हुए हमले से प्रेमा ने चिल्लाते हुए पीठ को नीचे झुका लिया। उसकी गांड़ और ऊपर हो गई और चूत चंद्रभान के लंड के सामने आ गई। चंद्रभान ने लंड को चूत पर लगाया और असीमित रफ्तार से चोदने लगा। और दोनो दूधों को पकड़कर पीछे खींचने लगा बीच बीच में गांड़ पर तेज थप्पड़ मारता।प्रेमा: आह आराम से चोद लो क्या कर रहे हो आज।चंद्रभान ने आठ दस बार लंड को बच्चेदानी पर टकराया।तभीप्रेमा: आह...समय रहते निकाल लेना... आई आइ।चंद्रभान: निकालकर अपनी बहन की गांड़ में डालेगी क्या।प्रेमा: पेट से हो गई तो गजब हो जाएगा आ आह।चंद्रभान: गजब क्या हो जाएगा गाभिन हो जायेगी तो दूध तो देगी गायों के साथ तेरा भी दूध बेचूंगा।प्रेमा: आह.....लोग क्याआआ कहेंगेेेे े ेे और अकड़ते हुए झड़ गई ।तभी चंद्रभान ने हांफते हुए अपना लंड निकाला और चूतड़ पर एक तेज थप्पड़ मारा प्रेमा ने पीछे की ओर मुंह किया और बोली छोड़ दो अब हाथ जोड़ती हूं। तभी चंद्रभान ने प्रेमा का मुंह पकड़कर लंड आहारनाल के मुहाने तक घुसेड़ दिया।प्रेमा सारा वीर्य पी गई। चूत के तो दर्द नहीं था लेकिन थप्पड़ की वजह से प्रेमा की गांड़ लाल हो गई।
Great job bhai,keep writingअपडेट-9...…जमुना प्रसाद........अपने बड़े भाई से सीखकर जमुना प्रसाद ने भी पशुपालन अपना लिया। जमुना प्रसाद खेती के काम तो संभाल देता था लेकिन पशुपालन के काम में हाथ नही बटा पाता था क्योंकि वह बैल खरीदने बेचने का भी काम करता था । प्रत्येक बुधवार को जब गांव से सात किलोमीटर दूर एक गांव में बाजार लगती तो वह पैदल ही बैलों को ले जाता था। कई बैलों को अपने खेत में चलाकर सुधारता था फिर उनके अच्छे दाम लगते थे। गांवों में एक कहावत मशहूर है भैंस के साथ भैंसा बनना पड़ता है मतलब भैंस पालना बहुत ही मेहनती काम है। यही हाल जमुना का था बैलों को ले जाना अनजान बैलों को ले आना नियंत्रित करना । इन्ही सब कारणों से उसकी शरीर भी बैल जैसी हो गई थी। दूध दही, घी का सेवन खूब करता था तभी तो बैल लेकर सात किलोमीटर पैदल चला जाता था और वापस आ जाता था। और अपने बच्चों को भी घी के सेवन की सलाह कतिपय दे ही देता था। पशुओं का काम सविता ही संभालती थी ज्यादातर। बाद में सविता ने किरन को भी इस काम में लगाना शुरू कर दिया। बांधने चराने का काम तो अंबर कर ही देता था। जमुना सविता को कुछ दिनों के अंतराल पर चोदता था शायद इसलिए कि इससे वीर्य अधिक इकट्ठा हो जाता था और सविता की चूत भी तंग हो जाती थी यही कारण था कि सविता कभी कभार गरमी में रहती थी इस वजह से ही उसके संवाद में गालियों का मिश्रण प्रारंभ हुआ था वरना प्रेमा तो इससे अधिक उम्र की थी फिर भी सविता ने ही प्रेमा को गालियों के मिश्रण से संवाद को निखारना सिखाया था। सविता तो गोबर कांछते समय, चारा डालते समय बछियों को भी गाली दे दिया करती थी। उसे पशुओं से संबंधित अनुभव भी खूब था, किसी भी गाय या बछिया को देख कर बता देती थी कि गाभिन है या नहीं वह भी सांड या कृत्रिम गर्भाधान के केवल एक महीने बाद। एक बार जमुना एक बछड़ा लेकर आया था जो खेत में बिल्कुल भी चलना नही जानता था और अभी तक उसका बधियाकरण (नपुंसक बनाने की विधि) भी नहीं किया गया था। जमुना सोचने लगा मिला तो कम दाम ने है लेकिन इसकी जोड़ी किससे लगाऊं।सविता: क्या सोच रहे हो।जमुना: यही की इस बछड़े का क्या करूं?सविता: इसे तो राजू के बछड़े के साथ नाध दो।जमुना: ठीक है तुम बात कर लेना । मै एक बार खेत की ओर जा रहा हूं।सविता: ठीक है।सविता: राजू के माई का कर रही हो।प्रेमा: कुछ नही अपनी सुनाओ क्या खबर लेकर आई हो।सविता: किरन के पापा एक बछड़ा लेकर आए हैं, मै सोच रही थी तुम्हारे बछड़े के साथ जोड़ लग जाए ।........... या फिर सांड बनाओगी उसे।प्रेमा: काहे का सांड बनाऊंगी। तू सही कह रही है वैसे भी दिन भर खों खोँ करता रहता है।सविता: हां कद काठी में ज्यादा नहीं है लेकिन कई साल का हो गया है।सविता: ठीक है फिर किरन के पापा से बोल दूंगी वह मेरी पशुशाला में बांध देंगे।प्रेमा (मन में): हामी तो भर ली लेकिन मेरी योजना अधूरी रह जाएगी।प्रेमा: तू क्यों परेशान होगी चारा मै ही डाल दूंगी अपने बछड़े को जब खेत में ले जाना हो ले जाएंगे किरन के पापा........सब एक ही तो है....चाहे यहां बंधा रहे चाहे तुम्हारे यहां। और एक साथ बांधने पर हो सकता है दोनो लड़ने लग जाएं दोनो में से एक भी बधिया नही किया गया है।सविता: ठीक जैसी मर्जी तुम्हारी।जमुना दूसरे दिन ही इन बैलों को सुधारने के लिए ले जाने की तैयारी करने लगा।जमुना: सविता ! जा राजू का बछड़ा लेते आ।सविता गई बछड़ा खोलने पहले तो वह भड़क गया लेकिन थोड़ी देर गला सहलाने के बाद सविता उसे खोलने के लिए जैसे ही झुकी उसने आगे दोनो पैर उठाए और चढ़ गया डेढ़ फुट का नुकीला लंड लहराते हुए हालांकि इतने में सविता खड़ी हो गई जिससे बछड़े का लौड़ा गांड़ के उपरी छोर से लेकर पीठ तक रगड़ खा गया। सविता की साड़ी भीगे भीगी महसूस हुई।सविता ने एक डंडा लिया फिर रस्सी खोली और बाहर ले जाने लगी। आधे रास्ते में ही बछड़ा सविता से छुड़ा कर भाग निकला । फिर जमुना ने उसे कंट्रोल किया।शुरू में दोनो बछड़े एक दूसरे को देख कर घूरते रहे उसके बाद दोनो ने पेशाब किया । धीरे धीरे जमुना ने नियंत्रित करके उन्हें खेत जोत दिया, प्रारंभ में उन्होंने काफी नाटक किया लेकिन कुछ देर बाद धीमे धीमे चलना शुरू किया।गांव में एक मात्र मुस्लिम परिवार था। सदस्य अनवर उसकी पत्नी सजिया बेटा हैदर बेटी फिजा। अनवर को जब गांव में आय का स्रोत नही नजर आया तो वह बॉम्बे चला गया एक साल बाद उसने अपने बेटे को भी वहीं बुला लिया बेटी फिजा यहीं साजिया के साथ रह गई।जब अनवर परदेस गया तब उसकी उम्र यही कोई 33-34 वर्ष रही होगी । सजिया की जिंदगी में अकेलेपन का अंधकार छा गया समय बिताना मुश्किल हो गया और तो और उसका वजन भी बढ़ गया।29 की उमर में उसकी जवानी सुलगने लगी और आग लगाने का काम किया उसके खान पान ने (मांसाहार ने) ।सविता : सजिया!सजिया को लगा तो किसी ने बुलाया लेकिन वह आवाज का पीछा विपरीत दिशा की ओर करते हुए आगे बढ़ने लगी।प्रेमा और सविता एक स्वर में: ओ सजिया!सजिया का जैसे ही ध्यान गया वह घूम गई। आई बहन।सविता: तू तो सुनती भी नही ।सजिया: न बहन ऐसी बात न है। मुझे लगा कोई किसी और को बुला रहा है।प्रेमा: बैठ! वैसे कहां जा रही थी।सजिया: मै तो खेत की ओर टहलने जा रही थी सोचा थोड़ा वजन कम कर लूं।सविता: ऐसे टहलने से क्या होगा। मरद बाहर रहता है, तो समय बिताने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा एक दो बकरी रख ले....तालाब की चराने निकल जाया कर....तेरी गांड़ की भी चर्बी न निकल गई तो बताना।सजिया: क्या बोल रही हो बहन।सजिया को सुझाव अच्छा लगा और उसने एक बकरी का प्रबंध कर लिया। हालांकि बकरी को तालाब किनारे ले जाने का कोई मतलब नहीं था। लेकिन 29 बरस की उमर में भी सजिया शरीर को ढीला नही पड़ने देना चाहती थी।इधर किरन, अंजली और कंचन को तो जानवर चराने से छुट्टी दे ही दे गई थी।बाबाजी को अब कभी कभार भी गांड़ का दर्शन नही होता था।समय बदला और सजिया उसी रस्ते से रोजाना गुजरती थी।एक दिन बाबाजी विश्राम कर रहे थे तभी सजिया आई और नल चलाकर पानी पीने लगी । जब तक नल के मुहाने पर हाथ लगाती तब तक पानी आना बंद हो जाता ।बाबाजी ने सिर्फ लंगोट पहन रखा था उठे और एक लाल गमछा बदन डाल लिया ।सजिया देखते ही डर गई और मुंह पर दुपट्टा डाल लिया।बाबाजी: डरो मत, पानी पिलाना तो पुण्य का कार्य है बेटी। और नल चलाने लगे .....सजिया बैठकर पानी पीने लगी और बाबाजी सजिया के कामुक गदराए बदन का मूल्यांकन करने लगे।उसके बाद झट से कुटिया में जाकर छेद पर आंख गड़ा ली सजिया मूतेगी।अंजली, किरन और कंचन तो तीन जनी थी किसी न किसी के पेशाब लग ही जाती थी।लेकिन सजिया को पेशाब नही लगी थी इससे बाबजी निराश हो गए।एक अन्य दिनबाबाजी: बिटिया कहां से आती हो किसके घर से आती हो? गांव में अभी तक तो किसी ने बकरी नही रखी थी।सजिया: मै हैदर की अम्मी। उसके पापा परदेस रहने लगे तो समय बिताने के लिए रख लिया ।हैदर कौन है? उसके पिता का नाम बताओ तब तो मालूम भी पड़े।सजिया (धीमी आवाज में): अनवर।बाबाजी: अच्छा अच्छा अनवर । सही है बेटी तुम्हारा पति कमाने गया है वरना यहां तो कोई रोजगार है नही खेती और पशु पालने के अलावा।सजिया इन सब चीजों से अनजान थी बाब सन्यास तपस्या आदि इसलिए जिज्ञासा वश पूछ बैठी।सजिया: आप यहां अकेले में क्या करत हैं। शुरुआत में तो मुझे लगा यहां कोई नहीं रहता।बाबाजी: मै यहां प्राचीन धर्म ग्रंथों का अध्ययन करता हूं, मैंने गृह का त्याग कर दिया है वानप्रस्थ जीवन व्यतीत कर रहा हूं।सजिया: भोजन कौन पकाता है बाबाजी।बाबा: मै स्वयं ही पकाता हूं।सजिया: क्यों आपकी पत्नी नहीं रहती साथ।बाबा (हंसते हुए): अरे बेटी! वानप्रस्थ जीवन में पत्नी का सवाल ही पैदा नहीं होता। मैने शादी ही नही की है।सजिया की नजर बाबा के लंगोट पर गई उसने देखा नीचे सामान्य से तीन चार गुना उभार था गोल गोल ....तनाव भी था।सजिया (पाने गटकते हुए): फिर भी आप कपड़े पहन लिया करो बाबा मुझे असहज लगता है।बाबा: बेटी मेरा यही वस्त्र है। मुझसे तो परदा भी करना व्यर्थ है।सजिया ने जैसे ही बाबा के उभार की कल्पना बड़े लिंग से की उसके शरीर में झुरझुरी छूट गई। आज उसे पेशाब लग गई।बाबाजी को आज सजिया के गांड़ का दर्शन करने का मौका मिल ही गया। बाबाजी इतनी सुंदर, मांसल गांड़ देखकर पागल हो गए। बाबाजी का लौड़ा फनफनाने लगा। उछलकर बाबाजी का लौड़ा लंगोट से बाहर आ गया।वैसे तो सजिया दीवार की ओट में मूत रही थी लेकिन मूतते हुए उसे लगा कहीं कोई देख न रहा हो कहीं बाबाजी ने देख लिया तो। इसी ख्याल से उसकी पेशाब रूक गई उसकी शरीर में गर्मी बढ़ गई। मूतने में दोगुना टाइम लगा।बाबाजी की समस्या ये थी शुरुआत कैसे की जाए। शादीशुदा औरत से कुछ कह दिया और गांव वालों को पता चल गया तो गांव वाले अस्मिता का सवाल बनाकर जान से मार डालेंगे। अब गेंद सजिया के पाले में थी।लेकिन सजिया तो जवानी की आग में जल ही रही थी लंबे समय में बाबाजी से उसका लगाव बढ़ गया और उसे लगने लगा कि अगर बाबाजी का लंड मिल जाए तो यह तो वानप्रस्थ जीवन बिता रहे हैं इनपर कोई शक भी नहीं करेगा और मेरी चूत की खुजली भी मिट जाएगी।